Wednesday, 11 December 2019

ख़ुदा को याद कर प्यारे




🅿🄾🅂🅃 ➪  01

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          ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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               *↳ मेरे दीनी इस्लामी भाईयों ↲*

╭┈► दुनिया में ज़िन्दगी गुज़ारने के सिर्फ़ दो रास्ते हैं

╭┈► 1) उसका नाम लेकर उसको याद रख कर ज़िन्दगी गुज़ारी जाये जिसने ज़िन्दगी दी है और जब चाहे छीन ले।

╭┈►  2) उसको भूल कर उसका नाम न लेकर उससे ग़ाफ़िल होकर ज़िन्दगी गुज़ारें जो दुनिया को बनाने और पैदा फ़रमाने वाला है।

╭┈► आज तरक़्क़ी के इस दौर में भी जब आप ग़ौर करेंगे ख़ूब बारीकी से दिमाग पर ज़ोर देकर सोचेंगे तो आप का दिमाग़ यह फैसला करेगा कि कोई एसी हसती और ऐसी ताक़त ज़रूर है कि जो वह चाहती है वही होता है और वही हो रहा है और उस के चाहे बग़ैर कुछ नहीं होता।
 
╭┈► इसी ताक़त और इसी हस्ती को हम अल्लाह या ख़ुदा कहते हैं। कोई माने न माने कोई समझे या न समझे लेकिन हक़ीक़त यही है कि जिस के चाहे बग़ैर कुछ नहीं होता उसको भूल कर उसका नाम न लेकर उसको याद न रख कर ज़िन्दगी गुज़ारना, उसकी दुनिया में रहना सब से बड़ी बेवकूफ़ी जिहालत नादानी और पागलपन है और उसको याद रख कर उस का नाम लेकर उस की फरमाबरदारी करके ज़िन्दगी गुज़ारना सब से बड़ी समझदारी और अक़लमन्दी है। और जो हर वक़्त जितना ज़्यादा उसे याद रखे उसका नाम ले वह उतना ही ज़्यादा समझदार होशियार और अकलमन्द है।

╭┈► हदीसे पाक में है हज़रत आयशा रजिअल्लाह तआला अन्हा फ़रमाती हैं! रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम हर वक़्त अल्लाह तआला का ज़िक्र फ़रमाते थे। एक हदीस पाक में है हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया "अल्लाह का ज़िक्र इतना ज़्यादा करो कि लोग तुम्हे दीवाना कहने लगें"।...✍🏻

*📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 02 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  02

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                 *↳ मेरे दीनी इस्लामी भाईयों ↲*

╭┈► एक मरतबा हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम से एक सहाबी ने पूछा कि इस्लाम में तो बहुत बातें है, सब मेरे बस की नहीं कोई एक ऐसी बात बताइये जिसका मैं पाबन्द रहूंगा तो हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया तुम्हारी ज़ुबान हमेशा अल्लाह के ज़िक्र से तर रहे। एक मरतबा हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम से पूँछा गया कि क़यामत के दिन सब से बड़े मरतबे वाले लोग कौन होंगे तो हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया सबसे ज़्यादा अल्लाह का ज़िक्र करने वाले।
 
╭┈► कलामे इलाही यानी क़ुरआने करीम में तो जगह-जगह बल्कि अक़्सर जगह अल्लाह तआला ने ख़ुद ही अपने ज़िक्र की तरफ़ लोगों को रग़बत दिलाई है कहीं ज़िक्र करने वालों की फज़ीलत, कहीं उनके लिये बशारत व खुशखबरी, कहीं उस पर अज्र व सवाब से सारा कुरआन भरा हुआ है। कुरआन ख़ुद भी एक आला वर्जे का ज़िक्र है कुरआन में वाक़यात और किस्से भी हैं मसाइल व अहकाम भी हैं नसीहत व हिकमत की बातें हैं जन्नत व दोज़ख़ अजाब व सवाब का ज़िक्र भी है मुनाजात और दुआयें भी हैं।..✍🏻

    *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 3 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  03

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                 *↳ मेरे दीनी इस्लामी भाईयों ↲*

╭┈► महबूबाने ख़ुदा हज़रात अम्बियाए किराम व औलियाए एजाम के फज़ाइल मनाक़िब उनके कमालात व खूबियों इख़्तियारात व तसरूफ़ात मोअजिज़ात व करामात भी कुरआन में देखे जा सकते हैं, लेकिन जगह जगह हर आयत या हर दो चार आयतों के बाद बात बात में जो अल्लाह तआला की याद दिलाई जाती है उसकी वहदत व कुदरत यकंताई व किवरियाई शान व अज़मत व जलालत, ग़ज़ब व रहमत, उसके बेशुमार नामों और उसकी सिफात गिनायी जाती हैं उस का मज़ा और उसकी लज़्ज़त दिल वाले ही जानते हैं और समझ वाले ही समझते हैं।
 
╭┈► अल्लाह तआला को यह बात बहुत पसन्द है कि उसके बन्दे ख़ूब ज़्यादा उसका ज़िक्र करें और हर वक़्त उसे याद रखें एक आन के लिये भी उससे गाफ़िल न हों वह कुरआन करीम में उन्हें हुक़्म देता है और अल्लाह का ज़िक्र खूब ज़्यादा किया करो यह उम्मीद रखते हये कि तम क़ामयाब हो जाओ।

╭┈► कहीं फरमाता है ऐ ईमान वालो अल्लाह का ज़िक्र किया करो खूब ज़्यादा और उसकी पाकी बोलो सुबह, शाम कहीं फरमाता है! और अल्लाह का खूब ज़्यादा ज़िक्र करने वाले मर्द और ज़िक्र करने वाली औरतें अल्लाह ने उनके लिये बख्शिश और बड़ा अजर तैयार किया!...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 03 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  04

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                 *↳ मेरे दीनी इस्लामी भाइयों ↲*

╭┈► ऐसी बहुत सी आयतें कुरआने करीम में जगह जगह देखी जा सकती हैं जो इन्सान को झन्झोड़ती हैं उसे आगाह करती हैं कि ज़िन्दगी तो गुज़ारो लेकिन अल्लाह को भूलकर नहीं।

╭┈► मैं पूछता हूं कि अब आप क्या सोच रहे हैं आपका फैसला क्या है। अल्लाह तआला का नाम लेकर उसको याद रख कर ज़िन्दगी गुज़ारना चाहते हैं या उस को भूल कर और उसको भूल जाना सब से बड़ी भूल है और ज़िन्दगी तो गुज़र ही जायेगी यह तो गुज़रने और कटने ही के लिये है। एक वक़्त है जो हम गुज़ार रहे हैं एक शाम है जिसका सवेरा होना ही है। एक सांस है जो एक दिन रूक जायेगी एक दिल की धड़कन है जो एक दिन थम जायेगी। फिर सोचिये नहीं कहीं सोचते सोचते ही उमर न गुज़र जाये ज़ल्दी फैसला कर लिजिये कि ज़िन्दगी उसका नाम लेकर और उस को याद रख कर गुज़ारना है जिसके दस्त कुदरत में ज़िन्दगी और मौत है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 04 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  05

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                 *↳ मेरे दीनी इस्लामी भाइयों ↲*

╭┈► दुनिया के अन्दर घरों की चहारदीवारी और बन्द कमरों में, बाज़ारों और दुकानों में, रास्तों, जेलों, थानों और कचहरियों में लूटमार, ज़ुल्म व ज़ियादती, क़त्ल व ग़ारतगरी, ईज़ारसानी, बेईमानी, चोरी, डकैती, नाइन्साफी, रिश्वतखोरी, धोखेबाज़ी, और मिलावटों की जो ग़र्मबाज़ारी है इसमें से 90 फीसद पर्दे में है और दुनिया इसको नहीं जान पाती कौन ग़लत है और कौन सही कौन ज़ालिम है और कौन मज़लूम कौन झूठा है और कौन सच्चा। किसने धोखा दिया किसने किस में किस चीज की मिलावट की है।

╭┈► कितने लोग हैं कि दुनिया से ज़ुल्म सहकर ज़ियादतियां बरदाश्त करके चले गये उनके साथ जो कुछ हुआ किसी को पता ही न चल सका। कितने वह हैं कि ज़ालिमों जाबिरों ताक़त वालों के हाथों मुसीबतें उठाते हैं लेकिन डर के मारे शिकायत तक नहीं करते किसी को बता भी नहीं सकते थाने कचहरी में जाकर लिखवा भी नहीं सकते, कितने वह हैं कि अगर लिखवायें भी तो उससे कुछ नहीं होता उन्हें इन्साफ़ नहीं मिल सकता बल्कि शिकायत करें तो और ज़्यादा सताये जायें और उनका कोई पुरसाने हाल नहीं कितनी चीखें हैं जो बन्द कमरों से बाहर नहीं निकल सकीं कितनी सिसकियां और आहे हैं जो चहार दीवारियों को न फलांग सकी कितनी रोने की आवाज़ें फिज़ाओं में खो गयीं कितने आंसू हैं जो आंखों ही में खुश्क हो गये उन्हें किसी दामन में जगह न मिली।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 04 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  06

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                 *↳ मेरे दीनी इस्लामी भाइयों ↲*

╭┈► ठण्डे दिल से इन सब बातों को जब आप सोचेंगे तो आपका दिमाग ख़ुद ही यह कहेगा कि एक ऐसा दिन होना चाहिए कि जिसमें दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया जाये जिसने जो किया उसके गले बांध दिया जाये जो छिपा था उसे ज़ाहिर कर दिया जाये जो आड़ और पर्दे में था उसे बाहर लाकर खड़ा कर दिया जाये और एक ऐसा फैसला करने वाला ज़रूर होना चाहिए कि जो छिपे को भी जानता हो और खुले को भी उससे कुछ भी पोशिदा न हो और उसे न किसी की शिकायत की ज़रूरत हो न बताने और समझाने की न किसी की रिपोर्ट गवाही और जासूसी जांच इन्क्वाइरी और मुआइने की उस दिन को क़यामत का दिन कहते हैं और इस फैसला करने वाले को अल्लाह तआला कहते हैं।
 
╭┈► यहां यह जान लेना ज़रूरी है कि तमाम बुराईयों! जुआ, शराब, चोरी,डकैती, ज़िनाकारी, जुल्म व ज़ियादती, बेईमानी, रिश्वतखोरी तरह तरह की मिलावटों और ग़लत कामों से इन्सान तभी बाज़ रसेगा जब अल्लाह तआला पर उसका ईमान मज़बूत होगा और उसके दिल मे  बाय खूब जम जायेगी कि मुझको उसके सामने हिसाब किताब के लिए आना है जिससे कुछ छिपा नहीं है और ऐसे कोर्ट मे पेश होना है, कि जहाँ न झूठी गवाही चलेगी न रिश्वत न ग़लत बयानी!...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 04 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  07

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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          *↳ अल्लाह को याद रखने के कुछ तरीक़ा ↲*

╭┈► चलने फिरते खातें पीते सोते जागते हर वक़्त ज़्यादा से ज़्यादा या अल्लाह या अल्लाह कहने की आदत डालिये या सिर्फ़ या अल्लाह, अल्लाह ज़बान से जारी रखिये। इसके अलावा अल्लाह तआला का शुक्र है, अल्लाह का फ़ज़ल है बात बात में कहते रहिये। जो अल्लाह चाहता है वह होता है, जो अल्लाह ने चाहा वह हुआ जो अल्लाह चाहेगा वह होगा, अल्लाह ने चाहा तो मैं यह काम करूंगा, अल्लाह की तौफीक़ से मैं ने यह काम कर लिया, अल्लाह ने फलां डाक्टर या हकीम की दवा से मुझको तन्दरूस्ती अता फरमायी, अल्लाह ने फलां बुजुर्ग की दुआ से मेरी मुश्किल आसान फ़रमायी, अल्लाह ने मुझको एक बेटा अता फरमाया है, अल्लाह ने मुझको नेक बीवी अता फरमायी है, अल्लाह ने यह दरख़्त कितना खूबसूरत बनाया है, अल्लाह ने यह फल कितना ज़ायकेदार बनाया है। अल्लाह ने यह फूल कितना खुश्बूदार बनाया है। इस तरह के जुमले अपनी गुफतगू और अपनी बातों में शामिल कर लीजिये, अल्लाह के नाम के साथ तआला या जल्ल जलालहू भी लगा दें तो और भी फज़ीलत है।

╭┈► इसके अलावा, अस्तग़फ़िरूल्लाह (मैं अल्लाह से मगफिरत चाहता हूं) सुब्हान अल्लाह (अल्लाह के लिये पाकी है), अल्हम्दोलिल्लाह (सब तारीफें अल्लाह के लिये हैं) अल्लाहु  अकबर (अल्लाह बहुत बड़ा है) हसबोनल्लाहो व नेमल वकील (अल्लाह हमे काफ़ी है और वह सब से अच्छा मुहाफ़िज़ है) ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह ( सब ताक़त व कुब्बत अल्लाह ही की है ) ला इलाहा इल्लल्लाह (अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं) वगैरह जैसे कलमात ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ते रहिये कलमा शरीफ़ भी कसरत से पढ़ें और इसके बाद में सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम भी कह लें तो सबसे बेहतर ज़िक्र है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 05 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  08

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ अल्लाह को याद रखने के कुछ तरीक़ा ↲*

╭┈► अल्लाह तआला को याद रखने और उसका ज़िक्र करने का सबसे उम्दा तरीका नमाज़ पढ़ना है ज़्यादा न सही तो कम अज़ कम पांच वक़्त की नमाज़ जो हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है! उसके पाबन्द हो जायें। अब क्या देरी है और क्या दूरी है ज़ल्दी कीजिये फैसला ले लीजिये ज़िन्दगी नमाज़ी बनकर ही गुज़ारना है नमाज़ी रहकर मरना है और ख़ुदा तौफ़ीक़ दे तो नमाज़ ही में मरना है क़ुरआन करीम में है अल्लाह तआला खुद फ़रमाता है मुझको याद रखने के लिये, मेरा ज़िक्र करने के लिये नमाज़ की पाबन्दी करो!

╭┈► यानी नमाज़ अल्लाह को याद रखने उसका नाम लेने का वह तरीक़ा है जो उसने अपने महबूब पैगम्बर के ज़रिये हमें ख़ुद बताया है ग़ैर मुसलिमों तक ने इस बात का एतराफ़ किया है कि अपने पैदा करने रोज़ी रोटी देने वाले को याद रखने का जो तरीक़ा नमाज़ की शक्ल में इस्लाम ने दिया है उसका जवाब किसी मज़हब में नहीं है। एक बहुत बड़े इस्लामी बुजुर्ग आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा खां बरेलवी अलैहिर्रहमा एक जगह लिखते है! अल्लाह का ज़िक्र सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत वाला अमल है बल्कि सारे आमाल की जड़ यही है। यहां तक कि वह नमाज़ जो ईमान के बाद सारे कामों में सबसे अफ़ज़ल है इसका मक़सद भी अल्लाह का ज़िक्र है।..✍🏻

📕 मफ़हूम फतावा रज़विया ज़िल्द 24 सफ़ह 178

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 06 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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        *↳ अल्लाह को याद रखने के कुछ तरीक़ा ↲*

╭┈► हमने इस किताब का जो नाम रखा है *"ख़ुदा को याद कर प्यारे"* यह भी आला हज़रत के शेर का एक टुकड़ा है पूरा शेर यह है!

*अंधेरा  घर  अकेली  जान  दम  घुटता  दिल  उकताता*

*ख़ुदा  को  याद  कर  प्यारे  वह  साअत  आने  वाली  है*

╭┈► अल्लाह तआला का ज़िक्र करने और उसको याद रखने के जो कलमात और अलफ़ाज़ राइज़ और शाये हैं वह नमाज़ में तक़रीबन सभी आ जाते हैं। जैसे तकबीर अल्लाहु अकबर  कहना तस्बीह सुब्हान कल्ला हुम्मा या सुब्हान रब्बियलअज़ीम या सुब्हान रब्बियलआला पढ़ना तहमीद (अल्हम्दु लिल्लाह कहना) तहलील (ला इलाहा इल्लल्लाह कहना) दुआ जैसे एहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीमा पढ़ना नमाज़ में अल्लाह तआला के कलाम क़ुरआन करीम की तिलावत भी है नमाज़ में उसके रसूल पर दुरुद व सलाम भी है नमाज़ में हुज़ूर पाक सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की रिसालत व नबुव्वत की गवाही भी है, यानी अशहदो अन्न मोहम्मदन अबदुहू व रसूलुहु मैं गवाही देता हूं कि "मोहम्मद" अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम।
 
╭┈► कभी अपने जिस्म के ज़रिये भी ताज़ीम की जाती है जैसे सिपाही अपने अफसरों को सेल्यूट मारकर उनकी ताज़ीम करते हैं। ग़ौर किया जाये तो इन्सानी जिस्म व बदन की चार हालतें ख़ास तौर से किसी की ताज़ीम के लिये हैं।

╭┈► 1) किसी के सामने खड़ा होना, ख़ासकर हाथ बांधकर।

╭┈►  2) किसी के सामने झुकना।

╭┈► 3) किसी के सामने दो ज़ानों बैठना।

╭┈►  4) किसी के लिये अपना माथा, सर, ज़मीन पर रखना।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 07 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 10

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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          *↳ अल्लाह को याद रखने के कुछ तरीक़ा ↲*

╭┈► नमाज़ में बन्दा अपने रब के लिये हाथ बांधकर बा अदब खड़ा ज़ानो बा अदब बैठता है। उसके लिये वह गिरता है यानी अपनी पेशानी और सर को ज़मीन पर रखता है यानी अपने जिस्म की मुख़्तलिफ़ हालतों के ज़रिये वह अपने बन्दा और उसके रब होने का इज़हार करता है, और यह इज़हारे अबदियत अल्लाह तआला को बहुत पसन्द है इसी लिये हदीस पाक में फ़रमाया गया कि बन्दा अपने रब से जितना क़रीब नमाज़ में होता है उतना कभी नहीं होता। पलत्थी मारकर चार जानू या टांगे फैलाकर बैठना, या लेटना यह सब अदब के ख़िलाफ़ हैं लिहाज़ा नमाज़ में सख़्त ममनूअ हैं।

╭┈► इन्सानी जिस्म की साख़्त हड्डियों से है और उनमे जगह जगह बहुत से जोड़ हैं। इन जोड़ों का चलते रहना बहुत ज़रूरी है यह अगर न चलाये जायें तो जाम होने लगते हैं डाक्टर मुख़्तलिफ़ तरीक़े से इन जोड़ों को हरकत में लाने की तरग़ीब देते हैं वरज़िश और इक्सर साइज़ कराई और सिखाई जाती है, तरह तरह के योग सिखाये जाते हैं ख़ासकर जोड़ों के दर्द में इन योगों की बड़ी अहमियत है बगैर किसी बीमारी के भी जोड़ों का चलते रहना सेहत के लिये ज़रूरी है। नमाज़ में आप गौर करेंगे हाथ और पैर की उंगलियों के जोड़ों से लेकर घुटने, कूल्हे, कोहनी, मोन्ढे, कमर और गर्दन के जितने जोड़ हैं वह सब चल जाते हैं और सभी की वरज़िश हो जाती है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 7 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ अल्लाह को याद रखने के कुछ तरीक़ा ↲*

╭┈► एक योग गुरू ग़ैर मुस्लिम धर्मात्मा से उसके अक़ीदतमन्दों ने नमाज़ के बारे में पूँछा तो उसने कहा नमाज़ में जितने योग हैं वह सब आ जाते हैं। नमाज़ का यह फायदा एक अलैहदा चीज़ है और क़ुदरत का इनाम है लेकिन नमाज़ वरज़िश की नियत से नहीं पढ़ना चाहिये अल्लाह तआला की इबादत की नियत से पढ़ें ताकि उसकी रबूबियत, उलूहियत और अपनी बन्दगी व उबूदियत का इज़हार हो।
 
╭┈► कभी ऐसा भी होता है कि कोई एक काम करते करते ज़्यादा वक़्त गुज़र जाये तो इन्सान की तबियत घबराने लगती है काम धन्धे हों या दफ्तरो ऑफिस की लिखा पढ़ी या पढ़ना और पढ़ाना, मेहनत मज़दूरी या दुकानदारी वगैरा कोई भी मशग़ला हो जब कोई एक काम करते करते ज़्यादा वक़्त गज़र जाता है तो दिल चाहता है कि कुछ चल फिर लूं हाथ पावं सीधे कर ले कुछ माहौल बदले, तबियत वहले मैं कहता हूं इसके लियें नमाज़ से अच्छी कौन सी चीज़ है, हाथ पांव सीधे ही नहीं हो जाते बल्कि वुज़ू के ज़रिये। धुल भी जाते हैं, माहौल बदल जाता है, थोड़ा चलना फिरना भी हो जाता है मुहल्ले वस्ती वालों से मुलाकात भी हो जाती है। ख़ुदा का नाम ले लिया उसकी इबादत कर ली दुनिया का भी फ़ायदा हो गया और आख़िरत की भी तैयारी हो गई।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 8 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ अल्लाह को याद रखने के कुछ तरीक़ा ↲*

╭┈► इज्ज़त व हुकूमत, दौलत व इमारत, शानो शौकत, मरतबे और इक़्तिदार पाकर बेकाबू हो जाना घमण्डी और मगरूर बन जाना, ख़ुद को कुछ समझने लगना इन्सान की फ़ितरत है। यहां तक कि बहुत से दुनियादार लोग साहिबे इक़्तिदार होकर ख़ुदाई का दावा कर बैठे हालांकि छोटे बड़े, अमीर व ग़रीब, ग़ुलाम और आक़ा, नौकर व मालिक पीर व मुरीद,शार्गिद व उस्ताद, बादशाह और रिआया अल्लाह तआला के सब बन्दे ही हैं लिहाज़ा सब पर नमाज़ फ़र्ज़ की गयी कि वह बड़ों से बड़े होकर भी इस बात को न भूलें कि सब कुछ होकर भी वह अल्लाह तआला के बन्दे ही हैं और उसके मुक़ाबले में खुद को कुछ न समझें सबके लिये हुक़्म है कि वह अपना सर अल्लाह तआला के लिये ज़मीन पर रखें ताकि वह भूल न जायें कि हम अल्लाह तआला के बन्दे हैं और हमारे पास जो कुछ है सब उसी का दिया हुआ है और जब चाहे वापस ले ले जब चाहे गिरतों को उठा दे और जब चाहे उठाकर गिरा दे और यह सब होता रहता है। और मौत के टाइम तो बड़े से बड़े दुनियादारो, माल, ताक़त और हुकूमत वालों को और ऊंचों से ऊंचों को यह एहसास हो जाता है कि हम सब कुछ होकर भी कुछ न थे।

╭┈► अक़ल व होश वाले हैं वह लोग जो मौत से पहले ही हर वक़्त यह याद रखें कि अल्लाह तआला के मुक़ाबिल बिल्कुल मजबूर हैं और उसके बन्दे हर वक़्त उसको याद रखें और कभी उससे गाफ़िल न हों और नमाज़ पढ़ते रहें उसके लिये झुकते और गिरते रहें ताकि उन्हें अपना बन्दा और उसका रब होना याद रहे गोया कि नमाज़ इन्सान को अपनी औक़ात व हैसियत समझने का बेहतरीन ज़रिया है और जिस के ध्यान में यह बात कि मैं अल्लाह तआला का बन्दा हूं जितनी ज़्यादा रहे वह उतना ही ख़ुदा के क़रीब और बड़े मरतबे वाला है और नमाज़ बन्दों को यह याद दिलाने के लिये ही रखी गयी है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 9 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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           *↳ जवानी की आदत बुढ़ापे मे राहत ↲*

╭┈► नमाज़ हो या रमज़ान के रोज़े इनका काफ़ी ताल्लुक़ आदत से भी है जो लोग बचपन ही से नमाज़ रोज़े के पाबन्द हो जाते हैं वह आसानी से जवानी और बुढ़ापे में भी अदा करते रहते हैं। बुढ़ापा एक ऐसी मन्ज़िल है कि इन्सान ग़ैर तो ग़ैर अपनों से तक दूर होता चला जाता है। न लोग उसके पास बैठना पसन्द करते हैं न उसे अपने पास बिठाना, उससे बातचीत पसन्द नहीं करते उससे गुफ्तगू करने में उलझन महसूस करने लगते हैं। जवानी तो लोग हंसी मज़ाक, तफ़रीह व दिललगी में काट लेते हैं लेकिन बुढ़ापे में इस सब के लिये यारों दोस्तों का मिलना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

╭┈► लेकिन जो लोग बचपन और जवानी ही से नमाज़ व इबादत, ज़िक्र व तस्बीह और कुरआन की तिलावत के आदी हो जाते हैं मैंने देखा कि उनका बुढ़ापा बड़े सुकून से गुज़रता है इन सब कामों के ज़रिये वक़्त भी गुज़रता है क़ब्र और आख़िरत का सामान भी हो जाता है। नमाज़ी बूढ़ा साफ सुथरा रहता है और बेनमाज़ी गन्दा मनहूस बेरौनक न यहाँ का न वहाँ का नमाज़ी बूढ़ों को ग़ैर लोग भी अपनी बैठकों, चौपालों और घरों में रख लेते हैं और उसे नमाज़ी समझकर उसके खाने पीने का बन्दोबस्त कर देते हैं कि चलो एक नमाज़ी आदमी खाता पीता पड़ा रहेगा अच्छी बात है।..✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 9 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  14

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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            *↳ जवानी की आदत बुढ़ापे मे राहत ↲*

╭┈► और बे-नमाज़ी बूढ़ों का ख़ुद उनके अपने घरों में भी ठिकाना नहीं लगता बुढ़ापे में नमाज़ी के पास कोई बैठे न बैठे लेकिन अल्लाह की याद उसकी इबादत और उस के महबूब पर दुरूद उस के बेहतरीन साथी होते हैं और देर न करो उठो सवेरा हो गया जागो रात ढल चुकी खुदाये पाक तुम्हे तौफीक़ दे बचपन और जवानी ही से नमाज़ रोज़े के आदी बन जाओ और अपने बच्चों को आदी बनाओ कुछ लोग कहते हैं अभी हमारी उम्र ही क्या है जब बुढ़ापा आयेगा तो नमाज़ और दाढ़ी वाले बन जायेंगे तो यह एक बहुत ग़लत बात है

╭┈► और उनकी यह सोच बड़ी बेवकूफ़ी है पहली बात तो यह कि बुढ़ापा किस ने देखा है और क्या गारन्टी है कि आप को बुढ़ापा मिल ही जायेगा क्या आप ने जवानों तन्दरूस्तों को मरते हुये नहीं देखा है? दूसरी बात यह कि जवानी में नमाज़ व इबादत का जो मज़ा है वह बुढ़ापे में नहीं और जवानी में जो लोग आदत नहीं डाल पाते बुढ़ापे में उनके लिये नमाज़ पढ़ना बड़ा मुश्किल हो जाता है अक्सर यही देखा गया है अगरचे ना मुमकिन नहीं और खुदाये तआला की शान से कुछ दूर नहीं सुबह का भूला शाम को आये भूला ना कहलाये लेकिन जवानी में जो नमाज़ें छोड़ दी हैं उनमें एक एक का हिसाब बड़ा मुश्किल पड़ेगा।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 9 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                   *↳  एक  ग़लत  शेर  ↲*

╭┈► आजकल जलसों और मुशायरों में यह शेर बहुत पढ़ा जा रहा है!

 *न  सजदा  काम  आयेगा  न  रोज़ा  काम  आयेगा*

*क़यामत  में  मुहम्मद  ﷺ  का  वसीला  काम  आयेगा*

╭┈► मैं कहता हूं यह सही नहीं है सही बात यह है कि क़यामत के दिन हुज़ूर ﷺ का वसीला भी काम आयेगा और नमाज़ रोज़े भी काम आयेंगे। यह आपने दो पलड़े क्यों बना डाले एक में हुज़ूर ﷺ के वसीले को रखा और दूसरे में नमाज़ सजदे और रोज़े को यह तो तीनों चीज़ें एक ही पलड़े की हैं नमाज़ रोज़े को आप ने हुज़ूर ﷺ के वसीले से अलग क्यों कर डाला? नमाज़ रोज़े भी तो अल्लाह तआला ने हुज़ूर ﷺ ही के सदके और तुफैल में अता फरमाये हैं क्या उन्हें कोई और लाया है? और नमाज़ रोज़ा हुज़ूर ﷺ को कितना पसन्द था क्या यह आपको बताने की ज़रूरत पड़ेगी अगर आप को यह ख़बर नहीं तो सही मानी में आप मुसलमान कहलाने तक के हक़दार नहीं शायरी बाद में करना पहले इस्लाम को समझ लीजिये यह कौम को गुमराह न कीजिये।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 10 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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                       *↳  एक  ग़लत  शेर  ↲*

╭┈► हुज़ूर ﷺ के वसीले की आड़ लेकर नमाज़ रोज़े की अहमियत न घटाइये आप न पढ़ें आप जानें लेकिन दूसरों को पढ़ने दीजिये क्या आप को मालूम है कि जिन के वसीले की आड़ लेकर आप नमाज़ रोज़े को क़यामत के दिन ग़ैर मुफीद और बेकार साबित कर रहे हैं उन्होंने नमाज़ को मोमिन की मेराज और जन्नत की कुन्जी बताया है, और फ़रमाया है कि जन्नत के आठ दरवाज़ों में से एक का नाम *"रय्यान"* है वह ख़ालिस रोज़ेदारों के लिये खोला जायेगा हक़ यह है कि हुज़ूर पाक ﷺ के वसीले से अल्लाह तआला ने जो कुछ अता फ़रमाया है मोमिनों के लिये उन में सब से अफ़ज़ल बेहतर और बरतर नमाज़ है और रोज़े हैं जिस के पास यह नहीं वह हुज़ूर ﷺ के वसीले का सच्चा तलबगार नहीं।

╭┈► दरअसल बात यह है कि हुज़ूर ﷺ की शफ़ाअत और आप के वसीले के मुनकिरीन का रद करना ज़रूरी है लेकिन इस मामले में कुछ शायर और मौलवी हद से आगे बढ़ जाते हैं उनसे भी होशियार रहने की ज़रूरत है। मैंने अपनी किताब दरमियानी उम्मत इसी उनवान के तहत लिखी है!? और दोनों तरफ़ की गलत राहों से ख़बरदार करने की कोशिश की है खुदाये पाक क़बूल फ़रमाये हिदायत उसी की तरफ़ से है।...✍🏻 *आमीन*

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 10 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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      *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► 1) रात को इशा की नमाज़ पढ़कर ज़ल्दी सोने की आदत डालें हदीस पाक में है कि हुज़ूर ﷺ इशा की नमाज़ के बाद बातचीत करना पसन्द नहीं फ़रमाते थे लिहाज़ा बाद नमाज़ इशा कोई ज़रूरी काम या ज़रूरी बात हो तो करें वरना सो जाये यह चीज़ आपकी सुबह जल्दी उठने और फजर की नमाज़ की अदायगी में मददगार साबित होगी। डाक्टर व हकीम लोग भी रात को जल्दी सोने और सुबह को जल्दी उठने का मशवरा देते हैं और हमारे इस्लाम ने भी यही मिज़ाज दिया है और बेशक इस्लाम दीने फ़ितरत है।

╭┈► कुछ लोग रात को देर तक इधर उधर घूमने फ़िरते ग़ैर ज़रूरी फालतू बातें करते और चौकड़ियें लगाकर बैठते हैं या सब ख़राब आदतें हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हम रात को जल्दी लेट जायें तो हमें नींद नहीं आयेगी इसकी वजह यह है कि उन्होंने यह आदत बना ली है उन्हे इशा की नमाज़ पढ़कर जल्दी सोने की आदत डालना चाहिए ताकि सुबह को जल्दी उठ सकें और फजर की नमाज़ क़ायदे के साथ बा इतमिनान अदा करें।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 11 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► नमाज़ छोड़ना भी हराम है, और ओंघा-नींदी में सुस्ती और काहिली और बोझल बदन के साथ अल्लाह की इबादत करना भी बड़ी महरूमी है महफ़िलों, मजलिसों और जलसों के नाम पर भी रात को देर तक लोगों को नहीं जगाना चाहिये और महफ़िलों, जलसों में बाहर दूर तक तेज आवाज़ फेंकने वाले लाउडस्पीकर का इस्तेमाल तो करना ही नहीं चाहिये इस्लामी नुक़ता-ए-नज़र से यह सही भी नही है ख़ास कर रात में इसका जो वाज बना है ग़लत है और मखलूक को परेशान करना है।

╭┈► मैंने अपनी किताबों मसलन "रमज़ान का तोहफा" और "इमाम व मुक़दती'' में लाइल के साथ इस को साबित कर दिया है लेकिन हमारे मीलादख्वां, मुकर्रिर व शोरा हज़रात और उनके प्रोग्राम कराने वालों का ख़्याल यह हो गया है कि जितनी ज़्यादा तेज़ आवाज़ होगी उतना ही सवाब ज़्यादा मिलेगा बल्कि अगर लोगों के कानों के पर्दे फट जायें तो शायद इनके नज़दीक सवाब और भी ज़्यादा बढ़ जायेगा।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 11 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► इधर कुछ दिनों से तेज़ आवाज़ फेकने वाले लाउडस्पीकरों का जो इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है यह हमारे इस्लामी मिज़ाज के एक दम ख़िलाफ़ है अगर बाक़ायदा कोई इस्लामी हुकूमत हो तो इसमें लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर मुकम्मल पाबन्दी होगी सिवाये चन्द मखसूस सूरतों में कुछ उसूलों के साथ। मौजूदा हुकूमतों के क़वानीन में भी यह बात शामिल है लेकिन वह इस पर अमल नहीं करा पाते और आजकल जलसे तो बहुत कम हैं जलसों के नाम पर मुशायरे ज़्यादा होने लगे हैं और जो तक़रीरें हो रही हैं उन में भी काफ़ी की हैसियत शेरो शायरी से ज़्यादा नहीं।

╭┈► गैर मुस्लिमों ने भी अपने मज़हबी प्रोग्रामों और इबादतगाहो में जो लाउडस्पीकर का इस्तेमाल शुरू किया उसके ज़िम्मेदार और उसकी इब्तिदा करने वाले भी बहुत सी जगहों पर हम ही हैं अगरचे वह अब इसमें हमसे आगे निकल गये हैं लेकिन यह सिखाया हम ही ने है और अब हाल यह है कि उनके यह प्रोग्राम कहीं कहीं हमारे लिये दर्दे सर बनते जा रहे हैं लेकिन हम भी उन से कम नहीं हैं और हमारा दीन भी सब लाउडस्पीकर में आ गया है और ऐसा लगता है कि जैसे हमारे नज़दीक इसके बगैर हमारा कोई अमल क़बूल नहीं है ख़ुदा-ए-तआला समझ अता फरमाये।...✍🏻 *आमीन*

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 12 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► अब तो हर काम में प्रोग्राम ज़रूरी और हर प्रोग्राम में खूब तेज़ लाउडस्पीकर लगाकर लोगों को रात भर या आधी रात तक जगाना ज़रूरी सा हो गया है, जहाँ गैर मुस्लिम लाउडस्पीकर की तेज़ आवाज़ों के ज़रिये परेशान करते हैं तो उसका तरीक़ा यह है कि पहले ख़ुद अपने ऊपर कन्ट्रोल कीजिये इसके बाद इन्हे समझाईये या क़ानूनी चाराजोही करना चाहिये। मस्जिदों में भी ज़्यादा तेज़ और बहुत दूर तक आवाज़ फेकने वाली साउण्ड सर्विस का इस्तेमाल नहीं होना चाहिये बस जहाँ तक ज़रूरत हो वहाँ तक लोगों को अज़ान की आवाज़ पहुंच जाये काफ़ी है।

╭┈► और एक मस्जिद के माइक की आवाज़ दूसरी मस्जिद में न जाये तो बेहतर है इसमें कई तरह की खराबियाँ हैं। और अगर किसी जगह ग़ैर मुस्लिम लोग मुसलमानों के लिये मस्जिद बनाने नमाज़ व जमाअत क़ायम करने पर राज़ी हों लेकिन लाउडस्पीकर से अज़ान वगैरा के मुखालिफ और इसकी वजह से झगड़ा करने पर आमादा हो तो मुसलमानों को यूंही बगैर माइक से आज़ान दिये नमाज़ पढ़ने पर उन से इत्तेफ़ाक कर लेना चाहिये, लाउडस्पीकर इस्लाम में ऐसी ज़रूरी चीज़ नहीं जिसकी वजह से कौम को लड़ाया जाये। बल्कि वह बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 12 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► 2) नमाज़ी बनने और बन कर रहने की एक दूसरी तरकीब यह है कि कभी ख़ुदा न करे किसी वक़त की नमाज़ रह जाये तो मौक़ा और वक़्त मिलने पर उसे फौरन पढ़ लें देर तक अपने ज़िम्मे न रखें। सुबह को अगर कभी आंख खुलने में देर हो जाये और नमाज़ का वक़्त निकल जाये तो आंख खुलते ही मुनासिब वक़्त पर फौरन नमाज़ अदा कर लें। हदीसे पाक में आया है कि वही सवाब मिल जायेगा। हर्ज, मर्ज, सफ़र, रवा रवी उलझन, परेशानी, जल्दबाज़ी और दुख दर्द वग़ैरा में अगर कभी कोई नमाज़ अच्छी तरह न पढ़ सकें तो जैसे पढ़ मिले पढ़ें बिल्कुल छोड़ने से जैसी पढ़ मिले पढ़ लेना बेहतर है, पूरी न पढ़ सकें तो सिर्फ फ़र्ज़ पढ़ लेना भी बिल्कुल छोड़ देने से बदरजहा बेहतर है, यानी कभी कभार बीमारी मजबूरी, रवा रवी में सुन्नतें भी छोड़ देना जाइज़ है, सुन्नत उसी को कहते हैं जिसको अक्सर या आदतन छोड़ देना गुनाह हो, कभी कभार इत्तेफ़ाक़ से छूट जाये तो गुनाह नहीं।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 13 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► पाकी नापाकी के मसले में भी अगर कभी मजबूरी में नापाकी दूर करने की कोई सूरत न बन पड़े तो नमाज़ छोड़ी नहीं जायेगी बल्कि यूं ही पढ़ी जाये, फिर अगर नापाकी ज़्यादा हो तो बाद में नमाज़ दोहरायी जायेगी और थोड़ी हो तो माफ़ है इस सबकी तफ़सील किताबों में पढ़ना चाहिये या उलमा से मालूम करना चाहिये। वुज़ू या गुस्ल की ज़रूरत हो और किताबों में पढ़े। हमारे इन मशवरों पर आप ने अमल किया तो इंशा अल्लाह तआला आप पक्के नमाज़ी बन जायेंगे जो एक मर्तबा भी हर्ज़, मर्ज दुख दर्द, मुसीबतों परेशानी, उलझन और रवा रवी में नमाज़ पढ़ लेता है

╭┈► फिर वह पक्का नमाज़ी बन जाता है जो बीमारी में नमाज़ पढ़ लेगा वह तंदरूस्ती में नमाज़ कैसे छोड़ेगा? जो सफ़र में नमाज़ पढ़ लेगा वह घर पर रहकर ख़ुद ही नहीं छोड़ पायेगा। नमाज़ पढ़ने में कहीं शर्माना नहीं चाहिये लोग ग़लत काम करते हुए नहीं शर्माते आप कैसे मुसलमान हैं कि आप को अच्छा और नेक काम करते हुए शर्म आती है जंगल हो या घर दफ्तर या आफिस, दुकान या कारखाना, प्लेट फार्म या बस स्टैण्ड जहां मौक़ा लगे नमाज़ जैसे भी पढ़ मिले पढ़ लेना चाहिये।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 14 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► 3) अल्लाह तआला की कुदरतों और उसकी हिकमतों में खूब ग़ौर व खोज़ किया कीजिये खूब बारीकी से कायनाते आलम का मुतआला करो हर चीज़ अल्लाह तआला की याद दिलाती है। उसके ज़िक्र व शुक्र और इबादत की तरफ़ दावत दे रही है। ज़मीन व आसमान चाँद व सूरज, सितारे, नदी, नाले, दरिया, पहाड़, समन्दर, इंसान व हैवान, चरिन्दो परिन्द, कीड़े मकोड़े, आंधी हवा बारिश, बिजली की चमक व गरज खुद इंसानी जिस्म का निज़ाम और उसकी बनावट ज़िन्दगी और मौत हर कमाल फिर उसका ज़वाल हर माद्दी और ग़ैर माद्दी छोटी बड़ी चीज़ों में हर होने और करने में उसकी बेशुमार कुदरतें और हिकमतें और उसकी अजीब कारीगरी आपको नज़र आयेगी और फ़िर खुद ही आपका दिल चाहेगा कि ऐसी जात और हस्ती का नाम लिया जाये।

╭┈► उसका ज़िक्र शुक्र किया जाये उसकी इबादत की जाये उसके लिये झुका जाये, उसके लिये ख़ुद को गिरा दिया जाये और उसी के लिये सर को ज़मीन पर रख दिया जाये इस तरह नमाज़ आपकी रूहानी गिज़ा बन जायेगी और आपको नमाज़ पढ़े बगैर अच्छा नहीं लगेगा और आप नमाज़ के आदी बन जायेंगे और नमाज़ आपके कामों में सबसे अहम काम और आपकी ज़िन्दगी का सबसे अहम हिस्सा बन जायेगी! और नमाज़ी बनकर वही रह सकता है जो समाज़ का दुनियां के हर काम से ज़्यादा ज़रूरी समझकर ज़िन्दगी गुज़ारे और इसमें शक भी क्या है नमाज़ अल्लाह की याद है, नमाज़ इस्लाम का निशान, मोमिन की मेराज और उसकी पहचान है और दिल वालो से पूछो तो ज़मीन के चेहरे पर नमाज़ के अलावा और है ही क्या और यह हकीक़त अभी नहीं तो मरते ही खुलकर सामने जा जायेगी।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 14 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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         *↳ नमाज़ी बनने की कुछ तरकीबें ↲*

╭┈► 4) अगर नमाज़ी बनने और दीन की बातों पर क़ायम रहने में कभी आप को कुछ परेशानी और मुसीबत का सामना करना पड़ जाये तो घबराना नहीं चाहिये, थोड़ी देर की परेशानी लम्बे टाईम के लिये उठाना ही पड़ती है, ज़िन्दगी भर की मुलाज़मत, नौकरी और तनख्वा हासिल करने के लिये स्कूलों के बच्चे तालीम हासिल करने, इम्तिहान पास करने के लिये कितनी परेशानियों से गुज़रते हैं कि चन्द दिनों की परेशानी ज़िन्दगी भर के लिये आसानी होगी, इलाज व आपरेशन की मंजिलें बीमारों के लिये कितनी कठिन होती हैं लेकिन चन्द दिनों की बड़ी से बड़ी तकलीफ़ ज़िन्दगी भर का आराम पाने के लिये इंसान झेल जाता है तो अल्लाह तआला को राज़ी करने और उसके दीन पर चलने में हमे कोई परेशानी आ जाये तो इसके ज़रिये सब दिन की जन्नत का आराम हमें मिलेगा तो इसमें कौन सी हैरत की बात है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 15 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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            *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं लेकिन उनके बदन, कपड़े, लिबास में या नमाज़ पढ़ने के तौर तरीक़ों में कोई छोटी मोटी कमी कोताही रह जाती हो ऐसे लोगों को प्यार व मुहब्बत से समझाना चाहिये सिर्फ़ फ़तवे लगाने 'डराने चिल्लाने और झिड़कने से बचना चाहिये, प्यार व मुहब्बत से समझायें अगर मान जायें तो ठीक न मानें तो जैसी पढ़ते हो पढ़ने दें मामूली खामियों और छोटी मोटी गलतियों और कोताहियों के साथ नमाज़ पढ़ने वाले बिल्कुल न पढ़ने वालों से बहुत बेहतर हैं कई लोगों को मैंने देखा कि वह उनसे कुछ नहीं बोलते जो बिल्कुल नमाज़ पढ़ते ही नहीं और जो नमाज़ पढ़ने मस्जिद में आ गया हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाते हैं और मामूली कमियों को देख कर सीधे सीधे कह देते हैं तुम्हारी नमाज़ नहीं होगी।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 16 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► यहां तक कि कई लोग यह कहते भी सुने गये कि दाढ़ी मुंडाने वाले की नमाज़ नहीं होगी हालांकि यह गलत परोपगंडा है, कुरआनो हदीस में या किसी आलिम की किताब में ऐसा कहीं नहीं लिखा है यह सब गढ़ी हुई बातें है, और अगर आप दीन की तबलीग करना चाहते हैं तो जो लोग दाढ़ियां नहीं रखते उन्हे दाढ़ी बढ़ाने की तरगीब दिलयाइये लेकिन यह न कहिये कि दाढ़ी नहीं है तो नमाज़ नहीं होगी यह कहना दाढ़ी रखवाना नहीं है बल्कि नमाज़ भी छुड़वाना है मैंने बहुत से लोगों को देखा जब नमाज़ी बने तो दाढ़ी वाले न थे बाद में नमाज़ की बरकत से दाढ़ी वाले भी हो गये और बेशक नमाज़ हर बुराई और बे हयाई से रोकने वाली है। इसी लिये गलत और बुरे लोगों को भी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से रोकना नहीं चाहिये, उन पर झिड़क कर फ़तवे नहीं लगाना चाहिये, नरम लहजे में समझाने की कोशिश करना चाहिये, हर वक़्त की ज़्यादा फ़तवे बाज़ी और टोका टाकी नुक्सानदह साबित होती है।...✍🏻

*📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 16-17 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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             *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► सरकार आला इमाम अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते है आवाम जिस तरह ख़ुदा व रसूल का नाम ए पाक ले ग़नीमत है।

📕 फतावा रज़विया जिल्द 8 सफह 374

╭┈► कुछ अनपढ़ जाहिल मुखालिफ़े शरअ पीर यह परोपगंडा करते है जब नमाज़ में ध्यान नहीं लगता तो ऐसी पढ़ने से न पढ़ना अच्छा यह भी बे नमाज़ी बनाने की एक शैतानी चाल है। सही बात यह है कि नमाज़ में दिलो दिमाग को भी अल्लाह तआला की तरफ़ लगाना चाहिये और ध्यान में उसी को रखने की कोशिश करना चाहिये लेकिन इसके बावजूद भी अगर दिमाग़ इधर उधर चला जाता है तब भी नमाज़ नहीं छोड़ना चाहिये, कुछ न सही कम से कम अल्लाह के प्यारे महबूब सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की अदाओं की नकल तो है अच्छ' को अच्छे की नकल भी अच्छी होती है असल के सदके में नक़ल भी मकबूल हो जाती है! अल्लाह बहुत बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 17 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► जगह जगह गांव शहर, कस्बो, मुहल्लों और बस्तियों में नमाज़ी बनाने और दीन की ज़रूरी बातें सिखाने के लिये महीने महीने भर के या हफ्ते भर के कैम्प लगाये जायें और उनमें मौलवियों आलिमों को मुकर्रर किया जाये जो वहां आने वालों को नमाज़े सिखायें और उन मौलवियों को अच्छी उजरत बतौर नज़राना दी जाये इसके अलावा भी मस्जिदों के इमामो और बच्चों को दीन की तालीम देने वालों को खूब खुशहाल किया जाये जो लोगों को दीन सिखाते हों और मस्जिदों की देखभाल करते हों उनमें नमाजें पढ़ाते हों या अज़ान देते हों ऐसे लोगों को ख़ुश रखना और उन पर र्ख़चा करना उनकी ख़िदमत करना हर कारे ख़ैर में ख़र्च करने से ज़्यादा सवाब का काम है जो ख़ुदा के घरों को आबाद रखें जो दीन फैलायें उन्हे आप खुशहाल कीजिये।

╭┈► इसके अलावा मस्जिदों ही में बाद नमाज़ मग़रिब आधा एक घण्टे के मदरसे तालीमी मजलिसें मनअक़िद की जायें जिनमे जो लोग अभी तक नामज़े याद नहीं कर सके उन्हें नामज़े याद करायी जायें और जो कुरआन न पढ़ सकते हों उन्हें क़ुरआन पढ़ाया जाये उर्दू और दीनियात की तालीम भी होना चाहिये मस्जिदों के इमामों से भी यह काम लिया जा सकता है उन्हे भी अच्छे नजराने दिये जायें जलसों कॉन्फेन्सों में ज़्यादा ख़र्च करने के बजाये इन सब कामों की तरफ़ तवज्जो दी जाये तो दीन व सुन्नियत का ज़्यादा फ़ायदा होगा।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 18 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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               *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► एक ज़रूरी बात यह भी जान लेना चाहिये कि आजकल सुन्नी मुसलमानों मे पीरी मुरीदी व ख़ानक़ाही सिलसिलों के झगड़े जोरों पर हैं इसकी एक ख़ास वजह यह भी है कि अल्लाह और उसके रसूल का ज़िक्र कम होने लगा अपने अपने मौलवियों, पीरों, बुजुर्गों का जितना ज़िक्र होना इसकी एक ख़ास दुआ वजह यह भी है कि अल्लाह और उसके रसूल का ज़िक्र कम होने लगा अपने अपने मौलवियों, पीरों, बुजुर्गों का जितना ज़िक्र होना चाहिये उससे कुछ ज़्यादा होने लगा उनकी तारीफों में लोग हद से आगे बड़ने लगे हैं।

╭┈► ख़ुदा और उसके रसूल की तारीफ़ और उनके ज़िक्र में उन्हें कोई लज्ज़त और मज़ा नही रह गया हर वक़्त जहां बैठते हैं अपने अपने बुजुर्गों का ज़िक्र छेड़ देते हैं और उनकी करामतें सुनाने लगते हैं सही बात यह है कि बुजुर्गों को भी याद रखना चाहिये और उनकी यादगार भी मनाना चाहिये लेकिन चलते फिरते उठते बैठते, सोते जागते, खाते पीते हर वक़्त आम तौर से आदतन पब्लिक लेबल पर स्टेजों वगैरह से ज़्यादा तारीफ़ और ज़िक्र अल्लाह और उसके रसूल का ही होना चाहिये और यह ही असल इस्लाम है और इसी को सिखाने और बताने के लिये नबी रसूल, पीर वली और बुजुर्ग आये हैं।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 19 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► कुछ लोग फालतू ग़ैर ज़रूरी या कम ज़रूरी बातों में एक दूसरे से बहसो मुबाहसे करते हैं ख़ुद भी उलझते हैं दूसरों को भी उलझाते हैं फालूतू बातों की पूछा पाछी में लगे रहते हैं यह सब लोग भी वही होते हैं जिनका ध्यान अल्लाह तआला उसकी इबादत और उसके ज़िक्र व शुक्र और उसके क़ुरआन की तिलावत और नबी ﷺ पर दुरूद पढ़ने में नहीं लगता खाली रहते हैं और बे ज़रूरी बातों में अपना और दूसरों का वक़्त ज़ाय करते हैं खुदा-ए-तआला हर मुसलमान को उनके शर से महफूज़ फ़रमाये और हम सब को ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त ज़िक्र शुक्र, नमाज़ व इबादत और कुरआन की तिलावत में गुज़ारने की तौफीक़ अता फरमायें! आमीन

╭┈► क़ौम के नमाज़ी बनने और नमाज़ी बन कर रहने के लिये मस्जिदों का निज़ाम दुरूस्त रखना भी ज़रूरी है आजकल मस्जिदें फितने, फसाद और खुराफातों की जगह बनती जा रही हैं भले सच्चे नमाज़ियों को मजबूरन कभी कभी मस्जिदें छोड़ना पड़ जाती हैं हर आदमी अपनी अपनी चलाने की कोशिश करता कोशिश करता है ख़ासकर इमाम और मुक़तदियों के दरमियान दूरी बढ़ती जा रही है, इसकी ख़ास वजह यह है कि हर एक दूसरे की कमियां खामियां टटोलता देखता है। उनका चर्चा करता है ख़ुद अपनी ग़लतियां कोताहियां किसी को नज़र नहीं आती।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 20 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► मैं कहता हूं थोड़ी बहुत कमियां सब में होती है दुनिया एक दूसरे का निबाहने दूसरों की खराब बातों और आदतों को बर्दाश्त करने और उन पर सबर करने का नाम है और दुनिया का निज़ाम तभी चल सकता है जब हम आपस में अपने मां बाप, बाल-बच्चों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों इमामों और मुक़तदियों की इन बातों को भी बर्दाश्त करें जो हमारे मिज़ाज के खिलाफ़ हैं। अगर शरअई खामियां हों तो मुनासिब तरीक़े से उनका तदारूक करें लड़ाई झगड़ों फितनों और फसादात के ज़रिये नहीं मैंने इस बारे में खुदाये तआला की तौफीक से एक बाकायदा किताब लिखी है जिसका नाम है "इमाम और मुक़तदी" इसको पढ़ना और दूसरा को पढ़वाना निहायत जरूरी है। हासिल करे अहबाब और दोस्तों को तोहफे में दीनी किताबें देने का माहौल बनायें बड़ा सवाब का काम है।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 20 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► मैंने देखा कि किसी मस्जिद में बाकायदा ख़ूब एहतमाम के साथ। पांचों वक़्त जमाअत की पाबन्दी हो रही है इमाम साहब भी काफ़ी हद तक मुनासिब हैं और बाज़ बाज़ जगह तो बहुत खूब अच्छे आलिम, काबिल और बासलीक़ा हैं नमाज़ बाजमाअत की रौनक़ उसका हुस्न और चमक देखकर इबलीस, शैतान के पेट में मरोड़ पैदा होती है वह नमाज़ियों ही में से किसी के पेट और दिमाग में घुसकर अपनी जगह बनाता है और इमाम साहब का मुखालिफ़ बनाकर वह काम करता है कि फिर उस नमाज़ी के होते हुये शैतान की ज़रूरत नहीं रहती वह हाजी नमाज़ी नमाज़ पढ़ते में भी यही सोचता है कि इमाम साहब के मुखालिफ़ और अपने साथी कैसे बढ़ाऊं भले से मस्जिद वीरान हो लेकिन इमाम साहब का निकालना ज़रूरी है, दुनिया नाराज़ हो लेकिन शैतान तो खुश हो ही जायेगा।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 21 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► इस सिलसिले में एक बात यह भी जान लेना चाहिए कि मस्जिदों में नमाज़ियों की ज़रूरतों और सहूलियतों के लिये, इमाम और मोअज़्जिन वगैरह की तनख्वाह नजराने और उनकी मदद में जो रूपया ख़र्च होता है इस में हर कारे ख़ैर से ज़्यादा सवाब है। और मस्जिदों को आबाद रखना इस्लाम में से अच्छा काम है कुछ लोगों को इमामों मोअज़्जिनों की आमदनी बहुत खलती है उन्हें खुशहाल देखना इन्हें गवारह नहीं कोई लखपति बने करोड़पति या अरबपति कहीं कोई ज़िक्र नहीं लेकिन किसी बेचारे ग़रीब मस्जिद के इमाम को निकाह पढ़ाने के बदले में अगर किसी दिन हज़ार पांच सौ रूपये मिल गये तो मुतावलली साहब से लेकर मुक़तदियों तक हर जगह चर्चा है और कई लोगों के पेट में दर्द होने लगता है जब तक मस्जिद या मदरसे के नाम से बटवारा न कर लें उन्हें रात को नींद नहीं आयेगी क्या हाल हो गया हमारी क़ौम का ख़ुद अपने ही पेशवाओं दीन के रहबरों से यह चिड़ने लगे और उनके खाने पीने पहनने ओढ़ने उनके कलेजों में चुबने लगे।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 22 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► नमाज़ी बनने के लिये सब से ज़्यादा ज़रूरी यह है कि जिसके लिय नमाज़ पढ़ी जाती है उसी ख़ुदा-ए-क़ादिरो क़य्यूम से रो रो कर दुआ करें या अल्लाह तू मुझको नमाज़ी बनकर रहने और नमाज़ी बन कर मरने की तौफीक़ अता फरमा जब किसी वक़्त की नमाज़ पढ़ लें तो फौरन उसके बाद जो दुआ मांगते हैं उसमें यह दुआ भी शामिल कर लें।
 
╭┈► ऐ अल्लाह जिस तरह तूने यह नमाज़ पढ़ने की तौफीक़ व ताक़त अता फरमाई ऐसे ही आईन्दा भी मुझसे नमाज़ पढ़वा ले, वह ऐसा रहीम करीम परवर दिगार है कि ख़ुद ही अपने बन्दों को अपनी इबादत अपने ज़िक्र व शुक्र की तौफीक़ देता है फिर खुद ही उस पर सवाब व जज़ा अता फरमता है और अपने करम से क़बूल फ़रमाता है और सब कुछ उसी का है उसी तक है उसी से है उसके सिवा न कोई माबूद, न मक़सूद, और न मौजूद और उसके सिवा कोई कुछ भी नहीं, जो उसका है वही कुछ है और जो उसका नहीं वह कुछ भी नही उसकी जात की कोई हद नहीं उसकी हक़ीक़त से पूरे तौर पर कोई वाक़िफ़ नहीं अक़ल उसकी हक़ीक़त को पा नहीं सकती और उसकी जात अक़ल में आ नहीं सकती।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 23 📚*

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            ❝ ख़ुदा को याद कर प्यारे ❞
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              *↳ एक ज़रूरी मसवरा ↲*

╭┈► अल्लाह तआला वह है जो मौत व फ़ना से बिल्कुल पाक है और हमेशा से है और हमेशा रहेगा और अल्लाह तआला वाले वह हैं जो मौत व फ़ना के बाद ज़िन्दा हैं अपने ज़िक्र व फ़िक्र और इबादत करने वालो को वह ऐसे ही मरतबे अता फ़रमाता है और कसरत से नमाज़ पढ़ने वालो को अपने कुर्ब और नज़दीकी से नवाज़ता है।

╭┈► बेशुमार अनगिनत दुरूदो सलाम नाज़िल हों उसके महबूब पैगम्बर ﷺ पर जो सब नमाज़ पढ़ने वालों और अल्लाह तआला का ज़िक्र करने वालों के सरदार आक़ा ﷺ और पेशवा हैं उनकी आल और असहाब और सब अम्बिया और औलिया पर जो मखलूक़ में सबसे ज़्यादा अल्लाह तआला का ज़िक्र करने वाले हैं।...✍🏻

  *📬 ख़ुदा को याद कर प्यारे सफ़ह 24 📚*

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