Tuesday, 13 July 2021

औरतों के जदीद और अहम मसाइल

 



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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*


*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞*
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࿐  *सवाल :-* क्या एक से ज्यादा नग वाली अंगूठी औरतों के लिए जाइज़ है जबके मर्दों के लिए ममनूअ् व नाजाइज़ है?

࿐  *अल जवाब :-* औरतों के लिए ऐसी अंगूठी पहनना जाइज़ है, अगरचे कई नग हों और उन्हीं के साथ मख़सूस है!

📙 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 521

📙 आलमगीरी जिल्द 5 सफ़ह 335

࿐  और आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान रक़म तराज़ हैं, एक से ज़्यादा नग होना के यह सूरत औरतों के साथ मख़सूस है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9. सफ़ह 14

࿐  लिहाज़ा मालूम हुआ कि एक से ज़्यादा नग वाली अंगूठी औरतों के साथ मख़सूस और जाइज़ है मगर मर्दों के लिए ममनूअ् और ना जाइज़ है!...✍🏻
          
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 23 📚*


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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐  *सवाल :-*  क्या सोने और चांदी के अलावा धात, मसलन लोहा, पीतल, तांबा, स्टील, गिलट, और अल्मुनियम की अंगूठी और ज़ेवर औरतों के लिए जाइज़ है?

࿐  *अल जवाब :-* औरतों को सोने और चांदी के जे़वरात के सिवा दूसरी तमाम धातों का ज़ेवर पहनना नाजाइज़ व हराम है, और मर्दों के लिए भी, मर्दों को सिर्फ 4.5 माशा से कम चांदी की एक अंगूठी जाइज़ है!

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 518

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, अंगूठी सिर्फ़ चांदी ही की पहनी जा सकती है, दूसरी धात की अंगूठी पहनना हराम है, मसलन लोहा पीतल, तांबा जस्त वग़ैरहा इन धातों की अंगूठियां मर्द व औरत दोनों के लिए नाजाइज़ हैं, फ़र्क़ इतना है कि औरत सोना भी पहन सकती है और मर्द नहीं पहन सकता!

📚 बहारे शरीयत हिस्सा 3, सफ़ह 426)

࿐  ख़्वाह औरत हो या मर्द अगर इन धातों को पहनकर नमाज़ पढ़ेंगे तो नमाज़ भी मकरूहे तहरीमी होगी, जैसा के आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं तांबा, पीतल, कांसा, लोहा तो औरत को भी ममनूअ् है, और उससे नमाज़ उनकी भी मकरूह है!...✍🏻

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 279) निस्फ़ आख़िर
           
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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐  *सवाल :-*  कांच की चूड़ियां औरतों के लिए जाइज़ हैं या नाजाइज़?

࿐  *जवाब :-*  कांच की चूड़ियां औरतों के लिए जाइज़ हैं, इसलिए के उस के बारे में शरअ में कोई मुमानअ्त नहीं, फ़तावा रज़वियह शरीफ़ में है, जाइज़ हैं,

لعدامنع الشرعى،،

࿐ बल्कि शौहर के लिए सिंगार की नियत से मुस्तहब है!

وانماالاعمال بالنيات،،

࿐  बल्कि शौहर या मां-बाप का हुक्म हो तो वाजिब!

لحرمةالعقوق ولوجوب طاعةالزوج فيما يرجع الى الزوجية،،

📘 ج.٩، ص ٢٣٥, نصف اول)

           
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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या घुंगरू वाले पाज़ेब (पायल) औरतों के लिए जाइज़ हैं?

࿐   *जवाब :-* औरतों के लिए घुंगरू वाले पाज़ेब पहनना हराम व नाजाइज़ है, हदीस शरीफ़ में है,
हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़िअल्लाहु तआला अन्ह से रिवायत है कि हमारे यहां की लड़की हज़रत ज़ुबैर (रज़िअल्लाहु तआला अन्ह) की लड़की को हज़रत उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्ह के पास लाई और उसके पांव में घुंगरू थे तो हज़रत उमर ने काट दिया और फ़रमाया कि मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम से सुना है कि हर घुंगरू में शैतान होता है!

📓 मिश्कात सफ़ह 379,

࿐   और हजरत बनानह जो कि हज़रत अब्दुर्रहमान बिन हयानुल अंसारी की बांदी हैं रिवायत करती हैं कि वह हजरत आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के पास थीं, के हज़रत आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के पास एक लड़की आई जिसके पांव में घुंगरू बज रहे थे फ़रमाया के उसे मेरे पास ना लाना जब तक के उसके घुंगरू काट ना देना मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम से सुना है कि जिस घर में जर्स से यानी घंटी या घुंगरू होते हैं उसमें फ़रिश्ते नहीं आते!

📚 अल मरजाउस्साबिक़, अबू दाऊद बाबुल ख़ातिम,

࿐   लिहाज़ा घुंगरू वाले पाज़ेब वगैरह को पहनने और पहनाने से बचना चाहिए वरना बाइसे मेहरूमी ए रहमत व बरकत होगी और मज़ीद गुनाह भी मिलेगा!...✍🏻
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल, सफ़ह 25📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐  *सवाल :-*  लोहा, पीतल और तांबा वगैरह धात की चीजें सोना और चांदी से मिलमा हो तो बतौरे ज़ेवर उनका इस्तेमाल औरतों के लिए जाइज़ है या नहीं?

࿐  *जवाब :-*  लोहा, तांबा, पीतल वगैरह धातों के जे़वरात का नाजाइज होना आहादीस व फ़िक़ह में सराहतन मज़कूर है जैसा कि तिरमिज़ी, अबू दाऊद और निसाई वगैरह की हदीस है, हजरत बुरीदा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं, नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने एक शख़्स से फ़रमाया जो पीतल की अंगूठी पहने हुए था के क्या बात है कि तुझसे बुतों की बू आती है, उन्होंने वह अंगूठी फेंक दी, फिर लोहे की अंगूठी पहन कर आए, हुज़ूर ने फ़रमाया कि क्या बात है मैं देखता हूं कि तुम जहन्नमियों का ज़ेवर पहने हुए हो, उस शख़्स ने वह अंगूठी भी फेंक दी, फिर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम किस चीज़ की अंगूठी बनवाऊं, फ़रमाया के चांदी की बनवाओ, और एक मिसक़ाल पूरा ना करो यानी वज़न में पूरे साढ़े चार 4.5, मासे ना हो बलके कुछ कम हो!

📘 मिश्कात शरीफ़ सफ़ह 378)

࿐  और जोहरा नीरह में है, लोहा, पीतल, तांबा और शीशा की अंगूठी पहनना मर्दों और औरतों को नाजाइज़ है इसलिए कि वह जहन्नमियों का पहनावा है, लिहाज़ा सोने और चांदी को मिलमा कर देने से बतौरे ज़ेवर उन धातों का इस्तेमाल जाइज़ ना हो जाएगा, के हुक्म असल सै का होता है, ना के मिलमा का, खुलासा यह है कि मुज़कूरा धातों के ज़ेवरात औरतों के लिए भी जाइज़ नहीं अगरचे वह मिलमा किए हुए हों!..✍🏻
           
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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐  *सवाल :-* अगर धात की चीज़ों को मिलमा ना किया बल्कि चांदी का खोल चढ़ा दिया तो क्या उसका इस्तेमाल जाइज़ है?

࿐  *जवाब :-*  जाइज़ है मसलन लोहे की अंगूठी पर चांदी का खोल चढ़ा दिया के लोहा बिल्कुल दिखाई ना दे तो इस तरह उसका इस्तेमाल जाइज़ है!

📚 आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 335)

࿐   और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं लोहे की अंगूठी पर चांदी का खोल चढ़ा दिया के लोहा बिल्कुल ना दिखाई देता हो, उस अंगूठी के पहनने की मुमानअत नहीं, इससे मालूम हुआ के सोने के जेवरों में जो बहुत लोग अंदर तांबे या लोहे की सलाख रखते हैं और ऊपर से सोने का पत्तर चढ़ा देते हैं उसका पहनना जाइज़ है!...✍🏻

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफ़ह 427
           
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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या जुड़ा हुआ छल्ला सोने और चांदी का पहनना जाइज़ है?

࿐   *जवाब :-* औरत के लिए तो जाइज़ है लेकिन मर्द के लिए जुड़ा हुआ छल्ला पहनना हराम व नाजाइज़ है!

📚 तनवीरुल अबसार जिल्द 6, सफ़ह 516)

࿐   और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा तहरीर फ़रमाते हैं छल्ला एक हो या दो जुड़े हुए, मर्द पर हराम है!

📗 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4, सफ़ह 13)

࿐  लिहाज़ा मालूम हुआ कि औरतों को छल्ला एक हो या दो जुड़े हुए जाइज़ है, लेकिन मर्द पर हराम है!...✍🏻
           
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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत और मर्द की अंगूठी का नगीना किस तरफ़ होना चाहिए?

࿐   *जवाब :-*  मर्द को चाहिए कि वह जब अंगूठी पहने तो उसका नगीना हथेली की तरफ़ रखे, और औरतें हाथ की पीठ की तरफ़ रखें, क्योंकि उनका पहनना ज़ीनत के लिए है!

📚 फ़तावा आलमगीरी, जिल्द 5 सफ़ह 335)

࿐   और मुसन्निफ़े बहारे शरिअत हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं मर्द को चाहिए कि अगर अंगूठी पहने तो उसका नगीना हथेली की तरफ रखे, और औरतें नगीना हाथ की पुश्त की तरफ़ रखें, कि उनका पहनना ज़ीनत के लिए है और ज़ीनत इस सूरत में ज़्यादा है कि नगीना बाहर की जानिब रहे!...✍🏻

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 427
           
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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  जिसकी नाक कट गई हो वह सोने की नाक लगवाए, नीज़ अगर कोई दांतों में सोने का तार बंधवाए तो क्या हुक्म है?  

࿐   *जवाब :-*  जिसकी नाक कट गई हो वह सोने की नाक लगवा सकता है और हिलते हुए दांतों को सोने के तार से बंधवाना भी जाइज़ है!

📚 आलमगीरी जिल्द 5 सफ़ह 328

࿐  और बहारे शरिअत में है हिलते हुए दांतों को सोने के तार से बंधवाना जाइज़ है, और अगर किसी की नाक कट गई हो तो सोने की नाक बनवाकर लगा सकता है, इन दोनों सूरतों मैं ज़रूरत की वजह से सोने को जाइज़ कहा गया है!...✍🏻

📘 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 428
           
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࿐   *सवाल :-*  सोने का बटन लगाना कैसा है..❓

࿐   *जवाब :-*  मर्द व औरत दोनों के लिए जाइज़ है, लेकिन मर्द के लिए यह है कि बटन बग़ैर ज़ंजीर के हों!

📘 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9, सफ़ह 511

࿐  और मुसन्निफ़े बहारे शरिअत हुज़ूर सदरुश्शरिअह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, सोने के बटन बग़ैर ज़ंजीर के जाइज़ हैं और उसमें डोरा लगाना भी जाइज़ है!..✍🏻

📗 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4, सफ़ह 23

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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  पीतल वगैरह धात की कमानी वाले चश्मा का इस्तेमाल कैसा है, अगर पहनकर नमाज़ पढ़े तो होगी या नहीं..? 

࿐   *जवाब :-* धात की कमानी वाले चश्मा का इस्तेमाल जाइज़ है, जिस तरह बटन का इस्तेमाल जाइज़ है, क्योंकि कमानी ताबेअ् है, खुद मुलब्विस नहीं, और पहनकर नमाज़ पढ़ने में भी कोई कराहत नहीं!

࿐  हुज़ूर सदरुश्शरिअह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा रक़म तराज़ हैं, चश्मा लगा कर नमाज़ पढ़ने में कराहत नहीं, कमानी अगरचे किसी चीज़ हो कि कमानी ताबेअ् है खुद मुलब्विस नहीं तो जिस तरह बटन का इस्तेमाल जाइज़ है, उसका भी जाइज़ कि इल्लत मुश्तरिक है!...✍🏻

📘 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4 सफ़ह 92
           
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࿐   *सवाल :-*  बअ्ज़ मर्द व औरत अपने लड़कों को सोने चांदी का ज़ेवर ब्रेसलेट (कंगन) वगैरह पहनाते हैं, तो क्या हुक्म है.?

࿐   *जवाब :-*  लड़कों को ज़ेवर पहनाना हराम है, ख़्वाह वह सोने चांदी का हो या किसी और चीज़ का, और जिसने पहनाया वह गुनहगार भी होगा!

📔 तनवीरुल अबसार मअ् शामी जिल्द 9 सफ़ह 522

࿐  और इस तरह बिला ज़रूरत बच्चों के हाथ में मेंहदी लगाना भी हराम व नाजाइज़ है!

📘 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 522)

࿐  और शहज़ादा ए आला हज़रत  इमामुल फ़ुक़हा हुज़ूर मुफ़्ती ए आज़म हिंद अलैहिर्रहमा तहरीर फ़रमाते हैं, मर्द को हाथ पांव में मेंहदी लगाना नाजाइज़ है, ज़ेवर पहनना गुनाह है, कंगना हिन्दुओं का रस्म है!

📗 फ़तावा मुस्तफ़वियह सफ़ह 452

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, लड़कों को सोने चांदी के ज़ेवर पहनाना हराम है, और जिसने पहनाया वह गुनाहगार होगा, इसी तरह बच्चों के हाथ पांव में बिला ज़रूरत मेहंदी लगाना नाजाइज़ है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 428
           
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࿐   *सवाल :-*   शीशा (यह एक धात का नाम है) की अंगूठी और झन्कार वाला पायल पहनना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  शीशा की अंगूठी और बजने वाला या ख़ूब झन्कार वाला पायल पहनना दोनों शरअ् में ममनूअ् हैं! अल्लाह तआला फ़रमाता है :

ولا يضربن بارجلهن ليعلم ما يخفين من زينتهن،،

📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 31

࿐   यानी औरतों को हुक्म दिया जा रहा है कि वह ज़मीन पर दोनों पांव या एक पांव दूसरे पर ना मारा करें ताकि पाज़ेब की झन्कार पैदा हो और लोगों को पता चल जाए कि यह औरत पाज़ेब पहने हुए है!
क्योंकि ऐसा करने में मर्दों में ऐसी औरत की तरफ़ मीलान पैदा होता है

࿐  मरवी है कि अरब में यह रिवाज था कि औरत चलते वक़्त ज़मीन पर आम रफ़्तार की बानिस्बत ज़रा ज़ोर से पांव रखती थी ताकि लोगों को मालूम हो जाए कि उसने पाज़ेब पहनी हुई है, या एक पांव दूसरे पर ज़ोर से मारती ताकि झन्कार से लोगों को पहने हुए ज़ेवरात का इल्म हो जाए, तो अल्लाह तआला ने औरतों को इससे मना फ़रमाया!

📚 तफ़्सीराते अहमदिया, उर्दू सफ़ह 757)

࿐  जब ख़ालिस पाज़ेब पहनी हुई औरत को मना किया जा रहा है कि ज़ोर से एक पांव दूसरे पर ना मारे इसलिए के उससे आवाज़ पैदा होगी जो मर्दों के मीलान का सबब होगा, तो वह पाज़ेब जो झन्कार और बजने वाला है और मीलान का सर चश्मा से वह पहनना क्यों कर दुरुस्त होगा, और अल्लाह तआला ऐसे शख़्स की दुआ भी क़ुबूल नहीं फ़रमाता है, जो अपनी औरत को झन्कार दार बजने वाला पाज़ेब पहनाए!

࿐  जैसा के तफ़्सीराते अहमदिया मैं मज़कूरा आयते करीमा के तहत हदीसे पाक हैं,

ان الله يستجب دعاء يلبسون الخلخال نساءهم،

📚 तफ़्सीराते अहमदिया, अरबी, सफ़ह 307

࿐ और  शीशा की अंगूठी के मुताल्लिक़ जोहरा नीरह में है लोहा, तांबा, पीतल, और शीशे की अंगूठी पहनना मर्दों और औरतों के लिए नाजाइज़ है इसलिए कि वह जहन्नमियों का पहनावा है!
           
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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या सोने और चांदी के दांत बनवाना जाइज़ है?

࿐   *जवाब :-*  चांदी के दांत बनवाना तो औरत व मर्द सबके लिए जाइज़ है, लेकिन सोने का दांत  बनवाना किसी के लिए जाइज़ नहीं, इमामे आज़म अबू हनीफ़ा  रज़िअल्लाहू तआला अन्हु के नज़दीक,, जैसा कि दुर्रे मुख़्तार में है, अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा है!

📙 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 5, सफ़ह 521
           
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࿐   *सवाल :-*   औरत को जिस तरह सोने की घड़ी पहनना जाइज़ है, क्या उसमें वक़्त (टाइम) देखना भी जाइज़ है, और सोने चांदी का पानी चढ़ा हुआ अश्या का इस्तेमाल कैसा है.?

࿐   *जवाब :-* औरतों को फ़क़त सोने की घड़ी पहनना जाइज़ है और रहा उसमें वक़्त (टाइम) देखना तो यह औरत और मर्द दोनों के लिए नाजाइज़ वा हराम है, इसी तरह चांदी में भी!

࿐  आला हज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, सोने की घड़ी या चांदी की घड़ी में वक़्त (टाइम) देखना मर्द व औरत सबको हराम है, कि औरतों को पहनने की इजाज़त है ना और तरीक़ा ए इस्तेमाल की!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 134, निस्फ़ आख़िर)

࿐  और जिन चीज़ों पर सोना या चांदी का पानी चढ़ा हुआ हो उसके इस्तेमाल में कोई हर्ज नहीं फ़तावा रज़वियह शरीफ़ में है, सोने या चांदी का पानी वजहे मुमानअत नहीं हां अगर वह शै फ़ी नफ़्सिही ममनू हो तो दूसरी बात है, जैसे सोने का मिलमा (मिक्स) की हुई तांबे की अंगूठी!
           
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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   नाक कान छिदवाने का रिवाज कब से है, और क्या लड़कियों का कान छेदने के लिए कोई खास हिस्सा मुक़र्रर है.?

࿐   *जवाब :-* एक रिवायत में है के सबसे पहले नाक कान हज़रत सारह ने हज़रत हाजिरह (रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा) के छेदे थे, दोनों ही हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बीवियां थी, तभी से औरतों में कान नाक छिदवाने का रिवाज चला आ रहा है!

📗 मेराजुन्नबुव्वह जिल्द 1, सफ़ह 621)

࿐  और शरअ् में लड़कियों के नाक कान छेदने का कोई खास हिस्सा मुक़र्रर नहीं, जहां चाहे जैसे चाहे छिदवा सकती हैं!

࿐  मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं, कोई ख़ास हिस्सा मुक़र्रर नहीं, हां मुशाबिहते कुफ़्फ़ार से बचना ज़रूरी है, बाज़ तरीक़े ख़ास कुफ़्फ़ार के यहां हैं, जिसे अन्वट कहते हैं, उन से बचें!

📚 फ़तावा रज़वियह शरीफ़ जिल्द 9, सफ़ह 228)

࿐  *अल इन्तिबाह, नोट 👉🏼* कुछ लोग किसी मन्नत के तहत या फिर फ़िरंगी फैशन की पैरवी में लड़कों के कान छेदते हैं, और कुछ किसी बुज़ुर्ग़ के मन्नत के तहत लड़कों के चोटी रखते हैं, यह सख़्त नजाइज़ व हराम है, और ऐसी मन्नत की शरीयत में कोई हैसियत व हक़ीक़त नहीं!

࿐  इमामे अहले सुन्नत आला हज़रत अलैहिर्रहमा फ़तावा अफ़्रीक़ा में फ़रमाते हैं,बाज़ जाहिल औरतों में दस्तूर है कि के बच्चे के सर पर बाज़ औलिया ए किराम के नाम की चोटी रखती हैं, और उसकी कुछ मियाद मुक़र्रर करती हैं, और उस में मियाद तक कितने ही बार बच्चे का सर मुंडे मगर चोटी बरक़रार रखती हैं, फिर मियाद गुज़ार कर मज़ार पर ले जाकर बाल उतारती हैं, यह ज़रूर महज़ बे असल व बिदअत है!

📘 फ़तावा अफ़्रीक़ा सफ़ह 83
           
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*❝ बाबुल हुलिया यानी ज़ेवर, गहने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   तांबे और पीतल का ख़िलाल गले में लटकाना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  तांबे पीतल और लोहा वगैरह का खिलाल गले में लटकाना जिस तरह आज-कल की बाज़ औरतें बहुत ज़्यादा अपने दांतो को तांबे और पीतल के आलाय ख़िलाल से साफ़ करती हैं, और गले में लटकाए रहती हैं जो नाजाइज़ व ममनूअ् है, आला हज़रत इमामे इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे दीनों मिल्लत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तांबे और पीतल के ख़िलाल के मुताल्लिक़ एक इस्तिफ़ता के जवाब में तहरीर फ़रमाते हैं,
नाजाइज़ है, क्योंकि यह तअलीक़ के हुक्म में है, वैसे जाइज़ है और सोने चांदी का हराम है, बल्कि औरतों को भी ऐसे ही सोने चांदी के ज़ुरूफ़ में खाना ना जाइज़ है और घड़ी की चैन भी आम अज़ीं के चांदी की हो या पीतल की हां डोरा बांध सकता है!

📗 अल मलफ़ूज़ शरीफ़, जिल्द 3, सफ़ह 18)

࿐   *अल इन्तिबाह, नोट 👉🏼*  खाना खाने के बाद ख़िलाल करने में जो कुछ दांतों में से रेशा वगैरा निकला बेहतर यह है कि उसे फेंक दे निगल गया तो उसमें भी हर्ज नहीं और खिलाल का तिनका या जो कुछ ख़िलाल से निकला उसको लोगों के सामने ना फेंके बलके उसे लिए रहे जब उसके सामने तश्त (यानी हाथ धोने का बर्तन थाल) आए उसमें डाल दे फूल और मेवा के तिनके से खिलाल ना करे, बेहतर ख़िलाल, ख़िलाल के लिए नीम की सींख़ बहुत बेहतर है कि उसकी तल्खी से मुंह की सफ़ाई होती है और यह मसूड़ों के लिए भी मुफीद है झाड़ू की सीख़ें भी इस काम में ला सकते हैं जब के वह कोरी (यानी पाक व साफ़) हों मुस्तअमल ना हो!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 382
           
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࿐   *सवाल :-* औरतों को रेशमी कपड़ा पहनना कैसा है जबकि मर्दों के लिए हराम है?  

࿐   *जवाब :-*  औरतों को रेशमी कपड़ा पहनना जाइज़ है, अगरचे ख़ालिस रेशम हो, हदीस शरीफ़ में है
तिरमिज़ी, व निसाई ने अबू मूसा अशअरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के नबी ए अकरम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, सोना और रेशम मेरी उम्मत की औरतों के लिए हलाल है, और मर्दों पर हराम!

📚 निसाई शरीफ़, किताबुज़्ज़ीनत, बाब तहरीमुज़्ज़हाब अलर्रजुल, सफ़ह 721)

࿐ और बहरुर्राइक़ में है,

حرام للرجل لا للمر اةلبس الحرير الا قدر اربع اصابع،،

📚 जिल्द 8, सफ़ह 367)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तहरीर फरमाते हैं, औरतों को रेशम पहनना जाइज़ है अगरचे ख़ालिस रेशम हो, उसमें सूत की आमेज़िश (मिलावट) ना हो, मर्दों के कपड़ों में रेशम की गोट चार अंगुल तक की जाइज़ है, उससे ज्यादा ना जाइज़, यानी उसकी चौड़ाई तक हो लंम्बाई का शुमार नहीं!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 411
           
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      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* औरतों को चूड़ी दार पायजामा पहनना कैसा है.?  

࿐   *जवाब :-* औरतों को चूड़ीदार पायजामा पहना यूं ही अपनी लड़कियों को पहनाना ख्वाह वह छोटी हों या बड़ी हराम व नाजाइज़ है!

࿐  आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, यूं ही तंग पायचे भी ना चूड़ियों दार हों ना टखनों से नीचे ना खूब चुश्त बदन से सिले के यह सब वज़अ फ़ुस्साक़ है, और सातर औरत का बदन से ऐसा चुश्त होना के उज़ू का पूरा अंदाज़ बताए यह भी एक तरह की बेशतरी है, हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने जो पेशनगोई फ़रमाई के, निसअ का सियात आरयात औरतें होंगी कपड़े पहने तंगियां उसकी वुजूह तफ़्सीर से एक वजह यह भी है कि कपड़े ऐसे तंग चुश्त होंगे कि बदन की गोलाई फ़रबही (यानी बदन की बनावट) अंदाज़ ऊपर से बताएंगे, जैसे बअज़ लख़नऊ वालियों की तंग शलवारें चुश्त कुर्तियां,

📚 अर्रज़वियह जिल्द 9. सफ़ह 84)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तहरीर पर हैं, औरतों को बिल ख़ुसूस चूड़ीदार पायजामा नहीं पहनना चाहिए औरतों के पायजामे ढीले ढाले हों और नीचे हों के क़दम छुप जाएं, उनके लिए जहां तक पांव का ज़्यादा हिस्सा छुपे अच्छा है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 417
           
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࿐   *सवाल :-*   औरतों को बारीक दोपट्टा ओढ़ना कैसा है.?

࿐   *जवाब :-* बारीक दोपट्टा ओढ़ना दुरुस्त नहीं बल्कि ना जाइज़ व हराम है, जैसा कि हदीस शरीफ़ में है, हजरत अलक़मा बिन अबू अलक़मा अपनी मां से रिवायत करते हैं कि हफ़्सा बिन्ते अब्दुर्रहमान हज़रत आयशा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा के पास बारीक दोपट्टा ओढ़ कर आईं तो हज़रत आयशा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा ने उनका दोपट्टा फाड़ दिया और मोटा दोपट्टा उढ़ा दिया!

📘 मिश्कात शरीफ़ किताबुल्लिबास सफ़ह 377))

࿐  और बहारे शरीअत में है, बाज़ औरतें बहुत बारीक कपड़े पहनती हैं, मसलन आबेरवा (एक क़िस्म का निहायत अच्छा और बारीक कपड़ा) या जाली या बारीक मलमल ही का दोपट्टा जिससे सर के बाल या बालों की स्याही या गर्दन या कान नज़र आते हैं और बाज़ बारीक तंज़ीब या जाली के कुर्ते पहनती हैं कि पेट और पीठ बिल्कुल नज़र आती है, इस हालत में नज़र करना हराम है और ऐसे मौक़ा पर उनको इस क़िस्म के कपड़े पहनना भी ना जाइज़!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 3, सफ़ह 448)

࿐  *अल इन्तिबाह,👉🏼*  लिहाज़ा इतना बारीक दोपट्टा जिससे बालों की स्याही (कालापन यानी बालों की रंगत) चमकती हो और इतना बारीक लिबास जिससे जिस्म की साख़्त, बनावट, हैइयत, रंगत, उतार चढ़ाव, नशीब व फ़राज़ और लंबाई व गोलाई ज़ाहिर हो ऐसा कपड़ा पहनना हराम है, ऐसे दोपट्टे और कपड़े पहनकर ओढ़कर अगर नमाज़ पढ़े तो नमाज़ भी ना होगी क्योंकि सतरे औरत नमाज़ में फ़र्ज़ है, और ऐसे कपड़े से सतर नहीं होती है, आज कल मर्द भी स्टबल वगैरह का हल्का तहबंद पहनने लगे हैं जिससे बदन की रंगत झलकती है और सतर नहीं होता, मर्दों को भी ऐसा तहबंद हराम है और बाज़ लोग उसको पहनकर नमाज़ पढ़ते हैं, उनकी नमाज़ नहीं होती!

࿐  और बाज़ लोग धोती बांधते हैं, धोती बांधना हिंदुओं का तरीक़ा है, और उससे सतर भी नहीं होता के चलने में रान की पिछला हिस्सा खुल जाता है, मुसलमानों को इससे बचना ज़रूरी है, और नेकर जांघिया पहनना के जिससे घुटना खुला रहता है हराम है! 
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 36📚*

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      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* ज़अफ़रान का रंगा हुआ कपड़ा औरत के लिए जाइज़ है या नाजाइज़,?  

࿐   *जवाब :-*  औरतों को कुसुम या ज़अफ़रान का रंगा हुआ कपड़ा पहनना जाइज़ है, चाहे वह गहरा रंग होकर सुर्ख़ हो जाए या हल्का हो कर ज़र्द रहे, लेकिन मर्द के लिए नाजाइज़ है!

࿐  जैसा के तनवीरुल अबसार में है अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो, और बहारे शरीअत में है, कुसुम या ज़अफ़रान का रंगा हुआ कपड़ा मर्द को मना है, गहरा रंग हो के सुर्ख़ हो जाए या हल्का होकर ज़र्द रहे, दोनों का एक हुक्म है, औरतों को यह दोनों क़िस्म के रंग जाइज़ हैं, इन दोनों रंगों के सिवा बाक़ी हर क़िस्म के रंग, ज़र्द, सुर्ख़, धानी, बसंती, चंपई, नारंगी, वगैरहा मर्दों को भी जाइज़ हैं, अगरचे बेहतर यह है कि सुर्ख़ रंग या शोख़ रंग के कपड़े मर्द ना पहने खुसूसन जिन रंगों में ज़नाना पन हो मर्द उसको बिल्कुल ना पहने!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़ह 415
           
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      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   औरत मर्द की तरह लिबास पहने तो क्या हुक्म है?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को मर्द की तरह लिबास पहनना हराम है, जिस तरह आजकल की नव उम्र नौजवान लड़कियां और औरतें पहनती हैं मसलन, पैंट, जीन्स, टी शर्ट वग़ैरह, और नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने एसी औरतों पर लानत फ़रमाई है!

࿐  हदीस शरीफ़ में है,;हज़रत उमर बिन हसीन रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने उस मर्द पर लानत फ़रमाई जो औरत का लिबास पहनता है, और उस औरत पर लानत फ़रमाई जो मर्दाना लिबास पहनती है!

📚 अबू दाऊद किताबुल्लिबास, बाब फ़ी लिबास्सुन्निसा, जिल्द 4, सफ़ह 83)

࿐  *अल इन्तिबाह 👉🏼* लिहाज़ा मालूम हुआ कि मर्दों को औरतों का लिबास और औरतों को मर्दों का लिबास जैसे पैंट, शर्ट, टी शर्ट, जीन्स, कैपरी, लोवर, और जांघिया, वग़ैरह पहनना और पहनकर घूमना यह हराम व नाजाइज़,  और एसों पर अल्लाह व रसूल और मलायका वग़ैरहुम की लानत है, और जो मुसलमान अपनी लड़कियों को मर्दाना लिबास पहनाते हैं, वह सख़्त गुनाहगार और मुस्तहिक़े वईदो नार हैं, (यानी अल्लाह तआला के ग़ज़ब व जहन्नम में जलने के हक़दार हैं) 
           
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࿐   *सवाल :-*   ग़रारा (यानी जिसमें कलिंया डालकर घेर बढ़ा दिया जाता है) क्या औरतों के लिए मख़्सूस है,?

࿐   *जवाब :-* हां, ग़रारा यानी जिसमें कलिंया डालकर घेरा बढ़ा दिया जाता है यह औरतों के लिए मख़्सूस है, और मर्दों के लिए ना जाइज़ है,
जैसा कि आलाहज़रत अलैहिर्रहमा तहरीर फ़रमाते हैं, ग़रारे दार जिसमें कलिंया डालकर घेर बढ़ा दिया जाता है, यह मर्दों के लिए बिला शुबा नाजाइज़ है, कि इन बिलाद में कलियोंदार पायजामे ख़ास लिबासे औरत हैं, और औरतों से तश्बीह हराम मर्द अगर पहनते हैं तो वही ज़नाने या नक़ाल या बद वज़अ् फ़ुस्साक़ इन लोगों से भी मुशाबहत ममनू है!

📚 फ़तावा रज़वियह, जिल्द 9, सफ़ह 84
           
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࿐   *सवाल :-*   क्या आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी उम्मत में से पायजामा पहनने वाली औरतों के लिए दुआ ए मग़फ़िरत फ़रमाई,?

࿐   *जवाब :-*  बिला शुबा नबी ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दुआ ए मग़फ़िरत की,
जैसा के आलाहज़रत अलैहिर्रहमा, तिरमिज़ी व अक़ैली के हवाला से नक़ल फ़रमाते हैं, हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने अपनी उम्मत से पायजामा पहने वाली औरतों के लिए दुआ ए मग़फ़िरत की और मर्दों को ताकीद फ़रमाई के खुद भी पहनें और अपनी औरतों को पहनाएं कि इसमें सतर (पर्दा पोशी) ज़्यादा है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 84)

࿐  और पायजामा पहनना मुस्तहब बल्के सुन्नत भी है!

📚 फ़तावा आलमगीरी, जिल्द 5, सफ़ह 333)

࿐   और  हुज़ूर सदरुश्शरिअह तहरीर फ़रमाते हैं, पायजामा पहना सुन्नत है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा सतरे औरत है, उसको सुन्नत बाय माना कहा गया है कि हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उसे पसंद फ़रमाया और सहाबा ए किराम रज़िअल्लाहू तआला अन्हुम ने पहना, ख़ुद हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम तहबंद पहना करते थे पायजामा पहनना साबित नहीं!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 3, सफ़ह 416
           
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࿐   *सवाल :-*   औरतों को लहंगा और साड़ी पहनना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को लहंगा और साड़ी पहनना जाइज़ है, मगर उन जगहों पर जहां लोग उसे लिबासे कुफ़्फार जानते हों वहां पहनना ममनू व गुनाह है कुफ़्फ़ार से मुशाबिहत की बिना पर, इस लिए कि हदीस शरीफ़ में है,

 من تشبه بقوم فهو منهم،،

 ࿐  यानी जो किसी क़ौम से मुशाबिहत रखे तो वह उन्ही में से है!

📚 मिश्कात शरीफ़ किताबुल्लिबास सफ़ह 375)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा तहरीर फ़रमाते हैं लहंगा ख़ास कर हिन्दुओं की औरतें पहनती हैं, और साड़ियां भी, इस मुल्क (यानी हिन्दुस्तान) में सिर्फ हिन्दू औरतें बांधती हैं, और हिन्दू मुसलमान औरतों में इसी लिबास का फ़र्क़ है कि पायजामा पहने हो तो मालूम होगा कि मुसलमान है और लहंगा साड़ी बांधे हो तो हिन्दू समझते हैं, लिहाज़ा मुसलमान औरतों को हर गिज़ कुफ़्फ़ार के यह लिबास पहनने ना चाहिए!

📗 फ़तावा अमजदयह जिल्द 4, सफ़ह 144)

࿐  और इसके तहत इसी के हाशिया में फ़क़ीहे अहले सुन्नत हुज़ूर मुफ़्ती आले मुस्तफ़ा साहब क़िब्ला तहरीर फ़रमाते हैं, जहां लोग इसे लिबासे कुफ़्फार जानते हों वहां मुस्लिम औरतों को यह लिबास पहनना ममनू व मकरूह और गुनाह है, और जहां मुस्लिम व ग़ैर मुस्लिम सभी पहनती हों वहां इन लिबासों का इस्तेमाल बिला शुबा जाइज़ है!

📗 अल मरजउल्लिबास
           
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࿐   *सवाल :-*   औरतों को मर्दों की तरह ऊंची एड़ी की जूती पहनना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  जिस तरह मर्द ऊंची एड़ी का जूता पहनता है, औरतों को इसी तरह ऊंची एड़ी की जूती पहनना हराम व नाजाइज़ है, कि इसमें मर्दों की मुशाबिहत है!

࿐  हदीस शरीफ़ में है, हज़रत अबू दाऊद ने हज़रत इब्ने अबी मलीका से रिवायत की के किसी ने हज़रत आयशा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से कहा के एक औरत (मर्दों की तरह) जूते पहनती है, उन्होंने फ़रमाया कि रसूल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने मर्दानी औरत पर लानत फ़रमाई है!

📚 अबू दाऊद किताबुल्लिबास बाब फ़ी लिबास्सुन्निसा जिल्द 4, सफ़ह 84)

࿐  यानी औरतों को मर्दाना जूता नहीं पहनना चाहिए, बल्कि वह तमाम बातें जिनमें औरतों और मर्दों का इम्तियाज़ होता है, उनमें से हर एक को दूसरे की वज़अ् इख़्तियार करने की मुमानअ्त है, न औरत मर्द की वज़अ् इख़्तियार करे, और ना मर्द औरत की,

࿐  हदीसे पाक में है नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं, अल्लाह तआला ने उस औरत पर लानत फ़रमाई जो मर्द की तरह लिबास पहने और उस मर्द पर भी जो औरत की तरह लिबास पहने,

📘 मिश्कात किताबुल्लिबास सफ़ह 380)

࿐  और इस हदीस शरीफ़ के तहत हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, इस बिना पर उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा ने औरतों को एड़ी बैठाकर जूती पहनने का हुक्म दिया कि चढ़वीं जूते में मर्दों की मुशाबिहत है!

📗 फ़तावा अमजदयह जिल्द 4 सफ़ह 146)

࿐  और शहज़ादा ए हुज़ूर आलाहज़रत इमामुल फ़क़्हा मुफ़्ती ए आज़म हिन्द हज़रत अल्लामा अश्शाह मुहम्मद मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान क़ादरी नूरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं, जो जूता मर्दाना हो यानी जिस वज़अ् का मर्दों के साथ ख़ास हो औरतों को उसका पहनना दुरुस्त नहीं!

📚 फ़तावा मुस्तफ़वियह सफ़ह 451)
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 41 📚*

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*【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   आज-कल के नक़ाब जो इन्तिहाई चुस्त और तंग होते हैं, जिससे अअ्ज़ा ए जिस्म की बनावट साफ़ ज़ाहिर होती है और जिसमें तरह तरह के बेल बूटे और नक़्श व निगार मनक़ूस होते हैं, जो बहुत ही दिलकश मालूम होते हैं, तो क्या इस तरह के नक़ाब औरतों को पहनना जाइज़ है.?

࿐   *जवाब :-* औरतों को इस तरह का नक़ाब पहनना हराम और अशद हराम है, इसलिए के शरअ् ने औरतों के लिए इतना चुस्त लिबास पहनना जिससे बदन के अअ्ज़ा की बनावट, साख़्त व हैइयत, नशीब व फ़राज़, उतार चढ़ाव खूब ज़ाहिर हो हराम फ़रमाया है, और फिर ऊपर से उसमें तरह तरह के बेल बूटे नक़्श व निगार और बहुत ही खूबसूरत, दिलकश व दिल फ़रेब डिज़ाइन मनक़ूस हों, जो लोगों की तवज्जोह का मरकज़ बनें, इस तरह के तमाम पहनावे भी बिला शुबा ना जाइज़ व हराम बल्कि अशद हराम होंगे!

࿐  हदीस शरीफ़ में है हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से रिवायत है कि हज़रते असमा बिन्ते अबू बकर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह एक बारीक कपड़ा पहनकर हुज़ूर के सामने आईं हुज़ूर ने उनकी जानिब से मुंह फेर लिया और फ़रमाया : ऐ असमा औरत जब बालिग हो जाए तो उसके बदन का कोई हिस्सा हरगिज़ ना दिखाई देना चाहिए, सिवाए इसके और उसके और इशारा फ़रमाया अपने मुंह और हथेलियों की जानिब!

📗 मिश्कात सफ़ह 377)

࿐   और इसी लिए औरतों को चूड़ी दार पायजामा पहनना और खूब चुस्त क़मीस पहनने से सख़्ती के साथ मना किया गया है कि इससे औरत के जिस्म की बनावट लंम्बाई गोलाई और उतार चढ़ाव खूब ज़ाहिर रहता है, और जब औरतें इस क़दर चुस्त लिबास पहनकर निकलेंगी तो नागह लोगों की नज़रें उनकी तरफ उठेंगी जिसे हरीस क़िस्म का इंसान बग़ौर देखेगा और गुनाहगार होगा और उसका गुनाह औरत के भी सर आएगा इसलिए कि उसने ऐसा लिबास पहन रखा है जो शराफ़ते इंसानी के ख़िलाफ़ और शरअ् में ममनू व हराम है!

࿐   हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं अगर चुस्त कपड़े पहने हों के जिस्म का नक्शा खिच जाता हो मसलन चुस्त पायजामा में पिंडली और रान की पूरी हैइयत नज़र आती है तो इस सूरत में नज़र करना ना जाइज़ है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 448)

࿐  *अल इन्तिबाह 👉🏼*  औरतों को ऐसा लिबास पहनना जिससे बदन के अक्सर अअ्ज़ा ज़ाहिर होते हैं हराम है, औरतों को खूब ढीले ढाले कपड़े पहनना चाहिए और ज़्यादा नीचे तक हों ताकि क़दम छुप जाएं उनके लिए जहां तक पांव का ज़्यादा छुपे अच्छा है, इन्तिहाई चुस्त व तंग बुरक़ा व नक़ाब कमीस कुर्ती और पायजामा वग़ैरह पहनने से इज्तिनाब लाज़िम है वरना गुनाहगार और मुस्तहिक़े अज़ाबे नार होंगी!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 42 📚*

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      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत इस तरह पायजामा पहने के टख़्ना खुला रहे तो क्या हुक्म है?

࿐   *जवाब :-*  टख़्ना खुला हुआ पायजामा पहनना औरतों के लिए नाजाइज़ व हराम है, इसलिए कि औरत का टख़्ना व गट्टा भी सतरे औरत में दाखिल है जैसा कि रद्दुल मोहतार में है,...अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिजा हो,

࿐  और आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं कि, औरत के गट्टे सतरे औरत में दाखिल हैं, ग़ैर मेहरम को उनका देखना हराम है कि औरत को हुक्म है कि उसके पायचे खूब नीचे हों के चलते में साक़ या गट्टे खुलने का एहतेमाल न रहे!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 147- निस्फ़ आखिर)

࿐  लिहाज़ा औरतों को चाहिए कि उनको भी छुपाकर रखें, बहारे शरिअत में है, आज़ाद औरतों और ख़न्शा मुश्किल यानी जिसमें मर्द व औरत दोनों की अलामतें पाई जाएं और यह साबित न हो कि मर्द है या औरत के लिए सारा बदन औरत है, सिवाए मुंह की शक्ल और हथेलियों और और पांव के तलवों के सर के लटकते बाल और गर्दन और कलाईयां भी औरत हैं, उनका छुपाना भी फ़र्ज़ है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 2, सफ़ह 481

࿐  तो साबित हुआ कि टखने और गट्टे का छुपाना लाज़िम और खुला रखना या दिखाना हराम व गुनाह है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 43 📚*

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      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   औरतों को ऊन और बाल का कपड़ा पहनना कैसा है.?

࿐   *जवाब :-*  ऊन और बाल का कपड़ा पहनना औरत और मर्द सबके लिए शरअ् में कोई मुमानअ्त नहीं, और अम्बिया अलैहिमुस्सलाम की सुन्नत भी है,

📚 फ़तावा आलमगीरी, जिल्द 5, सफ़ह 333)

࿐  और ऊन और बाल का लिबास पहनना अजिज़ व इनकिसारी की निशानी है हदीस शरीफ़ में है, आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं, ऊन के कपड़े पहनकर अपने दिलों को मुनव्वर करो कि यह दुनिया में मुज़िल्लत है (यानी दुनिया वालों के नज़दीक ऐसे कपड़े पहनना हक़ीर समझा जाता है लेकिन आख़िरत में इज़्ज़त का बाइस है) और आख़िरत में नूर है!

📚 ब हवाला, आलमगीरी जिल्द 5 सफ़ह 333)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अल्लामा अमजद अली अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, ऊन और बालों के कपड़े अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की सुन्नत है, सबसे पहले हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलातू वस्सलाम ने यह कपड़े पहने,

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 416)

लिहाज़ा ऊन और बाल के कपड़े पहनने में हर्ज नहीं बल्कि बेहतर है और तवाज़ो की निशानी है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 45 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* औरतों को नमाज़ में कितना बदन ढकना ज़रूरी है.?  

࿐   *जवाब :-*  आज़ाद औरतों को सर से पांव तक तमाम बदन का छुपाना फ़र्ज़ है, मगर चेहरा यानी पेशानी से ठोड़ी और एक कनपटी से दूसरी कनपटी तक (जिसमें सर के बालों या कान का कोई हिस्सा दाख़िल नहीं, ना ठोड़ी के नीचे का) यह तो बिल इत्तिफ़ाक़ नमाज़ में छुपाना फ़र्ज़ नहीं, और गट्टों तक दोनों हाथ, टखनों तक दोनों पांव, इनमें इख़्तिलाफ़े रिवायात है, इनके सिवा अगर किसी उज़ू का चौथाई हिस्सा नमाज़ में क़सदन (यानी जानबूझकर) खोले अगरचे एक आन को बिला क़स्द ब क़दर अदाए रुक्न यानी तीन बार सुब्हानअल्लाह कहने की देर तक खुला रहे तो नमाज़ ना होगी और बारीक कपड़े जिनसे बदन नज़र आए या रंगत दिखाई दे या सर के बालों की स्याही चमके तो नमाज़ ना होगी!

📔 अल मलफ़ूज़ जिल्द 1, सफ़ह 21
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बअ्ज़ औरतें सोग मनाने के लिए अशरा ए मुहर्रम में सियाह (काला, ब्लैक) और सब्ज़ (हरा, ग्रीन) कपड़े पहनती हैं और अपने बच्चों को पहनाती हैं तो क्या हुक्म है, 

࿐   *जवाब :-* अशरा ए मुहर्रम में तीन रंग के कपड़े पहनना दुरुस्त नहीं,
1-सियाह यानी काला,
2-सब्ज़ यानी हरा,
3-सुर्ख़ यानी लाल, (रेड)

࿐  इन तीनों से इज्तिनाब लाज़िम है, अव्वलन तो औरत को शौहर के अलावा के लिए सोग करना ही जाइज़ नहीं!

࿐  मुजद्दिदे आज़म सरकार आलाहज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, शरिअत ने औरत को  शौहर की मौत पर चार महीने दस दिन सोग का हुक्म दिया है, और उनकी मौत के तीसरे दिन तक इजाज़त दी है, बाक़ी हराम है और हर साल सोग की तजदीद तो किसी के लिए असलन हलाल नहीं, फिर हक़ीक़त देखिए तो दअ्वाए ग़म भी झूटा, यूं ही अशरा ए मुहर्रम के सब्ज़ रंगे हुए कपड़े भी नाजाइज़ हैं यह भी सोग की ग़र्ज़ से हैं सोग में असल सियाह लिबास है, वह तो राफ़ज़ियों (यानी शिओं) ने किया और उन्हें ज़ैबा भी था के एक तो उनके दिलों की भी यही रंगत है, (यानी शिओं के दिल भी काले हैं) दूसरे यह कि सैय्यदना इमाम शाफ़ई रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया कि,

الشيعة نساء هذه الامة،

࿐  यानी शिआ इस उम्मत की औरतें हैं सोग व मातम औरतों ही को ख़ूब आते हैं,vअशरा ए मुबारक में तीन रंगों से बचे- सियाह, (यानी काला, ब्लैक) सब्ज़ (यानी हरा, ग्रीन) सुर्ख़ (यानी लाल, रेड)

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 36, निस्फ़ आखिर)

࿐   और हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ा अल्लामा अमजद अली अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, अशरा ए मुहर्रम में तीन रंग के लिबास अहले बिदअत पहनते हैं, इन तीनों से इज्तिनाब चाहिए, अव्वल-सुर्ख़ या गुलाबी के यह ख़वारिज दुश्मनाने अहले बैत इज़हारे मुशर्रत के लिए पहनते है, दोम- सियाह के उसको राफ़़ज़ी (यानी शिआ) पहनते हैं, सोम- सब्ज़ या दहानी के यह ताज़ियादारों का शैवह है, अगर कपड़ा मुख़्तलिफ़ रंग है तो वह इन तीनों से ख़ारिज है!

📚 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4, सफ़ह 167
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 45-46📚*

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      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   हैज़ (M.C) व निफ़ास (बच्चा पैदा होने के बाद ख़ून आना) वाली औरत गले में तावीज़ पहन सकती है या नहीं?

࿐   *जवाब :-*  पहन सकती है, कोई हर्ज नहीं जबके गिलाफ़ (क़वर) में हो, चाहे जुनुबी हो (यानी जिसपर ग़ुसल फ़र्ज़ हो) या हैज (यानी M.C) व निफ़ास वाली औरत हो!

📗 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, सफ़ह 523, किताबुल हज़र वल इबाहत)

࿐  और बहारे शरिअत में है, जुनुब (यानी जिस पर ग़ुसल फ़र्ज़ हो) व हाइज़ (यानी जिसे MC हो रही हो) व नफ़्सा (यानी जो निफ़ास वाली हो) भी तावीज़ात को गले में पहन सकते हैं, बाज़ू पर बांध सकते हैं, जबकि ग़िलाफ़ (यानी क़वर) में हों!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 420)

࿐   हां वह तावीज़ात जिनमें कलिमाते कुफ़्रिया और नाजाइज़ अल्फ़ाज़ मज़कूर हों जैसा के ज़माना ए जाहिलियत में किए जाते थे, तो उनका पहनना नजाइज़ व हराम है, सिर्फ़ उन्हीं तावीज़ात का पहनना जाइज़ है जिसमें आयाते क़ुरआनिया और अस्मा ए इलाहिया (यानी अल्लाह तआला के नाम) वग़ैरह हों!

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, किताबुल हज़र वल इबाहत फ़िल्लिबास सफ़ह 523)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, गले में तावीज़ लटकाना जाइज़ है जबकि वह तावीज़ जाइज़ हो, यानी आयाते क़ुरआनिया या अस्मा ए इलाहीया या अदईया (यानी दुआओं) से तावीज़ किया जाए और बाज़ हदीसों में जो मुमानअत आई है, उससे मुराद वह तावीज़ात हैं जो नाजाइज अल्फ़ाज़ पर मुस्तमिल हों जो ज़माना ए जाहिलियत में किए जाते थे, इस तरह तावीज़ात और आयात व आहादीस व अदईया को रक़ाबी मैं लिखकर मरीज़ को ब नियते शिफ़ा पिलाना भी जाइज़ है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 419)

࿐  हदीस शरीफ़ में है, हज़रत आयशा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा ने फ़रमाया के नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हुक्म फ़रमाया है कि हम नज़रे बद के लिए तावीज़ करवाएं!

📚 बुख़ारी शरीफ़ किताबुल तिब्ब, बाब रक़यतुल एन, जिल्द 2 सफ़ह 854)

࿐  और हजरत औफ़ बिन मालिक असजई रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया के हम लोग ज़माना ए जाहिलियत में झाड़-फूंक करते थे ( इस्लाम लाने के बाद) हमने अर्ज़ किया उन मंत्रों की बाबत आप क्या फ़रमाते हैं, हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया आपने मंत्र मुझे सुनाओ मंत्रों में कोई हर्ज नहीं, जब तक के उनमे शिर्क ना हो!

📔 मुस्लिम, अनवारुल हदीस सफ़ह 224)

࿐  *अल इन्तिबाह* आजकल बहुत से लोग खासकर औरतें जाहिल काफ़िर और सिफ़्ली इलम करने वाले और देवी देवताओं की पूजा करने वाले साधु संत के पास दुआ और तावीज़ के लिए जाते हैं, जिनके मंत्र व तावीज़ में जिन्न व शायातीन के नाम होते हैं, और शिर्किया व कुफ्रिया कलिमात होते हैं और ऐसे मंत्र भी होते हैं जिनका माना बमुश्किल मालूम होता है जिसे आम आदमी समझ भी नहीं सकते, लिहाज़ा उनसे दुआ व तावीज़ और मंत्र वगैरह करवाना हराम व नाजाइज़ है और उनसे बचना ज़रूरी है!
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝ बाबुल लिबास यानी पहनावे का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बाज़ औरतें मय्यत होने पर इज़हारे ग़म के लिए सियाह (यानी काले) कपड़े पहनती हैं तो क्या हुक्म है.? 

࿐   *जवाब :-*  किसी के मौत पर इज़हारे ग़म में काला कपड़ा पहनना नजाइज़ है, चाहे मर्द हों या औरत!

📚 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 333)

࿐  और सियाह बिल्ला लगाना और बाज़ू पर सियाह पट्टी बांधना भी जाइज़ नहीं क्योंकि वह सोग की सूरत है, 

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ा अल्लामा अमजद अली अलैहिर्रहमा तहरीर फ़रमाते हैं, जिसके यहां मय्यत हुई उसे इज़हारे ग़म में सियाह कपड़े पहनना नाजाइज़ है, सियाह बिल्ले लगाना भी नाजाइज़ है, के अव्वलन तो वह सोग की सूरत है दोम यह के नसारा (इसाइयों) का तरीक़ा है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 416
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
 *❝ बाबुज़्ज़ीना यानी बनाव सिंगार का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   आज-कल औरत व मर्द वालों को सियाह (यानी काला) करने के लिए काली मेहंदी और तेल लगाते हैं तो क्या हुक्म हैं.?

࿐   *जवाब :-*  बालों को काला करने के लिए मेहंदी, तेल, और नील वगैरह का इस्तेमाल करना नाजाइज़ व हराम है, मर्द व औरत सबके लिए एक ही हुक्म है, इस बारे में किसी की कोई तख़्सीस नहीं!

࿐  हदीसे पाक में है, हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के हजरत अबू क़हाफ़ा को फतह मक्का के दिन आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की बारगाह में लाया गया, उनके सर और दाढ़ी के बाल सग़ामा (यानी सफ़ेद फूलों) की तरह सफ़ेद थे, तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया किसी चीज़ से इसका रंग बदल दो और काले रंग से बचो!

📚 मुस्लिम, जिल्द 2, सफ़ह 199)
📗 निसाई जिल्द 2 सफ़ह 236)

࿐  और हुज़ूर आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तहरीर फ़रमाते हैं, के आहादीस व रिवायात में मुतलक़ सियाह (यानी काला) रंग से मुमानअत फ़रमाई तो जो चीज़ बालों को सियाह करे ख्वाह निरा नील या मेहंदी का मैल या कोई तेल ग़र्ज कुछ हो सब नाजाइज़ व हराम और उन वईदों में दाखिल है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 32)

࿐   और आलमगीरी में है, जो काले ख़िज़ाब से औरतों के लिए अपने आप को आरास्ता करे और उनको लुभाने के लिए तो यह मकरूह है यही आम मशाइख़े किराम का मज़हब है!

📚 आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 309, मुलख़सन)

࿐  और दुर्रे मुख़्तार में है,

و يكره بالسو اداى لغيرالحرب،

📚 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9, सफ़ह 605)

࿐   और हुज़ूर आला हज़रत अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, के आम्मा ए मशाइख़े किराम व जमहूरे अइम्मा ए आलाम के नज़दीक सियाह यानी काला ख़िज़ाब मना है, उल्मा जब कराहत मुतलक़ बोलते हैं उससे कराहते तहरीम मुराद लेते हैं, जिसका मुर्तकिब गुनाहगार व मुस्तहिक़े अज़ाब है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 41)

࿐  नीज़ तहरीर फ़रमाते हैं, शाहिद अदल है, कि औरत उसकी ज़्यादा मोहताज है कि शौहर की निगाह में आरास्ता हो जब उसे यह उमूर तग़इय्युर ख़ल्क़ुल्लाह के सबब हराम व मोजिबे लानत है तो मर्द पर ब दर्जा औला!

📘 अर्रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 192, निस्फ़ आखिर

࿐  लिहाज़ा मर्द व औरत दोनों को बालों को काला करने के लिए काला खिज़ाब, काली मेहंदी, तेल और नील वगैरह इस्तेमाल करना हराम व नाजाइज़ है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 49-50 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या काला ख़िज़ाब लगाने वाले जन्नत की ख़ुशबू नहीं पाएंगे,?

࿐   *जवाब :-*  हां, सहीह् आहादीस व रिवायात से यह साबित है कि काला ख़िज़ाब लगाने वाले औरत मर्द जन्नत की ख़ुशबू नहीं पाएंगे,

࿐  हदीस शरीफ़ में है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, आख़री ज़माने में कुछ लोग होंगे जो काला ख़िज़ाब इस्तेमाल करेंगे जैसे कबूतर के पोटे वह लोग जन्नत की खुशबू नहीं पाएंगे!

📚 अबू दाऊद, बाबुल माजा फ़ी ख़िज़ाबुस्सवाद, जिल्द 2 सफ़ह 578)

࿐   आला-हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह फ़रमाते हैं, सियाह (यानी काला) ख़िज़ाब मुतलक़न हराम है, और सियाह मुकूल बित्तश्कीक नीला और औदा (यानी शुर्ख़ लिए हुए काले रंग का) कासनी, सब सियाह है और बफ़र्ज़ ग़लत सियाह ना हो तो क़रीब सियाह क़तअन है, और हदीसे सहीह् का इरशाद है

لا تقربواالسواد،

࿐   सियाही के पास ना जाओ,

࿐   रवाहुल इमाम अहमद अन अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्ह और हदीस अबू दाऊद व निसाई में कबूतर के पोटे से तश्बीह भी इसी तरफ़ नाज़िर जंगली कबूतरों के पोटे अक्सर नीलगों होते हैं, ख़ास मेंहदी की रंगत गहरी नहीं होती, जब उसमें कुछ पत्तियां नील की मिलादी जाएं तो सुर्ख गहरा रंग हो जाता है, यह हसन है ना यह के इतना नील मिला दिया जाए कि सियाह करदे या पहले मेंहदी से रंग कर जब बाल खूब साफ़ हो गए उसपर नील थोपा कि यह सब वही हराम सूरतें हैं जिनको,
اجتنبوا،، फ़रमाया

 لايجدون راءحة جنة،،
 फ़रमाया,

जिस पर
 سواد الله وجه،
 आया,

📚 अर्रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 191, निसफ़ आखिर)
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* क्या औरतों को टिकली (बिंदिया), सिन्दूर या इस तरह का कोई रंग लगाना जाइज़ है ?

࿐   *जवाब :-*  पेशानी पर टिकली (बिंदिया) लगाना और मांग में सिंदूर वगैरह भरना हराम है!

࿐  हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रमह फ़रमाते हैं, सिंदूर लगाना मसलह में दाखिल और हराम है, नीज़ उसका जुर्म पानी बहने से मानेअ् होगा, जिससे गुसल नहीं उतरेगा!

📗 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4, सफ़ह 60)

࿐  और इस लिए भी टिकली (बिंदिया) वगैरह लगाना हराम है कि उसमें ग़ैर मुस्लिमों से मुशाबहत है!

࿐  हदीसे पाक में है नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं, जो किसी क़ौम से मुशाबहत रखे वह उसी में से है!

📗 मिश्कात सफ़ह 375)

࿐  फ़तावा अमजदियह में है, अफ़शां या टिकली भी वुज़ू व  ग़ुसल के अदा करने में मानेअ् हैं, और टिकली (बिंदिया) में हिन्दुओं से मुशाबहत होती है कि मुसलमान औरतें इस्तेमाल नहीं करतीं उनसे एहतराज़ चाहिए!

📘 अल मर्जउस्साबिक़)

࿐  *अल इन्तिबाह* मालूम हुआ कि टिकली (यानी बिंदिया) लगाना और मांग में सिंदूर या कोई और रंग लगाना सब हराम है!
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* क्या ख़ूबसूरती के लिए औरतों को भवों के बाल नोचना और दांतों को रेतना जाइज़ है ?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को ख़ूबसूरती के लिए भवों के बाल नोचकर अबरू को ख़ूबसूरत और बारीक बनाना यूंही दांतों को रेतकर ख़ूबसूरत बनाना हराम है, और एसी औरतों पर अल्लाह व रसूल की लानत है!

࿐  हदीस शरीफ़ में है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा ने फ़रमाया, अल्लाह तआला की लानत गोदने वालियों पर और गुदवाने वालियों पर और बाल नोचने वालियों पर और ख़ूबसूरती के लिए दांत रेतने वालियों पर, यानी जो औरतें दांतों को रेतकर ख़ूबसूरत बनाती हैं और अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की पैदा की हुई चीज़ों को बदल डालती हैं!

📚 बुख़री शरीफ़, किताबुल्लिबास जिल्द 2 सफ़ह 880)

࿐  और अबू दाऊद शरीफ़ में है हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा ने फ़रमाया, लानत की गई बालों को जोड़ने और जुड़वाने वालियों पर, और पेशानी के बाल नोचने और नुचवाने वाली पर और गोदने और गुदवाने वाली पर, जबकि बग़ैर किसी मर्ज़ व उज़्र के ऐसा करे!

📗 अबू दाऊद बाबुल सिलतुश्शअर जिल्द 2 सफ़ह 574)

࿐  और  फ़तावा रज़वियह शरीफ़ में है, मर्द ख़्वाह औरत भवें या सियाह (यानी काला) ख़िज़ाब करे, यह सब सूरतें मसलह मो में दाखिल हैं और सब हराम!...✍🏻

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 133
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* औरतें अपनी चोटी में सोने चांदी और कांच (यानी Glass) वगैरह के दाने लगा सकती हैं या नहीं?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को अपनी चोटी में सोने चांदी और शीशे वगैरह के दाने लगाने में शरअन कोई मुमानअत नहीं लगा सकती हैं!

࿐  फ़तावा आलमगीरी में है,

ولا باس للنساء بتليق الخرز فى شعور هن من صفر او نخاس او شبه او حديد و نحوها للزينة٫

📚 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 5 सफ़ह 359)

࿐  और हज़रत अल्लामा अमजद अली अल मारूफ़ ब सदरुश्शरिअह अलैहिर्रमह फ़रमाते हैं, औरतें अपनी चोटी में पोत (यानी शीशे या कांच के दाने) और चांदी सोने के दाने लगा सकती हैं!

📗 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 597
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को मर्दों की तरह बाल रखना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को मर्दों की तरह बाल रखना और काटना या मुंडाना नाजाइज़ है!

࿐  हदीस शरीफ़ में है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उन मर्दों पर लानत फ़रमाई जो औरतों की तरह अपना हुलिया बनाए रहते हैं, और उन औरतों पर जो मर्दों की तरह अपना हुलिया बनाए रहती हैं यानी मर्दानी औरत पर!

📚 बुख़ारी किताबुल लिबास, बाबुल मुतशब्बिहीन बिन्निसाअ्, जिल्द 2 सफ़ह 874)

࿐  अगरचे शौहर ने बाल कटवाने का हुक्म दिया जब भी औरतों को बाल कटवाना हराम व नाजाइज़ है, अगर ऐसा करेगी तो गुनहगार होगी, क्योंकि अल्लाह व रसूल की नाफरमानी करने में किसी के क़ौल का एतबार नहीं!

࿐  जैसा कि दुर्रे मुख़्तार में है,

قطعت شعرى راءسها اثمت و لعنت زاد فى بزازية و ان باذن الزوج لا طاعة لمخلوق فى معصيةالخالق،،

📚 दुर्रे मुख़्तार, किताबुल हज़र वलइबाहत फ़सली फ़िलबई जिल्द 9 सफ़ह 583)

࿐  बहारे शरिअत में है, औरतों को सर के बाल कटवाने जैसा कि इस ज़माने में नसरानी (ईसाई) औरतों ने कटवाने शुरू कर दिए नाजाइज़ व गुनाह है, और उस पर लानत आई, शौहर ने ऐसा करने को कहा जब भी यही हुक्म है, कि औरत ऐसा करने में गुनहगार होगी, क्योंकि शरिअत की ना फ़रमानी करने में किसी का कहना नहीं माना जाएगा!

࿐  सुना है कि बअज़ मुसलमानों के घरों में भी बाल कटवाने की बला आ गई है, ऐसी पर क़ैंच औरतें देखने में लौंडा मालूम होती हैं, और हदीस में फ़रमाया कि जो औरत मर्दाना हैयात में हो उस पर अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की लानत है, जब बाल कटवाना औरत के लिए ना जाइज़ है तो मुंडवाना बदर्जा औला ना जाइज़ के यह भी हिन्दुस्तान के मशरिकीन का तरीक़ा है कि जब उनके यहां कोई मर जाता है या तीर्थ (यानी हिन्दु वग़ैरह का मुक़द्दस मक़ाम मुतहर्रिक दरिया (गंगा जमुना) पर नहाने का घाट) को जाती हैं, तो बाल मुंडा देती हैं!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 588
           
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*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को मिस्सी (यानी जो एक क़िस्म का मंजन है जिसे सिंगार के लिए इस्तेमाल करते हैं) लगाना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को मिस्सी लगाना मुतलक़न जाइज़ बल्कि मुस्तहब है, ख़्वाह वह किसी रंग की हो, ज़ीनत के लिए हो या दांतों के इलाज के लिए, हां मगर रोज़ा की हालत में लगाना मकरूहे तहरीमी है!

࿐  जैसा कि दुर्रे मुख़्तार में है, अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो,

📚 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 3, सफ़ह 390)

࿐  और आलाहज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं, मिस्सी किसी रंग की हो औरतों को इलाजे दन्दां या शौहर के वास्ते आराइश के लिए मुतलक़न जाइज़ बल्के मुस्तहब है, सिर्फ़ हालते रोज़ा में लगाना मना है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 177
           
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*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  दूसरे के बाल को अपने बाल में मिलाकर चोटी बनाना और गूदना गुदवाना कैसा है?

࿐   *जवाब :-* किसी इंसान के बाल को अपने बाल में मिलाकर गूंदना और चोटी बनाना हराम है, यूं ही गूदना गुंदवाना भी हराम है!

࿐  बुखारी शरीफ में है, हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है, अल्लाह तआला ने लानत फ़रमाई है बाल जोड़ने वाली और जुड़वाने वाली पर और गूदने वाली और गुदवाने वाली पर!

📚 बुखारी शरीफ, किताबुल्लिबास, बाबुल वस्ल फ़िश्शअर, जिल्द 2 सफ़ह 878)

࿐  अगर वह बाल के जिनको जोड़कर चोटी बनाई गई है खुद उसी औरत का हो या किसी ग़ैर का दोनों सूरतें बराबर हैं, यानी के बाल जोड़ना ही हराम व नाजाइज़ है, अपने और ग़ैर की कोई तख़सीस नहीं!

࿐  जैसा के दुर्रे मुख्तार में है अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो,

📚 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9 सफ़ह 530)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, इंसान के बालों को चोटी बनाकर औरत अपने बालों में गूंदे यह हराम है हदीस में इस पर लानत आई बल्कि उस पर भी लानत जिसने किसी दूसरी औरत के सर में ऐसी छोटी गूंदी और वह बाल जिस की चोटी बनाई गई खुद उसी औरत के हैं जिसके सर में जोड़ी गई जब भी नाजाइज़ और अगर ऊंन या सियाह तागे की चोटी बनाकर लगाए तो मुमानअत नहीं इसी तरह गूदने और गुदवाने वाली!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 596, मुलख़सन)

࿐  अल इन्तिबाह, तो मालूम हुआ कि दूसरे के बाल या खुद अपने बाल को मिलाकर चोटी बनाना या दूसरे के सर में बनाना दोनों हराम है, और ऊन या तागे की चोटी बनाने में कोई हर्ज नहीं!
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत को अपने शौहर के लिए बनाव सिंगार करते वक़्त रात को आईना देखना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  जाइज़ है, शरअ् में कोई मुमानअत नहीं, बल्कि औरत अगर अपने शौहर के सिंगार के लिए आइना देखे तो बहुत बड़ा सवाब है!

࿐  जैसा कि आलाहज़रत मुजद्दिदेदीनो मिल्लत अलैहिर्रहमा रक़मतराज़ हैं रात को आईना देखने की कोई मुमानअत नहीं बअ्ज़ अवाम का ख़याल है कि उससे मुंह पर झाइयां पड़ती हैं और इसका भी कोई सुबूत न शरअन है ना तबअन न तजर्बन, और औरत अपने शौहर के सिंगार के वास्ते आईना देखे तो सवाबे अज़ीम की मुस्तहिक़ है, सवाब की बात बे असल ख़यालात की बिना पर मना नहीं हो सकती!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 119, निस्फ़ आख़िर
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या हदीस में मेंहदी न लगाने वाली औरत के बारे में यह है कि गोया दरिंदों का हाथ है या मर्दानी औरत का हाथ,?

࿐   *जवाब :-* जी हां, हदीस से यह साबित है कि मेंहदी से अपने हाथों को ना रंगने वाली औरतों को आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम्हारे हाथ गोया दरिंदों के हाथ हैं या मर्दानी औरत के हाथ हैं!

࿐  पहली बात यह है कि औरतों को मेंहदी लगाना मुस्तहब व मुस्तहसन है, और मर्दों से इम्तियाज़ भी है, इसलिए के मर्द तो अपने हाथ रंगते नहीं, इसलिए औरत भी अगर अपने हाथों को ना रंगेगी तो मर्दों से तश्ब्बोह हो जाएगा!

࿐  हदीसे पाक में है, हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से रिवायत है कि हिंद बिन्ते उत्बा ने अर्ज़ की या नबीअल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुझे बैयत कर लीजिए, तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं तुझे बैयत न करूंगा जब तक तू अपनी हथेलियों को बदल ना दे, (यानी मेंहदी लगाकर उनका रंग बदल ना दे) तेरे हाथ गोया दरिंदा के हाथ मालूम हो रहे हैं!

📚 अबू दाऊद, जिल्द 4, सफ़ह 103)

࿐  और दूसरी हदीस में है, हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा रिवायत करती हैं कि, एक औरत के हाथ में किताब थी, उसने पर्दा के पीछे से रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तरफ़ इशारा किया, यानी हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) को देना चाहा, तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपना हाथ खींच लिया और यह फ़रमाया कि
मालूम नहीं मर्द का हाथ है या औरत का हाथ है, उसने कहा कि औरत का हाथ है, तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि
अगर औरत होती तो नाख़ूनों को मेंहदी से रंगे होती!

📚 अबू दाऊद जिल्द 4 सफ़ह 104)

࿐ अल इन्तिबाह, मालूम हुआ कि औरतों को चाहिए अपने हाथों को मेंहदी वग़ैरह से रंगीन कर लिया करें  ताकि मर्दों से मुशाबहत न रहे, आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का बैयत न फ़रमाना और अपने हाथों को खींच लेना, इस बात पर दाल (सुबूत) है कि औरत के हाथ का रंगा होना, बे रंगे हुए हाथ से कहीं ज्यादा बेहतर है!
           
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को इस क़दर तेज़ ख़ुशबू लगाना कैसा है जिसकी महक दूसरों तक पहुंचे?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को इस क़दर तेज़ ख़ुशबू इस्तेमाल करना जिसकी महक दूसरों तक पहुंचे और लोगों की निगाहें उठें और तबिअत का मिलान हो हराम व नाजाइज़ है, हां औरतें बतौरे ज़ीनत हल्की खुशबू इस्तेमाल करें कि उसका असर दूसरों तक ना पहुंचे तो शरअन कोई हर्ज नहीं, इसलिए के औरतों की खुशबू वह है जिसमें रंग हो बू न हो!

࿐  जैसा के हदीसे पाक में है नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं मर्दों की खुशबू वह है जिसमें बू हो रंग ना हो, और औरतों की खुशबू वह है जिसमें रंग हो बू ना हो!

📗 अबू दाऊद जिल्द 4 सफ़ह 83)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, मर्दों में ख़ुशबू मक़सूद होती है, उसका रंग नुमाया ना होना चाहिए, के बदन या कपड़े रंगीन हो जाएं और औरतें हल्की ख़ुशबू इस्तेमाल करें कि यहां ज़ीनत मक़सूद होती है, और यह रंगीन ख़ुशबू मसलन ख़ुलूक़ से हासिल होती है तेज़ ख़ुशबू से  ख़्वाह मख़्वाह लोगों की निगाहें उठेंगी!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफा 408,

࿐  और फ़तावा अमजदियह में है, ख़ुशबू लगाएं तो ऐसी ना हो कि उसकी महक दूसरों को पहुंचे!

📚 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4 सफ़ह 55
           
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࿐   *सवाल :-*  जो औरत इस लिए ख़ुशबू लगाए के लोग उसकी तरफ़ मुतवज्जह हो तो क्या वह औरत इन्दशरअ् ज़ानिया है,?

࿐   *जवाब :-*  अगर औरतें इसी लिए खुशबू लगाए ताकि लोगों का उसकी तरफ मिलान हो और लोग उसकी तरफ़ मुतवज्जह हों तो ऐसी औरत को हदीसे पाक में पेशावर ज़ानिया यानी धंधे वाली कहां गया है!

࿐  हदीसे पाक में है, हजरत अबू मूसा अशअरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, जब कोई औरत ख़ुशबू लगाकर लोगों में निकलती है ताकि उन्हें खुशबू पहुंचे तो औरत ज़ानिया यानी ज़िना करने वाली पेशावर है!

📚 तिरमिज़ी जिल्द 2, सफ़ह 282)
📔 निसाई किताबुज़्ज़ीनत जिल्द 3, सफ़ह 398)

࿐  अल इन्तिबाह, लिहाज़ा औरतों को चाहिए कि वह क्रीम पाउडर और दीगर आशिया बहुत ही हल्की ख़ुशबू का इस्तेमाल करें और तेज़ ख़ुशबू वाले इत्र और सेंट वगैरह से बचें बल्कि अगर इत्र वगैरह का इस्तेमाल ना करें तो ही बेहतर है कि औरतों के लिए रंग है ना के ख़ुशबू आजकल अक्सर औरतें ऐसी स्प्रे, इत्र, पाउडर क्रीम वगैरह का इस्तेमाल करती हैं कि जिस गली कूंचे से गुज़र जाती हैं सारी गली महक उठती है और मनचले लड़के हाय हाय पुकारने लगते हैं और सीटियां बजा बजाकर बेहूदा हरकतें करते हैं लिहाज़ा हमारी मां और बहनों को चाहिए कि वह ख़ुशबू का इस्तेमाल ही ना करें और अगर करें भी तो बहुत मामूली बिल्कुल हल्की ख़ुशबू ताकि उसका असर दूसरों तक ना पहुंचे!
           
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࿐   *सवाल :-*  औरत का अपने शौहर के अलावा दूसरों के लिए सिंगार करना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  औरत का अपने शौहर के सिवा दूसरों के लिए बनाव सिंगार करना ब हुक्मे शरअ् दुरुस्त नहीं, बल्कि नाजाइज़ व हराम है!

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है, *तर्जमा-:* अपना सिंगार ज़ाहिर ना करें मगर अपने शौहरों पर!

📚 कंज़ुल ईमान पारा 18, सूरह अल नूर, रुकु 10, आयत 31)

࿐  इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने साफ-साफ फ़रमाया है के औरतें अपना बनाव सिंगार अपने शौहरों के लिए ही करें, ग़ैर मर्दों के लिए नहीं, लेकिन आज मामला ही उल्टा नज़र आ रहा है, अक्सर औरतें घर में गंदी बैठी रहती हैं, लेकिन जब बाहर निकलना होता है तो खूब बन संवर कर निकलती हैं, गोया गंदी उनके अपने शौहरों के लिए और ज़ीनत व बनाव सिंगार गैर मर्दों के लिए,

࿐  ऐसी औरतों के बारे में हदीसे पाक में है, हजरत मैमूना बिन्ते सअ्द रज़िअल्लाहू तआला अन्हा रिवायत करती है कि, रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, अपने शौहर के सिवा दूसरों के लिए ज़ीनत के साथ दामन घसीटते हुए इतरा कर चलने वाली औरत क़यामत के अंधेरों की तरह है जिसमें कोई रोशनी ना हो!

📚 तिरमिज़ी जिल्द 1, सफ़ह 597)

࿐  अल इन्तिबाह, जान लीजिए कि इस्लाम ने औरतों को सजने संवरने से मना नहीं किया है, बल्कि सजने संवरने और सिंगार करने का हुक्म दिया है, इस्लाम औरतों के फैशन या सिंगार के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि वह बे पर्दगी और बेहूदगी के ख़िलाफ़ हैं, ए मेरी बहनों, याद रखो, इस्लाम तुम्हें फैशन करने और सजने संवरने से नहीं रोकता है बल्कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ यह चाहता है कि अगर तुम शादीशुदा हो तो अपने शौहर के लिए सिंगार करो कि उनका ही तुम पर हक़ है ना के ग़ैर मर्दों के लिए, इस्लाम तुम्हारी ही इज्ज़त व आवरू की हिफाज़त व फ़लाह के लिए तुमसे सिर्फ़ यह मुतालबा करता है कि तुम घर पर ही ठहरी रहो, सड़कों, बाजारों, पार्को, समुंदर के किनारों, मेलों ठेलों और सिनेमाघरों में इठलाती बलखाती फिर कर अपनी ज़ेबो ज़ीनत, रंग व रूप बनाव सिंगार, हुस्न की ख़ूबसूरती को नुमाइश का ज़रिया ना बनाओ!..✍🏻
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 60-61 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  आजकल लड़कियां बतौरे फ़ैशन और ज़ीनत व आराइश के लिए नाख़ून को बड़ा रखती हैं, तो क्या हुक्म है?

࿐   *जवाब :-*  नाख़ून बड़ा रखना मना है, क्योंकि नाखूनों का बड़ा होना तंगी ए रिज़्क़ का सबब है और हफ्ता यानी जुमा के दिन तराशना बेहतर है, हफ्ते में ना हो सके तो 15.वें दिन और ज्यादा से ज्यादा 40.वें दिन उसके बाद ना तरशवाना सख्त मना है!

࿐  हदीसे पाक में है कि जुमा के दिन नाखून तरशवाए अल्लाह तआला उसको दूसरे जुमा तक बलाओं से महफूज़ रखेगा बल्के और तीन दिन ज़ाइद यानी 10 दिन तक आफ़ात व बलइय्यात से महफूज़ व मामून होगा!

📗 मिर्क़ातुल मुफ़ातेह, किताबुल्लिबास, बाबुत्तरज्जुल, जिल्द 8, सफ़ह 212)

࿐ और सहीह् मुस्लिम में हज़रत अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है फरमाते हैं कि, नाखून तरशवाने और मूंछ काटने और बग़ल के बाल लेने में हमारे लिए यह मियाद मुक़र्रर की गई थी के 40 दिन से ज़्यादा ना छोड़ रखें यानी 40 दिन के अंदर इन कामों को ज़रूर कर लें!

📔 मुस्लिम, किताबुत्तहारत, बाब ख़िसालुल फ़ितरत, सफ़ह 153)

࿐ और आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि 
जो मुए ज़ेरे नाफ़ को ना मूंडे और नाखून ना तराशे और मूंछ ना काटे वह हम में से नहीं!

📚 अल मुसनदुल इमाम अहमद बिन हम्बल, जिल्द 9, सफ़ह 153)
हदीस रजुल मिन बिन ग़फ़्फ़ार रज़िअल्लाहू तआला अन्ह)

࿐ अल इन्तिबाह, आजकल अक्सर औरत व मर्द और खासकर नौजवान लड़के और लड़कियां बतौरे फ़ैशन अपने हाथ की छंगुलियां यानी छोटी उंगली और ज्यादातर लड़कियां तो पूरी उंगलियों के नाखून को बग़ैर तराशे ही छोड़े रखती हैं, जो काफी बड़े हो जाते हैं, वह हज़रात ध्यान दें कि उससे कितनी ख़तरनाक बीमारी पैदा होती है, क्योंकि नाखून में गर्द व ग़ुबार, मैल कुचैल और बसा औक़ात (कभी कभी) पाखाना वगैरह भी चला जाता है, और वहां जाकर इस तरह जम जाता है के बग़ैर नाखून तराशे या किसी बारीक शै (चीज़) से जो उसके अंदर जा सके उसके बग़ैर दूर ही नहीं हो सकता है, इस तरह नाखून के अंदर मैल व नजासत काफ़ी दिन तक रहकर बहुत सी मोहलिक बीमारियां और जराशीम पैदा करती हैं, जो बहुत ही ख़तरनाक मिसले ज़हर हिला हिल होते हैं!

࿐ और दूसरी बात यह है कि नाखून में एक ज़हरीला माद्दा होता है, जैसा के हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार ख़ान नईमी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं,
नाख़ून में एक ज़हरीला माद्दा होता है, अगर नाखून खाने या पानी में डुबोए जाएं तो वह खाना बीमारी पैदा करता है, इसलिए अंग्रेज वगैरह छुरी कांटे से खाना खाते हैं, क्योंकि ईसाईयों के यहां नाखून बहुत कम कटवाते हैं, और पुराने ज़माना के लोग वह पानी नहीं पीते थे, जिसमें नाखून डूब जाए मगर इस्लाम ने उसका यह इंतज़ाम फ़रमाया के नाखून कटवाने का हुक्म दिया और छुरी, कांटे की मुसीबत से बचा लिया!

📘 इस्लामी ज़िंदगी सफ़ह 74
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 62📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  वह (10) दस बुरी चीज़े क्या क्या हैं जो हदीस से साबित हैं,?

࿐   *जवाब :-* हदीसे पाक में है, अबू दाऊद व निसाई ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के नबी सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम दस चीज़ों को बुरा बताते थे

࿐  1- ज़र्दी, यानी मर्द का ख़ुलूक़ इस्तेमाल करना, 2- सफ़ेद बालों में सियाह (काला) ख़िज़ाब करना, 3- तहबंद लटकाना, 4- सोने की अंगूठी पहनना, 5- बे महल औरत का ज़ीनत (बनाव सिंगार) को ज़ाहिर करना, यानी शौहर और मुहारिम के सिवा दूसरों के सामने इज़हारे ज़ीनत!

࿐  6- पांसा फैंकना, यानी चोसर और सतरंज वग़ैरह खेलना, 7- झाड़ फूंक करना, मुआविज़ात यानी जिसमें नाजाइज़ अल्फ़ाज़ हों उनसे छाड़ फूंक मना है, 8- तावीज़ बांधना, यानी वह तावीज़ बांधना जिसमें ख़िलाफ़े शरअ् अल्फ़ाज़ हों, 9- पानी को ग़ैरे महल में गिराना, यानी वत़ी के बाद मनी (वीर्य) को बाहर गिराना के यह आज़ाद औरत में बग़ैर इजाज़त नाजाइज़ है, और यह भी हो सकता है कि इससे मुराद लवात़त हो, 10- बच्चे को फ़ासिद कर देना, मगर इस दसवें को हराम नहीं कहा यानी बच्चे के दूध पीने के ज़माने में उसकी मां से वत़ी करना कि अगर वह हामिला हो गई तो बच्चा ख़राब हो जाएगा!

📚 अबू दाऊद, जिल्द 4 सफ़ह 121
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 63 📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  कुछ औरतें बच्चों के कान, नाक छिदवाने और चोटियां रखने की मन्नत मानती हैं तो क्या यह जाइज़ है,?

࿐   *जवाब :-*  ऐसी मन्नतें सब ख़ुराफ़ात व वाहियात, लग़्व, और नजाइज़ हैं!

࿐  वारिसे आला हज़रत हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह तहरीर फ़रमाते हैं, बअ्ज़ जाहिल औरतें लड़कों के कान, नाक छिदवाने और बच्चों की चोटियां रखने की मन्नत मानती हैं, या और तरह-तरह की ऐसी मन्नतें मानती हैं जिनका जवाज़ किसी तरह साबित नहीं, अव्वलन ऐसी वाहियात (लग़्व व नाजाइज़) मन्नतों से बचें और मानी हो तो पूरी ना करें और शरीअ्त के मामला में अपने लग़्व ख़यालात (फ़िज़ूल ख़यालात) को दखल ना दें, ना यह के हमारे बड़े बूढ़ेयों ही करते चले आए और यह के पूरी ना करेंगे तो बच्चा मर जाएगा, बच्चा मरने वाला होगा तो यह नजाइज़ मन्नतें बचा ना लेंगी!

࿐  मन्नत माना करो तो नेक काम नमाज़, रोज़ा, ख़ैरात, दुरूद शरीफ़, कल्मा शरीफ़, क़ुरान मजीद पढ़ने, फ़क़ीरों को खाना देने, कपड़ा पहनाने वगैरह की मन्नत मानो और अपने यहां के किसी सुन्नी आलिम से दरियाफ़्त भी कर लो कि यह मन्नत ठीक है या नहीं,, वहाबी, देवबंदी, शिआ, वगैरह से ना पूछना कि वह गुमराह बे दीन हैं, वह सही मसअला ना बताएगा बल्के एच पेच (यानी मकरो फरेब) से जाइज़ अम्र (काम) को नाजाइज़ कह देगा!

📗 बहारे शरीअत जिल्द 2 सफ़ह 318
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  अक्सर औरतें त़ाक़ भरने मस्जिद में चराग़ जलाने और कूंडा वग़ैरह करने की मन्नत मानती हैं, रत जगा होता है, और औरतें इकट्ठा होकर गाती बजाती हैं, तो क्या हुक्म है,?

࿐   *जवाब :-*  इस तरह की मन्नतों के बारे में शरअन कोई मुमानअत नहीं, करे तो अच्छा है और ना करे तो कोई बात नहीं, मगर औरतों का इकट्ठा होकर गाना बजाना और त़ाक़ भरने के लिए रत जगा करना नाजाइज व हराम है!

࿐   बहारे शरिअत में है,  मस्जिद में चिराग जलाने या त़ाक़ भरने (यानी मस्जिद या मज़ार के त़ाक़ में चिराग जलाक़र फूल वगैरह चढ़ाना) या फलां बुज़ुर्ग के मजार पर चादर चढ़ाने या 11वीं की नियाज़ दिलाने या गौसे आज़म रजिअल्लाहू तआला अन्ह का तोशा या शाह अब्दुल हक़ रजिअल्लाहू तआला अन्ह का तोशा करने या हज़रत बिलाल बुख़ारी का कूंडा करने या मोहर्रम की नियाज़ या शरबत या सबील लगाने या मिलाद शरीफ़ करने की मन्नत मानी तो यह शरई मन्नत नहीं, मगर यह काम मना नहीं हैं करे तो अच्छा है, हां अलबत्ता इसका खयाल रहे कि कोई बात ख़िलाफ़े शरअ् उसके साथ ना मिलाए!

࿐   मसलन ताक़ भरने में रतजगा होता है, जिसमें कुन्बा (यानी खानदान) और रिश्ता की औरतें इकट्ठा होकर गाती बजाती हैं कि हराम है, या चादर चढ़ाने के लिए बाज़ लोग ताशे बाजे के साथ जाते हैं यह नाजायज है, या मस्जिद में चिराग़ जलाने हैं मैं बाज़ लोग आटे का चिराग़ जलाते हैं, यह ख्वाह मख़्वाह माल ज़ाएअ (बर्बाद) करना है और नजायज है, मिट्टी का चिराग़ काफी है, और घी की भी ज़रूरत नहीं, मक़सूद रोशनी है वह तेल से हासिल है, रहा यह के मिलाद शरीफ़ में फर्श व रोशनी का इंतज़ाम करना और मिठाई तक्सीम करना या लोगों को बुलावा देना और उसके लिए तारीख़ मुकर्रर करना और पढ़ने वालों का खुशुल्हाफ़ी से पढ़ना यह सब बातें जाइज़ हैं, अलबत्ता ग़लत और झूटी रिवायतों का पढ़ना मना है, पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों गुनाहगार होंगे!

📚 बहारे शरीअत जिल्द 2 सफ़ह 317
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 64-65 📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुज़्ज़ीनत यानी बनाव सिंगार का बयान  !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत की मुवाज़ेअ् ज़ीनत क्या हैं,?

࿐   *जवाब :-*  औरत की ज़ीनत की जगह यह हैं,

࿐  1- सर, यह मोज़अ् ताज है, 2- चेहरा, मोज़अ् सुरमा है, 3- गर्दन व सीना, यह हार पहनने की जगह है, 4- कान, मोज़अ् बाली यानी कान में ज़ेवर पहनना है, 5- बाज़ू, तावीज़ वगैरह बांधने की जगह है 6- कलाई, मोज़अ् कंगन है, 7- हथेली, मोज़अ् ख़ातम यानी अंगूठी और मोज़अ् हिना यानी मेंहदी है, 8- पिंडली, यह मोज़अ् पाज़ेब, पायल है, 9- क़दम, मोज़अ् ख़िज़ाब यानी मेंहदी है, 10- बाल को चोटी बनाना और गूंधना है!

࿐  जैसा कि दुर्रे मुख़्तार में है,

अरबी इबारत असल किताब में देखें,

📚 दुर्रे मुख़्तार सफ़ह 528
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 65📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या जिस तरह मर्द को ग़ैर औरत की तरफ़ देखना हराम है, उसी तरह औरतों को भी ग़ैर मर्द की तरफ़ नज़र करना हराम है?

࿐   *जवाब :-*  जिस तरह मर्द के लिए अपनी औरत के अलावा ग़ैर औरत की तरफ़ देखना हराम है, उसी तरह औरतों को भी अपने शौहर और मेहरम (यनी जिनसे निकाह नहीं हो सकता) के अलावा की तरफ़ नज़र करना हराम है!

࿐  जैसा के हदीसे पाक में है, हजरत उम्मे सलमा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से रिवायत है कि मैं और हज़रत मैमूना हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर थीं, के (एक नाबीना सहावी) हज़रत इब्ने मकतूम रज़िअल्लाहू तआला अन्ह सामने से हुज़ूर की ख़िदमत में आ रहे थे तो सरकार ने हम दोनों से फ़रमाया के पर्दा कर लो हज़रत उम्मे सलमा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा फ़रमाती हैं कि मैंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह क्या वह नबीना नहीं हैं, वह हमें नहीं देख सकेंगे, हुज़ूर ने फ़रमाया कि क्या तुम दोनों भी नाबीना हो, क्या तुम उन्हें नहीं देखोगी!,

📗 तिरमिज़ी, किताबुल अदब बाबुल माजा फ़ी एहतेजाबुन्निसा मिनर्रिजाल, जिल्द 4, सफ़ह 356)

࿐  और आला हज़रत अलैहिर्रहमह अजनबी मर्द व औरत का एक दूसरे को देखने के मुताल्लिक़ एक इस्तिफ़्ता के जवाब में तहरीर फ़रमाते हैं, दोनों सूरतों का हुक्म एक है कुछ फ़र्क नहीं,

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 15)

࿐  यानी मर्द के लिए जिस तरह अजनबी औरत को देखना हराम व नजाइज़ है इसी तरह औरत के लिए अजनबी मर्द को देखना भी नाजाइज़ है!

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, औरत का मर्द अजनबी की तरफ़ नज़र करने का वही हुक्म है जो मर्द का मर्द की तरफ़ नज़र करने का है, और यह उस वक़्त है कि औरत को यक़ीन के साथ मालूम हो कि उसकी तरफ़ नज़र करने से शहवत नहीं पैदा होगी और उसका शुबा भी हो तो हरगिज़ नज़र न करे!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 433)

࿐ अल इन्तिबाह, लिहाज़ा हमारी प्यारी बहनों को चाहिए कि वह अपने शौहर और मेहरम के अलावा मर्द अजनबी की तरफ़ हरगिज़ निगाह ना करें, अक्सर औरतें यही समझती है कि सिर्फ़ मर्दों को हमें देखने की इजाज़त नहीं, लेकिन हम तो देख ही सकते हैं, 
नहीं ऐसा हरगिज़ नहीं! पर्दे का हुक्म दोनों तरफ़ से है, ना यह कि सिर्फ़ मर्द के लिए हैं!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 68 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरत औरत के सतर यानी नाफ़ से घुटने तक नज़र कर सकती हैं?

࿐   *जवाब :-*  जिस तरह मर्द मर्द के सतरे औरत की तरफ़ नज़र नहीं कर सकता, इसी तरह औरत को भी औरत के नाफ़ के नीचे से घुटने तक देखना मना है और अगर अंदेशा ए शोहवत हो तो बाक़ी आज़ा की तरफ़ देखना भी जाइज़ नहीं!

࿐  हदीसे पाक में है, हजरत अबू सईद खुदरी रिवायत करते हैं कि आका सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, मर्द को मर्द और औरत को औरत के सतरे औरत की तरफ़ देखना दुरुस्त नहीं!

📚 मिश्कात सफ़ह 268)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, औरत का औरत को देखना उसका वही हुक्म है जो मर्द को मर्द की तरफ़ से नज़र करने का है, यानी नाफ़ के नीचे से घुटने तक नहीं देख सकती, बाक़ी आज़ा की तरफ़ नज़र कर सकती है, बशर्त यह के शोहवत का अंदेशा ना हो!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 4, सफ़ह 443
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  मुस्लिमा औरत का काफ़िरा के सामने सतर (शर्मगाह, गुप्तांग) खोलना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*   मुसलमान औरतों को काफिरा औरतों के सामने सतर खोलना हरगिज़ दुरुस्त नहीं, यूं ही नेक औरतों को चाहिए कि वह बदकार औरत के सामने अपने दुपट्टे को ना उतारें क्योंकि वह उसे देखकर मर्दों के सामने उसकी हुस्न व ख़ूबसूरती, बनाव सिंगार, और शक्ल व सूरत का ज़िक्र करेगी!

࿐  फ़तावा आलमगीरी में है,
अरबी इबारत असल किताब में देखें........

📚 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 327)

࿐  और आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, बाज़ारी, फाजिरा, फ़ाहिशा औरतों, रंडियों, डोमनियों को हरगिज़ हरगिज़ क़दम ना रखने दें कि उनसे हद्दे शरई की पाबंदी मुहाल आदि है, बेहयाइयों, फ़हश शराइयों की ख़ोगर हैं, मना करते करते अपना काम कर गुजरेंगी, बल्के शरीफ़ ज़ादियों का उन आवारा बद वज़ो के सामने आना ही सख्त बेहूदा व बेजा है, सोहबत बद ज़हरे क़ातिल है, और औरतें नाज़ुक शीशियां जिनके टूटने को अदना ठेस बहुत होती है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 78-निस्फ़ आखिर)

࿐  और अल्लामा अमजद अली अलैहिर्रहमह रक़मतराज़ हैं, औरत सालेहा को यह चाहिए कि अपने को बदकार औरत के देखने से बचाए, यानी उसके सामने दुपट्टा वगैरह ना उतारे, क्योंकि वह उसे देखकर मर्दो के सामने उसकी शक्ल व सूरत का ज़िक्र करेगी, मुसलमान औरत को यह भी हलाल नहीं के काफिरा के सामने अपना सतर (शर्मगाह, गुप्तांग) खोले!

📗 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 443)

࿐ अल इन्तिबाह, आजकल देखा जाता है के बहुत से घरों में काफिरा औरतें आती हैं और बीबियां उनके सामने इस तरह मवाज़े सतर खोले हुए होती हैं जिस तरह मुस्लिमा के सामने रहती हैं, उनको इससे बचना लाज़िम है, अक्सर जगह दाइयां काफिरा होती हैं, और वह बच्चा जनाने की ख़िदमत अंजाम देती हैं, अगर मुसलमान दाईयां मिल सकें तो काफिरा से हरगिज़ यह काम ना कराया जाए के काफ़िरा के सामने उन आज़ा के खोलने की इजाज़त नहीं!
           
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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरत मर्द निकाह करने के इरादे से एक दूसरे को देख सकते हैं,?

࿐   *जवाब :-*  निकाह करने के इरादे से औरत का मर्द को और मर्द का औरत को देखना जाइज़ है!

࿐  जैसा कि हदीसे पाक में है, हज़रत अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं कि, हज़रत मुग़ीरह बिन शअ्बा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने एक औरत से निकाह करने का इरादा किया तो नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उनसे फ़रमाया, जाओ उसे देखलो क्योंकि इससे शायद अल्लाह तआला तुम्हारे दिलों में मुहब्बत पैदा करदे, उन्होंने ऐसा ही किया, फिर उससे निकाह कर लिया, बाद में उन्होंने हुज़ूर से अपनी बीवी की मुवाफ़िक़त व मुहब्बत और उम्दा ताल्लुक का ज़िक्र किया!

📗 इब्ने माजा, सफ़ह 134)

࿐  और तिरमिज़ी शरीफ़ की हदीसे पाक इस तरह है कि,  जिससे निकाह करना चाहते हो उसको देखलो के यह बक़ा ए मुहब्बत का ज़रिया होगा!

📚 तिरमिज़ी शरीफ़ किताबुन्निकाह, जिल्द 2, सफ़ह 346)

࿐  और औरत उस मर्द को जिसने पैग़ामे निकाह भेजा है देख सकती है, अगरचे शहवत का अंदेशा हो!

࿐  रद्दुल मोहतार में है,

अरबी इबारत असल किताब में देखें,.......

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, सफ़ह 532)

࿐   और बहारे शरिअत में है इसी तरह औरत उस मर्द को जिसने उसके पास पैग़ाम भेजा है देख सकती है, अगरचे अंदेशा ए शहवत हो, मगर देखने में दोनों की यही नियत हो के हदीस पर अमल करना चाहते हैं!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 447
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  70-71 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  नौजवान और बुढ़िया औरत पीर के सामने चेहरा खोल कर आ सकती है या नहीं.?

࿐   *जवाब :-*  औरत चाहे जवान हो या बुढ़िया गैर मेहरम अजनबी मर्द चाहे पीर हो या ग़ैरे पीर उनके सामने चेहरा खोलकर आना जाना मना है, क्योंकि बाबे पर्दा में पीर और ग़ैरे पीर सब का हुक्म यकसां है, लेकिन अगर औरत इस क़दर बूढ़ी हो गई के अब वह ख्वाहिश नहीं रखती तो पीर वगैरा के सामने चेहरा खोलकर जाने में कोई मुज़ायक़ा नहीं!

࿐   जैसा के दुर्रे मुख़्तार में है अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिजा हो,

📚 दुर्रे मुख्तार जिल्द 9 सफ़ह 529)

࿐   और आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, पर्दा के बाब में पीर व ग़ैरे पीर हर अजनबी का हुक्म यकसां है, जवान औरत को भी चेहरा खोलकर सामने आना मना है, और बुढ़िया के लिए जिससे एहतेमाले फ़ितना ना हो मुज़ायक़ा नहीं, मगर ऐसे खानदान की ना हो जिसका यूं भी सामने आना उसके औलिया के लिए बाइसे नंग व आर या ख़ुद उसके वास्ते वजहे अंगुश्त नुमाई हो!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 102, निस्फ़ अव्वल
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  71 📚*

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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत के अगर चेहरा पर बाल निकल आएं तो नोचना कैसा है.?

࿐   *जवाब :-*  अगर औरत के चेहरे पर दाढ़ी या मूंछ के बाल निकल आएं तो उनका नोचना जाइज़ बल्के मुस्तहब है!

࿐  जैसा के दुर्रे मुख़्तार में है अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिजा हो......

📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9, सफ़ह 536,

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रमह फरमाते हैं औरत को दाढ़ी मूंछ के बाल निकल आए तो उनका नोचना मुस्तहब है कि कहीं उसके शौहर को उससे नफरत ना पैदा हो!

📚बहारे शरीअत जिल्द 3, सफा 449
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  72📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत को सर के बाल बाज़ू, गला, पेट, और पिंडली वगैरह खोलकर ग़ैर मेहरम के सामने आना कैसा है,.?

࿐   *जवाब :-*   औरत को अपने बदन के उन मज़कूरा बाला (यानी जो ऊपर ज़िक्र किये गए) आज़ा को खोल कर ग़ैर मेहरम के सामने आना हराम है!

࿐  आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, औरत अगर किसी ना'मेहरम के सामने इस तरह आए कि उसके बाल और गले और गर्दन या पीठ, पेट या कलाई का कोई हिस्सा ज़ाहिर हो या लिबास ऐसा बारीक हो कि उन चीजों से कोई उसमें से चमके तो यह बिल इज्मा हराम है, और ऐसी वज़अ् व लिबास की आदी औरतें फ़सिक़ात हैं, और उनके शौहर अगर इस पर राज़ी हों और ताक़त होने के बावजूद औरत को उससे मना ना करें तो देवस (यानी बे ग़ैरत, बेशर्म) हैं और एसों को इमाम बनाना गुनाह है!

࿐  अगर तमाम बदन सर से पांव तक मोटे कपड़े में खूब छुपा हो सिर्फ़ मुंह की टिकली खुली हुई है, जिसमें कोई हिस्सा कान का या ठोड़ी के नीचे का या पेशानी के बाल का ज़ाहिर नहीं तो अब फतवा उससे भी मुमा'नअत पर है, और औरत का ऐसा रहना शौहर की रज़ा से हो तो उसके पीछे भी नमाज़ पढ़ने से परहेज़ ज़रूरी है के फ़ित्ना को ख़त्म करना शरीयत के वाजिबात में से अहम वाजिब है!

📗 इरफान ए शरिअत जिल्द 2 सफ़ह 4
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  72-73📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत को मायके में पर्दा की ज़रूरत है या नहीं?

࿐   *जवाब :-* औरत मायके में हो या ससुराल में या और कहीं हर हाल में ग़ैर मेहरमों से पर्दा करना वाजिब है, और बेपर्दा निकलने से बचना लाज़िम है!

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है,
तर्जुमा---- तुम सब अपने घरों में ठहरी रहो और बेपर्दा ना रहो अगली जाहिलयत की  बेपर्दगी की तरह!

📔 पारा 22, सूरहतुल अहज़ाब आयत 33)

࿐   और हदीस शरीफ़ में है हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फरमाया, औरत औरत है (पर्दा में रखने की चीज़ है) जब वह बाहर निकलती है तो शैतान उस औरत को घूरता है!

📗 तिर्मीजी किताबुर्रिज़ा जिल्द 2 सफ़ह 356)

࿐  अल इन्तिबाह, लेकिन आजकल उमूमन औरतें ससुराल में तो पर्दा करती हैं, लेकिन मायके में ज़रा भी पर्दा नहीं करतीं, लिहाज़ा औरत को चाहिए के ससुराल की तरह मायके में भी पर्दा करे, अगर ना करे तो वालिदैन और भाई वगैरह को चाहिए कि सख़्ती के साथ पर्दा करने की ताकीद करें, वरना गुनाहगार होंगे!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  73-74 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  वह कौन-कौन अशख़ास हैं जिनसे निकाह करना हराम और वह कौन-कौन हैं कि जिन से परदा करना दुरुस्त नहीं, यानी करना और ना करना बराबर है,?

࿐   *जवाब :-* पर्दा करना सिर्फ़ उनसे दुरुस्त नहीं जो औरत पर नसब की वजह से हमेशा हमेश के लिए हराम हों, किसी सूरत में भी उनसे निकाह मुमकिन ना हो!

࿐  आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं,  पर्दा सिर्फ़ उनसे ना दुरुस्त हैं, जो बा सबब नसब के औरत पर हमेशा हमेश को हराम हों और कभी किसी हालत में उनसे निकाह नामुमकिन हो जैसे बाप, दादा, नाना, भाई, भतीजा, भांजा, चचा, मामू, बेटा, पोता, नवासा, इनके सिवा जिनसे निकाह कभी दुरुस्त है, अगरचे फ़िलहाल नजाइज़ हो, जैसे बहनोई, जब तक बहन जिंदा है, या चचा, मामू, खाला, फूफी के बेटे, या जेठ, देवर, इनसे परदा वाजिब है!

࿐   और जिन से निकाह हमेशा को हराम है, कभी हलाल नहीं हो सकता मगर वजहे हुरमत अलाक़ा ए नसब नहीं बलके अलाक़ा ए रज़ाअत हैं, जैसे दूध के रिश्ते से बाप, दादा, नाना, भाई, भतीजा, भांजा, चचा, मामू, बेटा, पोता, नवासा, परदा करना है, या अलाक़ा ए सहर हो जैसे खुसर, सास, दामाद, बहू, इन सबसे ना पर्दा वाजिब है ना नादुरुस्त है करना ना करना दोनों जाइज़ और बाहालते जवानी या एहतेमाले फ़ित्ना पर्दा करना ही मुनासिब खुसूसन दूध के रिश्ते में के आवाम के खयाल में इसकी है हैबत बहुत कम होती है जिनसे निकाह हराम है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 237, निस्फ़ अव्वल
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  74 📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरत को देवर से पर्दा करना वाजिब है.?

࿐   *जवाब :-*  औरत को देवर से पर्दा करना वाजिब बल के फ़र्ज़ हैं, इसलिए के देवर मौत है!

࿐   जैसा के हदीसे पाक में है, हज़रत उक़बा बिन आमिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, औरत के पास जाने से एक शख़्स ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह, देवर के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं, आपने फ़रमाया के देवर मौत हैं!

📚 मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 268)

࿐    अल इन्तिबाह, लेकिन आजकल औरतें देवर से बहुत ज़्यादा हंसी मज़ाक और मीठी मीठी दिल्लगी बातें और साथ ही साथ फ़हश कलाम (यानी गंदी बातें) और बेहूदा मज़ाक भी करती हैं, और यह समझती हैं कि देवर से पर्दा है ही नहीं, बल्कि बाज़ औरतें तो यहां तक कहती हैं कि देवर का तो आधा हक़ है, उन से कैसा पर्दा अगर उनसे ही पर्दा करेंगे तो बचेगा ही कौन, जिससे कुछ बातें करें, यह खयाल बहुत ही गलत है, क्योंकि हदीसे पाक में देवर को मौत कहां गया है, देवर से बचना तो सब से ज़्यादा ज़रूरी है, ध्यान से पढ़ लीजिए जो औरतें अपने देवरों से पर्दा नहीं करती हैं, वो अल्लाह व  रसूल की वईदों में गिरफ़्तार और इन्दश्शरअ सख़्त गुनाहगार होती हैं!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  75 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरत को बहनोई से पर्दा करना लाज़िम है,?

࿐   *जवाब :-*  बहनोई से परदा करना बेहद जरूरी बल्कि वाजिब है, क्योंकि बहनोई जिस तरह से घर के अंदर आ जा सकता है, उठ बैठ सकता है, दूसरा कोई इतनी हिम्मत नहीं कर सकता!

࿐   इसीलिए तो सय्यिदी सरकार आला हज़रत बहनोई के बारे में फ़रमाते हैं के, बहनोई का हुक्म शरअ् में मिस्ले हुक्म अजनबी बल्कि उससे भी ज़ाइद कि वह जिस बे तकल्लुफ़ी से आमदो रिफत, नशिस्त व बर्खास्त कर सकता है, ग़ैर शख़्स की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती!.

࿐   लिहाज़ा सही हदीस में है सहाबा ए किराम ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह  जेठ, देवर, और उनके मिस्ल रिश्तादाराने शौहर का क्या हुक्म है, फ़रमाया यह तो मौत हैं, ख़ुसूसन हिंदुस्तान में बहनोई के बा तबा रुसूमे कुफ़्फ़ार हिंद साली, बहनोई में हंसी हुआ करती है, यह बहुत जल्द शैतान का दरवाज़ा खोलने वाली है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 72 निस्फ़ आख़िर)

࿐   लिहाज़ा औरत को चाहिए के बहनोई से बजाएं हंसी मज़ाक के खूब पर्दा करे के बहनोई वगैरह देवर के मिस्ल औरत के हक में मौत हैं, और उनसे फ़ित्ना का बहुत ज़्यादा रिवाज है, जिसका हम आए दिन अख़बार की सुर्खियों में बाहम भाबी, देवर का और कभी औरत का बहनोई के साथ और दीगर हज़रात के साथ फ़रार होने (भागने) की खबरें मुलाहिज़ा करते हैं, यह सब पर्दा ना करने का और पर्दा से बहुत ज़्यादा दूर रहने का नतीजा है!

🤲🏻 अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमारी बहनों "और बेटियों" को पर्दा करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए आमीन, या रब्बल आलमीन, आमीन बिजाहिस्सय्यिदिल मुरसलीन सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  75-76📚*

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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरत को नाबीना (यानी अंधे) से पर्दा करना ज़रूरी है?

࿐   *जवाब :-*  औरत को अंधे से परदा करना लाज़िम है, क्योंकि वह भी मिस्ले अजनबी के हैं, और रसूले करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उम्मेहातुल मोमिनीन अज़वाजे मुतह्हरात रज़िअल्लाहू तआला अन्हीन को हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उम्मे मकतूम नाबीना सहाबी से पर्दा करने का हुक्म फ़रमाया, जैसा के मिश्कात बाबुन्नज़र में है के,
एक दिन रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम अपनी दो बीवियों हज़रत उम्मे सलमा और मैमूना रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा के पास तशरीफ़ फरमा थे कि अचानक अब्दुल्लाह इब्ने उम्मे मकतूम रज़िअल्लाहू तआला अन्ह जो कि नाबीना थे, आ गए तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उन दोनों बीवियों से फ़रमाया, उनसे पर्दा करो, उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह, क्या वह नाबीना नहीं, वह हमें नहीं देख सकेंगे, तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया क्या तुम दोनों भी नाबीना हो क्या तुम उन्हें नहीं देखोगी!

📔 मिश्कात सफ़ह 269)

࿐    इस हदीस शरीफ़ से मालूम हुआ के सिर्फ़ यही ज़रूरी नहीं कि मर्द औरत को ना देखे बल्कि यह भी ज़रूरी है कि अजनबी औरत ग़ैर मर्द को ना देखे!

࿐   देखिए यहां मर्द नाबीना सहाबी हैं मगर पर्दा का हुक्म दिया जा रहा है, ग़ौर कीजिए कि वह ज़माना निहायत खैरो बरकत का और यह ज़माना शर व फ़साद का उस वक़्त आम मर्द परहेज़गार और अब निहायत आज़ाद और फ़ुस्साक़ व फ़ुज्जार, उस वक़्त आम औरतें पाक दामन, हया वाली शर्मीली, और अब आम औरतें बेगैरत, आज़ाद और बेशर्म जैसा उस वक़्त औरतों से पर्दा कराया गया तो क्या यह वक़्त उस वक़्त से अच्छा है इस वक़्त तो इतना फ़ित्ना है "अल्लाह की पनाह" और भी ज़्यादा पर्दा करना ज़रूरी बल्के वाजिब है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  76-77📚*

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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  सास अपने दामाद से और बहू अपने ख़ुसर (ससुर) से पर्दा करे या नहीं,?

࿐   *जवाब :-*   सास अगर जवान है तो दामाद से और ख़ुसर अगर जवान है तो बहू को ख़ुसर से पर्दा करना ही ज्यादा मुनासिब है, और अगर फ़ित्ना का गुमान ग़ालिब हो तो पर्दा करना क़रीब वाजिब है!

࿐  आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, ख़ुसर, सास, दामाद, बहू, उन सब से ना पर्दा वाजिब ना नादुरुस्त है, करना ना करना दोनों जाइज़ और ब हालते जवानी या एहतेमाले फ़ित्ना पर्दा करना ही मुनासिब!

📗 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 237,निस्फ़ अव्वल)

࿐  अल इन्तिबाह, लेकिन आज के इस फ़ित्ना परवर दौर में नौजवान सास को दामाद से और जवान ख़ुसर से बहू को पर्दा करना बहुत ही ज़रूरी है, और फ़ित्ना न हो तो वाजिब नहीं, मगर क़रीब बवाजिब तो है ही, वरना नतीजतन वही होगा जैसा कि आजकल अखबारों की सुर्खियों में मुलाहिजा करते हैं, कि फलां जगह दामाद सास को भगा ले गया और फलां जगह बहू अपने ससुर से शादी करने के लिए तैयार है, इस तरह ना जाने कितने घर दुनिया ही में जहन्नम बन जाते हैं, और यह सब पर्दा न करने का दैन है!
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  देवर, जेठ, बहनोई, और खाला, फूफी, चचा और मामू के लड़कों और ग़ैर मेहरम रिश्तेदारों से ज़्यादा पर्दा की ताकीद क्यों,.?

࿐   *जवाब :-*  इन मज़कूरा अशख़ास से पर्दा की ताकीद इसलिए ज्यादा है कि यह आपस के मेलजोल की वजह से कोई खौफ नहीं रखते हैं, और घर में आते जाते बे तकल्लुफ़ हो जाते हैं, उनसे ख़तरा ज़्यादा है, इसलिए उनसे पर्दा ज़्यादा लाज़िम है!,

࿐ आला हज़रत अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, जेठ, देवर, बहनोई, फूफा खालू, चचाज़ाद, मामूज़ाद, फूफाज़ाद, खालाज़ाद भाई, यह सब लोग औरत के लिए महज़ अजनबी हैं, बल्कि उनका ज़रर (नुक़सान) निरे बेगाने शख़्स के ज़रर (नुक़सान) से ज़ाइद है कि महज़ ग़ैर आदमी घर में आते हुए डरेगा और यह आपस के मेलजोल के बाइस ख़ौफ़ नहीं रखते, औरत निरे अजनबी शख़्स से दफ़अतन मेल नहीं खा सकती और उनसे लिहाज़ टूटा होता है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 196,निस्फ़ अव्वल
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरतों को हिजड़ों से पर्दा करना लाज़िम है.?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को मुख़न्नसों, हिजड़ों से पर्दा करना लाज़िम है, क्योंकि उन से पर्दा करना ऐसे ही है जैसे कि मर्दों से, और इसलिए भी के यह बदकार हैं और मर्द भी हैं, चुनाचे एक हिजड़े को नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने घर से बाहर निकाल दिया था,

࿐   जैसा के हदीसे पाक में है कि हजरत उम्मे सलमा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा रिवायत करती हैं कि नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम उन दिनों आपके पास थे,और घर में एक मुख़न्नस (हिजड़ा) था तो अब्दुल्लाह बिन अबी उमैया जो के उम्मे सलमा के भाई हैं, उनसे कहता है कि अगर तुमको अल्लाह तआला ने ताइफ़ में फ़तेह दी तो मैं तुमको ग़ीलान की ऐसी लड़कियां दिखाऊंगा जो चार से आती हैं और आठ से जाती हैं,

فقال النبى صلى الله تعالى عليه و سلم لا يدخلن هوء لاء عليكم،

࿐    तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि यह तुम्हारे पास दाखिल ना होने पाए,

📚 मिश्कातुल मुसाबिह सफ़ह 270)

࿐    और फ़तावा आलमगीरी में है,नेक बीवी को चाहिए के बदकार औरत को अपनी तरफ़ नजर ना करने दे, तो जब बदकार औरत से पर्दा का हुक्म है, हालांके औरत का औरत को देखना बनिस्बत मर्द के देखने के उख़फ़ है, और हिजड़े, मुख़न्नस यह तो बदकार भी हैं, और मर्द भी हैं, इसलिए इसमें उससे ज़्यादा सख़्त हुक्म होगा!

࿐    और हुज़ूर सदरूश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं हिजड़ों और मुख़न्नसों से भी औरत को पर्दा करना वैसा ही है जैसे और मर्दों से कराया जाता है!

📚 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4, सफ़ह 95
           
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࿐   *सवाल :-*  ज़ैद की जवान चच्ची (चाची) को ज़ैद से पर्दा करना चाहिए या नहीं, और ज़ैद को उसके पास तन्हाई में जाना कैसा,?

࿐   *जवाब :-*  जवान चची को ज़ैद से पर्दा करना वैसे ही लाजिम है, जैसे के दीगर अजनबी मर्दों से, इसलिए के चची उनमें से नहीं के जिस से निकाह करना हराम हो बल्के चची से तो निकाह जाइज़ हैं, और जब वह जवान है तो तन्हाई में उसके पास जाना भी ना चाहिए!

࿐  हदीसे पाक में है, हज़रत उक़बा बिन आमिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, औरतों के पास जाने से बचो, किसी ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह देवर और उसके मिस्ल रिश्तेदाराने शौहर के मुताल्लिक़ क्या हुक्म है, तो आपने फ़रमाया वह तो मौत हैं!

📚 मिश्कात बाबुन्नज़र..... सफ़ह 268)

࿐  नीज़ हदीसे पाक में है,हज़रत उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया,
जब मर्द औरत के साथ तन्हाई में होता है तो तीसरा शैतान होता है!

📚 तिरमिज़ी शरीफ़ जिल्द 4 सफ़ह 67)

࿐  खुसुसन उस वक़्त जबके चचा प्रदेश में हो तो उसके पास तन्हाई में होना और ज़्यादा बुरा है!

࿐  और हज़रत जाबिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, जिन औरतों के शौहर गायब हों उनके पास ना जाओ के शैतान तुम में खून की तरह तैरता है, (यानी शैतान को बहकाने में देर नहीं लगती, उस वक़्त फ़ित्ना में वाक़ेय होना वईद नहीं!

📚 तिरमिज़ी शरीफ़ जिल्द 2 सफ़ह 391)

࿐  इन आहादीस से मालूम हुआ के औरत को अपने जेठ और उसके बेटे, यूंही देवर और उसके बेटे से पर्दा करना लाज़िम है, चची मुहारिम से नहीं, कि जिससे निकाह ना हो सके बल्के चची से निकाह करना जाइज़ है, लेकिन आज अक्सर लोग इससे जाहिल हैं!
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बालिग़ दूल्हा के बदन पर मेहरम और ग़ैर मेहरम औरतें उबटन (बक्वा) मला करती हैं, तो क्या हुक्म है.?

࿐   *जवाब :-*  बालिग़ दूल्हा के बदन पर औरतों का उबटन मलना नाजाइज़ है, औरत ख्वाह मेहरम हो या ग़ैरे मेहरम, हां अगर (दूल्हा) नाबालिग हो, और उमर 9---10 साल की हो तो कोई मुमानअत और गुनाह नहीं!

࿐   जैसा के आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, दूल्हा की उम्र 9---10 साल की हो तो अजनबी औरतों का उसके बदन में उबटन मलना भी गुनाह व ममनूअ् नहीं हां बालिग़ के बदन में ना मेहरम औरतों का मलना नाजाइज़ है, और बदन को हाथ तो मां भी नहीं लगा सकती यह हराम और सख्त हराम है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 170, निस्फ़ आखिर)

࿐  अल इन्तिबाह, लिहाज़ा मालूम हुआ के आज जो मेहरम और ग़ैर मेहरम औरतें नौजवान बालिग़ नौशा (दूल्हा) को उबटन लगाती हैं जैसे के मां, खाला, फूफी, भाबी और चची और नाई की औरतें वगैरह यह नाजाइज़ व हराम और गुनाह है!

🤲🏻 अल्लाह हमें शरीअते ताहिरा पर अमल करने की तौफ़ीक़ दे!..✍🏻 आमीन
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या मर्द का किसी अजनबी औरत को और औरत का अजनबी मर्द को जान-बूझकर देखना जब्के पहली नज़र हो मुआफ़ है,?

࿐   *जवाब :-*  मर्द किसी अजनबी औरत को या औरत किसी अजनबी मर्द को  बिलक़स्द जानबूझकर देखे तो मुआफ़ नहीं बल्कि गुनाह है, हां अगर बिलाक़स्द बे इरादा पहली नज़र पड़ जाए तो मुआफ़ है, कोई गुनाह नहीं, मगर यह नहीं के बराबर देखता रहे, बल्कि फ़ौरन नज़र हटा ले!

࿐  सही मुस्लिम में हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कहते हैं कि मैंने अचानक नज़र पड़ जाने के मुताल्लिक़ दरयाफ़्त किया, हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हुक्म दिया के अपनी निगाह फेर लो!

📚 मुस्लिम किताबुल आदाब, बाबुन्नज़रुल्फ़ाजिरह सफ़ह 1190,
📗 मिश्कात सफ़ह 268)

࿐  और इमाम अहमद व अबू दाऊद व तिरमिज़ी व दारमी ने हज़रत बुरीदा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हज़रत अली रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से फ़रमाया, ए अली एक नज़र के बाद दूसरी नज़र ना करो (यानी अगर अचानक बिला क़स्द किसी औरत पर नज़र पड़ जाए तो फ़ौरन नज़र हटा ले और दोबारा नज़र ना करे) कि पहली नज़र जाइज़ है और दूसरी नज़र जाइज़ नहीं!

📚 मिश्कात बाबुन्नज़र सफ़ह 269)

࿐  और हदीसे पाक में है, हजरत इमाम अहमद ने अबू अमामा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के, जो मुसलमान किसी औरत की खूबियों की तरफ़ पहली दफ़ा (बार) नज़र करे, यानी बिलाक़स्द फिर अपनी आंख मीच ले, यानी हटा ले या नज़र झुका ले, अल्लाह तआला उसके लिए ऐसी इबादत पैदा कर देगा जिसका मज़ा उसको मिलेगा!

📚 अल मुस्तनदुल इमाम अहमद बिन हंबल, जिल्द 9, सफ़ह 18--19)

࿐  इन अहादीस से मालूम हुआ कि जानबूझकर ग़ैर मर्द व औरत का एक दूसरे की तरफ़ नज़र करना हराम व गुनाह है, अगरचे पहली नज़र हो, हां अगर बगैर क़स्द व इरादा के इत्तिफ़ाक़िया अचानक नज़र पड़ जाए तो, पहली नज़र माफ़ है, फिर निगाह ना हटाया और मुसलसल (लगातार) देखता रहा तो गुनाहगार होगा कि अचानक निगाह पड़ते ही फ़ौरन हटा लेने का हुक्म है!
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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*⚠️ ये सवाल का जवाब तक़रीबन 4, पोस्टों में मुकम्मल होगा*

࿐   *सवाल :-* औरतों को बेपर्दा घूमना और अपनी हुस्न व ख़ूबसूरती, बनाव, सिंगार और ज़ेब व ज़ीनत का दिखाना और मर्द अजनबी को उसकी तरफ़ देखना और बदनिगाही करना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  हराम व नाजाइज़ है! अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है, तर्जमा--- मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की हिफाज़त करें, यह उनके लिए बहुत सुथरा है, बेशक अल्लाह को उनके कामों की ख़बर है, और मुसलमान औरतों को हुक्म दो के अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और पारसाई की हिफाज़त करें और अपना बनाव, सिंगार ना दिखाएं मगर जितना खुद ही ज़ाहिर है और दुपट्टे अपने गिरेबानों पर डाले रहें और अपना सिंगार जाहिर ना करें मगर अपने शौहरों पर! 

📚 कंज़ुल ईमान पारा 18, सूरह नूर, रुकू 10, आयत 30--31)

࿐  इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने साफ-साफ हुक्म दिया के मर्द अपनी निगाहें नीचे रखें, यानी बद निगाही से बचें और अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की हिफाज़त करें, यानी ज़िना की तरफ़ ना जाएं, इसी तरह औरतों को भी हुक्म फ़रमाता है कि वह अपनी निगाहें नीचे रखें, और अपना बनाव, सिंगार खास अपने शौहर के लिए ही करें ना के ग़ैर मर्दों के लिए, और सीने पर दुपट्टा डाले रहें!

࿐  लेकिन आजकल नौजवानों में तरह-तरह की बुराइयां जन्म ले रही हैं, जिस की सबसे बड़ी वजह उनकी दीनी तालीम से दूरी है, इसके अलावा फिल्में देखने का फैशन, फ़हश (गंदी) नाविल (किताबें) और गंदी तसावीर (फोटोज़) से पर मैगज़ीन पढ़ने का आम चलन और बिलखुसूस औरतों और कुंवारी लड़कियों का बेपर्दा फैशन करके सड़कों पर खुलेआम घूमना, और अब तो हाल यह हो गया है कि जब स्कूलों और कालेजों की लड़कियां सुबह व शाम ज़र्क़ वर्क़ लिबास में रास्तों से आपस में हंसी मज़ाक़ दिल्लगी करती हुईं, और जोर-जोर से बातें करती हुईं और ऊपर से इत्र और ख़ुशबू लगाए और दुपट्टा सर से उतारे हुए निकलती हैं, तो मालूम होता है कि शायद हिंदुस्तान में पेरिस आ गया है, और दर्दमंद दिल रखने वाले खून के आंसू रोते हैं!

࿐  अकबर इलाहाबादी ने क्या खूब कहा है, बेपर्दा मुझको आईं नज़र चंद बीबियां, अकबर ज़मीन में ग़ैरते क़ौमी से गड़ गया, पूछा जो मैंने आप का पर्दा किधर गया, कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दो के पड़ गया!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  83-84 📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को बेपर्दा घूमना और अपनी हुस्न और खूबसूरती बनाव सिंगार और जेबों ज़ीनत का दिखाना और मर्द अजनबी को उसकी तरफ़ देखना और बद निगाही करना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  आज के मॉडर्न नौजवान ग़ैर औरतों को देखने, छूने और छेड़छाड़ करने जैसे गुनाहों को गुनाह ही नहीं समझते बलके उसको फैशन और मॉडर्न कल्चर का नाम देकर मामूली बात समझते हैं, और कुछ अहमक़ व बेवकूफ़ लड़कियों को तो इस क़दर घूरते हैं कि गोया वह अपना माद्दा ए मनू यह लड़की के पेट में ही डाल देंगे और मौजूदा दौर की अक्सर फैशन परस्त लड़कियां भी किसी तरह लड़कों से कम नहीं, वह लड़कों को तो ऐसा घूरती हैं गोया वह आंखों आंखों से ही हामला होना चाहती हैं!

࿐   और कुछ हमारे नौजवान तो पेशावर औरतों के पास जाने में भी कोई शर्म व हया तक महसूस नहीं करते बल्कि उसको मर्दानगी का सुबूत समझते हैं और जो शख्स यह सब नहीं करता वह इन अय्याशों की नज़र में बेवकूफ़, बुजदिल, नामर्द और ना जाने क्या क्या समझते हैं हालांकि इनदश्शहरअ यह सब नाजाइज़ और गुनाह है!

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है,
तर्जमा--- और बेहयाइयों के पास ना जाओ, जो उनमें खुली हैं और छुपी हैं!

📚 कंज़ुल ईमान पारा 8, सूरहतुल अनआम रुकू 6, आयत 152)

࿐   बद निगाही में मर्द और औरतें दोनों क़ुसूरवार हैं, और गुनाह में बराबर के शरीक व हक़दार हैं मर्द तो इस वजह से कि वह उन औरतों से बदनिगाही करते हैं, और औरतें इस वजह से के वह बेपर्दा सड़कों पार्कों और शाहराहों पर खुलेआम घूमती हैं ताकि मर्द उन्हें देखें!

࿐  हदीसे पाक में है, बहक़ी ने हसन बसरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की, कहते हैं मुझे यह ख़बर पहुंची के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया,जिस ग़ैर औरत को जानबूझकर देखा जाए और जो औरत अपने को जानबूझकर ग़ैर मर्दों को दिखाए, तो उस मर्द और औरत पर अल्लाह की लानत है!

📗 मिश्कात, बाबुन्नज़र, सफ़ह 270)
📘 शुएबुल ईमान, बाबुल हया, जिल्द 6, सफ़ह 392)

࿐  ग़ौर कीजिए क़ुरआन ने ज़ीनत को किसी उज़ू के साथ ख़ास नहीं किया बल्कि आम ऐलान फरमाया ताके हायादार मोमिना औरत, पारसा सालेहा औरत, नेक बख़्त नेक तैनत औरत, जब क़ुरआन का हुक्म सुनेगी तो अपनी हर ज़ीनत को गैरों से छुपा कर रखेगी, अपने नाज़ व अंदाज को पर्दे में रखेगी, अपनी ज़ीनत व ख़ूबसूरती और आराइश व ज़ेबाइश को गैरों की निगाहों से बचाए रखेगी, और जब औरत पर्दे का इंतज़ाम व इनसिराम करती रहेगी तो फिर बुराइयां जन्म नहीं ले सकतीं, बेहयाइयां पैदा नहीं हो सकतीं!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  84-85 

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को बे पर्दा घूमना और अपनी हुस्न व ख़ूबसूरती, बनाव सिंगार और जेबों ज़ीनत का दिखाना और मर्द अजनबी को उसकी तरफ़ देखना और बदनिगाही करना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  ना ज़िना बिर्रज़ा (अपनी मर्ज़ी से) हो सकता है, और ना ज़िना बिल जबर (जबरदस्ती) हो सकता है, ना बदफ़ालियां हो सकती हैं, और ना हराम कारियां हो सकती हैं क्यों, इसलिए के, पर्दा-बुरी नज़रों के लिए दीवारे आहिन है पर्दा-तहफ़्फ़ुज़ व पारसाई के लिए मज़बूत क़िला हैपर्दा-उफ़त व पाकबाज़ी के लिए ज़ीनत व ज़ेबाइश है!

࿐  पर्दा-पारसाई की पहचान है, पर्दा-मोमिना औरत की शान है, पर्दा-सैय्यदा फ़ातिमा ज़ैहरा की सुन्नत है, पर्दा-वस्फ़ इम्तियाज़ और तक़ाज़ा ए फ़ितरत है, पर्दा-आईने (क़ानूने) इस्लाम और नज़रिया ए क़ुरआन व सुन्नत है, पर्दा-ख़ूबसूरती की ज़मानत है, पर्दा-हुक्मे शरिअत है, पर्दा-रज़ा ए इलाही का ज़रिया है, पर्दा-ख़ुशनूदी ए मुस्तफ़ा का सबब है!

࿐  शरअ् ने पर्दे का हुक्म देकर औरतों को ज़लील नहीं बल्कि उनकी इज़्ज़त व आबरू में चार चांद लगा दिया है, इसलिए के औरत के पास हुस्न व ख़ूबसूरती आराइश व ज़ेबाइश की ज़ीनत है, औरत के पास इज़्ज़त व आबरू का ख़ज़ाना है पर्दे में रहेगी तो उसका ख़ज़ाना लुटने से महफूज़ रहेगा और उसकी पाकीज़गी नज़रे बद (बुरी नज़र) से महफूज़ रहेगी, और औरत एक बेश क़ीमत (अनमोल) दौलत है जो लुटेरों से बचने के लिए फ़ितरते पर्दा चाहती है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  85 📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को बे पर्दा घूमना और अपनी हुस्न व ख़ूबसूरती बनाव सिंगार और जेबों ज़ीनत का दिखाना और मर्द अजनबी को उसकी तरफ़ देखना और बदनिगाही करना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  गोया के इस्लाम औरतों को एक अनमोल दौलत समझता है, इसलिए उसे पर्दे का हुक्म देता है, क्योंकि दौलत अगर परदे से बाहर आ जाए तो खून खराबा का सबब बन जाए, दौलत अगर परदे से बाहर आ जाए तो फ़ित्ना व फसाद का दरवाज़ा खुल जाए और इंसानियत व आदमीयत मजरूह होती हुई नज़र आए, और इस्लाम यह नहीं चाहता कि किसी की इज़्ज़त मजरूह हो, किसी की पारसाई दाग़दार हो, किसी की आबरू सरे बाज़ार रुसवा हो, किसी की दौलत नामूस ख़ाक आलूद हो, इस लिए बे पर्दगी से रोका जाए!

࿐  क्योंकि.. बे पर्दगी- बाइसे ज़िल्लत व हिक़ारत है, बे पर्दगी- मुख़ालिफ़े अज़मत व हुरमत है, बे पर्दगी- बे हयाई की सबसे बड़ी निशानी है, बे पर्दगी- शरिअते मुस्तफ़ा की ख़ुली हुई तौहीन है, बे पर्दगी- इस्तिख़फ़ाफ़े मज़हब की दलील है,बे पर्दगी- ग़ज़बे इलाही का दावा है, बे पर्दगी- बेदीन की अलामत है, बे पर्दगी-फ़ित्ना व फसाद की जड़ है!

࿐   बे पर्दगी- जहन्नमी होने की पहचान है,

࿐  बे पर्दगी- अज़ाबे ख़ुदा को हरकत देने वाली शै है,

࿐  बे पर्दगी- शिआरे ला दीनियत है,

࿐  बे पर्दगी- बाइसे ज़िल्लत व हिक़ारत है,

࿐  बे पर्दगी- बर्बादी ए नामूस व हुरमत है,

࿐  और सबसे ग़ज़ब की बात यह है कि बे पर्दगी ख़ुदा व रसूल की नाराज़गी का सबब है, बर्गे हिना पे लिखता हूं मैं दर्दे दिल की बात,
शायद के रफ़्ता रफ़्ता लगे दिल रुबा के हाथ!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  87

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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* औरतों को मज़ारात पर जाना कैसा है,.? 

࿐   *जवाब :-*  औरतों को मज़ारात पर जाना ना जाइज़ व गुनाह है, हत्ता के अपने अज़ीज़ों की क़बरों पर जाना भी ममनूअ् है,!

࿐    हदीसे पाक में है,

لعن الله عن زورات القبور،

यानी--अल्लाह की लानत हो उन औरतों पर जो क़बरों की ज़ियारत करें,!

࿐    और हजरत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं, रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने क़बरों की ज़ियारत करने वाली औरतों पर लानत फ़रमाई!

📗 मिश्कात बाबे ज़ियारतुल क़ुबूर, सफ़ह 154)

࿐    और फ़तावा किफ़ायह शअ्बी और फ़तावा तातार ख़ानियह वग़ैरह में है, इनाम क़ाज़ी अयाज़ रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से सवाल हुआ के औरतों को मज़ारात पर जाना जाइज़ है या नाजाइज़, फ़रमाया ऐसी बातों में जाइज़ नहीं पूछते बल्के यह पूछो कि उसमें औरत पर कितनी लानत पड़ती है खबरदार जब औरत (मज़ारों पर) जाने का इरादा करती है अल्लाह और फरिश्ते उस पर लानत करते हैं, और जब घर से निकलती है सब तरफ़ से शैतान उसे घेर लेते हैं, और जब कब्र तक पहुंचती है साहिबे मज़ार की रूह उस पर लानत करती है, और जब वापस आती है तो अल्लाह की लानत में होती है!

📚 फ़तावा अफ़्रीका सफ़ह 82)

࿐    और हुज़ूर आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, औरतों को सिवाय रसूले आज़म सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की मज़ारे मुबारका के किसी बुजुर्ग की क़बर की ज़ियारत करना जाइज़ नहीं!

📘 अल मर्जउस्साबिक़)

࿐    और कुतुबे मुअतमदह में है, अइम्मा ए दीन ने जमाअत व जुमा ईदैन तो बहुत दूर वाअ्ज़ (यानी जलसों, कान्फ्रेंसों) की हाजिरी से भी मुतलक़न मना फ़रमाया, अगरचे बुढ़िया हो अगरचे रात हो,
हज़रत उमर फारूक़ रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने तो औरतों के मस्जिद में आने पर पाबंदी लगा दी और हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह तो जो औरतें मस्जिद में आतीं उन्हें कंकरिया मार कर बाहर निकाल देते, और हज़रत इब्राहीम जो इमामे आज़म अबू हनीफा के उस्ताद के उस्ताद हैं अपनी औरतों को मस्जिद में ना जाने देते थे!

📔 जमलुन्नूर फ़ी नहीउन्निसा अन ज़ियारतुल क़ुबूर, सफ़ह 15)

࿐    और मुमानअत की वज़ह ख़ौफे फ़ित्ना है जो हराम का सबब है और जो चीज़ हराम का सबब होती है वह भी हराम होती है!

࿐    ऐनी में है, ज़ाहिर है कि जब फ़सादे ज़माना के सबब अब से सैकड़ों बरस पहले मस्जिदों में हाज़िर होने और जमाअतों में शिरकत करने से औरतें रोक दी गईं हालांकि इन दोनों बातों की शरीयत में बहुत सख़्त ताकीद है तो इस ज़माने में जब के फित्ना व फ़साद बहुत बढ़ चुका है तो भला औरतों को बे पर्दगी के साथ बनाव सिंगार के साथ जिस तरह आज निकलती हैं मज़ारात पर जाना क्यों कर दुरुस्त होगा, बल्के पर्दा के साथ भी औरतों को जाना फ़ित्नों से खाली नहीं है, खुलासा यह है कि इस ज़माने में औरतों का बाहर निकलना ही बहुत बड़ा फ़ित्ना है और नंगे सर बेपर्दगी के साथ घूमना फिरना तो और ज़्यादा फित्ना व फसाद का बाइस है, और अल्लाह व रसूल व मलाइका वगैरह की लानत का सबब भी है लिहाज़ा औरतों पर लाज़िम है कि वह इस तरह हरगिज़ ना निकलें अगर बाज़ ना आऐं तो मर्दो पर वाजिब है कि उन्हें हत्ताउल इमकान रोकें और सख़्ती करें, वरना खुद सख़्त गुनाहगार लाइक़े अज़ाबे क़ह्हार और मुस्तहिक़े नार होंगे,
और 

🤲🏻 अल्लाह तआला हम सुन्नी मुसलमान मर्द व औरत को शरीयते हक़्क़ा पर अमल करने की तौफ़ीक़ बख़्शे,, आमीन या रब्बल आलमीन,

(आमीन बिजाहिस्सय्यिदिल मुरसलीन सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम)
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  88-89📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बूढ़ी औरतों को मज़ारात पर जाना और निक़ाब हटा कर मुजावर के सामने मज़ार पर हाज़िरी देना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को बुज़ुर्गों के मज़ारात पर जाना मना है चाहे बूढ़ी हो या जवान हो, और मुजाविरों के सामने निक़ाब उठाना नाजाइज़ व गुनाह है!

࿐  आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, औरतों को मज़ाराते औलिया व मक़ाबिरे अवाम (अवाम की क़बरों) दोनों पर जाने की मुमा'नअत है!

📗 अहकामे शरिअत हिस्सा 2, सफ़ह 160)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रमह फरमाते हैं, असलम यह है कि औरतें मुतलक़न (यानी जवान हों या बूढ़ी सब मज़ारात की हाज़िरी से) मना की जाएं, और मुजावर के सामने औरतों का निक़ाब हटाना नाजाइज़ व गुनाह है!

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 4, सफ़ह 549
           
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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतें एक साथ पाख़ाना व पेशाब के लिए जाती हैं, और एक दूसरे की सतर व शर्मगाह (गुप्तांग) को देखती हैं, तो क्या हुक्म है)?

࿐   *जवाब :-*  नाजाइज़ व गुनाह है, जिस तरह मर्द, मर्द के सतर और शर्मगाह को नहीं देख सकता, इसी तरह औरत भी औरत की सतर यानी नाफ़ के नीचे से घुटने तक नहीं देख सकती!

࿐  हदीसे पाक में है हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, तर्जमा--- एक मर्द दूसरे मर्द की सतर की जगह ना देखे और ना औरत दूसरी औरत की सतर की जगह देखे, और ना मर्द दूसरे मर्द के साथ एक लिहाफ़ में बरहना यानी बिल्कुल नंगा सोए और ना औरत दूसरी औरत के साथ एक कपड़े में बरहना सोए!

📗 मुस्लिम किताबुल हैज़ बाबुत्तहरीम अन्नज़र इललओरात, सफ़ह 186,
📘 मिश्कात बाबुन्नज़र इलल मख़तूबह, सफ़ह 268)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रमह फरमाते हैं, औरत का औरत को देखना इसका वही हुक्म में है, जो मर्द का मर्द की तरफ़ नज़र करने का है, यानी नाफ़ के नीचे से घुटने तक नहीं देख सकती, बाक़ी आज़ा की तरफ़ नज़र कर सकती है, बशर्त यह के शोहवत का अंदेशा ना हो!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 443)

࿐ जब और आज़ा की तरफ़ ख्वाहिश व शहवत पैदा होने की वजह से देखने की मुमानअ्त है तो शर्मगाह की तरफ़ देखना जिससे ख्वाहिश व शहवत का ग़ालिब गुमान बल्के यक़ीन है क्यों कर दुरुस्त होगा!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  90 📚*

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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को कंघा करने के बाद अपने सर के बाल यूंही नाखून वगैरह ऐसे ही छोड़ देना और मर्द अजनबी को उसकी तरफ़ नज़र करना कैसा है,.?

࿐   *जवाब :-*  औरतों को अपने सर के बाल और नाखून वगैरह को इधर-उधर ऐसे ही छोड़ देना दुरुस्त नहीं बल्कि कहीं दफन कर देना चाहिए, ताकि अजनबी मर्द की निगाह ना पड़े, क्योंकि मर्द अजनबी का उसकी तरफ़ नज़र करना हराम है, इसलिए कि जिस उज़ू की तरफ़ नज़र करना नाजाइज़ व हराम है, बदन से जुदा हो जाने के बाद भी उसको देखना हराम व नजाइज़ है जैसे नाफ़ के नीचे का बाल, औरत के सर के बाल और नाखून वगैरह!

࿐   तन्वीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार में है, अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिजा फ़रमाएं...... ‌

📚 जिल्द 9, सफ़ह 536)

࿐   हां मगर हाथ के नाखून को देख सकता है, हुज़ूर सदरुश्शरिअह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, जिन उज़ू की तरफ़ नज़र करना नाजाइज़ है, अगर वह बदन से जुदा हो जाए तो अब भी उसकी तरफ़ नज़र करना नाजाइज़ ही रहेगा, मसलन पेड़ू के बाल के उनको जुदा करने के बाद भी दूसरा शख़्स नहीं देख सकता, औरत के सर के बाल या उसके पांव या कलाई की हड्डी के उसके मरने के बाद भी अजनबी शख़्स उसको नहीं देख सकता, औरतों को के पांव के नाखून के उनको भी अजनबी शख़्स नहीं देख सकता, और हाथ के नाखून को देख सकता है!

࿐   अक्सर देखा गया है कि ग़ुसलखाना या पाखाना में मुऐ ज़ेरे नाफ़ (नाफ़ के नीचे के बाल) मूंडकर बाज़ लोग छोड़ देते हैं, ऐसा करना दुरुस्त नहीं, बल्कि उनको ऐसी जगह डाल दें कि किसी की नज़र न पड़े या ज़मीन में दफ़न कर दें, औरतों को भी लाज़िम है कि कंघा करने में या सर धोने में जो बाल निकले उन्हें कहीं छुपा दें कि उन पर अजनबी की नज़र ना पड़े!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 448
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  93 📚*

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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरतों का आपस में शोहबत के साथ मिलना ज़िना है,?

࿐   *जवाब :-*  जी हां, औरत का औरत से शोहबत के साथ मिलना मुबाशिरत करना उनका आपस में ज़िना है!

࿐  हदीसे पाक में इरशाद हुआ, जिनको ख़तीब और इब्ने असाकिर ने हज़रत वासिला और अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत किया है कि, सरकरे दो आलम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, दुनिया उस वक़्त तक फ़ना ना होगी, जब तक औरतें औरतों पर और मर्द मर्दों पर इक्तिफ़ा ना करें, और अल्सहाक़ औरत का औरत से बाहम मुबाशरत करना औरतों का आपस में ज़िना है!

📗 कंज़ुल आमाल जिल्द 14, सफ़ह 226,

࿐  और इसी में है, हजरत उबी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं कि हमसे कहा गया, मर्द का मर्द के साथ सहबत करना और यह उन बातों से है, जिनको अल्लाह और रसूल ने हराम किया, और उन्हीं में से औरत का औरत के साथ मुबाशरत करना और यह उन आमाल में से है, जिनको अल्लाह व रसूल ने हराम किया, और उस पर अल्लाह व रसूल की नाराज़गी है!

📗 कंज़ुल आमाल जिल्द 14 सफ़ह 575)

࿐  अल इन्तिबाह, आजकल जिस तरह मर्दों में लवात़त का मर्ज़ तेज़ी से बढ़ रहा है, इसी तरह औरतों में भी हमजिंस परस्ती बढ़ती जा रही है, और ताज्जुब तो यह है कि यूरोप के अक्सर मुमालिक (देशों) में इसे क़ानूनी दर्जा हासिल है, और वहां हमजिंस परस्त औरतें और मर्द आपस में बेझिजक कोर्ट मैरिज कर रहे हैं!

हजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की पेशनगोई हर्फ़ व हर्फ़ सच साबित हो रही है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  93-94 📚*

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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   जो औरतें इस क़दर बूढ़ी हो गईं के निकाह की ख़्वाहिश नहीं रखतीं तो उनको घर में रहते हुए ऊपर का कपड़ा उतारना कैसा है?

࿐   *जवाब :-*  उतार सकती है, जाइज़ है जबके सिंगार ना ज़ाहिर करे,अल्लाह तआला फ़रमाता है, तर्जमा--- घर में क़याम पज़ीर बूढ़ी औरतें जो निकाह की तमन्ना नहीं रखतीं उन पर अपने बालाई कपड़े उतारने में कोई हर्ज नहीं, जबके सिंगार ना चमकाए और अगर उससे भी परहेज़ करे तो बेहतर है, अल्लाह तआला सुनने वाला जानने वाला है!

📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 60)

࿐  तफ़्सीरे अहमदियह में है, इस आयते करीमा के तहत मज़कूर है कि,
आयत में लफ़्ज़े, ,,قواعد क़ाअ्दा की जमा है, (जिसका मअ्ना घर में बैठी रहने वाली औरत है) यह शर्त के मअ्ना के मुतज़मन है इस लिए इसकी खबर पर हर्फ़े فا फ़ा लाया गया, यानी फ़लीस जनह, को हर्फ़े फ़ा से शुरू किया गया, माना यह है कि ऐसी औरतें जो हैज़ से और औलाद से बैठ (ना उम्मीद) हो गईं और उन्हें निकाह का तमा और स्तेहा नहीं क्योंकि वह बहुत बूढ़ी हो गई तो ऐसी औरतों पर इसमें कोई गुनाह नहीं कि वह अपने ज़ाहिरी कपड़े उतार रखें मसलन लिफ़ाफ़ा (बुर्क़ा और दुपट्टे के ऊपर ओढ़ी हुई चादर वगैरह इसकी तमाम तफ़ासीर ने तसरीह कर दी है और इस पर बारी तआला का क़ौल,
غير مبر جت بزينة،
भी दलालत कर रहा है, क्योंकि इसका म्अना यह है कि वह औरतें उस ज़ीनत को ज़ाहिर न करने वाली हों, जिसको छुपाने का हुक्म अल्लाह तआला ने अपने इस क़ौल،
 ،ولا يبد ين رينتهن،

में दिया है या यह मअ्ना के उन फ़ालतू कपड़ों के उतार रखने से उनका यह इरादा न हो कि अब वह लोगों को अपनी ज़ीनत दिखा सकेंगे, यानी सर और कान वगैरह, बल्कि उनका मक़सद यह होना चाहिए कि हमने ज़ाइद कपड़ों को गर्मी दूर करने के लिए उतारा है, जैसा के कुतुबे तफ़्सीर में लिखा है, बहर हाल दोनों तफ़्सीरों का हाल एक ही है,

📚 तफ़्सीराते अहमदियह मुतर्जम सफ़ह 770)

࿐  लेकिन बेहतर और अनसब (मुनासिब) यही है कि वह भी अपने बालाई कपड़े मसलन ओढ़नी, बुर्क़ा, लिफ़ाफ़ा वगैरह को न उतारे!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  94-95📚*

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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  वह कौन-सा लड़का है जिसका हुक्म मिस्ल औरत के है,?

࿐   *जवाब :-*   वह ख़ूबसूरत लड़का जो मुराहिक़ यानी बुलूग़ के क़रीब हो (यानी बालिग़ होने के क़रीब) उसका हुक्म मिस्ल औरत के है, और अगर ख़ूबसूरत न हो तो वही हुक्म है जो मर्द का है!

࿐   रद्दुल मोहतार में है, खूबसूरत मर्द का हुक्म सर से पांव तक मिस्ल औरत के हैं, शहवत के साथ उसकी तरफ़ नज़र करना हराम है!

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, सफ़ह 524)

࿐  और आला हजरत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिज़वान फ़रमाते हैं कि, औरत के साथ दो शैतान होते हैं, और मर्द के साथ 70, उल्मा फ़रमाते हैं, ख़ूबसूरत मर्द का हुक्म मिस्ल औरत के हैं!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 64-निस्फ़ अव्वल)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, शहवत के साथ उसकी (यानी वह ख़ूबसूरत लड़का जो बालिग़ होने के क़रीब हो) उसकी तरफ़ नज़र करना हराम है, और शहवत न हो तो उसकी तरफ़ नज़र भी कर सकता है, और उसके साथ तन्हाई भी जाइज़ है, शहवत न होने का मतलब यह है कि उसे यक़ीन हो कि नज़र करने से शहवत न होगी, और अगर शुबा भी हो तो हरगिज़ नज़र न करे, बोसा की ख़ुवाहिश पैदा होना भी शहवत की हद में दाखिल है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 443
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत अपने पीर का हाथ पांव दबा सकती है या नहीं,.?

࿐   *जवाब :-*  औरत को अजनबी मर्द का हाथ और पांव वग़ैरह छूना हराम व नाजाइज़ है, और पीर साहब भी तो अजनबी में से हैं उनके लिए औरतों का हाथ पांव छूना और दबाना कैसे जाइज़ हो जायेगा,?

࿐   आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, अजनबी औरत को जवान मर्द के हाथ पांव छूना जाइज़ नहीं अगरचे पीर हो!

📚 अर्रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 169, निस्फ़ आखिर)

࿐   जब अजनबी को एक मर्तबा छूने की मुमानअ्त है तो (हाथ पांव) दबाने में तो ला तादाद (अनगिनत) मर्तबा मस और रगड़ पाए जाने के सबब क्यों कर जाइज़ होगा, (यानी पीर साहब के हाथ पांव दबाना हरगिज़ जाइज़ नहीं)!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  96 📚*

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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  पीर साहब का औरतों के बीच में बैठकर हल्क़ा कराना कैसा है,.?

࿐   *जवाब :-*   औरतों के दरमियान बैठकर पीर साहब का हल्का कराना शरअ् के तो ख़िलाफ़ है ही, साथ ही हया के भी ख़िलाफ़ हैं, वरना वह ख़ुद औरतों को सामने आने से मना करते, एक बा हया बा शर्म इंसान कभी ऐसा कर ही नहीं सकता, लेकिन जब इंसान के अंदर हया नहीं होती तो वह कुछ भी कर सकता है!

࿐  जैसा के हदीसे पाक में हज़रत अबू मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह की यह रिवायत मौजूद है कि, नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, जब तुझे हया नहीं तो जो चाहे कर!

📚 बुख़ारी, किताबुल आदाब....... जिल्द 2, सफ़ह 904)

࿐   और आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, पीर से पर्दा वाजिब है जबके महरम ना हो, यह सूरत महज़ ख़िलाफ़े शरअ् व ख़िलाफ़े हया है, ऐसे पीर से बैअत ना चाहिए, (यानी जो पीर पाबंदे शरअ् न हो उससे मुरीद होना जाइज़ नहीं)!

📚 अर्रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 304
           
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࿐   *सवाल :-*  अपने शौहर के सामने दूसरी औरत का हाल बयान करना यानी उसकी तारीफ़ करना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*   औरत को अपने शौहर के सामने किसी दूसरी औरत का हाल बयान करना उसकी तारीफ़ व तौसीफ़ करना मना है,!

࿐  हदीसे पाक सही बुखारी व मुस्लिम में है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, ऐसा न हो कि एक औरत दूसरी औरत के साथ रहे, फिर अपने शौहर के सामने उसका हाल बयान करे गोया यह उसे देख रहा है!

📗 बुखारी, किताबुन्निकाह...... जिल्द 2, सफ़ह 788)

࿐ इस हदीसे पाक से मालूम हुआ कि जब एक औरत दूसरी औरत के साथ रहे तो अपने शौहर के सामने आकर उसकी हुस्न व ख़ूबसूरती सेहत व तंदुरुस्ती बनाव सिंगार को बयान ना करे इसलिए के अव्वलन तो उसकी मुमानत है, और दूसरी वजह यह है कि उससे बिला वजह फ़ित्ना व फ़साद होगा और बुराई होगी और यह अंदेशा है कि शौहर के दिल से बीवी की मोहब्बत खत्म हो जाए और उस दूसरी की मुहब्बत पैदा हो जाए चुनाचे अगर देखा जाए तो इसकी कई वुजूहात हो सकती हैं, जिनकी बिना पर शौहर के सामने दूसरी ग़ैर औरत की तारीफ़ व तौसीफ़ से मना किया गया है!
           
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࿐   *सवाल :-*  सुहागरात की बातें दूल्हा का अपने दोस्तों को और दुल्हन का अपनी सहेलियों को बताना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  दूल्हा का अपने दोस्तों को और दुल्हन का अपनी सहेलियों को सुहागरात मैं की हुई बातों का बताना ममनूअ् और तरीक़ा ए जाहिलाना बल्के हराम है!

࿐  हदीसे पाक में है, हज़रत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के ज़माना ए जाहिलियत में लोग अपने दोस्तों को और औरतें अपनी सहेलियों को रात में की हुई बातें और हरकतें बताया करते थे,
तो जब आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम को इस बात की ख़बर हुई तो आपने उसे सख्त नापसंद फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया, जिस किसी ने सोहबत की बातें लोगों में बयान कीं उसकी मिसाल ऐसी है जैसे शैतान औरत शैतान मर्द से मिले और लोगों के सामने ही खुले आम सोहबत करने लगें!

📗 अबू दाऊद, जिल्द 2, बाब नंबर 127 हदीस नंबर 407, सफ़ह नंबर 155)

࿐  और अब्दुर्रहमान बिन सईद ने फ़रमाया कि मैंने हज़रत अबू सईद खुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह को फ़रमाते हुए सुना के रसूले करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला के नज़दीक क़यामत के दिन सबसे बदतरीन (सबसे बुरा) वह शख़्स होगा जो अपनी बीवी के क़रीब हो जाए और बीवी अपना जिस्म उसके हवाला कर दे, यानी सोहबत के लिए मर्द के वास्ते अपने आप को पेश करे और फिर मर्द सोहबत करे और कुछ राज़दाराना गुफ्तगू करे फिर वह उस राज़ को ज़ाहिर कर दे (यानी लोगों के सामने बता दे)!

📗 सही मुस्लिम, बाबे तहरीम अफ़सा..... सफ़ह 464)

࿐   आजकल अक्सर लड़के और लड़कियां सुहागरात की बातें अपने दोस्तों को खूब मस्ती के साथ मज़े ले ले कर बताते हैं और उनके दोस्त सुनकर खूब मुल्तज़िज़़ होते हैं, यह ख़िलाफ़े शरअ् नाजाइज़ व हराम भी है और बे हयाई व बेशर्मी के मुवाफ़िक़ भी, क्योंकि इससे बढ़कर बेशर्मी और क्या हो सकती है, कि लड़का अपनी बीवी के साथ की हुई बातें अपने दोस्तों से बयान करे और लड़की अपने साथ शौहर की, की हुई बातें सहेलियों से बयान करे, हां मगर वह जो ग़ैरतमंद और बाशर्म हैं वह कभी हरगिज़ ऐसा करना गवारा ना करेंगे!
           
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࿐   *सवाल :-*  बीवी की मौत के बाद शौहर का उसको छूना, देखना, जनाज़ा उठाना, और क़ब्र में उतारना कैसा है,.?

࿐   *जवाब :-* बीवी की मौत के बाद शौहर अपनी बीवी को देख सकता है और कब्र में उतार सकता है यूं ही जनाज़ा भी उठा सकता है लेकिन ग़ुसल देने और छूने की इजाज़त नहीं जबके बिला हाइल हो क्योंकि मौत की वजह से वह निकाह से ख़ारिज हो गई!

࿐  दुर्रे मुख़्तार में है, गुसल व मस (छूना) की शौहर को सिर्फ़ मुमानअ्त है देखने की मुमानअ्त नहीं!

📗 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 3, सफ़ह 90)

࿐ और आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, हमारे उल्मा जो शौहर को गुसले ज़ौजा से मना फ़रमाते हैं उसकी वजह यही है के बादे मौत बा सबब इनइदामे महल मिल्के निकाह खत्म हो जाती है, तो शौहर अजनबी हो गया!

📙 फ़तावा रज़वियह जिल्द 4, सफ़ह 4)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, अवाम में जो यह मशहूर है के शौहर औरत के जनाज़ा को ना कंधा दे सकता है, ना क़ब्र में उतार सकता है, ना मुंह देख सकता है, यह महज़ ग़लत है, सिर्फ नहलाने और उसके बदन को बिला हाइल हाथ लगाने की मुमानअ्त हैं!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 813
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* औरत का मीलाद शरीफ़ में नात व मनक़बत सलातो सलाम वग़ैरह इस कदर बुलंद आवाज़ से पढ़ना के उसकी आवाज़ घर से बाहर दूर तक जाए जाइज़ है या नहीं.?  

࿐   *जवाब :-*  औरतों को इस तरह बुलंद आवाज़ से नात व मनक़बत, सलातो सलाम वग़ैरह पढ़ना के आवाज़ ग़ैर मेहरमों तक पहुंचे हराम हराम हराम है!

📙 पारा 18, सूरह नूर रुकू 10, की आयते करीमा,

و لا يضر بن بارجلهن،

के तहत तफ़सीरे रूहुल बयान में है, औरत का अपनी आवाज़ को इस तरह बुलंद करना के अजनबी मर्द सुने हराम है!

࿐  और रद्दुल मोहतार में है, औरतों को अपनी आवाज़ ऊंची करना हराम है!

📘 रद्दुल मोहतार जिल्द 1, सफ़ह 47)

࿐  और अल्लामा अमजद अली अलमारूफ़ ब सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं औरतों को ऐसा गाना जिसकी आवाज़ मर्दों तक पहुंचे हराम है, औरत उस चीज़ को कहते ही हैं, जिसके छुपाने का हुक्म है, और यह सिनफ़ चूंके छुपाने के लिए है, इसलिए उसको औरत और मस्तूरात कहते हैं!

📘 फ़तावा अमजदियह जिल्द 4 सफ़ह 54)

࿐  अल इन्तिबाह, लिहाज़ा औरतों पर लाज़िम है कि वह नात शरीफ़ वअ्ज़ व तक़रीर सलाम वगैरह इतना आहिस्ता पढ़ें के घर के बाहर आवाज़ ना जाए, वरना ऐसा मीलाद अल्लाह व रसूल की खुशनूदी के बजाय, उनकी नाराज़गी और आखिरत की बर्बादी का सबब बनेगा!
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत को औरत के साथ बरहना सोना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  औरत का औरत के साथ यूंही मर्द को मर्द के साथ बरहना नीम अरियां, नंगा सोना हराम व नाजाइज़ है!

࿐  हदीसे पाक में है, हज़रत अबू सईद खुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं, न मर्द दूसरे मर्द के साथ एक कपड़े में बरहना सोए और ना एक औरत दूसरी औरत के साथ एक लिहाफ़ या चादर में बरहना सोए!

📘 मुस्लिम, किताबुल हैज़ बाब तहरीमुन्नज़र इललऔरात जिल्द 1 सफ़ह 154
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बारह रबीउल अव्वल शरीफ़ के जुलूस में औरतों का आना कैसा है.?

࿐   *जवाब :-*  जुलूसे मुहम्मदी यानी माहे रबीउन्नूर के जुलूस में औरतों को आना सख़्त मना बल्के नाजाइज़ व हराम और गुनाह है! फ़सादे ज़माना और मर्दो के इख़्तिलात के सबब जब औरतों को किसी जुमा व जमाअत, नमाज़े जनाज़ा और ईदैन वगैरह में हाज़िरी की इजाज़त नहीं, ख्वाह वह जवान हो या बुढ़िया!

࿐  जैसा के हज़रत अल्लामा इब्ने आबेदीन शामी रहमतुल्लाही तआला अलैह फ़रमाते हैं, अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो,,,

📚 तन्वीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार)

࿐   और  हज़रत अल्लामा शैख़ इब्राहीम हंबली अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तहरीर फ़रमाते हैं,

ان يكون فى زماننا للتحريم لما فى خرو جهن من الفساد،

࿐  मतलब यह है कि इस ज़माना में औरतों का बाहर निकलना हराम है, कि उनके निकलने में फ़साद हैं!

📚 ग़ुनियह शरहे मुनियह सफ़ह 594)

࿐   और कुतुबे मुअतमदह में है, अइम्मा ए दीन ने जमाअत व जुमा और ईदैन तो बहुत दूर की बात है वअज़ की हाजिरी से भी मुतलक़न मना फरमा दिया अगरचे बढ़िया हो अगरचे रात हो!

࿐  हज़रत फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह तो जो औरतें मस्जिद में आतीं उसे कंकरियां मार कर बाहर निकाल देते थे, और हज़रत इमाम इब्राहीम जो इमामे आज़म अबू हनीफा के उस्ताद के उस्ताद हैं अपनी औरतों को मस्जिद में ना जाने देते थे!

📗 जमलुन्नूर फी नही निसा अन ज़ियारतुल क़ुबूर, सफ़ह 15)

࿐  जब्के मज़कूरा बिल इबादात ऐसी है कि उनमें इंसान हुज़ूरे क़ल्ब के साथ बारगाहे खुदा वंदी में हाज़िर होता है फ़ित्ने का अंदेशा बहुत कम होता है लेकिन उसके बावजूद सख़्ती के साथ रोक दिया गया, तो जुलूस में औरतों का आना क्योंकर जाइज़ होगा के यहां तो मर्द औरत साथ साथ कभी आगे कभी पीछे कुछ बेपर्दा कुछ पर्दे में भरपूर ज़ेबो ज़ीनत और अराइश व ज़ेबाइश के साथ होती हैं जहां फ़ित्ना ही नहीं बल्कि फ़ित्ना बर फ़ित्ना होने का अंदेशा होता है क्यों कर जाइज़ होगा?

📘 मिश्कात शरीफ़ सफ़ह 436
           
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*❝ बाबुन्नज़र वल मस यानी देखने और छूने का बयान !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बारह रबीउल अव्वल शरीफ़ के जुलूस में औरतों का आना कैसा है.?

࿐   *जवाब :-*  *खुलासा यह है कि !* किसी भी सूरत में शरअ की तरफ़ से जुलूस में औरतों को आने की इजाज़त नहीं बल्कि नाजाइज़ व हराम और गुनाह है!

࿐  मैं अपने तमाम इस्लामी भाइयों से दरख्वास्त करता हूं कि आप 12 रबी उल अव्वल के मुबारक दिन में खूब खुशियां मनाइये अपने दुकानों और मकानों में झंडे लगाइये, चरागा (रोशनी) कीजिए मिठाइयां तक्सीम कीजिये नात ख़्वानी की महफिल सजाईये मुबारकबादी पेश कीजिये आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की बारगाह में दुरूद व सलाम नज़राना ए अकीदत निछावर कीजिये रोज़ा रखिए क़ुराने पाक की तिलावत कीजिये सदक़ात व खैरात कीजिये और जुलूस भी निकालिये लेकिन जहां यह सब कुछ हो वही हमें यह भी चाहिए कि अपने घर की बहू बेटियों मां और बहनों को जुलूस में आने से सख्ती के साथ मना करें वरना खुद गुनाहगार और मुस्तहिक़े अज़ाबे नार होंगे इसलिए के शरअ में औरतों के लिए यह नाजाइज़ व हराम क़रार दिया है कि वह बिला ज़रूरते शरई अपने घरों से निकलें लिहाज़ा अपने घर की औरतों को समझाइये कि वह इस तरह बेपर्दा निकलकर अल्लाह व रसूल के हुक्म की नाफरमानी ना करें!

࿐ अल्लाह तआला ख़ुद फ़रमाता है, *तर्जमा-:** औरतों की नाफरमानी का तुम्हें अंदेशा हो तो उन्हें समझाओ और उनसे अलग सो और उन्हें मारो!

📚 पारा 5, सूरह निसा आयत 34)

࿐  लिहाजा हमें घर की औरतों को जुलूस वगैरह में जाने से मना करना चाहिए वरना अगर पूछगछ होगी तो क्या जवाब देंगे इसलिए के हर आदमी अपने घर का जिम्मेदार और हाकिम है और हर हाकिम से उसके मातहतों के मुताल्लिक सवाल होगा जैसा के हदीस ए पाक में है, तुम सब अपने मातहतों के हाकिम व जिम्मेदार हो और हर हाकिम जिम्मेदार से उसके मातहत के बारे में पूछा जाएगा!

📘 बुख़ारी जिल्द 1, सफ़ह 171)

࿐  इसलिए उनको मना करके खुद भी और उनको भी आज़ाबे दोज़ख़ से बचाइए जैसा के अल्लाह तआला फ़रमाता है, *तर्जमा-:* ऐ ईमान वालो बचाओ अपनी जानो और अपने घरवालों को जहन्नम से!

📚 पारा 28, अत्तहरीम, आयत 6)

࿐   और नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं, जब लोग कोई बुरा काम देखें और उसको ना मिटाएं तो अन करीब खुदा ए तआला उन सबको अपने अज़ाब में मुब्तिला फरमाएगा!

📘 मिश्कात शरीफ़ सफ़ह 436
           
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࿐   *सवाल :-*    इस ज़माने में जबकि फ़ित्ना व फ़साद आम हो चुका है, फ़िस्क़ व फ़ुजूर का दौर दौरा है, जवान लड़कियों का एयर होस्टेस (Year Hostes) कंपनियों, बैंकों, होटलों, सोशल नेटवर्किंग के आफिसों और दीगर बड़ी बड़ी कंपनियों और ऑफिसों में जाकर मर्दों के साथ बैठकर मुलाज़मत (ज़ोब) करना कैसा है,? जो लड़कियां या औरतें कस्बे मुआश (रोज़ी रोटी की तलाश में) मुलाज़मत (नौकरी करने पर) पर मजबूर हैं और तलबे मुआश (रोज़ी रोटी कपड़ा और दीगर ज़रूरियात) इंसानी जिंदगी में दाखिल है तो क्या इस हाजत (ज़रूरत) के पेशे नज़र कुछ क़ुयूद व शराइत के साथ औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त दी जा सकती है,.?

࿐   *जवाब :-*  इस पुर फ़ितन दौर में जब्के फ़ित्ना व फ़साद बहुत आम हो चुका है हर चहार जानिब फ़िस्क़ो फ़ुजूर का दौर दौरा है, तो अब फ़ी ज़माना जवान लड़कियों या औरतों का एयर होस्टेस कंपनियों, सोशल नेटवर्किंग ऑफिसों बैंकों, बड़ी-बड़ी कंपनियों और होटल वगैरह में जाकर अजनबी मर्द के साथ बैठकर मुलाज़मत करना नाजाइज़ व हराम है!

࿐  अव्वलन तो औरतों और जवान लड़कियों का इस तरह बेपर्दा निकलना ही हराम है गैर मर्दों के साथ बैठकर काम करना और मुलाज़मत करना तो बहुत दूर की बात है, इसलिए के औरत छुपाने की चीज़ है ना के बाहर बेपर्दा घूमने-फिरने और काम करने की, औरत कहते ही उस चीज़ को है जो छुपी रहे!

࿐  जैसा के हदीसे पाक में है,

المراة عورة فاذا خرجت استشر فها الشيطان،،

࿐  हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के, औरत औरत है, यानी पर्दा में रखने की चीज़ है जब वह बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरता है!

📘 तिर्मिज़ी जिल्द 1, सफ़ह 449)

࿐  और गुनिया शरहे मुनिया में हज़रत अल्लामा शेख़ इब्राहीम हम्बली अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान तेहरीर फ़रमाते हैं,

ان يكون في زماننا التحريم لما في خروجهن من الفساد،

࿐  इस इबारत का खुलासा यह है कि इस ज़माने में औरतों का बाहर निकलना हराम है, उनके निकलने में फ़साद है!

📘 ग़ुनिया शरहे मुनिया सफ़ह 594)
           
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࿐   *सवाल :-*    इस ज़माने में जबकि फ़ित्ना व फ़साद आम हो चुका है, फ़िस्क़ व फ़ुजूर का दौर दौरा है, जवान लड़कियों का एयर होस्टेस (Year Hostes) कंपनियों, बैंकों, होटलों, सोशल नेटवर्किंग के आफिसों और दीगर बड़ी बड़ी कंपनियों और ऑफिसों में जाकर मर्दों के साथ बैठकर मुलाज़मत (ज़ोब) करना कैसा है,? जो लड़कियां या औरतें कस्बे मुआश (रोज़ी रोटी की तलाश में) मुलाज़मत (नौकरी करने पर) पर मजबूर हैं और तलबे मुआश (रोज़ी रोटी कपड़ा और दीगर ज़रूरियात) इंसानी जिंदगी में दाखिल है तो क्या इस हाजत (ज़रूरत) के पेशे नज़र कुछ क़ुयूद व शराइत के साथ औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त दी जा सकती है,.?

࿐   *जवाब :-*  हां तलबे मुआश की खातिर हाजत के पेशे नज़र 5 क़ुयूद व शराइत के साथ औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त दी जा सकती है लेकिन उनमें से अगर एक भी कम हुआ तो हराम है!

࿐  जैसा के आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान इस तरह के एक इस्तिफ़्ता के जवाब में फ़रमाते हैं,

यहां 5, शराइत हैं,👇

࿐  1-कपड़ा बारीक ना हो जिनसे सर के बाल या कलाई वगैरह सतर का कोई हिस्सा चमके,

࿐  2-कपड़े तंग व चुश्त ना हों जो बदन की हैयात ज़ाहिर करें,

࿐  3-बाल या गले या पेट या कलाई या पिंडली का कोई हिस्सा ज़ाहिर ना होता हो,

࿐  4-कभी ना मेहरम के साथ किसी ख़फ़ीफ़ देर के लिए तन्हाई ना होती हो,

࿐  5-उसके यहां रहने या बाहर आने जाने में कोई मुज़ना फ़ित्ना ना हो,

࿐ 👆🏻  पांचों शर्तें अगर जमा हैं तो हर्ज नहीं, और अगर इनमें एक भी कम है तो हराम है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 252 निस्फ़ आखिर,

࿐  लिहाजा आम हालात में खौफे फ़ित्ना व फसादे ज़माना के सबब औरतों को मुलाज़मत की इजाज़त नहीं हां जो मुलाज़मत पर मजबूर हों उन्हें मज़कूरा बाला (ऊपर बताई गई) शर्तों की मुकम्मल पाबंदी करते हुए कस्बे मुआश की इजाज़त दी जा सकती है लेकिन अब उन मज़कूरा शर्तों का निबाह कहां यानी इस दौर में मज़कूरा शराइत की पाबंदी मुश्किल है कि कोई कर सके तो अब उसकी भी इजाज़त नहीं दी जा सकती!
           
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        *❝   बाबुत्तहयतू  वस्सलाम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* क्या अजनबिया औरत किसी मर्द अजनबी को सलाम कर सकती है, नीज़ अगर औरत जवान हो तो मर्द किस तरह जवाब दे.? 

࿐   *जवाब :-*  मर्द अजनबी का औरत को और औरत का मर्द को सलाम करना दुरुस्त है, क्योंकि सलाम तो कलामुल्लाह और सुन्नते रसूल है,!

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है, *तर्जमा-:* जब तुम घरों में जाओ तो अपनों को सलाम करो अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की तरफ़ से तहयत है, मुबारक पाकीज़ा!

📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 61)

࿐  लेकिन अजनबिया औरत अगर जवान हो तो मर्द को चाहिए कि इस तरह जवाब दे कि वह ना सुने, हां अगर बूढ़ी हो तो इस तरह जवाब दे कि वह भी सुने!

࿐  फ़तावा क़ाज़ी ख़ान में है,

وان سلمت المراة الا جنبية على رجل ان كانت عجوزارد السلام عليها بصوت يسمع، وان كانت شابة رد عليها فى نفسه،،

📘 फ़तावा क़ाज़ी ख़ान जिल्द 3, सफ़ह 423)

࿐  और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, मर्द और औरत की मुलाक़ात हो तो मर्द औरत को सलाम करे और अगर औरत अजनबिया ने मर्द को सलाम किया और वह बूढ़ी हो तो इस तरह जवाब दे कि वह सुने, और वह जवान हो तो इस तरह जवाब दे कि वह ना सुने!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 461
           
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        *❝   बाबुत्तहयतू  वस्सलाम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरत को औरत के चेहरा पर ब वक़्ते रुख़सत व मुलाक़ात बोसा देना (यानी चूमना) कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  ब वक़्ते रुख़सत व मुलाक़ात औरत को औरत के मुंह और गाल वगैरह को चूमना मकरूहे तहरीमी है!

࿐  तन्वीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार में है,

و كره تحريما قهستاني تقبيل الرجل فم الرجل او يده او شيا منه و كذا تقبيل المراة المراة عند لقاء او داع،

📘 तन्वीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9 सफ़ह 530)

࿐  हां अगर नियत हसन (अच्छी) हो तो जाइज़ है, जैसा कि इसी दुर्रे मुख़्तार में है, यानी जिस तरह फ़क़ीह (यानी सबसे बड़े आलिम) के चेहरे को चूमना जाइज़ है, हां अदम जवाज़ (यानी नाजाइज़ का हुक्म) इस सूरत में है, जबकि बा शहवत हो!

࿐  और बहारे शरिअत में है,औरत ने औरत के मुंह या रुख़सार को बवक़्ते मुलाक़ात या व वक़्ते रुख़सत बोसा दिया मकरूह है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 472)

࿐  जानलो के बोसा की 6, किस्में हैं :

1-  ࿐  बोसा ए रहमत जैसे वालिदैन का औलाद को बोसा देना!

2-  ࿐  बोसा ए सफ़क़त, जैसे औलाद का वालिदैन को बोसा देना!

3-  ࿐  बोसा ए मुहब्बत, जैसे एक शख़्स अपने भाई की पेशानी को बोसा दे!

4-  ࿐  बोसा ए तहयत, जैसे बवक़्ते मुलाक़ात एक मुस्लिम दूसरे मुस्लिम को बोसा दे!

5-  ࿐  बोसा ए शहवत, जैसे मर्द औरत को बोसा दे!

6-  ࿐  बोसा ए दयानत, जैसे हजरे असवद को बोसा देना!
           
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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
        *❝   बाबुत्तहयतू  वस्सलाम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* अजनबिया औरतों में जो जवान हैं उनको सलाम करना कैसा है,? 

࿐   *जवाब :-*  जवान अजनबिया औरतों से मर्द को सलाम करना दुरुस्त नहीं, और बूढ़ी अजनबिया औरतों से करने में मुमानअ्त नहीं,!

࿐  आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं, मुहारिम (यानी जिनसे निकाह हराम है) व अज़वाज़ (यानी जो निकाह में हो यानी बीवी) पर सलाम मुतलक़न है, और अजनबियात जवानों को सलाम ना किया जाए, बूढ़ियों को किया जाए, बल्के जवानीन अगर सलाम करें तो जवाब दिल में दिया जाए, उन्हें ना सुनाए, हालांकि जवाब देना वाजिब है, और लफ्ज़े सलाम का मर्द व औरत में बाहम एक दूसरे को अस्सलामू अलैकुम है और सलाम भी काफी!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 192.निस्फ़ आख़िर 
           
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        *❝   बाबुत्तहयतू  वस्सलाम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  जो शख़्स कुछ खा, पी, रहा हो उसे सलाम करना कैसा है, अगर कोई सलाम कर लिया तो वह फ़ौरन जवाब दे या खाने के बाद,?

࿐   *जवाब :-*  जो शख़्स ख़ाना फ्रूट (Froot) बिस्किट वगैरह खा रहा हो तो अगर अभी उसके मुंह में लुक़्मा है तो सलाम ना करे, और अगर ऐसे को किसी शख़्स ने सलाम कर लिया तो उसे इख़्तियार है, चाहे फ़ौरन जवाब दे या बाद में, और जो चाय, या पानी वगैरह पी रहा हो उसे सलाम करने में हर्ज नहीं, कि वह जवाब देने से आजिज़ नहीं!

࿐  दुर्रे मुख्तार में है,

يكره على عاجز عن الرد حقيقة كاكل ولو سلم لا يستحق الثواب،

📚 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9 सफ़ह 90-मुलख़सन)

࿐  इस इबारत से मालूम हुआ कि जो जवाब देने से आजिज़ नहीं उसे सलाम करने में हर्ज नहीं, लेकिन अगर खाने वाले के मुंह में लुक़्मा है और वह चबा रहा है तो जवाब देने से आजिज़ है, ऐसे शख़्स को सलाम करना मकरूह है, और सवाब भी ना मिलेगा!

࿐  जैसा के रद्दुल मोहतार में है,

قو لهم كاكل ظاهره ان ذلك مخصوص بحال وضع اللقامة في الفم والمضغ و اما قبل و بعد فلا يكره لعدم العجز،

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 590)

࿐   और बहारे शरीयत में है, लोग खाना खा रहे हों, उस वक़्त कोई आया सलाम ना करे, हां अगर यह भूका है और जानता है कि उसे वह लोग खाने में शरीक करेंगे तो सलाम कर ले, यह उस वक़्त है के खाने वाले के मुंह में लुक़्मा है और वह चबा रहा है कि उस वक़्त वह जवाब देने से आजिज़ है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 461
           
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        *❝   बाबुत्तहयतू  वस्सलाम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  सलाम से पहले कलाम (यानी बात करना) कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान भाई से मिले तो चाहिए के पहले सलाम करे, सलाम से पहले कलाम (यानी बात) नहीं करना चाहिए!

࿐   हदीसे पाक में है, हजरत जाबिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह कहते हैं कि नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया,

السلام قبل الكلام،

࿐  सलाम कलाम (यानी बात करना) से पहले करना चाहिए!

📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 4, सफ़ह 321)

࿐   और आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया,

البادي بالسلام بري من الكسر،

सलाम में पहले करने वाला गुरूर व तकब्बुर से पाक है!

इस हदीस पाक को हज़रत जाबिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ही ने रिवायत की है!

📚 शुएबुल ईमान, जिल्द 6, सफ़ह 433
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
        *❝   बाबुत्तहयतू  वस्सलाम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  बददीन व बदमज़हब से सलाम करना और सलाम में उनका तरीक़ा इख़्तियार करना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  बदमज़हब व बददीन जैसे काफ़िर, मुर्तद, देवबंदी, वहाबी और ग़ैर मुक़ल्लिद वगैरह से सलाम करना हराम व नाजाइज़ है!

࿐  हदीसे पाक में है, हज़रत जाबिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है के हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम ने फ़रमाया कि,

ان لقيتمو هم فلا تسلموا عليهم،

࿐   अगर तुम्हारी मुलाक़ात बदमज़हबों से हो तो उन्हें सलाम ना करो!

📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 398)

࿐  हज़रत उमर बिन शेअ्बा रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा अपने बाप से और वह अपने दादा से रिवायत करते हैं कि, हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, जो शख़्स (सलाम करने में) गैरों की मुशाबिहत इख़्तियार करे वह हम में से नहीं!

࿐  यहूदो नसारा की मुशाबिहत इख़्तियार न करों, यहूदियों का सलाम उंगलियों के इशारे से है, और नसारा का सलाम हथेलियों के इशारे से है!

📗 तिर्मिज़ी, जिल्द 4, सफ़ह 319)

࿐  *अल इन्तिबाह👇*
काफ़िर और बददीन व बदमज़हब को इब्तिदाअन सलाम नाजाइज़ है, अगर बबजहे मजबूरी करना पड़े तो सलामे शरई की इजाज़त नहीं, लाला, बाबू, या मुंशी साहब, वग़ैरह कह ले, और अगर काफ़िर सलाम करे तो जवाब में सिर्फ़ व अलैक कहे (या हदाकल्लाह कहे) और अगर सलाम सलाम करे तो ऐसे ही लफ्ज़े राइजा से जवाब दे, या जिस लफ़्ज़ से मुनासिब जाने जवाब दें!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  115-116📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
     *❝   बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* क्या इल्मे अक़ाइद सीखना फ़र्ज़ है.? 

࿐   *जवाब :-*  इल्मे अक़ाइद का सीखना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है जिनके एतेक़ाद से मुसलमान सुन्नीउल मज़हब होता है, और इंकार करने से काफ़िर!

࿐   इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत सरकार
आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं,हदीस,

طلب العلم فريضة على كل مسلم،

के बबजहे कसरते तुर्क़ व तअ्द्दुद मख़ारिज हदीस हसन है!

࿐   इसका सरीह मफ़ाद हर मुसलमान मर्द व औरत पर तलबे इल्म की फ़र्जीयत तो यह सादिक़ ना आएगा, मगर उस इल्म पर जिसका तअ्ल्लुम फ़र्ज़े एन हो और फ़र्ज़े एन नहीं मगर इन उलूम का सीखना जिनकी तरफ़ इंसान बिल फ़ेएल अपने दीन में मोहताज हो उनका अअम व असमल व आला व अकमल व अहम व अजल इल्मे उसूल अक़ाइद है, जिनके एतेक़ाद से आदमी मुसलमान सुन्नीउल मज़हब होता है, और इन्कार व मुख़ालिफ़त से काफ़िर या विदअती,
*वल अयाज़ू बिल्लाह*

࿐   सब में पहला फ़र्ज़ आदमी पर उसका तअ्ल्लुम है और उसकी तरफ़ एहतियाज मैं सब यकसां, फिर इल्मे मसाइले नमाज़ यानी उसके फ़राइज़ व शराइत व मुफ़सीदात जिनके जानने से नमाज़ सही तौर पर अदा कर सके, फिर जब रमज़ान आए तो मसाइले सोम, मालिके निसाब नामी हो तो मसाइले ज़कात साहिबे इस्तिताअत हो तो मसाइले हज, निकाह करना चाहे तो उसके मुताल्लिक़ ज़रूरी मसअले, ताजिर हो तो मसाइले बई व शरा, मज़ारअ् पर मसाइले ज़राअत, मोजिर व मुस्ताजिर पर मसाइले इजारह,!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 16)

⚠️ (यानी ज़िन्दगी में जिन जिन मसाइलों की ज़रूरत है उनको सीखे वरना सख़्त गुनाहगार होगा)
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  117 📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
    *❝   बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  उस्ताद से लड़की का पर्दा कब होना चाहिए,.?

࿐   *जवाब :-*  आसारे बुलूग़त ज़ाहिर हो जाएं तो उस्ताद, ग़ैरे उस्ताद, आलिम, ग़ैरे आलिम सबसे पर्दा वाजिब है,!

࿐  मुजद्दिदे आज़म सरकार
आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं,
रहा पर्दा, उसमें उस्ताद, ग़ैरे उस्ताद, आलिम व ग़ैरे आलिम, पीर, सब बराबर हैं, नो बरस से कम की लड़की को पर्दा की हाजत नहीं, और जब पन्द्रह बरस की हो सब ग़ैरे मुहारिम से पर्दा वाजिब और नो बरस से पन्द्रह तक अगर आसारे बुलूग़ ज़ाहिर हों तो वाजिब और ज़ाहिर न हों तो मुस्तहब, ख़ुसूसन बारह बरस के बाद बहुत मुअक्किद के यह ज़माना क़ुर्बे बुलूग़ व कमाले इस्तेहा का है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 97-निस्फ़ अव्वल
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  118📚*

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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝  बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  वहाबी, देवबंदी, नदवी, मौलवियों से अपने लड़कों और लड़कियों को तालीम दिलवाना कैसा है,?

࿐   *जवाब :-*  वहाबी, देवबंदी, नदवी मौलवियों से अपनी औरतों, लड़कों और लड़कियो को पढ़ाना सख़्त नाजाइज़ व हराम है, इसलिए के मौलवी अशरफ अली थानवी, क़ासिम नानोतवी, रशीद अहमद गंगोही, और ख़लील अहमद अम्बेठवी के कुफ़रीयाते क़तईय्या मन्दरजा हिफ़ज़ुल ईमान सफ़ह 8) तहज़ीरुन्नास सफ़ह 3/14/28 और बराहीने क़ातिअ सफ़ह 15, की बुनियाद पर मक्का मुअज़्ज़मा, मदीना मुनव्वरा हिंदुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और बर्मा वगैरह के सैकड़ों उल्मा ए किराम व मुफ़्तियाने इज़ाम ने उनके मज़कूरा बाला मौलवियों के काफ़िर व मुर्तद होने का फ़तवा सादिर फ़रमाया है!

من شك فى كفره وعذابه فقد كفر،

࿐  यानी जो उनके कुफ़्र व अज़ाब में शक करे वह भी काफ़िर है, जिसकी तफ़सील फ़तावा हुसामुल हरमैन, और अस्सवारिमुल हिंदीया में है 

࿐  और नदवीयत यह वहाबियत की एक साख़ हैं और नदवी मज़कूरा मौलवियों को अपना पेशवा मानते हैं इसलिए वह भी काफ़िर व मुर्तद हैं!

࿐  और हदीस शरीफ़ में है, के जब तुम किसी बदमज़हब को देखो तो उसके सामने तुर्श रुई से (यानी सख़्ती से) पेश आओ इसलिए ख़ुदा ए तआला हर बदमज़हब को दुश्मन रखता है, और जब तुम अपने बच्चों और बच्चियों को पढ़ने के लिए उनके पास भेजोगे तो अपने मज़हब के मुताबिक़ उन्हें बताएगा और उनको गुमराह और बदअक़ीदा कर देगा, इसलिए ख़ुद भी उनसे दूर रहो और अपने अहले ख़ाना को भी उनसे दूर रखो!

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है,
तर्जमा----- ए ईमान वालों, अपनी जानों और अपने घर वालों को जहन्नम की आग से बचाओ!

📚 पारा 28, अत्तहरीम, आयत 6)

࿐  और हदीसे पाक में है, बदमज़हबों से दूर रहो, और उनको अपने से दूर रखो, कहीं वह तुम्हें गुमराह ना कर दें, कहीं वह तुम्हें फ़ित्ना में ना डाल दें!

📗 मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 1, सफ़ह 10)

࿐ और आला हजरत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत इमामे इश्क़ो मुहब्बत फाज़िले बरेलवी अश्शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान कादरी बरकाती अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान वहाबियों से अपने लड़कों को तालीम दिलवाने के मुताल्लिक़ एक इसतिफ़्ता के जवाब में फ़रमाते हैं! हराम हराम हराम और जो ऐसा करे बद ख़्वाह अत़फाल व मुबतलाए आसाम!

📗 फ़तावा रज़वियह है 9. सफ़ह 207)

࿐ लिहाज़ा मालूम हुआ के वहाबी, देवबंदी, नदवी मौलवी से बच्चों को तालीम दिलवाना हराम हराम हराम सख्त हराम और गुनाहे अज़ीम है, और जो दिलवाए वह भी गुनाहगार और शदीद मुबतलाए आसाम है!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  118-119📚*

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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝  बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या औरत को औरत से क़ुरआन मजीद पढ़ना ग़ैरे मेहरम नाबीना (अंधा) के पास पढ़ने से बेहतर है,.?

࿐   *जवाब :-*  औरत को ग़ैरे मेहरम अजनबी अंधे और नाबीना से क़ुरान शरीफ़ पढ़ना और औरत को औरत के पास क़ुरान सीखना यह ज़्यादा बेहतर है बानिस्बत इसके कि वह किसी अंधे से क़ुरान सीखे इसलिए कि औरत की आवाज़ भी औरत है अगरचे वह उसे देखता नहीं मगर आवाज़ तो सुनता है!

࿐  अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी क़ुद्दिसा सिर्रहुस्सामी तहरीर फ़रमाते हैं,अरबी इबारत असल किताब में मुलाहिज़ा हो,

📚 रद्दुल मोहतार, जिल्द 2, सफ़ह 47)

࿐ और इसी में है,

رفع سوتهن حرام،

यानी औरतों को अपनी आवाज़ बुलंद करना हराम है, (के ग़ैरे मेहरमों तक पहुंचे)

📗 अल मरजउस्साबिक़)

࿐ और अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है, आयते करीमा क़ुरआन मजीद पारा 18, सूरह नूर आयत 31) में देखें,,

࿐  यानी जब औरतों को अपने पैरों के ज़ेवर की आवाज़ अजनबी मर्दों को सुनाना हराम है तो अपनी आवाज़ ग़ैर मेहरमों तक पहुंचाना बदर्जाए ऊला हराम होगा कि इससे मिलान और ज़्यादा होगा जो बड़े बड़े फ़ित्नों का बाइस होगा इसलिए शरीयत के ने औरतों को अज़ान तक देना नाजाइज़ ठहराया है!

࿐ और मुजद्दिदे दीनो मिल्लत सरकार आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, औरत की आवाज़ भी औरत है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 122, निस्फ़ आख़िर)

࿐  और फ़क़ीहे आज़म मुसन्निफ़े बहारे शरिअत हुज़ूर सदरुश्शरिअह अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, औरत को औरत से क़ुरान मजीद पढ़ना ग़ैरे मेहरम नाबीना से पढ़ने से बेहतर है कि अगरचे वह उसे नहीं देखता मगर आवाज़ तो सुनता है और औरत की आवाज़ भी औरत है!

(यानी औरत का ग़ैर मेहरम को बिला उज़्रे शरई आवाज़ सुनाने की इजाज़त नहीं)

📚 बहारे शरिअत जिल्द 1 सफ़ह 552)

࿐  लिहाज़ा हमें चाहिये के किसी नेक सालेह सनियह औरत से अपनी बच्चियों को तालीम दिलवाएं, और मर्दों से अगरचे वह नाबीना (अंधा) ही सही हत्ताउल इम्कान अपनी औरतों को और बालिग़ा लड़कियों को दूर रखें!
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  119-121📚*

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      *❝  बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  औरतों को शहादत नामा पढ़ना और गैर मर्दों के सामने नज़म पढ़ना कैसा है,.?

࿐   *जवाब :-* शहादत नामा जो बातिल और ग़लत रिवायात पर मुस्तमिल हो उसका पढ़ना नाजाइज़ व हराम है, हां जो रिवायाते सहीहा हों उसके पढ़ने में हर्ज नहीं!

࿐  हुज़ूर मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान अलमारूफ़ ब मुफ्ती-ए-आज़म हिंद अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, शहादत नामा जिसमें तमाम तर सही-सही रिवायात हों उसका पढ़ना अच्छा है, जैसे "आईना ए क़यामत" और जो ग़लत बातिल रिवायात इफ़तराआत पर मुस्तमिल हो उसका पढ़ना सख्त बुरा और नाजाइज़ है!

📘फ़तावा मुस्तफ़वियह सफ़ह 526)

࿐  और फ़तावा रज़वियह शरीफ़ में है, लड़कियों का गैर मर्दों के सामने ख़ुशउलहाली से नज़म पढ़ना हराम है, और अजनबी नौजवान लड़कों के सामने बेपर्दा रहना भी हराम और लड़कियों को लिखाना सिखाना मकरूह, यूं ही आशिक़ाना नज़्में पढ़ाना ममनू!

📗 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 109 निस्फ़ आख़िर)

࿐  लेकिन अब औरतों को शहादत नामा वगैरह पढ़ने की इजाज़त नहीं, और दूसरी बात यह है कि तशब्बोह शिआ की वजह से मम्नू व नाजाइज़ है!
           
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      *❝  बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  अपने बच्चों और बच्चियों को दीनी तालीम दिलाए बग़ैर सिर्फ़ दुनियावी तालीम के लिए किसी मोंटेसरी और प्राइमरी स्कूल में भेजना कैसा है,.?

࿐   *जवाब :-*  हराम है इसलिए के इल्मे अक़ाइद का हासिल करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है, फिर ज़रूरत के मसाईल मसलन जब नमाज का वक़्त आ जाए नमाज़ के मसाइल,
وعلى هذا الصوم و الحج والزكاة، 
 वगैरह, जैसा कि हदीसे पाक में है, रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के इल्म का हासिल करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है!

📗 मिश्कातुल मुसाबीह, सफ़ह 34)

࿐  और यहां हदीस में इल्म से मुराद इल्मे अक़ाइद और जरूरियाते दीन के मसाइल का इल्म है!

࿐  और आला हज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, ग़ैरे दीन की ऐसी तालीम के तालीम जरूरी दीन को रोके मुतलक़न हराम है फारसी हो या अंग्रेजी या हिंदी नीज़ उन बातों की तालीम जो अक़ाइदे इस्लाम के ख़िलाफ़ हैं उनका पढ़ना पढ़ाना हराम है!

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 159 निस्फ़ आख़िर)

࿐  अल इन्तिबाह : जो लोग अपने बच्चों को दीनी तालीम दिलाए बगैर सिर्फ़ दुनियावी तालीम के लिए मोंटेसरी और प्राइमरी स्कूलों में भेजते हैं हत्ता के बच्चों को कल्मा शरीफ़ भी याद नहीं कराते तो वह लोग सख्त गुनाहगार और बच्चों के बदख़्वाह हैं, उन पर लाज़िम है कि पहले अपने बच्चों को बा'क़दरे फ़र्ज़ दीनी तालीम दिलवाएं फिर अगर चाहें तो अंग्रेजी, हिंदी ज़बान सीखने के लिए स्कूल भेजें और इस दौरे जदीद में हर दीनी मकातिब व मदारिस वालों को चाहिए कि दीनी तालीम के साथ साथ दुनियावी तालीम का भी इंतज़ाम करें मसलन अंग्रेजी, हिंदी, हिसाब और जुग़राफ़िया वगैरह ताकि बच्चों को मदरसा व मकतब छोड़कर गैर क़ौम के स्कूलों में जाने की जरूरत ना पड़े!
           
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इस सवाल का जवाब कई पोस्ट में मुकम्मल होगा

࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  बच्चों और बच्चियों की तालीम व तरबियत इस तरह करें कि जब बच्चा बोलनें लगे तो सबसे पहले उसे कल्मा ए पाक सिखाएं,  जैसा के किताबुल हसन व हुसैन मैं है, जब बच्चा बोलना शुरू करे तो सबसे पहले उसे कल्मा शरीफ, 
*لا اله الاالله محمد رسول الله،ﷺ*
*ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ*

࿐   सिखाएं फिर उनको वालिदैन के नाम भी जरूर बताएं ताकि ख़ुदा ना ख़्वास्ता बच्चा कहीं अगर गुम हो जाए तो पहुंचाने में आसानी हो क्योंकि आजकल तो बाज़ जगह यह भी हो रहा है कि कुछ उचक्के और बदमाश बच्चों को किडनैप कर लेते हैं और फिर वालिदैन और घरवालों से अच्छा खासा पैसा वसूल करते हैं, इसलिए बच्चों को कहीं अकेला ना छोड़ें, बाज़ मांएं ऐसी होती हैं कि बच्चों का बहुत कम ख़्याल रखती हैं, और बच्चे को छोड़कर इधर-उधर चली जाती है, फिर बच्चा मां को ढूंडता हुआ इधर-उधर भटकता है और गुम हो जाता है या दूसरों के हाथ लग जाता है, जो या तो उसे बेच देते हैं, या किसी अनाथ आश्रम में डाल देते हैं या उसे पाल कर काम करवाते हैं, और जो पैसा मिलता है बैठकर मज़े से खाते हैं ऐसा बड़े शहरों में बहुत होता है, लिहाज़ा हमेशा उसे किसी ना किसी के सामने ही छोड़ें और खासकर वालिदैन को यह चाहिए के बच्चे को अच्छी-अच्छी बातें सिखाएं इस बात में मां का काफ़ी दखल होता है, क्योंकि अक्सर औक़ात बच्चा मां ही की गोद में होता है!

࿐  और मां के सिखाने पर बच्चा जल्दी सीखता है, और यह तजुर्बा भी है कि मां जो अपने बच्चे से कहलवाती है वह हत्ताउल इम्कान कहने की भरपूर कोशिश करता है, इसी लिए कहा गया है कि *मां की गोद बच्चा कि अव्वलीन दर्सगाह है* और वालिदैन अहले खाना को यह भी चाहिए कि बच्चों के सामने ऐसी हरकतें ना करें जिनसे बच्चों के अख़लाख़ खराब हों क्योंकि बच्चों में नक़ल करने की आदत होती है वह जो अपने मां-बाप को करते हुए देखते हैं वह खुद भी वही करने लगते हैं! 
           
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इस सवाल का जवाब कई पोस्ट में मुकम्मल होगा

࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  इसीलिए उनके सामने हमेशा अच्छी बातें कहें और करें, नमाज़ पढ़ें, तिलावते क़ुरआन करें, ताके यह सब देखकर वह भी ऐसा ही करें, ग़ौर कीजिए पहले ज़माने में मांएं अपने बच्चों को *अल्लाह अल्लाह* कहकर सुलाती थीं, अब घर के मोबाइल, टीवी, गाने और बाजे वगैरह बजाकर सुलाती हैं, और कुछ तो अपने बच्चों को सुलाने और रोने पर चुप कराने के लिए डराती हैं कि वह कुत्ता आ रहा है, बिल्ली आ रही है, यह आ रहा है, वह आ रहा है, ऐसा कभी ना करें इसका बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ता है बाद में बच्चे बड़े होकर डरपोक और बुजदिल हो जाते हैं, और कुछ बेवकूफ़ तो अपने बच्चों को गाली बकना सिखाते हैं, और उस पर फूले नहीं समाते!

࿐  हमें चाहिए के बच्चों को अच्छी अच्छी बातें सिखाएं और गाली बकने पर हंसने और खुश होने के बजाय उन्हें सख़्ती से डांटें, और बच्चों को झूटे क़िस्से और कहानियां सुनाने के बजाय बुज़ुर्गाने दीन के सच्चे वाक़्यात और सच्ची कहानियां सुनाएं, ताके उनके दिल व दिमाग पर उसका अच्छा असर पड़े और उनके दिल में इस्लाम और बुजुर्गाने दीन की मुहब्बत पैदा हो.......
           
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इस सवाल का जवाब कई पोस्ट में मुकम्मल होगा

࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  वालिदैन पर यह फ़र्ज़ है कि वह अपनी औलाद की तालीम व तरबियत के बारे में अपनी जिम्मेदारी का भरपूर ख़याल रखें, दुनियावी तालीम से पहले या साथ-साथ उन्हें दीनी तालीम भी ज़रूर बिल ज़रूर सिखाएं, अगर उससे ज़रा भी कोताही करेंगे तो क़यामत के दिन यह नहीं कि सिर्फ़ औलाद ही से पूछ ताछ होगी, मां बाप भी पकड़े जाएंगे,

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है,
*तर्जमा-:* ए ईमान वालो' तुम बचाओ अपने आप को और अपने अहलो अयाल को उस आग से जिसका ईंधन इंसान और पत्थर होंगे, उस पर ऐसे फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं, जो बड़े तन्द ख़ू सख़्त मिज़ाज हैं, नाफ़रमानी नहीं करते अल्लाह की जिसका उसने उन्हें हुक्म दिया है, और फ़ौरन बजा लाते हैं, जो इरशाद उन्हें फ़रमाया जाता है!

📗पारा 28 सूरह तहरीम आयत 6,

࿐   यह आयते तैय्यबा सूरह तहरीम की है जो मदीना तैय्यबा में 7 या 8 हिजरी में नाजिल हुई, इस सूरह पाक में अल्लाह तआला ने हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम के घरवालों की इस्लाहे अहवाल के मुताल्लिक़ इरशादात फ़रमाया है, और उन्हें हुक्म दिया है कि वह अपनी ख़्वाहिशात को अपने महबूब की रज़ा पर कुर्बान कर दें और ऐसा कोई अमली इकदाम ना करें जिससे महबूब अलैहिस्सलातू वस्सलाम के खातिर आतिर को तकलीफ़ पहुंचे, हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम की घरवालों की इस्लाह के बाद अब गुलामाने मुस्तफा अलैहित्तहयतू व अतीबुस्सना को हुक्म दिया जा रहा है कि वह खुद भी दोज़ख़ का ईंधन बनने से बचें और अपने अहलो अयाल की भी ऐसी सही तरबियत करें कि वह उस जहन्नम के अज़ाब से बच जाएं जिसका ईंधन इंसान और पत्थर होंगे और जिसके मुहाफ़िज़ बड़े ही सख़्त और तंदख़ू फ़रिश्ते होंगे!
           
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࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐  *जवाब :-* गोया के अल्लाह तआला ने मां-बाप पर यह फ़र्ज़ कर दिया है कि वह अपने बच्चों के अख़लाक़ की कड़ी निगरानी करें और उन्हें हर ऐसी कोताही, ज़िद, हटधर्मी और ग़फ़लत से बचाने की भरपूर कोशिश करें और जब बच्चा होशमंद हो जाए तो किसी सुन्नी सहीहुल अक़ीदा बाअमल मुत्तक़ी परहेज़गार आलिमे दीन या हाफ़िज़ के पास क़ुराने पाक और उर्दू की दीनी किताबें ज़रूर पढ़ाएं!

࿐   यक़ीनन आप अपने बच्चों को एक अच्छा डॉक्टर इंजीनियर बनाइए लेकिन अगर अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने आपको एक से ज़्यादा लड़के अता फरमाए हैं तो कम अज़ कम एक लड़के को ज़रूर आलिमे दीन या हाफ़िज़े क़ुरान बनाइए,!

࿐   हदीसे पाक में है बारोज़े मेहशर एक हाफ़िज़ अपनी तीन पुश्तों को और एक आलिमे दीन अपनी सात पुश्तों को बख़्शवाएगा,..
           
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࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  और यह ख़याल करना के आलिमे दीन भूकमरी का शिकार है, मुल्ला मौलवी को रोटी नहीं मिलती है, बहुत ही ग़लत और लग़्व ख़याल है, ज़रूरी नहीं कि कोई दुनियावी इल्म हासिल करे तो उसे रोटी भी मिल जाए और उसकी नौकरी फिक्स (Fix) ही हो जाए, सैकड़ों लाखों ग्रेजुएट हाथों में डिग्रियां लिए नौकरी की तलाश में मारे मारे फिरते हैं, यक़ीनन हर किसी को वही मिलता है, जो उसकी क़िस्मत में अल्लाह तआला ने लिख दिया है, यह भी कोई ज़रूरी नहीं कि आलिमे दीन बनने के बाद मस्जिद में इमामत ही की जाए,

࿐   आपका बच्चा आलिमे दीन होने के साथ साथ एक बेहतरीन बिजनेस मैन, (Bisnesman) और ताजिर भी हो सकता है, सैकड़ों आलिमे दीन हैं जो दीन की ख़िदमत अंजाम देने के साथ साथ तिजारत से भी जुड़े हुए होते हैं और इतना कमा लेते हैं जितना डाक्टर, इंजीनियर भी नहीं कमा पाता, ख़ुद ना चीज़ के भी ऐसे कई आलिमे दीन से दोस्ताना ताल्लुक हैं, जो आलिम होने के साथ साथ एक बेहतरीन डाक्टर और बिज़नेस मैन भी हैं, जो अपने दुनियावी कारोबार के साथ साथ दीन की ख़िदमत भी अंजाम दे रहे हैं!
           
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࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  हदीसे पाक में है : हज़रत उमर बिन शुऐब रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा अपने दादा से रिवायत करते हैं, उन्होंने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया : तुम्हारे बच्चे जब सात साल के हो जाएं तो उन्हें नमाज़ पढ़ने का हुक्म दो और जब दस साल के हो जाएं तो उन्हें मार कर पढ़ाओ और उनके सोने की जगह अलग करो!

📗 अबू दाऊद,

📘 अनवारुल हदीस, सफ़ह 181
           
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इस सवाल का जवाब कई पोस्ट में मुकम्मल होगा

࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  बच्चों को बड़े लोगों में बैठने, बदमाश और आवारा बच्चों के साथ खेलने से सख़्ती से मना करें, लेकिन इतनी ज़्यादा सख़्ती भी नहीं कि बच्चे बाग़ी हो जाएं और इस क़दर लाड प्यार भी नहीं कि वह ज़िद्दी, हटधर्म और गुस्ताख़ बन जाएं, मुहब्बत के वक़्त मुहब्बत और सख़्ती के वक़्त सख़्ती से पेश आएं,

࿐  हदीसे पाक में है, हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम का इरशादे गिरामी है, कोई बाप अपने बेटे को हसन अदब और अच्छी तालीम से बेहतर कोई तोहफ़ा नहीं दे सकता!

📔 तिर्मिज़ी जिल्द 1, बाब 1299, हदीस नंबर 2018, सफ़ह 913    
           
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इस सवाल का जवाब कई पोस्ट में मुकम्मल होगा

࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-* काश हम इस फ़रमाने ख़ुदा वंदी और इरशादाते नब्वी की रोशनी में अपनी औलाद की तालीम व तरबियत की तरफ़ तवज्जो दें तो हमें अपने बच्चों और बच्चियों से बे राहरवी और आवारा मिज़ाजी का शिकवा ना रहे, आज जब के दर्सगाहों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में दीनी तालीम व तरबियत का कोई मौअसर और हकीमाना एहतेमाम नहीं, बल्कि यह दर्सगाहें लादीनी नज़रयात और मुलहिदाना अफ़कार की रज़मगाहें बन चुकी है जब मुआशरे की वह हस तेज़ी से कुंद होती जा रही है, जो किसी ना ज़ेबा हरकत पर आतिश ज़ेरपा और गज़बनाक हो जाया करती थी और ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ एहतेजाज़ की एक तेज़ व तंद लहर बनकर उभरती थी, 

࿐   आज जब सिनेमा, वीडियो, मोबाइल, टीवी, और इंटरनेट के मुनहर्ब अख़लाक़ प्रोग्रामर ही सही कसर भी निकाल देते हैं, इस वजह से मां-बाप की जिम्मेदारियां दो चंद हो गई हैं कि वह अपनी औलाद की सख़्त निगरानी करें और उससे भी अहम यह है कि अपने हसन अमल और अच्छे नमूने से उनके दिलों में नेकियों और भलाईयों से एक वालिहाना मुहब्बत पैदा करें, वरना अगर हमारी बेहसी और मुर्दा ज़मीरी के बाइस लादीनियत की बिख़री हुई मौजों ने हमारे घर का मोर्चा भी सर कर लिया, फिर तो आने वाली नस्लों का ख़ुदा ही मुहाफ़िज़ है...   
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  123 📚*

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इस सवाल का जवाब कई पोस्ट में मुकम्मल होगा

࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं वालीदैन पर औलाद का हक़ यह है कि जब वह पैदा हो तो उनके लिए उम्दा नाम तजवीज़ करें और जब वह बड़े हों तो उन्हें तालीम दें और जब वह बालिग हों तो उनकी शादी करें!

📚 ज़ियाउल क़ुरआन,
📔 ज़ियाउल वाइज़ीन, जिल्द 2, सफ़ह 50)

࿐  और हज़रत जाबिर बिन समरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने कहा कि, हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, कोई शख्स अपनी औलाद को अदब सिखाए तो उसके लिए एक साअ् सदक़ा करने से बेहतर है!

📘 तिर्मिज़ी,
📗 अनवारुल हदीस सफ़ह 406)
           
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      *❝  बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* बच्चों की तालीम व तरबियत कैसी होनी चाहिए,.? 

࿐   *जवाब :-*  *अल इन्तिबाह :* बच्चे का अच्छा नाम रखें (यानी इस्लामी नाम रखें) क्योंकि बुरे नाम का असर बुरा पड़ता है और ऐसी सूरत में बच्चा तरबियत को कुबूल भी ना करेगा मां, या किसी एक नमाज़ी औरत से 2 साल तक दूध पिलवाएं, पाक (हलाल) कमाई से उनकी परवरिश करें के नापाक माल नापाक आदतें पैदा करता है, खेलने के लिए अच्छी चीज़ जो शरअन जाइज़ हो देते रहें, बहलाने और फुसलाने के लिए उनसे झूठा वअ्दा ना करें, जब कुछ होशियार हो जाए तो खाने-पीने उठने बैठने चलने फिरने मां-बाप और उस्ताद वगैरह की ताज़ीम का तरीक़ा बताएं, नेक उस्ताद के पास क़ुरान मजीद पढ़वाएं इस्लाम व सुन्नत सिखाएं हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की ताज़ीम व मुहब्बत उनके दिल में डालें, कि यह असल ईमान है जब बच्चे की उम्र 7 बरस हो जाए तो नमाज़ की ताकीद करें, और जब 10 बरस का हो जाए तो नमाज़ के लिए सख्ती करें, अगर ना पढ़े तो मार कर पढ़ाएं, वुज़ू व ग़ुस्ल और नमाज़ वगैरह के मसाइल बताएं, लिखने और तैरने की तालीम दें, फ़न्ने सिपागरी भी सिखाएं, बुरी सोहबत से बचाएं, इश्क़िया नावेल और अफसाने वगैरह हरगिज़ ना पढ़ने दें, जब जवान हो जाए तो नेक शरीफ़ अहले सुन्नत लड़की से शादी कर दें, और विरासत से उसे हरगिज़ मैहरूम ना करें!

࿐  और लड़कियों को सीना पिरोना, कातना और खाना पकाना सिखाएं, सूरह ए नूर की तालीम दें, बेटों से ज़्यादा उनकी दिल जोई करें, 9 बरस की उम्र से ही उनकी निगाह दास्त शुरू कर दें, शादी बारात में जहां नाच गाना हो वहां हरगिज़ ना जाने दें, रेडियो और मोबाइल वगैरह से गाना बजाना हरगिज़ ना सुनने दें, जब बालिग़ हो जाएं तो नेक शरीफ़ अहले सुन्नत लड़के के साथ शादी कर दें, फ़ासिक़ व फाजिर (यानी जो एलानिया हराम काम करता हो मसलन दाढ़ी मुंडाता हो, या एक मुश्त से कम रखता हो, या नमाज़ कभी पढ़ता हो कभी ना पढ़ता हो, या किसी हरामखोर तंज़ीम व तहरीक में जुडा हुआ हो) खुसूसन बदमज़हब (यानी वहाबी, देवबंदी, नदवी, तब्लीगी, अहले हदीस, नीचरी, चकड़ालवी, क़ादयानी, शिआ वग़ैरहा) के साथ हरगिज़ निकाह ना करें, (वरना दुनिया व आखिरत बर्बाद हो जाएगी)
मआज़ अल्लाही रब्बिल आलमीन

*⚠️ इस सवाल का मुकम्मल जवाब पढ़ने के लिए पोस्ट नम्बर 104 से 113 तक पढ़े!*
           
📬 बा - हवाला ↬ *औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह  130 📚*

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   *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝  बाबुल इल्म वित्तअ्लीम !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* कुछ लोग कहते हैं कि तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेना हराम है, क्या यह सही है.? 

࿐   *जवाब :-*  यह हुक्म पहले था, लेकिन इस दौर में तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेना नाजाइज़ व हराम नहीं बल्कि जाइज़ है!

࿐   फ़तावा क़ाज़ी ख़ान में है,

واما الذي اخذا المعلم، قالوا لاباس للمعلم ان ياخذ لاجرة على تعليم القران فى هذالزمان،

࿐  यानी----फ़ी ज़माना मुअल्लिम व मुदर्रिस जो तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेते हैं उसमें कोई हर्ज नहीं बेशक जाइज़ है, जो लोग नाजाइज़ व हराम कह रहे हैं, वह दर'हक़ीक़त मसाइले शरईयह व फ़िक़्हियह से ना वाक़िफ़ हैं, अगर ऐसा हो जाए तो तालीमे क़ुरआन का बहुत बड़ा फ़क़दान होगा, क्योंकि आज के दौर में बग़ैर रुपया पैसा के कोई काम करना और करवाना बहुत ही मुश्किल है, हर आदमी को उसकी ज़रूरत है, कोई भी बेकार में अपना टाइम नहीं दे सकता, इसी बिना पर उल्मा व फ़ुक़हा व मुताख़्ख़िरीन ने दौरे हाज़िर में तालीमे क़ुरआन पर उजरत लेने को जाइज़ फ़रमाया!

📚 फ़तावा क़ाज़ी ख़ान जिल्द 3, सफ़ह 101, किताबुल हज़र वल इबाहत)
           
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 *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  नसबंदी कराना कैसा है,!?

࿐   *जवाब :-*  पैदाइश को रोकने के लिए नसबंदी कराना हराम है, ख़्वाह औरत की हो या मर्द की हरगिज़ जाइज़ नहीं, बल्कि हराम है, क्योंकि इसमें अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की पैदा की हुई चीज़ों का बदलना है!

࿐  अल्लाह तआला फ़रमाता है,
तर्जमा-----शैतान बोला मैं उनको बहकाऊंगा तो वह अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ों को बदलेंगे,

📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 119)

࿐  और वह औरतें जो ऑपरेशन करा लेती हैं ताकि बच्चा ना हो और वह जो सर्जरी कराके जिस्म के क़ुदरती बनावट को बदल डालती हैं, उनके बारे में सरवरे दो आलम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं,

لعن الله المغيرات خلق الله،

अल्लाह की लानत उन औरतों पर जो अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ (जिस्म की क़ुदरती बनावट) को बदलने वाली हैं,, मुलख़सन)

࿐   और कुछ लोग यह ख़याल करते हैं कि ज़्यादा औलाद हो जाएंगे तो परेशानियां बढ़ जाएंगी, कहां से इंतजाम होगा कैसे खिलाएंगे और कहां से पिलाएंगे, वगैरह, और यह भी सोचते हैं कि औलाद ज़्यादा होगी तो ग़ुरबत व इफ़लास आएगी, इसलिए नसबंदी कराते हैं यह सब ख़याल ग़लत हैं,

࿐   अल्लाह तआला फ़रमाता है,
तर्जामा----- और अपनी औलाद को क़त्ल ना करो मुफ़लिसी के बाइस, हम ही तुम्हें और उन्हें सब को रिज़्क़ देते हैं!

📚 पारा 6, सूरह अनआम, आयत 151)
           
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      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  नसबंदी कराना कैसा है,!?

࿐   *जवाब :-*  और हुजूर मुफ़्ती ए आज़म हिंद अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, ज़ब्त तवल्लीद के लिए मर्द की नसबंदी या औरत का ऑपरेशन मुतअद्दिद वुजूह से शरअन ना जाइज़ व हराम है, इसमें अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ को बदलना है, और क़ुरान व हदीस की नस्स से नाजाइज़ व हराम है!

࿐   नीज़ इसमें बा वजहे शरई एक नस और उज़ू काटा जाता है, वह भी ऐसी नस ऐसा उज़ू जो तवल्लुद व तनासुल का ज़रिया है और बे ज़रूरते शरई दूसरे के सामने सतर, वह भी सतरे ग़लीज़ खोला जाता है, और उसको छूता भी है, और यह तीनों उमूर भी हराम हैं, ( किमानी कुतुबुल फ़िक़ह,

࿐  और यह क़अ्ता ए तवल्लुद होने का सबब (पैदाइश रोकने की वजह) मअनी جصا، खस्सा में दाखिल और इंसान का खस्सी होना और करना भी यह नस्से क़ुरआन व हदीस हराम है, 
(यानी क़ुरआन व हदीस से साबित है कि बच्चों की पैदाइश रोकने के लिए नसबंदी कराना हराम है)

📚 फ़तावा मुस्तफ़वियह, सफ़ह 531-मुलख़सन)

࿐  लिहाजा नसबंदी या ऑपरेशन इम्साक तवल्लुद के लिए शरीयते इस्लामिया में हरगिज जाइज़ नहीं, बल्के हराम है, इसलिए जुमला मुसलमानों पर लाज़िम व वाजिब है कि इससे बचें और नफ़रत व एहतेराज़ करें!
           
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      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  निरोध, (Condom) और कापर्टी जो औरतें लगवा लेती हैं ताकि हमल न ठहरे, (यानी गर्भवती ना हो) तो क्या यह दुरुस्त है,.!?

࿐   *जवाब :-*  वक़्ती तौर पर इस्तिक़रारे हमल यानी विलादत को रोकने के लिए निरोध और कंडोम का इस्तेमाल या चार पांच साल तक हमल को रोकने के लिए औरतों को (copper-T) कोपर्टी (एक दवा है जो तीन साल पांच साल तक इस्तिक़रारे हमल को रोक देती है) का इस्तेमाल करना या कोई और तरीक़ा इख़्तियार करना जाइज़ है!

࿐  हदीस शरीफ़ में है, हजरत जाबिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह इस हदीस (शरीफ़) को रिवायत करते हुए फ़रमाते हैं, तर्जमा----- हम नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम के दौरे मुबारक ही मैं अज़्ल कर रहे थे, हालांकि उस वक़्त क़ुरान (मजीद) का नुज़ूल हो रहा था!

📚 मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 1, सफ़ह 465)
📗 तहत़ावी बाबुल अज़्ल, जिल्द 2 सफ़ह 22)

࿐   और इसी मुस्लिम शरीफ़ की एक और हदीस आप रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ही से मरवी है, तर्जमा----- तो नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम को उसके मुताल्लिक़ ख़बर पहुंची के हम अज़्ल करते हैं, लेकिन आपने हमको इससे मना ना फ़रमाया,

࿐   और एक रिवायत में है हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हैं, रिसालते माब सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम में एक आदमी आया और कहा या रसूलल्लाह मेरे पास एक बांदी है और मैं उससे अज़्ल करता हूं और मैं ना पसंद करता हूं कि वह हामिला (गर्भवती) हो और मुझे ऐसी ही ख़्वाहिश होती है जैसा के लोगों को होती है और यहूद कहते हैं कि यह मोद्त सुगरा (यानी छोटा जिंदा दर गोर करना) है तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के यहूदी झूटे हैं, बेशक अल्लाह तआला जब चाहता है कि उसको पैदा करे तो तुम इस्तेताअत नहीं रखते कि उसको फेरो!

📘 शरहे मआनीउल आसार, जिल्द 2 सफ़ह 20)

࿐  *अल इन्तिबाह :*  इन मज़कूरा आहादीस से मालूम हो गया कि इस्तिक़रारे हमल को रोकने के लिए अज़्ल करना ख्वाह वह निरोध, कंडोम के ज़रिया हो या किसी और तरीक़ा से बिला शक जाइज़ है, हां मगर शौहर को चाहिए के बीवी से इजाज़त ले ले क्योंकि यह उसका हक़ है, बग़ैर इजाज़ते ज़ौजा के अज़्ल करना मकरूह है!
           
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  *【 ° औरतों के जदीद और अहम मसाइल ° 】*

 
      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  क्या गाय का गोबर और पेशाब (गोमूत्र) और खुद आदमी का अपना पेशाब इस्तेमाल करना जाइज़ है क्योंकि बअ्ज़ डॉक्टरों का कहना है कि उससे बहुत सी बीमारियों से निजात मिलती है,!?

࿐   *जवाब :-*  हराम और नजिस चीज़ों का बतौरे दवा इस्तेमाल करना भी नाजाइज़ है, इसलिए कि उनके इस्तेमाल से फिलहाल अगरचे वक़्ती तौर पर कुछ फ़ायदा होता है, लेकिन बाद में दरहक़ीक़त उससे कहीं ज़्यादा नुक़सान होता है, और अल्लाह तबारक व तआला ने हराम और नजिस चीज़ों में शिफ़ा नहीं रखी है और नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने नजिस चीज़ों से दवा करने से मना भी फ़रमाया है!

࿐   हज़रत अबू दरदा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि, *तर्जमा-:* अल्लाह तआला ने बीमारी और दवा, दोनों पैदा की हैं और हर बीमारी की दवा मुक़र्रर फ़रमाई है पस तुम दवा करो लेकिन हराम चीज़ से दवा मत करो!

📚 अबू दाऊद किताबुल तिब्ब, जिल्द 4, सफ़ह 10)

࿐   और दूसरी हदीस में है, हज़रत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हुए फ़रमाते हैं रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हराम और नजिस चीज़ों से इलाज करने को मना फ़रमाया है!

📘 तिर्मिज़ी जिल्द 2 सफ़ह 24)
📗 अबू दाऊद अलमर्जाउस्साबिक़)

࿐ और तनवीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार में है,

كل تدا و لا يجوز الا بطاهر،

तर्जमा----- सिर्फ़ पाक चीज़ों से इलाज करना जाइज़ है!

📗 तनवीरुल अबसार मअ् दुर्रे मुख़्तार जिल्द 9, सफ़ह 558, फ़स्ल फ़िलबई)

࿐    और इसी में है,

ان لله لم يجعل شفا ىكم فيما حرم عليكم،

࿐  *तर्जमा-:* अल्लाह ने जो चीजें तुम्हारे लिए हराम फ़रमाई है उसमें शिफ़ा नहीं है!

📗 अलमर्जाउस्साबिक़)
           
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      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-* लड़कियों को झाड़ फूंक कराना कैसा है,!? 

࿐   *जवाब :-*  झाड़ फूंक कराना जाइज़ है, हदीस शरीफ़ में है, हजरत आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा फ़रमाती हैं, नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हुक्म फ़रमाया कि हम नज़रे बद के लिए दुआ तावीज़ कराएं,!

📗 बुख़ारी शरीफ़ किताबुत्तिब्ब, बाबुर्रक़ीतुल ऐन, जिल्द 2 सफ़ह 854)

࿐   और इसी में है, हजरत उम्मे सलमा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से रिवायत है, नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने उनके घर में एक लड़की को देखा जिसका चेहरा ज़र्द था हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया इसे दुआ तावीज़ कराओ इसे नज़रे बद लगी है!

📘 अल मरजउस्साबिक़)

࿐   *अल इन्तिबाह, :*  हां लेकिन दुआ तावीज़ और मन्तरों में जिन्न व शैतान के नाम ना हों और उस मंत्र के मआनी से कुफ़्र लाज़िम ना आता हो, तो उसके पढ़ने में हर्ज नहीं, इसलिए उल्मा ए सल्फ़ ने फ़रमाया कि जिस मंतर का मआना मालूम ना हो उसे नहीं पढ़ सकते, लेकिन जो शार'ए अलैहिस्सलाम से सहीह् तौर पर मनक़ूल हो (उसे पढ़ सकते हैं अगर चे उसका मआना मालूम ना हो)!
           
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࿐   *सवाल :-*  कहीं जाते वक़्त बअ्ज़ औरत व मर्द किसी के छींकने या पूछने पर बदशगुनी बदफ़ाली लेते हैं और कहते हैं कि इसने टोक दिया, या छींक दिया लिहाज़ा हमारा जाना बेहतर ना होगा, और या हमारा काम ना होगा, क्या यह दुरुस्त है,!?

࿐   *जवाब :-*  किसी के छींकने या पूछने पर कहीं जाते वक़्त बदफ़ाली लेना और वापस आ जाना दुरुस्त नहीं, इसलिए के बदफ़ाली बद शुगनी कोई चीज़ नहीं!

࿐    सहीह् बुख़ारी व मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है, मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम को यह फ़रमाते हुए सुना के बदफ़ाली कोई सहीह् चीज़ नहीं, और फ़ाल अच्छी चीज़ है, लोगों ने अर्ज़ किया कि फ़ाल क्या है, फ़रमाया अच्छा कल्मा जो किसी से सुने!

📚 बुख़ारी, किताबुत्तिब्ब, बाबुत्तीरह जिल्द 2 सफ़ह 856)

࿐   यानी कहीं जाते वक़्त या किसी काम का इरादा करते वक़्त किसी की ज़बान से अच्छा कल्मा निकल गया यह फ़ाले हसन है, दूसरी हदीसे पाक है, इमाम अबू दाऊद व तिरमिज़ी ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया: तीरह, (बदफ़ाली) शिर्क है, इसको 3 मर्तबा फ़रमाया, (यानी मशरिकीन का तरीक़ा है) जो कोई हम में से हो यानी मुसलमान हो वह अल्लाह पर भरोसा करके चला जाए!

📚 अबू दाऊद किताबुत्तिब्ब बाब फ़ित्तीरह, जिल्द 4 सफ़ह 23)

࿐    और इमाम अबू दाऊद ने हजरत अरवह बिन आमिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मुर्सलन रिवायत की कहते हैं कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम के सामने बद शुगनी का ज़िक्र हुआ, हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फरमाया फ़ाल अच्छी चीज़ है, और बुरा शगुन किसी मुस्लिम को वापस ना करे, यानी कहीं जा रहा था और बुरा शगुनी हुआ तो वापस ना आए, चला जाए, जब कोई शख़्स ऐसी चीज़ देखे जो ना पसंद है यानी बुरा शगुन पाए तो कहे!

اللهم لا ياتي بالحسنات الانت ولا يرفع اسياة الانت ولا حول ولا قوة الا بلله،

📘 अबू दाऊद जिल्द 4 सफ़ह 25)

࿐    लिहाज़ा अगर कहीं जा रहा है किसी को छींक आ गई तो वापस ना हो, बल्कि छींक तो अच्छी चीज़ है, अल्लाह पर भरोसा करके चला जाए, किसी को पूछने और टोकने की परवाह ना करे, एक मुसलमान को सिर्फ़ तवक्कुल अलल्लाह (अल्लाह पर भरोसा) रखना चाहिए!

࿐    और हदीस मज़कूर से यह मालूम हो गया के बदफ़ाली बद शगुनी कोई चीज़ नहीं!
           
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࿐   *सवाल :-*  बअ्ज़ जाहिल औरत व मर्द यह समझते हैं कि एक आदमी का मर्ज़ दूसरे को लग जाता है, तो क्या हुक्म है,!?

࿐   *जवाब :-*  यह ख़याल बिल्कुल ग़लत महज़ जहालत है, सहीह् बुख़ारी में है, हजरत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया,

لا عدوى ولا طيرة ولا هامة ولا صفرو فر من المجزوم كما تفر من الاسد،

*عدوى،*
࿐  अदवी---यानी मर्ज़ का लगना मुतअद्दी होना नहीं और ना बदफ़ाली है और ना हाम्मह (यानी उल्लू को मनहूस जानने का कोई ऐतबार नहीं) ना सफ़र और मजज़ूम से भागो, जैसे शेर से भागते हो!

📘 बुख़ारी किताबुत्तिब्ब बाबुलजुज़ाम, जिल्द 2 सफ़ह 850)

࿐   और दूसरी हदीस में है, जब नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ऐसा ने फ़रमाया,

فقال اعرابى يا رسول الله فما بال ابلى تكون فى الرمل كانها اظباء فياتى البعير الاجرب فيد خل بينها فيجربها فقال فمن اعدوى الاول،

࿐  तो एक एरावी ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इसकी क्या वजह है के रेगिस्तान में ऊंट हिरन की तरह साफ़ सुथरा होता है और ख़ारिश्ती ऊंट जब इसके साथ मिल जाता है तो उसे भी ख़ारिश्ती कर देता है,, हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, पहले को किसने मर्ज़ लगा दिया, यानी जिस तरह पहला खारिश्ती हो गया दूसरा भी हो गया!

📘 बुख़ारी किताबुत्तिब्ब बाबुलअसगर, जिल्द 2 सफ़ह 851)

࿐   और हुज़ूर शदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, मर्ज़ का मुतअद्दी होना यानी एक का मर्ज़ दूसरे को लगना ग़लत है, और मजज़ूम से भागना सद ज़राए है, (यानी ज़राए रोकने) के क़बील से है, कि अगर उससे मेलजोल मैं दूसरे को जुज़ाम पैदा हो जाए तो यह ख़याल होगा के मेलजोल से पैदा हुआ, इस खयाले फ़ासिद से बचने के लिए हुक्म हुआ कि इससे अलहैदा रहो!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 503)
           
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      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  डॉक्टर ने कहा कि तुम्हारे अंदर ख़ून की ज़्यादती है, ख़ून निकलवा दो, मरीज़ या उसके अहले ख़ाना ने ऐसा न किया यहां तक कि मरीज़ मर गया, तो खुद मरीज़ या उसके घर वाले गुनाहगार होंगे या नहीं,!?

࿐   *जवाब :-*  डॉक्टर या तबीब (हकीम) के कहने पर मरीज़ या उसके अहले ख़ाना ने ख़ून न निकलवाया हत्ता कि मरीज़ इन्तेक़ाल कर गया तो गुनाहगार न होंगे, क्योंकि यह यक़ीन नहीं के इलाज से शिफ़ा ही हो जाए!

࿐  फ़तावा क़ाज़ी ख़ान में है,

ولو ان رجل ظهريه داء فقال له الطبيب عليك الدم فاخر جه فلم يفعل حتى مات لا يكون اثماء لانه لم يقين ان شفاءه فيه،

📘फ़तावा क़ाज़ी ख़ान जिल्द 3, सफ़ह 403)

࿐   और फ़कीहे आज़म हुज़ूर अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, बीमारी के मुताल्लिक़ तबीब ने यह कहा के ख़ून का ग़ल्बा है, फ़सद वगैरह के ज़रिया से ख़ून निकाला जाए, मरीज़ ने ऐसा ना किया और मर गया उसके इलाज ना करने से गुनाहगार नहीं हुआ, क्योंकि यह यक़ीन नहीं है कि उस इलाज से शिफा ही हो जाए!

📚 बहारे शरिअत, जिल्द 3 सफ़ह 506, पुराना ऐडीशन)
           
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      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*  सिर्फ़ दवा ही को शिफ़ा देने वाला समझकर दवा का इस्तेमाल करना कैसा है,!?

࿐   *जवाब :-*  नाजाइज़ है, हां अगर ये एतेक़ाद हो कि हक़ीक़ी शाफ़ी (शिफ़ा देने वाला) तो अल्लाह तआला है और दवा वगैरह तो फ़क़त मर्ज़ को दूर करने का सबब हैं, जिनको म'सबबुल असबाब मर्ज़ व दवा का पैदा करने वाला, बीमारी और शिफ़ा देने वाला दवा को शिफ़ा का सबब बना दिया है,

फ़तावा आलमगीरी में है,

الاستعمال بالتداوى لا باس به اذا اعتقد ان الشافى هو الله تعالى وانه جعل الدواء سببا اما اذا اعتقد ان الشافى هو دواء فلا كذا فى السر اجية،،

📘 फ़तावा आलमगीरी जिल्द 5, सफ़ह 354)

࿐   और हुज़ूर फ़कीहे आज़म हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं! दवा इलाज करना जाइज़ है, जबकि यह एतेक़ाद (यानी अक़ीदा, यक़ीन) हो के शाफ़ी (यानी सेहत या शिफ़ा देने वाला) अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल है, उसने दवा को इज़ाला ए मर्ज़ (यानी मर्ज़ को दूर करने के लिए सबब बना दिया है) और अगर दवा ही को शिफ़ा देने वाला समझता हो तो नाजाइज़ है!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 505   
           
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      *❝  बाबुत्तदावी, (दवा का बयान) !? ❞* 
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࿐   *सवाल :-*   हिंदा के चार पांच बच्चे हैं अब वह ऐसी दवा इस्तेमाल करना चाहती है कि आइंदा दाईमी तौर पर (हमेशा के लिए) कोई बच्चा ना हो और कहती है कि ज़्यादा बच्चे हो जाएंगे तो कौन खिलाए पिलाएगा और कौन पढ़ाए लिखाएगा, तो क्या हुक्म है,!?

࿐   *जवाब :-*  सूरत मुस्तफ़सरा में हिंदा का महज़ इस ख़ौफ़ से दाइमी तौर पर हमल ना ठहरने वाली दवा का इस्तेमाल करना के बच्चे ज़्यादा हो जाएंगे तो कौन परवरिश करेगा, कौन तालीम दिलाएगा, जाइज़ नहीं, इसलिए कि अल्लाह तआला सबको रिज़्क़ देने वाला है, उसी का इरशाद है,

तर्जमा----- हम तुमको भी रोज़ी देते हैं और उनको भी!

📘 पारा 7, सूरतुल अनआम, आयत 151)

࿐  और ऐसी दवा इस्तेमाल करने की सूरत में उम्मते मुस्लिमा की कसरत न होगी!

࿐   हालांकि आक़ा ए कायनात सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने इस उम्मत की ज़्यादती को पसंद फ़रमाया, और अपनी उम्मत के मर्दों को यह हुक्म भी फ़रमाया है कि तुम ऐसी औरत से शादी करो जो ज़्यादा बच्चे देने वाली हो, क्योंकि क़यामत के दिन में तमाम उम्मतों में अपनी उम्मत के तकस्सुर पर (ज़्यादा उम्मत होने पर) फ़ख़्र करूंगा!
 
गिमाफ़िल हदीस,

࿐   हज़रत मुअक़्क़िल बिन यसार रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रिवायत करते हुए फ़रमाते हैं,

قال رسول الله صلى الله تعالى عليه وسلم تزرو جوا الودود  الو لود فانى مكاثر بكم الامم،

📔 मिश्कात किताबुन्निकाह,  सफ़ह 267)

࿐   लिहाज़ा दाइमी तौर पर हमल ना ठहरने की दवा का इस्तेमाल करना ना-जाइज़ व हराम है, हां अगर यह खौफ हो कि सेहत बिगड़ जाएगी या दूध ना होने की बिना पर बच्चे की तंदुरुस्ती ख़राब हो जाएगी तो इस तरह की मजबूरी के तहत वक़्ती तौर पर मानेए् इस्तिक़रारे हमल के लिए दवा का इस्तेमाल जाइज़ है!
           
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࿐   *सवाल :-*  अगर ख़ाना ना ख़ाया या अहले ख़ाना ने ना ख़िलाया, और भूक व प्यास की वजह से हिलाक हो गया, तो वह ख़ुद और घर वाले गुनाहगार होंगे या नहीं,!?

࿐   *जवाब :-*  अगर ख़ाना पानी वग़ैरह मौजूद है और ख़ाया पिया नहीं, वह ख़ुद ख़ाने से आजिज़ है और घर वालों ने खिलाया पिलाया नहीं, तो पहली सूरत में वह ख़ुद और दूसरी सूरत में अहले ख़ाना गुनाहगार होंगे जैसा कि आलमगीरी में है

اذا جاع و لم یا کل مع القدرة حتى مات حيث ياثم،،

📚 आलमगीरी जिल्द 5 सफ़ह 355)

࿐   और हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं, भूक प्यास में ख़ाने पीने की चीज़ दस्तियाब हो और ना ख़ाए पिये यहां तक कि मर जाए तो गुनाहगार है, कि यहां यक़ीनन मालूम है कि ख़ाने पीने से वह बात जाती रहेगी!

📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 506)
           
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