Wednesday, 16 March 2022

गुनाहों के अज़ाबात


 

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                    *❝  ❶ .....कुफ्र  ❞*

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࿐  *कुफ्र की तारीफ :*  इस्तेलाहे शरीअत में (ज़रूरियाते दीन में से) किसी एक ज़रूरते दीनी के इन्कार को (भी) कुफ्र कहते हैं अगर्चे बाकी तमाम ज़रूरियाते दीन की तस्दीक करता हो।

*जरूरियाते दीन क्या हैं ? →* "ज़रूरियाते दीन" इस्लाम के वोह अहकाम हैं जिन को हर ख़ासो आम जानते हों जैसे अल्लाह पाक की वहदानिय्यत (यानी उस का एक होना) अम्बियाए किराम عَلَیْھِمُ الصَّلٰوةُ وَالسَّلَام की नबुव्वत, नमाज़, रोजे, हज, जन्नत, दोज़ख, कियामत में उठाया जाना, हिसाबो किताब लेना वगैरहा।

࿐   वाजेह रहे कि यहाँ “अवाम" से मुराद वोह मुसलमान हैं जो उलमा के तबके में शुमार न किए जाते हों मगर उलमा की सोहबत में बैठने वाले हों और इल्मी मसाइल का जौक रखते हों!

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह  - 11 📚*


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                       *❝   कुफ्र ❞*

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࿐   *कुफ्रियात की चन्द मिसालें :* अल्लाह पाक की वहदानिय्यत (यानी उस के एक होने) का इन्कार करना, किसी नबी عَلَیْھِمُ الصَّلٰوةُ وَالسَّلَام की तौहीन करना। हुजूर रेहमतुल्लिल आलमीन ﷺ के  खातमुन्नबिय्यीन (यानी आखरी नबी) होने का इन्कार करना। नमाज, रोजे, जकात और हज की फ़र्जिय्यत (यानी इन के फर्ज होने) का इन्कार करना। इसी तरह जन्नत, दोज़ख, और कियामत में उठाए जाने का इन्कार करना भी कुफ्र है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 12 📚*


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                 *❝  कुफ्र  ❞*
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࿐   *कुफ्र इर्तेदाद" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1)  "कुफ्र" अक्बरुल कबाइर (यानी सब कबीरा गुनाहों से बड़ा गुनाह) है, कोई कबीरा (बड़ा) गुनाह कुफ्र से बड़ा नहीं!

࿐  (2)  जिस का खातिमा معاذاللہ कुफ्र पर हुवा (यानी जो हालते कुफ्र में मरा) वोह हमेशा हमेशा के लिए जहन्नम में रहेगा, उस की मगफ़रत की कोई सूरत नहीं। 

࿐  कुरआने पाक में है : *तर्जमए कन्जुल ईमान :* बेशक अल्लाह उसे नहीं बख्शता कि उस के साथ कुफ्र किया जाए और कुफ्र से नीचे जो कुछ है जिसे चाहे मुआफ़ फ़रमा देता है।" 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 12 📚*

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                   *❝    कुफ्र  ❞*
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࿐  (3) जो मुसलमान हो कर कुफ्र करे उस को शरीअत में मुर्तद केहते हैं।

࿐   मुर्तद के अहकाम "काफिरे अस्ली" के अहकाम से भी ज्यादा सख्त हैं। मसलन (अगर येह शादी शुदा हो तो) इस की औरत निकाह से निकल जाती है फिर इस्लाम लाने के बाद अगर औरत राजी हो तो दोबारा उस से निकाह हो सकता है वरना (औरत) जहां पसन्द करे निकाह कर सकती है, उस का निकाह बातिल होता है और वोह किसी औरत से निकाह नहीं कर सकता, मुर्तद किसी मुआमले में गवाही नहीं दे सकता और किसी का वारिस नहीं हो सकता) वगैरा!

࿐  (4) मुर्तद के साथ मुसलमानों को सलाम कलाम, मैल जोल, निशस्त व बरखास्त (यानी उठना बैठना), बीमार पड़े तो उस की इयादत को जाना, मर जाए तो उस का जनाज़ा उठाना, उसे मुसलमानों के गोरिस्तान (कब्रिस्तान) में दफ्न करना, मुसलमानों की तरह उस की कब्र बनाना, उसे मिट्टी देना, उस पर फातेहा (पढ़ना, येह सब बातें) हराम हैं। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 13 📚*

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                  *❝  कुफ्र  ❞*
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࿐   आयते मुबारका, *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और वोह जो कुफ्र  करें और मेरी आयतें झुटलाएंगे वोह दोज़ख वाले हैं उन को हमेशा उस में रेहना। 

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* ऐ उमर ! उठो, और (जा कर लोगों में) तीन मरतबा इस बात का एलान कर दो कि जन्नत में सिर्फ मोमिन ही दाखिल होंगे। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 13 📚*

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                  *❝  कुफ्र  ❞*
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࿐   *कुफ्र में पड़ने के बाज अस्वाब :* (1)  इल्मे दीन और इस में भी खास तौर पर अपने बुन्यादी जरूरी अकाइद की मालूमात न होना क्यूंकि जाहिल आदमी कभी अपनी  जेहालत के सबब कुफ्र में जा पड़ता है।

࿐   (2) बगैर इल्म के महज़ अपनी नाकिस अक्ल के भरोसे पर दीनी मसाइल में बहस करना और हट धर्मी का मुजाहरा करना जैसा कि आज कल इल्मे दीन से जाहिल मगरिबी (westem) सोच रखने वाले लोगों का तरीका है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 13 - 14📚*

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                   *❝  कुफ्र  ❞*
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࿐   *कुफ्र में पड़ने के बाज अस्वाब :* (3) कुफ्फारो मुशरिकीन और, (4) बद मजहबों के साथ दोस्ती और मैल जोल रखना बिल खसूस उन की मजहबी तकरीबात (Functions) में शिर्कत करना!

࿐  (5) नीज़ उन की किताबें पढ़ना भी कुफ्रियात में मुब्तला होने का बड़ा सबब है।

࿐  (6) गाने सुनना और, (7) फ़िल्में ड्रामे देखना कि कई गाने और फ़िल्में ड्रामे कुफ्रिया अश्आर और अफ्आल पर मुश्तमिल होते हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 14 📚*

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                    *❝   कुफ्र  ❞*
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࿐   *ईमान की हिफाजत के लिए :* अल्लाह पाक की खुफ़िया तदबीर से डरते रहिए, अल्लाह पाक का शुक्र अदा करते रहिए कि उस ने हमें इस्लाम जैसी अजीम नेमत से नवाज़ा, ईमानियात व कुफ्रियात का इल्म हासिल कीजिए कि किन बातों पर इस्लाम का दारोमदार है और किन में पड़ने से आदमी दाइरए इस्लाम से खारिज हो जाता है। इस के लिए  कुफ्रिया कलेमात के बारे में सवाल जवाब किताब भी बहुत मुफीद है, कुफ्फारो मुशरिकीन और बद मज़हबों की सोहबत से बचते रहिए, सिर्फ और सिर्फ मुस्तनद उलमाए एहले सुन्नत की ही किताबें पढ़िए, बद मज़हबों की किताबों नीज़ नावेल व डाइजेस्ट पढ़ने से बचिए, मोहतात गुफ्तगू कीजिए बिल खुसूस दीनी मसाइल में उलझने और किसी भी दीनी बात को मजाक बनाने से हमेशा हमेशा बचते रहिए, गाने सुनने और फ़िल्में ड्रामे देखने से भी बचिए।

࿐   *वज़ीफ़ा :* हर रोज़ सुबह के वक्त 41 मरतबा येह पढ़िए : 
              یَاحَىُّ یَاقَیُّومُ لَآ اِلٰهَ اِلَّآ آنْتَ

*तर्जुमा :* ऐ हय्य! ऐ क़य्यूम ! तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।

👆🏻 पढ़ने वाले का दिल ان شاء اللہ ज़िन्दा रहेगा और खातिमा ईमान पर होगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 14 📚*

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                  *❝  ❷ ......गुमराही  ❞*
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࿐  *गुमराही क्या है?* ज़रूरियाते मज़हबे एहले सुन्नत में से किसी बात का इन्कार करना गुमराही है।
 
࿐  *जरूरियाते मजहबे एहले सुन्नत किसे कहते हैं?* मजहबे एहले सुन्नत की ज़रूरियात का मतलब येह होता है कि उस का मजहबे एहले सुन्नत से होना सब अवाम व खुवासे एहले सुन्नत को मालूम हो जैसे अज़ाबे कब्र, आमाल का वज़्न।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 15 📚*

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               *❝  गुमराही ❞*
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࿐   *गुमराहिय्यत की चन्द मिसालें :* अजाबे क़ब्र का इन्कार करना, तकदीर का इन्कार करना, करामाते औलिया का इन्कार करना, हज़रते सय्यदना अलिय्युल मुर्तजा كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم को शैखेने करोमैन (यानी हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक और हज़रते सय्यदना उमर फारूक़ रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा) से अफ्ज़ल केहना, यज़ीद के फ़ासिको फ़ाजिर होने से इन्कार करना। वगैरा....

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 16 📚*

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                *❝  गुमराही ❞*
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࿐  *गुमराही व बद मजहबी के मुतअल्लिक मुलालफ़ अहकाम :* 

࿐   (1.)  अकीदे की ख़राबी अमल की खराबी से कहीं ज्यादा बुरी है।

࿐   (2.)  इस लिए बद मज़हब अगर्चे कैसा ही नमाज़ी हो, अल्लाह पाक के नजदीक सुन्नी बे नमाज़ी से कई दर्जे ज़्यादा बुरा है। 

࿐   (3.)  बद मज़हब व गुमराह से कुरआनो हदीस का इल्म हासिल करना भी जाइज़ नहीं। मुस्लिम शरीफ़ की रिवायत है बेशक येह इल्म तुम्हारा दीन है तो तुम गौर कर लो कि अपना दीन किस से हासिल कर रहे हो। 

࿐   (4.)  बद मज़हब की ताज़ीम हराम है। और शरअन (उस की) तौहीन वाजिब (है।

࿐   (5.)  बद मज़हब की गीबत शरअन गीबत नहीं बल्कि) बद मज़हब की बुराइयां बयान करने का खुद शरअन हुक्म है। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 16 📚*

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                 *❝  गुमराही ❞*
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࿐  *आयते मुबारका :*  तर्जमए कन्जुल ईमान : और जो कहीं तुझे शैतान भुलावे तो याद आए पर ज़ालिमों के पास न बैठ। 

👆🏻 इस आयत में "जालिमों" से मुराद गुमराह बद मज़हब, फ़ासिक और काफ़िर लोग हैं। इन सब के साथ बैठना ममनूअ है।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* जिस ने किसी बद मज़हब की ताजीमो तौकीर (Respect) की उस ने इस्लाम के ढाने में मदद की।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 17 📚*

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                *❝  गुमराही ❞*
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࿐   *गुमराही में पड़ने के बाज अस्बाब :* (1.)  गुमराह और बद मजहबों के साथ दोस्ती और मैल जोल रखना।, (2.) खास तौर पर उन की मज़हबी तकरीबात (Functions) में शिर्कत करना या T.V और Intemet या Social Media के जरीए उन की गुफ्तगू व तक़रीर (Speech) सुनना कि गुमराह शख्स अपनी तकरीर में कुरआनो हदीस की वजाहत करने की आड़ में ज़रूर कुछ बातें अपनी बद मज़हबी की भी मिला दिया करते हैं और देखा गया है कि वोह बातें तकरीर सुनने वाले के जेहन में बैठ जाती हैं और वोह खुद भी गुमराह हो जाता है। इसी तरह, (3.) उन की किताबें पढ़ना। (4.)  बगैर इल्म के दीनी मसाइल खुसूसन अकाइद में बहस करना।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 17 📚*

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               *❝  गुमराही ❞*
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࿐   *गुमराही से मेहफूज रेहने के लिए :* बद मजहब और किसी भी तरह का गुमराह कुन नज़रिया रखने वाले शख्स से हमेशा दूर रहिए, उस के साथ दोस्ती, मैल जोल, उस की गुफ्तगू और तकरीर सुनने से बचते रहिए कि हदीस शरीफ़ में है उन (यानी बद मजहबों) से दूर रहो और उन्हें अपने से दूर करो, कहीं वोह तुम्हें गुमराह न कर दें, कहीं वोह तुम्हें फ़ितने में न डाल दें। आला हजरत इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा के दामन को मजबूती से थामे रखिए। सिर्फ और सिर्फ मुस्तनद उलमाए एहले सुन्नत की किताबें पढ़िए और उन्हीं की तकारीर सुनिए। दीनी मसाइल खुसूसन अकाइद के मुआमले में बहस करने से गुरेज़ कीजिए कि येह अवाम का नहीं बल्कि माहिरे फ़न उलमा का काम है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 18 📚*  

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               *❝  ❸ ......क़त्ले  नाहक  ❞*
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࿐   *"क़त्ले नाहक" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*

࿐  (1.)  किसी मुसलमान को जान बूझ कर नाहक़ क़त्ल करना मी कबीरा (बड़ा) गुनाह है।

࿐ (2) (शरीअत में) क़त्ले अम्द (यानी अस्लहे के साथ जान बूझ कर की सज़ा दुन्या में फ़कत किसास (यानी कत्ल का बदला कल्ल) है यानी येही मुतअय्यन (मुकर्रर) है। हां! अगर औलियाए मक्तूल मुआफ़ कर दें या कातिल से माल ले कर मुसालहत (सुल्ह) कर लें तो येह भी हो सकता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 19 📚*

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                *❝  क़त्ले  नाहक  ❞*
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࿐   आयते मुबारका >  *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और जो कोई मुसलमान को जान बूझ कर क़त्ल करे तो उसका बदला जहन्नम है कि मुद्दतों उस में रहे और अल्लाह ने उस पर गज़ब किया और उस पर लानत की और उस के लिए तैयार रखा बड़ा अज़ाब।

࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ:* उस जात की कसम जिस के कब्जए कुदरत में मेरी जान है ! बेशक एक मोमिन का क़त्ल किया जाना अल्लाह पाक के नज़दीक दुन्या के तबाह हो जाने से ज्यादा बड़ा है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 20 📚*

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                 *❝  क़त्ले  नाहक  ❞*
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࿐   *क़त्ले नाहक के बाज़ अस्वाब :* (1)  मक्सद के हुसूल में नाकामी पर शदीद गम व गुस्सा। (2) घरेलू नाचाकी मसलन शौहर बीवी या भाई-भाई में मुसलसल झगड़ा हो तो तंग आ कर एक फ़ोक दूसरे को क़त्ल कर देता है। (3) माल जम्अ करने की हिर्स। (4) जाएदाद (Property) के झगड़े, इस के सबब क़त्ल करना उमूमन देहातों में ज्यादा पाया जाता है। (5) तकब्बुर (घमंड) कि मुतकब्बिर आदमी बाज़ अवकात अपने हक़ में मामूली सी बेअदबी करने वाले को कत्ल कर देता है। (6) सियासी महाज़ आराई, इस में एक फरीक अपने काइद की हिमायत में दूसरे फ़रोक का बे दरीग खून बहा देता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 20 📚*

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                *❝  क़त्ले  नाहक  ❞*
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࿐   *क़त्ले नाहक से बचे रहने के लिए :* गुस्से को काबू में रखिए, इस के लिए रिसाला "गुस्से का इलाज और एहतिरामे मुस्लिम" का मुतालआ मुफीद है। घर में मदनी माहोल बनाइए और शरीअतो सुन्नत के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारिए, घरेलू नाचाकियों और लड़ाई झगड़ों का खातिमा होगा। दिल से दुन्या की महब्बत निकाल दीजिए। हदीस शरीफ़ में है दुन्या की महब्बत तमाम गुनाहों की जड़ है।

࿐   तवाज़ोअ इख्तियार कीजिए और तकब्बुर की आफ़त से पीछा छुड़ाइए। अन्जाम को पेशे नज़र रखिए कि येह वक्ती और जज्बाती कदम दुन्या ओ आखेरत में किस कदर तबाही ओ बरबादी का बाइस बनता है मसलन येह कि क़ातिल को अपने मुल्की कानून के मुताबिक़ तरह तरह की तक्लीफ देह सज़ाओं और अज़ीज़ो अकरिबा के सामने जिल्लतो रुस्वाई का सामना करना पड़ता है, इस के इलावा कुरआनो हदीस में उस के लिए जहन्नम के दर्दनाक अज़ाब की वईदें भी आई हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 20 - 21📚*

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        *❝ ❹ ....नमाज़ क़ज़ा करना ❞*
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࿐    *नमाज़ क़ज़ा करने की तारीफ़ :* नमाज़ को उस के वक़्त पर अदा न करना नमाज़ क़ज़ा करना है। 

*नमाज़ कजा करने की मिसाल :* मसलन नमाजे जोहर के वक़्त में महज़ सुस्ती की या कामों में इस तरह मसरूफ़ रहा कि जोहर का पूरा वक्त ख़त्म हो गया और नमाजे जोहर अदा न की, अब अस्र का वक़्त शुरू होने के बाद या किसी और वक़्त में नमाज अदा की तो येह नमाज़ क़ज़ा करना केहलाएगा। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 22 📚*

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      *❝ नमाज़ क़ज़ा करना ❞*
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࿐   *“नमाज़ कज़ा करने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :*

࿐  (1.)  बिला उजे शरई नमाज़ क़ज़ा कर देना बहुत सख्त गुनाह है। उस पर फ़र्ज है कि इस की क़ज़ा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा करे। तौबा जब ही (यानी उसी वक़्त) सहीह है कि क़ज़ा पढ़ ले। 

࿐  (2.)  जो अक्ल सलामत होने और कुदरत रखने के बा बुजूद जान बूझ कर नमाज़ या रोज़ा छोड़ दे हरगिज़ अल्लाह का वली नहीं हो सकता।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 22 📚*

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࿐   *“नमाज़ कज़ा करने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :*

࿐   (3.)  फुकहाए किराम رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام फ़रमाते हैं : सोते में या भूले से नमाज़ क़ज़ा हो गई तो उस की क़ज़ा पढ़नी फर्ज है अलबत्ता कज़ा का गुनाह उस पर नहीं मगर बेदार होने और याद आने पर अगर वक्ते मकरूह न हो तो उसी वक्त पढ़ ले, ताखीर मकरूह है। 

⚠️ *नोट :*  जब जाने कि अब सोया तो नमाज़ जाती रहेगी उस वक्त सोना हलाल नहीं मगर जब कि किसी जगा देने वाले पर एतिमाद हो।

࿐   (4.)  जिस के जिम्में क़ज़ा नमाज़ें हों उन का जल्द से जल्द पढ़ना वाजिब है मगर बाल बच्चों की परवरिश और अपनी ज़रूरियात की फराहमी के सबब ताखीर जाइज़ है लेहाज़ा कारोबार भी करता रहे और फुरसत का जो वक़्त मिले उस में क़ज़ा पढ़ता रहे यहां तक कि पूरी हो जाएं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 22 📚*

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࿐  आयते मुबारका >  *तर्जमए कन्जुल ईमान :* तो उन के बाद उनकी जगह वोह ना खलफ़ आए जिन्हों ने नमाज़ें गंवाई (जाएअ कीं) और अपनी ख्वाहिशों के पीछे हुवे तो अन करीब वोह दोज़ख़ में ग़य्य का जंगल पाएंगे।

⚠️ "ग़य्य" जहन्नम में एक वादी है जिस की गर्मी से जहन्नम की वादियां भी पनाह मांगती हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 23 📚*

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      *❝  नमाज़ क़ज़ा करना  ❞*
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࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* आज रात दो शख्स (यानी हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम और हज़रते मीकाईल अलैहिस्सलाम) मेरे पास आए और मुझे अपने साथ (अर्जे मुकद्दसा में) ले आए, मैंने देखा कि एक शख्स लेटा है और उस के सिरहाने एक शख्स खड़ा है और पथ्थर से उस का सर कुचल रहा है, हर बार कुचलने, फिर ठीक हो जाता है। मैं ने फ़रिश्तों से कहा : سبحان الله ! येह कौन है ? उन्हों ने अर्ज की : आगे तशरीफ़ ले चलिए (मजीद मनाज़िर दिखाने के बाद) फ़रिश्तों ने अर्ज की, कि पेहला शख्स जो आप ﷺ ने देखा येह वोह था जिस ने कुरआन पढ़ा फिर उस को छोड़ दिया था और फर्ज नमाजों के वक़्त सो जाता था। الله اکبر

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 23 📚*

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      *❝  नमाज़ क़ज़ा करना  ❞*
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࿐   *नमाज़ कजा होने के बाज़ अस्वाब :*  (1.)  बे-नमाजियों की सोहबत, (2.) सुस्ती व काहिली, (3.) माल जम्अ करने की हिर्स कि ऐसे लोग कारोबार वगैरा में मश्गूलिय्यत के सबब नमाज़ पढ़ने में कोताही करते हैं।, (4.)  लह्वो लअब (खेल कूद) और फुज़ल कामों में कसरत से मश्गुलिय्यत कि फुजूलिय्यात में पड़े आदमी के दिल से अपना कीमती वक़्त जाएअ होने का एहसास जाता रहता है और उस को हर वक़्त उन्ही की फ़िक्र रेहती है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 24 📚*
 

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      *❝  नमाज़ क़ज़ा करना  ❞*
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࿐  *पाबन्दे नमाज़ बनने के लिए :*  नेक परहेज़गार लोगों की सोहबत इख्तियार कीजिए और बुरी सोहबत तर्क कीजिए।

࿐   नमाज़ पढ़ने के फ़ज़ाइलो बरकात और तर्के नमाज के अजाबात पढ़िए / सुनिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि नमाज़ कज़ा करने के सबब अगर उन में से कोई अजाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा!

⚠️ येह बात जेहन में अच्छी तरह बिठा लीजिए कि जो रिज्क किस्मत में है वोह मिल कर रहेगा और तकदीर से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिल सकता लेहाज़ा माल जम्अ करने की हिर्स में नमाज़ से गलत बरतना सरासर खसारा (नुक्सान) है खुद को फ़ाइदे मन्द और जरूरी कामों में मसरूफ रखिए और गैर जरूरी कामों से पीछा छुड़ा लीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 24 📚*

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 *❝ ❺ .....माहे रमज़ान का रोज़ा छोड़ना ❞*
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࿐  *रोज़ा कज़ा करने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :*  (1.) बिला उर्जे शरई रमज़ानुल मुबारक का रोज़ा छोड़ देना गुनाहे कबीरा और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। 

࿐   (2.) बाज़ मज़बूरीया ऐसी है जिन के सबब रमज़ानुल मुबारक में रोज़ा न रखने की इजाजत है मगर येह याद रहे कि मजबूरी में रोज़ा मुआफ नहीं वोह मजबूरी खत्म हो जाने के उस की क़ज़ा रखना फ़र्ज है। अलबत्ता क़ज़ा का गुनाह नहीं होगा।

࿐   (3.) जिस ने रमज़ान का रोज़ा कस्दन (यानी जान बूझ कर) तोड़ डाला तो उस पर उस रोजे की कज़ा भी है और (अगर कफ्फारे की शराइत (शर्ते) पाई गई तो) 60 रोजे कफ्फारे के भी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 25 📚*

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  *❝ माहे रमज़ान का रोज़ा छोड़ना ❞*
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࿐   *आयते मुबारका -* *तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालों तुम पर रोजे फर्ज किए गए जैसे अगलों पर फ़र्ज़ हुवे थे कि कहीं तुम्हें परहेजगारी मिले।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* जिस ने किसी रुख्सत (इजाजत) और मरज़ के बगैर रमज़ानुल मुबारक का एक रोज़ा छोड़ा वोह सारी ज़िन्दगी के रोजे रखे तब भी उस की कमी पूरी नहीं कर सकता।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 26 📚*

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   *❝ माहे रमज़ान का रोज़ा छोड़ना ❞*
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࿐   *रोज़ा कज़ा होने के बाज अस्वाब :* 

࿐  *(1.) हर वक़्त खाते रहने की आदत :* ऐसे शख्स को नफ्सो शैतान भूक से डराते हैं और उस के लिए रोजा रखना दुश्वार हो जाता है। 

࿐  *(2.) पान गुटका, सिगरेट नोशी वगैरा की आदत :*  येह लोग भी इन चीजों से सब्र न कर पाने की बिना पर रोज़ा छोड़ देते हैं। 

࿐   (3.) माले दुन्या कमाने की हिर्स कि ऐसे लोग काम करने में दुश्वारी आने के अन्देशे से रोज़ा छोड़ देते हैं। 

࿐  (4.) बुरी सोहबत जिस की वजह से आदमी गफलत में पड़ा रेहता है और फराइजो वाजिबात अदा करने की उसे कुछ फ़िक्र नहीं होती।

࿐   (5.) बीमारी का बहाना कि बाज़ नादान शरई मस्अले का लेहाज़ किए बगैर किसी हल्के से मरज़ का बहाना बना कर रोज़ा छोड़ देते हैं। 

⚠️ (नोट : मरज़ में रोज़ा छोड़ने की रुख्सत (इजाजत) कब होगी इस के लिए फैजाने रमज़ान, सफ़हा 146 का मुतालआ कीजिए)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 26📚*

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   *❝ माहे रमज़ान का रोज़ा छोड़ना ❞*
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࿐   *पाबन्दे रोज़ा बनने के लिए :*  पेट का कुफ्ले मदीना लगाइए। पान गुटका, सिगरेट नोशी और हर किस्म की मुजिरे सेहत (हानिकारक-Harmful to health) चीज़ इस्तेमाल करने की आदत से पीछा छुड़ाइए।, नेक परहेज़गार, रोज़ादार लोगों की सोहबत इख्तियार कीजिए, खुद भी रोज़ादार बनने का जेह्न बनेगा। दिल से माल जम्अ करने की हिर्स का खातिमा कौजिए। रोज़ा रखने के फ़ाइलो बरकात और फ़र्ज़ रोज़ा न रखने के अज़ाबात का मुतालआ कीजिए, रोजों की पाबन्दी का जेह्न बनेगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 27 📚*

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      *❝ ❻ ..... ज़कात  न  देना ❞*
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࿐  *ज़कात न देने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :*

࿐   (1.)  जकात न देना गुनाहे कबीरा और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐  (2.)  ज़कात फर्ज होने के बाद उस की अदाएगी फौरी तौर पर लाज़िम हो जाती है, बिला उज्र ताखीर करने वाला गुनहगार होता है। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -  28 📚*

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              *❝ ज़कात न देना ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और वोह कि जोड़ कर रखते हैं सोना और चांदी और इसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें खुश खबरी सुनाओ दर्दनाक अज़ाब की जिस दिन वोह तपाया जाएगा जहन्नम की आग में फिर उस से दागेंगे उन की पेशानियां और करवटें और पीठे येह है वोह जो तुम ने अपने का जोड़ कर रखा था अब चखो मजा उस जोड़ने का।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -  29 📚*

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                *❝  ज़कात न देना ❞*
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࿐   *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ:* जिस को अल्लाह पाक ने माल दिया और वोह उस की ज़कात अदा न करे तो कियामत के दिन वोह माल गन्जे सांप की सूरत में कर दिया जाएगा जिस के सर पर दो चित्तियां (यानी दो निशान) होंगे वोह सांप उस के गले में तौकर दिया जाएगा फिर उस की बाछे पकड़ेगा और कहेगा मैं तेरा माल हूं।

࿐  *ज़कात अदा न करने के बाज अस्खाब :* (1.) बुख़्ल (यानी कन्जूसी) (2.) मालो दौलत की महब्बत (3.)  मोहताजी और माल कम होने का अन्देशा। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -  29 📚*

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                 *❝ ज़कात न देना ❞*
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࿐   *ज़कात अदा करने का जेहन बनाने के लिए :* जकात देने के फ़ज़ाइलो बरकात और न देने के अज़ाबात पढ़िए / सुनिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि जकात न देने के सबब अगर इन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा! 

࿐   कब्र की तंगी व वहशत और कियामत की हौलनाकियों पर गौर कीजिए, दिल से दुन्या और मालो दौलत की महब्बत निकलेगी और आखेरत बेहतर बनाने के लिए शरीअतो सुन्नत के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारने का मदनी जेन बनेगा। येह बात जेहन में अच्छी तरह बिठा लीजिए कि राहे खुदा में खर्च करने से माल कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है 

࿐   चुनान्चे नबिय्ये अकरम ﷺ का फ़रमाने बरकत निशान है : दर गुज़र करना बन्दे की इज्जत को बढ़ाता है पस मुआफ किया करो अल्लाह पाक तुम्हें इज़्ज़त अता फरमाएगा, आजिज़ी व इन्केसारी बन्दे के मर्तबे में इजाफा करती है पस तवाज़ोइख्तियार करो अल्लाह पाक तुम्हें रिफ्अत (बुलन्दी) अता फ़रमाएगा और सदक़ा माल को बढ़ाता है पस सदक़ा करो अल्लाह पाक तुम पर रेहम फ़रमाएगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -  30 📚*

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        *❝  ❼ .....हज  तर्क  करना  ❞*
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࿐  *"हज न करने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*

࿐   (1) जो (मुसलमान, आकिलो बालिग, आज़ाद) हज पर कादिर हो (यानी तन्दुरुस्त हो और सफ़र के लिए ज़रूरी खर्च भी रखता हो) और (फिर भी) हज न करे (तो) वोह सख्त मुजरिम व गुनाहगार है। 

࿐   (2)  जब हज के लिए जाने पर कादिर हो हज फ़ौरन फ़र्ज़ हो गया यानी उसी साल में और अब ताखीर गुनाह है और चन्द साल तक न किया तो फ़ासिक है मगर जब करेगा अदा ही है कज़ा नहीं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 31 📚*

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        *❝  हज  तर्क  करना  ❞*
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࿐  *"हज न करने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*

࿐  (3) जब एक मरतबा हज फ़र्ज हो जाता है तो अगर्चे माल फ़ना हो जाए और येह फकीर हो जाए जब भी हज फ़र्ज़ ही रहेगा, इस सूरत में फर्ज है कि कर्ज ले कर हज करे और निय्यत येह रखे कि मैं येह कर्ज अदा करूंगा, तो अल्लाह पाक कर्ज की अदाएगी के ज़राएअ पैदा फ़रमा देगा।

࿐  (4) अगर किसी पर हज फ़र्ज़ हो और उस ने अदा न किया यहां तक कि अब उस के अदा करने पर कादिर न रेह गया मसलन अपाहिज या मफ्लूज हो गया या औरत थी अब उस का मेहरम नहीं रह गया तो उस पर वोह हज्जे फ़र्ज़ बाकी है खुद न कर सके तो हज्जे बदल कराए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 31 📚*

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        *❝  हज  तर्क  करना  ❞*
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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और अल्लाह के लिए लोगों पर उस घर का हज करना है जो उस तक चल सके और जो मुन्किर हो तो अल्लाह सारे जहान से बे परवाह है। 

࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :*  जिसे कोई जाहिरी हाजत, सख्त मरज या जालिम बादशाह न रोके फिर भी वोह हज न करे तो चाहे यहूदी हो कर मरे या नसरानी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 32 📚*

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        *❝  हज  तर्क  करना  ❞*
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࿐   *हज से मेहरूमी के बाज़ अस्बाब :* (1) बुख्ल कि हज करने में कसीर माल खर्च करना पड़ता है और बाज़ लोग महज़ इसी वज्ह से हज फर्ज होने के बा वुजूद अदा करने से मेहरूम रेहते हैं। 

࿐    (2) तुले अमल (यानी लम्बी उम्मीद) कि अभी बहुत उम्र बाकी है पेहले येह येह काम हो जाएं इस के बाद हज कर लेंगे। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 32 📚*

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       *❝  हज  तर्क  करना  ❞*
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࿐  *हज करने का जेहन पाने के लिए :*  कब्र की तंगी व वहशत और कियामत की हौलनाकियों पर गौर कीजिए, दिल से दुन्या की महब्बत निकलेगी, बुख्ल का ख़ातिमा होगा और राहे खुदा में माल खर्च करने का जेह्न बनेगा।

࿐  मौत को कसरत से याद कीजिए इस से लम्बी उम्मीदें खत्म होंगी, दिल गुनाहों से बेज़ार होगा और नेकियों का जखीरा इकठ्ठा करने की मदनी सोच बनेगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 32 📚*

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     *❝  ❽ ......खुदकुशी Suicides ❞*
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࿐  *खुदकुशी का माना :* खुदकुशी का माना है खुद को हलाक करना। 

࿐  *"खुदकुशी” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) खुदकुशी गुनाहे कबीरा और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। 

࿐   (2) जिस ने खुदकुशी की हालांकि येह बहुत बड़ा गुनाह है मगर उस के जनाज़े की नमाज़ पढ़ी जाएगी। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 33 📚*

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       *❝  खुदकुशी  Suicides ❞*
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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और अपनी जानें कत्ल न करो बेशक अल्लाह तुम पर मेहरबान है और जो जुल्मो ज्यादती से ऐसा करेगा तो अन करीब हम उसे आग में दाखिल करेंगे और येह अल्लाह को आसान है। 

࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :* जिस ने खुद को जिस चीज़ से हलाक किया, उसे जहन्नम की आग में उसी चीज़ के साथ अज़ाब दिया जाएगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 33 📚* 

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      *❝  खुदकुशी  Suicides ❞*
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࿐   *खुदकुशी के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :*

࿐  (1) रन्ज़ों मुसीबत। 

࿐  (2) तंग दस्ती, बेरोज़गारी।

࿐  (3) घरेलू झगड़े।

࿐  (4) इश्के मजाज़ी।

࿐  (5) मायूसी। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 34 📚*

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       *❝  खुदकुशी  Suicides ❞*
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࿐  *खुदकुशी के इलाज :* मुसीबत पर सब्र करना सीखिए बेजा सोचते रहने की आदत तर्क कर दीजिए।, खुदकुशी के अस्वाब का खातिमा कीजिए।, सादगी और कनाअत इख्तियार कीजिए, कम आमदनी में गुजारा करना आसान होगा।

࿐ शरीअतो सुन्नत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुजारिए, घरेलू झगड़ों का खातिमा हो कर घर अम्न का गेहवारा बनेगा। जेह्नी दबाव और आसावी खिचाव कम करने के लिए जेहनी वरज़िश के इलावा रोजाना पोन घन्टा (45 मिनट) पैदल चलने का मामूल बना लीजिए। इब्तिदाई 15 मिनट चाल दरमियाना हो, दरमियानी 15 मिनट क़दरे तेज़ तेज़ क़दम और आखरी 15 मिनट उसी तरह फिर दरमियाना। दिमाग को ताजगी मिलेगी और जब जेह्न तरो ताज़ा रहेगा तो खुदकुशी का ख़याल कभी भी करीब न आएगा।

࿐  *मदनी मश्वरा :* खुदकुशी के बारे में तफ्सीली मालूमात और इस की तबाहकारियां जानने के लिए "खुदकुशी का इलाज" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 34 📚*

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   *❝ ❾ .... इसराफ (Wasting) ❞*
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࿐  *इसराफ की तारीफ :* गैरे हक में सर्फ (यानी खर्च) करना इसराफ (फुजूल) है, इसे तब्जीर भी केहते हैं।

࿐   *इसराफ की मिसालें :* बिला ज़रूरत लाइट्स, पंखे, AC और दूसरी बिजली पर चलने वाली चीज़ों को चलता छोड़ देना, वुजू के दौरान नल को हाजत से ज़्यादा और बिला ज़रूरत खुला छोड़ देना, शादी के मौके पर नाच गाना वगैरा गुनाहों भरी तकरीबात (Functions) पर माल खर्च करना वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 36 📚*

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          *❝  इसराफ (Wasting) ❞*
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࿐  *इसराफ़ के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*

࿐  (1.)  इसराफ शर्अ में मजमूम (बुरा) ही हो कर आया है। 

࿐  (2.) दो सूरतों में इसराफ नाजाइज़ व गुनाह है एक (येह) कि किसी गुनाह के काम में खर्च व इस्तेमाल करें, दूसरे बेकार महज़ माल जाएअ करें।

࿐  (3.) वाजेह रहे कि भलाई के कामों में खर्च करना मसलन ईदे मीलादुन्नबी के मौके पर घरों, गलियों और महल्लों को सजाना, चरागा करना इसराफ़ नहीं। उलमा फ़रमाते हैं इसराफ़ में कोई भलाई नहीं और भलाई के कामों में कोई इसराफ़ नहीं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 36 📚*

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          *❝  इसराफ (Wasting) ❞*
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࿐  आयते मुबारका > *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और बेजा न खर्चो बेशक बेजा खर्चने वाले उसे (यानी अल्लाह को) पसन्द नहीं। 

࿐   *फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ :* कियामत के दिन इन्सान के कदम न हटेंगे हत्ताकि (यहां तक कि) उस से पांच चीजों के बारे में सवाल किया जाएगा :

࿐   (1)  उस की उम्र के बारे में कि किन कामों में बसर की?

࿐   (2)  उस की जवानी के मुतअल्लिक कि किस तरह गुज़ारी?

࿐  (3-4)  उस के माल के हवाले से कि कहां से कमाया और कहां खर्च किया और?

࿐   (5)  अपने इल्म पर कितना अमल किया?

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 37 📚*

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          *❝  इसराफ (Wasting) ❞*
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࿐   *इसराफ के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्वाब :*

࿐  (1)  गुरूर व तकब्बुर (ऐसा शख्स दूसरों पर अपनी बरतरी जताने के लिए बेजा दौलत खर्च करता है)।

࿐  (2) इल्मे दीन से दूरी (मुख्तलिफ़ कामों में इसराफ के मुख्तलिफ पेहलू होते हैं लेहाज़ा जब आदमी किसी काम का इरादा करता है तो उस काम के मुतअल्लिक शरई अहकाम का इल्म न होने की सूरत में उस का इसराफ और इस के इलावा दूसरे गुनाहों में पड़ने का कवी एहतिमाल होता है)। 

࿐  (3)  अपनी "वाह-वाह" की ख्वाहिश (दूसरों से दाद वुसूल करने के लिए पैसे का बेजा इस्तेमाल हमारे मुआशरे में आम है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 36 📚*

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         *❝  इसराफ (Wasting) ❞*
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࿐   (4) गफलत व ला परवाही (कई बार आदमी महज़ अपनी गलत और ला परवाही के सबब इसराफ में मुब्तला हो जाता है जैसे वुज़ू करते हुवे नल खुला छोड़ देना, घर और ऑफ़िस वगैरा में बिजली पर चलने वाली अश्या को महज़ सुस्ती की वह से चलता छोड़ देना, खुशी गमी के मौकेअ पर खाने पीने वाली चीजें सुस्ती की वज्ह से जाएअ कर देना)। 

࿐   (5) शोहरत की ख्वाहिश (बे हयाई पर मुश्तमिल फंक्शन और इस तरह की दीगर खुराफात में खर्च की जाने वाली रकम का अस्ल सबब शोहरत की तलब ही होता है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 38 📚*

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         *❝  इसराफ (Wasting) ❞*
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࿐   *इसराफ से बचने के लिए :* इसराफ के अन्जाम पर गौर कीजिए कि नेमत की बे-कदरी करने की वह से अगर वोह नेमत हम से छीन ली गई तो कैसी मुश्किल पेश आएगी। इल्मे दीन हासिल कीजिए ताकि जेहालत के सबब होने वाले इसराफ़ से मेहफूज़ रहें। आजिज़ी इख्तियार कीजिए। मौत को कसरत से याद कीजिए, दिल से दुन्या की महब्बत दूर होगी और गुनाहों से बचने और नेकियां करने का जेह्न बनेगा।

࿐  *मदनी मश्वरा :*  इसराफ़ को बाज़ सूरतों के मुतअल्लिक मालूमात हासिल करने के लिए रिसाला "बिजली इस्तेमाल करने के मदनी फूल" और "वुजू का तरीका" सफ़हा 37 ता 48 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 38 📚*

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     *❝  ❶⓿ ....हसद (जलन) ❞*
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࿐  *हसद की तारीफ़ :* किसी को दीनी या दुन्यावी नेमत के जवाल (यानी छिन जाने) की तमन्ना करना या येह ख्वाहिश करना कि फुलां शख्स को येह नेमत न मिले, हसद (जलन) है। हसद करने वाले को हासिद और जिस से हसद किया जाए उसे महसूद केहते हैं।

࿐  *हसद की मिसालें :* किसी को माली तौर पर खुशहाल देख कर येह तमन्ना करना कि उस से येह नेमत छिन कर मुझे मिल जाए। खुश इल्हान (खूब सूरत आवाज वाले) नात ख्वान के बारे में येह ख्वाहिश करना कि उस की आवाज़ ख़राब हो जाए। एक शख्स दीनी या दुन्यवी एतिबार से किसी मन्सब पर फाइज है उस के बारे में तमन्ना करना कि येह मक़ामो मर्तबा उस से छिन जाए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 39 📚*

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          *❝   हसद (जलन) ❞*
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࿐  *हसद के मुतअल्लिक मुलालफ़ अहकाम :* (1) हसद हराम है।, (2) अगर गैर इख्तियारी तौर पर दिल में किसी के बारे में हसद आया और येह उस को बुरा जानता है तो उस पर गुनाह नहीं (जब तक कि आज़ा से उस का असर जाहिर न हो)। 

࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और उस की आरजु न करो जिस से अल्लाह ने तुम में एक को दूसरे पर बड़ाई दी। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 40 📚*

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          *❝   हसद (जलन) ❞*
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࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :* हसद (जलन) से बचो ! बेशक हसद नेकियों को ऐसे खा जाता है जैसे आग लकड़ी को खाती है।) 

࿐  *हसद के गुनाह में मुलला होने के बाज अस्बाब) :*(1) बुग्जो कीना, (2) खुद पर दूसरे की बरतरी बरदाश्त न करना, (3) तकब्बुर, (4) एहसासे कमतरी, (5) हुब्बे जाह।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 40 📚*

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          *❝   हसद (जलन) ❞*
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࿐   *हसद से बचने के लिए :* ज़्यादा तलबी की हिर्स (लालच) ख़त्म कीजिए, और जो मिला जितना मिला उस पर अल्लाह पाक का शुक्र अदा करते हुवे कनाअत इख्तियार कीजिए।, दूसरों की नेमतों के बारे में ज्यादा सोचना छोड़ दीजिए क्यूंकि अपने से ज़्यादा नेमतों वाले के बारे में सोचते रहने से अक्सर एहसासे कमतरी पैदा होता है जिस से हसद जनम लेता है।, हसद के नताइज पर गौर कीजिए कि हसद करने वाला आदमी सुकून में नहीं रेहता, दूसरों से नेमत छिन जाने की ख्वाहिश उसे हमेशा बे सुकून रखती है और येह खुद को जहन्नम के दर्दनाक अज़ाब का हकदार बनाता है।

࿐  खुद आगे बढ़ कर सलाम और मुसाफ़हा करने की आदत अपनाइए इस की बरकत से दिल से बुराजो कीना दूर होगा और महब्बत बढ़ेगी और हसद का मरज़ भी खत्म होगा, मौत को कसरत से याद कीजिए, हज़रते सय्यदना अबू दरदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि जो मौत को कसरत के साथ याद करे उस के हसद और खुशी में कमी आ जाएगी।

࿐  *मदनी मश्वरा :*  हसद के मुतअल्लिक मजीद मालूमात जानने के लिए मतबूआ किताब "हसद" का मुतालआ (Reading) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 40 📚*

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           *❝  ❶❶ ..... शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   *शराब किसे कहते हैं? :* जो माएअ (Liquid) हो कर नशा लाए वोह शराब (Alcohol) है ख्वाह वोह अनाज (ग़ल्ले) से बनाई गई हो या फलों से या किसी और शै (चीज़) से।

࿐   *शराब के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*  (1) शराब किसी किस्म की हो मुतलकन हराम है। (2) शराब का हर क़तरा हराम भी है और पेशाब (Urine) की तरह नजिस व नापाक भी। (3) शराब का बनाना, बनवाना, छूना, उठाना, रखना, रखवाना, बेचना, बिकवाना, मोल लेना (Purchase), दिलवाना सब हराम, हराम, हराम है और जिस नौकरी (Job) में येह काम या शराब की निगेहदाश्त, उस के दामों (Charges) का हिसाब किताब करना हो, सब शरअन नाजाइज़ हैं। (4) शराब पीना सख्त गुनाहे कबीरा और पीने वाला फ़ासिक, फाजिर, नापाक, बेबाक, मर्दूद व मलऊन है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 42 📚*

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           *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   आयते मुबारक - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालो शराब और जुवा और बुत और पांसे नापाक ही हैं शैतानी काम तो इन से बचते रेहना कितुम फलाह पाओ।

࿐ *फरमाने मुस्तफा ﷺ :*  जिस शख्स ने शराब पी अल्लाह पाक 40 रोज़ तक उस की नमाज़ कबूल नहीं फ़रमाएगा, जो इस हालत में मरा कि उस के पेट में थोड़ी सी भी शराब है तो इस के सबब उस पर जन्नत हराम कर दी जाएगी और जो शराब पीने से 40 दिन के अन्दर मर गया वोह जाहिलिय्यत की मौत मरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 43 📚*

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            *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   *शराब पीने के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्वाब :* (1) शराब पीने वाले लोगों के पास उठना बैठना (2) जेहालत (जैसा कि बाज़ लोग येह समझते हैं कि शराब पीने से गम दूर हो जाते हैं) (3) नाच गाने की तकरीबात (Functions) में शिर्कत करना, खास तौर पर Dance club's में जाना (ऐसी जगहों पर शराब नोशी आम है और दूसरों की देखा देखी खुद भी उस गुनाह में मुब्तला होने के एहतिमाल होता है)। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 43 📚*

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            *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   *शराब पीने से बचने के लिए :*  बुरे लोगों के पास उठने बैठने से बचते रहिए और सुन्नतों के पाबन्द ऐसे नेक परहेज़गार इस्लामी भाइयों की सोहबत इख्तियार कीजिए जिन के पास बैठने से फिक्रे आखेरत पैदा हो, गुनाहों से नफरत हो और नेकियां करने का जेहन बने। शराब पीने के अज़ाब पर गौर कीजिए कि बरोजे कियामत शराबी को जहन्नम का खोलता हुवा पानी पिलाया जाएगा वगैरा। शराब पीने के तिब्बी नुक्सानात पेशे नज़र रखिए मसलन शराब की वज्ह से दिल, जिगर, गुर्दो और हड्डियों वगैरा के अमराज़ पैदा होते हैं।

࿐  *मदनी मश्वरा :*  शराब के मुतअल्लिक मजीद अहकाम और इस की तबाहकारियां जानने के लिए मक्तबतुल मदीना की किताब "बहारे शरीअत" हिस्सा 1 7, सपहा 670 ता 675 और रिसाला "बुराइयों की मां" का मुतालआ (Reading) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 44 📚*

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             *❝ ❶❷ ....सुद usury   ❞*
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࿐   *सूद-ब्याज-व्याज (usury) की तारीफ :*  अक्दे मुआवज़ा (यानी लेन देन के किसी मुआमले) में जब दोनों तरफ माल हो और एक तरफ ज्यादती हो कि उस के मुकाबिल (यानी बदले) में दूसरी तरफ कुछ न हो येह सूद है। इसी तरह कर्ज देने वाले को कर्ज पर जो नफ्अ, जो फाइदा हासिल हो वोह सब भी सूद है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 45 📚*

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            *❝  सुद usury   ❞*
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࿐   *सूद (ब्याज) की मिसाल :* जो चीज़ माप या तोल से बिकती हो जब उस को अपनी जिन्स से बदला जाए मसलन गेहूं (गन्दुम) के बदले में गेहूं (गन्दुम) जव के बदले में जव लिए और एक तरफ ज्यादा हो हराम है और अगर वोह चीज़ माप या तोल की न हो या एक जिन्स को दूसरी जिन्स से बदला हो तो सूद नहीं। उम्दा और ख़राब का यहां कोई फर्क नहीं यानी तबादलए जिन्स में एक तरफ़ कम है मगर येह अच्छी है दूसरी तरफ ज्यादा है वोह खराब है जब भी सूद और हराम है, लाज़िम है कि दोनों माप या तोल में बराबर हों। जिस चीज़ पर सूद की हुर्मत का दारोमदार है वोह कद्र व जिन्स है। क़द्र से मुराद वजन या माप है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 45 📚*

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             *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐  *सूद के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :* (1) सूद हरामे कतई है, इस की हुर्मत का मुन्किर (यानी हराम होने का इन्कार करने वाला) काफ़िर है। (2) जिस तरह सूद लेना हराम है सूद देना भी हराम है।

࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* वोह जो सूद खाते हैं  कियामत के दिन न खड़े होंगे मगर जैसे खड़ा होता है वोह जिसे आसेब ने छू कर मख्बूत (पागल) बना दिया हो।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 46 📚*

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           *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :*  रात मैं ने देखा कि मेरे पास दो शख्स आए और मुझे ज़मीने मुक़द्दस (बैतुल मुकद्दस) में ले गए फिर हम चले यहां तक कि खून के दरिया पर पहुंचे, यहां एक शख्स कनारे पर खड़ा है जिस के सामने पथ्थर पड़े हुवे हैं और एक शख्स बीच दरिया में है, येह कनारे की तरफ बढ़ा और निकलना चाहता था कि कनारे वाले शख्स ने एक पथ्थर ऐसे जोर से उस के मुंह पर मारा कि जहां था वहीं पहुंचा दिया फिर जितनी बार वोह निकलना चाहता है कनारे वाला मुंह पर पथ्थर मार कर वहीं लोटा देता है। मैं ने पूछा : येह कौन शख्स है ? कहा, येह शख्स जो नेहर में है, सूद ख्वार (यानी सूद खाने वाला) है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 46 📚*

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            *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   *सूदी लेन देन के बाज अस्वाब :* (1) माल की हिर्स (2) फुजूल खर्ची खास तौर पर शादी वगैरा तकरीबात (Tunctions) में फुल रस्मों की पाबन्दी कि ऐसे अफराद कम खर्च पर कनाअत न करने की वजह से सूद पर कर्ज उठा लेते हैं। (3) इल्मे दीन की कमी कि बाजू अवकात सूद से बचने का जेह्न भी होता है मगर मालूमात न होने की वज्ह से आदमी इस के लेन देन में मुब्तला हो जाता है। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 47 📚*

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             *❝   शराब (Alcohol) ❞*
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࿐   *सूदी लेन देन से बचने के  लिए :* कनाअत इख्तियार कीजिए, लम्बी उम्मीदों से कनारा कशी कीजिए और मौत को कसरत से याद कीजिए इंशाअल्लाह दिल से दुन्या की महब्बत निकलेगी और आखेरत की तैयारी करने का जेह्न बनेगा।, सूद के अजाबात और उस के दुन्यवी नुक्सानात को पढ़िए, सुनिए और गौर कीजिए कि येह किस कदर तबाही ओ बरबादी का सबब बनता है।

࿐   *मदनी मश्वरा :* सूद के बारे में तपसीली मालूमात जानने के लिए किताब "सूद और इस का इलाज" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 47 📚*

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      *❝  ❶❸ .....रिश्वत Bribery ❞*
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࿐   *रिश्वत (लांच) की तारीफ :* जो पराया हक दबाने के लिए दिया जाए (वोह) रिश्वत है यूंही जो अपना काम बनाने के लिए हाकिम को (या हाकिम के इलावा किसी और को भी) दिया जाए (वोह) रिश्वत है लेकिन अपने ऊपर से दफ्ए जुल्म (यानी जुल्म दूर करने) के लिए जो कुछ दिया जाए (वोह) देने वाले के हक में रिश्वत नहीं, येह दे सकता है (लेकिन) लेने वाले के हक में वोह भी रिश्वत है और उसे लेना हराम (है)!

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 48📚*

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       *❝  रिश्वत Bribery ❞*
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࿐   *रिश्वत (लांच) के लेन देन की मिसालें :*  जैद ने किसी की जाएदाद पर नाजाइज़ कब्जा करने के लिए हाकिम को एक लाख रूपे दिए तो येह एक लाख रुपै रिश्वत (लांच) हैं। इसी तरह बकर ने मन्सब पाने के लिए अफ्सर को 50 हज़ार रुपै दिए तो येह 50 हजार रुपै भी रिश्वत (लांच) हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 48 📚*

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     *❝  रिश्वत Bribery ❞*
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࿐   *"रिश्वत" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*

࿐   (1) रिश्वत का लेन देन कतई हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है!

࿐  (2) रिश्वत लेना देना और दोनों के दरमियान दलाली (Dealing) करना हराम व गुनाह है।

࿐  (3) जिस ने कोई माल रिश्वत से हासिल किया हो तो उस पर फ़र्ज़ है कि जिस जिस से वोह माल लिया उन्हें वापस कर दे, अगर वोह लोग जिन्दा न रहे हों तो उन के वारिसों को वोह माल दे दे, अगर देने वालों का या उन के वारिसों का पता न चले तो वोह माल फकीरों पर सदका कर दे, खरीदो फरोख्त वगैरा में उस माल को लगाना हराम है। इस के इलावा और कोई तरीका माले रिश्वत के वबाल से सुबुक दोश होने (यानी नजात पाने) का नहीं है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 49 📚*

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      *❝  रिश्वत Bribery ❞*
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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और आपस में एक दूसरे का माल नाहक न खाओ और न हाकिमों के पास उन का मुकद्दमा इस लिए पहुंचाओ कि लोगों का कुछ माल नाजाइज़ तौर पर खा लो जान बूझ कर।

࿐   इस आयत में बातिल तौर पर किसी का माल खाना हराम फरमाया गया ख्वाह लूट कर हो या छीन कर, चोरी से या जुवे से या हराम तमाशों या हराम कामों या हराम चीजों के बदले या रिश्वत या झूटी गवाही से, येह सब ममनूअ व हराम है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 49 📚*

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       *❝  रिश्वत Bribery ❞*
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࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* यानी रिश्वत लेने वाला और देने वाला दोनों जहन्नमी हैं।

࿐   *रिश्वत के लेन देन में मुब्तला होने के बाज अस्वाब :*

࿐   (1) माल की हिर्स, बहुत सारे अफ़राद मन्सब, ओदे या नौकरी हासिल करने की जुस्तजू में रिश्वत देते हैं।

࿐   (2) जल्द बाजी, कि काम जल्द करवाने के लिए भी रिश्वत का लेन देन पाया जाता है। 

࿐   (3)  नाजाइज़ तौर पर काम निकलवाना। 

࿐   (4) जुल्म, कि किसी के साथ ना इन्साफ़ी करने के लिए भी रिश्वत दी और ली जाती है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 50 📚*

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      *❝  रिश्वत Bribery ❞*
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࿐   *रिश्वत के लेन देन से मेहफूज रहने के लिए :* मौत को कसरत से याद कीजिए ताकि दिल से माल की हिर्स निकले, गुनाहों से बचने का जेह्न बने और नेकियां करने को रगबत मिले, अपनी तबीअत में इतमीनान और सुकून पैदा कीजिए और जल्द बाजी से बचिए। रिश्वत की तबाहकारियों पर गौर कीजिए कि येह किस कदर दुन्यवी व उखरवी नुक्सानात का सबब है, ان شاء الله इस से बचने का जेहन बनेगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 50 📚*

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               *❝  ❶❹ .....जादू  ❞*
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࿐   *जादू की तारीफ़ :-*  सिरातुल जिनान में है उलमाए किराम ने जादू की कई तारीफें बयान की हैं, उन में से एक येह है कि किसी शरीर (शरारती) और बदकार शख्स का मख्सूस अमल के जरीए आम आदत के खिलाफ कोई काम करना जादू केहलाता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 51 📚*

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                   *❝  जादू  ❞*
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࿐  *जादू के मुतअल्लिक मुख़्ललिफ अहकाम :*
 
࿐  (1)  जादू और इस की तासीर (यानी इस का असर करना) हक है हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी फरमाते हैं जादू में रब तआला ने तासीर (यानी असर करने की कुव्वत-ताकत) रखी है जिस का सुबूत कुरआने मजीद से है।

࿐  (2)  "जादू" सीखना, सिखाना और करना गुनाहे कबीरा (बड़ा गुनाह) है। ऐसा जादू जिस में ईमान के खिलाफ कलेमात और अफ़आल हों उस को सीख कर उस पर अमल करने वाला काफ़िर हो जाएगा!

࿐   जादूगर (तौबा करे तो उस) की तौबा कबूल है। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 51 📚*

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                    *❝  जादू  ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* मूसा ने कहा येह जो तुम लाए येह जादू है अब अल्लाह इसे बातिल कर देगा, अल्लाह मुफ्सिदों का काम नहीं बनाता।

࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :*  सात तबाहकुन गुनाहों से बचते रहो। वोह (1) अल्लाह पाक के साथ शिर्क करना, (2) जादू करना, (3) उस जान को क़त्ल करना जिस का कत्ल अल्लाह पाक ने हराम करार दिया है सिवाए हक के, (4) सूद खोरी, (5) यतीम का माल खाना, (6) काफ़िरों से मुकाबले के दिन भाग जाना, (7) : पाक दामन और भोली भाली मुसलमान औरत पर बदकारी को तोहमत लगाना है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 52 📚*

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                     *❝  जादू  ❞*
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࿐   *जादू के बाज अस्बाब :* (1) बुग्ज़ो कीना यानी दिल में किसी के खिलाफ बगैर किसी शरई वजह के नफरत और दुश्मनी रखना, बाज़ लोग महज़ इस सबब से मुखालिफ को नुक्सान पहुंचाने के लिए जादू का सहारा लेने लग जाते हैं। 

࿐   (2) घरेलू नाचाकियां : इस में भी एक फरीक दूसरे को ज़ेर करने (नीचे गिराने) के लिए बाज़ अवकात जादू का सहारा ले लेता है। (3) शेहवत परस्ती (4) लालच।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 52  📚*

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                    *❝  जादू  ❞*
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࿐   *जादू करते /  कराने के अमल से बचने के लिए :* जादू के वबाल और जादू करने या करवाने वाले के अन्जाम के बारे में पढ़िए। सुनिए और गौर कीजिए इस से बचने का जेहन बनेगा। अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए मुआफ करने की आदत अपनाइए। घर में मदनी माहौल बनाइए और शरीअतो सुन्नत के मुताबिक़ ज़िन्दगी बसर कीजिए, घरेलू नाचाकियों का खातिमा होगा और घर अम्न का गेहवारा बनेगा।

࿐   *मदनी मश्वरा :*  जादू के बारे में तफ्सीली मालूमात के लिए किताब "जहन्नम में ले जाने वाले आमाल" जिल्द 2, सफ़हा 364 ता 397 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 53 📚*

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              *❝  ❶❺  .....झूट Lie ❞*
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࿐   *झूट का माना :-* झूट के माना हैं सच का उलट"।

࿐   *झूट की चन्द मिसालें :-* कोई चीज़ खरीदते वक्त इस तरह केहना कि येह मुझे फुलां से इस से कम कीमत में मिल रही थी हालांकि वाकेअ (हकीक़त) में ऐसा नहीं है।, इसी तरह बाएअ-बेचने वाले (Seller) का ज्यादा रकम कमाने के लिए कीमते खरीद (Purchase price) ज्यादा बताना। जाली या नाकिस या जिन दवाओं से शिफ़ा का गुमाने गालिब नहीं है उन के बारे में इस तरह केहना “सौ फीसदी शर्तिया इलाज" येह झूटा मुबालगा है। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 55 📚*

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            *❝   झूट (Lie)  ❞*
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࿐   *"झूट" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) झूट बोलना गुनाह और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) झूट का मासिय्यत (गुनाह) होना ज़रूरिय्याते दीन में से है (लेहाजा जो इस के गुनाह होने का मुतलकन इन्कार करे दाइरए इस्लाम से खारिज हो कर काफ़िरो मुर्तद हो जाएगा)।

࿐  *नोट :* तीन सूरतों में झूट बोलना जाइज़ है यानी इस में गुनाह नहीं : एक जंग की सूरत में कि यहां अपने मुकाबिल को धोका देना जाइज़ है, दूसरी सूरत येह है कि दो मुसलमानों में इख्लेलाफ़ है और येह उन दोनों में सुल्ह (Compro) कराना चाहता है, तीसरी सूरत यह है कि बीबी (जीजा) को खुश करने के लिए कोई बात खिलाफे वाकेअ केह दे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 55 📚*

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             *❝   झूट (Lie)  ❞*
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࿐     आयते मुबारका - कुरआने मजीद में मुनाफिकीन के मुतअल्लिक फरमाया गया *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और उन के लिए दर्दनाक अज़ाब है बदला उन के झूट का।

࿐   सदरुल अफ़ाज़िल अल्लामा सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं इस आयत से साबित हुवा कि झूट हराम है इस पर अज़ाबे अलीम (यानी दर्दनाक अजाब) मुरत्तब होता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 55📚*

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         ❝  ❞
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              *❝   झूट (Lie)  ❞*
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࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* झूट से बचो ! क्यूंकि झूट गुनाह की तरफ ले जाता है और गुनाह जहन्नम का रास्ता दिखाता है और आदमी बराबर झूट बोलता रहता है और झूट बोलने की कोशिश करता है यहां तक कि अल्लाह पाक के नज़दीक कज्जाब (यानी बहुत बड़ा झूटा) लिख दिया जाता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 56 📚*

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             *❝   झूट (Lie)  ❞*
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࿐   *“झूट" में मुब्तला होने के बाज अस्वाब :* (1) माल की हिर्स कि खरीदो फरोख्त में रकम बचाने या ज्यादा माल कमाने के लिए झूट बोलना आम पाया जाता है। 

࿐   (2) मुबालगा आराई (बढ़ा चढ़ा कर बयान करने) की आदत : ऐसे अफराद हद से बढ़ कर झूटी मुबालगा आराई में मुब्तला हो जाते हैं। आज कल अश्या (चीज़ों) की मशहूरी (Advertisement) में इस तरह की झूटी मुबालगा आराई आम है।

࿐   (3) हुब्बे मद्ह यानी अपनी तारीफ़ की ख्वाहिश, ऐसे लोग अपनी वाह वाह के लिए झूटे वाकेआत बयान करते रहते हैं।

࿐   (4) फुजूल गोई की आदत। 

࿐   (5) आज कल मुरव्वतन झूट बोलना भी आम पाया जाता है मसलन किसी ने सवाल किया : "हमारे घर का खाना पसन्द आया ?" तो मुरव्वत (शर्मा शर्मी) में आ कर केह दिया : "जी, बहुत पसन्द आया !" हालांकि वाके (हकीक़त) में उस को खाना पसन्द नहीं आया था, येह भी झूट होगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 56📚*

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            *❝   झूट (Lie)  ❞*
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࿐  *झूट से बचने के लिए :* झूट की दुन्यवी और उखरवी तबाहकारियों पर गौर कीजिए मसलन झूटे से लोग नफरत करते हैं, उस पर से एतिमाद उठ जाता है, झूटे पर लानत की गई है और झूटा दोजख में कुत्ते की शक्ल में बदल दिया जाएगा, इस तरह गौरो फिक्र करते रहने से सच बोलने और झूट से बचने का जेहन बनेगा। ज़बान का कुफ्ले मदीना लगाते हुवे सिर्फ ज़रूरत की बात ही कीजिए और बेजा बोलते रेहने की आदत से छुटकारा हासिल कीजिए। मुबालगा करने की आदत भी खत्म कीजिए और बोलने से पेहले सोचने की आदत अपनाइए।

࿐  *मदनी मश्वरा :* झूट के मुतअल्लिक मजीद मालूमात के लिए "बहारे शरीअत" हिस्सा 3 सफ़हा 515 ता 519 और रिसाला "झूटा चोर" का मुतालआ (Reading) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 57 📚*  

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   *❝  ❶❻... यमीने गमूस (झूटी क़सम) ❞*
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࿐   *यमीने गमूस (झूटी क़सम) की तारीफ़ :-* किसी गुज़रे हुवे या मौजूदा मुआमले पर जान बूझ कर झूटी क़सम खाए तो उसे यमीने गमूस कहेंगे।

࿐   *यमीने गमूस (झूटी कसम) की मिसालें) :-* किसी ने कसम खाई अल्लाह पाक की क़सम ! जैद घर पर है" और वोह जानता है कि हकीक़त में जैद घर पर नहीं है तो येह कसमे गमूस (यानी झूटी कसम) केहलाएगी। इसी तरह अगर किसी ने कसम खाई अल्लाह पाक की क़सम ! जैद ने येह काम नहीं किया है और वोह जानता है कि हकीकत में जैद ने येह काम किया है तो येह भी झूटी कसम है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 58 📚*

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    *❝ यमीने गमूस (झूटी क़सम) ❞*
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࿐   *यमीने गमूस (झूटी कसम) के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) : झूटी कसम खाना हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐   (2)  जिस ने झूटी कसम खाई वोह सख्त गुनहगार हुवा, उस पर तौबा ओ इस्तिगफार फ़र्ज़ है मगर कफ्फारा लाजिम नहीं।

࿐   आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं इस (यानी झूटी कसम) का कोई कफ्फारा नहीं इस की सजा येह है कि जहन्नम के खोलते दरिया में गोते दिया जाएगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 59 📚*

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     *❝ यमीने गमूस (झूटी क़सम) ❞*
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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता तुम्हारी गलत फेहमी की कसमों पर हां उन कसमों पर गिरिफ्त फ़रमाता है जिन्हें तुम ने मजबूत किया।

࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* उस ज़ात की क़सम जिस के कब्जए कुदरत में मेरी जान है ! जो शख्स कसम खाए और उस में मच्छर के पर के बराबर झूट मिला दे तो वोह कसम ता यौमे कियामत (यानी कियामत के दिन तक) उस के दिल पर (सियाह) नुक्ता बन जाएगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 59 📚*

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    *❝ यमीने गमूस (झूटी क़सम) ❞*
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࿐   *झूटी कसम के बाज अस्वाब :-* (1)  गलती पर होने के बा वुजूद खुद को सच्चा साबित करने के लिए बहुत मरतबा झूटी कसम खा ली जाती है। (2) दुन्यवी नफ्ए का हुसूल (3) बात-बात पर कसमें खाने की आदत कि ऐसे शख्स का झूटी कसम में मुब्तला होने का कवी अन्देशा होता है। (4) इसी तरह झूट के अस्वाब मसलन मुबालगा आराई (बढ़ा चढ़ा कर बयान करने) की आदत और हुब्बे मद्ह यानी अपनी तारीफ़ की ख्वाहिश के बाइस भी कभी झूटी कसम खा ली जाती है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 59 📚*

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     *❝ यमीने गमूस (झूटी क़सम) ❞*
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࿐  *झूटी कसम खाने से बचने के लिए :-* झूटी क़सम के अज़ाबात पढ़िए। सुनिए, इस गुनाह से मेहफूज़ रेहने का जेह्न बनेगा।  झूटी कसम के दुन्यवी नुक्सानात पर गौर कीजिए कि झूटी कसमें घरों को वीरान कर देती हैं और इन की वज्ह से माल से बरकत खत्म हो जाती है वगैरा दिल से मालो दौलत की हिर्स खत्म कीजिए ताकि ज्यादा तलबी की ख्वाहिश में झूटी कसम खाने के गुनाह में न जा पड़ें।

࿐   मदनी मश्वरा : कसम के बारे में मजीद मालूमात के लिए “कसम के बारे में मदनी फूल" का मुतालआ (Readling) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 60 📚*

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 *❝ ❶❼.... मां-बाप की ना फरमानी ❞*
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࿐   आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं जो बिला वज्हे शरई मां-बाप को ईज़ा दे, उन की ना फ़रमानी करे शरीअत में उसे आक केहते हैं। 

࿐  *"मां-बाप की ना फरमानी” की मिसालें :* मां-बाप से कतए तअल्लुक कर लेना, उन के किसी काम का हुक्म देने पर ना गवारी और उक्ताहट का इज़हार करना, उन के साथ बद तमीज़ी से बात करना? उन्हें ओल्ड हाउस (Old house) में भेज देना, विला वज्हे शरई किसी बात में उन की मुखालफ़्त कर के उन्हें नाराज़ करना वगैरा। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 61 📚*

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       *❝  मां-बाप की ना फरमानी ❞*
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࿐  *"मां-बाप की ना फ़रमानी” के मुतअल्लिक मुख़्तलिफ़ अहकाम :*

࿐   (1) मां-बाप की ना फरमानी हराम है।

࿐   (2) मां-बाप ने वाजेह लफ़्ज़ों में हुक्म नहीं दिया लेकिन पता है कि किस बात में उन की रिज़ा है और किस में नाराजी तब भी उन की रिजामन्दी और नाराजी का ख़याल रखना ज़रूरी है, चुनान्चे आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं इन (यानी वालिदैन) की ना फ़रमानी और नाराज करना दोनों हराम हैं और येह नाराज़ और नाराज़ी करना उन के वाजेह हुक्म के साथ खास नहीं (यानी अगर वालिदैन ने हुक्म न भी दिया हो लेकिन मालूम हो कि फुलां काम करने से वोह नाराज़ होंगे तब भी उस काम से बचना ज़रूरी होगा।

࿐   (3) वालिदैन अगर किसी ना जाइज़ बात का हुक्म करें तो उस में उन की इताअत जाइज़ नहीं ।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 61 📚*

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         *❝  मां-बाप की ना फरमानी ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और हम ने आदमी को, उस के मां-बाप के बारे में ताकीद फ़रमाई उस की मां ने उसे पेट में रखा कमजोरी पर कमज़ोरी झेलती हुई और उस का दूध छूटना दो बरस में है येह कि हक मान मेरा और अपने मां-बाप का आखिर मुझी तक आना है।

࿐   *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :* जिस ने इस हाल में सुब्ह की, कि अपने मां-बाप का फ़रमां बरदार है, उस के लिए सुब्ह ही को जन्नत के दो दरवाजे खुल जाते हैं और मां-बाप में से एक ही हो तो एक दरवाजा खुलता है और जिस ने इस हाल में शाम की, कि मां बाप के बारे में अल्लाह पाक की ना फ़रमानी करता है उस के लिए जहन्नम के दो दरवाजे खुल जाते हैं और (मां बाप में से) एक हो तो एक दरवाजा खुलता है। एक शख्स ने अर्ज की अगर्चे मां-बाप उस पर जुल्म करें? फ़रमाया अगर्चे जुल्म करें, अगर्चे जुल्म करें, अगचें जुल्म करें।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 62 📚* 

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       *❝  मां-बाप की ना फरमानी ❞*
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࿐   *मां-बाप की ना फरमानी में पड़ने के बाज़ अस्वाब :* (1) मां-बाप के हुकूक से ला इल्मी (2) : मुख्तलिफ़ गुनाह बिल खुसूस शराब नोशी, जुवा, चोरी वगैरा (येह मुआशरे में वालिदैन के लिए सख्त ज़िल्लतो रुस्वाई का सबब बनते हैं)। 

࿐  (3)  वालिदैन के दरमियान कोई नाराजी हो तो उन में से किसी एक की तरफदारी (4) दोस्तों को वालिदैन पर तरजीह (Priority) देना।

࿐  (5)  वालिदैन के हक को हल्का जानना। (6) बुरी सोहबत। (7) अच्छी तरबियत न होना।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 63 📚*

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        *❝  मां-बाप की ना फरमानी ❞*
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࿐    *वालिदैन का फरमाबरदार बनने के लिए :* इल्मे दीन हासिल कीजिए ताकि वालिदैन के हुकूक का पता चले और उन की अहमिय्यत दिल में बैठे।, अच्छी सोहबत इख्तियार कीजिए और बुरे लोगों के साथ मैल जोल और उन के पास उठने बैठने से इज्तेनाब (यानी परहेज) कीजिए, जाती दोस्तियां तर्क कीजिए और वालिदैन को ज्यादा वक्त दीजिए। उन की हर बात पर लब्बैक केहते हुवे फौरन अमल कीजिए।, वालिदैन की ना फरमानी और उन को तकलीफ पहुंचाने के नताइज पर गौर कीजिए कि वालिदैन का ना फरमान दुन्या में भी सज़ा पाता है और जहन्नम के दर्दनाक अज़ाब का हक़दार भी बनता है। 

࿐   *मदनी मश्वरा :* मां-बाप की फ़रमां बरदारी का जेहन बनाने के लिए रिसाला "समुन्दरी गुम्बद" का मुतालआ मुफीद है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 64 📚*

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                  *❝ ❶❽..... ग़ीबत  ❞*
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࿐   *ग़ीबत की तारीफ :-*  किसी के बारे में उस की गैर मौजूदगी में ऐसी बात केहना कि अगर वोह सुन ले या उस को पहुंच जाए तो उसे ना गवार मालूम हो।

࿐   *ग़ीबत की चन्द मिसालें :-* किसी के मजलिस से उठ कर जाने के बाद इस तरह केहना यार ! वोह गया, जान छूटी, डेढ़ होशियार है, बात बात पर हा-हा कर के हंसता था वगैरा। इसी तरह मुस्तहबात व नवाफ़िल में सुस्ती करने वाले के बारे में इस तरह केहना उस ने जिन्दगी में कभी आशूरे का रोज़ा नहीं रखा, वोह अव्वाबीन क्या पढ़ेगा। उस को येह तो पूछो कि येह नवाफ़िल किस वक्त पढ़े जाते हैं वोह तबरुक केह कर नियाज़ तो खा लेता है मगर इस के लिए चन्दा कभी नहीं देता।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 65 📚*

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                   *❝  ग़ीबत  ❞*
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࿐  *"ग़ीबत" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*   (1) ग़ीबत गुनाहे कबीरा, कतई हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐  (2) ग़ीबत को हलाल जानने वाला काफ़िर है। 

࿐  (3) ग़ीबत करने वाला फ़ासिक व गुनहगार और अज़ाबे नार का हक़दार होता है। 

࿐  (4) बगैर शरई मजबूरी के ग़ीबत सुनने वाला भी ग़ीबत करने वाले ही की तरह गुनहगार होता है। 

࿐  (5) (बद मजहब की ग़ीबत शरई तौर पर गीवत नहीं बल्कि) बद मज़हब की बुराइयां बयान करने का खुद शरअन हुक्म है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 65 📚*

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                    *❝  ग़ीबत  ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और एक दूसरे की ग़ीबत न करो क्या तुम में कोई पसन्द रखेगा कि अपने मरे भाई का गोश्त खाए।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* मैं शबे मेराज ऐसी कौम के पास से गुज़रा जो अपने चेहरों और सीनों को तांबे के नाखुनों से नोच रहे थे, मैं ने पूछा : ऐ जिब्रईल ! येह कौन लोग हैं ? कहा : येह लोगों का गोश्त खाते (यानी गीबत करते) थे और उन की इज्जत खराब करते थे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 66 📚*

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                  *❝  ग़ीबत  ❞*
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࿐   *ग़ीबत के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :* (1) गुस्सा (2) बुग्ज़ो कीना (3) हसद (4) ज़्यादा बोलने की आदत (5) हंसी मजाक की लत (ऐसा शख्स दूसरों को हंसाने के लिए लोगों की नक्लें उतार कर भी बसा अवकात गीबत में मुब्तला हो जाता है) (6) घरेलू नाचाकियां (इन हालात में गीबत से बचना करीब ब ना मुमकिन है) (7) गिला शिक्वा करने की आदत (जहां किसी के बारे में दूसरे से शिक्वा शुरू किया कि शैतान ने बद गुमानियों, ऐब दरियों, ग़ीबतों, तोहमतों और चुगलियों का ढेर लगवा दिया!) (8) बेजा तन्कोदी जेह्न (तन्कीदे बेजा का मरीज़ किसी की बराहे रास्त (Direct) इस्लाह करने के बजाए उमूमन दूसरों के आगे ग़ीबतें करता फिरता है कि वोह यूं कर रहा है वगैरा)

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 66 📚* 

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                    *❝  ग़ीबत  ❞*
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࿐   *ग़ीबत से बचने के लिए :* दीनी मश्गलों और दुन्या के ज़रूरी कामों से फ़रागत के बाद खल्वत यानी तन्हाई इख्तियार कीजिए या सिर्फ ऐसे सन्जीदा और सुन्नतों के पाबन्द इस्लामी बहनों की सोहबत इख्तियार कीजिए जिन की बातें खौफे खुदा अज़्ज़वजल व इश्के मुस्तफा ﷺ में इजाफे का बाइस बनें। जाती दोस्तियों से कतअन इज्तेनाब (यानी बिलकुल परहेज़) कीजिए जबान का कुफ्ले मदीना लगाइए कि सब से ज्यादा गीबत जबान से की जाती है लेहाज़ा इस को काबू में रखना बहुत ज़रूरी है। गीबत के होलनाक अजाबात का मुतालआ कीजिए कि किसी भी मरज़ से बचने और उस का इलाज करने के लिए उस के मोहलिकात यानी तबाहकारियां जानना मुफीद होता है।, अपने ऐबों की तरफ़ तवज्जोह कीजिए और उन्हें दूर करने में लग जाइए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 67 📚*

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                  *❝  ग़ीबत  ❞*
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࿐  *ग़ीबत से बचने के लिए :* 

࿐  *वज़ीफ़ा :*  किसी मजलिस में बैठते और उठते वक़्त येह पढ़िए "بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْم وَصَلَّں اللّٰهُ عَلٰں مُحَمَّد" इस की बरकत से अल्लाह पाक एक फ़रिश्ता मुकर्रर फ़रमा देगा जो आप को दूसरों की और आप के उठने के बाद लोगों को आप की गीबत से बाज़ रखेगा।

࿐   *मदनी मश्वरा :* गीबत के अज़ाबात और इस के मुतअल्लिक तफ्सीली अहकाम जानने के लिए किताब "गीबत की तबाहकारियां" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 67 📚*

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                  *❝ ❶❾... चुगली  ❞*
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࿐   *चुगली की तारीफ :-* लोगों में फसाद करवाने के लिए उन की बातें एक दूसरे तक पहुंचाना चुगली है। 

࿐   *चुगली की चन्द मिसालें :-*
किसी से जा कर इस तरह केहना, फुलां आदमी ने तुम्हारे बारे में ऐसे ऐसे कहा है उस ने कहा कि तुम बड़े धोकेबाज़ हो लोगों से कर्ज ले कर वापस नहीं करते हो, जब तुम उस के पास से उठ कर आए तो उस ने तुम्हारे बारे में कहा : यार। वोह गया, जान छूटी, बड़ा होशियार बन रहा था वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 68 📚*

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                  *❝  चुगली  ❞*
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࿐  *"चुगली" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) चुगली सख्त हराम और गुनाहे कबीरा है। (2) जिस के पास किसी की चुगली की गई उस पर लाज़िम है कि चुगल खोर की तस्दीक न करे और (अगर कुदरत रखता है तो) उसे चुगली करने से रोकदे और जिस की चुगली की गई उस के बारे में बद गुमानी में न पड़े।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 68 📚*

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                   *❝  चुगली  ❞*
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࿐  *आयते मुबारका -  तर्जमए कन्जुल ईमान :* और हर ऐसे की बात न सुनना जो बड़ा कसमें खाने वाला ज़लील बहुत ताने देने वाला बहुत इधर की उधर लगाता फिरने वाला। 

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* ताना जनी, गीबत, चुगल खोरी और बे-गुनाह लोगों के ऐब तलाश करने वालों को अल्लाह पाक (कियामत के दिन) कुत्तों की शक्ल में उठाएगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 69 📚*

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                   *❝  चुगली  ❞*
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࿐  *चुगली के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्वाब :* (1) गुस्सा (2)  बुग्जो कीना (3) हसद (4) लगाई बुझाई (यानी इधर की बात उधर और उधर की बात इधर केहते फिरने) की लत (ऐसा शख्स कभी दो फरीकों में लड़ाई झगड़ा करवा कर अपने तौर पर तफरीह कर रहा होता है) (5) ज़्यादा बोलने की आदत (ऐसे शख्स का गीबत व चुगली और दूसरे कई तरह के गुनाहों से बचना बहुत दुश्वार होता है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 69 📚*

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                   *❝  चुगली  ❞*
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࿐   *चुगली से बचने के लिए :* ज़बान का कुफ्ले मदीना लगाइए कि चुगली और इस के इलावा बहुत सारे गुनाह ज्यादा तर जबान से ही होते हैं लेहाज़ा इसे काबू में रखना बहुत ज़रूरी है। कुरआनो हदीस में ज़िक्र किए गए चुगली के हौलनाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि चुगली के सबब अगर उन में कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा। सलाम और मुसाफ़हा करने की आदत अपनाइए ان شاء الله इस की बरकत से दिल से बुग़्ज़ो कीना दूर होगा और महब्बत बढ़ेगी। 

࿐  किसी के खिलाफ़ दिल में गुस्सा हो और उस की चुगली को दिल चाहे तो फ़ौरन अपने आप को यूं डराइए कि अगर मैं गुस्से में आ कर चुगली करूंगा तो गुनहगार और जहन्नम का हकदार करार पाऊंगा कि येह गुनाह के जरीए गुस्सा ठन्डा करना हुवा और फ़रमाने मुस्तफा ﷺ है : जहन्नम में एक दरवाज़ा है उस से वोही दाखिल होंगे जिन का गुस्सा किसी गुनाह के बाद ही ठन्डा होता है।

࿐   *मदनी मश्वरा :* चुगली के मुतअल्लिक मजीद मालूमात और इस के दीनी और दुन्यवी नुक्सानों को जानने के लिए किताब "इहयाउल उलूम" जिल्द 3, सफ़हा 468 ता 480 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 69 - 70 📚*

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       *❝ ❷⓿... बोहतान ❞*
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࿐  *बोहतान (तोहमत) की तारीफ :* किसी शख्स की मौजूदगी या गैर मौजूदगी में उस पर झूट बान्धना बोहतान (तोहमत-Blame) केहलाता है। 

࿐  *मिसाल और वजाहत :*  इस को आसान लफ्जों में यूं समझिए कि बुराई न होने के बा वुजूद अगर पीठ पीछे (गैर मौजूदगी) या रूबरू (सामने) वोह बुराई उस की तरफ मन्सूब कर दी तो येह बोहतान हुवा मसलन पीठ पीछे या मुंह पर किसी को चोर केह दिया हालांकि उस ने कोई चोरी नहीं की तो उस को चोर केहना बोहतान हुवा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 71 📚*

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         ❝  ❞
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               *❝ बोहतान ❞*
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࿐   *बोहतान (तोहमत) तराशी का हुक्म) :*  बोहतान तराशी हराम, गुनाहे कबीरा और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐   आयते मुबारका >  *तर्जमए कन्जुल ईमान :* झूट बोहतान वोही बान्धते हैं जो अलाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते और वोही झूटे हैं। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 71 📚*

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         ❝  ❞
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             *❝ बोहतान ❞*
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࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :* जो किसी मुसलमान की बुराई बयान करे जो उस में नहीं पाई जाती तो उस को अल्लाह पाक उस वक़्त तक रदगतुल ख़बाल में रखेगा जब तक कि वोह अपनी कही हुई बात से न निकल आए।

⚠️रदगतुल ख़बाल जहन्नम में एक जगह है जहां जहन्नमियों का खून और पीप जम्अ होगा। 

࿐  *बोहतान तराशी के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :* (1) लड़ाई झगड़ा (2)  गुस्सा (3) बुग्ज़ो कीना (4) हसद (5) ज़्यादा बोलने की आदत (6) बदगुमानी। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 72 📚* 

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         ❝  ❞
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               *❝ बोहतान ❞*
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࿐   *बोहतान तराशी से बचने के लिए :* ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगाइए कि बोहतान और इस के इलावा बहुत सारे गुनाह ज़्यादा तर ज़बान से ही होते हैं लेहाजा इसे काबू में रखना बहुत ज़रूरी है। कुरआनो हदीस में ज़िक्र किए गए बोहतान के होलनाक अज़ाबात का मुताला कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि बोहतान के सबब अगर उन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा।, सलाम और मुसाफ्हा करने की आदत अपनाइए ان شاء الله इस की बरकत से दिल से बुग्जो कीना दूर होगा और महब्बत बढ़ेगी और एक दूसरे पर इल्ज़ाम तराशी का मरज़ भी ख़त्म होगा। 

࿐  किसी के खिलाफ दिल में गुस्सा हो और उस पर बोहतान बान्धने को दिल चाहे तो फौरन अपने आप को यूं डराइए कि अगर मैं गुस्से में आ कर बोहतान बांधूंगा तो गुनहगार और जहन्नम का हक़दार करार पाऊंगा कि येह गुनाह के जरीए गुस्सा ठन्डा करना हुवा और फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ है जहन्नम में एक दरवाज़ा है उस से वोही दाखिल होंगे जिन का गुस्सा किसी गुनाह के बाद ही ठन्डा होता है। मुसलमानों के बारे में हुस्ने जन रखिए, बद गुमानी और शक (Doubt) करने से परहेज़ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 72-73 📚*

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    *❝ ❷❶...तजस्सुस (ऐबजूई) ❞*
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࿐  *"तजस्सुस" की तारीफ :* लोगों की खुफ़िया (छुपी हुई) बातें और ऐब जानने की कोशिश करना तजस्सुस (ऐब ढूंडना) कहलाता है।

࿐   *"तजस्सुस” की चन्द मिसालें :* किसी से येह पूछना : रात देर तक जागते रहते हो, फ़ज़्र भी पढ़ते हो या नहीं ? किसी ने नौकर रखा तो उस से पूछना आप का नया नौकर बराबर काम करता है या नहीं ? येह भी बिला इजाजते शरई पूछना ऐब दूंडना है और इस सवाल के जवाब में पूरा खतरा है कि जिस से पूछा गया वोह नौकर के बारे में काम चोर है, हराम खोर है वगैरा केह कर गुनहगार हो जाए। इसी तरह बिला इजाजते शरई किसी का कोई ऐब मालूम करने के लिए उस का पीछा करना, उस के घर में झांकना वगैरा भी तजस्सुस में दाखिल है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 74 📚*

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       *❝ तजस्सुस (ऐबजूई) ❞*
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࿐   *"तजस्सुस" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) मुसलमान की ऐबजूई (यानी उस के ऐब तलाश करना) हराम है।) (2)  बे दीन, मुफ्सिदीन (फ़साद करने वालों) के हालात छुप कर देखना सुनना ताकि उन के फ़साद की रोक थाम हो सके, जाइज़ है। (3) नौकर रखने, शिराकत दारी (यानी पार्टनर शिप-भागीदारी) करने या कहीं शादी का इरादा है तो हस्बे ज़रूरत मालूमात करना गुनाह नहीं ।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 75 📚*

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        *❝ तजस्सुस (ऐबजूई) ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और ऐब न दूंडो। 
यानी मुसलमानों की ऐबजूई न करो और उन के छुपे हाल की जुस्तजू में न रहो जिसे अल्लाह पाक ने अपनी सत्तारी से छुपाया। 

࿐  फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ : ऐ वोह लोगों जो ज़बान से तो ईमान ले आए हो मगर तुम्हारे दिल में अभी तक ईमान दाखिल नहीं हुवा ! मुसलमानों की गीबत मत करो और न उन के उयूब को तलाश करो क्यूंकि जो अपने मुसलमान भाई का ऐब तलाश करेगा अल्लाह पाक उस का ऐब जाहिर फ़रमा देगा और अल्लाह पाक जिस का ऐब जाहिर फ़रमा दे तो उसे रुस्वा कर देता है अगर्चे वोह अपने घर के अन्दर (छुप कर बैठा हुवा) हो।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 75 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪ 108


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       *❝ तजस्सुस (ऐबजूई) ❞*
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࿐   *तजस्सुस के गुनाह में मुख्तला होने के बाज अस्खाब :* (1) बुग्जो कीना, (2) हसद, (3) चुगल खोरी की आदत (ऐसा शख्स एक दूसरे तक बातें पहुंचाने के लिए लोगों के ऐब तलाश करने में लगा रेहता है।

࿐  *तजस्सुस से बचने के लिए :-* अपने ऐबों पर नज़र रखिए और उन्हें दूर करने में लग जाइए। बेजा सोचना छोड़ दीजिए। अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए आपस में महब्बत कीजिए और दिल से मुसलमानों का बुग्जो कीना निकाल दीजिए। खुद को जहन्नम के अज़ाब से डराइए। रिवायत में है कि जिस को सबसे कम दरजे का अज़ाब होगा उसे आग की जूतियां पहना दी जाएंगी जिस से उस का दिमाग ऐसा खोलेगा जैसे तांबे को पतेली खोलती है, वोह समझेगा कि सबसे ज्यादा अज़ाब उस पर हो रहा है हालांकि उस पर सब से हल्का है।

࿐  *मदनी मश्वरा :-* तजस्सुस के मुतअल्लिक मजीद मालूमात के लिए 'नेकी की दावत" सफ़हा 397 ता 402 का मुतालआ (Reading) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 76 📚*

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         *❝ ❷❷.... तमस्खुर (मजाक उड़ाना) ❞*
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࿐   *"तमस्खुर" की तारीफ :* किसी की इस तरह तौहीन व तजलील करना या उस के उयूब व नकाइस को इस तरह जाहिर करना कि उस का मज़ाक बने, तमस्खूर केहलाता है। इस को इस्तेहज़ा भी कहते हैं।

࿐   *"तमस्खुर" की चन्द मिसालें :* किसी शख्स के बैठने, उठने चलने या गुफ्तगू करने के अन्दाज़ की नकल उतारी जाए मसलन जैद लंगड़ा कर चलता है बकर भी इस तरह लंगड़ाते हुवे चल कर उस का मजाक बनाए तो वोह जैद के साथ तमस्ख़र करने वाला होगा। किसी की शक्लो सूरत वगैरा जिस्मानी साख्त को मज़्हका खेज (यानी हंसी लाने वाले) अन्दाज़ से बयान किया जाए मसलन एक शख्स बहुत मोटा है बकर ने उस को आते देख कर कहा देखो ! हाथी का छोटा भाई आ रहा है, येह भी तमस्खूर है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 77 📚*

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       *❝ तमस्खुर (मजाक उड़ाना) ❞*
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࿐   *"तमस्खुर" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :*  (1) (किसी मुसलमान के साथ) तमस्खुर करना (यानी उस का मजाक उड़ाना) हराम है क्यूंकि इस से (उस की) दिल आजारी होती है। 

࿐  (2) दीन की किसी चीज़ का मजाक उड़ाना कुफ्र है। 

࿐  (3) मिजाह यानी ऐसी बात जिस में किसी की दिल आजारी न हो बल्कि अपना और सुनने वाले का दिल खुश हो जाए येह अच्छी चीज़ है जबकि कभी कभी हो (और उस में झूट भी न हो)। कभी कभी खुश तबई करना हुजूरे अक्दस ﷺ से साबित है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 78 📚*

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        *❝ तमस्खुर (मजाक उड़ाना) ❞*
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࿐   आयते मबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालो न मर्द मर्दों से हंसें अजब नहीं कि वोह इन हंसने वालों से बेहतर हों और न औरतें औरतों से दूर नहीं कि वोह इन हंसने वालियों से बेहतर हों।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :*  कियामत के दिन लोगों का मजाक उड़ाने वाले के सामने जन्नत का एक दरवाजा खोला जाएगा और कहा जाएगा कि आओ ! आओ ....!! वोह बहुत बेचैनी और गम में डूबा हुवा उस दरवाजे के सामने आएगा मगर जैसे ही दरवाजे के पास पहुंचेगा तो दरवाज़ा बन्द कर दिया जाएगा, फिर एक दूसरा जन्नत का दरवाजा खुलेगा और उस को पुकारा जाएगा : आओ ! यहां आओ..!! येह बे-चैनी और रन्जो गम में डूबा हुवा उस दरवाजे के पास जाएगा तो वोह दरवाज़ा बन्द हो जाएगा, इसी तरह उस के साथ मुआमला होता रहेगा यहां तक कि दरवाजा खुलेगा और पुकार पड़ेगी तो वोह ना उम्मीदी की वज्ह से नहीं जाएगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 78 📚*

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         *❝ तमस्खुर (मजाक उड़ाना) ❞*
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࿐   *तमस्खुर (मज़ाक उड़ाने) के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अवाब :* (1) नफरत व अदावत (2) तकब्बुर (3) खुद पसन्दी (4) मज़ाक मस्ख़री की आदत (5) फुजूल गोई (6) बुरी सोहबत।

࿐   *तमस्खुर (मज़ाक उड़ाने) से बचने के लिए :* जबान का कुफ्ले मदीना लगाइए कि तमस्खुर और इस के इलावा बहुत सारे गुनाह ज्यादा तर जबान से ही होते हैं लेहाज़ा इसे काबू में रखना बहुत ज़रूरी है तमस्खुर के दुन्यवो और उखरवी नुक्सानात और इस की तबाहकारियों के बारे में गौर कीजिए कि किसी भी मरज़ से बचने और उस का इलाज करने के लिए उस के नुक्सानात और तबाहकारियों का जानना मुफीद होता है। दिल में एहतिरामे मुस्लिम का जज़्बा पैदा कीजिए और मुसलमान की दिल आजारी से हमेशा बचते रहिए, इस के लिए रिसाला "एहतिरामे मुस्लिम" का मुतालआ (Reading) मुफीद है।सलाम और मुसाफ़हा करने की आदत अपनाइए दिल से नफ़रत व अदावत निकलेगी और महब्बत बढ़ेगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 79 📚*

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       *❝ ❷❸... रियाकारी ❞*
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࿐   *"रियाकारी" की तारीफ :* अल्लाह पाक को रिज़ा के इलावा किसी और इरादे से इबादत करना रियाकारी है।

࿐   *"रियाकारी” की चन्द मिसालें :*  इल्मे दीन इस लिए हासिल करना कि इस के जरीए दुन्या का माल कमाए या लोगों में उस की वाह वाह हो, नमाज़ इस लिए पढ़ना कि लोग उसे नेक नमाज़ी समझें, हज इस लिए करना कि लोग उसे हाजी साहिब केह कर पुकारें, सखी मशहूर होने के लिए सदक़ा ओ खैरात करना वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 81 📚*

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                 *❝  रियाकारी ❞*
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࿐   *"रियाकारी" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*  (1) रियाकारी हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐  (2) रिया की वज्ह से इबादत का सवाब नहीं मिलता बल्कि गुनाह होता है और येह शख्स (यानी रियाकारी करने वाला) मुस्तहिके अज़ाब होता है।

࿐   (3) रिया से इबादत नाजाइज़ नहीं हो जाती (यानी ऐसा नहीं कि रियाकारी से नमाज़ पढ़ी तो उसे तर्के नमाज़ समझा जाए) बल्कि ना मकबूल होने का अन्देशा होता है अगर रियाकार आखिर में रिया से (सच्ची) तौबा करे तो उस पर रिया की इबादत की कजा वाजिब नहीं बल्कि उस पर तौबा की बरकत से गुज़श्ता ना मक्बूल रिया की इबादात भी कबूल हो जाएंगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 81 📚*

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                *❝  रियाकारी ❞*
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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* तो जिसे अपने रब से मिलने की उम्मीद हो उसे चाहिए कि नेक काम करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को शरीक न करे। 

࿐  यानी शिर्के अक्बर से भी बचे और रिया से भी जिस को शिर्के असगर केहते हैं।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* बेशक जहन्नम में एक वादी है जिस से जहन्नम रोज़ाना 400 मरतबा पनाह मांगता है, येह वादी उम्मते मुहम्मदिय्या के उन रियाकारों के लिए तैयार की गई है जो कुरआने पाक के हाफ़िज़, गैरुल्लाह के लिए सदका करने वाले, अल्लाह पाक के घर के हाजी और राहे खुदा में निकलने वाले होंगे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 82 📚*

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                 *❝  रियाकारी ❞*
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࿐   *रियाकारी के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :* (1) शोहरत की ख्वाहिश, (2) मजम्मत (यानी लोगों के बुरा केहने) का खौफ (3) मालो दौलत की हिर्स 

࿐  *रियाकारी से बचने के लिए :* तन्हाई हो या हुजूम यक्सां अमल कीजिए मसलन जिस तरह खुशूअव खुजूअ के साथ लोगों के सामने नमाज़ पढ़ते हैं तन्हाई में भी उस अन्दाज़ को काइम रखिए, अपनी नेकियों को भी इस तरह छुपाइए जिस तरह अपने गुनाहों को छुपाते हैं बिल खुसूस पोशीदा नेकी करने के बाद नफ्स की खूब निगरानी कीजिए क्यूंकि हो सकता है नफ्स में इस इबादत को जाहिर करने की हिर्स जोश मारे और यूं रियाकारी में मुब्तला कर दे, रियाकारी के खौफनाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए कि किसी भी मरज़ से बचने और उस का इलाज करने के लिए उस के मोहलिकात यानी तबाहकारियों का जानना मुफीद होता है, अपनी निय्यत की हिफाज़त कीजिए और हर जाइज़ व नेक अमल करने से पहले अच्छी अच्छी निय्यतें करने की आदत बनाइए।

࿐  वजीफा : रोज़ाना येह दुआ तीन बार पढ़ लीजिए अल्लाह पाक छोटी बड़ी हर तरह की रिया से दूर रखेगा  दुआ येह है :

*"اَللّٰھُمَّ اِنِّىْ اَعُوْذُ بِكَ مِنْ اَنْ اُشْرِكَ بِكَ وَاَنَا اَعْلَمُ وَاَسْتَغْفِرُكَ لِمَا لَا اَعْلَمُ"*

࿐  *मदनी मश्वरा :* रियाकारी के मुतअल्लिक मजीद मालूमात के लिए किताब “रियाकारी" और "नेकी की दावत" सफ्हा नम्बर 63 ता 108 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 82-83 📚*

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        *❝  ❷❹.... कीना (बुग़्ज़) ❞*
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࿐   *"कीना" की तारीफ :* इन्सान दिल में किसी को बोझ जाने, उस से दुश्मनी रखे, नफ़रत करे और येह कैफिय्यत हमेशा बाकी रहे तो इसे कीना (बुग्ज़) केहते हैं।

࿐   *"कीना" की अलामात और मिसालें :* किसी से पेहले की तरह खुश मिज़ाजी और नर्मी व मेहरबानी के साथ पेश न आना उस को सलाम करने और मुलाकात करने को दिल न करना, उस को देखने और उस के साथ बात करने को जी न चाहना उस की खैर ख्वाही का ख़याल न करना वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 84 📚*

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             *❝  कीना (बुग़्ज़) ❞*
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࿐  *"कीना" के मुतअल्लिक मख्तलिफ़ अहकाम :* (1) मुसलमान से बिला वज्हे शरई कीना व बुग़्ज रखना हराम है। (2) अगर किसी ने जुल्म किया और इस वज्ह से दिल में उस का कीना है तो येह हराम नहीं।

࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और हम ने उन के सीनों में से कीने खींच लिए उन के नीचे नेहरें बहेंगी और कहेंगे सब खूबियां अल्लाह को जिस ने हमें उस की राह दिखाई और हम राह न पाते अगर अल्लाह न दिखाता। 

࿐   इससे मालूम हुवा कि पाकीज़ा दिल होना जन्नतियों का वस्फ़ है और अल्लाह पाक के फज्ल से उम्मीद है कि जो यहां अपने दिल को बग्जो कीना और हसद से पाक रखेगा अल्लाह पाक कियामत के दिन उसे पाकीज़ा दिल वालों यानी जन्नतियों में दाखिल फरमाएगा जन्नत में जाने से पेहले सब के दिलों को कीना से पाक कर दिया जाएगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 85📚*

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              *❝  कीना (बुग़्ज़) ❞*
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࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* बेशक चुगल खोरी और कीना परवरी जहन्नम में हैं, येह दोनों किसी मुसलमान के दिल में जम्अ नहीं हो सकते।

࿐  *कीना के गुनाह में मुब्तला होने क बाज अस्वाब :* (1) गुस्सा (2) बदगुमानी (3) जुवा (4) नेमतों की कसरत (5) लड़ाई-झगड़ा। 

࿐  *कीना से बचने के लिए :* सलाम व मुसाहा में पेहल करने की आदत अपनाइए ان شاء الله दिल से बुग्जो कीना का ख़ातिमा होगा, बेजा सोचना छोड़ दीजिए, अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए मुसलमानों से महब्बत रखिए, कीना के शरई अहकाम पेशे नज़र रखिए और जहन्नम के अज़ाब से खुद को डराइए।

࿐   *मदनी मश्वरा :* बुग़्जो कीना के तफ्सीली अहकाम और इस की तबाहकारियों के बारे में मालूमात के लिए किताब "बुग्जो कीना" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 86 📚*

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      *❝ ❷❺...बदगुमानी ❞*
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࿐  *"बदगुमानी" की तारीफ़ :* बिला दलील दूसरे के बुरे होने का दिल से एतिकादे जाज़िम (यानी यक़ीन) कर लेना बदगुमानी (बुरा गुमान करना) केहलाता है।

࿐  *"बगुगानी" की चन्द मिसालें :*  नात शरीफ़ या सुन्नतों भरा बयान सुन कर किसी को रोता देखा तो उस के बारे में येह ख़याल दिल में जमा लेना (यानी यकीन कर लेना) कि येह लोगों को दिखाने के लिए रो रहा है, कॉल रिसीव न होने पर बिला वह इस बात का यकीन कर लेना कि वोह जान बूझ कर मेरी कॉल रिसीव नहीं कर रहा, ते किए गए वक़्त और मकाम पर कोई आदमी नहीं पहुंच पाया तो बिला वज्ह उस के बारे में येह यकीन कर लेना कि येह धोकेबाज़ है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 87 📚*

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                   *❝  बदगुमानी ❞*
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࿐  *"बदगुमानी" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :*  (1) मुसलमान पर बदगुमानी हराम व कबीरा (गुनाह है) (2) अगर कोई शक में मुब्तला करने वाले बुरे कामों में अलानिया तौर पर मश्गूल हो जैसे शराब की दुकान में आना जाना तो इस सूरत में बद गुमानी हराम नहीं, (3) याद रहे कि अलानिया गुनाह करने वालों से बदगुमानी जाइज़ होने का येह मतलब नहीं है कि उन की बदगोई करना या ऐब उछालना शुरू कर दिया जाए बल्कि ऐसी सूरत में रिजाए इलाही के लिए सिर्फ दिल में उन्हें बुरा समझा जाए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 88 📚*

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                   *❝  बदगुमानी ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालो बहुत गुमानों से बचो बेशक कोई गुमान गुनाह हो जाता है और ऐब न ढूंडो। 

࿐   *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :* अल्लाह पाक ने मुसलमान का खून, माल और उस से बदगुमानी (को दूसरे मुसलमान पर) हराम किया है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 88 📚*

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                  *❝  बदगुमानी ❞*
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࿐  बदगुमानी के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब : (1) बुग्जो कीना (2)  तजस्सुस यानी दूसरों के छुपे हाल की जुस्तजू। 

࿐  *बदगुमानी से बचने के लिए :*  अपने मुसलमान भाइयों की खूबियों पर नज़र रखिए, अपनी बुराइयों पर नज़र कीजिए और उन्हें दूर करने में लग जाइए, जब भी दिल में किसी मुसलमान के बारे में बदगुमानी पैदा हो तो अपनी तवज्जोह इस की तरफ़ करने के बजाए बदगुमानी के शरई अहकाम को पेशे नज़र रखिए और बदगुमानी के अन्जाम पर निगाह रखते हुवे खुद को अजाबे इलाही से डराइए। जिस से बदगुमानी हो उस के लिए दुआए खैर कीजिए।

࿐   *मदनी मश्वरा :*  बद गुमानी के तफ्सीली अहकाम और इस की तबाहकारियां जानने के लिए किताब "बदगुमानी" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 88 📚*

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    *❝ ❷❻ तकब्बुर (Arrogant) ❞*
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࿐   *"तकब्बुर" की तारीफ :* अगर कोई अपने आप को दूसरे से अफ्जल समझे तो येह तकब्बुर है।

࿐  *"तकब्बुर” की मिसालें :* अमीर का गरीब को घटिया तसव्वुर करना, बड़े ओहदे वाले का छोटे ओहदे वाले को अपने से कमतर जानना, आला हसबो नसब वाले का दूसरों को नीच (घटिया) ख़याल करना, ताकतवर का कमज़ोर को हकीर और अपना गुलाम समझना वगैरा। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 90 📚*

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             *❝ तकब्बुर (Arrogant) ❞*
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࿐   *"तकब्बुर" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) तकब्बुर हराम है और अजीम कबीरा गुनाह है। (2) अल्लाह पाक या किसी नबी عَلَیْهِ الصَّلٰوةُ وَالسَّلَام के मुकाबले में तकब्बुर कुफ्र है। (3) कुफ्फार के मुकाबले में तकब्बुर इबादत है।

࿐    आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* फ़िल हकीक़त अल्लाह जानता है जो छुपाते और जो जाहिर करते हैं बेशक वोह मगरूरों को पसन्द नहीं फरमाता।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 90 📚*

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              *❝ तकब्बुर (Arrogant) ❞*
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࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* मुतकब्बिरीन का हश्र कियामत के दिन च्यूंटियों के बराबर जिस्मों में होगा और उन की सूरतें आदमियों की होंगी, हर तरफ़ से उन पर जिल्लत छाए हुवे होगी, उन को खींच कर जहन्नम के कैदखाने की तरफ ले जाएंगे जिस का नाम बूलस है। उन के ऊपर आगों की आग होगी, जहन्नमियों का निचोड़ उन्हें पिलाया जाएगा जिस को तीनतुल ख़बाल केहते हैं।

࿐  *तकब्बुर के गुनाह में मुलला होने के बाज़ अस्वाब :* (1) मालो दौलत (2) ओहदा व मन्सब (3) इल्म (4) हसब नसब (5) हुस्नो जमाल (6) ताकत व कुव्वत (7) खुद पसन्दी (8) बुग़्जो कीना।

࿐  *तकब्बर से बचने के लिए :* अपने ऐबों पर नज़र कीजिए, सलाम व मुसाफ़हा में पहल करने की आदत बनाइए, अपने काम खुद अपने हाथों से कीजिए, सादगी इख्तियार कीजिए, तकब्बुर के खौफनाक अजाबात का मुतालआ कीजिए कि किसी भी मरज़ से बचने और इस का इलाज करने के लिए इस के मोहलिकात यानी तबाहकारियों का जानना मुफ़ीद होता है मौत को कसरत से याद कीजिए।

࿐  *मदनी मश्वरा :*  तकब्बुर के तफ्सीली अहकाम और इस की तबाहकारियां जानने के लिए किताब "तकब्बुर" का मुतालआ (Reading) कीजिए।   

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 91 📚*

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*❝ ❷❼ जमाअत के साथ नमाज न पढ़ना ❞*
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࿐   *"जमाअत के साथ नमाज़ न पढ़ने" के मुतअल्लिक मुललिफ़ अहकाम :* (1) तर्के जमाअत बिला उज्र (यानी पंज वक्ता नमाजों में किसी एक वक्त की भी जमाअत बगैर शरई मजबूरी के छोड़ देना) गुनाह है और कई बार हो तो सख्त हराम व गुनाहे कबीरा और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐  (2) जब तक शरई मजबूरी न हो उस वक़्त तक मस्जिद की जमाअते ऊला लेना (पढ़ना) वाजिब है, अगर घर (या दुकान वगैरा) में जमाअत कर भी ली तो तर्के वाजिब का गुनाह सर पर आएगा!

࿐  (3) जमाअते ऊला (पेहली) और जमाअते सानिया (दूसरी) का सवाब हरगिज़ बराबर नहीं बल्कि ब एतिमादे सानिया (यानी अपनी अलग जमाअत करवा लेने के भरोसे पर) जमाअते ऊला फौत कर देना गुनाह है।

࿐  (4) औरतों को किसी नमाज़ में जमाअत की हाजिरी जाइज़ नहीं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 93 📚*

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      *❝ जमाअत के साथ नमाज़ न पढ़ना ❞*
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࿐   *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :* और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करो। 

यहां रुकूअ से मुराद नमाज़ है यानी नमाज़ पढ़ने वालों के साथ बा जमाअत नमाज़ पढो!

࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ:*  लोग तर्के जमाअत से ज़रूर बाज़ आ जाएं या अल्लाह पाक उन के दिलों पर मोहर लगा देगा फिर वोह गाफिलों में से हो जाएंगे।

࿐   *जमाअत के साथ नमाज़ न पढने” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :* (1) सुस्ती व काहिली, (2) मालो दौलत की हिर्स (मसलन बाग लोग कारोबारी मसरूफ़िय्यत के सबब मस्जिद की जमाअते ऊला गुज़ार देते बल्कि बाज़ दफ्आ तो नमाज़ ही क़ज़ा कर डालते हैं)। (3) लह्वो लअब (खेल कूद) और फुजुल कामों में कसरत के साथ मश्गुलियत। (4) रात देर तक जागते रेहना (कि इस से सुब्ह वक़्त पर आंख न खुलने और फ़ज्र की जमाअत रेह जाने बल्कि नमाजे फ़ज्र ही क़ज़ा हो जाने का अन्देशा है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 94 📚*

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      *❝ जमाअत के साथ नमाज़ न पढ़ना ❞*
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࿐  *जमाअत के साथ नमाज़ न पढने" के गुनाह से बचे रहने के लिए :* जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के फजाइल और तर्के जमाअत की वईदों का मुतालआ कीजिए, येह बात जेल में बिठा लीजिए कि जो रिज़्क किस्मत में है वोह मिल कर रहेगा और तकदीर से ज़्यादा किसी को कुछ नहीं मिल सकता लेहाजा माल जम्अ करने की हिर्स में जमाअत गुज़ार देना सरासर खसारा (नुक्सान) है। खुद को फ़ाइदे मन्द और ज़रूरी कामों में मसरूफ़ रखिए और गैर ज़रूरी कामों से पीछा छुड़ा लीजिए। नमाजे इशा के बाद ज़रूरी कामों से फ़ारिग हो कर जल्द सो जाने की आदत डालिए। काश ! तहज्जुद में आंख खुल जाए वरना कम अज़ कम नमाजे फ़ज्र तो आसानी के साथ बा जमाअत मुयस्सर आए और फिर काम काज में भी सुस्ती न हो।

࿐  *मदनी मश्वरा :*  नमाज़े बा जमाअत के फ़जाइलो मसाइल और इस बारे में तफ्सीली मालूमात के लिए किताब "बहारे शरीअत", जिल्द 1, सफ़हा 574 ता 594 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 95 📚*

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   *❝ ❷❽ बद शुगूनी (अपू शुकन) ❞*
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࿐   *"बद शुगूनी" (अप शुकन) की तारीफ :* किसी चीज़ (मसलन शख्स, अमल, आवाज़ या वक़्त) से बुरी फ़ाल लेना (यानी येह समझना कि उस की नुहसत का किसी के हालात पर बुरा असर पड़ेगा) बद शुगूनी (अप शुकन) है।

 ࿐  *“बह शुगूनी" की मिसालें :* एक शख्स सफ़र के इरादे से घर से निकला लेकिन रास्ते में काली बिल्ली रास्ता काट कर गुज़र गई, अब वोह शख्स येह समझ कर सफ़र से रुक गया कि काली बिल्ली के रास्ता काटने की नुहसत की वजह से मुझे सफ़र में कोई नुक्सान उठाना पड़ेगा। 

࿐   दुकान खुलते ही पेहला गाहक (Customer) कोई चीज़ ख़रीदे बगैर (बोनी कराए बगैर) वापस चला गया तो इस बात से बद शुगूनी लेते हुवे येह यकीन कर लिया कि आज के दिन मेरी बिक्री (Sales) अच्छी नहीं होगी।

࿐  माहे सफर को मुसीबतें और आफ़्तें उतरने का महीना समझते हुवे इस में नया कारोबार शुरूअ न करना, घर से बाहर आमदो रफ्त में कमी कर देना वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 96 📚*

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        *❝  बद शुगूनी (अपू शुकन) ❞*
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࿐   *"बद शुगनी" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ अहकाम :* (1) बद शुगूनी (अप शुकन) हराम' और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) अगर किसी ने बद शुगूनी का खयाल दिल में आते ही उसे झटक
 दिया तो उस पर कुछ इल्जाम नहीं लेकिन अगर उस ने बद शुगूनी की तासीर का एतिकाद रखा और इसी एतिकाद को बिना पर उस काम से रुक गया तो गुनहगार होगा मसलन किसी चीज़ को मन्हूस समझ कर सफ़र या कारोबार करने से येह सोच कर रुक गया कि अब मुझे नुक्सान ही होगा तो अब गुनहगार होगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 97 📚*

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        *❝  बद शुगूनी (अपू शुकन) ❞*
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࿐  *आयते मुबारका -* फ़िरऔन और उस के पैरूकारों के मुतअल्लिक़ इरशादे बारी तआला है : *तर्जमए कन्जुल ईमान :* तो जब उन्हें भलाई मिलती केहते येह हमारे लिए है और जब बुराई पहुंचती तो मूसा और उस के साथ वालों से बद शुगूनी लेते सुन लो उन के नसीबा (मुकद्दर) की शामत तो अल्लाह के यहां है लेकिन उन में अक्सर को ख़बर नहीं। 

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* अच्छा या बुरा शुगून लेने के लिए परिन्दा उड़ाना, बद शुगूनी लेना और तर्क (यानी कंकर फेंक कर या रेत में लकीर खींच कर फ़ाल निकालना-देखना) शैतानी कामों में से हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -  97 📚*

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         *❝  बद शुगूनी (अपू शुकन) ❞*
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࿐  *बद शुगनी के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्वाब :* (1) इल्मे दीन से दूरी (2) रस्मो रवाज की पैरवी (3)  कुफ्फार के साथ दोस्ती, मैल जोल, उठना बैठना।

࿐  *बद शुगूनी से बचने के लिए :* इल्मे दीन हासिल कीजिए (अगर येह बात जेह्न में अच्छी तरह बैठ जाए कि हर भलाई, बुराई अल्लाह पाक ने अपने इल्मे अज़ली के मुताबिक़ मुकद्दर फरमा दी है, जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था, अपने इल्म से जाना और वोही लिख लिया तो बद शुगूनी दिल में जगह नहीं बना सकेगी क्यूंकि जब भी इन्सान को कोई नुक्सान पहुंचेगा तो वोह येह जेह्न बना लेगा कि येह मेरी तकदीर में लिखा था न कि किसी चीज़ की नुहसत की वज्ह से ऐसा हुवा है)(2) दिल में बद शुगूनी आने की वजह से काम से न रोकिए। 3) बद शुगूनी के शरई अहकाम को पेशे नज़र रखिए और खुद को अज़ाबे जहन्नम से डराइए। 

࿐   *मदनी मश्वरा :* बद शुगूनी के बारे में तफ्सीली मालूमात और इस की तबाहकारियां जानने के लिए किताब "बद शुगूनी" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 97 - 98 📚*

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        *❝  ❷❾ नसब बदलना ❞*
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࿐  *नसब बदलने का माना :* यानी अपने हक़ीक़ी बाप को छोड कर किसी दुसरे को अपना बाप बताना या खानदान को छोड कर किसी दूसरे खानदान के साथ अपना नसब ज़ोड़ना।

࿐  *नसब बदलने” की चन्द मिसालें :* गैर बाप को अपना बाप बताए यानी येह कहे कि मैं फुलां का बेटा हूं हालांकि येह उस का बेटा नहीं, सैयद न हो मगर कहे कि मैं सैयद हूं, बाज़ लोग गोद लिए हुवे बच्चे को उस के बाप के बजाए अपनी तरफ़ मन्सूब करते हैं और शनाख्ती कार्ड वगैरा दस्तावेज़ात में भी बाप की जगह अपना नाम लिखवा देते हैं वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 99 📚*

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            *❝  नसब बदलना ❞*
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࿐   *“नसब बदलने" के मुतअल्लिक मुललिफ़ अहकाम :* (1) अपने हक़ीक़ी बाप को छोड़ कर किसी दूसरे को अपना बाप बताना या अपने खानदान व नसब को छोड़ कर किसी दूसरे खानदान से अपना नसब जोड़ना हराम और जन्नत से मेहरूम कर के दोजख में ले जाने वाला काम है!

࿐  (2) ज़रूरी दस्तावेज़ात, शनाख्ती कार्ड, पासपोर्ट और शादी कार्ड वगैरा में भी हक़ीक़ी बाप की जगह मुंह बोले बाप का नाम लिखवाना हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

࿐  (3): आम बोल चाल में किसी को "अब्बा जान" केह देने में हरज नहीं जबकि सब को मालूम हो कि यहां जिस्मानी रिश्ता मुराद नहीं, हां ! अगर ऐसे "अब्बा जान" को भी किसी ने सगा बाप जाहिर किया तो गुनहगार व अज़ाबे नार का हक़दार है।

࿐  (4) इसी तरह शफ़्कत के तौर पर किसी को बेटा या बेटी केह कर पुकारना (नसब बदलने की) वईदों में दाखिल नहीं।
 
࿐  (5) बीवी का अपने नाम के साथ शौहर का नाम लगाना जाइज़ है कि बीवी का अपने नाम के साथ शौहर का नाम लगाना नसब बताने के लिए नहीं होता बल्कि रिश्तए जौजिय्यत के इज़्हार के लिए होता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 100 📚*

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        *❝  नसब बदलना ❞*
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࿐   आयते मुबारका -  *तर्जमए कन्जुल ईमान :*  उन्हें उन के बाप ही का केह कर पुकारो येह अल्लाह के नज़दीक ज्यादा ठीक है। 

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* जिस शख्स को मालूम हो कि उस का बाप कोई और है और इस के बा वुजूद अपने आप को किसी गैर की तरफ़ मन्सूब करे तो उस पर जन्नत हराम है। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 101 📚*

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             *❝  नसब बदलना ❞*
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࿐  *"नसब बदलने” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्वाब  :* (1) अपने नसब की वज्ह से एहसासे कमतरी का शिकार होना (2)  फ़न व तकब्बुर (3) इल्मे दीन से दूरी (बाज़ लोग इस्लामी मालूमात न होने की वज्ह से ले पालक बच्चे को अपनी जानिब मन्सब कर के उस के अस्ल मां-बाप की जगह अपने नाम का इन्दिराज (Entry) करवाते हैं) (4) माले विरासत हासिल करने की लालच। 

࿐   *"नसब बदलने" के गुनाह से बचे रहने के लिए :*  येह जेहन में रखिए कि कोई बरादरी रज़ील (यानी घटिया) नहीं बल्कि अल्लाह पाक के नज़दीक बड़े मर्तबे वाला वोह है जो बड़ा मुत्तकी (यानी ज्यादा परहेज़गार) है। इल्मे दीन हासिल कीजिए बिल खुसूस ले पालक और मुंह बोले बेटे के मुतअल्लिक़ शरई अहकाम सीखिए क्यूंकि उन के वोह अहकाम नहीं होते जो हकीकी बेटे के होते हैं। फख्र व तकब्बुर की आफत से पीछा छुडा कर अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए आजिज़ी इख़्तियार कीजिए। इस कब्र की तंगी व वहशत और कियामत की हौलनाकियों को कसरत के साथ याद कीजिए, ان شاء الله गुनाहों से बच कर नेकियां करते रहने का ज़ेह्न बनेगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 101 📚*

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            *❝  ❸⓿ धोकादेही  ❞*
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࿐   *“धोकादेही” की तारीफ़ :* बुराई को दिल में छुपा कर अच्छाई जाहिर करना धोका (फ़रेब) है।

࿐   *“धोकादेही" की चन्द मिसालें :-* किसी चीज़ का ऐब छुपा कर उस को बेचना, अस्ल बता कर नक्ल दे देना, खरीदार से छुपा कर सहीह चीज़ के साथ कुछ ख़राब चीज़ भी डाल देना जैसा कि बाज़ फल फ़रोश ऐसा करते हैं। गलत बयानी कर के किसी से माल बटोरना जैसा कि पेशावर भिकारियों का तरीका है, वोह खेल तमाशे जिन में महज़ हाथ की सफाई दिखा कर देखने वालों को बे वुकूफ़ बनाया जाता है वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 103 📚*

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                 *❝  धोकादेही  ❞*
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࿐  *“धोके" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) मुसलमानों के साथ मक्र यानी धोकेबाज़ी कतअन हराम और गुनाहे कबीरा है जिस की सज़ा जहन्नम का अज़ाबे अजीम है।

࿐  (2) मक्रो फ़रेब और डरा धमका कर किसी से माल लेना कतई हराम है।

࿐  (3) हर्बी काफ़िर का माल जो बगैर धोकादेही के मिले हलाल है।

࿐  (4) आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा इरशाद फ़रमाते हैं आमाल जिस में कुछ न हों जैसे आज कल के भानुमती (यानी मदारी) तमाशे करते हैं उस में महज़ हथ फेरी होती है। उलमाए किराम फ़रमाते हैं “येह भी हराम है कि इस में धोका देना है और धोका देना शरीअत पसन्द नहीं फ़रमाती।" हदीस में है वोह हम में से नहीं जो धोखा दे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 103 📚*

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                 *❝  धोकादेही  ❞*
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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* तो क्या जो लोग बुरे मक्र करते हैं उस से नहीं डरते कि अल्लाह उन्हें जमीन में धंसा दे या उन्हें वहां से अज़ाब आए जहां से उन्हें खबर न हो।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :*  मलऊन (लानत किया गया) है वोह शख्स जिन ने किसी मोमिन को नुक्सान पहुंचाया या धोका दिया।

࿐   *“धोकादेही” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :* (1) माल जम्अ करने का लालच, (2) दूसरों को बेवुकूफ़ बना कर खुश होना, (3) बुरी सोहबत, (4) खियानत करने की आदत।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 104 📚*

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               *❝  धोकादेही  ❞*
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࿐   *“धोकादेही” के गुनाह से बचे रेहने के लिए :* अपने दिल में एहतिरामे मुस्लिम का जज्बा बेदार कीजिए, इस के लिए रिसाले “एहतिरामे मुस्लिम" का मुतालआ मुफीद है। मक्र यानी धोकेबाज़ी के दुन्यवी व उनवी नुक्सानात को पेशे नज़र रखिए, मसलन धोकेबाज़ से सब लोग दूर भागते हैं, कोई ऐसे शख्स के साथ मैल जोल और खरीदो फरोख्त वगैरा मुआमलात करना पसन्द नहीं करता मजीद येह कि इस काम में जहन्नम की हक़दारी भी है कनाअत इख्तियार कीजिए और मालो दौलत का लालच दिल से दूर कर दीजिए कि येह बहुत बुरा मरज़ है, कब्र की तंगी व वहशत और कियामत की हौलनाकियों को कसरत के साथ याद कीजिए, ان شاء الله गुनाहों से बचने और नेकियां करने का ज़ेह्न बनेगा, सिर्फ नेक, परहेज़गार आशिकाने रसूल की सोहबत इख्तियार कीजिए और बुरे लोगों से हमेशा दूर रहिए।

࿐   *मदनी मश्वरा :* मक्र यानी धोकेबाज़ी के मुतअल्लिक जानने के लिए किताब "इहयाउल उलूम" जिल्द 2, सफ़हा 289 ता 307 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 104 - 105 📚*

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              *❝ ❸❶  ज़ुल्म  ❞*
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࿐  *ज़ुल्म की तारीफ़ :*  हर वोह नुक्सान और आजार (तक्लीफ़) जो बिला इजाजते शरई किसी के दीन, इज्जत, जान, जिस्म, माल या दिल को पहुंचाया जाए जुल्म है चाहे वोह नुक्सान और तक्लीफ़ कौल के जरीए (यानी कोई बात केह कर) हो या फ़ेल के जरीए (यानी किसी अमल की वज्ह से) हो या तर्क के जरीए (मसलन मजदूर को उस की उजरत देने में बिला वज्ह ताख़ीर की)।

࿐   *ज़ुल्म की चन्द मिसालें :*  किसी को कत्ल कर देना, मार पीट करना व कर्ज़ ले कर दबा लेना, गाली देना गीबत व चुगली करना, मज़दूर की उजरत दबा लेना, चोरी, डाका, अमानत में खियानत करना वगैरा। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 106 📚*

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                     *❝  ज़ुल्म  ❞*
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࿐   *“ज़ुल्म" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) ज़ुल्म शरअन और अक्लन हराम है, किसी हालत और किसी सूरत में जाइज़ नहीं। (2) जानवर पर ज़ुल्म करना इन्सान पर जुल्म करने से ज़्यादा गुनाह है क्यूंकि इन्सान तो किसी से अपना दुख दर्द केह सकता है, बे ज़बान जानवर किस से कहे, उस का अल्लाह के सिवा फ़रियाद सुनने वाला कौन है!

࿐   (3) (अगर किसी पर जुल्म किया तो बारगाहे इलाही में सिर्फ तौबा कर लेना काफ़ी नहीं बल्कि बन्दों के जो हुकूक पामाल किए हों वोह भी अदा करने होंगे मसलन) जिस का माल दबाया है फ़र्ज़ है कि उतना माल उसे दे, वोह न रहा हो तो उस के वारिस को दे, वोह भी न हो तो फ़क़ीर पर सदका कर दे, इस के इलावा किसी तरह इस माल से सुबुक दोश (यानी बरिय्युज्जिम्मा) नहीं हो सकता और जिसे माल के इलावा कोई और ईज़ा दी हो या बुरा कहा हो उस से मुआफ़ी मांगे यहां तक कि वोह मुआफ़ कर दे जिस तरह मुमकिन हो मुआफ़ी (मांग) ले, वोह न रहा हो और था मुसलमान तो उस के लिए सदक़ा, तिलावत और नवाफ़िल (वगैरा नेक आमाल) का सवाब पहुंचाता रहे और काफ़िर था तो (उसे ईसाले सवाब जाइज़ नहीं, लेहाज़ा) इस के इलावा और कोई तदबीर नहीं कि अपने रब की तरफ़ रुजूअ और तौबा ओ इस्तिग़फ़ार करता रहे, वोह मालिक व कादिर है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 106 - 107 📚*

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                     *❝  ज़ुल्म  ❞*
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࿐  आयते मुबारका -  *तर्जमए कन्जुल ईमान :*  मुआखज़ा तो उन्हीं पर है जो लोगों पर जुल्म करते हैं और जमीन में नाहक सर कशी फैलाते हैं उन के लिए दर्दनाक अज़ाब है।

࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :*  मेरी उम्मत में मुफ़लिस वोह शख्स है जो क़ियामत के दिन नमाज़, रोज़ा, ज़कात तो ले कर आएगा मगर साथ ही किसी को गाली भी दी होगी, किसी को तोहमत लगाई होगी, उस का माले नाहक़ खाया होगा, उस का खून बहाया होगा, उस को मारा होगा तो इस की नेकियों में से कुछ उस मज़लूम को दे दी जाएंगी और कुछ उस मज़लूम को फिर अगर इस के ज़िम्मे जो हुकूक थे उन की अदाएगी से पेहले इस की नेकियां ख़त्म हो जाएं तो उन (यानी मज़लूमों) के गुनाह ले कर इस (यानी ज़ालिम) पर डाले जाएंगे फिर इस (ज़ालिम) शख्स को जहन्नम में डाल दिया जाएगा।  *الله اکبر*

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 107 📚*

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                     *❝  ज़ुल्म  ❞*
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࿐   *“ज़ुल्म” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :* (1) गुस्सा (2) लड़ाई झगड़ा (3) मालो दौलत की हिर्स (4) जेहालत (5) बुग्ज़ो कीना यानी दिल में किसी के खिलाफ़ बगैर किसी शरई वज्ह के नफ़रत और दुश्मनी रखना वगैरा। 

࿐   *“जुल्म” के गुनाह से बचे रेहने के लिए :*  कुरआनो हदीस में ज़िक्र किए गए जुल्म के हौलनाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि जुल्म के सबब अगर इन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा, गुस्से में आ कर किसी की हक तलफ़ी करने को दिल चाहे तो फ़ौरन अपने आप को यूं डराइए कि अगर मैं गुस्से में आ कर हक तलफ़ी करूंगा तो गुनहगार और जहन्नम का हक़दार करार पाउंगा कि येह गुनाह के जरीए गुस्सा ठन्डा करना हुवा और फ़रमाने मुस्तफ़ा ﷺ है जहन्नम में एक दरवाज़ा है उस से वोही दाखिल होंगे जिन का गुस्सा किसी गुनाह के बाद ही ठन्डा होता है। मौत और कब्रो आखेरत को कसरत से याद कीजिए इस से दिल नर्म होगा और दूसरों की हक़ तलफ़ी और जुल्म करने से बचने का जेह्न बनेगा।

࿐   *मदनी मश्वरा :* जुल्म करने के दुन्यवी व उख्रवी नुक्सानात और इस बारे में तफ्सीली मालूमात के लिए रिसाले “जुल्म का अन्जाम" और किताब “तक्लीफ़ न दीजिए" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 107 📚*

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     *❝ ❸❷ फर्ज इल्म न सीखना ❞*
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࿐   हर शख्स पर उस की हालते मौजूदा के मस्अले सीखना फ़र्जे ऐन है और इस को तर्क करना (यानी मौजूदा हालत के मुताबिक़ ज़रूरत के मस्अले न सीखना) गुनाह है।

࿐   *वज़ाहत :*  इल्मे दीन हासिल करने के तअल्लुक से सब से पेहला और अहम तरौन फ़र्ज़ येह है कि बुन्यादी अकाइद का इल्म हासिल करे जिस से आदमी सहीहुल अकीदा सुन्नी बनता है और इन्कार व मुखालफ़त से काफ़िर या गुमराह हो जाता है, इस के बाद नमाज़ के मसाइल यानी उस के फ़राइज़ और शराइत और नमाज़ तोड़ने वाली चीजों का इल्म हासिल करे ताकि नमाज़ सहीह तौर पर अदा कर सके फिर जब रमज़ानुल मुबारक की तशरीफ़ आवरी हो तो रोज़ों के मसाइल, साहिबे इस्तेताअत हो जाए तो हज के मसाइल, निकाह करना चाहे तो इस के ज़रूरी मसाइल, ताजिर हो तो खरीदो फरोख्त के मसाइल, मुलाज़िम बनने और मुलाज़िम रखने वाले पर इजारे के मसाइल अल ग़रज़ हर मुसलमान आकिलो बालिग मर्द व औरत पर उस की मौजूदा हालत के मुताबिक़ मस्अले सीखना फ़र्जे ऐन है। और अगर उस को येह ज़रूरी मस्अले मालूम नहीं और न उन को सीखने की कोशिश करे तो फ़र्ज़ उलूम न सीखने की वज्ह से गुनहगार होगा। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 109 - 110 📚*

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        *❝  फर्ज़ इल्म न सीखना ❞*
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࿐  *“फर्ज़ इल्म न सीखने" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) हस्बे हाल (यानी अपनी मौजूदा हालत के मुताबिक़) फ़र्ज़ उलूम न जानना गुनाह और न जानने के सबब गुनाह कर गुज़रना गुनाह दर गुनाह व हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) दीन के ज़रूरी उलूम से गाफ़िल हो कर दुन्यवी उलूम में मश्गूल होना हराम है। (3) जो शख्स दीन के ज़रूरी उलूम से फ़रागत पा कर ऐसे दुन्यवी उलूम पढ़े जिन में कोई बात खिलाफे शर्अ न हो तो येह एक मुबाह काम होगा जबकि इस के सबब किसी वाजिबे शरई में खलल न पड़े।

࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* तुम फ़रमाओ क्या बराबर हैं जानने वाले और अन्जान नसीहत तो वोही मानते हैं जो अक्ल वाले हैं। 

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :*  उस शख्स के लिए हलाकत है जो इल्म हासिल न करे और उस के लिए भी हलाकत है जो इल्म हासिल करे फिर उस पर अमल न करे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 110 📚*

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        *❝  फर्ज इल्म न सीखना ❞*
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࿐  *“फर्ज इल्म न सीखने” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्वाब :* *(1) शैतान :* (कि येह जिस क़दर दुश्मनी इल्म से रखता है और किसी चीज़ से नहीं रखता और सब से ज़्यादा वस्वसे भी इल्म से रोकने के लिए दिल में डालता है)!

࿐  *(2) मालो दौलत की हिर्स :* (हर वक़्त माल जम्अ करते रेहने का मज़मूम जज्बा भी इल्म हासिल करने की राह में बहुत बड़ी रुकावट है) 

࿐  *(3) जेहालत :* (कि बाज़ लोगों को पता ही नहीं होता कि उन पर किन किन चीजों का इल्म सीखना फ़र्ज़ है)। 

࿐  *(4) मोबाइल फ़ोन, इन्टरनेट, सोश्यल मीडिया :* (इल्म सीखने से दूर करने में इन चीज़ों का भी बड़ा किरदार है कि लोग इन चीजों के गैर ज़रूरी और हद से ज्यादा इस्तेमाल में पड़ कर अपना कीमती वक्त फुजूलियात की नज्र कर रहे हैं)।

࿐  *(5) : सुस्ती व ला परवाही।*

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 110 📚*

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         *❝  फर्ज इल्म न सीखना ❞*
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࿐  *इल्मे दीन हासिल करने के लिए :-* इल्मे दीन सीखने के फ़ज़ाइल पढ़िए, ख़ास तौर पर इस तअल्लुक से) बुजुर्गाने दीन के वाकेआत का मुतालआ कीजिए कि उन्हों ने कैसी कैसी मुश्किलात और परेशानियों के बा वुजूद इल्म हासिल किया,  इल्मे दीन हासिल करने का जज़्बा बेदार होगा, कनाअत इख़्तियार कीजिए और मालो दौलत की मजमूम हिर्स से पीछा छुड़ाइए, सहीहुल अक़ीदा सुन्नी उलमा की कुतुबो रसाइल का मुतालआ करते रहिए, दर्से निज़ामी कर लीजिए।

࿐   *मदनी मश्वरा :-*  इल्मे दीन के फ़ज़ाइल और इस के बारे में मुफीद तरीन मालूमात हासिल करने के लिए, किताब "इहयाउल उलूम' जिल्द 1, सफ़हा 42 ता 300 और दो रसाइल "फैजाने इल्म व उलमा" और "शौके इल्मे दीन" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 111-112 📚*

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         *❝  ❸❸ ...मायूसी ❞*
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࿐  *“मायूसी" की तारीफ :-*  अल्लाह पाक के फ़ज़्लो रेहमत न मिलने को याद करना और दिल में उस की उम्मीद न रखना मायूसी है।

࿐  *“मायूसी” के मुतअल्लिक मुख़्तलिफ़ अहकाम :-* (1)  रेहमते इलाही से मायूसी कबीरा गुनाह और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।, (2) बाज़ अवकात मुख़्तलिफ़ आफ़ात, दुन्यावी मुआमलात या बीमारी के मुआलजात व अखराजात वगैरा के सिलसिले में आदमी हिम्मत हार कर मायूस हो जाता है इस तरह की मायूसी कुफ्र नहीं। रेहमत से मायूसी के कुफ्र होने की सूरतें येह हैं : अल्लाह पाक को कादिर न समझे या अल्लाह तआला को आलिम न समझे या अल्लाह तआला को बखील समझे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 113 📚*

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                    *❝  मायूसी  ❞*
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࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* और अल्लाह की रेहमत से ना उम्मीद न हो बेशक अल्लाह की रेहमत से ना उम्मीद नहीं होते मगर काफ़िर लोग। 

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* आप ﷺ से सवाल किया गया कि कबीरा गुनाह कौन से हैं? इरशाद फ़रमाया अल्लाह पाक के साथ किसी को शरीक करना, उस की रेहमत से मायूस होना और उस की खुफ़िया तदबीर से बे खौफ़ होना और येही सब से बड़ा गुनाह है।

࿐  *“मायूसी" के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्खाब :* (1) जेहालत (2) दूसरों की पुर आसाइश ज़िन्दगी पर नज़र रखना (इस से एहसासे मेहरूमी पैदा होता है जो रेहमते इलाही से मायूसी की तरफ़ ले जाता है) (3) बे-सब्री (4) बुरी सोहबत (यानी ऐसे दुन्यादार लोगों की सोहबत इख्तियार करना जो खुद मायूसी का शिकार हों) (5) सिर्फ दुन्यवी मुराआत और खुशहाली पर नज़र रखना।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 113 - 114 📚*

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                    *❝  मायूसी  ❞*

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࿐  *“मायूसी” के गुनाह से बचने के लिए :-*  कुरआनो हदीस का इल्म हासिल कीजिए, जहन्नम में ले जाने वाले आमाल और उन पर मिलने वाले अज़ाबात पर गौरो फ़िक्र कीजिए ताकि दिल में खौफे आखिरत पैदा हो, जन्नत में ले जाने वाले आमाल और उन पर मिलने वाले अज़ीम अज्रो सवाब पर नज़र रखिए ताकि अल्लाह पाक की रेहमते कामिला पर यक़ीन मजीद पुख्ता हो और मायूसी दूर भाग जाए, दूसरों पर नज़र रखने के बजाए अपने ऊपर अल्लाह पाक के बेशुमार एहसानात और नेमतों को याद कीजिए और शुक्र अदा कीजिए नीज़ इस बात पर गौर कीजिए कि दुन्या में जिस के पास जितना ज्यादा माल होगा आखिरत में उसे उतना ही ज्यादा हिसाब भी देना होगा।

࿐   मुसीबतों पर सब्र करने की आदत डालिए और इस बात पर गौर कीजिए कि बे सब्री और शिक्वा ओ शिकायत से मुसीबत दूर नहीं होती बल्कि सब्र के जरीए हाथ आने वाला सवाब भी जाएअ हो जाता है, तकालीफ़ और मसाइब पर सब्र करने के उख़्रवी इन्आमात पर नज़र रखिए। सुन्नतों के पाबन्द, नेक परहेज़गार आशिकाने रसूल की सोहबत इख़्तियार कीजिए और बुरी सोहबत से दूर हो जाइए, बा वुजू रेहने की आदत डालिए और रोजे रखिए!

࿐   *मदनी मश्वरा :*  मायूसी दूर करने और रेहमते इलाही पर यकीन मजीद पुख्ता करने के लिए किताब "इहयाउल उलूम" जिल्द 4, सफ़हा 413 ता 451 और "152 रेहमत भरी हिकायात" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -  114 📚*


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       *❝ ❸❹ ...जुवा Gambling)  ❞*
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࿐  *“जुवे (Gambling)" की तारीफ :-*  हर वोह खेल जिस में येह शर्त हो कि मगलूब (यानी नाकाम होने वाले) की कोई चीज़ गालिब (यानी कामयाब होने वाले) को दी जाएगी, वोह जुवा है।

࿐  *“जुवे" की मिसालें :-* मुख़्तलिफ़ खेल मसलन घोड़ दौड़, क्रिकेट, केरम, ब्लेड, ताश, शतरन्ज, वगैरा दो तरफ़ा शर्त लगा कर खेले जाते हैं कि हारने वाला जीतने वाले को उतनी रकम या फुलां चीज़ देगा येह भी जुवा है घरों या दफ्तरों में छोटी मोटी बातों पर जो इस तरह की शर्ते लगती हैं कि अगर मेरी बात दुरुस्त निकली तो तुम खाना खिलाओगे और अगर तुम्हारी बात सच निकली तो मैं खाना खिलाउंगा आज कल मोबाइल पर कम्पनी को मेसेज (Message) करने पर एक मखसूस रकम कटती है और उस पर भी इन्आमात रखे जाते हैं येह सब जुवे में दाखिल हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 116 📚*


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           *❝  जुवा Gambling)  ❞*
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࿐  *“जुवे" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) जुवा खेलना हराम है। (2) इसी तरह जुवे का अड्डा चलाना, जुवे के आलात बेचना खरीदना सब हराम और जहन्नम में ले जाने वाले काम हैं। (3) जुवा खेलने वाला अगर नादिम हुवा तो उस को चाहिए कि बारगाहे इलाही में सच्ची तौबा करे मगर जो कुछ माल जीता है वोह ब दस्तूर हराम ही रहेगा!

࿐  इस ज़िम्न में रेहनुमाई करते हुवे मेरे आका आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं जिस क़दर माल जुवे में कमाया महज़ हराम है। और इस से बराअत (यानी नजात) की येही सूरत है कि जिस जिस से जितना जितना माल जीता है उसे वापस दे या जैसे बने उसे राजी कर के मुआफ़ करा ले। वोह न हो तो उस के वारिसों को वापस दे, या उन में जो आकिल बालिग हों उन का हिस्सा उन की रिज़ामन्दी से मुआफ़ करा ले, बाकियों का हिस्सा ज़रूर उन्हें दे कि इस की मुआफ़ी मुमकिन नहीं, और जिन लोगों का पता किसी तरह न चले, न उन का, न उन के वुरसा का, उन से जिस कदर जीता था उन की निय्यत से खैरात कर दे!

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 116 - 117 📚*


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             *❝  जुवा Gambling)  ❞*

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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :-* ऐ ईमान वालो शराब और जुवा और बुत और पांसे नापाक ही हैं शैतानी काम तो इन से बचते रेहना कि तुम फ़लाह पाओ।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :* जिस ने नर्द शीर (जुवा खेलने का आला) से खेला तो गोया उस ने अपना हाथ खिन्ज़ीर के गोश्त और खून में डुबो दिया।

࿐  *जुवा खेलने के गुनाह में मुब्तला होने के अस्बाब :-* (1) जुवा खेलने वाले लोगों के पास उठना बैठना (2) जेहालत (बाज़ अवकात मालूमात न होने की वज्ह से आदमी जुवे की किसी सूरत में मुब्तला हो जाता है (3) गेम क्लब (Gane club) में जाना (ऐसी जगहों पर जुवे बाज़ी आम पाई जाती है और दूसरों की देखा देखी खुद भी उस गुनाह में मुब्तला होने का एहतिमाल होता है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 117 📚*


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             *❝  जुवा Gambling)  ❞*
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࿐  *जुवा खेलने से बचने के लिए :-* (1)  बुरे लोगों के पास उठने बैठने से बचते रहिए, और सुन्नतों के पाबन्द ऐसे नेक परहेज़गार इस्लामी भाइयों की सोहबत इख्तियार कीजिए, जिन के पास बैठने से फ़िक्रे आखेरत पैदा हो, गुनाहों से नफ़रत हो और नेकियां करने का ज़ेह्न बने।,

࿐  (2) जुवा खेलने के नुक्सानात पर गौर कीजिए मसलन इस की वज्ह से कीमती चीजें और जाएदाद हाथ से निकल जाती हैं, जुवारी को और इस के घर वालों को महल्ले में बहुत ज़िल्लत उठानी पड़ती है।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  जुवे के मुतअल्लिक मजीद मालूमात के लिए किताब “गीबत की तबाहकारियां' सफ़हा नम्बर 184 ता 191 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 118 📚*


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               *❝  ❸❺ ....हराम माल ❞*

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࿐  *“हराम माल" की तारीफ़ :-* जो माल हराम ज़रीए से हासिल किया जाए वोह हराम माल है।

࿐  *हराम माल" की चन्द मिसालें :-*  गस्ब, चोरी, डाका, रिश्वत और जुवे के जरीए हासिल किया हुवा माल एक सूद भत्ताखोरी और पर्चियां भेज कर हिरासां (खौफ़ज़दा) कर के वुसूल किया हुवा माल, नाच गाना, ज़िना और शराब की कमाई पर दाढ़ी मूंडना वगैरा हराम कामों की उजरत वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 119 📚*


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              *❝  हराम माल ❞*

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࿐  *“हराम माल” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :* (1) हराम ज़रीए से माल हासिल करना गुनाह और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) जिस का लेना हराम है, देना भी हराम है (मसलन सूद लेना हराम है देना भी हराम है, रिश्वत लेना हराम है देना भी हराम है वगैरा)। (3) माले हराम में से कोई पैसा अपने खाने, पहेनने या किसी और मसरफ़ (यानी काम) में लगाना हराम है। (4) हराम रुपिया किसी काम में लगाना अस्लन (यानी बिल्कुल) जाइज़ नहीं, न नेक काम (मसलन मस्जिद व मद्रसे वगैरा की तामीर) में लगा सकते हैं न किसी और काम (मसलन खरीदो फरोख्त वगैरा) में।

࿐   (5)  ज़बानी तौबा से हराम माल पाक नहीं हो सकता बल्कि तौबा के लिए शर्त है कि जिस जिस से लिया है वापस दे वोह (जिन्दा) न रहे हों तो उन के वारिसों को दे (अगर अस्ल मालिक या उस के वारिसों का) पता न चले तो इतना माल (बिला निय्यते सवाब) सदक़ा कर दे इस के इलावा (कोई तरीका माले हराम के) गुनाह से बराअत (यानी छुटकारे) का नहीं।

࿐   (6) उसे (यानी हराम माल को) खैरात कर के जैसा पाक माल पर सवाब मिलता है इस की उम्मीद रखे तो सख्त हराम है बल्कि फुकहा ने कुफ्र लिखा है, हां ! वोह जो शर्अ ने हुक्म दिया कि हकदार (यानी जिस का माल है वोह या वोह न रहा हो तो उस का वारिस और वोह भी) न मिले तो फ़क़ीर पर तसद्दुक (खैरात) कर दे इस हुक्म को माना तो उस पर (यानी हुक्मे शरीअत पर अमल करने पर) सवाब की उम्मीद कर सकता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 119 -120 📚*


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               *❝  हराम माल ❞*

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࿐  आयते मुबारका -  *तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालो आपस में एक दूसरे के माल नाहक़ न खाओ!

इस आयत में बातिल (यानी नाहक) तरीके से मुराद (हर) वोह तरीका है जिस से माल हासिल करना शरीअत ने हराम करार दिया है।

࿐  *फ़रमाने मुस्तफा ﷺ :-*  बन्दा हराम ज़रीए से जो माल कमाए अगर उसे खर्च करेगा तो उस में बरकत न होगी और अगर सदक़ा करेगा तो वोह मक़बूल नहीं होगा और अगर उस को अपनी पीठ पीछे छोड़ कर मर जाएगा तो वोह उस के लिए जहन्नम में जाने का सामान है, बेशक अल्लाह पाक बुराई से बुराई को नहीं मिटाता। हां, नेकी से बुराई को मिटा देता है।

࿐  *“हराम माल” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-* (1) इल्मे दीन की कमी (कि खरीदो फरोख्त के शरई अहकाम न जानने के सबब एक तादाद है जो न चाहते हुवे भी हराम में जा पड़ती है) (2) मालो दौलत की हिर्स (3) दुन्या की महब्बत (4) रातों रात अमीर बनने की ख्वाहिश (5) मुफ़्त खोरी की आदत और काम काज से दूर भागना (6) बुरी सोहबत (जैसे जुवा खेलने वालों के पास उठने बैठने वाला खुद भी जुवा खेलने में मुब्तला हो जाता है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 120 -121📚*


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             *❝  हराम माल ❞*
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࿐  *“हराम माल” के गुनाह से बचे रेहने के लिए :-*
इल्मे दीन हासिल कीजिए, बिल खुसूस खरीदो फरोख्त और कस्बे मआश के मुतअल्लिक़ ज़रूरी अहकाम व मसाइल सीख लीजिए, मौत और कब्रो आखेरत को कसरत के साथ याद कीजिए, दिल से माल और दुन्या की महब्बत निकलेगी और नेकियां करने का ज़ेह्न बनेगा। जहन्नम के हौलनाक अजाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि अगर कस्बे हराम के सबब इन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा। कस्बे हलाल के फ़ज़ाइल और हराम माल के नुक्सानात को पेशे नज़र रखिए। तवक्कुल इख्तियार कीजिए नीज़ येह बात अच्छी तरह जेह्न में बिठा लीजिए कि किसी की किस्मत में जितना रिज्क मिलना लिखा हो वोह उसे मिल कर रेहता है और न कभी किसी को मुक़द्दर से कम मिलता है न ज़्यादा, लेहाज़ा अक्ल मन्द वोही है जो अपने हिस्से का रिज्क हलाल तरीके से हासिल करे, नेक परहेज़गार आशिकाने रसूल की सोहबत इख़्तियार कीजिए और बुरे लोगों से हमेशा दूर रहिए।

࿐   *मदनी मश्वरा :-*  ख़रीदो फरोख्त और मुलाज़मत के मुतअल्लिक तफ्सीली अहकाम जानने के लिए  किताब "बहारे शरीअत" हिस्सा 11 और  रिसाला "हलाल तरीके से कमाने के 50 मदनी फूल" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 121 📚*


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*❝ ❸❻...नाहक यतीम का माल खाना ❞*
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࿐  *“नाहक यतीम का माल खाने” का माना :-*  वोह ना बालिग बच्चा या बच्ची जिस का वालिद फ़ौत हो गया है उस के माल व जाएदाद पर कब्जा कर लेना या बगैर इजाज़ते शरइया के किसी तरह के इस्तेमाल में लाना नाहक यतीम का माल खाना केहलाएगा।

࿐  *“नाहक यतीम का माल खाने” की मुख्तलिफ़ सूरतें और मिसालें :-*  यतीम का माल गस्ब कर लेना यानी छीन लेना, अपना घटिया माल दे कर उस का उम्दा माल ले लेना,  यतीम के माल से नियाज़, फ़ातिहा खैरात करना वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 122 - 123📚*


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       *❝  नाहक यतीम का माल खाना ❞*

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࿐   *“नाहक यतीम का माल खाने" के मुतअल्लिक मुललिफ़ अहकाम :-* (1) यतीमों का माल नाहक लेना सख़्त तर कबीरा (गुनाह) है। (2) कोई शख्स फ़ौत हो और उस के वुरसा में यतीम बच्चे भी हों तो (यतीम का हिस्सा अलग करने से पेहले) उस तर्के से तीजा, चालीसवां, नियाज़, फ़ातिहा और खैरात करना सब हराम है और लोगों का यतीमों के माल वाली उस नियाज़, फ़ातिहा के खाने को खाना भी हराम है। (3) यतीम को तोहफ़ा दे सकते हैं मगर उस का तोहफा ले नहीं सकते। (4) जिस ने यतीम का माल खाया वोह जन्ने गालिब का एतिबार करते हुवे उतना माल उन को लौटाए और साथ में उन से मुआफ़ी भी मांगे।

࿐  याद रहे कि “यतीमों का हक किसी के मुआफ़ किए मुआफ़ नहीं हो सकता बल्कि खुद यतीम भी मुआफ़ नहीं कर सकते न उन की मुआफ़ी का कुछ एतिबार है। हां ! यतीम बालिग होने के बाद मुआफ़ करे तो उस वक़्त मुआफ हो सकेगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 123📚*


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      *❝  नाहक यतीम का माल खाना ❞*

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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :-* वोह जो यतीमों का माल नाहक खाते हैं वोह तो अपने पेट में निरी आग भरते हैं और कोई दम जाता है कि भडकते धड़े (भड़कती आग) में जाएंगे।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-*  यतीम का माल जुल्मन खाने वाला क़ियामत के रोज़ इस तरह उठेगा कि उस के मुंह, कान, नाक और आंखों से आग का शोला निकलता होगा जो उसे देखेगा पहेचान लेगा कि येह यतीम का माल नाहक खाने वाला है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 123📚*


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       *❝  नाहक यतीम का माल खाना ❞*

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࿐  *“नाहक यतीम का माल खाने" के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-*  (1) लालच (2) इल्मे दीन की कमी (बाज़ अवकात यतीम का माल खाने से बचने का ज़ेह्न भी होता है लेकिन शरई मालूमात न होने की वज्ह से लोग उस गुनाह में मुब्तला हो जाते हैं जैसे यतीम वारिस मौजूद हो तो उस के हिस्से से मय्यत का तीजा, चालीसवां करना वगैरा)।

࿐  *“नाहक़ यतीम का माल खाने" के गुनाह से बचे रहने के लिए :-*  मौत और क़ब्रो आखेरत को याद किया कीजिए, मालो दौलत की हिर्स ख़त्म होगी और आखेरत की तैयारी करने का ज़ेह्न बनेगा, हर मुसलमान बिल खुसूस वोह शख्स जिस की परवरिश में कोई यतीम हो वोह यतीम के मुतअल्लिक ज़रूरी मसाइल सीखे ताकि जेहालत की वज्ह से नादव यतीम का माल खाने के गुनाह में मुब्तला न हो जाए।“नाहक यतीम का माल खाने" के अज़ाबात पढ़िए और सुनिए, ان شاء الله दिल में खौफे खुदा पैदा होगा, गुनाहों से बचने और नेकियां करने का ज़ेह्न बनेगा।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  नाहक यतीम का माल खाने के मुतअल्लिक़ मजीद मालूमात के लिए रिसाला “यतीम किसे केहते हैं ?" सफ़हा 2 ता 13 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 124 📚*


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           *❝  ❸❼ ....चोरी  ❞*
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࿐   *चोरी की तारीफ :-*  चोरी येह है कि दूसरे का माल छुपा कर नाहक ले लिया जाए।

࿐  *चोरी के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) चोरी करना गुनाहे कबीरा, हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) चोरी से हासिल किए हुवे माल को खरीदो फरोख्त वगैरा के किसी काम में लगाना हरामे क़तई है। (3) इस को हासिल करने वाला इस का बिल्कुल मालिक नहीं बनता और इस माल के लिए शरअन फ़र्ज़ है कि जिस का है उसी को लौटा दिया जाए वोह न रहा हो तो वारिसों के दे और इन का भी पता न चले तो बिला निय्यते सवाब (यानी सवाब की निय्यत किए बगैर) फ़कीर पर खैरात कर दे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 126 📚*


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                    *❝  चोरी  ❞*

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࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :-* और जो मर्द या औरत चोर हो तो उन का हाथ काटो उन के किए का बदला अल्लाह की तरफ से सजा और अल्लाह गालिब हिक्मत वाला है तो जो अपने जुल्म के बाद तौबा करे और संवर जाए तो अल्लाह अपनी मेहर (रेहमत) से उस पर रुजूअ फ़रमाएगा बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है।

*नोट :-*  वाज़ेह रहे कि हुदूद व ताज़ीर के मसाइल में अवामुन्नास को कानून हाथ में लेने की शरअन इजाज़त नहीं।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-*  मैंने जहन्नम में एक शख्स को देखा जो अपनी टेढ़ी लाठी के जरीए हाजियों की चीजें चुराता, जब लोग उसे चोरी करता देख लेते तो केहता मैं चोर नहीं हूं, येह सामान मेरी टेढ़ी लाठी में अटक गया था वोह आग में अपनी टेढ़ी लाठी पर टेक लगाए येह केह रहा था मैं टेढ़ी लाठी वाला चोर हूं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 126 📚*


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             *❝   चोरी  ❞*

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࿐  *“चोरी” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अरबाब :-*  (1) अच्छी तरबियत न होना (शुरूअ से ही अगर बच्चों की अच्छी तरबियत पर तवज्जोह न दी जाए तो उन के चोरी वगैरा बुराइयों में मुब्तला होने का अन्देशा होता है)। (2) लालच (3) नशे की आदत (इस बुरी आदत के शिकार लोग भी अपना नशा पूरा करने के लिए जब और कोई सूरत नज़र नहीं आती तो चोरियां करने लगते हैं)।

࿐  *“चोरी” के गुनाह में पड़ने से बचने के लिए :-* (1) अन्जाम को पेशे नज़र रखिए कि चोरी दुन्या ओ आखेरत में किस कदर तबाही ओ बरबादी का सबब बनती है मसलन चोरी करने वाले को मुल्की कानून के मुताबिक़ तक्लीफ़ देह सजा भुगतना पड़ती है, महल्ले वालों और रिश्तेदारों में उसे और उस के घर वालों को सख्त जिल्लतो रुस्वाई का सामना होता है और चोरी करने वाला खद को जहन्नम के दर्दनाक अजाब का हकदार बनाता है।

࿐  (2) रिज़्के हलाल कमाने के फ़ज़ाइल और हराम रोज़ी की तबाहकारियों पर गौर कीजिए, मुकाशफ़तुल कुलूब में है : आदमी के पेट में जब लुक्मए हसन पड़ा तो जमीनो आस्मान का हर फरिश्ता उस पर लानत करेगा जब तक उस के पेट में रहेगा और अगर इसी हालत में (यानी पेट में हराम लुक्मे की मौजूदगी में) मौत आ गई तो दाखिले जहन्नम होगा।

࿐  (3) मौत और क़ब्रो आखेरत को कसरत से याद कीजिए, ان شاء الله दिल से दुन्या की महब्बत निकलेगी और गुनाहों से बचने का जेह्न बनेगा।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  चोरी की शरई सज़ा और इस के मुतअल्लिक दीगर मसाइल जानने के लिए किताब "बहारे शरीअत" हिस्सा 9, सफ़हा 411 ता 422 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 127 📚*


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                *❝  ❸❽ ..... गस्ब  ❞*

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࿐  *गस्ब की तारीफ़ :-* माले मुतकव्विम (यानी जिसे शरीअत ने माल क़रार दिया हो) मोहतरम (यानी जिसे शरीअत ने काबिले हुरमत करार दिया है) को उस के मालिक की इजाजत के बगैर ले लेना गस्ब है जब कि येह लेना खुफ़ियतन (यानी पोशीदा तौर पर) न हो!

࿐  *गस्ब के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) गस्ब हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) गस्ब की हुरमत (यानी हराम होना) ज़रूरियाते दीन में से है लेहाज़ा अगर वाकेई किसी ने गस्ब को हलाल करार दिया तो उस पर हुक्मे कुफ्र है। (3) गस्ब की हुई चीज़ का (गासिब यानी गस्ब करने वाला बिल्कुल मालिक नहीं बनता बल्कि उस को) येह हुक्म है कि अगर चीज़ मौजूद हो तो उस के मालिक को वापस करे और अगर मौजूद न हो तो मालिक को उस का तावान दे।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 129 📚*


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                 *❝   गस्ब  ❞*
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࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :-* ऐ ईमान वालों आपस में एक दूसरे के माल नाहक न खाओ।

___ गस्ब के जरीए माल हासिल करना भी नाहक़ माल खाने में दाखिल और हराम है।

࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :-* जो शख्स पराया माल ले लेगा वोह कियामत के दिन अल्लाह पाक से कोढ़ी (यानी बर्स का मरीज़) हो कर मिलेगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 129 📚*

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               *❝   गस्ब  ❞*
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࿐  *“गस्ब” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-*  (1) मालो दौलत की महब्बत (2) खानदानी दुश्मनियां (3) हसद (4) तकब्बुर।

࿐  *“गस्ब" के गुनाह से बचने के लिए :-* कब्र की तंगी व वहशत और क़ियामत की हौलनाकियों से खुद को डराइए और दिल में ख़ौफ़ खुदा पैदा कीजिए, ان شاء الله दिल से मालो दौलत की महब्बत दूर होगी और शरीअतो सुन्नत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारने का मदनी ज़ेह्न बनेगा, अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए एक दूसरे को मुआफ़ करने की आदत अपनाइए और आपस में नफ़रतें ख़त्म कर के महब्बतों को आम कीजिए, के इस बात पर गौर कीजिए कि किसी का माल नाहक़ दबा लेना आखेरत में किस क़दर नुक्सान का सबब है चुनान्चे आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा नक्ल फ़रमाते हैं जो दुन्या में किसी के तकरीबन तीन पैसे दैन (यानी कर्ज) दबा लेगा बरोजे कियामत इस के बदले 700 बा जमाअत नमाजें देनी पड़ जाएंगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 130 📚*


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 *❝  ❸❾...नाप तोल में खियानत  ❞*

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࿐  *नाप तोल में खियानत का माना :-*  यानी नाप तोल में कमी और खियानत कर के खरीदार (Buyer) को उस का पूरा हक़ न देना, इस को अरबी में ततफ़ीफ़ कहा जाता है।

࿐  *“नाप तोल में खियानत” के मुतअल्लिक मुख़्तलिफ अहकाम :-* (1) नाप तोल में कमी करना हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) कम नाप तोल कर किसी को देना या ताजिर (व्यापारी) से जब्रन नीचा तुलाना हराम है अगर ताजिर खुद ही कुछ नीचा तोल दे तो उस का कबूल करना जाइज है कि ज्यादती उस की तरफ से हदया है जो कबल किया जा सकता है। (3) वज्न व नाप में गैर मेहसूस सी ज्यादती कमी जो क़स्दन न हो, मुआफ़ है। (4) सोदे में मिलावट कर के फ़रोख्त करना हराम है कि इस में भी गाहक का हक़ मारा जाता है मसलन अगर सेर दूध में छटांक पानी की मिलावट है या सेर देसी घी में छटांक विलायती घी की मिलावट है तो गाहक को एक छटांक दूध व घी कम पहुंचा। (5) पासंग वाली तराजू (यानी जिस के दोनों पलड़े बराबर न हों ऐसा तराजू) रखना, तोल में डन्डी मार कर चीज़ फरोख्त करना, खरीदते वक़्त ज़्यादा तोल लेना येह सब कुछ हराम है। (6) धोका दे कर ख़रीदार को बुरी चीज़ दे देना फ़रेब व चालाकी से उस के खरे सिक्के खोटों से तब्दील कर देना हराम है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 131-132📚*


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       *❝  नाप तोल में खियानत ❞*

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࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :-* कम तोलने वालों की खराबी है वोह कि जब औरों से माप (नाप कर) लें पूरा लें और जब उन्हें माप या तोल कर दें कम कर दें क्या उन लोगों को गुमान नहीं कि उन्हें उठना है एक अज़मत वाले दिन के लिए जिस दिन सब लोग रब्बुल आलमीन के हुजूर खडे होंगे।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* जो लोग नाप तोल में कमी करते हैं वोह कह्त और शदीद तंगी और बादशाह के जुल्म में गिरिफ्तार होते हैं।

࿐   *“नाप तोल में खियानत करने” के गुनाह में मुब्तला होने के अस्बाब :-*  (1) हिर्स (2) गफलत (यानी दुन्या में मश्गूल हो कर मौत और क़ब्रो आखेरत को भूल जाना) (3) मक्रो फ़रेब (यानी धोका देने की आदत) (4) दुन्या की महब्बत (5) रातों रात अमीर बनने की ख्वाहिश (6) बुरी सोहबत।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -132📚*


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      *❝  नाप तोल में खियानत ❞*

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࿐  *"नाप तोल में खियानत" करने से बचने के लिए :-*  जहन्नम के हौलनाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि नाप तोल में कमी करने के सबब उन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा कनाअत इख्तियार कीजिए और हिर्स व लालच से बचते रहिए। के मौत और कब्रो आखेरत को कसरत के साथ याद कीजिए, ان شاء الله  दिल से दुन्या और मालो दौलत की महब्बत निकलेगी, गफ्लत दूर होगी और दिल में एहतिरामे मुस्लिम का जज़्बा भी बेदार होगा जिस से नाप तोल में खियानत के गुनाह से बचे रेहने में मदद मिलेगी इस येह बात अपने ज़ेहन, में अच्छी तरह बिठा लीजिए कि किसी की किस्मत में जितना रिज़्क मिलना लिखा हो वोह उसे मिल कर रेहता है और न कभी किसी को मुकद्दर से कम मिलता है न ज़्यादा, लेहाज़ा अक्ल मन्द वोही है जो अपने हिस्से का रिज़्क हलाल तरीके से हासिल करे नेक परहेज़गार और दियानत दार आशिकाने रसूल की सोहबत इख़्तियार कीजिए और बुरे लोगों से हमेशा दूर रहिए।

࿐    *मदनी मश्वरा :-*  रोजगार व काम काज के आदाब और इस बारे में मफीद मालूमात के लिए किताब "इहयाउल उलूम" जिल्द 2, सफ़हा 227 ता 559 और रिसाला "अल्लाह वालों का अन्दाजे तिजारत" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह -133📚*


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  *❝ ❹⓿ ....मर्द व औरत का एक दूसरे की मुशाबेहत करना ❞*

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࿐   *एक दूसरे की मुशाबेहत का मतलब :-*  वोह बातें जिन में मर्दो और औरतों का इम्तियाज़ (फ़र्क) होता है, उन में औरत को मर्द की और मर्द को औरत की वज्अ (यानी तौर तरीका) इख़्तियार करना।

࿐  *“मर्द व औरत का एक दूसरे की मुशाबेहत” की चन्द मिसालें :-* औरत का मर्दाना और मर्द का ज़नाना कपड़े या जूते पहेनना के मर्द का कन्धों से नीचे औरत का मर्दाना तर्ज के बाल रखना औरत का इमामा बांधना वगैरा।

࿐  *“मर्द व औरत का एक दूसरे की मुशाबेहत” के मुतअल्लिक मुख़्तलिफ़ अहकाम :-* (1) औरत को मर्द, मर्द को औरत से तशब्बोह (मुशाबेहत) हराम है। (2) और तशब्बोह (मुशाबेहत) के लिए हर बात में पूरी वज्अ बनाना ज़रूरी नहीं (सिर्फ) एक ही बात में मुशाबेहत काफ़ी है। (3) किसी एक बात में भी मर्द को औरत, औरत को मर्द की वज्अ लेनी हराम व मूजिबे लानत (यानी लानत का बाइस) है। (4) बच्चों (यानी लड़कों) के हाथ पाउं में बिला ज़रूरत मेहंदी लगाना ना जाइज़ है, औरत खुद अपने हाथ पाउं में लगा सकती है मगर लड़के को लगाएगी तो गुनहगार होगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 135📚*


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*❝ मर्द व औरत का एक दूसरे की मुशाबेहत करना ❞*
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࿐   *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :-* शैतान ने कहा : 'कसम है मैं ज़रूर उन्हें बेहका दूंगा और ज़रूर उन्हें आरजूएं दिलाऊंगा और ज़रूर उन्हें कहूंगा कि वोह चोपायों के कान चीरेंगे और जरूर उन्हें कहूंगा कि वोह अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ बदल देंगे।

࿐  तफ्सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में है मर्दो का औरतों की शक्ल में जनाना लिबास पहेनना, औरतों की तरह बात चीत और हरकात करना, जिस्म को गूद कर सुर्मा या सिन्दूर वगैरा जिल्द में पैवस्त कर के नक्शो निगार बनाना, बालों में बाल जोड़ कर बड़ी बड़ी जटें बनाना भी इस में दाखिल है।

࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* चार किस्म के लोग सुब्ह अल्लाह पाक के गज़ब और शाम उस की नाराज़ी में करते हैं (1) औरतों से मुशाबेहत इख्तियार करने वाले मर्द (2) मर्दो से मुशाबेहत इख़्ज़ियार करने वाली औरतें (3) जानवर या (4) लड़कों के साथ बद फ़ेली करने वाला।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 136 📚*


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 *❝ मर्द व औरत का एक दूसरे की मुशाबेहत करना ❞*

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࿐  *“मुशाबेहत इख़्तियार करने” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-* (1) नित नए फ़ेशन का दिलदादह होना (2) जेहालत (मसलन ला) इल्मी के सबब मर्द अपने हाथों, पैरों पर मेहंदी लगा लेते हैं, बाज़ कन्धों से नीचे तक बाल रखते हैं, इसी तरह मर्द हो कर कानों में मुन्दरियां, हाथों में कड़े और गले में लॉकेट पहेनना वगैरा (3) फ़िल्में ड्रामे देखना। (4) फेशनेबल और मॉर्डन लोगों की सोहबत।

࿐  *“मुशाबेहत इख्तियार करने” के गुनाह से बचे रेहने के लिए :-* लिबास, वज्अ कत्अ और रहन सहन के मुतअल्लिक शरई अहकाम व मसाइल सीख लीजिए, एक कब्र की तंगी व वहशत और क़ियामत की हौलनाकियों को कसरत के साथ याद कीजिए, ان شاء الله सुन्नतों पर अमल करने और नाजाइज़ फेशन से बचने का ज़ेह्न बनेगा। और फ़िल्में ड्रामे वगैरा देखने से हर दम बचते रहिए, पाबन्दे सुन्नत, आशिकाने रसूल की सोहबत इख्तियार कीजिए और बुरी सोहबत से हमेशा दूर रहिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 136 - 137 📚*


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       *❝ ❹❶ ....बुख्ल (कन्जूसी) ❞*

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࿐   *बुख्ल की तारीफ़ :-* जहां शरअन या उर्फ़ व आदत के एतिबार से खर्च करना वाजिब हो वहां खर्च न करना बुख़्ल (कन्जूसी) है।

࿐  *“बुख्ल" की चन्द मिसालें :-* ज़कात फ़र्ज़ होने के बावुजूद न देना फित्रा वाजिब होने के बा वुजूद न देना के मेहमान की मेहमान नवाज़ी में बिला वज्ह तंगी करना।

࿐   *“बुख्ल” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) बुख़्ल मोहलिक (यानी हलाक करने वाला) मरज़ है, बुख्ल बाज़ अवकात कई गुनाहों का सबब बन जाता है लेहाज़ा हर मुसलमान को इस से बचना लाज़िम है। (2) जहां माल खर्च करना शरअन ज़रूरी है मसलन फ़र्ज़ होने की सूरत में ज़कात अदा करना, वाजिब होने की सूरत में सदक़ए फ़ित्र अदा करना, इसी तरह क़सम वगैरा का कफ्फ़ारा देना, इन कामों में बुख़्ल करना गुनाह और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 138 📚*


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         *❝  बुख्ल (कन्जूसी) ❞*
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࿐   *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :* और जो बुख़्ल करते हैं उस चीज़ में जो अल्लाह ने उन्हें अपने फज़्ल से दी हरगिज़ उसे अपने लिए अच्छा न समझें बल्कि वोह उन के लिए बुरा है अन करीब वोह जिस में बुख़्ल किया था क़ियामत के दिन उन के गले का तौक़ होगा।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* अल्लाह पाक ने बुख़्ल को अपने गज़ब से पैदा किया और इस की जड़ को जक्कम (जहन्नम के एक दरख्त) की जड़ में रासिख़ किया और इस की बाज़ शाखें जमीन की तरफ झुका दीं तो जो शख्स बुख़्ल की किसी टेहनी को पकड़ लेता है अल्लाह पाक उसे जहन्नम में दाखिल फ़रमा देता है। सुन लो ! बेशक बुख़्ल नाशुक्री है और नाशुक्री जहन्नम में है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 139 📚*

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          *❝  बुख्ल (कन्जूसी) ❞*

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࿐  *“बुख्ल" की आफत में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-* (1) माल की महब्बत (2) लम्बी उम्मीद (हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सैयदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं लम्बी उम्मीदों के सबब माल जम्अ करने की हिर्स बढ़ जाती है और इन्सान आखेरत से गाफ़िल हो कर दुन्या में मश्गूल हो जाता है तो दुन्यवी कल संवारने की फ़िक्रे उसे बुख़्ल पर उभारती हैं! (3) तंगदस्ती का खौफ़ (4) नफ़्सानी ख्वाहिशात का गल्बा (कि उन को पूरा करने के लिए शरई वाजिबात और दूसरे हुकूक़ अदा करने के मुआमले में सुस्ती होने लग जाती है) (5) बच्चों के रौशन मुस्तकबिल की फ़िक्र।

࿐  *“बुख्ल” से छुटकारा पाने के लिए :-*  कब्रो आखेरत को याद कीजिए कि मेरा येह माल क़ब्र में मेरे किसा काम न आएगा ان شاء الله दिल से मालो दौलत की महब्बत दूर होगी और क़ब्रो आखेरत की तैयारी करने का जेह्न बनेगा, मौत और कब्रो आखेरत की याद से लम्बी उम्मीदों से भी छुटकारा मिलेगा, एक येह बात ज़ेह्न में बिठा लीजिए कि राहे खुदा में माल खर्च करने से कमी नहीं आती बल्कि इज़ाफ़ा ही होता है, तंगदस्ती बुख़्ल की वज्ह से आती है। फ़रमाने मुस्तफा ﷺ "बुल मत करो ! वरना तुम पर तंगी कर दी जाएगी। नफ़्सानी ख्वाहिशात के नुक्सानात और इस के उख्रवी अन्जाम का बार बार मुतालआ कीजिए, अल्लाह पाक पर भरोसा रखने में अपने यक़ीन को मजीद पुख्ता करे कि जिस रब ने मेरा मुस्तकबिल बेहतर बनाया है वोही रब मेरे बच्चों के मुस्तकबिल को भी बेहतर बनाने पर क़ादिर है।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  बुख़्ल के बारे में तफ्सीली मालूमात के लिए किताब “इहयाउल उलूम" जिल्द 3, सफ़हा 698 ता 819 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 139 📚*


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*❝ ❹❷ ....खुद पसन्दी (Self esteem) ❞*
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࿐   *खुद पसन्दी की तारीफ़ :-* अपने कमाल (मसलन इल्म या अमल या माल) को अपनी तरफ़ निस्बत करना और इस बात का खौफ़ न होना कि येह छिन जाएगा, येह खुद पसन्दी है।

࿐   *वज़ाहत :-*  जो शख्स इल्म, अमल और माल वगैरा के जरीए अपने नफ़्स में कमाल जानता हो उस की तीन हालतें हैं : (1) उसे कमाल के कम या ख़त्म हो जाने का खौफ है तो येह खुद पसन्दी नहीं। (2) वोह इस के कम या ख़त्म होने का ख़ौफ़ नहीं रखता बल्कि कमाल से इस तौर पर खुश होता है कि येह अल्लाह पाक की अता है, इस में मेरा कोई कमाल नहीं, येह भी खुद पसन्दी नहीं। (3) उसे कमाल के कम या ख़त्म होने का खौफ़ नहीं होता बल्कि कमाल पर खुश और मुतमइन होता है और उस की खुशी की वज्ह येह नहीं होती कि येह अल्लाह पाक की इनायत है बल्कि वोह इस लिए खुश होता है कि येह उस का वस्फ़ (यानी खूबी) है। येह खुद पसन्दी है। फिर जब उस के दिल पर इस बात का गल्बा होगा कि येह अल्लाह पाक की नेमत है, वोह जब चाहेगा सल्ब फ़रमा लेगा (यानी छीन लेगा) तो खुद पसन्दी ख़त्म हो जाएगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 141 📚*


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         ❝  ❞
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    *❝  खुद पसन्दी (Self esteem) ❞*

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࿐  *“खुद पसन्दी” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) खुद पसन्दी ना जाइज़ और गुनाह है। (2) अगर अल्लाह पाक की नेमत के एतिराफ़ और इताअत व इबादत पर मसर्रत और उस के अदाए शुक्र के लिए नेकियों का ज़िक्र किया जाए तो जाइज़ है। (3) जब खुद पसन्दी की अलामात ज़ाहिर होने लगें तो अल्लाह पाक के एहसानात को याद करना फ़र्ज़ है जब कि तमाम आम अवकात में ऐसा करना मुस्तहब है।

࿐  आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :-* वोह तुम्हें खूब जानता है तुम्हें मिट्टी से पैदा किया और जब तुम अपनी माओं के पेट में हम्ल थे तो आप अपनी जानों को सुथरा न बताओ वोह खूब जानता है जो परहेज़गार हैं।

࿐   येह आयत उन लोगों के बारे में नाज़िल हुई जो नेकियां करते और अपने अमलों की तारीफ़ करते थे और केहते थे हमारी नमाजें, हमारे रोजे, हमारे हज, इस पर अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया कि ऐ ईमान वालों! तुम फ़ख़्रिया तौर पर अपनी नेकियों की तारीफ़ न करो।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 142 📚*


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         ❝  ❞
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     *❝  खुद पसन्दी (Self esteem) ❞*

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࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-*  तीन चीजें हलाकत में डालने वाली हैं (1) बुख़्ल जिस की पैरवी की जाए। (2) नफ़्सानी ख्वाहिश जिस की इताअत की जाए और (3) इन्सान का खुद को अच्छा जानना।

࿐   *“खुद पसन्दी” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-*  (1) फ़न व गुरूर (2) मालो दौलत की महब्बत।

࿐  *“खुद पसन्दी” से बचने के लिए ::-*  हर वक़्त अल्लाह पाक के एहसानात को याद रखिए और उस का शुक्र अदा करते रहिए, एक सहाबए किराम और दीगर बुजुर्गाने दीन की आजिज़ी व इन्केसारी और उन के अल्लाह पाक की खुफ़िया तदबीर से डरने के वाकेआत का मुतालआ कीजिए और उन्हें जेह्न में बिठाइए। ان شاء الله खुद पसन्दी का मादा जड़ से कट जाएगा। मौत और क़ब्रो आखेरत को कसरत से याद कीजिए, ان شاء الله दुन्या की फ़ानी चीज़ों पर इतराने से बचने का ज़ेह्न बनेगा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 143 📚*


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    *❝  ❹❸ लानत करना ❞*

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࿐   *"लानत करने” का माना :-*  रेहमते इलाही से दूर हो जाने की बद दुआ करना लानत करना है।

࿐  *“लानत करने” की चन्द मिसालें :-*  इस तरह केहना कि जैद पर लानत ऐ अल्लाह ! जैद पर लानत कर ज़ैद को अपनी रेहमत से दूर कर दे वगैरा।

࿐  *“लानत” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) फ़र्दे मुअय्यन यानी किसी शख्स को खास कर के लानत करना (मसलन यूं कहे : "जैद पर लानत" येह) जाइज़ नहीं। (2) फ़तावा रज़विया में है कि लानत बहुत सख्त चीज़ है, हर मुसलमान को इस से बचाया जाए बल्कि लईन काफिर पर भी लानत जाइज नहीं जब तक उस का कुफ्र पर मरना कुरआनो हदीस से साबित न हो। (3) वस्फे आम मज़मूम (यानी ऐसी बुरी सिफ़त जिस में कोई फ़र्दे खास न हो, इस सिफ़त) के साथ लानत जाइज़ है मसलन येह केह सकते हैं कि काफ़िरों पर या झूटों पर लानत मगर इस की आदत न डाली जाए। (4) मच्छर, हवा जमादात (यानी बेजान चीज़ों) और हैवानात पर भी लानत ना जाइज़ है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 144 📚*


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                *❝  लानत करना ❞*

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࿐   आयते मुबारका - *तर्जमए कन्जुल ईमान :* अपने रब से दुआ, करो गिड़ गिड़ाते और आहिस्ता बेशक हद से बढ़ने वाले उसे पसन्द नहीं।

࿐   एक कौल के मुताबिक़ इस आयत में "हद से बढ़ने वालों" से मुराद वोह लोग हैं जो मुसलमानों के लिए बद दुआ करते और केहते हैं अल्लाह उन को ख़्वार करे, अल्लाह उन पर लानत करे।

࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-*  जब मेरी उम्मत छे चीज़ों को हलाल समझने लगेगी तो हलाकत में मुब्तला हो जाएगी : (1) एक दूसरे पर लानत करना, (2) शराब पीना, (3) रेशम का लिबास पहेनना, (4) गाने वाली औरतें रखना,(5) मर्दो का मर्दो पर और (6) औरतों का औरतों पर इक्तिफ़ा करना।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 145 📚*


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              *❝  लानत करना ❞*
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࿐   *“लानत" के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-* (1) जेहालत (इल्मे दीन से दूरी की वज्ह से बाज़ लोग लानत को मामूली खयाल करते हैं और उन्हें इल्म भी नहीं होता कि लानत करना शरअन ना जाइज़ और गुनाह है। (2) गुस्सा (गुस्से में जो ज़बान पर काबू नहीं रख पाते दूसरे गुनाहों के साथ लानत के गुनाह में भी मुब्तला हो जाते हैं)!

࿐   (3) बिना सोचे समझे बोलते रेहने की आदत (4) लड़ाई झगड़े (ऐसे मौके पर गाली गलोच के साथ बाज़ लोग एक दूसरे पर लानत भी करते हैं) (5) बद मज़हबों से मैल जोल रखना और उन के पास उठना बैठना (क्यूंकि बद मज़हबों की एहले बैते अतहार, सहाबए किराम رِضْوَانُ اللّٰهِ تَعَالٰی عَلَیْھِمْ اَجْمَعِیْن) और बुजुर्गाने दीन رَحِمَھُمُ اللّٰهُ السَّلَام पर लान तान करने की आदत होती है)।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 146 📚*


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               *❝  लानत करना ❞*

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࿐   *“लानत" के गुनाह से बचे रेहने के लिए :-*  इल्मे दीन हासिल कीजिए, बिल खुसूस ज़बान से होने वाले गुनाहों की मालूमात हासिल कीजिए क्यूंकि बहुत सारे गुनाह ज़बान से ही होते हैं के बोलने से पेहले तोलने यानी सोच समझ कर बात करने की आदत डालिए। गुस्से में बे काबू हो कर ज़बान का गलत इस्तेमाल करने के बजाए हुसूले सवाब के लिए गुस्सा पी जाने की कोशिश कीजिए। जब दिल में किसी के ख़िलाफ़ गुस्सा हो और उस पर लान तान को दिल चाहे तो फ़ौरन अपने आप को यूं डराइए कि अगर मैं गुस्से में आ कर किसी को बुरा भला कहूंगा और उस पर लान तान करूंगा तो जहन्नम का हक़दार क़रार पाउंगा कि येह गुनाह के जरीए गुस्सा ठन्डा करना हुवा,

࿐  और फ़रमाने मुस्तफा ﷺ है : जहन्नम में एक दरवाज़ा है उस से वोही दाखिल होंगे जिन का गुस्सा किसी गुनाह के बाद ही ठन्डा होता है। झगड़े मिटा कर मुसलमानों के साथ मिल जुल कर महब्बत के साथ रहिए, हदीस शरीफ़ में है "जो हक़ पर होते हुवे भी झगड़ा खत्म करे मैं उसे जन्नत के कनारे एक घर की जमानत देता हूं। सिर्फ आशिकाने रसूल की सोहबत इख़्तियार कीजिए और बद मज़हबों के साथ उठने बैठने से बचते रहिए।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  “लानत करने" के गुनाह के बारे में मजीद मालूमात के लिए "इहयाउल उलूम' जिल्द 3, सफ़हा 375 ता 385 और “फ़ज़ाइले दुआ" सफ़हा 188 ता 203 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 146 📚*


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        *❝  ❹❹...क़तए तअल्लुकी❞*
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࿐  *“क़तए तअल्लुकी" की तारीफ़ :-* शरीअत में जिन से सिला (नेक सुलूक) का हुक्म दिया गया है उन से तअल्लुक़ तोड़ना क़तए तअल्लुकी है।

࿐   *“कतए तअल्लुकी” की चन्द मिसालें :-* बिला इजाजते शरई अपने किसी रिश्तेदार से बात चीत और मिलना जुलना खत्म कर देना, या कादिर होने के बा वुजूद उस की हाजत पूरी न करना, किसी मुसलमान से बिला वज्हे शरई तअल्लुक ख़त्म कर देना वगैरा।

࿐  *कतए तअल्लुकी के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-*  (1) बिला वज्हे शरई तीन दिन से ज्यादा मुसलमानों से क़तए तअल्लुक हराम है। (2) कतए तअल्लुकी को मुतलकन हलाल समझना कुफ्र है। (3) *बद मज़हब बे दीन से हर किस्म का क़तए तअल्लुक फ़र्ज़ है।*

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 148📚*

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      *❝  क़तए तअल्लुकी ❞*
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࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :* वोह जो अल्लाह के अहद को तोड़ देते हैं पक्का होने के बाद और काटते हैं उस चीज़ को जिस के जोड़ने का खुदा ने हुक्म दिया और जमीन में फ़साद फैलाते हैं वोही नुक्सान में हैं।

࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :-*  किसी मुसलमान के लिए जाइज़ नहीं कि तीन दिन से ज्यादा अपने मुसलमान भाई से तअल्लुक तोड़े, जो तीन दिन से ज़्यादा तअल्लुक़ तोड़े और इसी हाल में मर जाए तो जहन्नम में जाएगा।

࿐  *“कतए तअल्लुकी” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-* (1) दुन्या की महब्बत (2) बुख़्ल (ऐसा आदमी दूसरों के साथ हुस्ने सुलूक से कतराता है कि कहीं मुझे उन पर खर्च न करना पड़ जाए।) (3) लड़ाई झगड़े (4) हसद (5) तकब्बुर (येह मरज़ मालदारों में ज्यादा पाया जाता है कि वोह गरीबों को अपने (Status) का न समझ कर मिलना जुलना कम बल्कि बाज़ अवकात ख़त्म कर देते हैं।) (6) दूसरे की इज्जते नफ़्स का ख़याल न करना मसलन झाड़ते रेहना या तन्ज़ करना। (7) इल्मे दीन की कमी (कि रिश्तेदारों और दीगर मुसलमानों के हुकूक का इल्म न हो, येह भी क़तए तअल्लुकी का सबब बनता है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 149📚*


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      *❝  क़तए तअल्लुकी ❞*
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࿐  *“कतए तअल्लुकी” से बचने के लिए :-*  मौत को कसरत से याद कीजिए, ان شاء الله दिल से दुन्या की महब्बत निकलेगी और गुनाहों से बचने का जेह्न बनेगा सिलए रेहमी के फ़ज़ाइल पढ़िए और सुनिए कतए तअल्लुक़ी की तबाहकारियों के बारे में गौर कीजिए। इस एहतिरामे मुस्लिम का जज्बा बेदार कीजिए, तन्ज़ और तन्कीद करने की आदत से पीछा छुड़ा लीजिए। अल्लाह पाक की अता पर नज़र रखिए और माल के हुकूक अदा कीजिए मसलन ज़कात अदा करना, सदक़ए फ़ित्र देना, ان شاء الله बुख़्ल के मरज़ का ख़ातिमा होगा, इल्मे दीन हासिल कीजिए ताकि जेहालत की वज्ह से क़तए तअल्लुकी के गुनाह में मुब्तला न हो जाएं एक तवाज़ोअ इख्तियार कीजिए और फ़न व गुरूर की बुरी आदत ख़त्म कीजिए।

࿐   *मदनी मश्वरा :-* एहतिरामे मुस्लिम का जज्बा पाने और कतए तअल्लुकी के मुतअल्लिक मुफीद मालूमात के लिए रिसाले “एहतिरामे मुस्लिम" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 149📚*


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            *❝  ❹❺....दय्यूसी  ❞*
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࿐  *दय्यूस की तारीफ :-*  वोह शख्स जो अपनी बीवी या किसी मेहरम (मसलन मां, बहन, बेटी) पर गैरत न खाए दय्यूस है।

࿐  *"दय्यूसी” की चन्द मिसालें :-* कुदरत के बा वुजूद अपनी ज़ौजा, मां, बहन और जवान बेटी को गैर मेहरमों से पर्दा न करवाना उन्हें बे पर्दा गलियों, बाज़ारों और शॉपिंग सेन्टरों में जाने से न रोकना एक गैर मेहरम मुलाज़िमों, चौकीदारों, ड्रायवरों वगैरा से बे तकल्लुफ़ी और बे पर्दगी से मन्अ न करना वगैरा।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 151 📚*


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                *❝  दय्यूसी  ❞*

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࿐  *"दय्यूस” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-*  (1) : आला हज़रत, इमामे एहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं : दय्यूस सख्त अख़्बस फ़ासिक (है) और फ़ासिके मोलिन के पीछे नमाज़ मकरूहे तेहरीमी, उसे इमाम बनाना हलाल नहीं और उस के पीछे नमाज़ पढ़नी गुनाह और पढ़ी तो फेरना (यानी दोबारा पढ़ना) वाजिब। *(2)* अगर मर्द अपनी हैसिय्यत के मुताबिक़ मन्अ करता है और बे पर्दगी से रोकने के शरई तकाजे उस ने पूरे किए हैं और वोह (यानी औरतें) नहीं मानतीं तो इस सूरत में मर्द पर न कोई इल्ज़ाम और न वोह दय्यूस (है)।

࿐   *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :-* तीन शख्स जन्नत में नहीं जाएंगे : मां-बाप को सताने वाला और दय्यूस और मर्दानी वज्अ बनाने वाली औरत।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 151📚*


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             *❝  दय्यूसी  ❞*

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࿐  *“दय्यूसी” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्वाब :-* (1) इल्मे दीन से दूरी (2) दीन बेज़ार लोगों के साथ मैल जोल और उन के पास उठना बैठना (इस की वज्ह से जहां एक तरफ़ आदमी बे अमली का शिकार होता है वहीं उन दीन बेज़ार लोगों के पास उठने बैठने की नुहूसत से अकाइद बिगड़ने का भी शदीद खतरा रहता है।) (3) पर्दा करवाने में हिचकिचाना (यानी झिझक मेहसूस करना) (4) मुख़्तलिफ़ हीले बहाने (मसलन खानदानी रवाज को भी देखना पड़ता है बेटी अगर सादा और ब पर्दा होगी तो कोई रिश्ता नहीं भेजता वगैरा) (5) जदीद फ़ेशन का शौक़ और मगरिबी तेहज़ीब को पसन्द करना (6) अपनी बहन बेटियों वगैरा को ऐसे तालीमी इदारों में तालीम दिलवाना जहां मख्लूत तालीम (Co-education) राइज है । (7) : फ़िल्में ड्रामे देखना।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 152📚*


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                *❝  दय्यूसी  ❞*

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࿐  *“दय्यूसी” के गुनाह से बचने के लिए :-* इल्मे दीन हासिल कीजिए बिल खुसूस पर्दे के मुतअल्लिक दुरुस्त इस्लामी नज़रिया और बुन्यादी अहकाम सीखिए जहां हिचकिचाहट हो वहां नफ़्स पर जब्र कर के ज़रूर पर्दा करवाइए कि ऐसी सूरत में ज़्यादा सवाब मिलने की उम्मीद है। मन्कूल है : "अफ़्ज़ल तरीन इबादत वोह है जिस में मशक्कत ज़्यादा हो।,  जाइज़ और ज़रूरी तालीम के लिए सिर्फ उन्हीं इदारों का इन्तेखाब कीजिए जहां शरई पर्दे की रिआयत की जा सके, गुनाहों भरे चैनल देखने, फ़िल्मों ड्रामों के जरीए आंखों को हराम से पुर करने से खुद भी बचिए और घर वालों को भी बचाइए, बुरी सोहबत से कनारा कशी इख़्तियार कीजिए और दावते इस्लामी के मदनी माहोल से वाबस्ता हो जाइए  ان شاء الله  दिल में गुनाहों से नफ़रत पैदा होगी, नेकियां करने और आखेरत बेहतर बनाने का जज़्बा बढ़ेगा।

࿐  *मदनी मश्वरा :* किताब "पर्दे के बारे में सवाल जवाब" तमाम इस्लामी भाई भी मुतालआ कर लें ताकि मालूम हो कि किस का किस से और कितना पर्दा है और फिर अपनी ज़ौजा और महारिम इस्लामी बहनों को इस के मुताबिक़ पर्दा करवाएं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 152 📚*


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        *❝ ❹❻... बे-पर्दगी ❞*

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࿐  *“बे-पर्दगी” का माना :-* शरई पर्दा न करना बे पर्दगी है।

࿐  *“बे-पर्दगी” की चन्द मिसालें :-*  "आज़ाए सत्र" यानी जिन आज़ा का छुपाना शरअन ज़रूरी है उन को न छुपाना जैसे बाज़ लोग ऐसी छोटी नीकर पहेनते हैं जिस से घुटने खुले होते हैं, *याद रखिए !* मर्द के लिए नाफ़ से ले कर घुटनों तक का हिस्सा औरत है यानी इस का छुपाना फ़र्ज़ है, घुटने भी इस में दाखिल हैं लेहाज़ा मर्द को ऐसा लिबास पहेनना जिस से घुटने खुले हों येह बे पर्दगी है और औरत के लिए सर से ले कर पाउं के गिट्टों के नीचे तक जिस्म का कोई हिस्सा भी मसलन सर के बाल या बाजू या कलाई या गला या पेट या पिन्डली वगैरा अजनबी मर्द (यानी जिस से शादी हमेशा के लिए हराम न हो) पर बिला इजाजते शरई ज़ाहिर करना या के ऐसा बारीक लिबास पहेनना जिस से बदन की रंगत झलके या ऐसा चुस्त लिबास पहेनना जिस से किसी उज्व की हैअत (यानी शक्लो सूरत या उभार वगैरा) ज़ाहिर हो या, दूपट्टा इतना बारीक ओढ़ना कि बालों की सियाही (कालक) चमके येह सब भी बे पर्दगी है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 154 📚*


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              *❝  बे-पर्दगी  ❞*
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࿐  *“बे-पर्दगी” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-*  (1)  बे-पर्दगी हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) सिरे से पर्दे की फ़र्जिय्यत का ही इन्कार कुफ्र है। (3) औरत का हर अजनबी बालिग मर्द से पर्दा है! (4) इस में उस्ताद व गैर उस्ताद, आलिम व गैर आलिम, पीर सब बराबर हैं।

࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :-* और अपने घरों में ठेहरी रहो और बे पर्दा न रहो जैसे अगली जाहिलिय्यत की बे पर्दगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 155 📚*


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              *❝  बे-पर्दगी  ❞*
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࿐   *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* जहन्नमियों की दो किस्में ऐसी हैं जिन्हें  मैं ने (अपने ज़माने में) नहीं देखा (बल्कि वोह मेरे बाद वाले ज़माने में होंगी) (1) वोह लोग जिन के पास गाय की दुम की तरह कोड़े होंगे जिन से वोह लोगों को (नाहक) मारेंगे। (2) वोह औरतें जो लिबास पहेनने के बा वुजूद नंगी होंगी, माइल करने वाली और माइल होने वाली होंगी, उन के सर मोटी ऊंटनियों के कोहानों की तरह होंगे (यानी राह चलते वक़्त शर्म से सर नीचा न करेंगी, ऊंट की कोहान की तरह उन के सर बे हयाई से उंचे रहा करेंगे), येह जन्नत में न जाएंगी और न उस की खुश्बू पाएंगी हालांकि उस की खुश्बू बहुत दूर से आती होगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 155 📚*


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              *❝  बे-पर्दगी  ❞*
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࿐  *“बे पर्दगी” की आफत में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-* (1) इल्मे दीन से दूरी (बाज़ लोग इस वज्ह से भी बे पर्दगी करने के गुनाह में मुब्तला हो जाते हैं कि उन्हें मालूमात नहीं होती कि शरअन किस से और कितना पर्दा है। (2) फेशनेबल और दीन बेज़ार लोगों के साथ मेल जोल और उन के पास उठना बैठना (इस की वज्ह से जहां एक तरफ़ आदमी बे अमली का शिकार होता है वहीं उन दीन बेज़ार लोगों के पास उठने बैठने की नुहूसत से अकाइद बिगड़ने का भी शदीद खतरा रहता है) (3) पर्दा करने में हिचकिचाना (यानी झिझक मेहसूस करना) (4) मुख़्तलिफ़ हीले बहाने (मसलन ख़ानदानी रवाज को भी देखना पड़ता है, सादा और बा पर्दा लड़की के लिए कोई रिश्ता नहीं भेजता वगैरा) (5) जदीद फेशन का शौक़ और मग़रिबी तेहज़ीब (पश्चिमी संस्कृति) को पसन्द करना (6) मख्लूत तालीम (Co-Education)|

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 156 📚*


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              *❝  बे-पर्दगी  ❞*

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࿐  *“बे पर्दगी” के गुनाह से बचने के लिए :-* इल्मे दीन हासिल कीजिए, बिल खुसूस पर्दे के मुतअल्लिक़ दुरुस्त इस्लामी नज़रिया और बुन्यादी अहकाम सीखिए, ان شاء الله बे शुमार शुकूक व शुब्हात का भी ख़ातिमा हो जाएगा, जहां हिचकिचाहट हों वहां नफ़्स पर जब कर के ज़रूर पर्दा कीजिए कि ऐसी सूरत में ज़्यादा सवाब मिलने की उम्मीद है। मन्कूल है “अफ़्ज़ल तरीन इबादत वोह है जिस में मशक्कत ज़्यादा हो", बे पर्दगी के सबब क़ब्रो आखेरत में होने वाले अज़ाबात का मुतालआ कीजिए, जाइज़ और ज़रूरी तालीम के लिए सिर्फ उन्हीं इदारों का इन्तिख़ाब कीजिए जहां शरई पर्दे की रिआयत की जा सके।

࿐  *मदनी मश्वरा :-* पर्दे के मुतअल्लिक दुरुस्त इस्लामी नज़रिया और इस के तफ्सीली अहकाम जानने के लिए “पर्दे के बारे में सवाल जवाब" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 156 📚*


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       *❝ ❹❼ बद निगाही ❞*

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࿐   *“बद निगाही” का माना :-*  जिस को देखना जाइज़ नहीं कस्दन (यानी जान बूझ कर) उसे देखना बद निगाही है।

࿐  *“बद निगाही” की चन्द मिसालें :-*  बे-पर्दा अजनबी औरतों को देखना या पर्दादार औरत को शेहवत के साथ देखना, इसी तरह अम्रद (यानी खूब सूरत लड़के) को शेहवत से) देखना, मर्द ने ऐसा बारीक लिबास पहना हो जिस से उस की पर्दे की जगहें यानी नाफ़ के नीचे से ले कर घुटने के नीचे तक किसी हिस्से की रंगत चमकती हो तो उस को देखना भी बद निगाही है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 157 📚*


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            *❝  बद निगाही ❞*

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࿐  *“बद निगाही” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-*  (1) बद निगाही हराम, और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) (मर्द व औरत में से) हर एक का दूसरे की औरत (यानी पर्दे की जगह) को देखना कतई हराम है और इसी तरह गैर जाए सत्र (यानी पर्दे की जगह के इलावा) को देखना भी हराम है जबकि शेहवत से अम्न न हो। (3) अम्रद (यानी खुब सुरत) लडके को शेहवत से देखना भी हराम है।

࿐  *नोट :-*  वाजेह रहे कि (जिस को देखना हराम है, उस पर) कस्दन (यानी जान बूझ कर) डाली जाने वाली पेहली नज़र भी हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 158 📚*


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           *❝  बद निगाही ❞*

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࿐  *आयते मुबारका > तर्जमए कन्जुल ईमान :-* मुसलमान मर्दो को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें येह उन के लिए बहुत सुथरा है बेशक अल्लाह को उन के कामों की खबर है।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-* तुम या तो अपनी निगाहें नीची रखोगे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करोगे और अपने चेहरों को सीधे रखोगे या तुम्हारी शक्लें बिगाड़ दी जाएंगी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 158 📚*

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            *❝  बद निगाही ❞*

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࿐  *“बद निगाही” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-* (1) इल्मे दीन से दूरी (बहुत लोगों को इस का पता ही नहीं होता कि शरअन किस का किस से पर्दा है चुनान्चे वोह इस दीनी मस्अले से जाहिल होने की वज्ह से अपनी नज़रों की हिफाज़त नहीं कर पाते मसलन आम तौर पर मुंह बोली बहन को हकीकी बहन की तरह समझ कर पर्दे के मुआमले में एहतियात नहीं की जाती, इसी तरह चचाज़ाद, मामूज़ाद और खालाज़ाद वगैरा के दरमियान भी शरई पर्दे को गैर ज़रूरी ख़याल किया जाता है हालांकि येह सब गैर मेहरम हैं और शरअन इन से भी पर्दा फ़र्ज़ है) (2) तफरीह गाहों में घूमना (आम तौर पर ऐसी जगहों में बे पर्दा औरतों की कसरत होती है जिस की वज्ह से नज़र की हिफ़ाज़त मुश्किल हो जाती है)। (3) इन्टरनेट और सोश्यल मीडिया का इस्तेमाल (4) फ़िल्में ड्रामे देखना (5) मख्लूत तालीम (6) डान्स क्लब और स्वीमिंग पूल वगैरा में जाना (7) जदीद (Modern) फेशन और मगरिबी तेहज़ीब को पसन्द करना (8) परेशान नज़री (यानी राह चलते वक़्त और गाड़ी में सफर के दौरान बिला ज़रूरत इधर उधर देखना और साइन बोर्ड वगैरा पर नज़र डालते रेहना। (9) अपने घर के बर आमदों से बिला ज़रूरत बाहर नीज़ किसी और के दरवाजों वगैरा से घरों के अन्दर झांकना।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 159 📚*

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          *❝  बद निगाही ❞*

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࿐   *“बद निगाही” की आफ़त से बचने के लिए :-* इल्मे दीन हासिल कीजिए आंखों का कुफ़्ले मदीना लगाते हुने अक्सर निगाहें नीची रखिए, राह चलते वक़्त और दौराने सफ़र जब ड्रायविंग न कर रहे हों तो बिला ज़रूरत इधर उधर देखने, साइन बोर्ड पढ़ने नीज़ घर के बर आमदों से बाहर झांकने वगैरा से परहेज़ कीजिए आंखों की हिफ़ाज़त के फ़ज़ाइल और बद निगाही के अज़ाबात का मुतालआ कीजिए, मोबाइल और इन्टरनेट का इस्तेमाल सिर्फ ज़रूरत के मुताबिक़ और वोह भी शरीअत के दाइरे में रेह कर कीजिए, नीज़ इन के इस्तेमाल के मुतअल्लिक शरई एहतियातें भी सीखिए। गुनाहों भरे चैनल देखने, फ़िल्मों ड्रामों के जरीए आंखों को हराम से पुर करने से हमेशा बचते रहिए अगर आंख बहेक जाए और बद निगाही कर बैठे तो फ़ौरन नज़र वहां से हटा लीजिए, मुमकिन हो तो खुद वहां से हट जाइए और सच्चे दिल से अल्लाह पाक की बारगाह में तौबा भी कीजिए। अगर मर्द के साथ ऐसा हो तो अव्वल आख़िर दुरूद शरीफ़ के साथ येह दुआ पढ़िए :

اللّٰھُمَّ اِنِّى اَعُوْذُبِکَ مِنْ فِتْنَةِ النِّسآءِ وَعَذَابِ الْقَبْر (1)

*मदनी मश्वरा :-*  बद निगाही के मुतअल्लिक़ तफ़्सीली मालूमात के लिए किताब "नेकी की दावत" सफ़हा 309 ता 325 और रिसाला "कौमे लूत की तबाहकारियां" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 158 📚*

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               *❝  ❹❽ मुदाहनत  ❞*

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࿐  *“मुदाहनत” की तारीफ़ :-*  बुराई (यानी शरीअत के खिलाफ कोई काम) देखे और इस को रोकने पर कादिर हो लेकिन किसी का लेहाज़ करते हुवे न रोके या दीन के मुआमले की ज़्यादा परवाह न करने की वज्ह से उस को न रोके तो येह मुदाहनत है।

࿐  *“मुदाहनत” के मुतअल्लिक मुखतलिफ़ अहकाम :-* (1) मुदाहनत हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) अगर गालिब गुमान येह है कि येह उन (यानी शरीअत के ख़िलाफ़ काम करने वालों) से कहेगा तो वोह इस की बात मान लेंगे और बुरी बात से बाज़ आ जाएंगे तो اَمْر بِالْمَعْرُوْف (यानी नेकी की दावत देना) वाजिब है इस को (बुराई रोकने से) बाज़ रेहना जाइज़ नहीं और अगर गुमाने गालिब येह है कि वोह तरह तरह की तोहमत बांधेगे और गालियां देंगे या मालूम है कि वोह इसे मारेंगे और येह सब्र न कर सकेगा या इस की वज्ह से फ़ितना ओ फ़साद पैदा होगा, आपस में लड़ाई ठन जाएगी तो तर्क करना (यानी बुराई से मन्अ न करना) अफ़ज़ल है। (3) जो बुराई रोकने पर कादिर न हो उसे चाहिए कि बुराई को कम से कम दिल में ज़रूर बुरा जाने।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 161 📚*

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              *❝ मुदाहनत  ❞*

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࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :* जो बुरी बात करते आपस में एक दूसरे को न रोकते ज़रूर बहुत ही बुरे काम करते थे।

࿐   हदीस शरीफ़ में है कि जब बनी इसराईल गुनाहों में मुब्तला हुवे तो उन के उलमा ने पेहले तो उन्हें मन्अ किया, जब वोह बाज़ न आए तो फिर वोह उलमा भी उन से मिल गए और खाने पीने उठने बैठने में उन के साथ शामिल हो गए उन की इसी ना फ़रमानी और सरकशी का येह नतीजा हुवा कि अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद और हज़रते ईसा عَلَیْھِمَا الصَّلٰوةُ وَالسَّلَام की ज़बान से उन पर लानत उतारी। इस से मालूम हुवा कि बुराई से लोगों को रोकना वाजिब है और (कुदरत के बा वुजूद) गुनाह से मन्अ करने से बाज़ रेहना सख्त गुनाह है।

࿐  *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :-*  उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है! मेरी उम्मत में से बाज़ लोग अपनी कब्रों से बन्दर और खिन्जीर की शक्ल में उठेंगे, येह वोह लोग होंगे जिन्हों ने गुनहगारों के साथ तअल्लुकात रखे और कुदरत रखने के बा वुजूद उन्हें गुनाहों से मन्अ न किया।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 162 📚*

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              *❝  मुदाहनत  ❞*

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࿐  *“मुदाहनत” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-* (1) जेहालत (2) माल की तम्अ (मसलन किसी सेठ साहिब या अमीर आदमी की जानिब से नज़राने आते हों तो उसे गुनाह करते देख कर कुदरत के बा वुजूद महज़ इस लिए मन्अ न करना कि इस की तरफ़ से इनायात बन्द हो जाएंगी) (3) मुरव्वत (बाज़ अवकात जाती दोस्ती या किसी और वज्ह से बुराई करने वाले का लेहाज़ करते हुवे कुदरत के बा वुजूद उसे बुराई से मन्अ नहीं किया जाता) (4) सुस्ती (5) बुरी सोहबत!

࿐  (6) दुन्यवी अगराज़ (जैसे बाज़ दफ़्आ किसी हुकूमती ओहदेदार या किसी बड़ी शख्सिय्यत से ज़ाती काम निकलवाना मसलन इस के जरीए बेटे को नौकरी लगवाना होता है तो इसे गुनाहों में मुलव्वस देख कर बा वुजूदे कुदरत चश्मपोशी से काम लेना ताकियेह नाराज़ न हो जाए वरना मतलूबा काम रुक जाएगा) (7) खुशामद (क्यूंकि खुशामद करने वाला दूसरों की झूटी तारीफें करता रहता है और गुनाह से रोकने पर कुदरत के बा वुजूद इस से मन्अ नहीं करता बल्कि बाज़ दफ़्आ गुनाह वाले काम को ही معاذ الله अच्छाइयों में शुमार कर डालता है) 8.) हुब्बे जाह (यानी शोहरत व इज्जत की ख्वाहिश, ऐसा शख्स शोहरत व इज्जत में कमी आने के ख़ौफ़ से मुदाहनत में मुब्तला हो जाता है)। 

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 163 📚*

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               *❝  मुदाहनत  ❞*

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࿐  *“मुदाहनत” के गुनाह से बचे रेहने के लिए :-*  बुजुर्गाने दीन के वाकेआत पढ़िए और देखिए कि वोह हज़रात नेकी की दावत देने और बुराई से मन्अ करने में किसी मलामत करने वाले की मलामत की परवाह नहीं करते थे ان شاء الله नेकी की दावत देने और बुराई से मन्अ करने का जज्बा पैदा होगा।, नेकी की दावत देने और बुराई से मन्अ करने के फ़ज़ाइलो फ़वाइद और उस काम को तर्क कर देने के नुक्सानात का मुतालआ कीजिए और उस के अहकाम व मसाइल भी सीख लीजिए, कनाअत इख़्तियार कीजिए और दूसरों की जेब पर नज़र रखने के बजाए तवक्कुल इख़्तियार कीजिए।, क़ियामत की हौलनाकियों और जहन्नम के   खौफ़नाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि मुदाहनत के सबब उन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा! 


࿐  *मदनी मश्वरा :-* नेकी की दावत के फ़ज़ाइलो फ़वाइद और इस बारे में तफ़्सीली मालूमात के लिए किताब "नेकी की दावत" का मुतालआ कीजिए।


*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 163 📚*

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              *❝  ❹❾ गाली देना  ❞*

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࿐ *“गाली” की तारीफ :-*  इन्सान की इज़्ज़त के बारे में ऐसी बात केहना जो उसे ऐबदार करे।

࿐ *“गाली देने" की चन्द मिसालें :-* किसी को, फ़ासिक, फ़ाजिर, अहमक बदकार वगैरा केहना। 

࿐  *“गाली देने” के मुतअल्लिक मुख़्तलिफ़ अहकाम :-* (1) अल्लाह तआला को गाली देना कुफ्र है ख्वाह सन्जीदगी में दे या मज़ाक में, खुशी से दे या गुस्से में। (2) मुसलमान को बिला वज्हे शरई गाली देना सख्त हराम है। (3) बाज़ गालियां तो किसी वक़्त हलाल नहीं हो सकती और उन का देने वाला सख्त फ़ासिक और सल्तनते इस्लामिया में 80 कोड़ों का मुस्तहिक होता है, मसलन औरत को ज़ानिया केहना वगैरा। (4) दहर (ज़माने), सफ़ेद मुर्ग, हवा और बुखार को गाली देना मन्अ है।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 165 📚*

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               *❝  गाली देना  ❞*

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࿐  *आयते मुबारका - तर्जमए कन्जुल ईमान :* अल्लाह पसन्द नहीं करता बुरी बात का एलान करना मगर मज़लूम से और अल्लाह सुनता जानता है। 

         एक क़ौल के मुताबिक़ आयते मुबारका में "बुरी बात के एलान" से मुराद गाली देना है यानी अल्लाह तआला इस बात को पसन्द नहीं करता कि कोई किसी को गाली दे।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ :-*  मुसलमान को गाली देने वाला उस शख्स की मानिन्द है जो अन करीब हलाकत में जा पड़ेगा।

࿐  *गाली देने" के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-* (1)  गुस्सा (2) लड़ाई झगड़ा (3) बुरी सोहबत (4) फ़िल्में ड्रामे देखना (5) शराब नोशी (6) जेहालत (7)  खौफे खुदा की कमी।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 166 📚*

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              *❝  गाली देना  ❞*•

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࿐  *“गाली देने" के गुनाह से बचे रहने के लिए :-* इल्मे दीन हासिल कीजिए, ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगा लीजिए कि गाली गलोच और इस के इलावा बहुत सारे गुनाह ज़्यादा तर ज़बान से ही होते हैं लेहाज़ा इसे काबू में रखना बहुत ज़रूरी है।, बे जा गुस्से की आदत अपने अन्दर से निकाल दीजिए बल्कि अफ़्वो दर गुज़र से काम लीजिए और गुस्सा पी जाने का मामूल बनाइए। अपने दिल में एहतिरामे मुस्लिम का जज्बा बेदार कीजिए और सब के साथ प्यार महब्बत के साथ पेश आइए, लड़ाई झगड़े बिल्कुल मत कीजिए। 

࿐  *मदनी मश्वरा :-* गुफ़्तगू के आदाब और ज़बान से होने वाले मुतअद्दद गुनाहों की मालूमात के लिए  रिसाले "खामोश शेहज़ादा" और "मीठे बोल"  किताब “जन्नत की दो चाबियां" का मुतालआ (Reading) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 166 📚*

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         *❝  ❺⓿  फोहशगोई  ❞*

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࿐  *“फोहशगोई" की तारीफ :-* फोहश का लुगवी माना है बुरा और गन्दा कौलो फेल। लोगों के साथ बात करने में जिन उमूर को बुरा समझा जाता है उन को साफ़ और वाज़ेह लफ़्ज़ों में बयान कर देना फोहश गोई है।'

࿐ *"फोहश गोई" के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) फोहश गोई गुनाह (3) और जहन्नम में ले जाने वाला काम है, (2) बेहतर येह है कि अगर मजबूरन किसी ऐसी बात का ज़िक्र करना पड़े (मसलन इलाज के लिए तबीब से कोई बात करनी है) तो वाज़ेह अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करने के बजाए इशारतन छुपे लफ़्ज़ों में बयान करे! (3) औरतों का ज़िक्र भी इशारतन करना अच्छा समझा जाता है लेहाज़ा येह न कहा जाए कि तुम्हारी बीवी ने येह बात कही बल्कि येह कहा जाए कि घर में यूं कहा गया है या बच्चों की अम्मी ने येह कहा,  (4) जिस शख्स में कुछ उयूब हों जिन से वोह शरमाता हो, उन्हें वाजेह अल्फ़ाज़ में ज़िक्र नहीं करना चाहिए जैसे कि बर्स या गन्ज की बीमारी और बवासीर बल्कि यूं केहना चाहिए कि उसे एक मरज़ है जिस के सबब वोह तक्लीफ़ में मुब्तला है!

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 168 📚*

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              *❝  फोहशगोई  ❞*

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࿐   *आयते मुबारका >*  कौमे लूत की बद आमालियों के बयान में इरशादे बारी तआला है : *तर्जमए कन्जुल ईमान :* क्या तुम मर्दो से बद फेली करते हो और राह मारते हो और अपनी मजलिस में बुरी बात करते हो।

࿐  तफ़्सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान में इस हिस्से "और अपनी मजलिस में बुरी बात करते हो" के तहत है : जो अक्लन व उर्फन कबीह व ममनूअ है जैसे गाली देना, फ़ोहश बकना, ताली और सीटी बजाना, एक दूसरे को कंकरियां मारना, रास्ता चलने वालों पर कंकरी वगैरा फेंकना, शराब पीना, तमस्खुर और गन्दी बातें करना, एक दूसरे पर थूकना वगैरा ज़लील अपआल व हरकात।

࿐   *फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ :-*  चार तरह के शख्स एहले जहन्नम की तक्लीफ़ में इज़ाफ़ा कर देंगे, वोह खोलते पानी और आग के दरमियान भागते फिरते और वैल व सुबूर (यानी हलाकत) मांगते फिरते होंगे, (उन चार में से) एक शख्स वोह होगा जिस के मुंह से खून और पीप बेह रहा होगा, जहन्नमी कहेंगे इस बद बख़्त को क्या हुवा कि हमारी तक्लीफ़ में इज़ाफ़ा किए देता है ? जवाब मिलेगा येह बद नसीब ख़बीस और बुरी बात की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर लज्जत उठाता था।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 169 📚*

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             *❝  फोहशगोई  ❞*

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࿐  *“फोहश गोई" के गुनाह में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-* (1) इल्मे दीन से दूरी (2) मज़ाक मस्ख़री की आदत (3) फुजूल गोई (4) गुस्सा (5) लड़ाई झगड़ा (6) बुरी सोहबत (7) फ़िल्में ड्रामे देखना

और गाने सुनना। 

࿐  *“फोहश गोई” के गुनाह से बचे रेहने के लिए :-*  एक इल्मे दीन हासिल कीजिए, बिल खुसूस गुफ़्तगू की सुन्नतें और आदाब सीख लीजिए, जहन्नम के हौलनाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि फोहश गोई के सबब अगर इन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा, ज़बान का कुफ्ले मदीना लगा लीजिए कि फोहश गोई और इस के इलावा बहुत सारे गुनाह ज़्यादा तर ज़बान से ही होते हैं लेहाज़ा इसे काबू में रखना बहुत ज़रूरी है दिल में एहतेरामे मुस्लिम का जज्बा बेदार कीजिए और लड़ाई झगड़े मिटा कर हर एक के साथ प्यार और महब्बत के साथ रहिए, अफ़्वो दर गुज़र से काम लीजिए और बेजा गुस्सा हरगिज़ मत कीजिए कि इस के सबब इन्सान बहुत सारे गुनाहों में मुब्तला हो जाता है। दौराने गुफ्तगू ज़ौजा या बीवी केहने के बजाए मौकेअ की मुनासबत से बच्चों की अम्मी कहिए वगैरा, सन्जीदा और बा अमल आशिकाने रसूल की सोहबत इख्तियार कीजिए और बुरी सोहबत से हमेशा दूर रहिए।

࿐  *वज़ीफ़ा :-*  जिस की गन्दी बातों की आदत न जाती हो वोह *یَاحَمِیْدُ* नब्बे 90 बार (अव्वलो आखिर दुरूद शरीफ़) पढ़ कर किसी ख़ाली प्याले या ग्लास में दम कर दे, हस्बे जरूरत उसी में पानी पिया करे ان شاء الله फोहश गोई की आदत निकल जाएगी (एक बार का दम किया हुवा ग्लास बरसों तक चला सकते हैं। 

࿐  *मदनी मश्वरा :-* ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगाने और इस बारे में मुफीद मालूमात के लिए रिसाले "ख़ामोश शेहज़ादा” और “मीठे बोल" का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 170 📚*


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       *❝ ❺❶ राज फाश करना ❞*

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࿐   *राज फ़ाश करने की तारीफ :-*  किसी की ऐसी बात या काम या हालत का इल्म हो जिस को वोह दूसरों पर जाहिर करना नहीं चाहता तो उस को दूसरों पर जाहिर कर देना राजफाश करना है, चाहे वोह बात, काम या हालत अच्छी हो या बुरी।

࿐  *वजाहत :-* एक मुसलमान की बातें, काम और अहवाल दूसरे मुसलमान के पास अमानत हैं (लेहाज़ा इन का दूसरों के सामने इज़्हार उसे ना पसन्द हो तो ऐसी बात, काम या हालत को किसी और के सामने जाहिर कर देना खियानत है), किसी बात के अमानत होने के लिए येह शर्त नहीं कि केहने वाला सराहतन (यानी साफ़ लफ़्ज़ों में) मन्अ करे कि किसी को मत बताना बल्कि अगर वोह बात करते हुवे इस तरह इधर उधर देखे कि कोई सुन तो नहीं रहा, या जिस से बात करनी है उसे तन्हाई में ले जा कर बात करे तो येह भी बिल्कुल वाजेह करीना है कि येह बात अमानत है, इस की भी हिफाजत करना और किसी के सामने इस का इज़्हार न करना ज़रूरी है।, येह भी याद रहे कि जाहिर करना इशारे से भी हो सकता है, इस के लिए लिख कर बयान करना या ज़बान से केहना ही ज़रूरी नहीं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 171 📚*  

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        *❝ राज फाश करना ❞*

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࿐  *“राज़ फ़ाश करने” के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ अहकाम :-* (1) राज़ फ़ाश करना गुनाह और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। (2) राज फ़ाश करने में साहिबे राज़ (यानी जिस का राज़ है उस) को ईज़ा (यानी तक्लीफ़) होती है और ईज़ा देनी हराम है।

࿐  *आयते मुबारका >  तर्जमए कन्जुल ईमान :* ऐ ईमान वालो अल्लाह व रसूल से दगा न करो और न अपनी अमानतों में दानिस्ता खियानत।

     एक कौल के मुताबिक़ बाज़ लोग राज़ की बातें कुफ्फार को बता दिया करते थे, इस आयत में उन्हें राज़ फ़ाश करने से मन्अ किया गया।

࿐  *फरमाने मुस्तफा ﷺ:-*  दो शख्सों का बाहम बैठना अमानत है, उन में से किसी के लिए हलाल नहीं कि अपने साथी की ऐसी बात (लोगों के सामने) जाहिर करे जिस का ज़ाहिर होना उसे ना पसन्द हो।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 173 📚*

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        *❝ राज फाश करना ❞*

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࿐ *"राज फ़ाश करने” की आफत में मुब्तला होने के बाज अस्बाब :-* (1) बुग्जो कीना (2) हसद (3) लड़ाई झगड़े (4) चुगल खोरी (5) पेट का हलका होना (ऐसे लोग जब तक राज़ की बात दूसरों को बता नहीं लेते उन्हें चैन नहीं आता) (6) बगैर सोचे समझे बोलने की आदत!

࿐  *“राज फाश करने” की आफ़त से बचे रेहने के लिए :-* जबान का कुफ़्ले मदीना लगा लीजिए, किसी का राज़ दूसरों के सामने ज़ाहिर कर देने के दीनी और दुन्यवी नुक्सानात पर गौर कीजिए, मसलन येह अख़्लाक़ी पस्ती और घटियापन की अलामत है, इस से मुसलमानों में फ़साद फैलता और आपस की महब्बत मिटती है, राज़ फ़ाश कर देने वाले पर से लोगों का एतिमाद उठ जाता है, सलाम व मुसाफ़हा करने की आदत अपनाइए ان شاء الله दिल से बुग़ज़ो कीना दूर होगा, इस मौत और क़ब्रो आखेरत को कसरत से याद कीजिए, ان شاء الله दिल से हसद का खातिमा हो जाएगा।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  ज़बान के मुतअल्लिक़ गुनाहों की तफ्सीली मालूमात के लिए किताब "जन्नत की दो चाबियां" और "इहयाउल उलूम' जिल्द 3, सफ़हा 330 ता 500 का मुतालआ कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह 173 - 174 📚*

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          *❝ ❺❷ नोहा ❞*

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࿐  *“नौहा” की तारीफ़ :-*  मय्यत (यानी मरने वाले) के अवसाफ़ मुबालगे के साथ (यानी खूब बढ़ा चढ़ा कर) बयान कर के आवाज़ से रोना नौहा है, इसे बैन भी केहते हैं।

࿐  *“नौहा" के मुतअल्लिक मुख़्तलिफ़ अहकाम :-* (1) नौहा बिल इज्माअ हराम है। यूंही वावेला, वा मुसीबता (यानी हाए मुसीबत) केह के चिल्लाना! (2) गिरेबान फाड़ना, मुंह नोचना, बाल खोलना, सर पर ख़ाक डालना, सीना कूटना, रान पर हाथ मारना येह सब जाहिलियत के काम और हराम हैं।, (3) ऊंची आवाज़ से रोना मन्अ है और आवाज़ बुलन्द न हो तो इस में कोई हरज नहीं बल्कि हुजूरे अक्दस ﷺ ने अपने लख्ते जिगर हज़रते इब्राहीम رضی الله تعالی عنه की वफ़ात पर बुका फ़रमाया (यानी आंसू बहाए)!

࿐ *फ़रमाने मुस्तफा ﷺ :-* नौहा करने वालियों की क़ियामत के दिन जहन्नम में दो सफें बनाई जाएंगी, एक सफ़ जहन्नमियों की दाई तरफ़ और दूसरी बाई तरफ़ वोह जहन्नमियों पर यूं भोंकती रहेंगी जैसे कुत्ते भोंकते हैं।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 175📚*

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         *❝ ❺❷ नोहा ❞*
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࿐  *“नौहा” के गुनाह में मुब्तला होने के बाज़ अस्बाब :-* (1) जेहालत (2) बे सब्री (3) बुरी सोहबत (4) फुजूल बक बक करते रेहना (5) दुन्या की महब्बत का गलबा।

࿐   *“नौहा” के गुनाह से बचे रहने के लिए :-*  खुशी और गमी के तमाम मवाकेअ ऐन शरीअत के मुताबिक गुज़ारने का जेह्न बनाइए और इस बारे में इल्मे दीन भी हासिल कीजिए, मुसीबत के वक़्त सब्र करने की आदत डालिए, ऐसे मौके पर सब्र करने और ज़बान पर काबू रखने की ज़्यादा ज़रूरत होती है कि कहीं कोई ऐसी शिकायत या खुराफ़त मुंह से न निकल जाएं जिस से ईमान के लाले पड़ जाएं। जहन्नम के खौफनाक अज़ाबात का मुतालआ कीजिए और अपने नाजुक बदन पर गौर कीजिए कि नौहा करने के सबब इन में से कोई अज़ाब हम पर मुसल्लत कर दिया गया तो हमारा क्या बनेगा, पाबन्दे सुन्नत आशिकाने रसूल की सोहबत इख़्तियार कीजिए और बुरी सोहबत से हमेशा दूर रहिए, ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगा लीजिए यानी गुनाहों भरी बातें करने और फुजूल बोलते रेहने से हर दम बचिए, सिर्फ और सिर्फ ज़रूरत की बात वोह भी कम से कम अल्फ़ाज़ में करने की आदत डालिए।

࿐  *मदनी मश्वरा :-*  फौतगी में बके जाने वाले कुफ्रिया कलेमात और नौहा के मुतअल्लिक मुफीद मालूमात के लिए मायानाज़ तस्नीफ़ "कुफ्रिया कलेमात के बारे में सवाल जवाब" सफ़हा 489 ता 496 का मुतालआ (Reading) कीजिए।

*📬 गुनाहों के अज़ाबात सफ़ह - 176📚*

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      *📮 पोस्ट मुक़म्मल हुआ  الحمد لله* 
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