🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अल्लाह एक है कोई उसका शरीक़ नही न जात में न सिफ़ात में न अफ़आल (कामों) में न अहकाम (हुक़्म देने) में न नामों में! वह “वाजिबुल वजूद” है यानी (जिसका हर हाल में मौजूद रहना जरूरी हो) उसका अदम मुहाल है यानी किसी ज़माने में उसकी जात मौजूद न हो नामुमकिन है! अल्लाह “क़दीम” और “अज़ली” है यानी हमेशा से है और “अबदी” भी है यानी वह हमेशा रहेगा उसे कभी मौत न आएगी! अल्लाह तआला ही इस लायक है कि उसकी बन्दगी और इबादत की जाए!
*▣ ❥ अक़ीदा :* अल्लाह तआला बेपरवाह है किसी का मोहताज नही और सारी दुनिया उसी की मोहताज है!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 6 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अक़ीदा : अल्लाह कि ज़ात का इदराक अक़्ल के ज़रिए मुहाल है यानी अक़्ल से उसकी ज़ात को समझना मुमकिन नही क्योंकि जो चीज़ अक़्ल के ज़रिए समझ मे आती है अक़्ल उसको अपने घेरे में ले लेती है ! और अल्लाह की शान ये है कि कोई चीज़ उसकी ज़ात को घेर नही सकती ! अलबत्ता अल्लाह के कामों के ज़रिए से मुख़्तसर तौर पर उसकी सिफ़तों और फिर उन सिफ़तों के ज़रिए अल्लाह तआला की ज़ात पहचानी जाती है !
▣ ❥ अक़ीदा : अल्लाह तआला की सिफ़तें न एन हैं न ग़ैर यानी अल्लाह तआला की सिफ़तें उसकी ज़ात नही न वह सिफ़तें किसी तरह उसकी ज़ात से अलग हो सकें क्योंकि वह सिफ़तें ऐसी हैं जो अल्लाह की ज़ात को चाहती हैं और उसकी ज़ात के लिए ज़रूरी है!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 6 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ इसी सिलसिले में दूसरी बात यह भी ध्यान रखने की है कि अल्लाह की सिफ़तें कई हैं और अलग हैं और हर सिफ़त का मतलब भी अलग अलग है ! मूतरादीफैन नही, इसलिए सिफ़तें एने ज़ात नही हो सकती और सिफ़तें ग़ैर ज़ात इसलिए नही है कि ग़ैर ज़ात मानने की सूरत मद दो बातें ही सकती हैं ! या तो सिफ़तें क़दीम होंगी या हादिस (जो किसी के पैदा करने से पैदा हुई यानी मख़लूक़) अगर क़दीम मानते हैं तो कई एक क़दीम को मानना पड़ेगा जबकि क़दीम एक ही है ! और अगर हादिस तसलीम करतें हैं तो यह मानना भी जरूरी होगा वह क़दीम ज़ात सिफ़तों के हादिस होने या पैदा होने से पहले बगैर सिफ़तों के थी और यह दोनों बातें बातिल हैं !
▣ ❥ इसलिए इन मुश्किलों से बचने के लिए अहले सुन्नत ने वह मज़हब इख्तियार किया कि सिफ़ाते बारी (अल्लाह तआला की सिफ़तें) न तो एन जात हैं और न ग़ैर ज़ात बल्कि सिफ़तें उस जाते मुक़द्दस को लाज़िम हैं किसी हाल में उससे जुदा नही और जाते बारी तआला अपनी हर सिफ़त के साथ अज़ली, अबदी, और क़दीम है !
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 6 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अक़ीदा - जिस तरह अल्लाह तआला की ज़ात क़दीम, अज़ली व अबदी है उसी तरह उसकी सिफ़तें भी क़दीम, अज़ली और अबदी है !*
▣ ❥ अक़ीदा - अल्लाह की कोई सिफ़त मख़लूक़ नही न ज़ेरे क़ुदरत दाख़िल !
▣ ❥ अक़ीदा - अल्लाह की जात और सिफ़ात के अलावा सब चीजें हादिस यानी पहले न थीं अब मौजूद हैं !
▣ ❥ अक़ीदा - जो अल्लाह की सिफ़तों को मख़लूक़ कहे य्या हादिस बताये व ग़ुमराह और बद्दीन है !
▣ ❥ अक़ीदा - जो आलम में से कोई चीज़ को ख़ुद से मौजूद माने या उसके हादिस होने में शक़ करे वह क़ाफ़िर है !
▣ ❥ अक़ीदा - अल्लाह तआला न किसी का बाप है न किसी का बेटा और न उसके लिए कोई बीवी ! यदि कोई अल्लाहः के लिये बाप, बेटा, या जोरू(बीवी) बताये वह भी क़ाफ़िर है ! बल्कि जो मुमकिन भी बताए वह गुमराह बद्दीन है!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 6-7 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अक़ीदा : वह हर मुमकिन पर क़ादिर है और कोई मुमकिन उसकी क़ुदरत से बाहर नही ! जो चीज़ मुहाल हो अल्लाह तआला उससे पाक है कि उसकी उसे शामिल हो क्योंकि मुहाल उसे कहतें हैं जो मोजूद न हो सके और जब उस पर क़ुदरत होगी तो मौजूद हो सकेगा ! ओर जब मौजूद हो सकेगा तो मुहाल कैसे हो सकेगा ! इसे इस तरह समझिए जैसे कि दूसरा खुदा मुहाल है यानी दूसरा खुदा हो ही नही सकता !
▣ ❥ अगर दूसरा खुदा होना क़ुदरत के मातहत (अधीन) हो तो मौजुद हो सकेगा तो मुहाल नही रहा ! और दूसरे खुदा को मुहाल न मानना अल्लाह के एक होने का इनकार है !
▣ ❥ यूँही अल्लाह का फ़ना हो जाना मुहाल है ! अगर अल्लाह तआला के फ़ना होने को क़ुदरत में दाख़िल माना जाए तो अल्लाह के अल्लाह होने से ही इनकार करना है !
▣ ❥ एक बात समझने की है कि हर वह चीज़ जो अल्लाह की क़ुदरत कर मातहत हो वह मौजूद हो ही जाए यह कोई जरूरी नही ! जैसे कि यह मुमकिन है कि सोने चांदी की ज़मीन हो जाये लेकिन ऐसा नही है ! लेकिन ऐसा हो जाना हर हाल में मुमकीन रहेगा चाहे ऐसा कभी न हो !
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 7📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अकीदा :- अल्लाह हर कमाल और खूबी का जामेअ् है यानी उसमें सारी खूबियाँ हैं और अल्लाह हर उस चीज से पाक है जिसमें कोई भी ऐब बुराई या कमी हो यानी उसमें ऐब और नुकसान का होना मुहाल है।
▣ ❥ बल्कि जिसमें न कोई कमाल हो और न कोई नुकसान वह भी उसके लिए मुहाल है।
▣ ❥ मिसाल के तौर पर झूट बोलना, दगा देना, खियानत करना, जुल्म करना और जिहालत और बेहयाई वगैरा ऐब अल्लाह के लिए मुहाल है।
▣ ❥ और यह कहना कि झूट पर कुदरत इस माना कर कि वह खुद झूट बोल सकता है मुहाल को मुमकिन ठहराना और खुदा को ऐबी बताना है बल्कि खुदा का इन्कार करना है!
▣ ❥ और यह समझना कि यदि वह मुहाल पर कादिर न होगा तो उसकी कुदरत नाकिस रह जायेगी बिल्कुल बातिल है यानी बेअस्ल और बेकार की बात है कि उसमें कुदरत का क्या नुकसान हैं। कमी तो उस मुहाल में है कि कुदरत से तअल्लुक की उसमें सलाहियत नहीं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 8📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अक़ीदा : हयात, क़ुदरत, सुनना, देखना, कलाम, इल्म और इरादा उसकी ज़ाती सिफ़तें हैं मगर आंख कान और जुबान से उसका सुनना, देखना और कलाम करना नही क्योंकि यह सब जिस्म हैं और वह जिस्म से पाक है अल्लाह हर धीमी से धीमी आवाज़ को सुनता है ! वह ऐसी बारीक़ चीज़ों को भी देखता है जो किसी खुर्दबीन या दूरबीन से न देखी जा सकें बल्कि उसका देखना और सुनना इन्हीं चीज़ों पर मुनहसिर (निर्भर) नहीं बल्कि वह हर मौजूद को देखता और सुनता है !
▣ ❥ अक़ीदा : अल्लाह की दूसरी सिफ़तों की तरह उसका कलाम भी क़दीम है ! हादिस और मख़लूक़ नही जो कुरान शरीफ़ को मख़लूक़ माने उसे हमारे इमाम आज़म हज़रत इमामे अबु हनीफ़ा, दूसरे ईमामों, और सहाबा रदियल्लाहु तआला अन्हुम ने काफ़िर कहा है !
▣ ❥ अक़ीदा : अल्लाह का कलाम आवाज़ से पाक है और यह कुरान शरीफ़ जिसकी हम अपनी ज़ुबान से तिलावत करते हैं और किताबों तथा कागज़ में लिखते लिखाते है उसी का बिना आवाज़ के क़दीम कलाम है ! हमारा पढ़ना लिखना और यह हमारी आवाज़ हादिस और जो हमने सुना क़दीम ! हमारा ययद करना हादिस और हमने जो याद किया वो क़दीम ! इसे यूं समझो की तजल्ली हादिस और मुतजल्ली (तजल्ली डालने वाला) क़दीम है !
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 8 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अक़ीदा : अल्लाह का इल्म, जुज़्यात, कुल्लियात, मोजूदात मादुमात मुमकिनात और मुहालात को मुहित (घेरे हुए) है यानी सबको अज़ल में जानता था और अब भी जानता है और अबद तक जानेगा! चीज़े बदल जाया करती है लेकिन अल्लाह तआला का इल्म नही बदलता ! वह दिलों की बातें और वसवसों को जानता है यहां तक कि उसके इल्म की कोई थाह नही!
▣ ❥ अक़ीदा : वह हर खुली और ढकी चीज़ों जानता है और उसका इल्म ज़ाती है और ज़ाती इल्म उसी के लिए ख़ास है! जो कोई ढकी छिपी या जाहिरी चीज़ों का ज़ाती इल्म अल्लाह के सिवा किसी दूसरे के लिए साबित करे वह क़ाफ़िर है! क्योंकि किसी दूसरे के लिए ज़ाती इल्म मानने का मतलब यह है कि बग़ैर खुदा के दिये खुद हासिल हो!
▣ ❥ अक़ीदा : अल्लाह ही हर तरह की ज़ातों और कामों की पैदा करने वाला है ! हक़ीक़त में रोज़ी पहुचाने वाला सिर्फ अल्लाह ही है और फ़रिश्ते रोज़ी पहुचाने के ज़रिए हैं!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह - 8📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अकीदा - अल्लाह तआला ने हर भलाई और बुराई को अपने अजली इल्म के मुवाफिक मुकद्दर कर दिया है यानी जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था उसने अपने इल्म से जाना और वही लिख लिया। इसका यह मतलब हरगिज नहीं कि जैसा उसने लिख दिया वैसा ही हमको करना पड़ता है बल्कि हम जैसा करने वाले थे वैसा उसने लिख दिया है। अगर अल्लाह ने जैद के जिम्मे में बुराई लिखी तो इसलिये कि जैद बुराई करने वाला था अगर जैद भलाई करने वाला होता तो वह उसके लिये भलाई लिखता। अल्लाह तआला के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया। यह तकदीर की बातें हैं और तकदीर की बातों का इन्कार नहीं किया जा सकता। तकदीर के इन्कार करने वालों को हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने इस उम्मत का मजूस बताया है।
▣ ❥ अक़ीदा : - कज़ा या तकदीर की तीन किस्में हैं।
▣ ❥ 1). मुबरमें हक़ीक़ी : कि इल्म इलाही में किसी शय पर मुअल्लक नहीं।
▣ ❥ 2). मुअल्लके महज : जो फरिश्तों के लिखे में किसी चीज पर उसका मुअल्लक होना। जाहिर फरमा दिया गया है यानी जो दुआ या सदकों से बदल जाए।
▣ ❥ 3) मुअत्लके शबीह व मुबरम : जिसके मुअल्लक होने का फ़रिश्तों के लेखों में जिक्र नहीं लेकिन अल्लाह के इल्म में मुअल्लक है। इस कज़ा की घटना होने न होने का दोहरा उल्लेख किसी शर्त के साथ है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 10
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अब कज़ा या तकदीर की तीन किस्में जिनके बारे में कुछ तफसील से लिखा जाता है
▣ ❥ 1). मुबरमे हक़ीक़ी : यह वह कज़ा है जिसकी तबदीली मुमकिन नहीं अगर इस बारे में अल्लाह के खास बन्दे कुछ कहते हैं तो उन्हें वापस कर दिया जाता है जैसा कि जब क़ौमे लूत पर फ़रिश्ते अजाब लेकर आये तो हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उन काफिरों को अजाब से बचाने के लिए कोशिश की और यहां तक कि, जैसा कि अल्लाह ﷻ ने क़ुर्आन शरीफ में इस बात को इस तरह बताया है कि :
▣ ❥ तर्जमा - हमसे कौमे लूत के बारे में झगड़ने लगा। जो बेदीन यह कहते हैं कि अल्लाह के आगे कोई दम नहीं मार सकता और जो लोग अल्लाह की बारगाह में अल्लाह के महबूबों की कोई इज्जत नहीं मानते वह क़ुर्आन के इस टुकड़े को देखें कि अल्लाह ने अपने महबूब की इज्जत और शान को इन अल्फाज में बढ़ाया है कि इब्राहीम हम से झगड़ने लगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ दूसरी बात यह है कि हदीस शरीफ़ में आया है कि मेराज की रात हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने एक आवाज ऐसी सुनी कि कोई अल्लाह ﷻ के साथ बहुत तेजी और जोर-जोर से बातें कर रहा है।
▣ ❥ हुजूर अलैहिस्सलाम ने हजरते जिब्रील से पूछा कि यह कौन हैं ?
▣ ❥ उन्होंने कहा कि यह मूसा अलैहिस्सलाम हैं।
▣ ❥ हुजूर ﷺ ने फरमाया कि अपने रब पर तेज़ होकर बात करते हैं।
▣ ❥ तो जवाब में हजरते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा कि "उनका रब जानता है कि उनके मिजाज में तेज़ी है"।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ तीसरी बात यह है कि जब यह आयत उतरी कि :
▣ ❥ तर्जमा :- बेशक करीब है कि तुम्हें तुम्हारा रब इतना अता फरमायेगा कि तुम राज़ी हो जाओगे।
▣ ❥ तो हुज़ूर सैय्यदुल महबूबीन (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने यह फरमाया कि :
▣ ❥ तर्जमा :- अगर ऐसा है तो मैं नहीं राज़ी होंगा अगर मेरा एक उम्मती भी आग में हो। यह तो बड़ी ऊँची बातें है और उनकी शान तो ऐसी है कि जिस पर सारी बलन्दियाँ कुर्बान हैं।
▣ ❥ मुसलमान के कच्चे बच्चे जो हमल से गिर जाते हैं उनके लिए भी हदीसों में आया है कि वे अपने माँ बाप की बख्शिश के लिए अपने रब से क़ियामत के दिन ऐसा झगड़ेगे कि जैसा कोई कर्ज़ा देने वाला अपने दिये हुए कर्जे के लिये झगड़ा करता है और उस झगड़ने वाले कच्चे बच्चे से यह कहा जायेगा कि :
▣ ❥ तर्जमा :- ऐ अपने रब से झगड़ने वाले कच्चे बच्चे! अपने माँ बाप का हाथ पकड़ ले और जन्नत में चला जा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा 1 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
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*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ खैर यह तो जुमला बीच में आ गया मगर ईमान वालों के लिए बहुत नफा बख्श और इन्सानों में रहने वाले शैतानों की खबासत को दूर करने वाला है। कहना यह है कि कौमे लूत पर अज़ाब कज़ाए मुबरमे हकीकी था!
▣ ❥ हजरते खलीलुल्लाह अलानबीय्यिना व अलैहिस्सलातु वस्सलाम उसमें झगड़े तो उन्हें इरशाद हुआ :
▣ ❥ तर्जमा :- "ऐ इब्राहीम इस ख्याल में न पड़ो बेशक उन पर अज़ाब ऐसा आने वाला है जो फिरने, का नहीं ।” ......और वह कज़ा जो ज़ाहिर में कज़ाए मुअल्लक़ है उस कजाए मुअल्लक़ तक बहुत से औलिया किराम की पहुंच होती है और औलिया किराम की दुआ से उन की तवज्जह से यह कजा इन सब बातों का खुलासा यह है कि क्यों, कैसे, क्यूंकर आदि का सम्बन्ध अक्ल से है और अल्लाह तआला की जात तक अक्ल पहुंच ही नहीं सकती और जहां तक अक्ल पहुँचती है वह खुदा नहीं। जब अक्ल वहां तक नहीं पहुँच सकती तो अक्ल या नज़र उसे घेरे में ले भी नहीं सकती।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
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☝🏻 अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात
*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ अकीदा :- अल्लाह ﷻ जो चाहे और जैसे चाहे करे उस पर किसी को काबू नहीं और न कोई अल्लाह तआला को उसके इरादे से रोक सकता है। न वह ऊंघता है और न ही उसे नींद आती है। वह तमाम जहानों का निगेहबान है। वह न थकता है और न उकताता है।
▣ ❥ वही सारे आलम का पालनहार है। माँ बाप से ज्यादा मेहरबान और हलीम है। अल्लाह ﷻ ही की रहमत टूटे हुए दिलों का सहारा है। और उसी के लिए बढ़ाई और अजमत हैं। माँओं के पेट में जैसी चाहे सूरत बनाने वाला वही है।
▣ ❥ आल्लाह ﷻ ही गुनाहों का बख्शने वाला तौबा कबूल करने वाला और कहर और गजब फरमाने वाला है। और उसकी पकड़ ऐसी कड़ी है कि बिना उसके छुड़ाये कोई छूट ही नहीं सकता। अल्लाह ﷻ चाहे तो छोटी चीजों को बड़ी कर दे और फैली चीजों को समेट दे। वह जिसको चाहे ऊंचा कर दे और जिसको चाहे नीचा वह चाहे तो जलील को इज्जत दे और इज्जत वाले को जलील कर दे जिसको चाहे सीधे रास्ते पर लाये और जिसे चाहे सीधे रास्ते से अलग कर दे। जिसे चाहे अपने से करीब बना ले और जिसे चाहे मरदूद कर दे। जिसे जो चाहे दे और जिससे जो चाहे छीन ले। वह जो कुछ करता है या करेगा वह इन्साफ है और वह जुल्म से पाक व साफ है। अल्लाह हर बलन्द से बलन्द है। यहां तक कि उसकी बलन्दी की कोई थाह नहीं। वह सबको घेरे हुए है उसको कोई घेर नहीं सकता।
▣ ❥ फ़ायदा और नुकसान उसी के हाथ में है। मजलूम की फ़रयाद को पहुँचता है। और ज़ालिम से बदला लेता है। उसकी मशीयत और इरादे के बगैर कुछ नहीं हो सकता वह भले कामों से खुश और बुरे कामों से नाराज होता है।
▣ ❥ अल्लाह ﷻ की रहमत है कि वह ऐसे कामों का हुक्म नहीं करता जो हमारी ताकत से बाहर हों। अल्लाह तआला पर सवाब या अजाब या बन्दे के साथ मेहरबानी या बन्दे जो अपने लिए अच्छा जाने वह अल्लाह के लिए वाजिब नहीं। वह मालिक है जो चाहे करे और जो चाहे हुक्म दे।
▣ ❥ हाँ अल्लाह ने अपने करम से अदा फरमा लिया है कि मुसलमानों को जन्नत में और काफिरों को जहन्नम में दाखिल करेगा। और उसके वअ्दे और वईद कभी बदला नहीं करते उसका यह भी वअ्दा है कि कुफ्र के सिवा हर छोटे बड़े गुनाहों को जिसे चाहे मुआफ़ कर देगा।
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▣ ❥ अकीदा :- अल्लाह तआला के हर काम में हमारे लिए बहुत सी हिकमतें है.!
▣ ❥ चाहे हम को मालूम हों या न हों और उसके काम के लिए कोई ग़र्ज़ नहीं क्यों कि ग़र्ज़ और गा़यत उस फायदे को कहते हैं जिसका तअल्लुक काम के करने वाले से हो और अल्लाह के काम किसी इल्लत और सबब के मुहताज नहीं अलबत्ता अल्लाह तआला ने कामों के लिए कुछ असबाब पैदा कर दिये हैं।
▣ ❥ आँख के सबब से देखा जाता है कान के जरिये से सुना जाता है। आग जलाने का काम करती है और पानी के सबब से प्यास बुझाती है। लेकिन अगर अल्लाह चाहे तो भूख सुनने लगे कान देखने लगे पानी जलाने लगे और आग प्यास बुझाये। और न चाहे तो लाख आंखें हों दिन को भी पहाड़ नज़र नहीं आयेगा। और आग के अंगारे में तिनका भी बेदाग रहेगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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*❝ हमारा अक़ीदा कैसा होना चाहिये! ❞*
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▣ ❥ वह आग कितने गज़ब की थी कि जिसमे काफ़िरों ने हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सल को डाला आग ऐसी थी के कोई उसके पास जा नही सकता था इसलिये उन्हें गोफ़न में रख कर फेंका गया ! जब आग के सामने पहुँचे तो हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और पूछा कि अगर कोई हाज़त हो तो आप बताये ! उन्होंने फ़रमाया की है लेकिन तुमसे नही ! और इस तरह इरशाद फ़रमाया कि : तरजुमा : “उसको मेरे हाल का इल्म होना बस काफ़ी है मुझे अपनी हाज़त बयान करने से” !
▣ ❥ उधर अल्लाह तआला ने आग को यह हुक़्म दिया कि, तरजुमा : “ऐ आग हो जा ठंडी और सलामती इब्राहीम पर”!
▣ ❥ इस बात को सुनकर दुनिया में जहां कहीं पर आगें थीं यह समझते हुए सब ठंडी हो गयी कि शायद मुझी से कहा जा रहा है ! और नमरूद की आग तो ऐसी ठंडी हुई कि उलमा फ़रमाते हैं कि अगर उसके साथ वसलामन का लफ़्ज़ न होता तो आग इतनी ठंडी हो जाती की उसकी ठंड़क से हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम को तक़लीफ़ पहुँच जाती ! बताना यह था कि आग का काम जलाने का जरूर है लेकिन अगर अल्लाह चाहे तो आग ठण्डी हो सकती है!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ मुसलमानों के लिए जिस तरह अल्लाह ﷻ की जात और सिफात का जानना जरूरी है कि किसी दीनी जरूरी बात के इन्कार करने या मुहाल के साबित करने से यह काफिर न हो जाये इसी तरह। यह जानना भी जरूरी है कि नबी के लिए क्या जाइज है और क्या वाजिब और क्या मुहाल है क्यूंकि वाजिब का इन्कार करना और मुहाल का इकरार करना कुफ़्र की वजह है और बहुत मुमकिन है कि आदमी नादानी से अकीदा खिलाफ रखे या कुछ की बात जुबान से निकाले और हलाक हो जाए।
▣ ❥ अकीदा - नबी उस बशर को कहते हैं जिसे हिदायत के लिए वही भेजी हो अल्लाह तआला ने और रसूल बशर ही के साथ खास नहीं बल्कि फ़रिश्ते भी रसूल होते हैं।
▣ ❥ अकीदा - अम्बिया सब बशर थे और मर्द थे। न कोई औरत कभी नबी हुई न कोई जिन्न।
▣ ❥ अकीदा :- नबियों का भेजना अल्लाह तआला पर वाजिब नहीं। उसने अपने करम से लोगों की हिदायत के लिए नबी भेजे।
▣ ❥ अकीदा - नबी होने के लिए उस पर वही होना जरूरी है यह वही चाहे फरिश्ते के जरिए हो या बिना किसी वास्ते और जरिए के हो।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा - बहुत से नबियों पर अल्लाह तआला ने सहीफ़े और आसमानी किताबें उतारीं। उन किताबों में से चार किताबें मशहूर हैं।
▣ ❥ 1). 'तौरैत- हजरते मूसा अलैहिस्सलाम पर।
▣ ❥ 2). 'ज़बूर- हजरते दाऊद अलैहिस्सलाम पर।
▣ ❥ 3). 'इन्जील- हजरते ईसा अलैहिस्सलाम पर।
▣ ❥ 4). 'कुरआन शरीफ' कि सबसे अफजल किताब है। और यह किताब सबसे अफजल रसूल नबियों के सरदार हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर नाजिल हुई।
▣ ❥ तौरैत, ज़बूर, इन्जील और कुरआन शरीफ यह सब अल्लाह तआला के कलाम हैं और अल्लाह ﷻ के कलाम में किसी का किसी से अफ़ज़ल होने का हरगिज यह मतलब नहीं कि अल्लाह का कोई कलाम घटिया हो क्योंकि अल्लाह एक है उसका कलाम एक है। उसके कलाम में घटिया बटिया की कोई गुन्जाइश नहीं। अलबत्ता हमारे लिए कुरआन शरीफ में सवाब ज्यादा है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 12-13📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा :- सब आसमानी किताबें और सहीफ़े हक़ है और सब अल्लाह ही के कलाम है उनमें अल्लाह तआला ने जो कुछ इरशाद फरमाया उन सब पर ईमान जरूरी है। मगर यह बात अलबत्ता हुई कि अगली किताबों की हिफाजत अल्लाह तआला ने उम्मत के सुपुर्द की थी और अगली उम्मत। उन सहीफों और किताबों की हिफाजत न कर सकी इसलिए अल्लाह का कलाम जैसा उतरा था वैसा उनके हाथों में बाकी न रह सका बल्कि उनके शरीरों (बुरे लोगों) ने अल्लाह के कलाम में अदल बदल कर दिया जिसे तहरीफ कहते हैं।
▣ ❥ उन्होंने अपनी ख्वाहिश के मुताबिक घटा बढ़ा दिया।
▣ ❥ इसलिए जब उन किताबों की कोई बात हमारे सामने आये तो अगर यह बात हमारी किताब के मुताबिक है तो हम को तस्दीक करना चाहिए और अगर मुखालिफ है तो यकीन कर लेंगे कि उन अगली शरीर उम्मतियों की तहरिफ़ात से है।
▣ ❥ और मुखालिफ या मुवाफिक कुछ पता न चले तो हुक्म है कि हम न तो तसदीक करें और न झुठलाये यूं कहें कि : तर्जमा - अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसुलों पर हमारा ईमान है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 13 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा :- चूंकि यह दीन हमेशा रहने वाला है इसलिए क़ुरआन शरीफ की हिफाजत अल्लाह तआला ने अपने जिम्मे रखी जैसा कि क़ुरआन शरीफ में है कि : तर्जमा :- बेशक हमने क़ुर्आन उतारा और बेशक हम खुद उसके ज़रूर निगेहबान हैं।
▣ ❥ इसीलिए अगर तमाम दुनिया क़ुरआन शरीफ़ के किसी एक हर्फ़, लफ़्ज़ या नुक्ते को बदलने की कोशिश करे तो बदलना मुमकिन नहीं।
▣ ❥ तो जो यह कहे कि क़ुर्आन के कुछ पारे या सूरतें या आयतें या एक हर्फ़ भी किसी ने कम कर दिया या बढ़ा दिया या बदल दिया वह काफिर है क्योंकि उसने ऐसा कह कर उस पर लिखी आयत का इन्कार किया।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 13 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- क़ुर्आन मजीद अल्लाह की किताब होने पर अपने आप दलील है कि अल्लाह तआला ने खुद एलान के साथ फ़रमाया है कि :
▣ ❥ तर्जमा :-अगर तुमको इस किताब में जो हमने अपने सबसे खास बन्दे हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) पर उतारी कोई शक हो तो उसकी मिस्ल (तरह) कोई छोटी सी सूरत कह लाओ। और अल्लाह के सिवा अपने सब हिमायतियों को बुलाओ अगर तुम सच्चे हो तो।
▣ ❥ अगर ऐसा न कर सको और हम कह देतें हैं हरगिज ऐसा न कर सकोगे तो उस आग से डरो जिसका ईधन आदमी और पत्थर है जो काफिरों के लिए तैयार की गई है।
▣ ❥ लिहाजा काफिरों ने उस के मुकाबिले में जान तोड़ कोशिश की मगर उसके मिस्ल एक सूरत न बना सके।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 13 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ मसला - अगली किताबें नबियों को ही जुबानी याद होती लेकिन कुर्आन मजीद का मोजिज़ा है। कि मुसलमानों का बच्चा बच्चा उसको याद कर लेता है।
▣ ❥ अक़ीदा :- कुर्आन मजीद की सात किराते हैं। मतलब यह है कि कुर्आन मजीद सात तरीकों से पढ़ा जा सकता है और यह सातों तरीके बहुत ही मशहूर हैं उनमें से किसी जगह मआ़नी में कोई इख्तिलाफ़ नहीं। वह सब तरीके हक है। उसमें उम्मत के लिए आसानी यह है कि जिसके लिए जो किरात आसान हो वह पड़े। और शरीअत का हुक्म यह है कि जिस मुल्क में जिस किरात का रिवाज हो अवाम के सामने वही पढ़ी जाए।
▣ ❥ कुर्आन शरीफ़ पढ़ने के सात क़ारियों के तरीके मशहूर हैं। यह सातों किरात के इमाम माने जाते है।
1). इब्ने आमिर
2). इब्ने कसीर
3). आसिम
4). नाफ़े
5). अबू उमर
6). हमजा
7). किसाई रहमतुल्लाहि अजमइन हमारे मुल्के हिन्दुस्तान में आसिम की रिवायत का ज्यादा रिवाज है। इसीलिए रिवाज को ध्यान में रखते हुए हिन्दुस्तान में आसिम की रिवायत से ही कुर्आन शरीफ पढ़ा जाता है।
▣ ❥ क्योंकि अगर दूसरी रिवायत पढ़ी जाए तो लोग ना समझी में क़ुर्आन की आयत का इन्कार कर देंगे और यह कुफ़्र है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 14 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- कुर्आन मजीद ने अगली किताबों के बहुत से अहकाम मन्सूख कर दिए हैं इसी तरह। कुर्आन शरीफ की बाज़ आयातें बाज आयतों से मन्सूख हो गई हैं।
▣ ❥ अक़ीदा :- नस्ख (मनसूख करने) का मतलब यह है कि कुछ अहकाम किसी खास वक्त तक के लिए। होते हैं मगर यह जाहिर नहीं किया जाता कि यह हुक्म किस वक्त तक के लिए है जब मिआ़द पूरी हो जाती है तो दूसरा हुक्म नाजिल होता है जिस में जाहिरी तौर पर यह पता चलता है कि वह पहला हुक्म उठा दिया गया और हक़ीक़त में देखा जाए तो उसके वक्त का खत्म होना बताया गया और मन्सूख का मतलब कुछ लोग बातिल होना कहते हैं लेकिन यह बहुत बुरी बात है। क्योंकि अल्लाह ﷻ के सारे हुक्म हक़ हैं उनके बातिल होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।
▣ ❥ अकीदा :- कुर्आन शरीफ की कुछ बातें मुहकम और कुछ बातें मुताशाबिह हैं। मुहकम वह बातें हैं। जो हमारी समझ में आती हैं और मुताशाबिह वह बातें हैं कि उनका पूरा मतलब अल्लाह ﷻ और अल्लाह के हबीब (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के सिवा कोई नहीं जानता और न जान सकता है। अगर कोई मुताशाबिह के मतलब की तलाश करे तो समझना चाहिए कि उसके दिल में कजी (टेढ़) है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 14 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- वही अल्लाह के पैगाम जो नबियों के लिए खास होते है उन्हें वहये नुबुव्वत कहते हैं।
▣ ❥ और वहये नुबुव्वत नबी के अलावा किसी और के लिए मानना कुफ़्र है। नबी को ख्वाब में जो चीज़ बताई जाए वह भी वही है। उसके झूटे होने का कोई गुमान नहीं।
▣ ❥ वली के दिल में कभी कभी सोते या जागते में कोई बात बताई जाती है उसको इल्हाम कहते हैं।
▣ ❥ और वहये शैतानी वह है कि जो। शैतान की तरफ से दिल में कोई बात आये। यह वही काहिन (ज्योतिष) जादूगरों और दूसरे काफिरों और फासिको के लिए होती हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 14 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा - नुबुव्वत ऐसी चीज नहीं कि आदमी इबादत या मेहनत के जरिए से हासिल कर सके।
▣ ❥ बल्कि यह महज़ अल्लाह तआला की देन है कि जिसे चाहता है अपने करम से देता है और देता उसी को है कि जिसको उसके लायक बनाता है। जो नुबुव्वत हासिल करने से पहले तमाम बुरी आदतों से पाक और तमाम ऊँचे अखलाक से अपने आप को संवार कर विलायत के तमाम दर्जे तय कर चुकता है।
▣ ❥ और अपने हसब, नसब, जिस्म, कौल और अपने सारे कामों में हर ऐसी बात से पाक होता है जिनसे नफ़रत हो।
▣ ❥ और उसे ऐसी कामिल अक्ल अता की जाती है जो औरों की अक्ल से कहीं ज्यादा होती है यहाँ तक कि किसी हाकिम और फ़ल्सफी की अक्ल उसके लाखवें हिस्से तक नहीं पहुँच सकती।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 15 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ तर्जमा :- अल्लाह खुब जानता है जहां अपनी रिसालत रखे। यह अल्लाह का फजल है जिसे चाहे दे और अल्लाह बड़े फजल वाला है।
▣ ❥ अकीदा :- शरीअत का कुानून यह है कि अगर कोई यह समझे कि आदमी कोशिश और मेहनत से नुबुब्बत तक पहुँच सकता है या यह समझे कि नबी से नुबुब्बत का जवाल यानी खत्म होना जाइज है वह काफ़िर है।
▣ ❥ अकीदा :- नबी का मासूम होना जरूरी है। इसी तरह मासूम होने की खुसूसियत फरिश्तों के लिए भी है। और नबियों और रिश्तों के सिवा कोई मासूम नहीं। कुछ लोग इमामों को नबियों की तरह मासूम समझते हैं यह गुमराही और बद्दीनी है। नबियों के मासूम होने का मतलब यह है कि उनकी हिफाजत के लिए अल्लाह तआला का वादा है इसीलिए शरीअत का फैसला है कि उनसे गुनाह का होना मुहाल और नामुमकिन है अल्लाह तआला इमामों और बड़े बड़े वलियों को भी गुनाहों से बचाता है मगर शरीअत की रौशनी में उनसे गुनाह का हो जाना मुहाल भी नहीं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 15 📚*तक
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा :- अम्बिया, अलैहिमुस्सलाम शिर्क से, कुफ़्र से और हर ऐसी चीज से पाक और मासूम हैं। जिस से मखलूक को नफ़रत हो जैसे झूट, खियानत और जिहालत वगैरा बुरी सिफतें।
▣ ❥ और ऐसे कामों से भी पाक हैं जो उनके नुबुव्वत से पहले और नुबुव्वत के बाद वजाहत और मुरव्वत के खिलाफ है। इस पर सबका इत्तिफाक है। और कबीरा गुनाहों से भी सारे नबी बिल्कुल पाक और मासूम हैं।
▣ ❥ और हक तो यह है कि नुबुव्वत से पहले और नुबुब्बत के बाद नबी सगीरा गुनाहों के इरादे से भी पाक और मासूम हैं।
▣ ❥ अकीदा :- अल्लाह तआला ने नबियों पर बन्दों के लिए जितने अहकाम नाजिल किए वह सब उन्होंने पहुँचा दिए। अगर कोई यह कहे कि किसी नबी ने किसी हुक्म को छुपा रखा तकिय्या यानी डर की वजह से नहीं पहुँचाया वह काफ़िर है क्योंकि तबलीगी अहकाम में नबियों से भूल चूक मुमकिन नहीं। ऐसी बीमारियाँ जिनसे नफरत होती है जैसे कोढ़, बर्स और जुजाम वगैरा से नबी के जिस्म का पाक होना जरूरी है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 15 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा :- इल्मे गैब के बारे में अहले सुन्नत का मज़हब और मसलक यह है कि अल्लाह तआला ने नबियों को अपने गैबों पर इत्तिला दी। यहाँ तक कि जमीन और आसमान का हर ज़र्रा हर नबी के सामने है। इल्मे गैब दो तरह का है एक इल्मे जाती और दूसरा इल्मे गैब अताई।
▣ ❥ इल्मे गैब जाती सिर्फ अल्लाह तआला ही को है और इल्में गैब अताई नबियों और वलियों को अल्लाह तआला के देने से हासिल होता है। अताई इल्म अल्लाह तआला के लिए नामुमकिन और मुहाल है।
▣ ❥ क्योंकि अल्लाह तआला की कोई सिफत या कमाल चाहे उसका सुनना, देखना, कलाम, ज़िन्दगी और मौत देना वगैरा सिफतें किसी की दी हुई नहीं हैं बल्कि जाती हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 15-16📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 29
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ और नबियों की सिफतें या उनका इल्म जाती नहीं। जो लोग यह कहते हैं कि नबी अलैहिस्सलाम को किसी तरह का इल्में गैब नहीं वह कर्आन शरीफ की इस आयत के मुताबिक है।
▣ ❥ तर्जमा :- कुर्आन शरीफ की कुछ बातें मानते हैं और कुछ का इन्कार करते हैं। वह आयतें देखते हैं। जिनसे इसे गैब की नफी मालूम होती है क्योंकि वह लोग उन आयतों को देखते और मानते हैं जिनसे नबियों से इल्में गैब की नफी का पता चलता है। और उन आयतों का इन्कार करते हैं जिनमें नबियों को इल्मे गैब दिया जाना (अता किया जाना) बयान किया गया है जब कि नफी (इल्मे गैब से इन्कार) और इसबात (इल्मे गैब का सुबूत) दोनों हक़ हैं। वह इस तरह कि नफ़ी इल्मे जाती की है क्यूंकि यह उलूहियत यानी अल्लाह तआला के लिए खास है और इसबात इल्में गैब अताई का है कि यह नबियों की ही शान और उन्हीं के लाइक है और उलूहियत के खिलाफ है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 16 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अगर कोई यह कहे कि नबी के लिए हर जर्रे का इल्म मानने से खालिक और मखलूक में बराबरी लाजिम आएगी उसका यह कहना बिल्कुल बातिल है। ऐसी बात काफ़िर ही कह सकता है। क्योकि बराबरी तो उस वक्त हो सकती है जबकि जितना इल्म मखलूक को मिला है उतना ही इल्म खालिक के लिए भी माना और साबित किया जाये।
▣ ❥ फिर यह कि जाती और अताई का फर्क बताने पर भी बराबरी और मसावात का इल्जाम देना खुले तौर पर ईमान और इस्लाम के खिलाफ है क्योंकि अगर इस फर्क के होते हुए भी बराबरी हो जाया करे तो लाजिम आयेगा कि मुमकिन और वाजिब वुजूद में बराबर हो जाएं। क्योंकि मुमकिन भी मौजूद है और वाजिब भी मौजूद है। इस पर भी मुमकिन और वाजिब को वुजूद में बराबर कहना खुला हुआ शिर्क है।
▣ ❥ अम्बिया अलैहिमुस्सलाम गैब की खबरे देने के लिए आते ही हैं क्यूँकि दोज़ख, जन्नत, कियामत, हश्र, नश्र, और अज़ाब, सवाब, गैब नहीं तो और क्या है। नबियों का मनसब ही यह है कि वह बातें बताये कि जिन तक अक्ल और हवास की भी पहुँच न हो सके और इसी का नाम गैब है। वलियों। को भी इल्मे गैब अताई होता है मगर वलियों को नबियो के जरिए से इल्मे गैब अता किया जाता है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 16 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 31
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा - अम्बिया ए किराम तमाम मखलूकात यहाँ तक कि रसूलों और फरिश्तों से भी अफजल है। और वली कितना ही बडे मरतबे और दर्जे वाला हो किसी नबी के बराबर नहीं हो सकता। शरीअत का कानून है कि जो कोई गैर नबी को नबी से ऊँचा या नबी के बराबर बताये वह काफिर है।
▣ ❥ अक़ीदा - नबी की ताज़ीम फर्ज़े ऐन यानी हर एक पर फर्ज बल्कि तमाम फर्ज़ों की अस्ल है। यहा तक कि अगर कोई नबी की अदना सी भी तौहीन करे काफिर है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 16 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 32
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा:- हजरत आदम अलैहिस्सलाम से हमारे हुजूर सय्यदे आलम हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) तक अल्लाह तआला ने बहुत से नबी भेजे कुछ नबियों का जिक्र कुर्आन शरीफ में खुले तौर पर आया है और कुछ का नहीं। जिन नबियों के मुबारक नाम खुले तौर पर कुर्आन शरीफ में आये हैं वह हैं :
01). हज़रते आदम अलैहिस्सलाम
02). हज़रते नूह अलैहिस्सलाम
03). हज़रते इब्रहीम अलैहिस्सलम
04). हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम
05). हज़रते इसहाक अलैहिस्सलाम
06). हज़रते याकूब अलैहिस्सलाम
07). हज़रते युसूफ अलैहिस्सलाम
08). हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम
09). हज़रते हारून अलैहिस्सलाम
10). हज़रते शुऐब अलैहिस्सलाम
11). हज़रते लूत अलैहिस्सलाम
12). हज़रते हूद अलैहिस्सलाम
13). हज़रते दाऊद अलैहिस्सलाम
14). हज़रते सुलैमान अलैहिस्सलाम
15). हज़रते अय्यूब अलैहिस्सलाम
16). हज़रते जकरिया अलैहिस्सलाम
17). हज़रते याहया अलैहिस्सलाम
18). हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम
19). हज़रते इल्यास अलैहिस्सलाम
20). हज़रते अलयसअ् अलैहिस्सलाम
21). हज़रते यूनुस अलैहिस्सलाम
22). हज़रते इदरीस अलैहिस्सलाम
23). हज़रते जुलकिफ्ल अलैहिस्सलाम
24). हज़रते सालेह अलैहिस्सलाम
25). और हम सब के आका और मौला हुजूर सय्यदुल मुरसलीन हज़रत मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम)
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 16-17📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हजरते आदम अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला ने बिना माँ बाप के मिट्टी से पैदा किया और अपना खलीफा (नाइब) बनाया और तमाम चीजों का इल्म दिया। फरिश्तों को अल्लाह ने हुक्म दिया कि हजरते आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा करें। सभी ने सजदे किए लेकिन शैतान जो जिन्नात की किस्म में से था मगर बहुत बड़ा आबिद और जाहिद होने की वजह से उसकी गिनती फरिश्तों में होती थी उसने हजरते आदम को सजदा करने से इन्कार कर दिया इसी लिए वह हमेशा के लिए मरदूद हो गया।
▣ ❥ अक़ीदा :- हजरते आदम अलैहिस्सलाम से पहले कोई इन्सान नहीं था बल्कि सब इन्सान हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की ही औलाद हैं। इसीलिए इन्सान को आदमी कहते हैं यानी आदम की औलाद और चूंकि हजरते आदम अलैहिस्सलाम सारे इन्सानों के बाप हैं इसीलिए उन्हें 'अबुल बशर' कहा जाता है। यानी सब इन्सानों के बाप।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 17 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- सब में पहले नबी हज़रते आदम अलैहिस्सलाम हुए और सब में पहले रसूल जो काफिरों पर भेजे गए हज़रते नूह अलैहिस्सलाम हैं!
▣ ❥ उन्होंने साढे नौ सौ बरस तबलीग की। उनके जमाने के काफिर बहुत सख़्त थे। वह हज़रते नूह अलैहिस्सलाम को दुख पहुँचाते और उनका मजाक उड़ाते। यहाँ तक कि इतनी लम्बी मुद्दत में गिनती के लोग मुसलमान हुए। बाकी लोगों को जब उन्होंने देखा कि वह हरगिज़ राहे रास्त पर नहीं आयेंगे और अपनी हठधर्मी और कुफ़ से बाज नहीं आयेंगे तो मजबूर होकर उन्होंने अपने रब से काफिरों की हलाकी और तबाही के लिए दुआ की।
▣ ❥ नतीजा यह हुआ कि तूफान आया और सारी जमीन डूब गई और सिर्फ वह गिनती के मुसलमान और हर जानवर का एक एक जोड़ा जो कश्ती में ले लिया गया था बच गया।
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- नबियों की तादाद मुकरर्र करना जाइज नहीं क्यों कि तादाद मुकरर्र करने और उसी तादाद पर ईमान रखने से यह खराबी लाजिम आयेगी कि अगर जितने नबी आये उन से हमारी गिनती कम हुई तो जो नबी थे उनको हमने नुबुवत से खारिज कर दिया और अगर जितने नबी आए उन से हमारी गिनती ज्यादा हुई तो जो नबी नहीं थे उन को हमने नबी मान लिया यह दोनों बातें इस लिए ठीक नहीं कि पहली सूरत में नबी नुबुब्बत से खारिज हो जाएंगे और दूसरी सूरत में जो नबी नहीं वह नबी माने जाएंगे और अहले सुन्नत का मजहब यह है कि नबी का नबी न मानना या ऐसे को नबी मान लेना जो नबी न हो कुफ्र है।
▣ ❥ इसलिए एअ्तिकाद यह रखना चाहिए की हर नबी पर हमारा ईमान है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 17-18 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा :- नबियों के अलग अलग दर्जे हैं कुछ नबी कुछ से फजीलत रखते हैं और सब में अफजल हमारे आका व मौला सय्यदुल मुरसलीन (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) हैं।
▣ ❥ हमारे सरकार के बाद सब से बड़ा मरतबा हजरत इब्राहीम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम का है। फिर हजरते मुसा अलैहिस्सलाम फिर हजरते ईसा अलैहिस्सलाम और हजरते नूह अलैहिस्सलाम का दर्जा है।
▣ ❥ इन पाँचों नबियों को मुरसलीने उलुल अज्म कहते हैं और पाँचों बाकी तमाम नबियों रसूलों इन्सान, फरिश्ते, जिन्न और अल्लाह की तमाम मखलूक से अफज़ल हैं।
▣ ❥ जिस तरह हुजूर तमाम रसूलों के सरदार और सबसे अफजल हैं तो उनकी उम्मत भी उन्हीं के सदके और तुफैल में तमाम उम्मतों से अफ़ज़ल है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 18 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा - तमाम नबी अल्लाह तआला की बारगाह में इज्जत वाले हैं। उनके बारे में यह कहना कि वह अल्लाह तआला के नजदीक चूड़े चमार की तरह हैं, कुफ़्र और बेअदबी है।
▣ ❥ अक़ीदा - नबी के नुबुवत के बारे में सच्चे होने की एक दलील यह है कि नबी अपनी सच्चाई का एलानिया दावा कर के वह चीजे जो आदत के एअ्तिबार से मुहाल हैं उन्हें जाहिर करने का जिम्मा लेता है और जो लोग नबी की नुबुवत और सदाकत का इन्कार करते हैं यह उन काफिरों को चैलेन्ज करते हैं कि अगर तुम में सच्चाई हो तो तुम भी ऐसा कर दिखाओ लेकिन सारे के सारे काफिर आजिज़ रह जाते हैं और नबी अपने दावे में कामयाब होकर आदत के एअ्तिबार से जो चीज मुहाल होती हैं उनको अल्लाह के हुक्म से जाहिर करता है और इसी को मोजिजा कहते हैं।
▣ ❥ जैसे हजरते सालेह अलैहिस्सलाम की ऊँटनी, हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम के असा (छड़ी) का साँप हो जाना, उनकी हथेली में चमक का पैदा होना और हजरते ईसा अलैहिस्सलाम का मुर्दो को जिलाना और पैदाइशी अन्धो और कोढियों को अच्छा कर देना। और हमारे हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के तो बहुत से मोजिजे हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 18 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अक़ीदा - जो शख्स नबी न हो और अपने आप को नबी कहे वह नबियों की तरह आदत के खिलाफ अपने दावे के मुताबिक कोई काम नहीं कर सकता वर्ना सच्चे और झूटे में फर्क नहीं रह जायेगा।
▣ ❥ फायदा -> किसी नबी से अगर इजहारे नुबुव्वत के बाद आदत के खिलाफ कोई काम जाहिर हो तो उसे मोजिजा कहते हैं। नबी से उस के इजहारे नुबुव्वत से पहले कोई काम आदत के खिलाफ जाहिर हो तो उसे इरहास कहते हैं। खिलाफे आदत काम का मतलब ऐसे काम से है जिसे अक्ल तस्लीम करने से आजिज हो और जिन का करना आम आदमी के लिए नामुमकिन हो।
▣ ❥ और वली से ऐसी बात जाहिर हो तो उसको करामत कहते हैं। आम मोमिनीन से अगर इस तरह का कोई काम होता तो उसे मुऊनत कहते हैं और बेबाक लोगों फासिको फाजिरों या काफिरो से जो उनके मुताबिक जाहिर हो उसे इस्तिदराज कहते हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 18 📚*
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*☝🏻 नुबुव्वत के बारे में अकीदे*
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▣ ❥ अकीदा : अम्बिया अलैहिमुस्सलान अपनी अपनी कब्रों में उसी तरह हक़ीकी जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं जैसे दनिया में थे। खाते पीते हैं जहाँ चाहे आते जाते है। अलबत्ता अल्लाह तआला के। वादे कि “हर नफ्स को मौत का मजा चखना है' के मुताबिक नबियों पर एक आन के लिए मौत आई। और फिर उसी तरह जिन्दा हो गए जैसे पहले थे।
▣ ❥ उनकी हयात शहीदों की हयात से कहीं ज्यादा बलन्द व बाला है इसीलिए शरीअत का कानून यह है कि शहादत के बाद शहीद का तर्का (बचा हुआ माल) तकसीम होगा। उसकी बीवी इद्दत गुजार कर दूसरा निकाह कर सकती है लेकिन नबियों के यहां यह जाइज नहीं। अब तक नुबुव्वत के बारे में जो अक़ीदे बताए गए इनमें तमाम नबी शरीक है।
▣ ❥ अब कुछ वह चीजें जो हम सब के आका व मौला मदनी ताजदार सरकारे रिसालत हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के लिए खास है बयान किये जाते हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 📚*
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के अलावा दूसरे नबीयों को किसी एक खास कौम के लिए भेजा गया और हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) तमाम मखलूक, इन्सानों, जिनों फरिश्तों हैवानात और जमादात सब के लिए भेजे गये। जिस तरह इन्सान के जिम्मे हुजूर की इताअत फर्ज और ज़रूरी है इसी तरह हर मखलूक पर हुजूर की फरमाँबरदारी फर्ज और जरूरी है।
▣ ❥ अक़ीदा - हुजूर अकदस (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) फरिश्ते, इन्सान, जिन्न, हुर गिलमान, हैवानात और जमादात गर्ज तमाम आलम के लिए रहत हैं और मुसलमानों पर तो बहुत ही मेहरबान हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 18 📚
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर खातमुन्नबीय्यीन हैं अल्लाह तआला ने नुबुव्वत का सिलसिला हुजूर पर खत्म कर दिया। हुजूर के जमाने में या उनके बाद कोई नबी नहीं हो सकता जो कोई हुजूर के जमाने में या उनके बाद किसी को नुबुवत मिलना माने या जाइज समझे वह काफिर है।
▣ ❥ अक़ीदा :- अल्लाह तआला की तमाम मखलूकात से (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) अफजल हैं। कि औरों को अलग अलग जो कमालात दिए गए हुजूर में वह सब इकट्टा कर दिए गए और उनके अलावा हुजूर को वह कमालात मिले जिन में किसी का हिस्सा नहीं बल्कि औरों को जो कुछ मिला हुजूर के तुफैल में बल्कि हुजूर के मुबारक हाथों से मिला और 'कमाल' इसलिए कमाल हुआ कि कमाल हुजूर की सिफत है और हुजूर अपने रब के करम से अपने नफ्से जात में कामिल और अकमल हैं । हुजूर का कमाल किसी वस्फ से नहीं बल्कि उस वस्फ का कमाल है कि कामिल (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की सिफत बनकर खुद कमाल, कामिल और मुकम्मल हो गया कि जिसमें पाया जाए उसको कामल बना दे।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 42
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर जैसा किसी का होना मुहाल है। हुजूर की खास सिफ्तों में अगर कोई किसी को हुजूर का मिस्ल बताए वह गुमराह या काफिर है!
*▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को अल्लाह तआला ने "महबूबियते कुबरा" का मतरबा दिया है। यहां तक कि तमाम मखलूक मौला की रजा चाहती है और अल्लाह तआला हजरत मुहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की रजा चाहता है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 43
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ अक़ीदा- हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के ख़साइस में से एक यह भी है। कि उन्हें मेअ्राज हुई। हुजूर अलैहिस्सलाम अपने जाहिरी जिस्म के साथ मस्जिदे हराम से मस्जिदे अकसा और वहां से सात आसमानों कुर्सी और अर्श तक बल्कि अर्श से भी ऊपर रात के एक थोड़े से हिस्से में तशरीफ ले गए और उन्हें वह खास कुरबत हासिल हुई जो कभी भी न किसी बशर को हुई और किसी फ़रिश्ते को मिली और न ऐसी कुरबत किसी को मिल सकती है।
▣ ❥ हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने अल्लाह का जमाल अपने सर की आँखों से देखा और अल्लाह का कलाम बिना किसी ज़रिए के सुना और जमीन व आसमान के हर जर्रे को तफ़सील से देखा। पहले और बाद की सारी मखलूक हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की मुहताज और न्याजमन्द है यहाँ तक कि हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम भी।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 44
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ अक़ीदा- कियामत के दिन शफाअते कुबरा का मरतबा हुजूर अलैहिस्सलाम के खसाइस में से एक खुसूसियत है कि जब तक हुजूर शफाअत का दरवाजा नहीं खोलेंगे किसी को शफाअत की मजाल न होगी बल्कि जितने भी शफाअत करने वाले होंगे हुजूर के दरबार में शफाअत लायेंगे और अल्लाह तआला के दरबार में हुजूर की यह "शफाअते कुबरा' मोमिन, काफिर, फरमॉबरदारी करने वाले और गुनाहगार सबके लिए है। क्यूंकि वह हिसाब किताब का इन्तेजार जो बहुत सख्त जान लेवा होगा जिसके लिए लोग तमन्नायें करेंगे कि काश जहन्नम में फेंक दिए जाते और इस इन्तेजार से नजात मिल जाती,
▣ ❥ इस बला से छुटकारा काफिरों को भी हुजूर की वजह से मिलेगा जिस पर पहले के बाद के मुवाफिक, मुखालिफ, मोमिन और काफिर सब लोग हुजूर की हम्द (तारीफ) करेंगे। इसी का नाम मकामे महमूद है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 45
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ शफाअत की और भी किस्में हैं जैसे यह कि हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) बहुतों को बिना हिसाब जन्नत में दाखिल करायेंगे जिनमें चार अरब नव्वे करोड़ की गिनती का पता है बल्कि और भी ज्यादा हैं जिन्हें अल्लाह जानता है और अल्लाह तआला के प्यारे रसूल हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) जानते हैं।
▣ ❥ बहुत से वह लोग होंगे जिनका हिसाब हो चुका है और जहन्नम के लाइक हो चुके, उनको हजर दोजख से बचायेंगे। और ऐसे लोग भी होंगे जिनकी शफाअत करके जहन्नम से निकालेंगे।
▣ ❥ हुजूर की शफाअत से कुछ लोगों के दर्जे बलन्द किए जायेंगे और ऐसे भी होंगे जिनका अजाब हल्का किया जायेगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 20 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 46
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ शफाअत चाहे हुज़ूर खुद फरमायें या किसी दूसरे को शफाअत की इजाजत दें हर तरह की शफाअत हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) के लिए साबित है। हुज़ूर की किसी किस्म का शफाअत का इन्कार करना गुमराही है।
▣ ❥ अक़ीदा - शफाअत का मनसब हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को दिया जा चुका।
▣ ❥ सरकार ﷺ खुद इरशाद फरमाते हैं कि :- तर्जमा - मुझे शफाअत का मनसब दिया जा चुका है और अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है कि :- तर्जमा - मग़फ़िरत चाहो (ऐ रसूल) अपने खासों के गुनाहों और आम मोमिनन और मोमिनात कि।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 20-21 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 47
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*☝🏻 हमारे नबी की चन्द खुसूसियात*
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▣ ❥ "ऐ अल्लाह हम भी तेरे महबूब की शफाअत के मुहताज हैं। तू हमारी फरियाद सुन ले । हमारी दुआ है कि :-
▣ ❥ तर्जमा :- " ऐ अल्लाह हमको अपने हबीबे मुकर्रम (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की शफाअत अता फरमा जिस दिन न माल काम आयेगा न बेटे मगर वह जो अल्लाह के पास हाजिर हुआ सलामत दिल लेकर”। शफाअत के कुछ और हालात और हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की और दूसरी खुसूसियतें जो कियामत के दिन जाहिर होंगी इन्शाअल्लाहु तआला आखिरत के हालात में बताई जायेगी।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 21 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 48
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*☝🏻 नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) की महब्बत अस्ल ईमान बल्कि ईमान उसी महब्बत ही का नाम है। जब तक हुजूर की महब्बत मा, बाप, औलाद और सारी दुनिया से ज्यादा न हो आदमी मुसलमान हो ही नहीं सकता।
▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर की इताअत ऐन (बिल्कुल) इताअते इलाही है और इताअते इलाही बिना हुजूर की इताअत के नामुमकिन है। यहाँ तक कि कोई मुसलमान अगर फर्ज़ पढ़ रहा हो और हुजूर उसे याद फरमाएं मतलब आवाज़ दें तो वह फौरन जवाब दे और उनकी खिदमत में हाजिर हो। वह शख्स जितनी देर तक भी हुजूर से बात करे वह उस नमाज में ही है। इससे नमाज़ में कोई खलल नहीं।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 49
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*☝🏻 नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ताजीम व अजमत का एअतिकाद रखना ईमान का हिस्सा और ईमान का रूक्न है और ईमान के बाद ताजीम का काम हर फ़र्ज़ से पहले है।
▣ ❥ हुजूर की महब्बत भरी इताअत के बहुत से वाकिआत मिलते हैं। यहाँ समझाने के लिए नीचे दो वाकिआत लिखे जाते हैं जो कि हदीसे पाक में गुजरे।
▣ ❥ (1) हदीस शरीफ में है कि गजवये खैबर' से वापसी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ‘सहबा' नाम की जगह पर अस्र की नमाज पढकर मौला अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु के जानू पर अपना मुबारक सर रख कर आराम फरमाने लगे। मौला अली ने अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी। देखते देखते सूरज डूब गया और अस्र की नमाज का वक्त चला गया लेकिन हज़रते अली ने अपना जानू इस ख्याल से नहीं सरकाया कि शायद हुजूर के आराम में खलल आये। जब हुजूर ने अपनी आंखें खोलीं तो हजरत अली ने अपनी अस्र की नमाज़ के जाने का हाल बताया। हुजूर ने सूरज को हुक्म दिया डुबा हुआ सूरज पलट आया। मौला अली ने अपनी अस्र की नमाज अदा की और जब हजरत अली ने नमाज अदा कर ली तो सूरज फिर डूब गया। इससे साबित हुआ कि मौला अली ने हुजूर की इताअत और महब्बत में इबादतों में सबसे अफजल नमाज और वह भी बीच वाली (अस्र) की नमाज हुजूर के आराम पर कुर्बान कर दी क्यूंकि हकिकत में बात यह है कि इबादतें भी हमे हुज़ूर ही के सदक़े में मिली है।
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 50
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*☝🏻 नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ 2) एक दूसरी हदीस यह है कि हिजरत के वक्त पहते खलीफा हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहू तआ़ला अन्हु हुजूर के साथ थे। रास्ते में "गारे सौर मिला। गारे सौर में हजरत अबूबक्र पहले गए देखा गार में बहुत से सुराख हैं। उन्होंने अपने कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के सूराख बन्द किए इत्तिफ़ाक से एक सूराख बाकी रह गया उन्होंने उस सूराख में अपने पाँव का अँगूठा रख दिया फिर हुज़ूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को बुलाया सरकार तशरीफ ले गये और हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु के जानू पर सर रखकर आराम फरमाने लगे। उधर अंगूठे वाले सूराख में एक ऐसा सांप था जो सरकार की जियारत के लिए बहुत दिनों से बेताब था। उसने अपना सर हजरते सिद्दीक के अंगूठे पर रगड़ा लेकिन इस ख्याल से कि हुजूर के आराम में फर्क न आए पाँव को नहीं हटाया। आखिरकार उस सांप ने काट लिया। सांप के काटने से हुज़ूर सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु को बहुत तकलीफ हुई। यहाँ तक कि हज़रते अबूबक की आखों में आँसू आ गए और आंसूओं के कतरे हुजूर के चेहरए अनवर पर गिरे। सरकार ने आंखे खोल दी। हजरते अबूबक्र ने सरकार से अपनी तकलीफ और सांप के काटने का हाल बताया हुजूर ने तकलीफ की जगह पर अपना लुआबे दहन लगा दिया। लुआबे दहन लगाते ही उन्हें आराम मिल गया लेकिन हर साल उन्हीं दिनों में साँप के जहर का असर जाहिर होता था बारह बरस के बाद उसी जहर से हजरते अबूबक्र की शहादत हुई।
▣ ❥ साबित हुआ कि जुमला फ़ाइज फूरूअ् हैं। असलुल उसूल बन्दगी उस ताजवर की हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 21 📚*
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*☝🏻 नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर की ताजीम और तौकीर अब भी उस तरह फर्जे ऐन है जिस तरह उस वक्त थी। कि जब हुजूर हमारी जाहिरी आंखों के सामने थे। जब हुजूर का जिक्र आए तो बहुत आजिज़ी, इन्किसारी और ताजीम के साथ सुने और हुजूर का नाम लेते ही और उनका नामे पाक सुनते ही दुरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है।
▣ ❥ तर्जमा :- "ऐ अल्लाह तू दूरूद, सलाम और बरकत नाजिल फरमा हमारे आका व मौला पर जिनका नामे पाक मुहम्मद है। जो सखावत और करम की कान हैं, उनकी करामत वाली औलादों और उनके अजमत वाले दोस्तों पर भी”।
▣ ❥ हुजूर से महबत की अलामत यह है कि ज्यादा से ज्यादा उनका जिक्र करे और ज्यादा से ज्यादा उन पर दूरूद भेजे। और जब हुजूर का नाम लिखा जाए तो (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) पुरा लिखा जाए। कुछ लोग ‘सलअम या 'स्वाद लिख देते हैं यह नाजाइज व हराम है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 21 📚*
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*☝🏻नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ हुज़ूर से महब्बत की पहचान यह भी है। कि हुजूर के आल, असहाब, महाजिरीन, अन्सार तमाम सिलसिले और तअल्लुक रखने वालों से महब्बत रखी जाए और अगरचे अपना बाप, बेटा भाई और खानदान का कोई करीबी क्यों न हो अगर हुजूर से उसे किसी तरह की दुश्मनी हो तो उससे अदावत रखी जाए अगर कोई ऐसा न करे तो वह हुज़ूर के महब्बत के दावे में झूठा है।
▣ ❥ सब जानते हैं। कि सहाबए किराम ने हुजूर सल्ललल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की महब्बत में अपने रिश्तेदारों करीबी लोगों बाप भाईयों और वतन को छोड़ा क्यूंकि यह कैसे हो सकता है कि अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत भी हो और उनके दुश्मनों से भी महब्बत बाकी रहे। यह दोनों चीजें एक दूसरे की जिद हैं और दो अलग अलग रास्ते हैं एक जन्नत तक पहुँचाता है और एक जहन्नम के घाट उतारता है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 21-22 📚*
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*☝🏻नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ हुजूर से महब्बत की निशानी यह भी है कि हुज़ूर की शान में जो अल्फाज इस्तेमाल किए जायें वह अदब में डूबे हुए हों। कोई ऐसा लफ्ज़ जिससे ताजीम में कमी की बू आती हो कभी जुबान पर न लाए।
▣ ❥ अगर हुजूर को पुकारना हो तो उनको उनके नाम के साथ न पुकारो मुहम्मद या मुस्तफा या मुर्तजा न कहो बल्कि इस तरह कहो :
▣ ❥ तर्जमा :- "ऐ अल्लाह के नबी, ऐ अल्लाह के रसूल, ऐ अल्लाह के हबीब ज्यारत की दौलत मिल जाए तो रोजे के सामने चार हाथ के फासले से अदब के साथ हाथ बाँध कर (जैसे नमाज़ में खड़े होते हैं) खड़ा हो कर सर झुकाए हुए सलात ओ सलाम अर्ज करे। बहुत करीब न जायें और न इघर उधर देखें और खबरदार कभी आवाज बलन्द न करना क्योंकि उम्र भर का सारा किया धरा अकारत (बेकार) जाएगा।
▣ ❥ हुजूर से महब्बत की निशानी यह भी है कि हुजूर की बातें उनके काम और उनका हाल लोगों से पूछे और उनकी पैरवी करे। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अकवाल, अफआल किसी अमल और किसी हालत को अगर कोई हिकारत की नजर से देखे वह काफिर है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 22 📚*
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*☝🏻नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला के नाइब हैं। सारा आलम हुजूर के तसरूफ (इख्तियार या कब्जे) में कर दिया गया है। जो चाहें करें, जिसे जो चाहें दें जिससे जो चाहे वापस ले लें। तमाम जहान में उनके हुक्म का फेरने वाला कोई नहीं तमाम जहान उनका महकूम है। वह अपने रब के सिवा किसी के महकूम नहीं और तमाम आदमियों के मालिक हैं। जो उन्हें अपना मालिक न जाने वह सुन्नत की मिठास से महरूम रहेगा। तमाम ज़मीन उनकी मिल्कियत है, तमाम जन्नत उनकी जागीर है!
▣ ❥ (मलकूतुस्समावाति वल अर्द) यानी आसमानों और जमीनों के फ़रिश्ते हुजूर ही के दरबार से तकसीम होती हैं। दुनिया और आखिरत हुजूर की देन का एक हिस्सा है। शरीअत के अहकाम हुजूर के कब्जे में कर दिए गए कि जिस पर जो चाहें हराम कर दें और जिस के लिए जो चाहें हलाल कर दें और जो फर्ज चाहें माफ कर दें।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 22 📚*
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*☝🏻नबी ﷺ से महब्बत*
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▣ ❥ अक़ीदा :- सब से पहले नुबुव्वत का मरतबा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मिला और मिसाक के दिन तमाम नबियों से हुजूर पर ईमान लाने और हुजूर की मदद करने का वअदा लिया गया। और इसी शर्त पर उन नबियों को यह बड़ा मनसब दिया गया। 'मीसाक' का मतलब यह है कि एक रोज अल्लाह तआला ने सब रूहों को जमा करके यह पूछा कि क्या मैं तुम्हारा नहीं हूँ तो जवाब में सब से पहले हमारे हुज़ूर (सल्लल्लाहू तबारक व तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने हाँ कहा था। अल्लाह तआला ने सब को और सारे नबियों को हुज़ूर पर ईमान लाने और उनकी मदद करने का वादा लिया था। यही 'मीसाक का मतलब है। हुज़ूर सारे आलम के नबी तो है ही। लेकिन साथ ही नबियों के भी नबी हैं और सारे नबी हुज़ूर के उम्मती हैं। इसीलिए हर नबी ने अपने अपने ज़माने में हुज़ूर के क़ाइम् मुकाम काम किया अल्लाह तआला ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुनव्वर किया। इस तरह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर जगह मौजूद हैं। जैसा कि एक शायर का अरबी शेर है।
▣ ❥ तर्जमा :- "आप ऐसे नूर हैं जैसा कि सूरज बीच आसमान में है और उसकी रौशनी तमाम शहरों में बल्कि मशरिक से मगरिब तक हर सम्त में फैली हुई है।
गर न बीनद बरोज शप्परा चश्म,
चश्मये आफताब रा चे गुनाह
▣ ❥ तर्जमा :- “अगर चमगादड़ दिन को नहीं देखता तो इसमें सूरज की किरनों का क्या कुसूर है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 23 📚*
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*☝🏻 एक जरूरी मसअ्ला*
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▣ ❥ अम्बिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम से जो लगजिशें हुई उनका जिक्र कुर्आन शरीफ और हदीस शरीफ की रिवायत के अलावा बहुत सख्त हराम है। दूसरों को उन सरकारों के बारे में जबान खोलने की मजाल और हिम्मत नहीं। अल्लाह तआला उनका मालिक है जिस तरह चाहे सुलूक करे और वह उसके प्यारे बन्दे हैं, अपने रब के लिए जैसी चाहें इनकिसारी करें। किसी दूसरे के लिए यह हक नहीं कि नबियों ने जो अल्फाज अपने लिए इनकिसारी से इस्तेमाल किए हैं उनको सनद बनाए और उनके लिए बोले।
▣ ❥ फिर यह कि उनके यह काम जिनको लगज़िश कहा गया है उनसे बहुत से फायदों और बरकतों का नतीजा निकलता है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 24 📚*
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*☝🏻एक जरूरी मसअ्ला*
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▣ ❥ सय्यिदना हजरते आदम अलैहिस्सलाम की एक लगजिश को देखिए कि उससे कितने फायदे हैं। अगर वह जन्नत से न उतरते तो दुनिया आबाद न होती, किताबें न उतरतीं, नबी और रसूल न आते आदमी न पैदा होते, आदमियों की जरूरत की लाखों चीजें न पैदा की जातीं, जिहाद न होते और करोड़ों फायदे की वह चीजें जो हज़रत आदम की लगज़िश के नतीजे में पैदा की गई हैं उनका दरवाजा बन्द रहता। उन तमाम चीजों के वजूद में आने के लिए हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की एक लगजिश का मुबारक नतीजा अच्छा फल है बुनियाद है। फिर यह कि नबियों की लगजिश की। यह आलम है कि सिद्दीकीन की नेकियों से भी फजीलत रखती हैं। हमारी और आप की क्या गिनती। जैसा कि मसल मशहूर है कि :
▣ ❥ तर्जमा : नेक लोगों के अच्छे काम मुकर्रबीन के लिए बुराईया हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 25 📚*
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*☝🏻मलाइका (फ़िरिश्तों) का बयान*
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▣ ❥ फिरिश्ते नूरी हैं। अल्लाह तआला ने उन को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जाये फिरिश्ते कभी इन्सान की शक्ल बना लेते हैं और कभी दूसरी शक्ल में।
▣ ❥ अक़ीदा :- फिरिश्ते वही करते हैं जो अल्लाह का हुक्म होता है। फिरिश्ते अल्लाह के हुक्म के खिलाफ कुछ नहीं करते। न जान बूझ कर न भूले से और न गलती से। क्यूंकि वह अल्लाह के मासूम बन्दे हैं और हर तरह के सगीरा और कबीरा (छोटे-बडे) गुनाहों से पाक हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 24 📚*
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*☝🏻मलाइका (फ़िरिश्तों) का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा - फिरिश्तों के जिम्मे अलग अलग काम हैं। कुछ वह है कि जिनके जिम्मे नबियों के पास 'वही’ लाने का काम किया गया। कोई पानी बरसाता कोई हवा चलाता है कोई रोजी पहुँचाता है। कोई माँ के पेट में बच्चे की सूरतें बनाता है कोई इन्सान के बदन में कमी बेशी करता है कुछ वह फिरिश्ते हैं जो इन्सान की दुश्मनों से हिफाजत करते हैं। कुछ वह हैं जो अल्लाह व रसूल का जिक्र करने वालों के मजमे को तलाश करके उस मजमे में हाज़िर होते हैं।
▣ ❥ किसी के मुतअल्लिक इन्सान के आमाल नामा लिखने का काम कुछ वह हैं जो सरकारे रिसालत अलैहिस्सलाम के दरबार में हाजिरी देने का काम करते हैं। किसी के मुतअल्लिक सरकार की बारगाह में मुसलमानों की सलातु सलाम पहुँचाने का काम है। किसी के जिम्मे मुर्दों से सवाल करने का काम है कोई रूह कब्ज करता है। कुछ अज़ाब देने का काम करते हैं। किसी के जिम्मे सूर फ़ुंकने का काम है। इनके अलावा और भी बहुत से काम हैं जो फ़िरिश्ते अन्जाम देते हैं। इसके बावजूद यह फिरिश्ते न तो कदीम हैं और न खालिक। बल्कि सब मखलूक हैं। फ़िरिश्तों को कदीम या खालिक मानना कुफ़्र है। फिरिश्ते न मर्द हैं न औरत।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 25 📚*
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*☝🏻मलाइका (फ़िरिश्तों) का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा :- फ़िरिश्ते अनगिनत हैं उनकी गिनती वही जाने जिसने उन्हें पैदा किया है और अल्लाह के बताये से उसके प्यारे महबूब जानते हैं वैसे चार फिरिश्ते बहुत मशहूर हैं :
1 - हज़रते जिब्रईल अलैहिस्सलाम
2 - हज़रते मीकाईल अलैहिस्सलाम
3 - हज़रते इसराफ़ील अलैहिस्सलाम
4 - हज़रते इजराईल अलैहिस्सलाम
▣ ❥ यह फ़िरिश्ते दूसरे सारे फ़िरिश्तों से अफ़जल हैं। किसी फिरिश्ते के साथ कोई हल्की सी गुस्ताखी भी कुफ़्र है। जाहिल लोग अपने किसी दुश्मन या ऐसे को देखकर जिस पर गुस्सा आये उसे देखते ही कहते है कि 'मलकुल मौत या इज़राईल' आ गया। लेकिन उन जाहिलों को खबर नहीं कि यह कलिमा कुफ़्र के करीब है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 25 📚*
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*☝🏻मलाइका (फ़िरिश्तों) का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : फ़िरिश्तों के बारे में यह अक़ीदा रखना या जुबान से कहना कि फ़िरिश्तों का वुजूद नहीं है या यह कहना कि फरिश्ता नेकी की कुव्वत का नाम है और इसके सिवा कुछ नहीं यह दोनों बातें कुफ़्र हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 25 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 62
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*☝🏻जिन्न का बयान*
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▣ ❥ अल्लाह तआला ने जिन्नों को आग से पैदा किया। इनमें बाज को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहे बन जायें। इनकी उम्रे बहुत ज्यादा होती हैं। इनके शरीरों को शैतान कहते हैं। यह सब इन्सान की तरह अक्ल वाले रूह और जिस्म वाले हैं। इनकी औलादें भी होती है खाते पीते हैं जीते मरते हैं।
▣ ❥ अक़ीदा - इनमें मुसलमान भी हैं और काफिर भी मगर इनके कुफ़्फ़ार इन्सानों का बनिस्बत बहुत ज्यादा हैं और इनमें नेक मुसलमान भी हैं और फासिक भी है, बदमजहब भी। इनमें फ़ासिकों की तादाद इन्सानों से ज्यादा है।
▣ ❥ अक़ीदा - जिन्नों के वुजूद का इन्कार करना या उनको बदी की कुव्वत का नाम देना कुफ़्र है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 25-26 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 63
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ दुनिया और आखिरत के बीच एक और आलम है जिसको बरज़ख़ कहते हैं। मरने के बाद और कियामत से पहले तमाम इन्सानों और जिनों को अपने अपने मरतबे के लिहाज से बरजख में रहना होता है। और यह आलम इस दनिया से बहुत बड़ा है। दुनिया बरज़ख़ के मुकाबले में ऐसी है जैसे माँ के पेट में बच्चा। बरज़ख में कोई आराम से है और कोई तकलीफ से।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 26 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 64
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा :- हर एक के लिए मौत का दिन और वक्त मुकर्रर है। जिस की जितनी जिन्दगी है उसमें कमी बेशी नहीं हो सकती जब जिन्दगी के दिन पूरे हो जाते हैं उस वक्त हज़रते इज़राईल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज करने के लिए आते हैं। उस वक्त उस आदमी को उसके दाएं बाएं हर तरफ और जहाँ तक निगाह काम करती है। फिरिश्ते दिखाई देते हैं। मुसलमान के आस पास रहमत के फिरिश्ते होते हैं और काफिर के दाहिने बाएं अजाब के फ़िरिश्ते होते हैं। उस वक्त हर एक पर इस्लाम की हक्कानियत सूरज से ज्यादा रौशन हो जाती है।
▣ ❥ उस वक्त अगर कोई काफिर ईमान लाना चाहे तो उसका ईमान नहीं माना जायेगा। क्यों कि वह इसलाम की हक्कानियत देख कर ईमान लाना चाहता है और हुक्म ईमान बिल गैब का है यानी बे देखे ईमान लाने का और अब गैब यानी बिना देखे न रहा लिहाजा ईमान कुबूल नहीं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 26📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 65
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा :- मरने के बाद भी रूह का रिश्ता इन्सान के बदन के साथ बाकी रहता है। रूह अगरचे बदन से अलग हो गई मगर बदन पर जो बीतेगी रूह को पता होगा और रूह पर उसका असर जरूर पड़ेगा जैसा कि दुनिया में जब बदन का असर रूह पर होता है उसी तरह या उससे भी ज्यादा मरने के बाद होता है।
▣ ❥ इन्सान जब अपनी दुनिया की जिन्दगी ठंडा पानी, हवा, नर्म बिस्तर या आराम देने वाली सवारिया अपने इस्तेमाल में लाता है तो इन चीजों का असर जिस्म पर पड़ता है मगर आराम और राहत रूह को मिलती है। ऐसे ही जब इन्सान गर्म पानी, गर्म हवा, सख्त बिस्तर और तकलीफ देने वाली सवारियों को इस्तेमाल में लाता है तो उनकी गर्मी और सख्ती का असर इन्सान के जिस्स पर पडता है लेकिन तकलीफ रूह को होती है।
▣ ❥ लेकिन जो चीज इन्सान के जिस्म पर असर कर के रूह के आराम और तकलीफ का सबब बनती है रूह की तकलीफ और आराम इन्हीं असबाब पर मौकूफ़ नहीं बल्कि कुछ ऐसे सबब भी हैं जिनका इन्सान के जिस्म से कोई ताल्लुक नहीं। जैसे कि कभी इन्सानी रूह को खुशी होती है और कभी गम और जाहिर है कि इन चीजों का तअल्लुक इन्सान जिस्म से कुछ भी नहीं बल्कि रूह के लिए आराम और तकलीफ के यह असबाब अलग से है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 26 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा - मरने के बाद मुसलमान की रुह अपने अपने दर्जों के मुताबिक अलग अलग जगहों में रहती है। कुछ की कब्र पर कुछ की चाहे ज़मज़म शरीफ में कुछ की आसमान और जमीन के बीच कुछ की पहले आसमान से सातवें आसमान तक कुछ की आसमान से भी आला इल्लीन में रहती हैं मगर यह रुहें जहां कहीं भी रहें उनका अपने जिस्म से रिश्ता उसी तरह बराबर काइम रहता है। जो लोग उनकी कब्रों पर जाते हैं उनको वह पहचान लेते है और उनकी बाते सुनते हैं। और रूह के देखने के लिए यही जरूरी नहीं कि रूहें अपनी कब्रों से ही देखे बल्कि हदीस शरीफ में रूह की मिसाल इस तरह है कि एक चिड़िया पहले पिंजरे में बन्द थी और अब उसे छोड़ दिया गया और इमामों ने यह लिखा है कि :
▣ ❥ तर्जमा :- "बेशक पाक जानें जब बदन की गिरफ्त से अलग होती है तो आलमे बाला से मिल जाती हैं। और सब कुछ ऐसा देखती सुनती है जैसे यही मौजूद है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 67
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ और हदीस शरीफ में भी है कि : तर्जमा - जब मुसलमान मरता है तो उसका रास्ता खोल दिया जाता है कि जहां चाहे जाये हजरत शाह अब्दुल अजीज साहिब मुहद्दिस देहलवी लिखते हैं कि (रूह रा कुर्ब व बोअ्दे मकानी यकसाँ अस्त) तर्जमा :- रूह के लिए जगह का करीब और दूर होना बराबर है।
▣ ❥ मतलब यह है कि मोमिन की रूहें बिल्कुल आजाद हैं कि जब चाहें और जहां चाहें पहुँच जाएं। उन्हें कैद में नहीं रखा गया है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 27 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 68
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा :- यह अकीदा रखना कि रूह किसी दूसरे आदमी या किसी जानवर के बदन में चली जाती है बातिल और कुफ़्री अकीदा है। इस अकीदे को 'तनासुख और 'आवा गवन' का अकीदा कहते हैं या पुनर्जन्म भी कहते हैं। पुनर्जन्म को सच जानना कुफ़्र है।
▣ ❥ अक़ीदा - मौत का मतलब यह है कि रूह जिस्म से अलग हो जाए। इसका मतलब यह हरगिज़ नही कि रूह को मौत आ जाती है या रूह फना हो जाती है। अगर कोई रूह के लिए फना होना माने तो वह बदमजहब है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 69
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा :- मुर्दे कलाम भी करते हैं और उनकी बातों को आम लोग जिन और इन्सान नहीं सुन सकते लेकिन तमाम किस्म के जानवर वगैरा सुनते हैं।
▣ ❥ अक़ीदा :- जब मुर्दे को कब्र में दफन करते हैं उस वक्त कब्र उसको दबाती है। अगर वह मुसलमान है तो कब्र उसे इस तरह दबाती है जैसे माँ प्यार में अपने बच्चे को चिपटा लेती है और अगर काफिर है तो उसको इस जोर से दबाती है कि इघर की पसलिया उधर हो जाती है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 27-28 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा - दफ्न करने वाले जब दफ्न कर के चले जाते हैं तो मुर्दे उनके जूतों की आवाज़ सुनते हैं। उस वक़्त उनके पास दो फिरिश्ते अपने दातों से जमीन चीरते हुऐ आते हैं। उनकी शक्ल निहायत डरावनी और नीली देग के बराबर शोले की तरह होती हैं। उनके सर से पाव तक डरावने बाल होते हैं। उनके दात कई हाथ के होते हैं जिनमें वह जमीन चीरते हुए आयेगें। इन दोनो फिरिश्तों में से एक को 'मुनकर' और दुसरे को 'नकीर' कहते हैं। यह फ़िरिश्ते मुर्दे को झिंझोड़ कर झिड़क कर उठाते हैं और बहुत सख्ती के साथ सख्त आवाज़ में मुर्द से सवालात करते हैं।
▣ ❥ मुर्दे से पहला सवाल यह किया जाता है कि :- तर्जमा :- तेरा रब कौन है ?
▣ ❥ फरिश्ते दुसरा सवाल यह करते हैं कि :- तर्जमा :- तेरा दीन क्या है?
▣ ❥ और मुर्दे से तीसरा सवाल यह किया जाता है कि :- तर्जमा- (दुनियां में) इनके बारे में तु क्या कहता था।
▣ ❥ मुर्दा अगर मुसलमान हैं तो पहले सवाल के जवाब में कहेगा :- तर्जमा :- मेरा रब अल्लाह है।
▣ ❥ दुसरा सवाल का जवाब यह देगा कि :- तर्जमा : मेरा दीन इस्लाम है।
▣ ❥ और तीसरे सवाल का जवाब मोमिन और मुसलमान मुर्दा यह देगा कि :- तर्जमा :- वह तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 28 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ फिरिश्ते उससे पुछेंगे कि यह सब चीजे तुझे किसने बताई तो वह जवाब देगा मैंने अल्लाह की किताब पढ़ी और किताब को सच्चा समझ कर उस पर ईमान लाया। कुछ और रिवायतों में यह है कि फ़िरिश्ते सवालों के जवाब पाकर यह कहेंगे कि हमें तो पता था कि तू यही कहेगा।
▣ ❥ उस वक़्त एक आवाज़ आयेगी कि मेरे बन्दे ने सच कहा। इसके लिए जन्नत का बिछौना बिछाओ जन्नत का लिबास पहनाओ इस के लिए जन्नत की तरफ एक दरवाजा खोल दो जन्नत की हवा और खुशबु उसके पास आती रहेगी और जहा तक नज़र फैलेगी वहीं तक उसकी कब्र खोल दी जाएगी और इससे कहा जायेगा कि तू इस तरह सो जा जैसे दुल्हन सोती है। यह खास लोगों के लिए है। लेकिन अल्लाह चाहे तो आम मोमिनीन के लिए भी इसी तरह का आराम मिल सकता है। हाँ कब्र का फैलाव मर्तबों और दजों के लिहाज से अलग अलग है। कुछ ऐसे हैं जिनकी कब्रे सत्तर सत्तर हाथ लम्बी चौड़ी हो जाती हैं। कुछ ऐसे हैं कि उनकी कब्रे इससे भी ज्यादा लम्बाई चौडाई में बढ़ा दी जाती है कि जहाँ तक उनकी निगाह पहुंचे और मोमिन गुनहगार पर उनके गुनाह के लाइक अज़ाब भी होगा। फिर वह अल्लाह की रहमत, अपने बड़े बड़े पीरों मजहबे इस्लाम के इमाम या अल्लाह के वलियों की शफाअत से अगर अल्लाह चाहे तो नजात पायेंगे।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 28 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि गुनहगार मोमिन पर अजाबे कब्र जुमा की रात आने तक है। उस रात के आते ही अज़ाब उठा लिया जायेगा। हाँ यह हदीस से साबित है कि जो मुसलमान जुमे की रात में जुमे के दिन या रमजान शरीफ के किसी दिन में या रात में मरेगा वह मुनकर नकीर के सवाल से और कब्र के अज़ाब से बचा रहेगा।
▣ ❥ मोमिन मुर्दे के लिए जन्नत की खिड़की इस तरह खुलेगी कि पहले उसके बायें हाथ की तरफ से जहन्नम की खिडकी खोली जाएगी जिससे आग की लपट, जलन, गर्म हवा और तेज बदबू आयेगी। फिर यह खिडकी फौरन बन्द कर दी जायेगी और मुर्दे की दाहिनी तरफ से जन्नत की खिडकी खुलेगी और इस से कहा जायेगा कि अगर तू इन सवालों के ठीक जवाब न देता तो तेरे वास्ते वह खिडकी थी लेकिन अब यह है कि ताकि वह अपने रब की नेमत की कद्र जाने कि उसने कैसी बड़ी बला से उसे नजात दी और कैसी बडी नेमत उसे अता की।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 28 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ मुनाफिक के लिए इसका उल्टा होगा कि पहले जन्नत की खिड़की खुलेगी ताकि मुनाफिक उसकी खुशबू उसकी ठन्डक आराम और नेमत की झलक देख ले और फिर वह खिड़की फौरन बन्द कर दी जायेगी और दोजख की खिड़की खोल दी जायेगी ताकि उस पर बड़ी बला भी हो और दिल से ईमान न लाने की हसरत भी बाकी रहे कि हजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को न मान कर या उनकी शान में गुस्सा करके कैसी दौलत खोई और कैसी आफत पाई।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 29 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ मुनाफिक मुर्दा हर सवाल के जवाब में कहेगा।
▣ ❥ तर्जमा :- "अफ़सोस मुझे तो कुछ पता नहीं और यह भी कहेगा कि :-
▣ ❥ तर्जमा :- "मैं लोगों को कुछ कहते सुनता था तो मैं भी कहता था।
▣ ❥ उस वक़्त गैब से एक आवाज़ आयेगी कि यह झूटा है। इसके लिए आग का बिछौना बिछाओ, आग का लिबास पहनाओं और जहन्नम की तरफ दरवाजा खोल दो। फिरिश्ते खिड़की खोल देंगे। उसकी गर्मी और लपट पहुँचेगी और उस पर अज़ाब देने के लिए दो फरिश्ते मुकर्र होंगे जो अंधे और बहरे होंगे। उन के साथ लोहे का ऐसा गुर्ज होगा कि अगर उसे पहाड़ पर भी मारा जाये तो पहाड़ टुकड़े टुकड़े हो जाये। उस गुर्ज से मुनाफिक को वह फरिश्ते मारते रहेंगे। सांप और बिच्छू उसे डसते रहेंगे और उसके गुनाह कुत्ते या भेड़िये की शक्ल में जाहिर हो कर उसे तकलीफ पहुँचायेंगे। नेक लोगों के अच्छे अमल महबूब और अच्छी अच्छी सूरतों में ढलकर उनके दिल बहलायेंगे।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 29 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा - कब्र के अज़ाब और कब्र की नेमतें हक़ हैं यह दोनों चीजें जिस्म और रूह दोनों पर हैं जैसा कि ऊपर बताया गया अगरचे जिस्म गल जाये जल जाये या खाक हो जाये मगर उसके असली टुकड़े क़ियामत तक बाकी रहेंगे और उन्हीं पर अ़ज़ाब या सवाब होगा और क़ियामत के दिन दोबारा इन्हीं पर जिस्म की बनावट होगी यह अजज़ा टुकड़े ‘ अ़जबुज़्ज़नब ' कहलाते हैं!
▣ ❥ यह इतने बारीक होते है कि न किसी खुर्दबीन से नज़र आ सकते हैं न उन्हें आग जला सकती है न ज़मीन उन्हें गला सकती है यही जिस्म के बीज हैं इसीलए क़ियामत के दिन रूहें अपने उसी जिस्म ही में लौटेंगी किसी दूसरे बदन में नहीं जिस्म के ऊपरी हिस़्सों के बढ़ने घटने से जिस़्म नहीं बदलता जैसे कि बच्चा पैदा होता है तो छोटा होता है फिर बड़ा और हट्टा कट्ट्टा जवान होता है फिर वही बीमारी में दुबला पतला हो जाता है और उस पर जब नया गोश्त पोस्त आता है तो वह फिर अपनी असली हालत में आ जाता है इन तबदीलियों से यह नहीं कहा जा सकता कि शख़्स बदल गया ऐसे ही क़ियामत के दिन का लौटना है कि जिस्म के गोश्त और हड्डियाँ जो ख़ाक या राख हो गई हों और उनके ज़र्रे जहाँ कहीं भी फैले हुए हों अल्लाह तबारक व तआ़ला उन्हें जमा कर के उसको पहली हालत पर लायेगा और वह असली अजज़ा जो पहले से महफूज हैं उनसे जिस्म को मुरक्कब करेगा यानी बनायेगा और हर रूह को उसी पुराने जिस्म में भेजेगा इसका नाम `हश्र' है कब्र के अ़ज़ाब और सवाब का इन्कार गुमराही है!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 29 📚*
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▣ ❥ अकीदा : - मुर्दा अगर कब्र में दफ्न न किया जाये तो जहाँ पड़ा रह गया , फेंक दिया गया या जला दिया गया गरज़ कहीं भी हो उससे वहीं सवालात होंगे यहाँ तक कि उसे शेर या और कोई परिन्दा खा गया तो उस मुर्दे से पेट में ही सवालात किये जायेंगे और उसे वहीं सवाब या अजाब पहुँचेगा!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 30 📚*
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*☝🏻आलमे बरज़ख का बयान*
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▣ ❥ एक ज़रूरी बात मसला - अल्लाह के वह खास बन्दे जिनके बदन को मिट्टी नहीं खा सकती वह अम्बिया अ़लैहिमुस्सलाम औलियाए किराम दीन के आलिम कुर्आन शरीफ के हाफिज़ जो कुर्आन पर अमल करते हों जिनको अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत हो वह जो अल्लाह के महबूब हों वह जिस्म जिसने कभी अल्लाह की नाफरमानी न की हो और वह लोग जो ज़्यादा से ज़्यादा दुरूद शरीफ पढ़ते हैं उनके बदन सलामत रहते हैं अगर कोई किसी नबी की शान में गुस्ताखी और बेअदबी की यह बात कहे कि मर के मिट्टी में मिल गये ' तो वह गुमराह और बद्दीन है!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 30 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ बेशक ज़मीन आसमान जिन इन्सान और फ़रिश्ते सब एक दिन फना हो जायेंगे सिर्फ अल्लाह तआ़ला ही हमेशा से है और हमेशा रहेगा!
▣ ❥ दुनिया के फना होने से पहले कुछ निशानियाँ जाहिर होंगी जैसे!
▣ ❥ 1). तीन खुसूफ होंगे मतलब यह कि आदमी ज़मीन में धंस जायेंगे यह खुसूफ पूरब में दूसरा पिश्चम में और तीसरा अरब के जज़ीरे में!
▣ ❥ 2). दीन का इल्म उठ जायेगा मतलब आलिम उठा लिए आयेंगे । ऐसा भी नहीं कि आलिम बाकी रहें और उनके दिलों से इल्म मिट जाये और खत्म हो जाये!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 3 ) जिहालत बहुत बढ़ जायेगी मतलब दीन का इल्म रखने वाले बहुत कम हो जायेंगे!
▣ ❥ 4 ) ज़िना की ज़्यादती होगी और बेहयाई और बेशर्मी इतनी बढ़ जायेंगी बड़े छोटे का अदब लिहाज खत्म हो जायेगा!
▣ ❥ 5 ) मर्द कम होंगे और औरतें इतनी ज्यादा होंगी कि एक मर्द की मातहूती में पचास पचास औरतें होंगी!
▣ ❥ 6 ) उस बड़े दज्जाल के अलावा तीस और दज्जाल होंगे और यह सब नुबुव्वत का दावा करेंगे जबकि नुबुव्वत खत्म हो चुकी है!
▣ ❥ उन नुबुव्वत के दावा करने वालों में से कुछ गुजर चुके हैं जैसे मुसलमा कज़्ज़ाब तलीहा इने खुवैलद असवद अंसी , सज्जाह ( एक औरत जो बाद में इस्लाम ले आई ) और गुलाम अहमद क़ादियानी के अलावा ज़ाहिर हेंगे!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 30 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 7 ) माल बहुत ज़्यादा हो जायेगा यहाँ तक कि फुरात की नदी में से सोने के पहाड़ निकलेंगे!
▣ ❥ 8 ) अरब जैसे मुल्क में खेती बाग और नहरें हो जायेंगी!
▣ ❥ 9 ) दीन पर काइम रहना इतना मुश्किल होगा जैसा कि मुठ्ठी में अंगारा लेना मुश्किल है यहाँ तक कि नेक और शरीफ आदमी कब्रिस्तान में जाकर तमन्ना करेगा कि काश मैं इस कब्र में होता!
▣ ❥ 10 ) वक्त में बरकत न होगी यहाँ तक कि एक साल महीने की तरह महीना हफ्ते की तरह हफ्ता दिन की तरह और दिन ऐसा हो जायेगा कि जैसा किसी चीज को आग लगी और जल्दी ही बुझ गई यानी बहुत जल्दी जल्दी वक़्त गुजरेगा!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 30-31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 81
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*आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 11) लोगों पर ज़कात देना भारी होगा लोग जकात को तावान जुर्माना समझेंगे!
▣ ❥ 12 ) कुछ लोग इल्मे दीन पढेंगे लेकिन दीन के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिये!
▣ ❥ 13 ) मर्द अपनी औरत का फ़रमाँबरदार होगा!
▣ ❥ 14 ) औलादें अपने माँ बाप की नाफरमानी करेंगी!
▣ ❥ 15 ) लड़के अपने दोस्तों से मेल जोल रखेंगे और माँ बाप से जुदा हो जायेंगे!
▣ ❥ 16 ) लोग मस्जिदों में दुनिया की बेकार बातें करेंगे और चिल्लायेंगे!
▣ ❥ 17 ) गाने बजाने की ज़्यादती होगी!
▣ ❥ 18 ) लोग अगले लोगों पर लानत करेंगे और उन्हें बुरा कहेंगे!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 82
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*आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 19 ) परिन्दे जानवर आदमी से बात करेंगे कोड़े की फुची और जूते के फीते भी बात करेंगे जब आदमी बाजार जायेगा तो जो कुछ उसके घर में हुआ होगा जूते के तस्मे उससे बतायेंगे । यहाँ तक कि इन्सान की रान भी इन्सान को खबर देगी!
▣ ❥ 20 ) जलील और गंवार लोग जिनको तन का कपड़ा और पाँव की जूतियाँ नसीब न थी बड़े बड़े महलों में गुरूर के साथ रहेंगे!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 83
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*☝🏻आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 21 ) दज्जाल का जाहिर होना : - दज्जाल चालीस दिन में ( हरमैन शरीफैन के अलावा ) सारी दुनिया फिरेगा चालीस दिन में पहला दिन साल भर के बराबर होगा दूसरा दिन महीने भर के बराबर तीसरा दिन हफ्ते के बराबर और बाकी दिन चौबीस घन्टे के होंगे दज्जाल आँधी तूफान की तरह तेजी के साथ जैसे बादल को हवा उड़ाती हो सैर करेगा उसका फितना बहुत सख्त होगा उसके साथ एक आग होगी और एक बाग दज्जाल जहा जायेगा उसके साथ यह दोनों चीजें जायेंगी आग को वह जहन्नम बतायेगा और बाग को जन्नत लेकिन जो देखने में आग होगी और जिसे जहन्नम समझा जायेगा वही हक़ीक़त में आराम की जगह होगी और जो देखने में बाग होगा वह हक़ीक़त में आग होगी!
▣ ❥ दज्जाल अपने आप को खुदा कहेगा जो उस पर ईमान लायेगा और उसे खुदा मान लेगा वह उसे अपनी जन्नत में डालेगा और जो उसे खुदा मानने से इन्कार करेगा उसको वह अपने जहन्नम में डाल देगाा दज्जाल मुर्दै जिलायेगा ज़मीन उसके हुक्म से सब्जे उगायेगी वह आसमान से पानी बरसायेगा लोगों के जानवर खूब लम्बे चौड़े तैयार और दूध वाले हो जायेंगे और जब वह वीरान जंगलों में जायेगा तो शहद की मक्खियों की तरह दल के दल जमीन के खजाने उसके साथ हो जायेंगे इसी किस्म के वह बहुत से करतब और करिश्में दिखलायेगा लेकिन हक़ीक़त में कुछ भी न होगा यह सब जादू और शैतानों के करश्मेि और तमाशे होंगे इसलिए दज्जाल के वहाँ से जाते ही लागों के पास कुछ न रहेगा दज्जाल जब हरमैन शरीफैन में जाना चाहेगा तो फ़रिश्ते उसका मुँह फेर देंगे!
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 84
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 21 ) दज्जाल का जाहिर होना : - अलबत्ता मदीने शरीफ में तीन ज़लज़ले आयेंगे वहा के जो लोग ज़ाहिर में मुसलमान बने होंगे और दिल से काफिर होंगे और वह लोग जिनके बारे में अल्लाह जानता है कि वे दज्जाल पर ईमान लाकर काफिर होंगे वह सब लोग इन ज़लज़लों के डर से शहर छोड़कर भागेंगे और दज्जाल के फितने का शिकार होंगे दज्जाल के साथ यहूदियों की फौज होगी दज्जाल के माथे पर `काफ' फे'रे यानी काफिर लिखा होगा यह लफ्ज़ सिर्फ मुसलमान ही पड़ सकेंगे किसी काफिर को नज़र न आयेंगे!
*☝🏻दज्जाल का जाहिर होना इस पोस्ट को सुरू से पड़ने के लिए पोस्ट नम्बर 83 पड़े*
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 31 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ दज्जाल का जाहिर होना : - दज्जाल जब सारी दुनिया में फिर फिरा कर मुल्के शाम में पहुँचेगा तो उस वक्त हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आसमान से दमिश्क की जामे मसिज्द के पूर्वी मीनार पर सुबह के वक़्त ऐसे वक़्त पर उतरेंगे जब कि फज्र की नमाज़ के लिए तकबीर हो चुकी होगी हज़रते इमाम मेहदी भी उस जमाअ़त में मौजूद होंगे उन से हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम इमामत के लिए कहेंगे हज़रते इमाम मेहदी रदियल्लाहु तआला अन्हु नमाज पढ़ायेंगे उधर दज्जाल का हाल यह होगा कि वह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की साँस की खुश्बू से पिघलना शुरू होगा जैसे पानी में नमक घुलता है और साँस को खुश्बू दूर दूर तक फैलेगी दज्जाल भागता फिरेगा और हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम उसका पीछा करते हुए उसकी पीठ पर नेजा मारेंगे और उस जहन्नमी को मौत के घाट उतार देंगे!
*☝🏻दज्जाल का जाहिर होना इस पोस्ट को सुरू से पड़ने के लिए पोस्ट नम्बर 83 और 84 पड़े☝🏻*
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 31 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 86
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 22 ) हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर : - अब हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर होगा आपके ज़माने में माल इतना ज़्यादा होगा कि अगर कोई किसी को कुछ देना चाहेगा तो वह लेने से इन्कार कर देगा उस ज़माने में दुश्मनी ह़सद और जलन नाम की कोई चीज़ न होगी हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम खिंजीर को मार डालेंगे और सलीब को तोड़ देंगे तमाम अहले किताब मतलब तौरात, जबूर, इन्जील और कुर्आन शरीफ के मानने वाले जो दज्जाल के जुल्म से बच जायेंगे वह हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लायेंगे!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 32📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 87
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर : - सारी दुनिया में एक ही दीन इस्लाम और एक ही मजहब मजहबे अहल - ए - सुन्नत होगा बच्चे सॉप से खेलेंगे शेर और बकरी एक साथ नज़र आयेंगे हजरत ईसा अलैहिस्सलाम चालीस साल तक रहेंगे यह निकाह करेंगे और उनकी औलाद भी होगी वफात के बाद रोजए अनवर में दफ्न होंगे!
*☝🏻हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का दौर ये पोस्ट सूरे से पड़ने के लिए पोस्ट नंबर 86 पड़े☝🏻*
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 32 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ 23 ) हज़रते इमाम मेहदी का जाहिर होना : - हज़रते इमाम मेहदी रद़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु के जाहिर होने का वाक़िआ यह है कि दुनिया में जब सब जगह से इस्लाम सिमट कर मक्के मदीने में पहुँच जायेगा उस वक्त सारे अबदाल और औ़लिया हिजरत कर के वहीं पहुँच जायेंगे सारी ज़मीन कब्रिस्तान होगी रमज़ान शरीफ का महीना होगा अबदाल काबे का तवाफ़ करते होंगे हज़रते इमाम मेहदी भी वहीं होंगे औलिया उन्हें पहचान कर उनसे बैअ़त के लिए कहेंगे (वह इन्कार करेंगे) अचानक गै़ब से यह आवाज आयेगी कि :
▣ ❥ तर्जमा : - यह अल्लाह के खलीफा मेहदी हैं इनकी बात सुनो और इनका हुक्म मानो!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 32 📚*
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▣ ❥ 23 ) हज़रते इमाम मेहदी का जाहिर होना : - तमाम लोग उनके हाथों पर बैअ़त करेंगे और वहाँ से सब को अपने साथ लेकर मुल्के शाम को तशरीफ ले जायेंगे दज्जाल के क़त्ल के बाद अल्लाह तआ़ला का हज़रते ईसा अ़लैहिस्सलाम के लिए हुक्म होगा कि मुसलमानों को कोहे तूर (एक पहाड़ का नाम) पर ले आओ। इसलिए कि कुछ ऐसे लोग जाहिर होंगे जिनसे लड़ने की किसी में ताक़त न होगी!
*☝🏻हज़रते इमाम मेहदी का जाहिर होना ये पोस्ट सुरु से पढ़ने के लिए पोस्ट नम्बर 88 पढ़े☝🏻*
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▣ ❥ 24 ) याजूज माजूज का निकलना : - जब हजरते ईसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों को कोहे तूर पर ले जायेंगे तो याजूज माजूज निकलेंगे यह इतने ज़्यादा होंगे कि दस मील की एक नदी या झील ‘बूहैरये तबरीय्यापर से जब उनकी पहली जमाअ़त गुजरेगी तो जमाअ़त के लोग उस नदी या झील का पानी पीकर इस त़रह सुखा देंगे कि बाद में आने वाली दूसरी जमाअ़त यह कहेगी कि यहाँ कभी पानी था यह याजूज माजूज जब दुनिया में क़त्ल और ग़ारत से फुरसत पायेंगे तो कहेंगे कि ज़मीन वालों को तो क़त्ल कर चुके अब आसमान वालों को भी कुत्ल किया जाये!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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▣ ❥ याजूज माजूज का निकलना : - यह कह कर वे अपने तीर आसमान की तरफ फेकेंगे अल्लाह की क़ुदरत से उनके तीर खून में लिथड़े हुए गिरेंगे यह अपनी इन्ही हरकतों में मशगूल होंगे और वहाँ पहाड़ पर हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम अपने साथियों के साथ घिरे हुए होंगे यहाँ तक कि उन के नज़दीक के सर की वह हैसियत होगी जो आज तुम्हारे नज़दीक सौ अशरफियों की नहीं उस वक्त हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपने साथियों के साथ दुआ फ़रमायेंगे अल्लाह तआ़ला उन की गर्दनों में कीड़े पैदा कर देगा कि एक दम में वह सब मर जायेंगे याजूज माजूज के मरने के बाद जब पहाड़ से उतरेंगे तो सारी ज़मीन पर उन्हें याजूज माजूज की सड़ी हुई इतनी लाशें मिलेंगी कि एक बालिश्त जमीन भी खाली नहीं मिलेगी!
*☝🏻याजूज माजूज का निकलना ये पोस्ट सूरे से पड़ने के लिए पोस्ट नम्बर 90 पड़े☝🏻*
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▣ ❥ याजूज माजूज का निकलना : - फिर हज़रते ईसा अ़लैहिस्सलाम और उनके साथियों की दुआ़ओं से अल्लाह तआ़ला कुछ परिन्दे भेज देगा जो उन की लाशों को जहाँ अल्लाह चाहेगा फेंक आयेंगे और उन के तीर व कमान व तर्कश को मुसलमान सात साल तक जलायेंगे फिर ऐसी बारिश होगी कि ज़मीन को हमवार कर छोड़ेगी जिस से फल पैदा होंगे अल्लाह के हुक्म से ज़मीन और आसमान से इतनी बरकत नाज़िल होगी कि एक अनार से जमाअ़त का पेट भर जायेगा और उसके छिलके के साये में दस आदमी बैठ सकेंगे दूध में इतनी बरकत होगी कि एक ऊँटनी का दूध एक जमाअ़त कि लिए एक गाय का दूध कबीले के लिए और एक बकरी का दूध एक ख़ानदान के लिए काफी होगा!
*☝🏻याजूज माजूज का निकलना ये पोस्ट सूरे से पड़ने के लिए पोस्ट नम्बर 90 और 91 पड़े☝🏻*
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▣ ❥ 25) उसके बाद एक ऐसा वक़्त आयेगा कि अल्लाह के हुक्म से ऐसा धुआँ ज़ाहिर होगा कि ज़मीन से आसमान तक अँधेरा ही अँधेरा होगा!
▣ ❥ 26) दाब्बतुल अर्द का निकलना : - दाब्बतुल अर्द एक ऐसा जानवर होगा जिसके हाथ में हज़रते मूसा अ़लैहिस्सलाम का असा ( लाठी ) और हज़रते सुलैमान अ़लैहिस्सलाम की अँगूठी होगी वह उस असे से हर मुसलमान की पेशनी पर एक नूरानी निशान बनायेगा और अँगूठी से हर काफ़िर के माथे पर एक बहुत काला धब्बा बनायेगा उस वक़्त सारे मुसलमान और काफ़िर साफ ज़ाहिर होंगे मुसलमानों और काफिरों की यह निशानियाँ कभी न बदलेंगी जो काफिर है वह कभी ईमान न लायेगा और जो मोमिन है हमेशा ईमान पर क़ाइम रहेगा!
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▣ ❥ 27) सूरज का पशिंचम से निकलना : - ' इस निशानी के ज़ाहिर होते ही तौबा का दरवाज़ि बन्द हो जायेगा अगर उस वक्त कोई इस्लाम कबूल करना चाहे तो उस का इस्लाम कबूल नहीं किया जायेगा!
▣ ❥ 28) हज़रत ईसा अ़लैहिस्सलाम की वफ़ात के एक ज़माने के बाद जब क़ियामत कायम होने को सिर्फ चालीस साल बाकी रह जायेंगे तो एक खुश्बूदार ठंडी हवा चलेगी जो लोगों की बगलों से गुजरेगी जिसका नतीजा यह होगा कि मुसलमानों की रूह कब्ज़ हो जायेगी और काफिर ही काफिर रह जायेंगे और उन्ही पर क़यामत काइम होगी यह कुछ निशानियाँ थीं जो बयान की गई इनमें से कुछ तो जाहिर हो चुकीं और कुछ बाकी है!
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▣ ❥ 28) जब सारी निशानिया पूरी हो जायेंगी और मुसलमानों की बगलों के बीच से वह खुश्बूदार हवा गुज़र लेगी जिस से सारे मुलसमान वफ़ात पायेंगे तो उसके बाद फ़िर चालीस साल का ज़माना ऐसा गुजरेगा कि उसमें किसी की औलाद न होगी मतलब यह कि चालीस साल से कम उम्र का कोई न होगा वह एक ऐसा वक्त़ होगा कि हर तरफ काफिर ही काफिर होंगे और अल्लाह कहने वाला कोई न होगा लोग अपने अपने कामों में लगे होंगे कि अचानक हज़रते इस्राफील अ़लैहिस्सलाम सूर फुकेंगे पहले पहले उसकी आवाज़ बहुत धीमी होगी फिर धीरे धीरे बहुत ऊँची हो जायेगी लोग कान लगा कर उसकी आवाज़ सुनेंगे और बेहोश होकर गिरेंगे और फिर मर जायेंगे आसमान , जमीन, पहाड़ , चाँद सूरज , सितारे सूर , इस्राफील और तमाम फ़रिश्ते फना हो जायेंगे उस वक्त सिवा उसे खुदाये जुलजलाल के कोई न होगा उस वक्त़ वह पूरे जलाल के साथ फ़रमायेगा!
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▣ ❥ तर्जमा : - आज किस की बादशाहत है कहा हैं वह जाबिर और कहा है मुतकब्बिर मगर है कौन जो जवाब दे फिर खुद ही फरमायेगा कि ;
▣ ❥ तर्जमा : - सिर्फ अल्लाह वाहिद कह़हार की सलतनत है!
▣ ❥ फिर जब अल्लाह तआ़ला चाहेगा इस्राफील अ़लैहिस्सलाम जिन्दा किये जायेंगे और सूर को पैदा करके दोबारा फुंकने का हुक्म देगा सूर फूंकते ही तमाम पहले और बाद वाले इन्सान, जिन्नात हैवानात फरिश्ते मौजूद हो जायेंगे।
▣ ❥ सबसे पहले नबियों के सरदार, अल्लाह के महबूब, हम सब के आका व मौला हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी कब्र मुबारक से इस शान से निकलेंगे कि उनके दाहिने हाथ में पहले ख़लीफ़ा हज़रते अबू बक्र का हाथ और बायें हाथ में दूसरे खलीफा हज़रते उमर फारूक़ रद़िल्लाहु अ़न्हुमा का हाथ होगा फिर मक्का शरीफ और मदीना शरीफ की कब्रों में जितने मुसलमान दफ़न हैं सबको अपने साथ लेकर हश्र के मैदान में तशरीफ़ ले जायेंगे!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 34 📚*
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▣ ❥ अक़ीदा : - क़यामत बेशक काइम होगी और इसका इन्कार करने वाला काफिर है!
▣ ❥ अक़ीदा : - हश्र सिर्फ रूह का ही नहीं होगा बल्कि रूह और जिस्म दोनों का होगा अगर कोई यह कहे कि रूहें उठेंगी और जिस्म ज़िन्दा नहीं होंगे तो वह भी गुमराह और बद्दीन है दुनिया में जो रूह जिस जिस्म के साथ थी उस रूह का हश्र उसी जिस्म के साथ होगा ऐसा नहीं होगा कि कोई नया जिस्म पैदा कर के उसके साथ रूह लगा दी जाये!
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▣ ❥ अक़ीदा : - जिस्म के टुकड़े अगरचे मरने के बाद अलग अलग हो गये हों या उन्हें जानवर खा गये हों अल्लाह तआ़ला जिस्म के उन तमाम टुकड़ों को इकट्ठा कर के क़ियामत के दिन उठायेगा क़ियामत के दिन लोग अपनी अपनी कब्रों से नंगे बदन नंगे पाँव उठेंगे और वह लोग ऐसे होंगे कि उनकी खतना न हुई होगी कोई सवार होगा कोई पैदल कुछ अकेले सवार होंगे और किस सवारी पर दो किसी पर तीन किसी पर चार और किसी पर दस सवार होंगे!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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▣ ❥ काफिर मुँह के बल चलते चलते मैदाने हश्र में जायेंगे किसी को फ़रिश्ते घसीट कर ले जायेंगे किसी को आग घेर कर लायेगी यह हश्र का मैदान मुल्के शाम की ज़मीन पर काइम होगा ज़मीन ताँबे की होगी और इतनी चिकनी और बराबर होगी कि एक किनारे पर राई का दाना गिर जाये ते दूसरे किनारे से साफ दिखाई देगा उस दिन सूरज एक मील की दूरी पर होगा इस ह़दीस के रिवायत करने वाले कहते हैं कि पता नहीं मील का मतलब सुर्मे की सलाई है या रास्ते की दूरी है अगर रास्ते की दूरी भी मान ली जाये तो भी सूरज बहुत करीब होगा!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 34-35 📚*
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▣ ❥ क्यों कि अब सूरज की दूरी चार हज़ार साल सफ़र की दूरी है और हमारी दुनिया की तरफ सूरज की पीठ है तो फिर भी जब सूरज सामने आ जाता है तो घर से निकलना दूभर हो जाता है लेकिन जब सूरज एक मील की दूरी पर होगा और सूरज का मुँह हमारी तरफ़ होगा तो आग और गर्मी का क्या हाल होगा और अब तो मिट्टी की ज़मीन है तो पैरों में छाले पड़ते हैं तो उस वक्त जब ताँबे की ज़मीन होगी और सूरज करीब होगा तो उस गर्मी का कौन अन्दाज़ा कर सकता है अल्लाह पनाह में रखे!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 35 📚*
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▣ ❥ उस वक़्त हाल यह होगा कि सर के भेजे खौलते होंगे और इतना ज़्यादा पसीना निकलेगा कि पसीने को ज़मीन सत्तर गज़ तक सोख लेगी फिर जो पसीना ज़मीन न पी सकेगी वह पसीना ज़मीन के ऊपर चढ़ते चढ़ते किसी के टखनों, किसी के घुटनों, किसी की कमर, किसी के सीने और किसी के गले तक पहुँच जायेगा और काफ़िर के मुँह तक पहुँच कर लगाम की तरह जकड़ लेगा जिस में वह डुबकियाँ खायेगा!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ इस गर्मी में प्यास का यह हाल होगा कि जुबाने सूख कर काँटा हो जायेंगी। और मुँह से बाहर निकल आयेंगी, दिल उबल कर गले को आ जायेंगे, हर एक को उसके गुनाह के मुताबिक सज़ा मिलेगी, जिसने चाँदी सोने की ज़कात न दी होगी उस माल को गर्म कर के उसकी करवट, पेशानी और पीठ पर दाग दिया जायेगा जिसने जानवर की ज़कात न दी होगी उसके जानवर क़ियामत के दिन खूब मोटे ताज़े होकर आयेंगे और उस आदमी को वहाँ लिटा कर वह जानवर अपने सींग से मारते और अपने पैरों से रौंदते हुए उस पर से उस वक़्त तक गुज़रते रहेंगे जब तक कि लोगों का हिसाब खत्म हो!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 35 📚*
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▣ ❥ इसी तरह और दूसरी सज़ायें होंगी, फिर यह कि इन मुसीबतों में कोई एक दूसरे का पूछने वाला न होगा भाई से भाई भागता दिखाई देगा। माँ बाप औलाद से पीछा छुड़ायेंगे अलग बीवी बच्चे अलग जान चुरायेंगे। हर एक अपनी मुसीबत में गिरफ्तार होगा, कोई किसी का मददगार न होगा। उस वक्त हज़रते आदम अ़लैहिसलाम को हुक्म होगा कि वह दोज़खियों की जमाअ़त अलग करें वह पूछेगे कि कितने में से कितनों को अलग करूँ ? अल्लाह फ़रमायेगा कि हर हज़ार से नौ सौ निन्नानवे!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 35 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 104
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ यह वह वक़्त होगा कि बच्चे ग़म के मारे बूढ़े हो जायेंगे हमल वाली औरत का हमल गिर. जायेगा लोग ऐसे दिखाई देंगे कि जैसे नशे में हों हालाँकि नशा में न होंगे। अल्लाह तआ़ला का अज़ाब बहुत सख्त होगा। और लोगों को हज़ारों मुसी़बतों का सामना होगा और यह मुसीबतें दो चार दिन या दो चार महीनों की नहीं होंगी। बल्कि कियामत का दिन पचास हजार बरस का होगा।
▣ ❥ हश्र के आधे दिन तक लोग इसी तरह मुसीबतों में रहते हुये अपने लिए किसी सिफा़रिशी को तलाश करेंगे कि वह खुदाये जुलजलाल के सामने उनकी शफाअ़त कर सके।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 36 📚*
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▣ ❥ मुसीबत के मारे लोग गिरते पड़ते हज़रते आदम अ़लैहिस्सलाम के पास पहुँचेंगे और फ़रियाद करेंगे कि ऐ आदम अलैहिस्सलाम आप अबुल बशर (आदमी के बाप) हैं अल्लाह तआ़ला ने अपको अपने दस्ते कुदरत से बनाया है। आप में अपनी चुनी हुई रूह डाली है। फ़रिश्तों से आप को सजदा कराया। जन्नत में आपको रख कर तामम चीज़ों के नाम सिखाये।
▣ ❥ अल्लाह ने आपको सफी (दोस्त चुना हुआ और खा़लिस) बनाया आप देखते नहीं कि हम कितनी मुसीबतों में हैं आप हमारी शफा़अ़त कीजिए कि अल्लाह तआ़ला हमें इस से नजात दे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम फ़रमायेंगे कि मेरा यह मरतबा नहीं मुझे आज अपनी जान की फ़िक्र है आज अल्लाह ने अपना ऐसा गज़ब और जलाल जाहिर किया है कि न तो ऐसा कभी हुआ और न कभी होगा तुम किसी और के पास जाओ!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 36 📚*
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▣ ❥ लोग पूछेगे कि आप ही बतायें कि हम किस के पास जायें वह कहेंगे कि तुम हज़रते नूह के पास जा क्यूँकि वह पहले रसूल हैं कि ज़मीन पर हिदायत के लिए भेजे गये लोग रोते पीटते मुसीबत के मारे हज़रते नूह अ़लैहिस्सलाम पास पहुंचेंगे और उन से उन की फजी़लतें बयान कर के अपनी शफाअ़त के लिए फरियाद करेंगे कि आप अपने पालनहार से हमारी शफाअ़त कर दीजिये कि वह हमारा फैसला दे लेकिन वह भी यही जवाब देंगे कि मैं इस लाइक नहीं मुझे अपनी पड़ी है तुम किसी और के पास जाओ!
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 107
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▣ ❥ और उनके बताने से मुसीबत के मारे लोग हज़रते इब्रहीम अ़लैहिस्सलाम के पास जायेंगे जिन्हें अल्लाह ने खलील होने का शरफ़ बख़्शा वहाँ भी यही जवाब मिलेगा तो लोग हज़रते मूसा अ़लैहिस्सलाम और हज़रत ईसा अ़लैहिस्सलाम के पास जायेंगे। हज़रते ईसा अ़लैहिस्सला इरशाद फ़रमायेंगे कि तुम उनके पास जाओ जो शफाअत का दरवाज़ा खोलेंगे जिन्हें कोई खौफ नहीं जो तमाम आदम की औलाद के सरदार हैं और वही खातमुन्नबीय्यीन हैं। अब लोग फिरते फिराते ठोकरें खाते रोते चिल्लाले और दुहाई देते उस बेकस पनाह के दरबार में हाज़िर होंगे जो अल्लाह के महबूब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम हैं। सरकार की बहुत सी फजीलतें बयान कर के कहेंगे कि सरकार देखिये तो हम कितनी मुसीबतों में हैं आप अल्लाह के दरबार में हमारी शफाअ़त कर दीजिये, हमको इस मुसीबत से नजात दिलवाईये!
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▣ ❥ सरकार मुसीबत के मारों की फरियाद सुनेंगे और फ़रमायेंगे कि
▣ ❥ तर्जमा : - मैं इस काम के लिये हूँ!
▣ ❥ तर्जमा : - मैं ही वह हूँ जिसे तुम तमाम जगह ढूँढ आये हो।
▣ ❥ यह कह कर हुजूर अल्लाह के दरबार में जायेंगे और सजदा करेंगे। अल्लाह तआ़ला इरशाद फ़रमायेगा कि।
▣ ❥ तर्जमा : - ऐ मुहम्मद अपना सर उठाईये और कहिये आपकी बात सुनी जायेगी और आप जो कुछ माँगेंगे दिया जायेगा और शफाअ़त कीजिये आप की शफाअ़त मकबूल है!
▣ ❥ और एक दूसरी रिवायत में यह भी है कि
▣ ❥ तर्जमा : - आप फरमा दीजिये कि आपकी इताअ़त की जायेगी।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 37 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 109
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ फिर तो शफाअ़त का सिलसिला शुरू हो जायेगा यहाँ तक कि जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान होगा उसे भी शफाअ़त कर के जहन्नम से निकालेंगे। और जो सच्चे दिल से मुसलमान हो और उसका कोई नेक अ़मल न हो उसे भी दोज़ख से निकालेंगे फिर तमाम नबी अपनी अपनी उम्मतों के लिए शफाअ़त करेंगे। फिर वली, शहीद, आलिम, हाफिज़ और हाजी लोग शफाअ़त करेंगे बल्कि हर वह आदमी अपने अपने रिश्तेदारों की शफाअ़त करेगा जिसको कोई दीनी दर्जा या मरतबा अ़ता किया गया हो नाबालिग बच्चे जो मर गये है अपनी बाप माँ की शफाअ़त करेंगे यहाँ तक कि कुछ लोग आलिमों के पास जाकर कहेंगे कि हमने आप के लिए एक वक्त़ वुजू के लिये पानी दिया था। कोई कहेगा कि हमने आपको इस्तिन्जे के लिये ढेले दिये थे तो आलिम उनकी भी शफाअ़त करेंगे!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 109 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ अकी़दा : - हिसाब किताब हक़ है और हर अच्छे बुरे कामों का हिसाब होगा।
▣ ❥ अकी़दा : - जो हिसाब का इन्कार करे वह काफिर है किसी से इस तरह हिसाब लिया जायेगा कि उससे चुपके से पूछा जायेगा कि तूने यह किया और यह किया। अर्ज करेगा ऐ रब यहाँ तक कि तमाम गुनाहों का इकरार लेलेगा अब यह अपने दिन में समझेगा कि अब गये फरमायेगा कि हम ने दुनिया में तेरे ऐब छुपाये और अब बख्शते हैं और किसी से सख्ती के साथ एक एक बात पूछी जायेगी।
▣ ❥ जिससे इस तरह सवाल होगा उसकी हलाकत सामने है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 38 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ अल्लाह तआ़ला किसी से पुछेगा कि ऐ फुलाने क्या मैंने तुझे इज़्ज़त न दी क्या तुझे सरदार न बनाया ? और क्या तुझे घोड़े ऊँट वगैरा का मालिक न बनाया? और जो कुछ भी उसे अता किया गया होगा वह सब उसे याद दिलाया जायेगा वह सब का इकरार करेगा फ़िर अल्लाह पूछेगा कि क्या तुझे मुझ से मिलने का ध्यान था ? वह कहेगा कि नहीं। तब अल्लाह फ़रमायेगा कि जब तूने मुझे भुला दिया तो हम भी तुझे अज़ाब में डालते हैं कुछ काफ़िर ऐसे भी होंगे कि जब अल्लाह तआ़ला अपनी दी हुई दौलतों को उन्हें याद दिला कर उनसे पूछेगा कि तुमने क्या किया!
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 37 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ तो वह जवाब देंगे कि हम तेरे हुक्म को मानते हुए तुझ पर तेरी किताबों और तेरे रसूलों पर ईमान लाये नमाजें पढ़ीं, रोज़े रखे, सदके दिये और बहुत से नेक कामों की फेहरिस्त खुदा के सामने पेश करेंगे। अल्लाह, तआ़ला फ़रमायेगा अच्छा रूको तुम पर गवाह पेश होंगे काफिर अपने जी में सोचेगा कि कौन गवाही देगा लेकिन अल्लाह के हुक्म से उनके मुँह पर ताले पड़ जायेंगे और उनके जिस्म और बंदन के हर हिस्से को हुक्म होगा कि बोल चलो उस वक़्त उनकी रान, हाथ पाँव, गोश्त, पोस्त, हड्डियाँ वगैरा सब गवाही देंगे और उनके सारे बुरे करतूत अल्लाह के सामने पेश करेंगे अल्लाह उन्हें जहन्नम में डाल देगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 37 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया है कि मेरी उम्मत से सत्तर हज़ार बे हिसाब जन्नत में दाखिल होंगे और उनके तुफैल वसीले से हर एक के साथ सत्तर हज़ार और अल्लाह तआ़ला तीन जमाअ़तें और देगा जिनकी गिनती के बारे में वही जाने तहज्जुद पढ़ने वाले बिना हिसाब जन्नत में जायेंगे हुजूर की उम्मत में ऐसा आदमी भी होगा जिनके निन्नानवे के दफ्तर गुनाहों होंगे और हर दफ्तर इतना होगा जहाँ तक निगाह पहुँचे और वह सब दफ़रत खोले जायेंगे।
▣ ❥ फिर अल्लाह पूछेगा कि इनमें से तुम्हें किसी बात का इन्कार तो नहीं है? मेरे फरिश्ते किरामन कातिबीन ' ने तुम पर जुल्म करते हुए ग़लत बातें तो नहीं लिख दी ? या तेरे पास कोई बहाना तो नहीं ? तो वह अपने रब के सामने अपने गुनाहों को तस्लीम करेगा अल्लाह तआ़ला फरमायेगा कि हाँ तेरी एक नेकी हमारे सामने है और उसी की वजह से आज तुझे नजात मिलेगी।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 38 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ फिर एक पर्चा निकाला जायेगा जिस पर लिखा होगा कि
▣ ❥ तर्जमा : - मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं और बेशक मुहम्मद सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम उसके बन्दे और उसके रसूल हैं।
▣ ❥ और अल्लाह उसे हुक्म देगा कि जाओ मीज़ान पर उन दफतरों के सामने इस पर्चे को रख कर तौल करा लो वह कहेगा कि या अल्लाह उन दफतरों के सामने यह पर्चा क्या हक़ीक़त रखता है अल्लाह फरमायेगा कि तेरे साथ इन्साफ किया जायेगा। फिर एक पल्ले पर वह सब दफ़तर रखे जायेंगे और एक में वह पर्चा अल्लाह की मर्जी से वह पर्चे वाला पल्ला दफ़तरों से भारी हो जायेगा यह उसकी रह़मत है और उसकी रह़मत की कोई थाह नहीं वह रहम फ़रमाए तो थोड़ी चीज़ भी बहुत है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 38 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : - क़ियामत के दिन हर एक को उसका आमाल नामा दिया जायेगा जो नेक होंगे उनके दाहिने और जो गुनाहगार होंगे उनके बायें हाथ में और जो काफ़िर होंगे उनका सीना तोड़ कर उनका बायाँ हाथ पीछे निकाल कर पीठ के पीछे दिया जायेगा।
▣ ❥ अक़ीदा : - हक़ बात यह है कि ' हौज़े कौस़र हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम को दिया गया है उस हौज़ की लम्बाई चौड़ाई इतनी है कि जैसे एक महीने का रास्ता हो इस महीने के बारे में नहीं बताया जा सकता कि महीने का मतलब क्या है। हौज़ के किनारे पर मोती के कुब्बे हैं। उसकी मिट्टी बहुत खुश्बूदार मुश्क की है। उसका पानी दूध से ज़्यादा सफ़ेद और शहद से ज़्यादा मीठा है। उस पर बरतन इतने ज़्यादा हैं कि जैसे सितारे अनगिनत होते हैं। उसमें सोने और चाँदी के दो जन्नती परनाले हर वक़्त गिरते रहते हैं।
▣ ❥ अक़ीदा : - मीज़ान हक़ है उस पर लोगों के अच्छे बुरे आमाल तौले जायेंगे। दुनिया में पल्ला भारी होने का मतलब यह होता है कि नीचे को पल्ला झुकता है। लेकिन वहाँ उस का उल्टा होगा और जिसका पल्ला भारी होगा ऊपर को उठ जायेगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 38 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : - हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआ़ला मकामे महमूद अता फरमाएगा उसका मतलब यह है कि तमाम अगले पिछले हुजूर की हम्द (तारीफ) करेंगे।
▣ ❥ अक़ीदा : - हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहिवसल्लम को एक ऐसा झंडा दिया जायेगा जिसको लिवाउल हम्द कहते हैं। उस झंडे के नीचे हज़रते आदम अ़लैहिस्सलाम से लेकर आखिर तक के सारे मोमिन इकट्ठा होंगे।
▣ ❥ अक़ीदा : - पुल सिरात हक़ है यह एक ऐसा पुल है जो जहन्नम के ऊपर लगाया जायेगा बाल से ज्यादा बारीक और तलवार से ज्यादा तेज़ होगा जन्नत में जाने का यही रास्ता है सब से पहले हमारे हुजूर अ़लैहिस्सलाम गुज़रेंगे फिर दूसरे नबी व रसूल उसके बाद हुजूर की उम्मत और फिर दुसरी उम्मतें गुजरेंगी।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 38-39 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ लोगों के जैसे अच्छे या बुरे काम होंगे उसी तरह पुल सिरात के पार करने के ढंग भी होंगे बाज़ तो ऐसी तेज़ी के साथ गुजरेंगे जैसे बिजली का कौंदा कि अभी चमका और अभी गायब हो गया और बाज़ तेज़ हवा की तरह कोई ऐसे जैसे कोई परिन्द उड़ता है और कुछ जैसे घोड़ा दौड़ता है और बाज़ जैसे आदमी दौड़ता है यहाँ तक कि बाज़ चूतड़ों के बल घिसटते हुये और कुछ चींटी की तरह रेंगते हुये पुल सिरात को पार करेंगे पुलसिरात के दोनों तरफ़ बड़े बड़े आंकड़े लटकते, होंगे। अल्लाह ही जाने वह कितने बड़े होंगे जिसके बारे में अल्लाह का हुक्म होगा उसे पकड़ लेंगे इनमें से कुछ ज़ख्मी होकर बच जायेंगे और कुछ जहन्नम में गिराये जायेंगे और हलाक होंगे। इधर तमाम महशर वाले तो पुल पार करने में लगे होंगे मगर वह बे गुनाह गुनाह गारों का शफी पुल के किनारे खड़ा हुआ अपनी उम्मत के गुनाहगारों के लिए गिरया - ओ - जारी कर के यह दुआ कर रहा होगा।
▣ ❥ तर्जमा : - इलाही इन गुनाहगारों को बचा ले बचा ले।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 39 📚*
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ उस दिन हुजूर किसी एक ही जगह पर नहीं ठहरेंगे बल्कि कभी मीज़ान पर होंगे और जिसकी नेकियों में कमी देखेंगे उसकी शफाअ़त करके उसे नजात दिलायेंगे कभी हौजे कौसर पर प्यासों को सैराब करते हुये नज़र आयेंगे और आन की आन में फ़िर पुल पर गरज़ हर जगह उन्हीं की पहुँच होगी हर एक उन्हीं की दुहाई देगा उन्हीं से फरियाद करता होगा और उनके सिवा पुकारा भी किसको जा सकता है क्यों कि हर एक को अपनी पड़ी होगी। सिर्फ सरकार ही की जा़त ऐसी है कि जिन्हें अपनी कोई फिक्र नहीं बल्कि सारे आलम का बोझ उन्हीं पर है। दूरूद हो उन पर
▣ ❥ तर्जमा : - " अल्लाह तआ़ल उन पर रह़मत नाज़िल फ़रमाये और उनकी औलाद और उनके असहाब पर (उन्हें) बरकत और सलामती दे।
🤲🏻 ऐ अल्लाह ! हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम के वसीले से हमको हश्र की मुसीबतों से नजात दे और उन पर उनकी औलाद और उनके असहाब पर अफज़ल दुरूद और सलाम, और रहमत नाज़िल कर।
آمین ثم آمین یارب العالمین
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 39 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 119
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ यह क़ियामत का दिन पचास हज़ार साल का दिन होगा जिस की मुसीबतें अनगिनत होंगी लेकिन जो अल्लाह के खास बन्दे हैं उनके लिए क़ियामत का दिन इतना हल्का कर दिया जायेगा कि जितनी देर में आदमी फ़र्ज़ की नमाज़ पढ़ ले उतनी ही देर का दिन मालूम होगा। कुछ लोगों के लिए पलक झपकते ही सारा दिन खत्म हो जायेगा जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने फरमाया कि,
▣ ❥ तर्जमा : - क़ियामत का मुआ़मला नहीं मगर जैसे पलक झपकना बल्कि उससे भी कम।
▣ ❥ यानी अल्लाह के ख़ास बन्दों के लिए क़ियामत का दिन पलक झपकने के बराबर या उससे भी कम है सब से बड़ी नेमत जो मुसलमानों को उस रोज़ मिलेगी वह अल्लाह का दीदार होगा क्योंकि अल्लाह तआ़ला का दीदार हर दौलत से बड़ी दौलत है जिसे एक बार उस की ज्यारत नसीब होगी वह उसकी लज़्ज़त को कभी नहीं भूल सकता। और सब से पहले अल्लाह का दीदार दोनों जहान के सरदार हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम को होगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 39-40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 120
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ अब तक तो हश्र के मुखतसर हालात बताये गये और उन तमाम कामों के बाद हमेशा के लिए जन्नत या जहन्नम ठिकाना होगा किसी को आराम का घर मिलेगा जिस में आराम की कोई थाह नहीं, उस आराम के घर को जन्नत कहते हैं। और किसी को तकलीफ़ के घर में जाना होगा जिसे जहन्नम कहते हैं यह जन्नत और दोज़ख हक हैं इनका इन्कार करने वाला काफ़िर है!
▣ ❥ अक़ीदा : - अल्लाह तआ़ला ने जन्नत और दोज़ख को हज़ारों साल से भी पहले पैदा किया और जन्नत और दोज़ख आज भी मौजूद हैं ऐसा अक़ीदा रखना कि क़ियामत से पहले या क़ियामत के दिन जन्नत और दोज़ख़ बनाये जायेंगे गुमराही और बद्दीनी है।
▣ ❥ अक़ीदा : - क़ियामत, बस यानी मौत के बाद जिन्दा होना, हश्र, हिसाब सवाब, अज़ाब, जन्नत और दोज़ख सब का वही मतलब है जो मुसलमानों में मशहूर है कुछ लोगों ने कुछ नये मतलब गढ़ लिये हैं जैसे सवाब का मतलब अपनी अच्छाईयों को देखकर खुश होना अज़ाब का मतलब अपने बुरे कामों को देखकर गमगीन होना या सिर्फ रूहों का हश्र समझना बहुत बड़ी गुमराही और बद्दीनी है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 121
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*☝🏻 आखिरत और हश्र का बयान*
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▣ ❥ जन्नत एक मकान है जिसे अल्लाह तआ़ला ने ईमान वालों के लिये बनाया है उसमें ऐसी ऐसी नेमतें रखी गई हैं जिनको न आँखों ने देखा न कानों ने सुना और न कोई उन नेमतों का गुमान कर सकता है यानी बै देखे वर्ना देख कर तो आप ही जानेंगे , तो जिन्होंने दुनियावी हयात की हालत में मुशाहदा किया वह इस हुक्म से अलग हैं खास हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम इसलिए जन्नत की कोई मिसाल दी ही नहीं जा सकती क्योंकि काबा शरीफ जन्नत से आला है और हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम की तुर्बत तो काबा बल्कि अर्श से भी अफ़ज़ल है मगर यह दुनिया की चीजें नहीं। हाँ जिन्होंने अल्लाह के करम से अपनी दुनियावी ज़िन्दगी में जन्नत को देखा है वह जानते हैं कि जन्नत में क्या क्या चीजें हैं और उसमें कितना आराम है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 122
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ जाये, चाँद सूरज की रौशनी मंद पड़ जाये और पूरी दुनिया उसकी खुश्बू से भर जाये। एक रिवायत - में यह भी है कि अगर हूर अपनी हथेली ज़मीन और आसमान के बीच निकाले तो सिर्फ हथेली की खुबसूरती को देख कर लोग फितने में पड़ जायेंगे। अगर जन्नत की कोई ज़री बराबर भी चीज़ दुनिया में आ जाये तो आसमान ज़मीन सब में सजावट पैदा हो जाये। जन्नती का कंगन चाँद सूरज और तारों को*_ _*मांद कर दे। जन्नत की थोड़ी सी जगह जिस में कूड़ा रख सकें वह पूरी दुनिया से बेहतर है।
▣ ❥ जन्नत की लम्बाई चौड़ाई के बारे में किसी को कुछ पता नहीं ।अल्लाह और उसके रसूल ज़्यादा अच्छा जानते हैं मुख्तसर यह है कि जन्नत में सौ दर्जे हैं एक दर्जे से दूसरे दर्जे में इतनी दूरी है कि जैसे जमीन से आसमान तक तिर्मिज़ी शरीफ की एक हदीस का मतलब यह है कि जन्नत के एक दर्जे में अगर सारा आलम समा जाये तो फिर भी जगह बाकी रहेगी जन्नत में एक इतना बड़ा पेड़ है कि अगर उसके साये में कोई सौ बरस तक तेज़ घोड़े से चलता रहे फिर भी वह साया खत्म न होगा। जन्नत के दरवाज़ों की चौड़ाई इतनी होगी कि उसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक तेज़ धोड़े से सत्तर साल का रास्ता होगा।
▣ ❥ फिर भी जन्नत में जाने वाले इतने ज़्यादा होंगे कि मोंढे से मोंढा छिलता होगा बल्कि भीड़ से दरवाज़ा चरचराने लगेगा जन्नत में तरह तरह के साफ सुथरे ऐसे महल होंगे कि अन्दर की चीजें बाहर से और बाहर की चीजें अन्दर से दिखाई देंगी।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 40-41 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 123
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ जन्नत की दीवारें सोने चाँदी की ईटों और मुश्क के गारे से बनी हैं ज़मीन जाफरान की होगी। कंकरियों की जगह मोती और याकूत होंगे। एक रिवायत में यह भी है कि जन्नते अद्न की एक ईंट सफेद मोती की, एक लाल याकूत की और एक हरे ज़बरजद की और मुश्क का गार है घास की जगह जाफ़रान और अम्बर की मिट्टी है, जन्नत में एक मोती का खेमा होगा जिसकी ऊँचाई साठ मील की होगी, जन्नत में पानी, दूध शहद और शराब की चार दरियायें है। उनसे नहरें निकल कर हर एक जन्नती के में बह रही हैं।
▣ ❥ जन्नत की नहरें ज़मीन खोद कर नहीं बहती बल्कि ज़मीन के ऊपर जारी हैं नहरों का एक किनारा मोती का दूसरा याकूत का उन नहरों की ज़मीन खालिस मुश्क की है जन्नत की शराब दुनिया की शराब की तरह नहीं जिस में कड़वाहट, बदबू और नशा होता है और उसे पीकर लोग बेहोश हो जाते हैं और आपे से बाहर होकर गाली गलौच बकते हैं जन्नत की शराब इन बातों से पाक है जन्नत में जन्नतियों को हर किस्म के मज़ेदार खाने मिलेंगे और जो चाहेंगे फौरन उनके सामने मौजूद हो जायेगा।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 41 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 124
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ अगर जन्नती किसी चिड़िया का गोश्त खाना चाहे तो उसी वक़्त भुना हुआ गोश्त उसके सामने आ जायेगा अगर कोई पानी पीना चाहे तो पानी का कूजा (प्याला) उसकी प्यास के मुताबिक - उस के पास आ जायेगा। ज़रूरत से न एक बूंद कम होगा न एक बूंद ज्यादा। पीने के बाद वह आबखोरा (पानी पीने का बर्तन) खुद उस के पास से चला जायेगा।
▣ ❥ जन्नत में नजासत, गन्दगी, पाखाना, पेशाब, थूक, रेठ, कान का मैल और बदन का मैल वगैरा कोई गन्दगी नहीं होगी। जन्नती लोगों को पेशाब पाख़ाना नहीं होगा सिर्फ एक खुश्बूदार पसीना निकलेगा। जन्नतियों का खाया हुआ सब खाना हजम हो जायेगा और निकले हुये पसीने और डकार की खुश्बू मुश्क की होगी।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 40 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 125
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ हर आदमी की खुराक सौ आदमियों की होगी और हर एक को सौ बीवियों के रखने की ताकत दी जायेगी हर वक़्त जुबान से तस्बीह व तकबीर वगैरा बिना इरादे के बिना मेहनत के जैसे साँस चलती है उसी तरह आदमी की जुबान से अल्लाह की तस्बीह और तकबीर जारी रहेगी हर जन्नती के सिरहाने दस हज़ार खादिम खड़े होंगे इन खादिमों के एक हाथ में चाँदी का प्याला और दूसरे हाथ में सोने का प्याला होगा और हर प्याले में नई नई नेमतें होंगी जन्नती जितना खाता जायेगा उन चीज़ों की लज्जत बढ़ती जायेगी हर लुकमे और निवाले में सत्तर मज़े होंगे हर एक मज़ा अलग अलग होगा और जन्नती सब को एक साथ महसूस करेंगे।
▣ ❥ न तो जन्नतियों के कपड़े मैले होंगे और न उनकी जवानी ढलेगी जन्नत में जो पहला गिरोह जायेगा उनके चेहरे चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमकते होंगे दूसरा गिरोह वह जैसे कोई निहायत रौशन सितारा जन्नतियों के दिल में कोई भेद भाव न होगा आपस में सब एक दिल होंगे जन्नतियों में से हर एक को खास हूरों में से कम से कम दो बीविया ऐसी मिलेंगी कि सत्तर सत्तर जोड़े पहने होंगी फिर भी उन जोड़ों और गोश्त के बाहर से उनकी पिंडलियों का गूदा दिखाई देगा जैसे सफेद गिलास में सुर्ख शराब दिखाई देती है यह इसलिए कि अल्लाह ने उन हूरों को याकूत की तरह कहा है और याकूत में अगर छेद कर के धागा डाला जाये तो ज़रूर बाहर से दिखाई देगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 42 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 126
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ आदमी अपने चेहरे को उनके रुख्सार में आईने से भी ज़्यादा साफ देखेगा उसके रूख़्सार पर एक मामूली मोती होगा लेकिन उस मोती में इतनी चमक होगी कि उससे पूरब से पश्चिम तक रौशन हो जायेगा जन्नत का कपड़ा दुनिया में पहना जाये तो उसे देखने वाला बेहोश हो जाये मर्द जब जन्नत की औरतों के पास जाएगा तो उन्हें हर बार कुँवारी पाएगा मगर इसकी वजह से मर्द व औरत किसी को कोई तकलीफ न होगी हूरों की थूक में इतनी मिठास होगी कि अगर कोई हूर समुन्दर में या सात समुन्दरों में थूक दे तो सारे समुन्दर शहद से ज़्यादा मीठे हो जायेंगे।
▣ ❥ जब कोई आदमी जन्नत में जायेगा तो उस के सरहाने पैताने दो हूरें बहुत अच्छी आवाज़ से गाना गायेंगी मगर उनका गाना ढोल बाजों के साथ नहीं होगा बल्कि वह अपने गानों में अल्लाह की तारीफ करेंगी उन की आवाज़ में इतनी मिठास होगी कि किसी ने वैसी आवाज़ न सुनी होगी और वह यह भी गायेंगी कि हम हमेशा रहने वालिया हैं कभी न मरेंगे हम चैन वालियाँ हैं कभी तकलीफ में न पड़ेंगे और हम राज़ी हैं नाराज़ न होंगे और यह भी कहेंगी कि उस के लिए मुबारक बाद जो हमारा और हम उस के हों।
▣ ❥ जन्नतियों के सर पलकों और भवों के अलावा कहीं बाल न होंगे। सब बे बाल के होंगे उनकी आँखें सुर्मगी होंगी तीस बरस से ज़्यादा कोई मालूम न होगा मामूली जन्नती के लिए अस्सी हज़ार ख़ादिम और बहत्तर हज़ार बीवियाँ होंगी और उनको ऐसे ताज दिये जायेंगे कि उसमें के कम दर्जे के मेती से भी पूरब से पश्चिम तक चमक हो जायेगी।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 43 📚*
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ अगर कोई यह चाहे कि उसके औलाद हो तो औलाद होगी लेकिन आन की आन में बच्चा तीस साल का हो जायेगा जन्नत में न तो नींद आयेगी और न कोई मरेगा क्यूँकि जन्नत में मौत नहीं।
▣ ❥ हर जन्नती जब जन्नत में जायेगा तो उसको उसके नेक कामों के मुताबिक मर्तबा मिलेगा और अल्लाह के करम की कोई थाह नहीं फिर जन्नतियों को एक हफ्ते के बाद इजाज़त दी जायेगी कि वह अपने परवरदिगार की जियारत करें फिर अल्लाह का अर्श ज़ाहिर होगा और अल्लाह तआला जन्नत के बागों में से एक बाग में तजल्ली फरमायेगा।
▣ ❥ जन्नतियों के लिये नूर के, मोती के याकूत के, जबरजद के, सोने के और चाँदी के मिम्बर होंगे और कम से कम दर्जे के जन्न्ती मुश्क और काफूर के टीले पर बैठेंगे और उनमें आपस में अदना और आला कोई नहीं होगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 43 📚*
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ खुदा का दीदार ऐसा साफ होगा जैसे सूरज और चौदहवीं रात के चाँद को हर एक अपनी जगह से देखता है अल्लाह की तजल्ली हर एक जन्नती पर होगी अल्लाह तआ़ला उन जन्नतियों में से किसी को उसके गुनाह याद दिलाकर फरमायेगा कि ऐ फलां का लड़के फलाँ तुझे याद है कि जिस दिन तूने ऐसा ऐसा किया था ? बन्दा जवाब देगा कि ऐ मेरे अल्लाह क्या तूने मुझे बख़्श नहीं दिया था ? अल्लाह फरमायेगा कि हाँ मेरी मगफिरत की वुसअ़त की वजह ही से तू इस मर्तबे को पहुंचा है। वह सब इसी हालत में होंगे कि बादल छा जायेंगे और उन पर ऐसी खुश्बू की बारिश होगी कि उन लोगों ने ऐसी, खुश्बु कभी न पाई होगी फिर अल्लाह फरमायेगा कि उस तरफ जाओ जो मैंने तुम्हारे लिए इज्जत तैयार कर रखी है। उसमें से जो चाहो ले लो।
▣ ❥ लोग फिर एक ऐसे बाज़ार में पहुँचेंगे जिसे फ़रिश्तों ने घेर रखा होगा और उनमें ऐसी चीजें होंगी कि न तो आँखों ने देखा होगा न कानों ने सुना होगा और न उन चीज़ों का कभी किसी ने ध्यान किया होगा जन्नती उस में से जो चीज़ पसन्द करेंगे उनके साथ कर दी जायेगी जन्नती जब आपस में एक दूसरे से मिलेंगे और छोटे रूतबे वाला बड़े रूतबे वाले के लिबास को देख कर पसन्द करेगा तो अभी बातें खत्म भी न होंगी कि छोटे मरतबे वाला अपने कपड़े को बड़े मरतबे वाले से अच्छा समझने लगेगा यह इसलिए कि जन्नत में किसी के लिए ग़म नहीं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 43 📚*
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*☝🏻 जन्नत का बयान*
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▣ ❥ फिर वहाँ से अपने अपने मकानों को वापस आयेंगे उनकी बीवियाँ उनका इस्तिकबाल करेंगी और मुबारक बाद देकर कहेंगी कि आपका जमाल यानी खुबसूरती पहले से भी कहीं ज़्यादा बढ़ गई है वह जवाब देंगे चुंकि हमें अल्लाह के दरबार में हाज़िरी नसीब हुई इसलिए हमें ऐसा ही होना चाहिए जन्नती बाज़ आपस में एक दूसरे से मिलना चाहेंगे तो इसके दो तरीके होंगे एक यह कि एक का तख्त दूसरे के पास चला जायेगा दूसरी सूरत यह होगी कि जन्नतियों को बहुत अच्छे किस्म की सवारियाँ जैसे घोड़े वगैरा दिये जायेंगे कि उन पर सवार होकर जब चाहें और जहाँ चाहें चले जायेंगे।
▣ ❥ सबसे कम दर्जे का वह जन्नती है कि उसके बाग बीवियाँ , खादिम और तख्त इन्नने ज़्यादा होंगे कि हज़ार बरस के सफर की दूरी तक यह तमाम चीजें फैली हुई होंगी उन जन्नतियों में अल्लाह के नज़दीक सबसे, इज्जत वाला वह है जो उसका दीदार हर सुबह और शाम करेगा जन्नती जब जन्नत में पहुँच जायेंगे और जन्नत की नेमतें उनके सामने होंगी और जन्नत में चैन आराम को जान जायेंगे तो अल्लाह तबारक व तआ़ला उनसे पूछेगा कि क्या कुछ और चाहते हो ? तो - वह कहेंगे कि या अल्लाह तुने हमारे चेहरे रोशन किये जन्नत में दाखिल किया और जहन्नम नजात दी उस वक्त़ मखलूक पर पड़ा हुआ पर्दा उठ जायेगा और उन्हें अल्लाह का दीदार नसीब होगा। दीदारे इलाही से बढ़ कर कोई चीज़ नहीं
▣ ❥ तर्जमा : - "या अल्लाह ! हमको अपने महबूब सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम जो रऊफ ओ रहीम हैं उनके वसीले से अपना दीदार नसीब फरमा। *आमीन*
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 43-44 📚*
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ दोज़ख एक ऐसा मकान है जो अल्लाह तआ़ला की शाने जब्बारी और जलाल की मज़हर (जा़हिर करने वाली) है। जिस तरह अल्लाह की रहमत और नेमत की कोई हद नहीं कि इन्सान शुमार नहीं कर सकता और जो कुछ इन्सान सोचता है वह शुम्मह (ज़र्रा) बराबर भी नहीं , उसी तरह उसके गज़ब और जलाल की कोई हद नहीं। इन्सान जिस कद्र भी दोज़ख की आफ़तों मुसीबतों और तकलीफों को सोच सकता है वह अल्लाह के अज़ाब का एक बहुत छोटा सा हिस्सा होगा।
▣ ❥ कुर्आन व अहादीस में जो दोज़ख के अज़ाब का बयान है उसमें से कुछ बातें ज़िक्र क की जाती हैं मुसलमान देखें और दोज़ख से पनाह माँगें। हदीस शरीफ में है कि जो बन्दा जहन्नम से पनाह माँगता है जहन्नम कहता है कि ऐ रब ! यह मुझ से पनाह माँगता है तू इसको पनाह दे कुर्आन शरीफ में कई जगहों पर आया है कि जहन्नम से बचो और दोज़ख से डरो।
▣ ❥ हमारे सरकार हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम हमें सिखाने के लिए ज़्यादा तर जहन्नम से पनाह माँगा करते थे जहन्नम का हाल यह होगा कि उसकी चिंगारियाँ ऊँचे ऊँचे महलों के बराबर इस तरह उड़ेंगी कि जैसे ज़र्द ऊँटों की कतारें लगातार आ रही हों। पत्थर , आदमी जहन्नम के ईधन हैं दुनिया की आग जहन्नम की आग के सत्तर हिस्सों में उसे एक हिस्सा है जिस जिस जहन्नमी को सब से कम दर्जे का अज़ाब होगा उसे आग की जूतियाँ पहनाई जायेंगी जिससे उसके सर का भेजा ऐसा खौलेगा जैसे तांबे की पतीली खौलती है और वह यह समझेगा कि सब से ज़्यादा अज़ाब उसी पर हो रहा है जबकि यह हल्का अज़ाब है जिस पर सब से हल्के दर्जे का अज़ाब होगा उस से अल्लाह तआ़ला पूछेगा कि अगर सारी ज़मीन तेरी हो जाये तो क्या तू इस अज़ाब से बचने के लिए सारी ज़मीन फ़िदये में दे देगा ? वह जवाब देगा कि हाँ हाँ मैं दे दूँगा । फिर अल्लाह तआ़ला इरशाद फरमायेगा कि ऐ बन्दे मैंने तेरे लिये बहुत आसान चीज़ का हुक्म उस वक्त दिया था जब कि तू आदम की पीठ में था लेकिन तू न माना।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 44 📚*
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ जहन्नम की आग हजार बरस तक धैंकाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल लाल हो गई फिर हज़ार बरस और जलाई गई यहाँ तक कि सफेद हो गई उस के बाद फिर हज़ार साल जलाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल काली हो गई और अब वह बिल्कुल काली है और उस में रौशनी का नामो निशान नहीं।
▣ ❥ जहन्नम का हाल बताते हुए हज़रते जिब्रील अ़लैहिस्सलाम ने हुजूर सल्लल्लाहु तआ़ला अ़लैहि वसल्लम से कसम खा कर कहा कि अगर जहन्नम से एक सुई के नाके के बराबर खोल दिया जाये तो जमीन के सारे बसने वाले उसकी गर्मी से मर जायें।
▣ ❥ और इसी तरह यह भी कहा कि अगर जहन्नम का कोई दारोगा दुनिया वालों के सामने आ जाये तो उसकी डरावनी सूरत के डर से सब के सब मर जायें और उन्हों ने यह भी बताया कि अगर जहन्नमियों के जंजीर की एक कड़ी दुनिया के पहाड़ पर रख दी जाये तो थरथर कांपने लगे और यह पहाड़ जमीन तक धंस जायें।
▣ ❥ दुनिया की यह आग जिसकी गर्मी और तेज़ी को सब जानते हैं कि कुछ मौसमों में उसके पास जाना भी दूभर होता है फिर भी यह आग खुदा से दुआ करती है कि या अल्लाह ! हमें जहन्नम में फिर न भेज देना लेकिन तअज्जुब की बात यह है कि इन्सान जहन्नम में जाने का काम करता है और उस आग से नहीं डरता जिससे आग भी पनाह माँगती है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 44 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 132
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ दोज़ख की गहराई के बारे में कुछ नहीं बताया जा सकता फ़िर भी हदीसों के देखने से पता चलता है कि अगर पत्थर की चट्टान जहन्न्म के किनारे से उस की गहराई में फेंकी जाये तो सत्तर बरस में भी तह तक न पहूँचेगी।
▣ ❥ जब के इन्सान के सर के बराबर सीसे का गोला अगर आसमान से ज़मीन को फेंका जाये तो रात आने से पहले पहले ज़मीन तक पहुँच जायेगा हालाँकि आसमान से ज़मीन तक पाँच सौ साल तक का रास्ता है। फिर उसमें अलग अलग तबके वादियाँ और कूचे हैं, कुछ वादियाँ ऐसी भी हैं कि जिनसे जहन्नम भी हर रोज़ सत्तर बार पनाह माँगता है।
▣ ❥ अब आप अन्दाज़ा लगाईये कि जहन्नम की गहराई क्या होगी, जहन्नम जैसे डरावने घर में अगर और कुछ अज़ाब न होता फिर भी यह बहुत बड़ी सज़ा और तकलीफ की जगह थी लेकिन जहन्नम में काफिरों के लिये अलग अलग सज़ायें भी हैं जैसा कि बताया गया अब कुछ और जहन्नम का हाल और उसके अज़ाब लिखे जा रहे हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 45 📚*
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ काफिरों को फरिश्ते लोहे के ऐसे ऐसे भारी गुर्जो से मारेंगे कि अगर कोई गुर्ज़ ज़मीन पर रख दिया जाये और उसे दुनिया के सारे इन्सान और जिन्नात मिलकर एक साथ उठाना चाहें तो न उठा सकें जहन्नम में बहुत बड़े बड़े साँप और बुख़्ती ऊँट के बराबर बिच्छू होंगे जो अगर एक बार काट लें तो उस से दर्द जलन और बेचैनी हज़ार साल तक रहे बुख़्ती ऊँट ऐसे ऊँट कहलाते हैं जो हर तरह के ऊँटों से बड़े होते हैं।
▣ ❥ जहन्नमियों को तेल की जली हुई तलछट की तरह बहुत खौलता हुआ पानी पीने को दिया जायेगा कि जैसे ही उस पानी को मुँह के करीब ले जायेंगे उसकी गर्मी और तेज़ी से चेहरे की खाल जल कर गिर जायेगी सर पर वह गर्म पानी बहाया जायेगा और जहन्नमिया के बदन से निकली हुई पीप उन्हें पिलाई जायेगी । काँटेदार थूहड़ उन्हें खाने को दिया जायेगा।
▣ ❥ वह ऐसा होगा कि अगर उसकी एक बूंँद दुनिया में आ जाये तो उस की जलन और बदबू से सारी दुनिया का रहन सहन बरबाद हो जाये जहन्नमी जब थूहड़ को खायेंगे तो उनके गले में फँस जायेगा उसे उतारने के लिये जब वह पानी मांगेंगे तो उन्हें वही पानी दिया जायेगा जिस का ज़िक्र पहले किया जा चुका है।
▣ ❥ वह तलछट की तरह पानी पेट में जाते ही आंतों के टुकड़े टुकड़े कर देगा और आँतें शोरबे की तरह बह कर कदमों की तरफ निकलेंगी प्यास इस बला की होगी कि जहन्नमी उस पानी पर भी ऐसे गिरेंगे जैसे ' तौंस ' के मारे हुए ऊँट गिरते हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 45 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 134
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ काफ़िर जब जहन्नम की मुसीबतों और तकलीफ़ों से अपनी जान से अजिज़ आजायेंगे तो आपस में राय करके हज़रत मालिक (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) को पुकारते हुए फरयाद करेंगे कि ऐ मालिक ! तेरा रब हमारा किस्सा तमाम कर दे लेकिन वह हजार बरस तक कोई जवाब न देंगे हज़ार साल के बाद कहेंगे कि तुम मुझ से क्या कहते हो उससे कहो जिसकी तुमने नाफरमानी की है।
*▣ ❥ फिर वह अल्लाह को उसके रह़मत भरे नामों से हज़ार साल तक पुकारेंगे वह भी हजार साल तक जवाब न देगा उसके बाद फरमायेगा कि दूर हो जाओ जहन्नम में पड़े रहो मुझ से बात न करो फिर यह काफिर हर तरह की भलाईयों से नाउम्मीद हो कर गधों की तरह रोना और चिल्लाना शुरू करेंगे पहले आँसू निकलेंगे और जब आँसू खत्म हो जायेंगे तो खून के आँसू रोयेंगे रोते रोते उन के गालों में खन्दकों की तरह गढे पड़ जायेंगे।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 46 📚*
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ उन के रोने से खून और पीप इतना निकलेगा कि अगर उस में कश्तियाँ डाल दी जायें तो वह भी चलने लगें जहन्नमियों की सूरतें ऐसी बुरी होंगी कि अगर कोई जहन्नमी अपनी उसी सूरत के साथ इस दुनिया में लाया जाये तो उसकी सूरत और उसकी बदबू से तमाम लोग मर जायें और उनका बदन इतना बड़ा कर दिया जायेगा कि उन के एक मोंढे से दूसरे मोंढे तक की दूरी तेज़ सवार के लिये तीन दिन होगी।
▣ ❥ एक एक दाढ़ उहुद पहाड़ के बराबर होगी उनके बदन की खाल की मोटाई ' बियालीस ज़िराअ ' 42 हाथ , या 42 गज़ की होगी उनकी जुबानें एक दो कोस तक मुँह से बाहर घसिटती होंगी कि लोग उन्हें रौंदते हुए चलेंगे बैठने की जगह इतनी होगी कि जैसे मक्के से मदीने तक और वह जहन्नम में मुँह सिकोड़े हुए होंगे उन के ऊपर का होंट सिमट कर बीच सर को पहुँच जायेगा और नीचे का लटक कर नाफ तक आ जायेगा इन मजामीन से यह पता चलता है कि जहन्नम में काफ़िरों की सूरत इन्सानों जैसी न होगी इसलिए कि इन्सान की सूरत को अहसने तकवीम, कहा गया है और अल्लाह को इन्सान की सूरत इसलिए पसन्द है कि आदमी की सूरत उस के महबूब सल्लल्लाहु तआला अ़लैहि वसल्लम से कुछ न कुछ मिलती जुलती है इसलिए अल्लाह ने जहन्नमियों की सूरत को आदमियों की सूरत से अलग कर दिया है।
▣ ❥ आखिर में काफ़िरों के लिए यह होगा कि उनमें से हर एक को उनके कद के बराबर आग के सन्दूक में बन्द किया जायेगा सन्दूक में आग भड़काई जायेगी और आग का ताला लगाया जायेगा फिर उस बक्स को आग के एक दूसरे सन्दूक में रखा जायेगा और उन दोनों के बीच आग जलाई जायेगी और उस दूसरे सन्दूक में भी आग का ताला लगाया जायेगा फिर उस बक्स को एक तीसरे आग के सन्दूक में डाला जायेगा और उसे भी आग के ताले में बन्द किया जायेगा और आग में डाल दिया जायेगा अब हर एक काफ़िर यह समझेगा कि उस के सिवा अब कोई भी आग में नहीं रहा और यह अज़ाब तमाम अज़ाबों से बड़ा है और अब हमेशा उस के लिए अजाब ही अज़ाब है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 46 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 136
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*☝🏻 दोज़ख का बयान*
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▣ ❥ जब सब जन्नती जन्नत में दाखिल हो जायेंगे और जहन्नम में सिर्फ वही रह जायेंगे जिन को हमेशा के लिए उस में रहना है। उस वक़्त जन्नत और दोज़ख के बीच 'मौत' को मेंढे की शक्ल में लाकर खडा किया जायेगा, फिर जन्नत वालों को पुकारा जायेगा वह डरते हुए झाँकेंगे कि कहीं ऐसा न हो कि यहाँ से निकलना पड़े फिर जहन्नमियों को आवाज़ दी जायेगी वह खुश होते हुए झाँकेंगे कि शायद उन्हें इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाये फिर जन्नतियों और जहन्नमियों को वह मेढा दिखाकर पूछा जायेगा कि क्या तुम लोग इसे पहचानते हो ? तो जवाब में सब कहेंगे कि हाँ यह मौत है तो फिर वह मौत ज़िबह कर दी जायेगी और कहा जायेगा कि ऐ जन्नत वालों हमेशगी है अब मौत नहीं आयेगी और ऐ दोज़ख वालों तुम्हें अब हमेशा जहन्नम ही में रहना है और अब तुम्हें भी मरना नहीं है उस वक़्त जन्नतियों के लिए बेहद खुशी होगी और जहन्नमियों को बेइन्तिहा गम।
▣ ❥ तर्जमा : - "दीन दुनिया और आख़िरत में हम अल्लाह से माफ़ी और आफियत का सवाल करते है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 46-47📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 137
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ *ईमान और कुफ्र का बयान :* ईमान इसे कहते हैं कि सच्चे दिल से उन तमाम बातों की तस्दीक करे जो दीन की ज़रूरियात में से हैं और किसी एक जरूरी दीनी चीज़ के इन्कार को कुफ्र कहते हैं अगरचे बाकी तमाम ज़रूरियात को हक और सच मानता हो मतलब यह कि अगर कोई सारी ज़रूरी दीनी बातों को मानता हो लेकिन किसी एक का इन्कार कर बैठे तो अगर जिहालत और नादानी की वजह से है तो कुफ्र है और जान बूझ कर इन्कार करे तो काफिर है।
▣ ❥ दीन की ज़रूरियात में वह बातें हैं जिनको हर खास और आम लोग जानते हों जैसे : - अल्लाह तआला की वहदानियत यानी अल्लाह तआला को एक मानना, नबियों की नुबुव्वत, जन्नत, दोज़ख, हश्र वगैरा। मिसाल के तौर पर एअतिकाद रखता हो कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ‘खातमुन्नबीय्यीन ' हैं (यानी हुजूर के बाद अब कोई नया नबी कभी नहीं आएगा)
▣ ❥ अवाम से मुराद वह लोग हैं जिनकी गिनती आलिमों में तो न हो मगर आलिमों के साथ उनका उठना बैठना रहता हो और वह दीनी और इल्मी बातों का शौक रखते हों। ऐसा नहीं कि वह जंगल बियाबानों और पहाड़ों के रहने वाले हों जो कलिमा भी ठीक से नहीं पड़ सकते हों ऐसे लोग अगर दीन की ज़रूरी बातों को न जानें तो उनके न जानने से दीन की ज़रूरी बातें गैर ज़रूरी नहीं हो जायेंगी। अलबत्ता उनके मुसलमान होने के लिए यह बात ज़रूरी है कि वह दीन और मजहब की ज़रूरी चीजों का इन्कार न करें और यह एअतिकाद रखते हों कि इस्लाम में जो कुछ है हक है और उन सब पर उनका ईमान हो।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 46-47 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 138
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : - अस्ले ईमान सिर्फ तस्दीक का नाम है यानी जो कुछ अल्लाह व रसूल जल्ला व अला सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया है उसको दिल से हक़ मानना। आमाल ( यानी नमाज़ , रोज़ा वगैरा ) जुज़्वे ईमान यानी ईमान का हिस्सा नहीं। अब रही बात इकरार की तो अगर तस्दीक के बाद उसको अपना ईमान ज़ाहिर करने का मौका नहीं मिला तो यह अल्लाह के नज़दीक मोमिन है और अगर उसे मौका मिला और उसे इकरार करने को न कहा गया तो अहकामे दुनिया में काफिर समझा जायेगा न उस के जनाज़े की नमाज़ पड़ी जायेगी। और न वह मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफन किया जायेगा। लेकिन अगर उस से इस्लाम के खिालफ कोई बात न जाहिर हो तो वह अल्लाह के नजदीक मोमिन है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 47 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 139
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : - मुसलमान होने के लिए यह भी ज़रूरी शर्त है कि जुबान से किसी ऐसी चीज़ का इन्कार न करे जो दीन की ज़रूरियात से है अगरचे बाकी बातों का इकरार करता हो। और अगर कोई यह कहे कि सिर्फ जुबान से इन्कार है और दिल में इन्कार नहीं तो वह भी मुसलमान नहीं क्यूँकि बिना किसी खास शरई मजबूरी के कोई मुसलमान कुफ्र का कलिमा निकाल ही नहीं सकता इसलिए कि ऐसी बात वही मुँह पर ला सकता है जिस के दिल में इस्लाम और दीन की इतनी जगह हो कि जब चाहा इन्कार कर दिया और इस्लाम ऐसी तस्दीक का नाम है जिस के खिलाफ हरगिज़ कोई गुन्जाइश नहीं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 47-48 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 140
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला : - अगर कोई आदमी मजबूर किया गया कि वह (मआज़ल्लाह) कोई कुफ्री बात कहे यानी वह मुसलमान अगर कुफ्री बात न कहेगा तो ज़ालिम उसे मार डालेगा या उसके बदन का कोई हिस्सा काट देगा तो उस मुसलमान के लिए इजाज़त है कि मजबूरी में वह जुबान से कुफ्री बात बक दे मगर शर्त यह है कि दिल में उसके वही ईमान बाकी रहे जो पहले था लेकिन ज्यादा अच्छा यही है कि जान चली जाये मगर जुबान से भी कुफ्री बात न बके।
▣ ❥ मसअ्ला : - अमले जवारेह (यानी हाथ पैर वगैरा से किए जाने वाले अमल या काम) ईमान के अन्दर दाखिल नहीं है। अलबत्ता ' कुछ ऐसे काम हैं जो बिल्कुल ईमान के खिलाफ हैं उन कामों के करने वालों को काफिर कहा जायेगा। जैसे बुत , चाँद या सूरज को सजदा करने किसी नबी के कत्ल या नबी की तौहीन करने वाले या कुर्आन शरीफ या काबे की तौहीन करने वाले और किसी सुन्नत को हल्का बताने वाले यकीनी तौर पर काफिर हैं। ऐसे ही जुन्नार ( जनेऊ ) बाँधने वाले, सर पर चोटी रखने वाले और कशका (मज़हबी टीका) लगाने वाले को भी फुकहाए किराम ने काफ़िर कहा है। ऐसे लोगों के लिए हुक्म है कि वह तौबा कर के दोबारा इस्लाम लायें और फिर अपनी बीवी से दोबारा निकाह करें।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ अकीदा : - दीन की ज़रूरियात में से जिस चीज़ का हलाल होना नस्से कतई ( यानी कुर्आन और अहादीस ) से साबित हो उसको हराम कहना और जिसका हराम होना यकीनी हो उसे हलाल बताना कुफ्र है जबकि यह हुक्म दीन की ज़रूरियात से हो और अगर मुन्किर उस दीन की ज़रूरी बात से आगाह है तो काफ़िर है!
▣ ❥ मसअ्ला : - उसूले अकाइद (यानी बुनियादी अकीदों में) किसी की तकलीद या पैरवी जाइज़ नही बल्कि जो बात हो वह कतई यकीन के साथ हो चाहे वह यकीन किसी तरह भी हासिल हो उस के हासिल करने से खास कर इल्मे इस्तिदलाली की ज़रूरत नहीं। हाँ कुछ फ़रूए अकाइद में तकलीद हो सकती है इसी बुनियाद पर खुद अहले सुन्नत में दो गिरोह हैं।
▣ ❥ ① मातुरीदिया : - यह गिरोह इमाम इलमुल हुदा हज़रत अबू मन्सूर मातुरीदी रदियल्लाहु तआला अन्हु के पैरवी करने वाले हैं।
▣ ❥ ② अशाइरा : - यह दूसरा गिरोह हज़रत इमाम शैख अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह की पैरवी करने वाला है। और ये दोनों जमाअतें अहले सुन्नत की ही जमाअतें और दोनों हक पर हैं। अलबत्ता आपस में कुछ फुरूई बातों का इख़्तिलाफ़ है। इनका इख्तिलाफ हनफी शाफेई की तरह है कि दोनों हक पर हैं। कोई किसी को गुमराह और फासिक नहीं कहता है।
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला : - ईमान में ज्यादती और कमी नहीं इसलिये कि कमी बेशी उस में होती है जिस में लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई या गिनती हो और ईमान दिल की तस्दीक का नाम है और तस्दीक कैफ यानी एक हालते इजआनिया (यकीनिया) है कुछ आयतों में ईमान का ज्यादा होना जो फरमाया गया है उससे मुराद वह है जिस पर ईमान लाया गया और जिसकी तस्दीक की गई कि कुर्आन शरीफ के नाजिल होने के ज़माने में उसकी कोई हद मुकर्रर न थी बल्कि अहकाम उतरते रहते और जो हुक्म नाज़िल होता हो उस पर ईमान लाजिम होता ऐसा नहीं कि नफसे ईमान बढ़ घट जाता हो अलबत्ता ईमान में सख्ती और कमजोरी होती है कि यह कैफ के अवारिज़ से है हजरते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु का ईमान ऐसा है कि अगर इस उम्मत के सारे लोगों के ईमानों को जमा कर लिया जाये तो उनका तन्हा ईमान सब पर भारी होगा!
▣ ❥ अकीदा : - ईमान और कुफ्र के बीच की कोई कड़ी नहीं यानी आदमी या तो मुसलमान होगा या काफिर तीसरी कोई सूरत नहीं कि न मुसलमान हो न काफिर।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 49 📚*
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ नोट : - हाँ यह मुमकिन है कि हम शुबह की वजह से किसी को न मुसलमान कहे न काफ़िर जैसे यजीद पलीद और इसमाईल देहलवी जैसे लोग, इन जैसे लोगों के बारे में हमारे उल्मा ने खामोशी का हुक्म फरमाया कि न तो, हम इन्हें मुसलमान कहेंगे न काफिर हमारे सामने अगर कोई मुसलमान कहे तो भी हम खामोश रहेंगे और काफिर कहे तो भी ख़ामोशी इख्तियार करेंगे, यह शक की वजह से है, यजीद के बारे में इमाम आजम इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का यही हुक्म है कि शक की वजह से उसे न मुसलमान कहेंगे न काफ़िर बल्कि खामोशी इख्तियार तेयार करेंगे।
▣ ❥ मसअ्ला : - निफाक उस को कहते हैं कि ज़बान से इस्लाम का दावा करे और दिल में इस्लाम का इन्कार करे ऐसे शख्स को मुनाफिक कहते है निफाक भी खालिस कुफ्र है और मुनाफिकों के लिये जहन्नम का सब से नीचे का दर्जा है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुबारक ज़माने में इस तरह के कुछ लोग मुनाफिक के नाम से मशहूर हुए उनके छिपे हुए कुफ्र को कुर्आन ने बताया और गैब जानने वाले नबी सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भी एक एक को पहचान कर फरमाया कियह मुनाफ़िक है।
▣ ❥ अब इस ज़माने में किसी खास आदमी के बारे में उस वक़्त तक यकीन के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि वह मुनाफिक है जब तक कि उसकी कोई बात या उसका कोई काम ईमान के खिलाफ न देख लिया जाये कयूँकि हमारे सामने जो अपने आप को मुसलमान कहे हम उसे मुसलमान समझेंगे अलबत्ता निफाक के सिलसिले की एक कड़ी इस ज़माने में पाई जाती है कि बहुत से बदमज़हब अपने आप को एक तरफ तो मुसलमान कहते हैं और दूसरी तरफ़ दीन की कुछ ज़रूरी बातों का इन्कार भी करते हैं ज़ाहिर है कि ऐसे लोग मुनाफिक और काफ़िर माने जायेंगे।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 49 📚*
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▣ ❥ अकीदा : - शिर्क का मतलब यह है कि अल्लाह के अलावा किसी दूसरे को वाजिबुल वुजूद या इबादत के लाइक माना जाये यानी खुदा तआला के साथ अल्लाह और माबूद होने में किसी दूसरे को शरीक किया जाये और यह कुफ्र की सब से बदतरीन किस्म है इसके सिवा कोई बात अगरचे कैसी ही बुरी और सख्त कुफ्र हो फिर भी हकीकत में शिर्क नहीं है इसीलिये शरीअत ने किताबी काफिरों मतलब तौरात, जबूर या इन्जील के मानने वालों और मुशरिकीन में फर्क किया है जैसे किताबी का जिबह किया हुआ जानवर हलाल होगा और मुशरिक का नहीं ऐसे ही किताबी औरत से मुसलमान निकाह कर सकता है और मुशरिक औरत से नहीं इमामे शाफेई रहमतुल्लाहि तआला अलैहि यह भी कहते हैं कि किताबी से जिज़या लिया जायेगा और मुशरिक से नहीं लिया जाएगा, और कभी ऐसा भी होता है कि शिर्क बोल कर कुफ्र मुराद लिया जाता है। चाहे अल्लाह तआला के साथ कोई शरीक करे या किसी नबी . की तौहीन करे यह सब शिर्क में शामिल होते हैं, यह जो कुर्आन शरीफ़ में आया है कि शिर्क नहीं बख्शा जायेगा वह हर कुफ्र के मअना पर है यानी हरगिज किसी तरह के कुफ्र की बख्शिश न होगी, कुफ्र के अलावा बाकी सारे गुनाहों के लिए अल्लाह तआला की मर्जी है चाहे वह सज़ा दे या बख्श दे।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 49-50 📚*
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*☝🏻 ईमान और कुफ्र का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : - जिस मुसलमान ने गुनाहे कबीरा किया हो वह मुसलमान जन्नत में जायेगा, चाहे अल्लाह अपने करम से उसे बख्श दे या हुजूर सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम उसकी शफाअत कर दें या अपने किये की सजा पाकर जन्नत में जायेगा फिर कभी न निकलेगा।
▣ ❥ अक़ीदा : - जो कोई किसी काफ़िर के लिए मगफिरत की दुआ करे या किसी मरे हुए मुरतद को मरहूम था कहे वह खुद काफिर है।
▣ ❥ अक़ीदा : - मुसलमान को मुसलमान और काफिर को काफ़िर जानना दीन की ज़रूरी बातों में से है, अगरचे किसी खास आदमी के बारे में यह यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि जिस वक़्त उसकी मौत हुई हकीकत में वह मोमिन था या काफिर जब तक कि उस के खातमे और मौत का हाल शरीअत की दलील से न साबित हो मगर इसका यह मतलब भी नहीं कि जिसने यकीनी तौर पर कुफ्र किया हो उसके कुफ्र में भी शक किया जाये क्यूँकि जो यकीनी तौर पर काफिर हो उस के काफिर होने के बारे में शक करने वाला भी काफिर हो जाता है, कोई आदमी अपने खातिमे के वक़्त मोमिन है या काफिर इसकी जानकारी की बुनियाद क्यामत के दिन पर है लेकिन शरीअत का कानून ज़ाहिर पर है इसे यूँ समझिये कि एक आदमी सूरत से बिल्कुल मुसलमान हैं, नमाज़ी है, हाजी है लेकिन दिल में ऐसे लोगों को अच्छा समझता हो जिन लोगों ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी की है तो चुंकि उस का यह कुफ्र किसी को मालूम नहीं है वह मुसलमान ही माना जायेगा, दूसरी बात यह है कि अगर कोई यहूदी नसरानी या कोई बुतपरस्त मरा है, मगर अल्लाह और रसूल का यही हुक्म है कि उसे काफ़िर ही जानें और उस के साथ उसी तरह बर्ताव किया जायेगा जैसा कि उसकी ज़िन्दगी में काफिरों के साथ किया जाता है, जैसे मेल , जोल , शादी , नमाज़े जनाज़ा और कफन दफन वगैरा में मुर सलमानों का काफिरों के साथ बर्ताव है।
▣ ❥ इसलिए कि जब उसने कुफ्र किया है तो ईमान वालों के लिये फर्ज है कि वह उसे काफिर ही समझें और खातिमे का हाल अल्लाह पर छोड़ दें, इसी तरह जो जाहिर में मुसलमान हो और उसकी कोई बात या उसका कोई काम ईमान के खिलाफ न हो तो उसे मुसलमान ही समझना फर्ज है अगरचे हमें उसके खातिमे का भी हाल नहीं मालूम, इस जमाने में कुछ लोग यह कहते हैं जितनी देर काफिर को काफिर कहने में लगा ओगे उतनी देर अल्लाह अल्लाह करो तो सवाब मिलेगा, इस का जवाब यह है कि हम कब कहते हैं कि काफिर काफिर का वजीफा कर लो बल्कि मतलब यह है कि काफिर को दिल से काफ़िर जानो और उसके बारे में अगर पूछा जाये तो उसे बेझिझक साफ साफ काफिर कह दो। सुलह कुल्लियों की तरह उस के कुफ्र पर पर्दा डालने की ज़रूरत नहीं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 50 📚*
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*☝🏻कुछ फ़िरकों के बारे में*
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▣ ❥ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि तर्जमा : - " यह उम्मत तिहत्तर फिर के हो जायेगी। एक फिरका जन्नती होगा बाकी सब जहन्नमी होंगे।
▣ ❥ तो हुजूर के सहाबा ने पूछा कि , तर्जमा : - या रसूलल्लाह वह कौन लोग हैं जो जन्नती हैं ?
▣ ❥ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जवाब इरशाद फरमाया कि, तर्जमा : - वह जिस पर मैं और मेरे सहाबा हैं, यानी सुन्नत की पैरवी करने वाले हैं।
▣ ❥ एक दूसरी रिवायत में यह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि, तर्जमा : - वह जमाअत है यानी मुसलमानों का बड़ा गिरोह जिसे ' सवादे आजम ' कहा गया है।
▣ ❥ और हुजूर ने यह भी फ़रमाया कि जो इस जमाअत से अलग हुआ वह जहन्नम में अलग हुआ। इसीलिए इस जन्नती और नजात पाने वाले फ़िरके का नाम 'अहले सुन्नत व जमाअत हुआ। और गुमराह फिरकों में से बहुत से फ़िरके हुए कुछ ऐसे भी थे जिनका अब नाम निशान भी नहीं। और कुछ ऐसे हैं जो हिन्दुस्तान से बाहर के हैं। हम इस वक़्त सिर्फ हिन्दुस्तान के कुछ बातिल फिरकों के बारे में बतायेंगे ताकि हमारे मुसलमान भाई उन बदमज़हबों के चक्कर में पड़ कर धोखा न खायें। हदीस शरीफ़ में यह भी , आया है कि
▣ ❥ तर्जमा : - " तुम अपने को उनसे (बद मज़हबों से) दूर रखो और उन्हें अपने से दूर करो कहीं वह तुम्हें गुमराह न कर दें और वह फ़ितने में डाल दें।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 50 📚*
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*☝🏻 कादयानी फिरका*
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▣ ❥ मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी के मानने वालों को कादियानी कहते हैं मिर्जी गुलाम अहमद ने अपनी नुबुब्बत का दावा किया नबियों की शान में गुस्ताखियाँ कीं हज़रते ईसा अलैहिस्लाम और उनकी माँ तय्यबा ताहिरा सिद्दीका हज़रते मरयम की शान में वह बेहूदा अल्फाज इस्तेमाल किए जिनसे मुसलमानों की जाने दहल जाती हैं । यही नहीं बल्कि हजरते मूसा अलैहिस्सलाम और हमारे सरकार नबियों के सरदार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन की कुर्आन शरीफ का इन्कार किया और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के खातमुन्नबीय्यीन ( यानी आखिरी नबी ) होने को उसने तसलीम नहीं किया और नबियों को झुटलाया। इनके अलावा और भी उसने सैकड़ों कुफ्र किये हैं कि अगर उन्हें लिखा जाये तो एक दफ्तर चाहिए शरीअत का कानून है अगर किसी ने किसी एक नबी को झुठलाया तो सबको झुटलाया । कुर्आन शरीफ में आया है कि
▣ ❥ तर्जमा : - हजरते नूह अलैहिस्सलाम की कौम ने पैगम्बरों को झुटलाया।
▣ ❥ मिर्जा ने तो बहुतों की झुटलाया और अपने को नबी से बेहतर बताया इसीलिए ऐसे आदमी ओर उसके मानने वालों काफिर होने के बारे में किसी मुसलमान को शक हो ही नहीं सकता और अगर कोई मुसलमान उसकी कही या लिखी बातों को जान के उसके काफिर होने में शक करे वह खुद काफिर है मिर्जी गुलाम अहमद कादियानी की कुछ लिखी हुई बातें और किताबों के नाम पेज न . के साथ इसलिए लिखी जा रही हैं कि जो देखना चाहे उसकी खबासतों को देख ले मिर्जा गुलाम अहम कादियानी ने जो खबीस हरकतें की वह उस की इन इबारतों से साबित हैं।
▣ ❥ ① . खुदाए तआला ने ' बराहीने अहमदीया में इस आजिज़ का नाम उम्मती भी रखा और नबी भी
📕( इजालए औहाम स न 533 )
▣ ❥ ② ऐ अहमद ! तेरा नाम पूरा हो जायेगा कब्ल इसके जो मेरा नाम पूरा हो
📕( अनजाम आथम स न 52 )
▣ ❥ ③ . तुझे खुश खबरी हो ऐ अहमद ! तू मेरी मुराद है और मेरे साथ है
📕( अनजाम आथम स. न. 56)
▣ ❥ ④ . तुझको तमाम जहान की रहमत के वास्ते रवाना किया।
📕( अनजाम आधम स न 78 )
▣ ❥ नोट : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फजीलत के बारे में कुर्आन शरीफ में अल्लाह तआला ने यह फरमाया है कि
▣ ❥ 📝तर्जमा : - " और हमने तुम्हें न भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिए।
▣ ❥ इस आयत को मिर्जा ने अपने ऊपर जमाने की कोशिश की है । से अपनी ज़ात मुराद लेता है दाफेउल बला सफा छ : में है
▣ ❥ ⑤ . मुझको अल्लाह तआला फरमाता है।
▣ ❥ तर्जमा : - " ऐ गुलाम अहमद । तू मेरी औलाद की जगह है तू मुझ से और मैं तुझ से हूँ।
📕( दाफिउ बला पैज न 5 )
▣ ❥ ⑥ . हज़रत रसूले . खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इलहाम व वही गलत निकली थी।
📕( इज़लाए औहाम पेज न . 688 )
▣ ❥ ⑦ . हजरते मूसा की पेशगोईयाँ भी उस सूरत पर जुहूरपज़ीर ( जाहिर ) नहीं हुई जिस सूरत पर हजरते मूसा ने अपने दिल में उम्मीद बाँधी थी।
📕( औहाम पेज न . 8 )
▣ ❥ ⑧ . सूरए बकरह में जो एक कत्ल का जिक्र है कि गाय की बोटियाँ लाश पर मारने से वह मकतूल जिन्दा हो गया था और अपने कातिल का पता दे दिया था यह महज़ मूसा अलैहिस्सलाम धमकी थी और इल्मे मिसमरेज़म था।
*📕( इजालए औहाम पेज न 775 )*
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*☝🏻 कादयानी फिरका*
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▣ ❥ ⑨ . हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का चार परिन्दे के मोजिज़े का ज़िक्र जो कुर्आन में है वह भी। उनका मिसमरेज़म का अमल था। ( इजालए औहाम पेज नं . 553)
▣ ❥ ①ⓞ . एक बादशाह के वक़्त में चार सौ नबियों ने उसके फतह के बारे में पेशीनगोई की और वह झूटे निकले और बादशाह की शिकस्त हुई बल्कि वह उसी मैदान में मर गया। ( इजालये औहाम पेज नं . 629 )
▣ ❥ ①① . कुर्आन शरीफ़ में गन्दी गालियाँ भरी हैं और कुर्आन अज़ीम सख्त ज़बानी के तरीके को इस्तेमाल कर रहा है। ( इजालए औहाम पेज न . 26 , 28 )
▣ ❥ ①② . अपनी किताब ' बराहीने अहमदीया के बारे में लिखता है : - बराहीने अहमदीया खुदा का कलाम है। ( इजालए औहाम पेज नं . 533 )
▣ ❥ ①③ . कामिल महदी न मूसा था न ईसा। (अरबईन पेज न 2 , 13) इन उलूल अज़्म मुरसलीन का हादी होना तो दर किनार पूरे राह याफ्ता भी न माना अब ख़ास हज़रत ईसा अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शान में जो गुस्तखियाँ की उन में से चन्द यह हैं।
▣ ❥ तर्जमा : - हमारा रब मसीह है मत कहो और देखो ऐ ईसाई मिशनरयो !
▣ ❥ ①④ . अब कि आज तुम में एक है जो उस मसीह से बढ़ कर है।
(मेआर पेज नं . 13)
▣ ❥ ①⑤ . खुदा ने इस उम्मत में से मसीहे मौऊद भेजा जो उस पहले मसीह से अपनी तमाम शान में बहुत बढ़ कर है। और उस ने दूसरे मसीह का नाम गुलाम अहमद रखा तो यह इशारा है कि ईसाईयों का मसीह कैसा खुदा है जो अहमद के अदना गुलाम से भी मुकाबला नहीं कर सकता यानी वह कैसा मसीह है जो अपने कुर्ब और शफाअत के मरतबे में अहमद के गुलाम से भी कमतर है।
(कशती पेज न 13)
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*☝🏻 कादयानी फिरका*
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▣ ❥ ①⑥ . मसीले मूसा मूसा से बढ़ कर और मसील इब्ने मरयम इब्ने मरयम से बढ़ कर (कशती पेज नं . 13)
▣ ❥ ①⑦ . खुदा ने मुझे खबर दी है कि मसीह मुहम्मदी मसीहे मूसवी से अफ़ज़ल है ( दाफेउल बला पेज नं . 20 )
▣ ❥ ①⑧ . अब खुदा बतलाता है कि देखो मैं उसका सानी पैदा करूँगा जो उससे भी बेहतर है जो गुलाम अहमद है यानी अहमद का गुलाम इब्ने मरयम के ज़िक्र को छोड़ो उससे बेहतर गुलाम अहमद है (इजालए औहाम पेज न 688 ) यह बातें शायराना नहीं बल्कि वाकई हैं। और अगर तजर्वे की रू से में खुदा की ताईद मसीह इब्ने मरयम से बढ़कर मेरे साथ न हो तो मैं झूठा हूँ। ( दाफिउल बला पेज नं . 20 )
▣ ❥ ①⑨ . खुदा तो ब - पाबन्दी अपने वादों के हर चीज़ पर कादिर है लेकिन ऐसे शख्स को दोबारा दुनिया में नहीं ला सकता जिसके पहले फ़ितने ने ही दुनिया को तबाह कर दिया। ( दाफिज़ल बला पेज नं . 15 )
20 . मरयम का बेटा कौशल्या के बेटे से कुछ ज्यादत नहीं रखता।
*(अनजाम आथम पेज नं . 41)*
▣ ❥ ②① . मुझे कसम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है कि अगर मसीह इब्ने मरयम मेरे ज़माने में होता तो वह काम जो मैं कर सकता हूँ वह हरगिज़ न कर सकता और वह निशान जो मुझ से जाहिर हो रहे हैं वह हरगिज़ दिखला न सकता। (कशतीए नूह पेज नं 56)
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*☝🏻 कादयानी फिरका*
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▣ ❥ ②② . यहूद तो हज़रते ईसा के मामले में और उनकी पेशगोईयों के बारे में ऐसे कवी एअतराज़ रखते हैं कि हम भी जवाब में हैरान हैं बगैर उस के कि यह कह दें कि ज़रूर ईसा नबी हैं क्यूँकि कुर्आन ने उसको नबी करार दिया है और कोई दलील उनकी नुबुब्बत पर कायम नहीं हो सकती बल्कि इबताले नुबुब्बत (यानी नबी न होने पर) पर कई दलाइल काइम हैं। (एजाज़ अहमदी पेज नं . 13)
▣ ❥ मिर्जा ने अपनी इस बात में यहूदियों की इस बात को ठीक होना बताया और कुर्आन शरीफ पर भी साथ ही यह एअतेराज़ लगाया कि कुर्आन ऐसी बात की तालीम दे रहा है कि जिसको बहुत सी दलीलों से बातिल किया जा चुका है।
▣ ❥ ②③ . ईसाई तो उनकी (हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की) खुदाई को रोते हैं मगर यहाँ नुबुव्वत भी उनकी साबित नहीं। (एअजाज अहमदी पेज न . 14)
▣ ❥ ②④ . कभी आपको शैतानी इलहाम भी होते थे। (एजाज अहमदी पेज नं . 24)
▣ ❥ मुसलमानों तुम्हें मअलूम है कि शैतानी इलहाम किस को होता है। कुर्आन में आया है कि*
▣ ❥ : - " बड़े बुहतान वाले सख्त गुनाहगार पर शैतान उतरते हैं।
▣ ❥ इससे अन्दाज़ा हुआ . कि शैतानी इलहाम सिर्फ गुनाहगारों को ही हो सकता हैं । लेकिन मिर्जी ने हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में इस तरह की बातें लिखकर उनकी तौहीन की हैं।
▣ ❥ ②⑤ . उनकी अकसर पेशीनगोईयाँ गलती से पुर हैं। (एअजाज़े अहमदी)
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▣ ❥ ②⑥ . अफसोस से कहना पड़ता है कि उनकी पेशीनगोईयों पर यहूद के सख्त एतेराज़ हैं जो हम किसी तरह उनको दफा नहीं कर सकते ( एअजाजे अहमदी पेज नं . 13 )
▣ ❥ ②⑦ . हाय किसके आगे यह मातम ले जायें कि हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की तीन पेशीनगोईयाँ साफ तौर पर झूठी निकली (एजाजे अहमदी पेज नं . 14)
▣ ❥ ②⑧ . मुमकिन नहीं कि नबियों की पेशीनगोईयाँ टल जायें ( कशती - ए - नूह पेज नं5 )*
▣ ❥ ②⑨ . हम मसीह को बेशक एक रास्त बाज़ आदमी जानते हैं कि अपने ज़माने के अकसर लोगों से अलबत्ता अच्छा था (वल्लाहु तआलाआ अअलम) मगर वह हकीकी मुनजी ( नजात दिलाने वाला ) न था। हकीकी मुनजी वह है जो हिजाज़ में पैदा हुआ था और अब भी आया मगर बरोज़ के तौर पर। खाकसार गुलाम अहमद अज़ कादियान (दाफिउल बला पेज न . 3 )
▣ ❥ ③ⓞ . यह हमारा बयान नेक ज़नी के तौर पर है वर्ना मुमकिन है कि ईसा के वक़्त में बाज़ रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी में ईसा से भी आला हों। ( दाफिउल बला पेज नं 3 )
▣ ❥ ③① . मसीह की रास्तबाज़ी अपने जमाने में दूसरे रास्तबाज़ों से बढ़ कर साबित नहीं होती बल्कि यहया को उस पर एक फजीलत है क्यूंकि वह शराब न पीता था और कभी न सुना कि किसी फाहिशा औरत ने अपनी कमाई के माल से उसके सर पर इत्र मला था या हाथों और अपने सर के बालों से उसके बदन को छुआ था या कोई बे तअल्लुक जवान औरत उसकी खिदमत करती थी। इसी वजह से खुदा ने कुनि में यहया का नाम हसूर रखा मंगर मसीह का न रखा क्यों कि ऐसे किस्से उस नाम के रखने से माने ( रुकावट ) थे। (दाफिउल बला पेज न . 4)
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 54 📚*
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*☝🏻 कादयानी फिरका के अक़ीदा*
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▣ ❥ ③② . आप का कन्जरियों से मैलान और सुहबत भी शायद इसी वजह से हो कि जद्दी मुनासबत दरमियान है वर्ना कोई परहेज़गार इन्सान एक जवान कन्जरी - को यह मौका नहीं दे सकता कि वह उसके सर पर अपने नापाक हाथ लगा दे और ज़िनाकरी की कमाई का पलीद इत्र उसके सर पर मले और अपने बालों को उसके पैरों पर मले ।समझने वाले समझ लें कि ऐसा इन्सान किस चलन का आदमी हो सकता है ( जमीमा अनजाम आथम पेज न 7 )
▣ ❥ इस के अलावा इस रिसाले में उस मुकद्दस रसूल की शान में बहुत बुरे अल्फाज़ इस्तेमाल किये हैं जैसे शरीर मक्कार बद - अक्ल , फहशगो , बदजबान झूटा , चोर , खलल दिमाग वाला , बदकिस्मत , निरा फरेबी और पैरो शैतान वगैरा। और हद यह कि मिर्जा ने उनके खानदान को भी नहीं बख्शा। लिखता है कि
▣ ❥ ③③ . आपका खानदान भी निहायत पाक व मुतहहर है तीन दादियाँ और नानियाँ आपकी जिनाकार और कसबी औरतें थीं जिनके खून से आपका वुजूद हुआ। ( अन्जाम आथम )
▣ ❥ ③④ . यसू मसीह के चार भाई और दो बहनें थीं। यह सब यसू के हकीकी बहनें थीं यानी युसूफ और मरयम की औलाद थे। ( कशती - ए - नूह )
*▣ ❥ ③⑤ . हक बात यह है कि आप से कोई मोजिज़ा न हुआ। ( अनजाम आथम ) 36 . उस जमाने में एक तालाब से बड़े निशान जाहिर होते थे। आप से कोई मोजिजा हुआ भी तो वह आपका नहीं उस तालाब का है। आप के हाथ में सिवा मक्र व फरेब के कुछ न था। ( अन्जाम अथम पेज न7 )
इन तमाम बातों से अच्छी तरह अन्दाज़ा हो गया होगा कि मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी काफिर है और उसके मानने वाले भी काफिर हैं।
▣ ❥ ③⑦ . तो सिवाये इसके अगर मसीह के असली कामों का उन हवाशी से अलग कर के देखा जाये जो महज़ इफ्तरा या गलतफहमी से गढ़े हैं तो कोई अजूबा नजर नहीं आता बल्कि मसीह के मोजिजात पर जिस कदर एअतेराज़ हैं मैं नहीं समझ सकता कि किसी और नबी के खवारिक पर ऐसे शुबहात हों क्या तालाब का किस्सा मसीही मोजिज़ात की रौनक नहीं दूर करता। इन बातों के अलावा कादियानी ने और भी बहुत सी तौहीन से भरी हुई बातें लिखी हैं कि जिन को जान कर कोई मुसलमान उसे मुसलमान नहीं कह सकता और न उसे काफिर समझने में शक कर सकता है। शरीअत का हुक्म है कि
▣ ❥ तर्जमा : - " जो उन खबासतों को जान कर उसके अज़ाब और कुफ्र में शक करे वह खुद काफिर है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 54 - 55 📚*
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*☝🏻 राफिज़ी फिरका*
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▣ ❥ राफिजी मज़हब के बारे में शाह अब्दुल अजीज़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अपनी किताब ' तुहफए इसना अशरीया में बहुत तफसील से लिखा है। इस वक़्त राफिजियों के बारे में कुछ थोड़ी सी बातें लिखी जाती हैं।
▣ ❥ ❶ राफिज़ी फिरके के लोग कुछ सहाबियों को छोड़ कर ज्यादा तर सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम की शान में गुस्ताखियाँ करते और गालियों की बकवास करते हैं बल्कि कुछ को छोड़ कर सबको काफिर और मुनाफिक कहते हैं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 55-57 📚*
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*☝🏻 राफिज़ी फिरका*
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▣ ❥ ❷ यह लोग हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पहले खलीफा हज़रते अबूबक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु, दूसरे खलीफा हजरते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु और तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हु के बारे में यह कहते हैं कि उन लोगों ने गसब कर के खिलाफत हासिल की है। यह लोग खिलाफत का हकदार हजरते अली रदियल्लाह तआला अन्हु को मानते हैं। हजरते अली ने उन तीनों खुलफा की तारीफें और बड़ाईयाँ की। उनको राफिजी लोग तकिय्या और बुजदिली कहते हैं। यह हजरते अली पर एक बहुत बड़ा इलजाम है क्यूंकि यह कैसे मुमकिन है कि एक तरफ तो हज़रते अली शेरे खुदा उन सहाबियों को गासिब काफिर और मुनाफिक समझें और दूसरी तरफ उनकी तारीफ करें और उन्हें खलीफा मानकर उनके हाथों पर बैअत करें।
▣ ❥ फिर यह कि कुर्आन उन सहाबियों को अच्छे और ऊँचे खिताब से याद करता है और उनकी पैरवी करने वालों के बारे में यह फरमाया है कि अल्लाह उनसे राजी वह अल्लाह से राजी क्या काफिरों और मुनाफिकों के लिये अल्लाह तआला के ऐसे फरमान हो सकते हैं ? हरगिज़ नहीं। अब उन सहाबियों के बारे में कुछ खास बातें बगौर मुलाहज़ा फरमायें : एक यह कि हजरते अली शेरे खुदा ने अपनी चहीती बेटी हज़रते उमर फारूक के निकाह में दी। राफिजी फिरका यह कह कर उन पर इल्जाम लगाता है कि उन्होंने तकिय्या किया था। सोचने की बात यह है कि क्या कोई मुसलमान किसी काफिर को अपनी बेटी दे सकता है ? कभी नहीं।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 55-57 📚*
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*☝🏻 राफिज़ी फिरका*
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▣ ❥ फिर ऐसे पाक लोग जिन्होंने इस्लाम के लिये अपनी जानें दी हों और जिनके बारे में (तर्जमा - " किसी मलामत करने वाले की मलामत का अन्देशा न करेंगे।) कहा गया हो। और हक बात कहने में हमेशा निडर रहे हों वह कैसे तकिय्या कर सकते हैं ? यह कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दो शहजादियाँ यके बाद दीगरे हजरत उसमान जुन्नूरैन के निकाह में आई। यह कि हजरते अबू बक्र सिद्दीक और हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की साहिबजादियाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में आई। पहले, दूसरे और तीसरे खुलफा को हुजूर से ऐसे रिश्ते और हुजूर के इन सहाबियों से ऐसे रिश्ते के होते हुए अगर कोई उन सहाबियों की तौहीन करे तो आप खुद फैसला करें कि वह क्या होगा ? इस फिरके का एक अकीदा यह है कि अल्लाह तआला पर असलह ' वाजिब है। यानी जो काम बन्दे के हक में नफा देने वाला हो अल्लाह पर वही करना वाजिब है और उसे वही करना पड़ेगा।
▣ ❥ इस फिरके का एक अकीदा यह भी है कि इमाम नबियों से अफज़ल है। (जबकि यह मानना कुफ्र है) राफिजियों का एक अकीदा यह कि कुर्आन मजीद महफूज नहीं बल्कि उसमें से कुछ पारे या सुरते या आयतें या कुछ , लफ्ज़ हज़रते उसमाने गनी या दूसरे सहाबा ने निकाल दिये। (मगर तअज्जुब है कि मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने भी उसे नाकिस ही छोड़ा और यह अकीदा भी कुफ्र है कि कुर्आन मजीद का इन्कार है। ) राफिजीमों का एक अकीदा यह भी है कि अल्लाह तआला कोई हुक्म देता है फिर यह मालूम कर के कि यह मसलेहत उसके खिलाफ या उसके गैर में है पछताता है। और यह भी यकीनी कुफ्र है कि खुदा को जाहिल बताना है। )
▣ ❥ राफ़िज़ियों का एक अकीदा यह है कि नेकियों का खालिक (पैदा कर ने वाला) अल्लाह है और बुराईयों के खालिक यह खुद हैं। ( मजूसियों ने तो दो ही खलिक माने थे ' यज़दान ' को अच्छाई का और बुराई का ख़ालिक ' अहरमन 'को । इस तरह से तो मजूसियों के दो ही खालिक हुए लेकिन राफिजियों के तो इस अकीदे से अरबों और संखों ख़ालिक हुए। ) इस तरह हम देखते हैं कि राफिज़ी अपने इन बुनियादी अकीदों की बिना पर काफ़िर व मुरतद हैं व गुमराह व बद्दीन हैं। इनके दीन की बुनियाद ऐसे गन्दे अकीदे और सहाबा की तौहीन है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 55-57 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ यह एक नया फिरका है जो सन बारह सौ नौ हिजरी ( 1209 ) मे पैदा हुआ, इस मज़हब का बानी अब्दुल वहाब नजदी का बेटा मुहम्मद था उसने तमाम अरब और खास कर हरमैन शरीफैन में बहुत ज्यादा फितने फैलाये, आलिमों को कत्ल किया, सहाबा , इमामों , अलिमों और शहीदों की कब्रें खोद डाली। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़े का नाम सनमे अकबर (बड़ा बुत) रखा था और तरह तरह के जुल्म किये। जैसा कि सही हदीस मे हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खबर दी थी कि नज्द से फितने उठेंगे और शैतान का गिरोह निकलेगा। वह गिरोह बारह सौ बरस बाद ज़ाहिर हुआ। अल्लामा शामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने इसे खारिजी बताया। इस अब्दुल वहाब के बेटे ने एक किताब लिखी जिसका नाम 'किताबुत्तौहीद' रखा। उसका तर्जमा हिन्दुस्तान में इसमाईल देहलवी ने किया जिसका नाम 'तकवीयतुल ईमान ' रखा। और हिन्दुस्तान में वहाबियत उसी ने फैलाई।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 57 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ उन वहाबियों का एक बहुत बड़ा अकीदा यह है जो उनके मज़हब पर न हो वह काफिर मुशरिक है। यही वजह है कि बात बात पर बिला वजह मुसलमानों पर कुफ्र और शिर्क का हुक्म लगाते और तमाम दुनिया को मुशरिक बताते हैं। चुनाँचे तकवीयतुल ईमान पेज न . 45 में वह हदीस लिखकर कि आख़िर ज़माने में अल्लाह तआला एक हवा भेजेगा जो सारी दुनिया से मुसलमानों को उठा लेगी उसके बाद साफ़ लिख दिया सो पैग़म्बरे खुदा के फरमाने के मुताबिक हुआ यानी वह हवा चल गई और कोई मुसलमान रूए ज़मीन पर न रहा। मगर यह न समझा कि इस सरत में खुद भी काफिर हो गया।
▣ ❥ इस मज़हब की बुनियाद अल्लाह तआला और उसके महबूबों की तौहीन और तज़लील पर है। यह लोग हर चीज़ में वही पहलू इख्तियार करेंगे जिससे शान घटती हो इस मजहब के सरगिरोहों के कुछ कौल नक्ल किये जाते हैं ताकि हमारे अवाम भाई उनके दिलों की खबासतों को जान कर उनके फरेब और धोके से बचते रहें और उनके जुब्बा और दस्तार पर न जायें।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 57 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ बरादराने इस्लाम ! गौर से सुनें और ईमान की तराजू में तौलें कि ईमान से अज़ीज़ मुसलमान के नज़दीक कोई चीज़ नहीं और ईमान अल्लाह और रसूल की ताज़ीम ही का नाम है। ईमान के साथ जिसमें जितने फ़ज़ाइल पाये जायें वह उसी कद्र ज्यादा फजीलत रखता है और ईमान नहीं तो मुसलमानों के नजदीक वह कुछ वकअत (हैसियत) नहीं रखता अगरचे कितना ही बड़ा आलिम, जाहिद और तारिकुद्दुनिया बनता हो। मतलब यह है कि उनके मोलवी, आलिम, फाज़िल होने की वजह से तुम उन्हें अपना पेशवा न समझो जब कि वह अल्लाह और उसके रसूलों के दुश्मन हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 57 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ यहूदियों नसरानियों में भी उनके मजहब के आलिम और तारिकुददुनिया होते हैं तो क्या तुम उनको अपना पेशवा तसलीम कर सकते हो ? हरगिज़ नहीं। इसी तरह यह ला मजहब औ बदमजहब तुम्हारे किसी तरहा पेशवा नहीं हो सकते अब वहाबियों के कुछ कौल पेश किये जाते हैं।
▣ ❥ ( ❶ ) ईजाहुल हक सफा न . 35 , 36 , में है कि तर्जमा : - " अल्लाह तआला का वक़्त और जगह और सम्त ( दिशा ) से पाक होना और उसका दीदार बिला सम्त और महाजात (बिला आमने सामने) के मानना सब हकीकी बिदअतों की किस्म से हैं!
▣ ❥ अगर वह शख्स ज़िक्र किये गये एअतिकादात को अकाइदे दीनिया की किस्म से मानता है। इसमें साफ लिखा हुआ है कि अल्लाह तआला को वक़्त और सम्त से पाक जानना और उसका दीदार बिना कैफ मानना बिदअत और गुमराही है। हालाँकि यह तमाम अहले सुन्नत का अकीदा है तो उस कहने वाले ने तमाम अहले सुन्नत के पेशवाओं को गुमराह और बिदअती बताया। दुईमुख्तार , बहरुराईक और आलमगीरी में है कि अल्लाह तआला के लिए जो मकान साबित करे वह काफिर है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 57 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ तकवीयतुल ईमान सफा न . 60 में इस हदीस तर्जमा : - " जरा ख्याल तो कर कि अगर तू गुजरे मेरी कब्र पर क्या तू उसको सजदा करेगा ?
▣ ❥ के लिखने के बाद (ف) लिख कर फायदा यह जड़ दिया कि मैं भी एक दिन मर कर मिट्टी में मिलने वाला हूँ के बाद हालाँकि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि तर्जमा : - " अल्लाह तआला ने अम्बिया अलैहिमुस्सलाम के जिस्मों का खाना ज़मीन पर हराम कर दिया है!
और
▣ ❥ तर्जमा : तो अल्लाह के नबी जिन्दा हैं रोजी दिये जाते हैं।
▣ ❥ इन बातों से पता चलता है कि अल्लाह के नबी जिन्दा हैं और रोजी दिए जाते हैं।
▣ ❥ तकवीयतुल ईमान सफा 19 में है कि , हमारा जब खालिक अल्लाह है और उसने हमको पैदा किया तो हमको भी चाहिए कि अपने हर कामों पर उसी को पुकारें और किसी से हमको क्या काम जैसे कोई एक बादशाह का गुलाम हो चुका तो वह अपने हर काम का इलाका उसी से रखता है दूसरे बादशाह से भी नहीं रखता और किसी चुहड़े का तो क्या जिक्र " अम्बिया - ए - किराम और औलियाये इजाम की शान में ऐसे मलऊन अलफाज़ इस्तेमाल करना क्या मुसलमान की शान हो सकती है ?
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 18 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ सिराते मुस्तकीम - सफा न , 95 में है : ब मुकतजाए, तर्जमा : - अंधेरे कुछ अंधेरों से बढ़ कर होते हैं!
*के मुताबिक*
▣ ❥ तर्जमा: - " औरतों के जिना करने के ख्याल से अपनी बीवी से व़ती ( हमबिस्तरी ) करना बेहतर है और अपने ख्याल को अपने शैख वगैरा बुजुग्राने दीन अगरचे सरकारे रिसालत मआब ही क्यूँ न हों अपनी गाय और गधे की सूरत में डूब जाने से कई गुना ज्यादा बुरा है।
▣ ❥ मुसलमानो ! यह हैं वहाबियों के गुरू घंटाल के बेहूदा कलिमात और वह भी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में। जिसके दिल में राई बराबर भी ईमान है वह ज़रूर यह कहेगा कि इस कौल में गुस्ताखी ज़रूर है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 58 📚*
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ तकवीयतुल ईमान सफा न . 10में है कि : रोज़ी की कशाइश और तंगी करनी और तन्दरुस्त व बीमार कर देना , इकबाल व इदबार देना , हाजतें बर लानी , बलायें टालनी , मुश्किल में दस्तगीरी करनी यही सब अल्लाह की शान है और किसी अम्बिया औलिया भूत परी की यह शान नहीं जो किसी को ऐसा तसर्रुफ साबित करे और उससे मुरादें माँगे और मुसीबत के वक्त उसको पुकारे जो वह मुशरिक हो जाता है फिर ख्वाह यूँ समझे कि अल्लाह ने उनको कुदरत बख्शी है हर तरह शिर्क है। " जब कि कुर्आन शरीफ में यह है कि, तर्जमा : - " अल्लाह और रसूल ने अपने फज्ल से उनको गनी कर दिया!
▣ ❥ इससे पता चलता है कि अल्लाह ने अपने नबी को तसर्रुफ का इख्तियार दिया है । और फिर कुर्आन में हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में यह आया है कि,तर्जमा " ऐ ईसा ! तू मेरे हुक्म से मादरज़ाद अन्धे और सफेद दाग वाले को अच्छा कर देता है।
▣ ❥ एक दूसरी जगह कुर्आन ने हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम के फरमान को इस तरह बताया है कि, तर्जमा : - मैं अल्लाह के हुक्म से अच्छा करता हूँ मादरज़ाद अंधे और सफेद दाग वालों को और मुर्दो को जिला देता हूँ !
▣ ❥ अब कुर्आन का तो यह हुक्म है और वहाबी यह कहते हैं कि तन्दुरुस्त करना अल्लाह ही की शान है जो किसी को ऐसा तसर्रुफ साबित करे मुशरिक है। अब वहाबी बतायें कि अल्लाह तआला ने ऐसा तसर्रुफ हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के लिए साबित किया तो उस पर क्या हुक्म लगाते हैं और लुत्फ यह कि अल्लाह तआला ने अगर उनको कुदरत बख्शी है जब भी शिर्क है तो मालूम कि उन के यहाँ इस्लाम किस चीज़ का नाम है ?
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ तकवीयतुल ईमान सफा 11 में है कि, गिर्द व पेश के जंगले का अदब करना यानी वहाँ शिकार न करना दरख्त न काटना यह काम अल्लाह ने अपनी इबादत के लिये बनाये हैं फिर जो कोई किसी पैगम्बर या भूत के मकानों के गिर्द व पेश के जंगल का अदब करे उस पर शिर्क साबित है ख्वाह यूँ समझे कि यह आप ही इस ताजीम के लाइक या यूँ कि उनकी इस ताजीम से अल्लाह खुश होता है हर तरह शिर्क है। " कई सही हदीसों में इरशाद फरमाया कि इबराहीम ने मक्का को हरम बनाया और मैंने मदीने को हरम किया। उसके बबूल के दरख्त न काटे जायें और उसका शिकार न किया जाये। मुसलमानों !
▣ ❥ ईमान से देखना कि उस शिर्क फरोश का शिर्क कहाँ तक पहुँचता है ?तुमने देखा कि इस गुस्ताख ने नबी सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम पर क्या हुक्म जड़ा।
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▣ ❥ तकवीयतुल ईमान सफा न . 8 में है कि, "पैगम्बरे खुदा के वक़्त में काफिर भी अपने बुतों को अल्लाह के बराबर नहीं जानते थे बल्कि उसी का मखलूक और उसका बन्दा समझते थे और उनको उसके मुकाबिल की ताकत साबित नहीं करते थे मगर यही पुकारना और मन्नत माननी और नजर व नियाज़ करनी और उनको अपना वकील व सिफारिशी समझना यही उनका कुफ्र व शिर्क था सो जो कोई किसी से यह मुआमला करेगा कि उसको अल्लाह का बन्दा व मखलूक ही समझे सो अबू जहल और वह शिर्क मे बराबर हैं।
▣ ❥ यानी जो नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत माने कि हुजूर अल्लाह तआला के दरबार में हमारी सिफारिश फरमायेंगे तो मआजल्लाह उसके नजदीक वह अबू जहल के बराबर मुशरिक है। इसमें शफाअत के मसले का सिर्फ इन्कार ही नहीं बल्कि उसको शिर्क साबित किया और तमाम मुसलमानों सहाबा, ताबेईन, दीन के इमाम और औलियाए सालेहीन सब को मुशरिक और अबू जहल बना दिया।
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*☝🏻 वहाबी फ़िरका*
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▣ ❥ तकवीयतुल ईमान सफा न . 58 में है कि, कोई शख्स कहे फलाने दरख्त में कितने पत्ते हैं या आसमान में कितने तारे हैं तो उसके जवाब में यह न कहे कि अल्लाह और रसूल जानें क्योंकि गैब की बात अल्लाह ही जानता है रसूल को क्या खबर ? " सुबहानल्लाह खुदाई इसी काम का नाम रह गया कि किसी पेड़ के पत्ते की तादाद जान ली जाये!
▣ ❥ ( ❾ ) तकवीयतुल ईमान सफा न . 7 में यह है कि , अल्लाह साहब ने किसी को आलम में तसर्रुफ करने की कुदरत नहीं दी इसमें अम्बियाये किराम के मोजिज़ात और औलियाए इजाम की करामत का साफ इन्कार है।
▣ ❥ अल्लाह फरमाता है कि, तर्जमा : - “ कसम फ़रिश्तों की जो कामों की तदबीर करते हैं।
▣ ❥ कुर्आन तो यह कहता है। लेकिन तकवीयतुल ईमान वाला कुर्आन का साफ इन्कार कर रहा है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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▣ ❥ तक़वीयतुल ईमान सफा 22 में है कि, जिसका नाम मुहम्मद या अली है वह किसी चीज़ का मुख्तार नहीं । तअज्जुब है कि वहाबी साहब तो अपने घर की तमाम चीजों का इख्तियार रखें और मालिके हर दोसरा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम किसी चीज के मुख्तार न हों। इस गिरोह का एक मशहूर अकीदा यह है कि अल्लाह तआला झूठ बोल सकता है बल्कि उनके एक सरगना ने तो अपने एक फतवे में लिख दिया कि : ' वुकूए किज्य के माना दुरुस्त हो गये जो यह कहे कि अल्लाह तआला झूठ बोल चुका ऐसे की तजलील (जलील करना) और तफसीक ( फासिक कहने ) से मामून करने चाहिये।, सुबहानल्लाह खुदा को झूठा माना फिर भी इस्लाम , सुन्नियत , और सलाह किसी बात में फर्क न आया। मालूम नहीं इन लोगों ने किस चीज़ को खुदा ठहरा लिया है। एक अकीदा उनका यह है कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ' खातमुन्नबीय्यीन ' व माना आखिररुल अम्बिया नहीं मानते और यह सरीह कुफ्र है।
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▣ ❥ चुनाँचे तहजीरुन्नास सफा न . 2 में है कि , अवाम के ख्याल में तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम का खातम होना बई माना है कि अपको जमाना अम्बियायए साबिक के बाद और आप सब में आखिर नबी हैं मगर अहले फहम पर रौशन होगा कि तकदुम या तअख्खुर बिज्जात कुछ फजीलत नहीं, फिर मकामे मदह में यह फरमाना
▣ ❥ तर्जमा - " हाँ अल्लाह के रसूल हैं और सब नबियों में पिछले हैं।
▣ ❥ इस सूरत में क्यों कर सही हो सकता है ? हाँ अगर इस वस्फ को औसाफे मदह में से न कहे और इस मकाम को . मकामे , मदह न करार दीजिये तो अलबत्ता खातिमीयत ब एअतेबारे तअख्खुरे जमाना सहीह हो सकती है। पहले तो इस काइल ने खातमुन्नबीय्यीन के मथुनी तमाम अम्बिया से जमाने के एतिबार से मुतअख्खर होने को अवाम का ख्याल कहा और यह कहा कि अहले फहम पर रौशन है कि इसमें बिज्जात कुछ फजीलत नहीं हालाँकि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खातमुन्नबीय्यीन के यही मअ्ना कसरत से हदीसों में इरशाद फरमाये तो मआजल्लाह इस काइल ने तो हुजूर को अवाम में दाखिल किया और अहले फहम से खारिज किया। फिर खत्मे जमानी को मुतलकन फजीलत से खारिज किया हालाँकि इसी तअख्खुरे जमानी को हुजूर ने मकामे मदह में जिक्र फरमाया फिर यह कि,
▣ ❥ तहजीरुन्नास सफा न . 4 में लिखा कि , आप मौसूफ ब वस्फे नुबुब्बत बिज्जात हैं और सिवा आप के और नबी मौसूफ ब वस्फ नुबुव्वत बिल अर्ज " तहज़ीरुन्नास सफा न . 16 पर है कि बल्कि बिलफर्ज आपके जमाने में भी कहीं और कोई नबी हो आपका खातम होना बदस्तूर बाकी रहता है।
▣ ❥ 📕तहज़ीरुन्नास सफा न . 33 पर है कि, बल्कि अगर बिलफर्ज बाद ज़मानये नबी भी कोई नबी पैदा हो तो भी खातमीयते मुहम्मदी में कुछ फर्क न आयेगा चे जाये कि आपके मुआसिर ( एक वक़्त में रहने वाले ) किसी और ज़मीन में था फर्ज कीजिये उसी ज़मीन में कोई और नबी तजवीज़ किया जाये । " लुत्फ यह कि इस काइल ने उन तमाम खुराफात का ईजादे बन्दा होना खुद तसलीम कर लिया!
▣ ❥ 📕तहजीरुन्नास सफा न . 34 पर है कि, अगर ब वजहे कम इल्तेफाती बड़ों का फहम किसी मजमून तक न पहुँचा तो उनकी शान में क्या नुकसान आ गया और किसी किसी तिफले नादान ने कोई ठिकाने की बात कह दी तो क्या इतनी बात से वह अजीमुश्शान हो गया
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▣ ❥ गाह बाशद कि कोदके नादाँ ब गलत बर हदफ जनद तीरे, तर्जमा : - " कभी ऐसा होता है कि नादान बच्चा गलती से निशाने पर कोई तीर मार देता है।
▣ ❥ हाँ बादे वुजूहे हक (हक की वज़ाहत के बाद) अगर फकत इस वजह से कि यह बात मैंने कही और वह अगले कह गये थे मेरी न माने और वह पुरानी बात गाये जायें तो कतए नज़र इसके कि कानून महब्बते नबवी सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम से यह बात बहुत बईद है। वैसे भी अपनी अक्ल व फहम की खूबी पर गवाही देनी है।
▣ ❥ यहीं से ज़ाहिर हो गया कि जो मअनी उसने तराशे सलफ में कहीं उसका पता नहीं और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने से आज तक जो सब समझे हुए थे उसको अवाम को ख्याल बता कर रद कर दिया कि इसमें कुछ फजीलत नहीं। इस कहने वाले पर उलमाये हरमैन तय्यबैन ने जो फ़तवे दिये वह ' हुसामुल हरमैन ' के देखने से ज़ाहिर हैं। और उसने खुद भी उसी किताब में सफा 46 में अपना इस्लाम बराये नाम तसलीम किया।
▣ ❥ मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी ' इन नाम के मुसलमानों से अल्लाह बचाये।
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▣ ❥ तहज़ीरुन्नास ' सफा न . 5 पर है कि : -" अम्बिया अपनी उम्मत से मुमताज़ होते हैं तो उलूम ही में मुमताज़ होते हैं बाकी रहा अमल उसमें बसा औकात बजाहिर उम्मती मसावी (बराबर हो जाते हैं बल्कि बढ़ जाते हैं)!
▣ ❥ और सुनिये इन काइल साहब ने हुजूर की नुबुव्वत को कदीम और दूसरे नबियों की नुबुव्वत को हादिस बताया जैसा कि सफा न . 7 पर है। क्यूँकि फ़रके किदमे नुबव्वत और हुदूसे नुबुव्वत बावुजूद इत्तेहादे नौई खूब जब ही चसपाँ हो सकता है। क्या जात व सिफ़ाते बारी के सिवा मुसलमानों के नज़दीक कोई और चीज़ भी कदीम है। नबुव्वत सिफत है और बिना मौसूफ के सिंफ़त का पाया जाना मुहाल है। जब हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी ज़रूर हादिस न हुए बल्कि अजली ठहरे और जो अल्लाह और अल्लाह की सिफ़तों के सिवा को कदीम माने ब इजमाये मुसलिमीन काफ़िर है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 62 📚*
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▣ ❥ इस गिरोह का आम तरीका यह है कि जिस चीज़ में अल्लाह के महबूबों की फजीलत जाहिर हो तो उसे तरह तरह की झूटी तावीलों से बातिल करना चाहेंगे हर वह बात साबित करना चाहेंगे जिस में तनकीस और खोट हो जैसे :
▣ ❥ बराहीने कातेआ सफा न . 51 में है कि - " नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं "। और इसको शैख़ मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की तरफ गलत मनसूब कर दिया। बल्कि उसी सफे पर नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वुसअते इल्म की बाबत यहाँ तक लिख दिया कि,
▣ ❥ अल हासिल गौर करना चाहिए कि शैतान कि व मलकुल मौत का हाल देख कर इल्मे मुहीते जमीन का फखरे आलम को ख़िलाफे नुसूसे कतईया के बिला दलील महज़ कियासे फ़ासिदा से साबित करना शिर्क नहीं तो कौन सा हिस्सा ईमान का है। शैतान व मलकुल मौत को यह बुसअत नस से साबित हुई फखरे आलम की वुसअते इल्म की कौन सी नस्से कतई है जिस से तमाम नुसूस को रद कर के एक शिर्क साबित करता है शिर्क नहीं तो कौनसा हिस्सा ईमान का है।
▣ ❥ हर मुसलमान अपने ईमान की आँखों से देखें कि इस काइल ने इबलीसे लईन के इल्म का नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म से ज्यादा बताया या नहीं ? और शैतान को खुदा का शरीक माना या नहीं ? हर ईमान वाला यही कहेगा कि जरूर बताया और जरूर माना फिर इस शिर्क को नस से साबित किया। यहाँ तीनों बातें सरीह कुफ्र और इनका कहने वाला यकीनी तौर पर काफिर है। कौन मुसलमन उसके काफिर होने में शक करेगा ?
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 62,63 📚*
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▣ ❥ 📕हिफजुल ईमान सफा न . 7 में है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म के बारे में यह तकरीर की कि आप की जाते मुकद्दसा पर इल्मे गैब का हुक्म किया जाना अगर ब कौले जैद सही हो तो दरयाफ्त तलब यह अम्र है कि इस गैब से मुराद बाज़ (कुछ) गैब हैं या कुल गैब ? अगर बाज उलूमे गैबिया मुराद हैं तो इसमें हुजूर की क्या तखसीस (खसूसियत) है ? ऐसा इल्मे गैब तो जैद व अम्र बल्कि हर सबी (बच्चे) व मजनून (पागल) बल्कि जमीअ (तमाम) हैवानात व बहाइम ( चौपाया ) के लिये भी हासिल है।
▣ ❥ मुसलमानों ! गौर करो कि इस शख्स ने नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में कैसी खुली हुई गुस्ताखी की कि हुजूर जैसा इल्म जैद व अम्र तो दर किनार हर बच्चे और पागल बल्कि तमाम जानवरों और , चौपार्यों के लिए हासिल होना कहा । क्या कोई भी ईमान वाला दिल ऐसे के काफिर होने में शक कर सकता है ? हरगिज़ नहीं।
▣ ❥ इस कौम का यह आम तरीका है कि जिस चीज़ को अल्लाह और रसूल ने मना नहीं किया बल्कि कुर्आन और हदीस से उसका जाइज होना साबित है उसको नाजाइज़ कहना तो दर किनार उस पर शिर्क और बिदअत का हुक्म लगा देते हैं जैसे मीलाद शरीफ की मजलिस , कियाम , ईसाले सवाब , कब्रों की जियारत , बारगाहे बेकस पनाह सरकारे मदीना तय्यबा व औलिया की रूहों से इस्तिमदाद ( मदद चाहना ) और मुसीबत के वक़्त नबियों और वलियों को पुकारना वगैरा बल कि मीलाद शरीफ के बारे में तो ऐसा नापाक लफ्ज़ लिखा है कि ऐसे नापाक अलफ़ाज़ रसूल के दुश्मन के अलावा कोई मोमिन नहीं लिख सकता । वह अलफ़ाज़ यह हैं, वहाबियों की और भी बहुत गन्दी गन्दी इबारते हैं जो दूसरी किताबों में देखी जा सकती हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
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*☝🏻 गैर मुकल्लिदीन फिरका*
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▣ ❥ यह भी वहाबियत की एक शाख़ है। वह चन्द बातें जो हाल में वहाबियों ने अल्लाह तआला और नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी के तौर पर बकी हैं वह गैर मुकल्लिदीन से साबित नहीं। बाकी दूसरे तमाम अकीदों में दोनों शरीक हैं। और हाल के देवबन्दियों की इबारतों को देख भाल और जान बूझ कर उन्हें काफिर तसलीम नहीं करते और शरीअत का हुक्म है कि जो अल्लाह और रसूल की शान में गुस्ताखी करने वालों के काफिर होने में शक करे वह भी काफ़िर है । गैर मुकल्लिदों का एक बुरा अकीदा यह है कि वह चारों मज़हबों
▣ ❥ ( 1 ) हनफी
▣ ❥ ( 2 ) शफिई
▣ ❥ ( 3 ) मालिक
▣ ❥ ( 4 ) हम्बली
▣ ❥ से अलग और तमाम मुसलमानों से अलग थलग एक रास्ता निकाल कर तकलीद को हराम और बिदअ़त कहते हैं और दीन के इमामों जैसे
▣ ❥ इमामे आज़म अबू हनीफा
▣ ❥ इमामे शाफिई
▣ ❥ इमामे मालिक
▣ ❥ इमामे अहमद इब्ने हम्बल
▣ ❥ को बुरा भला कहते हैं। यह लोग इमामों की तकलीद (पैरवी नहीं करते बल्कि शैतान की करते हैं। गैर मुकल्लिदीन ' तकलीद ' और ' कियास ' का इन्कार करते है। जब कि मुतलक तकलीद और कियास का इन्कार कुफ्र है। इसलिये गैर मुकल्लिदीन का मजहब बातिल है।
▣ ❥ नोट : - फरअ् में अस्ल की तरह हुक्म को साबित करने को कियास कहते हैं। कियास कुर्आन और हदीस से साबित है ।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 63 📚*
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*☝🏻 गैर मुकल्लिदीन फिरका*
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*▣ ❥ ज़रूरी तम्बीह* वहाबियों के यहाँ बिदअत का बहुत चर्चा है जिस चीज़ को देखिये बिदअत है। इसलिये मुनासिब यह है कि बता दिया जाये कि बिदअत किसे कहते हैं। बिदअते मज़मूमा व कबीहा यानी ख़राब बिदअत वह है जो किसी सुन्नत के मुखालिफ हो और सुन्नत से टकराती हो और यह मकरूह या हराम है। और मुतलक बिदअत तो मुस्तहब बल्कि सुन्नत और वाजिब तक होती है। हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु तरावीह के बारे में
▣ ❥ 📝( तर्जमा : - यह अच्छी बिदअत है। )
▣ ❥ फरमाते है कि हालाँकि तरावीह सुन्नते मुअक्कदा है । जिस चीज़ की अस्ल शरीअत से साबित हो वह हरगिज़ बुरी बिदअत नहीं हो सकती। नहीं तो खुद वहाबियों के मदरसे और इस मौजूदा खास सूरत में उनके वाज़ के जलसे ज़रूर बिदअत होंगे। फिर यह वहाबी इन बिदअतों को क्यूँ नहीं छोड़ देते। मगर उनके यहाँ तो यह ठहरी है कि अल्लाह के महबूबों की अज़मत की जितनी चीजें हैं सब बिदअत और जिसमें उनका मतलब हो वह हलाल और सुन्नत।
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*☝🏻 गैर मुकल्लिदीन फिरका*
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▣ ❥ *ज़रूरी तम्बीह तर्जमा : -* और नहीं है कोई ताकत और कुव्वत मगर अल्लाह की तरफ़ से।
▣ ❥ मुख़्तसर यूँ समझिए कि बिदअत दो तरह की हुई एक अच्छी और दूसरी बुरी। बुरी बिदअत तो बहरहाल बुरी है और अगर कोई अच्छी नर्ह बात यानी अच्छी नई बिदअत निकाली जाए तो वह हर्गिज़ बुरी नहीं। बहुत साफ़ मिसाल इसकी यह है कि कुर्आन पाक हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दौर में कागज़ पर यूँ लिखा न था तो क्या कुर्आन का काग़ज़ पर लिखना बिदअत या नया काम कह के हराम करार दिया जाएगा हर्गिज़ नहीं।
▣ ❥ इसी तरह बहुत से नए जाएज काम ऐसे हैं जिन्हें हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नहीं किया मगर बुजुर्गों ने उन्हें अच्छा जान कर शुरू किया। लिहाजा वह अच्छे काम बिदअत नहीं हैं बल्कि अच्छे हैं। यूँ भी शरीअत ने जिस काम का न तो हुक्म दिया न उसे मना किया उसे मुबाह कहते हैं और मुबाह के करने पर न गुनाह है न सवाब हाँ अगर नियत अच्छी है तो सवाब और नियत अच्छी नहीं तो गुनाह होगा लिहाज़ा हर नया काम बुरी बिदअत न हुई।
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ इमामत की दो किस्मे है :
▣ ❥ ① . इमामते सुग़रा : - नमाज़ की इमामत का नाम इमामते सुग़रा है!
▣ ❥ ② इमामते कुबरा : - नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नियाबत यानी काइम मकाम काम करने को इमामते कुबरा कहते हैं। इस तरह कि इमामों से मुसलमानों की तमाम दीनी और दुनियावी ज़रूरतें वाबस्ता हैं। इमाम जो भी अच्छे कामों का हुक्म दें उनकी पैरवी तमाम दुनिया के मुसलमानों पर फर्ज है। इमाम के लिए आज़ाद आकिल, बालिग कादिर और करशी होना शर्त है।
▣ ❥ राफिजी लोगों का मज़हब यह है कि इमाम के लिये हाशिमी, अलवी और मासूम होना शर्त है। इससे उनका मकसद यह है कि तीनों ख़लीफ़ा जो हक पर हैं उनको खिलाफ़त से अलग करना चाहते हैं। जब कि तमाम सहाबए किराम और हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हुम और हजरते इमाम हसन और हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लहु तआला अन्हुमा ने पहला खलीफा हज़रते अबू बक्र दूसरे खलीफा हजरते उमर तीसरे खलीफा हज़रते उसमाने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हुम को माना है। राफिजी मजहब में इमाम की शर्तों में से एक शर्त जो अलवी होने की बढ़ाई गई है उससे हजरत अली भी इमाम नहीं , हो सकते क्यूँकि अलवी उसे कहेंगे जो हज़रते अली की औलाद में से हो। राफिजी मज़हब में इमाम की शर्तों में एक शर्त इमाम का मासूम होना भी है जबकि मासूम होना अम्बिया और फरिश्तों के लिए खास है।
▣ ❥ मसअ्ला : - इमाम होने के लिए यही काफी नहीं कि खाली इमामत का मुस्तहक हो बल्कि उसे दीनी इन्तिज़ाम कार लोगों ने या पिछले इमाम ने मुकर्रर किया हो।
▣ ❥ मसअ्ला : - इमाम की पैरवी हर मुसलमान पर फर्ज़ है जबकि उसका हुक्म शरीअत के खिलाफ न हो बल्कि शरीअत के खिलाफ किसी का भी हुक्म नहीं माना जा सकता।
▣ ❥ मसअ्ला : - इमाम ऐसा शख्स मुकर्रर किया जाए जो आलिम हो या आलिमों की मदद से काम करे और बहादुर हो ताकि हक बात कहने में उसे कोई खौफ न हो ।*
*▣ ❥ मसअ्ला : - इमामत औरत और नाबालिग की जाइज़ नहीं । अगर पहले इमाम ने नाबालिग को इमाम मुकर्रर कर दिया हो तो उसके बालिग होने के लिए लोग एक वली मुकर्रर करें कि वह शरीअत के अहकाम जारी करे और यह नाबालिग इमाम सिर्फ रस्मी होगा और हकीकत में वह उस वक़्त तक इमाम का वाली है।
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ अक़ीदा : - हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद ख़लीफ़ा बरहक और इमामे मुतलक हज़रते अबू बक्र सिद्दीक फिर हज़रते उमर फारूक फिर हज़रते उसमाने गनी फिर हजरते अली 6 महीने के लिये हज़रते इमाम हसन रदियल्लाहु तआला अन्हुम खलीफा हुए। इन बुजूर्गों को खुलफाये राशिदीन और उनकी खिलाफ़त को खिलाफते राशिदा कहते हैं। इन नाइबों ने हुजूर की सच्ची नियाबत का पूरा पूरा हक अदा फरमाया है।
▣ ❥ अकीदा : - नबियों और रसूलों के बाद हज़रते अबू बक्र इन्सान, जिन्नात, फरिश्ते और अल्लाह तआल की हर मखलूक से अफजल हैं फिर हज़रते उमर फिर हज़रते उसमान गनी और फिर हज़रते अली रादयल्लाहु तआला अन्हुम जो आदमी मौला अली मुशकिल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु को पहले या दूसरे खलीफा से अफजल बताये वह गुमराह और बद मजहब है।
▣ ❥ अकीदा : - अफ़जल का मतलब यह है कि अल्लाह तआला के यहाँ ज्यादा इज्जत वाला हो। इसी को कसरते से सवाब भी ताबीर करते हैं न कि कसरते अज़्र कि बारहा मफजूल के लिए होती है। सय्यदना हज़रते इमाम महदी के साथियों के लिए हदीस शरीफ में यह आया है कि उनके एक के लिये पचास का अज़्र है सहाबा ने हुजूर से पूछा उन में के पचास का या हम में के फरमाया बल्कि तुममें के तो अज्र उनका ज़ाइद हुआ मगर अफजलीयत में वह सहाबा के हमसर भी नहीं हो सकते ज़्यादा होना तो दर किनार कहाँ इमाम महदी की रिफाकत कहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सहाबियत उसकी मिसाल बिना तश्बीह यूँ समझिये कि सुलतान ने किसी मुहिम पर वज़ीर और कुछ दूसरे अफसरों को भेजा उसकी फतह पर हर अफ़सर को लाख लाख रुपये इनाम के दिये और वज़ीर को खाली उसके मिज़ाज की खुशी के लिए एक पर्वाना दिया तो इनाम दूसरे अफसरों को ज्यादा मिला लेकिन इस इनाम को उस परवाने से कोई निसबत नहीं।
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▣ ❥ अकीदा : - उनकी खिलाफत बर तरतीबे फजीलत है यानी जो अल्लाह के नज़दीक अफजल, आला और अकरम था वही पहले खिलाफत पाता गया न कि अफ़ज़लीयत बर तरतीबे खिलाफ़त यानी अफ़ज़ल यह कि मुल्कदारी व मुल्क गीरी में ज्यादा सलीका । जैसा कि आजकल सुन्नी बनने वाले तफज़ीलिये कहते हैं । अगर यूँ होता तो हज़रते फारूक आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु सबसे अफजल होते क्यूँकि उनकी खिलाफ़त को यह कहा गया है कि।
▣ ❥ तर्जमा : - " मैंने किसी मर्दे कवी को उनकी तरह अमल करते हुए नहीं देखा यहाँ तक कि लोग सैराब हो गये और पानी से करीब ऊँट बैठाने की जगह बनाई।
▣ ❥ और हज़रते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु की ख़िलाफ़त को इस तरह फरमाया गया कि।
▣ ❥ तर्जमा : - " उनके पानी निकालने में कमजोरी रही अल्लाह तआला उनको बख़्शे।
▣ ❥ यह हदीस इस तरह है कि हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि मैंने हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सुना कि उन्होंने फरमाया कि मैंने ख्वाब में कुएँ पर एक डोल रखा देखा तो मैंने उससे जितना अल्लाह तआला ने चाहा पानी निकाला फिर हजरते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने वह डोल लिया उन्होंने एक या दो भरे डोल निकाले उनके निकालने में कमजोरी रही।
▣ ❥ अकीदा : - चारों खुलफाए राशिदीन के बाद बकीया अशरह मुबश्शेरह और हज़राते हसनैन और असहाबे बद्र और असहाबे बैअतुर्रिजवान के लिए अफजलियत है और यह सब कतई जन्नती हैं और तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम अहले खैर और आदिल हैं उनका भलाई के साथ ही जिक्र होना फर्ज है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 66 📚*
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ अकीदा : - किसी सहाबी के साथ बुरा अकीदा रखना बद्जहबी और गुमराही है अगर कोई बुरी अकीदत रखे तो वह जहन्नम का मुस्ताहक है क्यूँकि इनसे बुरी अकीदत रखना नबी अलैस्सिलाम के साथ बुग़ज़ है ऐसा आदमी राफिजी है अगरचे चारों खुलफा को माने और अपने आपको सुन्नी कहे हजरते अमीर मुआविया , उनके वालिदे माजिद हज़रते अबू सुफयान , उनकी वालिदा हज़रते हिन्दा हजरते सय्यदना अम्र इब्ने आस व हजरते मुगीरा इने शोअ्बा हज़रते अबू मूसा अशअरी यहाँ तक कि हजरते वहशी रदियल्लाहु तआला अन्हुम में से किसी की शान में गुस्ताखी तबर्रा है।
▣ ❥ हज़रते वहशी वह हैं जिन्होंने इस्लाम से पहले सय्यदुश्शुहदा हजरते हमज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु को शहीद किया और इस्लाम लाने के बाद बहुत बड़े ख़बीस मुसैलमा कज्जाब को जहन्नम के घाट उतारा वह खुद कहा करते थे मैंने बहुत अच्छे इन्सान को और बहुत बुरे इन्सान को क़त्ल किया और सहाबियों की शान में बेअदबी और गुस्ताखी करने वाला ' राफ़िज़ी है अब रही बात हज़रतें अबू बक्र और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की तौहीन तो यह उनकी खिलाफत से ही इन्कार है और फुकहा के नज़दीक इनकी तौहीन या इनकी खिलाफत से इन्कार कुफ्र है।
▣ ❥ अकीदा : - सहाबी का मर्तबा यह है कि कोई वली किसी मर्तबे का हो किसी सहाबी के रुतबे को नहीं पहुँच सकता। मसअला : - सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम के आपसी जो वाकिआत हुये उनमें पड़ना हराम और सख्त हराम है मुसलमानों को तो यह देखना चाहिए कि वह सब आकाये दो जहाँ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर जान निसार करने वाले और सच्चे गुलाम हैं।
▣ ❥ अकीदा : - तमाम सहाबए किराम आला और अदना (और उनमें अदना कोई नहीं) कुर्आन के इरशाद के मुताबिक़ सब जन्नती हैं वह जहन्नम की भनक न सुनेंगे और हमेशा अपनी मनमानी मुरादों में रहेंगे, महशर की वह बड़ी घबराहट उन्हें गमगीन न करेगी फ़रिश्ते उनका इस्तिकबाल करेंगे कि यह है वह दिन जिसका तुम से वादा था।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 67 📚*
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ अकीदा : - सहाबा नबी न थे फरिश्ते न थे किं मासूम हों उनमें कुछ के लिए लग़ज़िशें हुई मगर उनकी किसी बात पर गिरफ्त करना अल्लाह और रसूल के ख़िलाफ़ है अल्लाह तआला ने जहाँ सूरए हदीद में सहाबा की दो किस्में की हैं यानी फतहे मक्का से पहले के मोमिन और फतहे मक्का के बाद के मोमिन और उनको उन पर फजीलत दी और फरमा दिया कि
▣ ❥ तर्जमा : - " सब से अल्लाह ने भलाई का वादा फरमा लिया। " और साथ ही यह भी फरमाया कि
▣ ❥ तर्जमा : - " और अल्लाह खुब जानता है जो कुछ तुम काम करोगे।
▣ ❥ तो जब उसने उनके तमाम आमाल जानकर हुक्म फरमा दिया कि उन सब से हम जन्नत का बे अजाब व करामत और सवाब का वादा कर चुके तो दूसरे को क्या हक रहा कि उनकी किसी बात पर तअन करे क्या तअन करने वाला अल्लाह से अलग कोई मुस्तकिल हुकूमत काइम करना चाहता है?
▣ ❥ अकीदा : - हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु मुजतहिद थे उनके मुजतहिद होने के बारे में हजरते अब्दुल्लाह इने अब्बास रदिल्लाहु तआला अन्हुमा ने सहीह बुखारी में बयान फ़रमाया है मुजतहिद से सवाब और खता दोनों सादिर होती हैं इस बारे में खता की दो किस्में है, खताए ' इनादी ' यह मुजतहिद की शान नहीं। खताए ' इजतेहादी ' यह मुजतहिद से होती है और उसमें उस पर अल्लाह के नजदीक हरगिज़ कोई पकर नहीं, मगर अहकामे दुनिया में खता की दो किस्में हैं। खताए ' मुकर्रर उसके करने वाले पर इन्कार न होगा यह वह खताए इजतेहादी है जिससे दीन में कोई फितना नही होता हो। जैसे हमारे नजदीक मुकतदी का इमाम के पीछे सूरए फातिहा पढ़ना। दूसरी खताए 'मुन्कर' यह वह खताए इजतेहादी है जिसके करने वाले पर इन्कार किया जायेगा कि उसकी खता फितने का सबब है हज़रते अमीर मुआविया का हजरते अली से इख्तेलाफ इस किस्म की खता का था और हुजूर अलैहिस्सलाम ने जो खुद फैसला फरमाया है कि मौला अली की डिगरी और अमीरे मुआविया की मगफिरत।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 68-69 📚*
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला : - कुछ जाहिल यह कहते हैं कि जब हज़रते अली के साथ हज़रते अमीरे मुआविया की नाम लिया जाये तो ' रदियल्लाहु तआला अन्हु न कहा जाये इसकी कोई अस्ल नहीं और ऐसा अकीदा बिल्कुल बातिल और नई शरीअत गढ़ना है उलमाए किराम ने सहाबा के नामों के साथ रदियल्लाहु तआला अन्हु कहने का हुक्म दिया है।
▣ ❥ अकीदा : - नुबुव्वत के तरीके पर तीस साल तक खिलाफत रही और हज़रते इमामे मुजतबा रदियल्लाहु तआला अन्हु को 6 महीने की खिलाफत पर खत्म हो गई फिर अमीरूल मोमिनीन उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफते राशिदा हुई और आखिर जमाने में हज़रते इमाम महदी रदियल्लाहु तआला अन्हु खलीफा होंगे और हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाह तआला अन्हु इस्लामी तारीख के सब से पहले सुलतान हैं तौराते मुकद्दस का इशारा है कि, तर्जमा : - " हुजूर अलैहिस्सलाम मक्के में पैदा होंगे मदीने को हिज़रत करेगे और उनकी सलतनत शाम में होगी।
▣ ❥ हज़रते अमीरे मुआविया की बादशाही अगर्चे सलतनत है मगर किस की हकीकत में हज़रते मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सलतनत है क्यूँकि हज़रते इमामे हसन मुजतबा रदियल्लाहु तआला अन्हु एक बार जंग के मैदान में थे और उनपर जान फिदा करने वाला बहुत बड़ा लशकर या इस के बावुजूद हज़रते इमामे हसन रदियल्लहु तआला अन्हु ने जान बूझ कर हथियार रख दिये और हज़रते अमीर मुआविया के हाथों पर ' बैअत ' फरमा ली हुजूर अलैहिस्सलाम ने इस सुलह की बशारत दी है और खुशी में इमामे हसन के बारे में यह फरमाया है कि।
▣ ❥ तर्जमा : - मेरा यह बेटा सय्यद है मैं उम्मीद करता हूँ कि अल्लाह तआला इसकी वजह से इस्लान के दो बड़े गिरोहों में सुलह करा दे।
▣ ❥ इसके बाद भी अगर कोई हज़रते अमीरे मुआविया पर फासिक फ़ाज़िर होने का इलजाम लगाये तो उसका इल्जाम लगाना और तअना कसना हज़रते इमामे हसन, हुजूर अलैहिस्सलाम बाल्कि अल्ल्लाह तआला पर होगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 69 📚*
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ अकीदा : - हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा कतई जन्नती हैं और आख़िरत में भी यकीनी तौर पर महबूबे खुदा की महबूब दुल्हन हैं जो उन्हें तकलीफ दे वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ईज़ा देता है और हज़रते तल्हा और हज़रते जुबैर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा तो अशरा मुबश्शिरा में से हैं इन साहिबों से हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु के मुकाबले की वजह से खताए इजतेहादी वाके हुई मगर यह लोग आखिर कार उनकी मुखालफ़त और मकाबले से बाज़ आगये थे और रुजू कर लिया था शरीअत में मुतलक बगावत तो इमामे बरहक से मुकाबले को कहते हैं यह मुकाबला चाहे ' इनादी हो या ' इजतेहादी लेकिन इन हज़रात के रुजू कर लेने यानी बगावत से फिर जाने की वजह से उन्हें बागी नहीं कहा जा सकता वह बेशक जन्नती हैं हजरते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु के गिरोह को शरीअत के एतिबार से बागी लश्कर कहा जाता था मगर अब जबकि बागी का मतलब मुफसिद और सरकश हो गया है और यह अल्फाज गाली समझा जाने लगा है इसलिये अब किसी सहाबी के लिये बागी का अल्फाज़ इस्तेमाल किया जाना जाइज़ नहीं।
▣ ❥ अकीदा : - उम्मुल मोमिनीन आइशा सिददीका रदियल्लाहु तआला अन्हा रब्बुल आलमीन के महबूब की महबूबा हैं उन पर इफ्क से अपनी ज़बान गन्दी करने वाला यकीनी तौर पर काफ़िर मुरतद है और इसके सिवा और तअ्न करने वाला राफिजी तबर्राई , बद्दीन और जहन्नमी है।
▣ ❥ अकीदा : - हजरते इमामे हसनैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा यकीनी तौर पर ऊँचे दर्जे के शहीदों में से हैं उनमें से किसी की शहादत का इन्कार करने वाला गुमराह और बद्दीन है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 69 📚*
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*☝🏻 इमामत का बयान*
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▣ ❥ अकीदा : - यज़ीद पलीद फासिक फाज़िर और गुनाहे कबीरा का मुर्तकिब था आजकल कुछ गुमराह लोग यह कह देते हैं कि हमारा उनके मामले में क्या दखल हमारे वह भी शहज़ादे और इमाम हुसैन भी शहज़ादे भला इमामे हुसैन से यज़ीद की क्या निस्बत ऐसी बकवास करने वाला मरदूद है खारिजी है और जहन्नम का मुस्तहिक है हाँ यज़ीद को काफिर कहने और उस पर लानत करने के बारे में उलमाए अहले सुन्नत के तीन कौल हैं और हमारे इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का मसलक ख़ामोशी है यानी हम यज़ीद को फ़ासिक फाजिर कहने के सिवा न काफिर कहें न मुसलमान।
▣ ❥ अकीदा : - अहले बैते किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम अहले सुन्नत के पेशवा हैं जो उनसे महब्बत न रखे मरदूद, मलऊन और खारिजी है।
▣ ❥ अकीदा : - उम्मल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा , उम्मुल मोमिनीन आइशा सिद्दीका और हजरत सय्यदा फातिमा जहरा रदियल्लाहु तआला अन्हा कतई जन्नती हैं। उन्हें और तमाम लड़कियों और पाक बीवियों (रदियल्लह तआला अन्हुन्ना) को तमाम सहाबियात पर फजीलत है यहाँ तक कि उनकी पाकी की गवाही कुर्आन ने दी है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 69 📚*
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*☝🏻विलायत का बयान*
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▣ ❥ विलायत अल्लाह तबारक व तआला से बन्दे के एक खास कुर्ब का नाम है जो अल्लाह तआला अपने बर्गुज़ीदा बन्दों को अपने फज्ल और करम से अता करता है इस सिलसिले में - मसले बताये जाते हैं।
▣ ❥ मसअला : - विलायत ऐसी चीज़ नहीं कि आदमी बहुत ज्यादा मेहनत करके खुद हासिल कर ले बल्कि विलायत मौला की देन है अलबत्ता आमाले हसना यानी अच्छे अमल अल्लाह तआला की इस देन के ज़रिये होते हैं और कुछ लोगों को विलायत पहले ही मिल जाती है मसअला : - विलायत बे - इल्म को नहीं मिलती इल्म दो तरह के होते हैं एक वह जो ज़ाहिरी तौर पर हासिल किया जाये दूसरे वह उलूम जो विलायत के मरतबे पर पहुँचने से पहले ही अल्लाह तआला उस पर उलूम के दरवाजे खोल दे।
▣ ❥ अकीदा : - तमाम अगले पिछले वलियों में से हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की उम्मत के औलिया सारे वलियों से अफजल हैं और सरकार की उम्मत के सारे वलियों में अल्लाह की मारिफत और उससे कुरबत चारों खुलफा की सब से ज़्यादा है और उनमें अफ़ज़लीयत की वही तरतीब है जिस तरतीब से वे खलीफा हैं यानी सब से ज्यादा कुरबत हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु को फ़िर हज़रते फारुके आजम रदियल्लाहु तआला अन्हु को फिर हज़रते उसमान गनी रदियल्लाह तआला अन्हु को और फ़िर मौला अली मुशकिल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु को है हज़रते अली की विलायत के कमालात मुसल्लम हैं इसीलिए उनके बाद सारे वलियों ने उन्हीं के घर से नेमत पाई उन्हीं के मुहताज थे, हैं और रहेंगे।
▣ ❥ अक़ीदा : - तरीक़त शरीअत के मनाफ़ी नहीं है बल्कि तरीकत शरीअत का बातिनी हिस्सा है कुछ जाहिल और बने हुए सूफी, जो यह कह दिया करते हैं कि तरीकत और है शरीअत और है यह महज़ गुमराही है और इस बातिल ख्याल की वजह से अपने आप को शरीअत से ज़्यादा समझना खुला हुआ कुफ्र और इलहाद है।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 70 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 184
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला : - कोई कितना ही बड़ा वली क्यों न हो जाये शरीअत के अहकाम की पाबन्दी में छुटकारा नहीं पा सकता कुछ जाहिल जो यह कहते हैं कि 'शरीअत रास्ता है और रास्ते की जरूरत उनको है जो मक़सद तक न पहुँचे हों हम तो पहुँच गये हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाह तआला अन्हु ऐसे लोगों के बारे में यह फरमाते हैं कि
▣ ❥ तर्जमा : - " वह सच कहते हैं बेशक पहुँचे मगर कहाँ ? जहन्नम को " अलबत्ता अगर मजजूबियत की वजह से अक्ल जाइल हो गई हो जैसे बेहोशी वाला तो उससे शरीअत का कलम उठ जायेगा मगर यह भी समझ लीजिए कि जो इस किस्म का होगा उसकी ऐसी बातें कभी न होंगी और कभी शरीअत का मुकाबला न करेगा।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 70 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 185
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ मसअल : - औलियाए किराम को बहुत बड़ी ताकत दी गई है उनमें जो असहाबे ख़िदमत हैं उनको तसर्रुफ का इख्तियार दिया जाता है और स्याह सफेद के मुख्तार बना दिये जाते हैं औलिया - ए - किराम नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सच्चे नाइब हैं उनको इख्तियारत और तसर्रुफात हुजूर की नियाबत में मिलते हैं गैब के इल्म उन पर खोल दिये जाते हैं उनमें से बहुतों को 'माकान व मायकुन' और लौहे महफूज की खबर दी जाती है। मगर यह सब हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वास्ते और देन से है बगैर रसूल के वास्ते किसी गैरे नबी को किसी गैब की कोई खबर नहीं हो सकती।
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*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 71 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 186
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ अकीदा : - औलियाए किराम की करामतें हक हैं इस हकीकत का इन्कार करने वाला गुमराह है।
▣ ❥ मसअ्ला : - मुर्दा ज़िन्दा करना, पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को शिफा देना , मशरिक से मगरिब तक सारी जमीन एक कदम में तय करना , गर्ज तमाम ख़वारिके आदात करामतें (वह बातें जो एक आम आदमी से मुमकिन नहीं यानी आदत के खिलाफ हैं) औलियाए किराम से मुमकिन हैं। अलबत्ता वह खवारिके आदत जिनकी नबी के अलावा दूसरों के लिए मुमानअत हो चुकी है वलियों के लिए नहीं हासिल होंगी जैसे कुर्आन मजीद की तरह कोई सूरत ले आना या दुनिया में जागते हुए अल्लाह पाक के दीदार या कलामे हकीकी से मुशर्रफ होना इन बातों का जो अपने या किसी वली के लिए दावा करे वह काफिर है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 71 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 187
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला : - औलिया से इस्तिमदाद और इस्तिआनत (मदद चाहना या माँगना) बेहतर है यह लोग मदद माँगने वालों की मदद करते हैं उनसे मदद माँगना किसी जाइज़ लफ्ज़ से हो, मुसलमान औलिया को कभी मुस्तकिल फाइल (करने वाला) नहीं मानते वहाबियों का फरेब है कि वे मुसलमानों के अच्छे कामों को भोंडी शक्ल में पेश करते हैं और यह वहाबियत का खास्सा हैं। (कहने का मतलब यह है कि वहाबी जाइज़ अल्फाज़ से मदद को भी शिर्क बताते हैं जबकि जाएज़ तरीके से मदद माँगना जाइज़ और नाजाइज़ तौर पर मदद माँगना गुनाह।
▣ ❥ हाँ अगर किसी ने मदद करने वाले को अल्लाह का शरीक जाना या यह जाना कि बिना अल्लाह तआला के दिए किसी और से मिला तो ऐसा करने वाला मुश्रिक और काफिर हुआ और मुसलमान ऐसा हरगिज़ नहीं करते।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 188
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला : - औलिया के मज़ारात पर हाज़िरी मुसलमानों के लिए नेकी और बरकत का सबब है।
▣ ❥ मसअ्ला : - अल्लाह के वलियों को दूर और नज़दीक से पुकारना बुजुर्गों का तरीका है।
▣ ❥ मसअ्ला : - औलियाए किराम अपनी कब्रों में हमेशा रहने वाली ज़िन्दगी के साथ ज़िन्दा हैं उनके इल्म इदराक (समझ बूझ) उनके सुनने और देखने में पहले के मुकाबले में कहीं ज़्यादा तेज़ी है।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 71 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 189
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ मसअ्ला :- औलिया को ईसाले सवाब करना मुस्तहब चीज़ है और बरकतों का ज़रिया है उसे आरिफ लोग नज्र व नियाज़ कहते हैं यह नज़र शरई नहीं जैसे बादशाह को नज़्र देना उन में ख़ास कर ग्यारहवीं शरीफ की फातेहा निहायत बड़ी बरकत की चीज़ है।
▣ ❥ मसअ्ला : - औलियाए किराम का उर्स यानी कुर्आन शरीफ़ पढ़ना, फातिहा पढ़ना, नात शरीफ पढ़ना, वाज़, नसीहत और ईसाले सवाब अच्छी चीज़ हैं। रही वह बातें कि उर्स में नासमझ लोग कुछ खुराफातें शामिल कर देते हैं तो इस किस्म की खुराफातें तो हर हाल में बुरी हैं और मुकद्दस मज़ारों के पास तो और भी ज्यादा बुरी हैं।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 71 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 190
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ तम्बीह : - चूंकि आम तौर पर मुसलमानों को अल्लाह के फज्ल और करम से औलिया - ए - किराम से नियाजमन्दी और पीरों के साथ एक खास अकीदत होती है उन के सिलसिले में दाखिल होने को दीन और दुनिया की भलाई समझते हैं। इसीलिये इस जमाने के वहाबियों ने लोगों को गुमराह करने कि लिए यह जाल फैला रखा है कि पीरी मुरीदी भी शुरू कर दी। हालांकि यह लोग औलिया के मुन्किर हैं इसीलिए जब किसी का मुरीद होना हो तो खूब अच्छी तरह तहकीक कर लें नहीं तो अगर कोई बदमजहब हुआ तो ईमान से भी हाथ धो बैठेंगे।
▣ ❥ ऐ बसा इबलीस आदम रूये हस्त पस ब हर दस्ते न बायद दाद दस्त, तर्जमा : - " होशियार , खबरदार अक्सर इबलीस आदमी की शक्ल में होता है इसलिये हर ऐरे के हाथ में हाथ नहीं देना चाहिए।
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 71-72 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 191
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*☝🏻 विलायत का बयान*
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▣ ❥ पीरी के लिये शर्त : - पीर के लिए चार शर्ते हैं। बैअत करने और मुरीद होने से पहले उनको ध्यान में रखना फर्ज है।
▣ ❥ ( 1 ) पीर सुन्नी सहीहुल अकीदा हो।
▣ ❥ ( 2 ) पीर इतना इल्म रखता हो कि अपनी जरूरत के मसाइल किताबों से निकाल सके।
▣ ❥ ( 3 ) फासिके मोलिन न हो। यानी खुले आम गुनाहे कबीरा में मुलव्विस न हो जैसे नमाज छोड़ना , गाने बजाने में मशगूल रहना या दाढ़ी मुंडाना वगैरा।
▣ ❥ ( 4 ) उसका सिलसिला हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक मुत्तसिल हो।
▣ ❥ तर्जमा : - " हम दीन दुनिया और आख़िरत में अल्लाह से माफी और आफियत माँगते हैं और पाकीज़ा शरीअत पर इस्तिकामत (मज़बूती के साथ काइम रहना) चाहते हैं। और मुझे अल्लाह ही की जानिब से तौफीक है उसी पर मैंने भरोसा किया और उसी की जानिब माइल हुआ और दूरूद नाजिल फरमाये अल्लाह तआला अपने हबीब पर, उन की आल असहाब उनके फर्जन्दों और उनकी जमात पर हमेशा हमेशा, और तमाम तारीफ खास कर अल्लाह को जो तमाम आलम का रब है।
▣ ❥ फ़कीर अमज़द अली आज़मी हिन्दी तर्जमा मुहम्मद अमीनुल कादरी बरेलवी
*❍↬ बा - हवाला ↫❍*
*📬 बहारे शरीअत, हिस्सा - 1 सफ़ह 72 📚*
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*📬 अल्हम्दु-लिल्लाह बहारे शरीअत, हिस्सा एक मुकम्मल हुआ 🔃*
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