Wednesday, 10 August 2022

इस्लामी तरबियत


 

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     *❝ औरत इस्लाम से पहले #01 ❞*  
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࿐  इस्लाम से पहले औरतों का हाल बहुत ख़राब था दुन्या में औरतों की कोई इज्जत व वुकअ़त ही नहीं थी। मर्दो की नज़र में इस से ज़ियादा औरतों की कोई हैषिय्यत ही नहीं थी कि वोह मर्दो की नफ़्सानी ख्वाहिश पूरी करने का एक "खिलौना" थी। औरतें दिन रात मर्दो की किस्म किस्म की ख़िदमत करती थीं और तरह तरह के कामों से यहां तक कि दूसरों की मेहनत मजदूरी कर के जो कुछ कमाती थीं वोह भी मर्दो को दे दिया करती थीं मगर ज़ालिम मर्द फिर भी इन औरतों की कोई कद्र नहीं करते थे बल्कि जानवरों की तरह इन को मारते पीटते थे। 

࿐  ज़रा ज़रा सी बात पर औरतों के कान नाक वगैरा आ'ज़ा काट लिया करते थे और कभी क़त्ल भी कर डालते थे। अरब के लोग लड़कियों को जिन्दा दफ़्न कर दिया करते थे और बाप के मरने के बाद उस के लड़के जिस तरह बाप की जाइदाद और सामान के मालिक हो जाया करते थे इसी तरह अपने बाप की बीवियों के मालिक बन जाया करते थे और इन औरतों को ज़बरदस्ती लौंडियां बना कर रख लिया करते थे। औरतों को इन के मां-बाप भाई-बहन या शोहर की मीराष में से कोई हिस्सा नहीं मिलता था न औरतें किसी चीज़ की मालिक हुवा करती थीं अरब के बा'ज़ कबीलों में येह ज़ालिमाना दस्तूर था कि बेवा हो जाने के बाद औरतों को घर से बाहर निकाल कर एक छोटे से तंगो तारीक झोंपड़े में एक साल तक कैद में रखा जाता था वोह झोंपड़े से बाहर नहीं निकल सकती थीं न गुस्ल करती थीं न कपड़े बदल सकती थीं,खाना-पानी और अपनी सारी जरूरतों को इसी झोपड़े में पुरा करती थी। 
                          *الله اکبر*

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  40 📚*

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     *❝ औरत इस्लाम से पहले #02 ❞*  
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࿐  बहुत सी औरतें तो घुट घुट कर मर जाती थीं और जो ज़िन्दा बच जाती थीं तो एक साल के बाद इन के आंचल में ऊंट की मेंगनियां डाल दी जाती थीं और इन को मजबूर किया जाता था कि वोह किसी जानवर के बदन से अपने बदन को रगड़ें फिर सारे शहर का इसी गन्दे लिबास में चक्कर लगाएं और इधर उधर ऊंट की मेंगनियां फेंकती हुई चलती रहें.! येह इस बात का एलान होता था कि इन औरतों की इद्दत ख़त्म हो गई है इसी तरह की दूसरी भी तरह तरह की ख़राब और तक्लीफ़ देह रस्में थीं जो गरीब औरतों के लिये मुसीबतों और बलाओं का पहाड़ बनी हुई थी.!
      
࿐  और बेचारी मुसीबत की मारी औरतें घुट घुट कर और रो रो कर अपनी ज़िन्दगी के दिन गुज़ारती थीं, हिन्दूस्तान में तो बेवा औरतों के साथ ऐसे ऐसे दर्दनाक ज़ालिमाना सुलूक किये जाते थे कि जिन को सोच सोच कर कलेजा मुंह को आ जाता है! गरज पूरी दुनिया में बे रहम और ज़ालिम मर्द औरतों पर ऐसे ऐसे जुल्मो सितम के पहाड़ तोड़ते थे कि इन जुल्मों की दास्तान सुन कर एक दर्दमन्द इन्सान के सीने में रंजो गम से दिल टुकड़े टुकड़े हो जाता है! इन मज़लूम और बे कस औरतों की मजबूरी व लाचारी का येह आलम था कि समाज में न औरतों के कोई हुकूक थे न इन की मज्लूमिय्यत पर दादो फ़रियाद के लिये किसी कानून का कोई सहारा था! 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  41 📚*

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    *❝ औरत इस्लाम से पहले #03 ❞*  
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࿐  हज़ारों बरस तक येह जुल्मो सितम की मारी दुख्यारी औरतें अपनी इस बे कसी और लाचारी पर रोती बिल-बिलाती और आंसू बहाती रहीं मगर दुन्या में कोई भी इन औरतों के ज़ख्मों पर मर्हम रखने वाला और इन की मज्लूमिय्यत के आंसूओं को पौंछने वाला दूर दूर तक नज़र नहीं आता था न दुन्या में कोई भी इन के दुख -दर्द की फ़रियाद सुनने वाला था न किसी के दिल में इन औरतों के लिये बाल बराबर भी रहूमो करम का कोई जज्बा था औरतों के इस हाले ज़ार पर इन्सानिय्यत रंजो गम से बे चैन और बे क़रार थी! 

࿐   मगर इस के लिये इस के सिवा कोई चारए कार नहीं था कि वोह रहमते खुदावन्दी का इन्तिज़ार करे कि अर हमुर्राहिमीन गैब से कोई ऐसा सामान पैदा फ़रमा दे कि अचानक सारी दुन्या में एक अनोखा इन्किलाब नुमूदार हो जाए और लाचार औरतों का सारा दुख-दर्द दूर हो कर इन का बेड़ा पार हो जाए! 

࿐   चुनान्चे रहमत का आफ़्ताब जब तुलूअ हो गया तो सारी दुन्या ने अचानक येह महसूस किया कि 

*जहां तारीक था,जुल्मत कदा था,सख़्त काला था.!* 

*कोई पर्दे से क्या निकला कि घर घर में उजाला था.!*

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  41 📚*

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      *❝ औरत इस्लाम के बाद #01 ❞*  
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࿐  जब हमारे रसूले रहमत हज़रते मुहम्मदे मुस्तफ़ा ﷺ खुदा की तरफ़ से “दीने इस्लाम" ले कर तशरीफ़ लाए तो दुन्या भर की सताई हुई औरतों की किस्मत का सितारा चमक उठा। और इस्लाम की ब दौलत ज़ालिम मर्दो के जुल्मो सितम से कुचली और रौंदी हुई औरतों का दरजा इस कदर बुलन्दो बाला हो गया कि इबादात व मुआमलात बल्कि ज़िन्दगी और मौत के हर मर्हले और हर मोड़ पर औरतें मर्दो के दोश ब दोश खड़ी हो गई और मर्दो की बराबरी के दरजे पर पहुंच गई मर्दो की तरह औरतों के भी हुकूक मुकर्रर हो गए और इन के हुकूक की हिफ़ाज़त के लिये खुदावन्दी कानून आस्मान से नाज़िल हो गए और इन के हुकूक दिलाने के लिये इस्लामी कानून की मा तहती में अदालतें काइम हो गई। 

࿐   औरतों को मालिकाना हुकूक हासिल हो गए चुनान्चे औरतें अपने महर की रकमों, अपनी तिजारतों, अपनी जाइदादों की मालिक बना दी गई और अपने मां-बाप, भाई-बहन अवलाद और शोहर की मीराषों की वारिष करार दी गई। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 41 📚*


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    *❝ औरत इस्लाम के बाद #02 ❞*  
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࿐  गरज वोह औरतें जो मर्दो की जूतियों से ज़ियादा ज़लीलो ख्वार और इन्तिहाई मजबूरो लाचार थीं  वोह मर्दो के दिलों का सुकून और इन के घरों की मलिका बन गई!

࿐  चुनान्चे कुरआने मजीद ने साफ़ साफ़ लफ़्ज़ों में ए'लान फ़रमा दिया कि:-
*"خَلَقَ لَکُمْ مَّنْ اَنْفُسِکُمْ اَزْوَاجََالَّتَسْکُنُوْااِلَیْھَاوَجَعَلَ بَیْنَکُمْ مَّوَدَّةََوَّرَحْمَةََ"*

"अल्लाह ने तुम्हारे लिये तुम्हारी जिन्स से बीवियां पैदा कर दीं ताकि तुम्हें इन से तस्कीन हासिल हो और उस ने तुम्हारे दरमियान महब्बत व शफ्कत पैदा कर दी।"

࿐  अब कोई मर्द बिला वजह न औरतों को मार-पीट सकता है, न इन को घरों से निकाल सकता है और न कोई इन के मालो अस्बाब या जाइदादों को छीन सकता है बल्कि हर मर्द मज़हबी तौर पर औरतों के हुकूक अदा करने पर मजबूर है, चुनान्चे खुदावन्दे कुद्दुस ने कुरआने मजीद में फ़रमाया कि:-
      *"وَلَھُنَّ مِشْلُ الَّذِیْ عَلَیْھِنَّ بِالْمَعْرُوْفِ"*

"औरतों के मर्दो पर ऐसे ही हुकूक हैं जैसे मर्दो के औरतों पर अच्छे सुलूक के साथ।" 

࿐   और मर्द के लिये फ़रमान जारी फ़रमा दिया कि:-
                *"وَعَاشِرُوْھُنَّ بِالْمَعْرُوَفِ"*

 "और अच्छे सुलूक से औरतों के साथ ज़िन्दगी बसर करो।" 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 42 📚*


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    *❝ औरत इस्लाम के बाद #03 ❞*  
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࿐  तमाम दुन्या देख ले कि दीने इस्लाम ने मियां-बीवी की इजतिमाई ज़िन्दगी की सदारत अगर्चे मर्द को अता फ़रमाई है और मर्दो को औरतों पर हाकिम बना दिया है ताकि निज़ामे खानादारी में अगर कोई बड़ी मुश्किल आन पड़े तो मर्द अपनी खुदादाद ताक़त व सलाहिय्यत से इस मुश्किल को हल कर दे लेकिन इस के साथ साथ जहां मर्दो के कुछ हुकूक औरतों पर वाजिब कर दिये हैं, वहां औरतों के भी कुछ हुकूक मर्दो पर लाज़िम ठहरा दिये गए हैं।

࿐   इस लिये औरत और मर्द दोनों एक दूसरे के हुकूक में जकड़े हुए हैं ताकि दोनों एक दूसरे के हुकूक को अदा कर के अपनी इजतिमाई ज़िन्दगी को शादमानी व मसर्रत की जन्नत बना दें। और निफ़ाक़ व शिकाक़ और लड़ाई झगड़ों के जहन्नम से हमेशा के लिये आज़ाद हो जाएं। औरतों को दरजात व मरातिब की इतनी बुलन्द मंज़िलों पर पहुंचा देना येह हुजूर नबिय्ये रहमत ﷺ का वोह एहसाने अज़ीम है कि तमाम दुन्या की औरतें अगर अपनी ज़िन्दगी की आखिरी सांस तक इस एहसान का शुक्रिया अदा करती रहें फिर भी वोह इस अज़ीमुश्शान एहसान की शुक्र गुज़ारी के फ़र्ज़ से सुबुक दोश नहीं हो सकतीं।  *سبحان الله तमाम दुन्या के मोहसिने आ'जम हुजूर नबिय्ये अकरम ﷺ की शाने रहमत का क्या कहना ❣️*

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 43 📚*
 

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           *❝  औरत का  बचपन #01  ❞*  
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࿐  औरत बचपन में अपने मां-बाप की प्यारी बेटी कहलाती है इस ज़माने में जब तक वोह ना बालिग बच्ची रहती है शरीअत की तरफ़ से न उस पर कोई चीज़ फ़र्ज़ होती है न उस पर किसी किस्म की ज़िम्मेदारियों का कोई बोझ होता है!

࿐   वोह शरीअत की पाबन्दियों से बिल्कुल आज़ाद रहती है और अपने मां-बाप की प्यारी और लाडली बेटी बनी हुई खाती पीती, पहनती ओढ़ती और हंसती खेलती रहती है और वोह इस बात की हक़दार होती है कि मां-बाप, भाई-बहन और सब रिश्तेनाते वाले उस से प्यार व महब्बत करते रहें!

࿐   और उस की दिल बस्तगी और दिलजोई में लगे रहें और उस की सिह्हत व सफ़ाई और उस की आफ़िय्यत और भलाई में हर किस्म की इन्तिहाई कोशिश करते रहें ताकि वोह हर किस्म की फ़िक्रों और रंजों से फ़ारिगुल बाल और हर वक़्त खुश व खुर्रम और खुशहाल रहे!

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 45 📚*


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          *❝  औरत का बचपन #02 ❞*  
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࿐  जब वोह कुछ बोलने लगे तो मां-बाप पर लाज़िम है कि उस को अल्लाह व रसूल ﷺ का नाम सुनाएं फिर उस को कलिमा वगैरा पढ़ाएं जब वोह कुछ और ज़ियादा समझदार हो जाए तो उस को सफ़ाई सुथराई के ढंग और सलीके सिखाएं!

࿐   उस को निहायत प्यार व महब्बत और नर्मी के साथ इन्सानी शराफ़तों की बातें बताएं और अच्छी अच्छी बातों का शौक़ और बुरी बातों से नफ़रत दिलाएं जब पढ़ने के काबिल हो जाए तो सब से पहले उस को कुरआन शरीफ़ पढ़ाएं। 

࿐   जब कुछ और ज़ियादा होशियार हो जाए तो उस को पाकी व नापाकी वुजू व गुस्ल वगैरा का इस्लामी तरीका बताएं और हर बात और हर काम में उस को इस्लामी आदाब से आगाह करते रहें।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 45 📚*


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           *❝  औरत का  बचपन #03 ❞*  
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࿐   जब वोह सात बरस की हो जाए तो उस को नमाज़ वगैरा ज़रूरियाते दीन की बातें ता'लीम करें और पर्दे में रहने की आदत सिखाएं और बरतन धोने, खाने पीने, सीने पिरोने और छोटे मोटे घरेलू कामों का हुनर बताएं और अमली तौर पर उस से येह सब काम लेते रहें और उस की काहिली और बे परवाई और शरारतों पर रोक टोक करते रहें और ख़राब औरतों और बद चलन घरानों के लोगों से मेल-जोल पर पाबन्दी लगा दें और उन लोगों की सोहबत से बचाते रहें। 

࿐   आशिकाना अश्आर और गीतों और आशिकी मा'शूकी के मज़ामीन की किताबों से, गाने बजाने और खेल तमाशों से दूर रखें ताकि बच्चियों के अख़्लाक व आदात और चाल चलन ख़राब न हो जाएं। 

࿐   जब तक बच्ची बालिग न हो जाए इन बातों का ध्यान रखना हर मां-बाप का इस्लामी फ़र्ज़ है अगर मां-बाप अपने इन फ़राइज़ को पूरा न करेंगे तो वोह सख़्त गुनाहगार का हक़दार होंगे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 45 📚*


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     *❝ औरत जब बालिग हो जाए # 01 ❞*  
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࿐  जब औरत बालिग हो गई तो अल्लाह व रसूल ﷺ की तरफ़ से शरीअत के तमाम अहकाम की पाबन्द हो गई अब उस पर नमाज़, रोज़ा और हज व ज़कात के तमाम मसाइल पर अमल करना फ़र्ज़ हो गया और अल्लाह तआला के हुकूक और बन्दों के हुकूक को अदा करने की वोह ज़िम्मेदार हो गई अब उस पर लाज़िम है कि वोह खुदा के तमाम फ़र्जों को अदा करे और छोटे बड़े तमाम गुनाहों से बचती रहे। 

࿐   और येह भी उस के लिये ज़रूरी है कि अपने मां-बाप और बड़ों की ता'ज़ीम व ख़िदमत बजा लाए और अपने छोटे भाइयों बहनों और दूसरे अज़ीज़ो अकारिब से प्यार व महब्बत करे।

࿐   पड़ोसियों और रिश्तेनाते के तमाम छोटों, बड़ों के साथ उन के मरातिब व दरजात के लिहाज़ से नेक सुलूक और अच्छा बरताव करे। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 46 📚*

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     *❝ औरत जब बालिग हो जाए # 02 ❞*  
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࿐  अच्छी अच्छी आदतें सीखे और तमाम ख़राब आदतों को छोड़ दे और अपनी ज़िन्दगी को पूरे तौर पर इस्लामी ढांचे में ढाल कर सच्ची पक्की पाबन्दे शरीअत और ईमान वाली औरत बन जाए और इस के साथ साथ मेहनत व मशक्कत और सब्रो रिज़ा की आदत डाले!

࿐   मुख़्तसर येह कि शादी के बाद अपने ऊपर आने वाली तमाम घरेलू ज़िम्मेदारियों की मालूमात हासिल करती रहे कि शोहर वाली औरत को किस तरह अपने शोहर के साथ निबाह करना और अपना घर संभालना चाहिये वोह अपनी मां और बड़ी बूढ़ी औरतों से पूछ पूछ कर इस का ढंग और सलीका सीखे और अपने रहन-सहन और चाल-चलन को इस तरह सुधारे और संवारे कि न शरीअत में गुनाहगार ठहरे न बरादरी व समाज में कोई इस को ताना मार सके।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 46 📚* 

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     *❝ औरत जब बालिग हो जाए # 03 ❞*  
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࿐   खाने पीने, पहनने ओढ़ने, सोने जागने, बात चीत गरज़ हर काम हर बात में जहां तक हो सके खुद तक्लीफ़ उठाए मगर घर वालों को आराम व राहत पहुंचाए, बिगैर मां-बाप की इजाज़त के न कोई सामान अपने इस्ति'माल में लाए न किसी दूसरे को दे न घर का एक पैसा या एक दाना मां-बाप की इजाज़त के बिगैर ख़र्च करे न बिगैर मां-बाप से पूछे किसी के घर या इधर उधर जाए गरज़ हर काम,हर बात में मां की इजाज़त और रिज़ामन्दी को अपने लिये ज़रूरी समझे।

࿐    खाने, पीने, सीने पिरोने, अपने बदन, अपने कपड़े और मकान व सामान की सफ़ाई गरज़ सब घरेलू काम धन्दों का ढंग सीख ले और इस की अमली आदत डाल ले ताकि शादी के बाद अपने सुसराल में नेकनामी के साथ ज़िन्दगी बसर कर सके और मैके वालों और सुसराल वालों के दोनों घर की चहीती और प्यारी बनी रहे।

࿐    पर्दे का ख़ास तौर पर ख़याल और ध्यान रखे गैर महरम मर्दो और लड़कों के सामने आने जाने, ताक झांक और हंसी मज़ाक़ से इन्तिहाई परहेज़ रखे। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 47 📚*  

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     *❝ औरत जब बालिग हो जाए # 04 ❞*  
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࿐  आशिकाना अश्आर,अख़्लाक़ को खराब करने वाली किताबों और रसाइल व अख़्बारात को हरगिज़ न देखे बद किरदार और बे हया औरतों से भी पर्दा करे और हरगिज़ कभी इन से मेल जोल न रखे खेल तमाशों से दूर रहे और मज़हबी किताबें खुसूसन सीरतुल मुस्तफ़ा व सीरते रसूले अरबी, तम्हीदे ईमान और मीलाद शरीफ़ की किताबें मषलन "जीनतुल मीलाद" वगैरा उ-लमाए अहले सुन्नत की तस्नीफ़ात पढ़ती रहे। 

࿐   फ़र्ज़ इबादतों के साथ नफ्ली इबादतें भी करती रहे, मषलन तिलावते कुरआन व तस्बीहे फ़ातिमा मीलाद शरीफ़ पढ़ती पढ़ाती रहे और ग्यारहवीं शरीफ़ व बारहवीं शरीफ़ व मोहर्रम शरीफ़ वगैरा की नियाज़ व फ़ातिहा भी करती रहे कि इन आ'माल से दुन्या व आख़िरत की बे शुमार बरकतें हासिल होती हैं। 

࿐   हरगिज़ हरगिज़ बद अकीदा लोगों की बात न सुने और अहले सुन्नत व जमाअत के अकाइद व आ'माल पर निहायत मज़बूती के साथ काइम रहे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 47 📚* 

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             *❝  औरत शादी के बाद #01 ❞*  
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࿐  *निकाह :-* जब लड़की बालिग हो जाए तो मां-बाप पर लाज़िम है कि जल्द अज़ जल्द मुनासिब रिश्ता तलाश कर के उस की शादी कर दें रिश्ते की तलाश में खास तौर से इस बात का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है कि हरगिज़ हरगिज़ किसी बद मज़हब के साथ रिश्ता न होने पाए बल्कि दीनदार और पाबन्दे शरीअत और मज़हबे अहले सुन्नत के पाबन्द को अपनी रिश्तेदारी के लिये मुन्तख़ब करें। 

࿐   बुखारी व मुस्लिम की हदीष में है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि औरत से शादी करने में चार चीजें देखी जाती हैं (1) दौलत मन्द (2) ख़ानदानी शराफ़त (3) खूब सूरती (4) दीनदारी 
*"लेकिन तुम दीनदारी को इन सब चीजों पर मुकद्दम समझो।"*

࿐   अवलाद की तमन्ना और अपनी ज़ात को बदकारी से बचाने की निय्यत के लिये निकाह करना सुन्नत है और बहुत बड़े अज्रो षवाब का काम है अल्लाह तआला ने कुरआन शरीफ़ में फ़रमाया कि:- “या'नी तुम लोग बे शोहर वाली औरतों का निकाह कर दो और अपने नेक चलन गुलामों और लौंडियों का भी निकाह कर दो।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  48 📚*

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       *❝  औरत शादी के बाद # 02 ❞*  
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࿐   हदीष शरीफ़ में है कि तौरात शरीफ़ में लिखा है कि जिस शख्स की लड़की जवानी कि दहलीज़ को पहुंच गई और उस ने उस लड़की का निकाह नहीं किया और वोह लड़की बदकारी के गुनाह में पड़ गई तो इस का गुनाह लड़की वाले के सर पर भी होगा।

࿐ दूसरी हदीष में है कि हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि :- "अल्लाह तआला ने तीन शख्सों की इमदाद अपने ज़िम्मए करम पर ली है। 

࿐  (1) वोह गुलाम जो अपने आका से आजाद होने के लिये किसी क़दर रकम अदा करने का अहद करे और अपने अहद को पूरा करने की निय्यत रखता हो। 

࿐  (2) खुदा की राह में जिहाद करने वाला!

࿐ (3) वोह निकाह करने वाला या निकाह करने वाली जो निकाह के जरीए हराम कारी से बचना चाहता हो।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  48 📚*

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        *❝  औरत शादी के बाद # 03 ❞*  
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࿐  *औरत :* जब तक उस की शादी नहीं होती वोह अपने मां-बाप की बेटी कहलाती है मगर शादी हो जाने के बाद औरत अपने शोहर की बीवी बन जाती है और अब उस के फ़राइज़ और उस की ज़िम्मेदारियां पहले से बहुत ज़ियादा बढ़ जाती हैं वोह तमाम हुकूक व फ़राइज़ जो बालिग होने के बाद औरत पर लाज़िम हो गए थे अब इन के इलावा शोहर के हुकूक का भी बहुत बड़ा बोझ औरत के सर पर आ जाता है जिस का अदा करना हर औरत के लिये बहुत ही बड़ा फ़रीज़ा है। 

࿐   याद रखो कि शोहर के हुकूक को अगर औरत न अदा करेगी तो उस की दुन्यावी ज़िन्दगी तबाहो बरबाद हो जाएगी और आख़िरत में वोह दोज़ख़ की भड़कती हुई आग में जलती रहेगी और उस की कब्र में सांप बिच्छू उस को डसते रहेंगे और दोनों जहां में ज़लीलो ख़्वार और तरह तरह के अज़ाबों में गिरिफ़्तार रहेगी। 

࿐  इस लिये शरीअत के हुक्म के मुताबिक़ हर औरत पर फ़र्ज़ है कि वोह अपने शोहर के हुकूक को अदा करती रहे और उम्र भर अपने शोहर की फ़रमां बरदारी व ख़िदमत गुज़ारी करती रहे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 48 📚*

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               *❝ शोहर के हुकूक #01 ❞*  
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࿐  अल्लाह तआला ने शोहरों को बीवियों पर हाकिम बनाया है और बहुत बड़ी बुजुर्गी दी है इस लिये हर औरत पर फ़र्ज़ है कि वोह अपने शोहर का हुक्म माने और खुशी-खुशी अपने शोहर के हर हुक्म की ताबेअदारी करे क्यूंकि अल्लाह तआला ने शोहर का बहुत बड़ा हक़ बनाया है याद रखो कि अपने शोहर को राजी व खुश रखना बहुत बड़ी इबादत है और शोहर को ना खुश और नाराज़ रखना बहुत बड़ा गुनाह है। 

࿐  रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि "अगर मैं खुदा के सिवा किसी दूसरे के लिये सजदा करने का हुक्म देता तो मैं औरतों को हुक्म देता कि वोह अपने शोहरों को सजदा किया करें, और रसूलुल्लाह ﷺ ने येह भी फ़रमाया है कि "जिस औरत की मौत ऐसी हालत में आए कि मरते वक़्त उस का शोहर उस से खुश हो वोह औरत जन्नत में जाएगी!

࿐  और येह भी फ़रमाया कि “जब कोई मर्द अपनी बीवी को किसी काम के लिये बुलाए तो वोह औरत अगर्चे चूलहे के पास बैठी हो उस को लाज़िम है कि वोह उठ कर शोहर के पास चली आए।

࿐  हदीष शरीफ़ का मतलब येह है कि औरत चाहे कितने भी ज़रूरी काम में मशगूल हो मगर शोहर के बुलाने पर सब कामों को छोड़ कर शोहर की ख़िदमत में हाज़िर हो जाए।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  48 📚*

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         *❝  शोहर के हुकूक #02 ❞*  
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࿐   रसूलुल्लाह ﷺ ने औरतों को येह भी हुक्म दिया कि अगर शोहर अपनी औरत को येह हुक्म दे कि पीले रंग के पहाड़ को काले रंग का बना दे और काले रंग के पहाड़ को सफ़ेद बना दे तो औरत को अपने शोहर का येह हुक्म भी बजा लाना चाहिये।

࿐  हदीस का मतलब येह है कि मुश्किल से मुश्किल और दुश्वार से दुश्वार काम का भी अगर शोहर हुक्म दे तो जब भी औरत को शोहर की ना फ़रमानी नहीं करनी चाहिये बल्कि उस के हर हुक्म की फ़रमां बरदारी के लिये अपनी ताकत भर कमर बस्ता रहना चाहियेl 

࿐  और रसूलुल्लाह ﷺ का येह भी फ़रमान है कि शोहर बीवी को अपने बिछौने पर बुलाए और औरत आने से इन्कार कर दे और उस का शोहर इस बात से नाराज़ हो कर सो रहे तो रात भर खुदा के फ़िरिश्ते उस औरत पर ला'नत करते रहते हैं।

࿐  *प्यारी बहनो!* इन हदीषों से सबक़ मिलता है कि शोहर का बहुत बड़ा हक़ है और हर औरत पर अपने शोहर का हक़ अदा करना फ़र्ज़ है शोहर के हुकूक बहुत ज़ियादा हैं इन में से नीचे लिखे हुए चन्द हुकूक बहुत ज़ियादा काबिले लिहाज़ हैं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  51 📚*

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          *❝  शोहर के हुकूक #03 ❞*  
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࿐   ❶ औरत बिगैर अपने शोहर की इजाज़त के घर से बाहर कहीं न जाए न अपने रिश्तेदारों के घर न किसी दूसरे के घर। 

࿐  ❷ शोहर की गैर मौजूदगी में औरत पर फ़र्ज़ है कि शोहर के मकान और मालो सामान की हिफ़ाज़त करे और बिगैर शोहर की इजाज़त किसी को भी न मकान में आने दे न शोहर की छोटी बड़ी चीज़ किसी को दे। 

࿐  ❸  शोहर का मकान और माल व सामान येह सब शोहर की अमानतें हैं और बीवी इन सब चीज़ों की अमीन है अगर औरत ने अपने शोहर की किसी चीज़ को जान बूझ कर बरबाद कर दिया तो औरत पर अमानत में खियानत करने का गुनाह लाज़िम होगा और इस पर खुदा का बहुत बड़ा अज़ाब होगा। 

࿐  ❹ औरत हरगिज़ हरगिज़ कोई ऐसा काम न करे जो शोहर को ना पसन्द हो। 

࿐  ❺ बच्चों की निगहदाश्त, इनकी तबियत और परवरिश खुसूसन शोहर की गैर मौजूदगी में औरत के लिये बहुत बड़ा फ़रीज़ा है। 

࿐  ❻ औरत को लाज़िम है कि मकान और अपने बदन और कपड़ों की सफ़ाई सुथराई का ख़ास तौर पर ध्यान रखे। फूहड़ मैली कुचैली न बनी रहे बल्कि बनाव सिंघार से रहा करे ताकि शोहर इस को देख कर खुश हो जाए। 

࿐  हदीष शरीफ़ में है कि “बेहतरीन औरत वोह है कि जब शोहर उस की तरफ़ देखे तो वोह अपने बनाव सिंगार और अपनी अदाओं से शोहर का दिल खुश कर दे और अगर शोहर किसी बात की कसम खा जाए तो वोह उस क़सम को पूरी कर दे और अगर शोहर गाइब रहे तो वोह अपनी जात और शोहर के माल में हिफ़ाज़त और खैर ख़्वाही का किरदार अदा करती रहे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  52 📚*

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 01 ❞*  
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࿐  याद रखो कि मियां-बीवी का रिश्ता एक ऐसा मज़बूत तअल्लुक है कि सारी उम्र इसी बंधन में रह कर ज़िन्दगी बसर करनी है। अगर मियां-बीवी में पूरा पूरा इत्तिहाद और मिलाप रहा तो इस से बढ़ कर कोई ने मत नहीं। और अगर खुदा न करे मियां-बीवी के दरमियान इख़्तिलाफ़ पैदा हो गया और झगड़े तकरार की नौबत आ गई तो इस से बढ़ कर कोई मुसीबत नहीं कि मियां-बीवी दोनों की ज़िन्दगी जहन्नम का नमूना बन जाती है और दोनों उम्र भर घुटन और जलन की आग में जलते रहते हैं। 

࿐  इस ज़माने में मियां-बीवी के झगड़ों का फ़साद इस क़दर ज़ियादा फैल गया है कि हज़ारों मर्द और हज़ारों औरतें इस बला में गिरिफ़्तार हैं और मुसलमानों के हज़ारों घर इस इख़्तिलाफ़ की आग में जल रहे हैं और मियां-बीवी दोनों अपनी ज़िन्दगी से बेज़ार हो कर दिन रात मौत की दुआएं मांगा करते हैं। इस लिये हम मुनासिब समझते हैं कि इस मकाम पर चन्द ऐसी नसीहतें लिख दें कि अगर मर्द व औरत इन पर अमल करने लगें तो अल्लाह तआला से उम्मीद है कि मियां-बीवी के झगड़ों से मुस्लिम मुआशरा पाक हो जाएगा और मुसलमानों का हर घर अम्नो सुकून और आराम व राहत की जन्नत बन जाएगा। 

࿐  *(1)* हर औरत शोहर के घर में कदम रखते ही अपने ऊपर येह लाज़िम कर ले वोह हर वक़्त और हर हाल में अपने शोहर का दिल अपने हाथ में लिये रहे और उस के इशारों पर चलती रहे अगर शोहर हुक्म दे कि दिन भर धूप में खड़ी रहो या रात भर जागती हुई मुझे पंखा झलती रहो तो औरत के लिये दुन्या व आख़िरत की भलाई इसी में है कि थोड़ी तक्लीफ़ उठा कर और सब्र कर के इस हुक्म पर भी अमल करे और किसी वक़्त और किसी हाल में भी शोहर के हुक्म की ना फ़रमानी न करे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  52 📚*

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 02 ❞*  
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࿐  *(2)*  हर औरत को चाहिये कि वोह अपने शोहर के मिज़ाज को पहचान ले और बगौर देखती रहे कि उस के शोहर को क्या क्या चीजें और कौन कौन सी बातें ना पसन्द हैं, और वोह किन किन बातों से खुश होता है और कौन कौन सी बातों से नाराज़ होता है उठने बैठने,सोने जागने,पहनने ओढ़ने और बात चीत में उस की आदत और उस का ज़ौक़ क्या और कैसा है? खूब अच्छी तरह शोहर का मिज़ाज पहचान लेने के बाद औरत को लाज़िम है कि वोह हर काम शोहर के मिज़ाज के मुताबिक़ करे हरगिज़ हरगिज़ शोहर के मिज़ाज के ख़िलाफ़ न कोई बात करे न कोई काम। 

࿐  *(3)* औरत को लाज़िम है कि शोहर को कभी जली कटी बातें न सुनाए न कभी उस के सामने गुस्से में चिल्ला चिल्ला कर बोले न उस की बातों का कड़वा तीखा जवाब दे न कभी उस को ता'ना मारे न कोसने दे न उस की लाई हुई चीज़ों में ऐब निकाले न शोहर के मकान व सामान वगैरा को हकीर बताए न शोहर के मां-बाप या उस के ख़ानदान या उस की शक्लो सूरत के बारे में कोई ऐसी बात कहे जिस से शोहर के दिल को ठेस लगे और ख्वाह म ख़्वाह उस को सुन कर बुरा लगे इस किस्म की बातों से शोहर का दिल दुख जाता है और रफ़्ता रफ़्ता शोहर को बीवी से नफ़रत होने लगती है जिस का अन्जाम झगड़े लड़ाई के सिवा कुछ भी नहीं होता यहां तक कि मियां-बीवी में ज़बरदस्त बिगाड़ हो जाता है जिस का नतीजा येह होता है कि या तो तलाक़ की नौबत आ जाती है या बीवी अपने मैके में बैठ रहने पर मजबूर हो जाती है और अपनी भावजों के ता'ने सुन सुन कर कोफ्त और घुटन की भट्टी में जलती रहती है और मैके और सुसराल वालों के दोनों ख़ानदानों में भी इसी तरह इख़्तिलाफ़ की आग भड़क उठती है कि कभी कोर्ट कचहरी की नौबत आ जाती है और कभी मार पीट हो कर मुक़द्दमात का एक न ख़त्म होने वाला सिलसिला शुरूअ हो जाता है और मियां-बीवी की ज़िन्दगी जहन्नम बन जाती है और दोनों ख़ानदान लड़ भिड़ कर तबाहो बरबाद हो जाते हैं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  56 📚*

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 03 ❞*  
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࿐  *(4)* औरत को चाहिये कि शोहर की आमदनी की हैषिय्यत से ज़ियादा खर्च न मांगे बल्कि जो कुछ मिले इस पर सब्रो शुक्र के साथ अपना घर समझ कर हंसी खुशी के साथ ज़िन्दगी बसर करे अगर कोई ज़ेवर या कपड़ा या सामान पसन्द आ जाए और शोहर की माली हालत ऐसी नहीं है कि वोह इस को ला सके तो कभी हरगिज़ हरगिज़ शोहर से इस की फ़रमाइश न करे और अपनी पसन्द की चीजें न मिलने पर कभी हरगिज़ कोई शिकवा शिकायत न करे न गुस्से से मुंह फुलाए न ता'ना मारे ,न अफ्सोस ज़ाहिर करे। 

࿐   बल्कि बेहतरीन तरीका येह है कि औरत शोहर से किसी चीज़ की फ़रमाइश ही न करे क्यूंकि बारबार की फ़रमाइशों से औरत का वज़्न शोहर की निगाह में घट जाता है हां अगर शोहर खुद पूछे कि मैं तुम्हारे लिये क्या लाऊं तो औरत को चाहिये कि शोहर की माली हैषिय्यत देख कर अपनी पसन्द की चीज़ तलब करे और जब शोहर चीज़ लाए तो वोह पसन्द आए या न आए मगर औरत को हमेशा येही चाहिये कि वोह इस पर खुशी का इज़हार करे। 

࿐  ऐसा करने से शोहर का दिल बढ़ जाएगा और उस का हौसला बुलन्द हो जाएगा और अगर औरत ने शोहर की लाई हुई चीज़ को ठुकरा दिया और उस में ऐब निकाला या उस को हकीर समझा तो इस से शोहर का दिल टूट जाएगा जिस का नतीजा यह होगा कि शोहर के दिल में बीवी की तरफ़ से नफरत पैदा हो जाएगी और आगे चल कर झगड़े लड़ाई का बाजार गर्म हो जाएगा और मियां-बीवी की शादमानी व मसर्रत की ज़िन्दगी ख़ाक में मिल जाएगी। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  56 📚*

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 04 ❞*  
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࿐  *(5)* औरत पर लाज़िम है कि अपने शोहर की सूरत व सीरत पर न ता'ना मारे न कभी शोहर की तहक़ीर और उस की ना शुक्री करे और हरगिज़ हरगिज़ कभी इस किस्म की जली कटी बोलियां न बोले कि हाए अल्लाह! मैं कभी इस घर में सुखी नहीं रही। हाए हाए मेरी तो सारी उम्र मुसीबत ही में कटी। इस उजड़े घर में आ कर मैं ने क्या देखा ? मेरे मां मुझे भाड़ में झोंक दिया कि मुझे इस घर में बियाह दिया मुझ निगोड़ी को इस घर में कभी आराम नसीब नहीं हुवा। हाए मैं किस फक्कड़ और बाप ने दलिद्दर से बियाही गई इस घर में तो हमेशा उल्लू ही बोलता रहा।

࿐   इस किस्म के ता'नों और कोसनों से शोहर की दिल शिक्नी यक़ीनी तौर पर होगी जो मियां-बीवी के नाजुक तअल्लुकात की गर्दन पर छुरी फेर देने के बराबर है ज़ाहिर है कि शोहर इस किस्म के तानों और कोसनों को सुन सुन कर औरत से बेज़ार हो जाएगा और महब्बत की जगह नफ़रत व अदावत का एक ऐसा खतरनाक तूफ़ान उठ खड़ा होगा कि मियां -बीवी के खुश गवार तअल्लुकात की नाव डूब जाएगी जिस पर तमाम उम्र पछताना पड़ेगा मगर अफ़सोस कि औरतों की येह आदत बल्कि फ़ितरत बन गई है कि वोह शोहरों को ता'ने और कोसने देती ही रहती हैं और अपनी दुन्या व आख़िरत को तबाहो बरबाद करती रहती हैं। 

࿐   हदीष शरीफ़ में है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि मैं ने जहन्नम में औरतों को ब कषरत देखा येह सुन कर सहाबए किराम ने पूछा कि या रसूलल्लाह ﷺ इस की क्या वजह है कि औरतें ब कषरत जहन्नम में नज़र आई तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि औरतों में दो बुरी ख़स्लतों की वजह से एक तो येह कि औरतें दूसरों पर बहुत ज़ियादा ला'न ता'न करती रहती हैं दूसरी येह कि औरतें अपने शोहरों की नाशुक्री करती रहती हैं चुनान्चे तुम उम्र भर इन औरतों के साथ अच्छे से अच्छा सुलूक करते रहो। लेकिन अगर कभी एक ज़रा सी कमी तुम्हारी तरफ़ से देख लेंगी तो येही कहेंगी कि मैं ने कभी तुम से कोई भलाई देखी ही नहीं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  56 📚*

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 05 ❞*  
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࿐  *(6)* बीवी को लाज़िम है कि हमेशा उठते बैठते बात चीत में हर हालत में शोहर के सामने बा अदब रहे और उस के ए'ज़ाज़ व इकराम का खयाल रखे शोहर जब कभी भी बाहर से घर में आए तो औरत को चाहिये कि सब काम छोड़ कर उठ खड़ी हो और शोहर की तरफ़ मुतवज्जेह हो जाए उस की मिज़ाज पुर्सी करे और फौरन ही उस के आराम व राहत का इन्तिज़ाम करे और उस के साथ दिलजोई की बातें करे और हरगिज़ हरगिज़ ऐसी कोई बात न सुनाए न कोई ऐसा सुवाल करे जिस से शोहर का दिल दुखे। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  57 📚*

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 06 ❞*  
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࿐  *(7)* अगर शोहर को औरत की किसी बात पर गुस्सा आ जाए तो औरत को लाज़िम है कि उस वक़्त ख़ामोश हो जाए और उस वक्त हरगिज़ कोई ऐसी बात न बोले जिस से शोहर का गुस्सा और ज़ियादा बढ़ जाए और अगर औरत की तरफ से कोई कुसूर हो जाए और शोहर गुस्से में भर कर औरत को बुरा भला कह दे और नाराज़ हो जाए तो औरत को चाहिये कि खुद रूठ कर और गाल फुला कर न बैठ जाए बल्कि औरत को लाज़िम है कि फ़ौरन ही आजिज़ी और खुशामद कर के शोहर से मुआफ़ी मांगे और जिस तरह वोह माने उसे मना ले। 

࿐  अगर औरत का कोई कुसूर न हो बल्कि शोहर ही का कुसूर हो जब भी औरत को तन कर और मुंह बिगाड़ कर बैठ नहीं रहना चाहिये बल्कि शोहर के सामने आजिज़ी व इन्किसारी ज़ाहिर कर के शोहर को खुश कर लेना चाहिये! 

࿐  क्यूंकि शोहर का हक़ बहुत बड़ा है उस का मर्तबा बहुत बुलन्द है अपने शोहर से मुआफ़ी तलाफ़ी करने में औरत की कोई ज़िल्लत नहीं है बल्कि येह औरत के लिये इज्जत और फ़ख्र की बात है कि वोह मुआफ़ी मांग कर अपने शोहर को राजी कर ले।  

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  57 📚*

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 07 ❞*  
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࿐  *(8)* औरत को चाहिये कि वोह अपने शोहर से उस की आमदनी और खर्च का हिसाब न लिया करे क्यूंकि शोहरों के खर्च पर औरतों के रोक टोक लगाने से उमूमन शोहर को चिड़ पैदा हो जाती है और शोहरों पर गैरत सुवार हो जाती है कि मेरी बीवी मुझ पर हुकूमत जताती है और मेरी आमदनी ख़र्च का मुझ से हिसाब तलब करती है इस चिड़ का अन्जाम येह होता है कि रफ़्ता रफ़्ता मियां-बीवी के दिलों में इख़्तिलाफ़ पैदा हो जाया करता है इसी तरह औरत को चाहिये कि अपने शोहर के कहीं आने जाने पर रोक टोक न करे न शोहर के चाल चलन पर शुबा और बद गुमानी करे कि इस से मियां- बीवी के तअल्लुकात में फ़साद व खराबी पैदा हो जाती है और ख्वाह मख्वाह शोहर के दिल में नफरत पैदा हो जाती है। 

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 08 ❞*  
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࿐  *(9)* जब तक सास और खुसर जिन्दा हैं औरत के लिये ज़रूरी है कि इन दोनों की भी ताबेअदारी और ख़िदमत गुज़ारी करती रहे और जहां तक मुमकिन हो सके इन दोनों को राजी और खुश रखे। *वरना याद रखो!* कि शोहर इन दोनों का बेटा है अगर इन दोनों ने अपने बेटे को डांट डपट कर चांप चड़ा दी तो यकीनन शोहर औरत से नाराज़ हो जाएगा और मियां-बीवी के दरमियान बाहमी तअल्लुकात तहस नहस हो जाएंगे इसी तरह अपने जेठों ,देवरों और नन्दों ,भावजों के साथ भी खुश अख़्लाक़ी बरते और इन सभों की दिलजोई में लगी रहे और कभी हरगिज़ हरगिज़ इन में से किसी को नाराज़ न करे। 

࿐   वरना ध्यान रहे कि इन लोगों से बिगाड़ का नतीजा मियां -बीवी के तअल्लुकात की ख़राबी के सिवा कुछ भी नहीं। औरत को सुसराल में सास और खुसर से अलग थलग रहने की हरगिज़ कभी कोशिश नहीं करनी चाहिये। बल्कि मिल जुल कर रहने में ही भलाई है। क्यूंकि सास और खुसर से बिगाड़ और झगड़े की येही जड़ है और येह खुद सोचने की बात है कि मां -बाप ने लड़के को पाला पोसा और इस उम्मीद पर उस की शादी कि बुढ़ापे में हम को बेटे और उस की दुल्हन से सहारा और आराम मिलेगा लेकिन दुल्हन ने घर में कदम रखते ही इस बात की कोशिश शुरू कर दी कि बेटा अपने मां -बाप से अलग थलग हो जाए तो तुम खुद ही सोचो की दुल्हन की इस हरकत से मां -बाप को किस कदर गुस्सा आएगा और कितनी झुंझलाहट पैदा होगी इस लिये घर में तरह तरह की बद गुमानियां और किस्म किस्म के फ़ितना व फ़साद शुरू हो जाते हैं यहां तक कि मियां -बीवी के दिलों में फूट पैदा हो जाती है और झगड़े तकरार की नौबत आ जाती है और फिर पूरे घर वालों की ज़िन्दगी तल्ख और तअल्लुकात दरहम बरहम हो जाते हैं!

࿐  लिहाज़ा बेहतरी इसी में है कि सास और खुसर की ज़िन्दगी भर हरगिज़ कभी औरत को अलग रहने का ख़याल भी नहीं करना चाहिये हां अगर सास और खुसर खुद ही अपनी खुशी से बेटे को अपने से अलग कर दें तो फिर अलग रहने में कोई हरज नहीं। लेकिन अलग रहने की सूरत में भी उल्फ़त व महब्बत और मैल जोल रखना इन्तिहाई ज़रूरी है ताकि हर मुश्किल में पूरे कुम्बे को एक दूसरे की इमदाद का सहारा मिलता रहे और इत्तिफ़ाक़ व इत्तिहाद के साथ पूरे कुम्बे की ज़िन्दगी जन्नत का नुमूना बनी रहे।

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 09 ❞*  
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࿐   *(10)* औरत को अगर सुसराल में कोई तकलीफ़ हो या कोई बात ना गवार गुज़रे तो औरत को लाज़िम है कि हरगिज़ मैके में आ कर चुगली न खाए क्यूंकि सुसराल की छोटी छोटी सी बातों की शिकायत मैके में आ कर मां-बाप से करनी येह बहुत ख़राब और बुरी बात है सुसराल वालों को औरत की इस हरकत से बे हद तक्लीफ़ पहुंचती है यहां तक कि दोनों घरों में बिगाड़ और लड़ाई झगड़े शुरूअ हो जाते हैं जिस का अन्जाम येह होता है कि औरत शोहर की नज़रों में भी काबिले नफ़रत हो जाती है और फिर मियां-बीवी की ज़िन्दगी लड़ाई झगड़ों से जहन्नम का नमूना बन जाती है। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  58 📚* 

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 10 ❞*  
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࿐  *(11)* औरत को चाहिये कि जहां तक हो सके अपने बदन और कपड़ों की सफ़ाई सुथराई का ख़याल रखे। मेली कुचेली और फूहड़ न बन रहे बल्कि अपने शोहर की मरज़ी और मिज़ाज के मुताबिक़ बनाव सिंघार भी करती रहे। कम से कम हाथ पाऊं में मेहंदी, कंघी चोटी, सुरमे काजल वगैरा का एहतिमाम करती रहे। बाल बिखरे और मैले कुचैले चुड़ेल बनी न फिरे कि औरत का फूहड़ पन आम तौर पर शोहर की नफ़रत का बाइष हुवा करता है खुदा न करे कि शोहर औरत के फूहड़ पन की वजह से मुतनफ़्फ़िर हो जाए और दूसरी औरतों की तरफ़ ताक झांक शुरू कर दे तो फिर औरत की ज़िन्दगी तबाहो बरबाद हो जाएगी और फिर उस को उम्र भर रोने धोने और सर पीटने के सिवा कोई चारए कार नहीं रह जाएगा।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  58 📚*

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 11 ❞*  
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࿐  *(12)* औरत के लिये येह बात भी ख़ास तौर पर काबिले लिहाज़ है कि जब तक शोहर और सास और खुसर वगैरा न खा पी लें खुद न खाए बल्कि सब को खिला पिला कर खुद सब से अख़ीर में खाए। औरत की इस अदा से शोहर और उस के सब घर वालों के दिल में औरत की क़द्रो मंज़िलत और महब्बत बढ़ जाएगी। 

࿐  *(13)* औरत को चाहिये कि सुसराल में जा कर अपने मैकेअ वालों की बहुत ज़ियादा तारीफ़ और बड़ाई न बयान करती रहे क्यूंकि इस से सुसराल वालों को येह ख़याल हो सकता है कि हमारी बहू हम लोगों को बे क़द्र समझती है और हमारे घर वालों और घर के माहोल की तौहीन करती है इस लिये सुसराल वाले भड़क कर बहू की बे क़द्री और उस से नफ़रत करने लगते हैं। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  60 📚*

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 12 ❞*  
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࿐  *(14)* घर के अन्दर सास,नन्दें या जेठानी,देवरानी या कोई दूसरी औरतें आपस में चुपके चुपके बातें कर रही हों तो औरत को चाहिये कि ऐसे वक्त में उन के करीब न जाए और न येह जुस्त्जू करे कि वोह आपस में क्या बातें कर रही हैं और बिला वजह येह बद गुमानी भी न करे कि कुछ मेरे ही मुतअल्लिक़ बातें कर रही होगी कि इस से ख़्वाह मख्वाह दिल में एक दूसरे की तरफ़ से कीना पैदा हो जाता है जो बहुत बड़ा गुनाह होने के साथ साथ बड़े बड़े फ़साद होने का सबब बन जाया करता है !

࿐   *(15)* औरत को येह भी चाहिये कि सुसराल में अगर सास या नन्दों को कोई काम करते देखे तो झट पट उठ कर खुद भी काम करने लगे इस से सास नन्दों के दिल में येह अषर पैदा होगा कि वोह औरत को अपना गमगुसार और रफ़ीके कार बल्कि अपना मददगार समझने लगेंगी जिस से खुद ब खुद सास नन्दों के दिल में एक खास किस्म की महब्बत पैदा हो जाएगी खुसूसन सास,खुसर और नन्दों की बीमारी के वक्त औरत को बढ़ चढ़ कर ख़िदमत और तीमार दारी में हिस्सा लेना चाहिये कि ऐसी बातों से सास ,खुसर ,नन्दों बल्कि शोहर के दिल में औरत की तरफ़ से जज़्बए महब्बत पैदा हो जाता है और औरत सारे घर की नज़रों में वफ़ादार व ख़िदमत गुज़ार समझी जाने लगती है और औरत की नेक नामी में चार चांद लग जाते हैं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  60 📚*

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*❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 13 ❞*  
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࿐   *(16)* औरत के फ़राइज़ में येह भी है कि अगर शोहर गरीब हो और घरेलू काम काज के लिये नोकरानी रखने की ताक़त न हो तो अपने घर का घरेलू काम काज खुद कर लिया करे इस में हरगिज़ हरगिज़ न औरत की कोई ज़िल्लत है न शर्म बुखारी शरीफ़ की बहुत सी रिवायतों से पता चलता है कि खुद रसूलुल्लाह ﷺ की मुक़द्दस साहिबज़ादी हज़रते फ़ातिमा रजीअल्लाहो तआला अन्हुमा का भी येही मा'मूल था कि वोह अपने घर का सारा काम काज खुद अपने हाथों से किया करती थीं कूवें से पानी भर कर और अपनी मुक़द्दस पीठ पर मश्क लाद कर पानी लाया करती थीं खुद ही चक्की चला कर आटा भी पीस लेती थीं इसी वजह से इन के मुबारक हाथों में कभी कभी छाले पड़ जाते थे इसी तरह अमीरुल मोअमिनीन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रजीअल्लाहो तआला अन्हु की साहिब जादी हज़रते अस्मा रजीअल्लाहो तआला अन्हुमा के मुतअल्लिक़ भी रिवायत है कि वोह अपने गरीब शोहर हज़रते जुबैर रजीअल्लाहो तआला अन्हु के यहां अपने घर का सारा काम काज अपने हाथों से कर लिया करती थीं यहां तक कि ऊंट को खिलाने के लिये बागो में से खजूरों की गुठलियां चुन चुन कर अपने सर पर लाती थीं और घोड़े के लिये घास-चारा भी लाती थीं और घोड़े की मालिश भी करती थीं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  62 📚*

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 *❝ शोहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने का तरीका पार्ट # 14 ❞*  
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࿐  *(17)* हर बीवी का येह भी फ़र्ज़ है कि वोह अपने शोहर की आमदनी और घर के अख़राजात को हमेशा नज़र के सामने रखे और घर का खर्च इस तरह चलाए कि इज्जत व आबरू से ज़िन्दगी बसर होती रहे अगर शोहर की आमदनी कम हो तो हरगिज़ हरगिज़ शोहर पर बेजा फ़रमाइशों का बोझ न डाले इस लिये कि अगर औरत ने शोहर को मजबूर किया और शोहर ने बीवी की महब्बत में कर्ज का बोझ अपने सर पर उठा लिया और खुदा न करे उस कर्ज का अदा करना दुश्वार हो गया तो घरेलू ज़िन्दगी में परेशानियों का सामना हो जाएगा और मियां-बीवी की ज़िन्दगी तंग हो जाएगी इस लिये हर औरत को लाज़िम है कि सब्रो क़नाअत के साथ जो कुछ भी मिले खुदा का शुक्र अदा करे और शोहर की जितनी आमदनी हो उसी के मुताबिक़ ख़र्च करे और घर के अख़राजात को हरगिज़ हरगिज़ आमदनी से बढ़ने न दे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  62 📚*

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       *❝ बेहतरीन बीवी की पहचान ❞*  
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࿐  पिछले पोस्ट में दी हुई हिदायतों के मुताबिक़ सुवाल पैदा होता है कि बेहतरीन बीवी कौन है? तो इस का जवाब येह है कि:- *बेहतरीन बीवी वोह है!* 👇🏻

*(1)* ࿐   जो अपने शोहर की फ़रमां बरदारी और ख़िदमत गुज़ारी को अपना फ़र्जे मन्सबी समझे। 

*(2)* ࿐   जो अपने शोहर के तमाम हुकूक अदा करने में कोताही न करे! 

*(3)* ࿐   जो अपने शोहर की खूबियों पर नज़र रखे और उस के उयूब और खामियों को नज़र अन्दाज़ करती रहे।

*(4)* ࿐  जो खुद तक्लीफ़ उठा कर अपने शोहर को आराम पहुंचाने की कोशिश करती रहे। 

*(5)* ࿐  जो अपने शोहर से उस की आमदनी से ज़ियादा का मुतालबा न करे और जो मिल जाए उस पर सब्रो शुक्र के साथ ज़िन्दगी बसर करे। 

*(6)* ࿐  जो अपने शोहर के सिवा किसी अजनबी मर्द पर निगाह न डाले और न किसी की निगाह अपने ऊपर पड़ने दे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 63 📚*

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  *❝ बेहतरीन बीवी की पहचान ❞*  
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࿐  *बेहतरीन बीवी वोह है!* 👇🏻

*(7)* ࿐   जो पर्दे में रहे और अपने शोहर की इज्जत व नामूस की हिफाज़त करे। 

*(8)* ࿐  जो शोहर के माल और मकान व सामान और खुद अपनी ज़ात को शोहर की अमानत समझ कर हर चीज़ की हिफ़ाज़त व निगहबानी करती रहे।

*(9*) ࿐  जो अपने शोहर की मुसीबत में अपनी जानी व माली कुरबानी के साथ अपनी वफ़ादारी का सूबूत दे। 

*(10)* ࿐  जो अपने शोहर की ज़ियादती और जुल्म पर हमेशा सब्र करती रहे। 

*(11)* ࿐  जो मैका और सुसराल दोनों घरों में हर दिल अज़ीज़ और बा इज्जत हो! 

*(12)* ࿐   जो पड़ोसियों और मिलने जुलने वाली औरतों के साथ खुश अख़्लाक़ी और शराफ़त व मुरव्वत का बरताव करे और सब उस की खूबियों के मद्दाह हों! 

*(13)* ࿐  जो मज़हब की पाबन्द और दीनदार हो और हुकूकुल्लाह व हुकूकुल इबाद को अदा करती रहे। 

*(14)* ࿐  जो सुसराल वालों की कड़वी कड़वी बातों को बरदाश्त करती रहे। 

*(15)* ࿐  जो सब घरवालों को खिला पिला कर सब से आखिर में खुद खाए पिये।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  63 📚*

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      *❝ सास बहू का झगड़ा # 01 ❞*  
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࿐  हमारे समाज का येह एक बहुत काबिले अफ्सोस और दर्दनाक सानिहा है कि तकरीबन हर घर में सदियों से सास बहू की लड़ाई का मा'रिका जारी है। दुन्या की बड़ी से बड़ी लड़ाइयों यहां तक कि आलमी जंगों का ख़ातिमा हो गया मगर सास बहू की जंगे अज़ीम येह एक ऐसी मन्हूस लड़ाई है कि तकरीबन हर घर इस लड़ाई का मैदाने जंग बना हुवा है........ !

࿐  किस क़दर तअज्जुब और हैरत की बात है कि मां कितने लाड प्यार से अपने बेटों को पालती है और जब लड़के जवान हो जाते हैं तो लड़कों की मां अपने बेटों की शादी और इन का सेहरा देखने के लिये सब से ज़ियादा बेचैन और बे क़रार रहती है और घर घर का चक्कर लगा कर अपने बेटे की दुल्हन तलाश करती फिरती है। यहां तक कि बड़े प्यार और चाह से बेटे की शादी रचाती है और अपने बेटे की शादी का सेहरा देख कर खुशी से फूले नहीं समाती मगर जब गरीब दुल्हन अपना मैका छोड़ कर और अपने मां-बाप,भाई बहन और रिश्तेनाते वालों से जुदा हो कर अपने सुसराल में कदम रखती है तो एक दम सास बहू की हरीफ़ बन कर अपनी बहू से लड़ने लगती है और सास बहू की जंग हो जाती है और बे चारा शोहर मां और बीवी की लड़ाई की चक्की के दो पाटों के दरमियान कुचलने और पिसने लगता है।

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      *❝ सास बहू का झगड़ा # 02 ❞*  
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࿐  गरीब शोहर एक तरफ़ मां के एहसानों के बोझ से दबा हुवा और दूसरी तरफ़ बीवी की महब्बत में जकड़ा हुवा मां और बीवी की लड़ाई का मन्ज़र देख देख कर कोफ़्त की आग में जलता रहता है और उस के लिये बड़ी मुश्किल येह आन पड़ती है कि अगर वोह इस लड़ाई में अपनी मां की हिमायत करता है तो बीवी के रोने धोने और इस के ता'नों और मैके चली जाने की धमकियों से उस का भेजा खोलने लगता है। 

࿐  और अगर बीवी की पासदारी में एक लफ़्ज़ बोल देता है तो मां अपनी चीखो पुकार और कोसनों से सारा घर सर पर उठा लेती है और सारी बरादरी में *"औरत का मुरीद" "ज़न परस्त" "बीवी का गुलम्टा"* कहलाने लगता है और ऐसे गर्म गर्म और दिल खराश ता'ने सुनता है कि रंजो गम से उस के सीने में दिल फटने लगता है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 63 📚*

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     *❝ सास बहू का झगड़ा # 03 ❞*  
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࿐   इस में शक नहीं कि सास बहू की लड़ाई में सास बहू और शोहर तीनों का कुछ न कुछ कुसूर ज़रूर होता है लेकिन मेरा बरसों का तजरिबा येह है कि इस लड़ाई में सब से बड़ा हाथ सास का हुवा करता है हालांकि हर सास पहले खुद भी बहू रह चुकी होती है। 

࿐  मगर वोह अपने बहू बन कर रहने का ज़माना बिल्कुल भूल जाती है और अपनी बहू से ज़रूर लड़ाई करती है और इस की एक ख़ास वजह येह है कि जब तक लड़के की शादी नहीं होती सो फ़ीसदी बेटे का तअल्लुक मां ही से हुवा करता है बेटा अपनी सारी कमाई और जो सामान भी लाता है वोह अपनी मां ही के हाथ में देता है और हर चीज़ मां ही से तलब कर के इस्ति'माल करता है और दिन रात सेंकड़ों मरतबा अम्मां-अम्मां कह कर बात बात में मां को पुकारता है। इस से मां का कलेजा खुशी से फूल कर सेर भर का हो जाया करता है और मां इस ख़याल में मगन रहती है कि मैं घर की मालकन हूं और मेरा बेटा मेरा फ़रमां बरदार है लेकिन शादी के बाद बेटे की महब्बत बीवी की तरफ रुख कर लेती है। और बेटा कुछ न कुछ अपनी बीवी को देने और कुछ न कुछ इस से मांग कर लेने लगता है तो मां को फ़ितरी तौर पर बड़ा झटका लगता है कि मेरा बेटा कि मैं ने इस को पाल पोस कर बड़ा किया। अब येह मुझ को नज़र अन्दाज़ कर के अपनी बीवी के कब्जे में चला गया। 

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 64 📚*

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     *❝ सास बहू का झगड़ा # 04 ❞*  
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࿐  अब अम्मां-अम्मां पुकारने की बजाए बेगम-बेगम पुकारा करता है पहले अपनी कमाई मुझे देता था अब बीवी के हाथ से हर चीज़ लिया दिया करता है अब घर की मालकन मैं नहीं रही इस ख़याल से मां पर एक झल्लाहट सुवार हो जाती है और वोह बहू को जज़्बए हसद में अपनी हरीफ़ और मद्दे मुक़ाबिल बना कर इस से लड़ाई झगड़ा करने लगती है और बहू में तरह तरह के ऐब निकालने लगती है और किस्म किस्म के ता'ने और कोसने देना शुरू कर देती है बहू शुरूअ शुरूअ में तो येह खयाल कर के कि येह मेरे शोहर की मां है कुछ दिनों तक चुप रहती है मगर जब सास हद से ज़ियादा बहू के हल्क में उंगली डालने लगती है तो बहू को भी पहले तो नफ़रत की मतली आने लगती है फिर वोह भी एक दम सीना तान कर सास के आगे ता'नों और कोसनों की कै करने लगती है और फिर मुआमला बढ़ते बढ़ते दोनों तरफ़ से तुर्की ब तुर्की सुवालो जवाब का तबादला होने लगता है यहां तक कि गालियों की बम्बारी शुरू हो जाती है। 

࿐  फिर बढ़ते बढ़ते इस जंग के शो'ले सास और बहू के खानदानों को भी अपनी लपेट में ले लेते हैं और दोनों ख़ानदानों में भी जंगे अजीम शुरू हो जाती है मेरे ख़याल में इस लड़ाई के ख़ातिमे की बेहतरीन सूरत येही है कि इस जंग के तीनों फ़ीरक़ या'नी सास ,बहू और बेटा तीनों अपने अपने हुकूक व फ़राइज़ अदा करने लगें तो ان شاء الله हमेशा के लिये इस जंग का ख़ातिमा यक़ीनी है।
इन तीनों के हुकूक व फ़राइज़ क्या हैं ? इन को अगले मैसेज मे...

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 64  📚* 

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              *❝  सास के फ़राइज़ ❞*  
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࿐  हर सास का येह फ़र्ज़ होता है कि वोह अपनी बहू को अपनी बेटी की तरह समझे और हर मुआमले में इस के साथ शफ़्क़त व महब्बत का बरताव करे अगर बहू से इस की कमसिनी या ना तजरिबा कारी की वजह से कोई गलती हो जाए तो ता'ने मारने और कोसने देने के बजाए अख़्लाक़ व महब्बत के साथ इस को काम का सहीह तरीका और ढंग सिखाए और हमेशा इस का ख़याल रखे कि येह कम उम्र और ना तजरिबा कार लड़की अपने मां-बाप से जुदा हो कर हमारे घर में आई है इस के लिये येह घर नया और इस का माहोल नया है इस का यहां हमारे सिवा कौन है ? 

࿐   अगर हम ने इस का दिल दुखाया तो इस को तसल्ली देने वाला और इस के आंसू पौंछने वाला यहां दूसरा कौन है? बस हर सास येह समझ ले और ठान ले कि मुझे अपनी बहू से हर हाल में शफ़्क़त व महब्बत करनी है बहू मुझे ख्वाह कुछ नहीं समझे मगर मैं तो इस को अपनी बेटी ही समझूगी तो फिर समझ लो कि सास बहू का झगड़ा आधे से ज़ियादा ख़त्म हो गया।

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           *❝  बहू के फ़राइज़  ❞*  
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࿐   हर बहू को लाज़िम है कि अपनी सास को अपनी मां की जगह समझे और हमेशा सास की ता'ज़ीम और इस की फ़रमां बरदारी व ख़िदमत गुज़ारी को अपना फ़र्ज़ समझे सास अगर किसी मुआमले में डांट डपट करे तो ख़ामोशी से सुन ले और हरगिज़ हरगिज़,खबरदार ख़बरदार कभी सास को पलट कर उलटा सीधा जवाब न दे बल्कि सब्र करे इसी तरह अपने खुसर को भी अपने बाप की जगह जान कर उस की ता'जीम व ख़िदमत को अपने लिये लाज़िम समझे और सास खुसर की ज़िन्दगी में इन से अलग रहने की ख्वाहिश न ज़ाहिर करे और अपनी देवरानियों और जेठानियों और नन्दों से भी हस्बे मरातिब अच्छा बरताव रखे और येह ठान ले कि मुझे हर हाल में इन्ही लोगों के साथ ज़िन्दगी बसर करनी है। 

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               *❝  बेटे के फ़राइज़ ❞*  
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࿐  हर बेटे को लाज़िम है कि जब इस की दुल्हन घर आ जाए तो हस्बे दस्तूर अपनी दुल्हन से खूब खूब प्यार व महब्बत करे लेकिन मां-बाप के अदबो एहतिराम और इन की ख़िदमत व इताअत में हरगिज़ हरगिज़ बाल बराबर भी फ़र्क न आने दे अब भी हर चीज़ का लैन दैन मां ही के हाथ से करता रहे और अपनी दुल्हन को भी येही ताकीद करता रहे कि बिगैर मेरी मां और मेरे बाप की राय के हरगिज़ हरगिज़ न कोई काम करे न बिगैर इन दोनों से इजाज़त लिये घर की कोई चीज़ इस्ति'माल करे। इस तर्जे अमल से सास के दिल को सुकून व इतमीनान रहेगा कि अब भी घर की मालिका मैं ही हूं और बेटा बहू दोनों मेरे फ़रमां बरदार हैं। 

࿐  फिर हरगिज़ हरगिज़ कभी भी वोह अपने बेटे और बहू से नहीं लड़ेगी जो लड़के शादी के बाद अपनी मां से ला परवाई बरतने लगते हैं और अपनी दुल्हन को घर की मालिका बना लिया करते हैं उमूमन उसी घर में सास बहू की लड़ाइयां हुवा करती हैं लेकिन जिन घरों में सास बहू और बेटे अपने मजकूरा बाला फ़राइज़ का ख़याल रखते हैं उन घरों में सास बहू की लड़ाइयों की नौबत ही नहीं आती
इस लिये बेहद ज़रूरी है कि सब अपने अपने फ़राइज़ और दूसरों के हुकूक का ख़याल व लिहाज़ रखें खुदावन्दे करीम सब को तौफ़ीक़ दे और हर मुसलमान के घर को अम्नो सुकून की बिहिश्त बना दे। آمین ثم آمین یارب العالمین۔۔۔۔

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          *❝  बीवी के हुकूक #01 ❞*  
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࿐  अल्लाह तआला ने जिस तरह मर्दो के कुछ हुकूक औरतों पर लाज़िम फ़रमाए हैं इसी तरह औरतों के भी कुछ हुकूक मर्दो पर लाज़िम ठहरा दिये हैं जिन का अदा करना मर्दो पर फ़र्ज़ है। *चुनान्चे कुरआने मजीद में है:-* या'नी औरतों के मर्दो के ऊपर इसी तरह कुछ हुकूक हैं जिस तरह मर्दो के औरतों पर अच्छे बरताव के साथ!

࿐  *इसी तरह रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि:-* "तुम में अच्छे लोग वोह हैं जो औरतों के साथ अच्छी तरह पेश आएं।, और हुजूर ﷺ का येह भी फ़रमान है कि :- मैं तुम लोगों को औरतों के बारे में वसिय्यत करता हूं लिहाज़ा तुम लोग मेरी वसिय्यत को क़बूल करो।

࿐  और एक हदीष शरीफ़ में येह भी है कि कोई मोमिन मर्द किसी मोमिना औरत से बुग्ज व नफ़रत न रखे क्यूंकि अगर औरत की कोई आदत बुरी मालूम होती हो तो उस की कोई दूसरी आदत पसन्दीदा भी होगी।, हदीष का मतलब येह है कि ऐसा नहीं होगा कि किसी औरत की तमाम आदतें ख़राब ही हों बल्कि इस में कुछ अच्छी कुछ बुरी हर किस्म की आदतें होंगी तो मर्द को चाहिये कि औरत की सिर्फ ख़राब आदतों ही को न देखता रहे बल्कि ख़राब आदतों से नज़र फिरा कर उस की अच्छी आदतों को भी देखा करे। 

࿐   बहर हाल अल्लाह व रसूल ﷺ ने औरतों के कुछ हुकूक मर्दो के ऊपर लाज़िम करार दे दिये हैं लिहाज़ा हर मर्द पर ज़रूरी है कि अगली पोस्ट में दी हुई हिदायतों पर अमल करता रहे वरना खुदा के दरबार में बहुत बड़ा गुनहगार और बरादरी और समाज की नज़रों में ज़लीलो ख्वार होगा।

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          *❝  बीवी के हुकूक #02 ❞*  
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࿐   *(1).*  हर शोहर के ऊपर उस की बीवी का येह हक़ फ़र्ज़ है कि वोह अपनी बीवी के खाने, पहनने और रहने और दूसरी ज़रूरिय्याते ज़िन्दगी का अपनी हैषिय्यत के मुताबिक़ और अपनी ताकत भर इन्तिज़ाम करे और हर वक्त इस का ख़याल रखे कि येह अल्लाह की बन्दी मेरे निकाह के बंधन में बंधी हुई है और येह अपने मां-बाप, भाई-बहन और तमाम अज़ीज़ो अकारिब से जुदा हो कर सिर्फ मेरी हो कर रह गई है और मेरी ज़िन्दगी के दुख सुख में बराबर की शरीक बन गई है इस लिये इस की ज़िन्दगी की तमाम ज़रूरियात का इन्तिज़ाम करना मेरा फ़र्ज़ है। 

࿐   *याद रखो..!* जो मर्द अपनी लापरवाई से अपनी बीवियों के नानो नफ़्का और अख़राजाते ज़िन्दगी का इन्तिजाम नहीं करते वोह बहुत बड़े गुनहगार, हुकूकुल इबाद में गिरिफ़्तार और कहरे कहहार व अज़ाबे नार के सज़ावार हैं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  69 📚*

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          *❝  बीवी के हुकूक #03 ❞*  
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࿐  *(2)* औरत का येह भी हक है कि शोहर उस के बिस्तर का हक़ अदा करता रहे शरीअत में इस की कोई हद मुकर्रर नहीं है मगर कम से कम इस क़दर तो होना चाहिये कि औरत की ख्वाहिश पूरी हो जाया करे और वोह इधर उधर ताक झांक न करे जो मर्द शादी कर के बीवियों से अलग थलग रहते हैं और औरत के साथ उस के बिस्तर का हक नहीं अदा करते वोह हक्कुल इबाद या'नी बीवी के हक में गिरिफ़्तार और बहुत बड़े गुनहगार हैं। 
अगर खुदा न करे शोहर किसी मजबूरी से अपनी औरत के इस हक़ को न अदा कर सके तो शोहर पर लाज़िम है कि औरत से उस के इस हक़ को मुआफ़ करा ले!

࿐  बीवी के इस हक़ की कितनी अहम्मिय्यत है इस बारे में हज़रते अमीरुल मोअमिनीन फ़ारूके आ'ज़म रजीअल्लाहो तआला अन्हु का एक वाकिआ बहुत ज़ियादा इब्रतखेज़ व नसीहत आमेज़ है ; मन्कूल है कि अमीरुल मोअमिनीन रजीअल्लाहो तआला अन्हु रात को रिआया की ख़बरगीरी के लिये शहरे मदीना में गश्त कर रहे थे अचानक एक मकान से दर्दनाक अश्आर पढ़ने की आवाज़ सुनी। आप उसी जगह खड़े हो गए और गौर से सुनने लगे तो एक औरत येह शे'र बड़े ही दर्दनाक लहजे में पढ़ रही थी कि:- *"या'नी खुदा की क़सम अगर खुदा के अज़ाबों का ख़ौफ़ न होता तो बिला शुबा इस चारपाई के कनारे जुम्बिश में हो जाते।"* 

࿐   अमीरुल मोअमिनीन रजीअल्लाहो तआला अन्हु ने सुब्ह को तहकीकात की तो मालूम हुवा कि औरत का शोहर जिहाद के सिलसिले में अर्सए दराज़ से बाहर गया हुवा है और येह औरत उस को याद कर के रंजो गम में येह शे'र पढ़ती रहती है। 

࿐  अमीरुल मोअमिनीन रजीअल्लाहो तआला अन्हु के दिल पर इस का इतना गहरा अषर पड़ा कि फ़ौरन ही आप ने तमाम सिपह सालारों को येह फ़रमान लिख भेजा कि कोई शादीशुदा फ़ौजी चार माह से ज़ियादा अपनी बीवी से जुदा न रहे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 69 📚*

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           *❝  बीवी के हुकूक #04 ❞*  
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࿐  *(3)* औरत को बिला किसी बड़े कुसूर के कभी हरगिज़ हरगिज़ न मारे रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि कोई शख्स औरत को इस तरह न मारे जिस तरह अपने गुलाम को मारा करता है फिर दूसरे वक्त इस से सोहबत भी करे, हां अलबत्ता अगर औरत कोई बड़ा कुसूर कर बैठे तो बदला लेने या दुख देने के लिये नहीं बल्कि औरत की इस्लाह और तम्बीह की निय्यत से शोहर इस को मार सकता है मगर मारने में इस का पूरी तरह ध्यान रहे कि उस को शदीद चोट या ज़ख्म न पहुंचे। 
         
࿐  फ़िकह की किताबों में लिखा है कि शोहर अपनी बीवी को चार बातों पर सज़ा दे सकता है और वोह चार बातें येह हैं। 

*(1)* ࿐  शोहर अपनी बीवी को बनाव सिंघार और सफ़ाई सुथराई का हुक्म दे लेकिन फिर भी वोह फूहड़ और मैली कुचेली बनी रहे।

*(2)* ࿐  शोहर सोहबत करने की ख्वाहिश करे और बीवी बिला किसी उज्रे शरई मन्अ करे।  

*(3)* ࿐  औरत हैज़ और जनाबत से गुस्ल न करती हो।

*(4)* ࿐  बिला वजह नमाज़ तर्क करती हो। 

࿐   इन चारों सूरतों में शोहर को चाहिये कि पहले बीवी को समझाए, अगर मान जाए तो बेहतर है वरना डराए धमकाए। अगर इस पर भी न माने तो इस शर्त के साथ मारने की इजाज़त है कि मुंह पर न मारे और ऐसी सख़्त मार न मारे कि हड्डी टूट जाए या बदन पर ज़ख़्म हो जाए।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 71 📚*

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         *❝  बीवी के हुकूक #05 ❞* 
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࿐  *(4)* मियां-बीवी की खुश गवार ज़िन्दगी बसर होने के लिये जिस तरह औरतों को मर्दो के जज़्बात का लिहाज़ रखना ज़रूरी है इसी तरह मर्दो को भी लाज़िम है कि औरतों के जज़्बात का ख़याल रखें वरना जिस तरह मर्द की नाराजी से औरत की ज़िन्दगी जहन्नम बन जाती है इसी तरह औरत की नाराजी भी मर्दो के लिये वबाले जान बन जाती है।
      
࿐   इस लिये मर्द को लाज़िम है कि औरत की सीरत व सूरत पर ता'ना न मारे और औरत के मैके वालों पर भी ता'ना-ज़नी और नुक्ताचीनी न करे, न औरत के मां बाप और अज़ीज़ो अकारिब को औरत के सामने बुरा भला कहे क्यूंकि इन बातों से औरत के दिल में मर्द की तरफ़ से नफ़रत का जज़्बा पैदा हो जाता है जिस का नतीजा येह होता है कि मियां-बीवी के दरमियान नाचाकी पैदा हो जाती है और फिर दोनों की ज़िन्दगी दिन-रात की जलन और घुटन से तल्ख बल्कि अज़ाबे जान बन जाती है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  71 📚*


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         *❝  बीवी के हुकूक #06 ❞* 
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࿐   *(5)* मर्द को चाहिये कि ख़बरदार खबरदार कभी भी अपनी औरत के सामने किसी दूसरी औरत के हुस्नो जमाल या उस की खूबियों का ज़िक्र न करे वरना बीवी को फ़ौरन ही बद गुमानी और येह शुबा हो जाएगा कि शायद मेरे शोहर का उस औरत से कोई सांठ-गांठ है या कम से कम कल्बी लगाव है और येह खयाल औरत के दिल का एक ऐसा कांटा है कि औरत को एक लम्हे के लिये भी सब्रो क़रार नसीब नहीं हो सकता।

࿐   *याद रखो!* कि जिस तरह कोई शोहर इस को बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की बीवी का किसी दूसरे मर्द से साज-बाज़ हो इसी तरह कोई औरत भी हरगिज़ हरगिज़ कभी इस बात की ताब नहीं ला सकती कि उस के शोहर का किसी दूसरी औरत से तअल्लुक हो बल्कि तजरिबा शाहिद है कि इस मुआमले में औरत के जज्बात मर्द के जज़्बात से कहीं ज़ियादा बढ़ चढ़ कर हुवा करते हैं लिहाज़ा इस मुआमले में शोहर को लाज़िम है कि बहुत एहतियात रखे वरना बद गुमानियों का तूफ़ान मियां-बीवी की खुश गवार ज़िन्दगी को तबाहो बरबाद कर देगा।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 71 📚*


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          *❝  बीवी के हुकूक #07 ❞* 

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࿐  *(6)* मर्द बिला शुबा औरत पर हाकिम है। लिहाज़ा मर्द को येह हक़ हासिल है कि बीवी पर अपना हुक्म चलाए मगर फिर मर्द के लिये येह ज़रूरी है कि अपनी बीवी से किसी ऐसे काम की फ़रमाइश न करे जो उस की ताकत से बाहर हो या वोह काम उस को इन्तिहाई ना पसन्द हो।
क्यूंकि अगर्चे औरत जबरन कहरन वोह काम कर देगी। मगर उस के दिल में ना गवारी ज़रूर पैदा हो जाएगी जिस से मियां-बीवी की खुश मिज़ाजी की ज़िन्दगी में कुछ न कुछ तल्खी ज़रूर पैदा हो जाएगी, जिस का नतीजा येह होगा कि रफ़्ता रफ़्ता मियां-बीवी में इख़्तिलाफ़ पैदा हो जाएगा।

࿐   *(7)* मर्द को चाहिये कि औरत की गलतियों पर इस्लाह के लिये रोक टोक करता रहे कभी सख्ती और गुस्से के अन्दाज़ में और कभी महब्बत और प्यार और हंसी खुशी के साथ भी बात चीत करे जो मर्द हर वक्त अपनी मूंछ में डन्डा बांधे फिरते हैं। मासिवाए डांट फटकार और मार-पीट के अपनी बीवी से कभी कोई बात ही नहीं करते। तो उन की बीवियां शोहरों की महब्बत से मायूस हो कर इन से नफ़रत करने लगती हैं।

࿐  और जो लोग हर वक़्त बीवियों का नाज़ उठाते रहते हैं और बीवी लाख गलतियां करे मगर फिर भी भीगी बिल्ली की तरह उस के सामने मियाऊं मियाऊं करते रहते हैं उन लोगों की बीवियां गुस्ताख़ और शोख़ हो कर शोहरों को अपनी उंगलियों पर नचाती रहती हैं। इस लिये शोहरों को चाहिये कि हज़रते शैख़ सा'दी अलैही रहमतुल्लाहि के इस क़ौल पर अमल करें कि:- या'नी सख्ती और नर्मी दोनों अपने अपने मौक़ए पर बहुत अच्छी चीज़ हैं जैसे फस्द खोलने वाला ज़ख्म भी लगाता है और मरहम भी रख देता है मतलब येह है कि शोहर को चाहिये कि न बहुत ही कड़वा बने न बहुत ही मीठा। बल्कि सख्ती और नर्मी मौक़अ मौक़अ से दोनों पर अमल करता रहे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 73 📚*


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          *❝  बीवी के हुकूक #08 ❞* 

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࿐  *(8)* शोहर को येह भी चाहिये कि सफ़र में जाते वक्त अपनी बीवी से इन्तिहाई प्यार व महब्बत के साथ हंसी खुशी से मुलाकात कर के मकान से निकले और सफ़र से वापस हो कर कुछ न कुछ सामान बीवी के लिये ज़रूर लाए कुछ न हो तो कुछ खट्टा-मीठा ही लेता आए और बीवी से कहे कि येह खास तुम्हारे लिये ही लाया हूं। शोहर की इस अदा से औरत का दिल बढ़ जाएगा और वोह इस ख़याल से बहुत ही खुश और मगन रहेगी कि मेरे शोहर को मुझ से ऐसी महब्बत है कि वोह मेरी नज़रों से गाइब रहने के बाद भी मुझे याद रखता है और उस को मेरा ख़याल लगा रहता है ज़ाहिर है कि इस से बीवी अपने शोहर के साथ किस क़दर ज़ियादा महब्बत करने लगेगी!

࿐  *(9)* औरत अगर अपने मैके से कोई चीज़ ला कर या खुद बना कर पेश करे तो मर्द को चाहिये कि अगर्चे वोह चीज़ बिल्कुल ही घटिया दरजे की हो मगर इस पर खुशी का इज़हार करे और निहायत ही पुर तपाक और इन्तिहाई चाह के साथ इस को क़बूल करे और चन्द अल्फ़ाज़ तारीफ़ के भी औरत के सामने कह दे ताकि औरत का दिल बढ़ जाए और उस का हौसला बुलन्द हो जाए।

࿐  *ख़बरदार ख़बरदार!* औरत के पेश किये हुए तोहफ़ों को कभी हरगिज़ हरगिज़ न ठुकराए न इन को हक़ीर बताए न इन में ऐब निकाले वरना औरत का दिल टूट जाएगा और उस का हौसला पस्त हो जाएगा।

࿐  *याद रखो!* कि टूटा हुवा शीशा तो जोड़ा जा सकता है मगर टूटा हुवा दिल बड़ी मुश्किल से जुड़ता है और जिस तरह शीशा जुड़ जाने के बाद भी इस का दाग नहीं मिटता इसी तरह टूटा हुवा दिल जुड़ जाए फिर भी दिल में दाग धब्बा बाक़ी ही रह जाता है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 74 📚*


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       *❝  बीवी के हुकूक #09 ❞*  
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࿐  *(10)* औरत अगर बीमार हो जाए तो शोहर का येह अख़्लाक़ी फ़रीज़ा है कि औरत की गम ख्वारी और तीमारदारी में हरगिज़ हरगिज़ कोई कोताही न करे बल्कि अपनी दिलदारी व दिलजोई और भाग-दौड़ से औरत के दिल पर नक्श बिठा दे कि मेरे शोहर को मुझ से बेहद महब्बत है इस का नतीजा येह होगा कि औरत शोहर के इस एहसान को याद रखेगी और वोह भी शोहर की ख़िदमत गुज़ारी में अपनी जान लड़ा देगी। 

࿐  *(11)* शोहर को चाहिये कि अपनी बीवी पर ए'तिमाद और भरोसा करे और घरेलू मुआमलात उस के सिपुर्द करे ताकि बीवी अपनी हैषिय्यत को पहचाने और उस का वकार उस में खुद ए'तिमादी पैदा करे और वोह निहायत ही दिलचस्पी और कोशिश के साथ घरेलू मुआमलात के इन्तिज़ाम को संभाले। 

࿐  रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि औरत अपने शोहर के घर की निगरान और मुहाफ़िज़ है और इस मुआमले में औरत से कियामत में खुदावन्दे कुद्दूस पूछ-गछ फ़रमाएगा बीवी पर ए'तिमाद करने का येह फ़ाइदा होगा कि वोह अपने आप को घर के इन्तिज़ामी मुआमलात में एक शो'बे की ज़िम्मेदार ख़याल करेगी और शोहर को बड़ी हद तक घरेलु बखेड़ों से नजात मिल जाएगी और सुकून व इतमीनान की ज़िन्दगी नसीब होगी!

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 75 📚*

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          *❝  बीवी के हुकूक #10 ❞* 

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࿐  *(12)* औरत का उस के शोहर पर एक हक़ येह भी है कि शोहर औरत के बिस्तर की राज़ वाली बातों को दूसरों के सामने न बयान करे बल्कि इस को राज़ बना कर अपने दिल ही में रखे क्यूंकि हदीष शरीफ़ में आया है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि खुदा के नज़दीक बद-तरीन शख्स वोह है जो अपनी बीवी के पास जाए फिर उस के पर्दे की बातों को लोगों पर ज़ाहिर करे और अपनी बीवी को दूसरों की निगाहों में रुसवा करे।

࿐   *(13)* शोहर को चाहिये कि बीवी के सामने आए तो मैले कुचैले गन्दे कपड़ों में न आए बल्कि बदन और लिबास व बिस्तर वगैरा की सफ़ाई सुथराई का खास तौर पर ख़याल रखे क्यूंकि शोहर जिस तरह येह चाहता है कि उस की बीवी बनाव सिंघार के साथ रहे इसी तरह औरत भी येह चाहती है कि मेरा शोहर मैला कुचैला न रहे, लिहाज़ा मियां-बीवी दोनों को हमेशा एक दूसरे के जज्बात व एहसासात का लिहाज़ रखना ज़रूरी है, रसूलुल्लाह ﷺ को इस बात से सख़्त नफ़रत थी कि आदमी मैला कुचेला बना रहे और उस के बाल उलझे रहें।
_इस हदीष पर मियां-बीवी दोनों को अमल करना चाहिये। _

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 75 📚*


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         *❝  बीवी के हुकूक #11 ❞* 
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࿐  *(14)* औरत का उस के शोहर पर येह भी हक़ है कि शोहर औरत की नफ़ासत और बनाव सिंघार का सामान या'नी साबुन, तेल कंघी, मेहंदी, खुश्बू वगैरा फ़राहम करता रहे। ताकि औरत अपने आप को साफ़ सुथरी रख सके और बनाव सिंघार के साथ रहे।

࿐  *(15)* शोहर को चाहिये कि मा'मूली मा'मूली बे बुन्याद बातों पर अपनी बीवी की तरफ़ से बद गुमानी न करे बल्कि इस मुआमले में हमेशा एहतियात और समझदारी से काम ले, *याद रखो!* कि मा'मूली शुबहात की बिना पर बीवी के ऊपर इल्ज़ाम लगाना या बद गुमानी करना बहुत बड़ा गुनाह है। हदीष शरीफ़ में है कि एक दीहाती ने रसूलुल्लाह ﷺ के दरबार में हाज़िर हो कर कहा कि मेरी बीवी के शिकम से एक बच्चा पैदा हुवा है जो काला है और मेरा हम शक्ल नहीं है इस लिये मेरा ख़याल है कि येह बच्चा मेरा नहीं है!

࿐  दीहाती की बात सुन कर हुजूर ﷺ ने फ़रमाया कि क्या तेरे पास कुछ ऊंट हैं? उस ने अर्ज़ किया कि मेरे पास बहुत ज़ियादा ऊंट हैं आप ने फ़रमाया कि तुम्हारे ऊंट किस रंग के हैं? उस ने कहा सुर्ख रंग के हैं। आप ने फ़रमाया कि क्या इन में कुछ खाकी रंग के भी है या नहीं? उस ने कहा जी हां, कुछ ऊंट खाकी रंग के भी हैं आप ने फ़रमाया कि तुम बताओ कि सुर्ख ऊंटों की नस्ल में खाकी रंग के ऊंट कैसे और कहां से पैदा हो गए? दीहाती ने जवाब दिया कि मेरे सुर्ख रंग के ऊंटों के बाप दादाओं में कोई खाकी रंग का ऊंट रहा होगा उस की रग ने इस को अपने रंग में खींच लिया होगा इस लिये सुर्ख ऊंटों का बच्चा खाकी रंग का हो गया।  येह सुन कर हुजूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि मुमकिन है तुम्हारे बाप दादाओं में भी कोई काले रंग का हुवा हो और उस की रग ने तुम्हारे बच्चे को खींच कर अपने रंग का बना लिया हो। और येह बच्चा उस का हम शक्ल हो गया।

࿐   इस हदीष से साफ़ ज़ाहिर है कि महज़ इतनी सी बात पर कि बच्चा अपने बाप का हम शक्ल नहीं है हुजूर ﷺ ने उस दीहाती को इस की इजाजत नहीं दी कि वोह अपने इस बच्चे के बारे में येह कह सके कि येह मेरा बच्चा नहीं है लिहाज़ा इस हदीष से साबित हुवा कि महज़ शुबे की बिना पर अपनी बीवी के ऊपर इलज़ाम लगा देना जाइज़ नहीं है बल्कि बहुत बड़ा गुनाह है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 77 📚*


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         *❝  बीवी के हुकूक #12 ❞* 
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࿐  *(16)* अगर मियां-बीवी में कोई इख़्तिलाफ़ या कशीदगी पैदा हो जाए तो शोहर पर लाज़िम है कि तलाक देने में हरगिज़ हरगिज़ जल्दी न करे। बल्कि अपने गुस्से को ज़ब्त करे और गुस्सा उतर जाने के बाद ठंडे दिमाग से सोच समझ कर और लोगों से मश्वरा ले कर येह गौर करे क्या मियां-बीवी में निबाह की कोई सूरत हो सकती है या नहीं? अगर बनाव और निबाह की कोई शक्ल निकल आए तो हरगिज़ हरगिज़ तलाक न दे, क्यूंकि तलाक कोई अच्छी चीज़ नहीं है : रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि हलाल चीज़ों में सब से ज़ियादा खुदा के नज़दीक ना पसन्दीदा चीज़ तलाक़ है।

࿐  अगर खुदा न ख्वास्ता ऐसी सख्त ज़रूरत पेश आ जाए कि तलाक़ देने के सिवा कोई चारा न रहे तो ऐसी सूरत में तलाक़ देने की इजाज़त है वरना तलाक़ कोई अच्छी चीज़ नहीं है, बा'ज़ जाहिल ज़रा ज़रा सी बातों पर अपनी बीवी को तलाक़ दे देते हैं और फिर पछताते हैं और आलिमों के पास झूट बोल बोल कर मस्अला पूछते फिरते हैं,कभी कहते हैं कि गुस्से में तलाक़ दी थी, कभी कहते हैं कि तलाक़ देने की निय्यत नहीं थी, गुस्से में बिला इख़्तियार तलाक़ का लफ़्ज़ मुंह से निकल गया,कभी कहते हैं कि औरत माहवारी की हालत में थी, कभी कहते हैं कि मैं ने तलाक़ दी मगर बीवी ने तलाक़ ली नहीं।

࿐  हालांकि इन गंवारों को मालूम होना चाहिये कि इन सब सूरत में तलाक पड़ जाती है और बा'ज़ तो ऐसे बद नसीब हैं कि तीन तलाक़ दे कर झूट बोलते हैं कि मैं ने एक ही बार कहा था और येह कह कर बीवी को रख लेते हैं और उम्र भर जिनाकारी के गुनाह में पड़े रहते हैं, इन ज़ालिमों को इस का एहसास ही नहीं होता कि तीन तलाक के बाद औरत बीवी नहीं रह जाती बल्कि वोह एक ऐसी अजनबी औरत हो जाती है कि बिगैर हलाला कराए उस से दोबारा निकाह नहीं हो सकता।

🤲🏻 खुदावन्दे करीम इन लोगों को हिदायत दे।_ (आमीन)

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 78 📚*


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          *❝  बीवी के हुकूक #13 ❞* 

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࿐  *(17)* अगर किसी के पास दो बीवियां या इस से ज़ियादा हों तो उस पर फ़र्ज़ है कि तमाम बीवियों के दरमियान अद्ल और बराबरी का सुलूक और बरताव करे!खाने, पीने, मकान, सामान, रोशनी, बनाव सिंघार की चीज़ों गरज़ तमाम मुआमलात में बराबरी बरते। इसी तरह हर बीवी के पास रात गुज़ारने की बारी मुकर्रर करने में भी बराबरी का ख़याल मल्हूज़ रखे।

࿐  *याद रखो!* कि अगर किसी ने अपनी तमाम बीवियों के साथ यक्सां और बराबर सुलूक नहीं किया तो वोह हक्कुल इबाद में गिरिफ़्तार और अज़ाबे जहन्नम का हक़दार होगा! हदीष शरीफ़ में है कि "जिस शख्स के पास दो बीवियां हों और उस ने इन के दरमियान अद्ल और बराबरी का बरताव नहीं किया तो वोह कियामत के दिन मैदाने महशर में इस हालत में उठाया जाएगा कि उस का आधा बदन मफ़लूज (फ़ालिज लगा हुवा) होगा।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 78 📚*


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         *❝  बीवी के हुकूक #14 ❞* 
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࿐  *(18)* अगर बीवी के किसी कौलो फेल, बदखूई, बद अख़्लाक़ी, सख़्त मिज़ाजी, ज़बान दराजी वगैरा से शोहर को कभी कभी कुछ अज़िय्यत और तक्लीफ़ पहुंच जाए तो शोहर को चाहिये कि सब्रो तहम्मुल और बरदाश्त से काम ले।  क्यूंकि औरतों का टेढ़ापन एक फ़ित्री चीज़ है। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि औरत हज़रते आदम علیه السلام की सब से टेढ़ी पस्ली से पैदा की गई अगर कोई शख्स टेढ़ी पस्ली को सीधी करने की कोशिश करेगा तो पस्ली की हड्डी टूट जाएगी मगर वोह कभी सीधी नहीं हो सकेगी। ठीक इसी तरह अगर कोई शख्स अपनी बीवी को बिल्कुल ही सीधी करने की कोशिश करेगा तो येह टूट जाएगी या'नी तलाक की नौबत आ जाएगी। लिहाज़ा अगर औरत से फ़ाइदा उठाना है तो उस के टेढ़ेपन के बा वुजूद उस से फाइदा उठा लो येह बिल्कुल सीधी कभी हो ही नहीं सकती। जिस तरह टेढ़ी पस्ली की हड्डी कभी सीधी नहीं हो सकती।

࿐  *(19)* शोहर को चाहिये कि औरत के अख़राजात के बारे में बहुत ज़ियादा बख़ीली और कंजूसी न करे न हद से ज़ियादा फुजूल खर्ची करे, अपनी आमदनी को देख कर बीवी के अख़राजात मुकर्रर करे, न अपनी ताकत से बहुत कम, न अपनी ताकत से बहुत ज़ियादा।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 79 📚*


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    *❝  मुसलमान औरतों का पर्दा #01 ❞* 

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࿐  अल्लाह عزوجل व रसूल ﷺ ने इन्सानी फ़ितरत के तकाज़ों के मुताबिक़ बदकारी के दरवाज़ों को बन्द करने के लिये औरतों को पर्दे में रखने का हुक्म दिया है पर्दे की फ़र्जिय्यत और इस की अहम्मिय्यत कुरआने मजीद और हदीषों से षाबित है।

࿐  चुनान्चे कुरआने मजीद में अल्लाह तआला ने औरतों पर पर्दा फ़र्ज़ फ़रमाते हुए इरशाद फ़रमाया कि :- "तुम अपने घरों के अन्दर रहो और बे पर्दा हो कर बाहर न निकलो जिस तरह पहले ज़माने के दौरे जाहिलिय्यत में औरतें बे पर्दा बाहर निकल कर घूमती फिरती थीं।
                    *📓پ۲۲،الاحزاب۳۳*

࿐   इस आयत में अल्लाह तआला ने साफ़ साफ़ औरतों पर पर्दा फ़र्ज़ कर के येह हुक्म दिया है कि वोह घरों के अन्दर रहा करें और ज़मानए जाहिलिय्यत की बे हयाई व बे पर्दगी की रस्म को छोड़ दें।

࿐  ज़मानए जाहिलिय्यत में कुफ्फ़ारे अरब का येह दस्तूर था कि इन की औरतें खूब बन संवर कर बे पर्दा निकलती थीं और बाज़ारों और मेलों में मर्दो के दोश बदोश घूमती फिरती थीं, इस्लाम ने इस बे पर्दगी की बे हयाई से रोका और हुक्म दिया कि औरतें घरों के अन्दर रहें और बिला ज़रूरत बाहर न निकलें और अगर किसी ज़रूरत से इन्हें घर से बाहर निकलना ही पड़े तो ज़मानए जाहिलिय्यत के मुताबिक़ बनाव सिंघार कर के बे पर्दा न निकलें, बल्कि पर्दे के साथ बाहर निकलें।

࿐  हदीष शरीफ़ में है रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि औरत पर्दे में रहने की चीज़ है जिस वक्त वोह बे-पर्दा हो कर बाहर निकलती है तो शैतान उस को झांक झांक कर देखता है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 81 📚*


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    *❝ मुसलमान औरतों का पर्दा #02 ❞* 

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࿐   हदीष में है कि, बनाव सिंगार कर के इतरा इतरा कर चलने वाली औरत की मिषाल उस तारीकी की है जिस में बिल्कुल रोशनी ही न हो। इसी तरह हज़रते अबू मूसा अशअ़री रजीअल्लाहो तआला अन्हु से रिवायत है कि : “हुजूरे अक्दस ﷺ ने फ़रमाया जो औरत खुश्बू लगा कर मर्दो के पास से गुज़रे ताकि लोग उस की खुश्बू सूंघे वोह औरत बद चलन है।

࿐   *प्यारी बहनो!* आज कल जो औरतें बनाव सिंगार और उरयां लिबास पहन कर खुश्बू लगाए बिला पर्दा बाजारों में घूमती हैं और सिनेमा, थियेटरों में जाती हैं वोह इन हदीषों की रोशनी में अपने बारे में खुद ही फैसला कर लें कि वोह कौन हैं ? और कितनी बड़ी गुनाहगार हैं ?

࿐   *ऐ अल्लाह की बन्दियो!* तुम खुदा के फज़्ल से मुसलमान हो अल्लाह व रसूल ﷺ ने तुम्हें ईमान की दौलत से माला माल किया है तुम्हारे ईमान का तकाज़ा येह है कि तुम अल्लाह व रसूल ﷺ के अहकाम को सुनो और इन पर अमल करो अल्लाह व रसूल ﷺ ने तुम्हें पर्दे में रहने का हुक्म दिया है इस लिये तुम को लाज़िम है कि तुम पर्दे में रहा करो और अपने शोहर और अपने बाप दादाओं की इज्ज़त व अज़मत और उन के नामूस को बरबाद न करो येह दुन्या की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी आनी फ़ानी है।

࿐  *याद रखो!* एक दिन मरना है और फिर कियामत के दिन अल्लाह व रसूल ﷺ को मुंह दिखाना है कब्र और जहन्नम के अज़ाबों को याद करो हज़रते ख़ातूने जन्नत बीबी फ़ातिमा ज़हरा रजीअल्लाह तआला अन्हा और उम्मत की माओं या'नी रसूलुल्लाह ﷺ की मुक़द्दस बीवियों के नक्शे कदम पर चल कर अपनी दुन्या व आख़िरत को संवारो और खुदा के लिये यहूदो नसारा और मुशरिकीन की औरतों के तरीकों पर चलना छोड़ दो।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 81 📚*


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   *❝ पर्दा इज़्ज़त है बे इज़्ज़ती नहीं ❞* 

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࿐  आज कल बा'ज़ मुलहिद किस्म के दुश्मनाने इस्लाम मुसलमान औरतों को येह कह कर बहकाया करते हैं कि इस्लाम ने औरतों को पर्दे में रख कर औरतों की बेइज्जती की है इस लिये औरतों को पर्दो से निकल कर हर मैदान में मर्दो के दोश बदोश खड़ी हो जाना चाहिये। *मगर प्यारी बहनो!* खूब अच्छी तरह समझ लो कि इन मर्दो का येह प्रोपेगन्डा इतना गन्दा और घिनावना फ़रैब और धोका है कि शायद शैतान को भी न सूझा होगा।

࿐  *ऐ अल्लाह की बन्दियो!* तुम्हीं इन्साफ़ करो कि तमाम किताबें खुली पड़ी रहती हैं और बे पर्दा रहती हैं मगर कुरआन शरीफ़ पर हमेशा गिलाफ़ चढ़ा कर इस को पर्दे में रखा जाता है तो बताओ क्या कुरआने मजीद पर गिलाफ़ चढ़ाना येह कुरआन की इज्ज़त है या बे इज्जती..?
इसी तरह तमाम दुन्या की मस्जिदें बे पर्दा रखी गई हैं मगर ख़ानए का'बा पर गिलाफ़ चढ़ा कर इस को पर्दे में रखा गया है तो बताओ क्या का'बए मुक़द्दसा पर गिलाफ़ चढ़ाना इस की इज्ज़त है या बे इज़्ज़ती ?

࿐  तमाम दुन्या को मालूम है कि कुरआने मजीद और का'बए मुअज्जमा पर गिलाफ़ चढ़ा कर इन दोनों की इज्जतो अजमत का एलान किया गया है कि तमाम किताबों में सब से अफ्ज़लो आ'ला कुरआन है और तमाम मस्जिदों में अफ़ज़लो आ'ला का'बए मुअज्जमा है इसी तरह मुसलमान औरतों को पर्दे का हुक्म दे कर अल्लाह व रसूल ﷺ की तरफ़ से इस बात का ऐलान किया गया है कि अक़वामे आलम की तमाम औरतों में मुसलमान औरत तमाम औरतों से अफ़ज़लो आ'ला है।

࿐  *प्यारी बहनो!* अब तुम्हीं को इस का फैसला करना है कि इस्लाम ने मुसलमान औरतों को पर्दो में रख कर इन की इज्ज़त बढ़ाई है या इन की बेइज्जती की है..?

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 82 📚* 

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      *❝ किन लोगों से पर्दा फ़र्ज़ है.? ❞* 
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࿐  हर गैर महरम मर्द ख़्वाह अजनबी हो ख्वाह रिश्तेदार बाहर रहता हो या घर के अन्दर हर एक से पर्दा करना औरत पर फ़र्ज़ है हां, उन मर्दो से जो औरत के महरम हैं पर्दा करना औरत पर फ़र्ज़ नहीं, महरम वोह मर्द हैं जिन से औरत का निकाह कभी भी और किसी सूरत में भी जाइज़ नहीं हो सकता। *मसलन:-* बाप, दादा, चचा, मामू, नाना, भाई, भतीजा, भानजा, पोता, नवासा, खुसर इन लोगों से पर्दा करना ज़रूरी नहीं है।

࿐   *गैर महरम वोह मर्द हैं :-* जिन से औरत का निकाह हो सकता है जैसे चचाज़ाद भाई, मामूंज़ाद भाई ,फूफीज़ाद भाई, खालाज़ाद भाई, जेठ और देवर वगैरा येह सब औरत के गैर महरम हैं।और इन सब लोगों से पर्दा करना औरत पर फ़र्ज़ है।

࿐  हमारे यहां येह बहुत ही गलत ख़िलाफ़े शरीअत रवाज है कि औरतें अपने देवरों से बिल्कुल पर्दा नहीं करतीं, बल्कि देवरों से हंसी मज़ाक और इन के साथ हाथा-पाई तक करने को बुरा नहीं समझतीं हालांकि देवर औरत का महरम नहीं है, इस लिये दूसरे तमाम गैर महरम मर्दो की तरह औरतों को देवरों से पर्दा करना फ़र्ज़ है। बल्कि हदीष शरीफ़ में तो यहां तक देवरों से पर्दे की ताकीद है कि:- *"الْحَمْوُالْمَوْتُ"*
या'नी देवर औरत के हक में ऐसा ही ख़तरनाक है जैसे मौत। और औरत को देवर से इसी तरह दूर भागना चाहिये जिस तरह लोग मौत से भागते हैं।

࿐  बहर हाल खूब अच्छी तरह समझ लो कि गैर महरम से पर्दा फ़र्ज़ है,चाहे वोह अजनबी मर्द हो या रिश्तेदार, देवर, जेठ भी गैर महरम हैं इस लिये इन लोगों से भी पर्दा करना ज़रूरी है इसी तरह कुफ्फार व मुशरिकीन की औरतों से भी मुसलमान औरतों को पर्दा करना लाज़िम है और उन को घरों में आने जाने से रोक देना चाहिये।

࿐  *मस्अला :-* औरत का पीर भी औरत का गैर महरम है इस लिये मुरीदा को अपने पीर से भी पर्दा करना फ़र्ज़ है और पीर के लिये भी येह जाइज़ नहीं कि अपनी मुरीदा को बे पर्दा देखे या तन्हाई में उस के पास बैठे, बल्कि पीर के लिये येह भी जाइज़ नहीं कि औरत का हाथ पकड़ कर उस को बैअत करे, जैसा कि हज़रते आइशा रजीअल्लाहो तआला अन्हा ने औरतों की बैअत के मुतअल्लिक़ फ़रमाया कि हुजूर ﷺ
         *"یٰٓاَیُّھَاالنَّبِیُّ اِذَاجَآءَكَ الْمُؤمِنَاتُ"*
से औरतों का इम्तिहान फ़रमाते थे जो औरत इस आयत का इकरार कर लेती थी तो आप ﷺ उस से फ़रमाते थे कि मैं ने तुझ से येह बैअत ले ली येह बैअत ब ज़रीअए कलाम होती थी खुदा की कसम कभी भी हुजूर ﷺ का हाथ किसी औरत के हाथ से बैअत के वक़्त नहीं लगा।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 84 📚*


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             *❝  बेहतरीन शोहर कि शान ❞* 

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࿐ *⓵* जो अपनी बीवी के साथ नर्मी,  खुश खुल्की और हुस्ने सुलूक के साथ पेश आए!

࿐  *⓶* जो अपनी बीवी के हुकूक को अदा करने में किसी किस्म की गफ़्लत और कोताही न करे!

࿐  *⓷* जो अपनी बीवी का इस तरह हो कर रहे कि किसी अजनबी औरत पर निगाह न डाले!

࿐  *⓸* जो अपनी बीवी को अपने ऐशो आराम में बराबर का शरीक समझे।

࿐   *⓹* जो अपनी बीवी पर कभी जुल्म और किसी किस्म की बेजा ज़ियादती न करे।

࿐  *⓺* जो अपनी बीवी की तुन्द मिज़ाजी और बद अख़्लाक़ी पर सब्र करे।

࿐  *⓻* जो अपनी बीवी की खूबियों पर नज़र रखे और मा'मूली गलतियों को नज़र अन्दाज़ करे।

࿐  *⓼* जो अपनी बीवी की मुसीबतों,  बीमारियों और रंजो गम में दिलजोई, तीमारदारी और वफ़ादारी का सुबूत दे।

࿐  *⓽* जो अपनी बीवी को पर्दे में रख कर इज्जत व आबरू की हिफ़ाज़त करे।

࿐  *⓵⓪* जो अपनी बीवी को दीनदारी की ताकीद करता रहे और शरीअत की राह पर चलाए।

࿐  *⓵⓵* जो अपनी बीवी और अहलो इयाल को कमा कमा कर रिज्के हलाल खिलाए।

࿐  *⓵⓶* जो अपनी बीवी के मैके वालों और उस की सहेलियों के साथ भी अच्छा सुलूक करे।

࿐  *⓵⓷* जो अपनी बीवी को ज़िल्लत व रुसवाई से बचाए रखे।

࿐  *⓵⓸* जो अपनी बीवी के अख़राजात में बख़ीली और कन्जूसी न करे!

࿐  *⓵⓹* जो अपनी बीवी पर इस तरह कन्ट्रोल रखे कि वोह किसी बुराई की तरफ़ रुख भी न कर सके।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 85 📚*


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            *❝  बच्चों के हुकूक #01 ❞* 

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࿐  *⓵*  हर मां पर लाज़िम है कि अपने बच्चों से प्यार व महब्बत करे और हर मुआमले में उन के साथ मुशफ़िकाना बरताव करे और उन की दिलजोई व दिल बस्तगी में लगी रहे और उन की परवरिश और तबिय्यत में पूरी पूरी कोशिश करे।

࿐  *⓶* अगर मां के दूध में कोई खराबी न हो तो मां अपना दूध अपने बच्चों को पिलाए कि दूध का बच्चों पर बड़ा अषर पड़ता है।

࿐  *⓷* बच्चों की सफ़ाई सुथराई इन की तन्दुरुस्ती व सलामती का ख़ास तौर पर ध्यान रखे।

࿐  *⓸* बच्चों को हर किस्म के रंजो गम और तक्लीफ़ों से बचाती रहे।

࿐  *⓹* बे ज़बान बच्चे अपनी ज़रूरिय्यात बता नहीं सकते इस लिये मां का फ़र्ज़ है कि बच्चों के इशारात को समझ कर उन की ज़रूरियात को पूरी करती रहे।

࿐  *⓺* बा'ज़ माएं चिल्ला कर या बिल्ली की बोली बोल कर या सिपाही का नाम ले कर, या कोई धमाके कर के छोटे बच्चों को डराया करती हैं येह बहुत ही बुरी बातें हैं बार बार ऐसा करने से बच्चों का दिल कमज़ोर हो जाता है और वोह बड़े होने के बा'द डरपोक हो जाया करते हैं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 85 📚*


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           *❝  बच्चों के हुकूक #02 ❞* 

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࿐  7.  बच्चे जब कुछ बोलने लगें तो मां को चाहिये कि उन्हें बार बार अल्लाह पाक व रसूल (ﷺ) का नाम सुनाए उन के सामने बार बार कलिमा पढ़े यहां तक कि वोह कलिमा पढ़ना सीख जाएं।

࿐  8.  जब बच्चे बच्चियां तालीम के काबिल हो जाएं तो सब से पहले उनको कुरआन शरीफ़ और दीनियात की तालीम दिलाएं।

࿐  9.  बच्चों को इस्लामी आदाब व अख़लाक़ और दीनो मज़हब की बातें सिखाएं।

࿐  10.  अच्छी बातों की रग़बत दिलाएं और बुरी बातों से नफ़रत दिलाएं।

࿐  11.  तालीमो तर्बियत पर ख़ास तौर पर तवज्जोह करें और तर्बियत का ध्यान रखें क्यूंकि बच्चे सादा वरक़ के मानिन्द होते हैं सादा कागज़ पर जो नक्शो निगार बनाए जाएं वोह बन जाते हैं और बच्चों बच्चियों का सब से पहला मद्रसा मां की गोद है इस लिये मां की ता'लीमो तर्बियत का बच्चों पर बहुत गहरा अषर पड़ता है लिहाजा हर मां का फ़र्ज़े मन्सबी है कि बच्चों को इस्लामी तहज़ीब व तमद्दुन के सांचे में ढाल कर उन की बेहतरीन तर्बियत करे अगर मां अपने इस हक़ को न अदा करेगी तो गुनाहगार होगी !

࿐   12. जब बच्चा या बच्ची सात बरस के हो जाएं तो उन को तहारत और वुज़ू व गुस्ल का तरीका सिखाएं और नमाज़ की तालीम दे कर उन को नमाज़ी बनाएं और पाकी व नापाकी और हलाल व हराम और फ़र्ज़ व सुन्नत वग़ैरा के मसाइल उन को बताएं।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 86 📚*


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            *❝  बच्चों के हुकूक #03 ❞* 

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࿐  (13) खराब लड़कों और लड़कियों की सोहबत, उन के साथ खेलने से बच्चों को रोके और खेल तमाशों के देखने से, नाच गाने, सिनेमा थियेटर वग़ैरा लग्विय्यात से बच्चों और बच्चियों को खास तौर पर बचाएं।

࿐  14. हर मां-बाप का फ़र्ज़ है कि बच्चों और बच्चियों को हर बुरे कामों से बचाएं और उन को अच्छे कामों की रग़बत दिलाएं ताकि बच्चे और बच्चियां इस्लामी आदाब व अखलाक के पाबन्द और ईमानदारी व दीनदारी के जोहर से आरास्ता हो हो जाएं और सहीह मानों में मुसलमान बन कर इस्लामी ज़िन्दगी बसर करें।

࿐  15.  येह भी बच्चों का हक है कि उन की पैदाइश के सातवें दिन मां-बाप उन का सर मुंडा कर बालों के वज़न के बराबर चांदी खैरात करें और बच्चे का कोई अच्छा नाम रखें, ख़बरदार ख़बरदार हरगिज़ हरगिज़ बच्चों बच्चियों का कोई बुरा नाम न रखें।

࿐  16. जब बच्चा पैदा हो तो फ़ौरन ही उस के दाएं कान में अज़ान और बाएं कान में इक़ामत पढ़ें ताकि बच्चा शैतान के खुलल से महफूज़ रहे और छुहारा वगैरा कोई मीठी चीज़ चबा कर उस के मुंह में डाल दें ताकि बच्चा शीरीं ज़बान और बा अख़लाक़ हो।

࿐  17.  नया मेवा, नया फल पहले बच्चों को खिलाएं फिर खुद खाएं कि बच्चे भी ताज़ा फल हैं नए फल को नया फल देना अच्छा है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 87📚*


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          *❝  बच्चों के हुकूक #04 ❞* 
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࿐  18.  चन्द बच्चे बच्चियां हों तो जो चीजें दें सब को यक्सां और बराबर दें हरगिज़ कमी बेशी न करें वरना बच्चों की हक़ तलफ़ी होगी बच्चियों को हर चीज़ बच्चों के बराबर ही दें बल्कि बच्चियों की दिलजोई व दिलदारी का खास तौर पर ख़याल रखें क्यूंकि बच्चियों का दिल बहुत नाजुक होता है।

࿐  19.  लड़कियों को लिबास और ज़ेवर से आरास्ता और बनाव सिंघार के साथ रखें ताकि लोग रगबत साथ निकाह का पैगाम दें हां इस ख़याल रखें कि वोह ज़ेवरात पहन कर बाहर न निकलें कि चोरों डाकूओं से जान का खतरा है बच्चियों को बाला खानों पर न रहने दें कि इस में बेहयाई का खतरा है।

࿐   20.  उम्र में बच्चियों की शादी कर दें मगर ख़बरदार हरगिज़ हरगिज़ किसी बद दीन या बद मज़हब मषलन राफ़िज़ी, खारिजी, वहाबी, गैर मुकुल्लिद वगैरा के यहां लड़कों या लड़कियों की शादी न करें वरना अवलाद की बहुत बड़ी हक़ तलफी होगी और मां-बाप के सरों पर बहुत बड़े गुनाह का बोझ होगा और वोह अज़ाबे जहन्नम के हक़दार होंगे।

࿐  इसी तरह फासिकों, फाजिरों, शराबियों, बदकारों, हराम की कमाई खाने वालों, सूद खोरों और ना जाइज़ काम धंदा करने वालों के यहां भी लड़कों और लड़कियों की शादियां न करें और रिश्ता तलाश करने में सब से पहले और सब से ज़ियादा मज़हबे अहले सुन्नत और दीनदार होने का ख़ास तौर पर ध्यान रखें।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 88 📚*


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 *❝ अवलाद की परवरिश करने का तरीका #01❞* 

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࿐  हर मां-बाप को येह जान लेना चाहिये कि बचपन में जो अच्छी बुरी आदतें बच्चों में पुख्ता हो जाती हैं वोह उम्र भर नहीं छूटती हैं इस लिये मां-बाप को लाज़िम है कि बच्चों को बचपन ही में अच्छी आदतें सिखाएं और बुरी आदतों से बचाएं बा'ज़ लोग येह कह कर अभी बच्चा है बड़ा होगा तो ठीक हो जाएगा, बच्चों को शरारतों और गलत आदतों से नहीं रोकते। वोह लोग दर हक़ीक़त बच्चों के मुस्तक्बिल को खराब करते हैं और बड़े होने के बा'द बच्चों के बुरे अख़्लाक़ और गन्दी आदतों पर रोते और मातम करते हैं इस लिये निहायत ज़रूरी है कि बचपन ही में बच्चों की कोई शरारत या बुरी आदत देखें तो इस पर रोक टोक करते रहें बल्कि सख्ती के साथ डांटते फटकारते रहें।

࿐  और तरह तरह से बुरी आदतों की बुराइयों को बच्चों के सामने ज़ाहिर कर के बच्चों को इन ख़राब आदतों से नफ़रत दिलाते रहें और बच्चों की खूबियों और अच्छी अच्छी आदतों पर खूब खूब शाबाश कह कर इन का मन बढ़ाएं बल्कि कुछ इन्आम दे कर इन का हौसला बुलन्द करें। इस से क़ब्ल बच्चों के हुकूक के बयान में बच्चों के लिये बहुत सी मुफीद बातें हम लिख चुके हैं अब इस से कुछ जाइद बातें भी हम लिखते हैं।

࿐  मां-बाप पर लाज़िम है कि इन बातों का खास तौर पर ध्यान रखें, ताकि बच्चों और बच्चियों का मुस्तक्बिल रोशन और शानदार बन जाए।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 89 📚*


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  *❝ अवलाद की परवरिश करने का तरीका #02 ❞* 

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࿐  *(1)* बच्चों को दूध पिलाने और खाना खिलाने के लिये वक़्त मुकर्रर कर लो, जो औरतें हर वक्त बच्चों को दूध पिलाती या जल्दी जल्दी बच्चों को दिन रात में बार बार खाना खिलाती रहती हैं उन के बच्चों का हाज़िमा खराब और मे'दा कमजोर हो जाया करता है और बच्चे *कै दस्त* की बीमारियों में मुब्तला हो कर कमजोर हो जाया करते हैं।

࿐   *(2)* बच्चों को साफ़ सुथरा रखो मगर बहुत ज़ियादा बनाव सिंघार मत करो कि इस से अक्सर नज़र लग जाया करती है।

࿐   *(3)* बच्चों को हर दम गोद में न लिये रहो बल्कि जब तक वोह बैठने के काबिल न हों पालने में ज़ियादा तर सुलाए रखो और जब वोह बैठने के काबिल हों तो उन को रफ़्ता रफ़्ता मस्नदों और तकियों का सहारा दे कर बिठाने की कोशिश करो हर दम गोद में लिये रहने से बच्चे कमज़ोर हो जाया करते हैं और वोह गोद में रहने की आदत पड़ जाने से बहुत देर में चलते और बैठते हैं।

࿐  *(4)* बा'ज़ औरतें अपने बच्चों को मिठाई कषरत से खिलाया करती हैं येह सख़्त मुज़िर है मिठाई खाने से दांत खराब और मे'दा कमजोर,और ब कषरत सफ़रावी बीमारियां और फोड़े फुन्सी का रोग बच्चों को लग जाता है मिठाइयों की जगह ग्लूकोज़ के बिस्किट बच्चों के लिये अच्छी गिज़ा है।

࿐  *(5)* बच्चों के सामने ज़ियादा खाने की बुराई बयान करते रहो और हर वक्त खाते पीते रहने से भी बच्चों को नफ़रत दिलाते रहो मषलन यूं कहा करो कि जो ज़ियादा खाता है वोह जंगली और बद्दू होता है और हर वक़्त खाते पीते रहना येह बन्दरों की आदत है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 90 📚*


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 *❝ अवलाद की परवरिश करने का तरीका #03 ❞* 

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࿐  *(6)* बच्चों की हर ज़िद पूरी मत करो कि इस से बच्चों का मिज़ाज बिगड़ जाता है और वोह ज़िद्दी हो जाते हैं और येह आदत उम्र भर नहीं छूटती।

࿐  *(7)* बच्चों के हाथ से फ़कीरों को खाना और पैसा दिलाया करो, इसी तरह खाने पीने की चीजें बच्चों के हाथ से उस के भाई बहनों को या दूसरे बच्चों को दिलाया करो ताकि सख़ावत की आदत हो जाए और खुद गरज़ी और नफ़्स परवरी की आदत पैदा न हो और बच्चा कन्जूस न हो जाए।

࿐  *(8)* चिल्ला कर बोलने और जवाब देने से हमेशा बच्चों को रोको, खास कर बच्चियों को तो खूब खूब डांट फटकार करो, वरना बड़ी होने के बाद भी येही आदत पड़ी रहेगी तो मैकेअ और सुसराल दोनों जगह सब की नज़रों में जलीलो ख़्वार बनी रहेगी और मुंह फट और बद तमीज़ कहलाएगी।

࿐  *(9)* गुस्सा करना और बात बात पर रूठ कर मुंह फुलाना, बहुत बुरा है और बहुत ज़ोर से हंसना ख्वाह मख्वाह भाई बहनों से लड़ना झगड़ना, चुगली खाना, गाली बकना इन हरकतों पर लड़कों और ख़ास कर लड़कियों को बहुत ज़ियादा तम्बीह किया करो इन बुरी आदतों का पड़ जाना उम्र भर के लिये रुसवाई का सामान है।

࿐  *(10)* अगर बच्चा कहीं से किसी की कोई चीज़ उठा लाए अगर्चे कितनी ही छोटी क्यूं न हो। इस पर सब घर वाले ख़फ़ा हो जाएं और *सब घर वाले बच्चे को चोर चोर कह कर शर्म दिलाएं और बच्चे को मजबूर करें कि वोह फ़ौरन इस चीज़ को जहां से वोह लाया है उसी जगह इस को रख आए* फिर चोरी से नफ़रत दिलाने के लिये उस का हाथ धुलाएं और कान पकड़ कर उस से तौबा कराएं ताकि बच्चों के ज़ेहन में अच्छी तरह येह बात जम जाए कि पराई चीज़ लेना चोरी है और चोरी बहुत ही बुरा काम है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह -  90 📚*


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  *❝ अवलाद की परवरिश करने का तरीका #04 ❞* 

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࿐   *(11)* बच्चे गुस्से में अगर कोई चीज़ तोड़ें फोड़ें या किसी को मार बैठे तो बहुत ज़ियादा डांटो बल्कि मुनासिब सज़ा दो ताकि बच्चे फिर ऐसा न करें इस मौकअ पर लाड प्यार न करोl

࿐  *(12)* कभी कभी बच्चों को बुजुर्गों और नेक लोगों की हिकायतें सुनाया करो मगर ख़बरदार ख़बरदार *आशिकी-मा'शूकी* के किस्से कहानियां बच्चों के कान में न पड़ें न ऐसी किताबें बच्चों के हाथों में दो जिन से अख़्लाक़ ख़राब हों।

࿐  *(13)* लड़कों और लड़कियों को ज़रूर कोई ऐसा हुनर सिखा दो जिस से ज़रूरत के वक्त वोह कुछ कमा कर बसर अवकात कर सकें मषलन सिलाई का तरीका या मोज़ा बनियान, स्वेटर बुनना, या रस्सी बटना या चर्खा कातना,यख़बरदार ख़बरदार इन हुनर की बातों को सिखाने में शर्मो आर महसूस न करो।

࿐ *(14)* बच्चों को बचपन ही से इस बात की आदत डालो कि वोह अपना काम खुद अपने हाथ से करें वोह अपना बिछौना खुद अपने हाथ से बिछाएं, और सुब्ह को खुद अपने हाथ से अपना बिस्तर लपैट कर उस की जगह पर रखें अपने कपड़ों और जेवरों को खुद संभाल कर रखें।

࿐  *(15)* लड़कियों को बरतन धोने और खाने पीने घरों और सामान की सफ़ाई सुथराई और सजावट, कपड़ा धोने, कपड़ा रंगने, सीने पिरोने का सब काम मां को लाज़िम है कि बचपन ही से सिखाना शुरूअ कर दे और लड़कियों को मेहनत मशक्कत उठाने की आदत पड़ जाए इस की कोशिश करनी चाहिये।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 90  📚*


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*❝ अवलाद की परवरिश करने का तरीका #05 ❞* 
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࿐  *(16)* मां को लाज़िम है कि बच्चों के दिल में बाप का डर बिठाती रहे ताकि बच्चों के दिलों में बाप का डर रहे।

࿐   *(17)* बच्चे और बच्चियां कोई काम छुप छुपा कर करें तो उन की रोक टोक करो कि येह अच्छी आदत नहीं।

࿐   *(18)* बच्चों से कोई मेहनत का काम लिया करो मषलन लड़कों के लिये लाज़िम है कि वोह कुछ दूर दौड़ लिया करें और लड़कियां चर्खा चलाएं या चक्की पीस लें ताकि उन की सिहहुत ठीक रहे।

࿐   *(19)* बच्चों और बच्चियों को खाने, पहनने और लोगों से मिलने मिलाने और महफ़िलों में उठने बैठने का तरीका और सलीक़ा सिखाना मां-बाप के लिये ज़रूरी है।

࿐   *(20)* चलने में ताकीद करो कि बच्चे जल्दी जल्दी और दौड़ते हुए न चलें और नज़र ऊपर उठा कर इधर उधर देखते हुए न चलें, और न बीच सड़क पर चलें, बल्कि हमेशा सड़क के कनारे कनारे चलें।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 90 📚*


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       *❝  मां- बाप के हुकूक #01 ❞* 
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࿐   हर मर्द व औरत पर अपने मां-बाप के हुकूक को भी अदा करना फ़र्ज़ है ख़ास कर नीचे लिखे हुए चन्द हुकूक का खयाल तो ख़ास तौर पर रखना बेहद ज़रूरी है।

࿐  *(1)* ख़बरदार ख़बरदार हरगिज़ हरगिज़ अपने किसी कौल व फ़ेल से मां-बाप को किसी किस्म की कोई तकलीफ़ न दें, अगर्चे मां-बाप अवलाद पर कुछ ज़ियादती भी करें मगर फिर भी अवलाद पर फ़र्ज़ है कि वोह हरगिज़ हरगिज़ कभी भी और किसी हाल में भी मां-बाप का दिल न दुखाएं।

࿐  *(2)* अपनी हर बात और अपने हर अमल से मां-बाप की ता'ज़ीम व तकरीम करे और हमेशा उन की इज्जत व हुरमत का ख़याल रखे।

࿐  *(3)* हर जाइज़ काम में मां-बाप के हुक्मों की फ़रमां बरदारी करेl

࿐  *(4)* अगर मां-बाप को कोई भी हाजत हो तो जानो माल से उन की ख़िदमत करे।

࿐  *(5)* अगर मां-बाप अपनी ज़रूरत से अवलाद के मालो सामान में से कोई चीज़ ले लें तो ख़बरदार ख़बरदार हरगिज़ हरगिज़ बुरा न मानें न इज़हारे नाराज़ी करें, बल्कि येह समझें कि मैं और मेरा माल सब मां-बाप ही का है।

࿐   हदीष शरीफ़ में है कि हुजूरे अक्दस ﷺ ने एक शख्स से येह फ़रमाया कि:- *انْتَ وَمَالُكَ لِاَ بِیْكَ*
या'नी तू और तेरा माल सब तेरे बाप का है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 93 📚*


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       *❝  मां- बाप के हुकूक #02 ❞* 
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࿐  *(6)* मां-बाप का इन्तिकाल हो जाए तो अवलाद पर मां-बाप का येह हक़ है कि उन के लिये मगफ़िरत की दुआएं करते रहें और अपनी नफ़्ली इबादतों और खैर व खैरात का षवाब उन की रूहों को पहुंचाते रहें, खानों और शीरीनी वगैरा पर फ़ातिहा दिला कर उन की अरवाह को ईसाले षवाब करते रहें।

࿐   *(7)* मां-बाप के दोस्तों और उन के मिलने जुलने वालों के साथ एहसान और अच्छा बरताव करते रहें।

࿐  *(8)* मां-बाप के ज़िम्मे जो कर्ज हो उस को अदा करें या जिन कामों की वोह वसिय्यत कर गए हों उन की वसिय्यतों पर अमल करें।

࿐  *(9)* जिन कामों से ज़िन्दगी में मां-बाप को तकलीफ़ हुवा करती थी उन की वफ़ात के बाद भी उन कामों को न करें कि इस से उन की रूहों को तक्लीफ़ पहुंचेगी।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 93 📚*


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        *❝  मां- बाप के हुकूक #03 ❞* 

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࿐  *(10)* कभी कभी मां-बाप की कब्रों की ज़ियारत के लिये भी जाया करें। उन के मज़ारों पर फ़ातिहा पढ़ें। सलाम करें और उन के लिये दुआए मगफिरत करें इस से मां-बाप की अरवाह को खुशी होगी और फ़ातिहा का षवाब फ़िरिश्ते नूर की थालियों में रख कर उन के सामने पेश करेंगे और मां-बाप खुश हो कर अपने बेटे बेटियों को दुआएं देंगे। दादा-दादी, नाना-नानी, चचा,फूफी, मामूं, खाला, वगैरा के हुकूक भी मां-बाप ही की तरह हैं यूंही बड़े भाई का हक़ भी बाप ही जैसा है चुनान्चे हदीष शरीफ़ में है कि:- *बड़े भाइ का हक़ छोटे भाई पर ऐसा है जैसा कि बाप का हक बेटे पर है!*

࿐   इस ज़माने में लड़के और लड़कियां मां-बाप के हुकूक से बिल्कुल जाहिल और ग़ाफ़िल हैं उन की ता'ज़ीमो तकरीम और फ़रमां बरदारी व ख़िदमत गुज़ारी से मुंह मोड़े हुए हैं। बल्कि कुछ तो इतने बड़े बद बख़्त और ना लाइक़ हैं कि मां-बाप को अपने क़ौलो फेल से अज़िय्यत और तक्लीफ़ देते हैं। और इसी तरह गुनाहे कबीरा में मुब्तला हो कर कहरे कहहार व गज़बे जब्बार में गिरिफ़्तार और अज़ाबे जहन्नम के हकदार बन रहे हैं।

࿐  *👉🏻खूब याद रखो!* कि तुम अपने मां-बाप के साथ अच्छा या बुरा जो सुलूक भी करोगे वैसा ही सुलूक तुम्हारी अवलाद भी तुम्हारे साथ करेगी और येह भी जान लो कि मां-बाप के साथ अच्छा सुलूक करने से रिज्क में तरक्की और उम्र में खैरो बरकत नसीब होती है। येह अल्लाह तआला के सच्चे रसूल ﷺ का फ़रमान है जो हरगिज़ हरगिज़ कभी गलत नहीं हो सकता इस बात पर ईमान रखो कि

*_हज़ार फ़ल्सफ़ियों की चुनीं चुनां बदली..!_*

*_नबी की बात बदलनी न थी,नहीं बदली..!!_*

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 95 📚*


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           *❝  रिश्तेदारों के हुकूक #01 ❞* 

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࿐  अल्लाह तआला ने कुरआन शरीफ़ में और हुजूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने हदीष शरीफ़ में बार बार रिश्तेदारों के साथ एहसान और अच्छे बरताव का हुक्म फ़रमाया हैl लिहाज़ा इन लोगों के हुकूक को भी अदा करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर लाज़िम और ज़रूरी है खास तौर पर इन चन्द बातों पर अमल करना तो लाज़िमी है।

࿐  *(1)* अगर अपने अज़ीज़ो अकरिबा मुफ़्लिस व मोहताज हों और खाने कमाने की ताकत न रखते हों तो अपनी ताकत भर और अपनी गुंजाइश के मुताबिक़ उन की माली मदद करते रहें।

࿐  *(2)* कभी कभी अपने रिश्तेदारों के यहां आते जाते भी रहें और उन की खुशी और गमी में हमेशा शरीक रहें।

࿐  *(3)* ख़बरदार ख़बरदार हरगिज़ हरगिज़ रिश्तेदारों से क़तए तअल्लुक़ कर के रिश्ते को न काटें रिश्तेदारी काट डालने का बहुत बड़ा गुनाह है रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि:- *"अपने रिश्तेदारों से क़तए तअल्लुक करने वाला जन्नत में नहीं दाखिल होगा।"*  अगर रिश्तेदारों की तरफ से कोई तकलीफ़ भी पहुंच जाए तो इस पर सब्र करना और फिर भी उन से मेल जोल और तअल्लुक को बर करार रखना बहुत बड़े षवाब का काम है। हदीष शरीफ़ में है कि जो तुम से तअल्लुक तोड़े तुम उस से मेल मिलाप रखो और जो तुम पर जुल्म करे उस को मुआफ़ कर दो, और जो तुम्हारे साथ बद सुलूकी करे तुम उस के साथ नेक सुलूक करते रहो।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 96 📚*


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        *❝  रिश्तेदारों के हुकूक #02 ❞* 
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࿐   और एक हदीष में येह भी है कि रिश्तेदारों के साथ अच्छा सुलूक करने से आदमी अपने अहलो इयाल का महबूब बन जाता है और उस की मालदारी बढ़ जाती है और उस की उम्र में दराज़ी और बरकत होती है। इन हदीषों से येह सबक मिलता है कि रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करने का कितना बड़ा अज्रो षवाब है और दुन्या व आख़िरत में इस के फ़वाइद व मनाफे किस क़दर ज़ियादा हैं और रिश्तेदारों के साथ बद सुलूकी और उन से तअल्लुक काट लेने का गुनाह कितना भयानक और खौफ़नाक है और दोनों जहां में इस का नुक्सान और वबाल किस कदर ज़ियादा खतरनाक है, इस लिये हर मुसलमान मर्द व औरत पर लाज़िम है कि अपने रिश्तेदारों के हुकूक़ अदा करने और उन के साथ अच्छा बरताव और नेक सुलूक करने का ख़ास तौर पर ध्यान रखे।

࿐  *याद रखो..!!* कि शरीअत के अहकाम पर अमल करना ही मुसलमान के लिये दोनों जहान में सलाह व फलाह का सामान है शरीअत को छोड़ कर कभी भी कोई मुसलमान दोनों जहान में पनप नहीं सकता।

࿐   जो लोग ज़रा ज़रा सी बातों पर अपनी बहनों, बेटियों, फूफियों, खालाओं, मामूओं, चचाओं, भतीजों, भानजों वगैरा से येह कह कर क़तए तअल्लुक कर लेते हैं कि आज से मैं तेरा रिश्तेदार नहीं और त भी तू मेरा रिश्तेदार नहीं। और फिर सलाम-कलाम, मिलना-जुलना बन्द कर देते हैं यहां तक कि रिश्तेदारों की शादी व गमी की तकरीबात का बाएकॉट कर देते हैं। हद हो गई कि बा'ज़ बद नसीब अपने करीबी रिश्तेदारों के जनाज़े और कफ़न दफ़न में भी शरीक नहीं होते तो इन हदीषों की रोशनी में तुम खुद ही फैसला करो कि येह लोग कितने बड़े बद बख़्त, हिरमां नसीब और गुनाहगार हैं..?

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 97 📚*


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          *❝ पड़ोसियों के हुकूक #01 ❞* 

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࿐   अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में और उस के प्यारे रसूल ﷺ ने अहादीष में हमसायों और पड़ोसियों के भी कुछ हुकूक मुकर्रर फ़रमाए हैं जिन को अदा करना हर मुसलमान मर्द व औरत के लिये लाज़िम व ज़रूरी है।

࿐  कुरआने मजीद में है:- *करीबी और दूर वाले पड़ोसियों के साथ नेक सुलूक और अच्छा बरताव रखो।"*

࿐   और हदीष शरीफ़ में आया है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि हज़रते जिब्राईल علیه السلام मुझ को हमेशा पड़ोसियों के हुकूक के बारे में वसिय्यत करते रहे यहां तक कि मुझे येह ख़याल होने लगा कि शायद अन करीब पड़ोसी को अपने पड़ोसी का वारिष ठहरा देंगे।

࿐ एक  हदीष में येह भी है कि एक दिन हुजूर ﷺ वुजू फ़रमा रहे थे तो सहाबए किराम علیھم الرضوان आप के वुजू के धोवन को लूट लूट कर अपने चेहरों पर मलने लगे। येह मन्ज़र देख कर आप ﷺ ने फ़रमाया कि तुम लोग ऐसा क्यूं करते हो ? सहाबा علیھم الرضوان ने अर्ज़ किया कि हम लोग अल्लाह के रसूल ﷺ की महब्बत के जज्बे में येह कर रहे हैं, येह सुन कर आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जिस को येह बात पसन्द हो कि वोह अल्लाह व रसूल ﷺ से महब्बत करे
या अल्लाह व रसूल ﷺ उस से महब्बत करें उस को लाज़िम है कि वोह हमेशा हर बात में सच बोले, और उस को जब किसी चीज़ का अमीन बनाया जाए तो वोह अमानत को अदा करे और अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा सुलूक करे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 97 📚*


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         *❝ पड़ोसियों के हुकूक #02 ❞* 

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࿐   और रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि वोह शख़्स कामिल दरजे का मुसलमान नहीं जो खुद पेट भर कर खा ले और उस का पड़ोसी भूका रह जाए!

࿐  बहर हाल अपने पड़ोसियों के लिये मुनदरिजए ज़ैल बातों का ख़याल रखना चाहिये।

࿐  (1) अपने पड़ोसी के दुख सुख में हमेशा शरीक रहे और ब वक्ते ज़रूरत उनकी हर क़िस्म की इमदाद भी करता रहे।

࿐  (2) अपने पड़ोसियों की ख़बरगीरी और उन की ख़ैर ख़्वाही और भलाई में हमेशा लगा रहे।

࿐  (3) कुछ हदिय्यों और तोहफों का भी लैन- दैन रखे चुनान्चे हदीष शरीफ़ में है कि जब तुम लोग शोरबा पकाओ तो इस में कुछ ज़ियादा पानी डाल कर शोरबे को बढ़ाओ ताकि तुम लोग इस के जरीए अपने पड़ोसियों की ख़बरगीरी और उन की मदद कर सको।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 98 📚*


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 *❝ आम मुसलमानों के हुकूक #01 ❞* 

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࿐  ये जानना चाहिये कि अपने रिश्तेदारों के इलावा मुसलमान होने की हैषिय्यत से हर मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर भी कुछ हुकूक हैं हर मुसलमान के लिये ज़रूरी है कि इन को अदा करे।

*इन हुकूक़ में से चन्द येह हैं।👇🏻*

࿐  *(1)* मुलाकात के वक़्त हर मुसलमान अपने मुसलमान भाइयों को सलाम करे और मर्द मर्द से और औरत औरत से मुसाफ़हा करे तो येह बहुत ही अच्छा और बेहतरीन अमल है। मगर इस का ध्यान रहे कि काफ़िरों, मुशरिकों, मुर्तद्दों, और बदं-मजहबों, इसी तरह जुवा खेलने और शराब पीने और इस किस्म के गुनाहों में मशगूल रहने वालों को देखे तो हरगिज़ हरगिज़ इन लोगों को सलाम न करे। क्यूंकि किसी को सलाम करना येह उस की ता'ज़ीम है और हदीष शरीफ में है कि जब कोई मुसलमान किसी फ़ासिक की ता'ज़ीम करता है तो ग़ज़बे इलाही से अर्श कांप जाता है।

࿐ *(2)* मुसलमानों के सलाम का जवाब दे, याद रखो कि सलाम करना सुन्नत है और सलाम का जवाब देना वाजिब है।

࿐ *(3)* मुसलमान छींक कर *"الْحَمْدُلِلّٰه"* कहे तो *"یرحمك الله"* कह कर उस का जवाब दे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 99 📚*


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  *❝ आम मुसलमानों के हुकूक #02 ❞* 

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࿐   *(4)* कोई मुसलमान बीमार हो जाए तो उस की बीमार पुर्सी करे।

࿐ *(5)* अपनी ताकत भर हर मुसलमान की खैर ख़्वाही और उस की मदद करे।

࿐ *(6)* मुसलमानों की नमाज़े जनाज़ा और उन के दफ्न में शरीक हो।

࿐  *(7)* हर मुसलमान का मुसलमान होने की हैषिय्यत से ए'ज़ाज़ व इकराम करे।

࿐  *(8)* कोई मुसलमान दा'वत दे तो उस की दा'वत को क़बूल करे।

࿐  *(9)* मुसलमान के ऐबों की पर्दा पोशी करे और उन को इख्लास के साथ इन ऐबों से बाज़ रहने की नसीहत करे।

࿐  *(10)* अगर किसी बात में किसी मुसलमान से रंजिश हो जाए तो तीन दिन से ज़ियादा इस से सलाम व कलाम बन्द न रखे।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 99 📚*


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*❝ आम मुसलमानों के हुकूक #03 ❞* 
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࿐  *(11)* मुसलमानों में झगड़ा हो जाए तो सुल्ह करा दे।

࿐ *(12)* किसी मुसलमान को जानी या माली नुक्सान न पहुंचाए न किसी मुसलमान की आबरू रेज़ी करे।

࿐  *(13)* मुसलमानों को अच्छी बातों का हुक्म देता रहे और बुरी बातों से मन्अ करता रहे।

࿐ *(14)* हर मुसलमान का तोहफ़ा क़बूल करे और खुद भी उस को कुछ तोहफे में दिया करे।

࿐  *(15)* अपने से बड़ों का अदबो एहतिराम,और छोटों पर रहम व शफ़्क़त करता रहे।

࿐  *(16)* मुसलमानों की जाइज़ सिफारिशों को क़बूल करे।

࿐  *(17)* जो बात अपने लिये पसन्द करे वोही हर मुसलमान के लिये पसन्द करे।

࿐  *(18)* मस्जिदों या मजलिसों में किसी मुसलमान को उठा कर उस की जगह न बैठे।

࿐  *(19)* रास्ता भूले हुओं को सीधा रास्ता बताए।

࿐ *(20)* किसी मुसलमान को लोगों के सामने जलीलो रुसवा न करे।

࿐  *(21)* किसी मुसलमान की ग़ीबत न करे न उस पर बोहतान लगाए।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 99 📚*


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               *❝  इन्सानी हुकूक ❞* 

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࿐   बा'ज़ ऐसे भी हुकूक हैं जो हर आदमी के दूसरे आदमी पर हैं ख्वाह वोह काफ़िर हो या मुसलमान ,नेकूकार हो या बदकार।  *इन हुकूक में से चन्द येह हैं। 👇🏻*

࿐  *(1)* बिला ख़ता हरगिज़ हरगिज़ किसी इन्सान की जानो माल को नुक्सान न पहुंचाए।

࿐  *(2)* बिला किसी शरई वजह के किसी इन्सान के साथ बद ज़बानी व सख़्त कलामी न करे।

࿐  *(3)* किसी मुसीबत ज़दा को देखे या किसी को भूक प्यास या बीमारी में मुब्तला पाए तो उस की मदद करे, खाना पानी दे दे, दवा इलाज कर दे।

࿐ *(4)* जिन जिन सूरतों में शरीअत ने सज़ाओं या लड़ाइयों की इजाजत दी है इन सूरतों में ख़बरदार ख़बरदार हद से ज़ियादा न बढ़े और हरगिज़ हरगिज़ जुल्म न करे, येह शरीअते इस्लाम की मुक़द्दस तालीम की रू से हर इन्सान का हर इन्सान पर हक है जो इन्सानी हैषिय्यत से एक दूसरे पर लाज़िम है। 

࿐  हदीष शरीफ़ में है कि:- *"या'नी रहम करने वालों पर रहमान रहम फ़रमाता है।* तुम लोग ज़मीन वालों पर रहम करो तो आसमान वाला तुम लोगों पर रहम फ़रमाएगा।

࿐  *और एक दूसरी हदीष में रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ ने येह इरशाद फ़रमाया कि:-*  _"या'नी तमाम मख्लूक अल्लाह की इयाल है जो उस की परवरिश की मोहताज है और तमाम मख्लूक में सब से ज़ियादा अल्लाह के नज़दीक वोह प्यारा है जो अल्लाह की इयाल या'नी उस की मख्लूक के साथ अच्छा सुलूक करे!"

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 101 📚*


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  *❝ जानवरों के हुक़ूक़ #01 ❞* 

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࿐  अल्लाह तआला रहमान व रहीम और अर-हमुर्राहिमीन है और उस के प्यारे रसूल रहूमतुल्लिल आलमीन हैं। इस लिये इस्लाम जो खुदा का भेजा हुवा और रसूल का लाया हुवा दीन है इस लिये इस दीन में जानवरों के भी कुछ हुकूक हैं जिन का अदा करना हर मुसलमान पर ज़रूरी है जानवरों के चन्द हुकूक येह हैं ।

࿐  (1)  जिन जानवरों का गोश्त खाना हराम है जब तक वोह ईज़ा न पहुंचाएं बिला ज़रूरत उन को क़त्ल करना मन्अ है।

࿐  (2)  जिन जानवरों का गोश्त हलाल है उन को भी जब कि खाने के लिये न हो बल्कि महूज़ तफ़रीह के लिये बिला ज़रूरत क़त्ल करना जैसा कि बा'ज़ शिकारी लोग खाने या कोई फाइदा उठाने के लिये नहीं शिकार करते बल्कि शिकार खेलते हैं या'नी महज़ खेल कूद के तौर पर जानवरों का खून कर के उन को जाएअ कर देते हैं येह शरीअत में जाइज़ नहीं है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 101 📚*


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 *❝ जानवरों के हुक़ूक़ #02 ❞* 

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࿐  (3)  जो पालतू जानवर काम करते हैं उन को घास चारा और पानी देना फ़र्ज़ है, और उन की ताक़त से ज़ियादा उन से काम लेना या भूका प्यासा रखना और बिला ज़रूरत खुसूसन उन के चेहरों पर मारना गुनाह और नाजाइज़ है।

࿐  (4)  परन्दों के बच्चों को घोंसलों से निकाल लेना या परन्दों को पिंजरों में बन्द कर देना और बिला ज़रूरत इन परन्दों के मां-बाप और जोड़े को दुख पहुंचाना बहुत बड़ी बेरहमी और जुल्म है जो किसी मुसलमान के लिये जाइज़ नहीं है।

࿐  (5) बा'ज़ लोग किसी जानदार को बांध कर लटका देते हैं और उस पर गुलैल या बन्दूक से निशाना बाजी की मश्क करते हैं येह भी परले दरजे की बेरहमी और जुल्म है जो हर मुसलमान के लिये हराम है।

࿐  (6) जिन जानवरों को जबह करना हो या मूजी होने की वजह से क़त्ल करना हो तो मुसलमान के लिये लाज़िम है कि उस को तेज़ धार हथियार से बहुत जल्द ज़ब्ह या क़त्ल कर दे। किसी जानवर को तड़पा तड़पा कर या भूका प्यासा रख कर मार डालना येह भी बड़ी बेरहमी है जो हरगिज़ हरगिज़ इस्लाम में जाइज़ नहीं है।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 102 📚*


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             *❝  रास्तों  के  हुकूक  ❞* 

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࿐  बुखारी शरीफ़ में है कि हुजूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने सहाबए किराम से फ़रमाया कि तुम लोग रास्तों पर बैठने से बचो। तो सहाबए किराम علیھمالرضوان ने अर्ज किया या रसूलल्लाह ﷺ रास्तों में बैठने से तो हम लोगों के लिये कोई चारा ही नहीं है, क्यूंकि इन रास्तों ही में तो हम लोग बैठ कर बात चीत किया करते हैं तो रसूले अकरम ﷺ ने फ़रमाया कि अगर तुम लोग रास्तों पर बैठो तो रास्तों का हक़ अदा करते रहो।  लोगों ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ रास्तों के हुकूकू क्या हैं ? तो आपने फ़रमाया कि रास्तों के हुकूक पांच हैं जो येह हैं :

࿐  *(1)*  निगाह नीची रखना :- मतलब यह है कि रास्ता चूंकि आम गुज़रगाह होता है इस लिये रास्ते पर बैठने वालों को लाज़िम है कि निगाहें नीची रखें। ताकि गैर महरम औरतों और मुसलमानों के उयूब मषलन कोढ़ी, सफेद दाग वाले या लंगड़े लूले को बारबार घूर घूर कर न देखें जिस से इन लोगों की दिल आज़ारी हो।

࿐   *(2)* किसी मुसाफ़िर या राहगीर को ईज़ा न पहुंचाएं :- मतलब येह है कि रास्तों में इस तरह न बैठें कि रास्ता तंग हो जाए, यूं ही रास्ता चलने वालों का मज़ाक़ न उड़ाएं, न उन की तहक़ीर और ऐबजोई करें, न दूसरी किसी किस्म की तक्लीफ़ पहुंचाएं।

࿐  *(3)* हर गुज़रने वाले के सलाम का जवाब देते रहें।

࿐  *(4)* रास्ता चलने वालों को अच्छी बातें बताते रहें।

࿐   *(5)* ख़िलाफ़े शरीअत और बुरी बातों से लोगों को मन्अ करते रहें।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 103 📚*


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*❝ हुकूक़ को अदा करो, या मुआफ़ करा लो! #01 ❞* 
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࿐  अगर किसी का तुम्हारे ऊपर कोई हक़ था और तुम उस को किसी वजह से अदा नहीं कर सके तो अगर वोह हुक़ अदा करने के काबिल कोई चीज़ हो मसलन किसी का तुम्हारे ऊपर कर्ज रह गया था तो इस को अदा करने की तीन सूरतें हैं या तो खुद हक़ वाले को उस का हक़ दे दो।

࿐   या'नी जिस से क़र्ज़ लिया था उसी को क़र्ज़ अदा कर दो या उस से कर्ज मुआफ़ करा लो और अगर वोह शख़्स मर गया हो तो उस के वारिषों को उस का हक़ या'नी कर्ज़ अदा कर दो, और अगर वोह हक़ अदा करने की चीज़ न हो बल्कि मुआफ़ कराने के काबिल हो मसलन किसी की ग़ीबत की हो या किसी पर तोहमत लगाई हो तो ज़रूरी है कि उस शख्स से इस को मुआफ़ करा लो।

࿐  और अगर किसी वजह से हक़दारों से न उन के हुकूक को मुआफ़ करा सका न अदा कर सका, मसलन साहिबाने हक़ मर चुके हों तो उन लोगों के लिये हमेशा बख़्शिश की दुआ करता रहे और अल्लाह तआला से तौबा व इस्तिगफ़ार करता रहे तो उम्मीद है कि क़ियामत के दिन अल्लाह तआला साहिबाने हक़ को बहुत ज़ियादा अज्रो सवाब दे कर इस बात के लिये राज़ी कर देगा कि वोह अपने हुकूक को मुआफ़ कर दें, और अगर तुम्हारा कोई हक़ दूसरों पर हो और उस हक़ के मिलने की उम्मीद हो तो नर्मी के साथ तक़ाज़ा करते रहो और अगर वोह शख़्स मर गया हो तो बेहतर येही है कि तुम अपने हक़ को मुआफ़ कर दो। *ان شاء الله تعالی* कियामत के दिन इस के बदले में बहुत बड़ा और बहुत ज़ियादा अज्रो सवाब मिलेगा।

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 104 📚*


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 *❝ हुकूक़ को अदा करो, या मुआफ़ करा लो! #02 ❞* 

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࿐   आम तौर पर लोग बन्दों के हुकूक़ अदा करने की कोई अहम्मिय्यत नहीं समझते। हालांकि बन्दों के हुकूक का मुआमला बहुत ही अहम, निहायत ही संगीन और बेहद ख़ौफ़नाक है, बल्कि एक हैषिय्यत से देखा जाए तो हुकूकुल्लाह *(अल्लाह के हुकूकू)* से जियादा हुकूकुल इबाद *(बन्दों के हुकूकू)* सख़्त हैं।
अल्लाह तआला तो अर-हुमुर्राहिमीन है वोह अपने फ़ज़्लो करम से अपने बन्दों पर रहम फ़रमा कर अपने हुकूक मुआफ़ फ़रमा देगा मगर बन्दों के हुकूक को अल्लाह तआला उस वक़्त तक नहीं मुआफ़ फ़रमाएगा जब तक बन्दे अपने हुकूक को न मुआफ़ कर दें। *लिहाज़ा..!* बन्दों के हुकूक को अदा करना या मुआफ़ करा लेना बेहद ज़रूरी है वरना क़ियामत में बड़ी मुश्किलों का सामना होगा।

࿐  हदीष शरीफ़ में है कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने एक मरतबा सहाबए किराम علیھم الضوان से फरमाया क्या तुम लोग जानते हो कि मुफ़्लिस कौन शख़्स है..? तो सहाबए किराम علیھم الضوان ने अर्ज़ किया कि जिस शख़्स के पास दिरहम और दूसरे माल व सामान न हों वोही मुफ़्लिस है तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत में आ'ला दरजे का मुफ़्लिस वोह शख़्स है कि वोह क़ियामत के दिन नमाज़ रोज़ा और ज़कात की नेकियों को ले कर मैदाने हश्र में आएगा मगर उस का येह हाल होगा कि उस ने दुन्या में किसी को गाली दी होगी किसी पर तोहमत लगाई होगी, किसी का माल खा लिया होगा, किसी का खून बहाया होगा, किसी को मारा होगा तो येह सब हुकूकू वाले अपने अपने हुकूक को तलब करेंगे तो अल्लाह तआला उस की नेकियों से तमाम हुकूक वालों को उन के बराबर नेकियां दिलाएगा।

࿐   अगर इस की नेकियों से तमाम हुकूकू वालों के हुकूक न अदा हो सके बल्कि नेकियां ख़त्म हो गई और हुकूक बाकी रह गए तो अल्लाह तआला हुक्म देगा कि तमाम हुकूक वालों के गुनाह इस के सर पर लाद दो। चुनान्चे सब हक़ वालों के गुनाहों को येह सर पर उठाएगा फिर जहन्नम में डाल दिया जाएगा तो येह शख़्स सब से बड़ा मुफ़्लिस होगा! *इस लिये* इन्तिहाई ज़रूरी है कि या तो हुकूक को अदा कर दो या मुआफ़ करा लो, वरना कियामत के दिन हुकूक वाले तुम्हारी सब नेकियों को छीन लेंगे और उन के गुनाहों का बोझ तुम अपने सर पर ले कर जहन्नम में जाओगे खुदा के लिये सोचो कि तुम्हारी बे कसी व बे बसी और मुफ़्लिसी का क़ियामत में क्या हाल होगा।

🤲🏻ऐ अल्लाह हम को जिन लोगों के हुकूक देने है या जिन के हुकूक देने मे कोताही की , या हम ने जिन कि गिबत, चुगली कि है, मौला उन्हे अपनी बारगाह मे से इतना दे, और ऐसी जज्जाएं और खैर से नवाज दे कि रोजे कयामत में उन्हे हम से बदला लेने कि तरफ तवज्जो ही ना हो!
آمین آمین آمین ثم آمین یارب العالمین

*📬 क़िताब :- जन्नती ज़ेवर सफ़ह - 104 📚*

             *✐°°•. पोस्ट मुक़म्मल हुआ!*

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