Wednesday, 1 December 2021

इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू


 


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  *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  इस्लाम ने पहले दिन से ही मर्दो के साथ साथ औरतों की तालीम व तरबियत पर खुसूसी तवज्जो दी है, रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ख्वातीने इस्लाम मुख्तलिफ मसाईल के इस्तिफ्सार के लिये पहुँचती और नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने अब्रे करम से उन की तिश्नगी (इल्म की प्यास) को बुझाते और उन के कल्ब व नज़र को सैराब फरमा देते थे।

࿐  *दुतराने इस्लाम की तड़प :-*  हज़रते अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि एक सहाबिया रदियल्लाहु अन्हा नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई। उन्होने आकर कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैका वसल्लमा! मर्द हज़रात को यह सुनेहरा मौका मयस्सर है (मिलता है) कि आप की बातें सुनते हैं और उन को याद करते हैं, जबकि हमें इतना वक्त नही मिलता ,उन को ज्यादा वक्त मिल रहा है और वे आप के फरामीन को ज्यादा याद कर रहे हैं, तो मै औरतों की तरफ से नुमाइंदा बन के आई हूँ, हमारा भी हक है और हमारा एक तकाजा है कि : " एक दिन हमें अता फरमा दें, यानी सात दिनों में से एक दिन हमें दे दें, उस दिन हम आप के पास हाज़िर रहें , जो रब ने आप को सिखाया है, आप उस में से हमें भी इनायत फरमाएं।...✍🏻

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*

     *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  उस खातूने इस्लामी ने रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने अपनी एक इल्मी तड़प का इजहार किया, जिस से पता चलता है कि उस वक्त दुख्तराने इस्लाम में किस कदर दीने इस्लाम की तड़प थी। आज मगरिब-ज़दा औरतें जो हुकूक माँगती हैं कि मर्दो को ये मिला है तो हमें भी ये मिले, उस में वो बातें अजीबो गरीब होती हैं जिन का वो मगरिब-ज़दा औरतें तकाज़ा कर रही होती हैं। उन के लिये थियेटर (सिनेमा हाल) खुल गए हैं, हमारे लिये भी होना चाहिए। 

࿐  मगर उस वक्त दुख्तराने इस्लाम सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में मौजूद हैं और कहती हैं कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैका वसल्लम! मर्दो को ये वक़्त मिल रहा है कि उन की आँखों के कटोरे आप के हुस्न के समन्दर से लबरेज़ हैं और मर्दो के कान आपके कीमती अल्फाज़ के फूलों को चुनने में मसरूफ रहते हैं और उनके कल्बो नजर पर आप के चेहरे की तजल्ली पड़ती है और आप के अल्फाज़ याद कर के वह अपने सीनों को मुनव्वर करते हैं, तो एक दिन हमें भी अता फरमा दें कि जो सिर्फ हमारा दिन हो, उस दिन हमारी क्लास लगे, आप इर्शाद फरमाएं और हम सुनें, हम याद करें और हम आगे पहुँचाएं। *ये खातूने इस्लामी की तड़प थी!*

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  *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की इस दरख्वास्त पे तवज्जो करते हुए फौरन फैसला फरमा दिया किः तुम फलां दिन और फलां जगह जमा हो जाओ, मुझे मेरे रब ने जो इल्म अता फरमाया है उस से तुम्हें भी हिस्सा अता फरमाउँगा- रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें बकाईदा वक्त दिया, बकाईदा उन्होंने (ख्वातीने इस्लाम ने) अपना हिस्सा माँगा और फिर उन को सिखाया। सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पहले भी उन पे निगाहे इनायत फरमा रहे थे, अब बतौरे खास उन के लिये दिन मुकर्रर / मोईय्यन हो गया वक्त को मोईय्यन कर दिया गया कि ये दिन तुम्हारी क्लास का दिन है, इस में तुम को आना है, इस में तुम्हारे सामने अल्लाह तआला के दिये हुए इल्म से मैं बयान करूँगा, तुम उसे याद कर के अपनी नस्ल तक उस इल्म को पहुँचाना।

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   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस सिलसिले के मुख़्तलिफ खुतबात हैं, जो सेकड़ों हैं जिनमें दुख़्तराने इस्लाम को बराहे-रास्त खिताब करते हुए उन को मुख़्तलिफ अहकाम पर मुत्तलेअ ( खबरदार) किया और उनकी इल्मी हैसियत की तामीर की वि ख्वातीन जो पहले आम सा इल्म रखती थी, उनमें से कोई मुफस्सिरा बन गई कोई मोहदिदसा बन गई और कोई फकीहा बन गई।

࿐  ये अंदाज़ उन ख्वातीने इस्लाम को अल्लाह तआला ने अता किया कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद से कब्ल जिन का नाम सिवाए जहालत व हिकारत के कुछ न था, रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को मुकाम भी दिया और अपनी तरफ से उलूम का एक निसाब भी अता फरमाया!

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*⚘​ दुखतराने इस्लाम का निसावे जिंदगी ⚘​*
 
࿐  इस सिलसिले में कुरआने मजीद की सूरह नंबर 60 (सूरह मुमतहाना) में एक खास अहद का जिक्र है जो औरतों से लिया गया कि वह इस पर बैत कर लें और नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से वादा करें कि सारी जिंदगी इस पर अमल करती रहेंगी और इस को अपनी जिंदगी का मुकम्मल निसाब बनाएंगी- कुरआने मजीद में है कि , मकुरआन सूरह नंबर 60 (सूरह मुमतहाना)

࿐  *तर्जुमाः* (ऐ नबी जब तुम्हारे हुजूर मुसलमान औरतें हाज़िर हो)

࿐  *(तर्जुमाः* इस पर बैत करने को)

࿐  *(तर्जुमाः* वह अल्लाह का शरीक न ठहराएंगी)

࿐ *(तर्जुमाः* और न चोरी करेंगी)

࿐ *(तर्जुमाः* और न बदकारी)

࿐  *(तर्जुमाः* और न अपनी औलाद को कत्ल करेंगी) मोमिनात ये अहद करें कि वो न शिर्क करेंगी, न चोरी करेंगी, न बदकारी करेंगी और न ही अपनी औलाद को कत्ल करेंगी।

࿐ *(तर्जुमाः* और न ये बोहतान लाएंगी जिसे अपने हाथों और पाउँ के दरमियान यानी मुजए विलादत में उठाए) इस का मतलब ये है कि उस वक्त कोई बाँझ औरत किसी का बच्चा उठा कर ले जाती और अपने खाविन्द (शोहर) से कहती कि ये मेरे यहाँ पैदा हुआ है (यानी जब शोहर सफर से लौट के आता तो वह किसी और के बच्चे को ये जाहिर करवाती कि मेने इस को जन्म दिया है और ये तेरा बच्चा है। इस तरह की वारदातें होती थीं, तो अल्लाह तआला ने फरमाया कि उन औरतों से बैत कर लो कि ऐसा काम इस्लाम की कोई बेटी न करे।

࿐  *(तर्जुमाः* और किसी नेक बात में तुम्हारी नाफरमानी न करेंगी) इस में हर चीज़ दाखिल होगी कि जो भी अच्छाई का काम है ये औरतें जो शौक से कलिमा पढ़ रही हैं उन से कहो कि तुम मारूफ (अच्छे काम) में मेरी मुखालिफत नही करोगी।

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*⚘​ दुखतराने इस्लाम का निसावे जिंदगी ⚘​*
 
࿐   *"मारूफ' में शामिल कामः* पइस सिलसिले में मोहदिसीन का कौल है कि 'मारूफ' में जो बैत हो रही थी तो वह ये थी कि : मर्ग के वक़्त चेहरा नही नोचेंगी, मातम नही करेंगी, हाय हाय नही करेंगी, गिरेबान नही फाड़ेंगी, और न ही चिल्लाएंगी, सारी जिंदगी अपने बालों को नंगा नही होने देंगी और अपने बाल बिखरने नही देंगी और उनके बाल किसी को नजर नही आएंगे।

࿐  इस पर वो बैत करें कि हमारे बाल किसी को नजर नही आएंगे और किसी की नजर हमारे बालों पर नही पड़ेगी। और सारी जिंदगी किसी गैर मेहरम से गुफ्तगू नही करेंगी यानी इस बात पर बैत करें कि वह किसी ना मेहरम से नहीं बोलेंगी।

📙 ( तफसीर कुरतुबी) 

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*⚘​ दुखतराने इस्लाम का निसावे जिंदगी ⚘​*
 
࿐   अगर ये ऐसी बात करने जाए तो फिर उन की बैत वसूल कर लो अगर ये बैत इस पर करना चाहती हैं ईमान की खातिर तो आप उन से बैत वसूल कर लो और फिर अल्लाह तआला से उन के गुनाहों की मगफिरत की दरख्वास्त भी करो। जो ख्वातीन इस पर बैत कर रही हैं. इस से पहले (मेरा फरमान पहुँचने से पहले) जो कुछ हो चुका है, तो ऐ मेहबूब सल्लल्लाहु अलैका वसल्लम! तुम मुझ से कहो तो मै उन को माफ कर दूंगा यानि जिस को माफ करना है वह कहता है कि मेहबूब तुम मुझ से कहो 
ए मेहबूब! आप उन के लिये इस्तिग़फार की दुआ अल्लाह 'तआला से करें और आप उन के लिये मगफिरत तलब करें। तो फिर क्या होगा?

࿐  (तर्जुमाः बेशक अल्लाह तआला बख्शने वाला, मेहरबान है)

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐   कुरआने मजीद हमारे घरों में मौजूद है, जिस वक्त कोई बाप अपनी बेटी को रुखसत करता हैं तो वह कुरआने मजीद के साये में रुखसत करता है. कुरआने मजीद जहेज़ में दिया जाता है, ये एक रस्म है जो अदा की जाती है। लेकिन हकीकत ये है कि जो कुरआने मजीद कहता है उस को समझा जाए, उस के मुताबिक अमल किया जाए। इस सूरह मुमतहाना की आयत नंबर 12 का जो तकाजा है उस को अगर कोई इस्लाम की बेटी सामने रखे तो उस की पूरी जिंदगी नूर से भर जाएगी।

࿐  थोड़ी सी उस को पाबंदी करना पड़ेगी, थोड़ा सा अपने आप को संभालना पड़ेगा। अगर औरत बिगड़ गई तो मुआशरे का सबसे बड़ा फितना है और शैतान का जाल है और उस को शैतान का जहरीला काँटा (या तीर) करार दिया गया और उस को फित्नों की माँ कह दिया गया।

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐   यही खातून मोमिना बनी और फिर उसने अपने आप को संभाला और कुरआने मजीद के साये में रही और हज़रते सय्यिदा आयशा सिद्दिका रदियल्लाहु अन्हा की तालीमात का जेवर पहना और हज़रते सय्यिदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की चादर के साये में रही तो फिर उस को सादिका कहा गया, उस को कानिता कहा गया, उस को साबिरा कहा गया, उस को साइमा कहा गया, उस को साजिदा कहा गया, उस को राकिआ कहा गया, यही नस्ले नो का बहुत बड़ा मजहर करार पाई. यही इंसानी नस्ल के निखार का बहुत बड़ा मम्बा और खेत करार पाई!

࿐  उसी से तकवा के फूल खिले,उसी से परहेजगारी की बहार आई, यही सालेहीन की माँ कहलाई, उसी की गौद को जन्नत के मनाज़िर में से एक मंजर कहा गया, उसी की तबियत को इंसान की बहुत बड़ी दर्सगाह करार दिया गया और उस एक औरत के शुस्ता/ एक्टिव किरदार को 70 सिद्दीकों से बड़ा किरदार करार दिया गया। क्योंकि उस ने कुरआने मजीद सीखा है और कुरआने मजीद को सुना हे. नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान को सुन के पूरी जिंदगी उन फरामीन ए मुस्तफा के जेरे साया बसर कर डाली है।

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐    एक तरफ आज का माहौल, मोबाईल का इस्तेमाल, उस में पेकेजेज और घंटों गैर मेहरमों से बातें, इधर कुरआने मजीद का फरमान है कि: मेंरे मेहबूब जिस ने तेरा कलिमा पढ़ा है वह जिंदगी भर गैर मेहरम से नही बोलेगी, उस की| किसी ना-मेहरम से बात नही होगी, उन से ये बैत वसूल करो और ये बैत लाजिम है।

࿐  आज (मआज अल्लाह) गैर मेहरम से बातें करने को गुनाह नही समझा जा रहा और फिर टाईम के साथ साथ अपना ईमान जाया किया जा रहा है। सय्यदे आलम सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने एक दुख्तरे इस्लाम को बताया कि घर में कैसे रहना है और बाहर कैसे निकलना है, अगर घर में किसी की मौत का वक्त है तो उस वक्त कैसे रहना है, अगर शादी का मोका हो तो फिर कैसे रहना है!

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࿐   आज (मआज अल्लाह) ये समझ लिया गया है कि शादी का मोका होता है तो उस मोके पे गोया एक मोमिना, मोमिना नही रहती, यानी उस को इस वक्त छुट्टी दे दी गई है। पता ही नही चलता है कि ईसायन या डायन है, या कोई मुसलमान खातून है। कोई यहुदिया है या कोई मोमिना। शादी की तकरीबात को अपनी जिंदगी से यूँ खारिज करार दिया जाता है गोया कि जो इस्लाम के तकाजे थे वो बाकी जिंदगी में थे, आज का दिन उस से बरी है। इस में छोटे बड़े सारे शरीक होते हैं। शरीअत की खिलाफवर्जी की लहर में अक्सर हाजी और नमाज़ी भी बह जाते हैं। मगर जिसे अल्लाह बचाए। और फिर जिस वक्त कोई मर्ग या अफसोस वगैरह का मोका होता है तो उस वक़्त जो बेसब्री और इस्लामी अहकामात की खिलाफवर्जी होती है, वह एक अलेहदा अलमिया है।

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐   आज इस वक़्त ये पैगाम वसूल करते हुए कुरआने मजीद के फरामीन हमारे सामने हैं और ध्यान हमारा उस की तरफ है अल्लाह तआला की मगफिरत की बारिश बरस रही है। और सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाहे नाज गुंबदे खिजरा से अपनी उम्मत को देख रही है, ऐसे में दुख्तराने इस्लाम को अहद भी करना है और हम सब को इन अहकामात को समझना भी है लेकिन सिर्फ कानों की लज्जत के लिये नही बल्कि ईमान के वकार के लिये और ईमान की बहार के लिये कि चलो जब तक पता नही था कोई और मामला था हांलाकि ये लाजिम है कि जिस वक़्त कोई बालिग हो जाए, मर्द हो या औरत, तो जैसे नमाज फर्ज है ऐसे ही जिंदगी गुजारने का रस्ता जानना भी फर्ज है, जो नहीं पूछती और नही जानती वह मुजरिमा होगी और जो मर्द नही पूछता वह भी मुजरिम होगा।

࿐  अब कुरआने मजीद और रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरामीन और जिन हस्तियों को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिखाया उन का किरदार मुखतसर सा पेश कर रहा हूँ ताकि मेरे लिये भी ज़रीया ए निजात बन जाए और आप सब के लिये भी ज़रीया ए निजात बन जाए।

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             *❝  जन्नती  महल  ❞*
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࿐   सब से मुश्किल वक़्त वो होता है जब किसी का बाप फौत हो गया हो, किसी की माँ फौत हो गई हो, किसी का बेटा फौत हो गया हो, उस वक़्त कुछ लोग कह देते हैं कि हमें कुछ न कहो जो कुछ हम से होता है वह हम करते हैं जो कुछ जुबान पे आता है वह कहते हैं, शिकवा और गिले रव से करते हैं, जिस से ये पता नहीं चलता कि उस ने रब को माना भी है या नही माना, उस ने जब बच्चा दिया था तो उसने कोई कीमत वसूल नही की थी, अब अगर उस के दुनिया से चले जाने पर अपने रब से झगड़े और शिकायत करे तो फिर अल्लह तआला नाराज हो जाएगा। और जहाँ सब का मंजर होगा तो अल्लाह तआला फरिश्तों से कहेगा कि जिन्होने बच्चे की मय्यत पे खड़े हो के सब्र किया, फरिश्तों! उन के लिये नया महल जन्नत में तैय्यार करो और उस का नाम बैतुल हम्द रखो और कहो कि यह वह घर है जो बाप को सब्र करने पर मिल जाता है।

*📘(शोअबुल ईमान)*

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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा का नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल और एक तड़प, जिस में इस्लाम की बेटी के लिए हजारों सबक मौजूद हैं। हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु इस के रावी हैं, हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु अपने दोस्तों को ये हदीस सुनाया करते थे और इर्शाद फरमाया करते थे कि : मैं तुम्हे अपना और हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा, जो नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी है का एक वाकिआ न सुनाऊँ, मै तुम्हे अपनी आप बीती न सुनाऊँ, हमारा नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आने जाने का मामला उस के बारे में तुम्हेन बताऊँ? 

࿐   अब लोग शौक से कहते थे कि बताओ, वो कौनसी बात है कि जिस को तुम इस अंदाज में बयान करना चाहते हो? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु सुनाया करते थे कि हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की शख्सियत इतनी बड़ी और उन का इतना बड़ा मुकाम है कि जिन के घर में चक्की कभी फरिश्ते भी आ कर चलाते थे और आटा पीसते थे लेकिन उनका खातूने खाना होने के लिहाज़ से किरदार कितना था और वह अपने घर को कैसे चलाती थी और घर के चलाने में उन का तरीका क्या था? फरमाने लगे किः हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा अपने घर में आटा पीसने ले लिए अपनी चक्की चलाती थी और उस चक्की की दस्ती के निशान हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के हाथों में पड़ चुके थे।

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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   आज ये हदीस सुनते वक़्त दुख्तराने इस्लाम को सोचना है कि वह फातिमा रदियल्लाहु अन्हा जो जन्नती औरतों की सरदार है, उमूरे खाना में अगर उन का तकाजा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से होता तो सोने का घर बना दिया जाता, हजरत फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने इतनी चक्की चलाई कि हार्थों में निशान पड़ गए उन्होने कुएं से मश्कीजे इतने भरे कि जब कंधे पर रस्सा रख कर खींचती थी तो छाती पे निशान बन चुका था, अपने बच्चों के लिए और अपने घर के लिए रोज़ाना पानी के डोल कुंए से खींचती हैं। 

࿐   एक तरफ हार्थों पे निशान हैं और दूसरी तरफ छाती पे निशान है और सीने के ऊपर के हिस्से में निशान पड़ चुके हैं। फिर हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु कहने लगे कि और घर में झाडू दिया यहाँ तक कि आप के कपड़े गर्द-आलूद हो गए। आज के दौर में घर की सफाई एक औरत के लिए आर और शर्म है और कहती है कि दस खादिमाएं हों, वह काम करें। मैं घर का काम क्यों करूँगी, मैं तो इतने बड़े बाप की बेटी हूँ।?

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    *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   तो कौन है जो हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से बड़े बाप की बेटी है हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा उमूरे खाना में कैसा किरदार अदा करती हैं। हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा घर में झाडू देती थी यहाँ तक कि कपड़े गर्द-आलूद हो जाते थे। जब इतनी मुशक्कत करती थीं तो उसी दौरान हमें पता चला कि नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कुछ गुलाम और लॉडियाँ आ गई हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाब ए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में उन्हें तकसीम करना चाहते हैं  हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि, "मेने कहा कि फातिमा। वक्त अच्छा है, चलो अपने अब्बा जी के पास और एक लॉडी मांग कर ले आओ और वह तुम्हारे साथ घर में काम करे, तुम्हारा क्या हाल हो गया है घर में काम करते हुए तुम अपने अब्बा जी के पास जा कर कोई खादिमा ले आओ, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा ए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में तकसीम करेंगे तो हमे भी एक खादिमा मिल जाएगी। 

࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने अपने शौहरे नामदार की बात मान ली, जब सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई तो देखा कि नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो परवानों के झुरमुट में है, दाएं-बाएं सहाबा ए किराम रदियल्लाहु अन्हुम बैठे हैं, लोग अपनी अपनी हाजत पेश कर रहे हैं, रसूले अकरम सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल पूछ रहे हैं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जवाब दे रहे हैं।

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   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   अब देखो कि सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दीने इस्लाम को कितना टाईम दिया वह बेटी जो जिगर का टुकड़ा है, उन को यह हौसला न हो सका कि अब्बा जी मै आई हूँ, मैं बात करना चाहती हूँ, उन खादिमों को अपने पास से हटा दें, ये कहीं बैठ जाएं. इंतिज़ार करें, पहले मैं मुलाकात कर लूँ। इस दीन ए इस्लाम को इतना प्यार दिया है मेहबूब अलैहिस्सलाम ने कि प्यारी फातिमा ये न कह सकी कि जो पास बैठे हैं उन को उठा दो और मैं अपनी बात कर लूँ हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा कहने लगी कि जब मेने लोगों को मसाइल पूछते देखा तो मै खुद समझ गई और मैं वापस आ गई!

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  *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा का नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल और एक तड़प, जिस में इस्लाम की बेटी के लिए हजारों सबक मौजूद हैं।

࿐   हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते है कि दूसरे दिन मै भी हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के साथ गया। हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दर ए पाक पर पहुँच गई जब हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा वहाँ पहुँची तो रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि ऐ फातिमा! तुम बताओ तो क्या हाजत है? किस काम को आई हो? हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा खामोश हो गई हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये चुप करा गई हैं, मै बताता हूँ कि ये क्यों आई हैं? हजरते अली रदियल्लाह अन्हु ने कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम साहबजादी आप की है और आटा पीसने की चक्की इतनी चलाती है कि इन के हाथों में निशान पड़ गए हैं, इन्होने मश्कीजे इतने उठाए हैं कि छाती पर निशान बन गए हैं। 

࿐   जब आप के पास इतने खादिम आ गए हैं तो मेने उन (हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा) को कहा कि चलो हम भी चल के मांगते हैं। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खादिमा दे दें तो कुछ काम घर में आप करें और कुछ काम वो खादिमा करे। जिस मुशक्कत में हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा पड़ी हुई हैं मैं चाहता हूँ कि वह बड़ी मुशक्कत से बच जाएं!

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   *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   *अब इस में कई पहलू काबिले गौर हैं :* आज दामाद के बारे में कोई ससुर ऐसी बातें सुन ले तो वह कहता है कि उस ने तो मेरी बेटी को कोई सहूलत ही नही दे रखी, मेरी बेटी खुद आटा पीसती है, खुद मश्किजे उठा रही है और खुद झाडू दे रही है। अपने दामाद को ससुर झिड़कियाँ देना शुरू कर दे कि ये तुमने क्या किया ? मगर मेरे मेहबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्ह से एक लफ्ज भी ऐसा जिक्र नहीं किया और इन चीजों पे सुकूत बताता है कि ये काम खातूने खाना के हैं, अगर उस को ये करने पड़ते हैं तो इस में कोई कबाहत/ खराबी नही है। ये काम उस खातूने खाना को ही करने चाहिए। हाँ! अगर किसी खाविंद के पास सहूलत के मौके हैं तो वह फराहम करे।

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये चीजें देख ली और सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के साथ बेपनाह मुहब्बत थी। तबई तौर पर भी ये तकाज़ा हो सकता था कि पता ही नही चला कि इतनी मुशक्कत हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा कर रही हैं, आज के बाद ऐ फातिमा ऐसा न करना, मै अभी बंदोबस्त कर देता हैं। वह चाहें तो जन्नत की हजारों हरें हजरते फातिम्मा रदियल्लाहु अन्हा की देहलीज़ पर आकर खड़ी हो जाएं, मगर मेरे मेहबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जुमला क्या था ? समझते थे कि आज मै अपनी बेटी फातिमा के लिये हजारों हुरें तो खड़ी कर सकता हूँ मगर कल उम्मत की बेटियाँ भी तो होंगी। ऐसा निसाब दूं कि उन उम्मत की बेटियों को भी निसाब मिल जाए। ऐसी चीजे दूँ कि वह सिर्फ मेरे जिगर के टकडे को ही नही बल्कि मेरे उम्मती के जिगर-पारों को भी निसाब मिल जाए। 

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 
              
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   मेरे मेहबुब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यहाँ कमी तो कोई न थी, जो फरमाते फौरन मयस्सर हो जाता और हमेशा के लिये ऐसा सिलसिला जारी हो जाता - लेकिन रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लफ्ज़ क्या हैं, ये सबक़ है उस बाप के लिये जो अपनी बेटी को ब्याह के भेजता है, जब वह अपने बाप को कुछ आ कर कहे तो वह आगे उस को क्या कहे ? बाप कैसे दिलासा दे और बाप कैसे तर्बियत करे, बाप कैसे उन खानदान को आबाद रखने के लिये अपना किरदार अदा करे? सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया किः ऐ फातिमा! खुदा से डरो। वह जो पहले ही डरने वाली फातिमा है, रात मुसल्ले पे गुज़र जाती है और दिन रोजे में गुजर जाता है, मुशक्कत भी करती हैं) हमारे नबी फरमाते हैं कि ऐ फातिमा खुदा से डरो! अपने रब का फरीजा अदा करती रहो और घर का काम ब-दस्तूर जारी रखो, जो तुम्हारे अहल का काम है, जो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के घर में कर रही हो, ये काम करती रहो। और तरतीब बयान कर दी कि तकवा, फिर अपने रब का फरीज़ा और फिर अपने शौहर की खिदमत। सय्यदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निसाब दे रहे हैं, अगर आप अपनी बेटी के लिए जो चाहते वह एक मिनट से भी पहले मयस्सर हो जाता, लेकिन फरमाया कि कयामत तक फातिमा रदियल्लाह अन्हा की खादिमाएं भी आएंगी!

࿐  हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से प्यार करने वाली कनीजें आएंगी तो सब के लिए जामेअ निसाब हो। 

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 
             
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐    ऐ फातिमा! तुम अपने रब से डरती रहो और अपने रब का फरीजा अदा करती रहो और फिर अपने अहल का जो काम करती हो मुसलसल करती रहो, इस में कोई हरज नही है। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये जुमला वालिदैन के लिए दर्से हयात है कि अपनी बेटियों को ऐसे मुआमलात में जिस वक्त बताएं और समझाएं तो ये बातें बताएं कि एक है रब का फर्ज, फिर है उस घर वाले का फर्ज और उस की खिदमत। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ऐ फातिमा! तुम आई हो तो तम्हे इस वक्त खाली नही भेजा जाएगा, तुम्हे दूंगा तो कयामत तक की बेटियों को भी दूँगा।

࿐  रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इर्शाद फरमाते हैं: जब काम काज से फारिग हो कर नमाज़ पढ़ कर लेटने लगो तो एक काम करना। तुम्हे तैंतीस (33) मरतबा "सुब्हान अल्लाह कहना है, तैंतीस (33) मरतबा "अल्हम्दुलिल्लाह' कहना है और चौतीस (34) मरतबा "अल्लाहु अकबर" कहना है। मेरी बेटी इस तरह ये सौ (100) बन जाएगा। ये वज़ीफा तुम्हारे लिये खादिमा से बेहतर है। वो खादिमा तुम्हारे साथ इतना सपोर्ट नहीं करेगी जितना ये तस्बीह तुम्हारा सपोर्ट करेगी। 

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࿐   सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में इस लिए गई थी ताकि बोझ खत्म हो जाए लेकिन बजाहिर तो बोझ और बढ़ गया, हकीकत में नहीं। आज जैसे लोगों का दिमाग हो तो कहें कि " गए थे नमाजे बख्शवाने, रोजे गले पड़ गए" , हम छुट्टी लेने गए थे मुफ्ती साहब ने और लाज़िम कर दिया। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि ऐ फातिमा (रदियल्लाहु अन्हा)! तुम मुझ से खादिमा मांगने आई हो , खादिमा से बड़ी चीज दे रहा हूँ और ये तस्बीहे फातिमा है, सोते वक़्त ये तस्बीह पढ़ लिया करो ये तुम्हारे लिए खादिमा से बेहतर है। यानी खादिमा तुम्हारे साथ काम कर केर इतना सपोर्ट नहीं करेगी, खादिमा के काम करने से इतनी रिलीफ नही मिलेगी, इतना सुकून नही मिलेगा जितना सौ (100) बार इस ज़िक्र से तुम्हें सुकून मिलेगा।

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࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा का नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल और एक तड़प, जिस में इस्लाम की बेटी के लिए हजारों सबक मौजूद हैं।

࿐  अज़ीम बाप की अज़ीम बेटी के लफ्ज़ सुनोः  ये नही कहा कि अब्बा जी मै काम कर कर के थक जाती हूँ, खादिमा लेने आई थी, आप ने और लाज़िम कर दिया। क्या शान है हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की, कहने लगी कि मेहबूब तुम्हारी फातिमा रब से भी राज़ी है और रब के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी राज़ी है। हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के कौल के मुताबिक ये ऐ मेरे अब्बा जी! ये जहन में ख्याल न लाना कि बच्ची आई थी, उस ने मांगा था और जो उस ने मांगा था मेने वह नही दिया, मेरे अब्बा जी मै अपनी तरफ से इजहार करती हूँ कि “मै रब से भी राजी हूँ और रब के नबी से भी राजी हैं दोनों बातों का बतौरे खास जिक्र कर के इस बात को कयामत तक आने वाली उम्मत की बेटियों को बताया कि ऐ दख्तराने इस्लाम! जहाँ रब का नाम जबान पर आना चाहिए वहाँ रब के मेहबूब का नाम भी जबान पर आना चाहिए और ये कहो कि मै रब से भी राजी हूँ और नबी सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम से भी राजी ऐसे मकाम पर अल्लाह तआला ये एजाज अता फरमाता है कि जिस वक्त एक इंसान ऐसे फैसलों पे राजी होता है और ये कुरआने मजीद का फैसला है | 

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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐  आज इतना वबाल आ चुका है और इतनी नाम-निहाद रौशन खयाली ने मर्दो-जन के मुंह खोल दिये हैं| कि जब कहा जाता है कि ये शरीआत है और ये कुरआनो सुन्नत है, तो आगे से जवाब कई किस्म के मिलते हैं। कोई कहता है कि "नहीं! हमारा भी हक है" , "आखिर अक्ल की भी कोई मांग है" , "आखिर जिंदगी भी कुछ गुजारना है" , "आखिर दुनिया भी कुछ कहती है"- इस तरह की बातें सामने आती हैं, मगर इधर कुरआने मजीद कहता है कि:

📙(कुरआन सूरह अहज़ाब, आयत नंबर 36)

*तर्जुमा ए कंजुल ईमान:-*  और न किसी मुसलमान मर्द न मुस्लमान औरत को पहुँचता है.. कि जब अल्लाह व रसूल कुछ हुक्म फरमा दें तो इन्हें अपने मुआमले का कुछ इख्यिार रहे!

࿐  जब अल्लाह तआला फैसला कर दे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फैसला कर दें तो किसी मोमिन और मोमिना के लिए ये जाइज नहीं कि वह आगे अपनी ज़बान खोले, बल्कि चुप हो जाए, सर तस्लीमे-खम कर दे कि जो सरकार सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है, जो शरीअत में आ गया है, जो कुरआने मजीद ने कह दिया है, उस की पाबंद हैं। मै किसी फैशन-परस्त औरत की बात नही सुनुगी. मै किसी मगरिब-जदा खातून के जाल में नही आऊँगी, मै किसी दुनिया की लीडर के फैशन की तरफ नही देखूगी, मेरे सामने मेरे रब का कुरआन है और मेरे नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है। 

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࿐    रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो मुख्तलिफ सबक दिये हैं उन में से एक घर के अंदर रहना और जिंदगी का सफर तै करना है- आज अल्लाह तआला हर बन्दे के घर को शरीअत का रंग अता फरमाए। लोग आकर ऐसी ऐसी दास्तानें बयान करते हैं कि इंसान सन के हैरान रह जाता है कि कलिमे का असर कितना बाकी है- ऐसी ऐसी खुराफात औरतों में आ गईं, ऐसे ऐसे फैशन , ऐसी ऐसी हिमाकतें औरतों में आ गई हैं कि अक्ले सलीम भी उन चीजों की इजाजत नहीं देती। 

࿐  आज इस्लाम की बेटी को रिमाईंड करना है कि उस ने कलिमा किस का पढ़ा था ? कलिमा ए इस्लाम पढ़ते वक़्त कहा था कि अब मर्जी अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चलेगी, मेरी कोई मर्जी नही चलेगी। या रसलल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम जो आप कहें वही मेरी शरीअत, जो आप का फैसला वही मेरा लाईफ कोड और मेरी जिंदगी का निसाब होगा। मगर राहे जिंदगी में चलते चलते भूल गई। कभी किसी सनम खाने में, कभी किसी फैशन-कदे में और कभी किसी ब्यूटी-पार्लर में और कभी किसी फैशन-शो में और कभी किसी मेले-ठेले में उसे याद न रहा कि मैंने क्या अहद किया था और कलिमा क्या पढ़ा था ?

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   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  *खातूने जन्नत सरकारे कौनैन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वक्ते विसाल :* हज़रत सय्यिदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा शहजादी सरकारे कौनैन की हैं, रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिगर का टुकड़ा हैं, हज़रते सय्यिदा फातिमा तय्यिबा, ताहिरा, सालेहा, आबिदा रदियल्लाहु अन्हा का वक्ते विसाल करीब था तो उन्होने क्या किया ? अपना मुँह किबला शरीफ की तरफ फेर लिया, फिर दायां बाजू नीचे रखा उस के ऊपर अपना चेहरा रख कर किबला की तरफ कर दिया किबला की तरफ इस लिये किया कि कियामत तक जो हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की खादिमा होगी या फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से प्यार करने वाली होगी उस को सबक मिल जाए कि फातिमा रदियल्लाहु अन्हा दुनिया से जा रही थी, रूह निकल रही थी, तो फिर भी आप का चेहरा किबला की जानिब था। 

࿐   वह हज़रते फातिमा रदियल्लहु अन्हा से अपनी मुहब्बत का दावा न करे जिसका सिर सजदे में झुकता ही नही। हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की रूह निकल रही है और चेहरा किबला शरीफ की तरफ है और ये असर हे कि रूह निकलते वक्त सिर किबला की तरफ है तो हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लाह अन्हु का सिर सजदे में है। इधर सय्यिदा फातिमा रदियल्लहु अन्हा ने खुद अपना चेहरा किबला की तरफ किया, अपने चेहरे को दाएं हाथ पे रखा और बता दिया कि जो मिल्लते इस्लामिया की बेटियाँ हैं और मुझ से जो प्यार करने वालियाँ हैं और जो कियामत तक मेरा नाम लेंगी उन को अपना पैगाम देना चाहती हूँ कि जब तक बदन में जान हो तो फिर किबला की तरफ हाज़िरी हो, रब के दरबार में सजदा हो, और अल्लाह तआला को भूल कर नमाज़ के वक़्त को छोड़ न दिया जाए, अल्लाह तआला के दरबार की हाज़िरी बरकरार रखी जाए ताकि रूह जब निकल रही हो तो सिर किबले की तरफ झुक रहा हो।

              *✐°°•. बाकी अगली पोस्ट में पढ़ें!*

*👨‍💻मिजानिब :- पैग़ाम ए रज़ा ऑफ़िशियल.!*

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