सलीक ए ज़िन्दगी (Part -1)
आईये पहले निकाह के फज़ाइल जानें :
हज़रत मआज़ बिन जबल रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है साहिबे निकाह की नमाज़ बिला निकाह वाले की नमाज़ से चालीस या सत्तर दरजा ज़्यादा अफज़ल है।
नुज़हतुल मजालिस जिल्द 2 पेज 48
कूव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 464
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो गुरबत के सबब निकाह न करे वह हम में से नहीं। नीज़ अल्लाह तआला फ़रिश्तों को हुक्म फ़रमाता है कि उसकी पैशानी पर लिख दो कि ऐ सुन्नते रसूल के छोड़ने वाले तुझे किल्लते रिज़क की बशारत हो।
नुज़हतुल मजालिसजिल्द 2 पेज 48
हज़रत जाबिर रदियल्लाह तआला अन्ह से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से कोई निकाह करता है तो शैतान कहता है हाय अफसोस इब्ने आदम ने मुझ से अपना दो तिहाई दीन बचा लिया।
इस्लाम में पर्दा सफ़ह - 521
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -2)
आईये पहले निकाह के फज़ाइल जानें :
हज़रत मआज़ बिन जबल रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है साहिबे निकाह की नमाज़ बिला निकाह वाले की नमाज़ से चालीस या सत्तर दरजा ज़्यादा अफज़ल है।
नुज़हतुल मजालिस जिल्द 2 पेज 48
कूव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 464
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो गुरबत के सबब निकाह न करे वह हम में से नहीं। नीज़ अल्लाह तआला फ़रिश्तों को हुक्म फ़रमाता है कि उसकी पैशानी पर लिख दो कि ऐ सुन्नते रसूल के छोड़ने वाले तुझे किल्लते रिज़क की बशारत हो।
नुज़हतुल मजालिसजिल्द 2 पेज 48
हज़रत जाबिर रदियल्लाह तआला अन्ह से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से कोई निकाह करता है तो शैतान कहता है हाय अफसोस इब्ने आदम ने मुझ से अपना दो तिहाई दीन बचा लिया।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -3)
निकाह के फवाइद :
शरीअते इस्लामिया में निकाह के जरीये मर्द व औरत के दरमियान एक दीनी व मज़हबी लगाव और एक मखसूस कल्बी तअल्लुक पैदा होता है। उनके दरमियान उलफ़त व यगांगत और उखुव्वतो महब्बत का माहौल पैदा होता है। दो अजनबी अफराद के दरमियान अजनबीयत ख़त्म होकर उखुव्वतो महब्बत का एक पाकीज़ा रिश्ता पैदा होता है और यह रिश्ता महज़ नफ़सानी और जिन्सी ख्वाहिशात की तकमील का ज़रिया नहीं होता बल्कि इससे मकसूदे असली यह है कि मर्दो औरत के हम - रिश्ता होने से एक कामिल और खुशगवार ज़िन्दगी वजूद में आये और नस्ले इन्सानी का सिलसिला आगे बढ़े।
इसलिए रब्बे कायनात ने नौए इन्सान ही से उस का जोड़ा बनाया ताकि दोनों में उलफ़तो महब्बत कायम रहे और तख्खलीके इन्सानी का सिलसिला दस्तूर के मुताबिक जारी रहे और नस्ले इन्सानी फलती फूलती रहे। और इन्सान दरिन्दों की तरह ज़िन्दगी न गुज़ार कर फ़रिश्ता सिफ़त बन जाये और अपने हम - जिन्स से मिलकर तस्कीने कल्ब हासिल करे। निकाह मर्द के लिए सुकूने कल्ब और गुनाहों से बचने का अज़ीम ज़रिया है। निकाह से इन्सान हज़ारों गुनाहों से बच जाता है बिलखुसूस ज़िना से महफूज़ रहता है इसी वजह से निकाह को निस्फे ईमान भी कहा गया है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -4)
निकाह के फवाइद :
अल क़ुरआन :- अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है और उसकी निशानियों से है कि तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स से जोड़े बनाये कि उनसे आराम पाओ और तुम्हारे आपस में महब्बत और रहमत रखी। (सूरह रुम)
रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया ऐ जवानो ! तुम में से जो कोई निकाह की इस्तिताअत रखता है वह ज़रूर निकाह करे कि यह अजनबी औरत की तरफ़ नज़र करने से निगाह को रोकने वाला है और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करने वाला है और जिसमें निकाह की ताकत न हो वह रोज़ा रखे क्योंकि यह शहवत को कम करता है।
बुख़ारी शरीफ़ जिल्द 2 पेज 758
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया बन्दे ने जब निकाह कर लिया तो आधा दीन मुकम्मल कर लिया, अब बाकी आधे के लिए अल्लाह से डरे।
मिश्कात शरीफ जिल्द 2 सफ़ह - 268
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part - 5)
निकाह के फवाइद :
हज़रत जाबिर से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया औरत आती है शैतान की सूरत में और जाती भी है शैतान की सूरत में, जब तुमको कोई औरत अच्छी लगे और उसका ख्याल दिल में बैठ जाये तो चाहिए कि फ़ौरन अपनी बीवी के पास जाये और उससे महब्बत करे क्योंकि यह महब्बत उसकी ख्वाहिशे नफ़्सानी को दूर कर देगी।
📕 मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 पेज 449-450
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब किसी को कोई औरत अच्छी मालूम हो तो चाहिये कि अपने घर जाये और अपनी बीवी के साथ कुरबत करे क्योंकि इस बात में सब औरतें बराबर है।
मिश्कात शरीफ़ जिल्द 2 पेज 269
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मर्दो औरत के दरमियान जो निकाह के ज़रिये महब्बत पैदा होती है, ऐसी कोई महब्बत देखने में नहीं आती यानी जो बाहमी महब्बत व उलफत निकाह से पैदा होती है उसकी कोई नज़ीर नहीं मिलती।
इब्ने माजा सफ़ह - 133
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -6)
हज़रत इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाहि अलैहि ने निकाह के बारे में बहुत से फवाइद तहरीर किये हैं, उनमें से बअज़ लिखे जाते हैं
औलाद का हासिल होना, नेक औलाद इन्सान के लिए सदकए जारिया है।
आदमी अपने दीन की हिफ़ाज़त करता है और शहवते नफ़्सानी जो शैतान का हथियार है, अपने से दूर करता है। इसलिए हुजूर सरवरे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसने निकाह किया उसने अपने निस्फ़ दीन की हिफाज़त कर ली और जो शख्स निकाह नहीं करता गो फ़र्ज (शर्मगाह) को बचा ले लेकिन आंख को बद निगाही और दिल को वसवसे से नहीं बचा सकता।
निकाह की वजह से औरतों से उन्सियतो महब्बत होती है, उनके साथ मज़ाहो दिल लगी करने से दिल को राहत होती है और इस आसाईश के ज़रिये शोके इबादत ताज़ा होता है क्योंकि हमेशा इबादत में रहना उदासी लाता है।
औरत घर की गम ख्वारी करती है, खाना पकाने, बर्तन धोने, झाडू देने की ख़िदमत अन्जाम देती है। अगर मर्द ऐसे कामों में मशगूल होगा तो इल्मो अमल और इबादत से महरूम रहेगा। इसलिए दीन की राह में औरत अपने शौहर की यारो मददगार होती है।
📙 कीमिया ए सआदत सफ़ह - 255
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -7)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया निकाह मेरी सुन्नत है जो मेरी सुन्नत पर अमल न करे वह मेरे तरीके पर नहीं।
इब्ने माजा, पेज 133
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो शख्स अल्लाह तआला के हुजूर तय्यबो ताहिर (पाक - साफ़) जाना चाहता है तो उसे चाहिये कि आज़ाद औरतों से निकाह करे।
इब्ने माजा, पेज 134
निकाह करना सुन्नते अम्बिया है। जितने अम्बिया ए किराम दुनिया में जलवागर हुए, सभी ने शादियां की, हत्ता कि हज़रत यहया अलैहिस्सलाम के बारे में भी है कि आपने शादी तो की लेकिन किसी वजह से (जिमाअ) हमबिस्तरी न किया इसी तरह हजरत ईसा अलैहिस्सलाम भी जब आसमान से नुजूल फ़रमायेंगे तो आप शादी करेंगे और आपकी औलाद भी होगी।
तिरमिज़ी शरीफ जिल्द 1 पेज 128
रूहुल बयान जिल्द 1 पेज 73
निकाह और उसके हुकूक अदा करने और औलाद की तरबियत में मशगूल रहना नवाफ़िल में मशगूल होने से बेहतर है।
बहारे शरीअत हिस्सा 7 सफ़ह - 5
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -8)
मर्द के लिए बअज़ सूरतों में निकाह करना फर्ज़ और बअज सूरतों में वाजिब हो जाता है। मसलन जो आदमी दैन महर और औरत क खर्चा देने पर कुदरत रखता है और उसे यकीन है कि निकाह न करने की सूरत में ज़िना वाके हो जायगा तो उस पर निकाह करना फर्ज है। इसी तरह जो दैन महर और खर्चा देने की कुदरत रखता है और उसे शहवत का इतना गब्बा हो कि निकाह न करने की सूरत में ज़िना का अन्देशा है तो उस पर निकाह करना वाजिब है।
अगर ऐतिदाल (दरमियान) की हालत हो तो निकाह करना सुन्नते मुअक्कदा है कि निकाह न करने पर मुसिर रहना इसाअत है। अगर आदमी हराम से बचने या इत्तिबाए सुन्नत या औलाद हासिल करने की नियत से निकाह कर लेगा तो सवाब भी पायेगा। जो शख्स महज़ लज्जत या क़ज़ाये शहवत की नियत से शादी कर ले तो उसके लिये निकाह करना मुबाह है। जिस आदमी को यह यकीन हो कि निकाह कर लेगा तो नानो नफका न दे सकेगा या जो ज़रूरी हुकूक हैं उनको पुरा न कर सकेगा तो उसके लिए निकाह करना हराम है और जिनको इन बातों का अन्देशा हो तो उनके लिए निकाह करना मकरूह है।
खुलासा यह है कि बअज़ सूरतों में निकाह करना सुन्नत और बअज़ सूरतों में फर्ज़ है। न हर सूरत में निकाह करना सुन्नत है और न हर सूरत में फर्ज़ है।
📙 फ़तावा रिज्विया जिल्द 5, पेज 581
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -9)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया महब्बत करने वाली, ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाली औरतों से शादी करो क्योंकि मैं तुम्हारी वजह से उम्मतों पर फख्र करूंगा।
मिश्कात शरीफ़ जिल्द 2 पेज 267
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया और न उनसे निकाह करो उनके माल की वजह से कि अनकरीब उनके माल उनको सरकश बना देंगे लेकिन उनसे दीनदारी की वजह से निकाह करो और ज़रूर काली कलूटी, नाक कटी अफ़ज़ल होती है दूसरी खूबसूरत गैर दीनदार औरतों से।
इब्ने माजा पेज 133
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -10)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया औरतों से महज़ उनके हुस्न की वजह से शादी न करो इसलिए कि जल्द ही उनका हुस्न उनको बर्बाद कर देगा।
इब्ने माजा पेज 133
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मोमिन के लिए तकवे के बाद नेक बीवी से बढ़कर कोई चीज़ नहीं कि शौहर उससे जो कहे वह उसकी फरमाबरदारी करे। जब शौहर उसकी तरफ़ देखे तो वह उसको खुश कर दे और अगर शौहर किसी बात पर कसम खाये तो वह उसको पूरी करे और अगर शौहर गायब हो तो उसकी गैर मौजूदगी में अपनी ज़ात और शौहर के माल में खैर ख्वाही करे।
इब्ने माजा पेज - 133
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -11)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
साहिबे रददुल मोहतार फरमाते हैं कुंवारी औरत से और जिससे ज़्यादा औलाद होने की उम्मीद हो, उससे निकाह करना बेहतर है। सन रसीदा (बड़ी उम्र वाली) और बद खुल्क (बुरे अखलाक वाली) और ज़ानिया से निकाह न करना बेहतर है।
रद्दुल मोहतार जिल्द 2, पेज 269
साहिबे गुनिय्या फरमाते हैं निकाह के लिए ऐसी औरत का इन्तिख़ाब करे जो आली नसब हो और ऐसी औरतों में से हो जो कसीरून्नस्ल मशहूर है।
गुनिय्या पेज 111
आला हज़रत फरमाते हैं रज़ील कौम से निकाह न करे कि बुरी रग ज़रूर रंग लाती है। दीनदार लोगों में शादी करे कि बच्चे पर नाना, मामू की आदतों और हरकतों का भी असर पड़ता है।
फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 46
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -12)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
इमाम गज़ाली फरमाते हैं औरत अच्छे नसब वाली शरीफुन्नफ़्स हो यानी ऐसे ख़ानदान से तअल्लुक रखती हो जिसमें दयानत और नेक बख़ती पाई जाये क्योंकि ऐसे खानदान की औरत अपनी औलाद की तालीमो तरबियत का एहतिमाम करती है।
अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 42
इमाम गज़ाली फरमाते हैं अगर कोई शख्स किसी ऐसी लड़की से निकाह करे जो अपने साथ खूब मालो दौलत लेकर आये और हसीनो जमील भी हो लेकिन दीनदार न हो तो आप उनके साथ अच्छी और खुशहाली की ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकते। ऐसी औरत से हमेशा घर में झगड़ा और खाना जंगी का माहौल रहता है। नतीजतन मां - बाप से अलैहदा होना पड़ता है। इसलिए जहां आप खूबसूरती और मालो दौलत को देखते हैं, वहीं लड़की का तहज़ीबो तमदुन, अख़लाको किरदार और ख़ानदान को ज़रूर देखिए। तब ही आप एक कामयाब ज़िन्दगी गुज़ार सकते हैं।
इसलिए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जो कोई हुस्नो जमाल या मालो दौलत की ख़ातिर किसी औरत से निकाह करेगा तो दोनों से महरूम रहेगा और दीन के लिए निकाह करेगा तो दोनों मकसद पूरे होंगे।
कीमिया ए सआदत पेज - 260
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -13)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
इमाम गज़ाली फ़रमाते हैं कि निकाह करने में औरतो में मुन्दरिजा जेल (निम्नलिखित) सिफ़ात देखनी चाहिएं :
❶ औरत पारसा और दीनदार हो।
❷ उसकी आदत और मिज़ाज अच्छे हों, खुश खुल्क और हंस मुख हो क्योंकि बद मिज़ाज औरत नाशुक्री और ज़बान दराज़ होती है और बात - बात पर झगड़ा करती और बुरा भला कहना शुरू कर देती है।
❸ औरत खूबसूरत और हसीन हो क्योंकि जितनी हसीन होगी, मर्द को उतनी ही उसके साथ महब्बतो उलफत होगी।
❹ मेहर कम हो क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया औरतों में वह औरत बहुत अच्छी है जिसका मेहर कम हो।
❺ औरत बांझ न हो क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया पुराना बोरिया जो घर के कोने में पड़ा हुआ हो वह बांझ औरत से ज़्यादा बेहतर है।
❻ औरत नौजवान और कुंवारी हो क्योंकि ऐसी औरत को खाविन्द (शोहर) से ज़्यादा महब्बत होगी।
❼ औरत अच्छे और दीनदार ख़ानदान की हो क्योंकि बद दीन घराने की औरत के अख़लाको आदात और चालो चलन अच्छे नहीं होते।
कीमिया ए सआदत पेज - 260
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -14)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया घूरे की हरयाली से बचो। आप से पूछा गया घूरे की हरयाली क्या है ? आपने फ़रमाया बुरी नस्ल में खूबसूरत औरत से।
अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 42
कभी ऐसा होता है कि औरत खूबसूरत तो होती है मगर परहेज़गार व पारसा नहीं होती! बद मिज़ाज, ना शुक्रगुज़ार, ज़बान दराज़ होती है और मर्द पर बेवजह हुकूमत करती है। ऐसी औरत के साथ ज़िन्दगी गुज़ारना बद मज़ा और तल्ख होकर रह जाती है और साथ ही साथ दीन में भी खलल पड़ जाता है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अच्छी नस्ल में शादी करो कि रगे खुफ़या अपना काम करती हैं।
अहया उल उलुम जिल्द 2, पेज 42
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -15)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
हज़रत अबु हुरैरह रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया चार वज्हों से औरतों से निकाह किया जाता है : (1) मालदारी, (2) शराफ़ते खानदान, (3) खूबसूरती, (4) दीनदारी
लेकिन तुम दीनदार औरत को इख़्तियार करो यानी आमतौर पर लोग औरत के मालो जमाल और ख़ानदान पर नज़र रखते हैं। इन ही चीज़ों को देखकर शादी करते हैं मगर तुम दीनदारी औरत की तमाम चीज़ो से पहले देखो।
इस हदीस से मालूम हुआ कि दीनदार औरत से शादी करना बेहतर है, दीनदार औरत शौहर की फ़रमांबरदार और ख़िदमतगार होती है, थोड़ी रोज़ी पर कनाअत कर लेती है, शौहर की ऐब जोई नहीं करती है, इसके बरखिलाफ दीन से दूर औरतें नाशुक्रगुज़ार, नाफरमान और शौहर की दूसरों के सामने बुराई बयान करने वाली होती हैं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -16)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
इमाम ग़ज़ाली फरमाते है औरत की तलब दीन के लिए ही करनी चाहिए, जमाल के लिए नहीं। इसका मतलब यह है कि सिर्फ खूबसूरती के लिए निकाह न करे न यह कि खूबसूरती ढूंडे ही नहीं। अगर निकाह करने से सिर्फ औलाद हासिल करना और सुन्नते नबवी पर अमल करना ही किसी शख्स का मकसद है, खूबसूरती नहीं चाहता तो यह परहेज़गारी है।
कीमिया ए सआदत पेज 260
फ़ासिक आदमी मुत्तकी की लड़की का कुफू नहीं अगरचे वह लड़की खुद मुत्तकिया न हो। लिहाज़ा सुन्नी औरत का कुफू वह बद मज़हब नहीं हो सकता जिसकी बद मज़हबी अगरचे हद्दे कुफ्र तक न पहुँची हो और बद मज़हब ऐसे हों कि उनकी बद मज़हबी हद्दे कुफ्र तक पहुँच चुकी हो तो उनसे निकाह नहीं हो सकता कि वे मुसलमान ही नहीं, कुफू होना तो बड़ी बात है। जैसे आजकल के देवबन्दी, वहाबी, राफ़ज़ी वगैरह।
बहारे शरीअत हिस्सा 7 पेज 46
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -17)
किन औरतों से निकाह करना बेहतर है.!?
सुन्नी मर्द या औरत का राफ़ज़ी, वहाबी, देवबन्दी, कादयानी, नेचरी, चकड़ालवी वगैरह जितने मुरतदीन हैं, उनके मर्द औरत में से किसी से निकाह नहीं होगा। अगर निकाह किया तो निकाह बातिल होगा, उनसे हमबिस्तरी ख़ालिस ज़िना होगा और औलाद वलदुज्जिना होगी।
अलमलफूज़ हिस्सा 2, पेज 107
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब तुम्हारे पास किसी दीनदार बाअख़लाक़ लड़के का रिश्ता आये तो तुम उस रिश्ते को कबूल कर लो वरना ज़मीन में फ़ितने और बड़े-बड़े फ़साद ज़ाहिर होंगे यानी अगर ऐसे आदमी से निकाह न करोगे बल्कि मालदार जगह तलाश करोगे तो ऐसी सूरत में बहुत सी लड़कियां और बहुत से लड़के बिला शादी के रह जायेंगे जिसके बाइस दुनिया में ज़िना की कसरत हो जायेगी।
तिर्मिज़ी शरीफ़ जिल्द 1,पेज 126
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -18)
निकाह का पैगाम :
जब किसी लड़की या औरत से शादी करने का इरादा हो तो उसे शादी का पैगाम देने से पहले मालूम कर लेना बेहतर है कि उसके लिये किसी और शख्स ने पहले से पैगाम तो नहीं दिया है या किसी से रिश्ते की बात चीत तो नहीं चल रही है। अगर ऐसा है तो उस लड़की के लिए निकाह का पैग़ाम हरगिज़ न दे। ऐसी हालत में निकाह का पैगाम देना मना है।
हज़रत अबु हुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कोई शख्स अपने इस्लामी भाई के पैगाम पर अपने निकाह का पैगाम न दे। यहां तक कि पहला खुद इरादा तर्क कर दे या उसे पैग़ाम भेजने की इजाज़त दे दे।
बुख़ारी शरीफ़ जिल्द 2 पेज 772
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -19)
शादी से पहले लड़की को देखना.!?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से कोई किसी औरत को निकाह का पैगाम दे तो अगर उसको देखना मुमकिन हो तो देख ले।
अबु दाऊद जिल्द 1 पेज 284
हज़रत मुगीरा बिन शोअबा से मरवी है फ़रमाते हैं, मैंने एक औरत को निकाह का पैगाम दिया मुझ से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया क्या तुमने उसे देख लिया है मैं ने कहा नहीं फ़रमाया उसे देख लो कि देखना तुम्हारी आपस की दाइमी महब्बत का ज़रिया है।
तिर्मिज़ी शरीफ़ जिल्द 1 पेज 129
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -20)
शादी से पहले लड़की को देखना.!?
हज़रत मुहम्मद बिन सल्लमा फ़रमाते हैं कि मैंने एक औरत को निकाह का पैग़ाम दिया, मैं उसे देखने के लिए उसके बाग में छिप का जाया करता था, यहां तक कि मैंने उसे देख लिया। किसी ने आप से कहा आप ऐसा काम क्यों करते हैं ? हालाकि आप हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबी हैं मैंने उसे जवाब दिया कि हमने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इरशाद फ़रमाते सुना है जब अल्लाह तआला किसी के दिल में किसी औरत से निकाह की ख्वाहिश डाले और वह उसे पैगामे निकाह दे तो उसकी जानिब देखने में कोई हरज नहीं।
इब्ने माजा पेज 134
हज़रत आयशा रदियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम मेरी तस्वीर सुर्ख रेशम के कपड़े में लपेट कर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लेकर आये और आपसे फ़रमाया यह आपकी अहलिया हैं दुनिया और आख़िरत में!
तिर्मिज़ी शरीफ़ जिल्द 2 पेज 226
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -21)
शादी से पहले लड़की को देखना.!?
जिस औरत से निकाह करने का इरादा हो तो पैगाम डालने से कब्ल उसको देख लेना मुसतहब है क्योंकि देखने के बाद अगर दिल को भा गई तो निकाह के बाद महब्बत ज़्यादा होगी।
हज़रत इमाम गज़ाली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं औरत का जमाल महब्बतो उलफ़त का ज़रिया है। इसलिये निकाह करने से पहले औरत को देख लेना सुन्नत है। बुजुर्गों का कौल है कि औरत को देखे बगैर जो निकाह होता है उसका अन्जाम परेशानी और गम है।
कीमिया ए सआदत पेज 260
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -22)
शादी से पहले लड़की को देखना.!?
साहिबे गुनिय्या फरमाते है मुनासिब है कि निकाह से पहले औरत का चेहरा और ज़ाहिरी बदन यानी हाथ मुंह वगैरह देख ले ताकि बाद में नफरत या तलाक की नौबत न आये।
📕 गुनिय्यतुत्तालिबीन सफ़ह 112
मर्द का अजनबीया औरत की तरफ बिला ज़रूरत नज़र करना जाइज़ नहीं लेकिन उस औरत से निकाह करने का इरादा है तो इस नियत से देखना जाइज़ है। हदीस शरीफ में है जिस औरत से निकाह करना चाहे उसको देख ले कि यह बकाये महब्बत का ज़रिया है। इसी तरह औरत उस मर्द को देख सकती है जिसने उसके पास निकाह का पैगाम भेजा हो।
रद्दुल मोहतार जिल्द 5, पेज 258
बहारे शरीअत हिस्सा 16 पेज 79
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -23)
निकाह के औकात.!?
जुमेरात या जुमा को निकाह करना मुस्तहब है। सुबह के बजाये शाम के वक़्त यानी बादे असर करना औला व अफ़ज़ल है। जुमे के दिन निकाह करना बाइसे बरकत है। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रत हव्वा से, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रत जुलैख़ा से, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का निकाह सफूरा से, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम का निकाह बिलकीस से और हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का निकाह हज़रत ख़दीजतुल कुबरा व हज़रत आयशा सिददीका रदियअल्लाहु अन्हा से जुमे के दिन हुआ।
तफसीरे नईमी पारा 11 पेज 171
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -24)
किन औरतों से निकाह करना मना है.!?
कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है हराम हुई तुम पर तुम्हारी माऐं और बेटियां और बहनें और फूफियां और ख़ालाऐं और भतीजियां और भांजियां और तुम्हारी माएं जिन्होनें दूध पिलाया और दूध की बहनें और औरतों की माऐं।
सूरह अल - निसा
इस आयते करीमा से मालूम हुआ कि मां, बेटी, बहन, फूफी, खाला, भतीजी, भांजी , रज़ाई माँ, रज़ाई बहन, सास वगैरह से निकाह हराम है।
मां सगी हो या सौतेली, बहन सगी हो या सौतेली, बेटी, पोती, नवासी, नानी, दादी ख़्वाह कितनी पुश्तों का फ़ासिला हो। इन सब से निकाह हराम है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -25)
किन औरतों से निकाह करना मना है.!?
फूफी, फूफी की फूफी, खाला, ख़ाला की ख़ाला, भतीजी, भान्जी और भान्जी की लड़की या उसकी पोती, नवासी भी मुहरमात में दाख़िल हैं। इन सब से भी निकाह हराम है।
ज़िना से पैदा हुई बेटी, पोती, बहन, भतीजी, भान्जी भी मुहरमात में दाख़िल हैं। इन से भी निकाह हराम है।
बहारे शरीअत हिस्सा 7 पेज 18
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तहकीक कि रज़ाअत यानी दूध के रिश्तों से भी वही हराम हो जाते हैं जो विलादत से हराम होते हैं।
मुस्लिम शरीफ़, जिल्द 1, पेज 466
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -26)
किन औरतों से निकाह करना मना है.!?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया दूध के रिश्तों से वही हराम हो जाते हैं जो नसब से हराम होते हैं।
इब्ने माजा, पेज 138
यानी किसी बच्चे ने अगर किसी औरत का दूध पिया तो वह और उस बच्चे की मां हो जायेगी और उसका शौहर जिस से औरत का दुध उतरा, दूध पीने वाले बच्चे का बाप हो जायेगा और उस औरत की तमाम औलादें उसके भाई बहन हो जायेंगे और उन से निकाह हराम हो जायेगा जैसा कि नसब में हराम है।
बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 30
*⚠️ नोट :-* बच्चे के दूध पीने का ज़माना दो साल तक है जो ख्वाह अपनी मां का पिये या दाई का। दो साल के बाद दूध का पिलाना हराम है लेकिन निकाह हराम होने के लिए ढाई साल का ज़माना है यानी अगर कोई अजनबिया औरत किसी पराये बच्चे को ढाई साल के अन्दर दूध पिलायेगी तो हुरमते रज़ाअत साबित हो जायेगी और अगर इसके बाद पिलायेगी तो हुरमते निकाह साबित नहीं होगी, अगरचे पिलाना हराम है।
बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 29
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -27)
किन औरतों से निकाह करना मना है.!?
ज़ौजा - ए - मौतू की लड़कियाँ, जौजा की मां, दादीयां, नानियां, बाप, दादा वगैरह उसूल की बेटियां, बेटे, पोते वगैरहहुमा फुरूअ की बीबियां, इनसे निकाह हराम है।
जिस औरत से ज़िना किया उसकी मां और लड़कियां उस पर हराम हैं। यूंही वह ज़ानिया औरत उस शख्स के बाप दादा और बेटों पर हराम है। उनसे निकाह नहीं हो सकता। यूंही मर्दो औरत में से किसी ने एक दूसरे को शहवत के साथ छुआ तो उससे हुरमते मुसाहरत साबित हो जायगी यानी औरत की मां और लड़कियां मर्द पर और मर्द के बाप दादा औरत पर हराम हो जायेंगे।
📕हिदाया जिल्द 2 पेज 289
बहारे शरीअत हिस्सा 7 पेज 28
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -28)
किन औरतों से निकाह करना मना है.!?
जिस औरत को ज़िना का हम्ल (गर्भ) है तो ज़ानी व गैर ज़ानी, दोनों से बेवज्ए हम्ल (गर्भपात कराये बगैर) निकाह दुरूस्त है कि ज़िना के पानी की शरीअत में अस्लन कोई हुरमतो इज़्ज़त नहीं, मगर फर्क इतना है कि अगर खुद जानी ही ने निकाह कर लिया तो उससे वती भी जाइज़ है और अगर दूसरे ने निकाह किया तो जब तक वज़ए हम्ल न हो जाये हाथ नहीं लगा सकता।
📗 फ़तावा रज़विया जिल्द 5, पेज 225
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कोई शख्स भतीजी और उसकी फूफी को, भान्जी और उसकी ख़ाला को निकाह में जमा न करे।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भतीजी और फूफी, भांजी और खाला को निकाह में जमा करने से मना फरमाया।
मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 1 पेज 452
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -29)
किन औरतों से निकाह करना मना है.!?
औरत की बहन चाहे सगी हो या रजाई, बीवी की ख़ाला या फूफी चाहे सगी हो या रज़ाई, इन सब से बीवी की मौजूद में निकाह हराम है। यूंही अगर बीवी को तलाक दे दी हो तो जब तक उसका इददत खत्म न हो जाये उसकी बहन, फूफी, ख़ाला वगैरह से निकाह बातिल है।
चार औरतों के निकाह में होते हुए पांचवीं से निकाह बातिल है।
📗 आम्म - ए - कुतुब
हिजड़ा जिसमें मर्द व औरत दोनों की अलामतें (निशानियां) पाई जायें और यह साबित न हो कि मर्द है या औरत, उससे न मर्द का निकाह हो सकता है, न औरत का अगर किया गया तो निकाह बातिल होगा।
मर्द का परी से या औरत का जिन से निकाह नहीं हो सकता।
बहारे शरीअत हिस्सा 7 पेज 5
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -30)
दूल्हा - दुल्हन को सजाना :
शादी ब्याह के मौके पर दूल्हा को आरास्ता करना और उसके सर पर सेहरा सजाना मुबाह है। इसमें कोई हरज नहीं रहा दुल्हन को सजाना, उसको जेवरात से आरास्ता करना और हाथ पांव में मेंहदी लगाना मुस्तहब और कारे सवाब है कि यह औरत के लिए ज़ीनत है।
सरकारे दो जहां सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया औरतों को चाहिए कि हाथ पांव पर मेंहदी लगायें ताकि मर्दो के हाथ से मुशाबह न हों।
एक हदीस पाक में इरशाद हुआ ज़्यादा न हो तो नाखुन ही रंगीन रखे। मर्द के लिए हाथ पांव में बल्कि नाखुन ही में मेंहदी लगाना हराम है।
फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 412
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -31)
दूल्हा - दुल्हन को सजाते वक़्त की दुआ :
दुल्हन को जो औरतें सजायें, उन्हें चाहिए कि वे दुल्हन को दुआएं दें।
उम्मुल मोमेनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जब मेरा निकाह हुआ तो मेरी वालिदा माजिदा मुझे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौलत कदे पर लायीं, वहां अन्सार की कुछ औरतें मौजूद थीं। उन्होंने मुझे सजाया और यह दुआ दी
" على الخير والبركة وعلى خير طائر “
बुख़ारी शरीफ़ जिल्द 2 पेज 775
इसी तरह दूल्हा को सजाते वक़्त उसके दोस्तो अहबाब को चाहिए कि यही दुआ दें।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -32)
दूल्हा - दुल्हन को मुबारकबाद :
शादी होने के बाद दूल्हा को उसके दोस्तो अहबाब और दुल्हन को उसकी सहेलियां मुबारकबाद और बरकत की दुआ दें, यह बेहतर है।
जब कोई शख्स निकाह करता तो हुज़ूर ﷺ उसको मुबारकबाद देते हुए उसके लिए दुआए खैर फ़रमाते।
بارك الله لك وبارك عليك وجمع بينكمافی خیر
*तर्जुमा :* अल्लाह तआला तुम्हें मुबारक करे और तुम पर बरकत नाज़िल करे और तुम दोनों में भलाई रखे।
📕 अबु दाऊद पेज 290
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -33)
रूखसती का बयान :
जब कोई शख्स अपनी लड़की की शादी करे तो रूखसती के वक़्त अपनी लड़की को अपने पास बुलाये। इसके बाद एक प्याले में थोड़ा सा पानी लेकर यह दुआ पढ़कर प्याले में दम करेः
'अल्लाहुम्मा इन्नी उईज़ो बि क व जुर्रियतहा मिनश्शैतानिर्रजीम"
*तर्जमा :* ऐ अल्लाह! मैं इस लड़की को और इसकी होने वाली औलाद को तेरी पनाह में देता हूँ शैतान मरदूद से
फिर उस पानी को दुल्हन के सर और सीने और पीठ पर छींटे मारे, इसके बाद दूल्हा को भी बुलाए और प्याले में दूसरा पानी लेकर यह दुआ पढ़कर दम करे
'अल्लाहुम्मा इन्नी उईजुहू बि क व जुर्रियतहू मिनश्शैतानिर्रजीम"
फिर दुल्हा के सर और सीने और पीठ पर छींटे मारे और इसके बाद रूखसत करे।
📗 हिस्ने हसीन पेज 249
दुल्हन जब सुसराल पहुंचे तो सुसराल वालों को चाहिए कि नई दुल्हन का पांव धोकर पानी को मकान के चारों तरफ़ छिडके कि यह मुस्तहब और बाइसे बरकत है।
फतावा रज़विया जिल्द 1 पेज 455
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -34)
शबे ज़िफाफ के आदाब : जब दूल्हा दुल्हन के पास जाये तो सबसे पहले दूल्हा - दुल्हन दोनों वुजू करें, फिर दो रकअत नमाज़े शुकरान पढ़ें अगर दुल्हन हैज़ की हालत में हो तो नमाज़ न पढ़े लेकिन दूल्हा ज़रूर पढ़े।
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضى الله تعالیٰ عنه फरमाते हैं कि एक शख्स ने उनसे बयान किया कि मैंने एक जवान लड़की से निकाह कर लिया है और मुझे अन्देशा है कि वह मुझे पसन्द नहीं करेगी। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضى الله تعالیٰ عنه ने फ़रमाया महब्बतो उल्फ़त खुदा की तरफ़ से होती है और नफ़रत शैतान की तरफ से। जब तुम अपनी बीवी के पास जाओ तो सबसे पहले उससे कहो कि वह तुम्हारे पीछे दो रकअत नमाज़ पढ़े। इन्शा अल्लाह तुम उसे महब्बत करने वाली और वफ़ा करने वाली पाओगे।
गुनिय्या पेज 115
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -35)
शबे ज़िफाफ की ख़ास दुआ :
नमाज़ अदा करने के बाद दूल्हा अपनी दुल्हन की पैशानी के ऊपर के थोड़े से बालों को अपने सीधे हाथ से नरमी के साथ महब्बत भरे अन्दाज़ में पकड़े और यह दुआ पढ़े
'अल्लाहुम्मा इन्नी असअलु क मिन खैरिहा व खैरि मा जबलतहा अलैहि व अफ़जु बि क मिन शर्रेहा व शर्रे मा जबलतहा अलैहि"
*तर्जुमा :* ऐ अल्लाह! मैं तुझ से इसकी भलाई और इसके आदातो अखलाक की भलाई का सवाल करता हूं और इसके अखलाको आदात के शर से तेरी पनाह चाहता हूं।
*📙 अबू दाऊद शरीफ पेज 293*
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त दो रकअत नमाज़ और इस दुआ को पढ़ने की बरकत से मियां - बीवी के दरमियान इत्तिहादो इत्तेफ़ाक और महब्बत कायम रखेगा और अगर औरत में कोई कमी व बुराई होगी तो उसे दूर फ़रमा कर उसके ज़रिये नेकी फैलायेगा और औरत हमेशा शौहर की खिदमत गुज़ार और फ़रमां बरदार रहेगी।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -36)
शौहर के हुकूक :
अल क़ुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है मर्द अफ़सर हैं औरतों पर।
📕 सूरह अल निसा
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने औफ़ा رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया अगर मैं किसी को हुक्म करता कि गैर खुदा के लिए सजदा करे तो हुक्म देता कि औरत अपने शौहर को सजदा करे। कसम है उसकी जिसके कब्ज़ - ए - कुदरत में मुहम्मद ﷺ की जान है, औरत अपने परवर दिगार का हक़ अदा न करेगी, जब तक शौहर के कुल हक अदा न करे।
📗 इब्ने माजा पेज 133
हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया औरत पर सब आदमियों से ज़्यादा हक उसके शौहर का है और मर्द पर उसकी मां का।
हज़रत मआज बिन जबल رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया औरत मज़ा न पायेगी जब तक कि शौहर का हक अदा न करे।
📕बहारे शरीअत हिस्सा 7 पेज 89-90
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -37)
शौहर के हुकूक :
अल्लाह तआला ने शौहरों को बीवियों पर हाकिम बनाया है और उसे बहुत बड़ी फ़ज़ीलतो बुर्जुगी दी है। इसलिए हर औरत पर फ़र्ज़ है कि वह अपने शौहर का हर हुक्म माने और खुशी बख़ुशी अपने शौहर के हर हुक्म की ताबेदारी करे। याद रखो! शौहर को राजी व खुश रखना बहुत बड़ी इबादत है और शौहर को नाखुश और नाराज़ रखना बहुत बड़ा गुनाह है।
हुज़ूर ﷺ ने यह भी फ़रमाया है कि जिस औरत को मौत ऐसी हालत में आये कि मरते वक़्त उसका शौहर उससे खुश हो तो वह औरत जन्नत में जायेगी और यह भी फ़रमाया है कि जब कोई मर्द अपनी बीवी को अपनी हाजत पूरी करने के लिए बुलाये तो उसे फ़ौरन जाना चाहिए ख़्वाह वह तनूर ही पर क्यों न हो।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -38)
शौहर के हुकूक : दूसरी हदीस में है अगर तुम में से कोई अपनी बीवी को बिस्तर पर बुलाये और वह न आये और उसका शोहर तमाम रात गम और गुस्से में बसर करे तो फ़रिश्ते सुबह तक उस औरत पर लानत भेजते रहते हैं।
📗 तिरमिज़ी जिल्द 1, पेज 138
हदीस शरीफ़ का मतलब यह है कि औरत को चाहिए कितने भी ज़रूरी काम में मशगूल हो शौहर के बुलाने पर सब कामों को छोड़ कर शौहर की ख़िदत में हाज़िर हो जाय।
हज़रत अबु हुरैरह رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो औरत अपने शौहर को उसके काम यानी जिमाअ से रोक देती है, उस पर दो कीरात गुनाह होता है और जो मर्द अपनी औरत की हाजत पूरी नहीं करता उस पर एक कीरात गुनाह होता है।
गुनिय्या पेज 116
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -39)
शौहर के हुकूक :
हज़रत इब्ने उमर رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया शौहर का हक औरत पर यह है कि अपने नफ़्स को उससे न रोके और सिवाय *फ़र्ज़* के किसी दिन उसकी इजाज़त के बगैर रोज़ा न रखे। अगर ऐसा किया यानी बगैर इजाज़त रोज़ा रख लिया तो गुनाहगार होगी और उसकी इजाज़त के बगैर औरत का कोई अमल मकबूल नहीं। अगर औरत ने कर लिया तो शौहर को सवाब है और औरत पर गुनाह। जो औरत अपने घर से बाहर जाय और उसके शौहर को नागवार हो, जब तक पलट कर आये आसमान में हर फ़रिश्ता उस पर लानत करे और इन्सानो जिन के सिवा जिस-जिस चीज़ पर गुज़रे सब उस पर लानत करें।
📕 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 197 / बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 91
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -40)
शौहर के हुकूक :
एक शख्स ने हुज़ूर ﷺ से पूछा कि बेहतरीन औरत की क्या पहचान है आपने इरशाद फ़रमाया जो औरत अपने शौहर को खुश कर दे जब उसकी तरफ़ देखे और उसकी इताअत व फ़रमां बरदारी करे जब कोई हुक्म दे।
📙 निसाई जिल्द 2 पेज 60
इन हदीसों से सबक़ मिलता है कि शौहर का बहुत बड़ा हक़ है और हर औरत पर अपने शौहर का हक अदा करना ज़रूरी है। जिनके अदा न करने पर मर्द औरत का खर्चा बन्द कर सकता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -41)
शौहर के हुकूक :
शौहर के हुकूक बहुत ज़्यादा हैं, कुछ नीचे लिखे जाते हैं
① औरत पर शौहर का हक़ यह है कि उसके बिछौने को न छोड़े और ऐसे शख्स को मकान में न आने दे जिसका आना शौहर को पसन्द न हो।
② शौहर की इजाज़त के बगैर घर से बाहर न जाय।
③ अपने शौहर की इताअत गुज़ार और वफ़ादार हो।
④ सलीका शिआर हो कि शौहर के मालो दौलत की हिफ़ाज़त करे।
⑤ इफ़्फत मआब हो कि अपनी और अपने शौहर की इज़्ज़तो नामूस पर आंच न आने दे।
⑥ औरत हरगिज़-हरगिज़ कोई ऐसा काम न करे जो शौहर को नापसन्द हो।
⑦ औरत को लाज़िम है कि मकान, सामान और अपने बदन और कपड़ों की सफाई सुथराई का ख़ास तौर से ख्याल रखे। मैली, कुचैली न रहे बल्कि बनाव सिंगार से रहा करे ताकि शौहर उसको देख कर खुश हो जाय।
⑧ शौहर को कभी जली कटी बातें न सुनाये, न कभी उसके सामने गुस्से में चिल्ला - चिल्ला कर बोले, न उसकी बातों का कड़वा तीखा जवाब दे, न कभी उसको तअना दें, न उसकी लाई हुई चीज़ों में ऐब निकाले, न शौहर के मकानो सामान वगैरह को हक़ीर बताये।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -42)
बेहतरीन बीवी वह है :
① जो अपने शौहर की फरमांबरदारी और ख़िदमत गुज़ारी को अपना फर्जे मनसबी समझे।
② जो अपने शौहर के तमाम हुकूक अदा करने में कोताही न करे।
③ जो अपने शौहर की खूबियों पर नज़र रखे और उसके उयूब और खामियों को नज़र अन्दाज़ करती रहे।
④ जो अपने शोहर के सिवा किसी अजनबी मर्द पर निगाह न डाले न किसी की निगाह अपने ऊपर पड़ने दे।
⑤ जो अपने शौहर की ज़्यादती और जुल्म पर हमेशा सब्र करती रहे।
⑥ जो मज़हब की पाबन्द और दीनदार हो और अल्लाह व बन्दो के हुकूक को अदा करती हो।
⑦ जो पर्दे में रहे और अपने शौहर की इज्ज़तो नामूस की हिफाज़त करे।...✍🏻
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -43)
बीवी के हुकूक :
इस्लाम से पहले औरतों का बहुत बुरा हाल था दुनिया में औरत की कोई इज्जतो वक़अत ही नहीं थी मर्दो की नज़रों में उनकी कोई हैसियत न थी वे मर्दो की नफ़्सानी ख़्वाहिशात पूरी करने का एक खिलौना थीं दिन - रात मर्दो की किस्म - किस्म की ख़िदमतें करती थे मगर ज़ालिम मर्द फिर भी उन औरतों की कोई कदर नहीं करता था बल्कि जानवरों की तरह उनके साथ सुलूक किया करता था। उनका कोई मकाम न था शौहर फ़कत अपनी ख़िदमत के लिए उन्हें खाना कपड़ा देकर उनसे गुलामों जैसा बर्ताव करता था बल्कि उन्हें जायदाद की तरह इस्तेमाल करता था लेकिन इस्लाम ने औरत को नीचे से ऊपर उठाया और उनके लिए हुकूक मुकर्रर किये गये माँ - बाप , भाई - बहन के मालों में वारिस करार दिया गया औरतों को मालिकाना हुकूक हासिल हो गये, गरज़ कि वे औरतें जो मर्दो की जूतियों से ज्यादा जलीलो ख़्वार और इन्तिहाई मजबूरो लाचार थीं वे मर्दो के घरों की मलका बन गई। अब न कोई मर्द बिला वजह औरतों को मारपीट सकता है , ना ही उनको घरों से निकाल सकता है बल्कि हर मर्द मज़हबी तौर पर औरतों के हुकूक अदा करने पर मजबूर है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -44)
बीवी के हुकूक :
अल क़ुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है और उनसे अच्छा बर्ताव करो!
📙 सूरह अन्निसा
और औरतों का भी हक ऐसा ही है जैसा उन पर है शरीअत के मुवाफिक।
📗 सूरह बकरह
हज़रत आयशा رضى الله تعالیٰ عنها फ़रमाती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया ईमान में सबसे ज़्यादा कामिल वह शख्स है जिसके आदातो अख़लाक सबसे अच्छे हों और अपनी बीवी के साथ सबसे ज़्यादा नर्मी और अच्छा बर्ताव करता हो।
📕 मिशकात शरीफ़ पेज 282
हज़रत अबू हुरैरह رضى الله تعالیٰ عنه फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया ईमान में कामिल तरीन वह शख्स है जो सब से ज़्यादा बा अख़लाक़ हो और तुम में सब से ज़्यादा बेहतर वह है जो अपनी औरतों के लिए बेहतर हो।
📔 तिरमिजी शरीफ जिल्द 1, पेज 138
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -45)
बीवी के हुकूक :
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया औरत टेढ़ी पस्ली से पैदा की गयी है अगर कोई शख्स टेढ़ी पस्ली को सीधी करने की कोशिश करेगा तो पस्ली की हड्डी टूट जायेगी मगर वह कभी सीधी न होगी और अगर छोड़ देगा तो टेढ़ी बाकी रहेगी। ठीक इसी तरह अगर कोई शख़्स अपनी बीवी को बिल्कुल ही सीधी करने की कोशिश करेगा तो टूट जायेगी यानी तलाक की नौबत आ जायेगी। लिहाज़ा अगर औरत से फ़ायदा उठाना है तो उसके टेढ़ेपन ही से फ़ायदा उठा लो।
📔 बुखारी शरीफ जिल्द 2, पेज 779
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया तुम में बेहतर वह है जो अपने घर वालों के लिए अच्छा है। और मैं तुम सब में अपने अहल के लिए बेहतर हूं।
📔 तिरमिज़ी शरीफ जिल्द 1 पेज 228
एक सहाबी ने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ्त किया या रसूलल्लाह ﷺ बीवी का उसके शोहर पर क्या हक है आप ने फ़रमाया जब तू खाये, उसको भी खिलाये, जब तू कपड़ा पहने, उसको भी पहनाये, उसके मुंह पर मत मार, उसको गालियाँ न दे और उसको न छोड़ मगर घर में।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -46)
बीवी के हुकूक :
औरतों के शरई हुकूक मर्दो पर चार किस्म के हैं :
① खाना जैसा खुद खाये उसे भी खिलाये।
② लिबास देना यानी जिस मैयार के कपड़े खुद पहने उसे भी पहनाये।
③ मकान कि हस्बे हैसियत उसके रहने के लिए दे।
④ हमबिस्तरी करना यानी निकाह के बाद एक बार जिमाअ करना औरत का हक़ है।
अगर एक बार भी न कर सके तो औरत के दावे पर क़ाज़ी मर्द को साल भर की मोहलत देगा। अगर इसमें भी हमबिस्तरी न हो तो क़ाज़ी तफरीक कर देगा। इसके बाद गाह बगाह वती (सम्भोग) करना दयानतन वाजिब है कि उसे परेशान नज़री न पैदा हो और उसकी रज़ा के बगैर चार माह तक तर्के जिमाअ बिला उज़्र सहीह शरई नाजाईज़।
अगर मर्द जिमाअ पर कादिर है, फिर भी जिमाअ नहीं करता ख्वाह इब्तिदाअन ख़्वाह तर्के मुतलक का इरादा कर लिया है और औरत को उस से ज़रर है तो क़ाज़ी मजबूर करेगा कि जिमा करे या तलाक दे। अगर न माने तो कैद करेगा। फिर भी न मानेगा तो मारेगा, यहां तक कि दो बातों में से एक करे।
📕 फतावा रज़विया जिल्द 5 , पेज 907
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -47)
बीवी के हुकूक :
औरत को बिला किसी बड़े कुसूर के हरगिज़ - हरगिज़ न मारे रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कोई शख्स औरत को इस तरह न मारे जिस तरह अपने गुलाम को मारा करता है फिर दूसरे वक़्त उस से सोहबत भी करे।
📗 मिशकात जिल्द 2, पेज 280
शौहर अपनी औरत को इन उमूर पर मारपीट सकता है :
① बनाव सिंगार पर कुद्रत रखने के बावुजूद बनाव सिंगार न करे। घर में मैली कुचैली, परा गन्दा हाल रहे।
② नमाज़ न पढ़े।
③ गुस्ले जनाबत न करे।
④ बगैर इजाज़त घर से चली जाय।
⑤ शौहर अपने पास बुलाये और वह न आये जबकि हैज़ो निफ़ास से पाक थी और फर्ज़ रोज़ा भी रखे हुए न थी।
⑥ गैर महरम के सामने चेहरा खोल कर चले फिरे।
⑦ अजनबी मर्द से कलाम करे।
⑧ शौहर से झगड़ा करे।
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 9, पेज 119
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -48)
बीवी के हुकूक :
शौहर को चाहिये कि औरत के खर्चों के बारे में बहुत ज़्यादा बख़ीली और कन्जूसी न करे और हद से ज़्यादा फुजूल खर्ची भी न करे। हदीस शरीफ़ में है कि बीवी को नफ़क़ा देना खैरात देने से बेहतर है। बुजुर्गों ने फ़रमाया है कि अहलो अयाल के लिए कस्बे हलाल करना अबदालों का काम है।
औरत का उसके शौहर पर यह भी हक़ है कि शौहर औरत की नफासत और बनाव सिंगार का सामान यानी साबुन, तेल, कंघी, मेंहदी वगैरह मुहय्या करता रहे ताकि औरत अपने आप को साफ़ सुथरी रख सके।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -49)
बेहतरीन शौहर कौन है.!?
① जो अपनी बीवी के साथ नर्मी, खुश खुल्की और हुस्ने सुलूक के साथ पैश आये।
② जो अपनी बीवी के हुकूक अदा करने में किसी किस्म की ग़फ़लत और कोताही न करे।
③ जो अपनी बीवी की खूबियों पर नज़र रखे और मामूली ग़लतियों को नज़र अन्दाज़ करे।
④ जो अपनी बीवी को पर्दे में रख कर इज्जत व आबरू की हिफ़ाज़त करे।
⑤ जो अपनी बीवी को दीनदारी की ताकीद करता रहे और शरीअत की राह पर चलाये!
📕 सलीक- ए-जिन्दगी, पेज 31-32
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -50)
बेहतरीन बीवी वह है :
① जो अपने शौहर की फ़रमांबरदारी और ख़िदमत गुज़ारी को अपना फर्जे मनसबी समझे।
② जो अपने शौहर के तमाम हुकूक अदा करने में कोताही न करे।
③ जो अपने शौहर की खूबियों पर नज़र रखे और उसके उयूब और खामियों को नज़र अन्दाज़ करती रहे।
④ जो अपने शौहर के सिवा किसी अजनबी मर्द पर निगाह न डाले न किसी की निगाह अपने ऊपर पड़ने दे।
⑤ जो अपने शौहर की ज़्यादती और जुल्म पर हमेशा सब्र करती रहे।
⑥ जो मज़हब की पाबन्द और दीनदार हो और अल्लाह व बन्दों के हुकूक को अदा करती हो।
⑦ जो पर्दे में रहे और अपने शौहर की इज्ज़तो नामूस का हिफाजत करे!
📕 सलीक - ए - जिन्दगी, पेज 31-36
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -51)
जिमाअ का बयान :
जिमा (हमबिस्तरी) की ख्वाहिश एक फ़ितरी (Natural) जज़्बा है जो हर ज़ीरूह में खिलकृतन पाया जाता है। इसे बताने की ज़रूरत नहीं होती। हर एक अपनी नौअ की मादा की तरफ़ तबई एतबार से माइल होता है और यह जज़्बा ही इज़िंदवाजी ज़िन्दगी और जिन्सी तअल्लुकात की जान है। जब इश्क व महब्बत का जज़्बा हैवानात में पाया जाता है और वे भी अपनी मिलने की ख्वाहिश पुरी करते हैं। नर को मादा की तलाश रहती है और मादा को नर की तो फिर इन्सान जो जज़्बात का मअदिन है उसका दिल जिमाअ और ख्वाहिशे विसाल से क्योंकर खाली रह सकता है? और वह औरत जैसी सिनफे नाजूक से क्यों न लुत्फ़ अन्दोज़ हो ?
इमाम गजाली फरमाते हैं जिमाअ की ख्वाहिश को इन्सान पर मुसल्लत कर दिया गया है ताकि नस्ले इन्सानी की बका के लिए वह तुरुम रेज़ी करे जिमा जन्नत की लज़्ज़तों में से एक लज़्ज़त है।
📕 कीमिया ए सआदत पेज 496
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -52)
जिमाअ का बयान :
हजरत जुनैद बगदादी फरमाते हैं मुझको जिमाअ की हाजत ऐसी है जैसी ग़िज़ा की क्योंकि बीवी गिज़ा और दिल की तहारत का सबब है। इसी वजह से नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया जिस शख्स की नज़र किसी अजनबी औरत पर पड़े और उसका नपस उसकी तरफ माइल हो तो चाहिए कि अपनी बीवी से सोहबत करे। इसलिए कि यह दिल के वसवसे को दूर कर देगा।
📔 अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 29
हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया तुम में से किसी का अपनी बीवी से मुबाशिरत करना भी सदका है। सहाबा किराम ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह कोई शख्स अपनी शहवत पूरी करेगा और उसे अज्र भी मिलेगा? हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया हाँ, अगर वह हराम मुबाशिरत करता तो क्या वह गुनाहगार न होता इसी तरह वह जाइज़ मुबाशिरत करने पर अज्र का मुस्तहिक है।
📙 मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 पेज 324
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -53)
जिमाअ का बयान :
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है तो अल्लाह तआला उसके लिए एक नेकी लिख देता है। जब मर्द महब्बत से औरत के गले में हाथ डालता है तो उसके हक में दस नेकियां लिखी जाती हैं और जब औरत ये जिमाअ करता है तो दुनिया व माफीहा से बेहतर हो जाता है। और जब गुस्ले जनाबत करता है तो बदन के जिस बाल पर से पानी गुज़रता है, हर बाल के बदले एक नेकी लिखी जाती है और एक गुनाह कम कर दिया जाता है और एक दर्जा ऊंचा कर दिया जाता है।
📙 गुनिय्या पेज 113
मर्द को जिमाअ की ख्वाहिश न हो तब भी जिमाअ का छोड़ जाइज़ नहीं क्योंकि इस मामले में औरत का हक़ भी है और जिमा छोड़ देने से औरत को ज़रर पहुंचने का अन्देशा है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -54)
जिमाअ का बयान :
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ इरशाद फरमाया औरत की ख्वाहिशे जिमाअ, मर्द की ख्वाहिशे जिमाअ से 99 दर्जा ज़्यादा है मगर अल्लाह ने उस पर हया को मुसल्लत कर दिया है।
📙 गुनिय्या पेज 117
औरत का बीवी होना इस बात को लाज़िम नहीं कि हर हाल में शौहर को उससे सोहबत जाइज़ हो। नमाज़, रोज़ा, अहराम, एतिका हैज़ (माहवारी), निफ़ास और बहुत सी सूरतें हैं कि उनमें मनकूहा से भी सोहबत हराम है। जैसे वक़्त ऐसा है कि हमबिस्तरी के बाद गुस्ल करके नमाज़ का वक़्त न मिलेगा तो ऐसी सूरत में सोहबत ही हराम है कि जान बूझ कर नमाज़ को फ़ोत करना है!
📕 फतावा रज़विया जिल्द 1 पेज 584
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -55)
जिमाअ का बयान :
जहां कुरआने करीम की कोई आयत लिखी हो कागज़ या किसी चीज़ पर अगरचे ऊपर शीशा हो जो उसे हाजिब न हो, जब तक कि उस पर गिलाफ़ न डाल लें, वहाँ जिमाअ या नंगा होना बेअदबी है।
📔 फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 522
जो बच्चा समझता और दूसरों के सामने बयान कर सकता हो उसके सामने जिमाअ करना मकरूह है, वरना हरज नहीं!
📕 अलमलफूज़ हिस्सा 1 पेज 14
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -56)
जिमाअ का बयान :
बीवी का हाथ पकड़ कर मकान के अन्दर ले गया और दरवाज़ा बन्द कर लिया और लोगों को मालूम हो गया कि वती करने (हमबिस्तरी) के लिए ऐसा किया है, यह मकरूह है। यूं ही सोतन के सामने बीवी से वती करना मकरूह है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16 पेज 77
किसी की दो बीवी हों तो उनमें से किसी एक से दूसरे के सामने हमबिस्तरी करना मकरूह व बेहयाई है। अगरचे मर्द को बीवी से पर्दा नहीं लेकिन एक बीवी को दूसरे से पर्दा लाज़िम है।
📕 फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 207
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -57)
जिमाअ के फायदे :
जिमाअ से वह रद्दी फुज्ला जो जिस्म में बेकार जमा हो जाता है वह ख़ारिज हुआ करता है जिससे जिस्म हल्का, तबीअत चाको चोबंद, मिज़ाज शगुफ़ता, दिलो दिमाग मुफ़र्रह हो जाता है और जिस्मे जदीद गिज़ा का तालिब और खून की इस्लाह पर आमादा हो जाता है। कुव्वते ग़ज़बिया ज़ाइल हो जाती है और तफ़क्कुरात, फ़ासिद ख्यालात दूर हो जाते हैं।
फुज़्ल ए मनी का निकल जाना हज़ारों मर्ज़ों को दफा कर देता है और अर्से तक बावुजूद तबई ख्वाहिश के जिमाअ न करे तो मनी अपनी जगह कसरत से जमा होकर फ़ासिद हो जाती है और अस्ली हरारते गरेज़ी (बदन की कुद्रती गर्मी) पर गालिब आकर मुख्तलिफ़ किस्म के अम्राजे रद्दिया पैदा कर देती है। इसलिये ज़्यादा दिनों तक मनी को निकलने से रोकना सेहत के लिये नुकसान दह और मुज़िर है। बसा औकात ख्वाह मख्वाह जिमाअ से रूके रहने से दिमाग में ज़हरीले आबखरात मुनजमिद हो जाते हैं, जिससे रगों में खुश्की और तरह - तरह की बीमारियाँ लाहिक हो जाती हैं। जैसे वसवसा, जुनून, मिर्गी, सआ, वगैरह। जिन लोगों में कुव्वते बाह ज़्यादा हो उनके लिये तर्के जिमाअ सख्त नुक्सान दह है। जिमाअ सेहतो तंदरूस्ती का मुहाफ़िज़ है। खास तौर से सौदावी मरीज़ के लिये तो बेहद मुफीद है। जिमाअ से सर चकराना, जोड़ों का दर्द, जोड़ों की सूजन, दिल पर जलन वगैरह बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।
📙 इशरतुल उश्शाक पेज 38/42
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -58)
जिमाअ के फायदे :
जिमाअ के मुतअल्लिक याद रखना चाहिये कि जब तक शहवत गालिब न हो और मनी मुस्तअिद न हो जिमाअ करना मुनासिब नहीं लेकिन जब वह हालत पाई जाए तो फौरन मनी ख़ारिज करनी चाहिये। जिस तरह रद्दी फुज्ला पैशाबो पाख़ाना से खारिज किया जाता है क्योंकि उस वक्त मनी के रोकने मे बड़े नुक्सान का अन्देशा है।
📔 मुजर्रबाते सुयूती पेज 40
उम्दा जिमाअ वह कहलाता है : जिसका नतीजा दिल की ताज़गी और तबीअत को फ़रहतो सुरूर हो। बुरा जिमाअ वह है जिसका नतीजा ला व तंगीए नफ्सो दिल की कम्जोरी और तबीअत का मत्लाना और महबूबा का पसंद न आना हो।
📔 मुजर्रबाते सुयूती पेज 41
जिमाअ सिर्फ मज़ा लेने या शहवत की आग बुझाने की नियत से न हो बल्कि यह नियत हो कि ज़िना से बचूंगा और औलाद स्वालेह व नेक सीरत पैदा होगी। अगर इस नियत से जिमाअ करेगा तो सवाब भी पायगा।
📙 कीमिया ए सआदत पेज 255
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -59)
जिमाअ के आदाब :
जिमा करना इन्सान की वह तबई और अहम ज़रूरत है जिसके बगैर इन्सान का सही तौर से ज़िन्दगी गुज़ारना मुश्किल बल्कि तकरीबन ना मुम्किन सा है। अल्लाह तआला ने जिमाअ की ख्वाहिश इन्सानों ही में नहीं बल्कि तमाम हैवानात में वदीअत रखी है लेकिन शरीअत ने इन्सान की इस फ़ितरी ख्वाहिश की तक्मील के लिये कुछ आदाब और तरीके मुकर्रर कर दिये ताकि इन्सान और हैवान में फर्क हो जाए। अगर जिमाअ का मक्सद सिर्फ शहवत की तकमील होता ख्वाह जिस तरह भी हो तो इन्सान और हैवान में फर्क ही न होता। इसलिये इसके आदाब की रिआयत शी हक होने के साथ - साथ इन्सानी हक भी है।
*अल- कुरान :* अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है तो अब उनसे सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया तुम में से जो कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा करे और गधों की तरह बरहना (नंगा) न हो जाए।
📕 इब्ने माजा पेज - 138
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -60)
अब हम जिमाअ के कुछ आदाब बयान करते हैं :
1) जिमाअ से पहले औरत से मुलाअबत और छेड़ - छाड़ करे ताकि औरत का दिल खुश हो जाय और उसकी मुराद आसानी से हासिल हो। खूब बोसो किनार जारी रखे यहां तक कि औरत जल्दी - जल्दी सांस लेने लगे और उसकी घबराहट बढ़ जाय और मर्द को अपनी तरफ़ ज़ोर से खींचे।
📙 मुजरैबाते सुयूती पेज 41
2) मर्द को चाहिये कि अपनी औरत पर जानवरों की तरह न गिरे सोहबत से पहले कासिद होता है। लोगों ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ वह कासिद क्या है ? आपने फ़रमाया "बोसो किनार।
📙 कीमिया ए सआदत पेज 266
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -61)
अब हम जिमाअ के कुछ आदाब बयान करते हैं :
3) जिमाअ करते वक़्त कलाम करना मकरूह है बल्कि बच्चे के गूंगे या तोतले होने का ख़तरा है। यूं ही उस वक़्त औरत की शर्मगाह पर नज़र न करे कि बच्चे के अन्धे होने का अन्देशा है और मर्द औरत कपड़ा ओढ़ लें, जानवरों की तरह बरहना न हो कि बच्चे के बेहया व बेशर्म होने का अन्देशा है।
📙 फतावा रजविया जिल्द 9 पेज 46
हुज़ूर ﷺ खुद को और अपनी बीवी को सर से पैर तक चादर या किसी कपड़े से ढाप लिया करते थे और आवाज़ पस्त करते थे और बीवी से फ़रमाते थे कि वकार के साथ रहो।
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 51
4) हमबिस्तरी से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है मगर यह याद रहे कि सत्र खुलने से पहले पढ़ी जाय।
*📙 तफसीरे नईमी पारा : 2 पेज 410*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -62)
अब हम जिमाअ के कुछ आदाब बयान करते हैं :
5) जिमाअ के वक़्त किबला रू न हो, पोशीदा जगह में हो, किसी की नज़र के सामने न हो। हदीस शरीफ में है कि सरकार ﷺ ने फरमाया जब तुम में से कोई अपनी बीवी से कुरबत करे तो पर्दा करे, बेपर्दा होगा तो फ़रिश्ते हया की वजह से बाहर निकल जायेंगे और उनकी जगह शैतान आ जाएगा। अब अगर कोई बच्चा हुआ तो शेतान की उसमें शिरकत होगी। जिमाअ के वक़्त यानी जिमाअ शुरू करने से पहले बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ना चाहिये। अगर बिस्मिल्लाह न पढ़े तो इस सूरत में मर्द की शर्मगाह से शैतान लिपट जाता है और उस मर्द की तरह वह भी जिमाअ करता है।
📙 गुनिय्या पेज - 116
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -63)
अब हम जिमाअ के कुछ आदाब बयान करते हैं :
6) जिमाअ से पहले औरत को जिमाअ की तरफ रागिब करना मुस्तहसन है। अगर ऐसा न किया जाए तो औरत को नुक्सान पहुंचने का अंदेशा है, जो अक्सर अदावतो जुदाई तक पहुँचा देता है।
7) हमबिस्तरी से पहले गुस्ल करना बेहतर है, वर्ना इस्तिन्जा और वुजू कर ले।
8) जिमाअ के वक़्त बीवी के अलावा किसी गैर औरत का तसव्वुर हरगिज़ न करे ऐसा करना सख्त गुनाह है और यह भी एक किस्म का ज़िना है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -64)
तरीका - ए - जिमाअ :
अल क़ुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है तुम्हारी औरतें तुम्हारे लिये खैतियां हैं तो आओ अपनी खैतियों में जिस तरह चाहो।
जिमाअ के तरीके बहुत से हैं बल्कि हवस परस्तों ने कुछ बेहूदा और तकलीफ दह तरीके भी ईजाद कर लिये हैं। उन तरीकों से बचना चाहिये बल्कि ऐसा तरीका अपनाना चाहिये जिससे दोनों खुशो खुर्रम और हश्शाश बरशास हो जाएं। बेहतर तरीका यह है कि औरत चित लेट जाए और मर्द उसके ऊपर आए। फिर उसके साथ छेड़ - छाड़ और बोसो किनार करे, यहाँ तक कि शहवत भड़क उठे, फिर जल्दी से ओरत की अन्दामे निहानी में ज़कर को दाखिल कर दे और हरकत करे फिर जब मनी गिर जाये तो कुछ देर तक औरत की गर्दन से चिम्टा रहे और ज़कर बाहर न निकाले जब जिस्म में सुकूनोंकार आ जाए तो दायें जानिब होकर ज़कर को बाहर निकाले इसमें एक खूबी यह भी है कि अगर इस किस्म के जिमाअ से नुत्फा ठहर जाए तो लड़का पैदा होगा।
📙 मुजर्रबाते सुयूती पेज 41
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -65)
तरीका - ए - जिमाअ :
जिमाअ के लिए कोई वक्त मुकर नहीं, जब चाहो दिन में या रात में इसी तरह जैसे चाहो खड़े होकर, बैठ कर, लेटकर, चित से, पट से, हर तरह तुम्हारे लिये मुबाह है लेकिन फिरी तरीका तो यह ही है कि औरत नीचे और मर्द ऊपर रहे। जैसा कि सारे हैवानात इसी फ़ित्री तरीके पर अमल करते हैं कुआने पाक की इस आयत में भी इसी तरीके की तरफ लतीफ इशारा किया गया है। "जब मर्द ने औरत को ढाँप लिया तो उसको हल्का सा हम्ल रह गया।
📙 कुराने पाक
इस तरीके में ज्यादा राहतो आसानी भी है। औरत को मशक्त नहीं उठानी पड़ती, नीज़ औरत पर थोड़ा वज़न आयगा जिसकी वजह से उसकी लज्जत में इजाफा होगा।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -66)
तरीका - ए - जिमाअ :
इमामे अहले सुन्नत, सरकारे आला हज़रत इमाम अहमद रजा फाज़िले बरेलवी फरमाते हैं "जिमाअ के वक्त यह नियत हो :
1) तलबे वलदे स्वालेह
2) बीवी का अदाए हक
3) यादे इलाही और आमाले स्वालेहा के लिये अपने दिल को फारिग करना।
न बिल्कुल बरहना हो खुद, न ओरत, नरू बकिब्ला, न पुश्त किब्ला, औरत चित हो और यह उक्डू बैठे बोसो किनार, छेड़ - छाड़ से शुरू करे जब औरत को भी मुतवज्जह पाए।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -67)
तरीका - ए - जिमाअ :
بِِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ جَنِّبْنَا الشَّيْطَنَ وَجَنِّبِ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا
कह कर आगाज़ करे, उस वक़्त कलाम न करे और न औरत की शर्मगाह पर नज़र करे, फिर जब इन्ज़ाल की नौबत पहुंचे तो दिल ही दिल में यह दुआ पढ़ेः
" اَللّٰهُمَّ لَا تَجْعَلُ لِلشَّيْطَانِ فِيْمَا رَزَقْتَنِىْ نَصِيبًا"
अगर कोई इस दुआ को पढ़ लेता है और उसके मुक़द्दर में बच्चे की विलादत है तो शैतान उस बच्चे को कभी ज़रर (नुकसान) न दे सकेगा।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 425
📕 हिस्ने हसीन पेज 252
औरत के बैठी हुई हालत में मुकारबत (संगत) न करे, इसी तरह पहलू की तरफ़ से भी न करे कि इससे दर्दे कमर पैदा होता है। औरत को अपने ऊपर भी न चढ़ाये कि इससे औरत बाँझ हो जाती है बल्कि औरत को चित लिटाए और उसकी टाँगो को ऊपर उठाए।
📙 मुजर्रबाते सुयूती पेज 41
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -68)
तरीका - ए - जिमाअ :
शैख़ बू अली सीना के नज़दीक जिमाअ की तमाम शक्लों में बुरी शक्ल यह है कि औरत मर्द के ऊपर हो और मर्द नीचे चित लेटा हो क्योंकि इस सूरत में मनी मर्द के उज़्व में बाकी रह कर मुतअफ्फन हो जाती है जो तकलीफ़ का बाइस होती है। इन्जाल के बाद फ़ौरन जुदा न हो बल्कि इन्तिज़ार करे कि औरत की भी हाजत पूरी हो जाए।
इमाम ग़ज़ाली फ़रमाते हैं कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया मर्द में यह कमज़ोरी की निशानी है कि जब मुबाशरत (संगत) का इरादा करे तो बोसो किनार से पहले जिमाअ करने लगे और जब इन्जाल हो जाय तो सब्र न कर सके और फौरन अलग हो जाय कि औरत की हाजत अभी पूरी नहीं हो पाई है।
📕 कीमिया ए सआदत पेज 266
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -69)
तरीका - ए - जिमाअ :
फ़रागत बाद मर्दो औरत दोनों अलग - अलग कपड़े से अपनी अपनी शर्मगाह को साफ़ कर लें दोनों का एक ही कपड़े से साफ़ करना नफ़रतो जुदाई का सबब है।
अगर किसी शख्स को एहतिलाम हुआ हो तो बगैर वुजू किये (यानी हाथ, मुंह, शर्मगाह धोए) जिमाअ न करे वर्ना होने वाले बच्चे पर बीमारी का अंदेशा है। हो सकता है कि बच्चा दीवाना और बेकार पैदा हो।
📙 कुव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 489
📕 बुस्तानुल आरिफ़ीन पेज 137
ज़्यादा बूढ़ी औरत से जिमाअ नहीं करना चाहिए कि इससे बदन कमज़ोर और आदमी जल्द बूढ़ा हो जाता है। खड़े होकर भी जिमा नहीं करना चाहिये कि इससे बदन कमज़ोर और ज़ीफ़ हो जाता है और भरे पेट भी मुजामअत (संगत) नहीं करना चाहिये कि इससे औलाद कुन्द ज़ेहन पैदा होगी। बअज़ लोगों ने यह भी लिखा है कि फ़रागत के बाद मर्दो औरत और दोनों को पैशाब कर लेना चाहिये, नहीं तो किसी ला-इलाज मर्ज़ में मुब्तिला होगा।
📕 बुस्तानुल आरिफ़ीन पेज 139
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -70)
जिमाअ के बाद का अमल :
जिमाअ (संगत) से फ़ारिग होकर मर्दो औरत दोनों अलग - अलग हो जाएं, फिर किसी साफ़ कपड़े से दोनों अपने अपने मकामे मखसूस को साफ़ कर लें। दोनों का कपड़ा अलाहदा अलाहदा होना चाहिये। एक ही कपड़े से साफ़ न करें कि यह नफ़रतो जुदाई का सबब है। फिर औरत को सीधी करवट पर लेटे रहने का हुक्म दें, ताकि अगर नुत्फ़ा करार पा जाए तो लड़का पैदा हो, अगर उल्टी कर्वट पर लेटेगा तो लड़की पैदा हो सकती है और फ़रागत के बाद दिल ही दिल में इस आयत की तिलावत करे :
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِىْ خَلَقَ مِنَ الْمَاءِ بَشَرًا
فَجَعَلَهٗ نَسَبًاوَّ صِهْرً اوَّکَانُ رَبُّكَ قَدِيرًا
*📙 मुजर्रबाते सुयूती पेज 42*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -71)
जिमाअ के बाद का अमल :
जिमाअ के फ़ौरन बाद पानी नहीं पीना चाहिये। ऐसा करने से दम्मा का मर्जी लाहिक हो सकता है। हाँ, अगर गुन्गुना दूध पी लिया जाए तो कुछ हरज नहीं। जिमाअ के बाद फ़ौरन ठन्डे पानी से गुस्ल करना नुकसान दह है। इससे बुखार आने का अन्देशा होता है। अगर गुस्ल ही करना है तो इतनी देर रूका रहे कि बदन की हरारत एतिदाल पर आ जाए। हाँ फ़ौरन उज्व को धो लेना चाहिये कि इससे बदन तन्दरूस्तो कवी हो जाता है।
📗 बुस्तानुल आरिफ़ीन पेज 138
फ़राग़त के बाद मर्दो औरत दोनों को पेशाब कर लेना चाहिये, नहीं तो किसी ला - इलाज मर्ज़ में मुब्तिला हो सकता है।
📙 बुस्तानुल आरिफ़ीन पेज 139
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -72)
मुबाशिरत के औकात :
शरीअत ने जिमाअ के लिये कोई खास वक्त मुकर्रर नहीं किया है। हाँ, बअज़ शरई अवारिज़ की मौजूदगी में जिमाअ करना मना है। जैसेः रोज़ा, नमाज़, एहराम, एतिकाफ़, हैज़ो निफास के वक़्त, इनके अलावा दिनो रात के हर हिस्से में सोहबत करना जाइज़ है लेकिन बुजुरगाने दीन या हकीमों ने कुछ ऐसे औकात बताए हैं जिनमें सोहबत करना सेहत के लिये फायदेमन्द होने के साथ सवाब का काम भी है। जुमा या शबे जुमा को मुबाशरत मुस्तहब है। शब में ज़्यादा फजीलत है।
हदीस शरीफ में है कि जुमे की शब में जिमा करने वाले को दो सवाब मिलते हैं। एक अपने गुस्ल और दूसरे अपनी औरत के गुस्ल का।
📙 तफसीरे नईमी पारा 2 पेज 431
*📕 अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 52*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -73)
मुबाशिरत के औकात :
जिमाअ के लिये सबसे बेहतर वक़्त रात का आखिरी हिस्सा है, क्योंकि रात के पहले हिस्से में मेअदा गिज़ा से पुर होता है और भरे पेट में मुबाशरत करना सेहत के लिये नुकसानदेह है। जबकि रात के आखिरी हिस्से में सोहबत करना सेहत के लिये फायदेमन्द है। वजह यह है कि रात के आखिरी हिस्से तक खाना अच्छी तरह हज़्म हो जाता है और दिन भर की थकावट नींद से दूर भी हो जाती है।
📗 बुस्तान पेज 138
दोपहर को केलूला के बाद या शब को इशा की नमाज़ के बाद कुछ देर सोकर हमबिस्तरी करना बेहतर है।
*उन वक्तों का बयान जिनमें मुबाशिरत करना मना है :* अगर किसी शख्स को एहतिलाम हुआ हो तो बगैर हाथ मुंह और शर्मगाह धोए जिमाअ न करे, वरना होने वाले बच्चे पर बीमारी का अन्देशा है। हो सकता है कि बच्चा दीवाना और बेकार पैदा हो।
📙 कुब्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 489
*📕 बुस्तानुल आरिफ़ीन पेज 137*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -74)
मुबाशिरत के औकात :
तबीबों (हकीमों) की तहकीक के मुताबिक :
1) पेट भरा होने की हालत में मुबाशरत नहीं करना चाहिये कि इससे औलाद कुन्द ज़ेहन पैदा होगी।
2) ज़्यादा बूढ़ी औरत से भी जिमाअ नहीं करना चाहिये कि इससे बदन कमज़ोर और आदमी जल्द बूढ़ा हो जाता है।
3) खड़े होकर जिमाअ करने से बदन कमज़ोरो ज़ईफ हो जाता है।
4) थोड़ी - थोड़ी देर बाद जिमाअ करना सेहत के लिये नुकसानदेह है। बल्कि दो मर्तबा की हमबिस्तरी में इतना वक्का (ठहरना) होना चाहिये कि जिससे बदन हल्का मालूम हो और तबीअत में अच्छी तरह ख्वाहिश पैदा हो।
5) पेट भरा होने की हालत में अगर मुबाशरत की जाय तो सुञ्जते इन्जाल का मर्ज़ लाहिक हो जाता है, मेअदा कमज़ोर और हाज़्मे की कुव्वत भी कमजोर हो जाती है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -75)
मुबाशिरत के औकात :
तबीबों (हकीमों) की तहकीक के मुताबिक :
6) सफर में जाने के इरादे के वक़्त हमबिस्तरी नहीं करनी चाहिये कि इससे इरादा कमजोर हो जाता है।
7) बुखार, नज़्ला, जुकाम, खांसी और दूसरी तक्लीफों की मौजूदगी में जिमाअ नहीं करना चाहिये।
8) सफ़र से आने के फ़ौरन बाद जिमाअ नहीं करना चाहिये, जब तक कि सफ़र की थकावट, रंजो फ़िक्र दूर न हो जाय।
9) नशे की हालत में जिमाअ नहीं करना चाहिये, वरना इससे बीवी को नफ़रत हो जायगी और औलाद भी लंगड़ी, लूली पैदा होगी।
10) एक बार सोहबत करने के बाद अगर उसी रात में दोबारा सोहबत करने का इरादा हो तो दोनों को चाहिये कि वुज़ू कर लें, अगर वुज़ू न कर सकें तो अपनी - अपनी शर्मगाह को धोलें। ऐन नमाज़ के वक़्त सोहबत नहीं करनी चाहिये। बुजुर्गाने दीन फ़रमाते हैं अगर इन वक्तों में हमबिस्तरी करने से हम्ल (गर्भ) ठहर जाय तो औलाद नाफरमान पैदा होगी।...✍🏻
📙 बुस्तानुल आरिफ़ीन पेज 137-139
📗 इशरतुल उश्शाक पेज 46
📕 अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 52
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -76)
मुबाशिरत के औकात :
*उन रातों का बयान जिनमे मुबाशिरत (संगत) करना मना है :* हर महीने की पहली रात और चाँद की पन्द्रहवीं रात और महीने की आखिरी रात में जिमाअ न किया जाए कि इन रातों में शैतान जिमाअ के वक़्त हाज़िर होते हैं और कुछ यह कहते हैं कि इन रातों में शैतान जिमाअ करते हैं।
📕 कीमिया ए सआदत पेज 266
📗 कुव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 489
हफ़्ता और इतवार, मंगल और बुध की दरमियानी शब में हमबिस्तरी करने से बचना चाहिये कि इन रातों में हमबिस्तरी करने से अगर हम्ल ठहर जाए तो बच्चा बेहया, बदनसीब और मुफ़्लिसो हरीस पैदा होने के इमकानात हैं।
📙 सुन्नी बहिश्ती जेवर 449
इमाम गजाली फरमाते हैं रात के पहले हिस्से में सोहबत करना मकरूह है कि सोहबत के बाद पूरी रात नापाकी की हालत में सोना पड़ेगा।
*📕 अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 52*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -77)
कसरते जिमाअ के नुकसानात :
ज़िन्दगी में एक मर्तबा जिमाअ करना कज़ाअन वाजिब है और दयानतन यह हुक्म है कि गाहे-गाहे करता रहे। इसके लिये कोई हद मुकर्रर नहीं, इतना तो हो कि औरत की नज़र औरों की तरफ़ न उठे और इतनी कसरत भी जायज़ नहीं कि औरत को ज़रर (नुकसान) पहुंचे।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 857
मुबाशरत से जो चीज़ निकलती है वह दरअस्ल रोगने हयात है कि चिरागे उम्र उसी से रोशन और कायम रहता है। उसके अन्दर यह सलाहिय्यत होती है कि जुज़्वे बदन बन जाय, उसके निकलने से जिस कद्र कमज़ोरी महसूस होती है, किसी गलीज़ जिस्मानी चीज़ के निकलने से नहीं होती। जो लोग औरत को सिर्फ अपनी नफ़्सानी ख्वाहिशात की तक्मील का ज़रिया समझते हैं और महज़ शहवत परस्ती की वजह से कसरते जिमाअ के आदी बन जाते हैं, वे अपनी सेहतो ज़िन्दगी के सख्त दुश्मन हैं। उन्हें ख़तरनाक से खतरनाक बीमारी से दो चार होना पड़ता है।
जैसे : बदन में हरारत का बिल्कुल कम हो जाना, जिस्म का दुबला हो जाना, काहिली और सुस्ती का छा जाना, समाअतो बसारत (सुन्ने, देखने) में कमी आ जाना, दिमाग में कमज़ोरी व इख्तिलाल का आ जाना, पिन्डलियों में दर्द पैदा हो जाना, दायमी कब्ज की शिकायत होना, मेदे की कमज़ोरी, बद - हज़्मी, गन्दा जेहनी का पैदा हो जाना , जुअफे बाह, जिरयान, सुअते इन्जाल और नामर्दी की शिकायत हो जाना, रअशा (कपकपाहट), मिर्गी, फालिज की बीमारी का लाहिक होना। अलग़रज़ कसरते जिमाअ से इस किस्म के हज़ारों मर्ज़ पैदा हो जाते हैं जो इन्सान की ज़िन्दगी को इस कदर तल्ख कर देते हैं कि वह ज़िन्दगी पर मौत को तरजीह देने लगता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -78)
कसरते जिमाअ के नुकसानात :
हकीमों ने लिखा है कि हफ्ते में ज़्यादा से ज़यादा दो मर्तबा मुबाशरत की जाये। किसी ने हकीम लुकमान से पूछा कि ज़िन्दगी में औरत के पास कितनी बार जाना चाहिये ? उन्होंने कहा एक मरतबा नौजवान ने कहा कि इतना सब्र मुश्किल है, आपने जवाब दिया फिर साल में एक बार, पूछने वाले ने कहा यह वक़्त भी ज़्यादा है, आपने फ़रमाया फ़िर छ माह में एक बार, नौजवान ने जब इसे भी ज़्यादा बताया तो हकीम लुकमान ने नौजवान को मुखातब करते हुए कहा, यह मौत का कुआँ है, जब चाहो छलांग लगा लो"।
बुकरात से किसी ने पूछा हफ़्ते में कितनी बार मुबाशरत करनी चाहिये ? उसने जवाब दिया सिर्फ एक बार। पूछने वाले ने फिर पूछा एक मर्तबा क्यों, इससे ज़्यादा क्यों नहीं ? बुकरात ने झुंजलाकर जवाब दिया “तुम्हारी ज़िन्दगी है तुम जानो, मुझ से क्या पूछते हो ?" शेर के मुतअल्लिक मशहूर है कि वह जंगल का बादशाह होता है, जंगल का कोई जानवर चरिन्द, परिन्द, दरिन्दा वगैरह उसके सामने दम नहीं मार सकता, उसकी बेपनाह ताक़त का राज़ सिर्फ यही है कि वह साल में सिर्फ एक बार अपनी मादा से जिमाअ करता है। इसके बाद शेर को इतनी कमज़ोरी लाहिक हो जाती है कि वह अड़तालीस (48) घंटों के लिये तंगो तारीक जंगल में चला जाता है और वहाँ आराम करता है, फिर जब निकलता है तो लड़ खड़ाता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -79)
कसरते जिमाअ के नुकसानात :
अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती ने लिखा है जिमाअ में कसरत बड़े नुकसान का बाइस है, कुव्वते जिस्मानी के कमजोर होने के साथ दिमाग और बीनाई भी कमज़ोर हो जाती है। बुढ़ापे के आसार वक़्त से पहले नमूदार हो जाते हैं। मनी गिज़ा का खुलासा है, जब इन्सान कसरते जिमाअ का आदी हो जाता है, पहले तो मनी ख़ारिज होती है, फिर ग़िज़ा और रतूबाते अस्लिया का खून मनी की शक्ल में आ जाता है और रतूबाते अस्लिया फना होने से हलाकत का मोजिब बनता है।
📗 मुजर्रबाते सुयूती पेज 41)
साहिबे बुस्तान ने हज़रते अली का कौल नक्ल किया है जो शख्स इस बात का ख्वाहिश मन्द हो कि उसकी सेहती तन्दरूस्ती ज़्यादा दिनों तक कायम रहे तो उसको चाहिये सुबह को जल्दी खाया करे, कर्ज़ से दूर रहे और औरत से मुबाशरत कम किया करे।
📙 बुस्तान पेज 220
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -80)
कसरते जिमाअ के नुकसानात :
इमाम गज़ाली रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं मर्द के लिये चार दिनों में एक मर्तबा वती (संभोग) करना मुनासिब है, नीज़ औरत की ज़रूरत पूरी करने और उसकी परहेज़गारी के एतिबार से इस हद से कमो बेश (कम - ज़्यादा) भी कर सकता है क्योंकि औरत को पाक दामन रखना मर्द पर वाजिब है।
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 52
कअब बिन सवार ने एक आबिदो ज़ाहिद को हुक्म दिया तीन दिन तू शब बेदारी और इबादत में गुज़ार और चौथे दिन अपनी बीवी से तअल्लुक रख।
📗 तारीखुल खुलफा पेज 96
कुछ लोग शादी के बाद शुरू - शरू में औरत पर अपनी मर्दानगी व कुव्वत का रोअब डालने के लिये दवाओं या तिला वगैरह का इस्तेमाल करते हैं जिससे मियां - बीवी खूब लुत्फ़ अन्दोज़ होते हैं लेकिन बाद में उन दवाओं का असर उल्टा पड़ता है। इसलिये कि अक्सर इस किस्म की दवाओं में भंग, अफीम, संखिया वगैरह ज़हरीली चीजें शामिल हैं, जो मर्द की कुव्वते बाह के लिये सख़्त नुकसानदह लिहाजा अगर कुव्वते मर्दानगी को बरकरार रखना है तो मस्तु (बनावटी) दवाओं के बजाय मुकव्वी ग़िज़ाओं का इस्तिमाल करें। गिज़ा के ज़रिये हासिल होने वाली ताकत आरिज़ी नहीं होती बल्कि पायदार होती है!
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -81)
हालते हैज़ में मुबाशरत हराम है :
अल कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है : तो औरतों से अलग रहो हैज़ के दिनों और उनसे नज़्दीकी न करो जब तक पाक न हो लें, फिर जब पाक हो जायें तो उनके पास जाओ जहां से तुम्हे अल्लाह ने हुक्म दिया।
📙 सूरह - ए - बकरा
हालते हैज़ में हमबिस्तरी को जाइज़ जानना कुफ्र है और हराम समझ कर किया तो सख्त गुनाहगार हुआ, उस पर तौबा फ़र्ज़ है। बअज़ फुकहा (उलमा) ने इस हुक्म की ख़िलाफ़ वर्जी पर हदीस के मुताबिक कफ्फारा भी रखा है। अगरचे हमारे इमामे आज़म के नज़्दीक कफ्फारा अदा करना वाजिब नहीं, तौबा व इस्तिग़फ़ार वाजिब है। जिस आदमी से गल्ब ए शहवत की बिना पर हालते हैज़ में हमबिस्तरी का गुनाह सर्ज़द हो जाए तो उसे एक दीनार या निस्फ दीनार बतौरे कफ्फारा सदका करना चाहिये। अगर आमद के ज़माने में किया तो एक दीनार और कुर्बे ख़त्म के किया तो निस्फ़ दीनार सदका करना मुस्तहब है।
📗 तिरमिजी जिल्द 1 पेज 19
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 पेज 78
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -82)
हालते हैज़ में मुबाशरत हराम है :
औरत हैज़ की हालत में है और मर्द को शहवत का ज़ोर है और डर यह है कि कहीं ज़िना में न फंस जाए तो ऐसी हालत में औरत के पेट पर ज़कर को मस करके इन्जाल करे तो जाइज़ है, रान पर नाजाइज़ है। हालते हैज़ो निफ़ास में नाफ़ के नीचे से ज़ानू तक औरत के बदन से बिला किसी हायल के फ़ायदा हासिल करना जाइज़ नहीं।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 2 पेज 35
📗 फतावा अफ्रीका पेज 156
बहुत से मर्द शादी की पहली रात में बेसब्री का मुज़ाहिरा करते हैं और इसके बावजूद कि औरत हायज़ा है, सोहवत कर बैठते हैं। यह सख्त नाजाइज़ है बल्कि औरत पर वाजिब है कि अगर वह हायज़ा हो तो अपनी हालत से शौहर को वाकिफ करादे ताकि शौहर मुबाशरत न करे वरना औरत सख्त गुनाहगार होगी। हुज़ूर ﷺ ने ऐसे आदमी से सख्त बेज़ारी का इज़हार फ़रमाया जो हायज़ा औरत से वती (संगत) करता है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जिस शख्स ने हायज़ा औरत से वती की या अपनी औरत से उस के पीछे के मक़ाम में वती की या काहिन के पास गया, उसने उसका इन्कार किया जो मुहम्मद ﷺ पर नाज़िल हुआ।
*📕 तिरमिजी शरीफ़ जिल्द 1 पेज 35*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -83)
हालते हैज़ में मुबाशरत के नुकसानात :
अल कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है और तुम से पूछते हैं हैज़ का हुक्म, तुम फ़रमाओ वह नापाकी है।
📙 सूरह - ए - बकरा
हालते हैज़ में जो खून निकला करता है वह एक गंदा और जरासीम से आलूदा खून हुआ करता है। उसके अन्दर ज़हरीला माद्दा भी होता है। यह खून औरत के जिस्म में ज़ाइद और बेकार हुआ करता है। अगर यह खून औरत के जिस्म में रह जाय तो औरत मुख़्तलिफ़ बीमारियों में मुब्तिला हो जाती है। इस हालत में हमबिस्तरी करना मर्दो औरत दोनों के लिये नुकसानदेह है। ख़ास तौर से औरत की सेहत के लिये ज़्यादा मुज़िर है। क्योंकि औरत की फ़र्ज (शर्मगाह) से लगातार गंदा खून जारी होता रहता है, जिसकी वजह से वह मकाम इन्तिहाई नरमो नाजुक हो जाता है। अब अगर ऐसी हालत में जिमाअ किया जाए तो उस मकाम में रगड़ की वजह से ज़ख़्म, सोज़िशे रहम वगैरह अमराज़ लाहिक़ होने का अन्देशा रहता है। मर्द में सुज़ाक, आतिशक, एड्स वगैरह होने का इमकान ज़्यादा हो जाता है।
अतिब्बा ने लिखा है कि हालते माहवारी में हमबिस्तरी करने से आतिशक वगैरह पैदा हो जाने का अन्देशा है और अगर इस सोहबत से हम्ल ठहर जाय तो मुमकिन है कि बच्चा कोढ़ी पैदा हो। हदीस में है कि हैज़ की औलाद को जुज़ाम हो जाता है।
*📕 तफ़सीरे नईमी पारा 2 पेज 404*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -84)
हालते हैज़ में औरत अछूत नहीं :
कुछ मज़हबों में औरत को हालते हैज़ में ऐसा नापाक और अछूत समझा जाता है कि उनके साथ खाना, पीना या उनके हाथ से खाना पीना, बोसो - किनार करना वगैरह सब क़ाबिले नफ़रत समझते हैं। यहां तक कि उनके साथ उठना बैठना भी छोड़ देते हैं। ये सब लग्व, बेहूदा और जिहालत की बातें हैं इस्लाम एतिदाल का हुक्म देता है औरत हालते हैज़ में ऐसी नापाक नहीं हो जाती कि उसके साथ खाना - पीना, उठना बैठना भी हराम हो जाय। बल्कि औरत हालते हैज़ में फ़ातिहा वगैरह का खाना भी बना सकती है जो लोग औरतों को हालते हैज़ में अछूत समझते हैं, वे निरे जिहालत में हैं मुशरिकों और यहूदियों की पैरवी करते हैं।
सरकार मुफ्ती ए आज़म हिन्द अपने एक फ़तवे में लिखते हैं जो लोग ऐसा करते हैं, वे नाजाइज़ो गुनाह का काम करते हैं और मुश्रिकीन, यहूद और मजूस की पैरवी करते हैं हालते हैज़ में सिर्फ सोहबत (नाफ़ से लेकर घुटने तक, इस दरमियान से फायदा हासिल करना) नाजायज़ है बस इससे परहेज़ ज़रूरी है मुश्रिकीनो यहूद और मजूस की तरह हैज़ वाली औरत को भंगन से भी बदतर समझना बहुत नापाक ख्याल, निरा जुल्म, अज़ीम वबाल है, यह उनकी मनघड़त है।
📙 फ़तावा मुस्तफ़विया जिल्द 3 पेज 13
नाफ़ से ऊपर और घुटने से नीचे किसी तरह नफ़अ लेने में कोई हरज नहीं यहां तक कि बोसो किनार भी जाइज़ है। इसी तरह अपने साथ खिलाना या एक जगह सोना जाइज़ है, बल्कि इस वजह से साथ न सोना मकरूह है।
📗 बहारे शरीअत हिस्सा 2 पेज 78
अगर साथ सोने में गल्ब ए शहवत और अपने को काबू में न रखने का एहतिमाल हो तो साथ न सोए और अगर गुमाने गालिब हो तो साथ सोना गुनाह।
*📕 बहारे शरीअत हिस्सा 2 पेज 79*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -85)
हैज़ के बाद सोहबत कब जाइज़ है :
अगर हैज़ का खून दस दिन से कम में रूक गया तो उसमें दो सूरतें हैं या तो औरत की आदत से भी कम में ख़त्म हुआ तो उससे सोहबत अभी जाइज़ नहीं, अगरचे नहा ले और अगर आदत से कम नहीं मस्लन पहले महीने सात दिन आया था, अब भी सात या आठ रोज़ आकर ख़त्म हुआ या पहला ही हैज़ है जो उस औरत को आया और दस दिन से कम में ख़त्म हुआ तो उस से सोहबत जाइज़ होने के लिये दो बातों में से एक बात ज़रूरी है। या तो औरत नहा ले और अगर मर्ज़ की वजह से या पानी न होने की वजह से नहा न सके तो तयम्मुम करके नमाज़ भी पढ़ ले, सिर्फ तयम्मुम काफ़ी नहीं या तहारत न करे तो इतना हो कि उस पर कोई नमाज़ फर्ज़ हो जाय यानी नमाज़े पंजगाना से किसी नमाज़ का वक़्त गुज़र जाए, जिसमें कम से कम उसने इतना वक़्त पाया हो जिसमें नहा कर तक्बीरे तहरीमा कह सकती थी और अगर पूरे दस दिन पर हैज़ ख़त्म हुआ तो पाक होते ही हमबिस्तरी जाइज़ है, अगरचे अब तक गुस्ल न किया हो, मगर बेहतर यह है कि नहाने के बाद हमबिस्तरी करे।
*📙 फतावा रज़विया जिल्द 2 पेज 34-35*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -86)
राज की बातों का बयान करना :
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कयामत के दिन सबसे ज़्यादा बदबख़्त वह मर्द होगा जो अपनी बीवी की खास बातें लोगों में ज़ाहिर करे इसी तरह वह औरत जो अपने शौहर की खास बातें अपनी सहेलियों को सुनाए। यह अज़ीम गुनाह है।
📙 मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 1, पेज 464
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जिस किसी ने सोहबत की बातें लोगों में बयान की, उसकी मिसाल ऐसी है जैसे शैतान औरत ने शैतान मर्द से आम चौराहे पर मुलाकात की और खुले आम लोगों के सामने ही सोहबत करने लगे।
*📙 अबू दाऊद पेज 296*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -87)
राज की बातों का बयान करना :
मियां-बीवी में से हर एक शबे ज़िफाफ की बातें (यानी मर्द अपने दोस्त अहबाब को सुनाया करता है और बीवी अपनी सहेलियों को सुनाया करती है) यह कत्अन नाजाइज़ और जाहिलाना तरीका है सरासर बेशर्मी और बेहयाई है।
साहिबे गुनिय्या फ़रमाते हैं अपनी बीवी से जिमाअ करने की हालतो कैफियत का तजकिरा करना न मर्द के लिये जाइज़ है, न ही औरत के लिये कि वह किसी दूसरी औरत से उसका तज़्किरा करे यह रज़ालत और छिछोरापन है, अक्लन और शर्अन दोनों एतिबार से कबीह और बुरा है।
📙 गुनिय्या पेज 117
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -88)
अपनी बीवी को देखने और छूने का बयान :
मर्द व औरत का एक दूसरे की शर्मगाह को छूना जाइज़ बल्कि बनियते सालिहा मोजिबे अजरो सवाब है।
📙फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 228
अपनी औरत से बोसो किनार करना मुस्तहब व मस्नून है बल्कि अच्छी नियत से हो तो बाइसे अजरो सवाब है। इसी तरह मर्द का अपनी औरत के पिस्तान का मुंह में लेकर चूसना जाइज़ है, अगर दूध वाली न हो और अगर दूध वाली औरत है तो न चूसना बेहतर है कि इसमें दूध के हलक तक पहुंचने का अन्देशा है।
📙फतावा रज़विया जिल्द 5 पेज 568
औरत के मकामे मखसूस की तरफ़ नज़र न करे कि इससे निस्यान (भूल का मर्ज़) पैदा होता है और निगाह भी कमज़ोर होती है।
📙रदूल मुहतार जिल्द 5, पेज 2581
शौहर का बीवी से और बीवी का शौहर से कोई पर्दा नहीं, मर्द अपनी बीवी का सर से लेकर पैर तक सारा बदन देख और छू सकता है इसी तरह औरत का मर्द के हर हिस्स - ए - बदन को देखना और छूना जाइज़ है, ख्वाह शहवत के साथ हो या बगैर शहवत।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -89)
बीवी से जुदा रहने की मुद्दत :
मर्द को चाहिये कि कम से कम चार माह में एक बार अपनी बीवी से सोहबत ज़रूर करे, बिला वजह औरत को छोड़ कर बहुत दिन सफ़र में न रहे। जो लोग शादी करके बीवी से अलग थलग रहते हैं और औरत के साथ उसके बिस्तर का हक अदा नहीं करते, वे हक्कुल इबाद में गिरफ्तार और बहुत बड़े गुनाहगार हैं। अगर शौहर किसी मजबूरी से अपनी औरत के उस हक को अदा न कर सके तो शौहर पर लाजिम है कि औरत से उसके इस हक को माफ़ कराये। औरत के इस हक की कितनी अहमियत है, इस बारे में हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर फारूक رضى الله تعالیٰ عنه का एक वाकिआ बहुत ज़्यादा इबरतनाक और नसीहत आमेज़ है।
एक मर्तबा रात के वक़्त हस्बे मअमूल हज़रत फारूके आज़म رضى الله تعالیٰ عنه रिआया (Public) की खबरगीरी के लिये शहरे मदीना में गश्त फरमा रहे थे कि अचानक एक मकान से दर्दनाक अश्आर पढ़ने की आवाज़ सुनी। आप उसी जगह खड़े हो गए और गौर से सुन्ने लगे तो एक औरत दर्द भरे लहजे में कुछ अशआर पढ़ रही थी जिनका महफूम यह है खुदा की कसम ! अगर खुदा के अज़ाब का खौफ़ न होता तो बिला शुबाह इस चारपाई के किनारे जुम्बिश में हो जाते। अमीरूल मोमिनीन ने सुबह को जब तहकीकात की तो मालूम हुआ कि इस औरत का शौहर जिहाद के सिलसिले में कई माह से बाहर गया हुआ है और यह औरत उसको याद करके फ़िराक़ के गम में ये अश्आर पढ़ रही है। अमीरूल मोमिनीन के दिल पर इसका इतना गहरा असर पड़ा कि सुबह ही को उसके शौहर की तलब के लिये कासिद रवाना कर दिया। इसके बाद आप अपनी साहिबज़ादी हज़रत हफ्सा رضى الله تعالیٰ عنها के पास तशरीफ़ ले गए और उनसे फ़रमाया मुझे एक मुश्किल मसअला दरपेश है, तुम उसको हल कर दो।
मसअला यह है औरत बगैर मर्द के कितने दिन सब्र कर सकती है ?" उन्होंने जवाब दिया "तीन माह या ज़्यादा से ज़्यादा चार माह" वहाँ से वापस आकर आपने तमाम सिपहसालारों को यह फ़रमान लिख भेजा "कोई शादी शुदा फ़ौजी चार माह से ज़्यादा अपनी बीवी से जुदा न रहे।
📙 तारीखुल खुलफा पेज 97
औरत को छोड़ कर सफ़र में जाना या किसी मुलाज़िमत में जाना अगर ज़रूरत से हो तो जाइज़ है, इसकी कोई हद नहीं। अलबत्ता बेज़रूरत चार माह से ज़ाइद जुदा रहना मना है।
*📕 फतावा रज़विया जिल्द 5 पेज 569*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -90)
हम्ल अज्ल या कंडोम का इस्तेमाल :
बीवी से हमबिस्तरी के वक़्त इन्जाल से पहले अलग हो कर मनी बाहर निकालने को अज्ल कहते हैं। ऐसा इसलिये करते हैं ताकि हम्ल से रोका जा सके इसी मक्सद के लिये कंडोम वगैरह का भी इस्तिमाल करते हैं। इस सिलसिले में उलमाए किराम के अकवाल मुख्तलिफ़ हैं। सही कौल यह है कि अगर उज़रे शरई हो तो ऐसी सूरत में अज्ल या कंडोम या दीगर चीज़ों का इस्तिमाल करना बिला कराहत जाइज़ है मसलन बच्चा छोटा है जो माँ का दूध पी रहा है और शौहर को अन्देशा है कि जिमाअ करने पर हम्ल ठहर जायगा और हम्ल ठहर जाने से माँ का दूध खराब या बन्द हो जायगा और बच्चे के वालिद में किसी दाई को उजरत पर रख कर दूध पिलाने की ताकत नहीं और बच्चे की हलाकत का खौफ है या हम्ल ठहर जाने से बच्चे की विलादत में दुश्वारी होगी तो इन सूरतों में ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं।
📙 तफ्सीरे अज़ीज़ी पारा 30 पेज 64
शाह अब्दुल अजीज़ मुहदिस देहलवी दूसरी जगह फरमाते हैं दवाओं का इस्तिमाल जिमाअ से पहले या जिमाअ के बाद कि हम्ल न रहने पाए अज़्ल के मानिन्द जाइज़ व दुरूस्त है।
📙 तफसीरे अज़ीज़ी पारा 30 पेज 65
*⚠️ नोट :-* यहाँ भी शाह साहिब की मुराद बतौरे ज़रूरत है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -91)
हम्ल अज्ल या कंडोम का इस्तेमाल :
अल्लामा शामी फरमाते हैं मानेअ हम्ल (गर्भ निरोधक) या मुस्कृिते हम्ल अद्वियात (दवाओं) का इस्तिमाल इस सूरत में जाइज़ है जबकि इस्तिकरारे हम्ल न हुआ हो या इस्तिकरारे हम्ल के बाद शिकमे मादर (माँ के पेट) में बच्चे की खिल्कत ताम न हुई हो और न ही उसमें रूह डाली गई हो। इस सूरत में इस किस्म की अद्वियात का इस्तिमाल जाइज़ है लेकिन बच्चे की खिल्कत ताम हो जाने और उसमें रूह फूंकने के बाद इस किस्म की दवाओं का इस्तिमाल नाजाइज़ व हराम है।
📙 रद्दुल मुहतार जिल्द 2 पेज 389
इमामे अहले सुन्नत आला हज़रत फाजिले बरेलवी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं जान पड़ जाने के बाद इस्काते हम्ल (हम्ल का गिराना) हराम है और ऐसा करने वाला गोया कातिल है और जान पड़ने से पहले अगर कोई ज़रूरत है तो हर्ज नहीं।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 524
सय्यिदुना सरकारे आला हज़रत दूसरी जगह फरमाते हैं ऐसी दवा का इस्तिमाल जिससे हम्ल न होने पाए, अगर किसी ज़रूरते शदीदा काबिले कुबूल शरअ के सबब है तो हर्ज नहीं, वरना सख्त बुरा व मअयूब है और शर्अन ऐसा कस्द नाजाइज़ व हराम है।
*📙 फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 563*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -92)
अय्यामे हम्ल :
साहिबे गुनिय्या लिखते हैं जो हामिला औरत हम्ल की तकलीफ़ बरदाश्त करती है तो, उसके लिये कायमुल्लैल और साइमुन्नहार (यानी पूरी रात इबादत करने और पूरे दिन रोज़ा रखने) का सवाब मिलता है और अल्लाह की राह में जिहाद करने का अज्र मिलता है और जब उसे दर्दज़ह लाहिक़ होता है तो हर दर्द के बदले उसको एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है।
📔 गुनिय्या पेज 113
औरत को अय्यामे हम्ल में काफ़ी तक्लीफ़ होती है। औरत को चाहिये कि इस तक्लीफ को हंसी खुशी बरदाश्त करे, ज़बान पर कोई शिकवा शिकायत न लाए। रसूलुल्लाह ﷺ ने ऐसी औरत के लिये पैशगोई फ़रमाई है कि औरत ज़मानए हम्ल से लेकर दूध छुड़ाने तक उस ग़ाज़ी की तरह है जो सरहदों की निगरानी करता है और अगर औरत दर्दज़ह की तकलीफ़ में इन्तिकाल कर जाए तो उसको शहादत का सवाब मिलता है। हामिला औरत को चाहिये कि हम्ल के ज़माने में खुशो खुर्रम रहे, रंजो ग़म करीब में भी भटकने न दे। अक्सर गुस्ल करे, साफ़ सुथरे कपड़े पहने, गिज़ा हल्की मुअतदिल और मुकव्वी खाये, ज़्यादा सर्द या ज़्यादा गर्म चीज़ों से परहेज़ करे, खूबसूरत तस्वीरें देखे और अपने खूबसूरत रिश्तेदारों के पास बैठे, बेवक़्त सोने और जागने से परहेज़ करे, सकील और गर्म गिज़ा न खाये, सख्त बिस्तर पर न सोये, फल खुसूसन सन्तरे का इस्तिमाल ज़्यादा करे। सन्तरे का खाना औलाद के खूबसूरत होने की दलील है। दिलो दिमाग को गंदे और बुरे ख्यालात से पाको साफ़ रखे, इसलिये कि इसका असर कुद्रती तौर से बच्चे पर पड़ता है।
औरत से अय्यामे हम्ल में भी हमबिस्तरी करना जाइज़ है मगर अतिब्बा (हकीमों) के नज़दीक जिमाअ न करना बेहतर है।
साहिबे गुनिय्या फरमाते हैं हम्ल ज़ाहिर होने पर मर्द को लाज़िम है कि औरत की गिज़ा हराम बल्कि हराम के शुबह से भी पाक रखे ताकि बच्चे की नश्वो नुमा इस पर हो कि शैतान की वहाँ तक रसाई न हो सके। ज़्यादा बेहतर यह है कि हलाल गिज़ा की पाबन्दी पहले दिन ही से की जाए।
📔 गुनिय्या पेज 116
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -93)
बच्चे की पैदाइश :
अल कुरआन - अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है : और बेशक हमने आदमी को चुनी हुई मिट्टी से बानाया, फिर उसे पानी की बूंद किया एक मजबूत ठहराव में, फिर हमने उस पानी की बूंद को खून की फ़ुटक किया, फिर खून की फ़ुटक को गोश्त की बोटी, फिर गोश्त की बोटी को हड्डियां, फिर उन हड्डियों पर गोश्त पहनाया फिर उसे और सूरत में उठान दी, तो बड़ी बरकत वाला है अल्लाह, सबसे बेहतर बनाने वाला।
📙 पारा 18. सूरह - ए - मोमिनून
खालिके कायनात ने पैदा करने का तरीका यह रखा है कि पहले नुत्फे की शक्ल में माँ के रहम में रखा, फिर उस नुत्फे को बस्ता खून किया, फिर उस बस्ता खून को गोश्त का लोथड़ा किया, फिर उस लोथड़े में हड्डियाँ बनाई, फिर उन हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया, फिर उसे एक अच्छी सूरत में पैदा किया।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -94)
बच्चे की पैदाइश :
इसको इस तरह समझिये कि इस्तिकरारे मनी के बाद नुतफा एक सिफ्त से दूसरी सिफ़त की जानिब रफ़्ता रफ़्ता मुनतकिल होता है यानी नुतफा ठहरने के बाद खून के अज्ज़ा नुतफे से मखलूत होने लगते हैं यहाँ तक कि अरबईने ऊला के बिल्कुल आखिरी दिनों में नुतफा बस्ता खून हो जाता है, फिर रफ़्ता - रफ़्ता बस्ता खून से गोश्त के अज्जा मखलूत होने लगते हैं। यहाँ तक कि अरबईने सानिया के बिल्कुल अखीर में वह गोश्त का लोथड़ा हो जाता है, फिर तीसरे चालीस में तस्वीरे इंसानी की तकमील अमल में आती है। इसके बाद रूह डाली जाती है बच्चा कभी बाप के मुशाबह, कभी माँ के मुशाबह होता है इसकी वजह यह है कि औरत के रहम में दो खाने होते हैं दायां खाना लड़के के लिए और बायां खाना लड़की के वास्ते और अगर मर्द का नुत्फा गालिब आये तो लड़का बनता है और औरत का गालिब पड़ा तो लड़की बनती है।
फिर अगर मर्द का नुत्फा गालिब आया और रहमई सीधे खाने में पड़ा तो लड़का पैदा होगा ज़ाहिरो बातिन मर्द और गर औरत का नुत्फा गालिब आया और रहम के बायें खाने में पड़ा तो लड़की होगी ज़ाहिरो बातिन औरत और अगर मर्द का नुत्फा गालिब आया और रहम के बायें खाने में गिरा तो सूरतन तो लड़का होगा मगर दिल के ऐतिबार से ज़नाना होगा उसे दाढ़ी मुंडाने, ज़ेवर पहनने, हाथ पांव में मेंहदी लगाने, औरतों जैसे बाल रखने, जूड़ा बांधने वगेरह जनानी वज़ा का शोक होगा और अगर इस हालत में मर्द का नुत्फा खफीफ गालिब हो तो वह बच्चा ज़नाना, जनखा बन जायगा और अगर औरत का नुत्फा गालिब आया और रहम के दाहिने खाने में गिरा तो होगी तो सूरतन लड़की मगर दिल के ऐतिबार से मर्दानी। उसे घोड़े पर चढ़ने, तलवार चलाने, साईकिल और मोटर साईकिल चलाने, मर्दाना जूता पहनने वगेरह मर्दानी वज़ा का शौक होगा।
*📙फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 362*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -95)
औलाद के कातिल :
इस दौर में हर आदमी अपने आपको तरक्की याफ्ता और मार्डन कहलवाना ज़्यादा पसंद करता है और अपने इसी जुअमे फ़ासिद में ऐसी हरकतें कर बैठता है जो आज से तकरीबन साढ़े चौदह सो (१४५०) साल पहले अरब के दरिन्दा सिफत इंसान किया करते थे बल्कि ये तो कुछ मआमलों में इनसे भी गये गुज़रे नज़र आते हैं। अरब में अगर किसी के घर लड़की पैदा होती तो लड़कियों का पैदा होना बाइसे नंग व आर और कबीह तसव्वुर करते थे और अपनी गैरियत व हमिय्यत की के ख़ातिर उसे ज़िन्दा दरगोर कर देते थे और अगर किसी के घर लड़का पैदा होता तो लाडो प्यार से उसकी परवरिश करते थे। बस वही काम इस दौर में कुछ पढ़े लिखे मार्डन कहलाने वाले जाहिल कर रहे हैं लेकिन तरीका थोड़ा बदला हुआ है।
होता यह है कि तिब्बी जाँच (डॉक्टरी चेकअप) के ज़रिये मालूम कर लेते हैं कि औरत के पेट में लड़का है या लड़की ? अगर लड़की मालूम होती है तो उसे ख़त्म कर देते हैं यानी हम्ल गिरा देते हैं और अगर मालूम हुआ कि लड़का है तो उसकी निगाहदाश्त रखते हैं ताकि पैदाईश के बाद अच्छी तरह उसकी परवरिश कर सकें।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -96)
औलाद के कातिल :
किस कदर ज़ालिम हैं वो मर्द व औरत जो एक नन्ही सी जान को दुनिया में आँखें खोलने से पहले ही मौत की नींद सुला देते हैं। क्या ये ज़मान - ए - जाहिलियत के जाहिलों की पैरवी नहीं ? क्या ये साफ़ खुला हुआ क़त्ल नहीं ? ऐसी औरतें यकीनन माँ के रिश्ते पर एक बदनुमा दाग़ हैं, समाज के लिए एक नासूर हैं जो अपने शिकम (पेट) में परवान चढ़ रही औलाद को सिर्फ इसलिए सज़ा देती हैं कि वह एक लड़की है। क्या ये औरतें यह सोचने के लिए तैयार नहीं कि वे भी तो पहले अपनी माओं के पेट में थीं। अगर इनकी माएं इन्हें न जनतीं और पेट में ही खत्म कर देतीं तो क्या आज वे दुनिया में मौजूद होती ?
*अल कुरआन -* अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : तहक़ीक कि तबाह हुए वे जो अपनी औलाद को कत्ल करते हैं अहमकाना जिहालत से।
📙 सूरह इनआम
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -97)
औलाद के कातिल :
इसी तरह आज के दौर में बर्थ कन्ट्रोल (Birth Control) का तरीका उरूज पर है। यानी एक दो बच्चे पैदा होने के बाद या तो मर्द नसबन्दी करा लेता है या फिर औरत का आपरेशन करा देता है ताकि। तवालुद वतनासुल का सिलसिला हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए। ऐसा करना इस्लाम में सख्त नाजाइज़ व हराम और अशद दर्जा गुनाह है। इसी तरह बगैर उज़रे शरई के ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करना भी हराम है जिनसे बच्चों की पैदाईश हमेशा के लिए बन्द हो जाए। आजकल आम तौर पर लोगों में यह ख्याल पाया जा रहा है कि ज्यादा बच्चे होंगे तो खाने - पीने की किल्लत होगी, खर्च बढ़ जाएगा रहने - सहने के लिए जगह और मकान की तंगी होगी, शादी ब्याह करने में परेशानी आएगी वगैरह वगैरह। यह ख्याल सिर्फ गैर मुस्लिमों का नहीं बल्कि आज के मार्डन मुसलमानों का भी है। यकीनन इस किस्म के बुरे ख्यालात शरीअते इस्लामी के बिल्कुल ख़िलाफ़ हैं मुसलमानों को ऐसा अकीदा रखना नाजाइज़ व हराम है इंसान की क्या ताक़त कि वह किसी को खिलाए और किसी की परवरिश करे बल्कि हकीकत में खिलाने, पिलाने वाला अल्लाह तआला है, वही सबको रोज़ी देता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -98)
औलाद के कातिल :
अल कुरआन, अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : और ज़मीन पर चलने वाला कोई ऐसा नहीं जिसका रिज़्क अल्लाह के ज़िम्म - ए - करम पर न हो।
📙 सूरह हूद
अल कुरआन, दूसरी जगह रब्बे कायनात इरशाद फ़रमाता है : और अपनी औलाद को क़त्ल न करो मुफ़लिसी के डर से, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी, बेशक क़त्ल बड़ी खता है।
📙 सूरह बनी इस्राईल
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है उन्होंने कहा कि मैंने हुजूर ﷺ से पूछा या रसूलल्लाह! कोन सा गुनाह सबसे बड़ा है फ़रमाया" तू अल्लाह का किसी को शरीक ठहराये हालांकि उसने तुझे पैदा किया है, फिर पूछा इसके बाद कौन सा फ़रमाया "तू अपनी औलाद को इस डर से कत्ल करे कि वह तेरे साथ खायेगी।
*📙 बुख़ारी शरीफ जिल्द 2 पेज 887*
देखा आपने औलाद को क़त्ल करना कितना बड़ा गुनाह है काश मुसलमान इस हदीस से इबरत हासिल करें और अपने बच्चों को माओं के पेट ही में कत्ल करने से बचें।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -99)
लड़कियों का पैदा होना बाइसे रहमत है :
पुराने ज़माने में लड़कियों का पैदा होना बाइसे नंग व आर समझा जाता था, समाज व मुआशिरे में बुरा तसव्वुर किया जाता था। अरब के लोग अपनी जिहालत व दरिंदगी का मुज़ाहिरा करते हुए कभी इसे भेंट चढ़ाते और कभी जिन्दा कब्र मे दफ़न कर देते थे सदियों से यही पुरानी रस्म चली आ रही थी लेकिन मोहसिने इंसानियत के दुनिया में तशरीफ़ लाते ही इन बुरी रस्मों का खात्मा हो गया और आपने उन दरिन्दा सिफ़त इंसानों को इस्लाम के सांचे में ढाल दिया ज़िन्दगी का सलीका सिखाया और सही मानों में इस्लाम का शैदाई बना दिया और आप ने बबांगे दुहल दुनिया वालों को पैगाम सुना दिया कि लड़कियों का पैदा होना बाइसे ज़हमत नहीं बल्कि बाइसे रहमत है। उनकी पैदाईश वबाले जान नहीं बल्कि जहन्नम से बचाने के लिए एक वसीला है इनकी परवरिश अल्लाह व रसूल की खुशनूदी और जन्नत में जाने का एक ज़रिया है।
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है, उन्होंने कहा कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया जिस शख्स के लड़की पैदा हुई और उसने न उसको जिन्दा दफ़न किया, न उसे बेवक्अत समझा, न अपने बेटे को उस पर तरजीह दी तो अल्लाह तआला जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा।
*📙 अबू दाऊद पेज 700*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -100)
लड़कियों का पैदा होना बाइसे रहमत है :
हज़रत अनस رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है, उन्होंने कहा, फ़रमाया रसूलुल्लाह ﷺ ने जिसकी परवरिश में दो लड़कियां बुलूग तक रहीं तो कयामत के दिन इस तरह आयगा कि मैं और वह बिल्कुल पास - पास होंगे यह कहते हुए हुज़ूर ﷺ ने उंगलियां मिला कर फ़रमाया कि इस तरह।
*📙 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2 , पेज 330*
हज़रत सुराका बिन मालिक رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि हुजूर ﷺ ने फ़रमाया 'क्या मैं तुमको यह न बता दूं कि अफ़ज़ल सदका क्या है तुम्हारी बेटी जो तुम्हारे पास लौट कर आयी है (मुतल्लका या बेवा होने के सबब) उसका तुम्हारे सिवा कोई कफ़ील न हो।
📙 इब्ने माजा पेज 261
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -101)
बच्चे को दूध पिलाना :
अल कुरआन - अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : और माऐं दूध पिलाएं अपने बच्चों को पूरे दो बरस, उसके लिए जो दूध की मुद्दत पूरी करनी चाहिए।
📙 सूरह अल बक्र
लड़की हो या लड़का दोनों को दो साल तक दूध पिलाया जाए। माँ बाप चाहें तो दो साल से पहले भी दूध छुड़ा सकते हैं मगर दो साल के बाद पिलाना मना है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 29
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -102)
बच्चे को दूध पिलाना :
हज़रत अबू उमामा رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि नबी ए करीम ﷺ ने फ़रमाया शबे मेराज मैंने कुछ औरतें ऐसी देखीं जिनके पिस्तान लटके हुए और सर झुके हुए थे। उनके पिस्तानों को सांप डस रहे थे। जिब्रीले अमीन ने बताया या रसूलल्लाह (ﷺ)! यह वे औरतें हैं जो अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाती थीं।
*📙 शरहुस्सुदूर पेज 153*
☝🏻आज की औरतें इस हदीस से इबरत हासिल करें जो अपने बच्चे को दूध नहीं पिलातीं बल्कि गाय, भेंस या डिब्बे का दूध पिलाती हैं। उनका ख्याल है कि बच्चे को दूध पिलाने से औरत का हुस्न और उसकी खूबसूरती ख़त्म हो जाती है जबकि यह ख्याल सरासर बातिल और लम्व है। हकीकत यह है कि बच्चे को दूध पिलाना सिर्फ बच्चे ही के लिए मुफीद नहीं बल्कि खुद माँ के लिए भी मुफीद है। दूध पिलाने से न औरत में किसी किस्म की कोई कमज़ोरी आती है और न ही उसके हुस्न व जमाल पर कोई फर्क पड़ता है। जो मायें अपने बच्चों को दूध नहीं पिलातीं वे अकसर छाती के मर्ज़ों और दीगर जिल्दी बीमारियों में मुब्तिला हो सकती हैं। औरत के लिए बच्चे को दूध पिलाना जिस्मानी और दीनी दोनों ऐतिबार से फ़ायदे मंन्द है बल्कि औरत दूध पिलाकर बहुत बड़े सवाबे अज़ीम की मुसतहिक बनती है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -103)
बच्चे को दूध पिलाना :
उम्मुलमोमेनीन हज़रत आयशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنها से मरवी है कि हुजूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया "जो औरत अपने बच्चे को दूध पिलाती है और जब बच्चा माँ के पिस्तान से दूध की चुसकी लेता है तो हर चुसकी के बदले उस औरत को एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है। जब औरत बच्चे को दूध छुड़ाती है तो आसमान से निदा आती है कि ऐ नेक खातून तेरी पिछली ज़िन्दगी के सारे गुनाह माफ़ कर दिये गए, अब तू नये सिरे से ज़िन्दगी बसर कर।
*📙 गुनिय्या पेज 113*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -104)
बच्चे को दूध पिलाना :
माँ की रजामन्दी के बगैर बच्चे की परवरिश किसी से नहीं कराई जा सकती क्योंकि माँ का हक है। हाँ, जब माँ का दूध न हो या हो मगर नुकसान दे या माँ किसी वजह से आजिज़ है या बच्चा खुद नहीं पीता है तो ऐसी सूरत में बच्चा दाई को दिया जाए या गाय, भैंस, डिब्बा वगैरह के दूध से परवरिश की जाए।
*📙 तफसीरे नईमी जिल्द 2, पेज 472*
☝🏻अतिब्बा (हकीमों) की तहक़ीक़ के मुताबिक माँ का दूध बच्चे के लिए सबसे ज़्यादा मुफीद है। माँ का दूध पीने से बच्चे को बीमारी कम पैदा होती है। मुशाहिदा शाहिद है कि जो बच्चे अपनी माँ का दूध पीते। हैं वे ज़्यादा सेहतमन्द और तंदरूस्त रहते हैं। इसके बरखिलाफ जो बच्चे अपनी माँ के दूध से महरूम रहते हैं वे कमज़ोर होते हैं और मुख़्तलिफ़ अमराज़ में मुब्तिला रहते हैं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -105)
बच्चे को दूध पिलाना :
*हिकायत :* हज़रत शेख इब्ने मुहम्मद जुवेनी رضى الله تعالیٰ عنه अपने घर में आये तो देखा कि उनके बेटे इमाम अबुल मुआली को कोई दूसरी औरत दूध पिला रही है। आपने उससे बच्चे को छीन लिया और बच्चे के मुँह में उंगली डालकर तमाम दूध उलटी करा दिया और से शराफ़त पैदा होती है और जांकनी में आसानी। जब इमाम अबुल मुआली رضى الله تعالیٰ عنه जवान हुए तो बहुत बड़े आलिम बने लेकिन कभी - कभी आप मुनाज़िरे में तंग दिल हो जाते थे और फ़रमाते थे कि शायद उसी दूध का असर मेरे पेट में रह गया है जिसका यह नतीजा है।
*📙 तफसीरे नईमी जिल्द 2, पेज 472*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -106)
शादी की रस्में :
दूल्हा - दुल्हन को उबटन या हल्दी वगैरह मलना जाइज़ है। दूल्हा की उम्र अगर नो दस साल की हो तो अजनबी औरत भी उसके बदन में उबटन हल्दी वगैरह लगा सकती है। हाँ, अगर दूल्हा बालिग हो तो नामहरम औरत का उसके बदन पर हाथ लगाना नाजाइज़ है, शादी ब्याह के मौके पर अकसर जवान औरतें बालिग दूल्हा के बदन पर उबटन वगैरह मलती हैं, यह नाजाइज़ और सख्त हराम है, मुसलमानों को इससे एहतिराज़ (बचना) लाज़िम है।
*📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 434*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -107)
शादी की रस्में :
यह रिवाज है कि मोहल्ले या रिश्ते की औरतें जमा होती हैं और गाती बजाती है, यह हराम है, अव्वलन ढोल बजाना हराम, फिर ओरतों का गाना मजीद बरआं, औरतों की आवाज़ नामहरमों तक पहुंचाना यह रस्मों की पाबन्दी करना उसी हद तक जाइज़ है कि किसी हराम काम का इरतिकाव न करना पड़े, कुछ लोग रस्मों की पाबन्दी इस तरह करते हैं कि हरामो नाजाइज़ काम तक कर बैठते हैं, अकसर जाहिलों में अलैहदा हराम है, बहुत बअज़ जगह "रत जगा" भी होता है कि रात भर औरतें गाती हैं और गुलगुले पकते हैं, सुबह को मस्जिद में ताक़ भरने जाती हैं, ये बहुत सी वाहियात व खुराफ़ात पर मुशतमिल है, नियाज़ फातिहा घर में भी हो सकती है, कुछ जगह दूल्हा को मेंहदी लगाते और उसके नाखुनों में नाखुन पालिश लगाते नाजाइज़ है, हाँ, दूल्हा के सर पर फूलों का सेहरा सजाना जाइज़ है, बअज़ जगह शादियों में नाच, बाजे, ढोल, तमाशे वगैरह होते हैं, ये अशद हराम हैं। इनकी हुरमत से कौन वाकिफ नहीं ? मगर बअज़ लोग ऐसे मुनहमिक होते हैं कि ये न हों तो गोया शादी ही न हुई बल्कि बअज़ तो इतने बेबाक होते हैं कि अगर शादी में ये महरमात न हों तो उसे गमी और जनाज़े से ताबीर करते हैं। यह ख्याल नहीं करते कि एक तो गुनाह और शरीअत की मुखालिफ़त है, दूसरे माल ज़ाए करना है तीसरे तमाम तमाशाईयों के गुनाह का सबब है, उस पर सबके मजमूए के बराबर गुनाह का बोझ होगा।
*📙 बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 93 हादीउनास*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -108)
शादी की रस्में :
आजकल तो शादियों में वीडियो या केमरे के ज़रिये तस्वीर कशी करवाना शादी का एक अहम हिस्सा बन चुका है, इधर काज़ी साहब ने निकाह पढ़ाया, उधर यह शैतानी आला सामने आ गया और फ़ोटो ग्राफी का अम्ल शुरू हो गया। जवान - जवान लड़कियां ज़र्क बर्क लिबास में मलबूस होकर हंस - हंस कर सबके सामने फोटो खिंचवा रही हैं कोई उनको बुरा नहीं समझता, फिर इसी पर बस नहीं बल्कि यह शैतानी आला ज़नाने कमरे में पहुंचा और वहाँ हमारी माँ बहने बेनकाब होकर खूब मजे ले - ले कर फोटो खिंचवाती हैं और फिर टीवी के स्क्रीन पर अपनी नुमाइश कराती हैं जिन लोगों ने हमारी माँ बहनों को कभी नहीं देखा था, वे अब टीवी के स्क्रीन पर बेनकाब देख रहे हैं अल्लाह अल्लाह! कहाँ गया मुसलमानों का एहसास और कहाँ गई इनकी गैरते ईमानी ? 😢
🤲🏻 अल्लाह तआला तमाम मुसलमानों को राहे हक पर चलने की तौफीक अता फरमाये। *आमीन*
बअज़ जगह शादियों के मौके पर रात भर आतिशबाज़ी करते हैं, यह भी हराम है, इसमें माल बर्बाद करना है लिहाज़ा जिन शादियों में ऐसी हरकतें हों मुसलमानों पर लाज़िम है कि उनमें हरगिज़ शरीक न हों।
*📙 बहारे शरीअत हिस्सा 7, पेज 93 हादीउनास*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -109)
तलाक का बयान :
निकाह से जो दो अजनबियों के दरमियान एक रिश्ता और तअल्लुके खास पैदा हुआ था, उसी रिश्ते और तअल्लुक को तोड़ देने का नाम तलाक है तलाक़ शरीअत में अगरचे एक मुबाह चीज़ है लेकिन उसका इस्तेमाल ख़ास दुश्वारियों और परेशानियों के वक़्त करना चाहिए। ऐसा नहीं कि मियाँ - बीवी में हल्की फुल्की कोई बात हुई या औरत में कुछ कमी देखी और फ़ोरन तलाक दे बैठे बल्कि आपस में पहले मेल-मिलाप और सुलह का रास्ता इख्तियार करना चाहिए।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -110)
तलाक का बयान :
कुराने मुकद्दस में रब्बे कायनात इरशाद फ़रमाता है फिर अगर वो तुम्हें पसंद न आयें तो करीब है कि कोई चीज़ तुम्हें नापसंद हो और अल्लाह उसी में बहुत भलाई रखे।
📙 सुरह अल निसा
मतलब यह है कि अगर औरत में कोई कमी हो जिसकी बिना पर वह शोहर को पसंद न आये तो भी यह मुनासिब नहीं कि शोहर फौरन दिल बर्दाश्ता होकर तलाक देने पर आमादा हो जाए बसा औकात ऐसा भी होता है कि औरत में इसके अलावा दीगर बहुत सी खूबियां होती हैं जो इज़दिवाजी ज़िन्दगी के लिए बड़ी अहमियत रखती हैं लिहाज़ा यह बात शरीअत को बिल्कुल पसंद नहीं कि आदमी छोटी - छोटी बातों पर इजदिवाजी तअल्लुकात ख़तम कर दे तलाक तो बिल्कुल आख़िरी रास्ता है जिसको बदरजए मजबूरी काम में लाना चाहिए वह भी अगर ज़रूरत है तो एक ही तलाक दे ताकि बाद में मेल मिलाप या सुलह की सूरत में 'रजअत' या सिर्फ निकाह ही से काम चल जाए वरना तीन तलाक की सूरत में 'हलाला' की ज़रूरत पड़ती है, जो औरत व मर्द दोनों के लिए बाइसे हतक (रूसवाई) होता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -111)
तलाक का बयान :
अल कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है 'यह तलाक दो बार तक है, फिर भलाई के साथ रोक लेना है या निकोई के साथ छोड़ देना है।
📙 सूरह अल बकरह
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर رضى الله تعالیٰ عنه फरमाते हैं कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया तमाम हलाल चीज़ों में सबसे ज़्यादा नापसंद चीज़ अल्लाह के नज़दीक तलाक़ है।
📙 अबू दाऊद पेज 296
यानी अगरचे अशद हाजत के वक़्त इसको इस्तेमाल करने की ज़रूरत है लेकिन फिर भी यह काम अल्लाह को पसंद नहीं।
हज़रत सोबान رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो औरत बगैर किसी हरज के शौहर से तलाक़ का सवाल करे, उस पर जन्नत की खुश्बू हराम है।
📙 तिरमिजी जिल्द 1 पेज 142
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -112)
तलाक का बयान :
हज़रत मआज़ رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशादा फ़रमाया ऐ मआज़! अल्लाह तआला ने कोई चीज़ गुलाम आज़ाद करने से ज़्यादा पसंदीदा रूए ज़मीन पर पैदा नहीं की और कोई चीज़ ज़मीन पर तलाक से ज़्यादा नापसंदीदा पैदा न की।
📙 मिशकात शरीफ पेज 284
हज़रत जाबिर رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया इबलीस अपना तख्त पानी पर बिछाता है और अपने लश्कर को भेजता है और सबसे ज़्यादा मर्तबा वाला उसके नज़दीक वह है जिसका फितना बड़ा होता है उनमें एक आकर कहता है 'मैंने यह किया, यह किया इबलीस कहता है 'तूने कुछ नहीं किया दूसरा आता है और कहता है 'मैंने मर्द और औरत में जुदाई डाल दी यानी तलाक दिलवा दी यह बात सुनकर इबलीस बहुत खुश हो जाता है और उसे अपने करीब कर लेता हे और कहता है हाँ, तू है, हाँ, तू है।
📙 मिशकात शरीफ पेज 18
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -113)
तलाक की किस्में :
तलाक हुक्म व नतीजे के एतिबार से तीन किस्म पर है रजई, बाइन, मुगल्लज़ा।
(1) *रजई :* वह तलाक है जिससे औरत फिलहाल निकाह से नहीं निकलती, हाँ, अगर इद्दत गुज़र जाए और रजत न करे तो अब निकाह से निकल जाएगी। इसमें शोहर को इद्दत के अन्दर लोटाने का हक रहता है।
(2) *बाइन :* वह तलाक है जिससे औरत निकाह से फोरन निकल जाए, इसमें शोहर बीवी की रजामन्दी से दोबारा निकाह कर सकता है, इद्दत के अन्दर हो या इद्दत के बाद।
3) *मुगल्लजा :* वह तलाक है जिसमें औरत निकाह से फौरन इस तरह से निकल जाती है कि बगैर हलाला शौहर के लिए हलाल नहीं रहती मुगल्लज़ा तीन तलाकों से होता है ख्वाह एक साथ दी हों या बरसों के फास्ले से, अलफ़ाज़े सरीहा (साफ लफ़्ज़ों) से दी हों या किनाया (इशारे) से।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -114)
तलाक की किस्में :
तलाक देना जाइज़ है मगर बेवजह शरई मकरूह व ममनू है और शरई वजह हो तो मुबाह बल्कि बअज़ सूरतों में मुस्तहब है मसलन औरत अपने शौहर को या औरों को तकलीफ देती है या नमाज़ नहीं पढ़ती।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضى الله تعالیٰ عنه फरमाते कि बेनमाज़ी को तलाक दे दूं अगरचे उसका मेहर ज़िम्मे बाकी हो, इस हालत के साथ दरबारे खुदाबन्दी में मेरी पेशी हो तो यह इससे बेहतर है कि उसके साथ ज़िन्दगी बसर करूं और बअज़ सूरतों में तलाक देना वाजिब है मसलन शोहर नामर्द या हिजड़ा है या उस पर किसी ने जादू या अमल कर दिया है कि जिमा (सोहबत) करने पर कादिर नहीं और इसके इज़ाले की भी कोई सूरत नज़र नहीं आती तो इन सूरतों में तलाक न देना सख्त तकलीफ पहुंचाना है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 8, पेज 5
हालते हैज़ में तलाक़ देना हराम व गुनाह है अगर किसी ने तलाक दे दी तो 'रजअत' वाजिब है।
📙 फतावा रविया जिल्द 5, पेज 604
माँ - बाप औरत को तलाक देने का हुक्म दें और न देने में इनकी ईज़ा व नाराज़गी हो तो तलाक देना वाजिब है, अगरचे औरत का कुसूर न हो।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 5, पेज 603
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -115)
खाने का बयान :
अल कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है 'हलाल व पाक खाना खाओ और अच्छे अमल करो।
जो कोई इस इरादे से खाना खाए कि मुझे इल्म व अमल का कुव्वत और आखिरत की राह चलने की कुदरत हासिल हो, उसका खाना, पीना भी इबादत है। इसलिए रसूले कायनात ﷺ ने इरशाद फरमाया कि मुसलमान का हर चीज़ पर सवाब मिलता है यहाँ तक कि उस लुकमे पर भी जो अपने मुंह या अपने बाल बच्चों के मुंह में डाले बसा औकात खाना खाना ज़रूरी व फर्ज हो जाता है लिहाज़ा हमें चाहिए कि जब खाना खाएं तो सुन्नते नबवी के मुताबिक़ खाएं इस तरह खाने में खाना भी खा लिया जाएगा और मुफ़्त में सवाब भी मिल जाएगा।
📙 कीमिया - ए - सआदत पेज 240
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -116)
खाने का बयान :
हज़रत अबु हरैरह رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया तुम में से कोई खाना खाए तो दाएं हाथ से और पिये तो दायें हाथ से और किसी से कुछ ले तो दाएं हाथ से और दे तो दाएं हाथ से क्योंकि शैतान बाएं हाथ से खाता, पीता और बाएं हाथ से ही लेता-देता है।
📔 इब्ने माजा पेज 235
हज़रत आयशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنها से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया जब कोई आदमी खाना खाए तो बिस्मिल्लाह पढ़े और अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाए तो यूं कहे *“बिस्मिल्लाहि अव्वलहू व आखिरहू"*
📔 अबू दाऊद पेज 529
उमय्या बिन मख़शी से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ तशरीफ फ़रमा थे और एक आदमी बगैर बिस्मिल्लाह पढ़े खाना खा रहा था, जब खाना खा चुका सिर्फ एक लुकमा बाकी रह गया तो जब यह लुकमा उठाया और पढ़ा *"बिस्मिल्लाहि अव्वलहू व आख़िरहू"* तो रसूलुल्लाह ﷺ देख कर मुस्कुरा उठे और आपने फ़रमाया शैतान इसके साथ खा रहा था, जब इसने अल्लाह का नाम लिया तो जो कुछ उसके पेट में था उगल दिया।
📙 अबू दाऊद पेज 529
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -117)
खाने का बयान :
हज़रत सलमान رضى الله تعالیٰ عنه ने कहा मैंने *'तौरात'* में पढ़ा था कि खाने की बरकत का सबब इससे पहले वुज़ू करना (यानी हाथ, मुंह धोना है) मैंने नबी ए करीम ﷺ से इसका ज़िक्र किया तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया खाने की बरकत खाने से पहले और खाने के बाद वुज़ू करने यानी हाथ, मुंह धोने में है।
📙 अबू दाऊद पेज 528
हज़रत जाबिर رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया तहकीक कि शैतान तुम्हारे हर काम में हाज़िर हो जाता है, यहाँ तक कि खाना खाने के वक़्त भी हाज़िर हो जाता है जिहाज़ा अगर कोई लुकमा गिर जाए और उसमें कुछ लग जाए तो साफ़ करके खा ले, उसे शैतान के लिए न छोड़े और जब खाने से फ़ारिग हो जाए तो उंगलियां चाट ले क्योंकि यह मालूम नहीं कि खाने के किस हिस्से में बरकत है।
📙 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 176
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -118)
खाने का बयान :
हज़रत आयशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنها से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ दौलतकदे में तशरीफ़ लाए, रोटी का टुकड़ा पड़ा हुआ देखा, आपने उसे लेकर साफ़ किया, फिर तनावुल फ़रमाया लिया और कहा ऐ आयशा ! अच्छी चीज़ का एहतिराम करो कि यह चीज़ यानी रोटी वगैरह जब किसी कोम से भागती है तो लोट कर नहीं आती।
📔 इब्ने माजा 240
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया आदमी ने पेट से ज़्यादा बुरा कोई बर्तन नहीं भरा! इब्ने आदम को चन्द लुकमे काफ़ी हैं जो उसकी पीठ को सीधा रखें अगर ज़्यादा खाना ज़रूरी हो तो तिहाई पेट खाने के लिए और तिहाई पानी के लिए और तिहाई सांस के लिए।
📙 इब्ने माजा 240
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -119)
खाने का बयान :
हज़रत अनस رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जब कोई खाना खाए या पानी पिये तो यह कह ले:
بِسْمِ اللّٰهِ وَ بِاللّٰهِ الَّذِىْ لَا يَضُرُّ مَعَ اِسْمِهٖ شَىْءٌ فِى الْاَرْضِ وَلَا فِى السَّمَاءِ يَا حَيُّ يَا قَيُّوْمُ
फिर उससे कोई बीमारी न होगी अगरचे उसमें ज़हर हो।
📔 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 6
रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया खाने को ठण्डा करके खाओ, गर्म खाने में बरकत नहीं और खाने को न सूंघो कि यह चोपायों का तरीका है।
📔 बुस्तान पेज 81
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -120)
खाने का बयान :
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी कि उन्होंने हुज़ूर ﷺ को इरशाद फ़रमाते सुना जब आदमी अपने घर में दाखिल हो और दाखिल होने से पहले और खाने से पहले बिस्मिल्लाह कह ले तो शैतान अपनी जुर्रियत से कहता है कि अब तुम इस घर में न रात को रह सकोगे, न यहाँ खाने में शरीक हो सकोगे, अब यहाँ से भागो इसके बरख़िलाफ़ जब कोई आदमी घर में दाखिल होते वक़्त और खाना खाते वक़्त अल्लाह का नाम नहीं लेता तो शैतान अपनी जुर्रियत से कहता है कि तुमको आज रात का ठिकाना मिल गया और रात का खाना भी मिल गया।
📔 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 172
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -121)
खाने का बयान :
भूक से कम खाना चाहिए और पूरी भूक खा लेना मुबाह है यानी न सवाब है, न गुनाह क्योंकि इसका भी सही मक़सद हो सकता है कि ताकत ज़्यादा होगी शहवत पैदा करने के लिए भूक से ज़्यादा खा लेना हराम है यानी इतना खा लेना जिससे मैदा खराब होने का अन्देशा हो।
📙 दुरै मुख्तार जिल्द 5, पेज 235
रोज़े की कुव्वत हासिल करने के लिए या मेहमान का साथ देने के लिए इतना ज़्यादा खाना मुसतहब है जितने में मैदा खराब होने का अन्देशा न हो।
📙 फ़िक़ही पहेलियाँ पेज 247
भूक का इतना गल्बा हो कि न खाने से मर जाएगा तो इतना खा लेना जिससे जान बच जाए फ़र्ज़ है इस सूरत में अगर नहीं खाया यहाँ तक कि मर गया तो गुनाहगार हुआ, इतना खा लेना कि खड़े होकर नमाज़ पढ़ने की ताक़त आ जाए और रोज़ा रख सके तो इतनी मिकदार खा लेना ज़रूरी है और इसमें सवाब भी है।
📙 दुरै मुख्तार जिल्द 5, पेज 235
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -122)
खाने का बयान :
इज़तिरार की हालत में जबकि जान जाने का अन्देशा है अगर हलाल चीज़ खाने के लिए नहीं मिलती तो हराम चीज़ या मुरदार या दूसरे की चीज़ खा कर अपनी जान बचाए और इन चीज़ों के खा लेने पर मुवाख़िज़ा (पकड़) नहीं बल्कि न खा कर मर जाने में मुवाखिज़ा है, अगरचे दूसरे की चीज़ खाने में तावान देना पड़े।
📙 दुरै मुखतार जिल्द 5.पेज 235
यूही प्यास से हलाक होने का अन्देशा है तो कोई भी चीज़ पी कर अपने को हलाकत से बचाना फ़र्ज़ है पानी नहीं है और शराब मौजूद है और मालूम है कि इसके पी लेने से जान बच जाएगी तो इतनी पी ले जिससे यह अन्देशा जाता रहे।
📙 रद्दुल मोहतार जिल्द 5, पेज 235
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -123)
खाने का बयान :
सेर हो कर खाना ताकि नवाफ़िल कसरत से पढ़ सकेगा और पढ़ने - पढ़ाने में कमज़ोरी पैदा न होगी मुसतहब और सेर से ज़्यादा खाना मगर इतना ज़्यादा नहीं कि शिकम खराब हो जाए, मकरूह है इबादत गुज़ार आदमी को इख़्तियार है कि बक़दरे मुवाह तनावुल करे या बक़दरे मनदूब मगर उसे यह नियत करना चाहिए कि इसलिए खाता हूं कि इबादत की कुव्वत पैदा होगी, इस नियत से खाना एक किस्म की ताअत है और खाने से मक़सद तलज्जुज़ व तनउम न हो कि यह बुरी सिफत है।
📙 रूदुल मोहतार जिल्द 5, पेज 235
रियाज़त व मुजाहिदा में इतना कम खाना कि इबादते मफ़रूज़ा की अदायगी में कमज़ोरी लाहिक हो जाएगी मसलन इतनी कमज़ोरी लाहिक हो जाएगी कि खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकेगा, यह नाजाइज़ है और अगर इस हद की कमज़ोरी पैदा न हो तो हरज नहीं।
📙 दुर्रे मुखतार व रूदुल मोहतार जिल्द 5, पेज 235
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -124)
मेहमान नवाज़ी की फजीलत :
मेहमान नवाज़ी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बगैर मेहमान के खाना तनावुल न फ़रमाते थे आपके घर कोई मेहमान न होता तो आप मेहमान की तलाश में एक दो मील दूर निकल जाते थे, जब तक मेहमान न मिलता खाना तनावुल न फ़रमाते।
मेहमान का आना रहमते खुदावन्दी के नुजूल का ज़रिया है मेहमान ज़ेहमत नहीं बल्कि खुदा की रहमत लेकर आता है जिस घर में मेहमान को खाना खिलाया जाता है, वहां खुदा की रहमत उमड़ आती है मेहमान खुद अपनी किस्मत का खाता है इसलिए मेहमान के आने पर इज़हारे मसर्रत करना चाहिए मेहमान को हिकारत की नज़र से देखना और उसके आने पर नाखुश होना इफलास व तंगदस्ती का सबब है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -125)
मेहमान नवाज़ी की फजीलत :
हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया उस आदमी में कोई भलाई नहीं जो मेहमान नवाज़ी नहीं।
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 12
हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया जब तुम्हारे घर मेहमान आये तो उसकी ताज़ीम करो।
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 12
हज़रत इब्ने अब्बास رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जिस घर में खाना खिलाया जाता है, भलाई उसकी तरफ़ कोहान की तरफ जाने वाली छुरी से ज़्यादा तेज़ी के साथ तोड़ती है।
📙 इब्ने माजा पेज 204
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -126)
मेहमान नवाज़ी की फजीलत :
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया मेहमान अपना रिज़्क लेकर आता है और खिलाने वालों के गुनाह ले कर जाता है, उनके गुनाह मिटा देता है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 176
गर्ज़ कि मेहमान नवाज़ी करने में बड़ी फजीलत है। हज़रत अनस رضى الله تعالیٰ عنه फरमाते हैं जिस घर में मेहमान न आये, उसमें रहमत के फ़िरिश्ते दाखिल नहीं होते जब तुम्हारे घर कोई मेहमान आये तो उसके लिए तकल्लुफ न करो, जो कुछ हाज़िर हो उसके सामने पेश करो
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया मेहमान के लिए तकल्लुफ न करो क्योंकि जब तकल्लफ़ करोगे तो उसके साथ दुश्मनी रखोगे और जो शख्स मेहमान से दुश्मनी रखेगा, वह ख़ुदा के साथ दुश्मनी रखेगा और जो खुदा के साथ दुश्मनी रखेगा, उसका अंजाम बुरा होगा।
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 12-13
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -127)
खाने से पहले के आदाब :
(1) दोनों हाथ, मुँह धोकर खाना। हदीस शरीफ़ में है कि जो कोई खाने से पहले हाथ धोया करे वह इफलास व तंगदस्ती से बेफिक्र रहेगा।
(2) खाना दस्तरख्वान पर रखना। हुज़ूर ﷺ ऐसा ही किया करते थे, क्योंकि सफ़रह यानी (दस्तरख्वान) सफ़र याद दिलाता है और सफ़रे दुनिया सफ़रे आख़िरत याद दिलाता है और दस्तरख्वान पर खाना तवाज़ो व इनकिसारी से करीब है। हुज़ूर ﷺ दस्तरख्वान पर ही खाना तनावुल फ़रमाते थे।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -128)
खाने से पहले के आदाब :
(3). नियत यह हो कि इबादत की कुव्वत के लिए खाता है, ख्वाहिश के लिए नहीं इसकी अलामत यह है कि थोड़ा खाने का इरादा करे, ज़्यादा खाना इबादत से रोकता है हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया छोटे - छोटे चन्द लुकमे जो आदमी की पीठ सीधी रखें, काफ़ी हैं, अगर इस पर कनाअत न हो सके तो एक तिहाई पेट खाने के लिए, एक तिहाई पानी के लिए और एक तिहाई सांस के लिए यानी दो हिस्सा पेट में खाना, पानी भरे और एक हिस्सा सांस लेने के लिए खाली रखे।
(4). जब तक भूक न हो खाने की तरफ हाथ न बढ़ाये, खाने से पहले जो चीजें सुन्नत हैं उनमें से बेहतरीन सुन्नत भूक है। इसलिए कि भूक से पहले खाना मकरूह भी है और मज़मूम (बुरा) भी जो शख्स खाना शुरू करते वक़्त भी भूका हो और खाने से हाथ खींचते वक़्त भी भूका रहता हो वह हरगिज़ तबीब (डॉक्टर) का मोहताज न होगा।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -129)
खाने से पहले के आदाब :
(5). जो कुछ हाज़िर हो उस पर कनाअत करे, उम्दा खाना न ढूंडे।
(6). जिसके साथ खाना खाता है जब तक वह न आये, खाना शुरू न करे कि तन्हा खाना अच्छा नहीं और खाने में जितने अफराद ज़्यादा होंगे, उतनी ही बरकत ज़्यादा होगी।
हज़रत अनस رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ अकेले हरगिज़ खाना तनावुल न फ़रमाते थे।
📗 कीमिया - ए - सआदत पेज 241
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 4
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -130)
खाने के वक़्त के आदाब :
'बिस्मिल्लाह' पढ़कर शुरू करना और खाने के बाद *'الحمد لله'* पढ़ना। बेहतर यह है कि पहले निवाले में *بسم الله'* दूसरे में *بسم الله الرحمن* तीसरे में *بسم الله الرحمن الرحيم''* *'बिस्मिल्लाह'* ज़ोर से कहे कि साथ वालों को अगर याद न हो तो उससे सुनकर उन्हें याद आ जाए। दाहिने हाथ से खाए, नमक से इब्तिदा करे और नमक ही पर ख़त्म करे यानी पहले नमकीन खाना खाये और फिर बाद में भी नमकीन चीज़ खाये। इससे सत्तर (70) बीमारियां दफ़ा हो जाती हैं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -131)
खाने के वक़्त के आदाब :
तकिया लगाकर न खाए कि यह अदब के खिलाफ है हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि मैं तकिया लगाकर खाना नहीं खाता कि मैं बन्दा हूँ और बन्दों की तरह बैठता और बन्दों के तरीकों से खाता हूँ। नंगे सर न खाएं कि यह अहले हुनूद का तरीका है और ख़िलाफ़ सुन्नत बायें हाथ को ज़मीन पर टेक देकर खाना मकरूह है।
अगर शुरू में 'बिस्मिल्लाह' कहना भूल जाए तो जब याद आ जाए 'बिस्मिल्लाहि फ़ी अव्वलिही व आख़िरिही' कह ले। खाने के वक़्त अच्छी तरह बायां पांव बिछा दे और दाहिना पांव खड़ा कर दे या सुरीन पर बैठे और दोनों घुटने खड़े रखे रसूलुल्लाह ﷺ से यही दो तरीके साबित हैं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -132)
खाने के वक़्त के आदाब :
(1). गर्म खाना न खाए और न खाने पर फूके, न खाने को सूंघे।
(2). खाने के वक़्त अच्छी बातें करे, बिल्कुल चुप रहना मजूसियों का तरीका है।
(3). खाने के वक़्त जो निवाला गिर जाए उसे उठा ले और साफ़ करके खाले।
(4). हदीस शरीफ़ में है कि अगर छोड़ देगा तो शैतान के लिए छोड़ेगा।
(5). किसी खाने में ऐब न निकाले। हुज़ूर ﷺ हरगिज़ खाने में ऐब नहीं निकालते अगर अच्छा होता तो तनावुल फ़रमा लेते, वरना हाथ रोक लेते।
(6). अपने सामने से खाये, दूसरों के निवाले की तरफ़ न देखे।
(7). दस्तरख्वान पर हरी चीज़ हो तो बेहतर है यानी साग सब्जी वगैरह। हदीस शरीफ में है कि दस्तरख्वान पर जब हरी चीज़ होती है तो फ़रिश्ते हाज़िर होते हैं।
📗 दुरै मुखतार व रूढुलमोहतार जिल्द 5, पेज 236
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 19
📙 कीमिया - ए - सआदत पेज 251
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -133)
खाने के बाद के आदाब :
पेट भरने से पहले ही हाथ खींच ले, खाने के बाद उंगलियां चाट ले इनमें जूठा न लगा रहने दे और बर्तन को उंगलियों से पोंछ कर चाट ले।
हदीस शरीफ़ में है जो शख्स खाने के बाद बर्तन चाटता है तो वह बर्तन उसके लिए दुआ करता है कहता कि अल्लाह तुझे जहन्नुम की आग से आज़ाद करे जिस तरह तूने मुझे शैतान से आज़ाद किया।
एक रिवायत में है कि बर्तन उसके लिए इस्तिग़फ़ार करता है फिर हाथ रूमाल वगैरह से पोंछ ले अगर दस्तरख्वान पर रोटी के टुकड़े वगैरह पड़े हों तो चुनकर खा ले।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -134)
खाने के बाद के आदाब :
हदीस शरीफ़ में है कि जो दस्तरख्वान पर गिरी हुई चीज़ रोटी वगैरह के टुकड़े को उठा कर खा लेगा तो अल्लाह तआला उसके रिज़्क में कुशादगी अता फरमाएगा और उसकी औलाद बे ऐब और सेहत व सलामती के साथ रहेगी। बअज़ रिवायत में है कि उठाकर खाने वाला मोहताजी, कोढ़ और बर्स की बीमारी से महफूज़ रहता है और उसकी औलाद हिमाकत से महफूज़ रहती है।
*खाने के बाद यह दुआ पढ़े :*
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِىْ اَطْعَمَنَا وَسَقَانَا وَجَعَلَنَا مِنَ الْمُسْلِمِينَ
*इसके बाद قُلْ هُوَ اللّٰهُ शरीफ़ 'और 'لِاِیْلٰفِ قُرَیْشٍ' पढ़े।*
📗 कीमिया - ए - सआदत पेज 243
📙 अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 6
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -135)
किसी के घर बगैर दावत जाना :
आज-कल आमतौर पर देखा जा रहा है बल्कि रिवाज सा बन गया हे कि लोग शादी ब्याह या वलीमे की दावत में बिन बुलाए चले जाते हैं खुद भी जाते हैं और अपने दो चार बच्चों को भी साथ लेकर जाते हैं अगर खुद न भी गए तो दो चार बच्चों को शादी वालों के घर मुफ्त खाने के लिए भेज देते हैं ताकि एक दो टाईम का खाना ही बच जाए और कभी ऐसा भी होता है कि शादी वाला घर के एक फर्द की दावत करता है तो उसके यहाँ एक के बजाए पूरा घर पहुंच जाता है।
यह कितनी शर्म व गैरत की बात है? न ही अपनी इज़्ज़त का ख्याल और न ही अल्लाह व रसूल का डर। *मुसलमानो!* अल्लाह और उसके रसूल का खौफ खाओ, बगैर बुलाए किसी के घर दावत में हरगिज़ न जाओ बिला दावत किसी के घर खाने के लिए जाना सख्त नाजाइज़ है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -136)
किसी के घर बगैर दावत जाना :
हदीस शरीफ़ में है कि जो बगैर बुलाए दावत में गया वह चोर बनकर गया और लुटेरा हो कर निकला।
📙 अबू दाऊद पेज 525
इस हदीस से मुसलमान भाईयों को इबरत पकड़नी चाहिए जो बिन बुलाए दावत में चले जाते हैं या अपने बच्चों को भेज देते हैं हाँ, अगर कोई वलीमे की दावत करे तो दावत कबूल करना सुन्नत हे बल्कि बअज़ उलमा के नज़दीक वाजिब है इस सिलसिले में दोनों ही कोल हैं बज़ाहिर यही मालूम होता है कि इजाबत सुन्नते मोअक्कदा है वलीमे के सिवा दूसरी दावतों में भी जाना अफ़ज़ल है।
*📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 30*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -137)
किसी के घर बगैर दावत जाना :
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जिसको दावत दी गई और उसने कबूल न की तो उसने अल्लाह और उसके रसूल की नाफरमानी की।
📙 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 463
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जब तुम में से किसी को वलीमा के खाने के लिए बुलाया जाए तो ज़रूर जाए।
📙 मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 2, पेज 462
इन हदीसों से मालूम हुआ कि दावत कबूल करना और दावत में जाना नबी करीम ﷺ की सुन्नत है लिहाज़ा दावत मिलने पर दावत में जाना चाहिए इसमें अपने मोमिन भाई की दिलजोई है और आपस में मेल मिलाप और महब्बत का ज़रिया है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -138)
किसी के घर बगैर दावत जाना :
दावते वलीमा कबूल करना उसी वक़्त सुन्नत है जबकि दावत में कोई मुनकिराते शरीअह ढोल, तमाशे, गाने, बजाने, लहव व लअब वगैरह न पाया जाता हो। बाकी आम दावतों का कबूल करना अफ़ज़ल है, जबकि न कोई माने हो और न उससे ज़्यादा अहम काम हो।
📗 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 385
जिस शादी की बारात में बाजे, खैल , तमाशे वगैरह हों तो आलिमे दीन को बारात के साथ जाना मुतलकन मना है हरगिज़ शिरकत न करे, बाकी आम आदमी कि वह बाजे वगैरह की तरफ बिल्कुल तवज्जेह न करे बल्कि महज़ सिले रहमी या दोस्ती की रिआयत के सबब बारात में शरीक हो कर जाय तो जा सकता है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 434
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -139)
किसी के घर बगैर दावत जाना :
दावत में बारात के घर जाना अगर बाजे वगैरह दूसरे मकान में हों तो हरज नहीं आलिम मुक्तदा के लिए तीन सूरतें हैं अगर आलिम जानता है कि मेरे जाने से मुनकिरात बन्द हो जायेंगे और मेरे सामने न करेंगे तो जाना ज़रूरी है और अगर जानता है कि मेरी खातिर उन लोगों को इतनी अज़ीज़ है कि मैं शिरकत से इन्कार करूंगा तो वे मजबूरन ममनूआत से बाज़ रहेंगे और मेरा शरीक न होना गवारा न करेंगे तो इस पर वाजिब है कि बेतर्के मुनकिरात शिरकत से इनकार कर दो अगर वे लोग इसके इन्कार पर मुनकिरात से बाज़ हैं तो दावत में जाना ज़रूरी है और अगर इनके इन्कार पर बाज़ न रहेंगे तो हरगिज़ न जाए और अगर ढोल, बाजे वगैरह उसी बारात के मकान में हों तो हरगिज़ न जाएं और अगर जाने के बाद शुरू हो तो फौरन उठ जाएं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -140)
पानी पीने का बयान :
हज़रत इब्ने अब्बास رضى الله تعالیٰ عنهما से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया एक सांस में पानी न पियो जैसे ऊँट पीता है बल्कि दो और तीन मर्तबा में पियो और जब पियो तो 'बिस्मिल्लाह' कह लो और जब बर्तन को मुँह से हटाओ तो अल्लाह की हम्द करो।
📙 तिरमिज़ी शरीफ जिल्द 2, पेज 10
इब्ने अब्बास رضى الله تعالیٰ عنهما से मरवी है रसूलुल्लाह ﷺ ने बर्तन में सांस लेने और फूंकने से मना फ़रमाया।
📙 इब्ने माजा पेज 445
हज़रत अनस رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है रसूलुल्लाह ﷺ ने खड़े होकर पानी पीने से मना फ़रमाया।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -141)
पानी पीने का बयान :
हज़रत अबू हुरैरा رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया खड़े होकर हरगिज़ कोई शख्स पानी न पिये और जो भूल कर ऐसा करे वह के (उल्टी) कर दे।
पानी 'बिस्मिल्लाह' कह कर दायें हाथ से पीना चाहिए और तीन सांस में पिये हर मर्तबा बर्तन को मुँह से हटा कर सांस ले, पहली और दूसरी मर्तबा एक - एक बूंट पिये और तीसरी सांस में जितना चाहे पी डाले इस तरह पीने से प्यास बुझ जाती है और पानी को चूस कर पिये, गट - गट, बड़े - बड़े घूंट न पिये जब पी ले तो 'الحمد لله' कहे।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 26
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -142)
पानी पीने का बयान :
फायदा : खड़े होकर पानी पीना मना है, जैसा कि हदीस में गुज़रा लेकिन वुज़ू के बचे हुए पानी को खड़े होकर पीना मुसतहब है इसी तरह 'आबे ज़म ज़म' को खड़े होकर पीना सुन्नत है ये दोनों पानी इस हुक्म से मुसतस्ना (अलग) हैं और इसमें हिकमत यह है कि खड़े होकर जब पानी पिया जाता है तो वह फौरन तमाम आज़ा की तरफ़ सरायत कर जाता है और यह मुज़िर (नुकसानदह) है मगर ये दोनों पानी बरकत वाले हैं और इनसे मकसूद ही बरकत है लिहाज़ा इनका तमाम आज़ा में पहुंच जाना फ़ायदामन्द है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 24
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -143)
खाने पीने के सिलसिले में हकीमों के अकवाल :
1. अगर लोहे के बर्तन में खाना पका हो तो उस खाने को खाने से भूक में इज़ाफ़ा और शहवत ज़्यादा होती है।
2. मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने और मिट्टी ही के बर्तन में खाना खाने से केन्सर जैसा मूजी मर्ज़ नहीं होता।
3. बहुत ज़्यादा तुर्श (खट्टी) गिज़ाएं इस्तेमाल करने से नामर्दी पैदा होती है।
4. बहुत ज़्यादा मीठी चीजें इस्तेमाल करने से जिस्म में चर्बी ज़्यादा बनती है और शुगर का ख़तरा रहता है।
5. ठण्डा पानी मैदे को कुव्वत देता है और गर्म पानी मैदे को कमज़ोर व सुस्त करता है।
6. दही, मूली, पनीर मिलाकर एक साथ इस्तेमाल करने से सेहत बिगड़ती है और पेट में शदीद दर्द होता है।
7. शहद का इस्तेमाल गोश्त के साथ या गोश्त खाने के बाद पेट में दर्द पैदा करता है।
8. मछली के साथ या फ़ौरन बाद दूध पीने से बर्स (कोढ़) होने का खतरा है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -144)
खाने पीने के सिलसिले में हकीमों के अकवाल :
9. शहद और घी मिलाकर खाने से फालिज हो जाने का अन्देशा है।
10. दूध पीने के फ़ौरन बाद तुर्श चीजें इस्तेमाल करने से पेट में दर्द होने का सबब बनती हैं।
11. चावल के साथ सिरका इस्तेमाल करने से सेहत में बिगाड़ पैदा होता है और पेट में दर्द भी लाहिक होता है।
12. मुर्ग या परिंदों के गोश्त के साथ मूली खाना सेहत के लिए नुकसानदह है।
13. टमाटर और दूध एक साथ इस्तेमाल करने से गुर्दी में तकलीफ होती है।
14. गर्म दूध या गर्म चाय पीने के बाद फ़ौरन ठण्डा पानी पीना सेहत के लिए नुकसानदह है।
15. रात को खाना खाने के फ़ौरन बाद औरत से हमबिस्तरी करना सख्त से सख्त नुकसानदह है और सेहत के लिए मुज़िर भी।
16. ताकत व कुव्वत बढ़ाने के लिए खाना खाने के फ़ोरन बाद पैशाब करना अच्छा है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -145)
खाने पीने के सिलसिले में हकीमों के अकवाल :
17. खाना खाने के फ़ोरन बाद गुस्ल करना सेहत के लिए नुकसानदह है।
18. गर्म गिज़ाओं को खाकर दूध और शहद पीने से बर्स और जुज़ाम होने का खतरा पैदा होता है।
19. ज़्यादा मीठा खाने से बीनाई कमज़ोर और दांतों में दर्द, गुर्दा और गलाने में पथरी और पेशाब में शकर आने का मूजिब है।
20. खाने में दो गर्म चीज़ों जैसे अण्डा और गोश्त और दो सर्द चीजों जैसे चावल और दही और दो खुश्क चीज़ों जैसे कंगनी और मसूर इसी तरह दो काबिज़ और दो मुसहल और दो ग़लीज़ चीज़ों को जमा न करें।
21. दूध और नीबू , दूध और अण्डा, दूध और गोश्त को एक साथ जमा करने से अमराजे रद्दिया पैदा होने का खतरा है।
22. रात में सोने के बाद पानी पीने से बीमारी होने का अन्देशा है।
23. ताजा मछली खाकर फौरन नहाने से फ़ालिज पड़ने का अन्देशा है।
24. भरे पेट फौरन सोने से दिल सख्त हो जाता है, जब तक कि चहल कदमी या नमाज़ पढ़कर खाना हज़्म न कर ले, हरगिज़ न सोये।
25. मछली के साथ गर्म रोटी खाने से पेट में कीड़े पैदा हो जाते हैं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -146)
खाने पीने के सिलसिले में हकीमों के अकवाल :
26. गर्माये हुए बदन पर सर्द पानी डालना या पीना सख्त नुकसानदेह है।
27. भीगे कपड़े पहनना सेहत के लिए मुज़िर है।
28. खाने से पहले ठण्डे पानी का पीना भूक को कम कर देता है और खाने के बाद बदन को तंदरूस्त करता है।
29. सेब वगैरह फल खाने के बाद पानी पीने से मैदा फ़ासिद हो जाता है।
30. गर्म चावल या मीठी चीज़ खाने के बाद ठण्डे पानी का पीना दांत के लिए नुकसानदेह है।
31. मछली और अण्डा एक साथ खाने से फ़ालिज होने का अन्देशा है।
32. जूस और दूध पीने से वर्स होने का एहतिमाल (खतरा) है।
33. खाने के दरमियान पानी पीना नुकसानदेह है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -147)
जीनत का बयान :
शौहर या मेहरम के सिवा औरों के सामने अपनी ज़ीनत व आराइश का इज़हार जाइज़ नहीं आजकल जो औरतें जेब व ज़ीनत करती हैं जिसके लिए मौजूदा ज़माने में “मेकअप" लफ़्ज़ बोला जाता है, गैरों पर ज़ाहिर करना हरगिज़ जाईज़ नहीं।
अल कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है "औरतें अपना सिंगार ज़ाहिर न करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर वगैरह।
📙 सूरह नूर
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया नामहरम मर्दो के सामने सिंगार करके इतराने वाली औरत क़यामत के दिन की उस तारीकी की तरह है जिसमें कोई नूर नहीं होगा।
*📙 तिरमिज़ी शरीफ जिल्द 1, पेज, 39*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -148)
जीनत का बयान :
हुज़ूर ﷺ ने शबे मेअराज अपनी उम्मत की बाज़ औरतों को देखा जो अपनी छातियों से लटकी हुई हैं और उनके नीचे आग जल रही है और उनके बदन पिघल रहे हैं। फ़रमाया गया ये वे औरतें हैं जो अपने शौहर के अलावा दूसरों के लिए बनाव सिंगार करती थीं। नीज़ आपने फ़रमाया जो औरत अपने शौहर के अलावा दूसरों के लिए सुर्मा वगैरह लगाएगी, अल्लाह तआला उसे ज़लीलो ख़्वार करेगा और उसकी क़ब्र को दोज़ख का गढ़ा बना दिया जाएगा।
हां, शोहरदार औरत के लिए जेबो जीनत का हुक्म है और वह हर जाइज़ तरीके से अपने शौहर के लिए ज़ीनत इख्तियार कर सकती है बल्कि करने का हुक्म है ताकि शौहर देखकर खुश हो जाए और उसकी निगाह गैरों की तरफ़ न जाए।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -149)
जीनत का बयान :
सरकार आला हज़रत लिखते हैं औरत का अपने शौहर के लिए ज़ेवर पहन्ना, बनाव सिंगार करना सवाबे अज़ीम का बाइस है और उनके हक में नमाजे़ नफ्ल से अफ़ज़ल है। कुंवारी लड़कियों को ज़ेवरो लिबास से आरास्ता रखना कि उनकी मंगनियाँ आएं यह भी सुन्नत है बल्कि औरत का कुदरत रखने के बावजूद बेज़ेवर रहना मकरूह है कि यह मर्दों से तशब्बुह है। हज़रत उम्मुलमोमेनीन आयशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنها औरत का बेज़ेवर नमाज़ पढ़ना मकरूह जानतीं और फ़रमातीं कुछ न पाये तो एक डोर (धागा) ही गले में बांध ले।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 364
औरत को चाहिए कि हाथ पाँव में मेंहदी लगा ले, हाथ पाँव को दरिन्दों की तरह न रखे हुज़ूर ﷺ ने ऐसी औरतों से नागवारी का इज़हार फ़रमाया जो अपनी हथैलियों को न बदल दे यानी मेंहदी लगा कर उनका रंग न बदल दे बल्कि आपने फ़रमाया इस किस्म के हाथ गोया दरिन्दों के हाथ हैं।
📙 फ़तावा रज़विया जिल्द 9, पेज 412
📕 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 204
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -150)
जीनत का बयान :
हज़रते आयशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنها से रिवायत है कि हिन्द बिन्ते उकबा ने अर्ज़ की या नबी अल्लाह मुझे बैअत कर लीजिए, फ़रमाया मैं तुझे बैअत नहीं करूँगा जब तक तू अपनी हथैलियों को न बदल दे (यानी मेंहदी लगाकर उनका रंग न बदल दे) तेरे हाथ गोया दरिन्दे के हाथ मालूम हो रहे हैं यानी औरतों को चाहिए। कि हाथों को रंगीन कर लिया करें।
📙 अबू दाऊद पेज 574
एक औरत के हाथ में किताब थी, उसने पर्दे के पीछे से ही हुज़ूर ﷺ की तरफ़ इशारा किया यानी हुज़ूर ﷺ को देना चाहा। हुज़ूर ﷺ ने अपना हाथ खींच लिया और यह फ़रमाया मालूम नहीं मर्द का हाथ है या औरत का। उसने कहा 'औरत का फ़रमाया अगर औरत होती तो नाखुनो को मेंहदी से रंगे होती।
*📙 अबू दाऊद पेज 574*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -151)
जीनत का बयान :
आज के दौर में सबसे ज़्यादा बुरी बात और कबीह दस्तूर यह चल पड़ा है कि औरतें मग़रिबी तहज़ीब (यूरोपीय कलचर) की दिल दादा होती जा रही हैं और मगरिबी तौर व तरीके को अपना रही हैं और यहूदी, नसरानी औरतों की तरह बालों को कटवा रही हैं, अबरू (भौंहों) और पलकों को कटवाकर मुख़्तलिफ़ किस्म की ज़ेबाइशो आराइश करती हैं मर्दाना लिबास पहनने पर फख्र करती हैं कुछ ही घराने ऐसे होंगे जो इस बीमारी से महफूज़ होंगे औरतों को सर के बाल कटवाना, इसी तरह मर्दानी वज़अ (स्टाइल) इख्तियार करना सख़्त नाजाइज़ व गुनाह है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -152)
जीनत का बयान :
हज़रत इब्ने अब्बास رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है रसूलुल्लाह ﷺ ने उन औरतों पर लानत की जो मर्दो से तशब्बुह करें और उन मर्दो पे जो औरतों से तशब्बुह करें।
हज़रत अबू हुरैरह رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है रसूलुल्लाह ﷺ ने उस मर्द पर लानत की जो औरतों का लिबास पहनता है और उस औरत पर लानत की जो मर्दाना लिबास पहनती है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -153)
जीनत का बयान :
किसी ने हज़रत आयशा सिद्दीका رضى الله تعالیٰ عنه से कहा कि एक औरत मर्दो की तरह जूते पहनती है, उन्होंने कहा रसूलुल्लाह ﷺ ने मर्दानी औरत पर लानत की।
📙 अबू दाऊद पेज 566
तीन शख्सो पर अल्लाह तआला रोज़े कयामत नज़र नहीं करेगा, माँ - बाप को सताने वाला, वह औरत जो मर्दो से तशब्बुह करे और दय्यूस।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -154)
जीनत का बयान :
तीन आदमी जन्नत में कभी दाखिल न होंगे और दय्यूस और मर्दानी वज़अ (स्टाइल) की औरत और शराबी।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 5, पेज 279
इन हदीसों से मालूम हुआ कि औरतों को मर्दाना जूता पहनना मना है बल्कि वे तमाम बातें जिनमें मर्दों और औरतों का इम्तियाज़ होता है उनमें हर एक को दूसरे की वज़अ (स्टाइल) इख्तियार करने से मुमानिअत है न मर्द औरत की वज़अ इख्तियार करे, न औरत मर्द की। ऐसे मर्द व औरत सख्त वईद के मुस्तहिक़ हैं इसी तरह औरतों के लिए बजने वाले जेवरात का इस्तेमाल करना मना है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -155)
जीनत का बयान :
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने जुबैर رضى الله تعالیٰ عنهما से रिवायत है, कहते हैं कि हमारे यहां की एक लोंडी हज़रत जुबैर की लड़की को हज़रत उमर फारूक رضى الله تعالیٰ عنه के पास लेकर आई, उसके पांव में घुंघरू थे हज़रत उमर رضى الله تعالیٰ عنه ने उसे काट दिया और फ़रमाया कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना है कि हर घुंघरू के साथ शैतान होता है रिवायत है कि हज़रत आयशा رضى الله تعالیٰ عنها के पास एक लड़की आई जिसके पांव में घुगरू बज रहे थे फ़रमाया कि इसे मेरे पास न लाना जब तक इसके घुंघरू न काट लेना। मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना है कि जिस घर में जरस यानी घण्टी या घुंघरू होते हैं, उसमें फ़रिश्ते नहीं आते।
📙 अबूदाऊद पेज 581
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -156)
जीनत का बयान :
अल्लाह तआला उस कौम की दुआ कबूल नहीं फ़रमाता जो अपनी औरतों को बजने वाला पाज़ेब पहनाते हैं।
📙 इस्लाम में पर्दा पेज 109
इसी तरह ज़ीनत के लिए इन्सान के बालो की चोटी बनाकर औरत अपने बालों में गूंधे, यह हराम है!
जिस साल हज़रत अमीरे मआविया رضى الله تعالیٰ عنه ने अपने ख़िलाफ़त के ज़माने में हज किया, मदीने में आये और मिम्बर पर चढ़कर बालों का गुच्छा हाथ में लेकर कहा ऐ अहले मदीना! तुम्हारे उलमा कहाँ हैं मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना है कि हुज़ूर ﷺ इससे मना फ़रमाते थे यानी चोटी पर बाल जोड़ने से और हुज़ूर ﷺ यह फ़रमाते थे कि बनी इस्राईल उसी वक़्त हलाक हुए जब उनकी औरतों ने ऐसा करना शुरू किया।
📙 अबू दाऊद पेज 574
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -157)
बद निगाही का बयान :
आज के मुआशरे (समाज) में जहाँ तरह - तरह की बुराईयां जन्म ले चुकी हैं वहीं यह बुराई उरूज पर पहुँच चुकी है नौजवान मर्द व औरत का बन संवर कर बाजारों में घूमना फिरना और एक दूसरे को नज़ारे की दावत देना ताकि एक दूसरे के हुस्न व शबाब पर बुरी नज़र डालें और उससे तलज़्ज़ज़ हासिल करें खुसूसन औरतों का बेनकाब होकर बाज़ारों में तफरीह करना और अपने हुस्न का दीदार कराना तो आम बात है बल्कि आज के मार्डन नौजवान गैर औरतों को देखने, छूने और छेड़ - छाड़ करने को गोया गुनाह ही नहीं समझते बल्कि उसे फेशन और मार्डन कल्चर का नाम देते और उसे मामूली बात समझते हैं।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -158)
बद निगाही का बयान :
अल क़ुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है "मुसलमान मर्दों को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें।
📙 (सुरए नूर)
और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यह उनके लिए बहुत सुथरा है, बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो अपनी निगाहें नीची रखें और पारसाई की हिफाज़त करें और अपना बनाव न दिखाएं मगर जितना खुद ही ज़ाहिर है और दुपट्टे अपने गिरेबानों पर डाले रहें।
इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने साफ़ - साफ़ हुक्म दिया कि मर्द अपनी निगाहें नीची रखें यानी बद-निगाही से बचें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें यानी बुराई की तरफ़ न जाऐं इसी तरह अल्लाह तआला औरतों को भी हुक्म दे रहा है कि वे भी अपनी निगाहें नीची रखें, अपना बनाव सिंगार गैरों पर ज़ाहिर न करें लेकिन आज का मामला ही उलटा नज़र आ रहा है सरकारे दो जहाँ ﷺ ने भी सख्त अंदाज़ में मुमानित फ़रमाई है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -159)
बद निगाही का बयान :
हुज़ूर नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया अजनबिया खूबसूरत औरत को शहवत से देखने वाले की आँख क़यामत के दिन पिघला शीशा डाला जाएगा!
*📙 हिदाया जिल्द 4, पेज 442*
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया "जो मर्द गैर औरत को देखे और जो औरत अपने को गैर मर्दो को दिखाए, दोनों पर अल्लाह की लानत।
*📙 मिशकात शरीफ़ पेज 270*
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -160)
बद निगाही का बयान :
हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह رضى الله تعالیٰ عنه का बयान है कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से अचानक नज़र पड़ जाने के मुतअल्लिक पूछा तो फ़रमाया अपनी नज़र फेर लिया करो।
📙 अबू दाऊद पेज 292
हज़रत अली رضى الله تعالیٰ عنه ने रसूलुल्लाह ﷺ से अर्ज़ किया या रसूलल्लाह (ﷺ)! बअज़ औकात गैर औरत पर अचानक नज़र पड़ जाती है आका ﷺ ने इरशाद फ़रमायाः "ऐ अली! पहली नज़र जो अचानक पड़ जाए, उस पर गिरफ़्त नहीं लेकिन दूसरी नज़र पर गिरफ़्त है।
📙 अबु दाऊद पेज 292
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -161)
बद निगाही का बयान :
अजनबी औरत को देखने का जुर्म जब इतना शदीद है तो जो औरत अज़ खुद बेपर्दा होकर अजनबी मर्द के सामने आती है या दूसरों को देखने का मौका देती है वह भी इस जुर्म में बराबर की शरीक होगी, बल्कि उसका जुर्म और शदीद होगा यह बेपर्दा न होती तो अजनबी मर्द को गुनाह का मौका न मिलता, उसने बेपर्दा होकर खुद भी गुनाह किया और दूसरों को भी गुनाह पर उकसाया।
रसूलुल्लाह ﷺ इरशाद फ़रमाते है आँख भी शर्मगाह की तरह ज़िना करती है और आँख का ज़िना नज़र है वह शख्स जो नज़र को बचाने की कुदरत नहीं रखता, उस पर वाजिब है कि शहवत को रियाज़त से ख़त्म करे इसकी तदबीर यह है कि रोज़ा रखे, वरना निकाह करे।
📙 कीमिया - ए - सआदत पेज 497
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -162)
बद निगाही का बयान :
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया निगाह इबलीस के तीरों में से एक तीर है जिसको ज़ेहर के पानी से बुझाया गया है पस जो कोई खुदावन्द करीम के डर से अपनी निगाह को बचायगा उसको ऐसा ईमान नसीब होगा जिसकी हलावत वह अपने दिल में महसूस करेगा।
*📙 कीमिया - ए - सआदत पेज 197*
बुज़ुर्गाने दीन फरमाते हैं तमाम बुराईयों की इब्तिदा नज़र से होती है पहले नज़र, नज़र से मिलती है, इसके बाद मुस्कुराहट होती है, फिर सलाम व कलाम, फिर वादा, फिर मुलाकात, फिर आपस में गुनाहों का दरवाज़ा खुल जाता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -163)
बद निगाही का बयान :
हज़रत याहया अलैहिस्सलाम से लोगों ने पूछा कि ज़िना की इब्तिदा कहाँ से होती है ? उन्होंने फ़रमाया “आँख से।
📙 कीमिया - ए - सआदत पेज 498
प्यारे आका ﷺ इरशाद फ़रमाते हैं मर्द का गैर औरतों को और औरत का गैर मर्दो को देखना आँखों का ज़िना है पैरों से उसकी तरफ़ चलना, पैरों का ज़िना है, कानों से उसकी बात सुनना, कानों का ज़िना है ज़बान से उसके साथ बातें करना, ज़बान का ज़िना है दिल में नाजाइज़ मिलाप की तमन्ना करना, दिल का ज़िना है हाथों से उसे छूना, हाथों का ज़िना है।
📙 अबू दाऊद पेज 292
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -164)
बेपर्दगी का बयान :
मुसलमान औरतों के लिए पर्दा बहुत ज़रूरी है और बेपर्दगी इन्तिहा दर्जे की बेहयाई व बेगैरती का सबब है।
अल कुरआन : अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है और अपने घरों में ठहरी रहो और बेपर्दा न रहो जैसे अगली जाहिलियत की बेपर्दगी।
अगली जाहिलियत से मुराद कब्ले इस्लाम का ज़माना ज़माने में औरतें इतराती निकलती थीं, अपनी जेब व ज़ीनत का इज़हार करती थीं ताकि गैर मर्द देखें और लिबास इस तरह पहनती थीं जिनसे जिस्म के आज़ा अच्छी तरह न छुपते थे।
📙 सूरह अहज़ाब
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -165)
बेपर्दगी का बयान :
आज वे औरतें जो ज़र्क बर्क (तड़क - भड़क) लिबास में मलबूस होकर खिरामा खिरामा मटकती हुई अजनबी मर्दो की महफ़िलों, नामहरमों की मजलिसों और गैरों के मजमों में आती जाती हैं और अपनी इस आवारगी और बेहयाई पर ज़रा भी नहीं शर्मातीं।
📙 दुखतराने इस्लाम
सरकारे दो आलम ﷺ का इरशादे गिरामी है औरत छिपाने की चीज़ है, जब औरत निकलती है तो शैतान उसे झांक कर देखता है यानी उसे देखना शैतानी काम है।
📙 तिरमिजी जिल्द 1, पेज 140
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -166)
बेपर्दगी का बयान :
हज़रत अबू मूसा अशअरी رضى الله تعالیٰ عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया जब कोई औरत खुश्बू लगा कर लोगों में निकलती है ताकि उन्हें खुश्बू पहुंचे तो वह औरत ज़ानिया है।
📙 निसाई जिल्द 2, पेज 240)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो औरत खुश्बू लगा कर किसी मजलिस से गुज़रती है तो ऐसी औरत बदकार है।
📙 तिरमिजी जिल्द 2, पेज 102
इन हदीसों से वे औरतें सबक लें जो आज तरह - तरह की तेज़ खुशबूओं को लगाकर आम शाहराहों पर इतराती फिरती हैं और बन संवर कर आम महपिलों में जाती हैं, उनके लिए सख्त मना है वाजेह हो कि जो औरतें पर्दे में रहकर भी तेज़ खुशबू लगाएं तो इसी वईद की मुस्तहिक़ होंगी क्योंकि पर्दा बदन और चेहरे का है न कि खुशबू का, खुशबू तो पर्दे से भी बाहर जाती है।
औरतों के लिए ऐसे लिबास का इस्तेमाल करना हराम है कि जिससे जिस्म चमकता हो या इतना चुस्त हो कि जिस्म को साख़्त (बनावट) और उसके नशैब व फ़राज़ नुमायां नज़र आते हों हदीस शरीफ़ में ऐसे लिबास को नंगा लिबास फ़रमाया गया। الله اکبر
📙 इस्लाम में पर्दा पेज 9
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -167)
पर्दा औरतों का बेहतरीन जैवर है :
अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फ़रमाया औरत की नमाज़ अपने तहख़ाने (Basement) में बेहतर है, कोठरी में नमाज़ पढ़ने से और उसकी कोठरी में नमाज़ बेहतर है, दालान में नमाज़ पढ़ने से और उसकी नमाज़ दालान में बेहतर है, सेहन (आंगन) में नमाज़ पढ़ने से और उसकी अपने सेहन में नमाज़ बेहतर है मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से।
📙 अलमलफूज़ हिस्सा 3, पेज 27
मौलाए कायनात हज़रत अली رضى الله تعالى عنه से मरवी है कि एक रोज़ सय्यदे आलम ﷺ ने अपनी मजलिस में सहाबा किराम से दरयाफ्त फ़रमाया औरत के लिए कौनसी चीज़ बेहतर है ? किसी ने जवाब न दिया, सब के सब ख़ामूश रहे, यहां तक कि में भी कोई जवाब न दे सका जब घर आया तो हज़रत फ़ातिमा ज़ेहरा से पूछा औरतों के लिए कौन सी चीज़ सबसे बेहतर है ? हज़रत फ़ातिमा ने फ़ौरन जवाब दिया कि औरतों के लिए सबसे बेहतर यह है कि उनको गैर मर्द न देखें हज़रत अली इस जवाब से बहुत खुश हुए और जाकर रसूलुल्लाह ﷺ को यह जवाब सुनाया तो हुज़ूर ﷺ भी खुश हुए और फ़रमाया 'फ़ातिमा मेरा एक हिस्सा है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 28
📙 जमउल फवाइद जिल्द 1, पेज 317
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -168)
*पर्दा औरतों का बेहतरीन जैवर है :*
नामहरम औरतों को अन्धे से पर्दा वैसा ही है जैसे आँख वाले से और उस का घर में जाना औरत के पास बैठना वैसा ही है जैसा आँख वाले का।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 270
पर्दा सिर्फ उन लोगों से नहीं जो नसब के सबब औरत पर हमेशा - हमेशा के लिए हराम हों और कभी किसी हालत में उनसे निकाह नामुमकिन हो। जैसेः बाप, दादा, बेटा, पोता, चचा, मामू वगैरह। इनके सिवा जिनसे निकाह कभी दुरूस्त है, अगरचे फिलहाल नाजाइज़ हो जैसे बेहनोई जब तक बहन जिन्दा है या चचा, मामू, खाला, फूफी के बेटे या जेठ, देवर इनसे पर्दा वाजिब है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 237
कुछ औरतें अपने मर्दो के सामने मनीहार के हाथों से चूड़ियां पहनती हैं, यह हराम, हराम, हराम है हाथ दिखाना गैर मर्द को हराम है उसके हाथ में हाथ देना हराम है, जो मर्द अपनी औरतों के साथ उसे जाइज़ रखते हैं, दय्यूस हैं।
📙 निस्फ आखिर फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 208
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -169)
अजनबी औरतों के साथ तनहाई इख्तियार करना :
हज़रत अबु सईद खुदरी से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया दुनिया मीठी और हरी भरी है और यकीनन अल्लाह तआला तुमको इसमें दूसरों के पीछे मालिक करेगा फिर आजमाएगा कि क्या अमल करते हो ? लिहाज़ा दुनिया से दूर हो! और औरतों से बचो क्योंकि बनी इस्राईल का पहला फ़ितना औरतों ही से हुआ।
*📙 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 353*
सरकारे दो जहाँ ﷺ ने फ़रमाया मैंने अपने पीछे मर्दो के लिए ज़्यादा ज़रर देने वाला फितना औरतों से बढ़कर कोई न छोड़ा।
📙 मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 353
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कोई मर्द किसी औरत के साथ जब तन्हाई में इकट्ठा होता है तो तीसरा शैतान ज़रूर होता है।
📙 तिरमिज़ी शरीफ़ जिल्द 1, पेज 140
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -170)
अजनबी औरतों के साथ तनहाई इख्तियार करना :
रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया जिन औरतों के शौहर मौजूद न हों उनके पास न जाओ क्योंकि शैतान तुम्हारी रगों में खून की तरह दौड़ता है।
📙 तिरमिजी शरीफ जिल्द 1, पेज 140
नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया गैर औरत के पास जाने से दूर रहो, एक सहाबी ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह (ﷺ)! देवर के बारे में क्या इरशाद है ? *फ़रमाया "देवर तो मौत है।"*
*📙 तिरमिजी शरीफ जिल्द 1, पेज 140*
इन हदीसों से मालूम हुआ कि औरत बाइसे फ़ितना है तमाम बुराईयों की अस्ल है औरतों का गैरमहरम मर्दो के सामने बेहिजाब आना, बातचीत करना, हंसी मज़ाक करना हराम और गुनाहे अज़ीम है यूंही मर्दो का गैरमहरम औरत के पास तन्हाई में जाना, उनके साथ बातचीत करना, हराम, अशद गुनाह है आप खुद ही अन्दाज़ा कीजिए जब देवर के सामने भाभी को आने से या देवर को भाभी के पास जाने से मना किया गया तो गैर औरतों के पास जाना किस क़द्र ख़तरनाक और बाइसे गुनाह होगा!
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -171)
अजनबी औरतों के साथ तनहाई इख्तियार करना :
जेठ, देवर, बहनोई, फूफा, खालू, खालाज़ाद भाई, मामूज़ाद भाई, फूफाज़ाद भाई ये सब लोग औरत के लिए महज़ बल्कि इनका ज़रर निरे बेगाने शख्स के ज़रर से ज़ाइद है कि महज़ गैर आदमी घर में आते हुए डरेगा और ये आपस में मेलजोल के बाइस खौफ़ नहीं रखते औरत निरे अजनबी आदमी से फ़िलफोर मेल नहीं खा सकती और इन लोगों से लिहाज़ टूटा हुआ है, बिल-खुसूस देवर के लिए अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया देवर तो मौत है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 196
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -172)
देखने और छूने का बयान :
हज़रत अबु सईद رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूले कायनात ﷺ ने फ़रमाया एक मर्द दूसरे मर्द के सतर की जगह न देखे और न औरत दूसरी औरत के सतर की जगह देखे और न मर्द दूसरे मर्द के साथ एक कपड़े में बरहना (नंगा) सोए।
*📙 मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 1, पेज 154*
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया ऐसा न हो कि एक औरत दूसरी औरत के साथ रहे, फिर अपने शौहर के सामने उसका हाल बयान करे, गोया यह उसे देख रहा है।
📙 अबू दाऊद पेज 292
मर्द, मर्द के बदन के हर हिस्से की तरफ़ नज़र कर सकता है, अलावा उन आज़ा (अंगों) के जिनका छिपाना फर्ज़ है वे नाफ के नीचे से घुटने के नीचे तक है।
📙 हिदाया जिल्द 4, पेज 443
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -173)
देखने और छूने का बयान :
बहुत छोटे बच्चे के लिए सतरे औरत नहीं यानी उसके बदन के किसी हिस्से का छुपाना फ़र्ज़ नहीं फिर जब कुछ बड़ा हो जाए तो उसके आगे पीछे का मक़ाम छुपाना फ़र्ज़ है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 75
औरत का औरत को देखना, इसका वही हुक्म है जो मर्द को मर्द की तरफ़ नज़र करने का है यानी नाफ़ के नीचे से घुटने तक नहीं देख सकती बाकी आज़ा (अंगों) की तरफ़ नज़र कर सकती है, जबकि शहवत का अन्देशा न हो सालिहा (नेक) औरत को चाहिए कि अपने को बदकार औरत के देखने से बचाए यानी उसके सामने दुपट्टा वगैरा न उतारे क्योंकि वह उसे देखकर मर्दो के सामने उसका हुलिया बयान करेगी।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 720
औरत का अजनबी मर्द की तरफ नज़र करने का वही हुक्म है जो मर्द का मर्द की तरफ नज़र करने का है और यह उस वक़्त है कि औरत को यकीन के साथ मालूम हो कि उसकी तरफ नज़र कर से शहवत पैदा न होगी वरना इसका शुबह भी हो तो हरगिज़ नज़र न करे।
📙 हिदाया जिल्द 4, पेज 444
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -174)
देखने और छूने का बयान :
औरत का अजनबी मर्द के जिस्म को छूना हरगिज़ जाइज नहीं जबकि दोनों में से कोई भी जवान हो और उनको शहवत हो सकती हो, अगरचे इस बात का दोनों को इतमिनान हो कि शहवत पैदा न होगी।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 76
कुछ जवान औरतें अपने पीरों के हाथ - पाँव दबाती हैं और बअज़ पीर अपनी मुरीदा से हाथ - पाँव दबवाते हैं और उनमें अकसर दोनों या एक हदे शहवत में होता है ऐसा करना नाजाइज़ है और दोनों गुनाहगार हैं।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 77
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -175)
देखने और छूने का बयान :
अजनबिया औरत की तरफ़ नज़र करने का हुक्म यह है कि ज़रूरतन उसके चेहरे और हथैली की तरफ़ नज़र करना जाइज़ है मगर छूना जाइज़ नहीं अगरचे शहवत का अन्देशा न हो।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 78
मर्द महरमा औरत के सर, सीना, पिण्डली, बाजू, कलाई, गर्दन, कदम की तरफ़ नज़र कर सकता है जबकि दोनों में से किसी को शहवत का अन्देशा न हो महरमों के पेट, पीठ और रान की तरफ नज़र करना नाजाइज़ है।
📙 हिदाया जिल्द 4, पेज 444
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -176)
देखने और छूने का बयान :
जिस उज़्व (अंग) की तरफ नज़र करना नाजाइज़ है, अगर वह बदन से जुदा हो जाए तब भी उसकी तरफ नज़र करना नाजाइज़ ही रहेगा मसलन पैरों के बाल उनको जुदा करने के बाद भी दूसरा शख्स नहीं देख सकता औरत के सर के बाल या उसके पाँव या कलाई की हड्डी कि उसके मरने के बाद भी अजनबी आदमी नहीं देख सकता। औरत के पाँव के नाखुन कि उनको भी अजनबी आदमी नहीं देख सकता और हाथ के नाखुन को देख सकता है।
📙 दुरै मुख्तार जिल्द 5, पेज 259
अकसर देखा गया है कि गुस्लखाना या पाखाने में मूए ज़ेरे नाफ मूंड कर बअज़ लोग छोड़ देते हैं, ऐसा करना दुरूस्त नहीं बल्कि उनको ऐसी जगह डाल दें कि किसी की नज़र न पड़े या ज़मीन में दफ़्न कर दें। औरतों को भी लाज़िम है कि कंघा करने या सर धोने में जो बाल निकलें उन्हें कहीं छिपा दें कि उन पर अजनबी की नज़र न पड़े।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 81
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -178)
ज़िना का बयान :
यानी ज़िना रूहानी पाकीज़गी और अख़्लाक़ी तहारत के मुनाफ़ी है जिस्मानी और मुआशरती दोनों ऐतिबार से काबिले नफ़रत है अलगरज़ ज़िना वह बदतरीन काम है कि उसकी शामत से हजारों बुराईयां समाज में जन्म लेती हैं।
(1) बलाओं का नुजूल होता है।
(2) दुश्मन गल्बा पाता है।
(3) रिज़क में तंगी आती है।
(4) उम्र से बरकत उठ जाती है।
(5) मिल्को दौलत में बर्बादी आती है।
(6) दुआएं कबूलियत से मेहरूम रहती हैं।
(7) रूह की नूरानियत पर नफ़्स की जुल्मतो तारीकी गल्बा पाती है।
(8) बिला तोबा मर जाए तो अज़ाबे आख़िरत का सिलसिला शुरू हो जाता है।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -179)
ज़िना का बयान :
बअज़ सहाबा-ए-किराम से मरवी है कि ज़िना से बचो इसमें 6 मुसीबतें हैं, जिनमें से तीन का तअल्लुक दुनिया से है और तीन का आख़िरत से।
*दुनिया में :*
(1) रिज़्क कम हो जाना।
(2) ज़िन्दगी का मुख्तसर हो जाना।
(3) चेहरे का मस्ख हो जाना (बिगड़ जाना)
*आखिरत में :*
(1) खुदा की नाराजगी
(2) सख्त पुरशिश
(3) जहन्नुम में दाखिल होना।
*📙 मुकाशिफतुल कुलूब पेज 168*
जिस कोम में ज़िना की कसरत हो जाती है, अल्लाह तआला खौफ़ और आम कहत में मुब्तिला कर देता है।
📙 मुकाशिफतुल कुलूब पेज 500
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -180)
ज़िना का बयान :
ऐ मेरे नौजवानो ! ज़िना से बचो। आज पर्दो में छुप - छुप कर मुंह काला करते हो, कल क़यामत के दिन मालूम हो जाएगा कि अल्लाह का अज़ाब कितना सख्त है ? अल्लाह की सिफ़त जहां रहमान व सत्तार है वहीं उसकी सिफत कहहार व जब्बार भी है जानी के लिए दुनिया में भी सज़ा है और आखिरत में भी! और जो शख्स ज़िना करे, उसे 'आसाम' में डाला जाएगा) 'आसाम' के मुतअल्लिक कहा गया है कि जहन्नुम की एक वादी है बअज़ उलमा ने कहा है कि वह जहन्नम का एक गार है, जब उसका मुंह खोला जाएगा तो उसकी शदीद बदबू से जहन्नमी भी चीख उठेंगे।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -181)
ज़िना का बयान :
रिवायत : हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने रब्बे कायनात से जानी की सज़ा के बारे में पूछा तो रब तआला ने फ़रमाया मैं उसे आग की ज़िरह पहनाउंगा और वह ऐसी वज़नी है कि अगर बहुत बड़े पहाड़ पर रख दी जाए तो वह भी रेज़ा - रेज़ा हो जाए।
📙 मुकाशफुतुल कुलूब पेज 168
हज़रते जिबरील व मीकाईल अलैहिमुस्सलाम हुज़ूर ﷺ को ख़्वाब की हालत में अजाइबात की सैर कराने के लिए अपने हमराह ले गए, आपने ख्वाब में एक तंनूर मुलाहिजा फरमाया जो ऊपर से तंग और नीचे से फैला हुआ था उसके निचले हिस्से में आग जलती थी कुछ नंगे मर्द और नंगी औरतें उसमें शोलों के साथ ऊपर आते थे और फिर नीचे गिरते थे जब आग बलन्द होती थी तो ऐसा मालूम होता था कि ये लोग उस तनूर से निकल जाना चाहते हैं फिर वह आग नीचे होती है तो ये लोग फिर नीचे चले जाते हैं फ़िरिश्तों ने बयान किया कि ये ज़िना करने वाले मर्द और औरतें आग के तनूर में कैद हैं आग इनको उछालती है और फिर अन्दर की तरफ़ खेंचती है।
📙 बुखारी शरीफ जिल्द 1, पेज 185
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -182)
ज़िना का बयान :
आज दुनिया ने ज़िना जैसी कबीह चीज़ को मामूली चीज़ समझकर नज़र अन्दाज़ करना शरू कर दिया है गोया कि यह उनकी निगाह में कोई बुरी बात नहीं हालांकि अहादीसे करीमा से साफ पता चलता है कि ज़िना से बढ़़-कर कोई गुनाह नहीं और ज़िना ग़ज़बे इलाही को दावत देता है ज़रूरी बात यह है कि ज़ानी ज़िना के वक़्त मोमिन नहीं रहता।
रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया जब कोई शख्स ज़िना करता है तो ईमान उससे निकलकर उसके सर पर साये की तरह ज़मीनो आसमान के दरमियान मुअल्लक हो जाता है।
📙 मिशकात शरीफ पेज 18
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -183)
ज़िना का बयान :
रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह के नज़दीक नुत्फे को हराम कारी में सर्फ करने से बड़ा कोई गुनाह नहीं।
📙 मुकाशिफतुल कुलूब पेज 168
हज़रत अबु हुरैरा رضى الله تعالیٰ عنه से मरवी है कि उन्होंने रसूलुल्लाह ﷺ को फ़रमाते सुना जो औरत किसी कोम में उसको दाखिल करे जो उस कोम से न हो (यानी ज़िना कराए और उससे औलाद हुई) तो उसे अल्लाह की रहमत का हिस्सा नहीं और उसे जन्नत में दाखिल न फ़रमाएगा।
📙 नसाई जिल्द 2, पेज 94
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -184)
हिकमत की बातें :
चार चीजें बदन को ताकतवर बनाती हैं गोश्त खाना, खुश्बू सूघना, गुस्ल करना और कतान का कपड़ा पहनना।
चार चीजें आँख की रोशनी को तेज करती हैं किबले की तरफ मुँह करके बैठना, सोते वक़्त सुरमा लगाना, तरोताज़ा हरियाली की तरफ देखना, कपड़े साफ सुथरे पहनना।
चार चीजें बदन को कमज़ोर करती हैं कसरते जिमाअ, कसरते ग़म, निहार मुँह कसरत से पानी पीना, कसरत से खटाई खाना।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -185)
हिकमत की बातें :
चार चीजें निगाह को कमज़ोर करती हैं गन्दगी की तरफ देखना, सूली पर लटकाए हुए आदमी की तरफ देखना, औरतों की शर्मगाह की तरफ देखना, किब्ले की तरफ पीठ करके बैठना।
चार चीजें जिमाअ की कुव्वत को बढ़ाती हैं चिड़िया का गोश्त खाना, इतरीफ़ल, पिस्ता, तीरह तेज़क खाना।
📙 अहयाउल उलूम जिल्द २, पेज २१
साहिबे बुस्तान लिखते हैं पाँच चीजें बीनाई को तेज़ करती हैं हरियाली की तरफ देखना, जारी पानी की तरफ़ देखना, हसीन चेहरे की तरफ़ नज़र करना, नमाज़ में मोज़ए सुजूद (सजदे की जगह) की तरफ़ देखना, माँ - बाप के चेहरे को देखना।
📙 बुस्तान पेज 133
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -186)
उन चीज़ों का बयान जिनसे बीमारी लाहिक होने का अन्देशा है :
ऐहतिकार करना : (यानी खाने पीने की चीज़ को इसलिए रोकना कि महंगा होने पर फरोख्त करेगा) कोढ़ की बीमारी पैदा होने का सबब है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16 पेज 107)
दाँत से नाखुन काटना : इससे बर्स (सफेद दाग) की बीमारी होने का अन्देशा है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16 पेज 198
नाक के बाल उखेड़ना : इससे मर्ज़ आकला पैदा होने का डर है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16 पेज 197
इमामा बैठकर बांधना और पायजामा खड़े होकर पहनना : इसका करने वाला ऐसी बीमारी में मुब्तिला होगा जिसकी कोई दवा नहीं।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 258
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -187)
उन चीज़ों का बयान जिनसे बीमारी लाहिक होने का अन्देशा है :
धूप से गर्मशुदा पानी का इस्तेमाल करना : इससे बर्स होने का अन्देशा है ख्वाह वुज़ू करे या गुस्ल करे या पिये।
बुध के दिन नाखुन तराशना : इसमें बर्स होने का अन्देशा है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 430
हमबिस्तरी के वक़्त औरत की शर्मगाह की तरफ नज़र करना : इसमें नाबीना होने का सबब है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 46
जिमाअ करते वक़्त कलाम करना : बच्चे के गूंगे या तोतले होने का अन्देशा है।
📙 फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 46
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -188)
उन चीज़ों का बयान जिनसे बीमारी लाहिक होने का अन्देशा है :
औरत के मकामे मखसूस की तरफ नज़र करना : इससे निस्यान (भूल) का मर्ज़लाहिक होता है।
📙 बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 77
खाना खाने के बाद बे हाथ धोए सोए रहना (कि शैतान उसे चाटता है) : इसमें बर्स के पैदा होने का इमकान है।
गुस्लखाने में पेशाब करना : इससे वसवसा पैदा होता है।
📙 सुन्नी बहिश्ती जेवर पेज 454
राख पर पैशाब करना!
किब्ले की तरफ मुंह करके पैशाब करना!
ज़िन्दगी हरामखोरी में गंवाना!
☝🏻 इन तीनों से निस्यान (भूल) का मर्ज़ लाहिक होता है।
📙 सुनी बहिश्ती जेंवर पेज 450
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -189)
उन चीज़ों का बयान जिनसे बीमारी लाहिक होने का अन्देशा है :
खट्टे सेब का खाना, ठहरे हुए पानी में पैशाब करना, जुओं को बिला मारे जमीन पर फेंकना, बिल्ली और चूहे का जूठा खाना, दो औरतों के बीचों बीच चलना साहिबे बुस्तान लिखते हैं इन पाँच चीज़ो से भूल जाने का मर्ज़ लाहिक होता है।
📙 बुस्तान पेज 132
⚠️ *नोट :-* मजकूरा बातों में तिब्बी ऐतिबार से भी इज्तिनाबो ऐहतिराज़ चाहिए, वरना उन्ही बीमारियों में मुब्तिला होगा जिनका बयान ऊपर गुज़र चुका।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -190)
उन चीज़ों का बयान जिनसे मोहताजी और तंगदसती आती है :
गुनाहों में मुब्तिला रहना। ज़िना करना। झूट बोलना। झूटी कसमें खाना। बरहना (नंगे) पेशाब करना।बगैर हाथ मुँह धोए हालते जनाबत (नापाकी की हालत) में खाना! पायजामा या दामन या आँचल से मुँह पोंछना। हद से ज़्यादा सोना। रात में नंगा होकर सोना। फकीरों से रोटी के टुकड़े खरीदना। खुश्क बालों में कंघा करना या खड़े होकर बाल काढ़ना।टूटा हुआ कंघा इस्तेमाल करना।
माँ - बाप का नाम लेकर पुकारना। कैंची से मूए ज़ेरे नाफ़ साफ़ करना। चालीस दिन से ज़्यादा मूए जेरे नाफ़ का दूर न करना। बुजुर्गों के आगे चलना। दरवाज़े पर बैठने की आदत बनाना। घर से मकड़ी के जाले को दूर न करना। जूं को ज़िन्दा छोड़ देना। नमाज़ में सुस्ती करना। फटे हुए कपड़े को न सीना। सुबह के वक़्त सोना। औलाद पर बावजूद मालदारी के तंगी करना।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -191)
उन चीज़ों का बयान जिनसे मोहताजी और तंगदसती आती है :
खाने के बाद बर्तन साफ न करना। अहलो अयाल से लड़ते रहना। मय्यत के करीब बैठकर खाना। खाने पीने के बर्तन खुले हुए रखना। चिराग फूंक मारकर बुझाना। बाज़ार में सबसे पहले जाना और बाद में आना। औंधे जूते को देखना और उसको सीधा न करना। औलाद को गाली देना या उस पर लानत करना। फकीर को झिड़क देना। बायां पाँव पहले पायजामे में डालना। कब्रिस्तान में हंसना। कूड़ा करकट घर में जमा रखना। सुबह होते ही अल्लाह व रसूल का नाम लिए बगेर दुनियावी कामों में मशगूल हो जाना। मगरिब और इशा के दरमियान सोना। गाने बजाने में दिल लगाना। बिला वजहे शरई अपनों से तअल्लुकात ख़त्म कर लेना।
सिलए रहमी न करना। हालते जनाबत (नापाकी की हालत) में नाखुन तराशना या सर मुंडाना या मूए ज़ेरे नाफ दूर करना। ज़कातो सदकात के अदा करने में बुख़्ल (कंजूसी) करना या टाल मटोल करना। बगैर हाजत सवाल करना। अमानत में खयानत करना। अंधेरे में खाना खाना। माँ बप को ईज़ा (तकलीफ) देना। कुरआने पाक को बेवुजू हाथ लगाना। गाने बजाने के आलात ढोल बाजे का घर में रखना। रास्ते में पैशाब करना। हमेशा बेहूदागोई, मसखरापन और दिललगी की बातों में मसरूफ रहना।
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सलीक ए ज़िन्दगी (Part -192)
उन चीज़ों का बयान जिनसे मोहताजी और तंगदसती आती है :
नंगे सर खाना खाना। नंगे सर बैतुलखला में जाना। औरतों का नंगे सर रहना। तिलावते कुरआन के दौरान आयते सजदा छोड़ कर आगे बढ़ना। दूसरे आदमी का कंघा मांग कर इस्तेमाल करना। हौज़ या तालाब या बहते पानी में पैशाब करना। गुस्लखाने में पैशाब करना। पायजामा या तहबंद सर के नीचे रखकर सोना।नमाज़ कज़ा करना। मस्जिद में दुनिया की बातें करना। वुजू करते वक़्त दुनिया की बातें करना। बिला वजहे शरई किसी के तोहफे व नज़राने को रद कर देना। खाने की चीज़ रोटी वगैरह की बेहुरमती करना। दरवाज़े पर बैठकर कुछ खाना पीना।
उस्ताद की ताज़ीमो तौकीर में कमी करना। मेहमान को हिकारत की निगाह से देखना और उसके आने से नाख्नुश होना। बैतुलखला में बातें करना। बगैर बुलाए दावत में जाना। चारपाई पर दस्तरख्वान वगैरह रखे बगैर खाना खाना। दाँतों से रोटी कतरना। जुल्म करना, किसी को नाहक सताना। गुनाहों के कामों में ज़िद करना और अपनी बात पर अड़ जाना। जिस बर्तन में खाना खाए उसी में हाथ धोना। क़ुरआन शरीफ़ घर में होते हुए न पढ़ना। माँ - बाप, उस्ताद, मुर्शिद की मर्जी के खिलाफ कोई काम करना। दरवाज़े की देहलीज़ पर तकिया लगाना या सर रख कर सोना। बिला ज़रूरत जानवर ज़िबह करने का पैशा इख्तियार करना। मुनासिब रिश्ता मिलने के बावजूद लड़कियों की शादी न करना।
📙 सुनी बहिश्ती ज़ेवर पेज 448-452 + पन्दनामा पेज 43-44
*Post End........*
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