Wednesday, 16 September 2020

आओं सच्चें हुसैनी बनें


 

🅿🄾🅂🅃 ➪  01

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     ❝ आओं  सच्चे  हुसैनी  बनें!❞
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 मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏


៚  *प्यारे इस्लामी भाइयों !* मज़हबे इस्लाम में एक अल्लाह की एबादत ज़रूरी है साथ ही साथ उसके नेक बंदों से मुहब्बत व अ़क़ीदत भी ज़रूरी है। अल्लाह के नेक अच्छे और मुक़द्दस बन्दों से अस़ली, सच्ची और ह़क़ीक़ी मुहब्बत तो यह है कि उन के ज़रीऐ अल्लाह ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चला जाये ,उनका कहना माना जाये ,अपनी ज़िंदगी को उनकी ज़िंदगी की तरह बनाने की कोशिश की जाये ,इस के साथ साथ इस्लाम के दाइरे में रह कर उन की याद मनाना, उनका ज़िक्र और चर्चा करना, उनकी यादगारें क़ाइम करना भी मुहब्बत व अ़क़ीदत है!

៚  और अल्लाह के जितने भी नेक और बरगुज़ीदा बन्दे हैं उन सब के सरदार उसके आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं, उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह अल्लाह के रसूल होने के साथ-साथ उसके महबूब भी हैं, और जिस को दीन व दुनिया में जो कुछ भी अल्लाह ने दिया, देता है, और देगा, सब उन्हीं का ज़रीआ, वसीला और सदक़ा है, उनका जब विसाल हुआ, और जब दुनिया से तशरीफ़ ले गये तो उन्होंने अपने क़रीबी दो तरह के लोग छोड़े थे, एक तो उनके साथी जिन्हें सहाबी कहते हैं, उनकी तादाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के वक़्त एक लाख से भी ज्यादा थी, दूसरे हुज़ूर की आल व औलाद और आप की पाक 
बीवियां उन्हें अहले बैत कहते हैं।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 03 📚*

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     ❝ आओं  सच्चे  हुसैनी  बनें!❞
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 मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
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៚  हुज़ूरﷺ के इन सब क़रीबी लोगों से मुहब्बत रखना मुसलमान के लिए निहायत जरूरी है।

៚  हुज़ूरﷺ के अहले बैत हों या आप के सहाबी उन में से किसी को भी बुरा भला कहना या उनकी शान में गुस्ताख़ी और बे अदबी करना मुसलमान का काम नहीं है, ऐसा करने वाला गुमराह व बद दीन है उसका ठिकाना जहन्नम है।

៚  हुज़ूरﷺ के अहले बैत में एक बड़ी हस्ती इमाम आली मक़ाम सैयदिना इमाम हुसैन भी हैं उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह हुज़ूर के सहाबी भी हैं, और अहले बैत में से भी हैं!

៚  यानी आप की प्यारी बेटी के प्यारे बेटे आप के प्यारे और चहीते नवासे हैं, रात-रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करने वाले और कुरआने अ़ज़ीम की तिलावत करने वाले मुत्तक़ी इबादत गुज़ार, परहेज गार, बुजुर्ग, अल्लाह के बहुत बड़े वली हैं।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 04 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  03

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     ❝आओं  सच्चे  हुसैनी  बनें! ❞
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मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
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៚  साथ ही साथ मज़हबे इस्लाम के लिए राहे खुदा में गला कटाने वाले शहीद भी हैं, मुहर्रम के महीने की दस तारीख को जुमा के दिन 61, हिजरी में यानी हुज़ूर के विसाल के तक़रीबन पचास साल के बाद आप को और आप के साथियों और बहुत से घर वालों को ज़ालिमों ने ज़ुल्म कर के करबला नाम के एक मैदान में 3, दिन प्यासा रख कर शहीद कर दिया, इस्लामी तारीख का यह एक बड़ा सानिहा और दिल हिला देने वाला हादसा है, और दस मुहर्रम जो कि पहले ही से एक तारीख़ी और यादगार दिन था, इस हादसे ने इस को और भी ज़िन्दा व जावेद कर दिया, और उस दिन को हज़रत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाने लगा।

៚  और गोया कि यह हुसैनी दिन हो गया, और बे शक़ ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन मज़हबे इस्लाम एक सीधा सच्चा सन्जीदगी और शराफ़त वाला मज़हब है और उसकी हदें मुकर्रर हैं।

៚  लिहाजा इस में जो भी हो सब मज़हब और शरीअ़त के दाइरे में रह कर हो तभी वह इस्लामी बुजुर्गो की यादगार कहलायेगी और जब हमारा कोई भी तरीका मज़हब की लगाई चहार दीवारी से बाहर निकल गया तो वह ग़ैर इस्लामी और हमारी बुजुर्ग शख़्सियतों के लिए बाइसे बदनामी हो गया।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 05 📚*

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 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
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៚  हम जैसा करेंगे हमें देख कर दूसरे मज़हबों के लोग यही समझेंगे कि इन के बुजुर्ग भी ऐसा करते होंगे, क्योंकि क़ौम अपने बुजुर्गो और पेशवाओं का तआरुफ़ होती है, हम अगर नमाज़े पढ़ेगे कुरआन की तिलावत करेंगे जूए शराब गाने बजाने और तमाशों से बच कर ईमान दार, शरीफ़ और भले आदमी बन कर रहेंगे, तो देखने वाले कहेंगे की जब यह इतने अच्छे हैं तो इनके बुज़ुर्ग कितने अच्छे होंगे!

៚  और जब हम इस्लाम के ज़िम्मेदार ठेकेदार बन कर इस्लाम और इस्लामी बुजुर्गो के नाम पर ग़ैर इन्सानी हरकतें नाच कूद और तमाशे करेंगे तो यक़ीनन जिन्होंने इस्लाम का मुतालअ नहीं किया है उन की नज़र में हमारे मज़हब का ग़लत तआरुफ़ होगा और फिर कोई क्यों मुसलमान बनेगा।

៚  हुसैनी दिन यानी दस मुहर्रम के साथ भी कुछ लोगों ने यही सब किया, और इमाम हुसैन के किरदार को भूल गए, और इस दिन को खेल तमाशों ग़ैर शरई रसूम नाच गानों, मेलों ठेलों और तफ़रीहों का दिन बना डाला।

៚  और ऐसा लगने लगा कि जैसे इस्लाम भी मआ़ज़ल्लाह दूसरे मजहबों की तरह खेल तमाशों तफ़रीहों और रंग रिलियों वाला मज़हब है।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 05 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  05

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मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
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៚  ख़ुद को मुसलमान कहलाने वालों में एक नाम निहाद इस्लामी फ़िर्का ऐसा भी है कि उन के यहां नमाज़ रोज़े वगैरह अह़कामे शरअ़ और दीन दारी की बातों को तो कोई ख़ास अहमियत नहीं दी जाती बस मुहर्रम आने पर रोना पीटना, चीखना चिल्लाना, कपड़े फाड़ना, मातम व सीना कोबी करना ही उन का मज़हब है गोया कि उन के नज़दीक अल्ल्लाह तआ़ला ने अपने रसूल को इन्ही कामों को करने और सिखाने को भेजा था,और इन्ही सब बेकार बातों का नाम इस्लाम है।

៚  मज़हबे अहले सुन्नत वजमाअत में कुछ हिन्दुस्तान के पुराने ग़ैर मुस्लिमों जिन के यहां धर्म के नाम पर जूये खेले जाते हैं, शराबें पी जाती हैं, जगह जगह मेले लगा कर मर्दों, औरतों को जमा कर के ग़ैर इन्सानी हरकतें की जाती हैं, उनकी सोहबतों में रह कर उनके पास बैठने, उठने, रहने, सहने के नतीजे में खेल तमाशे और वाहियात भरे मेलों को ही इस्लाम समझने लगे, और बांस काग़ज़ और पन्नी के मुजस्समे बना कर उन पर चढ़ावे चढ़ाने लगे।

៚  दर असल होता यह है कि ऐसे काम कि जिन में लोगों को ख़ूब मज़ा और दिलचस्पी आये, तफ़रीह और चटख़ारे  मिलें उनका रिवाज अगर कोई डाले तो वह बहुत जल्दी पड़ जाता है और क़ौम बहुत जल्दी उन्हें अपना लेती है।

៚  और जब धरम के ठेकेदार उनमें सवाब बता देते हैं तो अ़वाम उन्हें और भी मज़ा ले कर करने लगते हैं कि यह ख़ूब रही, रंगरलियां भी हो गई और सवाब भी मिला, तफ़रीह और दिल लगी भी हो गई खेल तमाशे भी हो गये और जन्नत का काम, क़ब्र का आराम भी हो गया।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 07 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  06

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     ❝ आओं  सच्चे  हुसैनी  बनें!❞
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 मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
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៚  मौलवी साहब या मियां हुजूर ने कह दिया है कि सब जाइज़ व सवाब का काम है ख़ूब करो और हमने भी ऐसे मौलवी साहब को ख़ूब नज़राना देकर खुश कर दिया है, और उन्होंने हम को तअ़ज़िये बनाने, घुमाने, ढोल बजाने और मेले ठेले लगाने और उन में जाने की इजाजत दे दी है।

៚  अल्लाह नाराज़ हो या उस का रसूल ऐसे मौलवियों और पीरों से हम ख़ूश और वह हम से खुश।

៚  इस सब के बावजूद अ़वाम में ऐसे लोग भी काफ़ी हैं जो ग़लती करते हैं और इसको ग़लती समझते भी हैं और इस हराम को हलाल बताने वाले मौलवियों की भी उनकी नजर में कुछ औकात नहीं रहती ।

៚  एक गांव का वाक़िआ है कोई तअ़ज़िये बनाने वाला कारीगर नहीं मिल रहा था या बहुत सी रक़म का मुतालबा कर रहा था वहां की मस्जिद के इमाम ने कहा कि किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है तअ़जिया मैं बना दूंगा और इस इमाम ने गांव वालों को ख़ुश करने के लिए बहुत उ़मदा बढ़िया और खूबसूरत तअ़जिया बना कर दिया और फिर उन्ही तअ़ज़िये दारों ने इस इमाम को मस्जिद से निकाल दिया और यह कह कर इस का हिसाब कर दिया कि यह कैसा मौलवी है कि तअ़जिया बना रहा है मौलवी तो तअ़ज़िये दारी से मना करते हैं, और मौलवी साहब का बकौल शाइर यह हाल हुआ कि,

न ख़ुदा ही मिला न विसाले स़नम
न यहां के रहे न वहां के रहे !

៚  दरअसल बात यह है कि सच्चाई में बहुत त़ाक़त है और ह़क़ ह़क़ ही होता है, और सर चढ़ कर बोलता है और ह़क़ की अहमियत उनके नज़दीक भी होता है जो ना ह़क़ पर हैं।

៚  बहरे हाल इस में कोई शक नहीं कि एक बड़ी तादाद में हमारे सुन्नी मुसलमान अ़वाम भाई हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत में ग़लत फ़हमियों के शिकार हो गए और मज़हब के नाम पर नाजाइज़ तफ़रीह और दिल लगी के काम करने लगे उनकी ग़लत फ़हमियों को दूर करने के लिए हम ने यह मज़मून मुरत्तब किया है।

៚  इस मुख़्तसर मज़मून में हम यह दिखायेंगे कि आज कल मुहर्रम के महीने में इस्लाम व सुन्नियत के नाम पर जो कुछ होता है इस में इस्लामी नुक़त़ा_ए_नज़र से सुन्नी उलेमा के फ़तवों के मुताबिक जाइज़ क्या है और नाजाइज़ क्या है किस में गुनाह है और किस में सवाब, इस में बहस व मुंहाहिसे और तफ़सील की तरफ न जा कर सिर्फ जाइज़ और नाजाइज़ कामों का एक जाइज़ा पेश करेंगे और पढ़ने और सुनने वालों से गुज़ारिश है कि वह ज़िद और हठ धरमी से काम न लें, मौत व क़ब्र और आख़िरत को पेशे नज़र रखें।

៚  मेरे अ़ज़ीज़ इस्लामी भाईयों ! हम सब को यक़ीनन मरना है, और ख़ुदा_ए_तआ़ला को मुंह दिखाना है वहां ज़िद और हठ धरमी से काम नहीं चलेगा, भाईयों! आंखें खोलो और मरने से पहले होश में आ जाओ और पढ़ो समझो और मानो।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 08 📚*

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 मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!


                     मुह़र्रम में क्या जाइज़ !? 
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៚  हम पहले ही लिख चुके हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हों या दूसरी अ़ज़ीम इस्लामी शख़्सियतें उनसे असली सच्ची हक़ीक़ी मुहब्बत व अ़क़ीदत तो यह है कि उनके रास्ते पर चला जाये और उन का रास्ता इस्लाम है!

पांचों वक़्त की नमाज की पाबन्दी की जाये,

रमज़ान के रोज़े रखे जायें,

माल की ज़कात निकाली जाये,

बस की बात हो तो ज़िन्दगी में एक मर्तबा ह़ज भी किया जाये,

जुए शराब ज़िना, सूद, झूट, गीबत, फिल्मी गानों, तमाशों और पिक्चरों वगैरह नाजाइज़ हराम कामों से बचा जाये,

៚  और उसके साथ साथ उन की मुहब्बत व अ़क़ीदत में मुन्दर्जा ज़ैल काम किए जायें तो कुछ हर्ज़ नहीं बल्कि बाइसे ख़ैर व बरकत है।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 09 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  08

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 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!


                        न्याज़ व फ़ातिहा
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៚   हज़रत इमाम रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु और जो लोग उनके साथ शहीद किए गये उनको सवाब पहुंचाने के लिए सदक़ा व ख़ैरात किया जाये!

៚   गरीबों मिस्किनों को या दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्ते दारों वग़ैरह को शरबत या खिचड़े या मलीदे वगै़रा कोई भी जाइज़ खाने पीने की चीज़ खिलाई या पिलाई जाये और उसके साथ आयाते कुरआनिया की तिलावत कर दी जाये तो और भी बेहतर है इस सब को उ़र्फ़ में नियाज़ फ़ातिहा कहते हैं यह सब बिला शक जाइज़ और सवाब का काम है, और बुजुर्गों से इज़हारे अ़क़ीदत व मुहब्बत और उन्हें याद रखने का अच्छा त़रीका है लेकिन इस बारे में चन्द बातों का ध्यान रखना जरूरी है!

៚  ① ➪ न्याज़ व फ़ातिहा किसी भी हलाल और जाइज़ खाने पीने की चीज़ पर हो सकती है उसके लिए शरबत खिचड़े और मलीदे को ज़रूरी ख्याल करना जिहालत है अलबत्ता इन चीजों पर फ़ातिहा दिलाने में भी कोई हर्ज़ नहीं है, अगर कोई इन मज़कूरा चीजों पर फ़ातिहा दिलाता है तो वह कुछ बुरा नहीं करता, हां जो उन्हें ज़रूरी ख्याल करता है उनके एलावा किसी और खाने पीने की चीज़ पर मुहर्रम में फ़ातिहा सही नहीं मानता वह ज़रूर जाहिल है।

៚  ② ➪ न्याज़ फ़ातिहा में शेख़ी खो़री नहीं होनी चाहिए और न खाने पीने की चीज़ों में एक दूसरे से मुकाबिला बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ अल्लाह वालों के ज़रिए अल्लाह तआ़ला की नज़दीकी और उसका कुर्ब और रज़ा हासिल करने के लिए हो और अल्लाह के नेक बन्दों से मुहब्बत इस लिए की जाती है कि उन से 
मुहब्बत करने और उनके नाम पर खाने खिलाने और उन की रुहों को अच्छे कामों का सवाब पहुंचाने से अल्लाह राज़ी हो, और अल्लाह को राज़ी करना ही हर मुसलमान की ज़िन्दगी का असली मक़सद है।

៚  ③ ➪ न्याज़ फ़ातिहा बुजुर्गों की हो या बड़े बुढ़ों की उस के तौर तरीके जो मुसलमानों में राइज हैं जाइज़ और अच्छे काम हैं फ़र्ज और वाजिब यानी शरअन लाजिम व ज़रूरी तो नहीं अगर कोई करता है तो अच्छा करता है और नहीं करता है तब भी गुनाहगार नहीं, हां कभी भी और बिल्कुल न करना महरूमी है, न्याज़ व फ़ातिहा को न करने वाला गुनाहगार नहीं है, हां इस से रोकने और मना करने वाला ज़रूर गुमराह व बदमज़हब है और बुजुर्गों के नाम से जलने वाला है।..✍🏻
 
                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 10 📚*

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                        न्याज़ व फ़ातिहा
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៚ ❹ ➪  न्याज व फ़ातिहा के लिए बाल बच्चों को तंग करने की या किसी को परेशान करने की या खुद परेशान होने की या उन कामों के लिए क़र्ज़ा लेने की या गरीबों मजदूरों से चन्दे करने की कोई ज़रूरत नहीं, जैसा और जितना मौका हो उतना करे और कुछ भी न हो तो खाली कुरआन या कलमा_ए_त़य्यबा या दुरूदशरीफ़ वग़ैरह का ज़िक्र करके या नफिल नमाज़ या रोज़े रख कर सवाब पहुंचा दिया जाये तो यह काफ़ी है, और मुकम्मल न्याज़ और पुरी फ़ातिहा है, जिस में कोई कभी यानी शरअ़न ख़ामी नहीं है, खुदा_ए_तआ़ला ने इस्लाम के ज़रिए बन्दों पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डाला ज़कात हो या स़दका_ए_फ़ित्र और कुरबानी सिर्फ उन्हीं पर फ़र्ज व वाजिब हैं जो साहिबे निसाब यानी शरअ़न मालदार हों, हज़ भी उसी पर फ़र्ज किया गया जिस के बस की बात हो, अ़क़ीक़ा व वलीमा उन्हीं के लिए सुन्नत हैं जिनका मौका हो जब कि यह काम फ़र्ज व वाजिब या सुन्नत हैं, और न्याज व फ़ातिहा उ़र्स वग़ैरह तो सिर्फ बिदआ़ते ह़सना यानी सिर्फ अच्छे और मुस्तहब काम हैं, फर्ज व वाजिब नहीं हैं यानी शरअ़न लाजिम व ज़रूरी तो नहीं हैं, फिर न्याज व फ़ातिहा के लिए क़र्ज़ लेने, परेशान होने और बाल बच्चों को तंग करने की क्या जरूरत है, बल्कि हलाल कमाई से अपने बच्चों की परवरिश करना बजाते खुद एक बड़ा कारे ख़ैर, सवाब का काम है।

៚  ख़ुलासा यह कि उ़र्स, न्याज व फ़ातिहा वग़ैरह बुजुर्गों की यादगारें मनाने की जो लोग मुख़ालिफ़त करते हैं वह गलती पर हैं और जो लोग सिर्फ उन कामों को ही इस्लाम समझे हुये हैं और शरअ़न उन्हें लाजिम व ज़रूरी ख्याल करते हैं वह भी बड़ी भूल में हैं।

៚ ❺ ➪ न्याज व फ़ातिहा की हो या कोई और खाने पीने की चीज़ उसको लुटाना, भीड़ में फेंकना कि उनकी बे अदबी हो पैरों के नीचे आये या नाली वग़ैरह गन्दी जगहों पर गिरे एक ग़लत तरीका है, जिस से बचना ज़रूरी है, जैसा कि मुहर्रम के दिनों में कुछ लोग पूड़ी, गुलगुले या बिस्किट वग़ैरह छतों से फ़ेंकते और लुटाते हैं यह ना मुनासिब हरकतें हैं।...✍🏻
 
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                        न्याज़ व फ़ातिहा
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៚ ❻  ➪  न्याज़ व फ़ातिहा यानी बुजुर्गों को उनके विसाल के बाद या आम मुरदों की रुहों को उनके मरने के बाद सवाब पहुंचाने का मतलब सिर्फ यहीं नहीं कि खाना पीना सामने रख कर और कुरआने करीम पढ़ कर ईसाले सवाब कर दिया जाये, बल्कि दूसरे दीनी इस्लामी या रिफ़ाहे आ़म यानी अ़वाम मुस्लिमीन को नफ़ा पहुँचाने वाले काम कर के उन का सवाब भी पहुँचाया जा सकता है।

किसी ग़रीब बीमार का एलाज करा देना,

किसी बाल बच्चेदार बेघर मुसलमान का 🏡 घर बनवा देना,

किसी बे क़सूर कैदी की मदद कर के जेल से रिहाई दिलाना,

जहाँ मस्जिद की ज़रूरत हो वहाँ मस्जिद बनवा देना,

अपनी तरफ़ से इमाम व मुअज़्ज़िन की तंख़्वाह जारी कर देना,

मस्जिद में नमाज़ियों की ज़रुरतों में ख़र्च करना,

इल्मे दीन हासिल करने वालों या इल्म फैलाने वालों की मदद करना,

दीनी 📖 किताबें छपवा कर या ख़रीद कर तक़सीम करना,

दीनी मदरसे चलाना,

रास्ते और सड़कें बनवाना या उन्हें सही करना,

रास्तों में राह गीरों की ज़रुरतों के काम कराना वग़ैरह वग़ैरह।

៚ यह सब👆 ऐसे काम हैं कि उन्हें करके या उन पर ख़र्चा करके, बुजुर्गों या बड़े बूढ़ों के लिए ईसाले सवाब की नियत कर ली जाये तो यह भी एक किस्म की बेहतरीन न्याज व फ़ातिहा हैं, ज़िन्दों और मुर्दों सभी का उसमें नफ़ा और फ़ाइदा है।

៚ हदीस पाक में है कि हुज़ूर पाक के एक सहाबी हज़रते सअद इब्ने उ़बादा रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु की माँ का विसाल हुआ तो वह बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अ़र्ज़ किया-

៚ या रसूलुल्लाहﷺ ! मेरी माँ का इन्तिकाल हो गया है तो कौनसा स़दक़ा बेहतर रहेगा। सरकार ने फ़रमाया- पानी बेहतर रहेगा। उन्होंने एक कुँआ खुदवा दिया और उस के क़रीब खड़े होकर कहा- यह कुँआ मेरी माँ के 
लिए हैं।...✍🏻
 
*📔 मिश्कात बाबो फ़ज़लुस्स़दक़ा सफा़-169*

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                        न्याज़ व फ़ातिहा
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៚  यानी जो लोग इस से पानी पियें उसका सवाब मेरी माँ को फहुँचता रहे।

៚  शारेहीने हदीस फ़रमाते हैं- हुज़ूर ﷺ ने पानी इसलिए फ़रमाया कि मदीना तय्यबा में पानी की किल्लत थी पीने का पानी ख़रीदना पड़ता था, गरीबों के लिए दिक्कत का सामना था इसलिए हुज़ूरﷺ ने हज़रत सअ़द से कुँआ खोदने के लिए फ़रमाया।

इस हदीस से यह बात साफ़ हो जाती है कि मुर्दों को कारेख़ैर का सवाब पहुँचता है और यह कि जिस चीज़ का सवाब पहुँचाना हो उस खाने पीने की चीज़ को सामने रख कर यह कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि उसका सवाब फ़ला को पहुँचे क्योंकि हज़रत सअ़द ने कुँआ खुदवा कर कुँआ की तरफ़ इशारा कर के यह अलफ़ाज़ कहे थे, लेकिन इस को ज़रूरी भी नहीं समझना चाहिए कि खाना पानी सामने रख कर ही ईसाले सवाब जाइज़ है, दूर से भी कह सकते हैं, दिल में कोई नेक काम कर के या कुछ पढ़ कर या खिला कर किसी को सवाब पहुंचाने की नियत करले तब भी काफ़ी है, अल्लाह तआ़ला सवाब देने वाला है वह दिलों के अह़वाल से खूब वाक़िफ़ है, यह सब तरीके दुरुस्त हैं उन में से जो किसी तरीके को ग़लत कहे वही खुद ग़लत है।...✍🏻


                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 14 📚*

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     ❝ आओं  सच्चे  हुसैनी  बनें!❞
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 मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!


                          ज़िक्रे शहादत
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៚  हज़रत सय्यद इमाम हुसैन रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु और दूसरे हज़राज अहले बैअत किराम का ज़िक्र नज़्म में या नस्र में करना और सुनना यकीनन जाइज़ है, और बाइसे खैर व बरकत व नुजूले रहमत है लेकिन इस सिलसिले में नीचे लिखी हुई चन्द बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी है!

៚   जि़क्रे शहादत में सही रिवायात और सच्चे वाक़िआत ब्यान किए जायें, आज कल कुछ पेशावर मुक़र्रिरों और शाइरों ने अ़वाम को खुश करने और तक़रीरों को जमाने के लिए अ़जीब-अजीब किस्से और अनोखी निराली हिकायात और गढ़ी हुई कहानियाँ और करामात बयान करना शुरू कर दिया है, क्योंकि अ़वाम को ऐसी बातें सुनने में मज़ा आता है, और आज-कल के अकसर मुक़र्रिरों को अल्लाह व रसूल से ज्यादा अ़वाम को खुश करने की फ़िक्र रहती है, और बज़ाहिर सच से झूठ में मज़ा ज़्यादा है और जलसे ज़्यादा तर अब मज़ेदारियों के लिए ही होते है।

៚  आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अलैहि फंरमाते हैं शहादत नामे नज़म या नस्र जो आज-कल अ़वाम में राइज हैं अकसर रिवायाते बातिला व बे सरोपा से ममलू और अकाज़ीब मोजूआ पर मुश्तमिल हैं। ऐसे बयान का पढ़ना और सुनना, वह शहादत नामा हो, ख़्वाह कुछ और, मज्लिसे मीलादे मुबारक में हो ख़्वाह कही और मुतलक़न हराम व नाजाइज़ हैं।

*📕 फ़तावा रज़विया जिल्द-24, सफा-514, मतबुआ रज़ा फ़ाउन्डेशन लाहौर*

៚  और उसी किताब के सफ़ा-522 पर इतना और है यूँही मरसिये, ऐसी चीज़ों का पढ़ना सुनना सब गुनाह व 
हराम है।...✍

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*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 15 📚*

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मुहम्मद की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
 
 इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!


                          ज़िक्रे शहादत
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៚  हदीस पाक में है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने मरसियों से मना फ़रमाना।

 ៚  ज़िक्रे शहादत का मक़सद सिर्फ वाक़िआत को सुन कर इबरत व नसीहत हासिल करना हो और साथ ही साथ स्वालिहीन के ज़िक्र की बरकत हासिल करना ही हो, रोने और रुलाने के लिए वाक़िआते करबला बयान करना नाजाइज़ व गुनाह है, इस्लाम में 3 दिन से ज़्यादा मौत का सोग जाईज़ नहीं।

៚ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ बरेलवी फ़रमाते हैं शरीअ़त में औरत को शौहर की मौत पर चार महीने दस दिन सोग मनाने का हुक्म दिया है, औरों की मौत के तीसरे दिन तक इजाज़त दी है, बाकी हराम है, और हर साल सोग की तजदीद तो अस़लन किसी के लिए हलाल नहीं।

*📗 फ़तावा रज़विया जिल्द-24, सफहा-495*

៚ और रोना रुलाना सब राफज़ियों के तौर तरीके हैं क्योंकि उनकी किस्मत में ही यह लिखा हुआ है, राफ़्ज़ी ग़म मनाते हैं और ख़ारज़ी खुशी मनाते हैं और सुन्नी वाक़िआते करबला से नसीहत व इबरत हासिल करते हैं और दीन की ख़ातिर कुरबानियाँ देने और मुसीबतों पर सब्र करने का सबक लेते हैं और उनके ज़िक्र से बरकत और फ़ैज़ पाते हैं।

៚  हां अगर उनकी मुसीबतों को याद कर के ग़म हो जाये या आंसू निकल आयें तो यह मुहब्बत की पहचान है। मतलब यह है कि एक होता है ग़म मनाना और ग़म करना, और एक होता है ग़म हो जाना, ग़म मनाना और करना नाजाइज़ है और ध्यान आने पर खुद ब खुद हो जाये तो जाइज़ है।...✍

                *⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*

*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 17 📚*

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