🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *प्यारे इस्लामी भाइयों !* मज़हबे इस्लाम में एक अल्लाह की एबादत ज़रूरी है साथ ही साथ उसके नेक बंदों से मुहब्बत व अ़क़ीदत भी ज़रूरी है। अल्लाह के नेक अच्छे और मुक़द्दस बन्दों से अस़ली, सच्ची और ह़क़ीक़ी मुहब्बत तो यह है कि उन के ज़रीऐ अल्लाह ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चला जाये ,उनका कहना माना जाये ,अपनी ज़िंदगी को उनकी ज़िंदगी की तरह बनाने की कोशिश की जाये ,इस के साथ साथ इस्लाम के दाइरे में रह कर उन की याद मनाना, उनका ज़िक्र और चर्चा करना, उनकी यादगारें क़ाइम करना भी मुहब्बत व अ़क़ीदत है!
៚ और अल्लाह के जितने भी नेक और बरगुज़ीदा बन्दे हैं उन सब के सरदार उसके आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं, उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह अल्लाह के रसूल होने के साथ-साथ उसके महबूब भी हैं, और जिस को दीन व दुनिया में जो कुछ भी अल्लाह ने दिया, देता है, और देगा, सब उन्हीं का ज़रीआ, वसीला और सदक़ा है, उनका जब विसाल हुआ, और जब दुनिया से तशरीफ़ ले गये तो उन्होंने अपने क़रीबी दो तरह के लोग छोड़े थे, एक तो उनके साथी जिन्हें सहाबी कहते हैं, उनकी तादाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के वक़्त एक लाख से भी ज्यादा थी, दूसरे हुज़ूर की आल व औलाद और आप की पाक
बीवियां उन्हें अहले बैत कहते हैं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 03 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हुज़ूर ﷺ के इन सब क़रीबी लोगों से मुहब्बत रखना मुसलमान के लिए निहायत जरूरी है।
៚ हुज़ूर ﷺ के अहले बैत हों या आप के सहाबी उन में से किसी को भी बुरा भला कहना या उनकी शान में गुस्ताख़ी और बे अदबी करना मुसलमान का काम नहीं है, ऐसा करने वाला गुमराह व बद दीन है उसका ठिकाना जहन्नम है।
៚ हुज़ूर ﷺ के अहले बैत में एक बड़ी हस्ती इमाम आली मक़ाम सैयदिना इमाम हुसैन भी हैं उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह हुज़ूर के सहाबी भी हैं, और अहले बैत में से भी हैं!
៚ यानी आप की प्यारी बेटी के प्यारे बेटे आप के प्यारे और चहीते नवासे हैं, रात-रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करने वाले और कुरआने अ़ज़ीम की तिलावत करने वाले मुत्तक़ी इबादत गुज़ार, परहेज गार, बुजुर्ग, अल्लाह के बहुत बड़े वली हैं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 04 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ साथ ही साथ मज़हबे इस्लाम के लिए राहे खुदा में गला कटाने वाले शहीद भी हैं, मुहर्रम के महीने की दस तारीख को जुमा के दिन 61, हिजरी में यानी हुज़ूर के विसाल के तक़रीबन पचास साल के बाद आप को और आप के साथियों और बहुत से घर वालों को ज़ालिमों ने ज़ुल्म कर के करबला नाम के एक मैदान में 3, दिन प्यासा रख कर शहीद कर दिया, इस्लामी तारीख का यह एक बड़ा सानिहा और दिल हिला देने वाला हादसा है, और दस मुहर्रम जो कि पहले ही से एक तारीख़ी और यादगार दिन था, इस हादसे ने इस को और भी ज़िन्दा व जावेद कर दिया, और उस दिन को हज़रत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाने लगा।
៚ और गोया कि यह हुसैनी दिन हो गया, और बेशक़ ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन मज़हबे इस्लाम एक सीधा सच्चा सन्जीदगी और शराफ़त वाला मज़हब है और उसकी हदें मुकर्रर हैं।
៚ लिहाजा इस में जो भी हो सब मज़हब और शरीअ़त के दाइरे में रह कर हो तभी वह इस्लामी बुजुर्गो की यादगार कहलायेगी और जब हमारा कोई भी तरीका मज़हब की लगाई चहार दीवारी से बाहर निकल गया तो वह ग़ैर इस्लामी और हमारी बुजुर्ग शख़्सियतों के लिए बाइसे बदनामी हो गया।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 05 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हम जैसा करेंगे हमें देख कर दूसरे मज़हबों के लोग यही समझेंगे कि इन के बुजुर्ग भी ऐसा करते होंगे, क्योंकि क़ौम अपने बुजुर्गो और पेशवाओं का तआरुफ़ होती है, हम अगर नमाज़े पढ़ेगे कुरआन की तिलावत करेंगे जूए शराब गाने बजाने और तमाशों से बच कर ईमान दार, शरीफ़ और भले आदमी बन कर रहेंगे, तो देखने वाले कहेंगे की जब यह इतने अच्छे हैं तो इनके बुज़ुर्ग कितने अच्छे होंगे!
៚ और जब हम इस्लाम के ज़िम्मेदार ठेकेदार बन कर इस्लाम और इस्लामी बुजुर्गो के नाम पर ग़ैर इन्सानी हरकतें नाच कूद और तमाशे करेंगे तो यक़ीनन जिन्होंने इस्लाम का मुतालअ नहीं किया है उन की नज़र में हमारे मज़हब का ग़लत तआरुफ़ होगा और फिर कोई क्यों मुसलमान बनेगा।
៚ हुसैनी दिन यानी दस मुहर्रम के साथ भी कुछ लोगों ने यही सब किया, और इमाम हुसैन के किरदार को भूल गए, और इस दिन को खेल तमाशों ग़ैर शरई रसूम नाच गानों, मेलों ठेलों और तफ़रीहों का दिन बना डाला।
៚ और ऐसा लगने लगा कि जैसे इस्लाम भी मआ़ज़ल्लाह दूसरे मजहबों की तरह खेल तमाशों तफ़रीहों और रंग रिलियों वाला मज़हब है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 05 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ख़ुद को मुसलमान कहलाने वालों में एक नाम निहाद इस्लामी फ़िर्का ऐसा भी है कि उन के यहां नमाज़ रोज़े वगैरह अह़कामे शरअ़ और दीन दारी की बातों को तो कोई ख़ास अहमियत नहीं दी जाती बस मुहर्रम आने पर रोना पीटना, चीखना चिल्लाना, कपड़े फाड़ना, मातम व सीना कोबी करना ही उन का मज़हब है गोया कि उन के नज़दीक अल्ल्लाह तआ़ला ने अपने रसूल को इन्ही कामों को करने और सिखाने को भेजा था,और इन्ही सब बेकार बातों का नाम इस्लाम है।
៚ मज़हबे अहले सुन्नत वजमाअत में कुछ हिन्दुस्तान के पुराने ग़ैर मुस्लिमों जिन के यहां धर्म के नाम पर जूये खेले जाते हैं, शराबें पी जाती हैं, जगह जगह मेले लगा कर मर्दों, औरतों को जमा कर के ग़ैर इन्सानी हरकतें की जाती हैं, उनकी सोहबतों में रह कर उनके पास बैठने, उठने, रहने, सहने के नतीजे में खेल तमाशे और वाहियात भरे मेलों को ही इस्लाम समझने लगे, और बांस काग़ज़ और पन्नी के मुजस्समे बना कर उन पर चढ़ावे चढ़ाने लगे।
៚ दर असल होता यह है कि ऐसे काम कि जिन में लोगों को ख़ूब मज़ा और दिलचस्पी आये, तफ़रीह और चटख़ारे मिलें उनका रिवाज अगर कोई डाले तो वह बहुत जल्दी पड़ जाता है और क़ौम बहुत जल्दी उन्हें अपना लेती है।
៚ और जब धरम के ठेकेदार उनमें सवाब बता देते हैं तो अ़वाम उन्हें और भी मज़ा ले कर करने लगते हैं कि यह ख़ूब रही, रंगरलियां भी हो गई और सवाब भी मिला, तफ़रीह और दिल लगी भी हो गई खेल तमाशे भी हो गये और जन्नत का काम, क़ब्र का आराम भी हो गया।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 07 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ मौलवी साहब या मियां हुजूर ने कह दिया है कि सब जाइज़ व सवाब का काम है ख़ूब करो और हमने भी ऐसे मौलवी साहब को ख़ूब नज़राना देकर खुश कर दिया है, और उन्होंने हम को तअ़ज़िये बनाने, घुमाने, ढोल बजाने और मेले ठेले लगाने और उन में जाने की इजाजत दे दी है।
៚ अल्लाह नाराज़ हो या उस का रसूल ऐसे मौलवियों और पीरों से हम ख़ूश और वह हम से खुश।
៚ इस सब के बावजूद अ़वाम में ऐसे लोग भी काफ़ी हैं जो ग़लती करते हैं और इसको ग़लती समझते भी हैं और इस हराम को हलाल बताने वाले मौलवियों की भी उनकी नजर में कुछ औकात नहीं रहती।.
एक गांव का वाक़िआ है कोई तअ़ज़िये बनाने वाला कारीगर नहीं मिल रहा था या बहुत सी रक़म का मुतालबा कर रहा था वहां की मस्जिद के इमाम ने कहा कि किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है तअ़जिया मैं बना दूंगा और इस इमाम ने गांव वालों को ख़ुश करने के लिए बहुत उ़मदा बढ़िया और खूबसूरत तअ़जिया बना कर दिया और फिर उन्ही तअ़ज़िये दारों ने इस इमाम को मस्जिद से निकाल दिया और यह कह कर इस का हिसाब कर दिया कि यह कैसा मौलवी है कि तअ़जिया बना रहा है मौलवी तो तअ़ज़िये दारी से मना करते हैं, और मौलवी साहब का बकौल शाइर यह हाल हुआ कि,
*न ख़ुदा ही मिला न विसाले स़नम*
*न यहां के रहे न वहां के रहे !*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 08 📚* जाने
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ दरअसल बात यह है कि सच्चाई में बहुत त़ाक़त है और ह़क़ ह़क़ ही होता है, और सर चढ़ कर बोलता है और ह़क़ की अहमियत उनके नज़दीक भी होता है जो ना ह़क़ पर हैं।
៚ बहरे हाल इस में कोई शक नहीं कि एक बड़ी तादाद में हमारे सुन्नी मुसलमान अ़वाम भाई हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत में ग़लत फ़हमियों के शिकार हो गए और मज़हब के नाम पर नाजाइज़ तफ़रीह और दिल लगी के काम करने लगे उनकी ग़लत फ़हमियों को दूर करने के लिए हम ने यह मज़मून मुरत्तब किया है।
៚ इस मुख़्तसर मज़मून में हम यह दिखायेंगे कि आज कल मुहर्रम के महीने में इस्लाम व सुन्नियत के नाम पर जो कुछ होता है इस में इस्लामी नुक़त़ा_ए_नज़र से सुन्नी उलेमा के फ़तवों के मुताबिक जाइज़ क्या है और नाजाइज़ क्या है किस में गुनाह है और किस में सवाब, इस में बहस व मुंहाहिसे और तफ़सील की तरफ न जा कर सिर्फ जाइज़ और नाजाइज़ कामों का एक जाइज़ा पेश करेंगे और पढ़ने और सुनने वालों से गुज़ारिश है कि वह ज़िद और हठ धरमी से काम न लें, मौत व क़ब्र और आख़िरत को पेशे नज़र रखें।
៚ मेरे अ़ज़ीज़ इस्लामी भाईयों ! हम सब को यक़ीनन मरना है, और ख़ुदा_ए_तआ़ला को मुंह दिखाना है वहां ज़िद और हठ धरमी से काम नहीं चलेगा, भाईयों! आंखें खोलो और मरने से पहले होश में आ जाओ और पढ़ो समझो और मानो।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 08 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
मुह़र्रम में क्या जाइज़ !?
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हम पहले ही लिख चुके हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हों या दूसरी अ़ज़ीम इस्लामी शख़्सियतें उनसे असली सच्ची हक़ीक़ी मुहब्बत व अ़क़ीदत तो यह है कि उनके रास्ते पर चला जाये और उन का रास्ता इस्लाम है!
៚ पांचों वक़्त की नमाज की पाबन्दी की जाये,
៚ रमज़ान के रोज़े रखे जायें,
៚ माल की ज़कात निकाली जाये,
៚ बस की बात हो तो ज़िन्दगी में एक मर्तबा ह़ज भी किया जाये,
៚ जुए शराब ज़िना, सूद, झूट, गीबत, फिल्मी गानों, तमाशों और पिक्चरों वगैरह नाजाइज़ हराम कामों से बचा जाये,
៚ और उसके साथ साथ उन की मुहब्बत व अ़क़ीदत में मुन्दर्जा ज़ैल काम किए जायें तो कुछ हर्ज़ नहीं बल्कि बाइसे ख़ैर व बरकत है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 08 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
न्याज़ व फ़ातिहा
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हज़रत इमाम रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु और जो लोग उनके साथ शहीद किए गये उनको सवाब पहुंचाने के लिए सदक़ा व ख़ैरात किया जाये!
៚ गरीबों मिस्किनों को या दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्ते दारों वग़ैरह को शरबत या खिचड़े या मलीदे वगै़रा कोई भी जाइज़ खाने पीने की चीज़ खिलाई या पिलाई जाये और उसके साथ आयाते कुरआनिया की तिलावत कर दी जाये तो और भी बेहतर है इस सब को उ़र्फ़ में नियाज़ फ़ातिहा कहते हैं यह सब बिला शक जाइज़ और सवाब का काम है, और बुजुर्गों से इज़हारे अ़क़ीदत व मुहब्बत और उन्हें याद रखने का अच्छा त़रीका है लेकिन इस बारे में चन्द बातों का ध्यान रखना जरूरी है!
៚ ① ➪ न्याज़ व फ़ातिहा किसी भी हलाल और जाइज़ खाने पीने की चीज़ पर हो सकती है उसके लिए शरबत खिचड़े और मलीदे को ज़रूरी ख्याल करना जिहालत है अलबत्ता इन चीजों पर फ़ातिहा दिलाने में भी कोई हर्ज़ नहीं है, अगर कोई इन मज़कूरा चीजों पर फ़ातिहा दिलाता है तो वह कुछ बुरा नहीं करता, हां जो उन्हें ज़रूरी ख्याल करता है उनके अलावा किसी और खाने पीने की चीज़ पर मुहर्रम में फ़ातिहा सही नहीं मानता वह ज़रूर जाहिल है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 10 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 10
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
न्याज़ व फ़ातिहा
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ② ➪ न्याज़ फ़ातिहा में शेख़ी खो़री नहीं होनी चाहिए और न खाने पीने की चीज़ों में एक दूसरे से मुकाबिला बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ अल्लाह वालों के ज़रिए अल्लाह तआ़ला की नज़दीकी और उसका कुर्ब और रज़ा हासिल करने के लिए हो और अल्लाह के नेक बन्दों से मुहब्बत इस लिए की जाती है कि उन से मुहब्बत करने और उनके नाम पर खाने खिलाने और उन की रुहों को अच्छे कामों का सवाब पहुंचाने से अल्लाह राज़ी हो, और अल्लाह को राज़ी करना ही हर मुसलमान की ज़िन्दगी का असली मक़सद है।
៚ ③ ➪ न्याज़ फ़ातिहा बुजुर्गों की हो या बड़े बुढ़ों की उस के तौर तरीके जो मुसलमानों में राइज हैं जाइज़ और अच्छे काम हैं फ़र्ज और वाजिब यानी शरअन लाजिम व ज़रूरी तो नहीं अगर कोई करता है तो अच्छा करता है और नहीं करता है तब भी गुनाहगार नहीं, हां कभी भी और बिल्कुल न करना महरूमी है, न्याज़ व फ़ातिहा को न करने वाला गुनाहगार नहीं है, हां इस से रोकने और मना करने वाला ज़रूर गुमराह व बदमज़हब है और बुजुर्गों के नाम से जलने वाला है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 10 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
न्याज़ व फ़ातिहा
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ❹ ➪ न्याज व फ़ातिहा के लिए बाल बच्चों को तंग करने की या किसी को परेशान करने की या खुद परेशान होने की या उन कामों के लिए क़र्ज़ा लेने की या गरीबों मजदूरों से चन्दे करने की कोई ज़रूरत नहीं, जैसा और जितना मौका हो उतना करे और कुछ भी न हो तो खाली कुरआन या कलमा_ए_त़य्यबा या दुरूदशरीफ़ वग़ैरह का ज़िक्र करके या नफिल नमाज़ या रोज़े रख कर सवाब पहुंचा दिया जाये तो यह काफ़ी है, और मुकम्मल न्याज़ और पुरी फ़ातिहा है, जिस में कोई कभी यानी शरअ़न ख़ामी नहीं है,
៚ खुदा_ए_तआ़ला ने इस्लाम के ज़रिए बन्दों पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डाला ज़कात हो या स़दका_ए_फ़ित्र और कुरबानी सिर्फ उन्हीं पर फ़र्ज व वाजिब हैं जो साहिबे निसाब यानी शरअ़न मालदार हों, हज़ भी उसी पर फ़र्ज किया गया जिस के बस की बात हो, अ़क़ीक़ा व वलीमा उन्हीं के लिए सुन्नत हैं जिनका मौका हो जब कि यह काम फ़र्ज व वाजिब या सुन्नत हैं, और न्याज व फ़ातिहा उ़र्स वग़ैरह तो सिर्फ बिदआ़ते ह़सना यानी सिर्फ अच्छे और मुस्तहब काम हैं, फर्ज व वाजिब नहीं हैं यानी शरअ़न लाजिम व ज़रूरी तो नहीं हैं, फिर न्याज व फ़ातिहा के लिए क़र्ज़ लेने, परेशान होने और बाल बच्चों को तंग करने की क्या जरूरत है, बल्कि हलाल कमाई से अपने बच्चों की परवरिश करना बजाते खुद एक बड़ा कारे ख़ैर, सवाब का काम है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 12 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
न्याज़ व फ़ातिहा
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ख़ुलासा यह कि उ़र्स, न्याज व फ़ातिहा वग़ैरह बुजुर्गों की यादगारें मनाने की जो लोग मुख़ालिफ़त करते हैं वह गलती पर हैं और जो लोग सिर्फ उन कामों को ही इस्लाम समझे हुये हैं और शरअ़न उन्हें लाजिम व ज़रूरी ख्याल करते हैं वह भी बड़ी भूल में हैं।
៚ ❺ ➪ न्याज व फ़ातिहा की हो या कोई और खाने पीने की चीज़ उसको लुटाना, भीड़ में फेंकना कि उनकी बे अदबी हो पैरों के नीचे आये या नाली वग़ैरह गन्दी जगहों पर गिरे एक ग़लत तरीका है, जिस से बचना ज़रूरी है, जैसा कि मुहर्रम के दिनों में कुछ लोग पूड़ी, गुलगुले या बिस्किट वग़ैरह छतों से फ़ेंकते और लुटाते हैं यह ना मुनासिब हरकतें हैं।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 12 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
न्याज़ व फ़ातिहा
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ❻ ➪ न्याज़ व फ़ातिहा यानी बुजुर्गों को उनके विसाल के बाद या आम मुरदों की रुहों को उनके मरने के बाद सवाब पहुंचाने का मतलब सिर्फ यहीं नहीं कि खाना पीना सामने रख कर और कुरआने करीम पढ़ कर ईसाले सवाब कर दिया जाये, बल्कि दूसरे दीनी इस्लामी या रिफ़ाहे आ़म यानी अ़वाम मुस्लिमीन को नफ़ा पहुँचाने वाले काम कर के उन का सवाब भी पहुँचाया जा सकता है।
៚ किसी ग़रीब बीमार का एलाज करा देना,
៚ किसी बाल बच्चेदार बे घर मुसलमान का 🏡 घर बनवा देना,
៚ किसी बे क़सूर कैदी की मदद कर के जेल से रिहाई दिलाना,
៚ जहाँ मस्जिद की ज़रूरत हो वहाँ मस्जिद बनवा देना,
៚ अपनी तरफ़ से इमाम व मुअज़्ज़िन की तंख़्वाह जारी कर देना,
៚ मस्जिद में नमाज़ियों की ज़रुरतों में ख़र्च करना,
៚ इल्मे दीन हासिल करने वालों या इल्म फैलाने वालों की मदद करना,
៚ दीनी 📖 किताबें छपवा कर या ख़रीद कर तक़सीम करना,
៚ दीनी मदरसे चलाना,
៚ रास्ते और सड़कें बनवाना या उन्हें सही करना,
៚ रास्तों में राह गीरों की ज़रुरतों के काम कराना वग़ैरह वग़ैरह।
៚ यह सब👆 ऐसे काम हैं कि उन्हें करके या उन पर ख़र्चा करके, बुजुर्गों या बड़े बूढ़ों के लिए ईसाले सवाब की नियत कर ली जाये तो यह भी एक किस्म की बेहतरीन न्याज व फ़ातिहा हैं, ज़िन्दों और मुर्दों सभी का उसमें नफ़ा और फ़ाइदा है।
៚ हदीस पाक में है कि हुज़ूर पाक के एक सहाबी हज़रते सअद इब्ने उ़बादा रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु की माँ का विसाल हुआ तो वह बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अ़र्ज़ किया या रसूलुल्लाहﷺ ! मेरी माँ का इन्तिकाल हो गया है तो कौन-सा स़दक़ा बेहतर रहेगा। सरकार ने फ़रमाया- पानी बेहतर रहेगा। उन्होंने एक कुँआ खुदवा दिया और उस के क़रीब खड़े होकर कहा- यह कुँआ मेरी माँ के लिए हैं।...✍🏻
*📔 मिश्कात बाबो फ़ज़लुस्स़दक़ा सफा़-169*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 14 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
न्याज़ व फ़ातिहा
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ यानी जो लोग इस से पानी पियें उसका सवाब मेरी माँ को पहुँचता रहे।
៚ शारेहीने हदीस फ़रमाते हैं- हुज़ूर ﷺ ने पानी इसलिए फ़रमाया कि मदीना तय्यबा में पानी की किल्लत थी पीने का पानी ख़रीदना पड़ता था, गरीबों के लिए दिक्कत का सामना था इसलिए हुज़ूरﷺ ने हज़रत सअ़द से कुँआ खोदने के लिए फ़रमाया।
៚ इस हदीस से यह बात साफ़ हो जाती है कि मुर्दों को कारेख़ैर का सवाब पहुँचता है और यह कि जिस चीज़ का सवाब पहुँचाना हो उस खाने पीने की चीज़ को सामने रख कर यह कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि उसका सवाब फ़ला को पहुँचे क्योंकि हज़रत सअ़द ने कुँआ खुदवा कर कुँआ की तरफ़ इशारा कर के यह अलफ़ाज़ कहे थे, लेकिन इस को ज़रूरी भी नहीं समझना चाहिए कि खाना पानी सामने रख कर ही ईसाले सवाब जाइज़ है, दूर से भी कह सकते हैं, दिल में कोई नेक काम कर के या कुछ पढ़ कर या खिला कर किसी को सवाब पहुंचाने की नियत करले तब भी काफ़ी है, अल्लाह तआ़ला सवाब देने वाला है वह दिलों के अह़वाल से खूब वाक़िफ़ है, यह सब तरीके दुरुस्त हैं उन में से जो किसी तरीके को ग़लत कहे वही खुद ग़लत है।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 14 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 15
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
ज़िक्रे शहादत
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हज़रत सय्यद इमाम हुसैन रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु और दूसरे हज़राज अहले बैअत किराम का ज़िक्र नज़्म में या नस्र में करना और सुनना यकीनन जाइज़ है, और बाइसे खैर व बरकत व नुजूले रहमत है लेकिन इस सिलसिले में नीचे लिखी हुई चन्द बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी है!
៚ जि़क्रे शहादत में सही रिवायात और सच्चे वाक़िआत ब्यान किए जायें, आज कल कुछ पेशावर मुक़र्रिरों और शाइरों ने अ़वाम को खुश करने और तक़रीरों को जमाने के लिए अ़जीब-अजीब किस्से और अनोखी निराली हिकायात और गढ़ी हुई कहानियाँ और करामात बयान करना शुरू कर दिया है, क्योंकि अ़वाम को ऐसी बातें सुनने में मज़ा आता है, और आज-कल के अकसर मुक़र्रिरों को अल्लाह व रसूल से ज्यादा अ़वाम को खुश करने की फ़िक्र रहती है, और बज़ाहिर सच से झूठ में मज़ा ज़्यादा है और जलसे ज़्यादा तर अब मज़ेदारियों के लिए ही होते है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 15 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 16
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
ज़िक्रे शहादत
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अलैहि फंरमाते हैं शहादत नामे नज़म या नस्र जो आज-कल अ़वाम में राइज हैं अकसर रिवायाते बातिला व बे सरोपा से ममलू और अकाज़ीब मोजूआ पर मुश्तमिल हैं। ऐसे बयान का पढ़ना और सुनना, वह शहादत नामा हो, ख़्वाह कुछ और, मज्लिसे मीलादे मुबारक में हो ख़्वाह कही और मुतलक़न हराम व नाजाइज़ हैं।
*📕 फ़तावा रज़विया जिल्द-24, सफा-514, मतबुआ रज़ा फ़ाउन्डेशन लाहौर*
៚ और उसी किताब के सफ़ा-522 पर इतना और है *यूँही मरसिये, ऐसी चीज़ों का पढ़ना सुनना सब गुनाह व हराम है।* ...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 15 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 17
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
ज़िक्रे शहादत
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हदीस पाक में है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने मरसियों से मना फ़रमाया।
៚ ज़िक्रे शहादत का मक़सद सिर्फ वाक़िआत को सुन कर इबरत व नसीहत हासिल करना हो और साथ ही साथ स्वालिहीन के ज़िक्र की बरकत हासिल करना ही हो, रोने और रुलाने के लिए वाक़िआते करबला बयान करना नाजाइज़ व गुनाह है, इस्लाम में 3 दिन से ज़्यादा मौत का सोग जाईज़ नहीं।
៚ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ बरेलवी फ़रमाते हैं शरीअ़त में औरत को शौहर की मौत पर चार महीने दस दिन सोग मनाने का हुक्म दिया है, औरों की मौत के तीसरे दिन तक इजाज़त दी है, बाकी हराम है, और हर साल सोग की तजदीद तो अस़लन किसी के लिए हलाल नहीं।...✍🏻
*📗 फ़तावा रज़विया जिल्द-24, सफहा-495*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 17 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 18
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
ज़िक्रे शहादत
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ और रोना रुलाना सब राफज़ियों के तौर तरीके हैं क्योंकि उनकी किस्मत में ही यह लिखा हुआ है, राफ़्ज़ी ग़म मनाते हैं और ख़ारज़ी खुशी मनाते हैं और सुन्नी वाक़िआते करबला से नसीहत व इबरत हासिल करते हैं और दीन की ख़ातिर कुरबानियाँ देने और मुसीबतों पर सब्र करने का सबक लेते हैं और उनके ज़िक्र से बरकत और फ़ैज़ पाते हैं।
៚ हां अगर उनकी मुसीबतों को याद कर के ग़म हो जाये या आंसू निकल आयें तो यह मुहब्बत की पहचान है। मतलब यह है कि एक होता है ग़म मनाना और ग़म करना, और एक होता है ग़म हो जाना, ग़म मनाना और करना नाजाइज़ है और ध्यान आने पर खुद ब खुद हो जाये तो जाइज़ है।...✍
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ सफह - 17 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 19
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शहीद की किस्में शहीद की तीन किस्में हैं:
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ 1- शहीदे हकीक़ी
៚ 2- शहीदे फिक़्ही और
៚ 3- शहीदे हुक्मी
៚ जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाए वह शहीदे हकीक़ी है और शहीदे फिक़्ही उसे कहते हैं कि आकिल बालिग़ मुसलमान जिस पर ग़ुस्ल फर्ज़ न हो वह तलवार व बंदूक वगैरा आलए जारिहा से ज़ुल्मन क़त्ल किया जाए और क़त्ल के सबब माल न वाजिब हुआ हो और न ज़ख़्मी होने के बाद कोई फायदा दुनिया से हासिल किया हो और न ज़िन्दों के अहकाम में से कोई हुकम उस पर साबित हुआ हो यानी अगर पागल, ना बालिग़ या हैज़ व निफास वाली औरतें और जुनुब शहीद किये जाएं तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं और अगर क़त्ल से माल वाजिब हुआ हो जैसे कि लाठी से मारा गया या क़त्ले ख़ता कि मार रहा था शिकार को और लग गया किसी मुसलमान को, या ज़ख्मी होने के बाद खाया पिया, इलाज किया, नमाज़ का पूरा वक़्त होश में गुज़रा और वह नमाज़ पर क़ादिर था या किसी बात की वसिय्यत की तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं।
៚ मगर शहीदे फिक़्ही न होने का यह माना नहीं कि वह शहीद होने का सवाब भी नहीं पाएगा बल्कि इस का मतलब सिर्फ इतना है कि उसे गुस्ल दिया जाएगा और शहीदे फिक़्ही नमाज़े जनाज़ा तो पढ़ी जाएगी मगर उसे गुस्ल नहीं दिया जाएगा वैसे ही खून के साथ दफन कर दिया जाएगा और जो चीजें कि अज़ किस्म कफन नहीं होंगे उन्हें उतार लिया जाएगा जैसे ज़िरह, टोपी और हथियार वगैरा और कफन मस्नून में अगर कमी होगी तो उसे पूरा किया जाएगा, पाजामा नहीं उतारा जाएगा और सारे कपड़े उतार कर नए कपड़े नहीं दिये जाएंगे कि मक्-रूह है।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 20
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शहीद की किस्में शहीद की तीन किस्में हैं:
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ शहीदे हुक्मी यह है कि जो ज़ुल्मन नहीं क़त्ल किया गया मगर कियामत के दिन वह शहीदों के गिरोह में उठाया जाएगा।
៚ हदीस शरीफ में है कि सरकारे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि ख़ुदाए तआला की राह में शहीद किये जाने के अलावा सात शहादतें और हैं, जो ताऊन में मरे शहीद है, जो डूब कर मर जाए शहीद है, जो ज़ातुल जुनब (नमूनिया) में मरे शहीद है, जो पेट की बीमारी में मर जाए शहीद है, जो आग में जल जाए शहीद है, जो इमारत के नीचे दब कर मर जाए वह शहीद है और जो औरत बच्चे की पैदाइश के वक़्त मर जाए वह भी शहीद है।...✍🏻
*📔 मिश्कात शरीफः136*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 21
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शहीद की किस्में शहीद की तीन किस्में हैं:
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ इन के अलावा और भी बहुत सी सूरतें हैं जिन में शहादत का सवाब मिलता है, उन में से चन्द यह हैं: हालते सफर में मरा, सिल की बीमारी में मरा, सवारी से गिर कर मरा या मिरगी से मरा, बुख़ार में मरा, जान व माल या अहल व अयाल या किसी हक़ के बचाने में क़त्ल किया गया, इश्क में मरा बशर्ते कि पाक दामन हो और छुपाया हो, किसी दरिन्दे ने फाड़ खाया, बादशाह ने ज़ुल्मन क़ैद किया या मारा और मर गया, किसी मूज़ी जानवर के काटने से मरा, इल्मे दीन की तलब में मरा, मोअज्ज़िन जोकि तलबे सवाब के लिये अज़ान कहता हो, रास्त-गो ताजिर जिसे समन्दर के सफर में मतली कैय आई और मर गया, जो अपने बाल बच्चों के लिये सई (कोशिश) करे उन में अम्रे इलाही काइम करे और उन्हें हलाल खिलाए!
៚ जो हर रोज़ 25 बार यह दुआ पढ़े: "अल्लाहुम्म बारीक ली फ़िल्मौती व फ़िमा बाद्लमौती" , जो चाश्त की नमाज़ पढ़े हर महीने में तीन रोज़े रखे ओर वित्र को सफर व हज़र में कहीं तर्क न करे, फसादे उम्मत के वक़्त सुन्नत पर अमल करने वाला उस के लिये सौ शहीदों का सवाब है, जो मर्ज़ में चालीस मर्तबा कहे "ला इलाह इल्ला अंत सुब्-हानक इन्नी कुन्तु मिनज़्ज़ालिमिन" और उसी मर्ज़ में इन्तेक़ाल कर जाए और अच्छा हो गया तो उस की मग़फिरत हो जाएगी, कुफ्फार से मुक़ाबला के लिये सरहद पर घोड़ा बांधने वाला, जो शख़्स हर रात सूरए यासीन शरीफ पढ़े, जो बा-वजू सोया और मर गया, जो नबीए अक्रम सल्लल्लाहु'तआला अलैहि व सल्लम पर सौ मर्तबा रोज़ाना दुरूद शरीफ पढ़े, जो सच्चे दिल से यह दुआ करे कि अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाऊं और जो शख़्स जुमा के रोज़ इन्तिकाल करे।
*📘 रद्दुल मोहतार, बहारे शरीअत*
៚ इन तमाम किस्मों में सब से आला शहीद वह है जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया गया और शहादते हक़ीकिय्या से सरफराज़ हुआ। इस के फज़ाइल में कई आयतें और बेशुमार हदीसें वारिद हैं।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 22
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शुहदा के फज़ाइल
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ खुदाए अज़्ज़ व जल्ल शुहदा_ए_किराम की फज़ीलत बयान करते हुए क़ुरआने मजीद में इरशाद फरमाता है: व ला तक़ुलू लि मै युक़ुतलु फी सबीलिल्लाही अम्वात बल अहया औं व लाकिल्ला तश्ऊरून
៚ जो ख़ुदा की राह में क़ल्त किये जाएं उन्हें मुर्दा मत कहना बल्कि वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें ख़बर नहीं।
*📔 क़ुरआन करीम, पारा-2, रुकू-3*
៚ और इरशाद फरमाता हैः व ला तह्सबन्न्ल्ल ज़िन क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातन बल् अह्या औं इन्द रब्बीहिम् युर्ज़क़ून
៚ जो लोग अल्लाह की राह में क़त्ल किये गए उन्हें मुर्दा हरगिज़ न ख़्याल करना बल्कि वह अपने रब के पास ज़िंदा हैं, रोज़ी दिये जाते हैं।..✍🏻
*📘 क़ुरआन करीम, पारा-4, रुकू-8*
*📔 मुस्लिम, मिश्कातः330*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 23
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शुहदा के फज़ाइल
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ हज़रत इब्ने मस्ऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं ने इस आयते करीमा का माना रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से दर्याफ़्त किया तो आप ने इरशाद फरमाया कि शहीदों की रूहें सब्ज़ परिन्दों के जिस्म में हैं, उन के रहने के लिये अर्श इलाही के नीचे किन्दीलें लटकाई गई हैं। जन्नत में जहां उन का जी चाहता है वह सैर करते हैं और उसके मेवे खाते हैं।
*📔 मुस्लिम, मिश्कातः330*
៚ और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम शुहदा_ए_इस्लाम की अज़मत बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि शहीद के लिये ख़ुदा_ए_तआला के नज़दीक छः खूबियां हैं:
៚ 1). खून का पहला क़तरा गिरते ही उसे बख़्श दिया जाता है और रूह निकलने ही के वक़्त उस को जन्नत में उस का ठिकाना दिखा दिया जाता है।
៚ 2). क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रहता है।
៚ 3). उसे जहन्नम के अज़ाब का खौफ नहीं रहता।
៚ 4). उस के सर पर इज़्ज़त व वक़ार का ताज रखा जाएगा कि जिस का वेश बहा याकूत दुनिया और दुनिया की तमाम चीज़ों से बेहतर होगा।
៚ 5). उस के निकाह में बड़ी-बड़ी आंखों वाली 72 हूरें दी जाएंगी।
៚ 6). और उसके अज़ीज़ों में से 70 आदमियों के लिये उस की शफ़ाअत क़बूल की जाएगी।...✍🏻
*📔 तिर्मिज़ी, मिश्कातः333*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 24
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शुहदा के फज़ाइल
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ और सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो लोग लड़ाई में क़त्ल किये जाते हैं उन की तीन किस्में हैं: एक वह मोमिन जो अपनी जान और अपने माल से अल्लाह की राह में लड़े और दुश्मन से खूब मुक़ाबला करे यहाँ तक कि क़त्ल कर दिया जाए, यह वह शहीद है जो सब्र और मशक़्क़त के इम्तिहान में कामियाब हुआ। यह शहीद ख़ुदा_ए_तआला के अर्श के नीचे ख़ुदा के खेमे (यानी अल्लाह तआला के हुज़ूर और उस के क़ुर्ब में) होगा।
*📘 अश्अतुल् लमआतः3/260*
៚ अंबियाए किराम इस से सिर्फ दर्जए नुबुब्बत में ज़्यादा होंगे यानी मर्तबए नुबुव्वत और उस से जो कमालात मुतअल्लिक हैं उन के अलावा हर मर्तबा और हर कमाल उस शहीद को हासिल होगा और दूसरा वह मोमिन जिस के आमाल दोनों तरह के हों यानी कुछ अच्छे और कुछ बुरे, वह अपनी जान व माल से ख़ुदा की राह में जिहाद करे, जिस वक़्त दुश्मन से सामना हो उस से लड़े यहां तक कि क़त्ल कर दिया जाए। यह ऐसी शहादत है जो गुनाहों और बुराइयों को मिटाने वाली है।
៚ फिर फरमाया: बेशक तलवार गुनाहों को बहुत ज़्यादा मिटाने वाली है और यह शहीद जिस दरवाजे से चाहेगा जन्नत में चला जाएगा। और तीसरा वह मुनाफिक़ है जिस ने अपनी जान और अपने माल से जिहाद किया और जब दुश्मन से मुक़ाबिला हुआ तो ख़ूब लड़ा यहाँ तक कि मारा गया। यह शख्स दोज़ख में जाएगा। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमायाः इस लिये कि निफाक़ यानी छिपे हुए कुफ़्र को तलवार नहीं मिटाती है।..✍🏻
*📘 दारमी, मिश्कातः336*
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 25
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शुहदा के फज़ाइल
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ इस हदीस शरीफ से जहां यह मालूम हुआ कि अल्लाह की राह में शहीद होने वाला मर्तबए नुबुब्बत और उस के मुतअल्लिका कमालात के अलावा सारे दरजात से सरफराज़ किया जाता है और उस के तमाम गुनाह माफ कर दिये जाते हैं साथ ही यह भी वाज़ेह हुआ कि अगर दिल में कुफ़्र छिपाए हो और सिर्फ ज़ाहिर में मुसलमान हो तो चाहे जिंदगी भर जिहाद करे यहां तक कि अपनी अज़ीज़ तरीन जान भी कुर्बान कर दे मगर वह जहन्नम ही में जाएगा।
៚ इसी तरह जो लोग महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के बुग़ज़ व अदावत का कुफ़्र, अपने दिलों में छिपाए हुए हैं और उन की अज़मत के दुश्मन हैं अगर वह दिन रात इबादत करें और जिंदगी भर सारी दुनिया में इस्लाम की नशर व इशाअत करें और तब्लीग़ करते फिरें यहां तक कि उसी हाल में मर जाएं तो उन का ठिकाना जहन्नम ही होगा। इसी लिये इस तरह की किसी भी नेकी से कुफ्र नहीं माफ होता।
៚ सल्लल्लाहु अलन्नबिय्यिल् उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।...✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 26
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
शहादत की लज़्ज़त
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ दुनिया की बेशुमार नेअमतों से इंसान लुत्फ व लज़्ज़त हासिल करता है, किसी नेअमत को खाता है, किसी को पीता है, किसी को सूंघता है, किसी को देखता है, किसी को सुनता है और इन के अलावा मुख़्तलिफ तरीक़ों से तमाम नेअमतों को इस्तेमाल करता है और उन से महज़ूज़ होता है लेकिन मर्दे मोमिन को शहादत की जो लज़्ज़त हासिल होती है उस के सामने दुनिया की सारी लज़्ज़तें हेच हैं।
៚ यहां तक कि शहीद जन्नत की तमाम नेअमतों से फाइदा उठाएगा और उन से लुत्फ अंदोज़ होगा मगर जब उस को अल्लाह व रसूल की मुहब्बत में सर कटाने का मज़ा याद आएगा तो जन्नत की भी सारी नेअमतों का मज़ा भूल जाएगा और तमन्ना करेगा कि ऐ काश! मैं दुनिया में वापस किया जाऊं और बार-बार शहीद किया जाऊं।
៚ हदीस शरीफ में है सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि जन्नत में दाख़िल होने के बाद फिर कोई जन्नती वहां की राहतों और नेअमतों को छोड़ कर दुनिया में आना पसंद न करेगा कि जो चीज़ें हमें ज़मीन में हासिल थीं वह फिर मिल जाएं।
៚ मगर शहीद आरजू करेगा कि वह फ़िर दुनिया की तरफ वापस होकर अल्लाह की राह में दस मर्तबा क़त्ल किया जाए।
៚ इल्लश्शहिदु यतमन्ना ऐय्यरजिअ इलद्दुनिया फ़यूक़ुतल अश्शर मर्रात
*📔 बुखारी, मुस्लिम, मिश्कातः330*
៚ सल्लल्लाहु अलन्नबिय्यिल् उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।..✍🏻
*⊆ ↬ बा - हवाला ↫ ⊇*
*📬 »» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 26-27 📚*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 27
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
ताजियादारी
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ मुसलमानों में बहुत सारी बिदआत व खुराफात रिवाज़ पा चुकी हैं उल्मा ए किराम ने उनके सद्दे बाब के लिए सई बलीग़ फरमाई मगर मुआशरा इन जरासीम से मुकम्मल पाक न हो सका ख़ुसूसन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुद्दिसा सिर्रूहुल अज़ीज़ ने अपने खूने जिगर से इस्लामी इक्दार की आबयारी की और माहौल में फैली हुई बुराई व बे राह रवी के इलाज व नुस्खे बताऐ, अगर मुसलमान आला हज़रत के फ़रमूदात पर अमल करें और उनकी पुकार पर लब्बैक कहें तो हमारा मुआशरा बुराइयों और बिदआत व ख़ुराफ़ात के तअफन से पाक व साफ हो सकता है !
៚ इसकी ज़िन्दा मिसाल मुहर्रम शरीफ की ताजियादारी है ! ताज़िया दर हक़ीक़त रोज़ा ए शहीदे आज़म इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की शबीह (हमशक्ल) व तमसाल था मगर लोगों ने मुख्तलिफ़ खुराफात जोड़ दिए जिससे ताज़िया की असल हक़ीक़त रूपोश (खत्म) हो गई और नई तराश ख़राश (नई डिजाइनिंग) का नाम ताज़िया पड़ गया ! इसकी हक़ीक़त को जानने के लिए आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी क़ुद्दिसा सिर्रहु की दर्द अंगेज़ तहरीर मुलाहिजा फरमाएं!..✍🏻
*📙 फैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू सफ़ह 267*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 28
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताज़िया की हक़ीक़त और उसमें खुराफात*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ताज़िया की असल इस क़दर थी की रौज़ा ए पुर नूर हुज़ूर शहज़ादा ए गुलगूं क़बा हुसैन शहीद ज़ुल्म व जफ़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु की सही नक्ल बना कर बा नियते तबर्रूक मकान में रखना, उसमें शरअन कोई हरज न था ! के तस्वीर मकानात वगैरह ग़ैरे जानदार की बनाना, रखना सब जाइज़, और ऐसी चीजें के मुअज़्ज़माने दीन की तरफ़ मंसूब हो कर अज़मत पैदा करें उनकी तिम्साल बा नियते तबर्रुक पास रखना क़तअन जाईज ! जैसे सदहा साल से तबक़्क़तन फ़तबक़्क़तन अइम्मा ए दीन व उलमा ए मोतमदीन *नालैन शरीफैन हुज़ूर सैय्यदुल कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम* के नक़्शे बनाते, और उनके फवाइदे जलीला व मुनाफे जज़ीला में मुस्तक़िल रिसाले तस्नीफ़ फरमाते !
मगर जिहाल बे ख़ुर्द (जाहिलों) ने इस असले जाइज़ को बिल्कुल नेस्तो नाबूद (खत्म) करके सदहा ख़ुराफ़ात वो तराशीं के शरिअते मुतहरा से,*अल अमान, अल अमान* की सदाएं आईं!..✍🏻
*📚 फैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू सफ़ह 267*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 29
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ अव्वल तो नक़्शे ताजिया में रोज़ा ए मुबारक की नक़ल मलहूज़ ना रही, हर जगह नई तराश, नई घड़त, जिसे उस नक़ल से कुछ इलाक़ा ना निस्बत, फिर किसी में परियां, किसी में बुराक़, (यानी जानदार की तस्वीरें) किसी में और बेहूदा तमत्तराक़, फिर कूचा बकूचा (गली गली) व दस्त बदस्त इशाअते ग़म के लिए उनका गश्त (घुमाना) और उनके गिर्द सीना ज़नी,(यानी सीना पीटना) और मातम साज़िसी की शोराफ़िग्नी,(शोर मचाना) कोई उन तस्वीरों को झुक झुक कर सलाम कर रहा है, कोई मश्गूले तवाफ़, (यानी कअबा शरीफ़ की तरह तवाफ़ करता है) कोई सजदा में गिरा है, कोई उन माया ए बिदआत को मआज़ अल्लाह जल्वागाहे इमाम हुसैन रज़िअल्लाहू तआला अन्ह समझ कर उस अबरक पन्नी से मुरादें, मांगता, मन्नतें मानता है, हाजत रवा जानता है, (यानी ज़रूरत पूरी करने वाला जानता है) फिर बाक़ी तमाशे, बाजे, ताशे, मर्दों, औरतों, का रातों को मेल, और तरह तरह के बेहूदा खेल, उन सब पर तरा हैं, (अल्लाह की पनाह)!...✍🏻
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह 267*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 30
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ग़र्ज अशरा ए मुहर्रमुल हराम के अगली शरिअतों से इस शरिअते पाक तक निहायत ब बरकरत व महले इबादत ठहरा हुआ था, इन बेहूदा रुसूम ने जाहिलाना और फ़ासिक़ाना मेलों का ज़माना कर दिया, फिर वबाले बिदआत का वो जोश हुआ के ख़ैरात को भी बतौरे ख़ैरात ना रखा, रिया (दिखावा) व तफ़ाख़िर (फ़ख़्र) ऐलानिया होता है, फिर वो भी ये नहीं के सीधी तरह मोहताजों को दें, बल्के छतों पर बैठ कर फैंकेंगे, रोटियां ज़मीन पर गिर रही हैं, रिज़्क़े इलाही की बे अदबी होती है, पैसे देते हैं गिर कर ग़ायब होते हैं, माल की इज़ाअत हो रही है, मगर नाम तो हो गया के फ़लां साहब लंगर लुटा रहे हैं!
៚ अब बहार अशरह के फूल खिले, ताशे, बाजे, बजते चले, तरह तरह खेलों की धूम, बाज़ारी औरतों का हर तरफ़ हुजूम, शहवानी मेलों की पूरी रुसूम, जशन ये कुछ, और उसके साथ ख़याल वो कुछ, के गोया ये साख़्ता तस्वीरें बिअइनिहा हज़राते शुहदा रिज़वानुल्लाही तआला अलैहिम के जनाज़े हैं, कुछ नौच उतार बाक़ी तोड़ ताड़ दफ़न कर दिए, ये हर साल इज़ाअत माल के वबाल व जुर्मो जुदागाना रहे!
🤲🏻 ៚ अल्लाह तआला सदक़ा हज़राते शुहदा ए कर्बला अलैहिमुर्रिज़वान वस्सना का, हमारे भाईयों को नेकियों की तौफ़ीक़ बख़्शे और बुरी बातों से तौबा अता फ़रमाए, आमीन या रब्बल आलमीन, आमीन बिजाहि सैय्यिदिल मुरसलीन सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह- 267*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 31
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ अब के ताजियादारी इस तरीक़ा ना मर्ज़िया का नाम है क़तअन बिदअत व नाजाइज़ व हराम है, हां अगर अहले इस्लाम सिर्फ़ जाइज़ तौर पर हज़राते शुहदा ए किराम अलैहिमुर्रिज़वान की अर्वाहे तय्यबा को इसाले सवाब की सआदत पर इक़्तिसार करते तो किस क़दर ख़ूब व महबूब था, और अगर नजरें शौक़ व मुहब्बत में नकल रोज़ा ए अनवर की भी हाजत थी तो इसी क़दर जाइज पर क़नाअत करते के सही नकल बा गरज़ तबर्रुक व ज़ियारत अपने मकानों में रखते और ग़म व अलम व मातम व नोहा ज़नि वगैरह बिदआत से बचते, इस कदर में भी कोई हरज ना था, मगर अब ऐसी नकल में भी अहले बिदअत से एक मुशाबहत और ताजियादारी की तोहमत का ख़दसह और आइंदा अपनी औलाद या अहले एतक़ाद के लिए बिदआत में मुब्तिला होने का अंदेशा है!
៚ लिहाजा रोज़ा ए अक़दस हुजूर सैयदुश्शुहदा की ऐसी तस्वीर भी ना बनाए बल्के सिर्फ़ कागज़ के सही नक्शे पर क़नाअत करे और उसे बक़स्द तबर्रुक ममनू चीजें मिलाए बगैर अपने पास रखे, जिस तरह हरमैन मोहतरमैन से कअबा मुअज़्जमा और रोज़ा ए आलिया के नक्शे आते हैं, या दलाईलुल ख़ैरात शरीफ़ में कुबूरे पुर नूर के नक्शे लिखे हैं!...✍🏻
📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 35---36
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह- 268*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 32
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*मुरव्वजा ताज़ियादारी बिदअते शनिअह*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ ताज़िया जिस तरह राइज़ है ज़रूर बिदअते शनिअह (बुरी बिदअत) है जिस क़दर बात सुल्तान तैमूर ने की के रोज़ा ए मुबारक हज़रत इमाम रज़िअल्लाहू तआला अन्ह की सही नक़ल तस्कीने शौक़ को रखी वो ऐसी थी जैसे रोज़ा ए मुनव्वरा कअबा मुअज़्जमा के नक़्शे, इस वक़्त तक इस क़दर में हरज ना था, अब बा वजह शीई व शबियह उसकी भी इजाज़त नहीं, ये जो बाजे, ताशे, मर्सिये, मातम, बुराक़, परी की तस्वीरें, ताज़िये से मुरादें मांगना, उसकी मन्नतें मांगना, उसे झुक झुक कर सलाम करना, सजदा करना वग़ैरह वग़ैरह बिदआते कसीरह (बहुत ज़्यादा बिदअतें) उसमें हो गईं हैं और अब उसी का नाम ताज़ियादारी है ये ज़रूर हराम है, अलम, ताज़िये, तख़्त में जो कुछ सर्फ़ होता है सब इसराफ़ (फ़िज़ूल ख़र्ची ग़रीबी का सबब) व हराम, और ताज़िये की नियाज़ लंगर का लुटाना, रोटियां, (शीरिनी वग़ैरह) का ज़मीन पर फैंकना, पांव के नीचे आना सब बेहूदा है, हां नियाज़ के तौर पर सब बिदआत से बचकर हज़राते शुहदा ए किराम (अलैहिमुर्रिज़वान) की नियाज़ करें तो ऐन बरकत व सआदत है!..✍🏻
📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 458
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह- 268*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 33
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*शहादत नामा पढ़ने का हुक्म*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ शहादत नामे नज़म या नसर जो आजकल अवाम में राइज़ हैं अक्सर रिवायाते बातिला, बे सरोपा हिकायत, झूटी और मौज़ूअ बातों पर मुस्तमिल हैं, ऐसे बयान का पढ़ना, सुनना, वो शहादत नामा हो ख़्वाह कुछ और, मजलिसे मीलाद मुबारक में हो ख़्वाह कहीं और मुतलक़न हराम व नाजाइज़ है, ख़ुसूसन जब्के वो बयान ऐसे ख़ुराफ़ात को मुतज़मन हो जिससे अवाम के अक़ाइद में ज़लल व ख़लल आए के फिर तो और भी ज़्यादा ज़हरे क़ातिल है, (यानी ईमान को बर्बाद करने वाला है) ऐसे वुजूह पर नज़र फ़रमा कर हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली क़ुद्दिसा सिर्रहू वग़ैरह अइम्मा ए किराम ने हुक्म फ़रमाया के शहादत नामा पढ़ना हराम है!...✍🏻
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह- 268*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 34
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*तजदीदे ग़म व हज़न नाजाइज़ है*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ यूंही जब्के उससे मक़सूद ग़म परवरी और बनावटी हज़न व मलाल हो तो ये नियत भी शरअन ना महमूद, शरअ मुतहर ने ग़म में सब्र व तस्लीम और मौजूदा ग़म को हत्ताउल मक़दूर दिल से रद्द करने का हुक्म दिया है, उसमें कोई खूबी होती तो हुज़ूरे पुर नूर सैय्यदे आलाम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की वफ़ाते अक़दस की ग़म परवरी सबसे अहम व ज़रूरी होती, देखो हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम का माहे विलादत व माहे वफ़ात वही माहे मुबारक रबिउल अव्वल शरीफ़ है फिर उल्मा ए उम्मत व हामियाने सुन्नत ने उसे मातमे वफ़ात ना ठहराया बल्के मोसमे शादी विलादते अक़दस बनाया,
यानी माहे मुबारक रबीउल अव्वल खुशी व शादमानी और सर चश्मा ए अनवारो रहमत सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम का ज़माना ए ज़हूर है हमें हुक्म है के हर साल उसमें खुशी ज़ाहिर करें, तो हम उसे वफ़ात के नाम से मकदर ना करेंगे के ये तजदीदे मातम के मुशाबह है!...✍🏻
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह- 269*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 35
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*मातम व ग़म परवरी मज़मूम है*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ बेशक उल्मा ने तसरीह की के हर साल जो सैयदना इमाम हुसैन रज़िअल्लाहू तआला अन्ह का मातम किया जाता है मकरूह है, और खास इस्लामी शहरों में इसकी असल नहीं और औलिया ए किराम के उर्सों में नामे मातम से एहतराज़ करते हैं तो हुज़ूर पुर नूर सैय्यदुल अस्फ़िया सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम के मामला में उसे (यानी मातम को) क्यों कर पसंद कर सकते हैं!
៚ *खुलासा ए कलाम :* हासिल ये के मजलिसे मीलाद मुबारक में हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की वफ़ाते अक़दस का जिक्र पसंदीदा नहीं हालांके हुज़ूर की हयात भी हमारे लिए ख़ैर और हुज़ूर की वफ़ात भी हमारे लिए ख़ैर, (सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम) इसी तरह शहीदे कर्बला इमाम हुसैन रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के ज़िक्र शहादत वगैरा के बयान से ग़म परवरी और हज़न व मलाल मकसूद हो वो भी जाइज़ व दुरुस्त नहीं, हां अहले बैते अत़हार के फज़ाइल व मनाक़िब रिवायते सहीहा से सही तौर पर बयान किए जाएं उनके सब्रे जमील का इज़हार किया जाए, ग़म परवरी और मातम अंगेज़ी से कामिल एहतराज़ किया जाए तो इसमें कोई हर्ज नहीं, मुहर्रम शरीफ़ में शहादत नामा ही पढ़ना जरूरी नहीं बल्के उनके दीगर फज़ाइले जमीला व औसाफ़े हमीदा भी सही रिवायात के हवाले से बयान हो सकते हैं!...✍🏻
📚 फ़तावा रज़वियह, शरीफ़ जिल्द 9 सफ़ह 62--63
*📙 फ़ैज़ाने आलाहज़रत, उर्दू, सफ़ह- 269*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 36
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *ताजिया बनाना कैसा ?*
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है कि ताजिया बनाना बिदअत और नाजायज़ है।
📚 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 24, सफ़ह 501, मतबूआ रज़ा फाउंडेशन लाहौर)
៚ *ताज़ियादारी में तमाशा देखना कैसा?*
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है कि क्योंकि ताज़िया बनाना नाजाइज़ है लिहाज़ा नाजायज काम का तमाशा देखना भी नाजाइज़ है।
📗 मलफूज़ाते आला हज़रत शरीफ़ सफ़ह 286
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 37
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *ताज़िया पर मन्नत मांगना कैसा ?*
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है कि ताज़िया पर मन्नत मांगना बातिल और नाजाइज़ है।
📚 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 24, सफ़ह 501, मतबूआ रज़ा फाउंडेशन लाहौर)
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाही तआला अलैह फ़रमाते है कि ताज़िया पर चढ़ावा चढ़ाना नाजाइज़ और फिर उस चढ़ावे को खाना भी नाजाइज़ है।
📚 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 21, सफ़ा 246 मर्तबा रज़ा फाउंडेशन लाहौर
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 38
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *मुहर्रम में नाजाइज़ रसूमात*
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है कि मुहर्रमुल हराम के शुरू के दस दिन(यानी 1 तारीख से 10 तारीख तक) रोटी न पकाना, घर में झाड़ू न देना, पुराने कपड़े न उतारना (यानी साफ सुथरे कपड़े न पहनना) सिवाए इमाम हसन व हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा के किसी और की फ़ातिहा न देना और मेहंदी लगाना ये तमाम बातें जिहालत पर मबनी हैं।...✍🏻
📚 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 24, सफा 488 मतबूआ रजा फाउंडेशन लाहौर
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 39
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *मुहर्रम में तीन रंग न पहनें*
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है कि मुहर्रमुल हराम में (खास तौर से मुहर्रमुल हराम की 1 तारीख से 10 तारीख तक) तीन रंग के कपड़े न पहनने चाहिये।
៚ 1-सब्ज़ रंग यानी हरा रंग के कपड़े न पहने जाएं कि ये ताज़ियादारों का तरीका है।
៚ 2- लाल रंग के कपड़े न पहने जाएं कि ये अहले बैत से अदावत (दुश्मनी) रखने वालों का तरीका है।
៚ 3- काले कपड़े न पहने जाएं कि ये राफ़ज़ियों का तरीका है।
៚ लिहाज़ा मुसलमानों को इस से बचना चाहिये।
📚अहकामे शरीअत
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 40
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ आशूरा का मेला ?
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि आशूरा का मेला लग़्व व लहव और ममनूअ् है। यूहीं ताजियों का दफ़न जिस तौर पर होता है नियते बातिला पर मबनी और ताज़ीम बिदअत है और ताजिया पुर जहल व हमक बे मअना है।
📚 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 24, सफ़ह 501, मतबूआ रजा फाउंडेशन लाहौर)
៚ दुश्मने सहाबा की मजलिसों में जाना ?
៚ आला हजरत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि राफ़ज़ियों (शिओं) (यानी दुश्मने सहाबा) की मजलिसों में मुसलमानों का जाना और मर्सिया (नौहा। सुनना हराम है। इनकी नियाज़ की चीज़ न ली जाए इनकी नियाज, नियाज़ नही और वो गालिबन निजासत (गंदगी) से खाली नहीं होती। कम अज़ कम उन की नापाक कलतीन का पानी ज़रूर होता है, और वो हाजिरी सख्त मलऊन है और उसमें शिरकत मोजिबे लानता, मुहर्रमुल हराम में सब्ज़ (हरा) और सियाह (काला) कपड़े अलामते सोग हैं और सोग हराम है। ख़ुसूसन सियाह (काला) लिबास का शियार राफ़ज़िया लियाम है।...✍🏻
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 41
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ कड़े, छल्ले और एक से ज्यादा अंगूठियां पहनना ?
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है कि चाँदी की एक अंगूठी एक नग की साढ़े चार माशा से कम वजन की मर्द को पहनना जाइज़ है और दो अंगूठियां या कई नग की एक अंगूठी या साढ़े चार माशा से ज्यादा वज़न चाँदी की (अंगूठी,छल्ले,कड़े) मुतलक़न नाजाइज़ है।
📗 अहकामे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ह 80)
៚ यज़ीद को "रहमतुल्लाह अलैह" कहना नासबी होने की अलामत है
៚ आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते है कि यज़ीद बेशक पलीद था। उसे पलीद कहना और लिखना जाइज़ और उसे "रहमतुल्लाह अलैह" ना कहेगा मगर नासबी कि अहले बैत रिसालत का दुश्मन है।
⚠️ *यानी जो नबी अलैहिस्सलाम और उनकी आल का दुश्मन होगा वही यज़ीद को रहमतुल्लाह अलैह कहेगा*
📚 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 14, सफ़ह 603, मतबूआ रज़ा फाउंडेशन लाहौर
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 42
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *मुसलमानों को चाहिये के मुहर्रमुल हराम में ख़ुराफ़ात से बचें :?*
៚ 9 और 10 मुहर्रमुल हराम का रोज़ा रखें। शोहदाए करबला की याद में सबीलें लगाएं, शरबत पिलाएं, नज़्र व नियाज़ का एहतमाम करें। चुनांचे शाह वली उल्लाह मुहद्दिसे देहलवी अलैहिर्रहमा के साहबज़ादे हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी अलैहिर्रहमा अपनी 'मरकातुल अराए किताब "तोहफा ए अस्सना ए अशरी" में फ़रमाते हैं कि मौला अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु और औलादे अली में विलायत रूहानी तौर पर मौजूद है। इसलिए मैं हर साल 10 मुहर्रम को हज़रत इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु और शोहदाए करबला की नियाज़ दिलाता हूँ। और खड़े होकर उन पर सलाम पेश करता हूँ।...✍🏻
📗 फतावा रज़वियह जदीद, जिल्द 24, सफ़ह 501 मतबूआ रज़ा फाउंडेशन लाहौर
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 43
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
៚ *आशूरा के दिन अच्छे काम*
៚ आशूरा (यानी मुहर्रमुल हराम की 10, तारीख़) के दिन अच्छी तरह गुस्ल करें, अच्छे कपड़े पहनें, खुशबू लगाएं, तेल लगाएं, सुरमा लगाएं, नाखून काटे, रोज़ा रख़ें, बीमार की इयादत करें, सदका व खैरात करें और मरहूमीन (यानी जो मुसलमान इन्तिक़ाल कर गए हैं) को इसाले सवाब करें।
៚ *शबे आशूरा की नफ़्ल नमाज़*
៚ आशूरा की रात में चार रकअत नमाज़ नफिल इस तरह पढ़ें कि हर रकअत में सूरह फातिहा के बाद आयतुलकुर्सी एक बार और सूरह इखलास तीन मर्तबा पढ़ें। और नमाज़ से फारिग होकर एक सौ मरतबा (100 बार) सूरह इखलास पढ़ें। ऐसा करने वाला गुनाहों से पाक होगा और जन्नत में बेइन्तिहा नेमतें मिलेंगी।
📘 जन्नती ज़ेवर सफ़ह 157
*नोट :* ⚠️ शुरू से अब तक की इस पोस्ट में किसी को भी किसी तरह की एडिटिंग करने की इजाजत नहीं जिस तरह पोस्ट है वैसे ही शेयर कीजिये।
*मिनजानिब ✍🏻 'जमाअत रज़ा-ए-मुस्तफ़ा मरकज़े अहले सुन्नत शाख़ बानख़ाना बरेली शरीफ़ यू पी इंडिया*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 44
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ ताजिया की असल बस इतनी ठीक है के रौज़ा-ए-ईमामे हुसैन की सही नकल बनाकर तबर्रुक की नियत से मकान में रखना शरअन कोई हर्ज़ नहीं था। मगर ला इल्म (जाहिल) लोगों ने इस अस्ल को खत्म कर के (मुरव्वजह ताजियादारी) नई डिजाईनिंग ताजियादारी ढोल ताशे नौहा।मातम खेल कूद वगैरह मोहर्रम के नाम पर ये सब खुराफात शुरू कर दिये हैं जबके ये सब नाजाइज़ व हराम हैं!
៚ प्यारे अज़ीज़ मुसलमानों ये मैसेज ज़रा बड़ा है मगर जरूर पढ़ें! इन्शा अल्लाह तआला आपके इल्म में इज़ाफ़ा होगा, जो लोग औलिया ए किराम से सच्ची मुहब्बत करते हैं वह ज़रूर उनके फ़रमान पर अमल करेंगे, अहले सुन्नत व जमाअत के मुताअद्दिद उल्मा ए किराम वा औलिया ए इज़ाम ने मुरव्वज़ा ताजियादारी को नाजाइज़ व हराम फ़रमाया है, मसलन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ीअल्लाहु तआला अन्ह ने फतावा अज़ीज़िया में, सरकारे आलाहज़रत ने फतावा रज़वियह में, हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिन्द ने फतावा मुस्तफविया में, हुज़ूर सदरुश्शरीअह ने बहारे शरीयत में, मौलाना अजमल संभली अलैहिर्रमा ने फतावा अजमलिया में, हुज़ूर हश्मत अली खान ने शमे हिदायत में, फ़क़ीह ए मिल्लत मुफ्ती जलाल उद्दीन अहमद अमजदी ने फतावा फैज़ुर्रसूल में,
៚ इसके अलावा ताज़ियादारी के नाजाइज़ व हराम होने पर 1388 हिजरी में मंज़रे इस्लाम बरैली शरीफ से एक फतवा पोस्टर की शक्ल में शाया हुआ जिस पर हिंदुस्तान व पाकिस्तान के 75 उल्मा ए किराम और औलिया ए इज़ाम ने अपनी तसदीक़ात (यानी जांचा और सही बताया) की जिन्हें उन सबके नाम देखने हैं वो,📗 खुतबाते मुहर्रम सफह 523 में देखें
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 45
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ सवालन0:- 1-(अलिफ) मूरव्वजह ताजियादारी जाइज़ है या नानाइज़?
៚ (बा) अलम और सद्दे (झंडे) निकालकर नीज़ ताजिया को शबे आशूरा गली कूचों मे गश्त करना फिर उसे दसवीं मुहर्रम को मस्नूई (बनावटी, नकली) करबला मे ले जाकर दफ़न करना पहली मुहर्रम से ढोल व ताशा बजाना फिर आशूरा के दिन ताजिया के आगे आगे ढोल ताशे बाजा बजाते हुए मस्नुई (बनाबटी नक़ली) करबला तक ले जाना शरअन कैसा है नीज ताजियादारी अलम और सद्दे (झंडे) की असल क्या है।
៚ जवाबन0:- (अलिफ)👇
៚ ताजिया दारी मुरव्वजा हिन्द ना जाइज व बिद्अत ए सैय्यअह (बुरी बिदअत) व हराम है!
៚ (बा) ये सब ना जाइज़ व हराम है क़ातिले अहले इस्लाम और यह ना जाइज और हराम है तो इन की अस्ल क्या हो सकती है हां अगर साइल की मुराद ये हो के ये किस की नकल है जिस की नकल हो उस की अस्ल क़रार दी जाए तो नज़रे गाइर मे ऐसा मालूम होता है कि अलम और सद्दे जो नेज़ों और झंडों की शकल मे होते हैं गालिबन यजीद फौज के उस फैल (काम) की नक़ल है जो उन्होंने करबला मे ज़ुल्म व ज़फा के पहाड़ तोडने के बाद इमाम आली मक़ाम का सरे मुबारक नेज़ों पर कूफ़ा की गलियों मे बतौर ए शादमाना (ख़ुशी) व मुबारकबादी घुमाया था!...✍🏻 वल्लाहु तआला आलम
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 46
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ सवाल :- 2 ढोल ताशे और सद्दे वगैराह को मस्जिद या फिनाए मस्जिद मे रखना शरअन कैसा है नीज़ मस्जिद या फिनाए मस्जिद मे रखे हुए ढोल ताशे अलम और सद्दे को बाहर निकाल कर फेंक देने वाला शरअन मुजरिम होगा या नही?
៚ जवाब:- 02- ये वाहियात व ख़ुराफ़ात चीज़ें सब ना जाइज़ हैं तो जहां भी रखे ना जाइज़ ही है और मस्जिद या फिनाए मस्जिद मे बदर्जा ए औला ना जाइज़ और इन चीजों को मस्जिद से निकालकर फेंकने वाला सवाब पाएगा क्योंके उसने ना जाइज़ चीज़ को दफअ (निकाल दिया) किया और हदीस शरीफ़ पर अमल किया!!
📗खुतबाते मुहर्रम पेज 523---524
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 47
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ अब आइए उन उल्मा ए किराम व औलिया ए इज़ाम के नाम भी पढ़ लीजीए। जिन्होंने मुरव्वज़ा ताजिया दारी ढोल ताशे बाजे को नाजाइज़ व हराम फ़रमाया,
तस्दीक़ात मज़हर ए इस्लाम बरेली शरीफ!👇
៚ 1) मुहम्मद मुस्तफा रज़ा खांन (हुज़ूर मुफ्ती ए आज़म हिन्द), 2) काजी मुहम्मद अब्दुर रहीम बस्तवी!, 3) तहसीन रजा गुफिर लहू, 4) मुहम्मद आज़म, 5) मुजफ्फर हुसैन गुफिर लहू, मंजरे इस्लाम बरेली शरीफ👇,6) मुफ्ती सैय्यद मुहम्मद अफजल हुसैन गुफिर लहू, 7) मुहम्मद एहसान अली उफिया अन्हु मुजफ्फर पुरी, 8)..गुलाम मुज्तबा अशरफी, 9) सैय्यद मुहम्मद आरिफ रज़वी नानपारवी, 10) खलीलउर्रहमान रज़वी, 11) मुहम्मद फ़ैज अहमद उफिय अन्हु सिद्दीकी, 12) मुहम्मद उमर कादरी, ओझा गंजवी बस्तवी जबलपुर👇, 13) कतबहु फ़क़ीर अब्दुल बाक़ी मुहम्मद बुरहानुल! अल-कादरी अर-रज़वी अस्सलामी गुफिर लहू, मुम्बई👇,14) फ़क़ीर अबुल हसनैन आले मुस्तफा!अलकादरी अलबरकाती अननूरी गुफिर लहू, 15) अस्सैयद हामिद अशरफ! अल अशरफी (कछौछवी),
៚ 16) मुईनुद्दीन दानिश अमीन गुफिर लहू, टोंकी,17) खादिम मुहम्मद सलीम गुफिर लहू रज़वी, मुल्तान__पाकिस्तान!👇18) फकीर मुहम्मद हसन अली अर-रज़वी अल-का़दरी गुफिर लहू खादिम मदरसा गौसिया अनवारे रज़ा मेल्सी मुल्तान! जावरा जिला, रतलाम👇,19) फकीर अब्दुल ताहिर मुहम्मद तय्यब अली क़ादरी गुफिर लहू मुफ्ती ए शहर जावरा (रतलाम), मुरादाबाद यू पी👇, 20) अल अब्दुल मुजनीब मुहम्मद हबीबुल्लाह गुफिर लहू नईमी अल अशरफी, 21) मुहम्मद यूसुफ उफिय अन्हु (मोहतमिम जामिया नईमिया) 22) अल फकीर मुहम्मद अय्यूब खां (अल-हबीबी,अन् नईमी), 23) मुहम्मद तारीकुल्लाह खादिम जामिया नईमीया, 24) अल अब्द ए मुहम्मद हाशिम गुफिर लहू, 25) अब्दुल हकीम मुहम्मदी क़ादरी नईमी गुफिर लहू!..✍🏻
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 48
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ अब आइए उन उल्मा ए किराम व औलिया ए इज़ाम के नाम भी पढ़ लीजीए। जिन्होंने मुरव्वज़ा ताजिया दारी ढोल ताशे बाजे को नाजाइज़ व हराम फ़रमाया,
तस्दीक़ात मज़हर ए इस्लाम बरेली शरीफ!👇
៚ मालवाइंदौर👇26) मुहम्मद रिज़वानुर्रहमान अल फारुकी़ मुफ्ती मालवा। मुजफ्फरपुरबिहार👇27) मुहम्मद मतीउर्रहमान नूरी
मदरसा नूरूल हुदा पुखरेरा, 28)मुहम्मद मुश्ताक़ अहमद गुफिर लहू बाथवी, 29)मुहम्मद अतहर हुसैन बाथवी नागपुर,👇30) मुहम्मद अब्दुल रशीद गुफिर लहू (मुफ्ती ए जामिया) 31) मुहम्मद अब्दुल हफीज़ गुफिर लहू, 32) अब्दुल मज्द मुहम्मद जैनुल आबिदीन गुफिर लहू, 33) मुहम्मद अब्दुल हकीम रज़वी अशरफी।, 34) मुहम्मद शफी रज़वी गुफिर लहू, मुबारकपुर जिला आज़म गढ़,👇35) अब्दुल अज़ीज़ उफिय अन्हु। सदरूल मुदर्रिसीन अशरफिया, 36)अब्दुल रऊफ गुफिर लहू मुदर्रिस अशरफिया, 37) अब्दुल मन्नान आज़मी। मुफ्ती अशरफीया, 38) मुहम्मद याहया गुफिर लहू। खादिम दारूल उलूम अशरफिया अमरोह ज़िला_मुरादाबद।👇39) फ़क़ीर मुहम्मद खलील काज़मी उफिय अन्हु अमरोही।राय बरेली👇,
៚ 40) अब्दुल तव्वाब सिद्दीक़ी पक्सरावा राय बरेली कछौछा__शरीफ।👇41) सैयद मुहम्मद मुख्तार अशरफ सज्जादा नशीन कछौछा शरीफ, 42) सैयद मुजफ्फर हुसैन कछौछवी, टांडा जिला फैज़ाबाद!👇43) अब्दुल अज़ीज अशरफी उफिय अन्हु, 44) फकीर मुहम्मद तय्यब ख़ांन गुफिर लहू! मुदर्रिस मदरसा मंजरे हक़,45) मुहम्मद अय्यूब क़ादरी उफिय अन्हु,46) मुहम्मद क़ुदरतुल्लाह आरिफ रज़वी, इलतेफात गंज जिला फैजाबाद।👇47) अब्दुर रऊफ अशरफी।, 48) अहकर अब्दुल मतीन दुलमौवी, 49) मुहम्मद जमील अहमद अलयार अलवी शमीम बस्तवी,50) मुहम्मद समीअ् क़ादरी अलयार अलवी। बलरामपुर ज़िला गोंडा👇, 51) मुहम्मद शरीफुल हक़ अमजदी जामिया अरबीया अनवारूल क़ुरान बलराम पुर।
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 49
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ अब आइए उन उल्मा ए किराम व औलिया ए इज़ाम के नाम भी पढ़ लीजीए। जिन्होंने मुरव्वज़ा ताजिया दारी ढोल ताशे बाजे को नाजाइज़ व हराम फ़रमाया,
तस्दीक़ात मज़हर ए इस्लाम बरेली शरीफ!👇
៚ अमरडोभा बस्डेला ज़िला बस्ती,👇52) अल अब्द सख़ावत अली उफिय अन्हु तनवीरूल इस्लाम, 53) निजामुद्दीन उफिय अन्हु।, 54) मुहम्मद अबुल लैस उफिय अन्हु। 55) मुहम्मद जहूर अहमद रज़वी उफिय अन्हु। 56) अब्दुश शकूर मुदर्रिस तदरीसुल इस्लाम बस्डेला, 57) मुहम्मद इस्माइल अतहर बस्तवी, बराओं शरीफ जिला बस्ती।👇 58) मुहम्मद सिद्दीक़ अहमद सज्जादा नशीन आस्ताना ए आलिया यार अलविया, 59) गुलाम जीलानी उफिय अन्हु! (शैख़ुल हदीस फैजुर रसूल) 60) बदरुद्दीन अहमद अलक़ादरी रज़वी,
៚ 61) मुहम्मद यूनुस नईमी अशरफी। 62)अबुल बरकात अल-अब्द मुहम्मद नईमुद्दीन अहमद उफिय अन्हु, 63) जलालुद्दीन अहमद अमजदी। 64) मुहम्मद साबिर क़ादरी नसीम बस्तयी 65) अली हसन नईमी अशरफी। 66) मुहम्मद हनीफ़ क़ादरी।67) मुहम्मद मोहसिन चिश्ती यार अलवी, 68) नूर मुहम्मद क़ादरी औझा गंजी। 69) मुहम्मद नुरूल हक़! खादिम हज़रत शाह साहब क़िब्ला, भावपुर ज़िला बस्ती👇,70) अलअब्द ए मुहम्मद हलीम क़ादरी यार अलवी, 71) मुहम्मद समीउल्लाह क़ादरी।, 72) अब्दुल जब्बार क़ादरी।, 73) अब्दुल जब्बार क़ादरी चरखवी।, बढया जिला बस्ती👇, 74) मुहम्मद सिद्दीक़ क़ादरी नेपाली।, 75) अब्दुल जब्बार अशरफी मवी!
📗 ख़ुत्बाते मुहर्रम, सफ़ह 523
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
🅿🄾🅂🅃 ➪ 50
••──────────────────────••►
❝ ❞
••──────────────────────••►
*❝ आओं सच्चे हुसैनी बनें! ❞*
╭───────────────╯
╰──➤
मुहम्मद ﷺ की मोहब्बत दींने हक़ की शर्त अव्वल हैं!
इसी में हो ग़र ख़ामी तो सब कुछ ना मुक़म्मल हैं!
*ताजियादारी*
❏ ••────•◦◦❈◦◦•────•• ❏
*गुमराह लोगों का फुल आप्रेशन*
៚ *नोट :-* जो नादान कहते हैं के मुरव्वज़ा ताजिया दारी हरामियों के लिए हराम और हलालीयों के लिए हलाल हैं तो वो बेवकूफ अब इन उल्मा ए किराम व औलिया ए इज़ाम के बारे में क्या कहना चाहेंगे, याद रहे कुराफातीयो उल्मा ए हक़ व औलिया ए किराम के फ़तवों से इन्कार करना रसूल ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के फ़रमान से इन्कार करना है, अब भी वक़्त है तौबा करलो वरना अल्लाह तआला के आज़ाब से बच नहीं सकते!!
🤲🏻 *खुदा عزوجل* तमाम मुसलमानों को हज़रत
इमाम हुसैन (رضی اللہ تعالی عنہ) के मक्सदे शहादत को समझने और मुहर्रम की जुमला बिद्अत ए सैय्या व खुराफात से बचने की तौफीक़ व रफीक़ अता फ़रमाए!..✍🏻
*आमीन बिजाही सय्यीदिल मुरसलीन सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम*
••──────────────────────••►
📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
••──────────────────────••►
No comments:
Post a Comment