❝ इस्लाम और पर्दा ❞
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत ये जो आजकल औरतें लड़कियां बाज़ार में, बुर्का तो पहनती हैं मगर चेहरा खुला रखती हैं क्या ये सही है गैर मर्द के सामने चेहरा खोल सकते है, और अगर किसी से कहो की चेहरा ना खोलो तो कहती हैं शरीअत ने चेहरा खोलने की इजाज़त दी है, आप बताएं क्या सही है ?
╭┈► *जवाब ➺* पर्दादार चेहरे को चमकाता हुआ, झूठे पर्दो पर कहर बरसाता हुआ, (रादुल हिजाब बिल बातिल निकाब) (सभी माली फैली इबादत अजमत वाले शोहरत वाले इज्जत वाले ज़मीन और आसमान के नूर (अल्लाह) के लिए, जो चमकाएगा, कियामत में चेहरा अपने करम से इस तहरीर के लिखने वाले का, और पढ़ने वालों और खास कर अमल करने वालों का, उनके साथ जिनके साथ वादा किया गया की कुछ चेहरे हश्र के मैदान में चमकते होंगे, और दुरूद ओ सलाम हो बेशुमार बेशुमार उस नूरानी चेहरे वाले के लिए जिनकी औलाद दर औलाद को इमामे अहले सुन्नत ने नूर फ़रमाया, और तमाम सहबा और अहले बैत पर जिन्होंने गवाही दी की *हुजूर ﷺ का* चेहरा 14 वी के चाँद से ज्यादा चमकदार था) जी हाँ पुर फितन दौर को देखते हुए उलमा ने चेहरे को छिपाने को वाजिब लिखा है, मैं कहता हूँ *(अल्लाह ही की तोफिक से)* की सारा कमाल और वबाल चेहरे का ही है, चेहरा ही भाता है, और चेहरा ही डुबाता है, और कल दोज़ख में भी कुछ औरते अपने चेहरे नोचती होगी, मगर कुछ के चेहरे तो नूरानी होंगे तो फिर मेरी इस बात में कुछ मुबालग़ा नहीं, अगर में कहूँ, की “हुस्न का दारो - मदार चेहरे पर है, जो गैर मर्द से हुस्न को छुपाना चाहै उसे चाहिए की चेहरे को छिपा ले!"
*╭┈► फतावा रज़विया जिल्द : 14 सफह : 552 पर है :* “उलामा ने चेहरे छिपाना सदी अव्वल में वाजिब ना था, वाजिब कर दिया”!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 09 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► हिदाया में हैं यानि चेहरे पर पर्दा लटकाना औरतों पर वाजिब है, शरह लिबास में है यानि यह मसअला इस बात पर दलालत करता है की औरतो को बिला ज़रूरत अजनबी लोगों पर अपना चेहरा खोलना मना है!
╭┈► दुरै मुख़्तार में है यानि फ़ित्ने के खोफ से औरत को मर्दो में चेहरा खोलने से रोका जाये, इस किस्म के सेकड़ो मसाइल हैं जिसे उलामा ने वक़्त की नजाकत के तहत बदल दिया, और जो कहै की ये *हुजूर ﷺ* के वक़्त में नहीं था या शरीअत में पहले नहीं था अब क्यूँ तो वो जाहिल है क्यूंकि इस तरह के हुक्म शरीअत के खिलाफ नहीं बल्कि ऐन शरीअत ही के मुताबिक और हुजूर ﷺ के फरमान ही के मुताबिक हैं, और अगर कोई अहमक औरत जो अहकामे शरीअत से बेखबर हो और यूँ कहै की जब दौरे रसूल में चेहरा छिपाना वाजिब नहीं तो अब क्यूँ तो इसका जवाब ये है की दौरे रसूल में तो औरते मस्जिद में भी नमाज़ पढ़ती थी बल्कि हुजूर ﷺ ने फ़रमाया जब तुम में से किसी की औरत मस्जिद जाने की इजाज़त चाहै तो उसे मना ना करो" (इस हदीस को बुखारी और मुस्लिम ने रिवायत किया)!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 9-10 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► और फ़रमाया हदीस में अल्लाह की कनीजों को अल्लाह की मस्जिदों से ना रोको (मुस्लिम और अबु दावूद ने सुनन में नक़ल किया)!
╭┈► मगर आज कोई औरत नहीं कहती की मस्जिद में जमाअत से नमाज़ पढना चाहती हूँ, क्यूंकि वो तो पहले ही घर में भी नमाज़ पढना नहीं चाहती और नमाज़ में कसरत है वुजू और हाथ पैर हिलाने की और चेहरा दिखाने में हुस्न का दिखावा ज़ीनत का इज़हार है कोई कसरत मशक्कत नहीं बल्कि दिल को भाता है, की गैर हमारा हुस्न देखें, तो खुद गौर कर ले की नफस की गलबे की खातिर चेहरा खोलना चाहती है या शरीअत की खातिर इसलिए तरह तरह के हीले करती है और नफस पर फ़ौरन शरीअत और रसूल का दौर याद आ जाता है, जमाअत से नमाज़ पर कभी ना आया, पहली सदी में औरतें मस्जिद जाती मगर बाद में वक़्त की नजाकत के तहत दौरे फ़ारूके आज़म में इसे भी बंद करना पढ़ा, उस वक़्त क्या हज़रत उमर और हज़रत आयशा को ये नहीं मालूम था की वो ऐसे काम पर पाबन्दी लगा रहै हैं जिस पर हबीब खुदा ﷺ ने पाबन्दी ना लगाईं, बल्कि!
╭┈► हज़रत आयशा रदिअल्लाह तआला अन्हा ने फ़रमाया हुजूर ﷺ हमारे ज़माने की औरतों को देखते तो उन्हें मस्जिद जाने से मना करते जैसे बनी इसराइल ने अपनी औरतों को मना कर दिया “इस फरमान से ये साबित है हुजूर ﷺ भी होते तो उस दौर को देखते हुए ज़रूर यही हुक्म देते जो हमने दिया इस हदीस से चमकते चेहरे की तरह साफ़ हो गया की उलामा का कोई फरमान खिलाफे रसूल नहीं होता बल्कि एन हुक्मे रसूल पर होता है, उसके बाद आज तक उलामा ने औरतो को मस्जिद की हाजरी से बाज़ रखा क्यूंकि अब तो दौर उससे भी ज्यादा आग बरसाने वाला है!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 10-11 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► फ़तहुल क़दीर में है यानि फसाद के ग़लबे की वजह से तमाम वक्तों की नमाज़ों में जवान बूढी औरतों का निकलना मुताखिरीन ने माना फ़रमाया है, फ़िक्ह का एक क़ायदा भी है की ज़माने की तबदीली के सबब एहकाम की तबदीली का इंकार नहीं किया जा सकता!
╭┈► खुलासा ए कलाम और मेरी राय भी यही है की, हर मर्द पर लाज़िम है की वो गैर के सामने पर्दे के साथ साथ अपनी औरत को चेहरा छिपाने का भी हुक्म दे, और जो ये कुछ निक़ाब होते है जिसमे आँखे खुली होती है मेरे नज़दीक इसका पहनना भी नापसंदीदा है, और ये मेरी जाती राय है बल्कि आँखो सहित पूरा चेहरा ढका होना चाहिए, इसकी एक खास वजेह है की चेहरा छिपाने का हुक्म इसीलिए है की “ना रंग दिखे ना उमर" मगर निकाब मे आखे खुले रहने से औरत की उमर और रंग का अंदाज़ा हो जाता है और ये भी की जवान है या बूढ़ी बस ये दिल मे फ़साद पैदा करने के लिए काफ़ी है तो चाहिए मुसलमान इज़्ज़त वाले मर्दो और औरतो को की बाज़ारो और गैर मर्द के सामने मुकम्मल पर्दा करे यानी चेहरा भी छिपाए और आँखे भी ढक कर रखे, और घर मे रहते हुए चूंघट करा जा सकता है इसमे दुशवारी नहीं है, अगर कोई करना चाहे और मुझे हैरत है दौर रसूल मे तो सहाबिया रात रात भर नमाज़ पढ़ती थी, रोज़ा रखती थी, इस काम को लेकर वो दौर याद क्यूँ नही आता की हम भी रातो को आराम ना करके नमज़े पढ़े दौर याद आया तो चेहरे के खोलने पर!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 11-12 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► इस कलाम को पढ़ने के बाद कहेंगे कुछ बेबाक़ लोग की “पर्दा आँखो का है" फिर मैं कहूँगा की अगर इस दौर मे लोगो मे हया ज़्यादा आ गई क्या उस पहली सदी मे हयादार नही थे और मुमकिन है फिर कोई बेबक़ बोल बेठे की "दिल साफ होना चाहिए"
╭┈► तो मेरा जवाब यही होगा की जब हज़रत आयशा रदिअल्लाह तआला अन्हा हुजूर ﷺ के मज़ार पर हाज़िर होती तो पर्दे का खास ख्याल ना रखती फरमाती ये मेरे शोहर है, फिर जब हज़रत अबु बक़र हुजूर के क़दमो मे दफ़न हुए तो भी यही हाल था क्यूंकी अब एक शोहर एक वालिद थे मगर जब हज़रत उमर का मज़ार भी वही बना तो खूब ढक कर आने लगीं, क्यूंकी हज़रत उमर गैर मर्द थे, फिर वही बात, क्या हज़रत उमर से ज़ियादा इज़्ज़त वाले इस ज़माने मे आ गये या हज़रत आएशा से ज़्यादा हया वाली आ गई, जो तुम्हारे सिर्फ़ दिल का पर्दा काफ़ी है, कही इसका मतलब ये तो नही है, की आप साबित करना चाहते हो की आप उन हज़रात से ज़्यादा नेक हो!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 12-13 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► अल्लाह ता'आला से दुआ है की वो इस कलाम मे छिपे असली मक़सद मे कामयाबी दे, और मुसलमान औरतो को इसे समझने और दिल से कुबूल करने और अमल करने का जज़्बा दे, ताकि कल चेहरा खुदा के सामने दिखाया जा सके, और घर मे देवर, जेठ कज़िन से भी घूगट करने की तोफिक़ बख़्शे, और अगर कोई ऐसा करे तो बेशक ज़्यादा सवाब की हक़दार होगी!
╭┈► तुम्हारा रब फरमाता है क़ुरआन सुराह 99 आयत 7 मे तो जो एक ज़र्रा भर भलाई करे उसे देखेगा
╭┈► और फरमाता है सुरह 94 आयात 5-6 मे “तो बेशक दुशवारी के साथ आसानी है, बेशक दुशवारी के साथ आसानी है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* जनाब क्या औरत आइब्रो बनवाए तो कुछ हर्ज है क्या ये गुनाह है जवाब दें तो सवाब पाए ?
╭┈► *जवाब ➺* बुखारी की हदीसे पाक मे ऐसी औरतो पर लानत फरमाई और इसे क़यामत की निशानी मे शुमार फरमाया की आखरी ज़माने मे औरते अपनी भवें के बाल नोचेंगी,
╭┈► *फरमाया ➺* (खुलासा ए अहादीस ए मुबारका) औरत हसीन बनने के लिए भवों के बाल नोचे उस पर अल्लाह की लानत है और गोदने वाली और गुदवाने वालीओ पर भी, इसी तरह मर्दो की वाज़ेह बनाने वालीओ पर भी, मुँह के बाल नोचने वालीओ पर (अल्लाह की बनावट मे तब्दीली करती है)
╭┈► उम्दतुलकारी शरह बुखारी मे इस हदीसे पाक की शरह इस तरह ब्यान की (खुलासा) हदीस मे हसीन बनने के लिए लानत आई लिहाज़ा इस कैद का लिहाज़ रखा जाएगा, यानी कोई खूबसूरत है और मज़ीद खूबसूरत बनने के लिए भवे बनवाए तो इस हदीस की ज़द मे है, लानत के तहत है और अगर किसी औरत के भवे इस क़द्र है की जिससे चेहरा बदनुमा लगता है जिससे रिश्ते मे रुकावट या फ़र्क आता हो या रिश्ता टूटने का ख़तरा हो तो इस बदनुमाई से बचने के लिए ज़रूरतन ऐसा करे तो हर्ज नही मगर नियत यही हो की बदनुमाई से बचने के लिए नाकी खूबसूरत दिखने के लिए और अगर ऐसी कोई बात नही महैज़ शोहर के लिए ऐसा करेगी तो भी गुनहगार होगी, अल्लाह और उसके रसूल की हुक्म मे किसी की इतात जाइज़ नही और फरमाता है तुम्हारा रब अपने कलाम मे की रसूल जो दें लेलो, जिससे मना करें, बाज़ रहो!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 13-14 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* औरते भी इज्तिमा का काम करती है और तक़रीर भी करती है और तक़रीर के बाद सलाम भी पड़ती है मईक मे यह सब करना ठीक है ?
╭┈► *जवाब ➺* इस सुवाल मे 3 अलग अलग सुवाल दर्ज है,
❶ ➺ *औरते इज्तिमे के काम करती है :* अगर ये औरते दीने मतीन की तब्लीग के लिए घर से जाती है और पर्दे की शराइत पर किसी के घर जा कर औरते जमा होती है, फिर कुछ नात, कुरआन, नमाज़ वगैरा सीखती है, और इनके जाने की इजाज़त घर मे शोहर या गैर शादी शुदा को वालिद की तरफ से है तो हर्ज नहीं, बल्कि सवाब का काम है, की आज कल जहालत औरतो मे ज्यादा पाई जाती है, तो अगर कोई काबिल औरत ये ज़िम्मा उठाए की हफ्ते मे एक या दो दिन, घर के आसपास ही या अपने घर जहां शरई तोर पर पर्दा मुसलमान मर्द हो और गैर मर्द का दखल ना हो और इल्मे दीन सीखे सिखाए तो अच्छा है, और इल्म सीखना खास कर अपनी ज़रूरत के मसाइल तो औरत पर फ़र्ज़ है, मगर औरत 92 K/M से ज़्यादा तन्हा सफ़र नही कर सकती, और इलाके मे भी आसपास हो और मगरिब से पहले अपने घर आ जाए, अगर यही मामला है तो इलाके वाले सुन्नी मुसलमानो को चाहिए की वो भी अपने घर से बच्चियों को वहा भेजे ताकि वो भी कुछ फ़र्ज़, अदब, पर्दा, नमाज़ वगेरा, सीख सके, वरना घर मे सिवाए टीवी, फिल्म सीरियल के कुछ होता देखा नहीं जाता, और औरत को गैर मर्द से पढ़ने से बेहतर है की इसी तरह औरतो के इज्तिमे मे भेजा जाए ताकि कुछ हासिल हो।
╭┈► हदीस मे आया की अगर तेरे ज़रिए से अल्लाह किसी एक शख्स की भी इस्लाह फरमा दे तो ये तेरे लिए हर उस चीज़ से बेहतर है जिस पर सूरज चमकता है, जबकि ये औरते सुन्नी हो ना की देवबंदी, वरना देवबंदिओ की तालीम मे घर से औरतो को भेजना या जाना हराम है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 14 - 15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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❷ •➺ *औरते तकरीर करती है :* अगर औरत किताब देख कर तकरीर करती है और अच्छा पढ़ना जानती है और अपनी तरफ से कुछ ग़लत व्यानी नही करती तो सिर्फ उर्दू या हिन्दी पढ़ने वाली औरत को इस तरह देख कर ब्यान करना जाइज़ है, फिर चाहे वो आलिमा ना हो, और अगर वो (माशा अल्लाह) आलिमा है तो आलिमा को बगैर देखे तकरीर जाइज़ है, और आलिमा नही तो गैर आलिमा को बे देखे वाज़ (ब्यान) हराम है और उसका सुनना भी हराम।
❸ •➺ *औरते MIC पर सलाम भी पढ़ती है :* औरतो का बाद इज्तिमा सलाम पढ़ना जाइज़ है, जबकि आवाज़ गैर तक ना जाए और अगर आवाज़ जाने का ख़तरा हो तो बगैर मईक के ही पढ़े, और मईक का हुक्म ऊपर के सभी सुवाल मे लगाया जाएगा, की औरत ब्यान, सलाम मे मईक जब ही इस्तेमाल करे जब आवाज़ बाहर ना जाए, मसलन, किसी टॉप फ्लोर पर इज्तिमा या सलाम हो रहा है और मईक की आवाज़ उस फ्लेट से बाहर नहीं आती या उस कमरे से बाहर नही आती तो मईक मे पढ़ने मे हर्ज़ नही वरना मईक से परहेज़ करना चाहिए।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 15 - 16 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत औरते साड़ी जो बाँधती हैं काफ़िर औरतो की तरह क्या वो सही है ?
╭┈► *जवाब ➺* साड़ी पहनने में हर्ज़ नही हर्ज़ साड़ी मे उस वक़्त होगा, जब गैर मर्द के सामने जाएगी की सित्र का पर्दा ना हो सकेगा, या हालत ए नमाज़ मे अगर सित्र दिखाई देता है तो नमाज़ नही होगी, अगर ऐसा कुछ नही सिर्फ़ घर में अपने शोहर के साथ है तो पहन सकती है मगर इसकी आदत ना करे क्यूंकी कभी तो कोई रिश्तेदार मेहमान वगैरा घर मे आएगा ही और वही लिबास इख्तियार करना चाहिए जिससे पर्दा-पोशी ज़्यादा हो सके।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 16 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* अगर औरते सोने चाँदी के सिवा आर्टिफिशियल जेवएलरी या कुछ और पहनती है क्या उस पे नमाज़ नही होती है?
╭┈► *जवाब ➺* सद्र-उसशरीया मुफ़्ती अमजद अली आज़मी फरमाते हैं, (सोने चाँदी के अलावा) दूसरे धात की अंगूठी पहनना हराम है मसलन, लोहा पीतल, तांबा जस्ता वगेरा, इन धातो की अंगूठिया मर्द वा औरत दोनो के लिए नाजाइज़ है।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द : 3 सफह : 426, फतावा बरेली शरीफ मे है, "लोहा वा तांबा पीतल वा गिल्ट की अंगूठी मर्द औरत दोनो के लिए और सोने की मर्दो के लिए नाजाइज़ वा हराम वाज़ फुकुहा ने मकरूह लिखा है लेकिन सही यही है की हराम है इन्हें पहनकर नमाज़ मकरूह है तहरीमी वाजिब उल ईयादा होगी।
╭┈► फतावा फैजुर्रसूल जिल्द : 1 सफह : 375 पर है "तांबा पीतल और लोहै के जेवरात पहन कर पढ़ने से नमाज़ मकरूह है तहरीमी होगी, दुर्रे मुख़्तार मे है "हर वो नमाज़ जो कराहते तहरीमी के साथ अदा की गई हो उसका लौटाना वाजिब होता है।
⚠️ *खुलासा ए कलाम ये है की ➺* "सोना चांदी के अलावा किसी और धात का ज़ेवर औरत को पहनना जाइज़ नही है, और अगर उसे पहन कर नमाज़ पढ़ी जाएगी तो वो नमाज़ फिर से पढ़नी होगी।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 17 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* नापाक कपड़ा धोने के बाद क्या गुस्ल करना फ़र्ज़ हो जाता है ? नापाकी किन किन चीज़ो से होती है ?
╭┈► *जवाब ➺* नापाक कपड़ा धोने के बाद गुस्ल करना फ़र्ज़ नही होता, चाहे धोते वक़्त कपड़े की सारी गंदगी अपने उपर आ जाए तब भी गुस्ल फ़र्ज़ नही होगा, बस उस नजासत को धोना ज़रूरी होगा, मैं साइल के इस सुवाल से इतना समझ पा रहा हूँ की वो पूछना चाहता है कब आदमी नापाक हो जाता है, कब गुस्ल फ़र्ज़/वाजिब होता है।
*⚘ 5 चीज़े पाई जाए तो इंसान पर गुस्ल वाजिब होता 👇🏻*
❶ ➺ मनी का अपनी जगह से शहवत (सेक्स) के साथ निकलने से गुस्ल वाजिब होता है।
╭┈► *मसलन :* किसी ने गंदे ख्याल जमा कर अपने ही हाथ से मानी निकाली तो गुस्ल वाजिब है और अगर ये मनी शहवत के साथ झटके के साथ ना निकली बस गंदी चीज़ को देखने से क़तरा या सफेद पानी निकला और उसका निकलना मालूम भी नहीं हुआ तो वो मनी नही यानी उसपे गुस्ल वाजिब नही।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 17 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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❷ ➺ *एहतिलाम :* सोते में मनी का निकलने से गुस्ल वाजिब है, इसमे शर्त है की कपड़े पर निशान पाया जाए अगर एहतिलाम होना याद है, या ख्वाब याद है, मगर कपड़े पर मनी का कोई निशान नही तो गुस्ल वाजिब नही।
❸ ➺ *दुखूल :* कोई मर्द अपने शर्मगाह (पेनिस) को किसी औरत की शर्मगाह (वेजाइना) मे या पीछे दुबार (बूम) मे दाखिल करे या मर्द, मर्द की पीछे दाखिल करे इन सुरतों मे गुस्ल वाजिब दोनो पर है चाहे मनी निकले या नहीं।
❹ ➺ *हैज़ :* जब औरत हैज़ से फारिग हो जाए तो गुस्ल वाजिब है।
❺ ➺ *निफास :* औलाद की विलादत के बाद जो औरत को खून आता है उसे निफास कहते है, उससे फारिग होने के बाद।
╭┈► *मदनी मशवरा :* यक़ीनन हर आक़िल बालिग़ मुसलमान पर इन बातो का सीखना फ़र्ज़ है, मगर बाज़ लोग शर्म से इन चोज़ो को नही सीखते और ना किसी से पूछते है और ना कभी इन बतो को किसी आलिमे दीन की बारगाह मे जा कर सीखते है, खुदा भला करे साइल का की लोगो के लिए ये सुवाल करके आसानी कर दी अल्लाह तआला इसे दोनो जहां मे भलाइयाँ आता करे।
*अल क़ुरआन ➺* "और अल्लाह हक़ फरमाने मे नहीं शरमाता।...✍🏻
📙 पारा 22, आहज़ब, आयत 53
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 18 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या औरते पराए मर्द को सलाम कर सकती हैं ?
╭┈► *जवाब ➺* जब (गैर मेहरम) मर्द औरत मिले तो बेहतर ये है की पहले मर्द सलाम करे, और अगर औरत सलाम कर भी दे तो मर्द को उसका जवाब ज़ोर से देना वाजिब नही बल्कि दिल में दे सकता है औरत की आवाज़ औरत है चाहिए की गैर मर्द को बिला वजह अपनी आवाज़ ना सुनाये और वजह ये हो सकती है की खास करीबी गैर मेहरम रिश्तेदार हो, और मेहमान बन कर घर आए और सलाम ना करने से औरत को बुरा भला या घमंडी करार दें या दूसरे रिश्तेदार मे गीबत करे की फूला की बीवी या बहू सलाम नही करती तो इस फित्ने को दफ़ा करने के लिए पर्दे मे रह कर सलाम किया जा सकता है।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 461 पर है मर्द औरत की मुलाक़ात हो तो मर्द, औरत को सलाम करे, और अगर औरत अजनबिया ने मर्द को सलाम कर दिया और बूढ़ी हो तो इस तरह जवाब दे की वो भी सुन ले और जवान हो तो इस तरह जवाब दे की वो ना सुने।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 15
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या हमें कुरआन के सजदे तुरंत करने चाहिए और इसकी नियत कैसे मुकम्मल होगी?
╭┈► *जवाब ➺* कुरआनी आयात के सजदे (नमाज़ मे) फोरन करना वाजिब है, मगर नमाज़ के बाहर फोरन वाजिब नही और, इसी तरह उस आयत को पढ़ने वाले के साथ साथ सुनने वाले पर भी सजदा करना वाजिब होता है, और ये भी देखा जाता है की क़ुरआन कोई पढ़ता है और सजदे किसी और से करवाता है ये भी ग़लत है, यानी कुरआन पूरा करके जिससे बख़्शवाते हैं, उसी से सजदे करवाते हैं, ये तरीक़ा सही नहीं है।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 733 पर है आयते सजदा नमाज़ के बाहर पढ़ी तो फोरन सजदा कर लेना वाजिब नही, हाँ बेहतर है" और ये ज़रूरी नही की आयत को अरबी मे ही पढ़ा जाए बल्कि उसका तर्जुमा भी पढ़ा या सुना तो भी सजदा वाजिब होता है।
╭┈► जैसा की बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 730 पर है फ़ारसी या किसी और जुबान मे आयत का तर्जुमा पढ़ा तो पढ़ने वाले और सुनने वाले पर सजदा वाजिब हो गया, चाहे सुनने वाले ने ये समझा हो या ना समझा हो की ये आयते सजदा का तर्जुमा है अलबत्ता ये ज़रूरी है की उसे नामालूम हो और बता दिया गया हो की ये आयते सजदा का तर्जुमा है, सजदे की नियत ये करना ज़रूरी नही की फूला आयत का सजदा कर रहा हूँ, बस दिल मे सजदे की नियत काफ़ी है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 19 - 20 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► दुरै मुख़्तार जिल्द 2 सफह 499 पर है इसकी नियत में ये शर्त नही की फूला आयत का सजदा कर रहा हू, बल्कि मुतलक़ान सजदा ए तिलावत की नियत काफ़ी है।
╭┈► आयते सजदा का तरीक़ा ये है की जब सजदे की आयत पढ़े तो फोरन क़ुरआन साइड में रख कर सजदे कर ले, यानी बैठे बैठे भी हो सकता है, सिर्फ सजदा करना काफ़ी है सजदे की तसबीह ना भी पढ़ी तो भी हर्ज़ नही और बेहतर ये है की खड़े हो कर, अल्लाहु अकबर कहते हुए सजदे मे जाए और 3 बार सजदे की तसबीह पढ़े, फिर खड़ा हो, ये सुन्नत है।
╭┈► जैसा की फतावा आलमगीरी जिल्द 1 सफह 130 पर है, सजदे का सुन्नत तरीका यह है की खड़े हो कर “अल्लाहु अकबर" कहता हुए सजदे मे जाए और कम से कम 3 बार (सजदे की तसबीह कहे) फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए खड़ा हो जाए, अव्वल आखिर अल्लाहु अकबर कहना सुन्नत है और खड़े हो कर सजदे मे जाना और फिर खड़े होना मुस्तहब है तनवीरुल अबसार जिल्द 2 सफ़ह 700 पर है सजदा ए तिलावत के लिए अल्लाहु अकबर कहते वक़्त ना हाथ उठाना है ना उसमे तशाहुद है ना सलाम।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 20 - 21 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या फरमाते हैं मुफ्तीयाने किराम दर्जे जेल मसअला के बारे मे की क्या कोई शौहर और बीवी एक जमा'अत के साथ अपने घर मे नमाज़ पढ़ सकते हैं ?
╭┈► *जवाब ➺* हर ज़ी - अक्ल औरत को ये मेरा रोशन ब्यान है, ता - उम्र उसके हक़ मे उसका शोहर ही इमाम है हर जी - अक्ल मर्द पर ये दलील मेरी क़ावी है, हर औरत उसके हक़ मे ता - उमर मुफ्तदी है
╭┈► 'हमेशा से सभी तारीफ उसी अज़मत वाले अल्लाह की जिसने मर्द को अपनी बीवी के हक़ मे इमाम किया सरदार बनाया और औरत को उसी की पेरवी का हुक्म दिया और शोहर के लिए राहते -रूह ओ क़ल्बों - जिगर, यानी ता उमर इसकी हमसफ़र, से आलमे शोहर को ज़ीनत बख़्शी, और हर लम्हा दुरूद उस हबीब पर जिसने 11 को अपना खास मुक्तदी किया और हश्र मे तो वही सबका इमाम होगा, और सलाम अहले बैत और शहीद ए करबला और ज़ख़्मी ए करबला पर मर्द को इलाक़े की मस्जिद मे फ़र्ज़ नमाज़ जमाअत से पढ़ना वाजिब है, और किसी शरई उजर के साथ अगर जमाअत तर्क हो गई तो घर पर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ सकता है, और मेहरम और बीवी के साथ जमाअत भी का'इम करके पढ़ने मे भी हर्ज नही, और इमाम बनने वाले में इमामत की शराइत पाई जाती हो, मसलन कम से कम इतनी क़िराअत जानता हो की नमाज़ फ़ासिद ना कर दे, और खुद ऐलानिया फासिक ना हो, और तहारत और नमाज़ के मसाइल से भी वाक़िफ़ हो तो जमाअत से बीवी के साथ बल्कि हर मेहरम यानी बहैन, मां वगैरा के साथ भी नमाज़ , को घर मे बा - जमाअत अदा कर सकता है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 21 📚*
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╭┈► जैसा की आलाहज़रत इमाम अहले सुन्नत, अज़ीम उल बरकत, अज़ीम उल मर्तबत मुजद्दिदे दीन ओ मिल्लत, परवाना ए शमा ए रिसालत, इमाम ए इश्क ओ मुहब्बत, बली ए नेमत, पीर ए तरीक़त, आलिम ए शरीअत, हामिये सुन्नत माहिए बिदअत, का'ताए नज़दियत, बाइस ए खैर ओ बरकत, अल - हाज, अल - हाफ़िज़, अल - मुफ़्ती, असशाह इमाम अहमद रज़ा (अलैहीररेहमा) अपनी मकबूल ए दो जहाँ, तस्नीफ, फतावा रज़विया जिल्द : 6 सफह : 492 पर इरशाद फरमाते है "और अगर जमाअत मे जितनी औरतें उसकी मेहरम या बीवी या हद्दे शहवत तक ना पहुँची लड़कियों के सिवा (कोई) नही तो (जमाअत से नमाज़ पढ़ना) बिला कराहत जाइज़ है, और ना - मेहरम (शहवत को पहुंची हुई) हो तो मकरूह बहरहाल"
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द : 1 सफह : 584 पर है जिस घर मे औरतें ही औरतें हो उस घर मे मर्द को उनकी इमामत नाजाइज़, हाँ, अगर उन औरतों में, उसकी नसबी महारीम हो, या बीवी... (तो जमाअत से नमाज़ जाइज़ है)
मगर इस सूरत मे जब की इमाम मर्द हो और औरत मुक़्तदी तो औरत यानी बीवी मर्द के पीछे खड़ी होगी ना की बराबर मे, की औरत का मर्द के बराबर खड़े होने से नमाज़ मकरूह होगी और इस तरह खड़े होना नाजाइज़ होगा!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 22 📚*
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╭┈► फतावा काज़ी - ख़ान जिल्द : 1 सफह : 48 पर है, किसी औरत ने जब अपने शोहर के साथ घर मे नमाज़ अदा की हो, अगर उसके क़दम शोहर के क़दम के मुक़ाबिल हों, तो दोनो की नमाज़ बा जमाअत जाइज़ ना होगी, और अगर उस (बीवी) का क़दम शोहर के क़दम के पीछे, है (या औरत का क़दम लंबा होने की वजह से औरत का सर हालत ए सजदा मे शोहर के सर से आगे होता हो) फिर भी दोनो की नमाज़ दुरुस्त होगी, क्यूंकी ऐतबार क़दम का है।
╭┈► फतावा अलामगीरी जिल्द : 1 सफह : 88 पर है, अगर अकेली औरत मुक्तदी है तो पीछे खड़ी हो, और ज़्यादा औरतें हो जब भी यही हुक्म है।
╭┈► फतावा रज़विया जिल्द : 6 सफह : 492 पर है, अगर औरत इस क़दर पीछे खड़ी है की उसका क़दम मर्द के क़दम या किसी उजव के मुहाज़ी नही तो (बीवी अपने शोहर के पीछे नमाज़ मे) इक़तिदा सही है और दोनों की नमाज हो जाएगी।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 23 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत जिनकी कोई औलाद ना हो तो क्या शरीअत उसे बच्चा गोद लेने की इजाज़त देती है ? अगर हाँ तो इसके बारे मे जवाब हवाले के साथ देने की मेहरबानी करें।
╭┈► *जवाब ➺* हर औलाद वालिद के हक़ मे इक नायाब हीरा है, बाप का नाम बदलना ही तो गुनाहे कबीरा है
╭┈► *☝🏻बच्चा गोद लेने की इजाज़त है,* मगर लोग उसके असली बाप की जगह अपना नाम लिखते है इसकी इजाज़त नही मसलन, अगर आपने किसी रिश्तेदार का बच्चा गोद लिया तो उसके सभी डॉक्युमेंट्स पर यहाँ तक की शादी कार्ड पर भी, उसके ही असली बाप का नाम होगा, उसका नही जिसने गोद लिया, हदीस मे बाप, ज़ात, खानदान बिरादरी बदलने वाले पर लानत आई है, और एक शख्स की औलाद को दूसरे की तरफ मंसूब करके पुकारने से मना किया है, इसी तरह दूसरे की औलाद को अपनी तरफ मंसूब नही किया जा सकता।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 23 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► कुरआने पाक मे अल्लाह का इरशाद है सुरह अहज़ाब आयत 4-5 *तर्जुमा :* “और ना तुम्हारे ले - पालको को तुम्हारा बेटा बनाया, ये तुम्हारे अपने मुँह का कहना है, और अल्लाह हक़ फरमाता है और वही राह दिखाता है, उन्हे उनके बाप ही का कह कर पुकारो, ये अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा ठीक है, फिर अगर तुम्हे उनके बाप मालूम ना हो तो दीन मे तुम्हारे भाई हैं।
╭┈► आलाहज़रत इमाम ए अहले सुन्नत फतावा रज़विया जिल्द 13 सफह 361 पर लिखते हैं, हदीस मे फरमाया : जो अपने बाप के सिवा दूसरे की तरफ अपने आप को निसबत करे, इस पर खुद अल्लाह और सब फिरिश्ते और आदमियों की लानत, अल्लाह ता'ला कल क़ियामत के दिन इसका ना फ़र्ज़ कुबूल करे ना नफ़िल।
╭┈► *अलबत्ता :* सरपरस्त की जगह गोद लेने वाला अपना नाम लिखवा सकता है पर बाप की जगह नही।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 24 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► और एक खास बात इस मसले मे ये भी है की, अगर किसी ने बाहर (गैर रिश्तेदार) से कोई लड़का गोद लिया और उसे अपनी बीवी से दूध नही पिलवाया तो बालिग़ होने पर खुद इसकी बीवी यानी मुँह बोली माँ और इसकी बेटिओं से भी इसका पर्दा वाजिब होगा, इसी तरह लड़की गोद लेने पर खुद इसका यानी मुँह बोले बाप और इसके बेटो से पर्दा, अगर भाई के बेटे को गोद लिया और दूध ना पिलवाया तो भी यही हुक्म है, और अगर इसकी बीवी के अब दूध नही आता तो इसके बहैन से पिलवाए, यानी साली से वरना अपनी बहेन से, मगर इन सुरतो मे इन दोनो के पर्दो मे तो रिआयत होगी मगर इसकी औलाद के लिए अब भी वही हुक्म होगा की पर्दा वाजिब होगा।
╭┈► और सबसे बेहतर ये है, की अपनी ही बीवी से दूध पिलवाए ताकि, इनके बच्चो से भी पर्दे मे रिआयत मिले, वरना इस तरह मुँह बोले रिश्तो मे ये शख्स हमेशा गुनहगार होता रहेगा।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 25 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या नमाज़ मे क़िराअत के अल्फ़ाज़ सही मखरज़ से अदा ना हुये तो क्या नमाज़ ना हुई ? वजाहत फरमाये!
╭┈► *जवाब ➺* क़िराअत ग़लत होने की कई सूरते है, कुछ मे नमाज़ टूट जाएगी, जबकि मायने फ़ासिद हो और बाज़ सुरतों मे नमाज़ हो जाती है, जैसा खता फिल एराब (एराब की ग़लती) इससे नमाज़ हो जाती है इसी पर फतवा है वरना किस सूरत मे क्या ग़लती हुई वो ब्यान की जाए,
╭┈► फतावा रज़विया जिल्द 6 सफह 248 पर है, एराब में गलती (यानी हरकत, सुकून, तशदीद, तखफीफ, कसरा मद) की गलती में उलमा ए मुताब्रिरीन का फतवा तो ये है की, अलल - इत्तिलाक इससे नमाज़ नही जाती!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 25 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► दूरे मुख्तार में है, किराअत करने वाले की ग़लती अगर एराब मे हो तो नमाज़ फासिद नही होगी अगरचे उसके मना बदल जाएं, इस पर फतवा है।
╭┈► फतावा अलामगीरी मे है" वक्फ वा वस्ल की गलती कोई चीज़ नहीं, यहाँ तक की अगर वक्फ़ लाज़िम पर ना ठहरा, बुरा किया मगर नमाज़ ना गई।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 554 पर है "एराबी ग़लतियाँ अगर ऐसी हैं जिससे माने ना बिगड़ते तो मुफ्सिद नहीं।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 26 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► अगर ऐसी ख़ता की, की जिससे माना बदल जाए, तो ज़रूर नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी, और बाज़ सुरतों मे जबकि माना जानता है, और फिर भी बदल दिया तो काफ़िर भी होगा।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 554 पर है,"अगर ऐसी ग़लती हुई जिससे माने विगड़ गये तो नमाज़ फ़ासिद होगी और लफ़ज़ो को बदल देने का ये मतलब होता है की, अगर कोई लफ्ज़ किसी और लफ्ज़ से बदल दिया, और माना फ़ासिद ना हो तो नमाज़ हो जाएगी, वरना नहीं, और करिबुस - सौत अल्फ़ाज़ (एक जैसी आवाज़ वाले) हुरूफो का भी सही तोर पर इम्तियाज़ रखे वरना माना फ़ासिद होने की सूरत मे नमाज़ जाती रहेगी।
(ت‐ط ,‐ س‐ث‐ ص , ه‐ح ..
*वगेरा हरूफ़ मे इम्तियाज़ चाहिए*..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 26-27 📚*
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╭┈► दुरै मुख़्तार जिल्द 1 सफह 431 पर है जो शख्स हुरूफ ए तहजी मे से किसी हुरूफ के सही तलफ़फुज़ पर कादिर ना हो, मसलन ...الرحيم الرحمن की जगह ھيم الرھمن ...ٰ الشيط की जगह العالمين .. الشيتان.. की जगह . اآللمين - और - اياک نعبد .. की जगह نستعين ...نابد اياک की जगह الصراط.. نستئين. की जगह انعمت ..السرات की जगह انأمت पढ़ता है तो इन तमाम सुरतो मे अगर कोई हमेशा दुरुस्त अदायगी की कोशिश के बावजूद ऐसा करता है तो नमाज़ दुरुस्त होगी, वरना नमाज़ दुरुस्त ना होगी, और सीखने पर जान लड़ा कर कोशिश ना की इसकी खुद की नमाज़ नहीं होगी।
╭┈► फतावा रज़वीय्या जिल्द 6 सफह 262 पर है, अहम चीज़ो मे से तजवीद ए कुरआन सीखना भी है कुर्रा किराअत का सिलसिला भी हुजूर तक पहुचता है, और उलमा ने तजबीद के बगैर कुरआन पढ़ने को ग़लत पढ़ना करार दिया।
╭┈► फतावा बाज़्ज़रिया मैं है (ف حرام اللحن ان ) ग़लत पढ़ना बिला - इज़मा हराम है।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 27
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* ड्यूरिंग प्रेग्नेन्सी, बच्चे मे कितने दिनो के बाद जान आ जाती है, प्लीज़ रिप्लाइ मी अकॉरडिंग टू कुरआन रेफ्रेंस।
╭┈► *जवाब ➺* कुरआने पाक मे तुम्हे पैदा करने वाला अल्लाह फरमाता है, सुराह हज्ज, आयत : 05
╭┈► हमने तुम्हें पैदा किया मिट्टी से और पानी की बूंद *(मनी)* से, फिर खून की फटक से फिर गोश्त की बोटी से, नक़्शा बनी और बे -बनी, ताकि हम तुम्हारे लिए अपनी निशानियाँ ज़ाहिर फरमाएँ, और हम ठहराए रखते हैं, माओ *(मदर्स)* के पेट मे जिसे चाहे, एक मुक़र्रर वक़्त तक।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 28
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╭┈► तफ़सीर ए कुरतबी जिल्द 6 सफह 338-339 पर है "हज़रत इब्ने उमर (रदियल्लाह अन्हु) से रिवायत है की, नुतफा *(मनी का क़तरा)* जब औरत के पेट मे क़रार पाता है तो एक फिरिश्ता उसे अपनी हथेली पर लेता है, और अर्ज करता है या रब, मुज़क्कर या मुअन्नस *(मेल या फीमेल),* शक़ि या सा'आदत मंद *(बदनसीब या खुश -नसीब),* इसकी मुद्दत *(उमर)* और अस्र क्या है, किस ज़मीन मे मरेगा, उस फिरिश्ते से कहा जाता है, तू लोह ए महफूज़ की तरफ जा वहाँ तुझे इसका क़िस्सा मिल जाएगा, वह फिरिश्ता ऐसा ही करता है और उसका क़िस्सा पा लेता है, फिर वह क़तरा इंसान बन जाता है, अपनी तक़दीर मे लिखा रिज़्क़ ख़ाता है।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 29
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╭┈► इमाम अहमद बिन हंबल ने सही रिवायत से मुसनद अहमद हदीस 12157 पर नक़्ल किया “जब नुतफे पर 42 राते गुज़रती है, तो अल्लाह उसकी तरफ एक फिरिश्ता भेजता है, जो उसकी सूरत बनाता है, उसके कान उसकी आँखें उसकी ज़िल्द उसकी हड्डियाँ।
╭┈► अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद से मरवी है फरमाया हुजूर ने “तुम मे से हर एक की पैदाइश उसकी माँ के पेट मे 40 दिन के मरहले से होती है, फिर 40 दिन वह खून की हैसियत से रहता है, फिर 40 दिन गोश्त के लोथड़े की शकल मे रहता है, फिर एक फिरिश्ता उसमे रूह डालता है, उसे 4 चीज़े लिखने का हुक्म दिया जाता है, रिज़क़, उमर, अमल, शक़ि या सा'आदत मंदी।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 28 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► हदीस बुखारी और मुस्लिम मे ये रिवायत नक़ल है तुम लोगो की पैदाइश माँ के पेट मे 40 दिन तक नुतफे की सूरत मे रहती है, फिर 40 दिन तक जमे हुए खून की सूरत मे, फिर 40 दिन गोश्त की बोटी की तरह *(यानी करीब 4 माह कुछ दिन)* फिर अल्लाह एक फिरिश्ता भेजता है, जो उसका रिज़क, उसकी उमर, उसका अमल, और उसका बद - बख़्त और स'आदत मंद होना लिखता है।
╭┈► उलमा का इसमे कोई इकतिलाफ नही की रूह 120 दिन के बाद फूंकी जाती है, ये 4 महीने मुक़ाम्मल हो जाते है और 5 वे का अगाज़ होता है, जैसा की *(हमने हदीस के ज़रिए ब्यान किया)* और यही इद्दत का वक़्त होता है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 29 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत औरतो को कब नमाज़ अदा करनी चाहिए जैसे फज्र की अज़ान हुई और अज़ान के बाद ही नमाज़ शुरू कर दी, मतलब औरतो को क्या मर्दो के टाइम पर ही पढ़ना चाहिए ?
╭┈► *जवाब ➺* जब जिस नमाज़ का वक़्त हो जाए नमाज़ पढ़ लेने से नमाज़ अदा हो जाएगी क्यूंकी औरतो पर जमाअत से नमाज़ पढ़ना वाजिब नही इसलिए वो अज़ान होते ही, या अज़ान ना भी हो वक़्त होते ही नमाज़ पढ़े तो भी कोई हर्ज नही और नमाज़ सही अदा होगी,
अब रहा बेहतर क्या है, तो बेहतर ये है की औरत *(अपने इलाके की मस्जिद की)* मर्दो की जमाअत ख़तम होने के बाद नमाज़ पढ़े, मगर मगरिब फ़ौरन पढ़े इसमे देर ना करे, और फज्र अंधेरे मे ना पढ़े कुछ उजाला होने दे!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 29 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 32
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► जैसा की फज्र के बारे मे हदीसे- पाक मे फरमाया गया और इसे तिरमिज़ी ने नक्ल किया "फज्र की नमाज़ उजाले मे पढ़ो की इसमे बहुत अज़ीम सवाब है।
╭┈► और हदीस कंजुल उम्माल ने हज़रत अनस से रिवायत किया की इससे तुम्हारी मगफिरत हो जाएगी" और तबरानी ने अबु हुरैरा से नक़ल किया की "मेरी उम्मत हक़ पर रहेगी, जब तक फज्र उजाले मे पढ़े।
╭┈► इन हदीसो से यही साबित होता है की फज्र अंधेरे मे नही पढ़ना चाहिए, *(मगर पढ़ी तो गुनाह नही, नमाज़ हो जाएगी)* इसलिए फज्र की अज़ान के बाद जमाअत मे काफ़ी वक़्त होता है, उसकी अस्ल यही हदीसे हैं, और क्यूंकी रमज़ान मे सेहरी के बाद सो जाने का ख़ौफ़ है इसलिए जल्दी पढ़ी जाती है, औरतो को क्यूंकी जमाअत वाजिब नही इसलिए इन्हे ज़ोहर मे देर करके पढ़ना चाहिए।..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 33
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► हदीस बुखारी और मुस्लिम मे फरमाया ज़ोहर को ठंडा करके पढ़ो की सख्त गर्मी जहन्नम के जोश से है इस हदीस की रोशनी मे पता चला की ज़ोहर मे देर करके पढ़ना मुस्तहब है, और मगरिब मे देर नही करनी चाहिए फ़ौरन पढ़नी चाहिए।
╭┈► हदीस मे फरमाया इसे अबु दावूद ने नक़ल किया "मेरी उम्मत हमेशा हक़ पर रहेगी, जब तक मगरिब मे इतनी देर ना करे की सितारे गुथ जाए" इसलिए आपने देखा होगा की मगरिब की नमाज़ फ़ौरन अज़ान के बाद ही हो जाती है, उसकी अस्ल ये हदीस है, फज़ले खुदा से नमाज़ का सही वक़्त और वजुहात को अहादीस की रोशनी मे ब्यान कर दिया, और खुलासा ए कलाम ये है की, औरत वक़्त होने पर नमाज़ पढ़े तो गुनाह नही नमाज़ हो जाएगी, मगर मुस्तहब है की मर्दो की जमाअत होने दे, और फज्र, मे अगर जमाअत होने देने से वक़्त जाता हो तो पहले भी शुरू कर सकती है, और मगरिब मे फ़ौरन अज़ान बाद ही शुरू करे।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 31 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* औरत की नसबंदी कराना कैसा है, क्या copper - T लगवा सकते है ?
╭┈► *जवाब ➺* नसबंदी चाहे औरत की हो या मर्द की करना और करवाना हराम है, गुनाहे कबीरा है, और हदीसे- पाक से इसकी मुमानियत साबित है, अगर ये दोनो किसी बच्चे की विलादत नही चाहते तो, आरजी तरीके इस्तेमाल करने चाहिए. (कन्डोम या दवा) ताकि आगे उम्मीद के दरवाजे खुले रहै और नसबंदी करवाना यानी हमेशा के लिए औलाद की उम्मीद से महरूम रह जाना है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 31 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► फतावा फैज़रुरसूल जिल्द 02 सफह 580 पर है : दवा या रबर की थैली (कॉन्डम) इस्तेमाल करना जाइज़ है, लेकिन किसी अमल से हमेशा के लिए बच्चा पैदा करने की सलाहियत को ख़तम कर देना जाइज़ नही, मान लीजिए अगर किसी के 4 बच्चे है, अब ये सोचते है, की इन्हे आगे बच्चो की ज़रूरत नहीं, और ये नसबंदी करवा ले, खुदा ना करे, किसी हादसे या बीमारी मे सारे बच्चे मर गये तो? अब क्या करेगा, और औरत को बच्चो की ख्वाइश हुई तो ? या मर्द ने नसबंदी करवाई, और बीवी मर गई अब दूसरा निकाह करना चाहे और दूसरी औरत औलाद मांगे तो क्या करेगा ?
╭┈► या औरत की नसबंदी करवा दी, और शोहर मर गया, या दोनो की तलाक़ हो गई, और औरत या शोहर दूसरा निकाह करना चाहे तो क्या करेगी, क्यूंकी इन्होंने तो वो रास्ता अपनाया जिसमे आगे उम्मीद के सारे दरवाजे बंद हैं, इससे घर बिगड़ने की नौबत आएगी, और जिंदगी भर अपनी औलाद से महरूमी, हाँ अगर ये दोनो कोई आरज़ी तरीक़ा यानी (कॉन्डम, मेडिसीयन,) का इस्तेमाल करे तो बेहतर है, की इससे मक़सद वही हासिल होगा और आगे कोई ऊँच नीच होती है, तो घर नही बिगड़ेगा, उम्मीद है, आप मेरी बात समझ गये होगे, की दूसरी चीज़े इस्तेमाल की जाएँ, नसबंदी के अलावा बाकी दूसरे समान जाइज़ है, (जबकि दोनो की रिज़ामंदी हो)।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 31 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *"कॉपर- T" -* यानी एक ऐसा आला होता है, जो औरत के जिस्म मे इस्तेमाल होता है, इससे एक खास मुद्दत के लिए औलाद की पैदाइश रुक जाती है, फिर इसे निकाल देने पर औलाद की पैदाइश हो सकती है, इससे भी मक़सद पूरा होता है, और आगे औलाद की चाहत हो तो आदमी मजबूर नही होता, मगर इसके बारे मे मुझे किताब ए फिक़ मे कोई इबारत ना मिली, कुरआन ओ हदीस की रोशनी मे बाज़ाहिर मुझे इसका इस्तेमाल जाइज़ नज़र आ रहा है, जिस तरह कॉन्डोम का इस्तेमाल जाइज़ है, यानी अगर आदमी 3 साल तक लगातार कॉन्डोम इस्तेमाल करे तो भी औलाद नहीं होती, कॉपर- मे भी ये है की एक बार ही इस्तेमाल होगी, जब उलमा ने कॉन्डोम के जाइज़ होने का ब्यान किया तो इस क्रियास पर कॉपर- भी जाइज़ है, (जबकि दोनो की रिज़ामंदी हो)।
╭┈► जैसा की फतावा फ़ैज़रुरसूल जिल्द : 02 सफह : 580 पर है दवा या रबर की थेलि (कॉन्डम) इस्तेमाल करना जाइज़ है।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 32 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत अक़ीके का गोश्त (मीट) बच्चे के माँ बाप को खाना जायेज़ है या नहीं ? जवाब का तलबगार हूँ।
╭┈► *जवाब ➺* अगर माँ बाप का रोज़ा नही हो तो खाना बिल्कुल जाइज़ है, और रोज़ा हो तो वक़्त मगरिब भी खाना जाइज़ है, ये लोगो की कम इलमी की बाते हैं, इसका शरीअत मे कोई सबूत नहीं, ये अपनी अक्लो से बनाई गईं, बातें हैं।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 357 पर है : अवाम मे ये बहुत मशहूर है की अक़ीके के गोश्त बच्चे के माँ बाप, दादा दादी और नाना नानी ना खाएँ, ये महैज़ गलत है और इसका कोई सबूत नहीं।
╭┈► वक़ारूल फतावा जिल्द : 1 सफा : 343 पर है अहकामे शरीअत को कुरआन ओ हदीस से मालूम किया जाता है अकल से नहीं जाना जा सकता।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 32-33 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* नाहिदा (मुस्लिम लेडी) ने ज़ैद (मुस्लिम जेंट्स) को रक्षा बंधन की मुबारक बाद दी और अमर (काफिरा लेडी) ने ज़ैद को रक्षा बंधन की मुबारक बाद दी अब ज़ैद और नाहिदा पर क्या शरई हुक्म लगेगा ? राखी बांधना या बंधवाना कैसा है ?
╭┈► *जवाब ➺* काफ़िर के "कॉमी शिआर 'इख्तियार करना हराम होता है काफ़िर के" मज़हबी शिआर" को इख्तियार करना कुफ्र होता है, रक्षा बंधन काफिरो का कॉमी त्योहार है, मज़हबी त्योहार नही, किसी भी काफ़िर का कॉमी शिआर इख्तियार करना हराम गुनाह है जैसे होली खेलना, जो चीज़ उनके मज़हब मे इबादत मानी जाती है वो कुफ्र है, जिस मुसलमान औरत ने मर्द को राखी बाँधी और जिस मर्द ने मुसलमान और गैर मुसलमान औरत से राखी बंधवाई, ये दोनो यानी नाहिदा, जैद फासिक, फाजिर, सख्त गुनहगार, अज़ाब के हक़दार है, लेकिन काफ़िर नही क्यूंकी राखी बांधना (गैर मुस्लिम) का कॉमी त्योहार है, मज़हबी नही।
╭┈► हज़रत शारेह बुखारी, फकिह ए आज़म ए हिंद, हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद शरीफ उल हक़ अमज़दी साहिब फतावा शारेह बुखारी जिल्द 2 सफह 568 पर लिखते है जिन मुसलमान औरतो ने हिन्दुओ को ये डोरा बांधा, जिन मुसलमान मर्दो ने हिंदू औरतों से ये डोरा बँधवाया सब फासिक, फाजिर, गुनहगार, अज़ाब के हकदार है, लेकिन काफ़िर नही, इसलिए की राखी बंधन पूजा नही उनका कॉमी त्योहार है, काफ़िर के मज़हब की मुबारकबाद देना अशद हराम, और मुश्रीकाना फैल पर राज़ी और खुश हुआ या ताज़ीमन शामिल हो कर मुबारक बाद दी तो खुद भी काफ़िर ऐसे शख्स पर तज्दीदे ईमान और अगर बीवी वाला था तो निकाह लाज़िम।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 33-34 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत आज कल कुछ लड़कियाँ चूड़ीदार पयजामा पहनती है, और लोग एतराज़ करते है, मना करते है, मगर लड़के भी तो (खास कर) सारे दूलह अपनी शादियो मे शेरवानी के साथ चूड़ीदार पहनते है, तो औरत को मना क्यूँ मर्द को जाइज़ क्यूँ, कुछ वज़ाहत फरमाये तो करम होगा, और क्या जीन्स मे नमाज़ जाइज़ है अल्लाह आपकी उमर मे बरकत दे, मजीद इल्म से नवाज़े?
╭┈► *जवाब ➺* आपने बहुत हिम्मत का काम किया की मुसलमान लड़कियों के लिए ये सुवाल पूछा ताकि उन्हे भी इब्रत हो किस लिबास मे नमाज़ होगी किस मे नही होगी, इसका एक आसान कायदा (नियम) ये है की, जो लिबास पहनना जाइज़ नही, उसमे नमाज जाइज़ नही मसलन, चोरी का लिबास पहनना जाइज़ नही, चाहे कोई भी कपड़ा हो, तो उस चोरी के कपड़े मे नमाज़ जाइज़ नही, इसी तरह जब औरत को मर्दाना लिबास पहनना जाइज़ नही बल्कि हराम है, तो उसमे औरत की नमाज़ भी जाइज़ नहीं बल्कि मकरूह तहरीमी है, यानी इस तरह उस औरत ने जिंदगी मे जितनी भी नमाज़ पढ़ी वो सब फिर से दोहराना वाजिब है और इस हराम काम (मर्दाना लिबास पहनने) पर अल्लाह की बरगाह मे सच्ची तोबा करना वाजिब है, अब अगर फिर भी कोई लड़की ये जानने के बाद भी जीन्स मे नमाज़ पड़े और दलील ये दे की अल्लाह कबूल करेगा तो वो जाहिल है, कुरआन हदीस और अल्लाह रसूल के फरमान के खिलाफ काम कर के कबलियत ए नमाज़ की उम्मीद रखती है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 35 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► अल्लाह के सच्चे रसूल मदीने वाले मुस्तफ़ा ﷺ ने फरमाया और इस हदीस को अबु दावूद जिल्द 4 सफह 88 पर हज़रत अबुहुरैरा से रिवायत किया हुज़ूर ﷺ ने उन मर्दो पर लानत की जो औरत का लिबास पहनते हैं, और उन औरत पर लानत की जो मर्दाना लिबास पहनती हैं, और
╭┈► एक हदीस मे है (जो शख्स जिस क़ौम से मुशाबिहत करे वो उन्ही मे से है.) और हदीस के मुताबिक ऐसी औरत जन्नत से महरूम है, जो मर्दाना लिबास, हैरकट, या जूते पहने, (हर ऐसी औरत के लिए ये सोचने का मुक़ाम है की नमाज़ के बाद भी उसके लिए जन्नत नही)!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 35 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► ╭┈► मीरात शरह मिश्कात जिल्द 6 सफह 95 काफ़िर हराम हलाल लिबास मे, इसी तरह मर्दाना ज़नाना लिबास में फ़र्क नही करते, जैसे कपड़ा चाहते है पहन लेते हैं" (इस तहरीर से भी मुसलमान लड़कियों के लिए लम्हा ए फ़िकर है की, मुसलमान हो कर काफ़िर का तरीका इस्तेमाल करती है की हराम हलाल मे फर्क नहीं करती, जबकि शरीअत ने हराम हलाल मे वाज़ेह फ़र्क ब्यान कर दिया!
╭┈► फतावा रज़विया जिल्द 23 सफह 102 पर है नाजाइज़ लिबास के साथ नमाज़ मकरूह तहरीमी होती है, उसका (नमाज़ का) ईयादा (लौटाना) वाजिब है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 36 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► हदीस मे ये भी फरमाया की (जहन्नम मे जो औरते होंगी उनमे, वो भी होंगी जो पहन कर नंगी होंगी), इस पहन कर नंगी होने की एक शरह ये भी ब्यान की जाती है की" लिबास ऐसा चुस्त होगा की जिस्म की गोलाई वा रान और पिंडलियो की बनावट सॉफ जाहिर हो रही होगी लेगिस एक किस्म का ऐसा चुस्त लिबास है की जिसमे जिस्म की बनावट साफ जाहिर होती है, और बाज़ लेगिस ऐसी भी होती है उसमे रंगत नज़र आती है, अगर लेगिस ऐसी है की उसमे चुस्त होने के साथ टांगों की रंगत नज़र आए तो फिर उसमे नमाज़ नहीं होगी, और अगर रंगत नहीं दिखाई देती तो इस सूरत मे नमाज़ हो जाएगी, मगर ऐसा लिबास पहन कर औरत का गैर मर्द के सामने जाना मना होगा, और अगर घर में रहती है या औरतो मे पहनने मे भी हर्ज नही!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 43
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 480 पर है (चुस्त कपड़ा) जिससे बदन का रंग ना चमकता हो, मगर बदन से बिल्कुल ऐसा चिपका हो, की देखने से उज़ब की हैयत (जिस्म की बनावट) मालूम होती है, ऐसे कपड़े से नमाज़ हो जाएगी, मगर उस हिस्से की तरफ दूसरो को निगाह करना जाइज़ नहीं अब चाहे जीन्स हो शर्ट हो या टी - शर्ट या रंगत नज़र आने वाली लेगिस, औरत को ये लिबास पहना भी माना और इसमे नमाज़ भी नहीं
╭┈► दूरे मुख्तार में है हर वो नमाज़ जो कराहते तहमीरी के साथ अदा की गई हो उसका लौटाना वाजिब होता है इस कद्र चुस्त और तंग कपड़ा पहनना नाजाइज़ और गुनाह है जिससे जिस्म की बनावट नज़र आए इसी तरह ऐसा जिससे जिस्म की रंगत नज़र आए हराम है, और आपसे जिसने ये कहा की चूड़ीदार औरत को गुनाह मर्द को जाइज़ ये बात भी ग़लत है, चूड़ीदार पयजामा मर्द को पहनना भी गुनाह है, फिर चाहे शेरवानी के साथ हो या दूलह पहने!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 44
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी फतावा रज़वीय्या जिल्द 22 पेज 162 पर लिखते है यूही तंग पेयजमा भी ना चूड़ीदार हो ना (मर्द को) तननो से नीचे, ना चुस्त बदन से सिले, की ये वाज़ेह फुससात है, और सित्र ए औरत का ऐसा चुस्त होना की आज्ञा का पूरा अंदाज़ बनाए, ये भी एक तरह की बे - सित्रि है!
╭┈► चूड़ीदार पयजामा पहनने के बारे मे आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा फतावा रज़वीय्या जिल्द 22 पेज 172 पर लिखते है चूड़ीदार पयजामा पहनना मना है की वजेह फुससाक की है!
╭┈► शैख़ अब्दुल हक़ मुहदिस ए दहलवी किताब अदब अल लिबास मे फरमाते हैं (शलवार जो अजमि इलाको में मशहूर वा मारूफ़ है अगर तमनो से नीचे हो या दो तीन इंच (शिकन / चूरी / बाल) नीचे हो तो बिदअत और गुनाह है,)!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 45
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► ╭┈► *सुवाल ➺* मेरा सवाल है की लेडीस जो लेगिस या चूड़ीदार पहन कर नमाज़ पड़ती हैं क्या नमाज़ हो जाएगी या उन्हे नमाज़ दोहरानी होगी?
╭┈► *जवाब ➺* लेगिस एक किस्म का ऐसा चुस्त लिबास है की जिसमे जिस्म की बनावट साफ ज़ाहिर होती है, और बाज़ लेगिस ऐसी भी होती है उसमे रंगत नज़र आती है, अगर लेगिस ऐसी है की उसमे चुस्त होने के साथ टांगों की रंगत नज़र आए तो, फिर उसमे नमाज़ नही होगी , और अगर रंगत नही दिखाई देती तो इस सूरत मे नमाज़ हो जाएगी, मगर ऐसा लिबास पहन कर औरत का गैर मर्द के सामने जाना मना होगा, और अगर घर मे रहती है या औरतो मे पहनने मे हर्ज़ नही!
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 480 पर है (चुस्त कपड़ा) जिससे बदन का रंग ना चमकता हो, मगर बदन से बिल्कुल ऐसा चिपका हो, की देखने से उज़व की हैयत (जिस्म की बनावट) मालूम होती है, ऐसे कपड़े से नमाज़ हो जाएगी, मगर उस हिस्से की तरफ दूसरो को निगाह करना जाइज़ नही!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 38 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी फतावा रज़वीय्या जिल्द 22 पेज 162 पर लिखते है, यूँही तंग पेयजमा भी, ना चूड़ीदार हो ना (मर्द को) तखनो से नीचे, ना चुस्त बदन से सिले, की ये वाज़ेह फुससाक़ है, और सित्र ए औरत का ऐसा चुस्त होना की आज़ा का पूरा अंदाज़ बनाए ये भी एक तरह की बे - सित्रि है!
╭┈► चूड़ीदार पयजामा पहनने के बारे मे आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा फतावा रज़वीय्या जिल्द 22 पेज 172 पर लिखते है चूड़ीदार पयजामा पहनना मना है की वाज़ेह फुससाक़ की है!
╭┈► शैख़ अब्दुल हक़ मुहदिस ए दहैलवी किताब अदब अल लिबास मे फरमाते हैं शलवार जो अजमि इलाक़ो मे मशहूर वा मारूफ़ है अगर तखनो से नीचे हो या दो तीन इंच (शिकन / चूरी / बाल) नीचे हो तो बिदअत और गुनाह है,)!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 38-39 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 47
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या औरतों को तरावीह पढ़ना सही है अकेले या जमाअत से ?
╭┈► *जवाब ➺* तरावीह सुन्नते मुअक्कदा है, और ये मर्द औरत दोनो के लिए है, इसका तारित (तर्क करने वाला) गुनहगार, जैसा की बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 688 पर है तरावीह मर्द औरत सबके लिए बिला इज़मा सुन्नते मुअक्कदा है इसका तर्क जाइज़ नही!
╭┈► फतावा रज़विया जिल्द 7 सफह 462 पर है अगर कोई शख्स मर्द या औरत बिला उजर ए शरई (तरावीह) तर्क करे, मुब्तला ए कराहत वा असात हो अब रहा ये की जमाअते तरावीह क्या है क्या तरावीह जमाअत से ही पढ़ना ज़रूरी है, तो तरावीह की जमाअत सुन्नत ए किफाया है, अगर महल्ले से किसी ने जमाअत कायम ना की तो सब गुनहगार, और अगर कुछ लोगों ने जमाअत से पढ़ ली और बाकी कुछ ने घर मे पढ़ ली तो कुछ गुनाह नही!
╭┈► दूरे मुख़्तार जिल्द 1 सफह 98 पर है इनमे असह (ज़्यादा सही) कौल के मुताबिक़ सुन्नते किफाया है, अगर तमाम अहले मस्जिद ने इसे तर्क किया, तो गुनहगार होंगे, और कुछ ने (तरावीह की जमाअत) तर्क की तो गुनहगार नहीं)!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 39 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 48
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► फतावा रज़विया जिल्द 7 सफह 462 पर है अगर अहले महल्ला अपनी अपनी मसजिद में, इकामत जमाअत करें, और उनमे बाज़ घरो मे तरावीह तन्हा या जमाअत से पढ़े तो हर्ज़ नहीं
अब रहा ये घर मे कैसे जमाअत बने अगर कोई हाफ़िज़ ना हो तो इसका जवाब ये है की तरावीह का 20 रकाअत पढ़ना ज़रूरी है, फिर चाहे आखरी पारे की छोटी छोटी आयतो से 20 रकाअत पूरी कर ली जाए तब भी गुनाह नहीं, वरना तो औरतो मे कोन सी हाफ़िज़ा होती है तो वो कैसे पढ़ती हैं, ज़ाहिर है जो सूरत याद होती हैं उन्ही से पढ़ती है, तो घर मे ऐसा शख्स, जो काबिले इमामत हो, तो जमाअत कायम की जा सकती है ठीक वैसे है, अगर शोहर इमामत के काबिल है, तो बीवी उसके साथ जमाअत बना सकती है, और 20 रकाअत तरावीह पढ़ सकते हैं, और अगर बिल फ़र्ज़ किसी दिन की तरावीह रह जाए तो उसकी क़ज़ा नही, और ना आगे पढ़ना बंद करे, शैतान ने लोगो के दिलो में ये वस्वसा डाला हुआ है की अगर तरावीह एक दिन भी छूट जाए तो पहले उसकी क़ज़ा करनी पढ़ती है, और ये भी की तरावीह छूटे तो अब आगे नही पढ़ सकते, क्यूं फिर छूट जाएंगी, ये दोनो बाते ग़लत है!
╭┈► फतावा रज़विया जिल्द 7 सफह 463 पर है तरावीह अगर नागा हो तो उनकी क़ज़ा नहीं!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 49
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► अब रहा औरतों की जमाअत का मसअला तो औरत को जमाअत से नमाज़ पढ़ना गुनाह है, चाहे कोई भी नमाज़ हो, एक सूरत जाइज़ होने की ये हो सकती है की, अगर मर्द इमाम है और औरत उसकी मेहरम या बीवी है तो बा - जमाअत नमाज़ पढ़ सकते हैं!
╭┈► जैसा फतावा रज़विया जिल्द 6 सफह 492 पर है पर इरशाद फरमाते हैं और अगर जमाअत मे जितनी औरतें उसकी मेहरम या बीवी या हद्दे शहवत तक ना पहुँची लड़कियों के सिवा (कोई) नही तो (जमाअत से नमाज़ पढ़ना) बिला कराहत जाइज़ है, और ना - मेहरम (शहवत को पहुची हुई) हो तो मकरूह बहरहाल खुलासा ए कलाम ये है की औरत को भी तरावीह पढ़ना ज़रूरी हैं ना पड़ेगी तो गुनहगार होगी, औरत को जमाअत से तरावीह जाइज़ नही, तन्हा पढ़े, मगर इमाम अगर उसका शोहर बने या कोई मेहरम (बाप, बेटा, भाई) तो औरत को उनके पीछे जमाअत से तरावीह बल्कि फ़र्ज़ नमाज़ भी अदा कर सकती है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 41 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 50
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► ╭┈► *सुवाल ➺* सलाम, ऑटोमॅटिक वॉशिंग मशीन मे पाक और नापाक कपड़े एक साथ धोना कैसा, जबकि वो मशीन तीन बार पानी लेकर धोती है एक बार धोकर फिर स्पिन करती है इसी तरह दो बार और रहनूमाई फरमाईएगा।
╭┈► *जवाब ➺* अगर मशीन मे सारे कपड़े पाक है, कोई नापाक कपड़ा उसमे शामिल नही तो हर्ज नही कपड़े पाक हो जाएंगे, और अगर पाक नापाक मिक्स है तो, चाहिए ये की पहले नापाक कपड़ो को अलग करके साफ पानी से पाक करे यानी, जो गंदगी की जगह है उसे साफ करके धोए, वरना नापाक और पाक मिक्स करके पानी मे डालने से सारे कपड़े नापाक हो जाएंगे, और ऐसा करना गुनाह है, खवातीन के लिए ये मसअला बहौत गौर करने का है और घरो मे अक्सर औरते इससे गफिल होती हैं, याद रखे की मशीन हो या बाल्टी अगर उसमे नापाक कपड़े डाल कर पानी भर दिया और उसी पानी मे फिर पाक कपड़े भी मिला दिए तो ऐसा करने वाला/वाली गुनाहगार होगा/होगी की पाक चीज़ को बिला वजह नापाक करना हराम है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 41 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► आला हज़रत, इमाम इश्क ओ महब्बत, शाह इमाम अहमद रज़ा हनफी कादरी बरेलवी फतावा रज़वीय्या जिल्द 1 सफह 792 पर फरमाते हैं बिला ज़रूरत पाक शे को नापाक करना नाजाइज़ ओ गुनाह है और फतावा रज़वीय्या जिल्द 4 सफह 585 पर फरमाते हैं, जिस्म या लिबास बिला ज़रूरत ए शिरय्या नापाक करना और ये हराम है।
╭┈► लिहाज़ा पूछी गई सूरत मे मशीन या किसी भी चीज़ मे पाक या नापाक कपड़े एक साथ भिगा देना गुनाह है, चाहिए ये की पहले नापाक कपड़ो को अलग करके साफ पानी से पाक करे, यानी जो गंदगी की जगह है उसे साफ करके धोए, वरना बाल्टी मे सिर्फ़ नापाक कपड़े डाल कर नल खोल दे, या मशीन मे सिर्फ़ नापाक कपड़े पहले डाले और उपर से मशीन में पानी भरे, और नीचे से पाइप खोल दिया जाए और पानी बहने दे (फिर चाहे तो हाथ से भी माल ले) जब यक़ीन हो जाए की अब नापाकी छूट चुकी होगी और नापाक पानी भी मशीन से निकल गया तो अब पाक कपड़े उस मे डाल कर अपने रिवाज़ के मताबिक़ धो सकते हैं अब रहा ये की अगर किसी ने दोनो तरह के कपड़े (पाक और नापाक) एक साथ मशीन मे डाल दिए तो सब नापाक हो गये ? और मशीन के 3 पानी निकालने का एतबार नही मगर जब उन कपड़ो का अलग अलग टंकी मे पानी निकाला जाता है तो वो पाक हो जाते हैं, और टंकी मे पानी निकालते वक़्त 3 बार धो कर निचोड़ना शर्त नही है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 42 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► जैसा की, फ़क़ीह ए इस्लाम, काज़ी ए मिल्लत, मुफ़्ती ए उम्मत, नायब ए मालिक ए जन्नत, सद्र उस शरीया हज़रत अल्लामह मौलाना अल - हाज, अल हाफ़िज़ अल- मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी फतावा अमजदिया जिल्द 1 सफह 35 पर लिखते हैं, (3 बार धोने और निचोड़ने का) हुक्म उस वक़्त जब थोड़े पानी मे धोया हो, और अगर हॉज़ ए कबीर मे धोया हो, या *(नल, पाइप, लोटे वगेरा के ज़रिए)* बहूत सा पानी उस पर बहाया, या बहते पानी मे धोया तो निचोड़ने की शर्त नही।
*☝🏻खुलासा ए कलाम : -* ये है की पाक नापाक कपड़े एक साथ मशीन मे धोने वाली औरत गुनहगार है, उस पर अब तक ऐसा करने की वजह से तोबा करना ज़रूरी है, और आइन्दा ऐसा ना करना का ख्याल रखे, और नापाक कपड़ो का पानी पहले निकाल ले और पाक कर ले फिर मिक्स करे, और अगर मिक्स कर दिए तो सब नापाक हो जाएँगे, और बाद मे जब टंकी से एक एक कपड़े का सही से पानी निकाला जाएगा तो सब वन बाइ वन पाक होते रहेंगे।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 43 📚*
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╭┈► *सुवाल ➺* कभी मां बाप अपनी औलाद को कोसते हैं किसी की तो ज़बान बहोत बुरी होती है कुछ भी कह देते है तो क्या औलाद पे वो लानत बैठती है जब औलाद की ग़लती ना हो बस माँ का मिजाज़ ही गुस्सेल हो? कभी भाई बहैन मे तकरार होती है गुस्से मे बोलते है तू मर गई मेरे लिए, क्या रिस्ता ख़तम हो जाता है ?
╭┈► *जवाब ➺* औरत जिस वजुहात से जहन्नम मे जाएगी उसमे से एक कोसना और लानत करना भी होगा, मगर जो बद - दुआ दी गई अगर कुबूलियत की घड़ी हुई तो बद - दुआ असर लाएगी, और हदीस मे कोसने, बद - दुआ देने को मना किया गया, मगर अल्लाह (बिला वजह शरा) बद - दुआ को इतनी जल्दी कुबूल नही करता जैसे आम दुआ को।
╭┈► हदीस मे है अपनी जानो पर बद - दुआ ना करो और अपनी औलाद पर बद - दुआ ना करो, और अपने खादिमो पर बद - दुआ ना करो, कही कुबूलियत की घड़ी से मावाफ़ीक़ ना हो।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 43 📚*
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╭┈► ╭┈► तिर्मिजि में है हुज़ूर ﷺ ने फरमाया (बेशक़ मैने अल्लाह से सुवाल किया की, किसी प्यारे की प्यारे पर बद - दुआ कुबूल ना फरमाये।
╭┈► तफ़सीर सिरात उल जीनान जिल्द 4 सफह 291 पर है अगर अल्लाह लोगों की बद - दुआएँ जैसे के वो गुस्से के वक़्त, अपने लिए, अपने अल ओ औलाद ओ मां के लिए, करते हैं, और कहते हैं हम हलाक़ हो जाएं, खुदा हमे गारत करे, बर्बाद करे और ऐसी ही कलिमे, अपनी औलाद और रिश्तेदारो के लिए कह गुज़रते हैं, जिसे उर्दू मे कोसना कहते हैं, अगर वह दुआ ऐसी जल्द कुबूल कर ली जाती जैसे जल्दी वह, दुआ खैर कुबूल होने मे चाहते हैं, तो उन लोगो का खतिमा हो चुका होता, और वह कब के हलाक़ हो गये होते, लेकिन अल्लाह अपने करम से दुआ ए खैर कुबूल फरमाने मे जल्दी करता है, और दुआ ए बद के कुबूल मे नही।
╭┈► रहा लानत करना तो लानत करना काफ़िर पर भी जाइज़ नही, तो मुसलमान (औलाद) पर कैसे जाइज़ हो जाएगी।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 44 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► ╭┈► सही मुस्लिम में है बहूत लानत करने वाले क़ियामत के दिन, गवाह वा शफ़ी ना होंगे।
╭┈► अबु दावूद मे है मुसलमान की लानत मिस्ल उसके क़तल के है।
╭┈► सही बुखारी मे है मैंने औरतो को दोज़ख़ मे बा-कसरत देखा, फरमाया किस वजह से कहा- तुम लानत बहूत करती हो।
╭┈► फ़ाज़ईले दुआ सफह 188 पर है किसी मुसलमान पर लानत ना करे... यूँही मच्छर, जानवर पर भी लानत माना है लिहाज़ा इन दलायल से ये बात साबित होती है की, किसी भी मुसलमान पर लानत करना मना है चाहे वो गुनाहे कबीरा करता हो की ईमान उसके साथ है, और कबीरा से ईमान नही जाता, *इससे उन औरतो को इब्रत लेनी चाहिए* जो गैर तो गैर , बात बात पर अपनी औलाद और शोहर और घर वालो को लानत करती हैं, इसी वजह से जहन्नम मे ज़्यादा हैं,फकत कह देने से रिश्ता ख़तम नही होता।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 45 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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*सुवाल ➺* औरत को हैज़ की मुद्दत से ज़्यादा खून आता हो वो इस बजेह से नमाज़ अदा नही करती और खून बंद होने के बावजूद वाइट डिसचार्ज होता हो और यह नही तो उसको पेशाब के क़तरे निकलने का भी मसअला है और सजदे की हालत मे रीह निकलने का अंदेशा, इन सब वजूहात की बजेह से वो कभी नमाज़ नही पढ़ पाती ऐसे मे उस औरत पर शरीअत का क्या हुक्म है ? बराए करम जवाब तफ़सील और दलील से समझाए ताके उस औरत को नमाज़ की अहमियत और शरई मअजूर की इस्लाम मे क्या रियायत है समझ मे आ जाए जज़ाकल्लाह हो खैरा।
╭┈► *जवाब ➺* हैज़ की मुद्दत ज़्यादा से ज़्यादा 10 दिन है, अगर इससे ज़्यादा खून आए तो हैज़ नही बीमारी है।
╭┈► देखें, बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 372 पर है, हैज़ की मुद्दत कम से कम 3 दिन (72 घंटे) और इससे एक भी मिनट कम हो तो हैज़ नही, और ज़्यादा से ज़्यादा 10 दिन है इसी तरह औरत के अगले मुक़ाम से निकलने वाली सफेद रतूबत, जिसमे खून नही होता, वो गुस्ल फ़र्ज़ नही करती ना वजु को तोड़ती।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 45 📚*
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इसी तरह बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 304 में लिखा है औरत के आगे से जो खाली रतूबत बे - अमेज़िश खून (बगैर खून मिले) निकले, वज़ु तोड़ने वाली नही, अगर कपड़े पर लग जाए तो कपड़ा (भी) पाक है।
╭┈► रहा क़तरा आना तो अगर क़तरा लगातार आता है यानी कोई वक़्त नमाज़ का ऐसा नही गुज़रता की वजु रह सके, ये शरई उजर है, एक वजु से जितनी नमाज़ पढ़ेगी हो जाएगी, और वक़्त ख़तम होने से वज़ु टूट जाएगा, और ऐसी सूरत में औरत को चाहिए की आगे के मुक़ाम मे कोई कपड़ा या (Pad) इस्तेमाल करे, और नमाज़ से पहले वज़ु करके उसे निकल दे, और बाद नमाज़ फिर लगा ले, ताकि हर बार क़तरे से शलवार खराब ना हो, और इस मर्ज़ का इलाज भी कराए, और अगर रीह का मसअला ऐसा है की क़ियाम मे रीह नही आती मगर सजदा करेगी तो रीह यक़ीनन खारिज होगी और सजदा ना करे तो रीह खारिज नही होगी तो बैठ कर नमाज़ पढ़ने का इख़्तियार है और सजदा इशारे से करे, क्यूंकी जो सजदे पर क़ादिर नही तो क़ियाम भी उस पर से मुआफ़ है, यानी अब वो बैठ कर भी पढ़े तो नमाज़ होगी।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 46 📚*
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देखे बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 510 अगर क़ियाम पर क़ादिर है मगर सजदा नही कर सकता, तो बेहतर ये है की बैठ कर इशारे से पढ़े, और खड़े हो कर भी पढ़ सकता है!
╭┈► जिस शख्स को खड़े होने से क़तरा आता है, या ज़ख़्म बहता है, और बैठने से नही आता तो उसे फ़र्ज़ है की बैठ कर पढ़े,
╭┈► लिहाज़ा अगर सजदा करने में क़तरा आता है, या रीह निकलती है, तो बैठ कर नमाज़ पढ़ी जाएगी इस सूरत मे नमाज़ मुआफ़ ना होगी,..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 47 📚*
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╭┈► *सुवाल ➺* हमारा सवाल है, क्या हैज़ वाली औरत मस्जिद जा सकती है?
╭┈► *जवाब ➺* नही जा सकती, क्यूंकी नापाकी की हालात मे मस्जिद मे जाना मर्द और औरत दोनो को हराम है।
╭┈► बहारे शरीअत मे मस्जिद के आदाब बयान करते हुए फरमाते है हैज़ वा निफास वाली औरत को मस्जिद की छत पर (भी) जाना हराम है क्यूंकी वो भी मस्जिद ही के हुक्म मे है।
📗 बहारे शरीअत जिल्द 1, पेज 645
╭┈► जिस के बदन पर नजासत (गंदगी) लगी हो उसे मस्जिद मे जाना मनआ है।
📔 दुरै मुख़्तार जिल्द 2 पेज 517
╭┈► बच्चा और पागल जिनसे गंदगी का ख़तरा हो, मस्जिद लाना हराम है।
*📙 बहारे शरीअत जिल्द 1, पेज 645*
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 47 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हमे ये इरशाद फरमाये, की क्या मंगनी हो जाने के बाद, लड़की, अपने होने वाले शोहर से कॉल पे बात कर सकती है, एक इमाम साहिब कहते, बिल्कुल नही कर सकती, गुनाह है हराम है क्या सच मे गुनाह है?
╭┈► *जवाब ➺* इमाम साहिब ने सही फरमाया, मगर तहक़ीक़ यही है की, इसमे एक ही सूरत ही मुबाह की हो सकती है, की अगर शोहर आलिमे दीन या क़ाज़ीए इस्लाम या मुफ़्ती ए इस्लाम है, और उनके पास और भी औरतें फ़ोन वगेरा करती हैं और फोन पर कोई मसअला पता करती है तो फिर इसका क्या जुर्म, (जबकि वहा कोई अलिमा ना हो) बस इतनी इजाज़त है , बतौर साइल दीन का मसअला हो जैसे की आजकल, प्रोग्राम मे भी मुफ़्ती साहब को औरते कॉल करती है और मसअला पता करती है जबकि वो भी गैर होती है इसी तरह, ये भी बस दीन की रहनूमाई, ले सकती है इसके अलावा कुछ नही, (और ये भी हुक्म बस उलमा, मुफ़्ती वगेरा के लिए है, आम लोगो को तो इसकी भी इजाज़त नही) क्यूंकी सबके होने वाले शोहर आलिम हो ज़रूरी नही इसिलए इमाम साहिब ने सही कहा!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 48 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* बाज़ लोग तिलावते कुरआन करते हैं खास कर रमज़ान में बिना ही आवाज़ के और इसी तरह कुरआनख्वानी मे, बच्चे यानी चुपचाप उंगली चलाते रहते है और यही हाल घरो मे औरतो का होता है, तो इस तरह कुरआन बे - आवाज़ पढ़ा हुआ है या नही, इसे इसाले- सवाब कर सकते हैं या नहीं?
╭┈► *जवाब ➺* बगैर आवाज़ दिल मे कुरआन को पढ़ने या सिर्फ देखने से पढ़ने का सवाब नही मिलेगा, सिर्फ़ देखने का मिलेगा, और उसे छूने का (अगर उंगली रख के पढ़ा!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 49 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* अगर किसी ख़ातून के शौहर का इंतेक़ाल हो गया हो और उसके बच्चे इस्लाम से बालिग हों मगर दुनियावी तौर पर नही और वो पढ़ रहे हों और उस ख़ातून का कोई ज़रिया ना हो पैसे का तो उसपे फिक्स डेपॉज़िट और बैंक का इंटेरेस्ट लेना हराम होगा या नही ?
╭┈► *जवाब ➺* जाइज़ होगा, और ये खास इस औरत के लिए ही नही बल्कि हिंद के बैंक से जो एक्सट्रा रकम मिलती है वो जाइज़ है वो सूद नहीं है (जबकि बैंक कुफ्फार का हो!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 49 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* गीबत करने से कैसे बचा जा सकता हैं और गीबत करने वालो का अज़ाब क्या है ?
╭┈► *जवाब ➺* गीबत करना हराम और जहन्नम मे ले जाने वाला काम है, और गीबत सुनने वाला भी करने वाले की तरह गुनहगार होता है, गीबत और इसकी मज़म्मत पर बहैस तवील है मगर यहां मुख्तसर ब्यान किया जाता है, अल्लाह ता'आला कुबूल करे और हमे इस मोहलिकाते खबीसा से बचने की तोफिक दे *आमीन*
╭┈► क़ुरआन पाक सुराह हुजूरत आयत 12 मे अल्लाह का इरशाद ए पाक है : और एक दूसरे की गीबत ना करो क्या तुम मे कोई पसंद रखेगा की अपने मरे भाई का गोश्त खाए, तो ये तुम्हे गवारा ना होगा,"
╭┈► गीबत इज़्ज़त को ख़तम कर देती है इसीलिये इसे माल और खून के साथ ज़िक्र किया गया!..✍🏻
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► मुस्लिम शरीफ की हदीस मे है,एक दूसरे से हसद ना करो, बुगज़ वा अदावत ना रखो, नफ़रत दिलाने वाले काम ना करो, ना आपस मे बेरूखी इख़्तियार करते हुए क़त आ ताल्लुक़ करो, ना एक दूसरे की गीबत करो और ए अल्लाह के बन्दो भाई भाई बन जाओ।
╭┈► और फरमाते है मदीने के ताजदार,गीबत से बचो बेशक गीबत ज़िना से भी सख़्त - तर है
"मैं शबे मेराज ऐसे लोगो के पास से गुज़रा जो अपने चेहरो को अपने नाखूनों से नोच रहे थे, ये लोग गीबत करते और उनकी आबरूरेज़ी करते थे।..✍🏻
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╭┈► अल्लाह तआला ने हज़रत ए मूसा (अलैहिस्सलाम) की जानिब वही फरमाई, जो गीबत से तौबा करके मरा वो आखरी शख्स होगा जो जन्नत में जाएगा और जो गीबत पर कायम रहते हुए मरा वो पहला शख़्स होगा जो जहन्नम मे दाखिल होगा, और ये भी याद रखना चाहिए गीबत, फक़त जुबान ही से नही बल्कि आँख से, हाथ से, इशारो से लिख कर फोन पर, sms पर भी हो सकती हैं।
╭┈► गीबत सुनने से किस तरह बचे इसकी रहनूमाई करते हुए मेरे आका हुज्जत उल इस्लाम इमाम ग़ज़ाली अपनी मक़बूले दो जहाँ तस्नीफ इहिया उल उलूम जिल्द 3 सफह 443 पर फरमाते है अगर वहां से उठ कर जा सकता है या गुफ्तगू का रुख बदल सकता है तो ऐसा ही करे वरना गुनहगार होगा।..✍🏻
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत क़ुरआन शरीफ आवाज़ से पढ़ना ज़रूरी है या हम बिना आवाज़ के भी तिलावत कर सकते हैं?
╭┈► *जवाब ➺* कुरआन आवाज़ से पढ़ा जाएगा, कम से कम इतनी आवाज़ तो हो की खुद के कान सुन लें, अगर दिल दिल मे पढ़ा, और मुंह बंद है, जैसा की अक्सर औरते पढ़ती है तो वो पढ़ा हुआ नही माना जाएगा, हाँ, कुरआन देखने और छूने का सवाब ही मिलेगा, वो भी अगर उंगली रख कर पढ़ा, अगर बस देखा और उंगली भी ना रखी तो बस देखने का सवाब, और अगर इसी तरह नमाज़ मे भी किसी की आदत है की क़िराअत इतनी आहिस्ता करता है की खुद भी नही सुन पाता बस नियत बाँधी और दिल दिल मे नमाज़ पूरी पढ़ ली तो इस तरह नमाज़ भी नही होती।
╭┈► जैसा की बहारे शरीअत जिल्द 01 सफह 544 पर है किराअत मे इतनी आवाज़ दरकार है की अगर कोई शोर, गुल ना हो तो खुद सुन सके, अगर इतनी आवाज़ भी ना हो तो नमाज़ ना होगी।..✍🏻
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* नमाज़ पढ़ते वक़्त आवाज़ कितनी तेज़ होनी चाहिए ?
╭┈► *जवाब ➺* कम से कम इतनी आवाज़ तो हो की खुद के कान सुन लें, और दिल दिल मे नमाज़ पूरी पढ़ ली तो इस तरह नमाज़ भी नही होती।
╭┈► *सुवाल ➺* क्या पिलास्टिक के कंगन या कुछ भी पहनने से नमाज़ हो जाती है ?
╭┈► *जवाब ➺* प्लास्टिक के कंगन चूड़ी बगेरा पहन कर नमाज़ हो जाएगी।..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 68
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* बहुत लोगों को कहते सुना है की जिस लड़की के हाथ में चूड़ीयां या कड़े नही होते उन के हाथ का पानी हराम है?
╭┈► *जवाब ➺* औरत का बगैर ज़ेवर रहना मकरूह है, मगर ऐसी औरत के हाथ का पानी पीना गुनाह नही, की गुनाह को साबित करने के लिए कम से कम तरके सुन्नत ए मौअक्कदा की आदत या वाजिबात का -2-3 बार तर्क करना, या फ़र्ज़ का 1 बार तर्क ज़रूरी है, या फिर हराम का एक बार करना या मकरूह ए तहरीमी की आदत बनाना वगेरा का पाया जाना चाहिए और चूड़ी ना होने से इनमे से कुछ भी साबित नहीं हो रहा लिहाज़ा न बगैर चूड़ी रहना गुनाह है, न उसके हाथ का पानी पीना गुनाह।..✍🏻
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* अगर कोई औरत को बच्चा पैदा हो तो क्या 40 दिन तक जब तक वो निफास से होती है इस दरमियान अपने शौहर के साथ हम बिस्तर हो सकती है या ऐसा करने पर दोनो मिया बीवी किसी गुनाह के हक़दार होंगे?
╭┈► *जवाब ➺* लोगों मे ये ग़लत फहमी है की निफास हर हाल मे 40 दिन तक रहता है, जबकि ये ग़लत है, निफास की मुद्दत ज़्यादा से ज़्यादा 40 दिन होती है, मगर इसका ये मतलब नही की सारी औरत 40 दिन में ही पाक हो, बल्कि अगर खून 10 दिन बाद रुक गया तो निफास ख़तम हो जाता है, और 11 वे दिन औरत पर सारे अहकाम की पेरवी ज़रूरी है, मसलन नमाज़, रोज़ा बगेरा, अगर किसी को 40 दिन ही खून आए तो निफास है, इससे ज़्यादा आए तो बीमारी तो जो दिन निफास के है, उन दिनो मे शोहर के साथ हमबिस्तरी करना हराम है, और अगर हलाल जाने तो कुफ्र है, बलके नाफ़ से गुटनो तक बा - शहवत छूना भी गुनाह है इसी तरह अगर बीवी के साथ सोने मे शहवत पर काबू ना कर सकेगा (और वती कर लेगा) तो उसके साथ सोना भी हराम और गुनाह बल्के अपना बिस्तर अलग रखे, और अगर जिमा ना करेगा तो साथ सो सकता है, बोसा वगेरा लेना जाइज़ है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 52 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 70
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 382 पर है हमबिस्तरी इस हालत (हैज़ और निफास) मे हराम है, ऐसी हालत मे हमबिस्तरी जाइज़ जानना कुफ्र है, नाफ़ से गुटनो तक औरत के बदन को मर्द अपने किसी हिस्से से छूना जाइज़ नही, (जबकि कपड़ा ना हो) (हाँ, अगर कपड़े के उपर से छुआ की गर्मी महसूस ना हुई तो जाइज़) नाफ़ से उपर और घुटनो से नीचे छूने या किसी तरह का नफा लेने में कोई हर्ज नहीं" (यानी नाफ़ से उपर सर तक पूरे जिसम पर बोसा ले सकता है, और हाथ भी जिस्म पर लगा सकता है, इसी तरह घुटनो से नीचे।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 53 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या हैज़ वाली औरत नियाज़ का खाना पका सकती है, लोग कहते है नापाक औरत नियाज़ के लिए खाना नही पका सकती और क्या हदीस, पंजसुराह या कोई दीनी किताब उठा या पढ़ सकती है, अगर वो हिन्दी मे हो या अरबी मे जवाब इनायत फरमाएँ?
╭┈► *जवाब ➺* ऐसी औरत खाना पका सकती है फिर चाहे खाने के लिए हो या नियाज़ के लिए, अगर खाना नापाक हो जाएगा तो नियाज़ तो दूर खाया भी नही जा सकता, ये महेज़ शरीअत से बेखबरी है, और ऐसी (हैज़ वाली) औरत अपने वज़ीफ़े भी इसी हाल मे पढ़ सकती है, मगर कुरआन की नियत से कोई कुरआन की आयत पढ़ भी नही सकती मगर दुआ की नियत से पढ़ सकती है जैसे, खाते वक़्त बिस्मिल्लाह वगैरा वैसे बिस्मिल्लाह भी क़ुरआन है मगर, इसे दुआ के तोर पर पढ़ा जा सकता है इसी तरह शजरा के वज़ीफ़े भी पढ़े जा सकते है, मगर क़ुरआन का छूना और कुरआन की नियत से क़ुरआन या कोई सूरत, आयत पढ़ना हराम है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 54 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► जैसे की बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह : 326 से है जिस को नहाने की ज़रूरत हो (नापाक) उसको मस्जिद मे जाना, तवाफ़ करना, क़ुरआन को छूना, या वे छुए देख कर जुबानी पढ़ना, या किसी आयत का लिखना, या आयत का तावीज़ लिखना, या ऐसे तावीज़ छूना हराम है", इसके सिवाय हदीस या दीनी मसअलों की किताब पढ़ सकते है, हराम नही ना गुनाह, मगर मकरूह है, और उस किताब मे आयते कुरानी का वही हुक्म होगा जो ब्यान हुआ यानी उनका छूना हराम होगा।
╭┈► जैसा की बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 327 पर है इन सब (नापाक, बेवजु) को फिक, तफ़सीर और हदीस की किताबो का छूना मकरूह है, और अगर उनको कपड़े से छुआ तो हर्ज नही इसी तरह इनको अज़ान का जवाब देना जाइज़ है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 55 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत औरत अपने सिर के बाल कटा सकती है या ऐसा करना गुनाह है ?
╭┈► *जवाब ➺* औरत को मर्दाना बाल करवाना हराम है और हदीस मे ऐसी औरतो पर लानत की गई, और इस तरह कटवाना भी मना की जिसमे आगे कुछ बाल माथे पर गिरे रहते है जिन्हे आम जुबान मे “लट" कहते है और वो गैर मर्द की नज़र मे आते है, इसके सिवा अगर बालो की नोक कटवाई जाए जिससे बालो का लंबा होना रुक जाता है या दो मुँह बाल हो जाते है फिर आगे नहीं बढ़ते तो ऐसे सूरत मे नोक कटवा कर दो मुँह बाल कटवाए जा सकते है, मगर खुद काटे या किसी औरत से कटवाए और ये भी याद रखना चाहिए की, वो कटे हुए बाल पर भी गैर मर्द की नज़र पड़ना गुनाह है, अगर बाल ऐसी जगह डाले जहाँ गैर मर्द की नज़र पढ़े तो औरत गुनहगार होगी, लिहाज़ा इस बात का भी अहतियात रखा जाए, और ये एहतियात कंघी करते वक़्त भी रखी जाए।
╭┈► जैसा की बहारे शरीअत जिल्द 3 हिस्सा 16 सफ़ह 91-92 पर है जिस उज़व (पार्ट) की तरफ नज़र करना नाजाइज़ है, अगर वो बदन से जुदा भी हो जाए तो अब भी उसकी तरफ नज़र करना नाजाइज़ रहेगा।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 55-56 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत औरतो का मेकअप करना कैसा है, लिपस्टिक वगैरह वो इस्तेमाल कर सकती हैं या नही?
╭┈► *जवाब ➺* अपने शोहर के लिए जाइज़ है, और गैर के लिए हराम, गैर शादी शुदा लड़की को भी जाइज़ है, लिपस्टिक मे अगर कोई नाजाइज़ केमिकल है तो नाजाइज़ वरना जाइज़, मगर उसकी इतनी मोटी परत लगाना की वुज़ू का पानी होन्ट तक ना पहुचे तो वुज़ू नही होगा वरना हो जाएगा, लिपस्टिक मे हमारी राय तो होती है की इससे परहेज़ ही करना चाहिए, क्यूंकी इस ज़ीनत का गैर मर्द पर इज़हार ज़रूर हो जाता है, मसलन, घर मे देवर जेठ से, और ये नही तो घर आए मेहमान से, हाँ अगर घर मे सिवाए शोहर या औलाद या औरतो के कोई नही तो हर्ज़ नही।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 57 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत कुछ औरतों को देखा है जो हिंदूवाना तोर तरीको से चलती हैं जैसे साड़ी पहनती हैं बिंदिया लगाती हैं नेल्पोलिश लगाती हैं ये सब करने वाली सही या नही ?
╭┈► *जवाब ➺* साड़ी पहनना जाइज़ है, जबकि गैर मर्द की नज़र मे ना आना पड़े मसलन घर पर शोहर और छोटे बचे या मुसलमान औरते हो तो, वरना सित्र का खोलना हराम होगा, बिंदिया लगाना उर्फ पर मबनी है, अगर वहाँ की औरते लगाती हो और दूसरी औरते उसे देख कर कानाफुसी ना करे तो हर्ज़ नही, मगर साड़ी के साथ बिंदिया लगाना और सख़्त है, और बिंदिया लगे हुए वुज़ू नहीं होगा, और अगर बिंदिया भी घर में लगाए और वुज़ू मे हटा ले तो फिर हर्ज़ नही।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 58 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► नैल्पोलिश के मुताल्लिक़ एक सुवाल के जवाब में मुफ़्ती ए आज़म हॉलेंड मुफ्ती अब्दुल वाजिद कादरी फतावा यूरूप सफह 107 पर लिखते है लिपस्टिक और नाखून पोलिश जिसमे हराम और नापाक चीज़ की मिलावट हो, उनका इस्तेमाल मुसलमान औरतो के लिए हराम है, और इसके लगे रहने की सूरत मे ना वज़ु सही ना गुस्ल और ना नमाज़, हाँ अगर इसके साथ फॉर्मूला भी मौजूद हो जिससे ज़न ग़ालिब हो की इसमे कोई हराम चीज़ की मिलावट नहीं तो इसका इस्तेमाल औरतो के लिए जाइज़ है, वह सामाने जीनत है और औरतो को ज़ीनत रबा (जाइज़) है," हाँ, अगर लिपस्टिक और नाखून पोलिश की परत वुज़ू मे होन्ट और नाखून पर पानी बहने से रोकती है तो वुजु गुस्ल में इसे साफ करना होगा, वरना ये तहारत मे रुकावट है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 59 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 77
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* बीवी अगर हैज़ (पीरियड्स) से है तो उस से दूर रहना चाहिए पीरियड्स का मॅक्सिम टाइम 7 दिन होता है लेकिन अलग अलग औरतों के लिए अलग अलग होता है तो क्या पूरे 7 दिन दूर रहना चाहिए या 3 या 4 दिन मे अगर पाक हो जाती है तो हमबिस्तरी की जा सकती है ?
╭┈► *जवाब ➺* औरत जब पाक हो जाए तो शोहर उससे हक़ ए जीजियत अदा कर सकता है, और अलग अलग औरतो का आदत के मुताबिक अलग अलग वक़्त होता है, कोई 4 दिन पाक तो कोई 8 दिन में, आपने सुवाल मे पीरियड्स का टाइम 7 दिन ब्यान किया ? ये आपने कहा पढ़ा या सुना ??
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 372 पर है, हैज़ की मुद्दत कम से कम 3 दिन (72 घंटे) और इससे एक भी मिनट कम हो तो हैज़ नही, और ज़्यादा से ज़्यादा "10" दिन है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 60 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 78
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* औरत अगर हैज़ या निफास से पाक हो जाए फिर उसे वुज़ू या गुसल करने के लिए पानी मुयस्सर ना हो तो क्या वो नमाज़ पढ़ सकती है? जबाब इनायत फरमाएँ मेहरबानी होगी ?
╭┈► *जवाब ➺* अगर तयम्मुम की शराइत पाई जाए तो, पानी ना होने पर हैज़ वाली औरत नमाज़ के लिए तयम्मुम करे।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द : 1 सफह : 352 पर है औरत हैज़ निफास से पाक हुई और पानी पर कादिर नही तो तयम्मुम करे।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 59 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 79
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत क्या हमिला (प्रेग्नेट) औरत का तलाक हो जाएगा ? प्लीज़ ज़रा तफ़सील से बताएं ?
╭┈► *जवाब ➺* इस सुवाल मे तफ़सील की कहा ज़रूरत है, बस जवाब ही चाहिए होता है, और वह यह है की तलाक हो जाएगा फतावा फैज़रुरसूल जिल्द 2 सफह 111 पर है हालते हमल और गुस्से में तलाक़ हो जाएगी।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 58 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 80
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या फरमाते हैं उलमा ए अहले सुन्नत इस बारे मे की जो कपड़ा पहनना हराम है (मसलन मर्द को रेशम वाला, औरत को मर्दाना.. वगेरा वगेरा,) उसे पहन कर नमाज़ पढ़ने से नमाज़ हो जाती है या नही ?
╭┈► *जवाब ➺* ऐसी नमाज़ मकरूह तहरीमी होगी, इस तरह नमाज़ पढ़ने से गुनाह भी होगा और तोबा करना भी वाजिब और नमाज़ का फिर से पढ़ना वाजिब है जैसा की फतावा रज़विया जिल्द 23 सफह 102 पर है नाजाइज़ लिवास के साथ नमाज़ मकरूह तहरीमी होती है, उसका (नमाज़ का) ईयादा (लौटाना) वाजिब है।
╭┈► दुरे मुख़्तार मे है यानी, हर वो नमाज़ जो कराहते तहरीमी के साथ अदा की गई हो उसका लौटाना वाजिब होता है।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 59 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 81
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* अगर कोई शख्स किसी गैर मेहरम लड़की को अपनी बहन बनाता है तो क्या ये शरीअत मे जाइज़ है क्यूंकी कुछ रिश्ते ऐसे होते है के खून से भी ज़्यादा करीबी बन जाते है तो बहन बनाने के बाद उससे बात कर सकता है या नही ?
╭┈► *जवाब ➺* अगर इसके जवाज़ पर (यानी जाइज़ होने पर) फतवा जारी कर दिया जाए तो एक अज़ीम फित्रे का दरवाज़ा खोलना है, फिर तो हर लड़का जिस लड़की से शादी करना चाहता है तो उसकी छोटी बहन या उसके घर मे रहने वाली किसी भी लड़की को अपनी मुंह बोली बहन बना लेगा और आना जाना शुरू और मक़सद भी हल फिर अक्सर देखा भी यही जाता है, की जिसे कही शादी करनी हो तो पहले उस घर में किसी काम के बहाने आने जाने की रास्ता खोलता है, उस घर के बच्चो को चीज़ दिला कर, वगेरा वगेरा, में ये नही कहता की साइल का मक़सद ग़लत हो, शरीअत ने जिसे बहन क़रार दिया और उससे निकाह हराम किया वही शरई एतबार से बहेन है, इसके सिवा तो सारे मुसलमान (हज़रत आदम की औलाद होने की बिना पर) बहन भाई ही है, फिर अलग से रिश्ता कायम करने की हाजत ही क्या।
╭┈► गैर मेहरम से बहन बना कर रिश्ता रखना, मिलने या बिला वजह शरई बात करने की इजाज़त नही, और जो दिल से बहन माने या मुंह से ये आपके अपने मुंह का कहना है, अल्लाह ने जिससे आपस मे पर्दा फ़र्ज़ किया है, उससे पर्दा है, वरना अपने चाचा की लड़किया भी तो चाचाज़ाद बहन है, फिर शरीअत मे जब इनसे पर्दा करार दिया तो बाहर की बनाई रेडी - मेट बहन से कैसे मिलने बोलने की इजाज़त होगी.. इस तरह अपने मुंह से रिश्ता बदल कर, रिश्ता बना लेने वालों के बारे मे अल्लाह का फरमान है सुरे अहज़ाब आयात 4-5 ये तुम्हारे अपने मुंह का कहना है, और अल्लाह हक़ फरमाता है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 60 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 82
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या मियाँ बीवी एक दूसरे के जिस्म के हर एक हिस्से को चूम (किस) कर सकते है, कहते हैं दूध हलक मे जाने से निकाह टूट जाता है ?
╭┈► *जवाब ➺* सिवाए शरमगाह के, शोहर बीवी, एक दूसरे के जिस्म के हर एक हिस्से को चूम, चाट सकते है, एक दूसरे के जिस्म से जैसे दिल चाहे, लुतफंदोज़ हो सकते हैं
╭┈► जैसा की फतावा रज़विया जिल्द 12 सफह 267 पर है मर्द के लिए जाइज़ है की अपनी बीवी के सर से लेकर पावं तक जैसे चाहै लुतफंदोज़ हो सिवाए उसके जिससे अल्लाह ने मना फरमाया है," (यानी पिछले हिस्से मे सोहबत करना) और आगे फरमाते है की "रहा पिसतान को मुँह मे दबाना (या चूमना) तो इसका हुक्म भी ऐसे ही है, की जब बीवी दूध वाली ना हो (तो चुम और मुह से भी दबा सकते है) और अगर दूध वाली है तो मर्द इस बात का लिहाज़ रखे की दूध का कोई क़तरा उसके हल्क़ मे दाखिल ना होने पाए, तो भी (पिसतान के दबाने और चूमने चूसने मे) हर्ज़ नही।
╭┈► कुरआन पारा 22, सुरे आहज़ब, आयात 53 मे है और अल्लाह हक़ फरमाने मे नही शरमाता।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 61 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 83
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत, सरकार ﷺ के ज़माने में औरत मर्द साथ नमाज़ पढ़ते थे ? अब क्यू नही ?
╭┈► *➺ जवाब :* सरकार ﷺ के वक़्त मे जाया करती थी, मगर बाद मे फित्ने के खौफ से दौरे फ़ारूकी मे मना कर दिया, और हज़रत आएशा ने फरमाया (हुज़ूर ﷺ हमारे ज़माने की औरतो को मुलाहज़ा फरमाते तो उन्हे मस्जिद जाने से मना करते, जैसे बनी इसराइल ने अपनी औरतो को मना कर दिया था)।
╭┈► फताहुल कदीर मे है (फ़साद के गलबे की वजह से, तमाम वक्तो की नमाज़ों मे, उमूमन बूढ़ी और जवान औरतो का निकलना मुतखरीन उलमा ने मना फरमाया है)।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 61 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 84
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► फतावा रजविया जिल्द 14 सफह 551 पर है जब और फ़साद फैला तो उलमा ने जबान वा गैर जवान (बूढी) किसी के लिए (हाज़री ए मस्जिद की) इजाजत ना रखी औरत को जमाअत से नमाज़ पढ़ना मकरूह है, चाहे दिन की नमाज हो या रात की, फ़र्ज हो या तरावीह।
╭┈► इसी तरह बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह : 584 पर है औरतो को किसी नमाज़ मे जमाअत की हाज़री जाइज़ नहीं, दिन की नमाज़ हो या रात की, जुमुआ हो या ईदैन, ख्वा जवान हो या बूढ़ी।
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 466 पर है (औरत की जमाअत) खुद मकरूह है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 61-62 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 85
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► फतावा फैज़रुरसूल जिल्द 1 सफह 425 पर है "औरतो को ईदगाह की हाज़री जाइज़ नही" अब इस बात से आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हो की जब सहाबा के वक़्त में फसाद का खौफ़ हुआ और उन्होंने मस्जिद की हाज़री औरत के लिए मना कर दी, तो आज का वक़्त कैसा है, ये मुझे आपको बताने की जरूरत नहीं, आप खुद गौर करे की अगर मस्जिद मे औरते लड़किया नमाज़ को जाएगी तो हाल क्या होगा, मर्दो का जमअट मस्जिद के बाहर होगा, इमाम से जवान लड़के ज्यादा मेल जोल रखने लगेंगे, दिन भर मस्जिद में रहेंगे, बाकी आप खुद समझदार हो, ये दौर दौरे रसूल से बेहतर नही बुरे से बुरा तर है।...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 62-63 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► और हदीस मे है गुज़रा हुआ कल, आज से बेहतर था, और आज का दिन आने वाले कल से बेहतर है, ता - कयामत इसी तरह होगा अब इस हदीस से और साफ हो गया की, पहले का गुज़रा हुआ दिन अच्छा और आने वाला और खराब होगा लिहाज़ा सहाबा ने जो किया अच्छा किया और उसे उलमा ने बाकी रखा तो और अच्छा किया।
╭┈► हदीस मे है की हुज़ूर ﷺ ने फरमाया मेरे बाद बहुत सी चीज़े नई ईजाद होंगी उनमे से मुझे वो सबसे ज्यादा पसंद है जो उमर ईजाद करेंगे।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 63 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 87
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* अगर कोई औरत ये कहे की मेरे ऊपर किसी बुजुर्ग की सवारी आती है क्या कोई वली किसी औरत पर आ सकते है ?
╭┈► *जवाब ➺* ऐसी औरत मक्कार और झूठी है, वरना जाहिल तो जरूर है, किसी भी वली या इंसान की सवारी किसी दूसरे इंसान पर नहीं आती, हों, कुछ लोगो पर जिन्नात ज़रूर आते है, जो अपने आप को वली कहते है और जिस पर आते है उसे इसकी खबर नही होती, फिर लोग वही समझ लेते है, जो वो जिन्न कहता है मसलन किसी पर जिन्न आया और कहा मे गौस ए आज़म हूँ, अब लोग उसे समझते है की ग़ौस की सवारी आती है, और ये सब ड्रामा जिन्नात तफरीह करने के लिए करते है, और ये भी याद रखे की जिन्न भी किसी किसी पर आते है, हर किसी पर नहीं कुछ लोगों का तो खुद का ड्रामा होता है।
╭┈► बनारूल फतावा जिल्द 01 सफह 177 पर है किसी मर्द या औरत पर किसी बुजुर्ग की सवारी नहीं आती, सिर्फ जिन्नात का असर होता है वो भी किसी किसी पर, मगर इस जिन्नात से सुवाल करना या आइन्दा का हाल मालूम करना नाजाइज़ है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 63 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 88
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* औरत अगर बालो का जूड़ा बना कर वुज़ु करे तो वुजु होगा की नहीं ?
╭┈► *जवाब ➺* औरत ने बालो का जूड़ा बँधे बँधे वुजु किया तो वुज़ू हो जाएगा इसमे किसी तरह का कोई हर्ज़ नही, और अगर गुस्ल किया तो गुस्ल भी हो जाएगा, चाहे जुड़े के बाल पूरे गीले हो या ना हो, फिर भी गुस्ल हो जाएगा, (बस सर यानी बालो की जड़ मे पानी जाना चाहिए)।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 64 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 89
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* मेरा सवाल ये है क्या औरत आवाज़ में कुरआन शरीफ की तिलावत नहीं कर सकती ?
╭┈► *जवाब ➺* क़ुरआन की तिलावत आवाज़ के साथ ही करनी चाहिए, और कम से कम इतनी आवाज़ जो खुद के कान तक आ सके, और औरत को इतनी आवाज़ से कुरआन पढ़ना जाइज़ नही की उसकी आवाज़ गैर मर्द के कानो तक जाए।
╭┈► इसी तरह मीरात उल मनाज़ी शरह मिश्कातुल मसाहबिह जिल्द 6 सफह 445 पर है औरत को अज़ान देना, तकबीर कहना, खुश - इल्हानी (अच्छी आवाज़) से अज्नबियो के सामने तिलावते क़ुरआन करना सब मना है, औरत की आवाज़ भी मित्र है।
╭┈► मीरात उल मनाज़ी शरह मिश्कातुल मसाहबिह जिल्द 8 सफह 59 पर है जो औरत कारिया हो वो भी अपनी किराअत औरतो को सुनाए, मर्दो को ना सुनाए, क्यूंकी औरत की आवाज़ का भी पर्दा है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 65 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* सलाम. बीवी के हकूक़ तो हर लड़की को अममन मालुम है इसीलिए हिन्दस्तानी लड़की परेशानियो के हद से गुजर जाने के बावजूद ना मैके की दहलीज़ फलांगती है ना सुसराल की इसलिए हज़रत बराए करम रहनुमाई फरमाये के
1 शोहर के हुकूक़ क्या है,
2- जो बीवी घर की सारी ज़िम्मेदारी अदा करती हो जो शोहर की है इस के लिए क्या हुक्म है, हज़रत तसल्ली बख्श जवाब इनायत फरमाये जज़ाकल्लाह।
╭┈► *जवाब ➺* इसकी तफ़सील आप किसी किताब *(जन्नति जेवर, वगेरा)* से पढ़ ले तो ज़्यादा बेहतर है एक जवाब मे सब बताना मुमकिन नही कुछ मुख्तसर अर्ज़ है।
╭┈► हदीस मे फरमाया तुम मे अच्छे वह लोग हैं, जो औरतो से अच्छी तरह पेश आएँ।
╭┈► बुखारी मे है कोई शख्स अपनी औरत को ना मारे, जैसे गुलाम को मरता है।
╭┈► इहिया उल उलूम मे है हुजूर की आखरी वसीयत 3 बातो पर थी, और बार बार उन्हे ही दोहरा रहे थे, यहा तक की जुबान मे तुतलाहट और कलाम मे आहिस्तगी आ गई, आपने फरमाया नमाज़ को लाज़िम पकड़ो, नमाज़ को लाज़िम पकड़ो, और जिनके तुम मालिक हो उन पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ ना डालो, औरतो के मुआमले मे अल्लाह से डरते रहो, की ये तुम्हारे हाथ मे कैदी हैं, तुम ने उन्हे अल्लाह की अमानत के साथ लिया है, और अल्लाह के कलिमे के साथ उनकी शरमगाह को हलाल किया है औरत के साथ हुन ए अखलाक से पेश आओ, और वो ये है की उससे तकलीफ़ को दूर करो, हालते गुस्से वा गज़ब मे सब्र इख़्तियार करना हुस्ने अख़लाक़ है, उनके साथ कुछ नर्मी से खेल कूद और खुश तबइ भी करे, की ये औरत के दिल को खुश करने वाला है, फारूक्के आज़म का कौल है की आदमी को अपने घर मे बच्चे की तरह रहना चाहिए।...✍🏻
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► हज़रत ए लुकमान का कौल है अकल्मंद को चाहिए की घर मे बच्चे की तरह रहे बाहर मर्द की तरह (मुराद अपनी बीवी से प्यार मोहब्बत करने वाला, मज़ाक करने वाला उसका दिल खुश करने वाला, नाकी हमेशा गुस्से वाला, मारने वाला) लुकमा (खाना) मे एहितदाल मर्द को चाहिए की ना तो बिला वजह तंगी कर ना फ़िज़ल खर्ची करे।
╭┈► इल्म औरत को उसकी ज़रूरत के इल्म से आगाह करना भी उसके हाकिम (आदमी) के जिम्मे है इसी तरह हर फ़र्ज़ बाजिब का उसके वक़्त पर हक्म देना और हर हराम से बचते रहने की ताक़ीद करना ठीक वैसे ही नाफरमान औरत को अदब सिखाए, मगर इस तरह के ये टेडी पसली टूटने ना पाए और ये हदीस भी ज़हन मे रहै औरतो के मुआमले मे अल्लाह से डरते रहो तीन दिन से ज़्यादा औरत से ताल्लुक़ ना तोड़े, और मारने की ज़रूरत आए तो हल्की मार से मारे, वरना नाराज़गी ज़ाहिर करे, खाना, बिस्तर अलग करे, मगर जुल्म या गुलाम की तरह ना मारे, और जो औरत अपने शोहर का हक़ अदा करे तो उसके मुताल्लिक़ फरमाया तबरानी मे है जो औरत खुदा की फ़र्माबरदारी करे, और शोहर का हक़ अदा करे, और उसे नेक काम की याद दिलाए, और अपनी इज़्ज़त और अपने माल मे खयानत ना करे, तो ऐसी औरत के और शहीदो के दरमियान जन्नत मे एक दर्जे का फ़र्क होगा।..✍🏻
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► अबु नईम ने हज़रत अनस से रिवायत किया औरत जब पाँचो नमाज़े पढ़े, और माहे रमज़ान के रोज़ रखे, और अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करे, और शोहर की फ़र्मा बरदारी करे, तो जन्नत के जिस दरवाज़े से चाहे दाखिल हो "तिरमिज़ी उम्मे सलमा से रावी" जो औरत इस हाल मे मरी की उसका शोहर उससे राज़ी था वह जन्नत मे दाखिल होगी।..✍🏻
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* नूर नामा पढ़ना कैसा है, हमारे यहाँ की ख़वातीन हर जुमुआ को पढ़ती है क्या ये जाइज़ है ? कोई किताब की दलील दीजिए ताकि में बता सकूँ, बराए करम।
╭┈► *जवाब ➺* पता नही आप किस किताब नूर नामा की बात कर रहे है क्यूकी हो सकता है की अब कोई नई और सही रिवायत के साथ शाया हो चुकी हो और अगर एक छोटी किताब नूर नामा जो काफ़ी पुरानी औरतो मे मशहूर है तो उसका पढ़ना सुनना दुरुस्त नही, परहेज़ चाहिए ऐसी महफ़िलो मे जाने से भी, इसकी जगह, मन्नत, हाजत के दीगर अवराद ओ वज़ाइफ़ की तिलावत करनी चाहिए और घर मे खैर के लिए यासीन, वगेरा अच्छा है, मगर ये नूर नामा, 16 सय्यदो की कहानी वगेरा से बचना ज़रूरी है!
╭┈► फतावा रज़वीय्या जिल्द 26 सफह 610 पर है (हिन्दी ज़बान मे लिखा रिसाला नर नामा के नाम से मशहूर है, इसकी रिवायत बेअस्ल है इसका पढ़ना जाइज़ नही!
╭┈► फतावा फाकि ए मिल्लत जिल्द 2 सफह 416 पर है नूर नामा किताब की रिवायत बेअस्ल है इसका पढ़ना दुरुस्त नही!..✍🏻
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* अगर हाथ मे चूड़ी या कुछ ना पहने हो तो पानी मकरूह हो जाता या नही और बिना हाथ मे कुछ पहने वुज़ू और नमाज़ हो जाती है?
╭┈► *जवाब ➺* औरत को बिना ज़ेवर रहना मकरूह है, मगर उसके हाथ का पानी जाइज़ और वुज़ू नमाज़ भी हो जाएगी, मगर बिना ज़ेवर नही रहना चाहिए कुछ ना कुछ ज़रूर पहने, और ना पहनना मर्दो से मुशाबेहत है!
╭┈► हदीस मे है (ए अली अपने घर की औरतो को हुक्म दो की बे - ज़ेवर नमाज़ ना पढ़े!..✍🏻
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► आला हज़रत इमाम ए इश्क़ ओ मोहब्बत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी फतावा रज़वीय्या जिल्द 22 सफह 127 फरमाते है (औरत को) बिल्कुल बे - जेवर रहना मकरूह है, की मर्द से मुशादेहत है "और हज़रत आएशा औरतो को बे - जेवर नमाज़ को मकरूह जानती और फरमाती - (जेवर मे) कुछ ना पाओ तो एक डोरा (धागा) ही गले मे बाँध लो" और इसी तरह मेहन्दी लगाना औरतो को लिए सुन्नत है यहा तक की हाथ बे - मेहन्दी ना रखे की औरत के बे - मेहन्दी रहना भी मर्द से मशावेहत है, और हदीस मे हुजूर ने एक सहाबिया को बैत करने से पहले फरमाया हम तुमको बयेत ना करेंगे जब तक के तुम अपने हाथो में तब्दीली ना लाओ" (यानी उस ख़ातून के हाथ बे - मेहन्दी के थे, मतलब तुम्हारे हाथ मर्द की तरह सफेद है, इनमे मेहन्दी से रंग करो फिर बयेत करो, इससे मालूम हुआ की औरतो को मर्द की तरह चिट्टे हाथ रखना मकरूह है,) मीरात शरह मिश्कात लिहाज़ा ख़वातीन को चाहिए की कुछ ज़ेवर चूड़ी, कड़े, बुन्दे वगेरा ज़रूर पहने रहे!
╭┈► मगर ज़ेवर की आवाज़ गैर मर्द को ना जाए, और अगर पायल मे घुंघरू हो तो उस झांझर को तोड़ दे ताकि आवाज़ ना) और कम से कम नाखून पर ज़रूर मेहन्दी लगाए, वरना पूरे हाथ पर, ताकि हदीस पर अमल हो जाए!
🤲🏻 अल्लाह अमल की तौफ़ीक़ दे!..✍🏻 आमीन
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* भाई वजू कर के जो अपपन जनमाज़ पर नमाज़ पढ़ते है तो जनमाज़ के उपर पानी भी लगता है तो मेने सुना है के बजू का पानी पाक नही होता ये ठीक है और अगर अपपन पौछले तो भी नही पौच्छना बोल के सुना था वजू कर के नही पौचना ज़रा बोलो आप ?
╭┈► *जवाब ➺* वजु का पानी पाक है जनमाज़ या कपड़े पर लगेगा तो नापाक नही करेगा, और जिससे पानी को आपने नापाक सुना बोलके वो गलतिच पर है, अब रहा ये की अपपन लोग जो वज़ु करके हाथ मुंह खुश्क करते, वैसा करना चाहिए की नही तो बेहतर ये है की पूरी तरह खुश्क ना करे, बल्कि पानी की तरी रहने दे, हदीस मे आया की “मेरे उम्मतीओ के आज़ा, वज़ु की वजह से सफेद होंगे" और मुफ़्ती अमजद अली साहिब वजु को पोछने को मना किए! बोलके
╭┈► बहारे शरीअत बाबुल बजु जिल्द 1 सफह 300 पर है आज़ा ए वजु बगैर ज़रूरत ना पोछे और पोछे तो बेज़रूरत पूरा खुश्क ना करे और इसी तरह आला हज़रत भी अपपन सुन्नी लोगा को वज़ का पानी खुश्क करने से मना किए!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 68 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► बोलके, फतावा रज़वीय्या जिल्द 1 सफह 317 पर है बेहतर ये है की बे - ज़रूरत ना पोछे और और पोछे तो बे - ज़रूरत बिल्कुल खुश्क ना करले कद्रे नम बाक़ी रहने दे, हदीसे- पाक मे है की (ये पानी क़ियामत मे नेकी के पल्ले में रखा जाएगा) मगर, अगर मस्जिद मे नमाज़ के लिए जाना हो तो ज़रूर पानी को इतना खुश्क करे की मस्जिद मे इसके क़तरे ना गिरे की ये गुनाह है!
╭┈► इसी तरह फतावा रज़वीय्या जिल्द 4 सफह 338 पर है मस्जिद मे उनका गिराना जाइज़ नही, बदन इतना पोछ कर की क़तरे ना गिरे, मस्जिद में दाखिल हो!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 68 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या नाबालिग बच्चे को सोने चांदी के जेवर जैसे चेन, लोकिट अंगूठी वगैरा पहना सकते है या नही ?
╭┈► *जवाब ➺* अगर बच्चे से मुराद लड़का है तो सिर्फ चाँदी की सवा चार माशा की अंगूठी के सिवा कुछ भी जाइज़ नही, और लड़की है तो सोने चाँदी मे सब जाइज़ है, और बच्चे (लड़के) को जिसने पहनाया वो गुनहगार होगा, मसलन औरत ने पहनाए तो वो गनहगार और मर्द ने क़दरत रखने के बा - वजद ना रोका या खुद भी राज़ी था तो वो भी गुनहगार।
╭┈► इसी तरह मुफ़्ती अमजद अली साहिब ने बहारे शरीअत जिल्द 3 सफह 428 पर लिखा है लड़को को सोने चांदी के जेवर पहनाना हराम है, और जिसने पहनाया वो गुनहगार होगा!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 70 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► मिश्कात शरीफ की हदीस मे है हज़रत मालिक ने फरमाया - मुझे खबर पहुँची है, की हुज़ूर ने सोने की अंगूठी पहनने से मना फरमाया, तो मे इसे बड़े, छोटे मर्दो के लिए नापसंद करता है।
╭┈► इस हदीस की शरह ब्यान फरमाते हुए मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी साहिब मीरात शरह मिश्कात जिल्द 6 सफह 135 पर फरमाते हैं यूँ ही चाँदी भी छोटे बच्चो लड़को को ना पहनाई जाए, सिवा सवा चार माशा की अंगूठी के, खुलासा ये है की सोने चाँदी का ज़ेवर बालिग़ मर्दो की तरह, नाबालिग लड़को को पहनाना हराम है, मगर इसका जुर्म पहनाने वाले अज़ीज़ों पर होगा, की नासमझ बच्चे शरई अहकाम के मुकल्लफ नही।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 71 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत कल मेरे पास एक sms यह आया (तुम तीन तलाक़ देकर ही मानोगे तब बुरा मत मानना जब हमारी कोई बहन या बेटी हो) हज़रत ऐसे कोई जवाब दीजिए जिससे उन्हें एक दम साफ हो जाए की शरीअत मे सब हक़ और बरहक़ और क़यामत तक हक़ रहेगा हज़रत जिन्हो ने यह बात कही वो मेरे टीचर भी रहे है इंग्लीश और एकनामिक सब्जेक्ट के और इन्हे इस्लाम की भी नालेज है!
╭┈► *जवाब ➺* इस्लाम को समझने के लिए जो लोग मुसलमान अवाम को देख कर दीन और इस्लाम का अंदाज़ा करते है की शायद इस्लाम यही है तो वो बहुत बड़ी खता पर हैं इस्लाम को जानने के लिए आलिमो की ज़रूरत दर - पेश होती है खुद कोई इंग्लीश या एकनामिक का टीचर भी अपनी अक़ल से इस्लाम को नही समझ सकता, मैं इन टीचर साहब से इतनी बात पूछना चाहता हूँ, की आप ने ईको की पढ़ाई खुद ईको के टीचर्स या स्टूडेंट को देख देख कर या बुक देख कर ली, या फिर आपको बा - कायदा इसके क़ायदे क़ानून किसी ईको के जानने वाले ने सिखाए और समझाए ? अगर आपका जवाब है की बुक देखने या ईको के स्टूडेंट को देखने से ईको नही आ जाती बल्कि ईको के जानने वाले के पास रूजू करना पड़ता है फिर बुक को वो समझाता है तो फिर, इन साहब ने इस्लाम या तलाक़ को लोगो से सुन कर कैसे मान लिया, क्या ये किसी आलिमे दीन के पास गये ? या किसी आलिम ने इनसे कहा की *“हम तलाक़ पर राज़ी है"*
╭┈► तीन तलाक़ के मसले को जो आज हवा दी जा रही है उसे पेश करने का अंदाज़ ग़लत है, और जो बात सुवाल मे कही की “हम 3 तलाक़ पर राज़ी है ये आपके टीचर का महैज़ इल्ज़ामे बे- बुन्यादी है, ये अपनी क़ौल को साबित नही कर सकते की मुसलमान इस पर राज़ी है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 72 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *मसअला ये है की* हम 3 तो 3 एक तलाक़ पर भी राजी नही इसका मतलब ये है की हम ये बात पसंद नही करते की कोई शख्स गुस्से या जज़्बे मे आ कर तलाक़ दे और किसी औरत की ज़िंदगी बर्बाद कर दे, ऐसा ना तो अल्लाह को पसंद ना उसके रसूल को ना इसकी ताइद कोई आलिम करता है, अगर Govt . कोई तब्दीली चाहती है, तो ऐसे लोगो के लिए ज़रूर कोई क़ानून पास करे, जो शादी जैसे अज़ीम रिश्ते को मज़ाक बनाते है और तलाक़ देते है, हम इस हरकत के ज़रूर खिलाफ हैं, और हर अक़ल वाला इसे पसंद नही करेगा, *“मगर हक़ ये है की बिल फ़र्ज़ अगर किसी ने अपनी जहालत मे आ कर अब अगर तलाक दे दी तो तलाक हो जाएगी"* अब रहा गवरमेंट का कहना की तलाक़ नही होगी ? तो दीन किसी पार्लियामेंट की देन नही की वो उसमे फिर से तब्दीली कर दे की, तलाक़ कब और कैसे होगी उसके क़ायदे क़ानून कुरआन हदीस से तय हो चुके हैं, अगर कोई बाद तलाक़ साथ रहता है तो क़ियामत मे ज़िना करने वालो मे होगा!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 72-73 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► इसकी एक मिसाल आपको समझाता हूँ, एक फॅक्टरी चाकू तैयार करती है, जिससे घरो मे सब्जी काटी जाए, कोई उस चाकू का इस्तेमाल करके किसी का गला काट दे तो, ये उसका ज़ाति फेल होगा, सज़ा उसके लिए ते की जाएगा ना की चाकू की फॅक्टरी बंद की जाएगी ? किसी अक़ल वाले पर इसका जवाब हो, वही तलाक़ का जवाब होगा, की तलाक़ देने वाला ग़लत करता है, मगर तलाक़ हो ही जाएगी, जिस तरह गला कट जाने के बाद, मुर्दा को ज़िंदा नही किया जा सकता बल्कि उस क़ातिल के बारे मे एक्शन लेना होगा ठीक वैसे ही, तलाक़ के बाद, शरई तोर से मर्द औरत साथ नही रह सकते, अब रहा ये की औरत पर जुल्म, तो अक्सर मैंने देखा की औरत के हुकूक़ की वही लोग ज़्यादा बात कर रहै है, जो अपना इतिहास भुल चके. किसी बेवक़ूफ़ को इस्लाम के उसूल और हक़ ब्यान करने की हाजत है ही नही!
╭┈► क्यूंकी इस्लाम ने जिस जिस के हक़ ब्यान कर दिए वो हक़ पूरी दून्या के किसी मज़हब मे नही, औरत तो औरत, इस्लाम ने तो 1 दिन के बच्चे के हक़. पड़ोसी का हक़, काफ़िर का हक़, सब ब्यान कर दिया, जो आज औरत के हुकूक़ की बात करते हैं, क्या औरतो को शोहर के मरने बाद चिता पे ना जलाया इस्लाम ने इस मौत को रोका, क्या औरत को पैदा होने के बाद जिंदा दफ़न नही किया जाता था, इस्लाम ने इस क़तल को रोक कर औरत को हयात बख़्शी, क्या औरत को विरासत से महरूम ना रखा गया, इस्लाम ने उसके भी हक़ उसे दिलवाया, क्या बेवा औरत को मनहूस ना समझा गया, इस्लाम ने उसे फिर से निकाह के बाद आबाद किया, किया औरत की पैदाइश पर गमो के इज़हार ना किए गये, इस्लाम ने लड़की की परवरिश पर जन्नत की बिशारत दी!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह 73-74 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 103
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► मैं बड़ी ज़िम्मेदारी से ये बात कहता हू की जिसका दिल हो लास्ट 1 साल की न्यूज़ पेपर देखे जिसमे बाप ने बेटी के साथ बलात्कार किया हो, या भाई ने बहन के साथ, आप वो सारे मामले गैर मुस्लिम के ही पाएँगे, इसमे मुसलमान के घर का 1 % मामला नहीं होगा, अब अगर इसी बात को बुनियाद बना कर मैं इन टीचर से कहूँ की, *"हिंदू धरम बेटी से बलात्कार की इजाज़त देता है ??* तो यक़ीनन इन टीचर का यही जवाब होगा की नही, ऐसे काम की इजाज़त कोई धरम नही देता ये उस का अपना का अपना काम है, तो फिर इस्लाम के लिए ये कैसे ते हो गया की तलाक़ को इस्लाम या मुस्लमान पसंद करता है ? जिनके घर मे खुद की बेटिया महफूज़ नही वो मुसलमान की औरतो के हकूक की बात करते हैं, ये तो वही हुआ की 900 चूहै खा कर बिल्ली हज को चली!
╭┈► औरत को हुकूक़ के लिए आवाज़ उठाने वालो को चाहिए, की पहले अदालत का जायज़ा लें की तलाक़ के कितने मसले आपकी अदालत मे मुसलमान के है और कितने गैर मुस्लिमो के इसके साथ आपको सच, सूरज की तरह रोशन हो जाएगा लिहाज़ा चाहिए की पहले अपनी क़ौम की औरतो के वो लाखो केस क्लियर करके उनके साथ इंसाफ़ कर दो मुसलमान को अपने शरई मसाइल मे किसी अदालत की हाजत नही उसके लिए आज भी उलमा काफ़ी है और अल्लाह के फ़ज़ल से जितने मसअले उलमा हज़रात हल करके अंजाम तक पहुंचा देते है, उससे कही ज़्यादा आज तक आपके कोर्ट में पेंडिंग है जिसे ना आज तक अदालत निपटा सकी ना उन्हे इंसाफ़ मिला उन पेंडिंग मामलो को ख़तम करने पर गौर करोगे तो आपकी क़ौम को कुछ राहत मिलेगी!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 74 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 104
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► मुसलमान 3 तलाक़ को ना - पसंद करता है, और जहा तक मुमकिन हो घर का मामला आखरी कोशिश तक सुलझाना चाहिए यही तालीम इस्लाम की है इस्लाम घर बसने पर ज़ोर देता है इसीलिए बिधवा को निकाह की इजाज़त है ना की मरने की फिर भी कोई अपनी जहालत से अपना घर तोड़ दे तो उसमे शरीअत का कोई दोश नही ज़ेहर खाने वाला अपनी मौत का खुद ज़िम्मेदार है खाएगा तो मरना ते है मगर ज़ेहर तय्यार करने वाले इसकी इजाज़त नही देते की कोई शरीअत तब्दील नही हो सकती, आज भी मुसलमान अपने तलाक़ के मसअले पर उलमा से फ़तवा लेते है और लेते भी रहेंगे अदालत मे जाने वालो की तादाद बहुत ना के बराबर है छुरी आपके पास है ज़ेहर आपके पास है सही इस्तेमाल करो या ग़लत मगर ग़लत इस्तेमाल करने वाला खुद मौत का ज़िम्मेदार है, ना की छुरी की फॅक्टरी या ज़ेहर बनाने वाला, चाहे मौत ज़ेहर से साबित हो जाए तब भी ज़ेहर के फ़ॉर्मीले मे कोई तब्दीली नही हो सकती लिहाज़ा आपके टीचर का ये बेजा इल्ज़ाम है की मुसलमान तलाक़ पर राज़ी है हक़ ये है की मुसलमान तलाक को हक समझता है, मगर इस पर खुश और राज़ी नहीं!..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 105
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत सवाल है की अगर घर मे नमाज़ पढ़ रहे हो और 2, 3 साल का बच्चा अगर सीडीयो से गिर जाए या किसी तरह ज़्यादा लगे, चिल्लाए रोए, तो उस वक़्त अगर कोई और ना हो तो, क्या नमाज़ तोड़ कर जा सकते है या क्या करना चाहिए वजाहत कर दे तो मेहरबानी होगी?
╭┈► *जवाब ➺* जो सूरत सुवाल मे ब्यान की की 2-3 साल का छोटा बच्चा ज़ीने से गिर जाए तो उसके लिए नमाज़ तोड़ सकते है, और अगर ज़ीने से अभी गिरा तो नही मगर उस तरफ जा रहा है और खोफ़ है की ज़रूर गिर जाएगा और बचाने वाला कोई नही और नमाज़ी ने देख लिया तो उसे बचाने के लिए गिरने से पहले भी नमाज़ तोड़ सकता है, बल्कि अगर ये मामला ऐसे उँचे जीने पर हो की यक़ीनन मर जाएगा तो नमाज़ तोड़ना वाजिब है!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 76 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 106
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► सद्र उस शरीया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी ,बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 637 पर लिखते हैं कोई मुसीबत ज़दा फर्याद कर रहा हो, इसी नमाज़ी को पुकार रहा हो, या मुतलकन किसी को पुकार रहा हो या कोई डूब रहा हो या आग से जल जाएगा इन सब सूरतो मे नमाज़ तोड़ देना वाजिब हैं जबकि ये बचाने पर कादिर हो!....✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 107
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 637 पर है अपने या पराए एक दिरहम के नुकसान का ख़ौफ़ हो, मसलन- दूध उबल जाएगा या गोश्त या तरकारी रोटी वगैरा जल जाने का ख़ौफ़ हो या एक दिरहम की कोई चीज़ चोर ले भगा इन सुरतो मे नमाज़ तोड़ देने की इजाज़त है लिहाज़ा जान का नुकसान या आज़ा (पार्ट ऑफ बॉडी) का ज़ाया हो जाना माल से कीमती है, लिहाज़ा बच्चे के ज़ीने से गिरने पर या गिरने से पहले भी नमाज़ तोड़ी जाएगी..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 76 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 108
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या हमे गुसल के बाद दुबारा वुजू करना चाहिए ? नमाज़ के लिए ,
╭┈► *जवाब➺* वुजु, गुस्ल मे शामिल है, जिसने गुस्ल किया उसका वुज़ू भी हो गया लिहाज़ा आपको गुस्ल के बाद वुजू करने की ज़रूरत नही, और हदीस मे भी इससे मना फरमाया है फरमाया हुजूर ने की जो गुस्ल के बाद वुजु करे वो हम मे से नहीं (लिहाज़ा गुस्ल के बाद जब तक वजु ना टूटे नमाज़ के लिए वजु की हाजत नही)!
⚠️ *"जो गुस्ल के बाद वुज़ू करे वो हम मे से नहीं"* इसका क्या मतलब है वोह आप नीचे 👇🏻 दिये गए लिंक में समात किजिए!...✍🏻
https://t.me/majlis_e_khawateen/10685
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 77 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 109
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या बाप अपनी बेटी और शोहर अपनी बीवी को नमाज़ पढ़ने को कहे या पर्दा करने को कहे पर वो कभी तो हुक्म माने और कभी नहीं तो ऐसे मे शोहर गुनहगार होगा या फिर शोहर को अपनी बीवी को तलाक़ देना वाजिब है क्या बीवी और बेटी बात ना माने फिर वो शख्स की कोई इबादत कुबूल नही?
╭┈► *जवाब ➺* जो सूरत आपने ब्यान फरमाई है उसमे तलाक देना वाजिब नही, इन मर्दो को चाहिए की इनसे नाराज़गी ज़ाहिर करे, यानी शोहर अपना बिस्तर अलग कर लें, ना साथ खाए ना पिए, और ज़रूरत हो तो हल्की मार से मार भी सकता है, की बदन पर निशान ना पड़े, की मर्द औरत का हाकिम है और गुनाह से रोकने पर क़ादिर भी होता है, लिहाज़ा गुस्से और सख्ती से भी काम लिया जा सकता है, ताकि नमाज़ की पाबंद बने और शरई पर्दा करे, और ये इस सूरत मे मुमकिन होता है जब शोहर खुद भी शरीअत का पाबंद होता है, नमाज़ वगेरा पढ़ता है और घर मे टीवी जैसा फितना नही होता, क्यूंकी गाना, दिल मे निफाक पैदा करता है!
╭┈► इहिया उल उलूम जिल्द 2 सफह 182 पर है अगर सरकशी ख़ासतोर पर औरत की तरफ से हो मर्द अफ़सर है औरत पर, उसे इख्तियार है की वो उसको अदब सिखाए, और ज़बरदस्ती उसे इता'अत पर मजबूर करे, इसी तरह अगर औरत नमाज़ ना पढ़ती हो तो भी मर्द को इख्तियार है की वो उसे ज़बरदस्ती नमाज़ पढ़ने पर मजबूर करे!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 77 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* हज़रत, मेरा सवाल है के शोहर अपनी बीवी से कितने दिन दूर रह सकता है जैसा की आज कल देखा जाता है शोहर रोज़ी कमाने के लिए शहर से दूर जाते है और महीनो घर नही आ पाते बाज़ तो सालो तक नहीं आते ऐसे मे शोहर गुनहगार होगा या नही हज़रत जवाब हवाले के साथ बताइए??
╭┈► *जवाब ➺* अगर इस दूरी पर दोनो राज़ी हैं, और औरत भी राज़ी है की शोहर बाहर कमाए तो फिर कोई गुनाह नही, ना शोहर पर ना बीवी पर, और बीवी राज़ी नही, तो बेहतर ये है की ज़्यादा से ज़्यादा 4 माह मे मुलाक़ात कर लिया करे।
╭┈► मंकूल है कोई शोहर बीवी से 4 माह से ज़्यादा अरसे के लिए गायब ना हो जाहिल सूफियो को आदाबे तरीक़त सिखाने वाले उम्मत के वाली यानी हुज्जत अल इस्लाम हज़रत इमाम ग़ज़ाली इहिया उल उलूम जिल्द 2 सफह 186 पर फरमाते हैं मर्द को चाहिए की हर 4 रातों मे एक मर्तबा औरत से सोहबत करे, इसमे ज्यादा अदल है (अगले सफह पर फरमाते हैं) और इस मुद्दत मे औरत की हाजत के मुताबिक कमी बेशी की जा सकती है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 78 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* साहब एक सुवाल ज़हैन मे गर्दिश कर रहा है, जवाब अता फरमाएँ, सुवाल ये है की, तलाक देने का हक मर्द को दिया गया है, हालाकी, निकाह मर्द औरत दोनो की रिज़ामंदी से होता है, तो फिर औरत को ये इख़्तियार क्यूँ नही की वह भी जब चाहे इसको खतम कर सके??
╭┈► *जवाब ➺* औरत मे मक्कारी मर्द से ज़्यादा होती है इसमे कोई शक नही, और फिर, हदीस कहती है, की औरत शैतान का हथियार है, अक़ल से नाक़िस (अधूरी) है, लिहाज़ा अल्लाह के फैसले हिकमत वाले हैं, अगर औरत को मुकम्मल इख़्तियार दिया जाता तो क्यूंकी ये शैतान का हथियार है, तो ज़ाहिर है शैतान इन्हे जल्द बहका देता और घर बर्बाद करवा देता फिर एक शहवते नफ़स औरत मे मर्द से 100 % ज़्यादा होती है, अगर इन्हे इख़्तियारे तलाक़ दे दिया जाए तो हर हफ्ते नया मालदार शोहर तलाश करके निकाह कर लें, क्यूंकी इसमे शक नही के जिस दौर मे हम है, उसमे औरतो की अक्सरीयत फेशन पसंद है, और ज़ेवर, कपड़ा, मेकप की बुन्याद पैसा है, फिर औरत मे दिखावे का एक कीड़ा और होता है, किसी का नया महंगा सूट देख कर, उससे अच्छा लाने की तलब, और क्यूंकी क़ुरआन ने मर्द को हाकिम बनाया है, तो हाकिम उसी सूरत मे करार पाएगा की हक़ उसको दिया जाए, वरना मर्द औरत का गुलाम हो जाएगा, फिर औरत तलाक की धमकी दे कर हर काम शोहर से करवा लेगी।
╭┈► आज ही देख लो, तलाक़ का हक़ नही है, फिर भी, अगर नया सूट, चप्पल, ज़ेवर चाहिए होता है तो कैसे कैसे चाल चल कर जाल बुना जाता है, फिर पावर होगी तो अल्लाह की पनाह, जैसे गंजे को नाखून, फिर हाल ये होगा की, इस महीने 4 सूट बन जाने चाहिए वरना तुम्हे तलाक दे दूंगी" वगेरा बगेरा, ये तो था दलायल ए अकलिया, और नफ़स ए मसअला, ये है की, शरीअत मे औरत को भी तलाक़ देने का हक है, लिहाज़ा ये कहना दुरुस्त नही की औरत को क्यूं हक़ नही,? फ़र्क ये है की, औरत अहकाम से वाकिफ़ नही, अगर कोई मर्द औरत को तलाक़ का इख़्तियार दे दे, तो औरत खुद को तलाक़ दे सकती है, ये भी शरीअत मे मौजूद है, मगर मर्द को चाहिए की इख़्तियार ना दे, वरना जो सूरत उपर ब्यान हुई पेश आने का ख़ौफ़ हैं।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 80 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 2 सफह 134 पर है औरत से कहा तुझे इख्तियार है या तेरा मामला तेरे हाथ, और इससे मक़सूद तलाक का इख़्तियार देना है, तो औरत उस मजलिस मे अपने को तलाक़ दे सकती है, अगर शोहर ने वक़्त मुकर्रर कर दिया था मसलन, आज उसे इख़्तियार है (की खुद को तलाक़ दे दे) और वक़्त गुज़रने के बाद औरत को इल्म हुआ (की मेरा वक़्त आज का था गुज़र गया) तो अब कुछ नही कर सकती!
*⚠️ नोट-* याद रहे इस मसअले मे वक़्त, मजिल्स, इख़्तियार बातिल, वगेरा होने की बहोत तफ़सील है, लिहाज़ा इस जवाब को इस मौजू पर मुकम्मल तसवउर ना किया जाए, तहरीर मे बताने का मक़सद फक़त इतना है की तलाक़ का हक़ औरत को भी हो सकता है, अगर मर्द दे दे, और मेरे इस कलाम मे कुछ तल्ख बाते शामिल है, लिहाज़ा ख़वातीन बुरा ना माने, ये सब के लिए नही मगर जो ऐसी हैं!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 81 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या फरमाते है उलमा किराम इस मसअले मे की बकर और हिंदा के पहले नाजाइज़ ताल्लुकात थे यानी लव स्टोरी अब दोनो की शादी दूसरी जगह पर हो गयी है और बकर अक्सर नमाज़ के बाद हिंदा से निकाह करने की दुआ माँगता है तो क्या इस तरह शादीशुदाह औरत के लिए इस तरह से दुआ माँगना जाइज़ है या नही और अगर है तो कोई वज़ीफ़ा बताए और नाजाइज़ है तो बकर पर शरीअत का क्या हुक्म है?
╭┈► *जवाब ➺* शादीशुदा औरत की तलब या दुआ गुनाह के लिए दुआ है की जब औरत पहले से निकाह मे है तो दूसरे मर्द के लिए हराम है और हराम चीज़ के लिए दुआ भी गुनाह है।
╭┈► फ़ज़ाईले दुआ सफह 176 पर है गुनाह की दुआ ना करे की पराया माल मिल जाए, या कोई फाहिशा ज़िना करे, की गुनाह की तलब भी गुनाह है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 81 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क़ज़ा नमाज़ का तरीका बताए, जिसके ज़िम्मे बहुत सारी हो, जैसे जैद की उमर 21 साल है और उसे याद नही है कितने नमाज़े क़ज़ा करे वो लेकिन जितना पता है बहुत सारी क़ज़ा नमाज़ है उसके जवाब तफ़सील से बताए ?
╭┈► *जवाब ➺* *नमाज़े क़ज़ा अदा करने का तरीका :* क़ज़ा नमाज़ अगर याद ना हो की पिछली ज़िंदगी में कितनी रह गई, तो जब से बालिग हुआ जब से अब तक, या जब से नमाज़े शुरू की है वहां तक के साल का अंदाज़ा लाया जाए, अगर ये याद नही की कब बालिग हुए तो लड़का 12 साल से अंदाज़ा लगाए लड़की 9 साल से, यानी अगर ज़ैद ने 21 साल मे नमाज़ शुरू की (इससे पहले क़ज़ा करता था या करती थी) तो, 12 से 21 साल तक यानी 9 साल की नमाज़ क़ज़ा हुई और लड़की (अगर साल की है तो ) की 9 से 20 यानी 11 साल की नमाज़ ज़िम्मे बाकी हुई, हम इसी मिसाल की बुनियाद पे आगे ज़िक्र करते हैं, मसलन ज़ैद की 9 साल की नमाज़ क़ज़ा हैं तो एक साल मे दिन 365 यानी एक साल मे 365 नमाज़ क़ज़ा हुई, वो भी हर एक वक़्त की (यानी 365 फज्र , 365 असर वगेरा वगेरा) 9 साल मे 9X 365 = *3285 नमाज़े क़ज़ा हुई,* वो भी एक वक़्त की, यानी, 3285 फज़र क़ज़ा, 3285 ही ज़ोहर क़ज़ा, 3285 ही अस्र और मगरिब क़ज़ा, 3285 ईशा और वित्र क़ज़ा, ये हुक्म लड़के के लिए है लड़की हर माह मे नापाकी के दिन को कम करेगी, मसलन 4-6 दिन हर माह नापाक रहती है तो हर माह से 4 दिन (यानी कम वाले दिन) कम करे तो उसके लिए हर महीने 26 नमाज़ क़ज़ा है, जबकि लड़के के लिए पूरी 30!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 82 📚*
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *8 साल क़ज़ा करने वाली लड़की की क़ज़ा नमाज़* एक माह मे दिन 30 मगर 4 दिन नापाकी के हटाए तो दिन बचे 26 एक साल मे 26 X 12 = 312 (यानी एक साल मे 312 नमाज़ क़ज़ा हुई, वो भी एक वक़्त की) 8 साल मे दिन 312X8 = *2496,* वो भी एक वक़्त की यानी, 2496 फज़र क़ज़ा , 2496 ही ज़ोहर क़ज़ा, 2496 ही अस्र और मगरिब क़ज़ा, 2496 ईशा और वित्र क़ज़ा, (और ये 4 दिन मिसाल के तोर पर कम किए गये) हर लड़की या औरत अपने नापाकी के दिन कम से कम वाले खुद अंदाज़े से घटाए, हो सकता हो किसी के 6 दिन हो, तो वो 6 हर माह कम करे!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 83 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► अब इस क़ज़ा नमाज़ पढ़ने का आसान और शॉर्ट तरीका, सबसे आसान और बेहतर तरीक़ा है की पहले एक ही वक़्त की नमाज़ अदा करे यानी पहले सभी फज्र पढ़ ले फिर इस तरह पूरी होने पर अगली (ज़ोहर) पढ़े, यानी जब भी क़ज़ा नमाज़ पढ़े तो पहले फज्र ही की क़ज़ा पूरी करता रहे, जब तक पूरी ना हो जाए,
╭┈► *क़ज़ा नमाज़ की नियत कैसे करें :* इसके दो तरीके है (जिस तरह चाहे पढ़े) (1) नियत की मैने 2 रकाअत नमाज़ फज्र क़ज़ा जो मुझसे सबसे पहले क़ज़ा हुई वास्ते अल्लाह के ......... अल्लाहू अकबर (2) नियत की मैने 2 रकाअत नमाज़ फज्र क़ज़ा जो मुझसे सबसे आखरी क़ज़ा हुई वास्ते अल्लाह के .. अल्लाहू अकबर
╭┈► (जिस वक़्त की पढ़े वही नाम ले, जोहर, अस्र वगेरा) नियत बाँधते ही सबसे पहले सूरह फातिहा शुरू कर दे, (यानी सना वगेरा छोड़ दे) फिर सूरत मिलाए फिर रुकु मे जा कर 1 बार तसबीह पढ़े, और सजदे मे जा कर भी एक बार ही तसबीह पढ़े, इसी तरह 2 रकाअत पढ़े और जब सलाम फेरने बैठे तो अत्तहिय्यात पूरी पढ़ कर, والہ محمد علی صلی اللھم पढ़े और सलाम फेर दे यानी बाद वाली दुआ भी ना पढ़े, इस तरह, ज़ोहर क़ज़ा की, अदा करता जाए, (4 रकाअत वाली मे आखरी की दो रकाअत मे सुरेःफातिहा ना पढ़े बल्कि 3 बार الله سبحان कहे, और वित्र मे, तीसरी मे फातिहा और सूरत ज़रूर पढ़े और तकबीर कह कर, कुनूत ना पढ़े बल्कि 1 या 3 बार لی اغفر رب कह ले!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 84 📚*
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *3 वक़्तों मे नमाज़े क़ज़ा अदा नही कर सकते,* (1) ज़वाल के वक़्त, (2) तुलुए आफताब के वक़्त, (3) मगरिब से 20 मिंट पहले तक, अस्र बाद क़ज़ा पढ़ सकते है, और जब मगरिब मे 20-25 मिंट रह जाए तो ना पढ़े, क़ज़ा नमाज़ चुपचाप अदा करनी चाहिए, ना किसी को बताए, ना किसी के सामने अदा करे ना इसका ज़िक्र करे, और नमाज़ पढ़ता रहे कॉपी मे नोट रखे की कितने दिन की पढ़ ली!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 84 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 118
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* औरत हैज़ या निफास मे थी के उसी दौरान शरई मुसाफिर हुई , और 92 किलो मीटर्स के बाद 15 दिन से कम नियत के साथ क़याम की और वही पाक हुई अब पाक होने के बाद क्या वो पूरी नमाज़ पढ़ेगी या क़सर करेगी?
╭┈► *जवाब ➺* जहां हैज़ से पाक होगी, वहाँ से अगर आगे 92 किमोलमीटर जाना है तो क़सर पढ़े और अगर वही या 92 KM से के अंदर रुकने का इरादा है तो पूरी करे, बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 744 पर है हैज़ वाली पाक हुई और अब से तीन दिन की राह ना हो तो पूरी पढ़े!..✍🏻
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 119
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* बहारे शरीयत मे गुसल के बयान मे लिखा है की *"औरत अगर बालो का जूड़ा बनाया है तो बालो की जड़ तर कर लेना ज़रूरी है जूड़ा खोलना ज़रूरी नहीं"* तो क्या अगर ढीला जूड़ा बांधा हो और जड़ तर हो जाए लेकिन बाकी के बाल मे कुछ खुश्क रह जाए तो गुसल हो जाएगा?? बराए माहैरबानी इरशाद फर्मा दे जज़कल्लाह
╭┈► *जवाब ➺* अगर औरत के सर के बाल गूंधे हैं, तो बाल खोल कर बाल की नोक तक पानी बहाना ज़रूरी नही, सिर्फ़ जड़ तक पानी पहुचना काफ़ी है, और गूंधे ना हो तो पूरे बाल धोना ज़रूरी है हाँ, अगर मर्द ने जूड़ा बांधा है तो जूड़ा खोल कर बाल मुकम्मल धोना फ़र्ज़ है, अव्वल तो मर्द को जूड़ा बांधना ही हराम है!
╭┈► इसी तरह बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 317 पर है सर के बाल गँधे ना हो तो हर बाल पर जड़ से नोक तक पानी बहाना (फ़र्ज़) और गूंधे हो तो मर्द पर फ़र्ज़ है की उन्हे खोल कर जड़ से नोक तक पानी बहाए, औरत पर सिर्फ जड़ तर कर लेना ज़रूरी है, खोलना ज़रूरी नही, हाँ, अगर जुड़ी / जुड़ा इतना सख़्त गुंधा हो की बिना खोले जड़ तर ना होगी, तो खोलना ज़रूरी है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 84 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 120
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या फरमाते है उल्माए किराम इस मसअले मे की अक्सर औरतें बारीक दुपट्टा ओढ़ कर नमाज़ पढ़ती है तो क्या उनकी नमाज़ होती है या नही रहनूमाई फरमाएँ?
╭┈► *जवाब ➺* इसमे दो सूरत हो सकती है, अव्वल ये की दुपट्टा तो इतना बारीख है की बालो की सियाही नज़र आ जाए मगर उसके उपर या नीचे दूसरा ऐसा कपड़ा भी पहना है जिससे बाल की रंगत नज़र नही आ रही तो इस सूरत मे नमाज़ बिला कराहत जाइज़ होगी, सूरत दोम, अगर दुपट्टा बारीक है, और कोई दूसरा कपड़ा भी नही की सर पर ढक सकते इसी सूरत नमाज़ पढ़ी की सर की सियाही नज़र आ रही है तो ये नमाज़ ना होगी, बलके इसे उठक बेथक कहा जाएगा, नमाज़ उनकी शराइत को पूरा करते हुए पढ़ना है नाकी अपनी मर्जी से जैसे दिल चाहे पढ़ लें, कोई भी औरत अल्लाह पर एहसान नही कर रही नमाज़ पढ़ कर!
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 481 पर है "इतना बारीक दुपट्टा जिससे बाल की सियाही चमके, औरत ने ओढ़ कर नमाज़ पढ़ी (नमाज़) ना होगी, जब तक उस पर कोई ऐसी चीज़ ना ओढे, जिससे बाल वगेरा का रंग छिप जाए!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 85 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 121
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* जैद यह कहता है को "जो औरतें ये कहती है के दिल का पर्दा होना चाहिए यानी दिल सॉफ होना चाहिए वो ईमान से खारिज़ है (जो ईमान से खारिज़ हो, उसका निकाह, मुरीद थी तो बैत, हज किया तो हज ख़तम यानी गुजिश्ता ज़िंदगी के सारे नेक आमाल ख़तम हो जाएंगे, और दलील यह देता है की, हुजूर सललाल्लाहू अलैही व सल्लम ने फरमाया के जो औरत मर्दाना लिबास पहने उस पर अल्लाह की लानत हो, और जिस पर अल्लाह की लानत हो उसकी नमाज़, रोज़ा, हज ज़कात सब बेकार हैं "सवाल यह है की क्या ज़ैद का कहना सही है ? और उस औरत का क्या हुक्म है रहनुमाई फरमाएँ
╭┈► *जवाब ➺* जो जिस्म के पर्दे का पूरी तरह इनकार करे, यानी फ़र्जीयत से इनकार करे, और कहे सिर्फ दिल का पर्दा है उसका ईमान जाता रहा, मगर ऐसा कहने के बावजूद ये औरत निकाह से ना निकली, और ना उसे जाइज़ की बादे इस्लाम किसी दूसरे से निकाह करे, लिहाज़ा बाद इस्लाम शोहर ए साबिका ही से तज्दीद ए निकाह को मजबूर की जाएगी, तो जैद का ये कौल ग़लत है की औरत के कुफ्रीया कॅलिमा के बाद निकाह ख़तम हो जाएगा, रहा मुरीद होना तो मुरीद होना चाहे तो दूसरे से हो सकती है, ये क़ौल बेकार है की दिल सही होना चाहिए बाहर कैसा ही हो, जाहिलो का नया जाल है , जो शरीअत की पाबंदी करने वालो को अक्सर कहते है की, दिल साफ होना चाहिए, नमाज़ से क्या होता है, दिल साफ होना चाहिए पर्दे से क्या होता है, ऐसे जाहिलो को मालूम होना चाहिए की हुजूर ने फरमाया जब दिल ठीक होता है तो ज़ाहिर खुद ठीक हो जाता है, लिहाज़ा जो ज़ाहिर मे फासिक है, उसका दिल ठीक नही, बेकार की बाते हैं! *(मज़ीद तफ्सील जवाब 1 में पढ़ें)*!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 86 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 122
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* छोटी मदनी मुन्नियों के बाल काटना कैसा, और कितनी उम्र तक उनके बाल छोटे रख सकते है, आज कल जिस तरह कटिंग होती है लड़कों की मुशाबेहत जैसे होती है ऐसे मे क्या करे रहनूमाई फरमाइए?
╭┈► *जवाब ➺* लड़कियो के बाल लड़के की तर्ज पर नही करवा सकते, कटवाने वाले गुनहगार होंगे, बालो की शेप लड़की की मिसल ही कटवाई जाए, और कपड़े भी लड़कियो वाले पहनाए जाएँ।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 87 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* लड़की ने लड़के को इस बात का वकील बनाया की वो अपने साथ उसका निकाह फ़र्मा ले और दोनो बालिग हैं और कुफु का भी मामला नहीं है, लड़का ने 2 गवाह के सामने महर के इक़रार के साथ ये कुबूल किया की मैने फूला लड़की जो मुझे अपना वकील बनाई है उसी वकालत पर अपनी निकाह मे फुला को लेता हूँ अपनी बीवी मे कुबूल करता हूँ, अब क्या ये निकाह हो गया?
╭┈► *जवाब ➺* अगर लड़का लड़की बालिग है, और कुफु की भी कोई कैद नही तो लड़की को वकील करने की ज़रूरत नही, दो गवाह के सामने शरई मेहैर के साथ अगर ये दोनो इज़ाब ओ कुबूल कर लेंगे तो निकाह सही हो जाएगा!
╭┈► इसी तरह दूरे मुख़्तार जिल्द 1 सफह 191 पर है (वली की इजाज़त के बगैर भी हुर्राह (आजाद) आक़िला बलीग़ा का निकाह नफिज़ है) और पूछी गई सूरत मे भी निकाह सही हो जाएगा देखे
╭┈► बहारे शरीअत जिल्द 2 सफह 57 औरत ने मर्द को वकील किया की तू अपने साथ मेरा निकाह कर ले, उसने कहा मेने फूला औरत से अपना निकाह किया निकाह हो गया" अलबत्ता अगर औरत ने मुतलकन वकील बनाया, अपने साथ निकाह करने को ना कहा तो खुद वकील अपने साथ निकाह नहीं कर सकता देखे!
╭┈► फ़ताहुल क़दीर जिल्द 3 सफह 197 पर है (अगर बालिगा ने किसी को कहा की मेरा निकाह कर दे, और कोई तख्सीर ना की (की किससे करना है) इस सूरत मे अगर उस शख्स ने औरत का निकाह खुद ही से कर लिया तो जाइज़ ना होगा )..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 88 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 124
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* सुवाल मेरा सवाल ये है हज़रत, के लाटरी यानी कमेटी डालना कैसा है वो भी बोली की जिसे कोई भी अपनी ज़रूरत के हिसाब से उठा लेता है और उसका फायदा आख़िर वाले को होता है तो मुझे ये पता करना है के क्या ये फायदा जो होता है क्या जाइज़ है कुछ लोग इसे नाजाइज़ कहते है रहनुमाई फरमाये
╭┈► जवाब : बोली वाली लाटरी जिसमे ये होता है की जिसे ज़रूरत है वो 1 लाख की रक़म 80 हज़ार मे ले ले बाकी 20 हज़ार दूसरे मेंबर्ज़ मे बांटे जाते हैं, जिसे उर्फ मे बोली की कमेटी कहा जाता है ये नाजाइज़ ओ हराम है, और ये रक़म किसी के हक़ मे हलाल नही, जिसने आज तक इस तरह एक्सट्रा पैसे लिए होंगे वापस करना वाजिब है कुरआन मे इसके खिलाफ हुक्म मौजूद है सुराह निसा आयात 29 मे है “ ए ईमान वालो आपस मे एक दूसरे का माल नाहक ( तरीके से ) ना खाओ"
╭┈► लिहाज़ा ऐसे काँमेटी डालने से मुसलमानो को बाज़ आना चाहिए आज कल देखा जा रहा है, इसका चलन आम होता जा रहा है चन्द ज़्यादा सिक्को के खातिर खुद भी हराम खाते है अपने बच्चों को भी हराम खिलाते है, क्या अब भी मुसलानो के लिए वो दिन ना आया की हलाल तरीके से खाए और नेक अमल करें क्या फिर पत्थरों की बारिश का इंतिज़ार है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 89 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 125
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* गुस्ल का पूरा तरीक़ा बताए तफ़सील से निय्यत कैसे करे दुआ कौनसी पढ़े, लॅडीस और जेंट्स मे गुस्ल मे क्या फ़र्क है ये भी बताए ?
╭┈► *जवाब ➺* इसकी तफ़सील के लिए आपको कोई रिसाला इस मौज़ू पर पढ़ लेना चाहिए गुस्ल मे 3 फ़र्ज़ हैं अगर वो सही से अदा हो जाए तो गुस्ल हो जाए बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 319 पर है गुस्ल की नियत करना, फिर दोनो हाथ गट्टो तक धोना, फिर इस्तन्जे की जगह धोना जिस्म पर जहाँ नजासत हो उसे धोना, नमाज़ का सा वजु करें (मगर पावं ना धोए), 3 बार दाएँ तरफ पानी बहाएँ, 3 बार बाएँ तरफ फिर सर पर और तमाम बदन पर 3 बार, (इसके बाद साबुन शेम्पू जो चाहे इस्तेमाल करे), और आख़िर मे पावं धोए , इसमे गुस्ल वज़ु दोनो हो गये मर्द औरत का एक ही हुक्म है फ़र्क ये है की औरत को सर का जूड़ा खोलना ज़रूरी नही, सर की जड़ भीग जाना काफ़ी है अगर जूड़ा सख़्त है तो खोलना होगा वरना नही और मर्द को तमाम सर के बाल फ़र्ज़ देखें बहारे शरीअत जिल्द 1 सफह 317 पर है सर के बाल गुंधे ना हो तो हर बाल पर जड़ से नोक तक पानी बहाना ( फ़र्ज ) ,और गूंधे हो तो मर्द पर फ़र्ज़ है की उन्हे खोल कर जड़ से नोक तक पानी बहाए, औरत पर सिर्फ जड़ तर कर लेना ज़रूरी है खोलना ज़रूरी नही हाँ, अगर जुड़ी / जुड़ा इतना सख़्त गुंधा हो की बिना खोले जड़ तर ना होगी , तो खोलना ज़रूरी है
╭┈► औरत को मर्द से ज़्यादा जिस्म पर पानी डालने मे एहतियात ज़्यादा करनी चाहिए, मसलन नाक की लोंग या कान के बँदे के सुराख मे पानी, डालना, अंगूठी, छल्ले, बिच्छुए के नीचे पानी बहाना, अगर पिसतान ( ब्रेस्ट ) ढली ( लटकी ) हुई है तो उसे उठा कर उसके नीचे पानी बहाना मर्द औरत दोनो को पेर सही से धोना, खास कर घुटने के पीछे का हिस्सा क्यूंकी पेर मोड़ कर बैठने पर वो जगह सूखी रहने का खोफ़ है , इसी तरह अगर जिस्म पर चर्बी ज़्यादा है तो पिसतान की तरह पेट पर पड़ने वाले बल (चर्बी) के दरमियानी जगह भी धोए, यानी हर परत!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 90 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 126
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *सुवाल ➺* शादी मे दूलह दुल्हन को हल्दी लगाना ज़रूरी है क्या हल्दी लगने के बाद दुलहै को बाहर नहीं जाने देते कही भी इस्लाम मे दूलह और दुल्हन को हल्दी लगाने की कोई हदीस या किसी बुजुर्ग का क़ौल है क्या ?
╭┈► *जवाब ➺* रसमे शादी मे हल्दी जिसे उर्फ ए आम मे *“उबटन"* कहा जाता है जाइज़ है मगर ज़रूरी नही, यानी हल्दी रंग को निखारती है, इसे लगाने में कोई हर्ज़ नही, शादी से कुछ दिन पहले दूल्हा या दुल्हन को उबटन लगाई जाती है, इसमे हर्ज़ नही मगर इस रस्म मे जो खुराफात होती है और हराम काम होते हैं उससे बचना फ़र्ज़ है, मसलन, दूलह को उसके घर की या ख़ानदान की गैर मेहरम लड़किया उबटन ना लगाए इसी तरह ना भाभी ना चाचियाँ हत्ता की हर वो औरत जिससे पर्दा फ़र्ज़ है उससे दूलह को उबटन लगवाना या बदन छुआना हराम है इसी तरह अगर दुलह को 3 दिन उबटन मे बिठाया और घर से बाहर ना जाने दिया और मस्जिद की जमाअत से नमाज़ अदा ना की तो भी गुनहगार की जमाअत से नमाज़ वाजिब है और दूलह के हाथ मे मेहन्दी लगाना भी हराम, इसमे करना ये चाहिए की दुल्हन को लड़किया उबटन लगाए और वो पर्दे मे रहै क्युकी उसे घर मे ही नमाज़ पढ़नी है और दूलह बाद ईशा खुद लगा कर सो जाए और सुबह नहा कर फज्र पढ़ ले और ये काम वो खुद भी शादी से कई दिन पहले कर सकता है इससे नमाज़ भी बाकी रहेगी और उबटन भी लग जाएगी यानी ऐसा नही है की उबटन के बाद दूलह बाहर नहीं जा सकता!
╭┈► *बेहतर ये है की* 3 दिन की उबटन हो या 7 दिन की बाद ईशा ही लगाए क़ब्ल फज्र धो डाले, मगर किसी जाइज़ रस्म मे नाजाइज़ काम शामिल होने से वो रसम नाजाइज़ नही होती, बस उस नाजाइज़ काम को दूर करना चाहिए, ना की रस्म को बुरा या ग़लत समझना चाहिए!
╭┈► *"फतावा राज़विया जिल्द : 22 सफह : 245 पर है"* उबटन मलना जाइज़ है बालिग के बदन मे ना - मेहरम औरतों का मलना नाजाइज़ है, और बदन को हाथ तो मां भी नही लगा सकती ये हराम और अशद हराम है।..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 91 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 127
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* क्या हुक्म है हदीसे- पाक मे इस बारे मे के किसी बा - शरा सुन्नी सहिहुल अक़ीदा रिस्तेदार से बेवजह या किसी फुरुई बजह से बात चीत और कलाम ओ सलाम बंद कर देना या रिश्ता तोड़ने वाले के लिए क्या हुक्म है क्या वईदे हैं इरशाद फरमाइए ?
╭┈► *जवाब ➺* बिला वजह शरई रिश्तेदार से क़तअ ताल्लुक करना हराम है।
╭┈► *बुखारी मे है* (आदमी को हलाल नही की अपने मुसलमान भाई को तीन रात से ज़्यादा छोड़े, राह मे मिले तो ये इधर मुँह फेर ले या उधर मुँह फेर ले , और उनमे बेहतर वह है जो पहले सलाम करे)
╭┈► मुसनद अहमद मे है
(मुसलमान को हलाल नही की मुसलमान भाई को तीन रात से ज़्यादा छोड़े, जो तीन रात से ज़्यादा छोड़े, और इसी हालत मे मरे वह जहन्नम मे जाएगा)
╭┈► 📙 फतावा रज़वीय्या जिल्द : 6 सफह : 597 पर है "बिला वजह शरई तीन दिन से ज़्यादा मुसलमान से क़तअ ताल्लुक हराम है"!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 95 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 128
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► *सुवाल ➺* ये इरशाद फरमाइए की निकाह के बाद एक औरत के लिए शोहर का हुकूक ज़ियादा है या औरत के वालिदेन का हुकूक ? वो अपने बाप मां की बात माने या शोहर के हुक्म की तामील करे ? (यहाँ हुक्म जो भी है गैर शरई नही है) एक औरत के लिए उसका शोहर कितना लाज़मी है ?
╭┈► *जवाब ➺* सुवाल की महैक से मालूम हो रहा है साइल इसका जवाब खुद जानता है मगर अपनी कौल को तक़वीय्यत देने के लिए जवाब चाहता है, वैसे तो सुवाल बहुत कड़वा है, और अक्सर औरत के ये खुमुसियत होती है की हक्क उन्हें इतना कड़वा लगता है की वो उसे हलक से नीचे नहीं उतार पाती, हक ये है की, *औरत पर उसके शोहर का हक़, वलिदैन से ज्यादा है.* यहा तक की, अगर शोहर औरत को उसके बाप के मरने पर भी जाने को मना करे तो औरत को आदमी के हुक्म की पेरवी लाज़िम है, और बाप के जनाज़े पर जाना मना होगा, इस हुक्म से हर अकल वाला अंदाज़ा लगा सकता है की औरत पर शोहर की बात मानने को इस्लाम ने कितना ज़रूरी करार दिया!...✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 92 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 129
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► और तो और अगर शोहर सर से पावं तक खून और पीप मे सना हो और औरत अपने शोहर को जुबान से चाट कर भी साफ करे तो अपने शोहर का हक अदा ना कर सकेगी, और शोहर अगर लाल पहाड़ के पत्थर काले पहाड़ पर ले जाने को कहै तो औरत को फोरन इस काम भी लग जाना चाहिए, और ये मिसाले हदीसी है, इसका मतलब ये होता है की, मर्द, औरत को जैसा भी जाइज़ काम कहै, उसे कोशिश में लग जाना चाहिए चाहै नाकाम हो जाए, इसकी मिसाल यूँ समझे, अगर शोहर कहै की मुझे अब रोज़ रात 3 बजे खाना चाहिए, तो औरत को बजाए हीले बहाने बनाना के इस पर रजामंदी ज़ाहिर करनी चाहिए, और कोशिश भी करनी चाहिए, भले ही उठने में नाकाम रहै, क्यूंकी इज़हार की नियत करने पर भी सवाब होता है, अब रहा ये की औरत पर शोहर का हक ज्यादा इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है, की खुदा के बाद दूसरा सजदा वालिदेन को नही होता बल्कि शोहर को होता, अकल वाला इससे समझ जाएगा की हक़ ज़्यादा किसका है, लिहाज़ा औरत को शोहर के हर जाइज़ हुक्म की पेरवी खुशी से करनी चाहिए!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 93 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 130
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❝ पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !?❞
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╭┈► आलाहज़रत ने एक मुकाम पर फ़रमाया की अगर शोहर चाहै की उसकी बीवी मोटी हो तो औरत को अपना मोटापा बढ़ाने में लग जाना चाहिए) मगर दौर पुर्फितन है, ज्यादा तर, औरतें हरीपा, होती है, और कहती है की क्या वालिदेन कुछ नही ? जबकि ऐसा नही, वालिदेन का हक़ भी कभी खतम नहीं होता, बालिदेन का हक उनकी जगह है, शोहर का उसकी जगह, आप गौर करें, शरीअत ने वालिदा का दर्जा इतना बुलंद किया, मगर बाज़ हुक्म मे वालिदा को पीछे करके बीवी को उसके आगे किया शरीअत ने सब के हक़ की हिफ़ाज़त की है, इसकी मिसाल यूँ समझे की अगर किसी मर्द के दोनो हाथ नही है तो उसे इस्तिजा माफ़ है, यानी बालिदा भी इस्तिजा नही करवा सकती (अदब के भी खिलाफ है) मगर बीवी चाहै तो उसे इस्तिजा करवा सकती है, फ़रक़ अक़ल का है की, सबके हक़ अपनी जगह होते है, और बाज़ शौहर खुद को बीवी के खुदा समझते है, की अपने हक़ के आगे दूसरो के हक को समझते ही नहीं, उन्हे भी चाहिए की अपनी आदत को बदले, 10 मे से 10 ना सही मगर 4-5 बाते तो (जाइज़) बीवी की भी मान लिया करे, और बीवी को भी चाहिए, की शोहर जिस चीज़ से बाज़ रखे, बाज़ रहै की वो उसका आका है!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 93 📚*••──────────────────────••►
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 131
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❝पर्दे के तअल्लुक़ से सुवाल जवाब !? ❞
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╭┈► *मेरा मशवरा ये है की,* शोहर अपनी बीवी को अगर इस बात का हुक्म दे की जब भी काम से शाम को घर आए तो बीवी उसके हाथ चूमे, यानी शोहर बीवी पर इस हुक्म को लाज़िम कर दे, और जब ऐसा होने लगेगा तो इसके फायदे नज़र आएँगे, की अब्बल तो जब औरत शोहर के हाथ चूमेगी तो उसका (औरत का) तकब्बुर जाता रहेगा, की औरत मे तकब्बुर ज़्यादा होता है, फिर वो आइन्दा इस बात का ख्याल भी रखेगी की ना बहैस करेगी, ना जुबान दराज़ी, क्यूंकी फिर उसे उसके आगे झुक कर हाथ चूमना ही है, तो उसके दिमाग़ मे ये बात घर कर जाएगी, की भला मैं जिसके हाथ चूम कर इज़्ज़त देती हूँ, उससे बदजुबानी कैसे कर सकती हूँ, की हाथ चूमे ही इसलिए जाते है जिसे आदमी इज़्ज़त देता है, फिर भी अगर औरत की जुबान दराज़ी बंद ना हो तो हाथ चूमने का सिलसिला बंद ना करवाए, चाहै घर मे हो या ससुराल मे, औरत मे बदलाव ना सही, कम से कम बच्चो पर तो इसका असर पड़ेगा ही, यानी वार खाली नही जाएगा, और जब औरत, शोहर के घर आने पर हाथ ना चूमे, या परहेज़ करे, तो समझो तकब्बुर बाकी है और उसे अमल याद दिलाता रहै, और जो औरत अपने शोहर के हाथ चूमने पर राज़ी ना हो या शोहर के घर आने पर ताज़िमन खड़ी होने को बोझ समझती हो "वो या तो तकब्बुर वाली है, या मुनाफ़िक़ (मुनाफिके अमली)!..✍🏻
📬 बा - हवाला ↬ *पर्दादारी सफ़ह - 94 📚*
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*📬 अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई 🔃*
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