🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
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ब्याह शादी और निकाह का मक़सद क्या है!? हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► अल्लाह तआला ने मर्द में औरत की तरफ़ और औरत में मर्द को तरफ़ रगवत, दिलचस्पी और ख़्वाहिश पैदा की है और दोनों में एक दूसरे की ज़रूरत और चाहत रखी है दोनों की ज़िन्दगी एक दूसरे के बगैर ना-मुकम्मल और अधूरी रहती है। इस चाहत और रगबत को नफ्सानी ख़्वाहिश कहा जाता है। जिसको पूरा करना इन्सानो फितरत का तक़ाज़ा है यह ख़्वाहिश पूरी न हो तो इन्सान की ज़िन्दगी वीरान उजड़ी हुई और सूनी रहती है। लेकिन इस ख़्वाहिश को पूरा करने के लिए इन्सान को जानवरों की तरह बिल्कुल फ्री और आज़ाद नहीं छोड़ा गया कि जो मर्द जिस औरत से और जो औरत जिस मर्द से जब चाहे ख़्वाहिश पूरी कर ले बल्कि औरत को किसी मर्द का और मर्द को कुछ औरतों का पाबन्द किया गया। शरीअते इस्लामिया ने इस जिन्सी ख़्वाहिश की तकमील के लिए जो दाइरा मुक़र्रर किया है उसको "निकाह" कहते हैं
╭┈► यानी कि निकाह का मक़सद शरई दाइरे में रह कर मर्द का औरत और औरत का मर्द से अपनी फितरी और जिन्सी ख़्वाहिश को पूरा करना है ताकि उस ज़रिए से औलाद हासिल की जाए और नस्ले इन्सानी बाक़ी रह सके और वह बातें जो मर्द व औरत में एक दूसरे के लिए हराम थीं वह हलाल हो जायें और दोनों को एक दूसरे के साथ रहने सहने एक दूसरे की खिदमत और तीमारदारी वग़ैरा करने और जिस्मानी लज़्ज़त हासिल करने की इजाज़त मिल जाए। और यह मक़सद निकाह के दो बोल जिन्हें इजाब व क़बूल कहते हैं दो गवाहों के सामने कहने से हासिल हो जाता है। एक कहे मैंने तुमसे निकाह किया और दूसरा, मैंने क़बूल किया और दो गवाह सुन लें बस यह काफ़ी है, इसी को निकाह कहते हैं। खुद सामने अगर न कहे तो उसका वली व बारिस कह, दे या किसी का अपनी तरफ़ से वकील व माजुन बना दें। क़ाज़ी या हाकिम अपन सामने ईजाव व क़बूल कराकर लिखत करा दे तो बेहतर है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 8 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
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ब्याह शादी और निकाह का मक़सद क्या है!? हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► लेकिन यह शर्तं और ज़रूरी नहीं। बात सिर्फ़ इतनी थी लेकिन आज की दुनिया ने इसको कहां से कहां पहुंचा दिया। सालों से तय्यारियां होती है और एक दुसरे के ख़र्च कराकर उन्हें बरबाद करने की मुहिम चलाई जाती है। अब तो हाल यह है कि लड़की पैदा हुई निकाह होगा पन्द्रह, बीस, पच्चीस साल बाद लेकिन अभी से फ़िक्र में घर वाले घुले जा रहे हैं। बैंकों में उसके नाम के खाते खोले जा रहे है, बीमे भी कराए जा रहे हैं। यह सब क्यूं हुआ? कैसे हुआ? बात दर अस्ल यह है कि इन्सान ने अपनी क़ब्र ख़ुद ही खोद डाली है। अल्लाह की दी हुई नेमतो, लज़्ज़तों को खुद ही मुसीबत और अज़ाब बना डाला है सुख के बदले दुख राहत व आराम चैन व सुकून के बदले वे चैनो और परेशानी मोल ले ली है। इस्लामी नुक़तए नज़र से तो अगर किसी को पचास लड़कियां भी हों तब भी उसे निकाह व शादी के मामले में फिक्रमन्द नहीं होना चाहिए।
╭┈► और चैन की नींद सोना चाहिए क्यूं कि इस्लाम मज़हब में लड़की और लड़की वालों पर निकाह में कोई भी खर्चा शरअन लाज़िम व ज़रूरी यानी वाजिब नहीं रखा गया है न किसी को खाना न नाश्ता न जोड़े और घोड़े हा अख़लाक़न कोई किसी को खिलाए पिलाए, हदिये तोहफ़े अपना ख़ुशी से दे तो कोई हरज नहीं लेकिन यहां अखलाक़ व ख़ुशी कहां अब तो मांग मांग कर खाया जाता है और छीन छीन कर जबरदस्ती लिया जाता है। बाज़ बाज़ दूल्हा उसके घर वाले तो ऐसे हो गए हैं जैसे डकैतों का और बाज़ बारातें तो ऐसी हैं जैसे लुटेरों ने चढ़ाई हो। इस्लामी नुक़तए नज़र से तो लड़की और उसके घर पर निकाह के मामले में एक कौड़ी ख़र्च करना भी शरअन ज़रूरी नहीं बल्कि उसको और महर मिलना चाहिए।...✍🏻
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 9 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
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आ गया लड़कियों की नाक़द्री और बेइज्ज़ती का ज़माना!? हिस्सा - 01❞
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╭┈► आज हर तरफ़ औरतों को मर्दों के बराबर लाने और उनको हुक़ूक़ में बराबरी का दर्जा देने को तय्यारियाँ हो रही हैं, आवाज़ें उठाई जा रही हैं, तहरीकें चलाई जा रही है. रिजनेशन पास किये जा रहे हैं लेकिन ब्याह शादी के बढ़ते खर्चों ने इन सब पर पानी फेर दिया है। बच्ची पैदा हो रही है तो बजाए ख़ुशी के ग़म मनाए जा रहे हैं। सब घर वालों के मुंह उतरे हुए हैं। किस क़द्र अफसोसनाक बात है कि एक इन्सान दुनिया में आया है और उसके आने पर ख़ुश होने के बजाए ग़म किया जा रहा है। यह सब ब्याह शादी के बढ़ते हुए ख़र्चों की वजह से हो रहा है। अगर इस्लामी अन्दाज़ के सादा निकाह हों तो ऐसा क्यू होता? और जिस औरत से दो चार बच्चियों हो जायें उसे मनहूस समझ कर घर से धक्के दे कर निकाल दिया जाता है। माँ के पेट में जाँच कराके लड़कियों को दवाईयों के जरिए क़त्ल करने के वाकि आत रोज़ाना हज़ारों हो रहे है। हिन्दी रोज़नामा "दैनिक जागरण" 30 जनवरी 2006 सफ़हा 10 पर शाए एक रिपोर्ट के मुताबिक पेट में क़त्ल के नतीजे में अब हिन्दुस्तान में एक हज़ार मर्दों के मुक़ाबले में सिर्फ़ दौ सौ सात औरते रह गई हैं।
╭┈► और अगर पैदा हो गई और बाप के पास किस्मती से लड़के वालों को भरने के लिए बहुत सी दौलत नहीं है या फिर लड़की सूरत व शक्ल की ज़्यादा अच्छी नही है, तो उसको पूछने वाला कोई नहीं पैगाम ही नही आते! और जैसे तैसे आया भी तो रिश्ता मन्ज़ूर नहीं। बेचारी सब कुछ देख रही है, सुन रही है और अपनी नाक़द्री और बे इज़्ज़ती और घर वालों की फ़िक्र कुढ़न देख देख कर घुट रही है। अखबारों में आप पढ़ते होंगे कि ऐसी कितनी लड़कियाँ तो ज़हर खा कर या फाँसी लगा कर मर जाती है, कुछ कोठे की रन्डियाँ बन रही हैं तो कुछ क्लब घरों और होटलो की का गर्ल बनने के लिए मज़बूर है! यह उनकी ज़िन्दगी से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है? क्या यही मतलब है औरत को मक़ाम देने का और उसको हक़ दिलाने वालों का।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 10 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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आ गया लड़कियों की नाक़द्री और बेइज्ज़ती का ज़माना हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► और शादी हो गई तो सुसराल वालों के ताने, मांगें और डिमांडे और कहीं उसकी कोख से भी लगातार दो चार लड़कियाँ हो गई तो सुसराल में नाक़द्री और बे इज़्ज़ती का फिर तो कोई ठिकाना ही नहीं।
╭┈► खुलासा यह कि आज के दौर में लड़की को माँ के पेट से लेकर सताने का जो दौर शुरू होता है वह बुढापे तक ख़त्म होने में नहीं आता। मैं कहता हूँ यह होटलों और क्लबों में अय्याशियाँ, ज़िनाकारियों करने वाले रईस व अमीर जादे यह बड़े-बड़े लोग जिन्हें आज की ज़बान में वी.आई. पी. कहा जाता है उन धन्धा कराने वाली औरतों से निकाह व ब्याह क्यूं नहीं कर लेते। इस्लाम मज़हब में बड़े आदमी के लिए चार तक बीवियां रखने की इजाज़त है। तुम इस इस्लामी इजाज़त की मज़ाक उड़ाते हो और कहते हो इसमें औरत की हक़तल्फी और उसकी बे इज़्ज़ती है और तुमने जो लाखों औरतों को पेशावर रन्डी और कालगर्ल बना डाला है यह कहां का इन्साफ है और कहां की बराबरी है। मैं पूछता हूं कितने वी.आई.पी. हैं जो एक बीवी पर सब्र किये बैठे हैं? और कितने बड़े बड़े लोग रईस व अमीर पूंजीपती है जो सिर्फ़ एक औरत के साथ ज़िन्दगी काट कर मर जाते बस बात यह है कि एक पर सब्र तुम भी नहीं करते लेकिन फ़र्क यह है कि इस्लाम बीवी बना कर इज़्ज़त से रखने की इजाज़त देता है और तुमने उन्हें धन्धे कराने वाली पेशावर बना कर उनकी अछसमत व इज़्ज़त से खिलवाड़ किया है उनकी जवानी को लूट लिया और बुढ़ापे में जानवरों से बदतर ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए छोड़ दिया। सही बात यह है ' मुआशरे की हर मुश्किल का हल और समाज को हर समस्या का समाधान सिर्फ़ इस्लाम ही है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 11 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
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एक दम सादा निकाह करना रसूलुल्लाह ﷺ की सुन्नत हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने जितने निकाह फ़रमाए किसी में भी कोई जहेज़ आपने नहीं लिया। न आप कभी बारात लेकर किसी के घर गए। सारे निकाह बिल्कुल सादे ही हुए। ग्यारह पाकबाज़ ख़्वातीन मोमिनों की मां बनी और काशानए नुबुब्बत में अज़वाजे मुतहरात बन कर रहीं। उन सब के साथ आप ने सिर्फ़ निकाह फ़रमाए और निकाह व ज़ुफाफ़ के बाद असहाब को वलीमे के तौर पर कुछ खिलाया। न ही आप कभी बारात लेकर गए और न ही आपको कोई बीवी साहिबा जहेज़ का सामान लेकर आपके यहां आई।
╭┈► मैं समझता हूं अगर दुनिया-पैगम्बरे इस्लाम के इस तरीक़े को अपनाए तो करोड़ों लोगों को राहत की सांस मिल जाए और वह चैन की नींद सोने लगें। अगर किसी के पचास लड़कियां हों तब भी उसको कोई परेशान होने की बात नहीं क्यूंकि निकाह व शादी के मौक़े पर इस्लाम में लड़की और लड़की वालों पर एक पैसा ख़र्च करना भी वाजिब नहीं बल्कि लड़की को महर मिलना चाहिए।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 12 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
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एक दम सादा निकाह करना रसूलुल्लाह ﷺ की सुन्नत हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► मैं देख रहा हूं कि आजकल लोग पेट की रोटी और तन के कपड़े के लिए परेशान नहीं हैं बल्कि ब्याह शादी, के ख़र्चे और दूसरे बे-जा अरमानों और ख़्वाहिशों के लिए दुखी हैं, और कमाते कमाते पागल हुए जा रहे है। और ज़्यादा तादाद तो बे ईमान, ख़ाइन व नियत ख़राबों की हो गई है, रिश्वत खोर, बे ईमान, पैसे का कम करके दस पैसे लेने वाले, काम में हेरा फेरी करने वाले यही कहते है कि भाई क्या करें हमारे साथ लड़कियां हैं। मुआशरे पर नज़र रखने वाले ख़ूब जानते हैं कि *
अल्लाह के रसूल ﷺ* और आप के सहाबा के तर्ज़ पर निकाह होने लगे तो समाज की रग से एक ज़हरीला कांटा निकल जाएगा और सारे मुआशरे को कितनी राहत मिल जाएगी। इसका अन्दाज़ा लगाना मश्किल है। गोया कि पैगम्बरे इस्लाम की सिर्फ़ एक अदा और इस्लाम का सिर्फ़ एक अन्दाज़ पूरी दुनिया को राहत व सुकून चैन व आराम देने की ज़मानत है। हक़ फ़रमाया खुदाए तआला ने क़ुरआने करीम में
*और हम ने तुम को सारे जहानों के लिए रहमत बना कर भेजा।"*
╭┈► गोया कि यह बात तय है कि इन्सान ने अपनी कब्र खुद ही खोदी है और अपनी नींद खुद ही ख़राब कर रखी है।...✍🏻
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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धूम धाम से शादियां रचाना और बराते चढ़ाना राजाओ बादशाहों, नवाबों और ज़मीदारों की देन है हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► इस उनवान के तहत मैं अपने भाईयों से गुज़ारिश करूंगा कि वह अपने नबी ﷺ के तौर तरीक़े अपनायें इसी में भलाई है !जिसका कलिमा पढ़ा है उसी के बन कर रहो और तुमने अल्लाह तआला के रसूल हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ का कलिमा पढ़ा है न कि मआज़ल्लाह राजाओं, महाराजाओ, बादशाहो और ज़मींदारों का। फिर ब्याह शादियों के वक़्त तुम उस नबी ﷺ को क्यूं भूल जाते हो। जो न तम्हें कभी भूला है और न ब-रोज़े क़ियामत भूलेगा।
╭┈► बुजुर्गां ने फरमाया है कि वली वह है कि जिसको दख कर अल्लाह तआला की याद आ जाए। साथ ही साथ मैं कहता हूँ उम्मती वह है जिसको देख कर नबी ﷺ की याद आ जाए।
╭┈► मैंने, तफसीर. तारीख़ की किसी किताब में नहीं पढ़ा कि रसूले पाक ﷺ के मुबारक ज़माने में कोई आपका सहाबी किसी लड़की वाले के घर सौ दो सौ पाँच सौ की बारात लेकर गया हो कि पहले वह उन सब को खाने नाश्ते कराए तब उसकी बेटी से निकाह होगा।...✍🏻
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
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धूम धाम से शादियां रचाना और बराते चढ़ाना राजाओ बादशाहों, नवाबों और ज़मीदारों की देन है हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► ताबेईन और तबअ ताबेईन के दौर में भी ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती। इसमें कोई शक नहीं कि अल्लाह तआला के रसूल ﷺ और उनके जानिसारों का तरीक़ा यह नहीं है और धूमधाम से शादियाँ रचाना और लम्बी लम्बी बारातें चढ़ाना राजाओं, बादशाहो नवाबो और मालदारों की ईजादात हैं। जिनमें अक्सर ऐश, व तरब सुरूर व निशात में डूब कर अल्लाह तआला व रसूल ﷺ को भूल गए थे और दुनिया की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी की आराइशों ने गाफ़िल और आख़िरत से बेखबर और काम कर दिया था। और अगर यह बारात को ठहरना, खाना नाश्ता शर्त हुआ, और ठहरा लिया गया हो कि इतनी बारात को इतने लोगों को लेकर हम आयेंगे और आप उन्हे खिलायेगे तो हम आप की लड़की से निकाह करेंगे तो इस बार के नाजाइज़ व गुनाह होने में भी शक नहीं। और लम्बी लम्बी बारातें लेकर लड़की वालों के घर जाने दोनो तरफ़ का नुक़सान होता है। लड़के वालों के लिए ले जाना किराया भाडा, गाड़ी, मोटरों और बसों का इन्तिजाम और लड़की वालों पर उन्हें ठहराने, बिठाने, खिलाने, पिलाने और नाश्ते कराने के इख़राजात कभी कभी यह बारातें लेने देने बाजे ताशे दोनों को बरबाद और कर्जदार बना देते हैं और शादी खाना आबादी नहीं बल्कि खाना बरबादी हो जाता है। और जो समझाने वालों की मज़ाक उड़ाते थे उनको खूब खिल्ली उड़ाई जाती है और कभी कभी खुब रुसवाई होती है।
╭┈► और अब तो बारात बहुत दूर की बात है। बारात का तारीख़ तय करने के लिए भी लड़की वालों को सैंकड़ों लोगों को बकरे, मुर्गे खिलाना पड़ते हैं। तब तारीख़ तय होती है यानी जब तक लड़की वालों के घर सौ पचास आदमी उम्दा खाने नहीं खायेंगे तब तक उसकी लडकी के निकाह की तारीख़ तय नहीं हो सकती। यह सब एक मामूली सी बात यानी सिर्फ़ निकाह की तारीख़ तय करने के लिए इस क़द्र इख़राजात कराना या करना पागलपन नहीं है तो और क्या है? और जब बारात की तारीख़ तय करने के लिए इतना एहतिमाम व इन्तज़ाम होता है तो फिर आगे हो सकता है कि इस एहतिमाम का दिन तय करने के लिए भी एहतिमाम होने लगे। दरअस्ल बात यह है कि लोग बौरा गए है। यह अब किसी की मानेंगे नहीं इनका इलाज अब वह होने जा रहा है जो बौरए हुओं का होता है। ख़ुदाए तआला होश और समझ अता फरमाए।...✍🏻 *आमीन*
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 14 📚*
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घोड़े ने नाल ठुकवाई तो मेढ़की ने भी टांग उठाई हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► इससे मेरा मक़सद वह ग़रीब व नादार, मुफ़लिस, मंगते और फक्कड़ हैं जो रईसों, अमीरों, बादशाहों, नवाबों और ज़मींदारों की शरीकी करते और शान शेखी दिखाते हैं। उधर रोते भी रहते हैं कि हम ग़रीब हैं, मोहताज हैं, दुखी और परेशान हैं, कोई काम धन्धा नहीं है, बहुत नुक़सान हो गया है। और फिर जब उनके यहां ब्याह शादी की तक़रीब हो या बेटा पैदा हो तो होश खो बैठते हैं। और शान शेखी दिखाने के लिए जो कुछ न करें वह कम है और अमीरों की शरीकी में अपना दिवालिया निकाल लेते हैं और घोड़ा तो नाल को झेल गया मगर मेंढकी की टांग चिर जाती है।
╭┈► ऐसे लोग भी हैं जो हराम कमा कर बेईमानी करके या किसी का कर्ज़ा दबा कर मालदार बन जाते हैं और हराम की कमाई और पराई दौलत से ख़ूब ख़र्चे करते, खिलाते, पिलाते यारों दोस्तों गांव बस्ती वालों की उम्दा उम्दा दावते करतें रिश्तेदारों को जोड़े पहनाते हैं। और इस ज़रिए से इज़्ज़त चाहते हैं तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि इज़्ज़त ख़र्चे करने से नहीं मिलती है बल्कि इज़्ज़त ईमानदारी से कमाने से मिलती है और हलाल खाने से मिलती है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 15 📚*
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घोड़े ने नाल ठुकवाई तो मेढ़की ने भी टांग उठाई हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► ग़रीब आदमी के लिए समझदारी इसी में है कि वह ग़रीब बन कर रहे। ग़रीब होना कोई ग़लत काम नहीं है और ग़रीब के लिए ग़रीब बन कर रहने में ही चैन व सुकून है और अमीरों की शरीकी करने, शान शेखी दिखाने में मुसीबत और परेशानी है। बेइज़्ज़ती और बदनामी तेरे मेरे सामने हाथ फैलाने और कर्ज़ख़्वाहों को उल्टी सीधी सुनना सभी कुछ हो सकता है।
╭┈► समाज में बदतरीन क़िस्म के हैं वह लोग जिन पर तेरा मेरा कर्ज़ा सवार हो और वह सड़कों पर बाबूजी बन कर निकलते हैं। पैन्ट की जेबों में हाथ डाले हीरो बने घूमते हैं और लोग सामने न भी सही लेकिन उनकी बुराई करते हैं कि उसने मेरी बेईमानी की है या मेरे काम के पैसे नहीं दिये हैं या मुझ से उधार लेकर खाए बैठा है। इस फ़ैशन में रंगे बाबू जी से वह ग़रीब बहुत अच्छा है जो घटिया क़िस्म के कपड़े पहने सादा लिबास में पैदल या साइकिल पर घर से निकलता है लेकिन उसने न किसी की बेईमानी की है और न उस पर किसी का कर्ज़ा है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 16 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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दुल्हन घर मे और क़र्ज़ख़्वाह दरवाज़े पर ❞
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╭┈► मैंने कई बार ऐसा देखा और सुना है कि एक साहब ने अपनी शादी में ख़ूब ख़र्चा कर डाला और दोस्त जो कहते रहे करते रहे किसी ने कहा कि पांच हज़ार रुपया का सूट तो होना चाहिए। किसी ने मशवरा दिया कि बारात में कम से कम दस गाड़ियां होना चाहिए। किसी ने पूरी गली सजाने उसमें तरह तरह के डेकोरेशान का मशवरा दिया,
╭┈► किसी ने कहा कि अगर ऊंचे क़िस्म का बैन्ड बाजा नहीं हुआ तो फिर मज़ा ही क्या आएगा, कोई बोला कि वीडियो कैमरे और फोटोग्राफर का साथ मे होना तो बेहद ज़रूरी है। ग़रज़ यह कि जो जिसने कहा कुछ मेरा और कुछ तेरा इधर उधर से जुगाड़ बाजियां करके ख़ूब भारी बारात कर ली लेकिन अभी दो महीने नहीं गुज़रे थे कि दुल्हन घर में थी और एक क़र्ज़ख्वाह दरवाज़े पर खड़ा गालियां बक रहा था। और कई जगह ऐसा भी सुना गया है कि लड़की की शादी में हस्ती मिटा कर औरतों के कहने में आकर खूब शैखी दिखाई और शान कमाई लेकिन चन्द दिन बाद दामाद घर पर था और क़र्ज़ख्वाह सर पर अब सब निकल गई शान और शैखी।
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 16-17📚*
⚠ *Note :* मेरे अजीज़ मोहतरम निकाह नबी ﷺ की सुन्नत है, कोई तिज़ारत या बिजनेस नहीं जिसको आवाम ने अपने घर भरने के लिए बिजनेस समझ रखा इतना याद रखना मैदाने महशर मे तुम्हे से सवाल होगा ज़रूर होंगा और तुम्हारे पास कोई जवाब न होंगा, निकाह को आसान बनाए सोंच बदले किरदार बदले।..✍
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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यारों दोस्तों का दिल रखने वाले बड़े बेवक़ूफ हैं ❞
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╭┈► इससे मेरी मुराद वह लोग हैं। जो यारों, दोस्तों के कहने में आकर अपनी हैसियत और हस्ती से ज़्यादा ख़र्चा कर बैठते हैं। भाईयों यार दोस्त न किसी के हुए हैं न होगे तुम उनके अरमान पूरे करने के लिए और उनकी हर ख़ुशी के लिए ख़ुद को क्यूं बरबाद कर रहे हो।
⚠ *Note :* यार दोस्त तो वह होते है, जिन्हे तुम्हारी परेशानी अपनी परेशानी लगें और नेक मशवरा दे वहीं सच्चा यार दोस्त है, जो हराम और नाजाइज़ कामों के लिए कहे वह कभी सच्चा नही हो सकता बल्की इन्सान की शक़्ल मे आकर शैतान अपनी चाल चल रहा है! मेरे अजीज़ मोहतरम निकाह को आसान बनाएं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 17 📚*
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कुछ यार दोस्त शैतान भी होते है ❞
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╭┈► ब्याह शादी या बच्चे की पैदाइश के वक़्त जो यार दोस्त रिश्तेदार नाजाइज़ व हराम कामों का मशवरा देते है, बैन्ड बाजे, वीडियो कैमरे या फोटोग्राफी, नाच तमाशे करने के लिए कहते हैं यह सब शैतान का काम करते है। यह भी देखा कि बाज़ मुख़ालिफ़ और दुश्मन भी होते हैं और दोस्त बन कर लग जाते है ख़ूब ख़र्चा करा डालते है। ज़मीने और जाएदादें बिकवा देते हैं और यह शादी या बच्चे की ख़ुशी में सब कुछ भूले हुए हैं और दुश्मनों को दोस्त समझे हुए है! और कोई सही बात बताए, फालतू ख़र्चों से रोके तो वह उन्हें दुश्मन नज़र आ रहा है। और कहते है कि यह हम से जल रहे हैं। मैं कहता हूं इसी को तो बेवकूफ़ी और पागलपन कहते हैं कि दुश्मनों को आदमी दोस्त और दोस्तों को दुश्मन समझने लगे।
╭┈► और जो लोग किसी को हराम काम करने मसलन बैन्ड बाजे बजवाने वीडिया फ़िल्में चलाने और दिखाने, नाच तमाशे और मन्डली कम्पनी लाने का मशवरा देते हैं तो इन कामों को करने और कराने वालों और तामशाइयों का सारा गुनाह उन मशवरा देने वालों पर होगा।मसलन किसी ने अपनी बारात में बैन्ड बाजे बजवाए या नाच तमाशे कराए तो देखने वाले और तमाशाई सब गुनाहगार होते हैं लेकिन उन सारे तमाशाईयों और तमाशा करने वालों पर जितना अज़ाब अलग अलग होगा उन सब के बराबर उस बारात वाले पर होगा और फिर उस तमाशा करने और कराने वाले पर अलग अलग जितना अज़ाब होगा उन सब के बराबर उस मशवरा देने वाले पर होगा। ऐसा ही फरमाया है अल्लाह के रसूल सय्यिदे आलम हजरत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने मगर अज़ाब की फ़िक्र तो वह करे जिसको मरना भी है लेकिन जिसे सब दिन दुनिया में ही रहना हो उसे यह सब सोचने की क्या ज़रूरत है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 17-18 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
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एलबम का रिवाज ❞
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╭┈► ब्याह शादी की बढ़ती हुई हरामकारियों और फिजूल ख़र्चियो मे अब एलबम बनवाने का फ़ैशन भी ज़ोर पकड़ गया है! दुल्हा और दुल्हन और बारात के मुख़्तलिफ़ मौकों पर तरह तरह की तस्वीरें और फ़ोटो खींच कर किताब की शक़्ल मे महफूज़ कर लिये जाते है! इस मे तरह तरह की खिलाफे शरअ गन्दी और बेहयाई वाली हरकतें होती है! बेपर्दा करके दुल्हन को फोटोग्राफर के सामने लाया जाता है! जिसको निकाह की इजाज़त और इज़्न तक के लिए पर्दे मे लाया जाता है! उसको फ़ोटो खींचने वाले के सामने बेपर्दा होना पड़ता है! निकाह के वक़्त का फ़ोटो रूख़सती के वक़्त का फ़ोटो ससुराल मे जब आई तो सब से पहले फ़ोटो फिर रात की मियां बीवी की ख़ास कमरे मे बिठा कर पहले फ़ोटो ग़रज़ यह कि तरह तरह से बेहयाई का मुज़ाहिरा किया जाता है!
╭┈► और ससुराल मे आने के बाद घर मुहल्ले की औरतों से पहले फ़ोटोग्राफ़र मुंह दिखाई करता है! और दुल्हा को भी बाद मे देखने मिलती है, फ़ोटोग्राफ़र को पहले! फ़ोटोग्राफ़ी तो इस्लाम मे हराम है ही लेकिन यहां कई हराम काम होते है, गोया की एलबम क्या है बराम कामों की गठरी और पुलिन्दा दरअसल बात यह है कि जिस *अल्लाह तआला* ने तुम्हे थोड़े पैसे दे दिये है! तुम उन्हें पा कर बौरा गए हो, और उसी *अल्लाह तआला* को भूल गए हो, ख़ूब कूदो, फांदो, नाचो, गाओ, बेहयाईयां, गुन्डागर्दियां जो जी मे आए सो कर लो, अब कुछ रह न जाए मगर याद रखों *अल्लाह तआला* की पकड़ से निकल कर भाग न सकोगे और उसकी पकड़ सख़्त है! तुमसे पहले भी इस दुनिया मे बहुत से कूदने फांदने वाले रह चुके है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 18-19 📚*
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दुल्हा बनकर निकलने वाले जिस दिन जनाज़ा बनकर निकलेगा उस दिन को मत भूल हिस्सा -01 ❞
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╭┈►यह ऐसा नहीं है कि मैंने कोई गाली दे दी है बल्कि एक ऐसी सच्चाई है जिसे सब जानते हैं। कुछ याद रखते हैं!, और कुछ भूल गए और भूलने से क्या टल जाएगी या किसी की टली है!?
╭┈► और अगर किसी को मेरी बात नागवार मालूम होती हो तो दुनिया की तारीख़ में कोई ऐसी मिसाल बताए कि कोई शख़्स दूल्हा तो बना लेकिन जनाज़ा और मय्यत न बना हो।
╭┈► ख़ुलासा यह कि जब दूल्हा बन कर निकलो, बारात लेकर चलो तो मौत के दिन को मत भूलो। अल्लाह व रसूल को नाराज़ न करो। हराम कामों से बचो, बीवी और उसके घर वालों को मत सताओ, मांगें और डिमान्डे न करो। हराम व फ़ालतू ख़र्चे न ख़ुद करो न दूसरे को करने के लिए मजबूर करो वरना याद रखो जिन्हें हम न समझा सके उन्हें क़ब्र समझा देगी और मौत का फिरिश्ता आंखें खोल देगा। और सब बौराना, कूदना, फांथना और डांस करना निकल जाएगा और मौत को तुम क्या दूर समझ रहे हो।..✍
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📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 19 📚*
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दुल्हा बनकर निकलने वाले जिस दिन जनाज़ा बनकर निकलेगा उस दिन को मत भूल हिस्सा -02 ❞
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╭┈► *
अल्लाह का फ़रमान है :* "ख़बरदार उन पर अज़ाब आने का वक़्त सुबह है और सुबह क्या क़रीब नहीं है।" (कुर्आन)
╭┈► और मियां आख़िरत तो बाद की चीज़ है कुछ को तो दुनिया ही में ख़ूब सज़ा मिलती है। बारातों में ही लड़ाई, झगड़े हो जाते, लाठियां और गोलियां चल जाती हैं। और शादी के बाद की तअल्लुक़ात की खराबियां, मियां बीवी को नाराज़गियां, ख़तरनाक क़िस्म की बीमारियां सब कूदने, फांदने और डांस करने निकाल देती है और यह ज़्यादातर वहां होता है जो ब्याह शादी के वक़्त आपे से बाहर हो जाते है।
╭┈► आजकल बाज़ बारातियों और उनके दुल्हा को देख कर डकैतों और लुटेरों की याद आ जाती है। ऐसा खाना और वैसा नाश्ता इतना नक़द यह मांग और वह डिमान्ड यह बारात लेकर निकाह करने नहीं जा रहे हैं बल्कि यह किसो का घर बरबाद करने उसकी ज़मीन जाएदाद बिकवाने जा रहे हैं। यह ज़ालिम अत्याचारी हैं। यह बारात नहीं बल्कि लुटेरों और डकैतों का गिरोह है। यह सब वह लोग है जो मौत व क़ब्र को बिल्कुल भूल गए हैं। लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि यह मौत व क़ब्र से बच नहीं सकेंगे।...✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 20 📚*
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बारती सिर्फ़ खाने चाटने के यार हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► बारात मंगनी जोड़े पहनाने और तारीख़ तय करने के बहाने यह जो आप कई कई सौ लोगों को लड़की वाले के घर ले कर जाते हैं और उनके खाने नाश्ते और ख़ातिर तवाज़ो के लिए अपनी बीवी के घर वालों से लड़ते झगड़ते हैं। आपको मालूम है उनमें कौन आपका कितना हमदर्द व वफ़ादार है। उनमें ज़्यादातर वह हैं कि अभी आप पर कोई वक़्त पड़ जाए तो बजाए मदद करने के हंसी उड़ायेंगे। उन में कोई बवक़्त ज़रूरत हज़ार रुपया उधार देने को तय्यार नहीं होगा। और दे दे तो एक माह के बाद ही तकाज़े शुरू कर देगा कि चाहे घर बेच कर दो लेकिन मेरे पैसे दो इस से हमारा मक़सद सिर्फ़ यह है
╭┈► कि लम्बी लम्बी बारातें ले जा कर और उनकी ख़ातिर ख़िदमत के लिए अपने क़रीबी रिश्तेदारों को बरबाद करना। बे हिसाब ख़र्चा कराके उन्हें तंगदस्त बनने के लिए मजबूर कर देना अक़्लमन्दी नहीं है। वह आप का क़रीबी अज़ीज़ और ख़ास रिश्तेदार है। जब उसकी बेटी या बहन आपकी बीवी है तो आपकी परेशानी को अपनी परेशानी समझेगा वक़्त पर आपके काम आएगा। उसको आप मुसीबत में डाल रहे हैं और उसको कंगाल कर रहे हैं, उन बारातियों की ख़ातिर कि उनमें से अक्सर मुसीबत के वक़्त आपकी मज़ाक उड़ाने वाले हैं। वक़्त पड़ने पर काम आने वाले तो बहुत ही कम होंगे।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 21 📚*
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बारती सिर्फ़ खाने चाटने के यार हिस्सा - 02❞
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╭┈► वैसे तो इस्लाम में बारात लेकर जाने की कोई शरई हैसियत नहीं और लड़की वाले पर शरअन दुल्हा तक को खिलाना वाजिब नहीं है। लेकिन अगर दो चार दस पाँच लोग दुल्हा के साथ चले जायें और वह अख़लाक़न उन्हें कुछ खिला पिला दे तो कुछ हरज भी नहीं है। बस इतने तक तो हमारी समझ में आता है लेकिन उससे ज़्यादा सब अज़ाब व वबाल हा मुसीबत ही मुसीबत है। और मक़ामी शादियों में जहाँ लड़कियां और लड़के एक ही बस्ती या मुहल्ले के हों वहाँ यह बारातें ले जाना और जबरन लड़की वालों पर उनके खाने ख़र्चे का बोझ डालने की क्या ज़रूरत है? सब फालयू और बेकार की बातें हैं ख़ुराफ़ातें हैं।
╭┈► और खाने से पहले यह जो बारात के लिए नाश्ते का मर्ज़ पैदा हो रहा है। यह तो कोढ़ में खाज है। जब खाना तय्यार है और खाने का वक़्त भी, फिर उस नाश्ते का क्या मअना? नाश्ता तो उस खाने को कहते हैं जो सुबह को खाया जाता है। अब यह वक़्त बेवक़्त नाश्ते कैसे होने लगे? और यह मांगें मांग कर नाश्ते और खाने लेना और खानों की फरमाइशें करना भिकमंगों का काम है। और मजबूर करने या मजबूरी से फ़ाइदा उठाते हुए ज़बरदस्ती खाना पीना डकैतों और लटेरों का काम है। अब यह आप ख़ुद फैसला कर लीजिये कि आप भिकमंगे हैं या लुटेरे और आपकी बारात मांगने वाले फ़कीरों की टोली है या डकैतों का गिरोह।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 22 📚*
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किसी की मजबूरी से फ़ाइदा उठाना शरीफ़ इन्सान का काम नहीं ❞
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╭┈► आजकल जब से बात चीत शुरू होती है तभी से लड़के और उनके घर वाले लड़की वालों को तंग करना शुरू कर देत हैं। अपने और अपने घर वालों, रिश्ते दारों, यार, दोस्तों के लिए जोड़ों घोड़ों का सवाल हर वक्त तरह तरह की फरमाइश, और डिमांडें कभी मंगनी और सगाई के नाम पर, कभी तारिख तय करने के बहाने, कभी त्योहारों और ईर्दो की आड़ लेकर आखिर आप ने कभी यह भी सोचा कि वह आपके यह क्यूँ उठा रहा है। ठस्से क्यू झेल रहा है। बात सिर्फ यह की जवान लडकी घर में रखने की चीज नहीं होती और शरीफ इन्सान को जवान लड़कियों का घर में रहना यानी बेनिकाह रखना अच्छा नहीं मालूम होता। यह उसकी मजबूरी है जिससे आप फाइदा उठा रहै है और उसका नोचने खसोटने में लग गए है।
╭┈► और वह अपनी मजबूरी की वजह से आप से अपने जिस्म की खाल उतरवा रहा है। लेकिन मैं कहता है किसी की मजबुरी से फाइदा उठाना यह शरीफों का काम नहीं है बल्कि कमीनों और रजोलों का, बेरहम डकेतों का और जालिम लुटेरों का काम है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 22-23 📚*
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भाईयों घर लड़की वालों के भरने से नही भरता बल्कि अल्लाह तआला भरता है ❞
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╭┈► कितने लोग देखें कि उन्होनें फरमाइशें करके लड़की वालों से ख़ूब रुपया पैसा और साजो सामान ऐंठ लिया लेकिन ज़िन्दगी भर तंग हाल व परेशान रहे। अगर मालदार भी रहे लेकिन सुकून व चैन नहीं क्यूंकि ज़ालिम को कभी चैन नहीं मिलता और बेरहम आराम से नहीं सोता। और कितने ही लोगों ने शरीफ़ों की ग़रीब बेटियों को बीवी बना कर रखा न कभी ताने दिये न मार मार कर माएके में रुपया लेने भेजा तो *
ख़ुदाए तआला* ने उनके घरों को भर दिया और उन्हें साहिबे माल व मताअ बना दिया।
╭┈► और किसी की बेटी को बीवी बना कर तंग करने वाले उसकी कमज़ोरी और मजबूरी से फ़ाइदा उठाने वाले उसके बहाने से सुसराल वालों को लूट खसोट मचाने वाले ज़्यादातर निकम्मे निखट्टू आराम तलब और काहिल होते हैं। जिनका दिल काम में नहीं लगता और यह शादी नहीं करते बल्कि लड़कियों को ब्लेकमेल करते हैं अपनी इन शैतानी आदतों का अन्जाम उन्हें दुनिया ही में देखने को मिल जाता है और आख़िरत का अज़ाब तो दर्दनाक है और सुकून व चैन तो मियाँ जिसे *अल्लाह तआला* देता है उसी को मिलता है। चाहे तो बिल्डिंगो और कोठियों के एयरकन्डिशन कमरों में तड़पाए और चाहे तो झुग्गियों और झोंपड़ियों में आराम व चैन से सुला दे।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 23 📚*
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बूढ़े और बूढ़ियों के दिमाग ज़्यादा खराब हैं हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► कई जगह देखने और सुनने में आया कि लड़का शादी करने के लिए आमादा है लड़की वाले भी तय्यार हैं जो रिश्ता भी सही है लेकिन लड़के के मां बाप तय्यार नहीं है यह बड़े मियां और बड़ी बी हाजी भी हैं और नमाज़ी भी हैं लेकिन अगर कोई शरीफ़ व गरीब आदमी अपनी शरीफ़ बेटी के रिश्ते की बात चीत उनके लड़के के लिए उन से करता है तो यह मुंह उठा कर बड़ी बेरुखी से कहते हैं ओ भाई अभी तो हम कई साल तक शादी नहीं करेंगे मगर दिल में है कि शादी तो करेंगे लेकिन खुब ज़्यादा मालदार रिश्ता आएगा तभी करेंगे और इसी तलाश व जुस्तजू में लड़का बूढ़ा हुआ जा रहा है मगर इन बूढ़े मां बाप को बुढ़ापे में लड़की को नहीं बल्कि छप्पन करोड़ की चौथाई की तलाश है
╭┈► यह मरने को बैठे हैं कब्र में पैर लटके हैं दुनिया में आग लगा रहे और माहौल को जला रहे हैं। उन्हें यह भी मालूम नहीं गरीब बाप की शरीफ़ बेटी जितना तुम्हारा ख़्याल करेगी, लाखों करोड़ों का सामान और जहेज़ लेकर आने वाली रईस व अमीर की लड़की सब से पहले तुम्हारी चारपाई घर से बाहर निकाल कर फेंकेगी और बजाए ख़िदमत करने के बुढ़ापे में उल्टी खिदमत कराएगी और बच्चे नहीं खिलाए तो रोटी तो रोटी पानी तक नहीं पिलाएगी। बुढ़ापे और कमज़ोरी व बीमारी में रेंठ थूक खंखार बलगम वगैरा की गन्दगी अगर घर में कर दी तो बढापे में पिटना भी पड़ सकता है। और यह सब वह बातें हैं जो माहौल में आजकल घर घर देखी जा सकती हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 24 📚*
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बूढ़े और बूढ़ियों के दिमाग ज़्यादा खराब हैं हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► लिहाज़ा उन बढ़े और बढ़िया से मेरी गुजारिश है कि यह अगर ख़ैरियत चाहें और बुढा में अपनी बेइज्जती और नाकदरी से बचना चाहें तो गरीबों शरीफों की शरीफ़ व पाकबाज़ कम पढ़ी लिखी या बेपढी बस दीन को थोड़ी ज़रूरी चीजों से वाकिफ़ लड़कियों से अपने लड़कों के रिश्ते करें वरना दुनिया में लगाई हुई आग में खुद ही जलना पड़ सकता है और आख़िरत की आग तो बडी भयानक और दर्दनाक है। हदीसे पाक में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया जब ऐसा शख़्स पैगाम भेजे जिसकी दीनदारी और अख़लाक़ में कोई कमी न हो तो रिश्ता करो वरना ज़मीन में फितना व फसादे अजीम होगा।
📕 तिर्मिजी, हाकिम, इब्ने माजा बहवालए बहारे शरीअत, हिस्सा 7 सफ़हा 44
╭┈► यानी दीनदारी और अख़लाक़ अच्छे हों तो महज दौलत मालदारी न होने की वजह से रिश्तों को ठुकराना मुसलमान की शान नहीं है। लालच और बेवकूफी में कितने इन बौराए हुए बूढ़े बूढ़ियों ने बड़े घरानों की माडर्न स्मार्ट घाट घाट का पानी पीने वाली लड़कियों से अपने बेटों की शादी कर दी लेकिन बाद में निहायत ख़राब दिन देखने को मिले। जेलों और थानों की हवा तक खाना पड़ी। बुढ़ापे में पका पका कर या मांग मांग कर खाना पड़ रहा है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 25 📚*
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नाजाइज़ ताअल्लुक़ात के बाद भी निकाह हो सकता है हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► कभी कभी ऐसा भी होता है कि आजकल के माहौल की बे राह रवी बेपर्दगी, लड़कियों लड़कों के मेल जोल बातचीत दोस्ती व तअल्लुक़ात पर रोक न लगाने की वजह से उनमें नाजाइज़ तअल्लुक़ात क़ाइम हो जाते हैं। इस मौक़े पर लड़की वाले तो यह बेवकूफ़ी करते हैं। उस वक़्त सो रहे थे जब लड़का घर में आता जाता था। आंखें फोड़ ली थीं या फूट गई थीं। जब लड़की उस लड़के से बेतकल्लुफ़ बातचीत करती थी या उसके साथ घूमने जाती थी। क्या बूढ़े बाल बच्चेदार हो गए और तुम को अभी तक यह मालूम नहीं हुआ कि मर्द में औरत की तरफ़ और औरत में मर्द की तरफ़ कितनी रग़बत कशिश और नफ़्सानी मैलान रखा गया है। आग और पैट्रोल जब इकट्ठे होंगे तो आग बुझाना मुश्किल हो जाएगा। अब बड़े इज़्ज़तदार बन रहे हैं और थाने के चक्कर लगा रहे हैं नाक कट गई। अब उसे जुड़वाने चले हैं। अरे नादान यह अगर जुड़ भी गई तो निशान फिर भी नहीं जाएगा। इसीलिए तो इस्लाम में पर्दा रखा गया। वह 20 साल की होकर भी तेरी नज़र में लल्ली और गुड़िया ही है। मगर उससे भी पूछा है कि उसके जिस्म में कितनी आग है। जिनको बुढ़ापे में भी एक दूसरे के बगैर चैन नहीं वह अपनी जवान औलाद को बेनफ़्स ख़्याल करते हैं यह इस दौर की बड़ी बेवकूफ़ी है। सही बात यह है कि अब यह थाने के चक्कर इज्ज़त व बदनामी को वापस नहीं ला सकेंगे बल्कि यह गन्दगी को कुरेद कर और ज़्यादा बदबू को फैलाने वाली मिसाल है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 25 📚*
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नाजाइज़ ताअल्लुक़ात के बाद भी निकाह हो सकता है हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► अब ख़ैरियत व भलाई इसी में है जो जिससे मुतमइन हो गया उसको उसी के साथ रहने दे और नाजाइज़ काम को जाइज़ तरीक़े से होने दे और निकाह के लिए राज़ी हो जा और हराम कारी को हलाल बनाने के लिए सर झुका दे। कभी ऐसा भी सुनने और देखने में आया है कि नाजाइज़ तअल्लुक़ात के बाद लड़की भी राज़ी और उसके घर वाले भी और लड़का भी आमादा है। लेकिन लड़के के मां बाप के पेट में दर्द हो रहा है कि ऐसे सादा निकाह कैसे हो सकता है। बूढ़े को बारात और जहेज़ की पड़ी है वह पागल बना घुम रहा है और हराम को हलाल होने से रोक रहा है। अभी हाल में एक ऐसा ही निकाल कराने के लिए अहले मुहल्ला और पन्चायत वालों को हुकूमत का सहारा लेना पड़ा और थानेदार ने निकाह पढ़वाने के लिए जब क़ाज़ी को बुलाया तो बाप को इतना दर लिए हवालात में बन्द करना पड़ा।
╭┈► एक जगह एक लड़के ने मुहल्ले की लड़की से जबरन बदकारी की। बस्ती के लोगों ने निकाह करने की तजवीज़ पास कर दी। लड़का भी राज़ी और लड़की भी और उसके घर वाले भी लेकिन लड़के को उसके बाप ने ग़ाइब कर दिया और किसी रिश्तेदारी में भेज दिया। ख़ुलासा यह कि आजकल नौजवान लड़कों और लड़कियों से भी ज़्यादा कुछ बूढ़े और बूढ़ियों के दिमाग ख़राब हैं और माहौल को बिगाड़ने और आग लगाने में इनका ज़्यादा हाथ है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 26 📚*
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ख़ैरियत चाहो तो शरीफ़ों की बेटियों से शादी करों ❞
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╭┈► बीवी और दुल्हन घर लाने का मक़सद घर में चैन व सुकून हासिल करना होता है, और यह शरीफ़ सीधी सच्ची पर्दानशीन घरेलू भोली भाली औरतों से ही हासिल हो सकता हैं ज़्यादा पढी लिखी स्मार्ट और माडर्न लड़कियाँ उमूमन वबाले जान साबित होती हैं। नाकों चने चबवाती हैं, उल्टी ख़िदमत लेती हैं और वह बूढ़े और बूढ़ियां जो अपने लड़के के लिए ख़ूब मालदार घर की ज़्यादा जहेज़ लाने वाली हीरोईन तलाश कर रहे थे उनका तो ख़ूब इलाज करती हैं और उन्हें सही कर देती हैं। और शादी के वक़्त समधियाने का क़ीमती जोड़ा पहन कर जो बड़े मियां और बड़ी बी बहुत ख़ुश थे घर भर के जहेज़ देख कर फूले नहीं समा रहे थे। शादी के बाद उनकी ख़ूब मरम्मत हो रही है। और घर घर रोते पीटते और गिले शिकवे करते फिर रहे हैं। नादानों बीवी औरत या दुल्हन तो वही बेहतर जो सीधी सच्ची, भोली भाली, कम से कम पढ़ी लिखी हो जिसने घर का दरवाज़ा कम देखा हो और जिसने हर घर देखा हो अगर तुम्हें दर दर की ठोकरें न खिलाए तो बताना।
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफहा 27 📚*
⚠ *Note:-* शरीफ़ घरों और कम लिखी पढ़ी से मुराद जिसने दीन ए इल्म को समझा हो, जिनके घरों मे अल्लाह और रसूल का ज़िक्र होता हो उन घरों की लड़कियां कनीज़े फातिमा होतीं है, जो अपने मज़हब के खिलाफ़ कोई काम नहीं करतीं है, खुद भी शरीअत के दायरे मे रहती है, और अपने शौहर अपनी औलाद को शरीअत पर ला देती है! इस्लाम इल्म हासिल करने से मना नहीं करता पर हमारी ख्वातीन मां बहनों को शरीअत के दायरे मे रहकर सीखने की इज़ाज़त देता है।..✍
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लड़की देखने के बहाने ख़र्चे कराना ❞
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╭┈► ऐसा भी ख़ूब देखने में आ रहा है। दस-दस बीस-बीस मर्द और औरतें लड़की देखने जाते हैं। वह बेचारा उनकी दिलजोई के लिए हस्ती मिटा कर ख़ातिर व तवाज़ो करता है और हज़ारों रुपया ख़र्च कर डालता है और यह बेरहम संगदिल वापस आकर मना कर देते हैं कि लड़की पसन्द नहीं। मैं कहता हूं जब लड़की पसन्द नहीं थी तो फिर यह ख़र्च कराने की क्या ज़रूरत थी। क्या मुर्गे बकरे और मिठाईयां ठसे बगैर लड़की देखने की कोई सूरत नहीं थी? बस बात यह है कि तुम दीन छोड़ कर ज़ालिम व बेरहम हो गए जफ़ाकार और सितमगर हो गए और एक दूसरे का ख़ून पीने में लग गए। क़ब्र व जहन्नम को बिल्कुल भूल गए और चन्द रोज़ा दुनिया की ज़िन्दगी पर फूल गए।...✍🏻
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 28 📚*
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ब्याह शादी के ग़ैर ज़रूरी इख़राजात हिमाक़त व बेवकूफ़ू है और मसलिहत के खिलाफ़ है हिस्सा - 01❞
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╭┈► ज़रूरी नहीं है जो दो इन्सान निकाह के ज़रिए आपस में जुड़ रहे हैं वह जुड़े ही रहें और ज़िन्दगी भर साथ रह सके। मिज़ाज अपना अपना दिमाग अपना अपना, आदतें अपनी अपनी तो हो सकता है कि ज़िन्दगी साथ में गुज़ारना सिर्फ़ दुशवार ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जाए। इन्सान की फितरत ही कुछ ऐसी है कि कभी किसी को किसी के साथ रह कर सुकून मिलता है और कभी कोई किसी से जुदा और अलग हो कर राहत महसूस करता है।
╭┈► इसलिए इस्लाम में तलाक़ रखी गई। तलाक़ में भी हिकमत है और तलाक़ भी रहमत है। यह तो उन जोड़ों से पूछिये कि वह एक दूसरे के साथ रहने पर मौत को तरजीह देते हैं। और गोलियां खा कर या फांसी लगा कर मरते हैं। क्या ऐसे वाक़िआत व हादसात की आजकल कमी है कि मुझको समझाने की और बताने की ज़रूरत हो? क्या अख़बारात का कोई शुमारा आप को किसी ऐसे वाक़िए से ख़ाली नज़र आ रहा है? तो तलाक का मतलब सिर्फ़ यही है कि बजाए फांसी लगा कर या ज़हरीली गोलियां खाकर मरने के दोनों का रास्ता अलग - अलग कर दिया जाए।...✍🏻
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 28 📚*
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ब्याह शादी के ग़ैर ज़रूरी इख़राजात हिमाक़त व बेवकूफ़ू है और मसलिहत के खिलाफ़ है हिस्सा - 02 ❞
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╭┈►यह भी हो सकता है कि किसी तबई हिस्सी कमज़ोरी या बीमारी की वजह से मर्द औरत के या औरत मर्द के लाइक़ ही न हो। क्या लड़के का नामर्द होना या लड़की का हमबिस्तरी और सोहबत के क़ाबिल न होना एक मख़सूस बीमारी की वजह से यह सब कोई नामुमकिन या क़ाबिले तअज्जुब बातें नहीं हैं। तो इन सब सूरतों में शादी के वक़्त के तमाम इख़राजात, लेने देने, हदिये, तोहफे बेमअना और बेकार हो कर रह जाते हैं।
╭┈► सारी फ़िजूल-ख़र्चियां धुआं बन कर उड़ जाती हैं और सब कूदने फांदने, नाच और तमाशे वीडियो फ़िल्में और फोटोग्राफ़ियां मौत के सन्नाटे में तब्दील हो जाती हैं। एक बार ऐसा भी देखा गया कि भारी मंगनी सगाई हुई फिर लम्बे ख़र्चे के साथ तारीख़ तय हुई, बारात चढ़ी, खाने पीने और नाश्ते हुए। और बस्ती वालों में से किसी का बारातियों से किसी बात पर झगड़ा हुआ ख़ूब दोनों तरफ़ से मार पीट हुई पुलिस तक आ गई और बारात को जैसी आई थी पिट पिटा कर वैसे ही वापस होना पड़ा। सब खाने ख़र्चे बेकार होकर रह गए।...✍🏻
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📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 29 📚*
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इस्लाम हिक़मतों वाला मज़हब है ❞
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╭┈►इस्लामी नुक़तए नज़र से निकाह से पहले कोई ख़र्चा किसी पर शरअन लाज़िम नहीं। निकाह और मियां बीवी की मुलाक़ात यानी ज़ुफ़ाफ़ के बाद शहर के लिए कुछ लोगों को खिलाना पिलाना सुन्नत है जिसे 'वलीमा' कहते हैं। वह भी अगर मौक़ा हो तब *
रसूले पाक ﷺ* ने जो निकाह फ़रमाए सब में वलीमा देने का सबूत नहीं मिलता है। हां बाज़ में दिया, वह भी बड़ी सादगी के साथ ताकि यह भी उम्मत पर वाजिब व फर्ज़ न हो जाए। इस्लाम जैसे अमीरों का मज़हब है वैसे ही ग़रीबों का। और दामने *
मुहम्मद मुस्तफा ﷺ* में सबका ठिकाना है।
╭┈► ख़ुलासा यह कि ब्याह शादी में जो रस्में नाजाइज़ व हराम हैं मसलन नाच-गाने, बैन्ड बाजे, आतिशबाज़ी, फोटोग्राफ़ियों, एलबम बनवाना वगैरा उनसे तो बचना निहायत ज़रूरी है क्यूँकि *अल्लाह तआला* को नाराज़ करके जो ख़ुशी हासिल हो वह ख़ुशी नहीं है और जो रस्में जाइज़ व हलाल या मुस्तहब हैं मसलन खाने खिलाने, हदिये, तोहफ़े जहेज़ और दूसरे लेने देने उनकी पाबन्दी भी इस हद तक नहीं होना चाहिए कि यह न हों तो निकाह ही न होगा ख़्वाह लड़कियों और लड़के बूढ़े हो जायें और अब चूंकि माहौल ऐसा ही हो गया है। रस्मो रिवाज को इतना ज़रूरी समझ लिया गया है कि उनकी वजह से निकाह नहीं हो पा रहे हैं। लिहाज़ा मेरा मशवरा तो यह है कि अब जो एक दम बिल्कुल सादा निकाह करेगा वह यकीनन इस दौर में बड़े अज्र व सवाब का मुस्तहिक होगा। उसको *मुस्तफा प्यारे आक़ा ﷺ* की सुन्नत को ज़िन्दा करने का सवाब मिलेगा। रस्मो रिवाज ब्याह शादी के लम्बे लम्बे ख़र्चों की वजह से निकाह नहीं हो पा रहे हैं और जवान लड़को और लड़कियों का घरों में बे-निकाह रहना ज़िनाकारी, गुन्डागर्दी और बेहयाई के बीज बोना है और शैतान को ख़ुश करना है।..✍
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📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 30 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 30
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❝ एक फ़रमाने रसूल ﷺ हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► हदीस पाक में है कि फ़रमाया *रसूले पाक ﷺ* ने सब से ज़्यादा बरकत वाला निकाह वह है जिसमें बोझ हल्का हो (यानी ख़र्चा कम हो)!
📕मिश्कात, सफ़हा 268
╭┈► लगता है कि आजकल जो घर घर में झगड़े लड़ाईयां और शादी के बाद की मुक़दमे बाज़ियां इसी फ़रमाने रसूल पर अमल न करने की वजह से हैं कि आपने निकाह को हल्का बेबोझ करने के लिए फ़रमाया और उसमें बरकत बताई और तुमने निकाहों को अज़ाब बना डाला और बे-जा ख़र्चों ने वह हालात पैदा कर दिये हैं कि लगता है कि आने वाले वक़्त में निकाह शादियां तो कम होंगी अलबत्ता ज़िनाकारी व बदकारी ज़्यादा होगी और यह होगा कि यह उसके साथ भाग गई या वह उसको भगा कर ले गया।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 31
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❝ एक फ़रमाने रसूल ﷺ हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► आज माहौल यह है कि अगर दरमियानी या ऊंचे तबके के लोगों में किसी लड़के का किसी लड़की से बिल्कुल सादा निकाह कर दिया जाए और लड़की को रुखसत कर दिया जाए न बारात हो, न जहेज़, न लेने देने, न मंगनी, न सगाई तो लोग उसको इतना बुरा ख़्याल करेंगे कि इतना किसी हराम काम को भी बुरा नहीं समझते। मैं कहता हूं यह गुमराही नहीं तो और क्या है? अफ़सोस कि जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम और आपके जानिसारों ने निकाह फ़रमाए तुम उस तरह के निकाहों को हराम कामों से भी ज़्यादा बुरा समझने लगे कि हराम काम करने वालों को तो तुम न टोकते हो न रोकते। और बिल्कुल सादा निकाह किया जाए तो लोग जीना दूभर कर देंगे। मुंह पिचकाए फिरेंगे जिनते मुंह होंगे उतनी ही बातें। अफ़सोस कि तुम इस्लाम से कितने दूर हो चुके हो।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 32
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❝ निकाह अल्लाह तआला की रहमत है हिस्सा - 01 ❞
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╭┈► निकाह अल्लाह तआला की रहमत, *रसूल ﷺ* की सुन्नत, दीन की हिफाज़त है। इसको जितना आम किया जाए बेहतर है। और निकाह जितने ज़्यादा होंगे उतनी ही बदकारियां कम होंगी। इसको आसान करो, हल्का करो, बे ख़र्चां या कम से कम ख़र्चे में करो अगर कोई बेवा औरत निकाह करे तो इसको बुरा मत मानो। यूंही कोई औरत हज को जाना चाहती है और साथ के लिए महरम या शौहर नहीं किसी जाने वाले से निकाह करके चली जाए या किसी के साथ निकाह करके उसको अपने साथ हज में ले जाए तो उसमें भी ऐब की बात नहीं। यूंही कोई औरत किसी भी क़ौम व मुहल्ले के दीनदार आदमी की ख़िदमत करना चाहे ख़्वाह बूढ़ा ही सही और वह इसके लिए उस से निकाह कर ले तो उसमें भी कुछ हरज नहीं बल्कि बेहतर है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 32 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 33
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❝ निकाह अल्लाह तआला की रहमत है हिस्सा - 02 ❞
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╭┈► क्यूंकि निकाह का मक़सद सिर्फ़ नफ़्सानी ख़्वाहिशात की तकमील नहीं बल्कि एक दूसरे की ख़िदमत, तीमारदारी या तन्हाई को दूर करना भी है। आज माहौल यह है कि एक बेवा औरत के घर एक शख़्स का आना जाना था। दोनों अपने अपने घर बाल बच्चे दार थे लेकिन जब निकाह के लिए कहा गया तो तय्यार नहीं हुए। और नाजाइज़ तौर पर एक दूसरे से मिलते रहे। उन्हें समझाया गया कि निकाह कर लो फिर एक दुसरे से मिलते रहो ख़्वाह अपने अपने घर अपने अपने बच्चों में रहा निकाह के बाद यही आना जाना जो नाजाइज़ तरीक़े पर है, जाइज़ हो जाएगा और जो हराम हो रहा है यह हलाल हो जाएगा तो यह बात उनकी समझ में नहीं आई और नाजाइज़ तअल्लुक़ात बाकी रहे लेकिन निकाह करके उन्हें जाइज़ नहीं किया। यह सब गुमराहियां हैं और इस्लाम से दूरिया है।
⚠ *Note :* जो औरत हज को जाना चाहे शौहर इंतकाल कर गया या तलाक़ हो गई ऐसी औरत पहले अपनी इद्दत गुज़ारे फिर दूसरे मर्द से निकाह करें ज़्यादा मालूमात के लिए इद्दत के बयान की तफ्सील पढ़े।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 32 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 34
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❝ मज़हबे इस्लाम का जवाब नही हिस्सा-01 ❞
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╭┈► मज़हबे इस्लाम में शादी के मौक़े पर तो लड़की वालों पर कोई ख़र्चा लाज़िम व वाजिब नहीं। हां यह है कि जब बाप का इन्तिकाल हो तो जिस तरह बेटों का उसकी जाएदाद में हिस्सा है उसका आधा हिस्सा बेटियों को दिया जाए ख़्वाह जाएदाद मनकूला हो या ग़ैर मनकूला उसमें कितनी हिकमतें और मसलहतें हैं मुलाहिज़ा फरमायें
╭┈► 1) माएके वाले शादी में इख़राजात करके जहेज़ देकर बारात को खिला कर दूल्हा और उसके घर वालों को जोड़े पहना कर यह समझ लेते हैं कि हमने लड़की का हक़ अदा कर दिया और जो उसका था उसको दे दिया और यह चीज़ें फ़ना हो जाती हैं और अगर बची भी तो उनकी वह क़ीमत नहीं रहती। अब अगर इन हवा में उड़ जाने वाले फालतू ख़र्चो के बजाए बाप के तर्के और जाएदाद में लड़की का हिस्सा रहे तो वह उसकी मज़बूती है और ज़िन्दगी गुज़ारने का एक सहारा। अब अगर शौहर से न निभ सके या शौहर मर जाए तो बाप की कमाई और उसमें लड़की का हिस्सा काम आएगा। ब्याह शादी में जो ख़र्च हो गया वह काम नहीं आएगा। उसमें से अब क्या रखा होगा?।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 33 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 35
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❝ मज़हबे इस्लाम का जवाब नही हिस्सा-02 ❞
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╭┈► 2) शौहर आवारा अय्याश मतलबपरस्त और धोकेबाज़ भी हो सकता है और हो सकता है कि ससुराल में ठिकाना न लगे और माएके वाले शादी के वक़्त जहेज़ देकर बारात को खाना खिला कर जोड़े पहना कर पीछा छुड़ा बैठे अब बताइये वह कहां की रही।
╭┈► 3) शौहर से निबाह न होने की बिना पर अगर तलाक़ हो तो इस्लामी क़ानून में लड़की को शौहर से महर दिलाया जाए और बाप के तर्के से हिस्सा तो जिसको शौहर की तरफ़ से इद्दत का नान नफ़क़ा और महर और बाप की तरफ़ से जाएदाद में हिस्सा दिलाया गया हो उसके बारे में यह कहना कि इस्लाम मज़हब ने औरत को लावारिस छोड़ दिया है। यह या तो जहालत व नावाक़िफ़ी है या इस्लाम को बदनाम करने की साज़िश और तअस्सुर परस्ती और कुछ भी न सही तो इस्लाम में तो हर साहिबे निसाब पर साल में एक मरतबा ज़कात निकालना फर्ज़ करार दिया गया है। यह ऐसे ही लावारिस मर्दो, मोहताज औरतों के लिए है। अलग अलग अपने तौर पर भी दिया जा सकता है और बैतुल माल इस्लामी फंड बनाकर उससे भी लावारिस औरतों के वज़ीफे मुक़र्रर किये जा सकते हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 33-34 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 36
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❝ मज़हबे इस्लाम का जवाब नही हिस्सा-03 ❞
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╭┈► 4) ब्याह शादी के वक़्त इख़राजात न किये जायें और बाप के तर्के से उसके मरने के बाद लड़की को हिस्सा दिया जाए तो अगर किसी को पचास बेटियां भी हों लेकिन उसको अपनी ज़िन्दगी में उनके निकाह की कोई फ़िक्र न होगी सुकून से ज़िन्दगी कटेगी। ईमानदारी से कमाएगा और हलाल खाएगा और उसके बेटों पर भी उसके मरने के बाद कोई बोझ नहीं। क्यूंकि लड़की का हिस्सा बाप की कमाई और उसकी जाएदाद में है न कि भाईयों को, यानी उनका अपना कुछ नहीं जाएगा। बाप के छोड़े हुए में से जाएगा तो उनको उसमें परेशान नहीं होना चाहिए और बाप जिस तरह बेटों का है वैसे ही बेटियों का भी। तो उन्हें बाप की कमाई और जाएदाद में से बहनों को हिस्सा देने में अगर तकलीफ़ होती है तो यह एक निहायत ग़लत बात है। वह तुम्हारा नही जा रहा है वह जिसका है उसको जा रहा है। आख़िर तुमको भी तो मिला है बल्कि उन से दो गुना मिला है। यह कहां का इन्साफ है कि जिस बाप के बेटे हैं उसी की बेटिया जब बेटियों को उसके तर्के से हिस्सा दिया जाए तो बेटियों को क्यूं नहीं? उसको मुकम्मल तौर पर शौहर का मुहताज क्यूं बनाया जा रहा है?
╭┈► आजकल आमतौर से बेटे बाप की जाएदाद के ऊपर क़ब्ज़ा कर लेते हैं। बहनों को हिस्सा नहीं देते। या हक़तल्फ़ी, ज़ुल्म और बेईमानी है। यह हिस्सा बहनों के माफ़ करने से माफ़ भी नहीं होता। बहरहाल देना ज़रूरी है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 34 📚*
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*❝मज़हबे इस्लाम का जवाब नही हिस्सा-04❞*
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╭┈► 5) चूंकि आजकल लड़कियों को बाप की जाएदाद से बतौर विरासत कुछ न देने का रिवाज पड़ गया है और ब्याह शादी के इख़राजात को तर्के का बदल ख़्याल किया जाता है। तो लडकियाी शादी के वक़्त ऐसी रुख़सत होती हैं। जैसे उनका जनाज़ा जा रहा हो क्यूंकि अब वहां उनका कुछ नहीं रहा। अब वह वहां दो रोटी भी खायेंगी तो महमानी के तौर पर और एहसान लेकर। कभी ठहरेंगी तो तो पराया घर समझ कर तो शादी के वक़्त रुख़्सती का ग़म उन्हें ज़्यादा होता है। और शादी की ख़ुशी कम हमेशा के लिए जाने के सदमे तले दब जाती है। और उसी लड़की को अगर यह मालूम हो कि यहां मेरा हिस्सा है। जो हर हाल में मेरा है मुझको मिलना है तो रुख़्सती का सदमा यक़ीनन कम होगा क्यूंकि इन्सान जहां पैदा होता है और जिस माहौल में परवरिश पाता है उसकी मुहब्बत उसके दिल से कभी नहीं निकलती तो ऐसी जगह उसकी मिल्कियत रहे यह एक बेहतर बात है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 35 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 38
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❝ शादी के वक़्त के इख़राजात को बाप की जाएजाद से लड़की का हिस्सा समझना ग़ैर मुस्लिमों की देन है ❞
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╭┈► आज कोई बेटी अगर बाप के तर्के से अपने हिस्से का मुतालबा करे तो यह कहा जाता है कि हमने तेरी शादी में यह किया और यह किया। यह जहालत व गुमराही है और यह सब ग़ैर इस्लामी बातें जो मुसलमान होकर लोग करते है। कोई माने न माने अमल करे न करे लेकिन यह बता देना और ज़ाहिर करना ज़रूरी है कि इस्लामी मिज़ाज यही है कि निकाह बिल्कुल सादा हो उसमें हरगिज़ कोई ख़र्चा न हो। लेकिन बाप के तर्के और विरासत से बेटियों को हिस्सा दिया और दिलाया जाए। हम आजकल के अक्सर मुसलमान से यह उम्मीद नहीं कि वह इस पर अमल करेंगे लेकिन यह सोच कर मैं लिख रहा हूं कि शायद ख़ुदाए तआला आइन्दा ज़माने में ऐसे लोग पैदा फ़रमा दे। जिनका हर कौल व फेल इस्लाम का नमूना हो और वह दुनिया को दिखायें कि इस्लाम क्या है और ऐसा हो जाए तो यह जो ग़ैर मस्लिम है यह भी मुसलमान हो जायेंगे। आप ख़ुद सोचिये कि बेटियों का हिस्सा शादी के वक़्त खिला पिला कर और फालतू सामान देकर उड़ा दिया जाए और बेटों का हिस्सा बाक़ी रखा जाए यह बेवकूफ़ी और नाइन्साफ़ी नहीं है तो और क्या है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 35-36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 39
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❝ ज़रूरत हिम्मत की ❞
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╭┈► माहौल में तब्दीली लाने और बिगड़े हुए मुआशरे को सुधारने के लिए बड़ी हिम्मत व जवांमर्दी की ज़रूरत होती है जो लोग यह कहते हैं कि दौर ही ऐसा है। माहौल कुछ ऐसा है। सब ऐसा कर रहे हैं हम कैसे बचें सब से अलग कैसे चलें। ऐसे लोग दुनिया में कभी न कुछ कर सके न कर सकेंगे। दुनिया में इन्क़िलाब व तब्दीली वही लोग लाते हैं और माहौल में इस्लाह व सुधार वही लोग करते हैं जो यह नहीं देखते कि लोग क्या कर रहे हैं बल्कि वह यह देखते हैं कि सही क्या है और हमें वह करना है वही सही है चाहे ज़माना कुछ भी कहे और ऐसे ही लोग नामवरी कमाते हैं और तारीख़ में उनके चर्चे रहते हैं। शुरू मे लोग उन्हें पागल और दीवाना कहते हैं। बुरा भला बकते और गालियां देते हैं। लेकिन बाद में वही उनको दुआयें देते उनकी तारीफें करते उनके आशिक़, चाहने वाले और दीवाने हो जाते हैं। यह जिनके मज़ारों पर भीड़ लगी है और जिनके चर्चे तज़करे गली गली हैं यह सब वही लोग है जिन्होंने ज़िन्दगी मे ज़ुल्म सहे है गालियां खाई है, और उन्हे पागल दीवाना कहा गया है, मगर उन्होंने वही कहा और वही किया है जिससे अल्लाह तआला राज़ी है और उसका रसूल ﷺ।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 40
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❝ लड़के और लड़को वाले आगे बढ़े ❞
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╭┈► आज के दौर में लड़की वालों के लिए तो बड़ी मजबूरियां हैं लेकिन नौजवान लड़के और उनके घर वाले हिम्मत से काम लेते हुए माहौल को बदलने के लिए और जलती हुई आग को बुझाने के लिए आगे बढ़े मैदान में उतरें और शरीफों की शरीफ़ बेटियों से एक दम सादा निकाह करने के लिए तय्यार हो जायें और साफ़ कह दें कि हमें कुछ नहीं चाहिए बल्कि वह अगर माहौल व हालात की वजह से या अपनी शान व शेखी दिखाने के लिए तय्यार हों भी तो सख़्ती से मना करें बल्कि मांगों और डिमान्डों की जगह उल्टी शर्त यह लगायें कि हम आपकी बेटी से शादी तभी करेंगे जब निकाह बिल्कुल सादा हो न मंगनी न सगाई न रस्मो रिवाज न बारात न लेने न देने। हां जहेज़ के तौर पर कुछ ज़रूरी घरेल चीजें, पलंग, पीढ़ी, दो एक बिस्तर खाने पीने के दो चार बरतन हों तो कुछ हरज नहीं लेकिन यह भी उसी के लिए जिनके बस की बात हो और वह मांग कर या शर्त लगा कर न हो।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 41
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❝ जो कुछ देना हो अपनी बेटी को ❞
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╭┈► आजकल चूंकि आमतौर से बेटों की जाएजाद से हिस्सा न देने का ग़लत रिवाज पढ़ गया है लिहाज़ा शादी के मौक़े या पहले या बाद में कोई बाप अपनी बेटी का जाएदाद की शक्ल में कुछ दे दे तो कोई हरज नहीं लेकिन निकाह व शादी मे ख़र्चे न करना बेहतर है और शौहर और उसके घर वालों को चाहिए कि साफ़ कह दे कि आप को कुछ देना है तो अपनी लड़की को दीजिए आप जानें आपकी लड़की और घर वालों की तरफ़ से बेटी को जो कुछ मिले उस पर दबाव बना कर मजबूर करके ज़बरदस्ती उससे शौहर या उसके घर वालों को कुछ लेना ज़ुल्म व हराम है। बल्कि उन्हें चाहिए कि उससे बजाए लेने के उसको महर की रक़म दें और दोनों तरफ़ से लड़की की मज़बूती की जाए और वक़्त ज़रूरत यह रक़म या जाएदाद उसके काम आयें जो शौहर औरत की फ़ितरी कमज़ोरी से फ़ाइदे उठाते हैं और उसे मजबूर करके ज़ुल्मन उसकी अपनी मिल्कियत पर कब्ज़े जमाते हैं या उनसे ज़बरदस्ती कमाई के लिए काम धन्धे कराते हैं यह सब काहिल, आराम तलब निकम्मे, निखट्टू, ज़ालिम व हरामखोर हैं। अल्लाह तआल ने उनके लिए जहन्नम तय्यार कर रखी है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 42
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❝ जो कुछ देना हो अपनी बेटी को दो ❞
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╭┈► बाज़ घरों में देखा कि लड़कियां अपनी शादी के लिए ख़ुद कमा कमा कर काम धन्धे करके दौलत जमा करती है ताकि उससे बारातों का ख़र्चा पूरा हो और जहेज़ वगैरा की तय्यारियां हो। मैं कहता हूं अगर वह कुछ कमा रही हैं तो उनकी कमाई को बारातियों को खिलाई और जहेज़ के फालतू चीज़ों की ख़रीदारी में क्यूं बरबाद करते हो। निकाह सादा करो और उनकी कमाई उनके पास रहने दो ताकि वक़्ते ज़रूरत वह उसके काम आए और जब वह तुम्हारी बीवी होगी और उसके पास कुछ होगा तो हरज मरज़, बीमारी मुसीबत में वह तुम्हारे या तुम्हारे बच्चों के काम में अ सकता है। उसकी मज़बूती तुम्हारी मज़बूती है। वफ़ादार बीबी यह कब गवारा करेगी कि आप भूके हों और वह खाना खाए। तो उसकी कमाई को बारात ले जा कर बरबाद करे बे वजह के यार दोस्तों को एक दिन में खिला पिलाकर और फ़ालतू बेज़रूरत के सामान बतोरे जहेज़ खरिदवा कर क्यूं उड़ाए और छिनवाए देते हो उसका उसके पास रहने दे वह वक़्त पर तुम्हारा ही होगा।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 38 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 43
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❝ मांग और डिमांड हराम है ❞
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╭┈► आज लड़के और उनके घर वाले जो लड़की वालों से तरह तरह की मांगे करते है और डिमान्डें उनके सामने रखते है कि उस वक़्त इतना और उस वक़्त उतना चाहिए। कभी मंगनी, सगाई और तारीख़ तय करने के बहाने कभी जोड़ा पहनाने और त्यौहारों को आड़ लेकर यह सामान चाहिए। ऐसा ऐसा खाना और नाश्ता चाहिए तब निकाह होगा तभी हम आपकी बेटी से रिश्ता करेंगे यह सब रिश्वत और हराम है और लेना, खाना सब हराम है। जैसे सुअर और मुरदार, शराब और सूद क्यूंकि यह रिश्वत है। और रिश्वत इस्लाम में सख़्त हराम है। हदीसे पाक में अल्लाह के रसूल ﷺ ने रिश्वत लेने वाले को जहन्नमी फ़रमाया और यह उसका फरमान है कि जिसके मुंह से निकली बात न कभी ग़लत होती है न होगी। जिसकी बात ख़ुदा तआला की बात है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 39 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 44
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❝ मांग और डिमांड हराम है ❞
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╭┈► और लड़की वालों से जबरदस्ती दबाव बना कर मांग मांग कर अपने घरों को भरने बालो मांगी हुई मोटर साइकिलों और कारों पर बैठने वालो कभी आग की चिंगारी थोड़ी देर के लिए हाथ पर रख कर देखो कितनी तकलीफ़ होती है। फिर जहन्नम की आग में जलोगे तो कैसे झेलोगे। याद रखो अल्लाह तआला की मार कड़ी है और उससे बच कर कोई निकला हो तो हमें बताओ। मौत की कलाई किसी ने थामी हो तो हमें बताओ। मौत से पंजा छुड़ा कर कोई भागा हो तो ऐसी कोइ मिसाल लाओ। तुम ज़ालिम व ज़फाकार हो गए। तुम मुसलमान कहलाते हो तुम हरामख़ोर और हरामकार हो गए।तुम आपस में एक दूसरे का ख़ून पीने लगे। तुम बेरहम संगदिल भेड़िये बन गए। ज़ल्दी होश में आओ आंखें खोलो। उससे क्या फ़ाइदा कि फिर मौत तुम्हारी आंखें खोले क़ब्र में तुमको होश आए।
╭┈► सुनो तुम्हारा परवरदिगार क्या फरमाता है : जो लोग बुरे काम करते है क्या उन्होंने यह समझ रखा है कि वह हम से बाहर निकल जायेंगे"।...✍🏻
📕 क़ुरआन सूरए अनकबूत रूकू 1
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 39 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 45
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❝ यह शादी है या फिरौती ❞
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╭┈► अब तो यह भी हो रहा है कि शादी के बाद बीवी को मजबूर करते हैं। यहां तक कि बाज़ ज़ालिम अत्याचारी उसको मारते पीटते हैं कि अपने बाप भाईयों से इतनी इतनी रक़म ले कर आओ और इन मुतालबों की ख़ातिर आग में जला कर मार डालने और क़त्ल करने के वाक़िआत भी अब रोज़ाना के मामूल हैं। में कहता हूं यह अल्लाह तआला की ढील से कितना फ़ाइदा उठा रहे हैं। जो दुल्हन बन कर तेरे लिए आई तुझको इंसान और शौहर समझ कर ख़ुद को तेरे सुपुर्द कर दिया। अपना सब कुछ तुझ पर कुर्बान कर दिया। मगर तू कुत्ते से ज़्यादा लालची और नियत ख़राब, भेड़िये से ज़्यादा बेरहम संगदिल और काले नाग से ज़्यादा डसने वाला ज़हरीला निकला। भेड़िये और नाग भी अपने जोड़ों पर ज़ुल्म नहीं करते और तू अपनी शरीके ज़िन्दगी बीवी ही के लिए बेरहम बन गया। याद रखो जो आग तुने लगाई है उसमें तुझे खुद ही जलना पड़ सकता है। तू भी बेटी और बहन वाला हो सकता है। और जहन्नम की आग तो तेरे ही जैसे लोगों के लिए तय्यार की गई है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 46
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❝ अपना घर छोड़ना आसान काम नही ❞
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╭┈► इन्सान जिस माहौल और जिन लोगों में पैदा होता, पलता, बढ़ता है मरते दम तक उसकी मुहब्बत उससे नहीं जाती है। हम ने देखा है और तजरबा किया है कि बाहर कितना ही आराम व सुकून लोग दे दें लेकिन अपने वतन की याद सताती है। चार दिन बाहर काटना मुश्किल होता है। घर भागने की हर शाम को ज़ल्दी होती है। लेकिन यह बेचारी औरत है जो अपने मां बाप, भाई बहन, घर मुहल्ले, सहेलियों और वतन को छोड़ कर शौहर के घर को अपना घर उसके मुहल्ले को अपना मुहल्ला उसकी बस्ती को अपनी बस्ती, उसके घर वालों को अपने घर वाले बना लेती है। और तुम चन्द दिन की दुनिया, रुपये पैसे और मोटर साइकिलों, मारूतियों की ख़ातिर उसका दिल तोड़ते हो। उसको ताने देते हो। मारते पीटते हो। बान्दियों और नोकरानियों की तरह उससे काम लेते हो। उसे तंग और परेशान रखते हो। जो रो रो कर अपने घर से आई थी। तुम उसको यहां ला कर रुलाते हो। जिसने अपना सब कुछ तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दिया। तुम भी उसके नहीं बन पाते हो। जिसने अपना घर छोड़ कर तुम्हारा दर आबाद किया। तुम्हारे घर में उसे ताने दिये जा रहे हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 40 📚*
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❝ अपना घर छोड़ना आसान काम नही ❞
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╭┈► अब बताओ वह कहां की रही। और तुम से बड़ा ज़ालिम कौन है कि उसने अपना सब कुछ तुम पर कुर्बान कर दिया और तुम्हारी नज़र उस पर नहीं बल्कि माल व दौलत पर है। दुनिया के साजो सामान पर है। बताओ यह दुनिया कब तक रहेगी और तुम उसे क्या सब दिन बरत पाओगे। और बताओ क्या मुहब्बत से बड़ी कोई और दौलत है। इसी लिए इस्लाम के अज़ीम पैगम्बर ﷺ ने फरमाया "तुम में सब से बेहतर वह लोग हैं जो अपने बीवी बच्चों के हक़ में बेहतर हैं और मैं तुम में अपने घर वालों के लिए सब से ज़्यादा बेहतर हूं।"
╭┈► और खूब जान लो जिसके दिल में मुहब्बत नहीं रहम नहीं दूसरे को दुखी करके सुख हासिल करे दूसरे को बरबाद करके आबाद होना चाहे अपने आराम के लिए दूसरों को परेशान करे। अपना घर भरने के लिए दूसरे के घर को वीरान करे। वह सही मअना में इन्सान और मुसलमान नहीं है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 41 📚*
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❝ लड़की देना एहसान है ❞
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╭┈► आज अजीब उल्टा दौर आ गया है कि अगर कोई किसी की बेटी से शादी करता है तो वह ख़ुद और उसके घर वाले यह समझते हैं कि हमने उन पर और उनकी लड़की पर बड़ा एहसान कर दिया और उनको तरह तरह से दबाते नखरे और ठस्से दिखाते हैं और वह भी ख़ूब उनसे दबते और उनके नखरे ठस्से देखते हैं। और यह कहा जाता है कि अरे भाई लड़की वाले को तो दबना ही पड़ता है। हालांकि एहसान तो उसने किया है कि जिसने नाज़ व नेअम, लाड़ व प्यार से पाल कर अपनी बेटी दुल्हन बना कर आपके हवाले कर दी। यह, उल्टी मत है कि लड़की वाले को दबना पड़ता है। बात यह है कि वह दबता है क्यूंकि आप ज़ालिम और बेरहम हो गए हैं। बजाए इन्सान के शैतान हो गए हैं। अगर आप इन्शान है तो आपको उसका एहसान मानना चाहिए कि उसने अपनी बेटी लखते जिगर दिल का टुकड़ा आपको दे दिया। आप उसका जितना एहसान मानें वह कम है।
⚠ *Note* अफ़सोस होता है जब लड़के वाले लड़की वालो को दबाकर तरह तरह की डिमांड और मांगे करतें है, मुसलमानों किसी के देने से घर नहीं भरता है अगर घर को खुशियों और रब की रहमत से भरना है तो रब की रज़ा मे राज़ी हो जाओ आने वाली नस्ल भी नेक और फ़रमा बरदार होगी निकाह को आसान करों।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 42 📚*
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❝ इस दौर का मर्दे मुजाहिद ❞
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╭┈► आज के माहौल में अगर कोई किसी की बेटी से एक दम सादा निकाह करे और उसका किसी क़िस्म का कोई ख़र्चा न होने दे तो वह मर्द मुजाहिद है और उसको सौ शहीदो के बराबर सवाब मिलेगा जैसा कि फ़रमाने रसूल ﷺ है कि "जो मेरी सुन्नत को ज़िन्दा करे जब कि वह सुन्नत मिट चुकी हो तो उसको सौ शहीदों के बराबर सवाब मिलेगा"
╭┈► अब अगर बाप के मरने के बाद उसके भाई तुम्हारी बीवी को बाप के तर्के से हिस्सा नहीं देते तो वह दबाने वाले गुनहगार होंगे। उसका गुनाह उन पर होगा और तुम को उससे क्या मतलब भाई जानें और उनकी बहन वह तेरा नहीं मारा गया बल्कि वह तो उन्होंने अपनी बहन की हक़तल्फी की है। तेरा तो सुन्नते मुस्तफ़ा ﷺ के मुताबिक निकाह करने पर सौ शहीदों का सवाब पक्का है अल्लाह तआला का बादा सच्चा है उसको कोई काट नहीं सकेगा और अल्लाह तआला के करम से उम्मीद है कि वह दुनिया में भी तेरा घर भर देगा और तुझे तंग व परेशान नहीं होने देगा। रसूले ﷺ का फरमान है "रहम करो रब तआला तुम पर रहम करेंगा" और ख़ुद अल्लाह तआला ने निकाह करने वालों को बशारत सुनाई है। "अगर तुम्हें मुहताजी का डर है तो अन्करीब अल्लाह तुम्हें मालदार करेगा"।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 42-43 📚*
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❝ दीनदार समझदार लोग़ आपस में रिश्तेदारियां करें ❞
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╭┈► ब्याह शादियों के आसमान छुने वाले ख़र्चा को रोकने और उस जलती और फैलती आग को बुझाने के लिए भले दीनदार सूझ बुझ वाले और समझदार लोग आपस में रिश्तेदारियां करें। परेशानी और उलझन तभी सामने आती है जब दोनों तरफ़ के या किसी एक तरफ़ का ज़ाहिर दुनियादार और गंवार हो लेकिन दोनों तरफ़ के लोग समझदार, दीनदार हो तो फिर बिल्कुल सादा निकाह करने में दिक़्क़त क्यूं है? अब किसी को समझाने की क्या ज़रूरत है? मेरी राय में तो एक दम बिल्कुल बेखर्चे के सादा निकाह हों ताकि दुनिया के सामने इस्लाम का सही नमूना आए और रसूले पाक ﷺ के इस फरमान पर पूरे तौर पर अमल हो जिसको हम पहले नक़्ल कर चुके हैं कि जिस निकाह में जितना ख़र्च कम होगा उतनी ही ख़ैर व बरकत होगी?।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 43 📚*
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❝ दीनदार समझदार लोग़ आपस में रिश्तेदारियां करें ❞
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╭┈► मैं कहता हूं कहां हैं यह हाजी और नमाज़ी यह दाढ़ियां और टोपियों वाले, यह कुर्ते और पाजामे वाले, यह मौलवी और आलिम, यह इमाम और मुअज़्ज़िन यह इस्लामी दावते देने वाले नमाज़ और रोज़े और सुन्नतों की तबलीग व इशाअत करने वाले। जब ख़ुदाए तआला ने तुमको इन सब कामों की तौफीक़ दी है तो ब्याह शादी के बढ़ते हुए इन ख़र्चो की आग को बुझाने के लिए तुम आगे बढ़ो और इस्लामी मिज़ाज से दुनिया को अपने किरदार के ज़रिए रूशनास कराओ, आपस में रिश्तेदारियां करो और एक दम सादा निकाह करने का रिवाज बनाओ छोड़ो बिरादरी वाद कुन्बा परवरी और क़बीला परस्ती को। सब भले और दीनदार एक बिरादरी एक क़बीला एक कुन्बा और एक खानदान बन जाओ। अगर आप दौलतमन्द और मालदार भी हैं तो दौलत को खुदारा किसी और मौक़े के लिए रहने दो निकाह व शादी के वक़्त तो एक दम सादा मिज़ाज और ग़रीब बन जाओ कि दुनिया को राहत मिल सके और रहमते आलम की रहमत का बादल हर जंगल झाले छत आंगन और कोठे पर बरस जाए।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 43-44 📚*
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❝ दीनदार समझदार लोग़ आपस में रिश्तेदारियां करें ❞
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╭┈► ख़्याल रहे कि अगर यह ब्याह शादी के ख़र्चे नहीं रोके गए और यह ऐसे ही बढ़ते रहे तो आने वाले वक़्त में निकाहों की शरह घट जाएगी निकाह कम होंगे और जब निकाह कम होंगे तो बदकारियां ज़्यादा होंगी और दीनदारी ढकोसला और दिखाना बन कर रह जाएगी ऊपर से हाजी नमाज़ी और दाढ़ी वाले होंगे और अन्दर से शैतान। कभी मौलवी साहब की लड़की भगेगी और कभी इमाम साहब का लड़का ज़िना में पकड़ा जाएगा और हाजी साहब जो नमाज़ी भी हैं और दाढ़ी वाले भी यह किसी बेवा औरत के घर अकेले में देखे जायेंगे। मुबल्लिग साहब और अमीरे जमाअत के लिए अपनी इज्ज़त बचाना नामुमकिन हो जाएगा और तबलीगे तहरीकें तन्ज़ीमें सब धरी रह जायेंगी। जब लड़के और लड़कियां जवान हो जायें तो अब इन्तेज़ार मत करो चुपचाप ख़ामोशी से इज्ज़त के साथ उनका निकाह कर दो न ख़र्च करो न कराओ खुद भी परेशान न हो और दूसरे को भी परेशान न करो।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 44 📚*
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❝ घरो मे औरतों की हुक़ूमत खतरनाक है ❞
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╭┈► ब्याह शादी और दीगर मुआमलात व रुसूम व रिवाज में जो फ़ुज़ूलख़र्चियाँ हो रही है, उनमें बड़ा दख़ल औरतों की हुकूमत का है। औरतें उमूमन कमअक़्ल होती हैं और अन्जाम और नताइज से बेखबर। मर्द समझदार चाहता है कि फुज़ूलख़र्ची न हो और बेज़रूरत सामान न ख़रीदा जाए लेकिन औरतें उसकी नाक में दम कर देती हैं और दूसरों की मिसालें उसको सुनाती हैं कि फलां ने यह किया उस ने यह किया उस ने यह दिया तुम भी ऐसा ही करो अरे जब इतना हुआ है तो इतना और सही ऐसी बातें कर करके उसको मुसीबत में डाल देती हैं और उस पर कर्ज़ करा देती हैं और फिर यह तो खूब मस्ताती है वह कमाते कमाते मरा जा रहा है। बीमार तबीयत ख़राब है। फिर भी काम करने जा रहा है क्यूंकि कर्ज़ सवार है।
╭┈► भाइयों इस्लामी मिज़ाज यह है कि घर में औरत को शौहर की मुहब्बत मिले उसको नान नफ़्क़ा रोटी पानी ज़रूरी खर्चे मिलें और उस पर ज़ुल्म न किया जाए लेकिन हुकूमत शौहर की ही होना चाहिए। जो लोग औरतों बच्चों की हर बात मानते हैं हर ख़्वाहिश हर ज़िद पुरी करते है वह दुखी परेशान और ज़लील व ख़्वार रहते हैं और जो औरतों का सताते है उन पर ज़ुल्म करते हैं वह भी।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 45 📚*
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❝ इख़राजात की ज़्यादती दीनदारी के लिए ज़हर है ❞
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╭┈► फुज़ूलख़र्चीं और इख़राजात की ज़्यादती ने आज लोगों को दीन से दूर कर दिया है कमाते कमाते परेशान हैं न जिस्म को फुरसत है न दिमाग को। फिर नमाज़ कैसे पढ़ें ख़ुदा को याद कैसे करें। सौ में से 99 से भी ज़्यादा लोग बेईमान ख़ाएन और नीयत ख़राब हो गए हैं। पराया पैसा लेकर न देना हेराफेरी रिश्वतखोरी सब आज के दौर फुज़ूलखर्चियों की देन है। आज कम ही लोग ऐसे हैं। सिर्फ़ रोटी और कपड़े के लिए परेशान हैं और उसके लिए कमा रहे हैं। सब शौक़ अरमान और फ़ैशन और ब्याह शादियों के लिए बंगू बने घूम रहे हैं। साइंस की इजादात ने इन्सान की गिरहस्ती और उसकी ज़रूरतों को बढ़ा दिया है, और जो सिर्फ़ दो रोटी एक जोड़े कपड़े और एक कच्ची छत का मुहताज था वह अब क़दम क़दम पर हज़ार खर्चा को मुहताज हो गया।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 45 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 55
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❝ इख़राजात की ज़्यादती दीनदारी के लिए ज़हर है ❞
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╭┈► ख़ुलासा यह है कि फालतू ख़र्चों और फुज़ूलखर्चियों पर कन्ट्रोल किए बगैर आज के दौर के इन्सान को दीनदार नमाज़ी भला और इमानदार बनाना क़रीब नामुमकिन है और नश्र व इशाअत और तबलीगे दीन की तमाम तहरीकें बेकार हैं। जब तक बेजा इख़राजात पर कन्ट्रोल करके इन्सान को सादगी पसन्द न बनाया जाए और माहौल व मुआशरे और समाज के रस्म व रिवाज की फुज़ूलख़र्चियों में जकड़े हुए और ग़ैरज़रूरी इख़राजात के बन्धनों में बंधे हुए इन्सान को इनसे बाहर न निकाला जाए। आप उसे दीन की बातें समझा रहे हैं और वह कमाने की फ़िक्र में पागल बना घूम रहा है। उसने छह-छह काम छेड़ रखे हैं क्यूँकि सिर्फ़ एक काम से उसका पूरा नहीं हो रहा है।
⚠ *एक ज़रूरी नोट :* यह किताब उर्दू ज़बान में छप चुकी है। उर्दू जानने वाले उर्दू वाला नुस्ख़ा हासिल करके पढ़ें। दीनी इस्लामी किताबें पढ़ने का जो मज़ा उर्दू में है वह हिन्दी में नहीं। सिर्फ़ आधे घन्टे के लिए मगरिब की नमाज़ के बाद किसी पढ़े लिखे आदमी के पास बैठ कर पढ़ना शुरू कर दें तो साल छह महीने में आप कुर्आन शरीफ़ और उदू पढ़ना सीख लेंगे।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 46 📚*
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❝ब्याह शादीयों के इख़राजात पर कंट्रोल लड़कियों की शादी मे मदद करने से नहीं होंगा ❞
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╭┈► कुछ लोग किसी की लड़की की शादी में ख़र्च कर देते हैं या पूरी शादी अपने पास से करा देते हैं और दान जहेज़ बारात के खाने खिलाने में इसकी मदद करते हैं। मैं कहता हूं कि इस तरह भी इस आग को बुझाया नहीं जा सकता। ब्याह शादी के बढ़ते हुए ख़र्चों पर कन्ट्रोल तभी होगा जब आप अपनी या अपने बेटे भाई की शादी बिल्कुल सादा तौर पर करें जिसमें हरगिज़ ख़र्चा न हो और दूसरों को भी इसकी तरगीब दिलायें। आप किसी लड़की की शादी में मदद कर दें, भीक और चन्दे दे दें और दिलवा दें इस सबसे वक़्ती तौर पर उस घर को शूका मिल सकता है लेकिन आप कितनी शादियां कर देंगे और कब तक कराते रहेंगे। आग तो तभी बुझेगी जब माहौल में तबदीली आएगी एक दम सादा निकाहों का रिवाज क़ाइम होगा।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 47 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 57
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❝ ब्याह शादीयों के इख़राजात पर कंट्रोल लड़कियों की शादी मे मदद करने से नहीं होंगा ❞
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╭┈► बेहतर यही है और सबसे बड़ी मदद यही है कि आप का किसी ग़रीब लड़की से अगर रिश्ता शरअन मुनासिब हो तो ख़ुद निकाह करें या अपने बेटे भाई भतीजे अज़ीज़ व दोस्त का करा दें और यह निकाह बिल्कुल सादा बेख़र्चें का हो ख़्याल रहे कि दुनिया का अमन व सुकून चैन व आराम अल्लाह तआला ने उस नबी ﷺ के तौर तरीक़ों और दामने करम में रखा है। जिसको उसने सारे जहानों की रहमत बना कर भेजा। आप ख़ुद तो कम से कम दो लाख रुपये शादी में ख़र्च करने वाले दौलतमन्द की बेटी की तलाश में बूढ़े हो चले हैं और दूसरी ग़रीबों की लड़कियों की शादी में मदद फरमा रहे हैं यह इस्लामी मिज़ाज नहीं है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 47 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 58
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❝ लड़की वालों से दो बातें ❞
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╭┈► बाज़ बाज़ लड़की वालों के दिमाग भी बहुत ख़राब है बल्कि कुछ लोग तो यह कहते हैं कि माहौल के बिगाड़ने में लड़की वालों का हाथ ज़्यादा है और खूब दे दे कर इन्होंने मुआशरे को तबाह किया है। इधर उधर से कमा कर तेरा मेरा दबा कर सूद लेकर दौलत जमा कर ली फिर लड़की की शादी में ख़ूब शान शेख़ी दिखाई जा रही है। गलि में जहेज़ सजा कर उसकी नुमाइश करके फूले नहीं समा रहे है! मेने यह दिया मैंने वह दिया यह फलाँ फलाँ सामान जो किसी ने नहीं दिया था वह मैंने दिया। यह शान शेख़ी दिखाना यह जहेज़ की नुमाइश करना यह नई नई चीज़ें देनेका रिवाज बनाना। यह अल्लाह तआला व रसूल ﷺ को भूल जाना नहीं है तो और क्या है और माहौल में आग लगाने वाले ग़रीबों को जलाने वाले ख़ुदा से डर कहीं कभी तुझ को भी न जलना पड़े।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 48-49 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 59
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❝ लड़के भी तुम्हारे लड़कियां भी तुम्हारी फिर शादियों के लिए क्यूँ परेशान रहते हो ❞
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╭┈► चचा की, ताया की, मामू की, फूफी की, ख़ाला की बेटी से निकाह जाइज़ है। यह रिश्ते ऐसे हैं कि सब आपस का मुआमला है गोया कि जिन के लड़के हैं उन्हीं की लड़कियां फिर शादियों के लिए क्यूँ परेशान हो। आपस में निकाह क्यूँ नहीं करते एक दूसरे को क्यूँ नहीं निबाहते, क्यूँ शादियों के लिए कमाते कमाते मरे जा रहे हो। बात यह है कि तुममे एक दूसरे से सच्ची मुहब्बत नहीं रह गई है और हमदर्दिया सिर्फ़ ज़बानी ख़र्च तक हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 48 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 60
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❝ लड़के भी तुम्हारे लड़कियां भी तुम्हारी फिर शादियों के लिए क्यूँ परेशान रहते हो ❞
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╭┈► यह कैसी हमदर्दी आपसदारी है कि आपके मुहल्ले खानदान में कोई लड़की वाला रिश्ते के लिए परेशान है और आपसे उसका रिश्ता शरअन सही है और आप किसी करोड़पती की बेटी ढंढ रहे हैं। गोया कि आप शादी करने नहीं चले हैं बल्कि शादी के नाम पर कमाई करने चले हैं और वह आपकी नियत और दिल के इरादों को ख़ूब देख रहा है कि जिस की पकड़ से कोई निकल नहीं सकता और आपस में एक दूसरे की बहन से निकाह करना भी जाइज़ है जिसमें कोई ख़राबी नहीं। ब्याह शादी के इख़राजात से बचने की यह भी एक सूरत है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 48 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 61
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❝ ज़्यादा देने वाले ज़्यादा परेशान ❞
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╭┈► मेरी नज़र में ऐसे कई वाक़ियात हैं कि जिन लोगों ने ख़ूब हस्ती मिटा कर दिया, ख़ूब शान शेख़ी दिखाई नए नए सामान जो किसी ने नहीं दिए थे वह देकर माहौल को बिगाड़ा उनकी बेटियां ज़्यादा दुखी हैं। मुक़दमे झगड़े और तलाक़ों की नौबत आई या बान्दियों नौकरानियों की सी ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं और बहुत सी वह बेटियां जो उनके मुक़ाबले में कुछ भी लेकर नहीं गई निहायत चैन व सुकून से सुसराल में ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 49 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 62
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❝ लड़के वालों की मांगे पूरी मत करों ❞
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╭┈► हिम्मत से काम लो, जो क़िस्मत में लिखा है वह होगा लड़के वालों की मांगें और डिमांडें पूरी मत करो। अल्लाह तआला ने आपकी बेटी की क़िस्मत में चैन लिखा है तो वह कोई काट नहीं सकेगा और ख़ुदा न करे अगर दुनिया के दुख उसको अगर पहुँचना हैं तो लेने देने से टल नहीं सकते। मैंने देखा है कि हर मांग व मुतालबा पूरा करने से और मी ज़्यादा दिमाग ख़राब हो जाते हैं और फिर वह सब दिन दुहते ही रहते हैं और जो कुत्ते हैं उनके पेट न कभी भरे है न कभी भरेंगे। हिम्मत करके एक बार झिड़क दिया जाए और यह झिड़क दिया जाए और झिड़कने का माहौल बन जाए तो फिर इन मांगे और मुतालबे रखने वालों को अक़्लआ जाए। अक़्लमंदो ने कहा है कि ज़ुल्म सहना और ख़ामोश रहना भी ज़ुल्म को बढ़ावा देना है। शेर जब एक मरतबा किसी इन्सान का गोश्त खा लेता है तो फिर वह आदमखोर हो जाता है। जो देना है वह दो जो खिलाना है वह खिलाओ, निकाह के लिए आना और फिर बारातियों को वापस ले जाना उनके लिए भी आसान नहीं है और बेटियों को सुकून व चैन देने लेने से नहीं बल्कि *अल्लाह तआला* के देने से मिलता है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 49-50 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 63
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❝ देने और मुंह भरने से कमीने शरीफ़ नही हो सकतें ❞
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╭┈► जो आदमी जैसा है और जैसी उसकी फितरत वह वैसे ही रहता है। आप उसकी कितनी ही ख्वाहिशात पूरी कर दे जो बेरहम ज़ालिम और संगदिल भेड़िया है वह भेड़िया ही रहेगा आप उसको कितनी ही बकरियां खिला दें। उसको तो ज़ुल्म करना है ख़्वाह आप कितने ही मागें और मुतालबे पूरी कर दें और जो भले शरीफ़ लोग हैं उनको कोई कुछ भी न दे वह ज़ुल्म करना चाहें तो भी ज़ुल्म नहीं कर सकते वह किसी को सताना चाहें भी तो उनके बस की बात नहीं है। खुलासा यह है कि इनामात व बख्शिश देना लेना ही सब कुछ नहीं बल्कि इन्सान की फ़ितरत का भी मुआमलात मे बहुत बड़ा दखल है बल्कि यही अस्ल चीज़ है। देखी भाली बात है कि मियां बीवी में जब मुहब्बत पैदा हो जाती है तो फिर उसको कोई काट नहीं पाता। मां बाप और भाई बहन तक उस मुहब्बत और लगाव में आड़ और रुकावट नहीं पाते। कहां का सामान जहेज़ व कपड़े और जोड़े रुपया और पैसा और क्यूं न हो कि सारे सच्चों के सरदार कायनात के मुख़्तार हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ फरमाते हैं। निकाह के जरिए जो मुहब्बत पैदा होती है उसकी मिसाल नहीं।...✍🏻
📕 मिश्कात सफ़ह 248
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 50 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 64
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❝ देने और मुंह भरने से कमीने शरीफ़ नही हो सकतें ❞
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╭┈► और जो मर्द है और उसकी ज़िन्दगी गुज़ारने और फितरी तकाज़े पूरा करने के लिए औरत की ज़रूरत है उसको औरत मिल जाना ही काफी होता है और उसको उससे क़ुदरती तौर पर मुहब्बत पैदा हो जाती है और वह उसकी आंखों की ठंडक और दिल का सुकून बन जाती है। फिर उसकी नज़र माल व दौलत, जोड़ों, मोटर साइकिलों और कारों पर नहीं होती। मर्द के लिए तो औरत ही बहुत है और यह लोग जिनकी नज़र औरत या बीवी पर नहीं बल्कि माल व दौलत पर है सामान जहेज़ पर है, निकाह के बाद भी औरतों को मार मार कर माइके माल व सामान लेने भेजते हैं। मुझको तो यह सब नामर्द मालूम होते हैं और आजकल जो बचपन ही से बच्चों को फिल्मों के नाम पर नंगे फोटो और गंदी तस्वीरें दिखाई जा रही हैं, बेहयाई वाले गाने सुनवाए जा रहे हैं उन्होंने एक बड़ी तादाद नौजवानों में नामर्दों को पैदा कर दी है। अब जो नामर्द हैं उन्हें टीवी से क्या मतलब शादी का बहाना है दौलत कमाना है। सही बात यह है कि इस दौर को हर एतेबार से इस्लाम की ज़रूरत है ख़ुदा तआला ऐसे बन्दे पैदा फरमाए जो उसका दीन क़ाइम करें।
╭┈► तो बात यही है कि लेने देने और मुंह भरने से कमीने और ज़लील, शरीफ़ और भले आदमी नहीं बन सकते और नामर्द मर्द नहीं हो सकते। लिहाज़ा जो करना है वह कोजिए जो किस्मत में लिखा है वह तो होना है। खुदाए तआला हर बेटी को शरीफ शोहर अता फरमाए।...✍🏻आमीन
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 51 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 65
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❝ क्या जहेज़ देना सुन्नत है ❞
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╭┈► हम यह ज़िक्र कर चुके हैं कि इस्लाम में लड़के और उसके घर वालों पर निकाह से पहले या बाद हरगिज़ कोई ख़र्चा शरअन लाज़िम व ज़रूरी नहीं है बल्कि बीवी को शौहर की तरफ़ से महर मिलना चाहिए। और बाप के माल पर उसकी जाएदाद से हिस्सा और यह दोनों चीजें ख़ालिस लड़की की मिल्कियत हैं। अल्बत्ता जहेज़ देना सुन्नत कहा गया है और बेशक वह सुन्नत है लेकिन ऐसी सुन्नत नही कि उस पर अगर अमल न किया जाए तो कोई गुनाह हो जाएगा और महर देना फ़र्ज़ है कभी न देना हराम यहां तक कि अगर बगैर दिए मर गया तो उसके छोड़े हुए माल जाएदाद से औरत को दिया जाए। यूंही जो बाप के तर्क़ से बहनों का हिस्सा खुद दबा कर बैठ जाते हैं यह भी हराम करते हैं और हराम खाते हैं, मगर अफ़सोस कि इस हिस्से और महर का कोई ज़िक्र भी नहीं आता। जहेज़ की रस्म को आसमान को छू लिया है और उसके नाम पर लूट खसोट मची हुई है और उसको सुन्नत बताने वालों से मेरी गुज़ारिश है कि जहेज़ को सुन्नत कहने से पहले आप आज के दौर में कुछ सोच समझ लें और आगे पीछे कुछ और भी बता दें क्यूंकि आज के दौर में जहेज़ एक क़िस्म की डकैती लुटाई छीन झपट और लड़की वालों की मजबूरी से फायदा उठाने का नाम बन गया है। जरा होश में बोलिए कहीं लोग़ इस लूट मार को रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ की सुन्नत न समझ लें। हां बेशक सुन्नत है इस सुन्नत की हकीक़त क्या है इस सिलसिले में जो हदीस रिवायत की गई है उसका तर्जुमा मुलाहिजा फरमाइये।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 52 📚*
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❝ क्या जहेज़ देना सुन्नत है ❞
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╭┈► हज़रते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत कि हज़रते अबू बक़्र और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा ने हुज़ूर ﷺ को हज़रते फ़ातिमा रदियल्लाहु अन्हा से निकाह का पैगाम दिया तो हुज़ूर ﷺ ने उन्हें कोई जवाब नही दिया तो उन लोगों ने हज़रते अली से फ़रमाया फ़ातिमा से निकाह का पैगाम दो। हज़रते अली फरमाते हैं कि उन लोगों ने मुझ से एक ऐसी बात कही कि जिसकी तरफ़ अभी तक मेरा ध्यान नहीं गया था। मैं फौरन हुज़ूर ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ फातिमा से मेरा निकाह फ़रमा दीजिए। हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया तुम्हारे पास कुछ है मैंने कहा एक घोड़ा और एक ज़िरह (लोहे का एक लिबास जो जंग में हिफाज़त के लिए पहना जाता है) हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया घोड़ा तो तुम्हारे काम की चीज़ है लेकिन ज़िरह को बेच दो हज़रते अली फरमाते हैं मैंने चार सौ अस्सी दिरहम में ज़िरह बेच डाली और रक़म हुज़ूर ﷺ की ख़िदमत में लाकर पेश कर दी। हुज़ूरﷺ ने उसमें से एक मुठ्ठी भर कर दिरहम लेकर हज़रते बिलाल को दिए और फरमाया इससे ख़ुशबू ख़रीद लाओ और सहाबा से फ़रमाया कि फ़ातिमा के लिए जहेज़ तैयार करें। तो उनके लिए एक बुनी हुई चारपाई और एक तकिया तैयार किया गया जिसमें खजूर के पत्ते भरे हुए थे।...✍🏻
📕मवाहिबे लदुन्नया, ज़िल्द,सफ़हा 384; फतावा रज़विया,ज़िल्द 5, सफ़ा 493
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 52 📚*
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❝ क्या जहेज़ देना सुन्नत है ❞
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╭┈► ज़रक़ानी और सैरुस्सहाबियात की रिवायत से पता चलता है कि उसके साथ खजूर की छाल भरा एक गद्दा, एक छागल, एक मशक, दो चक्कियां और मिटटी के दो घड़े भी थे। और यह फैसला करना भी मुश्किल है कि यह सामान हुज़ूर ﷺ ने अपने पास से दिया था बल्कि अलफाज़े हदीस से यह इशारा मिलता है कि हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने जो ज़िरह बेची थी उसकी रकम से यह सामान तैयार किया गया था।
╭┈► इस सब का ख़ुलासा यह है कि ज़रूरियाते ज़िन्दगी की ब वक़्ते रुख़्सत बेटी को घर वालों की तरफ़ से दे दी जाये तो कुछ हरज नहीं। हदियों और तोहफों का लेन देन इस्लाम में पसन्द है मगर जो ज़ोर व दबाव बनाकर मज़बूरी से फ़ायदा उठा कर या रस्म व रिवाज की वजह से मज़बूर होकर ज़रूरी समझ कर दिया लिया जाए उसको हदिया या तोहफा या जहेज़ कहना या सुन्नत करार देना झूट फ़रेब धोका और मज़हबे इस्लाम को बदनाम करना है। कुत्ते को ऊपर से बकरी की खाल उढा कर अगर बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर पढ़ कर ज़िबह कर दिया जाए तो उसका गोश्त हलाल नहीं हो जाएगा।
╭┈► आजकल जहेज़ के नाम पर जो कुछ हो रहा है और जो ग़ैर ज़रूरी फालतू सामान दिए और लिए जा रहे हैं उसको सुन्नत कहने वाले पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ का यह फरमान भी मुलाहिजा फरमायें । “दुनिया में ज़िन्दगी परदेसी या मुसाफिर की तरह गुज़ारो और ख़ुद को क़ब्र वालों में शुमार करो।...✍🏻
📕मिश्कात सफ़ा 450
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❝ जो लड़कियों के लिए परेशान है वही लड़को के लिए मुँह फैलाए फिर रहे ❞
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╭┈► बहुत से लोग देखे जो अपनी लड़की के रिश्ते के लिए परेशान हैं और जो मिलता है उससे रिश्ता ढूंढने की बात करते हैं। मौलवियों पीरों से लड़कियों के रिश्ते के लिए दुआ तावीज़ कराते हैं। वही लोग अगर उनके पास शादी करने के लिए बेटा भी है और इसके लिए कोई ग़रीब व शरीफ़ आदमी अपनी शरीफ़ बेटी के रिश्ते की बात करता है तो रुक कर सीधे मुंह से बात ही नहीं करते और मुंह फैलाए फिर रहे हैं। मैं कहता हूं कि अगर तुम्हारे पास बेटा भी है तो तुम उसकी शादी शरीफ़ व ग़रीब ज़ादी से बे ख़र्चा कराए सादा तौर पर क्यूं नहीं करते फिर उम्मीद है कि अल्लाह तआला तुम्हारी बेटियों के लिए रहम दिल लोग़ अपने करम से अता फरमा देगा और तुम अपनी ही लगाई हुई आग में जल रहे हो। फिर दुआ व तावीज़ से क्या होना है? और अपने खोदे हुए कुएं और गढ़े में ख़ुद ही गिर रहे हो। फिर गिले शिकवे क्यूं करते हो।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 54 📚*
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❝ जो लड़कियों के लिए परेशान है वही लड़को के लिए मुँह फैलाए फिर रहे ❞
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╭┈► यह ख़्याल भी ग़लत है कि जब तक लड़की की शादी न हो जाए लड़के की कैसे करें। लड़के की बाद में करेंगे। मैं कहता हूं जो जवान है और जिसकी हो जाए उसकी करो सब लोग यह सोच लें और ऐसा करने लगें तो फिर न जवान लड़के रहेंगे न लड़की। सब निकाह वाले होंगे।
╭┈► और माहौल को सुधारने की शरूआत वही करते हैं जो हिम्मत वाले हों इसीलिए तो उन्हें सौ शहीदों का सवाब मिलेगा। और वह जिहाद का मरतबा पायेंगे। लड़का हो या लड़की हदीस में तो दोनों के लिए आया है रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है कि जब वह बालिग हो जायें और घर वाले उन का निकाह न करें। फिर अगर उनसे कोई गुनाह सरज़द हो जाए तो गुनाह घर वालों पर है। दोनों हदीसें "मिश्कात बाबुन्निकाह फ़िल वली सफ़हा 271'' पर हैं मुलाहिज़ा फरमाइये और लड़के और लड़कियां जवान हैं। उनमें से जिसकी शादी होती हो कर डालियो यह मत सोचिये कि लड़के की तो हो ही जाएगी। पहले लड़कियों से निपट लें यह लड़कियों की शादियों को मुसीबत बना देना और उनकी शादी कर ली गोया जंग से निपट लिए यह सब काफिरों के मुआशरे और समाज़ की देन है। खुदा इस्लाम वाले पैदा फ़रमाए।
*⚠ नोट :* दीनी इस्लामी किताबों का अदब कीजिये। किताब के ऊपर कभी कोई घरेलू सामान मत रखिये। यह भी न हो कि आप ऊपर हों और क़रीब में किताब आपके नीचे जिसके पास अदब है वह बे-पढ़ा होकर भी अच्छा है पढ़े लिखे बे-अदब से।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 55 📚*
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❝ क्या तुम्हारी बेटियां पैगम्बरों और वलियों से ज़्यादा अहमियत वाली है ❞
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╭┈► आज अगर किसी लड़की वाले से कहा जाए कि अपनी बेटी को बगैर बारात लाए मामूली जहेज़ के साथ या बग़ैर जहेज़ के निकाह करके रुख़सत कर दो और कोई आदमी इस तरह उससे निकाह को राज़ी भी हो जाए। तो बुरा मान जाएगा। और औरतें मुंह बजायेंगी कि जनाज़े की तरह कैसे रुख़सत कर दें। लेकिन मैं पूछता हूं यह हज़ारों अम्बिया किराम और औलिया इज़ाम को बेटियाँ जो इस तरह से निकाह करके रुख़सत कर दी गई क्या तुम्हारी बेटियां उनसे ज़्यादा अहमियत मरतबे वाली हैं। उनकी बेटियों के चर्चे और शोहरे हैं। महफिलों मजलिसों और किताबों में उनके तज़करे हैं। उनकी नियाज़ें और फ़ातिहायें हो रही हैं और तुम्हारी बेटियों को जो नाक़द्रो और बे इज्ज़ती हो रही है वह पोशीदा और छुपी हुई नहीं है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 56 📚*
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❝ क्या तुम्हारी बेटियां पैगम्बरों और वलियों से ज़्यादा अहमियत वाली है ❞
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╭┈► घर वाले सालों मेहनत करके लाखों का जहेज़ सजा कर रुख़सत कर रहे हैं लेकिन सुसराल वालों की नज़र में नहीं आता। बूढ़ी सास मुंह बजा कर कहती है कि तेरे बाप ने दिया ही किया है? यह ताने देने वाली बूढ़ियां जो अपना घर बार सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे घर आती है, उसका दिल दुखाने वाली सास और नन्द उनके लिए अल्लाह ने जहन्नम तय्यार कर रखी है। इनके डंक बिच्छू से ज़्यादा तेज़ और ख़तरनाक होते हैं। क़ब्रों मे उनकी खूब पिटाइयां होंगी और यह क़ब्र से निकल कर भाग नहीं सकेंगी।
╭┈► आज हाल यह है कि भीक मांगेगा, चन्दे करेगा तेरे मेरे सामने हाथ फैलाएगा। झूट बोलेगा, बेईमान बनेगा। लेकिन लड़की की शादी में शान शैखी ज़रूर दिखाएगा। उधर भीक मांगेगा इधर बातें मिलाएगा कि मैं ने अपनी लड़की को इतना दिया कि बड़े से बड़ा नहीं दे सकता। मैं कहता हूं लड़की की शादी के लिए भीक मांगना हराम है क्यूंकि लड़की की शादी में इस्लाम ने कोई ख़र्चा लाज़िम व ज़रूरी क़रार नहीं दिया। और बेज़रूरत भीक हराम है और ऐसों को देना भी मुनासिब नहीं। हां बे मांगे मदद करने में हरज नहीं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 57 📚*
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❝ बढ़ते ख़र्चे और घटते धन्धे ❞
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╭┈► आज एक तरफ़ तो हर आदमी कारोबारी एतबार से परेशान नज़र आ रहा है। जिस से पूछो वह कहता है धन्धा ख़राब चल रहा है। बे रोज़गारी का दौर दौरा है। कारोबार चौपट पड़े हुए हैं, आधे से भी ज़्यादा लोग बीमार हैं। दूसरी तरफ़ ब्याह शादी के इख़राजात आसमान छू रहे हैं। उसके अलावा नए-नए शौक फ़ैशन की रंगीनियों बे ज़रूरत बे वजह कपड़े पर कपड़े बनाने की बीमारी मकानों को ज़रूरत से ज़्यादा सजाना संवारना हर चीज़ में नए नए माडलों और नमूनों की तलाश लोगों का मिज़ाज बन चुका है। अगर यह फ़ालतू ग़ैर ज़रूरी इख़राजात का शौक और धन्धे कारोबारों की ख़राबी का यह दौर चलता रहा तो आने वाले वक़्त में दिल और दिमाग के मरीज़ों की तादाद बहुत ज़्यादा होगी। और अब भी काफ़ी वह लोग हैं जिनके दिमागों में टेंशन रहता है। उन्हें नींद नहीं आती। गोलियाँ खाकर सोते हैं या नशा करके सुकून हासिल करने की कोशिश करते हैं इनमें ज़्यादातर वही लोग हैं जो आमदनी से ज़्यादा ख़र्च करने के आदी हो गए हैं। निकम्मे काहिल और आराम तलब या नाकारा हैं लेकिन अरमान बहुत हैं, ख़ुशी कोई न रह जाए हसरतें सब मिट जायें या फिर ग़रीब व नादार मुफ़लिस और फक्कड़ हैं जो खाने पहनने और रहने सहने में अमीरों की शरीकी करते हैं भाईयो दुनिया में कभी भी किसी के सभी अरमान पूरे नहीं होते न सब हसरतें पूरी होती हैं। जहाँ सब हसरतें पूरी होंगी और सब अरमान निकलेंगे वह जगह जन्नत हैं वह अल्लाह तआला ने उनके लिए बनाई है जिनसे वह राज़ी है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 57-58 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 73
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❝ हल सिर्फ़ मज़हबे इस्लाम है ❞
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╭┈► आज ब्याह शादी के बढ़ते हुए इख़राजात को देखकर एक मैं ही नहीं अकसर लोग परेशान हैं। और जगह जगह इसके चर्चे हैं। बातें होती हैं और लोग अफ़सोस भी करते हैं। गवर्नमेंट भी इस को रोकने की तदबीरें कर रही है और कानून बना रही है लेकिन मुसलसल नाकामी ही नाकामी है और इख़राजात दिन बदिन बजाए घटने के बढ़ते ही जा रहे हैं। इसकी वजह यह है कि लोग इस्लाम को नहीं अपना रहे हैं और मेरा दावा है कि जब तक इस्लामी उसूल न अपनाए जायें हरगिज़ दुनिया में अमन व सुकून क़ाइम नही हो सकता। इसलाम इस बारे में जो तरकीब बताता है वह ये है
╭┈► 1) लड़कियों को जाएदाद से हिस्सा।
╭┈► 2) हैसियत वाले मर्दों में एक से ज़्यादा निकाहों का रिवाज।
╭┈► इन दोनों फार्मूलों पर अगर अमल होने लगे तो यक़ीनन जहेज़ की मांगें और ब्याह शादी के इख़राजात पर कन्ट्रोल लाज़मी नतीजा है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 58 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 74
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❝ हल सिर्फ़ मज़हबे इस्लाम है ❞
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╭┈► क्यूंकि शौहर को जब मालूम होगा कि मेरी बीवी का बाप के तर्के से उसके मरने के बाद जमीन व जाएदाद नकदी वगैरह से हिस्सा मिलेगा और वह ज़रूरत के वक़्त मेरे बच्चों के या मेरे ही काम में आएगा तो उसकी नज़र शादी के वक़्त जहेज़ वगैरह पर बिल्कुल नहीं होगी या कम होगी लेकिन ये तभी हो सकता है कि जब यह हिस्से देने का रिवाज हो जाए और रिवाज डालने से पड़ते हैं हर एक अपनी अपनी ज़िम्मेदारी अदा कर इधर लड़के और उनके घर वाले सादा निकाह करने की हिम्मत करें और उधर भाई लोग बाप के हिस्से से बहनों का हिस्सा देना राइज़ करें और यह भी नहीं सोचना चाहिए कि वह ऐसा करें तब हम ऐसा करें बल्कि सोच यह होना चाहिए कि कोई करे या न करे हमें तो वह करना है जो अल्लाह तआला का हुक्म है। हमें अपनी क़ब्र में सोना है उसको अपनी क़ब्र में और ख़ूब जान लो कि दुनिया में शोहरत व इज्ज़त और आख़िरत में सवाब व जन्नत उन्हीं के लिए है जो ग़लत रस्म व रिवाज के रंग में ख़ुद को रंगने के बजाए इसके खिलाफ़ चलने और करने की हिम्मत करते हैं। माहौल के रंग में रंग जाना तो आसन है ग़लत माहौल से टकराना मर्दो बहादुरों और हिम्मत वालों का काम है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 59 📚*
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❝ नेकी इन्सान के साथ बदले, सिले जज़ा की उम्मीद अल्लाह तआला से ❞
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╭┈► किसी ग़रीब की बेटी से निकाह करना हो या और कोई नेकी उसके बदले और जज़ा की उम्मीद कभी किसी इन्सान से नहीं रखना चाहिए। इन्सान उमूमन बेवफ़ाई करता है और दुनिया नाम ही बेवफाई का है जो लोग इन्सान के साथ नेकी करते और इन्सान से उसके बदले की उम्मीद रखते हैं वह कम समझ हैं और नेकी करने वाले हो ही नहीं सकते वह यही कहते और गिले शिकवे करते रहेंगे कि मैंने फ़लां के साथ ऐसा किया तो उसने यह धोका दिया और मुझको यह नुक़सान पहुँचाया और धोके खाने और नुक़सान उठाने के बाद नेकी करना छोड़ देंगे और जो अल्लाह तआला से उम्मीद रखते है तो जान रखो कि अल्लाह तआला धोका देने से पाक है। यहाँ नहीं तो आख़िरत में सिला ज़रूर मिलेगा। और मैंने तजुर्बा किया है कि अगर आप नेकी करने के आदी हैं तो वक़्त पर वह लोग तो कम ही काम आते हैं जिनके साथ आपने नेकी की है लेकिन खुदाए तआला और बन्दे पैदा फरमा देता है। लिहाज़ा मां हो या बाप, भाई या औलाद या दोस्त पड़ोसी हो या रिश्तेदार जिस इन्सान के साथ जो नेकी करो सिर्फ़ अल्लाह तआला ही के लिए करो और उसी से बदले, सिले और जज़ा की उम्मीद रखो।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 59-60 📚*
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❝ मर्द के लिए एक से ज़्यादा निकाहो का रिवाज ❞
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╭┈► मर्दों के लिए एक से ज़्यादा निकाह करने की तजवीज़ भी इस्लामी मिज़ाज है। जो लोग बिल्कुल ही नादार मुफ़लिस और ऐसे ग़रीब या बीनार व कमजोर हो कि एक औरत का ख़र्चा भी बर्दाश्त नहीं कर सकते उनको तो इस्लाम एक निकाह की भी इजाज़त नहीं देता बल्कि उसके लिए हुक्म है कि अपनी नफ़सानो ख्वाहिश को रोकने के लिए रोज़े रखे यानी भूक से मिटाए और जो लोग सरमाएदार हैं अच्छी आमदनियों वाले हैं उनके पास माल व दौलत की फरावानी है, रहने सहने के लिए मकानात हैं वह अपनी हैसियत के एतबार से चार तक बीवियाँ रख सकते हैं। मैंने देखा कि बाज़ निकम्मे नाकारे और फक्कड़ ग़रीब नादारों के घर में एक औरत के लिए रहने सहने और खाने का ठिकाना और गुज़ारा नहीं है और वह ज़िन्दगी भर दुखी रहती है और बाज़ दौलतमन्द तन्दरुस्त सरमायादारों अमीरों के घर में कई कई औरतें निहायत चैन व सुकून राहत व आराम से ज़िन्दगी गुज़ारती हैं और ख़ुश रहती हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 60 📚*
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❝ मर्द के लिए एक से ज़्यादा निकाहो का रिवाज ❞
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╭┈► तो अगर यह दौलतमन्द एक से ज़्यादा चार तक बीवियों रखें और बेटियों वाले उनसे अपनी बेटियों के निकाह करने में शर्म महसूस न करें तो इस तरह ग़ैर शादीशुदा लड़कियों की तादाद में कमी हो जाएगी और फिर बेटियों वाले रिश्ते तलाश नहीं करेंगे बल्कि बेटों वाले तलाश करेंगे बल्कि खुशामद करेंगे और बजाए जहेज़ मांगने के महर देंगे और यही इस्लाम है गोया कि इस तरह लड़कियों की इज्ज़त और वक़अत घटेगी नहीं बल्कि और बढ़ेगी। आज अमीरों का तो यह माहौल है कि यह बीवी तो एक ही रखेंगे लेकिन दौलत के सहारे अय्याशियां और ज़िनाकारियां करने को कोठों होटलों और अय्याशी के अड्डों के चक्कर लगायेंगे बल्कि अब तो ऐसे लोग भी सुनने में आ रहे हैं जो ज़िन्दगी भर शादी नहीं करते अय्याशी में ही ज़िन्दगी काट देते हैं। दूसरी तरफ ग़रीबों का यह हाल है कि भीक मांग मांग कर जहेज़ इकट्ठा करेगा लेकिन उससे कह दो कि फलां बड़ा आदमी दूसरी शादी करना चाहता है लड़की को महर दिला कर उससे सादा निकाह कर दो तो बुरा मान जएगा। यह सब इस्लाम से दूरी का नतीजा है। शराबी जुआरी नशीले गिरस्ती का सामान बेच बेच कर खाने वाले के घर में ठूंस देगा लेकिन दूसरी बीवी बना कर नहीं भेजेगा यह नादानी व नावाकिफ़ी का नतीजा है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 60 📚*
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❝ मर्द के लिए एक से ज़्यादा निकाहो का रिवाज ❞
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╭┈► और यह हम पहले लिख चुके हैं कि इस्लाम में एक से ज़्यादा निकाह की इजाज़त सिर्फ़ उस मर्द को है जो उनका ख़र्चा बर्दाश्त कर सके और इस्लाम की इजाज़त का जो लोग मज़ाक उड़ाते हैं वह बतायें कि उन अमीरों, रईसजादों, करोड़पतियों, पूंजीवादियों, मिनिस्टरों, गवर्नरों, अव्वल दर्जे के लोगों में वह कितने हैं जो सिर्फ़ एक बीवी के साथ ज़िन्दगी काट देते हैं और कोठों, रंडीखानों, होटलों और क्लबों में नहीं जाते हैं तो फ़र्क यही है कि एक औरत पर सब्र तुम भी नहीं करते लेकिन तुम होटलों की कालगर्ल बना कर उसकी ज़िन्दगी खराब करते हो और इस्लाम बीवी बना कर इज्ज़त देता है और समाज में हैसियत और मक़ाम और चन्द बीवियां रखने वालों को इस्लाम में यह भी ताकीद की गई है कि वह उन सब के साथ रहन सहन खाने खर्च वगैरह में बराबरी का बर्ताव करें जो लोग नई नई बीवियो के दीवाने होकर पुरानी या कम खूबसूरत औरतों को बिल्कुल नज़र अन्दाज़ कर देते हैं उन्हें ज़लील व ख़्वार रखते उनकी तरफ़ नज़र उठा कर नहीं देखते उनके लिए अल्लाह तआला के रसूल ﷺ ने आख़िरत में अज़ाब की सख़्त वईद और सजा सुनाई है और आप ﷺ की भी कई बीवियां थीं सब के साथ बराबरी रखते। बारियां मुक़र्रर थी एक रात एक के साथ गुज़ारते सफर में तशरीफ़ लेजाते तो कुरा डाला जाता जिसका नाम निकल आता उसको को लेकर जाते।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 61 📚*
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❝ एक अहम और ख़ास इस्लामी तजवीज़ ❞
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╭┈► आज औरतों लड़कियों के अगवा उनके साथ बलात्कार के वाक़ियात व मुक़दमात में इतना इज़ाफा हो रहा है कि दुनिया परेशान है अय्याशियों के अड्डों की तादाद बढ़ती जा रही है। पुलिस छापे लगाते लगाते परेशान है देखते ही देखते लाखों लड़कियाँ कालगर्ल और रंडी पेशा बन गई। घरों मुहल्लों और बस्तियों में ज़िनाकारी कुंआरे लड़के लड़कि के आपस में नाजाइज़ तअल्लुक़ात का यह आलम सिर्फ़ एक शहर देहली में अखबारी रिपोर्ट और स मुताबिक़ लेडी डाक्टरों के ज़रिए चार हज़ार से ज़्यादा नाजाइज़ हमल एक दिन में गिराए जाते हैं। मैं कहता इस्लामी नज़रिए के मुताबिक़ बे मज़बूरी के मर्दो औरतों ख़ासकर जवान लड़के और लडकियों का ग़ैर शादीशुदा रहना मायूब, मम्नूअ और नापसन्दीदा है। इस इस्लामी मिज़ाज पर अमल करते हुए कानूनी तौर पर मज़बूर करक के तमाम शादी के लाइक़ और जवान लड़कों और लड़कियों की शादी करा दी जायें तन्दरूस्त और सही व सालिम बालिग़ मर्दो औरतों के लिए बगैर किसी ख़ास मज़बूरी के बेनिकाह रहना जर्म क़रार दे दिया जाए और निकाह एकदम सादा तौर पर हों ताकि क़ानून पर अमल करने और सज़ा से बचने के लिए किसी को दिक्क़त न आए और जब क़ानूनी सज़ा से बचने की फ़िक्र होगी तो ख़ुद ब खुद ज़ल्दी ज़ल्दी सादगी से निकाह किए जायेंगे। अगर यह सब हो जाए तो मेरा दावा है कि ज़िनाकारी बदकारी औरतों लड़कियों के अग़वा और बलात्कार के मुक़दमात वाक़ियात या तो एक दम ख़त्म हो जायेंगे या ना होने के बराबर रह जायेंगे।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 62 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 80
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❝ एक अहम और ख़ास इस्लामी तजवीज़ ❞
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╭┈► मर्दो औरतों लड़कों लड़कियों का बेनिकाह रहना ही हर ज़िनाकारी अस्मतदारी अय्याशी और बदकारी की ख़ास वजह है। आज सैक्स फ्री करने यानी ज़िनाकारी को क़ानूनन जाइज़ करार देने की तजवीज़ पार्लियामेन्ट में रखी जा रही हैं लेकन क़ानूनी तौर से मजबूर करके आज़ाद आवारा और बेनिकाह मर्दों औरतों लड़के लड़कियों के निकाह क्यूं नहीं किए जा रहे हैं और होटलों और अय्याशी के अड्डों में जाकर ज़िना करने वालों को उन्हीं रंडी पेशा औरतों और कालगर्ल्स के साथ निकाह करने का क़ानून क्यूं नहीं पास कर दिया जाता कि जो जिसके साथ ज़िना में पकड़ा जाए उसको उस औरत के साथ निकाह करना ज़रूरी है और जो लड़कियां ज़िनाकरी करते और रंगरलियाँ मनाते पकड़े जायें उनके साथ ज़बरदस्स्ती निकाह क्यूं नहीं करा दिए जाते। इनामात के लालच देकर भी यह काम किए जा सकते हैं निकाह करने वाले लड़के लड़कियों को हुक़ूमत की तरफ़ से इतना इतना इनाम दिया जाएगा और जो सरकारी मुलाज़िम कसी आज़ाद लावारिस औरत से निकाह करेगा उसको बीबी बनाकर इज्ज़त से रखेगा उसके ओहदे में तरक़्क़ी कर दी जाएगी वगैरह वगैरह और सरमायादार लोग चार तक निकाह कर सकते हैं।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 63 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 81
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❝ एक अहम और ख़ास इस्लामी तजवीज़ ❞
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╭┈► गोया कि बात यही है कि हर मुश्किल का हल और समाज की हर समस्या का समाधान और दुनिया की हर परेशानी और हर बुराई दुख दर्द और मुसीबत ख़्वाब वह इनफ़िरादी हो या इज्तिमाई सब से नजात व छुटकारा पाने का रास्ता सिर्फ़ मज़हबे इस्लाम है और इस्लाम से दूरी का नतीजा है कि अल्लाह तआला ने तुम्हारी आंखों खोलने को एड्स जैसी ख़तरनाक बीमारी को अज़ाब बना कर भेज दिया है ताकि तुम आंखें खोलो होश में आओ वर्ना याद रखो यह तो दुनिया का अज़ाब है।
╭┈► *अल क़ुरआन :* और आख़िरत का अज़ाब बहुत बड़ा है काश तुम जानते और काइनात की सबसे बड़ी सच्चाई है!
╭┈► *कलमा ए तईयब :* अल्लाह तआला के अलावा कोई माबूद नहीं मुहम्मद ﷺ अल्लाह तआला के रसूल हैं
⚠ *Note* क़ुरआने करीम अल्लाह तआला का कलाम है, वह अरबी ज़बान मे नाज़िल हुआ उसको अरबी के अलावा किसी ज़बान मे नहीं पढ़ना चाहिएं, उसका तर्जुमा किसी भी ज़बान मे पढ़ सकते है, लेकिन ख़ास क़ुरआन को अरबी के अलावा किसी भी ज़बान मे पढ़ना या लिखना या छापना बहुत बुरी बात है।..✍
*📬 ब्याह शादी के बढ़ये हुए इख़राजात सफ़ह 64 📚*
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📮 पोस्ट मुकम्मल हुई अल्हम्दुलिल्लाह 🔃*
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