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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*हरफे नासिहाना*
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࿐ औलाद अल्लाह तआला की एक अजीम नेअमत है। मगर उसके साथ वालिदैन पर डाली गई अजीम ज़िम्मेदारी भी है। जैसा कि अल्लाह तआला फ़रमाता है :
*तर्जुमा :* ऐ ईमान वालों! अपनी जानों और घर वालों को उस आग से बचाओ जिसके ईधन आदमी और पत्थर हैं।
📙 कन्जुलईमान परह 28, आयत 6
࿐ *यानि ऐ ईमान वालो!* अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की फरमाँबरदारी इख़्तियार कर के अपने घर वालों और बच्चों को नेकी की हिदायत और बदी से दूर करे के उन्हें इल्मो अदब सिखा कर अपनी जानों और अपने घर वालों को उस आग से बचाव जिसका ईधन आदमी और पत्थर हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 12 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!?❞
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*हरफे नासिहाना*
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࿐ लेकिन बकिस्मती से आज के अक्सर वालिदैन इस हकीकत से नाआशना हो चुके हैं जिसके नतीजे में वो मुआशरे को बुरे इंसान देने का सबब बनते हैं। आम तौर पर लोगों के लिए उनकी औलाद सिर्फ मोहब्बत का मौजू होती है। औलाद को लाड़ प्यार करना उनके नखरे उठाना औलाद के लिए कपड़ों और खिलौनों के ढेर लगा देना उनकी हर जाइज़ और नाजाइज़ ख्वाहिशों को पूरा करना उनकी ज़िन्दगी का मक़सद बन जाता है।
࿐ ऐसे वालिदैन के लिए उनकी औलाद इब्तिदा में एक खिलौना होती है मगर आहिस्ता-आहिस्ता वो खुद अपनी औलाद के हाथों में एक खिलौना बन जाते हैं। औलाद ख्वाहिश की डुगडुगी बजाती है और वालिदैन बन्दर की तरह उस डुगडुगी पर नाचते हैं ऐसे वालिदैन तालीम व तरबियत के ऐतबार से अक्सर अपनी जिम्मेदारियों से गाफिल होते हैं ऐसे लोगों के नज़दीक औलाद के हवाले से असल ज़िम्मेदारी यह होती है कि उसे किसी इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिल कर दिया जाये। वह औलाद की तरबियत के तसव्वुर से वाकिफ ही नहीं होते हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 12 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
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❝मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*हरफे नासिहाना*
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࿐ अच्छे आदाब व अख़लाक़ की तलकीन नेकी और अम्र बिल मअरूफ़ (हुस्ने सुलूक) के तआल्लुक से बड़े छोटे का लिहाज़ खुदा और बन्दों के हुकूक की निगेहबानी को बुनियाद बना कर तरबियत करने के बजाये यह लोग औलाद को टी.वी., मोबाईल फोन, इन्टरनेट के हवाले कर देते हैं। क्योंकि औलाद की ज़िदों और शरारतों से निजात का यह फौरी और जूद असर नुस्खा होता है। मगर यह नुस्खा अक्सर उनकी सीरत व शख्सियत को मन्सूख़ कर देता है।
࿐ ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं तो मुआशरे में नुकसानात और ख्वाहिशात के बढ़ाने का बाइस बनते हैं, नीज़ सब्र, ईसार, कुरबानी, सादगी, कनाअत, अफ़ व दरगुज़र, अमानत व दयानत, अदल व इंसाफ़ और खुश ख़लकी जैसे आला सिफात से आरी होते हैं, यह लोग मुआशरे को फ़सादात से भर देते हैं।
࿐ यह लोग न सिर्फ दूसरे लोगों को दुख देते हैं बल्कि खुद अपने वालिदैन के बुढ़ापे को बाइसे अजीयत बना देते हैं। यह गोया वालिदैन की उस कोताही की नकद सजा होती है जो उन्होंने अपनी औलाद की तरबियत के मामले में खर्च की थी।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 13📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*हरफे नासिहाना*
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࿐ औलाद की तरबियत में कोताही शरीअत में एक संगीन गुनाह है और उस के बारे में वईदें वारिद हुई हैं।
࿐ *अल-हदीसः* हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदि अल्लाहो तआला अन्हमा ने एक शख्स से फरमाया कि अपने बच्चे की अच्छी तरबियत करो क्योंकि तुमसे तुम्हारी औलाद के बारे में पूछा जायेगा कि तुम ने उसकी कैसी तरबियत की और तुमने उसे क्या सिखाया।
📙 तरबियते औलाद सफ़ह 8662
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
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❝मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*हरफे नासिहाना*
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࿐ उसके बरअक्स जो लोग अपनी औलाद की आला तरबियत कोअ पनी ज़िन्दगी का मिशन बना लेते हैं उनकी औलाद दुनिया व आख़िरत दोनों में उनके लिए आँखों की ठंडक साबित होती है। ऐसे वालिदैन के लिए उनकी औलाद कोई खिलौना नहीं होती बल्कि एक भारी जिम्मेदारी और एक मकसद होती है, यह मकसद बच्चे की पैदाइश के साथ ही शुरू हो जाते हैं वह इस मकसद के लिए हर मुमकिन कुरबानी देते हैं और अपनी मौत तक उसे जारी रखते हैं वह अपने बच्चे को खिलौने जरूर दिलाते हैं मगर खुद उनके हाथों में खिलौना नहीं बनते हैं, वह अपने बच्चों की ख्वाहिशों को मुमकिन हद तक पूरा करने की कोशिश करते हैं।
࿐ साथ-साथ बच्चों को सब्र और सादगी की तलकीन भी करते हैं वह बच्चों को आला और अच्छी तालीम जरूर दिलवाते हैं मगर उनकी तरबियत से हरगिज़ गाफिल नहीं होते। वह अपने बच्चों पर एतमाद तो करते हैं मगर उनकी ज़िद के आगे मजबूर हो कर उन्हें मोबाईल, टी.वी. और इन्टरनेट के गलत इस्तेमाल की हरगिज़ इजाजत नहीं देते हैं। वह बच्चों की आजादी में तो हाइल नहीं होते लेकिन उन्हें खुदा की बन्दगी का सबक सिखाने में भी कोई कोताही नहीं करते।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 14 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*हरफे नासिहाना*
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࿐ औलाद को अल्लाह तआला ने एक आजमाइश करार दिया है। इरशादे बारी तआला है:
*तर्जुमाः* और जान लो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद एक इम्तिहान है और यह कि अल्लाह के पास बड़ा सवाब है।
📙 सू. अनफाल, आ. 28, कन्जुल ईमान
࿐ इस आज़माइश में सुर्ख रुह होने का वाहिद जरिया औलाद की अच्छी तरबियत है। अल्लाह तआला हम सबको अपने अज़ाब से बचाये। शरीअत के मुताबिक खुद को चलने और अपनी औलाद को चलाने की तौफीक अता फरमाये।
(आमीन बिजाहिन्नबीइलकरीम सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम)
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 14 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!?❞
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*तरबियत क्या है?*
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࿐ लफ्जे तरबियत एक वसी मफ़हूम वाला लफ्ज़ है तरबियत का लफ़्जी माना नश व नुमाँ करना। निगरानी करना, तालीम व तहज़ीब सिखाना है, इस लफ्ज़ के तहत लोगों की तरबियत, ख़ानदान की तरबियत, मुआशरा (समाज) की तरबियत भी शामिल है। इंसानी तरबियत, ईमानी तरबियत, अख़लाकी तरबियत, नपिसयाती तरबियत, अदबी तरबियत, जिस्मानी तरबियत वगैरह भी शामिल है। इन तमाम बातों में तरबियत का असल मकसद उम्दा पाकीज़ा, बा-अखलाक, बा-किरदार, मुआशरे का वुजूद है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*तरबियत क्या है?*
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࿐ आसान लफ्जों में तरबियत को यूँ कहा जा सकता है : *(1.)* इंसान अपनी नीयतों में पाकीज़ा और अपनी आरजुओं में पाक हो जाये। *(2.)* इंसान में खुद एहतिसाबी (अपने अमल की इस्लाह) का अमल जारी होकर अपने कमाल तक पहँच जाये। *(3.)* इंसान अपनी मरजी से अपने इख्तियार का दुरुस्त इस्तेमाल करे।
࿐ तरबियत यह है कि लोगों को उनके इन्तिख़ाब में, समझदार बनाना, लोगों को उनके पसन्द में ज़िम्मेदार बनाना हैं।
࿐ तरबियत यह है कि जब बच्चा नमाज़ पढ़े तो वह किसी ख़ौफ़ या किसी लालच की वजह से न पढ़े बल्कि नमाज़ उसका पसन्दीदा अमल हो जाये।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!?❞
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*तरबियते औलाद की अहमियत*
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࿐ आज के इस तरक्कीयाफ्ता दौर में हर कोई यह रोना रो रहा है कि मुआशरा बड़ा खराब है आज का माहौल अच्छा नहीं, और यह रोना कोई बेजा नहीं है। बल्कि सही है, लेकिन क्या सिर्फ रोने गोने से मआशरा दुरुस्त हो जायेगा? हरगिज नहीं, बल्कि मुआशरे को ठीक करने के लिए हमें अमली मेहनत करनी पड़ेगी। इस्लाहे मुआशरा के लिए सब से पहले अपने घर की इस्लाह करनी पड़ेगी अपने घर के लोगों को इस्लामी तालीम से वाकिफ़त करानी पड़ेगी।
࿐ और अहकामे इस्लाम पर अमल करने की तलकीन करनी पड़ेगी और अपने बच्चों की तरबियत इब्तिदा ही से अच्छे अंदाज़ से करनी होगी। क्योंकि यही बच्चे कल खुद अपने बच्चों के माँ-बाप बनेंगे। इसलिए बचपन का ज़माना इन्तिहाई अहमियत का हामिल होता है। और बच्चे ही मुआशरे के अफराद हैं मुआशरे के अफराद जब सही हो जायेंगे। मुआशरा खुद बा खुद सही हो जायेगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 16📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 10
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!?❞
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*तरबियते औलाद की अहमियत*
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࿐ गोया इस से मालूम होता है कि इस्लाहे मुआशरा के लिए औलाद की तरबियत रीढ़ की हड्डी की मिस्ल है। अगर हम अपनी औलाद की इस्लाह और अच्छी तरबियत करेंगे। तो यह तरबियत रफ्ता-रफ्ता पूरे मुआशरे की इस्लाह हो जायेगी। लेकिन इस ज़माना में मुसलमानों में दीनी तालीम व तरबियत देने और तकवा परहेजगारी के बजाये सिर्फ दुनियावी उलूम व फुनून की तालीम व तरबियत पर भरपूर तवज्जो देने की बीमारी आम हो गई है।
࿐ लेकिन अल्लाह तआला कुरआन-ए-मजीद में इरशाद फ़रमाता है: *तर्जुमाः* क्या यह ख्याल कर रहे हैं कि वह जो हम माल और बेटों के साथ उनकी मदद कर रहे हैं तो उनके लिए भलाईयों में जल्दी कर रहे हैं बल्कि उनकों ख़बर नहीं।
(सूरह मोमिनून आ. 55, 56 कन्जुलइरफान)
࿐ लिहाज़ा मुरब्बी को चाहिए कि बच्चे की तालीम व तरबियत इस्लामी तरीके के मुताबिक़ अपने ऊपर वाजिब समझें ताकि बच्चे दुनिया व आख़िरत के लिए भलाई का सबब बनें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 16 - 17 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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❝ मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें!? ❞
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*तरबियते औलाद क्यों जरूरी है?*
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࿐ हमारा सब से बड़ा सरमाया और एक कीमती दौलत हमारी औलाद है, उन्हें अच्छी और स्वालेह तरबियत देना जहाँ हमारी आख़िरत की बेहतरी की जमानत है वहीं हमारे बुढ़ापे का हुस्न और राहत व आरामदाह और मुआशरती इज्जत का ज़रीया भी हैं। बहुत सारे लोग सुबह से लेकर शाम तक एक ही फिक्र में सारा वक्त काट देते हैं कि दौलत कैसे कमाई जाये। और किस तरह माल जमा किया जाये, और यह माल औलाद के लिए जमा कर रहे होते हैं, लेकिन जिस औलाद के लिए माल जमा कर रहे थे, वो औलाद बिगड़ गई, शैतान के जाल में फंस गई बुरे अखलाक का हामिल हो गई।
࿐ फिर हम सोचते हैं कि जिसके लिए दिन और रात एक कर के कमाया अपना चैन गंवाया अपनी जवानी भी गँवा दी, इन हसीन लम्हों से लुत्फ़अन्दोज होने के वजाये एक मजदूर की तरह कामकरते रहे तो आज वह औलाद हमारे बुढ़ापे का सहारा नहीं बल्कि हमारे लिए रुसवाई, जिल्लत, सूऊबत और परेशानी दुख व सदमे का जरीआ बन रही है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 17📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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*तरबियते औलाद क्यों जरूरी है?*
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࿐ काश हमने अपनी औलाद को अच्छे अख़लाक़ और खूबसूरत किरदार सिखाए होते, उसका नतीजा हम अपनी आँखों से देख पाते इस्लाम एक मुकम्मल दीन है। उसने अपने मानने वालों की तमाम ज़िन्दगी के हिस्से में पूरी रहनुमाई की है।
࿐ हमें औलाद की तरबियत और उन्हें अच्छे अखलाक का खूगर बनाने के लिए मुसलसल जिद्दे जहद करने की तरगीब दी है। ताकि हमारी औलाद एक अच्छे मुआशरे की शक्ल का सबब बने। और हम उस औलाद से दुनिया में इज्जत और फरहत व सुरूर की खुशबू से मोअत्तर हों और हमारी कब्र का चिराग भी रौशन हो और आख़िरत में हमारी इज्जत अफजाई और बख्शिश का जरिया बने।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 17 - 18 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ बच्चे की तरबियत का आगाज़ उसी वक्त से हो जाता है जब बच्चा माँ के शिकम में होता है माहिरीन (वैज्ञानिक) कहते हैं कि बच्चे को जब माँ के पेट में चार से पांच महीने गुज़र जाते हैं। चार महीने गुजर जाने के बाद जो आवाज़ बच्चा माँ के शिकम में सुनता है वो माँ की दिल की धडकन है।
࿐ इसलिए वालिद को चाहिए कि जब बच्चे की माँ उम्मीद से हो तो उस वक्त उससे बुलन्द आवाज़ से गुफ़्तगू न करे। डाँट-डपट, गाली-गलौज से परहेज करे। चूँकि ऐसा करने से बच्चा जो पैदा होगा उस पर मन्फी (नकारात्मक) असरात, चिढ़चिड़ापन, तल्ख जुबान, बे-अदब हो जाता है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 18 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ इसलिए वालिद को चाहिए कि जब बीवी पेट से हो तो उसे खुश रखा जाये उसकी ज़रूरतों को पूरा किया जाये और बच्चे की माँ को चाहिए कि बच्चा जब पेट में हो तो फहशगोई, गाली-गलौज, झगड़ा, लड़ाई न करे आज के इस मौजूदा दौर में अक्सर माँओं का हाल यह है कि बच्चा जब पेट में होता है तो वो फिल्मी एक्टर की बात कर रही होती है, किसी टी.वी. सीरियल की बात कर रही होती है। नाच-गाने में मगन रहती है, लिहाज़ा उससे गुरेज़ करना चाहिए क्योंकि इस से बच्चे पर बुरे असरात पड़ते हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 15
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ आप कहेंगे वो कैसे? आप गौसे आजम रदिअल्लाहु तआला अन्हु की सीरत पढ़ेंगे तो मालूम होगा कि जब गौसे आज़म अब्दुल कादिर जीलानी (रदिअल्लाहु तआला अन्हु) माँ के पेट में थे तो उनकी माँ रोज़ाना कुरआन की तिलावत किया करती थीं। जब गौसे आज़म (रदि अल्लाहु तआला अन्हु) की विलादत हुई तो फिर जब उनकी माँ मदरसा ले गई और कहा इस बच्चे की बिस्मिल्लाह ख्वानी करवानी है तो उस्ताद ने कहा अब्दुल कादिर पढ़ोः 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' तो गौसे आजम (रदि अल्लाहु तआला अन्हु) ने बिस्मिल्लाह के साथ कुरआन के 18 पारे सुना दिये हुजूर गौसेआज़म (रदि अल्लाहु तआला अन्हु) से पूछा गया कि आपने कैसे सुना दिये तो गौसे आजम (रदि अल्लाहु तआला अन्हु) ने फरमाया कि जब मैं अपनी माँ के पेट में था तो मेरी माँ रोजाना कुरआने पाक तिलावत किया करती थीं जिसको मैं सुना करता था। और याद किया करता था।
࿐ ☝🏻 लिहाजा इस से पता चला कि बच्चा माँ के पेट में सब कुछ सुन रहा होता है। इस लिए माँओं को चाहिए कि जब बच्चा पेट में हो तो कुरआन की तिलावत करें, नातें पढ़ें ताकि जब बच्चा पैदा हो तो वह नेक और स्वालेह हो।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 19 📚*
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ अब बच्चे की पैदाइश के बाद दो साल की उम्र तक इसी तरकीब को जारी रखें, बच्चे के सामने कुरआन की तिलावत की जाये माँ जब कुरआन की तिलावत करे तो बच्चे को साथ बिठा ले अगर वालिद तिलावते कुआन करे तो बच्चे को साथ बिठा ले, बच्चे के सामने नाते पाक के नगमात गुनगुनायें वालिद को चाहिये कि बच्चे के सामने बच्चे की माँ से बुलन्द आवाज़ से बात न करे।
࿐ बच्चे की माँ को चाहिए कि बच्चे को पूरे दो साल की उम्र तक दूध पिलाये जैसा कि कुरआने मजीद में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है:
*तुर्जुमाः* और माँयें अपने बच्चों को पूरे दो साल दूध पिलायें।
📙 सू० बकराह,आ0 233, कन्जुल ईमान
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 19 - 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 17
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ यह हुक्म इसलिए है कि जो दूध पिलाने की मुद्दत माँ मुकर्रर कर लें, कोशिश करे कि बच्चे को बगैर वुजू दूध न पिलाये अब वह दो साल से चार साल की उम्र तक बच्चो को प्यारे आका सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के बारे में बतायें उनकी पैदाइश के वाकियात सुनायें जब प्यारे आका सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की विलादत हुई तो सारे जहान में खुशबू ही खुशबू फैल गई आसमान से सितारे ज़मीन की तरफ़ आ गये हूर व मलाइका की कतारें लग गई वगैरह, हुजूर के मोजिजात के वाकियात सुनायें ताकि बच्चे के दिल में प्यारे आका सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम की मोहब्बत पैदा हो और हुजूर सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम के तरजे जिन्दगी पर चलने की कोशिश करें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 18
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ चुनांचे माहिरीन कहते हैं कि इस उम्र में बच्चे पसन्द और नापसन्द का इजहार करते हैं। अगर वालिदैन शुरू से बच्चे को हुजूर सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम के मोजिजात और औलिया-ए-किराम की करामतें सुनाएँ तो बच्चे हुजूर सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम और औलिया-ए-इजाम से मोहब्बत और उनके नकशे कदम पर चलेंगे। उनकी पसन्द वही होगी जो हुजूर सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम को पसन्द थी, वो वही पसन्द करेंगे जो सहाबा और औलिया-ए-किराम की पसन्द थी।
࿐ लेकिन आज के इस पुरफितन दौर में अक्सर वालिदैन अपने बच्चों को फिल्मी गाने ही सीखाते हैं किसी दुनियादार शख्स की तारीफ़ करते हैं मनगढ़त कहानियाँ सुनाते हैं जो बच्चों के जहन के लिए मुज़िर (नुकसानदेह) है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 21 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 19
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ माहिरीन कहते हैं कि इस उम्र में बच्चे का ज़हन बन रहा (BUILD) होता है और हम बच्चों से फ़िजूलगोई और दुनियादारों की बातें करते हैं जिससे बच्चे की पसन्द दुनिया हो जाती है। दीने इस्लाम से कोई रगबत और मोहब्बत नहीं रहती जो कि वालिदैन के लिए बाइसे अज़ाब है लिहाजा वालिदैन को चाहिए कि वह बच्चों को अम्बिया व औलिया व बुजुर्गानेदीन की ज़िन्दगी के वाकियात सुनाएँ।
࿐ जैसा कि प्यारे आका सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं "अपनी औलादों को तीन खस्लतें (आदतें) सिखाओ, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम से मोहब्बत, अहलेबैत से मोहब्बत और कुरआने करीम से मोहब्बत।
📙 कन्जुल आमाल, ज0 6 स0 40409)
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 21 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 20
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ अब चार साल से 7 साल की उम्र तक कुरआन अज़ीम की तालीमदें।सन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम और आदाब सिखाएँ खाने-पीने , उठने-बैठने, चलने-फिरने वगैरह की सुन्नत व आदाब सिखाएँ और खुद अमल करके दिखाएँ, अब चूँकि इस उम्र में बच्चे के जहन में सवालात पैदा होते हैं जैसे जमीन क्या है? आसमान क्या है? चाँद क्या है? सूरज क्या है? हम कहाँ से आये हैं? कहाँ जायें गे? अल्लाह कौन है? कहाँ है? मोहम्मद सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम कौन हैं? वगैरह तो मुरब्बी (परवरिश करनेवाला) को चाहिए कि उनके सवालों के जवाब दें और उन्हें बतायें ।
࿐ ऐ मेरे प्यारे बेटे! हमारा मतलूब व मकसूद अल्लाह तआला है और अल्लाह के महबूब मोहम्मद सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम हैं, और मेरे प्यारे बेटे! अल्लाह अज़्ज़ा वजल्लाह व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फरमाँबरदारी में और बातों को मानने में ही दुनिया व आख़िरत की कामयाबी है। और बच्चे के जहन के मुताबिक उनके सवालों के माकूल जवाब दें।
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ बाज़ लोग ऐसे होते हैं कि जब बच्चा सवाल पूछता है तो वो उन्हें धुतकार देते हैं या उन्हें डाँट देते हैं और उन्हें उनके सवालों के जवाब नहीं देते, जिससे बच्चा मुरब्बी से दूरी इख्तियार कर लेता है, और एक दिन हाथ से निकल जाता है। जिससे बच्चा किसी से भी सवाल पूछने से झिझकता है और अहम उलूम जानने से हम-किनार (दूर) हो जाता है।
࿐ अब 7 बरस से 10 बरस की उम्र तक नमाज़ सिखाएँ जैसा कि प्यारे आका सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं बच्चों को सात बरस की उम्र में नमाज़ सिखाओ और दस बरस होने पर मारो।
📙 अल-मुरातदरक, जि0 1 रा0 258
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ बच्चों को नमाज़ का पाबन्द बनाने के लिए आसान तरीका यह है कि वालिदैन खुद नमाज़ के पाबन्द बन जायें और वालिद जब मस्जिद को जाये तो बच्चे को साथ लेकर जाये, जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहोअलैहि वसल्लम मस्जिद में हसन या हुसैन रदि अल्लाहो तआला अन्हु को साथ लाया करते थे।
📙 (अल-मुस्तदरक जि0 3 स0 165,66)
࿐ उन्हें तरीके सिखाएँ कि कयाम कैसे करते हैं, सजदा कैसे करते हैं? वगैरह, उनको करके (Practical) बताये कि कयाम में जब खड़े होते हैं तो सजदे की जगह की तरफ़ देखते हैं, जब रुकू में जाते हैं तो पैर की तरफ देखते हैं जब सजदे में जाते हैं तो नाक की तरफ़ देखते हैं कायदे में जब बैठते हैं तो दामन की तरफ देखते हैं वगैरह फिर उन्हें कहें कि बेटा पढ़ो यकीन मानें इस तरीके से बच्चा बहुत जल्द नमाज़ का सही तरीका सीख लेगा और नमाज़ का पाबन्द हो जायेगा। इंशा अल्लाह
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ बच्चों को नमाज़ की तालीम देना बाप वलिउल अम्र (हुक्म देने वाला) की ज़िम्मेदारी होती है और यह वाजिबात में से है, इब्ने कुदामा अल-मुकद्दसी ने बाज़ उलमा से यह बात नकल की है कि बच्चे के सरपरस्त पर यह बात वाजिब है कि बच्चा 7 बरस का हो जाये तो उसे तहारत और नमाज़ की तालीम दें और उसका हुक्म दें।
📙 (अल-मुगन्ना जि0 1, स0 647)
࿐ लिहाजा वालिदैन को चाहिए कि इस उम्र में बच्चे को इल्मे तहारत (पाकी) नमाज़ की तालीम बड़े छोटे का अदब और नमाज़ के मसाइल वगैरह बतायें।
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ अब 10 साल से लेकर 14 साल की उम्र तक के बच्चे, इस उम्र में अपना रोल मॉडल चुनते हैं, उमूमन बच्चे अपने बाप को रोल मॉडल चुनते हैं और बच्ची भी अपनी माँ की तरह बनना चाहती है। इसलिए वालिदैन को चाहिए कि अपनी ज़िन्दगी को सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ढाल दें। नेक और कामयाब शख़्सियत बनें, ताकि आप की औलाद आपको अपना रोल मॉडल बनाने में फख्र महसूस करे।
࿐ और इस उम्र में चाहिए के बच्चों को प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वाकियात सुनाते रहें, औलिया व बुजुर्गाने दीन की ज़िन्दगी के वाकियात सनाते रहें, ताकि बच्चे किसी दुनियादार बेहूदा अदाकार (Actor) को अपना रोल मॉडल न बनायें और ना उसे अच्छा जानें बल्कि उनका रोल मॉडल अम्बिया व बुजुरगाने दीन हो।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 23 📚*
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ फी ज़माना बच्चों का हाल यह है कि Tick-Tok या इसी तरह के कई App पर बेहूदापन कर रहे हैं और वालिदैन कुछ नहीं करते। बच्चों का भी यही हाल है, लड़कियाँ मर्द वाले कपड़े, जीन्स, शर्ट पहन लेती हैं और मर्दो की मुशबिहत इख्तियार करती हैं। चुनाँचे प्यारे आका सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन औरतों पर लानत फ़रमाई है जो मर्दो की मुशाबिहत करती हैं और उन मर्दो पर जो औरत की मुशाबिहत इख़्तियार करते हैं।
📙 (जामे तिर्मिज़ी जि0 2 ह0 2784)
࿐ लेकिन हाये अफसोस, आज लड़कियाँ इसी तरह के कई App पर मुजरा करती हैं, ना बाप का अदब व लिहाज़ है न भाई की इज्जत का ख्याल है, ना किसी की शर्म व हया है, गोया कि इनका जमीर मर गया है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 23 - 24📚*
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ यह वालिदैन की कोताही का सबब है, क्योंकि वालिदैन बच्चे और बच्चियों को शुरू से इस्लामी लिबास पहनने की तलकीन ही नहीं करते है। लिहाजा वालिदैन को चाहिए कि बचपन ही से बच्ची को लड़कों के कपड़े पहनने से रोकें और इस्लामी लिबास पहनने का हुक्म दें, ताकि बच्ची बुरे अफआल से बचे और औरों को बचाये। याद रखें वालिदैन अपने घर के निगहबान होते हैं, बच्चों का एहतिसाब करने का हक भी उन्हीं का है और रोजे कयामत उन्हीं से अहलेखाना के बारे में पूछा जायेगा।
࿐ चुनाँनचे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदि अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुजूर सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः मर्द अपने घर वालों का निगरान है और उससे उसके मातहत अफ़राद के बारे में पूछा जायेगा।
📙 (अलबुखारी व मुस्लिम, अहदम बिन हम्बल 52 र0 4495)
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 24 📚*
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*तरबियत का आगाज कब से होता है?*
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࿐ अब 14 बरस से 21 बरस तक की उम्र में वालिदैन को चाहिए कि बच्चों को अपना दोस्त बना लें क्यों कि अगर आप अपनी औलाद को अपना दोस्त बनाकर अच्छा इंसान नहीं बनायेंगे तो बुरे लोग उन्हें अपना दोस्त बना कर बुरा इंसान बना देंगे। बच्चा जिस काम को करना चाहता है उस काम के मुताल्लिक दीन के जो मसाइल हैं उससे बच्चे को वाकिफ करायें और निकाह व तलाक और हुकूके इंसानियत और दीगर दीन के मसाइल हैं उनसे रूशनास (सिखायें) करायें।
࿐ चुनाँचे हज़रत अनस रदि अल्लाहो तआला अन्हु से रिवायत है कि *तर्जुमाः* फिकह का इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर ज़रूरी और वाजिब है।
📙माख़ज़ फज़ाइले इल्म व उलमा स0 59
🤲🏻 अल्लाह की बारगाह में दुआ है कि अल्लाह तआला हम सब को इल्मे नाफे (फायदा देने वाला) अता फरमाये और अपने घरों की सही निगरानी करने की इस्लाम के बताये हुए कानून के मुताबिक अपने बच्चों को तालीम व तरबियत देने की तौफीक अता फरमाये। *आमीन बिजाहे नबीइल करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम*
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 24 - 25 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ बच्चों की तरबियत चार जगहों से होती है: 1. घर 2. मुआशरा 3. मिम्मबर व मेहराब 4. स्कूल
࿐ *1. घर (घर के अफराद) :* __ इस दौरे जदीद में घर के बिगड़े हुए माहौल से बच्चों की इस्लामी तरबियत का होना दुशवार है। क्योंकि आज घरों के हालात फिल्मी बे-हयाई लड़ाई झगड़े और वालिदैन का मोबाईल फोन में मशगूल होना बच्चों की तरफ ध्यान न देना वगैरह ऐसे घर के माहौल से बच्चों की तरबियत होना मुमकिन नहीं है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 25 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ चुनाँचे वालिदैन को चाहिए कि सबसे पहले अपने घर का इस्लामी माहौल बनायें और बच्चों पर तवज्जो दें। क्योंकि वालिदैन अपने घर के निगरान होते हैं और रोजे कयामत उन्हीं से अहले खाना के बारे में पूछा जायेगा जैसा हदीसे मुबराका में है हज़रते अब्दुल्ला बिन उमर से रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, मर्द अपने घर वालों का निगरान है और उससे उसके मातहत अफ़राद के बारे में पूछा जायेगा।
(अलबुख़ारी व मुस्लिम अहमद बिन हम्बल 52 र0 4495)
࿐ जमीन अच्छी हो लेकिन पानी ठीक न हो तो फसल खराब हो जाती है घर अच्छा बना हो लेकिन घर में दीन न हो तो नस्ल ख़राब हो जाती है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 26 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ *2. मुआशरा (सोसायटी) :* आज मुआशरे (समाज) का हाल यह है कि कोई शख्स किसी के बच्चे को कोई गलत काम करता हुआ देखता है तो वो उसे रोकने के बजाये यह कहता है, हमें क्या यह कुछ भी करे अगर अपनी औलाद हो तो कुछ कहें भी दूसरे के बच्चों को समझाना तंबीह करना झगड़े को दावत देना है। अगर यही हाल रहा लोग दूसरे के बच्चों को बुरे काम से न रोकें तो इस तरह पूरा मुआशरा हलाक व बरबाद हो जायेगा।
࿐ उसकी मजीद वज़ाहत आप इस वाकिया से मालूम कर सकते हैं कि एक मरतबा कुछ लोग मिलकर सफर कर रहे थे और कश्ती में उन लोगों ने अपनी अपनी जगह मुकर्रर कर ली अपना अपना बिस्तर लगा लिया उनमें से एक शख्स अपनी जगह सुराख करने लग जाता है अब सारे लोग, यह कहें कि हमें क्या वह अपनी जगह पर सूराख कर रहा है तो थोड़ी देर के बाद जब सूराख होगा, फिर नीचे से पानी आयेगा जिससे सूराख करने वाला भी डूबेगा और जो लोग कश्ती में होंगे वह सारे लोग भी डूब जायेंगे, अब इस कश्ती में जो लोग थे उनका हक क्या बनता है कि सूराख करने वाले को हाथ पकड़ कर रोकें चाहे वह गुस्सा करे या नाराज हो और उस से कहें कि तुम गलत कर रहे हो।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 26 - 27 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ आज गलियों में सड़कों पर बच्चे आवारा घूमते हैं कोई उन्हें कुछ कहने वाला नहीं याद रखें अगर आप किसी के बच्चे को नसीहत करेंगे तो आपके बच्चों को भी कोई अच्छी नसीहत करेगा, लिहाजा मुआशरे के लोगों को चाहिए कि किसी के बच्चे को गलत काम करता हुआ देंखें तो उसे मोहब्बत भरे अन्दाज़ में समझायें चुंनांचे इरशादे बारी तआला है:
࿐ तर्जुमा कंजुल ईमानः और नेकी और परहेज़गारी पर एक दूसरे की मदद करो और गुनाह और ज्यादती पर बाहम मदद न दो और अल्लाह से डरते रहो बेशक अल्लाह का अज़ाब सख्त है। (सू० माइदा, प0 6, आ0 2)
࿐ लिहाजा मुआशरे के हर फर्द की जिम्मेदारी है कि एक दूसरे की इस्लाह करे ताकि मुआशरा दुरुस्त रहे।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 27 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ *3. मिम्बर व मेहराब (मस्जिद व मदरसा, इमाम व उलमा):* तरबियते औलाद के लिए मिम्बर व मेहराब एक अहम जगह है आज के दौर में मुसलमानों का हाल यह है कि वालिदैन अपने बच्चों को मस्जिद और मस्जिद के इमाम से दूर रखते हैं इस बिना पर बच्चे ईमानी तरबियत रुहानी तरबियत अख़लाकी तरबियत नफ़सियाती तरबियत से महरूम रह जाते हैं, लिहाज़ा वालिदैन को चाहिए कि बच्चे को मस्जिद और मस्जिद के इमाम, मदरसा व उलमा से रगबत दिलायें ताकि बच्चे अच्छी तरबियत पा सकें!
࿐ अलहदीसः हज़रते अनस रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आलिमों की पैरवी करो इसलिए कि वह दुनिया और आखिरत के चिराग हैं। (माखूज अज़ फ़ज़ाइले इल्म व उलमा स0 64.)
࿐ अलहदीसः हज़रते इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आलिमों के साथ बैठना इबादत है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 27 - 28 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ *4. स्कूल (टीचरस) :* तरबियते औलाद में असातिजा का भी एक अहम किरदार होता है जहाँ से बच्चे अदब व एहतिराम सीखते हैं लेकिन आज के इस पुरआशोब दौर में वालिदैन अपने बच्चों के लिए इस्लामी असातिजा (मास्टर) मुन्तख़ब (Selected) करने के बजाये बे-दीन, मुशरिक, काफ़िर, बे-तहज़ीब, गैर इस्लामी, असातिजा (मास्टर) का इन्तिखाब (Selection) करते हैं। इस्लामी तहजीब हुकुकूल इबाद व हुकूद्दीन जैसे अहम फरीज़े से महरूम हो जाते है।
࿐ हदीस प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहीवसल्लम इरशाद फरमाते हैं दुनिया में तुम्हारे तीन बाप है एक वो जो तुम्हारी पैदाइश का सबब है, दूसरा वो जिसने अपनी लड़की तुम्हारे निकाह में दी, तीसरा वो जिससे तुमने दौलत-ए-इल्म हासिल किया और इनमें बेहतरीन बाप तुम्हारा उस्ताद है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 28 📚*
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*तरबियते औलाद के चार मवाजे*
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࿐ लिहाजा वालिदैन को चाहिए की अपने घर का इस्लामी माहौल बनायें अच्छे मुआशरे का इन्तेखाब (चुने) करें मस्जिदों, मदारिस व इमामों औलमा से रगबत दिलायें इस्लामी स्कूल और दीनदार असातिजा से तालीम व तरबियत का इन्तिजाम करें।
࿐ ताकि बच्चे की सही तालीम व तरबियत हो सके बच्चे की बेहतरीन तरबियत के लिए इन चार मकामात को दुरूस्त करें ताकि बच्चा अखलाकी, नफ़सियाती, ईमानी, रूहानी, अदबी व मुआशरती तरबियत से सरफ़राज़ हो जाये, और दुनिया व आखिरत में भलाई का सबब बनें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 29 📚*
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*बच्चों को पाँच किस्म के दोस्तों से दूर रखें*
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࿐ हर इन्सान का कोई न कोई दोस्त होता है। लेकिन अगर दोस्त अच्छा हो तो वो अच्छाई की राह दिखाता है। और अगर बुरा हो तो बुराई की तरफ माईल करता है। जैसा कि फरमाने मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम अज़मत निशान है आदमी अपने दोस्त के दीन पर होता है। उसे यह देखना चाहिए कि किस से दोस्ती करता है।
📙 मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, मुस्नद अबी हुरैरा हदीस नं. 8000 34 जि. नं.3 सफा न.168 व 169
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 29 📚*
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*बच्चों को पाँच किस्म के दोस्तों से दूर रखें*
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࿐ इसलिए वालिदैन को चाहिए अपनी औलाद को अच्छे दोस्त के साथ रहने की तालीम दें क्यों कि बचपन का ज़माना बेशऊरी व बेख़याली का होता है। बच्चे बड़ों के रहम व करम के मौहताज होते है। लिहाजा वालिदैन को चाहिए कि बच्चे को बतायें कि ए मेरे प्यारे बेटे हमारे आका सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया अच्छा साथी वो है कि जब तू खुदा को याद करे तो वो तेरी मदद करे और जब भूले तो वो याद दिलाये!
📙 इख्वानू इबनुदुनिया सफा नं. 46)
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 30 📚*
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*बच्चों को पाँच किस्म के दोस्तों से दूर रखें*
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࿐ और उन्हें बतायें कि हमारे बुजुर्गो ने पाँच किस्म के लोगों से दोस्ती करने से मना किया है। जिसके मानने में हमारी भलाई है पाँच किस्म के लोग दरजे जैल (नीचे) है:
࿐ 1. झूठे से दोस्ती न करना इसलिए कि वो दूर को करीब दिखाएगा और करीब को दूर दिखाएगा और तुम्हें धोखे में रखेगा।
࿐ 2. किसी बखील (कंजूस) से दोस्ती न करना क्यों कि वो तुम्हें उस वक्त छोड़ देगा जब तुम्हें उसकी बहुत ज़्यादा जरूरत होगी और वो धोखा दे जायेगा।
࿐ 3. फाजिर व फासिक (अल्लाह के हुकुम को तोड़ने वाले) से दोस्ती न करना जो अल्लाह के हुकुमों को तोड़ने वाले हैं।, वह तुम्हें एक रोटी के बदले बेच देगा फासिक बन्दे का क्या ऐतिबार कि जो अल्लाह के साथ वफादार नहीं वो बन्दों का वफादार कैसे हो सकता है।
࿐ 4. बेवकूफ से दोस्ती न करना इसलिए वो तुम्हें नफा पहुँचाना चाहेगा और नुकसान पहुँचा देगा।
࿐ 5. कत-ए-रहमी करने वाले, रिश्ते नाते तोड़ने वाले , बेवफा इन्सान के साथ दोस्ती न करना कि बेवफा बिल-आखिर बेवफा ही होता है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 30 📚*
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*बच्चा अच्छा या बुरा कैसे बनता है?*
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࿐ किसी भी बच्चे के अच्छा या बुरा होने की चार वुजूहात होती हैं जिससे बच्चा अच्छा या बुरा बनता है। याद रखें कोई बच्चा बुरा नहीं होता बल्कि उन्हें बुरा बनाया जाता है। घर वाले या मुआशरे (समाज) वाले या स्कूल वाले उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं बच्चे के अन्दर अच्छी या बुरी आदतें होने की चार वजह हैं वो यह हैं:
࿐ 1. बच्चे का किसी काम का होता हुआ देखना
࿐ 2. बच्चे की काम के मुताबिक सोच व फिक्र का पैदा होना।
࿐ 3. बच्चे की उस काम को करने की दिलचस्पी का होना।
࿐ 4. बच्चे का उस काम के मुताल्लिक यकीन होना।
࿐ फिर बच्चे का उस काम को करना।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 31 📚*
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*बच्चा अच्छा या बुरा कैसे बनता है?*
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࿐ अगर कोई बच्चा अच्छा या बुरा काम करता है तो वह यक बयक नहीं करता बल्कि वह सबसे पहले उस काम को करते हुए देखता है फिर उसके मुताल्लिक सोचता है फिर उसे वो काम अच्छा लग जाता है। फिर उसका दिल उस काम को करना चाहता है। बच्चा जब कोई काम करता है तो उसे यह पता नहीं होता है कि वह काम अच्छा है या बुरा है लिहाजा वह उस काम को अपना लेता है। लेकिन जब उस काम को इख़्तियार करने के बाद कोई रोकता है तो बच्चे को बुरा लगता है। गुस्सा हो जाता है, नाफरमान हो जाता है, बच्चा बिगड़ने लग जाता है, वह यह नहीं देखता कि कौन बोल रहा है उसे किसी से नहीं बल्कि उस काम से प्यार होता है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 31📚*
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*बच्चा अच्छा या बुरा कैसे बनता है?*
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࿐ मस्लन आज हर बच्चा मोबाईल में मसरूफ है। या हर बच्चा मोबाईल इस्तेमाल करना चाहता है। उसे कुछ नहीं बल्कि सिर्फ मोबाईल चाहिए। ऐसा क्यों है? क्या कभी हमने सोचा? कि इतनी कम उम्र में बच्चे मोबाईल का शिकार क्यों हो रहे हैं, तो असल वजह यह है कि आज घरों में माँ-बाप, भाई-बहन ,वगैरह सबके सब मोबाईल में मसरूफ रहते हैं बाप Facebook पर मसरूफ है तो माँ What'sapp पर मसरूफ है, कोई Tiktok पर मसरूफ है, कोई Youtube पर मसरूफ है गोया हर फर्द मोबाईल का दीवाना है ।
࿐ मोबाईल चलाने में मसरूफ (Busy) और बच्चा उस काम को देख रहा होता है बच्चा अपने छोटे से दिमाग से सोचता है फिर उसे वह काम करने को दिल करता है और वह यह देख कर यकीन कर लेता है कि सब लोग तो इसी में मुलविज़ (लगे) हुए हैं ज़रूर इसमें कोई न कोई खूबी है, लिहाज़ा बच्चे मोबाईल की जिद करने लग जाते हैं, बच्चे भी मोबाईल माँगने लग जाते हैं और इतनी कम उम्र में वालिदैन बच्चे को मोबाईल दे देते हैं और कह देते हैं कि बच्चा ही तो है क्या चला पायेगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 32 📚*
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*बच्चा अच्छा या बुरा कैसे बनता है?*
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࿐ चुॅनानचे बच्चे को भी Youtube लगा कर दे देते हैं और समझते हैं यहYoutube या Game ही तो चलायेगा। इससे कोई फर्क थोड़ी पड़ेगा या कुछ दूसरी चीज़ नहीं चलापायेगा। लेकिन कुछ दिन बाद बाप से ज़्यादा बच्चे को मालूमात हो जाती है। इतना बाप को भी मालूम नहीं होता कि मोबाईल में इतने Features (इतनी चीजें) हैं। बाप को बच्चे से पूछना पड़ता है कि बेटा इसमें रिंगटोन कैसे लगेगा वगैरह जिससे बच्चे अपने आपको काबिल (Talented) और वालिदैन को बेवकूफ समझते हैं।
࿐ तो आप अन्दाज़ा लगायें क्या कोई अकलमन्द होशियार (Talented) किसी बेवकूफ़ की बात सुनता है? उसकी कोई बात मानता है? नहीं न यही वजह है कि बच्चे आप की बात नहीं सुनते और न आप की बातो पर ध्यान देते है क्योंकि बच्चे समझते हैं कि अम्मी-अब्बू से ज्यादा मैं जानता हूँ और वह उलटा माँ-बाप को समझा देते हैं और वालिदैन ख़ामोश हो कर रह जाते हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 32📚*
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*बच्चा अच्छा या बुरा कैसे बनता है?*
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࿐ क्योंकि इतनी कम उम्र में आप ही ने मोबाईल दिया है ताकि बच्चे भी मोबाईल में मसरूफ रहें, हमें परेशान न करें, लेकिन असल माना में मोबाईल नहीं बल्कि जहर दे रहे होते हैं। वक्ति तौर पर बच्चा परेशान नहीं करेगा। लेकिन बाद में बड़ा नुकसान देगा। जैसा कि आज के अक्सर घरों में देखने को मिलता है। कि हमारी औलाद बिगड़ गई और नफरमान हो गई, बेहूदा हो गई, लेकिन जो कामयाब वालिदैन होते हैं वह इन चार वुजूहात को जहन (ध्यान) में रखते हुए बच्चों की परवरिश करते हैं। ताकि नेक व बाअखलाक और बेहतरीन इंसान बनें।
࿐ अपने घर के माहौल को दुरुस्त करते हैं बच्चों को वक्त देते हैं। बच्चों के सवालों के जवाब देते हैं उनके मसाइल को हल करते हैं उन्हें बुरे मुआशरे से दूर रखते हैं, बुरे साथियों से दूर रखते हैं, बुरी बातों से दूर रखते हैं, अच्छे लोगों की सोहबत में बिठाते हैं ताकि अच्छे बुरे की तमीज़ सीखे, बड़े-छोटे का अदब सीखे, और एक मोअदब व मोहज्जब और बाकिरदार व बाअख़लाक़ इंसान बनकर रहे।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 33 📚*
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*मोबाईल फोन का गैर जरूरी इस्तेमाल, दीने इस्लाम से दूरी*
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࿐ हमारे मुआशरे (समाज-Society) में गैर मुस्लिम यहूद व नसारा और दीगर कौमें मुसलमान बच्चों को नौजवानों को दीने इस्लाम से दूर रखने, मुसलमानों को दीने इस्लाम से दूर करने, उसका मुखालिफ बनाने के लिए मुनज़्ज़म अंदाज़ में कोशिश कर रही हैं। इसके हुसूल के लिए उनके पास एक बड़ा जरिया मोबाईल है, जिसमें तरह तरह के गेम्स अप्लोड करते हैं, तरह तरह के एप्स अप्लोड करते हैं ताकि मुसलमानों के बच्चे इल्मे दीन से दूर हो जायें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 33 - 34📚*
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*मोबाईल फोन का गैर जरूरी इस्तेमाल, दीने इस्लाम से दूरी*
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࿐ नमाज़ से दूर हो जायें, कुरआने अज़ीम की तिलावत से दूर हो जायें, यहाँ तक कि इस्लामी तहज़ीब (Culture) से दूर हो जायें। यहूदियों की साजिश है कि धीरे-धीरे इस्लामी तहजीब को मिटा दिया जाये। आज हम उनका साथ दे रहे हैं। हम अपने बच्चों को मोबाईल देते हैं, गेम खेलने के लिए लेकिन कुरआन नहीं दे पाते पढ़ने के लिए।
࿐ हम बच्चों को मोबाईल दे देते हैं तरह तरह के एप्स इस्तेमाल करने के लिए लेकिन दीनी किताबें नहीं देते हैं। दीनी तालीम हासिल करने के लिए जिसकी वजह से बच्चे दीनी तालीम व तरबियत से महरूम हो जाते हैं और दुश्मने इस्लाम अपने मकसद में कामयाब होते जा रहे हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 34 📚*
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*मोबाईल फोन का गैर जरूरी इस्तेमाल, दीने इस्लाम से दूरी*
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࿐ लिहाजा वालिदैन को चाहिए कि अपने बच्चे को कम उम्री में मोबईल इस्तेमाल करने को न दें क्यों कि माहिरीन (वैज्ञानिक-Scientist) के मुताबिक बच्चों को 14 साल के कम उम्र में मोबाइल चलाने को मुज़िर यानि नुकसान देह बतया गया है। आज वालिदैन अपने बच्चों से जान छुड़ाने के लिए 2 या 3 साल के बच्चे को मोबाईल दे देते हैं जबकि माँ-बाप को चाहिए कि इस उम्र में बच्चे को मोबाईल न दें, वरना इससे बच्चे को बहुत सारे नुकसानात हैं, जिसके जिम्मेदार आप खुद होंगे।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 34 📚*
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*मोबाईल फोन का गैर जरूरी इस्तेमाल, दीने इस्लाम से दूरी*
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࿐ कुछ नुकसानात नीचे दिये गए हैं :
࿐ 1. हाफिजा (याद्दाश्त) और नज़र कमजोर होना 2. सोचने और समझने की सलाहियत में कमी आजाना। 3. नींद का कम हो जाना। 4. जिसमानी नशओ नुमा का रुक जाना यानि कमजोर हो जाना। 5. चिड़चिड़ापन आ जाना। 6. जहन कमजोर हो जाना 7. गुस्से (Depression) का शिकार हो जाना।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 34 - 35 📚*
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*बच्चों को सजा देने का इस्लामी तरीका*
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࿐ हमारे मुआशरे में वालिदैन अपनी औलाद से इतनी मोहब्बत करते हैं कि बच्चे को कभी भी सजा नही देते और कुछ वालिदैन अपनी औलाद को बेइन्तिहा मारते पीटते हैं। लेकिन सजा देने का सही तरीका क्या है? इससे लोग ना-आशना हैं, ज्यादा लाड प्यार से भी बच्चे बिगड़ जाते हैं और मार-धाड़ से भी बच्चे बिगड़ जाते हैं तो वालिदैन को चाहिए कि मुनासिब तरीके से बच्चों को सज़ा दें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 35 📚*
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*बच्चों को सजा देने का इस्लामी तरीका*
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࿐ बच्चे की इस्लाह व तरबियत के सिलसिले में इस्लाम का अपना एक मकसूस तरीका-ए-कार है चुनाँचे इस्लाम यह तालीम देता है। अगर बच्चे को प्यार व मोहब्बत से समझाना फायदा देता हो तो मुरब्बी के लिए उससे कत-ए-तअल्लुक कर देना (उससे मिलना जुलना बन्द कर देना) व ऐराज़ करना दुरुस्त नहीं और अगर बच्चे से कत-ए-ताल्लुक करना और डाँटना डपटना मुफीद (फायदा देता) हो तो फिर उसको मारना पीटना दुरुस्त नहीं, हाँ अगर इस्लाह व तरबियत समझाने वाज़ व नसीहत डाँट-डपट के तमाम तरीके काम न आयें तो ऐसी सूरत में इतना मारने की इजाजत है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 35 📚*
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*बच्चों को सजा देने का इस्लामी तरीका*
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࿐ जो हुदूद के अन्दर हो और जालिमाना व बेरहम तरीके से न हो सजा देने के मुताल्लिक में उमूमन तीन तसव्वुरात पाये जाते हैं:
࿐ 1. बाज़ लोग इस बात के काइल है कि बच्चे की इस्लाह व तरबियत के लिये सज़ा बहुत ज़रूरी है। इस ख्याल के हामी बाज़ औकात सख्त सजा को भी इलाज समझते हैं ।
࿐ 2. बाज़ माहिरीन (वैज्ञानिक) बच्चे के तालीम व तरबियत के लिए सजा को न सिर्फ गैर जरूरी बल्कि मुजीर (नुक्सान देने वाला) समझते हैं इन के ख्याल में बच्चे सज़ा से सुधरने के बजाए बिगड़ जाते हैं। अगर वक्ती तौर पर बच्चे में इस्लाह नज़र भी आये तो वो आरजी व वक़्ती ख़याल करते हैं।
࿐ 3. इन दोनों तसव्वुरात से अलग तीसरा तसव्वुर है। यह तसव्वुर बच्चे की इस्लाह व तरबियत शफ़कों मोहब्बत से की जाये है इस्लाह करने की सूरत में हलकी सी सज़ा भी दी जा सकती है। मगर सजा के फौरन बाद हुस्ने सुलूक और मोहब्बत से तलाफी कर दी जाये। बच्चों को इतना प्यार मोहब्बत दिया जाये ताकि उसके दिल में कोई मैल बाकी न रहे इस्लामी निजाम व तरबियत की रूह भी यही तकाजा करती है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 36 📚*
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*नसीहत के 4 बेहतरीन औकात*
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࿐ अक्सर वालिदैन बच्चे को हर वक़्त डाँटडपट, वाजो नसीहत करते रहते हैं जिससे बच्चे परेशान हो जाते है और कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं होते, जिसकी वजह से बच्चे सुधरने के बजाए बिगड़ने लग जाते हैं और वालिदैन का वाज़ो नसीहत बेकार हो जाता है। क्योंकि इसका कोई असर नहीं पड़ता।
࿐ इसलिए वालिदैन को चाहिए कि बच्चे को बेवक़्त वाजो नसीहत करने से गुरेज़ करें ताकि बच्चा आपकी कुरबत में रहे और आपकी वाजो नसीहत को तसलीम करे क्योंकि बेहतरीन तरबियत व नसीहत जैसी कुरबत व उनसियत से मुमकिन है, डाँट-डपट और मार-धाड़ से हरगिज़ वैसी मुमकिन नहीं इसलिए नसीहत करने के औकात (समय) मुन्तख़ब कर लें। जिस वक्त बच्चे सीखने और सुनने के मूंड में हों, ताकि आप जो भी नसीहत करें, बच्चे उस पर अमल करें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 36 📚*
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*नसीहत के 4 बेहतरीन औकात*
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࿐ नीचे दिये गए चार ऐसे औकात हैं जिनमें बच्चे अच्छी बात (Receptive Mood) सुनने के मूंड में होते हैं। उन वक्तों में आप जो भी नसीहत करेगे वह बच्चों के दिलो दिमाग में जाहिर, बैठ जायेगी और बच्चे उस पर अमल करेंगे। इंशा अल्लाह तआला
࿐ 1. जब बच्चा रात में सोने लगे उस वक्त बच्चा कुछ सुनने के मूंड (Learning Mood) में होता है इसलिए उस वक्त बच्चे कहते हैं हमें कोई कहानी या किस्सा सुनाएँ उस वक़्त वालिदैन अपने बच्चों को चूहे, बिल्ली, राजा महाराजा, मनगढ़त जैसी कहानियाँ सुना देते हैं। जिससे बच्चों के अन्दर चूहे, बिल्ली, राजा, महाराजा वाली नौटंकी वाली हरकतें आने लगती हैं और उससे औलाद बिगड़ती चली जाती है, इसलिए वालिदैन को चाहिए कि उस वक़्त बच्चों को नबियों, वलियों और नेक लोगों के किस्से, नसीहत आमेज़ वाकियात सुनायें।
࿐ ताकि अच्छी नसीहतें मिलें और बच्चों के दिलों में अल्लाह अज़्जवजल का खौफ और मोहब्बते रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और औलिया-ए-किराम की उलफत दिलों में बैठ जाये और उनकी मोहब्बत में बच्चा अल्लाह से डरने वाला और नेक व स्वालेह बन जाये।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 37 📚*
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*नसीहत के 4 बेहतरीन औकात*
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࿐ 2. जब बच्चा आपके साथ गाड़ी में बैठा हो तो उस वक्त भी बच्चा कुछ बातें सुनने के मूंड (Learning Mood) में होता है। इसलिए उस वक्त बच्चा जो कुछ देखता है तो उसके बारे में पूछता है कि अब्बू यह क्या है? माँ वो क्या है? यह कैसे है? वो क्यों है? उस वक्त हम डाँट-डपट कर के बच्चों को चुप करा देते हैं। जबकि वह बहुत कीमती वक्त होता है उस वक्त चाहिए कि बच्चों को उनके सवालों के जवाब दें और अच्छी-अच्छी बातें करें। और अच्छी नसीहतें करें ताकि बच्चे आपकी नसीहतों पर अमल करें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 38 📚*
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*नसीहत के 4 बेहतरीन औकात*
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࿐ 3. जब बच्चे खाने पर बैठते हैं तो उस वक्त भी बच्चे सुनने के मूंड (Learning Mood) में होते हैं बाज़ जाहिल वालिदैन उस वक़्त बच्चों से कहते हैं कि खाना खाते वक़्त बात नहीं करते हालाकि यह मजूसियों (आग के पुजारियों) का तरीका है और बाज़ उस वक़्त दूसरों की बुराइयाँ करते रहते हैं खाने में ऐब निकालते हैं, सुन्नत के तरीके के ख़िलाफ़ खाना खाते हैं।
࿐ जबकि होना यह चाहिए कि उस वक़्त वालिदैन अपने बच्चों को खाने के आदाब बतायें। सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम के तरीके बतायें ताकि बच्चे को खाने के आदाब व सुन्नतें मालूम हो जायें। इस वक़्त में भी आप नसीहत कर सकते हैं यह भी नसीहत का सही वक्त है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 38 📚*
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*नसीहत के 4 बेहतरीन औकात*
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࿐ 4. जब बच्चा बीमार हो उस वक्त भी बच्चे बातें सुनने के मूंड (Learning Mood) में होते हैं, उस वक़्त आप जो भी नसीहत करेंगे वो बच्चों के दिल व दिमाग में नक्श हो जायेगी। आप अपने बच्चों को जो भी नसीहतें करनी हों तो इन चार औकात (समय) में करें। इंशा अल्लाह अज़्ज़ावजल बच्चे ज़रूर आपकी नसीहतों पर अमल करेंगे।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 39 📚*
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*नसीहत के 4 बेहतरीन औकात*
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࿐ बेवक्त बच्चे को कभी नसीहत न करें क्यों कि बच्चे कभी खेल या किसी और मूड में होते हैं, हम बच्चों को नसीहत करना शुरू कर देते हैं जिससे बच्चे बदमिजाज़ हो जाते हैं और आपकी बातों को अहमियत नहीं देते हैं। इस वजह से बच्चे नाफरमानी करना शुरू कर देते हैं और फिर हम अपने बच्चों से मार पीट कर काम लेते हैं और अपना बागी बना देते हैं।
࿐ फरमाने हज़रत अली रदि अल्लाहुतअला अन्हु जिसने किसी को अकेले में नसीहत की उसने उसे संवार दिया और जिसने किसी को सब के सामने नसीहत की उस ने उसे मजीद बिगाड़ दिया।
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*बच्चों के कान में अजान और उसके आदाब*
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࿐ शरीअते इस्लामिया में बच्चे की विलादत (पैदाइश) के फौरन बाद बच्चे के कान में अज़ान देनेका हुक्म है। चुंनानचे, अब्दुल्लाह अबी राफे रदि अल्लाहो तआला अन्हु, अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को देखा के उन्होंने हसन रदिअल्लाहो तआला अन्हु के दोनों कान में नमाज़ वाली अजान दी, जब वो फातिमा रदि अल्लाहो तआला अन्हा के बतने अकदस से पैदा हुए।
📙 तिरमिजी स0 1516, अबू दाऊद स0 5105, तिबरानी स0 931
࿐ अल्लामा इब्ने कईम अज़ान की हिक्मत बयान करते हुए फरमाते हैं, कि जब इंसान के कान में पहली आवाज़ अजान के कलमात दाखिल होंगे जिन में रब की किबरियाई व बढ़ाई और अज्मत व जलाल है जिन में कामयाबी व निजात की दावत है तो वह बच्चे के लिए खैर व बरकत का सबब होंगे।
📙 तोहफतुल मौदूद बाअहकामे मौदूद स0 37
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*बच्चों के कान में अजान और उसके आदाब*
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࿐ आला हज़रत अजीमुल बरकत इमाम अहमद रजा खान अलैहिर्रहमतुर्रिजवान अज़ान के मुताल्लिक फ़तावा रजविया शरीफ़ में तहरीर फ़रमाते हैं कि जब बच्चा पैदा हो तो फौरन सीधे कान में अजान और बायें कान में तकबीर कहे ताकि बच्चा ख़लले शैतान और उम्मुस्सुबियान से बचे।
📙 फतावा रजविया जि0 24 स0 452
࿐ लिहाज़ा बच्चे के कान में अजान देने में ताख़ीर नहीं करनी चाहिए कि मिर्गी के मर्ज होने का अन्देशा है, बेहतर यह है कि बच्चा पैदा हो जाये तो उसे नीम (आधा) गरम पानी से नहलायें फिर सीधे कान में चार बार अज़ान और उलटे कान में इकामत कहें। इंशा अल्लाह बलायें दूर होंगी।
📙अल-मलफूजाते आला हज़रत स0 418 माख़ज़ बाहवाला सोएबुल ईमान जि0 4 0 39, अल-हदीस 8619
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 40 📚*
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*अज़ान व इकामत कहने में अजीब नुक्ते की बात*
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࿐ बाज़ बुजुर्ग इसकी अजीबो गरीब वजह बयान फ़रमाते हैं कि अज़ान व इकामत के जरीये यह बतलाना मकसद है कि दुनिया में इंसान इतना वक़्त रहता है जितना वक़्त इकामत व जमाअत खड़ी होने के दरमियान होता है, बस अपनी ज़िन्दगी को इस ख्याल से गुजारना और अपनी ज़िन्दगी को आख़िरत की तैयारी में लगा देना इसलिए कि तेरी अजान भी हो चुकी है और तेरी इकामत (तकबीर) भी हो चुकी है, अब सिर्फ नमाज़ बाकी है और नमाज के बाद आख़िरत की तरफ जाना है। इसीलिए नमाज़े जनाज़ा के शुरू में न अज़ान होती है और न इकामत, जैसे ही जनाजा आता है सफें दुरुस्त की जाती हैं और बस अल्लाहु अकबर कह कर नमाज़ शुरू हो जाती है।
࿐ लेकिन इंसान धोखे में है कि मेरी ज़िन्दगी मेरी उम्र 50 या 60 साल की होगी। हालाकि आखिरत के मुकाबले में यह ज़िन्दगी एक लम्हें की भी नहीं है। यहाँ दुनियाँ में आया और थोड़ी देर बाद रुखसत हो गया, लौट गया।
*बस इतनी-सी हकीकत है, फरेब ख्वाबे हस्ती की**
कि आँखें बन्द हों और आदमी अफसाना बन जाय*
आँख बन्द होती है और पूरी ज़िन्दगी का दरवाज़ा बन्द हो जाता है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह 40-41 📚*
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*तहनीक*
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࿐ तहनीक यह है कि खुजूर को अच्छी तरह चबायें,जब वह बारीक हो जाये तो उसे बच्चे के मुँह में रख दें, ताकि बच्चा उसे घोट ले, जिस से बच्चे के पेट में जो सब से पहली चीज़ जायेगी वह तहनीक की खजूर हो। अगर खुजूर न मिले तो इस सूरत में कोई भी मिठी चीज़ से तहनीक की सकती है, जैसेः शहद, गुड़, छुआरा, वगैरह।
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*तहनीक*
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࿐ अल-हदीसः हज़रत अस्माये बिनते अबी बकर रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कहती हैं कि अब्दुल्लाह बिन जुबैर रदिअल्लाहु तआला अन्हु मक्का मुकर्रमा ही में हिजरते कुबा से कब्ल मेरे पेट में थे बाद हिजरत कुबा में यह पैदा हुए मैं उन को रसूले मुअज्जम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में लाई और हुजूर पुरनूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में रख दिया फिर हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुजूर मंगाई और चबा कर उनके मुँह में रख दी और उनके लिए दुआ-ए-बरकत की।
📙माखूज़ अज़ बहारे शरीयत, हिस्सा पाज़दहम, अकीका का बयान
࿐ फरमाने आला हज़रत (रजिअल्लो तआला अन) आला हज़रत इमाम अहले सुन्नत इमाम अहमद रजा खान अलैही रहमतुर रिजवान फरमाते है। छुआरा वगैराह कोई मीठी चीज़ चबाकर उसके मुंह में डाले के हलावते अखलाक की फाले हसन है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 42 📚*
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*वालिदैन पर औलाद के हुकूक कितने हैं?*
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࿐ जिस तरह औलाद पर वालिदैन के हुकूक हैं उसी तरह औलाद के भी वालिदैन पर हुकूक हैं, वालिदैन पर औलाद के हुकूक जो आला हज़रत अज़ीमुल बरकत इमाम अहमद रजा खान अलैहिर्रहमतु व रिज वान फतावा-ए-रजविया शरीफ में तहरीर फ़रमाते हैं वह अस्सी हैं उनमें से चन्द हुकूक नीचे दिये गये हैं:
࿐ 1. जब बच्चा पैदा हो फौरन सीधे कान में अजान बायें कान में तकबीर कहें कि ख़लले शैतान व उम्मुस्सुबियान (मिर्गी) से बचेगा।
࿐ 2. छुआरा वगैरह चबा कर उसके मुँह में डालें कि हलावते अखलाक की फालेहसन है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 42 📚*
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*वालिदैन पर औलाद के हुकूक कितने हैं?*
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࿐ 3. सातवें और न हो सके तो चौदवें ना हो सके तो इक्कीसवें दिन अकीकाह करें। दुख़्तर (लड़की) के लिए बकरी, और पिसर (लड़का) के लिए दो बकरे की उसमें बच्चे का रहन (कर्जा) छुड़ाना है।
࿐ 4. एक रान दाई को दे, कि बच्चे की तरफ से शुकराना है।
࿐ 5. सर के बाल उतरवायें ।
࿐ 6. बालों के बराबर चाँदी खैरात करे।
࿐ 7. सर पर जाफरान लगाये।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 43 📚*
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*वालिदैन पर औलाद के हुकूक कितने हैं?*
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࿐ 8. नाम रखे, यहाँ तक कि कच्चे बच्चे का भी जो कम दिनों का गिर जाये वरना वह बच्चा अल्लाह तआला के यहाँ शाकी (शिकायत करने वाला) होगा।
࿐ 9. बुरा नाम न रखें कि फाले-बद है।
࿐ 10. मारने बुरा कहने में एहतियात रखें।
࿐ 11. प्यार में झूठे लकब बेकद्र नाम न रखे क्यों कि पड़ा हुआ नाम मुशकिल से छूटता है।
࿐ 12. बच्चे को पाक कमाई से रोजी दें कि नापाक माल नापाक ही आदतें डालता है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 43 📚*
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*वालिदैन पर औलाद के हुकूक कितने हैं?*
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࿐ 13. जबान खुलते ही अल्लाह अल्लाह, पूरा कलमा "ला इलाहा इल्लल्लाहु" फिर पूरा कलाम-ए-तय्यबा सिखाएं।
࿐ 14. ज़मान-ए-तालीम में एक वक़्त खेलने का भी हो। तबीयत नशात (फरहत व सुरूर) पर बाकी रहे।
࿐ 15. मारे तो मुँह पर न मारे।
࿐ 16. निहार, जिनहार बुरी सोहबत में न बैठने दे कि यारे बद मारे बद से बद्तर है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 43 📚*
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*वालिदैन पर औलाद के हुकूक कितने हैं?*
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࿐ 17. जब 10 बरस का हो जाये तो मार कर नमाज़ पढ़ाये।
࿐ 18. जब जवान हो शादी कर दें, शादी में वही रियायत कौम व दीन सीरत व सूरत, मलहूज़ रखे।
࿐ 19. उसे मीरास (विरासत) से महरूम न करे, जैसे बाज़ लोग अपने किसी वारिस को न पहुँचने की गर्ज से कुल जायदाद दूसरे वारिस या गैर के नाम लिख देते हैं।
࿐ 20. अब जो ऐसा काम कहना हो जिसमें नफरमानी का एहतिमाल हो तो उसे अम्र व हुक्म के सेगे (तौर) से न कहे बल्कि बरुफ्क (साथी) व नर्मी से बतौरे मशवरा कहे कि बलाये उकूक में न पड़ जाये।
⚠️ मजीद हुकूके औलाद जानने के लिए (फतावा-ए-रजविया जि0 24, स0 456 का मुतआला करे)
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 44 📚*
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*तरबियते औलाद के 10 आसान तरीके*
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࿐ 1. जो वालिदैन घर में दाखिल होने के कब्ल दरवाजे पर दस्तक देते हैं और सलाम का अहतिमाम करते हैं और अपने बीवी बच्चों को देख कर मुस्कुराते हैं तो इस तरह उनके बच्चे भी इस तरजे अमल को इख़्तयार कर लेते हैं।
࿐ 2. जो वालिदैन अजान सुनते ही टेलीवीज़न, या मोबाइल फोन चलाना बन्द कर देते हैं यहाँ तक कि हर काम करना बन्द कर देते हैं और नमाज़ की तैयारी करने लग जाते हैं तो अनकरीब वो अपने बच्चों को इस अमल से नमाज़ का पाबन्द बनालेंगे। इशा अल्लाह
࿐ 3. जो लोग अपने वालिदैन का अदब व ऐहतिराम करते हैं और उनके हाथों को चूमते हैं और उनकी ख़िदमत करते हैं तो जल्द ही उनके बच्चे भी उनके हाथ चूमेंगे और उनका अदबो ऐहतिराम व फरमाबरदारी करेंगे।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 44📚*
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*तरबियते औलाद के 10 आसान तरीके*
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࿐ 4. जो वालिदैन घरेलू काम काज में एक दूसरे का हाथ बटाते हैं तो इससे उनकी औलाद भी एक दूसरे की मदद करना और बाहम तआवुन करना पसन्द करेंगे।
࿐ 5. जो माँ मुतावातिर पाबन्दी के साथ नमाज, तिलावते कुरआन, हिजाब करेंगी तो माँ के इस तरजे अमल से उनकी बेटी भी नमाज़, तिलावते कुरआन, हिजाब की पाबन्द हो जायेंगी।
࿐ 6. जो वालिदैन बाहमी इत्तिफाक व इत्तिहाद मेल-मिलाप, के साथ ज़िन्दगी गुजारते हैं और अपनी औलाद के सामने लड़ाई झगड़े और आवाज बुलन्द करने से गुरैज़ (परहेज) करते हैं तो उनके बच्चे अपने वालिदैन और एक-दूसरे के साथ उलफत व मोहब्बत और आपस में इत्तिफाक व इत्तिहाद से जिन्दगी गुजारते हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 45 📚*
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*तरबियते औलाद के 10 आसान तरीके*
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࿐ 7. जो वालिदैन सिलारहमी करते हैं अपने अजीज व अकारिब के साथ ऐहसान करते हैं और उनसे मोहब्बत के रिश्ते बरकरार रखते हैं तो उनकी औलाद भी इस अख़लाक़ से सिलारहमी और हुस्ने सुलूक करना सीखती है।
࿐ 8. जो बाप बाज़ उमूर (काम) में अपने बीवी, बच्चों से राय-मशवरा लेते हैं और उनके साथ बैठ कर बात-चीत करते हैं उनकी राय का ऐहतिराम करते हैं तो इससे उनकी औलाद भी आपस में बात चीत बाहमी राय-मशवरा और सीधा रवय्या अपनाने की आदत सीखती है।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 45 📚*
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*तरबियते औलाद के 10 आसान तरीके*
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࿐ 9. जो वालिदैन अपनी औलाद के साथ सच्चाई का बरताव अपनाते हैं तो उनकी औलाद भी इससे सच्चाई सीखती है और जो वालिदैन अपनी औलाद के साथ वादा-वफाई करते हैं तो उनकी औलाद भी वादा-वफाई सीखती हैं।
࿐ 10. जो वालिदैन सफाई सुथराई का ऐहतिमाम करते हैं एक मुनज्जम और मुरत्तब व जिम्मेदाराना जिन्दगी गुजारते हैं तो उससे वह अपने बच्चों को एक मुरत्तब व मुनज्जम व जिम्मेदाराना ज़िन्दगी गुज़ारना सिखाते हैं।
⚠️ *इन्तिबाह (नोट) :-* बच्चो की तरबियत का आसानतरीन तरीका यह है कि उनके सामने अमली नमूना पेश किया जाये।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 45 📚*
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*मुरब्बी के सही रवय्यों के बच्चों पर मुस्बत असरात*
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*(मुरब्बी मतलब पालन करने वाला)*
࿐ 1. मुरब्बी हौसला अफजाई करेगा बच्चा आगे बढ़ेगा।
࿐ 2. मुरब्बी एतिमाद करेगा बच्चा ज़िम्मेदार बनेगा।
࿐ 3. मुरब्बी बरदाश्त करेगा बच्चा गलती का ऐतिराफ़ करेगा।
࿐ 4. मुरब्बी माफ करेगा बच्चा अहसानमन्द होगा।
࿐ 5. मुरब्बी इज़्जत करेगा बच्चा इज़्ज़त करना सीखेगा।
࿐ 6. मुरब्बी मुशावरत करेगा बच्चा अपना मसअला आसानी से बयान करेगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 46 📚*
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*मुरब्बी के सही रवय्यों के बच्चों पर मुस्बत असरात*
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*(मुरब्बी मतलब पालन करने वाला)*
࿐ 7. मुरब्बी दिलचस्पी लेगा बच्चे की दिलचस्पी बढ़ेगी।
࿐ 8. मुरब्बी मेहनत करेगा बच्चा मेहन्ती होगा।
࿐ 9. मुरब्बी वादा पूरा करेगा बच्चा जुबान का पूरा और वादा का निभाने वाला बनेगा।
࿐ 10. मुरब्बी वक़्त की पाबन्दी करेगा बच्चा पाबन्दे वक़्त बनेगा।
࿐ 11. मुरब्बी इंसाफ़ करेगा बच्चा हकाइक को तसलीम करेगा।
࿐ 12. मुरब्बी नफासत पसन्द होगा बच्चा मोहज़्जब बनेगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 46 📚*
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*मुरब्बी के सही रवय्यों के बच्चों पर मुस्बत असरात*
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࿐ बच्चे को बवकार, पाबन्दे सुनन, मोअद्दब, मोहज़ब, जिम्मेदार, मेहनती वगैरह बनाने के लिए वालिदैन को इन उमूर पर तवज्जों देना बे-हद ज़रूरी है। क्यों कि बच्चे आप के अन्दाजे तकल्लुम और रवय्यों को बगौर देख रहे होते हैं और उसे अपने जहन में ज़ब्त (नक्श) कर लेते हैं और अपने अमल में लाते हैं। इस लिए वालिदैन को चाहिए कि बच्चे में मुस्बत रवय्या लाने के लिए वालिदैन को मुस्बत रवय्या पेश करना बेहद जरूरी है।
࿐ *याद रखें!* बच्चे आपको देखते और सुनते हैं, आपके रिश्तेदारों दोस्त व अहबाब के साथ सुलूक बच्चों में सरायत, लिहाजा हर मामले से पहले सोचे कि आप बच्चों के दिल व दिमाग में क्या भर रहे हैं।
࿐ क्यों कि बच्चे आप की नसीहत से नहीं, बल्कि आपके अमल से सीखते हैं।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 47 📚*
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*वालिदैन से तरबियते औलाद के हवाले से (20) अहम सवालात?*
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࿐ आप के हर अमल आपकी औलाद बगौर देख अपनाती है। आप की हर आदत उन की शख्सियत का हिस्सा बनती है, आप ज़बान से लाख नसीहतें करें, अगर अच्छी मिसाल कायम नहीं करेंगे तो औलाद सही राह पर नहीं आयेगी, इसलिए अपने लिए नहीं तो बच्चों की दुनिया व आख़िरत की ख़ातिर अपनी इस्लाह पर तवज्जो जरूर दें, इस हवाले से आप से चन्द सवालात हैं जो दर्जे जेल हैं, इन सवालात का अमली जवाब देकर अपनी औलाद के लिए एक बेहतरीन मिसाल कायम करें:__
࿐ 1. आपके बच्चे आप को घर में मोबाइल में ज़्यादा मशगूल देखते हैं, या कुरआन में?
࿐ 2. फिल्मों से दिल बहलता देखते हैं, या जिक्रे अल्लाह?
࿐ 3 नमाजों में पाबन्दी देखते हैं, या ला परवाह?
࿐ 4. दूसरों की गीबत करता देखते, या तारीफ?
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 47📚*
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*वालिदैन से तरबियते औलाद के हवाले से (20) अहम सवालात?*
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࿐ 5. नौ करों से बद्तमीजी, हिकारत और बअखलाकी करता देखते हैं, या सब को इज्ज़त देता हुआ?
࿐ 6. रिश्तेदारों का ख्याल रखते और सिला रहमी करता देखते हैं, या बात बात पर कत-ए-तआल्लुक करता हुआ?
࿐ 7. अकसर खुश-मिजाज और मुस्कुराता हुआ देखते हैं, या लड़ता, झगड़ता और अख्खड़ मिज़ाज?
࿐ 8. हर वक्त माल की हिर्स में मुब्तिला देखते हैं, या कनाअत करता?
࿐ 9. हर वक्त ला-हासिल के गम में देखते हैं, या हासिल शुदा के शुक्र में?
࿐ 10. आपको मेहनत और जद्दो जहद करता देखते हैं, या सुस्त, काहिल, बहानेबाज़ और काम चोर?
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 48 📚*
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*वालिदैन से तरबियते औलाद के हवाले से (20) अहम सवालात?*
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࿐ 11. अपने शरीके हयात के साथ मोहब्बत, इज़्ज़त, और भलाई का रवय्या देखते हैं, या झगड़े, हिकारत, बे-गैरती का?
࿐ 12. आपको अपने माँ-बाप की खिदमत, फरमाबरदारी, और तकरीम करता देखते हैं, या उन से बद्तमीजी और बे-इकरामी करता?
࿐ 13. आप को सिग्रेट, तम्बाकू वगैरह का नशा करता देखते हैं, या वरजि श और दीगर से हतमन्द सरगर्मियों में?
࿐ 14. आपका लगाव दीने इस्लाम से देखते हैं, या दुनिया से?
࿐ 15. आपको दीन की बातें करता हुआ देखते हैं, या सिर्फ दुनिया की?
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 48 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 76
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*वालिदैन से तरबियते औलाद के हवाले से (20) अहम सवालात?*
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࿐ 16. आपको आजिज़ी करता हुआ देखते हैं या तकब्बुर करता हुआ?
࿐ 17. आपको सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर अमल करता देखते हैं, या यहूद व नसारा के तरीके पर?
࿐ 18. आपको खुदा से डरता हुआ देखते हैं या दुनिया वालों से?
࿐ 19. आपको अच्छे लोगों व उलमा में बैठता देखते हैं या बेहूदा आवारा लोगों में?
࿐ 20. आपको बच्चे वादा खिलाफी करता देखते हैं या वादा पूरा करता हुआ?
࿐ *याद रखें!* बच्चे आपको देखते और सुनते हैं, आपका रिश्तेदारों, दोस्त व अहबाब के साथ सुलूक बच्चों में सरायत कर जाता है। लिहाजा हर मामले से पहले सोंचे कि आप बच्चों के दिल व दिमाग में क्या भर रहे हैं।
࿐ *बच्चे आपकी नसीहत से नहीं बल्कि आपके अमल से सीखते हैं..!!*
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 49 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 77
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*नेक वा स्वालेह औलाद के लिए दुआ*
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࿐ जिस शख्स को नेक व स्वालेह औलाद की तमन्ना हो वो इस आयते करीमा
*(رَبِّ هَبْ لِىْ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ)*
को हर नमाज़ के बाद (100) मरतबा का विर्द करे, इन'शा अल्लाह तआला नेक व स्वालेह औलाद होगी।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 50 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 78
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*बच्चों को सुन्नते मुस्तफा ﷺ का पाबन्द बनाने की दुआ*
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࿐ बच्चों को सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पाबन्द बनाने की दुआ :
اَللّٰھُمَّ رَبَّنَا ھَبْ لَنَا مِنْ اَزْوَاجِنَا وَذُرِّیَّتِنَا قُرَّةَ اَعْیُنِ وَّ اجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِیْنَ اِمَامًا
हर नमाज़ के बाद अव्वल आख़िर एक मरतबा दुरूद शरीफ़ पढ़कर यह दुआ पढ़ लें, इंशा अल्लाह तआला बच्चे पबन्दे सुन्नत बन जायेंगे।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 50 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 79
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*ना फरमान औलाद के लिए वजीफा*
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࿐ "या शहीदो" जिस की औलाद ना फ़रमान हो गई हो वह बच्चे के सर पर हाथ रख कर इस इस्मे मुबारक को 21 मरतबा अव्वल आख़िर 3 मरतबा दुरूद शरीफ पढ़ कर दम ___ करे, इंशा अल्लाह फ़ायदा होगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 5)📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 80
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*बच्चों की बुरी आदतें छुड़ाने के वजाइफ*
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࿐ "या हमीदो" जिस बच्चे के अन्दर बुरी आदतें हो गई हों तो वालिदैन को चाहिए कि 45 दिन तक मुतावातिर इस इस्म को 93 मरतबा, अव्वल आख़िर 21 मरतबा दुरूद शरीफ पढ़ कर किसी चीज़ पर दम कर के खिलायें, इंशा अल्लाह बुरी खस्लतें दूर हो जायेंगी।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 51 📚*
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*नज़रे बद् दूर करने का वज़ीफा*
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࿐ किसी बच्चे को नज़रे लग जाये चाहे कितनी सख्त हो इस आयते करीमा को
وَ اِنْ یَّکَا دُالَّذِیْنَ کَفَرُوْ الَیُزْلِقُوْنَکَ بِاَبْصَارِھِمْ لَمَّا سَمِعُوْا الذِّکْرَ وَیَقُوْلُوْنَ اِنَّهٗ لَمَجْنُوْنٌ
11 मरतबा पढ़ कर दम करने से इंशा अल्लाह शिफा होगी।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 51 📚*
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*बच्चे के इल्म में इजाफे के लिए वजीफा*
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࿐ "या अलीमु" जो बच्चा पढ़ने लिखने में कमजोर हो उसको रोज़ाना 41 मरतबा या "अलीमु" अव्वल आख़िर 11 मरतबा दुरूद शरीफ पढ़ पानी में दम कर के पिलायें। इक्तालीस दिन तक मुतावातिर यह अमल करे। इंशा अल्लाह बच्चा पढ़ने में तेज़ हो जायेगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 51 📚*
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*जो बच्चा डरता हो उसके लिए वजीफा*
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࿐ "या हसीबो" जो बच्चा रात में डरता हो या किसी का खौफ खाता हो तो उसे इस इस्मे शरीफ को 70 मरतबा अव्वल व आख़िर 11 मरतबा दुरूद शरीफ़ पढ़कर बच्चे पर दम करे, इंशा अल्लाह मुफीद साबित होगा।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 52📚*
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*बच्चे का पढ़ने लिखने में दिल न लगता हो उसका वजीफा*
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࿐ "या कय्यूमो” जिस बच्चे का दिल पढ़ने लिखने या काम में न लगता हो तो उस इस्मे मुबारक को 101 मरतबा अव्वल व आख़िर 11 मरतबा दुरूद शरीफ़ पढ़ कर किसी मीठी चीज़ पर दम कर के इक्तालीस दिन तक खिलायें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 52📚*
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*इम्तिहान में कामयाबी के लिए वजीफा*•
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࿐ इम्तिहान या किसी काम में कामयाबी के लिए
فَاِنَّ حَسْبَکَ اللهُ ھُوَ الَّذِىْ اَیّدَکَ بِنَصْرِهٖ وَبِالْمُؤْمِنیْنَ
इस आयत को जाने से पहले 7 मरतबा पढ़ लिया करें।
*📬 मॉर्डन ज़माने में बच्चों की तरबियत कैसे करें सफ़ह - 52 📚*
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*✐°°•. पोस्ट मुक़म्मल हुआ!*
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