इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-1)
अर्ज़ ए क़लम फ़र्ज़ उलूम का तार्रुफ़ :
आ'ला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अहमद रजा खान رضى الله تعالیٰ عنه फरमाते हैँ इल्म ए दीन सीखना इस क़दर कि मज़हबे हक से आगाह, वुज़ू गुस्ल नमाज़ रोज़े वगैरह ज़रूरिय्यात के अहकाम से मुत्तलअ हो। ताजिर तिजारत, मुज़ारेअ (किसान) ज़राअत, अजीर (मज़दूर मुलाजिम) इजारे, ग़रज़ हर शख्स जिस हालत में है उस के मुतअल्लिक अहकामे शरीअत से वाकिफ़ हो, फर्ज़े ऐन है जब तक यह हासिल न करे जुगराफिया, तारीख वग़ैरा में वक़्त ज़ाया करना जाइज़ नहीं जो फ़र्ज़ छोड़ का नफ़्ल में मशगूल हो हदीसों में उस की सख्त बुराई आई और उस का वो नेक काम मरदूद करार पाया न कि फ़र्ज़ छोड़ कर फुजूलियात मेँ वक़्त गंवाना।
फतावा र-जविय्या मुखर्रजा, ज़िल्द 23, सफ़ह 647, 648
अफ़सोस आज हमारी गालिब अक्सरिय्यत सिर्फ व सिर्फ दुन्यवी उलूम के हुसूल में मशगूल है, अगर किसी को कुछ मज़हबी जौक मिला भी तो अक्सर उस का ध्यान मुस्तहब उलूम ही की तरफ़ गया। अफ़सोस ! सद करोड़ अफ़सोस ! फर्ज उलूम की जानिब मुसलमानों की तवज्जों न होने के बराबर है, और हालत यह है कि नमाज़ियों की भी भारी ता'दाद नमाज़ के ज़रूरी मसाइल से ना आशना है। हालांकि मसाइल को सीखना फ़र्ज़ और न जानना सख्त गुनाह है।
आ'ला हज़रत رضى الله تعالیٰ عنه फ़रमाते हैं "नमाज़ के ज़रूरी मसाइल न जानना फिस्क है।
ऐजन ज़िल्द 6, सफ़ह 523
अल्हम्दुलिल्लाह हमारी ये पोस्ट "इस्लामी बहनों की नमाज़ (ह-नफी)" उन बे-शुमार अहकाम पर मुहीत है जिनका सीखना इस्लामी बहनों के लिये फ़र्ज़ है। लिहाजा इस्लामी बहनें इस पोस्ट को जरूर पढे मसाइल को याद करें अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ दूसरी इस्लामी बहनों को भी पढ़ कर सुनाएं औऱ शेयर करें अगर कोई मसअला किसी पढ़ने सुनने वाली को समझ में न आए तो महज़ अपनी अक्ल से वजाहत करने के बजाए उलमाए अहले सुन्नत से मा’लूमात हासिल करें। इसका तरीका बयान करते हुए हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आ'ज़मी رضى الله تعالیٰ عنه बहारे शरीअत हिस्सा 7 सफ़ह 89 (मत्बुआ मकतबए र जुबिय्या) सतर 12 पर फरमाते हैँ औरतों को मसअला पूछने को ज़रूरत हो तो अगर शौहर आलिम हो तो उससे पूछ ले और आलिम नहीं तो उससे कहे वो पूछ आए और इन सूरतों में उसे खुद आलिम के यहां जाने की इजाज़त नहीं और यह सूरतें न हों तो जा सकती है।
आलमगीरी ज़िल्द 1 सफ़ह 371
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 10
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-2)
अगले पिछले गुनाह मुआफ़ करवाने का नुस्ख़ा :
हज़रते सैय्यदना हुमरान رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि हजुरते सैय्यदना उस्माने गनी رضى الله تعالیٰ عنه ने वुज़ू के लिये पानी मंगवाया जब कि आप एक सर्द रात में नमाज़ के लिये बाहर जाना चाहते थे, मैं उन के लिये पानी ले का हाजिर हुवा तो आप رضى الله تعالیٰ عنه अपना चेहरा और दोनों हाथ धोए। (येह देख का) मैं ने पूछा की : "अल्लाह तआला आप को किफायत करे रात तो बहुत ठन्डी है।" तो आप رضى الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया मैंने नबी करीम ﷺ को फ़रमाते हुए सुना कि "जो बन्दा कामिल वुज़ू बकरता है उस के अगले पिछले गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह - 14
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-3)
गुनाह झड़ने की हिकायत : الحمد لله عزوجل वुज़ू करने वाले के गुनाह झड़ते हैं, इस ‘ज़िम्न में एक ईमान अफ़रोज हिकायत नक्ल करते हुए हजरते अल्लामा अब्दुल बस्ताब शा’रानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते है एक मर्तबा सैय्यदुना इमामे आ'जम अबू हनीफा رضى الله تعالیٰ عنه जामेअ मस्जिद कूफा के वुज़ू खाने में तशरीफ ले गए तो एक नौ जबान को वुज़ू बनाते हुए देखा, उस से वुज़ू (में इस्ति‘माल शुदा पानी) के कतरे टपक रहे थे।
आप رضى الله تعالیٰ عنه ने इर्शाद फ़रमाया "ऐ बेटे ! मां बाप की ना-फ़रमानी से तौबा कर ले।" उस ने फौरन अर्ज़ की, ''मैं ने तौबा की।" एक और शख्स के वुज़ू (में इस्ति'माल होने वाले पानी) के कतरे टपकते देखे, आप رضى الله تعالیٰ عنه ने उस शख्स से इरशाद फ़रमाया, "ऐ मेरे भाई ! तू ज़िना से तौबा कर ले।" उस ने अर्ज़ की, "मैं ने तौबा की।" एक और शख्स के वुज़ू के कतरात टपकते देखे तो उसे फ़रमाया, "शराब नोशी और गाने बाजे सुनने से तौबा का ले।" उस ने अर्ज़ की : "मैं ने तौबा की।"
सैय्यदुना इमामे आज़म अबू हनीफ़ा رضى الله تعالیٰ عنه पर क़स्फ़ के बाइस चूंकि लोगों के उयूब जाहिर हो जाते थे लिहाजा आप رضى الله تعالیٰ عنه ने बारगाहे ख़ुदा बंदी عزوجل में इस क़स्फ़ के ख़त्म हो जाने की दुआ मांगी। अल्लाह عزوجل ने दुआ कुबूल फरमा ली। जिस से आप رضى الله تعالیٰ عنه को वुज़ू करने वालों के गुनाह झड़ते नज़र आना बन्द हो गए।
📔 अल-मीज़ान अल-कबरी ज़िल्द 1 सफ़ह 130
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह -15
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-4)
क़ब्र में आग भडक उठी :
हज़रते सैय्यदुना अम्र बिन शुरहूबील رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि एक शख्स इन्तिक़ाल कर गया जिस को लोग मुत्तकी और परहेज़गार समझते थे जब उसे क़ब्र में दफ़न किया गया तो फिरिश्तों ने फ़रमाया "हम तुझको अल्लाह तआला के अज़ाब के 100 कोड़े मारेंगे। उस ने पूछा : "क्यूं मारोगे ? मैं तो तक़वा व परहेज़गारी को इख़्तियार किये हुए था।" तो फिरिश्तों ने फ़रमाया : "चलो पचास 50 कोड़े ही मार देंगे।" इस पर वोह शख्स बराबर बहस करता रहा यहां तक कि वोह फिरिश्ते एक कोड़े पर आ गए और उन्होंने अज़ाबे इलाही का एक कोड़ा मारा जिससे तमाम कब्र में आग भडक उठी तो उस ने पूछा कि तुमने मुझे कोड़ा क्यों मारा ? फिरिश्तों ने जवाब दिया : "तूने एक दिन जान बूझ कर बे वुज़ू नमाज़ पढी थी। और एक मर्तबा एक मज़लूम तेरे पास फरियाद ले कर आया मगर तूने उसकी मदद न की।
बे वुज़ू नमाज़ पढ़ना सख्त जुरुअत की बात है। फु-कहाए किराम यहां तक फ़रमाते हैं : बिला उज़्र जान बूझ कर जाइज़ समझ कर या इस्तिहजाअन (या‘नी मजाक उड़ाते हुए) बिगैर वुज़ू के नमाज़ पढ़ना कुफ्र है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 16
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-5)
इस्लामी बहनों के वुज़ू का तरीक़ा #1 :
का'बा तुल्लाह शरीफ़ की तरफ मुंह कर के ऊंची जगह बैठना मुस्तहब है। वुज़ू के लिये निय्यत करना सुन्नत है। निय्यत दिल के इरादे को कहते हैं, दिल में निय्यत होते हुए ज़बान से भी कह लेना अफज़ल है। लिहाजा ज़बान से इस तरह निय्यत कीजिये कि मैं हुक़्में इलाही عزوجل बजा लाने और पाकी हासिल करने के लिये वुज़ू कर रही हूँ। बिस्मिल्लाह कह लीजिये कि यह भी सुनत है। बल्कि بِسمِ اللّٰهِ وَالْحَمدُ لِلّٰه कह लीजिये कि जब तक बा वुजू रहेंगी फिरिश्ते नेकिंयां लिखते रहेंगे।
अब दोनो हाथ तीन तीन बार पहुँचो तक धोइये, (नल बन्द कर के) दोनों हाथों की उंगलियां का खिलाल भी कीजिये। कम अज कम तीन बार दाएं बाएं ऊपर नीचे के दांतों में मिस्वाक कीजिये और हर बार मिस्वाक को धो लीजिये। हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सैय्यदुना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद गृजाली रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं "मिस्वाक करते वक़्त नमाज़ में क़ुरआन ए मजीद की किराअत और ज़िकुल्लाह عزوجل के लिये मुंह पाक करने की निय्यत करनी चाहिये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 18
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-6)
इस्लामी बहनों के वुज़ू का तरीक़ा #2 :
अब सीधे हाथ के तीन चुल्लू पानी से (हर बार नल बन्द कर के) इस तरह तीन कुल्लिया कीजिये कि हर बार मुंह के हर पुर्जे पर पानी बह जाए अगर रोजा न हो तो गर गरा भी कर लीजिये।
फिर सीधे ही हाथ के तीन चुल्लू (अब हर बार आधा चुल्लू पानी काफी है) से (हर बार नल बन्द कर के) तीन बार नाक में नर्म गोश्त तक पानी चढाइये और अगर रोजा न हो तो नाक की ज़ड़ तक पानी पहुंचाइये, अब (नल बन्द कर के) उल्टे हाथ से नाक साफ का लीजिये और छोटी उंगली नाक के सूराखों में डालिये।
तीन बार सारा चेहरा इस तरह धोइये कि जहां से आदतन सर के बाल उगना शुरूअ होते हैं वहां से ले कर ठोडी के नीचे तक और एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक हर जगह पानी बह जाए। फ़िर पहले सीधा हाथ उंगलियों के सिरे से धोना शुरूअ कर के कोहनियों समेत तीन बार धोइये। इसी तरह फिर उल्टा हाथ धो लीजिये दोनों हाथ आधे बाजू तक धोना मुस्तहब है। अगर चूड़ी, कंगन या कोई से भी जेवरात पहने हुए हों तो उन को हिला लीजिये ताकि पानी उन के नीचे की जिल्द पर बह जाए। अगर उन के हिलाए बिगैर पानी बह जाता है तो हिलाने की हाजत नहीं और अगर बिगैर हिलाए या बिगैर उतारे पानी नहीं पहुंचेगा तो पहली सूरत में हिलाना और दूसरी सूरत में उतारना जरूरी है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 19
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-7)
इस्लामी बहनों के वुज़ू का तरीक़ा #3 :
अक्सर इस्लामी बहनें चुल्लू में पानी ले कर पहुंचे से तीन बार छोड देती हैं कि कोहनी तक बहता चला जाता है इस तरह करने से कोहनी औऱ कलाई को करबटों पर पानी न पहुंचने का अन्देशा हैं लिहाज़ा बयान कर्दा तरीके पर हाथ धोइये। अब चुल्लू भर कर कोहनी तक पानी बहाने की हाजत नहीं बल्कि (बिगैर इजाज्ते सहीहा ऐसा करना) यह पानी का इसराफ है।
अब (नल बन्द कर के) सर का मस्ह इस तरह कीजिये कि दोनों अंगूंठों और कलिमे की उंगलियों को छोड़ कर दोनों हाथ की तीन तीन उंगलियों के सिरे एक दूसरे से मिला लीजिये और पेशानी के बाल या खाल पर रख कर ज़रा सा दबा का खींचते हुए गुद्दी तक इस तरह ले जाइये कि इस दौरान उन उंगलियों का कोई हिस्सा बालों से जुदा न रहे मगर हथेलियां सर से जुदा रहें, सिर्फ उन बालों पर मस्ह कीजिये जो सर के ऊपर हैं।
फिर गुद्दी से हथेलियाँ खींचते हुए पेशानी तक ले आइये, कलिमे की उंगलियां और अंगूठे इस दौरान सर पर बिल्कुल मस नहीं होने चाहिएं।
फिर कलिमे को उंगलियों से कानों की अन्दरूनी सत्ह का और अंगूठों से कानों की बाहरी सत्ह का मस्ह कीजिये और छुग्लिया (या'नी छोटी उंग्लियां) कानों के सूराखों में दाखिल कीजिये और उंगलियों की पुश्त से गरदन के पिछले हिस्से का मस्ह कीजिये, बा'ज़ इस्लामी बहनें गले का औऱ घुले हुए हाथों की कोहनियों और कलाइयों का मस्ह करती हैं यह सुन्नत नहीं है। सर का मस्ह करने से क़ब्ल टोंटी अच्छी तरह बन्द करने की आदत बना लीजिये बिला वज़ह नल खुला छोड़ देना या अधूरा बन्द करना कि पानी टपक कर जाएअ होता रहे इसराफ़ है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 20
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-8)
इस्लामी बहनों के वुज़ू का तरीक़ा #4 :
अब पहले सीधा फिर उल्टा पाउ हर बार उंगलियों से शुरूअ कर के टखनों के ऊपर तक बल्कि मुस्तहब है कि आधी पिंडली तक तीन तीन बार धो लीजिये। दोनों पाउं की उंगलियों का ख़िलाल करना सुन्नत है। (खिलाल के दौरान नल बन्द रखिये) इसका मुस्तहब तरीक़ा यह है कि उल्टे हाथ की छुग्लिया (छोटी उंगली) से सीधे पाऊं की छुग्लिया का खिलाल शुरूअ कर के अंगूठे पर ख़त्म कीजिये औऱ उल्टे ही हाथ की छुग्लिया से उल्टे पाऊं के अंगूठे से शुरूअ कर के छुग्लिया पर ख़त्म कर लीजिये।
हूज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद गजाली रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं : हर उज़्व धोते वक़्त यह उम्मीद करता रहे कि मेरे इस उज़्व के गुनाह निकल रहे हैं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 20
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-9)
जन्नत के आठों दरवाजे खुल जाते हैं :
कलिमए शहादत या'नी :
أَشْهَدُ أنْ لا إلَٰهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيْكَ لَهُ وَأشْهَدُ أنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
भी पढ़ लीजिये कि हदीसे पाक में है "जिस ने अच्छी तरह वुज़ू किया और कलिमए शहादत पढ़ा उसके लिये ज़न्नत के आठों दरवाजे खोल दिये जाते हैं जिससे चाहे अन्दर दाखिल हो।
जो वुज़ू करने के बा'द यह कलिमात पढें :
سبحانك اللهم وبحمدك اشهد ان لا اله الا انت استغفرك واتوب اليك
"ऐ अल्लाह عزوجل तू पाक है औऱ तेरे लिये ही तमाम खूबियां हैं मैं गवाही देता (देती) हूं कि तेरे सिबा कोई मा'बूद नहीं मैं तुझसे बख़्शिश चाहता (चाहती) हूं और तेरी बारगाह मे' तौबा करता (करती) हू।" तो उस पर मोहर लगा कर अर्श के नीचे रख दिया जाएगा और क़यामत के दिन इस पढ़ने वाले को दें दिया जाएगा!
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 22
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-10)
*वुज़ू के बाद सूरए क़द्र पढ़ने के फ़ज़ाइल :*
हदीसे मुबारक में है जो वुज़ू के बा'द एक मर्तबा सूरए क़द्र पढे तो वो सिद्दीक़ीन में से है और जो दो मर्तबा पढे तो शु-हदा में शुमार किया जाए और जो तीन मर्तबा पढेगा तो अल्लाह عزوجل मैदाने महशर में उसे अपने अम्बिया के साथ रखेगा।
*नज़र कभी कमजोर न हो :*
जो वुज़ू के बा'द आसमान की तरफ़ देख कर (एक बार) सूरए إِنَّا أَنزَلْنَاهُ पढ़ लिया करे ان شاء الله ﷻ उसकी नज़र कभी कमज़ोर न होगी।
📘 मसाइलुल क़ुरआन सफ़ह 291
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 22
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-11)
तसव्वुफ़ का अज़ीम म-दनी नुस्खा
हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सैय्यदुना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते है वुज़ू से फ़रागत के बाद जब आप नमाज़ की तरफ मु-तवज्जेह हों उस वक़्त यह तसव्वुर कीजिये कि जिन जाहिरी आ'ज़ा पर लोगों की नज़र पड़ती है वो तो ब जाहिर ताहिर (या'नी पाक) हो चुके मगर दिल को पाक किये बिगैर बारगाहे इलाही عزوجل में मुनाजात करना हया के खिलाफ़ है क्यूंकि अल्लाह عزوجل दिलों को भी देखने वाला है।" मजीद फरमाते हैं, जाहिरी वुज़ू कर लेने वाले को यह बात याद रखनी चाहिये कि दिल की तहारत (या'नी सफाई) तौबा करने और गुनाहों को छोड़ने और उम्दा अख़लाक़ अपनाने से होती है। जो शख्स दिल को गुनाहों की आलू-दगियों से पाक नहीं करता फ़क़त जाहिरी तहारत (या'नी सफाई) और जेबो जीनत पर इक्तिफा करता है उसकी मिसाल उस शख्स की सी है जो बादशाह को मद्ऊ करता है और अपने घर बार को बाहर से खूब चमकाता है और रंगो रोगन करता है मगर मकान के अन्दरूनी हिस्से की सफाई पर कोई तवज्जोह नहीं देता। चुनाँचे जब बादशाह उस के मकान के अन्दर आ कर गन्दगियां देखेगा तो वह नाराज़ होगा या राजी, यह हर जी शुहुर ख़ुद समझ सकता है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 22
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-12)
अल्लाह के चार हुरूफ़ की निस्बत से वुज़ू के चार फ़राइज़ :
चेहरा धोना : या'नी चेहरे का लम्बाई में पेशानी जहां से बाल उमूमन उगते है वहां से ले का ठोडी के नीचे तक और चौड़ाईं में एक कान की लौ से लेकर दूसरे कान की लौ तक एक मर्तबा धोना।
कोहनियों समेत दोनों हाथ धोना : या'नी दोनों हाथों का कोहनियों समेत इस तरह धोना कि उंगलियों के नाखूनों से ले कर कोहनियों समेत एक बाल भी खुश्क न रहे।
चौथाई सर का मसह करना : या'नी हाथ तर कर के सर के चौथाई बालों पर मसह करना।
टख्नों समेत दोनों पाउ' धोना : या'नी दोनों पाऊं को टख्नों समेत इस तरह धोना कि कोई जगह खुश्क न रहे।
📔 बहारे शरीअत, हिस्सा 2 सफ़ह 10
📕 आलमगीरी, ज़िल्द 1 सफ़ह 3
म-दनी फूल : इन चार फ़र्ज़ों में से अगर एक फ़र्ज़ भी रह गया तो वुज़ू न होगा और जब वुज़ू न होगा तो नमाज़ भी न होगी।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 23
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-13)
धोने की ता'रीफ :
किसी उज़्व को धोने के यह मा'ना है कि उस उज़्व के हर हिस्से पर कम अज कम दो कतरे पानी बह जाए। सिर्फ भीग जाने या पानी को तेल की तरह चुपड़ लेने या एक कतरा बह जाने को धोना नहीं कहेंगे न इस तरह वुज़ू या गुस्ल अदा होगा।
📕 फ़तावा र-जविय्या ज़िल्द 1 सफ़ह 218
📔 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 10
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 24
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-14)
या रहमतलिल्ल आ-लमीन के तेहत हुरूफ़ की निस्बत से वुज़ू की 13 सुन्नतें :
वुज़ू का तरीका (ह-नफी) में बा'ज़ सुन्नतों और मुस्तहब्बात का बयान हो चुका है इस की मजीद वजाहत मुला-हजा कीजिये।
① निय्यत करना।
② बिस्मिल्लाह पढ़ना।
अगर वुज़ू से क़ब्ल بِسمِ اللّٰهِ وَالْحَمدُ لِلّٰه कह लें तो जब तक बा वुज़ू रहे'गी फिरिश्ते नेकियां लिखते रहेंगे।
③ दोनों हाथ पहुंचों तक तीन बार धोना।
④ तीन बार मिस्वाक करना।
⑤ तीन चुल्लू से तीन बार कुल्ली करना।
⑥ रोज़ा न हो तो गर-गरा करना।
⑦ चुल्लू से तीन बार नाक में पानी चढाना।
⑧ हाथ औऱ ⑨ पैर की उंग्लियों का खिलाल करना।
①⓪ पूरे सर का एक ही बार मस्ह करना।
①① कानों का मस्ह करना।
①② फराइज में तरतीब काइम रखना (या’नी फ़र्ज़ आ'ज़ा में पहले मुंह फिर हाथ कोहनियों समेत धोना फिर सर का मस्ह करना औऱ फिर पाउं धोना)
①③ पै दर पै वुज़ू करना या’नी एक उज़्व सूखने न पॉय कि दूसरा उज़्व धो लेना।
📔 बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफ़ह 14 - 18 मुलख्खसन
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 25
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-15)
या रसूलल्लाह तेरे दर की फिजाओं को सलाम के उन्तीस हुरूफ की निस्वत से वुज़ू के 29 मुस्तहब्बात :
① किब्ला रू ② ऊंची जगह ③ बैठना।
④ पानी बहाते वक़्त आ'ज़ा पर हाथ फेरना।
⑤ इत्मीनान से वुज़ू करना।
⑥ आ'ज़ाए वुज़ू पर पहले पानी चुपड़ लेना ख़ुसूसन सर्दियों में
⑦ वुज़ू करने में बग़ैर जरूरत किसी से मदद न लेना।
⑧ सीधे हाथ से कुल्ली करना
⑨ सीधे हाथ से नाक में पानी चढ़ाना
①⓪ उलटे हाथ से नाक साफ करना
①① उलटे हाथ की छुग्लिया नाक में डालना
①② उंगलियों की पुश्त से गर्दन की पुश्त का मसह करना।
①③ कानों का मसह करते वक़्त भीगी हुई यानी छुग्लिया (छोटी उंगलियां) कानो के सुराखों में दाख़िल करना।
①④ अंगूठी को ह-र-कत देना जब कि ढीली हो और यह यकीन हो कि इस के नीचे पानी बह गया है अगर सख्त हो तो ह-र-कत दे कर अंगूठी के नीचे पानी बहाना फर्ज है।
①⑤ मा'ज़ूरे शर-ई (इस के तफ्सीली अहकाम इसी रिसाले के सफ़ह 44 ता 48 पर मुला-हजा फरमा लीजिये) न हो तो नमाज़ का वक़्त शुरू होने से पहले वुज़ू कर लेना।
📔 बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफ़ह 18-22
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 26
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-16)
या रसूलल्लाह तेरे दर की फिजाओं को सलाम के उन्तीस हुरूफ की निस्वत से वुज़ू के 29 मुस्तहब्बात :
①⑥ इस्लामी बहन जो कामिल तौर पर वुज़ू करती है या'नी जिस की कोई जगह पानी बहने से न रह जाती हो उसका कूओं (या‘नी नाक की तरफ़ आंखों के कोने) टखनों, एड़ियों, तल्वों, कूंचों (या'नी एड़ियों के ऊपर मोटे पट्ठे) घाइयों (उंगलियों के दरमियान वाली जगहों) और कोहनियों का खुसूसिय्यत के साथ खयाल रखना और बे खयाली काने वालियों के लिये तो फ़र्ज़ है कि इन जगहों का खास खयाल रखें कि अक्सर देखा गया है कि यह जगहें खुश्क रह जाती हैं और यह बे खयाली ही का नतीजा है ऐसी वे खयाली हराम है और खयाल रखना फ़र्ज़।
①⑦ वुज़ू का लोटा उल्टी तरफ़ रखिये अगर तश्त या पतीली वगैरा से वुज़ू कों तो सीधी जानिब रखिये
①⑧ चेहरा धोते वक़्त पेशानी पर इस तरह फैला का पानी डालना कि ऊपर का कुछ हिस्सा भी घुल जाए
①⑨ चेहरे औऱ ②⓪ हाथ पाऊँ की रोशनी वसीअ करना या'नी जितनी जगह पानी बहाना फ़र्ज़ है उस के अतराफ़ में कुछ बढाना म-सलन हाथ कोहनी से ऊपर आधे बाजु तक और पाउं टखनों से ऊपर आधी पिंडली तक धोना।
②① दोनों हाथों से मुंह धोना
②② हाथ पाउं धोने में उंगलियों से शुरूअ करना
📔 बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफ़ह 18-22
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 26
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-17)
या रसूलल्लाह तेरे दर की फिजाओं को सलाम के उन्तीस हुरूफ की निस्वत से वुज़ू के 29 मुस्तहब्बात :
②③ हर उज़्व धोने के बाद उस पर हाथ फैर कर बूंदें टपका देना ताकि बदन या कपड़े पर न टपके
②④ हर उज़्व के धोते वक़्त और मसह करते वक़्त निय्यते वुज़ू का हाजिर रहना
②⑤ इब्तिदा में बिस्मिल्लाह के साथ साथ दुरूद शरीफ़ ओर कलिमए शहादत पढ़ लेना
②⑥ आ'जाए वुज़ू बिला ज़रूरत न पोछे अगर पोंछना हो तब भी बिला ज़रूरत बिल्कुल खुश्क न कों कुछ तरी बाकी रखें कि बरोजे क़यामत नेकियों के पलड़े में रखी जाएगी
②⑦ वुज़ू के बा'द हाथ न झटके कि शैतान का पंखा है।
②⑧ बादे वुज़ू मियानी (या'नी पाजामा का वोह हिस्सा जो पेशाब गाह के करीब होता है) पर पानी छिड़कना। (पानी छिड़कतें वक़्त मियानी को कुर्ते के दामन में छुपाए रखना मुनासिब है नीज़ वुज़ू करते वक़्त भी बल्कि हर वक़्त पर्दे में पर्दा करते हुए मियानी को कुर्ते के दामन या चादर वगैरा के जरिये छुपाए रखना हया के करीब है)
②⑨ अगर मकरूह वक़्त न हो तो दो रकअत नफ्ल अदा करना जिसे तहियतुल वुज़ू कहते है।
📔 बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफ़ह 18-22
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 26
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-18)
बा-वुज़ू रहना सवाब हैं। के पन्दरह हुरूफ़ की निस्वत से वुज़ू के 15 मकरुहात :
① वुज़ू के लिये नापाक जगह पर बैठना।
② नापाक जगह वुज़ू का पानी गिराना।
③ आ'जाए वुज़ू से लोटे वगैरा में कतरे टपकना (मुंह धोते वक़्त भरे हुए चुल्लू में अमूमन चेहरे से पानी के कतरे गिरते है इस का ख़याल रखिये।)
④ किबले की तरफ़ थूक या बल्गम डालना या कुल्ली करना।
⑤ जियादा पानी ख़र्च करना (सदरुश्शरीअह हजरते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अली आ‘ज़मी रहमतुल्लाह अलैह "बहारे शरीअत" हिस्सा दुवुम सफ़ह नम्बर 24 में फरमाते हैं : नाक में" पानी डालते वक़्त आधा चुल्लू काफी है तो अब पूरा चुल्लू लेना इसराफ़ है)
⑥ इतना कम पानी खर्च करना कि सुन्नत अदा न हो (टोंटी न इतनी जियादा खोलें कि पानी हाजत से जियादा गिरे न इतनी कम खोलें कि सुन्नत भी अदा न हो बल्कि मु-तवस्सित हो।)
⑦ मुंह पर पानी मारना।
⑧ मुंह पर पानी डालते वक़्त फूंकना।
⑨ एक हाथ से मुंह धोना कि हैं रवाफिज और हिन्दूओ का शिआर है।
①⓪ गले का मस्ह करना।
①① उल्टे हाथ से कुल्ली करना या नाक में पानी चढ़ाना।
①② सीधे हाथ से नाक साफ़ करना।
①③ तीन जदीद पानियों से तीन बार सर का मस्ह करना।
①④ धूप के गर्म पानी से वुज़ू करना।
①⑤ होंठ या आँख जोर से बन्द करना और अगर कुछ सूखा रह गया तो वुज़ू ही न होगा। वुज़ू की हर सुन्नत का तर्क मकरूह हैं इसी तरह हर मकरूह का तर्क सुन्नत।
📔 बहारे शरीयत हिस्सा 2 सफ़ह 22 - 23
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 28
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-19)
धूप से गर्म पानी की वज़ाहत :
सदरुश्शरीअह बदरूत्तरीकह हजरते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अली आ‘ज़मी रहमतुल्लाह अलैह मक-त-बतुल मदीना की मत्बुआ बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 23 के हाशिये पर लिखते हैं जो पानी धूप से गर्म हो गया उस से वुज़ू करना मुत्लकन मकरूह नहीं बल्कि इस में चन्द कुयूद है, जिनका जिक पानी के बाब में आएगा और उस से वुज़ू की कराहत तन्जीही है तहरीमी नहीं।
पानी के बाब में सफ़ह 56 पर लिखते हैं "जो पानी गर्म मुल्क में गर्म मौसम में सोने चांदी के सिवा किसी और धात के बरतन में धूप मे गर्म हो गया, तो जब तक गर्म है उस से वुज़ू और गुस्ल न चाहिये, न उसको पीना चाहिये बल्कि बदन को किसी तरह पहुंचना न चाहिये, यहाँ तक कि अगर उससे कपड़ा भीग जाए तो जब तक ठन्डा न हो, ले उसके पहनने से बचें कि उस पानी के इस्ति'माल पें अन्देशए बरस (या'नी कोढ़ का ख़तरा) है, फ़िर भी अगर वुज़ू या गुस्ल कर लिया तो हो जाएगा।
📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 2 सफ़ह 23 - 56
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 29
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-20)
“मुस्ता'मल पानी से वुज़ू व ग़ुस्ल नही होता'' के सत्ताईस हुरूफ़ की निस्बत से मुस्ता'मल पानी के मु-ताल्लिक़ 27 म-दनी फूल :
① जो पानी वुज़ू या गुस्ल करने में बदन से गिरा वोह पाक है मगर चूंकि अब मुस्ता'मल (या'नी इस्ति'माल शुदा) हो चुका है लिहाज़ा इस से वुज़ू और गुस्ल जाइज नहीं।
② यूं ही अगर बे वुज़ू शख्स का हाथ या उंगली या पोरा या नाखून या बदन का कोई टुकड़ा जो वुज़ू में धोया जाता हो ब कस्द (या 'नी जान बूझ कर) या बिला कस्द (या'नी बे खयाली में) दह दर दह (10-10) से कम पानी में बे धोए हुए पड़ जाए तो वोह यानी वुज़ू और गुस्ल के लाइक न रहा।
③ इसी तरह जिस शख्स पर नहाना फर्ज़ है उस के जिस्म का कोई बे धुला हुवा हिस्सा दह दर दह से कम पानी से छू जाए तो वोह पानी वुज़ू और गुस्ल के काम का न रहा।
④ अगर धुला हुवा हाथ या बदन का कोई हिस्सा पड़ जाए तो हर्ज नहीं।
⑤ हाएजा (या'नी हैज़ वाली) हैज़ से या निफास वाली निफास से पाक तो हो चुकी हो मगर अभी गुस्ल न किया हो तो उस के जिस्म का कोई उज़्व या हिस्सा धोने से क्या अगर दह दर दह (10-1 0) से कम पानी में पड़ा। तो वोह पानी मुस्ता’मल (या'नी इस्ति'माल शुदा) हो जाएगा।
⑥ जो पानी कम अज कम दह दर दह हो वोह बहते या'नी और जो दह दर दह से कम हो वोह ठहरे पानी के हुक्म में होता है।
⑦ उमूमन हम्माद के टप घरेलू इस्तेमाल के डोल बाल्टी पतीले, लोटे वगैरा दह दर दह से कम होते हैं इन में भरा हुवा पानी ठहरे पानी के हुक्म में होता है।
⑧ आ'जाए वुज़ू में से अगर कोई उज़्व धो लिया था और इसके बा'द वुज़ू टूटने वाला कोई अमल न हुवा था तो वो धुला हुवा हिस्सा ठहरे पानी में डालने से पानी मुस्ता'मल न होगा।
⑨ जिस शख्स पर गुस्ल फ़र्ज़ नहीं उसने अगर कोहनी समेत हाथ धो लिया हो तो पूरा हाथ हत्ता कि कोहनी के बा'द वाला हिस्सा भी ठहरे पानी में डालने से यानी मुस्ता'मल न होगा।
①⓪ बा-वुज़ू ने या जिसका हाथ धुला हुवा है उसने अगर फ़िर धोने की निय्यत से डाला और यह धोना सवाब का काम हो म-सलन खाना खाने या वुज़ू की निय्यत से ठहरे पानी में डाला तो मुस्ता'मल हो जाएगा।
📒 मुस्ता'मल पानी के तफ्सीली मालूमात के लिए फ़-तावा र-ज़विय्या ज़िल्द 2 सफ़ह 37 ता 248 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 55 ता 56 औऱ फ़-तावा अम-ज़दिय्या ज़िल्द 1 सफ़ह 14 ता 15 मुला-इजा फरमाइये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 29
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-21)
“मुस्ता'मल पानी से वुज़ू व ग़ुस्ल नही होता'' के सत्ताईस हुरूफ़ की निस्बत से मुस्ता 'मल पानी के मु-ताल्लिक़ 27 म-दनी फूल :
①① हैज़ या निफास वाली का जब तक हैज़ या निफ़ास बाकी है ठहरे पानी में बे धुला हाथ या बदन का कोई हिस्सा डालेगी पानी मुस्ता'मल नहीं होगा हां अगर यह भी सवाब की निय्यत से डालेगी तो मुस्ता'मल हो जाएगा। मस-लन इस के लिये मुस्तहब है कि पांचों नमाज़ों के अवकात में और अगर इशराक, चाश्त व तहज्जुद की आदत रखती हो तो इन वक़्तों में बा वुज़ू कुछ देर ज़िक्र व दुरूद कर लिया करें ताकि इबादत की आदत बाकी रहे तो अब इन के लिये ब निय्यते वुज़ू बे धुला हाथ ठहरे पानी में डालेगी तो पानी मुस्ता'मल हो जाएगा।
①② पानी का गिलास, लोटा या बाल्टी वगैरा उठाते वक़्त एहतियात ज़रूरी है ताकि बे धुली उंगलिया पानी में न पड़े।
①③ दौराने वुज़ू अगर हदस हुवा या'नी वुज़ू टूटने वाला कोई अमल हुवा तो जो आ'जा पहले धो चुके थे वोह बे धुले हो गए यहां तक कि अगर चुल्लू में पानी था तो वोह भी मुस्ता'मल हो गया।
①④ अगर दौराने गुस्ल वुज़ू टूटने वाला अमल हुवा तो सिर्फ आ'जाए वुज़ू बे धुले हुए जो जो आ'जाए गुस्ल धुल चुके है वोह बे धुले न हुए।
①⑤ ना बालिग़ या ना बालिगा का पाक बदन अगर्चे ठहरे पनी म-सलन पानी को बाल्टी या टब वगैरा में मुकम्मल डूब जाए तब भी पानी मुस्ता'मल न हुवा।
①⑥समझदार बच्ची या समझदार बच्चा अगर सवाब की निय्यत से म-सलन वुज़ू की निय्यत से ठहरे पानी में हाथ की उंगली या उस का नाखुन भी अगर डालेगा तो मुस्ता'मल हो जाएगा।
①⑦ ग़ुस्ले मैय्यत का पानी मुस्ता'मल है जब कि उस में कोई नजासत न हो।
①⑧ अगर ब ज़रूरत ठहरे पानी में हाथ डाला तो पानी मुस्ता'मल न हुवा म-सलन देग या बड़े मटके या बड़े पीपे (DRUM) में पानी है इसे झुका कर नही निकाल सकते औऱ न ही छोटा बर्तन है कि उससे निकाल लें तो ऐसी मजबूरी की सूरत में ब क़दरे बे धुला हाथ पानी मे डाल कर निकाल सकते है।
📒 मुस्ता'मल पानी के तफ्सीली मालूमात के लिए फ़-तावा र-ज़विय्या ज़िल्द 2 सफ़ह 37 ता 248 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 55 ता 56 औऱ फ़-तावा अम-ज़दिय्या ज़िल्द 1 सफ़ह 14 ता 15 मुला-इजा फरमाइये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 32
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-22)
“मुस्ता'मल पानी से वुज़ू व ग़ुस्ल नही होता” के सत्ताईस हुरूफ़ की निस्बत से मुस्ता'मल पानी के मु-ताल्लिक़ 27 म-दनी फूल :
①⑨ अच्छे पानी में अगर मुस्ता'मल पानी मिल जाए और अगर अच्छा पानी जियादा है तो सब अच्छा हो गया म-सलन वुज़ू या गुस्ल के दौरान लोटे या घडे में कतरे टपके तो अगर अच्छा पानी जियादा है तो यह वुज़ू औऱ गुस्ल के काम का है वरना सारा ही बेकार हो गया।
②⓪ पानी में बे धुला हाथ पड़ गया या किसी तरह मुस्ता'मल हो गया और चाहें कि येह काम का हो जाए तो जितना मुस्ता'मल पानी है उस से ज़ियादा मिकदार में अच्छा पानी उस में मिला लीजिये, सब काम का हो जाएगा।
②① एक तरीक़ा यह भी है कि उस में एक तरफ़ से पानी डालें कि दूसरी तरफ़ बह जाए तब काम का हो जाएगा
②② मुस्ता'मल पानी पाक होता है अगर इस से नापाक बदन या कपड़े वगैरा धोएंगे तो पाक हो जाएंगे।
②③ मुस्ता'मल पानी पाक है इस का पीना या इस से रोटी खाने के लिये आटा गुधना मकरूहे तन्जीही है।
②④ होंटों का वोह हिस्सा जो आदतन बन्द करने के बा'द जाहिर रहता है वुज़ू में इस का धोना फ़र्ज़ है लिहाजा कटोरे या गिलास से पानी पीते वक़्त एहतियात की जाए कि होंटों का मस्कूरा हिस्सा ज़रा सा भी पानी में पडेगा पानी मुस्ता'मल हो जाएगा।
②⑤ अगर बा वुज़ू है या कुल्ली कर चुका है या होंटों का वोह हिस्सा धो चुका है और इस के बा'द वुज़ू तोड़ने वाला कोई अमल वाकेअ नहीं हुवा तो अब पड़ने से पानी मुस्ता'मल न होगा।
②⑥ दूध, काफी, चाय, फ्लो के रस वगैरा मशरुबात में बे धुला हाथ वगैरा पड़ने से येह मुस्ता'मल नहीं होते और इन से तो वैसे भी वुज़ू या गुस्ल नहीं होता।
②⑦ पानी पीते हुए मूंछीं के बे धुले बाल गिलास के पानी में लगे तो पानी मुस्ता'मल हो गया इस का पीना मकरूह है। अगर बा बुजू था या मूंछें धुली हुईं थीं तो शरअन हरज नहीं।
📒 मुस्ता'मल पानी के तफ्सीली मालूमात के लिए फ़-तावा र-ज़विय्या ज़िल्द 2 सफ़ह 37 ता 248 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 55 ता 56 औऱ फ़-तावा अम-ज़दिय्या ज़िल्द 1 सफ़ह 14 ता 15 मुला-इजा फरमाइये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 33
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-23)
“सब्र कर” के पांच हुरूफ़ की निस्बत से ज़ख्म वगैरा से खुन निकलने के 5 अहकाम :
① खून, पीप या ज़र्द पानी कही से निकल कर बहा और उस हैं के बहने मे ऐसी जगह पहुंचने की सलाहियत थी जिस जगह का वुज़ू या गुस्ल में धोना फ़र्ज़ है तो वुज़ू जाता रहा।
📒 बहारें शरीअत, हिस्सा 2 सफ़ह 26
② खून अगर चमका या उभरा और बहा नही जैसे सूई की नोक या चाकू का कनारा लग जाता है और खून अभर या चमक जाता है या ख़िलाल किया या मिस्वाक की या उंगली से दांत मांझे या दांत से कोई चीज म-सलन सेब वगैरा काटा उस पर खून का असर जाहिर हुवा या नाक में उंगली डाली इस पर खून की सुखी आ गई मगर वोह खून बहने के काबिल न था वुजू नहीं टूटा।
③ अगर बहा लेकिन बह कर ऐसी जगह नहीं आया जिस का गुस्ल या वुज़ू में धोना फ़र्ज़ हो म-सलन आंख में दाना था और टुट कर अन्दर ही फैल गया बाहर नहीं निकला या पीप या खून कान के सूराखों के अन्दर ही रहा बाहर न निकला तो इन सूरतों में वुज़ू न टूटा।
④ ज़ख़्म बेशक बड़ा है रतूबत चमक रही है मगर जब तक बहेगी नहीं वुज़ू नही टुटेगा।
⑤ ज़ख़्म का खून बार बार पोंछती रहीं कि बहने की नौबत न आईं तो गौर कर लीजिये कि अगर इतना खून पोंछ लिया है कि अगर न पोंछती तो बह जाता तो वुज़ू टूट गया नहीं तो नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 34
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-24)
थूक में खून से वुज़ू कब टूटेगा :
मुंह से खून निकला अगर थूक पर गालिब हैं तो वुजू टूट जाएगा वरना नहीं। ग-लबे की शनाख्त येह है कि अगर थूक का रंग सुखं हो जाए तो खून गालिब समझा जाएगा और वुज़ू टूट जाएगा येह सुर्ख थूक नापाक भी है। अगर थूक ज़र्द हो तो खून पर थूक ग़ालिब माना जाएगा लिहाज़ा न वुज़ू टुटेगा न येह जर्द थूक नापाक।
📕 बहारें शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 27
खुन वाले मुंह की कुल्ली की एहतियातें :
मुँह से इतना खून निकला कि थूक सुर्ख हो गया और लोटे या गिलास से मुंह लगा कर कुल्ली के लिये पानी लिया तो लोटा गिलास और कुल पानी नजिस हो गया लिहाज़ा ऐसे मौक़अ पर चुल्लू में पानी ले कर एहतियात से कुल्ली कीजिये और येह भी एहतियात फरमाइये कि छींटे उड़ कर आप के कपडों वगैरा पर न पडे़ं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 35
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-25)
इंजेक्शन लगाने से वुज़ू टूटेगा या नहीं .!?
गोश्त में इंजेक्शन लगाने में सिर्फ उसी सूरत में वुज़ू टुटेगा जब कि बहने की मिक्दार में खून निकले।
जब कि नस का इंजेक्शन लगा कर पहले खून ऊपर की तरफ़ खींचते हैं जो कि बहने की मिक्दार में होता है लिहाज़ा वुज़ू टुट जाता है।
इसी तरह ग्लूकोज वगैरा की ड्रिप नस में लगवाने से वुज़ू टूट जाएगा क्योंकि बहने की मिक्दार में खून निकल कर नल्की में आ जाता है। हां अगर बहने की मिक्दार में खून नल्की में न आए तो वुज़ू नही टूटेगा।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 35
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-26)
दुखती आँखों के आंसू :
दुखती आंख से जो आंसू बहा वोह नापाक है और वुज़ू भी तोड़ देगा।
📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 2 सफ़ह 32
अफ़्सोस अक्सर इस्लामी बहनें इस म-सअले से ना वाकिफ़ होती हैं और दुखती आंख से ब वज़हे मरज बहने वाले आंसू को और आंसुओं की मानिन्द समझ कर आस्तीन या कुर्ते के दामन वगैरा से पोंछ कर कपड़े नापाक कर डालती हैं।
नाबीना की आंख से जो रतूबत ब वज़हे मरज निकलती है वोह नापाक हैं और उस से वुज़ू भी टूट जाता है। येह याद रहे कि खौफे खुदा عزوجل या इश्के मुस्तफा ﷺ में या वैसे ही आँसू निकले तो वुज़ू नही टूटता।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 36
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-27)
*पाक और ना-पाक रतुबत :*
जो रतुबत इन्सानी बदन से निकले और वुज़ू न तोडे वोह नापाक नहीं। म-सलन खून या पीप बह कर न निकले या थोडी कै कि मुंह भर न हो पाक है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 31
*छाला और फुड़िया :*
❶ छाला नोच डाला अगर उस का पानी बह गया तो वुज़ू टूट गया वरना नहीं
📒 ऐजून् सफ़ह 27
❷ फुड़िया बिल्कुल अच्छी हो गई उस की मुर्दा खाल बाकी है जिस में ऊपर मुंह और अन्दर खला है अगर उस में पानी भर गया और दबा कर निकाला तो न वुज़ू जाए न वोह पानी ना-पाक। हां अगर उस के अन्दर कुछ तरी खून वगैरा की बाकी है तो वुज़ू भी जाता रहेगा और वोह पानी भी नापाक है।
📓 फतावा र-जविय्या मुख़रजा, ज़िल्द 1, सफ़ह 355, 356
❸ खारिश या फुड़िया में अगर बहने वाली रतुबत न हो सिर्फ चिपक हो और कपड़ा उस से बार बार छू का चाहे जितना ही सन जाए पाक है।
📘 बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ह 32
❹ नाक साफ़ की उस में से जमा हुवा खून निकला वुज़ू न टूटा, अन्सब (या’नी जियादा मुनासिब) येह है कि वुज़ू करें।
📗 फतावा र-जविय्या मुख़रंजा, ज़िल्द 1 , सफ़ह 281
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 36
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-28)
*कै से वुज़ू कब टूटता है ?*
मुंह भर के खाने, पानी या सफ़रा (या'नी पीले रंग वा करवा पानी) की वुज़ू तोड़ देती है। जो कै तकल्लुफ़ के बिगैर न रोकी जा सके उसे मुंह भर कहते हैं। मुंह भर कै पेशाब की तरह नापाक होती है उस के छींटों से अपने कपड़े और बदन को बचाना जरूरी है।
📕 बहारें शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ह 28, 112 वगैरा
*दूध पीते बच्चे का पेशाब और कै :*
❶ एक दिन के दूध पीते बच्चे का पेशाब भी इसी तरह नापाक है जिस तरह आप लोगों का।
📒 ऐजन सफ़ह 112
❷ दूध पीते बच्चे ने दूध डाल दिया और वोह मुंह भर है तो (येह भी पेशाब ही की तरह) नापाक है हां अगर येह दूध मे'दे तक नहीं पहुंचा सिर्फ सीने तक पहुंच कर पलट आया तो पाक है।
📘 ऐजन सफ़ह 32
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 37
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-29)
“मदीना” के पांच हुरूफ़ की निस्बत से वुज़ू में शक आने के 5 अहकाम :
❶ अगर दौराने वुज़ू किसी उज़्व के धोने में शक वाकेअ हो और अगर येह ज़िन्दगी का पहला वाकिआ है तो इस को धो लीजिये और अगर अक्सर शक पड़ा करता है तो उस की तरफ़ तवज्योंह न दीजिये।
❷ इसी तरह अगर बा'दे वुज़ू भी शक पड़े तो इसका कुछ खयाल मत कीजिये।
❸ आप बा वुज़ू थी अब शक आने लगा कि पता नहीं वुज़ू है या नहीं, ऐसी सूरत में आप बा वुज़ू हैं क्योंकि सिर्फ शक से वुज़ू नहीं टूटता।
❹ वस्वसे को सूरत में एहतियातन वुज़ू करना एहतियात नहीं इत्तिबाए शैतान है।
❺ यकीनन आप उस वक़्त तक बा वुज़ू हैं जब तक वुज़ू टूटने का ऐसा यकीन न हो जाए कि कसम खा सके। येह याद है कि कोई उज़्व धोने से रह गया है मगर येह याद नहीं कौन सा उज़्व था तो बायां (या‘नी उल्टा) पाऊं धो लीजिये।
📘 दुर्र मुख़्तार ज़िल्द 1 सफ़ह 310
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 38
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-30)
पान खाने वालियां मु-तवज्जेह हों :
मेरे आका आ'ला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, वलिय्ये ने'मत, अजीमुल ब-र-कत, अज़ीमुल मर्तबत, परवानए शमए रिसालत, मुजद्दिदे दीनो मिल्लत, हामिये सुन्नत, माहिये बिद्अत, आलिमे शरीअत, पीरे तरीक़त, बाइसे खैरो ब-र-कत, हज़रते अल्लामा मौलाना अलहाज अल हाफ़िज़ अल कारी शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं : पानों के कसरत से आदी खुसूसन जब कि दांतों में फ़ज़ा (गेप) हो तजरिबे से जानते हैं कि छालिया के बारीक रेजे और पान के बहुत छोटे छोटे टुकड़े इस तरह मुंह के अतराफ़ व अक्लाफ़ में जा गीर होते हैं (या'नी मुंह के कोनों और दांतों के खांचों में घुस जाते हैं) कि तीन बल्कि कभी दस बारह कुल्लियां भी उन के तस्फियए ताम (या'नी मुकम्मल सफ़ाई) को काफ़ी नहीं होतीं, न खिलाल उन्हें निकाल सकता है न मिस्वाक, सिवा कुल्लियों के कि पानी मनाफ़िज़ (या'नी सूराखों) में दाखिल होता और जुम्बिशें देने (या'नी हिलाने) से उन जमे हुए बारीक ज़रों को ब तदरीज छुड़ा छुड़ा कर लाता है, इस की भी कोई तहदीद (हद बन्दी) नहीं हो सकती और येह कामिल तस्फ़िया (या'नी मुकम्मल सफ़ाई) भी बहुत मुअक्कद (या'नी इस की सख्त ताकीद) है मु-तअद्दद अहादीस में इर्शाद हुवा है कि जब बन्दा नमाज़ को खड़ा होता है फ़िरिश्ता उस के मुंह पर अपना मुंह रखता है येह जो कुछ पढ़ता है इस के मुंह से निकल कर फ़िरिश्ते के मुंह में जाता है उस वक्त अगर खाने की कोई शै उस के दांतों में होती है मलाएका को उस से ऐसी सख्त ईजा होती है कि और शै से नहीं होती।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 39
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-31)
पान खाने वालियां मु-तवज्जेह हों :
हुज़ूरे अकरम, नूरे मुजस्सम, शाहे बनी आदम, रसूले मुहतशम ﷺ ने फ़रमाया, जब तुम में से कोई रात को नमाज़ के लिये खड़ा हो तो चाहिये कि मिस्वाक कर ले क्यूं कि जब वोह अपनी नमाज़ में किराअत करता है तो फ़िरिश्ता अपना मुंह उस के मुंह पर रख लेता है और जो चीज़ उस के मुंह से निकलती है वोह फिरिश्ते के मुंह में दाखिल हो जाती है। और त-बरानी ने कबीर में हज़रते सय्यिदुना अबू अय्यूब अन्सारी رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत की है कि दोनों फ़िरिश्तों पर इस से ज़ियादा कोई चीज़ गिरां नहीं कि वोह अपने साथी को नमाज़ पढ़ता देखें और उस के दांतों में खाने के रेज़े फंसे हों।
📕 फ़तावा र-ज़विय्या मुखर्रजा, ज़िल्द 1, सफ़ह 624, 625
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 40
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-32)
सोने से वुजू टूटने और न टूटने का बयान :
नींद से वुज़ू टूटने की दो शर्ते हैं :
(1) दोनों सुरीन अच्छी ! तरह जमे हुए न हों।
(2) ऐसी हालत पर सोई जो गाफ़िल हो कर सोने में रुकावट न हो। जब दोनों शर्ते जम्अ हों या'नी सुरीन भी अच्छी तरह ! जमे हुए न हों नीज़ ऐसी हालत में सोई हो जो गाफ़िल हो कर सोने में : रुकावट न हो तो ऐसी नींद वुज़ू को तोड़ देती है। अगर एक शर्त पाई : जाए और दूसरी न पाई जाए तो वुज़ू नहीं टूटेगा!
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 40
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-33)
सोने के वोह दस 10 अन्दाज़ जिन से वुज़ू नहीं टूटता :
(1) इस तरह बैठना कि दोनों सुरीन ज़मीन पर हों और दोनों : पाउं एक तरफ़ फैलाए हों। (कुरसी, रेल और बस की सीट पर बैठने का भी येही हुक्म है)
(2) इस तरह बैठना कि दोनों सुरीन ज़मीन पर हों : और पिंडलियों को दोनों हाथों के हल्के में ले ले ख्वाह हाथ ज़मीन : वगैरा पर या सर घुटनों पर रख ले
(3) चार जानू या'नी पालती : (चोकड़ी) मार कर बैठे ख़्वाह ज़मीन या तख़्त या चारपाई वगैरा पर हो।
(4) दो ज़ानू सीधी बैठी हो।
(5) घोड़े या खच्चर वगैरा पर जीन रख कर सुवार हो।
(6) नंगी पीठ पर सुवार हो मगर जानवर चढ़ाई पर चढ़ रहा हो या रास्ता हमवार हो।
(7) तक्ये से टेक लगा कर इस तरह बैठी हो कि सुरीन जमे हुए हों अगर्चे तक्या हटाने से येह गिर पड़े।
(8) खड़ी हो
(9) रुकूअ की हालत में हो।
(10) सुन्नत के मुताबिक जिस तरह मर्द सज्दा करता है इस तरह सज्दा करे कि पेट रानों और बाजू पहलूओं से जुदा हों। मज्कूरा सूरतें नमाज़ में वाकेअ हों या इलावा नमाज़, वुज़ू नहीं टूटेगा और नमाज़ भी फ़ासिद न होगी अगर्चे क़स्दन सोए, अलबत्ता जो रुक्न बिल्कुल सोते हुए अदा किया उस का इआदा: (या'नी दोबारा अदा करना) ज़रूरी है और जागते हुए शुरू किया फिर नींद आ गई तो जो हिस्सा जागते अदा किया वोह अदा हो गया बकिय्या अदा करना होगा।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 41
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-34)
सोने के वोह दस 10 अन्दाज़ जिन से वुज़ू टूट जाता है :
(1) उक्डूं या'नी पाउं के तल्वों के बल इस तरह बैठी हो कि दोनों घुटने खड़े रहें
(2) चित या'नी पीठ के बल लैटी हो
(3) पट या'नी पेट के बल लैटी हो
(4) दाई या बाईं करवट लैटी हो।
(5) एक कोहनी पर टेक लगा कर सो जाए
(6) बैठ कर इस तरह सोई
कि एक करवट झुकी हो जिस की वज्ह से एक या दोनों सुरीन उठे हुए हों!
(7) नंगी पीठ पर सुवार हो और जानवर पस्ती की जानिब उतर रहा हो
(8) पेट रानों पर रख कर दो ज़ानू इस तुरह बैठे सोई कि दोनों सुरीन जमे न रहें
(9) चार जानू या'नी चोकड़ी मार कर इस तरह बैठे कि सर रानों या पिंडलियों पर रखा हो
(10) जिस तरह औरत सज्दा करती या है इस तरह सज्दे के अन्दाज़ पर सोई कि पेट रानों और बाजू पहलूओं से मिले हुए हों या कलाइयां बिछी हुई हों।मज्कूरा सूरतें नमाज़ में वाकेअ हों या नमाज़ के इलावा वुज़ू टूट जाएगा। फिर अगर इन सूरतों में कस्दन सोई तो नमाज़ फ़ासिद हो गई और बिला कस्द सोई तो वुज़ू टूट जाएगा मगर नमाज़ बाकी है। बा'दे वुज़ू (मख्सूस शराइत के साथ) बकिय्या नमाज़ उसी जगह से पढ़ सकती है जहां नींद आई थी। शराइत न मा'लूम हों तो नए सिरे से ले पढ़।
📕 माखूज़ अज़ फ़तावा र-जूविय्या मुखर्रजा, जिल्द 1, सफ़ह 365 ता 367
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 42
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-35)
हंसने के अहकाम :
(1) रुकूअ व सुजूद वाली नमाज़ में बालिगा ने कहक़हा ! लगा दिया या'नी इतनी आवाज़ से हंसी कि आस पास वालों ने सुना तो वुज़ू भी गया और नमाज़ भी गई, अगर इतनी आवाज़ से हंसी कि सिर्फ खुद सुना तो नमाज़ गई वुज़ू बाक़ी है, मुस्कुराने से न नमाज़ जाएगी न वुज़ू। मुस्कुराने में आवाज़ बिल्कुल नहीं होती सिर्फ़ दांत ज़ाहिर होते हैं ।
(2) बालिग ने नमाज़े जनाज़ा में ककहा लगाया तो नमाज़ टूट गई वुज़ू बाकी है।
(3) नमाज़ के इलावा ककहा लगाने से वुज़ू नहीं जाता मगर दोबारा कर लेना मुस्तहब है।हमारे मीठे मीठे आका ﷺ ने कभी भी ककहा नहीं लगाया लिहाज़ा : हमें भी कोशिश करनी चाहिये कि येह सुन्नत भी ज़िन्दा हो और हम जोर जोर से न हंसें। फ़रमाने मुस्तफा ﷺ ककहा शैतान की तरफ़ से है। और मुस्कुराना अल्लाह عزوجل की तरफ़ से है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 42
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-36)
सात मु-तफ़र्रिक़ात :
(1) पेशाब, पाखाना, मनी, कीड़ा या पथरी मर्द या औरत के आगे या पीछे से निकलीं तो वुज़ू जाता रहेगा।
(2) मर्द या औरत के पीछे से मा'मूली सी हवा भी खारिज हुई वुज़ू टूट गया। मर्द या औरत के आगे से हवा खारिज हुई वुज़ू नहीं टूटेगा।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 26
(3) बेहोश हो जाने से वुज़ू टूट जाता है।
(4) बा'ज़ लोग कहते हैं कि खिन्ज़ीर का नाम लेने से वुज़ू टूट जाता है येह गलत है।
(5) दौराने वुज़ू अगर रीह खारिज हो या किसी सबब से वुज़ू टूट जाए तो नए सिरे से वुज़ू कर लीजिये पहले धुले हुए आ'ज़ा बे धुले हो गए।
📗 माखूज़ अज़ फ़तावा र-जूविय्या मुखर्रजा जिल्द 1 सफ़ह 255
(6) बे वुज़ू को क़ुरआन शरीफ़ या किसी आयत का छूना हराम है।
📙 बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ह 48
क़ुरआने पाक का तरजमा फारसी या उर्दू या किसी दूसरी ज़बान में हो उस को भी पढ़ने या छूने में क़ुरआने पाक ही का सा हुक्म है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 49
(7) आयत को बे छूए देख कर या ज़बानी बे वुजू पढ़ने में हरज नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 43
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-37)
ग़ुस्ल का वुज़ू काफ़ी है :
ग़ुस्ल के लिये जो वुज़ू किया था वोही काफ़ी है ख़्वाह बरहना नहाए। अब गुस्ल के बा'द दोबारा वुज़ू करना ज़रूरी नहीं बल्कि अगर वुज़ू न भी किया हो तो ग़ुस्ल कर लेने से आ'ज़ाए वुज़ू पर भी पानी बह जाता है लिहाज़ा वुज़ू भी हो गया, कपड़े तब्दील करने या अपना या किसी दूसरे का सित्र देखने से भी वुज़ू नहीं जाता।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 44
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-38)
जिन का वुज़ू न रहता हो उन के लिये 9 अहकाम :
(1) क़तरा आने, पीछे से रीह खारिज होने, जख्म बहने, दुखती आंख से ब वज्हे मरज़ आंसू बहने, कान, नाफ़, पिस्तान से पानी निकलने, फोड़े या नासूर से रतूबत बहने और दस्त आने से वुज़ू टूट जाता है। अगर किसी को इस तरह का मरज़ मुसल्सल जारी रहे। और शुरूअ से आखिर तक पूरा एक वक़्त गुज़र गया कि वुज़ू के साथ नमाज़े फ़र्ज अदा न कर सकी वोह शरअन मा'जूर है। एक वुज़ू से उस वक़्त में जितनी नमाजे़ं चाहे पढ़े। उस का वुज़ू उस मरज़ से नहीं टूटेगा।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 107
इस मस्अले को मजीद आसान लफ्जों में समझाने की कोशिश करता हूं। इस किस्म के मरीज़ और मरीजा अपने मा'ज़ूरे शरई होने न होने की जांच इस तरह करें कि कोई सी भी दो फर्ज़ नमाज़ों के दरमियानी वक़्त कोशिश करें कि वुज़ू कर के तहारत के साथ कम अज़ कम दो रक्अतें अदा की जा सकें। पूरे वक़्त के दौरान बार बार कोशिश के बा वुजूद में अगर इतनी मोहलत नहीं मिल पाती, वोह इस तरह कि कभी तो दौराने वुज़ू ही उज्र लाहिक हो जाता है और कभी वुज़ू मुकम्मल कर लेने के बा'द नमाज़ अदा करते हुए, हत्ता कि आखिरी वक़्त आ गया तो अब उन्हें इजाज़त है कि वुज़ू कर के नमाज़ अदा करें नमाज़ हो जाएगी। अब चाहे दौराने अदाएगिये नमाज़, बीमारी के बाइस नजासत बदन से खारिज ही क्यूं न हो रही हो। फु-कहाए किराम रहमतुल्लाहि्स सलाम फ़रमाते हैं कि किसी शख़्स की नक्सीर फूट गई या उस का ज़ख़़्म बह निकला तो वोह आख़िरी वक़्त का इन्तिज़ार करे अगर खून मुन्क़तअ न हो (बल्कि मुसल्सल या वक्फ़े वक्फ़े से जारी रहे) तो वक़्त निकलने से पहले वुज़ू कर के नमाज़ अदा करे।
📕 البخر الرائق ج ۱ ص ۳۷۷-۳۷۳
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 45
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-39)
जिन का वुज़ू न रहता हो उन के लिये 9 अहकाम :
(2) फर्ज़ नमाज़ का वक़्त जाने से मा'जूर का वुज़ू टूट जाता है जैसे किसी ने असर के वक़्त वुज़ू किया था तो सूरज गुरूब होते ही वुज़ू जाता रहा और अगर किसी ने आफ्ताब निकलने के बा'द वुज़ू किया तो जब तक जोहर का वक़्त ख़त्म न हो वुज़ू न जाएगा कि अभी तक किसी फ़र्ज नमाज़ का वक़्त नहीं गया। फर्ज़ नमाज़ का वक़्त जाते ही मा'जूर का वुज़ू जाता रहता है और येह हुक्म उस सूरत में होगा जब मा'जूर का उज्र दौराने वुज़ू या बा'दे वुज़ू जाहिर हो, अगर ऐसा न हो और दूसरा कोई ह़दस (या'नी वुज़ू तोड़ने वाला मुआ-मला) भी लाहिक न हो तो फ़र्ज़ नमाज़ का वक़्त जाने से वुज़ू नहीं टूटेगा।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 108
(3) जब उज्र साबित हो गया तो जब तक नमाज़ के एक पूरे वक़्त में एक बार भी वोह चीज़ पाई जाए मा'जूर ही रहेगी। म-सलन किसी के जख़्म से सारा वक़्त खून बहता रहा और इतनी मोहलत ही न मिली {कि वुज़ू कर के फ़र्ज़ अदा कर ले तो मा'जूर हो गई। अब दूसरे अवकात में इतना मौक़अ मिल जाता है कि वुज़ू कर के नमाज़ पढ़ ले मगर एकआध दफ़्आ जख़्म से खून बह जाता है तो अब भी मा'जूर है। हां अगर पूरा एक वक्त ऐसा गुज़र गया कि एक बार भी खून न बहा तो मा'जूर न रही फिर जब कभी पहली हालत आई (या'नी सारा वक़्त मुसल्सल मरज़ हुवा) तो फिर मा'जूर हो गई।
📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ह 107
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 46
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-40)
जिन का वुज़ू न रहता हो उन के लिये 9 अहकाम :
(4) माज़ूर का वुज़ू अगर्चे उस चीज़ से नहीं जाता जिस के सबब माज़ूर है मगर दूसरी कोई चीज़ वुज़ू तोड़ने वाली पाई गई तो वुज़ू जाता रहा! म-सलन जिस को रीह खारिज होने का मरज़ है, जख़्म बहने से उस का वुज़ू टूट जाएगा। और जिस को जख़्म बहने का मरज है उस का रीह खारिज होने से वुज़ू जाता रहेगा।
📙 ऐज़न, सफ़ह 108
(5) माज़ूर ने किसी ह़दस (या'नी वुज़ू तोड़ने वाले अमल) के बाद वुज़ू किया और वुज़ू करते वक़्त वोह चीज़ नहीं है जिस के सबब माज़ूर है फिर वुज़ू के बा'द वोह उज्र वाली चीज पाई गई तो वुज़ू टूट गया (येह हुक्म इस सूरत में होगा जब माज़ूर ने अपने उज़्र के बजाए किसी दूसरे सबब की वज्ह से वुज़ू किया हो अगर अपने उज्र की वज्ह से वुज़ू किया तो बा'दे वुज़ू उज्र पाए जाने की सूरत में वुज़ू न टूटेगा।) म-सलन जिस का ज़ख़्म बहुता था उस की रीह खारिज हुई और उस ने वुज़ू किया और वुज़ू करते वक़्त जख्म नहीं बहा और वुज़ू करने के बा'द बहा तो वुज़ू टूट गया। हां अगर वुज़ू के दरमियान बहना जारी था तो न गया।
📕 बहारे शरीअत, हिस्सा : 2, सफ़ह 109
(6) माज़ूर के एक नथने से खून आ रहा था वुज़ू के बा'द दूसरे नथने से आया वुज़ू जाता रहा, या एक जख्म बह रहा था अब दूसरा बहा यहां तक कि चेचक के एक दाने से पानी आ रहा था अब दूसरे दाने से आया वुज़ू टूट गया।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 47
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-41)
जिन का वुज़ू न रहता हो उन के लिये 9 अहकाम :
(7) माज़ूर को ऐसा उज्र हो कि जिस के सबब कपड़े नापाक हो जाते हैं तो अगर एक दिरहम से ज़ियादा नापाक हो गए और जानती है कि इतना मौकअ है कि इसे धो कर पाक कपड़ों से नमाज़ पढ़ लूंगी तो पाक कर के नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है और अगर जानती है कि नमाज़ पढ़ते पढ़ते {फिर उतना ही नापाक हो जाएगा तो अब धोना ज़रूरी नहीं। इसी से पढ़े अगर्चे मुसल्ला भी आलूदा हो जाए तब भी उस की नमाज़ हो जाएगी।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 109
(৪) अगर कपड़ा वगैरा रख कर (या सूराख में रूई डाल कर) इतनी देर तक खून रोक सकती है कि वुज़ू कर के फर्ज़ पढ़ ले तो उज्र साबित न होगा। या'नी येह माज़ूर नहीं क्यूं कि येह उजर दूर करने पर कुदरत रखती है।
(9) अगर किसी तरकीब से उज्र जाता रहे या उस में कमी हो जाए तो उस तरकीब का करना फ़र्ज़ है, म-सलन खड़े हो कर पढ़ने से खून बहता है और बैठ कर पढ़े तो न बहेगा तो बैठ कर पढ़ना फ़र्ज है।
📗 ऐजून, सफ़ह 107
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 109
📕 मा'जूर के वुज़ू के तफ्सीली मसाइल फतावा र - ज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 4 सफ़हा 367 ता 375, बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़हा 107 ता 109 से मा'लूम कर लीजिये
इस्लामी बहनो ! जहां जहां मुम्किन हो वहां अल्लाह की रिज़ा के लिये अच्छी अच्छी निय्यतें कर लेनी चाहिएं, जितनी अच्छी निय्यतें ज़ियादा उतना सवाब भी जियादा और अच्छी निय्यत के सवाब की तो क्या बात है ! मीठे मीठे आका, मक्की म-दनी मुस्तफ़ा ﷺ का फरमाने जन्नत निशान है "अच्छी निय्यत इन्सान को जन्नत में दाखिल करेगी।
वुज़ू की निय्यत नहीं होगी तब भी फ़िक्हे ह-नफ़ी के मुताबिक वुज़ू हो जाएगा मगर सवाब नहीं मिलेगा। उमूमन वुज़ू की तय्यारी करने वाली के जेहन में होता है कि मैं वुज़ू करने वाली हूं येही निय्यत काफ़ी है। ताहम मौकअ की मुना-सबत से मज़ीद निय्यतें भी की जा सकती हैं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 48
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-42)
“हर वक़्त बा वुज़ू रहना सवाब है” के बीस हुरूफ़ की निस्बत से वुज़ू के बारे में 20 निय्यतें :
(1) बे वुजुई दूर करूंगी (2) जो बा वुज़ू हो वोह दोबारा वुज़ू करते वक़्त यूं निय्यत करे : सवाब के लिये वुज़ू पर वुज़ू करूंगी (3) بسمِ اللّہِ وَالْحمدُ لِلّہ कहूंगी (4) फराइज़ व (5) सुनन और (6) मुस्तहब्बात का ख्याल रखूंगी
(7) पानी का इस्राफ़ नहीं करूंगी (8) मकरुहात से बचूंगी (9) मिस्वाक करूंगी, (10) हर उज़्व धोते वक़्त दुरूद शरीफ और (11) یَاقَادِرُ पढ़ूंगी (वुज़ू में हर उज़्व धोने के दौरान یَاقَادِرُ पढ़ने वाली को ان شاء الله दुश्मन इग्वा नहीं कर सकेगा, (12) फ़राग़त के बा'द आ'जाए वुज़ू पर तरी बाकी रहने दूंगी (13,14) वुज़ू के बा'द दो दुआए पढ़ूंगी!
(الف) اَللّٰهُمَّ اجْعَلْنِیْ مِنَ التَّوَّابِيْنَ وَاجْعَلْنِیْ مِنَ الْمُتَطَهِّرِيْنَ
(ب) سُبْحٰنَکَ اَللّٰهُمَّ وَ بِحَمْدِکَ اَشهَدُ اَنْ لَّا اِلهَٰ اِلَّا اَنتَ اَسْتَغْفِرُکَ وَ اَتُوْبُ اِلَیْکَ
(15 ता 17) आसमान की त़रफ़ देख कर कलिमए शहादत और सू-रतुल कद्र पढूंगी मज़ीद तीन बार सू-रतुल कद्र पढ़ूंगी, (18) मकरुह वक़्त न हुवा तो) तहिय्यतुल वुज़ू अदा करूंगी, (19) हर उज़्व धोते वक़्त गुनाह झड़ने की उम्मीद करूंगी, (20) बातिनी वुज़ू भी करूंगी (या'नी जिस तरह पानी से जाहिरी आ'जा़ का मैल कुचैल दूर किया है इसी तुरह तौबा के पानी से गुनाहों की गन्दगी धो कर आयिन्दा गुनाहों से बचने का अहद करूंगी)
🤲🏻 या रब्बे मुस्त़फा़ عزوجل ! हमें इस्राफ से बचते हुए शर-ई वुज़ू के साथ हर वक़्त बा वुज़ू रहना नसीब फ़रमा। आमीन
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 49
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-43)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी)*
दुरूद शरीफ़ की फ़ज़ीलत : खा-तमुल मुर-सलीन, रहमतुल्लिल आ-लमीन, शफ़ीऊल मुज़निबीन, अनीसुल गुरीबीन, सिराजुस्सालिकीन, महबूबे रब्बुल आ-लमीन, जनाबे सादिको़ अमीन ﷺ का फ़रमाने दिल नशीन है : जब जुमा'रात का दिन आता है अल्लाह तआला फ़िरिश्तों को भेजता है जिन के पास चांदी के कागज़ और सोने के क़लम होते हैं वोह लिखते हैं, कौन यौमे जुमा'रात और शबे जुमुआ (या'नी जुमारात और जुमुआ की दरमियानी शब) मुझ पर कसरत से दुरूदे पाक पढ़ता है!
*फ़र्ज गुस्ल में एहतियात की ताकीद :* रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं : "जो शख़्स गुस्ले जनाबत में एक बाल की जगह बे धोए छोड़ देगा उस के साथ आग से ऐसा ऐसा किया जाएगा। (या'नी अजाब दिया जाएगा।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 50
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-44)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
*कब्र का बिल्ला :* हज़रते सय्यिदुना अबान बिन अब्दुल्लाह बज्ली अलैहि रहमतुल्लाहिल-वाली फ़रमाते हैं हमारा एक पड़ोसी मर गया तो हम कफ़न व दफ्न में शरीक हुए। जब क़ब्र खोदी गई तो उस में बिल्ले की मिस्ल एक जानवर था, हम ने उस को मारा मगर वोह न हटा। चुनान्चे दूसरी क़ब्र खोदी गई तो उस में भी वोही बिल्ला मौजूद था ! उस के साथ भी वही किया गया जो पहले के साथ किया गया था लेकिन वोह अपनी जगह से न हिला। इस के बा'द तीसरी क़ब्र खोदी गई तो उस में भी येही मुआ-मला हुवा, आखिर लोगों ने मशवरा दिया कि अब इस को इसी क़ब्र में दफ्न कर दो, जब उस को दफ़्न कर दिया गया तो क़ब्र में से एक खौफ़नाक आवाज़ सुनी गई ! तो हम उस शख़्स की बेवा के पास गए और उस से मरने वाले के बारे में दरयाफ्त किया कि उस का अमल क्या था ? बेवा ने बताया : "वोह गुस्ले जनाबत (या'नी फ़र्ज़ गुस्ल) नहीं करता था।
*गु़स्ले जनाबत में ताखीर कब हराम है ?* इस्लामी बहनो ! देखा आप ने ! वोह बद नसीब गु़स्ले जनाबत करता ही नहीं था। गु़स्ले जनाबत में देर कर देना गुनाह नहीं अलबत्ता इतनी ताखीर हराम है कि नमाज़ का वक़्त निकल जाए। चुनान्चे बहारे शरीअत में है "जिस पर गु़स्ल वाजिब है वोह अगर इतनी देर कर चुकी कि नमाज़ का आखिर वक़्त आ गया तो अब फौरन नहाना फ़र्ज है, अब ताखीर करेगी गुनहगार होगी।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2, सफ़ह 47-48
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 51
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-45)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
*जनाबत की हालत में सोने के अहकाम :* हज़रते सय्यिदुना अबू स-लमह رضى الله تعالیٰ عنه कहते हैं, उम्मुल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदतुना आइशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنها से पूछा, क्या नबिय्ये रहमत, शफ़ीए उम्मत, शहन्शाहे नुबुव्वत, ताजदारे रिसालत ﷺ जनाबत की हालत में सोते थे ? उन्हों ने बताया : "हां और वुज़ू फ़रमा लेते थे।"
हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन उमर رضى الله تعالیٰ عنه ने बयान किया कि अमीरुल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फ़ारूके आ'ज़म رضى الله تعالیٰ عنه ने रसूले अकरम, नूरे मुजस्सम, शाहे बनी आदम ﷺ से तज्किरा किया रात में कभी जनाबत हो जाती है (तो क्या किया जाए ?) रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया वुज़ू कर के उज़्वे ख़ास को धो कर सो जाया करो।
शारेहे बुखा़री हज़रते हज़रते अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद शरीफुल हक़ अमजदी अलैहि रहमतुल्लाहिल-कावी मज़्कूरा अहादीसे मुबारका के तह़त फ़रमाते हैं : जुनुबी होने (या'नी गुस्ल फ़र्ज़ होने) के बा'द अगर सोना चाहे तो मुस्तहब है कि वुज़ू करे, फौरन गु़स्ल करना वाजिब नहीं अलबत्ता इतनी ताखीर न करे कि नमाज़ का वक़्त निकल जाए।
येही इस हदीस का महमल' है। हजरते अली رضى الله تعالیٰ عنه से अबू दावूद व नसाई वरगैरा में मरवी है कि फ़रमाया उस घर में फ़िरिश्ते नहीं जाते जिस में तस्वीर या कुत्ता या जुनुबी (या'नी बे गुस्ला) हो। इस हदीस से मुराद येही है कि इतनी देर तक गुस्ल न करे कि नमाज़ का वक़्त निकल जाए और वोह जुनुबी (या'नी बे गुस्ला) रहने का आदी हो और येही मतलब बुजुर्गों के इस इरशाद का है कि हालते जनाबत में खाने पीने से रिज़्क में तंगी होती है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 52
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-46)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
बिगैर ज़ुबान हिलाए दिल में इस तरह निय्यत कीजिये कि मैं पाकी हासिल करने के लिये गुस्ल करती हूं। पहले दोनों हाथ पहुंचों तक तीन तीन बार धोइये, फिर इस्तिन्जे की जगह धोइये ख्वाह नजासत हो या न हो, फिर जिस्म पर अगर कहीं नजासत हो तो उस को दूर कीजिये फिर नमाज़ का सा वुज़ू कीजिये अगर पाउं रखने की जगह पर पानी जम्अ है तो पाउं न धोइये, और अगर सख़्त ज़मीन है जैसा कि आज कल उमूमन गुस्ल खानों की होती है या चौकी वगैरा पर गुस्ल कर रही हैं तो पाउं भी धो लीजिये, फिर बदन पर तेल की तरह पानी चुपड़ लीजिये, खुसूसन सर्दियों में (इस दौरान साबुन भी लगा सकती हैं) फिर तीन बार सीधे कन्धे पर पानी बहाइये, फिर तीन बार उल्टे कन्धे पर, फिर सर पर और तमाम बदन पर तीन बार, फिर गुस्ल की जगह से अलग हो जाइये, अगर वुज़ू करने में पाउं नहीं धोए थे तो अब धो लीजिये।
बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़हा 42 पर है सित्र खुला हो तो किब्ले को मुंह करना न चाहिये, और तहबन्द बांधे हो तो हरज नहीं। तमाम बदन पर हाथ फैर कर मल कर नहाइये, ऐसी जगह नहाइये कि किसी की नज़र न पड़े, दौराने गुस्ल किसी किस्म की गुफ्त-गू मत कीजिये, कोई दुआ़ भी न पढ़िये, नहाने के बा'द तोलिया वगैरा से बदन पोंछने में हरज नहीं। नहाने के बा'द फौरन कपड़े पहन लीजिये। अगर मकरुह वक़्त न हो तो दो रक्अत नफ्ल अदा करना मुस्तहब है।
📕 आम्मए कुतुबे फ़िक़्हे ह़-नफ़ी
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 53
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-47)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
*ग़ुस्ल के तीन फ़राइज़ :* (1) कुल्ली करना, (2) नाक में पानी चढ़ाना, (3) तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना।
📕 फतावा आलमगीरी जिल्द 1 सफ़ह 13
*❶ कुल्ली करना :* मुंह में थोड़ा सा पानी ले कर पिच कर के डाल देने का नाम कुल्ली नहीं बल्कि मुंह के हर पुर्जे, गोशे, होंट से हल्क की जड़ तक हर जगह पानी बह जाए। इसी तरह दाढ़ों के पीछे गालों की तह में, दांतों की खिड़कियों और जड़ों और ज़ुबान की हर करवट पर बल्कि हल्क के कनारे तक पानी बहे। रोज़ा न हो तो गर-गरा भी कर लीजिये कि सुन्नत है। दांतों में छालिया के दाने या बोटी के रेशे वगैरा हों तो उन को छुड़ाना ज़रूरी है। हां अगर छुड़ाने में ज़रर (यानी नुक्सान) का अन्देशा हो तो मुआफ़ है। गुस्ल से क़ब्ल दांतों में रेशे वगैरा महसूस न हुए और रह गए नमाज़ भी पढ़ ली बा'द को मा'लूम होने पर छुड़ा कर। पानी बहाना फर्ज़ है, पहले जो नमाज़ पढ़ी थी वोह हो गई। जो हिलता दांत मसाले से जमाया गया या तार से बांधा गया और तार या मसाले के नीचे पानी न पहुंचता हो तो मुआफ़ है।
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 38, फतावा रज़विय्या, जिल्द 1 सफ़ह 439-440
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 54
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-48)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
*ग़ुस्ल के तीन फ़राइज़ :* (1) कुल्ली करना, (2) नाक में पानी चढ़ाना, (3) तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना।
📕 फतावा आलमगीरी जिल्द 1 सफ़ह 13
*❷ नाक में पानी चढ़ाना :* जल्दी जल्दी नाक की नोक पर पानी लगा लेने से काम नहीं चलेगा बल्कि जहां तक नर्म जगह है या'नी सख्त हड्डी के शुरूअ तक धुलना लाजिमी है। और येह यूं हो सकेगा कि पानी को सूंघ कर ऊपर खींचिये। येह ख्याल रखिये कि बाल बराबर भी जगह धुलने से न रह जाए वरना ग़ुस्ल न होगा। नाक के अन्दर अगर रींठ सूख गई है तो उस का छुड़ाना फ़र्ज़ है। नीज नाक के बालों का धोना भी फर्ज है।
📙ऐज़न ऐज़न, सफ़ह 442-443
*❸ तमाम जाहिरी बदन पर पानी बहाना :* सर के बालों से ले कर पाउं के तल्वों तक जिस्म के हर पुर्ज़े और हर हर रोंगटे पर पानी बह जाना ज़रूरी है, जिस्म की बा'ज़ जगहें ऐसी हैं कि अगर एह़तियात् न की तो वोह सूखी रह जाएंगी और गुस्ल न होगा।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 39
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 54
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-49)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
”صَلَوات اللّٰهِ عليکَ یا رسولَ اللّٰه“
के तेईस हुरूफ़ की निस्बत से इस्लामी बहनों के लिये गुस्ल की 23 एहतियातें :
(1) अगर इस्लामी बहन के सर के बाल गुंधे हुए हों तो सिर्फ जड़ तर कर लेना जुरूरी है खोलना जुरूरी नहीं। हां अगर चोटी इतनी सख्त गुंधी हुई हो कि वे खोले जड़ें तर न होंगी तो खोलना ज़रूरी है।
(2) अगर कानों में बाली या नाक में नथ का छेद (सूराख) हो और वोह बन्द न हो तो उस में पानी बहाना फ़र्ज़ है। वुज़ू में सिर्फ नाक के नथ के छेद में और गु़स्ल में अगर कान और नाक दोनों में छेद हों तो दोनों में पानी बहाइये
(3) भवों, और उन के नीचे की खाल का धोना जुरूरी है (4) कान का हर पुर्जा और उस के सूराख का मुंह धोइये (5) कानों के पीछे के बाल हटा कर पानी बहाइये
(6) ठोड़ी और गले का जोड़ मुंह उठाए बिगैर न धुलेगा, (7) हाथों को अच्छी तरह उठा कर बगलें धोइये, (8) बाजू का हर पहलू धोइये, (9) पीठ का हर जर्रा धोइये, (10) पेट की बल्टें उठा कर धोइये,(11) नाफ़ में भी पानी डालिये अगर पानी बहने में शक हो तो नाफ़ में उंगली डाल कर धोइये!
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 55-56
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-50)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
”صَلَوات اللّٰهِ عليکَ یا رسولَ اللّٰه“
के तेईस हुरूफ़ की निस्बत से इस्लामी बहनों के लिये गुस्ल की 23 एहतियातें :
(12) जिस्म का हर रोंगटा जड़ से नोक तक धोइये, (13) रान और पेड़ू (नाफ़ से नीचे के हिस्से) का जोड़ धोइये, (14) जब बैठ कर नहाएं तो रान और पिंडली के जोड़ पर भी पानी बहाना याद रखिये
(15) दोनों सुरीन के मिलने की जगह का ख्याल रखिये, खुसूसन जब खड़े हो कर नहाएं, (16) रानों की गोलाई और, (17) पिंडलियों की करवटों पर पानी बहाइये
(18) ढल्की हुई पिस्तान को उठा कर पानी बहाइये, (19) पिस्तान और पेट के जोड़ की लकीर धोइये, (20) फ़र्ज़े खारिज (या'नी औरत की शर्मगाह के बाहर के हिस्से) का हर गोशा हर टुकड़ा ऊपर नीचे खूब एहतियात् से धोइये
(21) फर्जे दाखिल (या'नी शर्मगाह के अन्दरूनी हिस्से) में उंगली डाल कर धोना फ़र्ज नहीं मुस्तहब है
(22) अगर हैज या निफास से फारिग हो कर गुस्ल करें तो किसी पुराने कपड़े से फ़र्ज़े दाखिल के अन्दर से खून का असर साफ़ कर लेना मुस्तहब है!
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 39-40
(23) अगर नेल पोलिश नाखूनों पर लगी हुई है तो उस का भी छुड़ाना फ़र्ज़ है वरना वुज़ू व गुस्ल नहीं होगा, हां मेंहदी के रंग में हरज नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 56-57
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-51)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
*ज़ख़्म की पट्टी :* ज़ख़्म पर पट्टी वगैरा बंधी हो और उसे खोलने में नुक्सान या हरज हो तो पट्टी पर ही मस्ह कर लेना काफ़ी है नीज़ किसी जगह मरज़ या दर्द की वज्ह से पानी बहाना नुक्सान देह हो तो उस पूरे उज़्व पर मस्ह कर लीजिये। पट्टी ज़रूरत से ज़ियादा जगह को घेरे हुए नहीं होनी चाहिये वरना मस्ह़ काफ़ी न होगा। अगर ज़रूरत से ज़ियादा जगह घेरे बिगैर पट्टी बांधना मुम्किन न हो म-सलन बाजू पर ज़ख़्म है मगर पट्टी बाजूओं की गोलाई में बांधी है जिस के सबब बाजू का अच्छा हिस्सा भी पट्टी के अन्दर छुपा हुवा है, तो अगर खोलना मुम्किन हो तो खोल कर उस हिस्से को धोना फर्ज़ है। अगर ना मुम्किन है या खोलना तो मुम्किन है मगर फिर वैसी न बांध सकेगी और यूं ज़ख़्म वगैरा को नुक्सान पहुंचने का अन्देशा है तो सारी पट्टी पर मस्ह कर लेना काफ़ी है। बदन का वोह अच्छा हिस्सा भी धोने से मुआफ़ हो जाएगा।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 40
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 57
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-52)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
गुस्ल फ़र्ज़ होने के पांच अस्बाब :
(1) मनी का अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हो कर मख़रज से निकलना!
(2) एहतिलाम या'नी सोते में मनी का निकल जाना!
(3) हश्फ़ा या'नी सरे ज़कर (सुपारी) का औरत के आगे या पीछे या मर्द के पीछे दाखिल हो जाना ख्वाह शहवत हो या न हो, इन्ज़ाल हो या न हो, दोनों पर गुस्ल फ़र्ज़ करता है। बशर्ते़ कि दोनों मुकल्लफ़ हों और अगर एक बालिग है तो उस बालिग पर फ़र्ज़ है और ना बालिग पर अगर्चे गुस्ल फ़र्ज़ नहीं मगर गुस्ल का हुक्म दिया जाएगा!
(4) हैज़ से फ़ारिग होना
(5) निफ़ास (या'नी बच्चा जनने पर जो ख़ून आता है उस) से फरिग़ होना।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 43-46 मुल-त-क़त़न
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 58
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-53)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
वोह सूरतें जिन में गुस्ल फ़र्ज़ नहीं :
(1) मनी शहवत के साथ अपनी जगह से जुदा न हुई बल्कि बोझ उठाने बुलन्दी से गिरने या फुज़्ला खारिज करने के लिये जोर लगाने की सूरत में खारिज हुई तो गुस्ल फ़र्ज नहीं। वुज़ू बहर हाल टूट जाएगा।
(2) अगर मनी पतली पड़ गई और पेशाब के वक़्त या वैसे ही बिला शहवत इस के क़तरे निकल आए गुस्ल फ़र्ज न हुवा वुज़ू टूट जाएगा।
(3) अगर एहतिलाम होना याद है मगर इस का कोई असर कपड़े वरगैरा पर नहीं तो गुस्ल फ़र्ज़ नहीं।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 43
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 58
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-54)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
बहते पानी में ग़ुस्ल का तरीक़ा :
अगर बहते पानी म-सलन दरिया या नहर में नहाया तो थोड़ी देर उस में रुकने से तीन बार धोने, तरतीब और वुज़ू येह सब सुन्नतें अदा हो गईं। इस की भी ज़रूरत नहीं कि आ'ज़ा को तीन बार ह-र-कत दे। अगर तालाब वग़ैरा ठहरे पानी में नहाया तो आ'जा़ को तीन बार ह-र-कत देने या जगह बदलने से तस्लीस या'नी तीन बार धोने की सुन्नत अदा हो जाएगी। बरसात में (या नल या फव्वारे के नीचे) खड़ा होना बहते पानी में खड़े होने के हुक्म में है। बहते पानी में वुज़ू किया तो वोही थोड़ी देर उस में उज़्व को रहने देना और ठहरे पानी में ह-र-कत देना तीन बार धोने के क़ाइम मकाम है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 42
वुज़ू और गुस्ल की इन तमाम सूरतों में कुल्ली करना और नाक में पानी चढ़ाना होगा गुस्ल में कुल्ली करना और नाक में पानी चढ़ाना फ़र्ज है जब कि वुज़ू में सुन्नते मुअक्कदा है!
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 58
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-55)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
बहते पानी में ग़ुस्ल का तरीक़ा :
*फ़व्वारा जारी पानी के हुक्म में है :* फ़तावा अहले सुन्नत (गै़र मत्बूआ) में है, फव्वारे (या नल) के नीचे गुस्ल करना जारी पानी में गुस्ल करने के हुक्म में है लिहाज़ा इस के नीचे गुस्ल करते हुए वुज़ू और गुस्ल करते वक़्त की मुद्दत (या'नी थोड़ी देर) तक ठहरी तो तस्लीस (या'नी तीन बार धोने) की सुन्नत अदा हो जाएगी चुनान्चे दुर्रे मुख़्तार में है अगर जारी पानी, बड़े हौज़ या बारिश में वुज़ू और गुस्ल करने के वक़्त की मुद्दत तक ठहरी तो उस ने पूरी सुन्नत अदा की! याद रहे गुस्ल या वुज़ू में कुल्ली करना और नाक में पानी भी चढ़ाना है।
*फ़व्वारे की एहतियातें :* अगर आप के हम्माम में फुव्वारा (SHOWER) हो तो उस का रुख देख लीजिये कि उस की तरफ़ मुंह कर के नंगे नहाने में मुंह या पीठ किब्ला शरीफ़ की तरफ़ न हो। इस्तिन्जा खाने में इस की ज़ियादा एहतियात फ़रमाइये। किब्ले की तरफ़ मुंह या पीठ होने का मा'ना येह है कि 45 द-रजे के ज़ाविये के अन्दर अन्दर हो। लिहाज़ा ऐसी तरकीब बनाइये कि 45 डिग्री के ज़ाविये के बाहर हो जाए।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 59
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-56)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
मदीना" के पांच 5 हुरूफ़ की निस्बत से ग़ुस्ल के 5 सुन्नत मवाक़ेअ
(1) जुमुआ
(2) ईदुल फित्र
(3) बकर ईद
(4) अ-रफा के दिन (या'नी 9 जुल हिज्जतुल हराम) और
(5) एहराम बांधते वक़्त नहाना सुन्नत है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 46
📙 दुर्रे मुख़्तार जिल्द 1 सफ़ह 339-341
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 60
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-57)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
“मुस्तहब पर अमल करना बाइसे सवाब है" के चौबीस हुरूफ़ की निस्बत से ग़ुस्ल के 24 मुस्तहब मवाक़ेअ :
1) वुकूफ़े अ-रफ़ात, 2) वुकूफ़े मुज्दलिफा, 3) हाज़िरिये हरम, 4) हाजिरिये सरकारे आ'ज़म ﷺ
5) तवाफ़, 6) दुखूले मिना, 7) जम्रों (शैतानों) पर कंकरियां मारने के लिये तीनों दिन, 8) शबे बराअत, 9) शबे कद्र, 10) अ-रफ़ा की रात (या'नी 9 जुल हिज्जतिल हराम के गुरूबे आफ्ताब ता 10 की सुब्ह,
11) मजलिसे मीलाद शरीफ़, 12) दीगर मजालिसे खैर के लिये, 13) मुर्दा नहलाने के बा'द, 14) मजनून (पागल) को जुनून जाने के बा'द, 15) ग़शी से इफ़ाका (या'नी बेहोशी ख़त्म होने) के बा'द, 16) नशा जाते रहने के बा'द, 17) गुनाह से तौबा करने, 18) नए कपड़े पहनने के लिये, 19) सफ़र से आने वाले के लिये, 20) इस्तिहाजा' का खून बन्द होने के बा'द
21) नमाज़े कुसूफ़ (सूरज गहन) व खुसूफ़ (चांद गहन), 22) इस्तिस्का (त-लबे बारिश) और 23) खौफ व तारीकी और सख्त आंधी के लिये, 24) बदन पर नजासत लगी और येह मा'लूम न हुवा कि किस जगह लगी है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 46-47
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 60
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-58)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
एक गुस्ल में मुख़्तलिफ़ निय्यतें : जिस पर चन्द गुस्ल हों म-सलन एहतिलाम भी हुवा, ईद भी है और जुमुआ का दिन भी, तो तीनों की निय्यत कर के एक गुस्ल कर लिया, सब अदा हो गए और सब का सवाब मिलेगा।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 47
ग़ुस्ल से नज़्ला बढ़ जाता हो तो : ज़ुकाम या आशोबे चश्म वगैरा हो और येह गुमाने सहीह हो कि सर से नहाने में मरज़ बढ़ जाएगा या दीगर अम्राज पैदा हो जाएंगे तो कुल्ली कीजिये, नाक में पानी चढ़ाइये और गरदन से नहाइये। और सर के हर हिस्से पर भीगा हुवा हाथ फैर लीजिये गुस्ल हो जाएगा। बा'दे सिह्हत सर धो डालिये पूरा ग़ुस्ल नए सिरे से करना ज़रूरी नहीं।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 40
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 62
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-59)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
बाल्टी से नहाते वक़्त एहतियात : अगर बाल्टी के ज़रीए ग़ुस्ल करें तो एहतियातन उसे तिपाई (STOOL) वगैरा पर रख लीजिये ताकि बाल्टी में छींटें न आएं। नीज गुस्ल में इस्ति'माल करने का मग भी फ़र्श पर न रखिये।
बाल की गिरह : बाल में गिरह पड़ जाए तो गुस्ल में उसे खोल कर पानी बहाना जुरूरी नहीं।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 40
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 62
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-60)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
बे वुज़ू दीनी किताबें छूना : बे वुज़ू या वोह जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उन को फ़िक्ह, तफ्सीर व हदीस की किताबों का छूना मकरुह है। और अगर इन को किसी कपड़े से छुवा अगर्चे इस को पहने या ओढ़े हुए हो तो मुज़ा-यका नहीं। मगर आयते कुरआनी या इस के तरजमे पर इन किताबों में भी हाथ रखना हराम है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 49
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 62
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-61)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
नापाकी की हालत में दुरूद शरीफ़ पढ़ना : जिन पर गुस्ल फर्ज़ हो उन को दुरूद शरीफ़ और दुआएं पढ़ने में हरज नहीं। मगर बेहतर येह है कि वुज़ू या कुल्ली कर के पढ़ें।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 49
अजान का जवाब देना उन को जाइज़ है।
📗 फतावा आलमगिरी जिल्द 1 सफ़ह 38
उंगली में INK की तह जमी हुई हो तो : पकाने वाली के नाखुन में आटा, लिखने वाली के नाखुन वगैरा पर सियाही (INK) का जिर्म, आम इस्लामी बहनों के लिये मख्खी, मच्छर की बीट लगी हुई रह गई और तवज्जोह न रही तो गुस्ल हो जाएगा। हां मा'लूम हो जाने के बा'द जुदा करना और उस जगह का धोना ज़रूरी है पहले जो नमाज़ पढ़ी वोह हो गई।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 41 मुलख़्ख़सन
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 63
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-62)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
बच्ची कब बालिगा होती है : लड़की नव बरस और लड़का बारह साल से कम उम्र तक हरगिज़ बालिगा व बालिग न होंगे और लड़का लड़की दोनों (हिजरी सिन के ए'तिबार से) 15 बरस की कामिल उम्र में जुरूर शरअन बालिग व बालिगा हैं, अगर्चे आसारे बुलूग (यानी बालिग होने की अलामतें) ज़ाहिर न हों। इन उम्रों के अन्दर अगर आसार पाए जाएं, या'नी ख़्वाह लड़के ख़्वाह लड़की को सोते ख्वाह जागते में इन्ज़ाल हो (या'नी मनी निकले) या लड़की को हैज़ आए या जिमाअ से लड़का (किसी लड़की को) हामिला कर दे या (जिमाअ की वजह से) लड़की को हम्ल रह जाए तो यकीनन बालिग व बालिगा हैं। और अगर आसार न हों, मगर वोह खुद कहें कि हम बालिग व बालिगा हैं और ज़ाहिर हाल उन के कौल की तक्ज़ीब न करता ( या'नी
झुटलाता न) हो तो भी बालिग व बालिगा समझे जाएंगे और तमाम अहकाम, बुलूग के निफाज़ पाएंगे और (लड़के के) दाढ़ी मूंछ निकलना या लड़की के पिस्तान (छाती) में उभार पैदा होना कुछ मो'तबर नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 64
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-63)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
वस्वसों का एक सबब : गुस्ल खाने में पेशाब करने से वस्वसे पैदा होते हैं। हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मुगफ्फ़ल رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि रसूले करीम, रऊफुर्रहीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : कोई शख़्स गुस्ल खाने में पेशाब न करे, जिस में फिर वोह नहाए या वुज़ू करे क्यूं कि अक्सर वस्वसे इसी से होते हैं।
📕 सुनन अबिदाऊद जिल्द 1 सफ़ह 44 हदीस 87
हम्माम की ढलवान (SLOPE) बेहतर है और इत्मीनान है कि पेशाब करने के बा'द पानी बहने से अच्छी तुरह फर्श पाक हो जाएगा तो हरज नहीं। फिर भी बेहतर येही है कि वहां पेशाब न करे।
📙 मिरआत जिल्द 1 सफ़ह 266 मुलख्बसन
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 64
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-64)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
इत्तिबाए सुन्नत की ब-र-कत से मग़फ़िरत की बिशारत मिली : बरहना नहाना सुन्नत नहीं चुनान्चे इस ज़िम्न में एक ईमान अफ़रोज हिकायत मुला-हज़ा फ़रमाइये हज़रते सय्यिदुना इमाम अहमद बिन हम्बल رضی الله تعالی عنه फ़रमाते हैं कि एक मर्तबा मैं लोगों के साथ था। इस दौरान हमारे बा'ज़ रु-फ़का गुस्ल के लिये कपड़े उतार कर पानी में उतर गए लेकिन मुझे सरकारे दो आलम, नूरे मुजस्सम, शाहे बनी आदम, रसूले मुहूतशम ﷺ की वोह हदीसे पाक याद थी जिस में आप ﷺ ने फ़रमाया है कि जो अल्लाह तआला और उस के रसूल ﷺ पर ईमान रखता हो उसे चाहिये कि बरहना हम्माम में दाखिल न हो बल्कि तहबन्द बांधे। लिहाज़ा मैं ने इस हदीसे मुबारका पर अमल किया।
रात को जब मैं सोया तो मैं ने ख़्वाब में देखा कि एक हातिफे गैबी मुझे निदा कर के कह रहा है : ऐ अहमद ! तुझे बिशारत हो कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने नबिय्ये रहमत ﷺ की सुन्नत पर अमल करने की वज्ह से तुम्हारी मग़फ़िरत फ़रमा दी है और तुम्हें लोगों का इमाम व पेशवा भी बना दिया है।
हज़रते सय्यिदुना इमाम अहमद अलैहि रहमतुल्लाहिल अहद फ़रमाते हैं कि मैं ने उस हातिफे गैबी से दरयाफ्त किया कि आप कौन हैं ? तो आवाज़ आई : मैं जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हूं। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त عزوجل की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मग़फिरत हो। आमीन
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 66
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-65)
*तरीक़ा गु़स्ल का (ह-नफ़ी) :*
तहबन्द बांध कर नहाने की एहतियातें : शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा मुफ्ती शरीफुल हक अमजदी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं : तन्हाई में बरहना नहाना जाइज़ है मगर अफ्ज़ल येह है कि बरहना न नहाए। तहबन्द बांध कर (या पाजामा या शलवार पहन कर) नहाने में खुसूसिय्यत से दो बातों का ख्याल रखे, अव्वल जो तहबन्द (या पाजामा बगैरा) बांध कर नहाए वोह (तहबन्द वरगैरा) पाक हो उस में नजासत न हो । दूसरे येह कि रान वगैरा जिस्म के किसी हिस्से पर नजासत लगी हो तो उसे पहले धो ले वरना जनाबत तो दूर हो जाएगी (या'नी फ़र्ज़ गुस्ल तो अदा हो जाएगा) मगर बदन या तहबन्द की नजासत क्या दूर होगी फैल कर दूसरी जगहों पर भी लग जाएगी। इस से अवाम तो अवाम, ख़वास तक गाफ़िल हैं।
📕 नुज्हतुल कारी जिल्द 1 सफ़ह 761
हां इतना पानी बहाया कि अगर्चे नजासत इब्तिदाअन फैली मगर बिल आखिर अच्छी तरह धुल गई और पाक करने का शर-ई तकाज़ा पूरा हो गया तो तहबन्द पाक हो जाएगा।
🤲🏻 या रब्बे मुस्तफ़ा عزوجل हमें बार बार गुस्ल के मसाइल पढ़ने, समझने और दूसरों को समझाने और सुन्नतों के मुताबिक गुस्ल करने की तौफ़ीक अता फ़रमा। *आमीन*
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 66
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-66)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
तयम्मुम के फ़राइज़ : तयम्मुम में तीन फ़र्ज़ हैं ❶ निय्यत ❷ सारे मुंह पर हाथ फेरना ❸ कोहनियों समेत दोनों हाथों का मस्ह करना।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 75-77
"तयम्मुम सीख लो" के दस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम की 10 सुन्नतें :
(1) बिस्मिल्लाह शरीफ़ कहना, (2) हाथों को जमीन पर मारना, (3) जमीन पर हाथ मार कर लौट देना (या'नी आगे बढ़ाना और पीछे लाना), (4) उंग्लियां खुली हुई रखना, (5) हाथों को झाड़ लेना या'नी एक हाथ के अंगूठे की जड़ को दूसरे हाथ के अंगूठे की जड़ पर मारना न इस तरह कि ताली की सी आवाज़ निकले,
(6) पहले मुंह फिर हाथों का मस्ह करना, (7) दोनों का मस्ह पैदर पै होना, (8) पहले सीधे फिर उल्टे हाथ का मस्ह करना, (9) मर्द के लिये दाढ़ी का खिलाल करना, (10) उंग्लियों का खिलाल करना जब कि गुबार पहुंच गया हो। अगर गुबार न पहुंचा हो म-सलन पथ्थर वगैरा किसी ऐसी चीज़ पर हाथ मारा जिस पर गुबार न हो तो खिलाल फर्ज़ है खिलाल के लिये दोबारा ज़मीन पर हाथ मारना ज़रूरी नहीं।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 78
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 68
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-67)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
तयम्मुम की निय्यत कीजिये (निय्यत दिल के इरादे का नाम है जबान से भी कह लें तो बेहतर है। म-सलन यूं कहिये बे वुजूई या बे गुस्ली या दोनों से पाकी हासिल करने और नमाज़ जाइज़ होने के लिये तयम्मुम करती हूं) बिस्मिल्लाह पढ़ कर दोनों हाथों की उंग्लियां कुशादा कर के किसी ऐसी पाक चीज़ पर जो ज़मीन की किस्म (म-सलन पथ्थर, चूना, ईट, दीवार, मिट्टी वरगैरा) से हो मार कर लौट लीजिये (या'नी आगे बढ़ाइये और पीछे लाइये)। और अगर ज़ियादा गर्द लग जाए तो झाड़ लीजिये और उस से सारे मुंह का इस तरह मस्ह कीजिये कि कोई हिस्सा रह न जाए अगर बाल बराबर भी कोई जगह रह गई तो तयम्मुम न होगा।
फिर दूसरी बार इसी तरह हाथ जमीन पर मार कर दोनों हाथों का नाखुनों से ले कर कोहनियों समेत मस्ह कीजिये, कंगन चूड़ियां जितने जेवर हाथ में पहने हों सब को हटा कर या उतार कर जिल्द के हर हिस्से पर हाथ पहुंचाइये, अगर ज़रा बराबर भी कोई जगह रह गई तो तयम्मुम न होगा।
तयम्मुम के मस्ह का बेहतर तरीक़ा येह है कि उल्टे हाथ के अंगूठे के इलावा चार उंग्लियों का पेट सीधे हाथ की पुश्त पर रखिये और उंग्लियों के सिरों से कोहनियों तक ले जाइये और फिर वहां से उल्टे ही हाथ की हथेली से सीधे हाथ के पेट को मस करते हुए गिट्टे तक लाइये और उल्टे अंगूठे के पेट से सीधे अंगूठे की पुश्त का मस्ह कीजिये। इसी तरह सीधे हाथ से उल्टे हाथ का मस्ह कीजिये। और अगर एक दम पूरी हथेली और उंग्लियों से मस्ह कर लिया तब भी तयम्मुम हो गया चाहे कोहनी से उंग्लियों की तरफ़ लाए या उंग्लियों से कोहनी की तरफ़ ले गए मगर सुन्नत के खिलाफ़ हुवा। तयम्मुम में सर और पाउं का मस्ह नहीं है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 76-78
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 70
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-68)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
“सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(1) जो चीज़ आग से जल कर न राख होती है न पिघलती है न नर्म होती है वोह ज़मीन की जिन्स (या'नी किस्म) से है इस से तयम्मुम जाइज़ है। रैता, चूना, सुरमा, गन्धक, पथ्थर, ज़बर जद, फीरोज़ा, अक़ीक़, वगैरा जवाहिर से तयम्मुम जाइज़ है चाहे इन पर गुबार हो या न हो।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 79
(2) पक्की ईंट, चीनी या मिट्टी के बरतन से तयम्मुम जाइज़ है। हां अगर इन पर किसी ऐसी चीज़ का जिर्म (या'नी जिस्म या तह) हो जो जिन्से जमीन से नहीं म-सलन कांच का जिर्म हो तो तयम्मुम जाइज़ नहीं।
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 80
(3) जिस मिट्टी, पथ्थर वरगैरा से तयम्मुम किया जाए उस का पाक होना जरूरी है या'नी न उस पर किसी नजासत का असर हो, न येह हो कि सिर्फ खुश्क होने से नजासत का असर जाता रहा हो।
📙 ऐज़न सफह 79
ज़मीन, दीवार और वोह गर्द जो ज़मीन पर पड़ी रहती है अगर नापाक हो जाए फिर धूप या हवा से सूख जाए और नजासत का असर ख़त्म हो जाए तो पाक है और उस पर नमाज़ जाइज़ है मगर उस से तयम्मुम नहीं हो सकता।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 72
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-69)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(4) येह वहम कि कभी नजिस हुई होगी फुजूल है इस का ए'तिबार नहीं।
(5) अगर किसी लकड़ी, कपड़े, या दरी वगैरा पर इतनी गर्द है कि हाथ मारने से उंग्लियों का निशान बन जाए तो उस से तयम्मुम जाइज़ है।
(6) चूना, मिट्टी या ईटों की दीवार ख़्वाह घर की हो या मस्जिद की इस से तयम्मुम जाइज़ है। मगर उस पर ऑइल पेइन्ट, प्लास्टिक पेइन्ट और मेट फ़िनिश या वॉल पेपर वरगैरा कोई ऐसी चीज़ नहीं होनी चाहिये जो जिन्से ज़मीन के इलावा हो, दीवार पर मार्बल हो तो कोई हरज नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 71
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-70)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(7) जिस का वुज़ू न हो या नहाने की हाजत हो और पानी पर कुदरत न हो वोह वुज़ू और गुस्ल की जगह तयम्मुम करें।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 68
(৪) ऐसी बीमारी कि वुज़ू या गुस्ल से इस के बढ़ जाने या देर में अच्छी होने का सहीह अन्देशा हो या खुद अपना तजरिबा हो कि जब भी वुज़ू या गुस्ल किया बीमारी बढ़ गई या यूं कि कोई मुसलमान अच्छा काबिल तबीब जो जाहिरी तौर पर फासिक न हो वोह कह दे कि पानी नुक्सान करेगा। तो इन सूरतों में तयम्मुम कर सकती हैं।
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 68
(9) अगर सर से नहाने में पानी नुक्सान करता हो तो गले से नहाइये और पूरे सर का मस्ह कीजिये।
(10) जहां चारों तरफ़ एक एक मील तक पानी का पता न हो वहां भी तयम्मुम कर सकती हैं।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 69
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 72
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-71)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(11) अगर इतना आबे ज़म-ज़म शरीफ़ पास है जो वुज़ू के लिये काफ़ी है तो तयम्मुम जाइज़ नहीं।
(12) इतनी सर्दी हो कि नहाने से मर जाने या बीमार हो जाने का कवी अन्देशा है और नहाने के बा'द सर्दी से बचने का कोई सामान भी न हो तो तयम्मुम जाइज़ है।
(13) कैदी को कैदखाने वाले वुज़ू न करने दें तो तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले बा'द में इआदा करे और अगर वोह दुश्मन या कैदखाने वाले नमाज़ भी न पढ़ने दें तो इशारे से पढ़े और बा'द में इआदा करे।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 73
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-72)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(14) अगर येह गुमान है कि पानी तलाश करने में (या पानी तक पहुंच कर वुज़ू करने तक) काफ़िला नज़रों से गाइब हो जाएगा या ट्रेन छूट जाएगी। तो तयम्मुम जाइज़ है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 72
फ़तावा र-ज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 3 सफ़हा 417 पर है : अगर रेल चले जाने का अन्देशा हो तब भी तयम्मुम करे और इआदा नहीं।
(15) वक़्त इतना तंग हो गया कि वुज़ू या गुस्ल करेगी तो नमाज़ क़ज़ा हो जाएगी तो तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले फिर वुज़ू या गुस्ल कर के नमाज़ का इआदा करे।
(16) औरत हैज़ व निफ़ास से पाक हो गई और पानी पर कादिर नहीं तो तयम्मुम करे
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 74
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 73
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-73)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(17) अगर कोई ऐसी जगह है जहां न पानी मिलता है न ही तयम्मुम के लिये पाक मिट्टी तो उसे चाहिये कि वक़्ते नमाज़ में नमाज़ की सी सूरत बनाए या'नी तमाम ह-रकाते नमाज़ बिला निय्यते नमाज़ बजा लाए।
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 75
मगर पाक पानी या मिट्टी पर कादिर होने पर वुज़ू या तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़नी होगी।
(18) वुज़ू और गुस्ल दोनों के तयम्मुम का एक ही तरीका है।
(19) जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ है उस के लिये येह जरूरी नहीं कि वुज़ू और गुस्ल दोनों के लिये दो तयम्मुम करे बल्कि दोनों में एक ही निय्यत कर ले दोनों हो जाएंगे और अगर सिर्फ गुस्ल या वुज़ू की निय्यत की जब भी काफ़ी है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़ह 76
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 73
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-74)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(20) जिन चीजों से वुज़ू टूट जाता है या गुस्ल फर्ज़ हो जाता है उन से तयम्मुम भी टूट जाता है और पानी पर कादिर होने से भी तयम्मुम टूट जाता है।
(21) इस्लामी बहन ने अगर नाक में फूल वरगैरा पहने हों तो निकाल ले वरना फूल की जगह मस्ह नहीं हो सकेगा ।
📕 ऐजन सफ़ह 77
(22) होंटों का वोह हिस्सा जो आदतन मुंह बन्द होने की हालत में दिखाई देता है इस पर मस्ह होना जरूरी है अगर मुंह पर हाथ फैरते वक़्त किसी ने होंटों को ज़ोर से दबा लिया कि कुछ हिस्सा मस्ह होने से रह गया तो तयम्मुम नहीं होगा।
(23) इसी तरह जोर से आंखें बन्द कर लीं जब भी न होगा!
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 73
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-75)
*तयम्मुम का तरीक़ा :*
"सरकरे आला हज़रत की पच्चीसवीं शरीफ" के छब्बीस हुरूफ़ की निस्बत से तयम्मुम के 26 म-दनी फूल :
(24) अंगूठी, घड़ी वगैरा पहने हों तो उतार कर या हटा कर उन के नीचे हाथ फेरना फ़र्ज है। चूड़ियां वरगैरा हटा कर उन के नीचे मस्ह कीजिये। तयम्मुम की एहतियातें वुज़ू से बढ़ कर हैं।
(25) बीमार या बे दस्तो पा खुद तयम्मुम नहीं कर सकती तो कोई दूसरी करवा दे इस में तयम्मुम करवाने वाली की निय्यत का ए 'तिबार नहीं, जिस को तयम्मुम करवाया जा रहा है उस को निय्यत करनी होगी।
📗 ऐजन सफ़ह 76
(26) अगर औरत को वुज़ू करना है और वहां कोई ना महरम मर्द मौजूद है जिस से छुपा कर हाथों का धोना और सर का मस्ह नहीं कर सकती तयम्मुम करे!
📙 फ़तावा र-ज़विय्या मुखर्रजा, जिल्द 3 सफ़ह 416
🤲🏻 या रब्बे मुस्तफ़ा ! हमें बार बार तयम्मुम के मसाइल पढ़ने समझने और दूसरों को समझाने और सुन्नतों के मुताबिक तयम्मुम करने की तौफ़ीक अता फ़रमा। *आमीन*
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 74
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-76)
*जवाबे अज़ान का तरीक़ा :*
अज़ान के जवाब की फ़ज़ीलत : अमीरुल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर बिन खत्ताब رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि हुज़ूरे पाक, साहिबे लौलाक, सय्याहे अफ़्लाक ﷺ ने फ़रमाया : जब मुअज़्ज़िन *اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر* कहे तो तुम में से कोई *اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر* कहे, फिर मुअज़्ज़िन *اَشْھَدُ اَنْ لَّا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ* कहे तो वोह शख़्स *اَشْھَدُ اَنْ لَّا اِلٰهَ اِلَّا* اللّٰهُ कहे, फिर मुअज़्ज़िन *اَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًارَّسُوْلُ اللّٰه* कहे तो वोह शख़्स *اَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًارَّسُوْلُ اللّٰه* कहे, फिर मुअज़्ज़िन *حَیَّ عَلَی الصَّلوٰۃ* कहे तो वोह शख़्स *لَاحَوْلَ ولَا قُوَّۃَ اِلَّا بِاللّٰه* कहे, फिर मुअज़्ज़िन *حَیَّ عَلَی الْفَلَاح* कहे तो वोह शख़्स *لَاحَوْلَ ولَا قُوَّۃَ اِلَّا بِاللّٰه* कहे, फिर जब मुअज़्ज़िन *اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر* कहे तो वोह शख़्स *اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر* कहे और जब मुअज़्ज़िन *لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ* कहे और येह शख़्स सिद्क़ दिल से *لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ* कहे तो जन्नत में दाखिल होगा।
मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाहि तआला अलैह इस हदीसे पाक के तहत फ़रमाते हैं जाहिर येह है कि *مِنْ قَلْبِهٖ* (या'नी सिद्क दिल से कहने) का तअल्लुक सारे जवाब से है या'नी अज़ान का पूरा जवाब सच्चे दिल से दे क्यूं कि बिगैर इख़्लास कोई इबादत क़ुबूल नहीं।
📕 मिरआतुल मनाजीह जिल्द 1 सफ़ह 412
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 76
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-77)
*जवाबे अज़ान का तरीक़ा :*
अज़ान का जवाब देने वाला जन्नती हो गया : हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رضی الله تعالی عنه फ़रमाते हैं कि एक साहिब जिन का ब ज़ाहिर कोई बहुत बड़ा नेक अमल न था, वोह फौत हो गए तो रसूलुल्लाह ﷺ ने सहाबए किराम رضی الله تعالی عنهم की मौजू-दगी में फ़रमाया क्या तुम्हें मा'लूम है कि अल्लाह तआला ने उसे जन्नत में दाखिल कर दिया है। इस पर लोग मु-तअज्जिब हुए क्यूं कि ब ज़ाहिर उन का कोई बड़ा अमल न था। चुनान्चे एक सहाबी رضی الله تعالی عنه उन के घर गए और उन की बेवा رضی الله تعالی عنها से पूछा कि उन का कोई खास अमल हमें बताइये, तो उन्हों ने जवाब दिया और तो कोई खास बड़ा अमल मुझे मा'लूम नहीं, सिर्फ इतना जानती हूं कि दिन हो या रात, जब भी वोह अज़ान सुनते तो जवाब ज़रूर देते थे।
🤲🏻 अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त عزوجل की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मग़फ़िरत हो। *आमीन*
*गु-नहे गदा का हिसाब क्या वोह अगर्चे लाख से हैं सिवा*
मगर ऐ अफू तेरे अफ़्व का तो हिसाब है न शुमार है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 78
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-78)
*जवाबे अज़ान का तरीक़ा :*
अज़ान का जवाब इस तरह दीजिये : मुअज़्जिन साहिब को चाहिये कि अज़ान के कलिमात ठहर ठहर कर कहें। اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر दोनों मिल कर (बिगैर सक्ता किये एक साथ पढ़ने के ए"तिबार से) एक कलिमा हैं दोनों के बा'द सक्ता करे (या'नी चुप हो जाए) और सक्ते की मिक्दार येह है कि जवाब देने वाला जवाब दे ले जवाब देने वाली इस्लामी बहन को चाहिये कि जब मुअज़्ज़िन साहिब اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر कह कर सक्ता करें यानी खामोश हों उस वक़्त اَللّٰهُ اَکْبَر اَللّٰهُ اَکْبَر कहे। इसी तरह दीगर कलिमात का जवाब दे। जब मुअज़्ज़िन पहली बार اَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدًارَّسُوْلُ اللّٰه कहे तो येह कहे
صلَّی اللّٰهُ عَلَیکَ یا رَسُولَ اللّٰه
तरजमा : आप पर दुरूद हो या रसूलल्लाह ﷺ
जब दोबारा कहे तो येह कहे :-
قُرَّۃُ عَیْنِیْ بِکَ یا رَسُوْلَ اللّٰه
या रसूलल्लाह! आप से मेरी आंखों की ठन्डक है।
और हर बार अंगूठों के नाखुन आंखों से लगा ले आखिर में कहें اَلّٰلھُمَّ مَتِّعْنِیْ بِالسَّّمْعِ وَالْبَصَر ऐ अल्लाह ! मेरी सुनने और देखने की कुव्वत से मुझे नफ्अ अता फ़रमा।
जो ऐसा करे सरकारे मदीना ﷺ उसे अपने पीछे पीछे जन्नत में ले जाएंगे। حَیَّ عَلَی اصَّلوٰۃ और حَیَّ عَلَی الْفَلَاح के जवाब में (चारों बार) لَاحَوْلَ ولَا قُوَّۃَ اِلَّا بِاللّٰه कहे और बेहतर येह है कि दोनों कहे (या'नी मुअज़्ज़िन ने जो कहा वोह भी कहे और लाहौल भी) बल्कि मजीद येह भी मिला ले :-
مَاشَآءَ اللّٰهُ کَانَ وَمَالَمْ یَشَأْ لَمْ یَکُن
तरजमा : अल्लाह عزوجل ने जो चाहा हुवा, जो नहीं चाहा नहीं हुवा।
اَلصَّلٰوۃُ خَیْرُٗ مِّنَ النَّوْم
के जवाब में कहे :-
صَدَقْتَ وَبَرِرْتَ وَبِالْحَقِّ نَطَقْتَ
तरजमा : तू सच्चा और नेकूकार है और तूने हक़ कहा है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 80
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-79)
*जवाबे अज़ान का तरीक़ा :*
"अज़ाने बिलाल" के आठ हुरूफ़ की निस्बत से जवाबे अज़ान के 8 म-दनी फूल :
(1) अज़ाने नमाज़ के इलावा दीगर अज़ानों का जवाब भी दिया जाएगा म-सलन बच्चा पैदा होते वक़्त की अज़ान।
(2) अज़ान सुनने वाले के लिये अज़ान का जवाब देने का हुक्म है।
(3) जुनुब (या'नी जिसे जिमा या एह़तिलाम की वजह से गुस्ल की हाजत हो) भी अज़ान का जवाब दे। अलबत्ता हैज व निफास वाली औरत, जिमाअ में मश्गूल या जो क़जाए हाजत में हों उन पर जवाब नहीं।
(4) जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिये सलाम व कलाम और जवाबे सलाम और तमाम काम मौकूफ़ कर दीजिये यहां तक कि तिलावत भी, अज़ान को गौर से सुनिये और जवाब दीजिये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 80
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-80)
*जवाबे अज़ान का तरीक़ा :*
"अज़ाने बिलाल" के आठ हुरूफ़ की निस्बत से जवाबे अज़ान के 8 म-दनी फूल :
(5) अज़ान के दौरान चलना, फिरना, बरतन, गिलास वगैरा कोई सी चीज़ उठाना, खाना वरगैरा रखना, छोटे बच्चों से खेलना, इशारों में गुफ्त-गू करना वगैरा सब कुछ मौकूफ़ कर देना ही मुनासिब है।
(6) जो अज़ान के वक़्त बातों में मश्गूल रहे उस पर معاذ اللہ खातिमा बुरा होने का खौफ़ है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 41 मक-त-बतुल मदीना
(7) अगर चन्द अज़ानें सुने तो इस पर पहली ही का जवाब है और बेहतर येह है कि सब का जवाब दे।
(8) अगर ब वक़्ते अज़ान जवाब न दिया तो अगर ज़ियादा देर न गुज़री हो तो जवाब दे ले।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 81
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-81)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
इस्लामी बहनो ! क़ुरआनो हदीस में नमाज़ पढ़ने के बे शुमार फ़ज़ाइल और न पढ़ने की सख़्त सज़ाएं वारिद हैं, चुनान्चे पारह 28 सू-रतुल मुनाफ़िकून की आयत नम्बर 9 में इर्शादे रब्बानी है
तर-ज-मए कन्ज़ुल ईमान : ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे माल न तुम्हारी औलाद कोई चीज़ तुम्हें अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुक़सान में हैं।
हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद बिन अहमद ज़-हबी अलैहि रहमतुल्लाहिल-क़ावी नक्ल करते हैं, मुफ़स्सिरीने किराम फ़रमाते हैं कि इस आयते मुबा-रका में अल्लाह तआला के ज़िक्र से पांच नमाज़ें मुराद हैं, पस जो शख़्स अपने माल या'नी खरीदो फरोख़्त, मईशत व रोज़गार, साजो सामान और औलाद में मसरूफ़ रहे और वक़्त पर नमाज़ न पढ़े वोह नुक्सान उठाने वालों में से है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 82
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-82)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
कियामत का सब से पहला सुवाल : सरकारे मदीना, सुल्ताने वा क़रीना, क़रारे क़ल्बो सीना, फैज़ गन्जीना ﷺ का इर्शादे हकीक़त बुन्याद है, क़यामत के दिन बन्दे के आ'माल में सब से पहले नमाज़ का सुवाल होगा। अगर वोह दुरुस्त हुई तो उस ने कामयाबी पाई और अगर उस में कमी हुई तो वोह रुस्वा हुवा और उस ने नुक्सान उठाया।
नमाज़ी के लिये नूर : सरकारे दो आलम, नूरे मुजस्सम, शाहे बनी आदम, रसूले मुहतशम ﷺ का इरशाद मुअज़्ज़म है जो शख़्स नमाज़ की हिफ़ाज़त करे, उस के लिये नमाज़ कियामत के दिन नूर, दलील और नजा़त होगी और जो इस की हिफाज़त न करे, उस के लिये बरोज़े कियामत न नूर होगा और न दलील और न ही नजात। और वोह शख़्स कियामत के दिन फ़िरऔन, कारून, हामान और उबय बिन ख़लफ़ के साथ होगा।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 84
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-83)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
*कौन किस के साथ उठेगा :* इस्लामी बहनो ! हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद बिन अहमद ज -हबी रहमतुल्लाहि तआला अलैह नकल करते हैं, बाज़ उ-लमाए किराम फ़रमाते हैं कि बे नमाज़ी को इन चार (फ़िरऔन, का़रून, हामान, और उबय बिन खलफ़) के साथ इस लिये उठाया जाएगा कि लोग उमूमन दौलत, हुकूमत, वज़ारत और तिजारत की वजह से नमाज़ को तर्क करते हैं। जो हुकूमत की मश्गूलिय्यत के सबब नमाज़ नहीं पढ़ेगा उस का हश्र (यानी उठाया जाना) फ़िरऔन के साथ होगा जो ! दौलत के बाइस नमाज़ तर्क करेगा तो उस का कारून के साथ हश्र। होगा , अगर तर्के नमाज़ का सबब वज़ारत होगी तो फ़िरऔन के वज़ीर हामान के साथ हश्र होगा और अगर तिजारत की मस्रूफ़िय्यत की वजह से नमाज़ छोड़ेगा तो उस को मक्कए मुकर्रमा के बहुत बड़े काफ़िर ताजिर उबय बिन खलफ़ के साथ बरोजे क़ियामत उठाया जाएगा।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 84
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-84)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
*शदीद ज़ख्मी हालत में नमाज़ :* जब हज़रते सय्यिदुना उमर फ़ारूके आज़म رضی الله تعالی عنه पर कातिलाना हम्ला हुवा तो अर्ज़ की गई, ऐ अमीरुल मुअमिनीन नमाज़ (का वक़्त है) फ़रमाया जी हां, सुनिये! जो शख़्स नमाज़ को! जाएअ करता है उस का इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं। और हज़रते सय्यिदुना उमर फ़ारूक़ رضی الله تعالی عنه ने शदीद ज़ख़्मी होने के बा-वुजूद नमाज़ अदा फ़रमाई।
📕 ऐज़न सफ़ह 22
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 85
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-85)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
हज़ारों साल अज़ाबे नार का हकदार : मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहि रहमतुर्रहमान फ़तावा रज़विय्या जिल्द 9 सफ़हा 158 ता 159 पर फ़रमाते हैं ईमान व तस्हीहे अक़ाइद के बाद जुम्ला हुकूकुल्लाह में सब से अहम व आ'ज़म नमाज़ है। जुमुआ ब ईदैन या बिला पाबन्दी पन्जगाना पढ़ना हरगिज़ नजात का जिम्मादार नहीं। जिस ने कस्दन एक वक़्त की छोड़ी हज़ारों बरस जहन्नम में रहने का मुस्तहिक हुवा, जब तक तौबा न करे और उस की क़ज़ा न कर ले मुसलमान अगर उस की ज़िन्दगी में उसे यक लख़्त (या'नी बिल्कुल) छोड़ दें उस से बात न करें, उस के पास न बैठें, तो जुरूर वोह इस का सजावार है।
अल्लाह عزوجل इर्शाद फ़रमाता है
तर-ज-मए क़न्ज़ुल ईमान : और जो कहीं तुझे शैतान भुलावे तो याद आए पर जालिमों के पास न बैठ।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 86
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-86)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
नमाज़ पर नूर या तारीकी के अस्बाब :
हज़रते सय्यिदुना उबादा बिन सामित رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि नबिय्ये रहमत शफ़ीए उम्मत शहनशाहे नुबुव्वत ताजदारे रिसालत ﷺ का फ़रमाने आलीशान है जो शख़्स अच्छी तरह वुज़ू करे फिर नमाज़ के लिये खड़ा हो इस के रुकूअ सुजूद और किराअत को मुकम्मल करे तो नमाज़ कहती है अल्लाह तआला तेरी हिफ़ाज़त करे जिस तरह तूने मेरी हिफ़ाज़त की फिर उस नमाज़ को आसमान की तरफ़ ले जाया जाता है और उस के लिये चमक और नूर होता है। पस उस के लिये आस्मान के दरवाजे खोले जाते हैं हत्ता कि उसे अल्लाह तआला की बारगाह में पेश किया जाता है और वोह नमाज़ उस नमाज़ी की शफाअत करती है और अगर वोह इस का रुकूअ सुजूद और क़िराअत मुकम्मल न करे तो नमाज़ कहती है अल्लाह तआला तुझे जाएअ कर दे जिस तरह तूने मुझे जाएअ किया फिर उस नमाज़ को इस तरह आसमान की तरफ़ ले जाया जाता है कि उस पर तारीकी (अंधेरा) छाई होती है और उस पर आसमान के दरवाज़े बन्द कर दिये जाते हैं फिर उस को पुराने कपड़े की तरह लपेट कर उस नमाज़ी के मुंह पर मारा जाता है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 86
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-87)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
बुरे ख़ातिमे का एक सबब : हज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी अलैहि रहमतुल्लाहिल बारी फ़रमाते हैं हज़रते सय्यिदुना हुजैफा बिन यमान رضی الله تعالی عنه ने एक शख़्स को देखा जो नमाज़ पढ़ते हुए रुकूअ और सुजूद पूरे अदा नहीं करता था तो उस से फ़रमाया तुम ने जो नमाज़ पढ़ी अगर इसी नमाज़ की हालत में इन्तिकाल कर जाओ तो हज़रते सय्यिदुना मुहम्मदे मुस्तफ़ा ﷺ के तरीके पर तुम्हारी मौत वाकेअ नहीं होगी। सु-नने नसाई की रिवायत में येह भी है कि आप رضی الله تعالی عنه ने पूछा तुम कब से इस तरह नमाज़ पढ़ रहे हो उस ने कहा चालीस साल से फ़रमाया तुम ने चालीस साल से बिल्कुल नमाज़ ही नहीं पढ़ी और अगर इसी हालत में तुम्हें मौत आ गई तो दीने मुहम्मदी अलैहिस्सलातु वस्सल्लाम पर नहीं मरोगे।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 87
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-88)
*नमाज़ का तरीक़ा :*
नमाज़ का चोर : हज़रते सय्यिदुना अबू क़तादा رضی الله تعالی عنه से रिवायत है कि सरकारे मदीना, क़रारे क़ल्बो सीना, फैज़ गन्जीना, साहिबे मुअत्तर, पसीना ﷺ का फ़रमाने बा करीना है लोगों में बद तरीन चोर वोह है जो अपनी नमाज़ में चोरी करे, अर्ज़ की गई या रसूलल्लाह ﷺ नमाज़ में चोरी कैसे होती है ? फ़रमाया : (इस तरह कि) रुकूअ और सज्दे पूरे न करे।
चोर की दो किस्में : मुफ़स्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाहि तआला अलैह इस हदीस के तहत फ़रमाते हैं मा'लूम हुवा माल के चोर से नमाज़ का चोर बदतर है क्यूंकि माल का चोर अगर सज़ा भी पाता है तो कुछ न कुछ नफ्अ भी उठा लेता है मगर नमाज़ का चोर सजा पूरी पाएगा इस के लिये नफ़्अ की कोई सूरत नहीं माल का चोर बन्दे का हक़ मारता है जब कि नमाज़ का चोर अल्लाह का हक़, येह हालत उन की है जो नमाज़ को नाक़िस पढ़ते हैं इस से वोह लोग दर्से इब्रत हासिल करें जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नहीं।
📕 मिरआतुल मनाजीह जिल्द 2 सफ़ह 78
*इस्लामी बहनो*! अव्वल तो लोग नमाज़ पढ़ते ही नहीं हैं और जो पढ़ते हैं उन की अक्सरिय्यत सुन्नतें सीखने के जज़्बे की कमी के बाइस आज कल सहीह तरीके से नमाज़ पढ़ने से महरूम रहती है यहां मुख्तसरन नमाज़ पढ़ने का तरीका पेश किया जाता है। बराए मेहबानी बहुत ज़ियादा गौर से पढ़िये और अपनी नमाज़ों की इस्लाह फ़रमाइये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 88
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-89)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
बा वुज़ू क़िब्ला रू इस तरह खड़ी हों कि दोनों पाउं के पन्ज़ों में चार उंगल का फ़ासिला रहे और दोनों हाथ कन्धों तक उठाइये और चादर से बाहर न निकालिये। हाथों की उंग्लियां न मिली हुई हों न खूब: खुली बल्कि अपनी हालत पर (NORMAL) रखिये और हथेलियां क़िब्ले की तरफ़ हों नज़र सज्दे की जगह हो। अब जो नमाज़ पढ़नी है उस की निय्यत या'नी दिल में उस का पक्का इरादा कीजिये साथ ही ज़बान से भी कह लीजिये कि ज़ियादा अच्छा है (म-सलन निय्यत ! की मैंने आज की जोहर की चार रक्अत फ़र्ज़ नमाज़ की) अब तक्बीरे तहरीमा या'नी اَللّٰهُ اَکْبَرُ (या'नी अल्लाह सब से बड़ा है) कहते हुए हाथ नीचे लाइये और उल्टी हथेली सीने पर छाती के नीचे रख कर उस के ऊपर सीधी हथेली रखिये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 89
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-90)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
अब इस तरह सना पढ़िये :
سُبْحٰنَکَ اللّٰھُمَّ وَ بِحَمْدِکَ وَ تَبَارَکَ اسْمُکَ وَتَعَلٰی جَدُّکَ وَلَآ اِلٰهَ غَیُرُکَ
पाक है तू ऐ अल्लाह عزوجل और मैं ! तेरी हम्द करता (करती) हूं, तेरा नाम बरकत वाला है और तेरी अज़मत बुलन्द है और तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।
फिर तअव्वुज़ पढ़िये :
اَعُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْم
मैं अल्लाह तआला की पनाह में आता (आती) हूं शैतान मरदूद से
फिर तस्मिया पढ़िये :
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
अल्लाह عزوجل के नाम से शुरूअ जो बहुत महरबान रहमत वाला।
फिर मुकम्मल सूरए फ़ातिहा पढ़िये :
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَۙ (1) الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِۙ (2) مٰلِكِ یَوْمِ الدِّیْنِ (3) اِیَّاكَ نَعْبُدُ وَ اِیَّاكَ نَسْتَعِیْنُ (4) اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَۙ (5) صِرَاطَ الَّذِیْنَ اَنْعَمْتَ عَلَیْهِمْ (6) غَیْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَیْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّیْنَ۠ (7)
तरजमए कन्ज़ुल ईमान : सब खूबियां अल्लाह عزوجل को जो मालिक सारे जान ! वालों का। बहुत मेहरबान रहमत वाला, रोजे जज़ा का मालिक। हम तुझी को पूजें : और तुझी से मदद चाहें । हम को सीधा रास्ता चला, रास्ता उन का जिन पर तूने एहसान किया, न उन का जिन पर गजब, हुवा और न बहके हुओं का।
सूरए फ़ातिहा ख़त्म कर के आहिस्ता से आमीन कहिये। फिर तीन आयात या एक बड़ी आयत जो तीन छोटी आयतों के बराबर हो या कोई सूरत मसलन सूरए इख्लास पढ़िये।
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌۚ (1)اَللّٰهُ الصَّمَدُۚ (2)لَمْ یَلِدْ ﳔ وَ لَمْ یُوْلَدْۙ (3)وَ لَمْ یَكُنْ لَّهٗ كُفُوًا اَحَدٌ۠ (4)
तरजमए कन्ज़ुल ईमान : अल्लाह عزوجل के नाम से शुरूअ जो बहुत मेहरबान रहमत वाला। तुम फ़रमाओ वोह अल्लाह ! है वोह एक है। अल्लाह बे नियाज़ है। न उस की कोई औलाद और न वोह किसी से पैदा हुवा। और न उस के जोड़ का कोई।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 90
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-91)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
अब اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहते हुए रुकूअ में जाइये। रुकूअ में थोड़ा झुकिये यानी इतना कि घुटनों पर हाथ रख दें जोर न दीजिये और घुटनों को न पकड़िये और उंग्लियां मिली हुई और पाउं झुके हुए रखिये मर्दो की तरह खूब सीधे मत कीजिये।
कम अज़ कम तीन बार रुकूअ की तस्बीह यानी سُبْحٰنَ رَبِّیَ الْعَظِیْمِ (यानी पाक है मेरा अजमत वाला परवर्द गार) कहिये। फिर तस्मीअ यानी سَمِعَ اللّٰهُ لِمَنْ حَمِدَہٗ (यानी अल्लाह عزوجل ने उस की सुन ली जिस ने उस की तारीफ़ की) कहते हुए बिल्कुल सीधी खड़ी हो जाइये, इस खड़े होने को क़ौमा कहते हैं। इस के बाद कहिये اَللّٰھُمَّ رَبَّنَا وَلَکَ الْحَمْدُ (ऐ अल्लाह ! ऐ हमारे परवर्द गार ! सब खुबियां तेरे ही लिये हैं) फिर اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहते हुए इस तरह सज्दे में जाइये कि पहले घुटने ज़मीन पर रखिये फिर हाथ फिर दोनों हाथों के बीच में इस तरह सर रखिये कि पहले नाक फिर पेशानी और येह ख़ास ख़याल रखिये कि नाक की सिर्फ नोक नहीं बल्कि हड्डी लगे और पेशानी ज़मीन पर जम जाए नज़र नाक पर रहे सज्दा सिमट कर कीजिये यानी बाजू करवटों से पेट रान से, रान पिंडलियों से और पिंडलियां जमीन से मिला दीजिये और दोनों पाउं सीधी तरफ़ निकाल दीजिये।
अब कम अज़ कम तीन बार सज्दे की तस्बीह यानी سُبْحٰنَ ربِّیَ الْاَعْلٰی (पाक है! मेरा परवर्द गार सब से बुलन्द) पढ़िये फिर सर इस तरह उठाइये कि पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे। दोनों पाउं सीधी तरफ़ निकाल दीजिये और उल्टी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बीच में और उल्टा हाथ उल्टी रान के बीच में रखिये। दोनों सज्दों के दरमियान बैठने को जल्सा कहते हैं। फिर कम अज़ कम एक बार سُبْحٰنَ اللَّه कहने की मिक्दार ठहरिये (इस वक्फे में اَللّٰھُمَّ اغْفِرْلِی यानी ऐ अल्लाह عزوجل मेरी मग्फ़िरत फ़रमा कह लेना मुस्तहब है) फिर اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहते हुए पहले सज्दे ही की तरह दूसरा सज्दा कीजिये। अब उसी तरह पहले सर उठाइये फिर हाथों को घुटनों पर रख कर पन्जों के बल खड़ी हो जाइये। उठते वक़्त बिगैर मजबूरी ज़मीन पर हाथ से टेक मत लगाइये। येह आप की एक रक्अत पूरी हुई।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 91
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-92)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
अब दूसरी रक्अत में بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ पढ़ कर अल हम्द और सूरह पढ़िये और पहले की तरह रुकूअ और सज्दे कीजिये दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद दोनों! पाउं सीधी तरफ़ निकाल दीजिये और उल्टी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बीच में और उल्टा हाथ उल्टी रान के बीच में रखिये। दो रक्अत के दूसरे सज्दे के बाद बैठना क़ादह कहलाता है। अब क़ादह में तशह्हुद पढ़िये
اَتَّحِیَّاتُ لِلّٰهِ وَالصَّلَوٰتُ وَالطَّیِّبٰتُ اَلسَّلَامُ عَلَیْکَ اَیُّھَاالنَّبِیُّ وَرَحْمَۃُاللّٰهِ وَبَرَکَاتُهٗ
اَلسَّلَامُ عَلَیْنَا وَعَلٰی عِبَادِاللّٰهِ الصّٰلِحِیْنَ
اَشْھَدُ اَنْ لَّآاِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ وَاَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدً اعَبْدُہٗ وَرَسُوْلُه
तमाम कौली, फे'ली और माली इबादतें अल्लाह ही के लिये हैं। सलाम हो आप पर ऐ नबी और अल्लाह عزوجل की रहमतें और बरकतें। सलाम हो हम पर और अल्लाह عزوجل के नेक बन्दों पर। मैं गवाही देता (देती) हूं कि अल्लाह عزوجل के सिवा कोई मा'बूद नहीं और मैं गवाही देता (देती) हूं मुहम्मद ﷺ उस के बन्दे और रसूल हैं।
जब तशह्हुद में लफ्ज़ لا के करीब पहुंचे तो सीधे हाथ की बीच की उंगली और अंगूठे का हल्का बना लीजिये और छुंग्लिया (या'नी छोटी उंगली) और बिन्सर यानी उस के बराबर वाली उंगली को हथेली से मिला दीजिये और (اَشْھَدُ اَلْ के फौरन बा'द) लफ्जे لا कहते ही कलिमे की उंगली उठाइये मगर उस को इधर उधर मत हिलाइये और लफ्ज़े اِلَّا पर गिरा दीजिये और फौरन सब उंग्लियां सीधी कर लीजिये। अब अगर दो से ज़ियादा रक्अतें पढ़नी हैं तो اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहती हुई खड़ी हो जाइये। अगर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ रही हैं तो तीसरी और चौथी रक्अत के कियाम में بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ और अल-हम्द शरीफ़ पढ़िये, सूरत मिलाने की ज़रूरत नहीं। बाकी अफ़आल इसी तरह बजा लाइये और अगर सुन्नत व नफ्ल हों तो सूरए फातिहा के बा'द सूरत भी मिलाइये!
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 93
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-93)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
फिर चार रक्अतें पूरी कर के क़ादए अखीरह में तशह्हुद के बा'द दुरूदे इब्राहीम عَلَیْهِ الصَّلوٰۃُ وَالسَّلَام पढ़िये :
اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّ عَلٰی اَلِ مُحَمَّدٍ کَمَا صَلَّیْتَ عَلٰی اِبْرَاھِیْمَ وَ عَلٰی اٰلِ اِبْرَاھِیْمَ اِنَّاكَ حَمِیْدُٗ مَّجِیْدُٗ
ऐ अल्लाह عزوجل दुरूद भेज (हमारे सरदार) मुहम्मद पर और उन की आल पर जिस तरह तूने दुरूद भेजा (सय्यिदुना) इब्राहीम पर और उन की आल पर बेशक तू सराहा हुवा बुजुर्ग है
اَللّٰھُمَّ بَارِكْ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّ عَلٰی اَلِ مُحَمَّدٍ کَمَا بَارَکْتَ عَلٰی اِبْرَاھِیْمَ وَ عَلٰی اٰلِ اِبْرَاھِیْمَ اِنَّاكَ حَمِیْدُٗ مَّجِیْدُٗ
ऐ अल्लाह عزوجل बरकत नाज़िल कर। (हमारे सरदार) मुहम्मद पर और उन की ! आल पर जिस तरह तूने बरकत नाज़िल की (सय्यिदुना) इब्राहीम और उन की आल पर बेशक तू सराहा हुवा बुज़ुर्ग है।
फिर कोई सी दुआए मासूरा (क़ुरआनो हदीस की दुआ को दुआए मासूरा कहते हैं) पढ़िये मसलन येह दुआ पढ़ लीजिये
(اَللّٰھُمَّ) رَبَّنَآ اٰتِنَا فِی الدُّنْیَا حَسَنَۃً وَّ فِی الْاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّ قِنَا عَذَابَ النَّارِ پارہ:۲ البقرۃ: ۲۰۱
(ऐ अल्लाह عزوجل) *तरजमए क़न्जुल ईमान :* ऐ रब हमारे हमें दुन्या में भलाई दे और हमें आख़िरत में भलाई दे और हमें अज़ाबे दोज़ख से बचा।
फिर नमाज़ ख़त्म करने के लिये पहले दाएं (सीधे) कन्धे की तरफ़ मुंह कर के اَلسَّلاَمُ عَلَیْکُمْ وَرَحمَۃُ اللّٰهِ कहिये और इसी तरह बाएं (उल्टे) तरफ़ अब नमाज़ ख़त्म हुई।
📕 माखज़ अज़ बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 72,75 वगैरा
*⚠️ मुतवज्जेह हों :* इस्लामी बहनो ! दिये हुए इस तरीकए नमाज़ में बाज़ बातें फ़र्ज़ हैं कि इस के बिगैर नमाज़ होगी ही नहीं बाज़ वाजिब कि इस का जानबूझ कर छोड़ना गुनाह और तौबा करना और नमाज़ का फिर से पढ़ना वाजिब और भूल कर छूटने से सज्दए सहव वाजिब और बाज़ सुन्नते मुअक्कदा हैं कि जिस के छोड़ने की आदत बना लेना गुनाह है और बाज़ मुस्तहब हैं कि जिस का करना सवाब और न करना गुनाह नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 94
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-94)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"या अल्लाह" के छ हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ की 6 शराइत
*(1) तहारत :* नमाज़ी का बदन लिबास और जिस जगह नमाज़ पढ़ रही है उस जगह का हर किस्म की नजासत से पाक होना ज़रूरी है।
*(2) सित्रे औरत :* इस्लामी बहन के लिये इन पांच आज़ा : मुंह की टिक्ली दोनों हथेलियां और दोनों पाउं के तल्वों के इलावा सारा जिस्म छुपाना लाज़िमी है अलबत्ता अगर दोनों हाथ (गिट्टों तक), पाउं (टख्नों तक) मुकम्मल ज़ाहिर हों तो एक मुफ्ता बिही कौल पर नमाज़ दुरुस्त है
अगर ऐसा बारीक कपड़ा पहना जिस से बदन का वोह हिस्सा जिस का नमाज़ में छुपाना फ़र्ज़ है नज़र आए या जिल्द (यानी चमड़ी) का रंग ज़ाहिर हो नमाज़ न होगी।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 48
आज कल बारीक कपड़ों : का रवाज़ बढ़ता जा रहा है ऐसा कपड़ा पहनना जिस से सित्रे औरत न हो सके इलावा नमाज़ के भी हराम है।
📔 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 148
दबीज़ (यानी मोटा) कपड़ा जिस से बदन का रंग न चमकता हो मगर बदन से ऐसा चिपका हुवा हो कि देखने से उज़्व की हैअत (यानी शक्लो सूरत और गोलाई वगैरा) मालूम होती हो ऐसे कपड़े से अगर्चे नमाज़ हो जाएगी मगर उस उज़्व की तरफ़ दूसरों को निगाह करना जाइज़ नहीं।
📗 रद्दुल मुख़्तार जिल्द 2 सफ़ह 103
ऐसा लिबास लोगों के सामने पहनना मन्अ है और औरतों के लिये बदरजए औला मुमानअत।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 48
बाज़ इस्लामी बहनें मलमल वगैरा की बारीक चादर नमाज़ में ओढ़ती हैं जिस से बालों की सियाही (कालक) चमकती है या ऐसा लिबास पहनती हैं जिस से आज़ा का रंग नज़र आता है ऐसे लिबास में भी नमाज़ नहीं होती।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 95
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-95)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"या अल्लाह" के छ हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ की 6 शराइत :
*(3) इस्तिक्बाले क़िब्ला :* यानी नमाज़ में क़िब्ला (काबा) की तरफ मुंह करना। नमाजी़ ने बिला उज़्रे शरई जानबूझ कर क़िब्ले से सीना फेर दिया अगर्चे फ़ौरन ही क़िब्ले की तरफ़ हो गई नमाज़ फ़ासिद हो गई (यानी टूट गई) और अगर बिला क़स्द (यानी बिला इरादा) फिर गई और ब क़दर तीन बार سبحان اللہ कहने के वक्फे से पहले वापस क़िब्ला रुख हो गई तो फ़ासिद न हुई। (यानी न टूटी)
अगर सिर्फ मुंह क़िब्ले से फिरा तो वाजिब है कि फ़ौरन क़िब्ले की तरफ मुंह कर ले और नमाज़ न जाएगी मगर बिला उज्ऱ यानी बिगैर मजबूरी के) ऐसा करना मकरुहे तहरीमी है।
अगर ऐसी जगह पर हैं जहां किब्ले की शनाख्त (यानी पहचान) का कोई ज़रीआ नहीं है न कोई ऐसा मुसलमान है जिस से पूछ कर मालूम किया जा सके तो तहर्री कीजिये यानी सोचिये और जिधर क़िब्ला होना दिल पर जमे उधर ही रुख कर लीजिये आप के हक में वोही क़िब्ला है। तहर्री कर के नमाज़ पढ़ी बाद में मालूम हुवा कि क़िब्ले की तरफ़ नमाज़ नहीं पढ़ी नमाज़ हो गई लौटाने की हाजत नहीं।
एक इस्लामी बहन तहर्री कर के (सोच कर) नमाज़ पढ़ रही हो दूसरी उस की देखा देखी उसी सम्त नमाज़ पढ़ेगी तो नहीं होगी दूसरी के लिये भी तहर्री करने का हुक्म है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 96
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-96)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
या अल्लाह" के छ हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ की 6 शराइत :
*(4) वक़्त :* यानी जो नमाज़ पढ़नी है उस का वक़्त होना ज़रूरी है मसलन आज की नमाज़े अस्र अदा करनी है तो येह ज़रूरी है कि अस्र का वक़्त शुरू हो जाए अगर वक़्ते अस्र शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज़ न होगी।
निज़ामुल अवक़ात के नक्शे उमूमन मिल जाते हैं उन में जो मुस्तनद तौकीत दां (यानी वक़्त का इल्म रखने के माहिर) के मुरत्तब कर्दा और उलमाए अहले सुन्नत के मुसद्दका (तस्दीक शुदा) हों उन से नमाज़ों के अवकात मालूम करने में सहूलत रहती है।
इस्लामी बहनों के लिये अव्वल वक़्त में नमाजे फ़ज्र अदा करना मुस्तहब है और बाकी नमाज़ों में बेहतर येह है कि इस्लामी भाइयों की जमाअत का इन्तिज़ार करें जब जमाअत हो चुके फिर पढ़े।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 97
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-97)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"या अल्लाह" के छ हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ की 6 शराइत :
तीन अवकाते मक़रूहा : (1) तुलूए आफ्ताब से ले कर कम अज़ कम बीस मिनट बाद तक (2) गुरूबे आफ्ताब से कम अज़ कम बीस मिनट पहले (3) निस्फुन्नहार यानी जहवए कुब्रा से ले कर जवाले आफ्ताब तक। इन तीनों अवकात में कोई नमाज़ जाइज नहीं न फ़र्ज न वाजिब न नफ़्ल न क़ज़ा हां अगर इस दिन की नमाजे़ अस्र नहीं पढ़ी थी और मकरुह वक़्त शुरू हो गया तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताख़ीर करना हराम है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 22
नमाजे अस्र के दौरान मकरूह वक़्त आ जाए तो ? गुरूबे आफ्ताब से कम से कम 20 मिनट क़ब्ल नमाज़े अस्र का सलाम फिर जाना चाहिये जैसा के मेरे आक़ा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान अलैहि रहमतुर्रहमान फ़रमाते हैं नमाजे़ अस्र में जितनी ताख़ीर हो अफ़ज़ल है जब कि वक़्ते कराहत से पहले पहले ख़त्म हो जाए।
📗 फ़तावा रज़विय्या मुखीजा , जिल्द 5 सफ़ह 156
फिर अगर उस ने एहतियात की और नमाज़ में तत्वील की (यानी तूल दिया) कि वक़्ते कराहत वस्ते (यानी दौराने) नमाज़ में आ गया जब भी इस पर एतिराज़ नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 98
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-98)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"या अल्लाह" के छ हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ की 6 शराइत :
*(5) निय्यत :* निय्यत दिल के पक्के इरादे का नाम है। ज़बान से निय्यत करना ज़रूरी नहीं अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होते हुए ज़बान से कह लेना बेहतर है। अरबी में कहना भी ज़रूरी नहीं उर्दू वगैरा किसी भी ज़बान में कह सकते हैं। निय्यत में ज़बान से कहने का एतिबार नहीं यानी अगर दिल में मसलन जोहर की निय्यत हो और ज़बान से लफ्जे अस्र निकला तब भी जोहर की नमाज़ हो गई। निय्यत का अदना दरजा येह है कि अगर उस वक़्त कोई पूछे कि कौन सी नमाज़ पढ़ती हो ? तो फ़ौरन बता दे। अगर हालत ऐसी है कि सोच कर बताएगी तो नमाज़ न हुई फ़र्ज़ नमाज में निय्यते फ़र्ज़ भी ज़रूरी है मसलन दिल में येह निय्यत हो कि आज की जोहर की फ़र्ज नमाज़ पढ़ती हूं। असहह (यानी दुरुस्त तरीन) येह है कि नफ्ल सुन्नत और तरावीह में मुत्लक नमाज़ की निय्यत काफ़ी है।
मगर एहतियात येह है के तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक़्त की निय्यत करे और बाकी सुन्नतों में सुन्नत या मुस्तफ़ा जाने रहमत ﷺ की मुताबअत (यानी पैरवी) की निय्यत करे इस लिये कि बाज़ मशाइखे किराम رَحِمَھُمُ اللّٰہُ السَّلَام इन में मुत्लक़ नमाज़, की निय्यत को नाकाफ़ी करार देते हैं। नमाज़े नफ़्ल में मुत्लक़ नमाज़ की निय्यत काफ़ी है अगर्चे नफ़्ल निय्यत में न हो। (येह निय्यत कि मुंह मेरा किब्ला : शरीफ़ की तरफ़ है शर्त नहीं। वाजिब में वाजिब की निय्यत करना ज़रूरी है और उसे मुअय्यन भी कीजिये मसलन नज्र , नमाज़े बादे तवाफ़ (वाजिबुत्तवाफ़) या वोह नफ्ल नमाज़ जिस के टूट जाने से या जिस को तोड़ डालने से उस की क़ज़ा वाजिब हो जाती है। सज्दए शुक्र अगर्चे नफ़्ल है मगर उस में भी निय्यत ज़रूरी है मसलन दिल में येह निय्यत हो कि मैं सज्दए शुक्र करती हूं। सज्दए सह्व में भी साहिबे नहरुल फ़ाइक के नज़दीक निय्यत ज़रूरी है। यानी उस वक़्त दिल में येह निय्यत हो कि मैं सज्दए सह्व करती हूं।
*6) तक्बीरे तहरीमा :* यानी नमाज़ को اَللّٰهُ اَکْبَرُ कह कर शुरू करना ज़रूरी है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 100
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-99)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :
(1) तक्बीरे तहरीमा
(2) क़ियाम
(3) क़िराअत
(4) रुकूअ
(5) सुजूद
(6) क़ादए अखीरह
(7) खुरूजे बिसुन्इही।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 75
*(1) तक्बीरे तहरीमा :* दर हकीक़त तक्बीरे तहरीमा (यानी तक्बीरे उला) शराइते नमाज़ में से है मगर नमाज़ के अफ्आल से बिल्कुल मिली हुई है इस लिये इसे नमाज़ के फराइज़ से भी शुमार किया गया है। जो इस्लामी बहन तक्बीर के तलफ्फुज पर क़ादिर न हो मसलन गूंगी हो या किसी और वजह से ज़बान बन्द हो गई हो उस पर तलफ्फुज लाज़िम नहीं दिल में इरादा काफ़ी है। लफ़्जे अल्लाह को "आल्लाह" या अक्बर ! को "आक्बर" या "अक्बार" कहा नमाज़ न होगी बल्कि अगर इन के मानए फ़ासिदा समझ कर जानबूझ कर कहे तो काफ़िर है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 100
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-100)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :
*(2) क़ियाम :* कमी की जानिब क़ियाम की हद येह है कि हाथ बढ़ाए तो घुटनों तक न पहुंचे और पूरा कियाम येह है कि सीधी खड़ी हो। कियाम इतनी देर तक है जितनी देर तक क़िराअत है बकदरे क़िराअते फ़र्ज़ क़ियाम भी फ़र्ज बक़दरे वाजिब वाजिब और बक़दरे सुन्नत सुन्नत। फ़र्ज़ वित्र और सुन्नते फ़ज्र में क़ियाम फ़र्ज़ है। अगर बिला उज्रे सहीह कोई येह नमाजें बैठ कर अदा करेगी तो न होंगी। खड़ी होने से महज़ कुछ तक्लीफ़ होना उज्र नहीं बल्कि क़ियाम उस वक़्त साकित। होगा कि खड़ी न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़ी होने या सज्दा करने में ज़ख्म बहता है या सित्र खुलता है या क़िराअत से मजबूरे महज़ हो जाती है। यूंही खड़ी हो सकती है मगर उस से मरज़ में ज़ियादती होती है या देर में अच्छी होगी या ना काबिले बरदाश्त तक्लीफ़ होगी तो बैठ कर पढ़े।
अगर असा (या बैसाखी) खादिमा ! या दीवार पर टेक लगा कर खड़ी होना मुम्किन है तो फ़र्ज़ है कि खड़ी हो कर पढ़े। अगर सिर्फ़ इतना खड़ा होना मुम्किन है कि खड़े खड़े तक्बीरे तहरीमा कह लेगी तो फ़र्ज़ है कि खड़ी हो कर कह ले और अब खड़े रहना मुम्किन नहीं तो बैठ जाए। खबरदार ! बाज़ इस्लामी बहनें मामूली सी तक्लीफ़ (या ज़ख्म) की वजह से फ़र्ज़ नमाजे़ं बैठ कर पढ़ती हैं वोह इस हुक्मे ! शरई पर गौर फरमाएं जितनी नमाज़ें कुदरते क़ियाम के बा वुजूद बैठ कर अदा की हों उन को लौटाना फ़र्ज़ है। इसी तरह वैसे ही खड़ी न रह सकती थीं मगर असा या दीवार या ख़ादिमा के सहारे खड़ी होना मुम्किन था मगर बैठ कर पढ़ती रहीं तो उन की भी नमाजें न हुईं उन का लौटाना फ़र्ज़ है।
📕 मुलख्खस अज़ बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 79
खड़े हो कर पढ़ने की क़ुदरत हो जब भी बैठ कर नफ़्ल पढ़ सकते हैं मगर खड़े हो कर पढ़ना अफ्ज़ल है कि हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन अम्र رضی الله تعالی عنه से मरवी है रहमते आलम नूरे मुजस्सम शाहे बनी आदम , रसूले मुहतशम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया बैठ कर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े हो कर पढ़ने वाले की निस्फ़ (यानी आधा सवाब) है। और उज्र (मजबूरी) की वजह से बैठ कर पढ़े तो सवाब में कमी न होगी। येह जो आज कल आम रवाज पड़ गया है कि नफ़्ल बैठ कर पढ़ा करते हैं ब ज़ाहिर येह मालूम होता है कि शायद बैठ कर पढ़ने को अफ़्ज़ल समझते हैं ऐसा है तो उन का ख़याल गलत है। वित्र के बाद जो दो रक्अत नफ़्ल पढ़ते हैं उन का भी येही हुक्म है कि खड़े हो कर पढ़ना अफ़्ज़ल है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफ़ह 19
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 102
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-101)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :
*(3) क़िराअत :* क़िराअत इस का नाम है कि तमाम हुरूफ़ मख़ारिज से अदा किये जाएं कि हर हर्फ़ गैर से सहीह तौर पर मुम्ताज़ (नुमायां) हो जाए। आहिस्ता पढ़ने में भी येही ज़रूरी है कि खुद सुन ले। अगर हरूफ़ तो सहीह अदा किये मगर इतने आहिस्ता कि खुद न सुना और कोई रुकावट मसलन शोरो गुल या सिक्ले समाअत (यानी बहरा पन या ऊंचा सुनने का मरजी) भी, नहीं तो नमाज़ न हुई। अगर्चे खुद सुनना ज़रूरी है मगर येह भी एहतियात रहे कि सिरी (यानी आहिस्ता किराअत वाली) नमाजों में क़िराअत की आवाज़ दूसरों तक न पहुंचे, इसी तरह तस्बीहात वगैरा में भी ख़याल रखिये नमाज़ के इलावा भी जहां कुछ कहना या पढ़ना मुकर्रर किया है इस से भी येही मुराद है कि कम अज़ कम इतनी आवाज़ हो कि खुद सुन सके!
मसलन जानवर जब्ह करने के लिये अल्लाह عزوجل का नाम लेने में इतनी आवाज़ ज़रूरी है कि खुद सुन सके। (दुरूद शरीफ़ वग़ैरा अवराद पढ़ते हुए भी कम अज़ कम इतनी आवाज़ होनी चाहिये कि खुद सुन सके जभी पढ़ना कहलाएगा। मुत्लक़न एक आयत पढ़ना फ़र्ज़ की दो रक्अतों में और वित्र, सुनन और नवाफ़िल की हर रक्अत में इमाम व मुन्फरिद (यानी तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले) पर फ़र्ज़ है। फ़र्ज़ की किसी रक्अत में क़िराअत न की या फ़क़त एक में की नमाज़ फ़ासिद हो गई। फ़र्ज़ो में ठहर ठहर कर क़िराअत करे और तरावीह में मुतवस्सित (यानी दरमियाना) अन्दाज़ पर और रात के नवाफ़िल में जल्द पढ़ने की इजाज़त है मगर ऐसा पढ़े कि समझ में आ सके यानी कम से कम मद का जो दरजा कारियों ने रखा है उस को अदा करे वरना हराम है, इस लिये कि तरतील से (यानी ठहर ठहर कर) क़ुरआन पढ़ने का हुक्म है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 103
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-102)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :
*हुरूफ की सहीह अदाएगी ज़रूरी है :* अक्सर लोग " ط ت' س ص ث ' اء ع' ہ ح और ض ذ ظ " में कोई फ़र्क नहीं करते। याद रखिये ! हरूफ़ बदल जाने से अगर माना फ़ासिद हो! गए तो नमाज़ न होगी।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 125
मसलन जिस ने " سُبْحٰنَ رَبِّیَ الْعَظِیْمِ " में को " عظیم " (ظ के बजाए ز) पढ़ दिया नमाज़ जाती रही लिहाज़ा जिस से " عظیم " सहीह अदा ! न हो वोह " سُبْحٰنَ رَبِّیَ الْکَرِیْم " पढ़े।
*ख़बरदार❗ख़बरदार ❗ख़बरदार :* जिस से हुरूफ़ सहीह अदा नहीं होते उस के लिये थोड़ी देर मश्क कर लेना काफ़ी नहीं बल्कि लाज़िम है कि इन्हें सीखने के लिये रात दिन पूरी कोशिश करे और वोह आयतें पढ़े जिस के ! हुरूफ सहीह अदा कर सकती हो। और येह सूरत ना मुम्किन हो तो ज़मानए कोशिश में उस की नमाज़ हो जाएगी। आज कल काफ़ी लोग इस मरज़ में मुब्तला हैं कि न उन्हें क़ुरआन सहीह पढ़ना आता है न सीखने की कोशिश करते हैं। याद रखिये ! इस तरह नमाजें बरबाद होती हैं।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 138-139 मुलख्खसन
जिस ने रात दिन कोशिश की मगर सीखने में नाकाम रही जैसे बाज़ ! इस्लामी बहनों से सहीह हुरूफ़ अदा होते ही नहीं उस के लिये लाज़िमी ! है कि रात दिन सीखने की कोशिश करे और जमानए कोशिश में वोह माजूर है इस की नमाज़ हो जाएगी!
📙 माखूज अज़ फतावा रज़विय्या जिल्द 6 सफ़ह 254
आप ने क़िराअत की अहम्मिय्यत का बखूबी अन्दाज़ा लगा लिया होगा वाकेई वोह मुसलमान बड़े बद नसीब हैं जो दुरुस्त क़ुरआन शरीफ़ पढ़ना नहीं सीखते। काश ! तालीमे क़ुरआन की घर घर धूम पड़ जाए काश ! हर वोह इस्लामी बहन जो सहीह क़ुरआन शरीफ़ पढ़ना जानती है वोह दूसरी ! इस्लामी बहन को सिखाना शुरू कर दे। ان شاء اللہ फिर तो हर तरफ़ तालीमे क़ुरआन की बहार आ जाएगी और सीखने सिखाने ! वालों के लिये ان شاء اللہ सवाब का अम्बार लग जाएगा।
*येही है आरजू तालीमे कुरआं आम हो जाए*
तिवालत शौक से करना हमारा काम हो जाए
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 105-106
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-103)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
*"बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :*
*(4) रुकूअ :* रुकूअ में थोड़ा झुकिये यानी इतना कि घुटनों पर हाथ रख दीजिये जोर न दीजिये और घुटनों को न पकड़िये और उंग्लियां मिली हुई और पाउं झुके हुए रखिये इस्लामी भाइयों की तरह खूब सीधे न करें।
*(5) सुजूद :* सुल्ताने मक्कए मुकर्रमा, ताजदारे मदीनए मुनव्वरह ﷺ का फ़रमाने अज़मत निशान है मुझे हुक्म हुवा कि सात हड्डियों पर सज्दा करूं मुंह और दोनों हाथ और दोनों घुटने और दोनों पन्जे़ और येह हुक्म हुवा कि कपड़े और बाल न समेटूं हर रक्अत में दो बार सज्दा फ़र्ज़ है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 81
सज्दे में पेशानी जमना ज़रूरी है। जमने के माना येह हैं कि ज़मीन की सख़्ती महसूस हो अगर किसी ने इस तरह सज्दा किया कि पेशानी न जमी तो सज्दा न होगा। किसी नर्म चीज़ मसलन घास (जैसा कि बाग की हरियाली) रूई या (फ़ोम के गदेले या) कालीन (carpet) वगैरा पर सज्दा किया तो अगर पेशानी जम गई यानी इतनी दबी कि अब दबाने से न दबे तो सज्दा हो जाएगा वरना नहीं। कमानीदार (यानी स्प्रींग वाले) गद्दे पर पेशानी खूब नहीं जमती लिहाज़ा नमाज़ न होगी।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 82
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 106
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-104)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
*बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :*
कारपेट के नुक्सानात : कारपेट से एक तो सज्दे में दुशवारी होती है नीज़ सहीह मानों में इस की सफाई नहीं हो पाती लिहाज़ा धूल वगैरा जम्अ होती और जरासीम परवरिश पाते हैं, सज्दे में सांस के जरीए जरासीम, गर्द वगैरा अन्दर दाखिल हो जाते हैं, कारपेट का रुवां फेफड़ों में जा कर चिपक जाने की सूरत में معاذ اللہ केन्सर का खतरा पैदा होता है। बसा ! अवक़ात बच्चे कारपेट पर कै या पेशाब वगैरा कर डालते, बिल्लियां गन्दगी करतीं, चूहे और छिपकलियां मेंग्नियां करते हैं। कारपेट नापाक हो जाने की सूरत में उमूमन पाक करने की ज़हमत भी नहीं की जाती। काश ! कारपेट बिछाने का रवाज ही ख़त्म हो जाए।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 107
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-105)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
*बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :*
कारपेट पाक करने का तरीक़ा : कारपेट (CARPET) का नापाक हिस्सा एक बार धो कर लटका दीजिये यहां तक कि पानी टपक्ना मौकूफ़ हो जाए फिर दोबारा धो कर लटकाइये हत्ता कि पानी टपकना बन्द हो जाए फिर तीसरी बार ! ? इसी तरह धो कर लटका दीजिये जब पानी टपक्ना बन्द हो जाएगा तो ! पाक हो जाएगा। चटाई, चमड़े के चप्पल और मिट्टी के बरतन वगैरा जिन चीज़ों में पतली नजासत जज्ब हो जाती हो इसी तरीक़े पर पाक कीजिये। ऐसा नाजुक कपड़ा कि निचोड़ने से फट जाने का अन्देशा हो। वोह भी इसी तरह पाक कीजिये। अगर नापाक कारपेट या कपड़ा वगैरा बहते पानी में (मसलन दरिया, नहर में या पाइप या टोंटी के जारी पानी के नीचे) इतनी देर तक रख छोड़ें के ज़न्ने गालिब हो जाए कि पानी नजासत को बहा कर ले गया होगा तब भी पाक हो जाएगा। कारपेट पर बच्चा पेशाब कर दे तो उस जगह पर पानी के छींटे मार देने ! से वोह पाक नहीं होता। याद रहे ! एक दिन के बच्चे या बच्ची का पेशाब भी नापाक होता है। (तफ्सीली मालूमात के लिये मकतबतुल मदीना की मत्बूआ बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफ़हा 118 ता 127 का ! मुतालआ फ़रमा लीजिये)।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 108
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-106)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
*"बिस्मिल्लाह" के सात हुरूफ़ की निस्बत से नमाज़ के 7 फ़राइज़ :*
*(6) क़ादए अख़ीरह :* यानी नमाज़ की रक्अतें पूरी करने के बाद? इतनी देर तक बैठना कि पूरी तशहुद (यानी पूरी अत्तहिय्यात) रसूलुहू ! तक पढ़ ली जाए फ़र्ज़ है। चार रक्अत वाले फ़र्ज़ में चौथी रक्अत के बाद कादह न किया तो जब तक पांचवीं का सज्दा न किया हो बैठ जाए और अगर पांचवीं का सज्दा कर लिया या फ़ज्र में दूसरी पर नहीं बैठी तीसरी का सजदा कर लिया या मगरिब में ! तीसरी पर न बैठी और चौथी का सज्दा कर लिया इन सब सूरतों में फ़र्ज़ बातिल हो गए। मगरिब के इलावा और नमाज़ों में एक रक्अत मजीद मिला ले।
*(7) खुरूजे बिसुन्इही :* यानी कादए अख़ीरह के बाद सलाम या बातचीत वगैरा कोई ऐसा फेल कस्दन करना जो नमाज़ से बाहर कर दे। मगर सलाम के इलावा कोई फेल कस्दन (यानी इरादतन) पाया गया तो नमाज़ वाजिबुल इआदा होगी। और अगर बिला कस्द (बिला इरादा) कोई इस तरह का फेल पाया गया तो नमाज़ बातिल।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 84
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 109
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-107)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"सय्यि-दतुना सकीना बिन्ते शहन्शाहे करबला" के पच्चीस हुरूफ़ की निस्बत से तकरीबन 25 वाजिबात :
(1) तक्बीरे तहरीमा में लफ़्ज़ اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहना।
(2) फ़र्ज़ों की तीसरी और चौथी रक्अत के इलावा बाक़ी तमाम नमाज़ों की हर रक्अत में अल-हम्द शरीफ़ पढ़ना, सूरत मिलाना या क़ुरआने पाक की एक बड़ी आयत जो छोटी तीन आयतों के बराबर हो या तीन छोटी आयतें पढ़ना।
(3) अल-हम्द शरीफ़ का सूरत से पहले पढ़ना।
(4) अल-हम्द शरीफ़ और सूरत के दरमियान "आमीन" और " بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ" के इलावा कुछ और न पढ़ना।
(5) किराअत के फ़ौरन बाद रुकूअ करना।
(6) एक सज्दे के बाद बित्तरतीब दूसरा सज्दा करना।
(7) तादीले अरक़ान यानी रुकूअ, सुजूद, कौमा और जल्सा में कम अज़ कम एक बार "سُبْحٰانَ اللّٰه" कहने की मिक्दार ठहरना।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 109
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-108)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"सय्यि-दतुना सकीना बिन्ते शहन्शाहे करबला" के पच्चीस हुरूफ़ की निस्बत से तकरीबन 25 वाजिबात :
(8) क़ौमा यानी रुकूअ से सीधी खड़ी होना (बाज़ इस्लामी बहनें कमर सीधी नहीं करतीं इस तरह उन का वाजिब छूट जाता है।
(9) जल्सा यानी दो सज्दों के दरमियान सीधी बैठना (बाज़ इस्लामी बहनें जल्द बाज़ी की वजह से बराबर सीधे बैठने से पहले ही दूसरे सज्दे में चली जाती हैं इस तरह उन का वाजिब तर्क हो जाता है चाहे कितनी ही जल्दी हो सीधा बैठना लाजिमी है वरना नमाज़ मकरुहे तहरीमी वाजिबुल इआदा होगी।
(10) क़ादए ऊला वाजिब है अगर्चे नमाज़े नफ़्ल हो (नफ़्ल में चार या इस से ज़ियादा रक्अतें एक सलाम के साथ पढ़ना चाहें। तब हर दो दो रक्अत के बाद क़ादा करना फ़र्ज़ है और हर क़ादा "क़ादए अख़ीरह" है अगर क़ादा न किया और भूल कर खड़ी हो गई तो जब तक उस रक्अत का सज्दा न कर लें लौट आएं और सज्दए सह्व करें)।
(11) अगर नफ़्ल की तीसरी रक्अत का सज्दा कर लिया तो चार पूरी कर के सज्दए सह्व करे। सज्दए सह्व इस लिये वाजिब हुवा कि अगर्चे नफ़्ल में हर दो रक्अत के बाद क़ादा फ़र्ज़ है मगर तीसरी या पांचवीं (इस पर कियास करते हुए) रक्अत का सज्दा करने के बाद क़ादाए ऊला फ़र्ज़ के बजाए वाजिब हो गया।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 110
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-109)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"सय्यि-दतुना सकीना बिन्ते शहन्शाहे करबला" के पच्चीस हुरूफ़ की निस्बत से तकरीबन 25 वाजिबात :
(12) फ़र्ज़, वित्र और सुन्नते मुअक्कदा में तशहुद (यानी अत्तहिय्यात) के बाद कुछ न बढ़ाना।
(13) दोनों क़ादों में “तशहुद" मुकम्मल पढ़ना। अगर एक लफ़्ज़ भी छूटा तो वाजिब तर्क हो जाएगा और सज्दए सह्व वाजिब होगा।
(14) फ़र्ज़ , वित्र और सुन्नते मुअक्कदा के क़ादए ऊला में ! तशहहुद के बाद अगर बे ख़याली में " اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ " या " اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی سَیِّدِنَا " कह लिया तो सज्दए सह्व वाजिब हो गया और अगर जानबूझ कर कहा तो नमाज़ लौटाना वाजिब है।
(15) दोनों तरफ़ सलाम फेरते वक़्त लफ़्ज़ : " اَلسَّلَامُٗ " कहना दोनों बार वाजिब है। लफ़्ज़ "عَلَیْکُم" वाजिब नहीं बल्कि सुन्नत है।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 111
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-110)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"सय्यि-दतुना सकीना बिन्ते शहन्शाहे करबला" के पच्चीस हुरूफ़ की निस्बत से तकरीबन 25 वाजिबात :
(16) वित्र में तक्बीरे क़ुनूत कहना।
(17) वित्र में दुआए क़ुनूत पढ़ना।
(18) हर फ़र्ज़ व वाजिब का उस की जगह होना।
(19) रुकूअ हर रक्अत में एक ही बार करना
(20) सज्दा हर रक्अत में दो ही बार करना
(21) दूसरी रक्अत से पहले क़ादा न करना
(22) चार रक्अत वाली नमाज़ में तीसरी रक्अत पर क़ादा न करना
(23) आयते सज्दा पढ़ी हो तो सज्दए तिलावत करना
(24) सज्दए सह्व वाजिब हुवा हो तो सज्दए सह्व करना
(25) दो फ़र्ज़ या दो वाजिब या फ़र्ज़ व वाजिब के दरमियान तीन तस्बीह की क़दर (यानी तीन बार " سُبْحٰانَ اللّٰه " कहने की मिक्दार) वक्फा न होना।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 85-87
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 111
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-111)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"उम्मे हानी" के छ हुरूफ़ की निस्बत से तक्बीरे तहरीमा की 6 सुन्नतें :
(1) तक्बीरे तहरीमा के लिये हाथ उठाना।
(2) हाथों की उंग्लियां अपने हाल पर (Normal) छोडना, यानी न बिल्कुल मिलाइये न इन में तनाव पैदा कीजिये।
(3) हथेलियों और उंग्लियों का पेट क़िब्ला रू होना।
(4) तक्बीर के वक़्त सर न झुकाना।
(5) तक्बीर शुरूअ करने से पहले ही दोनों हाथ कन्धों तक उठा लेना।
(6) तक्बीर के फ़ौरन बाद हाथ बांध लेना सुन्नत है (तक्बीरे ऊला के बाद फ़ौरन बांध लेने के बजाए हाथ लटका देना या कोहनियां पीछे की तरफ झुलाना, सुन्नत से हट कर है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़श 88-90
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 112
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-112)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"ख़दीजतुल क़ुब्रा" के ग्यारह हुरूफ़ की निस्बत से क़ियाम की 11 सुन्नतें :
(1) उल्टी हथेली सीने पर छाती के नीचे रख कर उस के ऊपर सीधी हथेली रखिये।
(2) पहले सना
(3) फिर तअव्वुज़ यानी اَعُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْم पढ़ना
(4) फिर तस्मिया यानी بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ पढ़ना
(5) इन तीनों को एक दूसरे के फ़ौरन बाद कहना
(6) इन सब को आहिस्ता पढ़ना
(7) आमीन कहना
(8) इस को भी आहिस्ता कहना
(9) तक्बीरे ऊला के फ़ौरन बाद सना पढ़ना
(10) तअव्वुज़ सिर्फ़ पहली रक्अत में है और।
(11) तस्मिया हर रक्अत के शुरू में सुन्नत है।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 90- 91
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 112
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-113)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"मुहम्मद" के चार हुरूफ़ की निस्बत से रुकूअ की 4 सुन्नतें :
(1) रुकूअ के लिये اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहना।
(2) इस्लामी बहन के लिये रुकूअ में घुटनों पर हाथ रखना और उंग्लियां कुशादा न करना सुन्नत है।
(3) रुकूअ में थोड़ा झुके यानी सिर्फ़ इतना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाएं पीठ सीधी न करे। और घुटनों पर जोर न दे फ़क़त हाथ रख दे और हाथों की उंग्लियां मिली हुई रखे और पाउं झुके हुए रखे इस्लामी भाइयों की तरह खूब सीधे न कर दे।
(4) बेहतर येह है कि जब रुकू के लिये झुकना शुरूअ करे اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहती हुई रुकूअ को जाए और ख़त्मे रुकूअ पर तक्बीर ख़त्म करे (اَیضاً) इस मसाफ़त (यानी क़ियाम से रुकूअ में पहुंचने के फ़ासिले) को पूरा करने के लिये अल्लाह की " ل " को बढ़ाए अक्बर की " ب " वगैरा किसी हर्फ़ को न बढ़ाए।
अगर आल्लाहु या आक्बर या अक्बार कहा तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी। रुकूअ में तीन बार سُبْحٰنَ رَبِّیَ الْعَظِیْمِ कहना।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 93
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 113
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-114)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"सुन्नत" के तीन हुरूफ़ की निस्बत से क़ौमा की 3 सुन्नतें :
(1) रुकूअ से जब उठे तो हाथ लटका दीजिये।
(2) रुकूअ से उठने में سَمِعَ اللّٰهُ لِمَنْ حَمِدَہٗ और सीधे खड़े हो जाने के बाद رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ कहना।
(3) मुन्फ़रिद (यानी तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले) के लिये दोनों कहना सुन्नत है। رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ कहने से भी सुन्नत अदा हो जाती है मगर رَبَّنَا के बाद وَ होना बेहतर है اَللّٰھُمَّ होना इस से बेहतर, और दोनों होना और ज़ियादा बेहतर है यानी اَللّٰھُمَّ رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ कहिये।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 114
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-115)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"या फ़ातिमा बिन्ते रसूलुल्लाह" के अठारह हुरूफ़ की निस्बत से सज्दे की 18 सुन्नतें :
(1) सज्दे में जाने के लिये और (2) सज्दे से उठने के लिये اَللّٰهُ اَکْبَرُ कहना। (3) सज्दे में कम अज़ कम तीन बार سُبْحٰنَ ربِّیَ الْاَعْلٰی कहना (4) सज्दे में हाथ ज़मीन पर रखना (5) हाथों की उंग्लियां मिली हुई क़िब्ला रुख रखना
(6) सिमट कर सज्दा करना यानी बाजू करवटों से (7) पेट रानों से (8) राने पिंडलियों से और (9) पिंडलियां जमीन से मिला देना (10) सज्दे में जाएं तो ज़मीन पर पहले घुटने फिर (11) हाथ फिर (12) नाक ,फिर (13) पेशानी रखना
(14) जब सज्दे से उठे तो इस का उलट करना यानी (15) पहले पेशानी ,फिर (16) नाक, फिर (17) हाथ , फिर (18) घुटने उठाना।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 96-98
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 114
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इस्लामी बहनों की नमाज़ (Part-116)
इस्लामी बहनों की नमाज़ का तरीक़ा :
"जैनब" के चार हुरूफ की निस्बत से जल्से की 4 सुन्नतें :
(1) दोनों सज्दों के बीच में बैठना। इसे जल्सा कहते हैं (2) दूसरी रक्अत के सज्दों से फ़ारिग हो कर दोनों पाउं सीधी जानिब निकाल देना और (3) उल्टी सुरीन पर बैठना (4) दोनों हाथ रानों पर रखना।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफ़ह 98 )
"हक़" के दो हुरूफ़ की निस्बत से दूसरी रक्अत के लिये उठने की 2 सुन्नतें :
(1) जब दोनों सज्दे कर लें तो दूसरी रक्अत के लिये पन्जों के बल, (2) घुटनों पर हाथ रख कर खड़ा होना सुन्नत है। हां कमज़ोरी या पाउं में तकलीफ़ वगैरा मजबूरी की वज्ह से ज़मीन पर हाथ रख कर खड़े होने में हरज नहीं।
📙 इस्लामी बहनों की नमाज़ सफ़ह 115
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