Wednesday, 16 June 2021

फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा

 





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         ❝फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा   ❞
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           *❝  पुल  सिरात  की  सुवारी ❞* 
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࿐   सरकारे नामदार , मदीने के ताजदार , बि इज़्ने परवर दगार दो आलम के मालिको मुख्तार , शहन्शाहे अबरार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फ़रमाने खुश्बूदार है : इन्सान ब-करह ईद के दिन कोई ऐसी नेकी नहीं करता जो अल्लाह को खून बहाने से ज़ियादा प्यारी हो , येह कुरबानी कियामत में अपने सींगों बालों और खुरों के साथ आएगी और कुरबानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह के हां कबूल हो जाता है। लिहाज़ा खुश दिली से कुरबानी करो।  

࿐   मुहक्किकेअलल इत्लाक , ख़ातिमुल मुहृद्दिसीन , हज़रते अल्लामा शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं : कुरबानी , अपने करने वाले के नेकियों के पल्ले में रखी जाएगी जिस से नेकियों का पलड़ा भारी होगा।

࿐   हज़रते सय्यिदुना अल्लामा अली कारी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं : फिर उस के लिये सुवारी बनेगी जिस के जरीए येह शख्स ब आसानी पुल सिरात से गुज़रेगा और उस (जानवर) का हर उज्व मालिक (या'नी कुरबानी पेश करने वाले) के हर उज्व (के लिये जहन्नम से आज़ादी) का फ़िदया बनेगा।..✍️

 *📬  अब्लक घोड़े सवार सफ़ह -  3-4 📚*

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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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            *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   मख़्सूस जानवर को मख़्सूस दिन में ब नियते तक़र्रुब ज़िबाह करना कुर्बानी है और कभी उस जानवर को भी अज़्हियह और कुर्बानी कहते हैं जो ज़िबह किया जाता है!

࿐  कुर्बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है जो इस उम्मत के लिए बाक़ी रखी गई और नबी ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम को कुर्बानी करने का हुक्म दिया गया!

☝🏻रब तआला ने इरशाद फ़रमाया

                      *فصلى لربك وانحر،*

࿐  *तर्जमा :-* अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो!

࿐  इसके मुताल्लिक़ पहले चंद अहादीस ज़िक्र की जाती हैं फिर फ़िक़्ही मसाइल बयान होंगे,

࿐  *हदीस शरीफ़ :-* उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से रावी के हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के योमुन्नहर यानी 10 दसवीं ज़िल हज्ज मैं इब्ने आदम का कोई अमल ख़ुदा के नज़दीक खून बहाने (यानी क़ुर्बानी करने) से ज़्यादा प्यारा नहीं और वो जानवर क़ियामत के दिन अपने सींग और बाल और खुरों के साथ आएगा और कुर्बानी का खून ज़मीन पर गिरने से क़ब्ल (पहले) ख़ुदा के नज़दीक मक़ामे क़ुबूल मैं पहुंच जाता है लिहाज़ा इसको खुश दिली से करो!...✍🏻

*📙 अबू दाऊद, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा,*


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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   हज़रत इमाम हसन बिन अली रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी के हुज़ूर ने फ़रमाया जिसने खुशी दिल से तालिबे सवाब होकर क़ुर्बानी की वो आतिशे जहन्नम से हिजाब (यानी रोक) हो जाएगी! इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा रावी के हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया जो रुपया ईद के दिन क़ुर्बानी में खर्च किया गया उससे ज़्यादा कोई रुपया प्यारा नहीं!

࿐  हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया जिसमें वुसअत हो और क़ुर्बानी ना करे वो हमारी ईदगाह के क़रीब ना आए!

࿐  इब्ने माजा ने ज़ैद बिन अरक़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत की के सहाबा ने अर्ज़ की या रसुलल्लाह ये क़ुर्बानियां क्या हैं फ़रमाया के तुम्हारे बाप इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, लोगों ने अर्ज़ की या रसुलल्लाह हमारे लिए इसमें क्या सवाब है फ़रमाया हर बाल के मुक़ाबिल नेकी है अर्ज़ की ऊट का क्या हुक्म है फ़रमाया ऊट के हर बाल के बदले में नेकी है!

࿐  हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया सबसे पहले जो काम आज हम करेंगे वो ये है के नमाज़ पढ़ेंगे फिर उस के बाद कुर्बानी करेंगे जिसने ऐसा किया उसने हमारी सुन्नत (यानी तरीक़ा) को पा लिया और जिसने पहले ज़िबह कर लिया वो गोश्त है जो उसने पहले से अपने घर वालों के लिए तैयार कर लिया कुर्बानी से उसे कुछ ताल्लुक नहीं अबू बुर्दा रज़िअल्लाहू तआला अन्ह खड़े हुए और ये पहले ही ज़िबह कर चुके थे इस खयाल से के पड़ोस के लोग ग़रीब थे उन्होंने चाहा के उनको गोश्त मिल जाए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह मेरे पास बकरी का 6 माहा एक बच्चा है फ़रमाया तुम उसे ज़िबह कर लो और तुम्हारे सिवा किसी के लिए 6 माहा बच्चा किफ़ायत नहीं करेगा!...✍🏻

       *📫 बहारे शरीअत, हिस्सा 15 📚*


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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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            *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐  हुज़ूर ए अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के आज (यानी ईद) के दिन जो काम हम को पहले करना है वो नमाज़ है उसके बाद कुर्बानी करना है जिसने ऐसा किया वो हमारी सुन्नत को पहुंचा और जिसने पहले ज़िबह कर डाला व गोश्त है जो उसने अपने घर वालों के लिए पहले ही से कर लिया निस्क यानी कुर्बानी से उसको कुछ ताल्लुक नहीं!

࿐  इमाम मुस्लिम हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से रावी के हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने हुक्म फ़रमाया के सींग वाला मेंढा लाया जाए जो स्याही में चलता हो और स्याही में बैठता हो और स्याही में नज़र करता हो यानी उसके पांव सियाह हों और पेट सियाह हो और आंखें सियाह हों वो कुर्बानी के लिए हाज़िर किया गया हुज़ूर ने फ़रमाया आयशा छुरी लाओ फिर फरमाया उसी पत्थर पर तेज़ कर लो फिर हुजूर ने छुरी ली और मैंढे को लिटाया और उसे ज़िबह किया फिर फ़रमाया

بسم الله اللهم تقبل من محمد و ال محمد و من امتى محمد،

तर्जमा : इलाही तू इसको मुहम्मद सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की तरफ़ से और उनकी आल और उम्मत की तरफ़ से क़ुबूल फ़रमा!

࿐  हज़रत ज़ाबिर रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की गई के हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने ज़िबह के दिन दो मेंढे सींग वाले चित कबरे ख़स्सी किये हुए ज़िबह किये जब उनका मुंह क़िब्ला को किया ये पढ़ा

"इन्नी वज्जह्तू वज्हिया लिल्लज़ी फ़तरस्समावाती वल अर्दा अला मिल्लती इब्राहीमा हनीफ़व वमा अना मिनल मुशरीकीन, इन्ना सलाती व नुसुकी वमह'याया व ममाती लिल्लाही रब्बिल आलमीना ला शरीका लहू व बि ज़ालिका उमिर्तू व अना मिनल मुसलिमीन अल्लाहुम्मा मिन्का व लका अन मुहम्मद बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर"

👆🏻🌹" इसको पढ़कर ज़िबह फ़रमाया और एक रिवायत में है के हुज़ूर ने ये फ़रमाया के इलाही ये मेरी तरफ़ से है और मेरी उम्मत में उसकी तरफ़ से है जिसने क़ुर्बानी नहीं की!...✍🏻

⚠️ *नोट :-*  ये दुआ अरबी से हिन्दी टाइपिंग करने में कुछ ग़लती भी हो सकती है लिहाज़ा असल किताब *बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 130) पर या अनवारे शरीअत, क़ानून ए शरीअत, वग़ैरह में देखें,*


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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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          *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   मुस्लिम तिर्मिज़ी व निसाई व इब्ने माजा, उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा से रावी के हुज़ूर ने फ़रमाया जिसने ज़िल हिज्जा का चांद देख लिया और उसका इरादा कुर्बानी करने का है तो जब तक कुर्बानी ना कर ले बाल और नाखूनों से ना ले यानी न तरशवाए, (यानी जब तक बाल और नाखून न काटे)!

࿐   तिब्रानी, अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रावी के हुज़ूर ने फ़रमाया क़ुर्बानी में गाय 7, की तरफ़ से और ऊंट 7 की तरफ से है!

࿐   अबू दाऊद व निसाई व इब्ने माजा मुजाशअ बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह  से रावी के हुज़ूर ने फ़रमाया भेड़ का जुज़अ (6 महीने का बच्चा) साल भर वाली बकरी के काइम मुक़ाम है!

࿐  हज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम न इरशाद फ़रमाया अफ़ज़ल क़ुर्बानी वो है जो बा एतबारे क़ीमत आला हो और खूब फ़रबा हो!

࿐  इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी हुजूर ने रात में कुर्बानी करने से मना फ़रमाया!..✍🏻

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 131 मतबूआ क़ादरी किताब घर, बरेली शरीफ़,

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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया चार क़िस्म के जानवर क़ुर्बानी के लिए दुरुस्त नहीं *1)* काना जिसका काना पन ज़ाहिर है, और *(2)* बीमार जिसकी बीमारी ज़ाहिर हो, और *(3)* लंगड़ा जिसका लंग ज़ाहिर है और *(4)* ऐसा लाग़र (कमज़ोर) जिसकी हड्डियों में मग़्ज़ ना हो!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 131

࿐   रिवायत है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने कान कटे हुए और सींग टूटे हुए की क़ुर्बानी से मना फ़रमाया!

࿐   हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया के हम जानवरों के कान और आंखें ग़ौर से देख लें और उसकी क़ुर्बानी ना करें जिसके कान का अगला हिस्सा कटा हो और ना उसकी जिसके कान का पिछला हिस्सा कटा हो ना उसकी जिसका कान फटा हो या कान में सुराख़ हो!

࿐   इमाम बुख़ारी इब्ने उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ईदगाह में नहरो ज़िबह फ़रमाते थे!...✍🏻

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 132


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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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            *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   कुर्बानी कई किस़्म की है गनी और फ़क़ीर दोनों पर वाजिब... फ़क़ीर पर वाजिब हो... ग़नी पर वाजिब ना हो... ग़नी पर वाजिब हो... फ़क़ीर पर वाजिब ना हो, : *दोनों पर वाजिब हो उसकी सूरत यह है :* के कुर्बानी की मन्नत मानी यह कहा के अल्लाह के लिए मुझ पर बकरी या गाय की कुर्बानी करना है या उस बकरी या उस गाय का कुर्बानी करना है, *फ़क़ीर पर वाजिब हो गनी पर ना हो :* उसकी सूरत यह है के फ़क़ीर ने कुर्बानी के लिए जानवर खरीदा इस पर उस जानवर की कुर्बानी वाजिब है और गनी अगर खरीदता तो उस खरीदने से कुर्बानी उस पर वाजिब ना होती, गनी पर वाजिब हो फ़क़ीर पर वाजिब ना हो उसकी सूरत यह है के कुर्बानी का वुजूब ना खरीदने से हो ना मन्नत मानने से बल्के खुदा ने जो उसे जिंदा रखा है उसके शुक्रिया में और हजरत इब्राहिम अस्सलातू वतस्लीम की सुन्नत के अहया में ( यानी सुन्नते इब्राहीमी को क़ायम रखने के लिए) जो कुर्बानी वाजिब है वह सिर्फ गनी पर है!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफह 132

࿐  मुसाफिर पर कुर्बानी वाजिब नहीं अगर मुसाफिर ने कुर्बानी की यह तत़व्वोअ् (यानी नफ्ल) है और फ़क़ीर ने अगर ना मन्नत मानी हो ना कुर्बानी की नियत से जानवर खरीदा हो उसका कुर्बानी करना भी तत़व्वोअ (यानी नफ़्ल) है!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफह 132

࿐  बकरी का मालिक था और उसकी कुर्बानी की नियत कर ली या खरीदने के वक़्त कुर्बानी की नियत ना थी बाद में नियत कर ली तो उस नियत से कुर्बानी वाजिब नहीं होगी!..✍🏻

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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   कुर्बानी वाजिब होने के शराइत यह हैं : इस्लाम यानी ग़ैर मुस्लिम पर कुर्बानी वाजिब नहीं, अक़ामत यानी मुक़ीम होना, मुसाफ़िर पर वाजिब नहीं, तवंगरी यानी मालिके निसाब होना यहां मालदारी से मुराद वही है जिससे सदक़ा ए फ़ित्र वाजिब होता है वह मुराद नहीं जिससे ज़कात वाजिब होती है, हुर्रियत यानी आज़ाद होना जो, आज़ाद ना हो उस पर कुर्बानी वाजिब नहीं के ग़ुलाम के पास माल ही नहीं लिहाज़ा इबादते मालिया उस पर वाजिब नहीं!

࿐   मर्द होना उसके लिए शर्त नहीं *औरतों पर वाजिब होती है जिस तरह मर्दो पर वाजिब होती है* उसके लिए बुलूग़ (यानी बालिग़ होना) शर्त है या नहीं इसमें इख़्तिलाफ़ है और नाबालिग़ पर वाजिब है तो आया खुद उसके माल से कुर्बानी की जाएगी या उसका बाप अपने माल से कुर्बानी करेगा, ज़ाहिरुर्रिवायह यह है के ना खुद नाबालिग़ पर वाजिब है और ना उसकी तरफ़ से उसके बाप पर वाजिब है और इसी पर फ़तवा हैं!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफा 132-133)

࿐   मुसाफ़िर पर अगरचे वाजिब नहीं मगर नफ़्ल के तौर पर करे तो कर सकता है सवाब पाएगा, हज करने वाले जो मुसाफ़िर हों उन पर कुर्बानी वाजिब नहीं और मुक़ीम हों तो वाजिब है जैसे के मक्का शरीफ़ के रहने वाले हज करें तो चूंके यह मुसाफ़िर नहीं उन पर वाजिब होगी!...✍🏻

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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   शराइत का पूरे वक़्त में पाया जाना ज़रूरी नहीं बल्के क़ुर्बानी के लिए जो वक़्त मुक़र्रर है उसके किसी हिस्सा में शराइत का पाया जाना वुजूब के लिए काफ़ी है मसलन एक शख़्स इब्तिदा ए वक़्त क़ुर्बानी में (यानी क़ुर्बानी शुरू होने के वक़्त में) काफ़िर था फिर मुसलमान हो गया और अभी क़ुर्बानी का वक़्त बाक़ी है उस पर क़ुर्बानी वाजिब है जब्के दूसरे शराइत भी पाए जाएं इसी तरह अगर ग़ुलाम था और आज़ाद हो गया उसके लिए भी यही हुक्म है यूंही अव्वल वक़्त में मुसाफ़िर था और असनाए वक़्त में (यानी क़ुर्बानी के वक़्त में) मुक़ीम हो गया उस पर भी क़ुर्बानी वाजिब हो गई या फ़क़ीर था और वक़्त के अंदर मालदार हो गया उस पर भी क़ुर्बानी वाजिब है!

࿐   कुर्बानी वाजिब होने का सबब वक़्त है जब वह वक़्त आया और शराइते वुजूब पाए गए कुर्बानी वाजिब हो गई और उसका रुक्न उन मख़्सूस जानवरों में किसी को कुर्बानी की नियत से ज़िबह करना है, कुर्बानी की नियत से दूसरे जानवर मसलन मुर्गी को ज़िबह करना नाजाइज़ है!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 132-133

࿐  जो शख़्स 200 दिरहम या 20 दिनार का मालिक हो या हाजत के सिवा किसी ऐसी चीज़ का मालिक हो जिसकी कीमत 200 दिरहम हो वह ग़नी है उस पर कुर्बानी वाजिब है, हाजत से मुराद रहने का मकान और खानादारी के सामान जिनकी हाजत हो और सवारी का जानवर और खादिम और पहनने के कपड़े इनके सिवा जो चीज़ें हों वह हाजत से ज़ाइद हैं!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 133
 

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          *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐  उस शख़्स पर दैन (क़र्ज़) है और उसके सिवा अमवाल से दैन की मिक़दार मिजरा (कटौती) की जाए तो निसाब नहीं बाक़ी रहती उस पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं और अगर उसका माल यहां मौजूद नहीं है और अय्यामे क़ुर्बानी गुज़रने के बाद वो माल उसे वसूल होगा तो क़ुर्बानी वाजिब नहीं!

࿐ एक शख़्स के पास 200, दिरहम थे साल पूरा हुआ और उनमें से 5, दिरहम ज़कात में देले 195, बाक़ी रहे अब क़ुर्बानी का दिन आया तो क़ुर्बानी वाजिब है और अगर अपने ज़रूरियात में 5, दिरहम ख़र्च करता तो क़ुर्बानी वाजिब ना होती!

࿐ मालिके निसाब ने क़ुर्बानी के लिए बकरी ख़रीदी थी वो गुम हो गई और उस शख़्स का माल निसाब से कम हो गया अब क़ुर्बानी का दिन आया तो उस पर ये ज़रूर नहीं के दूसरा जानवर ख़रीद कर क़ुर्बानी करे और अगर वो बकरी क़ुर्बानी ही के दिनों में मिल गई और ये शख़्स अब भी मालिके निसाब नहीं है तो उस पर इस बकरी की क़ुर्बानी वाजिब नही!..✍🏻

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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐  औरत का महर शौहर के ज़िम्मा बाक़ी है और शौहर मालदार है तो उस महर की वजह से औरत को मालिके निसाब नहीं माना जाएगा अगरचे महरे मुअज्जल हो और अगर औरत के पास उसके सिवा बक़दरे निसाब माल नहीं है तो औरत पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं होगी!

࿐  किसी के पास 200 दिरहम की कीमत का मुसहफ़ शरीफ़ (यानी क़ुरआन मजीद) है अगर वह उसे देख कर अच्छी तरह तिलावत कर सकता है तो उस पर कुर्बानी वाजिब नहीं चाहे उसमें तिलावत करता हो या ना करता हो और अगर अच्छी तरह उसे देखकर तिलावत ना कर सकता हो तो वाजिब है किताबों का भी यही हुक्म है के उसके काम की हैं तो कुर्बानी वाजिब नहीं वरना है!

࿐   एक मकान जाड़े के लिए और एक गर्मी के लिए ये हाजत में दाख़िल है उनके अलावा उसके पास तीसरा मकान हो जो हाजत से ज़ाइद है अगर ये 200, दिरहम का है तो क़ुर्बानी वाजिब है इसी तरह गर्मी जाड़े के बिछौने हाजत में दाख़िल हैं और तीसरा बिछौना जो हाजत से ज़ाइद है उसका ऐतबार होगा ग़ाज़ी के लिए दो घोड़े हाजत में हैं तीसरा हाजत से ज़ाइद है, असलह (हथियार) ग़ाज़ी की हाजत में दाख़िल हैं हां अगर हर क़िस्म के दो हथियार हों तो दूसरे को हाजत से ज़ाइद क़रार दिया जाएगा, गांव के ज़मीनदार के पास एक घोड़ा हाजत में दाख़िल है और दो हों तो दूसरे को ज़ाइद माना जाएगा, घर में पहनने के कपड़े और काम काज़ के वक़्त पहनने के कपड़े और जुमा व ईद और दूसरे मौकों पर पहनकर जाने के कपड़े ये हाजत में दाख़िल हैं और इन तीन (3) के सिवा चौथा (4,वां) जोड़ा अगर 200, दिरहम का है तो क़ुर्बानी वाजिब है!..✍🏻

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            *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   बालिग़ लड़कों या बीवी की तरफ़ से कुर्बानी करना चाहता है तो उनसे इजाज़त हासिल करे बगैर उनके कहे अगर कर दी तो उनकी तरफ़ से वाजिब अदा ना हुआ और नाबालिग की तरफ से अगरचे वाजिब नहीं है मगर कर देना बेहतर है!

࿐  कुर्बानी का हुक्म यह है के उसके जिम्मा जो कुर्बानी वाजिब है कर लेने से बरिउज़्ज़िम्मा हो गया और अच्छी नियत से की है रिया (दिखावा) वगैरह की मुदाखिलत नहीं तो अल्लाह के फ़ज़ल से उम्मीद है के आखिरत में उसका सवाब मिलेगा!

࿐  यह ज़रूर नहीं के 10.वीं ही को कुर्बानी कर डाले उसके लिए गुंजाइश है के पूरे वक़्त में जब चाहे करे लिहाज़ा अगर इब्तिदा ए वक़्त में उसका अहल ना था वुजूब के शराइत नहीं पाए जाते थे और आखिर वक़्त में अहल हो गया यानी वुजूब के शराइत पाए गए तो उस पर वाजिब हो गई और अगर इब्तिदा ए वक़्त में वाजिद थी और अभी की नहीं और आखिर वक़्त में शराइत जाते रहे तो वाजिब ना रही!..✍🏻

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफा 135


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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   एक शख़्स फ़कीर था मगर उसने क़ुर्बानी कर डाली उसके बाद अभी वक़्त क़ुर्बानी का बाक़ी था के ग़नी हो गया तो उसको फिर कुर्बानी करनी चाहिए के पहले जो की थी वह वाजिब न थी और अब वाजिब है बअज़ उल्मा ने फ़रमाया के वो पहली कुर्बानी काफ़ी है और अगर बावुजूद मालिके निसाब होने के उसने कुर्बानी ना की और वक़्त खत्म होने के बाद फ़क़ीर हो गया तो इस पर बकरी की क़ीमत का सदका करना वाजिब है यानी वक़्त गुजरने के बाद कुर्बानी साक़ित नहीं होगी, और अगर मालिके निसाब बगैर कुर्बानी किए हुए उन्हीं दिनों में मर गया तो उसकी कुर्बानी साक़ित हो गई!

📙 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 135

࿐  कुर्बानी के वक़्त में कुर्बानी करना ही लाज़िम है कोई दूसरी चीज़ उसके क़ाइम मुक़ाम नहीं हो सकती मसलन बजाए कुर्बानी उसने बकरी या उसकी कीमत सदका कर दी ये नाकाफी है उसमें नियाबत हो सकती है यानी खुद करना जरूर नहीं बल्के दूसरे को इजाज़त दे दी उसने कर दी ये हो सकता है!

࿐  जब कुर्बानी के शराइत मज़कूरा पाए जाएं तो बकरी का ज़िबह करना या ऊंट या गाय का सातवां हिस्सा वाजिब है, सातवें हिस्सा से कम नहीं हो सकता बल्के ऊंट या गाय शिरका मैं अगर किसी शरीक का सातवें हिस्सा से कम है तो किसी की कुर्बानी नहीं हुई यानी जिस का सातवां हिस्सा या उससे ज्यादा है उसकी भी कुर्बानी नहीं हुई, गाय या ऊंट मैं सातवें हिस्सा से ज्यादा की कुर्बानी हो सकती है, मसलन गाय को 6 या 5 या 4 शख़्सों में की तरफ से कुर्बानी करें हो सकता है और यह जरूर नहीं के सब शिरका के हिस्से बराबर हों बल्के कम व बेश भी हो सकते हैं हां यह जरूर है के जिसका हिस्सा कम है तो सातवें हिस्सा से कम ना हो!..✍🏻

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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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          *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   पहला दिन यानी दसवीं तारीख सब में अफजल है फिर ग्यारहवीं और पिछला दिन यानी 12.वीं सब में कम दर्जा है और अगर तारीखों में शक हो यानी तीस (30) का चांद माना गया है और 29 के होने का भी शुबा है मसलन गुमान था के 29 का चांद होगा मगर अब्र वगैरह की वजह से ना दिखाया शहादतें गुजरीं मगर किसी वजह से कुबूल ना हुईं ऐसी हालत में दसवीं के मुताल्लिक यह शुबा है के शायद आज 11वीं हो तो बेहतर यह है के कुर्बानी को 12.वीं तक मोअख़्ख़र ना करे यानी 12.वीं से पहले कर डाले क्योंके 12.वीं के मुताल्लिक 13.वीं तारीख होने का शुबा होगा तो यह शुबा होगा के वक़्त से बाद में हुई और इस सूरत में अगर 12.वीं को कुर्बानी की जिसके मुताल्लिक़ 13.वीं होने का शुबा है तो बेहतर यह है के सारा गोश्त सदका कर डाले बल्के ज़िबह की हुई बकरी और जिंदा बकरी में कीमत का तफावुत हो के जिंदा की कीमत कुछ जाइद हो तो उस ज्यादती को भी सदका कर दे!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफाई 136

࿐  अय्यामे नहर में क़ुर्बानी करना उतनी कीमत के सदका करने से अफ़ज़ल है क्योंके कुर्बानी वाजिब है या सुन्नत और सदका करना तत़व्वोअ् (यानी नफ़्ल) महज़ है लिहाज़ा कुर्बानी अफ़ज़ल हुई और वुजूब की सूरत में बग़ैर कुर्बानी किए अहदा बरआ नहीं हो सकता!...✍🏻

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफा 137
  

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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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          *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   शहर में कुर्बानी की जाए तो शर्त ये है के नमाज़ हो चुके लिहाजा नमाज़े ईद से पहले शहर में कुर्बानी नहीं हो सकती और देहात में चूंके नमाज़े ईद नहीं है यहां तुलु ए फ़ज्र के बाद से ही कुर्बानी हो सकती है (यानी सहरी का वक़्त ख़त्म होने के बाद से) और देहात में बेहतर ये है के बाद तुलु ए आफ़ताब (यानी सूरज निकलने के बाद) कुर्बानी की जाए और शहर में बेहतर ये है के ईद का ख़ुत्बा हो चुकने के बाद कुर्बानी की जाए, यानी नमाज हो चुकी है और अभी खुत्बा नहीं हुआ है इस सूरत में कुर्बानी हो जाएगी मगर ऐसा करना मकरूह है!

࿐  ये जो शहर व देहात का फ़र्क़ बताया गया ये मक़ामे कुर्बानी के लिहाज से है कुर्बानी करने वाले के एतबार से नहीं यानी देहात में कुर्बानी हो तो वो वक़्त है अगरचे कुर्बानी करने वाला शहर में हो और शहर में हो तो नमाज़ के बाद हो अगरचे जिसकी तरफ़ से कुर्बानी है वो देहात में हो लिहाजा शहरी आदमी अगर ये चाहता है के सुबह ही नमाज़ से पहले कुर्बानी हो जाए तो जानवर देहात में भेज दे!

࿐  अगर शहर में मुतअद्दिद (यानी अलग अलग) जगह ईद की नमाज़ होती हो तो पहली जगह नमाज़ हो चुकने के बाद कुर्बानी जाइज़ है यानी ये जरूर नहीं के ईदगाह में नमाज़ हो जाए जब ही कुर्बानी की जाए बल्के किसी मस्जिद में हो गई और ईदगाह में ना हुई जब भी हो सकती है!...✍🏻

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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐  10.वीं को अगर ईद की नमाज़ नहीं हुई तो कुर्बानी के लिए ये ज़रूर है के वक़्ते नमाज़ जाता रहे यानी ज़वाल का वक़्त आ जाए अब कुर्बानी हो सकती है और दूसरे या तीसरे दिन नमाज़े ईद से क़ब्ल (यानी पहले) हो सकती है!

࿐  मिना मैं चूंके ईद की नमाज़ नहीं होती लिहाजा वहां जो कुर्बानी करना चाहे तुलु ए फ़ज्र के बाद से कर सकता है उसके लिए वही हुक्म है जो देहात का है किसी शहर में अगर फ़ितना की वजह से नमाज़े ईद ना हो तो वहां 10.वीं की तुलु ए फ़ज्र के बाद (यानी सहरी का वक़्त ख़त्म होने के बाद) कुर्बानी हो सकती है!

࿐   इमाम अभी नमाज़ ही में है और किसी ने जानवर ज़िबह कर लिया अगरचे इमाम क़अदा में हो और बक़दरे तशह्हुद बैठ चुका हो मगर अभी सलाम ना फेरा हो तो कुर्बानी नहीं हुई और अगर इमाम ने एक तरफ़ सलाम फेर लिया है दूसरी तरफ़ बाक़ी था के उसने ज़िबह कर दिया कुर्बानी हो गई और बेहतर ये है के ख़ुत्बा से जब इमाम फ़ारिग़ हो जाए उस वक़्त कुर्बानी की जाए!

࿐   इमाम ने नमाज़ पढ़ ली उसके बाद कुर्बानी हुई फिर मालूम हुआ के इमाम ने बगैर वुज़ू नमाज़ पढ़ा दी तो नमाज़ का इआदा किया जाए कुर्बानी के इआदा की जरूरत नहीं!..✍🏻

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 138


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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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            *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐  बड़ा जानवर यानी गाय या भैंस वगैरह के शुरका (हिस्सादारों) में से अगर एक भी काफ़िर, बदमज़हब यानी वहाबी, देवबंदी, अहले हदीस (ग़ैर मुक़ल्लिद) तबलीगी शिआ नीचरी, क़ादयानी, वगैरह है या उनमें एक शख्स का मक़सूद क़ुर्बानी नहीं है बल्के गोश्त हासिल करना है तो किसी की कुर्बानी ना हुई, बल्के अगर शुरका (हिस्सादारों) में से कोई ग़ुलाम या मुदब्बर है जब भी क़ुर्बानी नहीं हो सकती क्योंके यह लोग अगर क़ुर्बानी की नियत भी करें तो नियत सही नहीं!

📚 बहारे शरीअत, हिस्सा 15 सफ़ह 142, ब हवाला

࿐  ये गुमान था के आज अर्फ़ा का दिन (यानी नवीं (9.वीं) ज़िलहिज्जा का दिन) है और किसी ने ज़वाले आफताब के बाद कुर्बानी कर ली फिर मालूम हुआ के अर्फ़ा का दिन ना था बल्के दसवीं (10.वीं) तारीख थी तो कुर्बानी जाइज़ हो गई यूंही अगर दसवीं को नमाजे ईद से पहले कुर्बानी कर ली फिर मालूम हुआ के वो दसवीं ना थी बल्के 11वीं थी तो उसकी भी कुर्बानी जाइज़ हो गई!

࿐  नवीं (9.वीं) के मुताल्लिक़ कुछ लोगों ने गवाही दी के दसवीं हैं इस बिना पर उसी रोज़ नमाज़ पढ़कर कुर्बानी की फिर मालूम हुआ के गवाही ग़लत थी वो नवीं (9.वीं) तारीख थी तो नमाज़ भी हो गई और क़ुर्बानी भी!...✍🏻

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           *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐  अय्यामे नहर गुज़र गए और जिस पर कुर्बानी वाजिब थी उसने नहीं की है तो कुर्बानी फ़ौत हो गई अब नहीं हो सकती फिर अगर उसने कुर्बानी का जानवर मुअय्यन कर रखा है मसलन मुअय्यन जानवर की कुर्बानी की मन्नत मानली है वह शख्स गनी हो या फकीर बहर सूरत उसी मुअय्यन जानवर को जिंदा सदका करे और अगर ज़िबह कर डाला तो सारा गोश्त सदका करे उसमें से कुछ ना खाए और अगर कुछ खा लिया है तो जितना खाया है उसकी कीमत सदका करे और अगर ज़िबह किए हुए जानवर की कीमत जिंदा जानवर से कुछ कम है तो जितनी कमी है उसे भी सदका करे!

࿐  और फ़क़ीर ने कुर्बानी की नियत से जानवर खरीदा है और कुर्बानी के दिन निकल गए चूंके उस पर भी उसी मुअय्यन जानवर की कुर्बानी वाजिब है लिहाज़ा उस जानवर को जिंदा सदका कर दे और अगर ज़िबह कर डाला तो वही हुक्म है जो मन्नत में मज़कूर हुआ, ये हुक्म उसी सूरत मैं है के कुर्बानी ही के लिए खरीदा हो!

࿐  और अगर उसके पास पहले से कोई जानवर था और उसने उसके कुर्बानी करने की नियत कर ली या खरीदने के बाद कुर्बानी की नियत की तो उस पर कुर्बानी वाजिब ना हुई और गनी ने कुर्बानी के लिए जानवर खरीद लिया है तो वही जानवर सदका कर दे और ज़िबह कर डाला तो वही हुक्म है जो मज़कूर हुआ और खरीदा ना हो तो बकरी की कीमत सदका करे!...✍🏻 

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            *❝  क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   कुर्बानी के दिन गुजर गए और उसने कुर्बानी नहीं की और जानवर या उसकी कीमत को सदका भी नहीं किया यहां तक के दूसरी बक़र ईद आ गई अब ये चाहता है के साले गुज़िस्ता (यानी गुज़रे हुए साल) की कुर्बानी की क़ज़ा इस साल कर ले ये नहीं हो सकता बल्के अब भी वही हुक्म है के जानवर या उसकी कीमत सदका करे!

࿐  जिस जानवर की कुर्बानी वाजिब थी अय्यामे नहर गुज़रने के बाद उसे बेच डाला तो समन का सदक़ा करना वाजिब है!

࿐  किसी शख्स ने ये वसीयत की के उसकी तरफ से कुर्बानी कर दी जाए और ये नहीं बताया के गाय या बकरी किस जानवर की कुर्बानी की जाए और ना कीमत बयान की के इतने का जानवर खरीद कर कुर्बानी की जाए ये वसीयत जाइज़ है और बकरी क़ुर्बान कर देने से वसीयत पूरी हो गई और अगर किसी को वकील किया के मेरी तरफ से क़ुर्बानी कर देना और गाय या बकरी का तअय्यिन ना किया और कीमत भी बयान नहीं की तो ये तौकील (वकील बनाना) सही नहीं!

࿐  कुर्बानी की मन्नत मानी और ये मुअय्यिन नहीं किया के गाय की कुर्बानी करेगा या बकरी की तो मन्नत सही है बकरी की कुर्बानी कर देना काफी है और अगर बकरी की कुर्बानी की मन्नत मानी तो ऊंट या गाय कुर्बानी कर देने से भी मन्नत पूरी हो जाएगी मन्नत की कुर्बानी में से कुछ ना खाए बल्के सारा गोश्त वगैरह सदका कर दे और कुछ खा लिया तो जितना खाया उसकी कीमत सदका करे!...✍🏻

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 139


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         ❝फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा   ❞
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             *❝   क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   सवाल-: क़ुर्बानी करना किस पर वाजिब है?

࿐  जवाब-: क़ुर्बानी करना हर मालिके निसाब पर वाजिब है!

࿐  सवाल-: क़ुर्बानी का मालिके निसाब कौन है?

࿐  जवाब-: क़ुर्बानी का मालिके निसाब वो शख़्स है जो साढ़े बावन (52.5) तोला चांदी या साढ़े सात (7.5) तोला सोना या इनमें से किसी एक की क़ीमत का सामाने तिजारत या सामाने ग़ैर तिजारत का मालिक हो, या इनमें से किसी एक की क़ीमत भर के रुपया का मालिक हो और ममलूका चीजें हाजते असलिया से ज़ाइद हों, (यानी जिन चीजों का मालिक है वो चीजें असली ज़रूरत से ज़्यादा हों!..✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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              *❝   क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   सवाल-: मालिके निसाब पर अपने नाम से जिंदगी में सिर्फ़ एक मर्तबा क़ुर्बानी करना वाजिब है या हर साल!?

࿐  जवाब-: अगर हर साल मालिके निसाब है तो हर साल अपने नाम से क़ुर्बानी वाजिब है और अगर दूसरे की तरफ़ से भी करना चाहता है तो उसके लिए दूसरी क़ुर्बानी का इंतज़ाम करें!

࿐  सवाल-: क़ुर्बानी करने का तरीक़ा क्या है?

࿐  जवाब-:  कुर्बानी करने का तरीक़ा ये है के जानवर को बाएं पहलू पर इस तरह लिटाएं के मुंह उसका क़िब्ला की तरफ़ हो और अपना दायां पांव उसके पहलू पर रखकर तेज़ छुरी लेकर ये दुआ पढ़े👇

اني وجهت وجهى للذى فطر السموات والارض حنيفا وما انا من المشركين، ان صلاتى و نسكى ومحياى ومماتى لله رب العالمين لا شريك له وبذلك امرت وانا من المسلمين اللهم منك و لك بسم الله الله اكبر،

इन्नी वज्जह्तू वज्हिया लिल्लज़ी फ़तरस्समावाती वल अर्दा हनीफ़व वमा अना मिनल मुशरिकीन, इन्ना सलाती व नुसुकी वमह'याया व ममाती लिल्लाही रब्बिल आलमीना ला शरीका लहू व बि ज़ालिका उमिर्तू व अना मिनल मुसलिमीन, अल्लाहुम्मा मिन्का व लका बिस्मिल्लाही अल्लाहु अकबर,

࿐   पढ़ कर ज़िबह करें फिर ये दुआ पढ़ें👇

اللهم تقبل منى كما تقبلت من خليلك ابراهيم عليه الصلاة والسلام و حبيبك محمد صلى الله تعالى عليه وسلم،

अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन्नी कमा तक़ब्बलता मिन ख़लीलिका इब्राहीमा अलैहिस्सलातू वस्सलामू व हबीबिका मुहम्मदिन सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम,

࿐   अगर दूसरे की तरफ़ से क़ुर्बानी करे तो *मिन्नी* के बजाय *मिन* कहकर उसका नाम ले!...✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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              *❝   क़ुर्बानी  का  बयान  ❞* 
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࿐   सवाल-: साहिबे निसाब अगर किसी वजह से अपने नाम क़ुर्बानी ना कर सका और क़ुर्बानी के दिन गुज़र गए तो उसके लिए क्या हुक्म है?

࿐  जवाब-: एक बकरी की क़ीमत उस पर सदक़ा करना वाजिब है!

࿐  सवाल-: क्या क़ुर्बानी के चमड़े को अपने काम में ला सकता है?

࿐  जवाब-: कुर्बानी के चमड़े को बाक़ी रखते हुए अपने काम में ला सकता है मसलन मुसल्ले बनाए या मश्कीज़ा वग़ैरह, मगर बेहतर ये है के सदक़ा कर दे मस्जिद या दीनी मदरसे को दे दे या किसी ग़रीब को!

࿐ सवाल-: क्या मस्जिद के लिए कुर्बानी का चमड़ा देना जाइज़ है?

࿐  जवाब--- हां मस्जिद के लिए कुर्बानी का चमड़ा देना जाइज़ है और बेचकर उसकी क़ीमत देना भी जाइज़ है लेकिन अगर चमड़े को अपने खर्च में लाने की नियत से बेचा तो अब उसकी क़ीमत को मस्जिद में देना जाइज़ नहीं!..✍🏻

📗अनवारे शरीअत, ब हवाला, किफ़ायह


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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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     *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान  ❞* 
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࿐   कुर्बानी के जानवर 3 क़िस्म के हैं : नंबर.1 ऊंट, नंबर. 2 गाय, नंबर. 3 बकरी, हर क़िस्म में उसकी जितनी नोऐं (क़िस्में) हैं सब दाखिल हैं नर और मादा ख़स्सी और ग़ैरे ख़स्सी सबका एक हुक्म है यानी सब की क़ुर्बानी हो सकती है, भैंस गाय में शुमार है उसकी भी कुर्बानी हो सकती है, भेड़ और दुंबा बकरी में दाखिल हैं उनकी भी कुर्बानी हो सकती है!

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 139, ब हवाला

࿐  वहशी जानवर जैसे नीलगाय और हिरन उनकी कुर्बानी नहीं हो सकती, वहशी और घरेलू जानवर से मिलकर बच्चा पैदा हुआ मसलन हिरन और बकरी से उसमें मां का एतबार है यानी उस बच्चे की मां बकरी है तो जाइज़ है और बकरे और हिरनी से पैदा है तो नाजाइज़!

࿐  क़ुर्बानी के जानवर की उम्र ये होनी चाहिए : ऊंट 5 साल का, गाय 2 साल की, बकरी 1 साल की इससे उम्र कम हो तो क़ुर्बानी जाइज़ नहीं ज़्यादा हो तो जाइज़ बल्के अफ़ज़ल है हां दुम्बा या भेड़ का 6.माहा बच्चा अगर इतना बड़ा हो के दूर से देखने में साल भर का मालूम होता हो तो उसकी कुर्बानी जाइज़ है!...✍🏻

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 139, ब हवाला

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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         *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान ❞* 
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࿐  बकरी की कीमत और गोश्त अगर गाय के सातवें हिस्सा की बराबर हो तो बकरी अफ़ज़ल है और गाय के सातवें हिस्से में बकरी से ज़्यादा गोश्त हो तो गाय अफ़ज़ल है यानी जब दोनों की एक ही कीमत हो और मिक़दार भी एक ही हो तो जिसका गोश्त अच्छा हो वो अफ़ज़ल है और अगर गोश्त की मिक़दार मैं फ़र्क़ हो तो जिसमें गोश्त ज़्यादा हो वो अफ़ज़ल है और मेंढा भेड़ से और दुम्बा दुम्बी से अफ़ज़ल है जब्के दोनों की एक क़ीमत हो और दोनों में गोश्त बराबर हो, बकरी बकरे से अफ़ज़ल है मगर खस्सी बकरा बकरी से अफ़ज़ल है और ऊंटनी ऊंट से और गाय बैल से अफ़ज़ल है जब्के गोश्त और क़ीमत में बराबर हों!...✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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        *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान ❞* 
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࿐   क़ुर्बानी के जानवर को ऐब से खाली होना चाहिए और थोड़ा सा ऐब हो तो कुर्बानी हो जाएगी मगर मकरूह होगी और ज़्यादा ऐब हो तो होगी ही नहीं, जिसके पैदाइशी सींग ना हों उसकी कुर्बानी जाइज़ है और अगर सींग थे मगर टूट गया और मींग तक टूटा है तो नाजाइज़ है इससे कम टूटा है तो जाइज़ है, जिस जानवर में जुनून है अगर इस हद का है के वो जानवर चरता भी नहीं है तो उसकी कुर्बानी नाजाइज़ है और इस हद का नहीं है तो जाइज़ है, 

࿐  ख़स्सी यानी जिसके ख़सिए निकाल लिए गए हैं या मजबूब यानी जिसके ख़सिए और उज़ू ए तनासुल सब काट लिए गए हों उनकी कुर्बानी जाइज़ है, इतना बूढ़ा के बच्चा के क़ाबिल ना रहा या दागा हुआ जानवर या जिसके दूध ना उतरता हो इन सब की कुर्बानी जाइज़ है, ख़ारिश्ती जानवर की कुर्बानी जाइज़ है जब्के फरबा (मोटा) हो और इतना लागर (कमज़ोर) हो के हड्डी में मग्ज़ ना रहा तो कुर्बानी जाइज़ नहीं!...✍🏻  

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         *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान ❞* 
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࿐  भेंगे जानवर की कुर्बानी जाइज़ है अंधे जानवर की कुर्बानी जाइज़ नहीं और काना जिसका काना पन जाहिर हो उसकी भी कुर्बानी ना जाइज़, इतना लागर जिसकी हड्डियों में मग्ज़ ना हो और लंगड़ा जो कुर्बान गाह तक अपने पांव से ना जा सके और इतना बीमार जिसकी बीमारी जाहिर हो और जिसके कान या दुम (पूंच) या चक्की कटे हों यानी वो उज़ू तिहाई से ज़्यादा कटा हो इन सब की कुर्बानी नाजाइज़ है और अगर कान या दुम या चक्की तिहाई या इससे कम कटी हो तो जाइज़ हैं, जिस जानवर के पैदाइशी कान ना हों या एक कान ना हो उसकी नजाइज़ है और जिसके कान छोटे हों उसकी जाइज़ है! जिस जानवर की तिहाई से ज़्यादा नज़र जाती रही उसकी भी कुर्बानी नाजाइज़ है!

࿐  अगर दोनों आंखों की रोशनी कम हो तो इसका पहचानना आसान है और सिर्फ़ एक आंख की कम हो तो उसके पहचानने का तरीका ये है के जानवर को एक-दो दिन भूखा रखा जाए फिर उस आंख पर पट्टी बांधी जाए जिसकी रोशनी कम है और अच्छी आंख खुली रखी जाए और इतनी दूर चारा रखें जिसको जानवर ना देखे फिर चारा को नज़दीक लाते जाएं जिस जगह वो चारे को देखने लगे वहां निशान रख दें फिर अच्छी आंख पर पट्टी बांध दें और दूसरी खोल दें और चारा को करीब करते जाएं जिस जगह इस आंख से देख ले यहां भी निशान कर दें फिर दोनों जगहों की पैमाइश करें (नापें) अगर ये जगह उस पहली जगह की तिहाई है तो मालूम हुआ के तिहाई रोशनी कम है और अगर निस्फ़ (आधी) है तो मालूम हुआ के बानिस्बत अच्छी आंख की इस की रोशनी आधी है!...✍🏻


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        *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान ❞* 
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࿐   जिसके दांत ना हों या जिसके थन कटे हों या खुश्क हों उसकी कुर्बानी नाजाइज़ है बकरी में एक का खुश्क़ होना नाजाइज होने के लिए काफ़ी है और गाय भैंस में दो खुश्क हों तो नाजाइज़ है, जिसकी नाक कटी हो या इलाज के ज़रिए उसका दूध खुश्क कर दिया हो और खन्सा जानवर यानी जिस में नर और मादा दोनों की अलामतें हो और जल्लाला जो सिर्फ़ ग़लीज (गन्दगी) खाता हो इन सब की कुर्बानी नाजाइज़ है!

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफा 141,

࿐  भेड़ या दुम्बा की ऊन (बाल) काट ली गई हो उसकी क़ुर्बानी जाइज़ है और जिस जानवर का एक पांव काट लिया गया हो उसकी कुर्बानी नाजाइज़ है!

࿐  जानवर को जिस वक़्त खरीदा था उस वक़्त उसमें ऐसा ऐब ना था जिसकी वजह से कुर्बानी नाजाइज़ होती है बाद में वह ऐब पैदा हो गया तो अगर वो शख्स मालिके निसाब है तो दूसरे जानवर की कुर्बानी करे और मालिके निसाब नहीं है तो उसी की कुर्बानी करले ये उस वक़्त है के उस फ़कीर ने पहले से अपने जिम्मा कुर्बानी वाजिब ना की हो और अगर उसने मन्नत मानी है के बकरी की कुर्बानी करूंगा और मन्नत पूरी करने के लिए बकरी खरीदी उस वक़्त बकरी में ऐसा ऐब ना था फिर पैदा हो गया इस सूरत में फकीर के लिए भी यही हुक्म है के दूसरे जानवर की कुर्बानी करे!...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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         *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान ❞* 
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࿐   फ़कीर ने जिस वक़्त जानवर खरीदा था उसी वक़्त उसमें ऐसा ऐब था जिससे कुर्बानी नाजाइज़ होती है और वो ऐब कुर्बानी के वक़्त तक बाक़ी रहा तो उसकी कुर्बानी कर सकता है और गनी ऐबदार खरीदे और ऐब दार ही की कुर्बानी करे तो नाजाइज़ है और अगर ऐबी जानवर को खरीदा था और बाद में उसका ऐब जाता रहा तो गनी और फ़क़ीर दोनों के लिए उसकी कुर्बानी जाइज़ है मसलन ऐसा लागर (कमज़ोर) जानवर खरीदा जिस की कुर्बानी नाजाइज़ है और उसके यहां वो फरबा (मोटा) हो गया तो गनी भी उसकी कुर्बानी कर सकता है!

࿐  कुर्बानी करते वक़्त जानवर उछला कूदा जिसकी वजह से  ऐब पैदा हो गया ये ऐब मुज़िर नहीं यानी कुर्बानी हो जाएगी और अगर उछलने कूदने से ऐब पैदा हो गया और वो छूट कर भाग गया और फौरन पकड़ लाया गया और ज़िबह कर दिया गया जब भी कुर्बानी हो जाएगी!....✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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         *❝  क़ुर्बानी के जानवर का बयान ❞

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࿐   कुर्बानी का जानवर मर गया तो ग़नी पर लाज़िम है के दूसरे जानवर की कुर्बानी करे और फ़क़ीर के ज़िम्मा दूसरा जानवर वाजिब नहीं और अगर कुर्बानी का जानवर गुम हो गया या चोरी हो गया और उसकी जगह दूसरा जानवर खरीद लिया अब वो मिल गया तो गनी को इख़्तियार है के दोनों में जिस एक को चाहे कुर्बानी करे और फ़कीर पर वाजिब है के दोनों की कुर्बानियां करे!

࿐  मगर गनी ने अगर पहले जानवर की कुर्बानी की तो अगरचे उसकी कीमत दूसरे से कम हो कोई हर्ज नहीं और अगर दूसरे की कुर्बानी की और उसकी कीमत पहले से कम है तो जितनी कमी है उतनी रकम सदका करे हां अगर पहले को भी कुर्बान कर दिया तो अब वो तसद्दुक़ (यानी सदक़ा करना) वाजिब ना रहा!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफाई 142)

⚠️ फ़क़ीर से मुराद वो शख्स है जो मालिके निसाब ना हो, और ग़नी से मुराद वो शख्स है जो मालिके निसाब हो!..✍🏻


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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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    *❝  क़ुर्बानी के जानवर में शिर्कत ❞* 
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࿐  सात शख़्सों ने कुर्बानी के लिए गाय खरीदी थी उनमें एक का इंतकाल हो गया उसके वुरसा (वारिसों) ने शुरका (शरीकों) से यह कह दिया के तुम इस गाय को अपनी तरफ से और उसकी तरफ से कुर्बानी करो उन्होंने कर ली तो सब की कुर्बानियां जाइज़ हैं और अगर बगैर इजाज़ते वुरसा उन शुरका ने (यानी मय्यत के वारिसों की इजाज़त के बगैर शरीकों "हिस्सादारों" ने) की तो किसी की ना हुई!

࿐  गाय के शुरका में से एक काफ़िर है या उनमें एक शख्स का मकसूद कुर्बानी नहीं है बल्के गोश्त हासिल करना है तो किसी की कुर्बानी ना हुई बल्के अगर शुरका (शरीक यानी हिस्सेदार) में से कोई गुलाम या मुदब्बर है जब भी कुर्बानी नहीं हो सकती क्योंके ये लोग अगर कुर्बानी की नियत भी करें तो नियत सही नहीं!...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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     *❝  क़ुर्बानी के जानवर में शिर्कत ❞

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࿐  शुरका में से एक की नियत इस साल की कुर्बानी है और बाक़ियों की नियत साले गुज़िस्ता (गुज़रे हुए साल) की कुर्बानी है तो जिसकी इस साल की नियत है उसकी कुर्बानी सही है और बाक़ियों की नियत बातिल क्योंके साले गुज़िस्ता की कुर्बानी इस साल नहीं हो सकती उन लोगों की ये कुर्बानी तत़व्वोअ यानी नफ़्ल हुई और उन लोगों पर लाजिम है के गोश्त को सदका कर दें बल्के उनका साथी जिसकी कुर्बानी सही हुई है वो भी गोश्त सदका कर दे!

࿐   कुर्बानी के सब शुरका की नियत तक़र्रुब हो इसका ये मतलब है के किसी का इरादा गोश्त ना हो और ये ज़रूर नहीं के वो तक़र्रुब एक ही किस्म का हो मसलन सब कुर्बानी ही करना चाहते हैं बल्के अगर मुख्तलिफ किस्म के तक़र्रुब हों वो तक़र्रुब सब पर वाजिब हो या किसी पर वाजिब हो और किसी पर वाजिब ना हो हर सूरत में कुर्बानी जाइज़ है मसलन दमे एहसार और एहराम में शिकार करने की जज़ा और सर मुंडाने की वजह से दम वाजिब हुआ हो और तमत्तोअ व क़िरान का दम के उन सबके साथ कुर्बानी की शिरकत हो सकती है इसी तरह कुर्बानी और अक़ीक़ा की भी शिरकत हो सकती है के अक़ीक़ा भी तक़र्रुब की एक सूरत है!...✍🏻


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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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     *❝  क़ुर्बानी के जानवर में शिर्कत ❞*
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࿐   तीन शख़्सों ने कुर्बानी के जानवर खरीदे एक ने 10 का दूसरे ने 20 का तीसरे ने 30 का और हर एक ने जितने में खरीदा है उसकी वाजिबी कीमत भी उतनी ही है ये तीनों जानवर मिल गए ये पता नहीं चलता के किसका कौन है तीनों ने यह इत्तेफ़ाक़ कर लिया के एक-एक जानवर हर शख्स कुर्बानी करे चुनाचे ऐसा ही किया गया सब की कुर्बानियां हो गईं मगर जिसने 30 में खरीदा था वो ₹20 खैरात करे क्योंके मुमकिन है के 10 वाले को उसने कुर्बानी किया हो और जिसने 20 में खरीदा था वो ₹10 खैरात करे और जिसने 10 में खरीदा था उस पर कुछ सदका करना वाजिब नहीं और अगर हर एक ने दूसरे को ज़िबह करने की इजाज़त दे दी तो कुर्बानी हो जाएगी और उस पर कुछ वाजिब ना होगा!...✍🏻

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 142---143


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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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    *❝  क़ुर्बानी के बअज़ मुस्तहबात ❞* 
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࿐  मुस्तहब ये है के कुर्बानी का जानवर खूब फरबा (मोटा) और खूबसूरत और बड़ा हो और बकरी की किस्म में से कुर्बानी करनी हो तो बेहतर सींग वाला मेंढ़ा चितकबरा हो जिसके खसिए को काटकर खस्सी कर दिया हो के हदीस में है हुजूर नबी ए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने ऐसे मेंढे की कुर्बानी की!

࿐  ज़िबह करने से पहले छुरी को तेज़ कर लिया जाए और ज़िबह के बाद जब तक जानवर ठंडा ना हो जाए उसके तमाम अअज़ा से रूह निकल ना जाए उस वक़्त तक हाथ पांव ना काटें और ना चमड़ा उतारें और बेहतर ये है के अपनी कुर्बानी अपने हाथ से करे अगर अच्छी तरह ज़िबह करना जानता हो और अगर अच्छी तरह ना जानता हो तो दूसरे को हुक्म दे वो ज़िबह करे मगर इस सूरत में बेहतर ये है के वक़्ते कुर्बानी हाज़िर हो!

࿐  हदीस में है हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते फातिमा ज़हरा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा से फ़रमाया खड़ी हो जाओ और अपनी कुर्बानी के पास हाज़िर हो जाओ के उसके खून के पहले ही क़तरे में जो कुछ गुनाह किए हैं सबकी मग़फ़िरत हो जाएगी इस पर अबू सईद खुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने अर्ज़ की या नबी अल्लाह ये आपकी आल के लिए खास है या आपकी आल के लिए भी है और आम्मा ए मुस्लिमीन के लिए भी फ़रमाया के मेरी आल के लिए खास भी है और तमाम मुस्लिमीन के लिए आम भी है!...✍🏻

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफह 143

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         ❝   फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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      *❝  क़ुर्बानी के बअज़ मुस्तहबात  ❞* 
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࿐  कुर्बानी का जानवर मुसलमान से ज़िबह कराना चाहिए अगर किसी मजूसी (आग की पूजा करने वाला) या दूसरे मुशरिक से कुर्बानी का जानवर ज़िबह करा दिया तो कुर्बानी नहीं हुई बल्के ये जानवर हराम व मुर्दार है और किताबी से कुर्बानी का जानवर ज़िबह कराना मकरूह है के कुर्बानी से मकसूद तक़र्रुब इलल्लाह (अल्लाह तआला की रज़ा) है इसमें काफ़िर से मदद ना ली जाए बल्के बाअज़ अइम्मा के नज़दीक इस सूरत में भी कुर्बानी नहीं होगी मगर हमारा मज़हब वही पहला है के कुर्बानी हो जाएगी और मकरूह है!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 144

࿐   क़ुर्बानी का जानवर हो या हर रोज़ खाने वाला कोई भी हलाल जानवर हो या मुर्गा मुर्गी वग़ैरह हो उनमें से किसी भी जानवर को वहाबी, देवबंदी, अहले हदीस, तब्लीग़ी, शिआ, नीचरी, चकड़ालवी, क़ादयानी, वग़ैरह फ़िर्क़ाहाए बातिला के किसी भी शख़्स से ज़िबह ना कराएं क्योंके उनके हाथ का ज़बिहा (काटा हुआ) मुर्दार व हराम है इसलिए के जानवर ज़िबह करने के लिए ईमान वाला होना शर्त है और ये लोग ईमान वाले नहीं क्योंके ये गुस्ताखे ख़ुदा व रसूल हैं इसलिए ये मुर्तद व ईमान से ख़ारिज हैं!...✍🏻

⚠️ तफ़सीलात के लिए देखिए 📚 हुसामुल हरामैन,📚 फ़तावा बरकातियह,

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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा   ❞
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  *❝  क़ुर्बानी का गोश्त व पोस्त वग़ैरह क्या करे ❞* 
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࿐  कुर्बानी का गोश्त खुद भी खा सकता है और दूसरे शख्स गनी या फ़क़ीर को दे सकता है खिला सकता है बल्के उसमें से कुछ खा लेना कुर्बानी करने वाले के लिए मुस्तहब है बेहतर ये है के गोश्त के तीन हिस्से करे एक हिस्सा फुकरा के लिए और एक हिस्सा दोस्त व एहबाब के लिए और एक हिस्सा अपने घर वालों के लिए एक तिहाई से कम सदका ना करे, और कुल को सदका कर देना भी जाइज़ है और कुल घर ही रख ले ये भी जाइज़ है 3 दिन से जाइद अपने और घरवालों के खाने के लिए रख लेना भी जाइज़ है और बअज़ हदीसों में जो इसकी मुमानत आई है वो मनसूख है, अगर उस शख्स के एहल व अयाल बहुत हों और साहिबे वुसअत नहीं हैं तो बेहतर ये है के सारा गोश्त अपने बाल बच्चों ही के लिए रख छोड़ें!

࿐  कुर्बानी का गोश्त काफ़िर को ना दे के यहां (हिन्दुस्तान) के कुफ़्फ़ार हरबी हैं!...✍🏻

📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 144


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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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  *❝  क़ुर्बानी का गोश्त व पोस्त वग़ैरह क्या करे ❞* 
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࿐   कुर्बानी अगर मन्नत की है तो उसका गोश्त ना खुद खा सकता है ना अग़निया (यानी ना साहिबे निसाब) को खिला सकता है बल्के उसको सदक़ा कर देना वाजिब है, वो मन्नत मानने वाला फकीर हो या गनी दोनों का एक ही हुक्म है के खुद नहीं खा सकता है ना गनी को खिला सकता है!

࿐ मय्यत की तरफ से कुर्बानी की तो उसके गोश्त का भी वही हुक्म है के खुद खाए दोस्त एहबाब को दे फकीरों को दे ये ज़रूर नहीं के सारा गोश्त फकीरों ही को दे क्योंके गोश्त उसकी मिल्क है ये सब कुछ कर सकता है और अगर मय्यत ने कह दिया है के मेरी तरफ से कुर्बानी कर देना तो उसमें से ना खाए बल्के कुल गोश्त सदका कर दे!...✍🏻

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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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  *❝  क़ुर्बानी का गोश्त व पोस्त वग़ैरह क्या करे ❞* 
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࿐   कुर्बानी का चमड़ा और उसकी झूल और रस्सी और उसके गले में हार डाला है वो हार इन सब चीजों को सदका कर दे, कुर्बानी के चमड़े को खुद भी अपने काम में ला सकता है यानी उसको बाकी रखते हुए अपने किसी काम में ला सकता है मसलन उसकी जा नमाज़ बनाए चलनी, थैली, मस्कीज़ा, दस्तरख्वान, डोल वगैरह बनाए या किताबों की जिल्दों में लगाए ये सब कर सकता है!

࿐  चमड़े का डोल बनाया तो उसे अपने काम में लाए उजरत (किराए) पर ना दे और अगर उजरत पर दे दिया तो उस उजरत को सदका करे!

࿐  कुर्बानी के चमड़े को ऐसी चीज़ों से बदल सकता है जिसको बाकी रखते हुए उससे नफा उठाया जाए जैसे किताब,, ऐसी चीज़ से बदल नहीं सकता जिसको हिलाक करके नफ़ा हासिल किया जाता हो जैसे रोटी गोश्त सिरका रुपया पैसा और अगर उसने इन चीजों को चमड़े के एवज़ में हासिल किया तो उन चीजों को सदका कर दे!...✍🏻

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         ❝   फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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 *❝  क़ुर्बानी का गोश्त व पोस्त वग़ैरह क्या करे ❞

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࿐   अगर कुर्बानी की खाल को रुपए के एवज़ में बेचा मगर इस लिए नहीं के उसको अपनी ज़ात पर या बाल बच्चों पर सर्फ़ करेगा बल्के इसलिए के उसे सदका कर देगा तो जाइज़ है! जैसा के आजकल अक्सर लोग खाल मदारिसे दीनिया मैं दिया करते हैं और बाज मर्तबा वहां खाल भेजने में दिक्कत होती है उसे बेचकर रुपया भेज देते हैं या कई शख़्सों को देना होता है उसे बेचकर दाम उन फ़ुकरा पर तक्सीम कर देते हैं ये बई जाइज़ है इसमें हर्ज नहीं और हदीस में जो इसके बेचने की मुमानत आई है उससे मुराद अपने लिए बेचना है!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफा 145

࿐  गोश्त का भी वही हुक्म है जो चमड़े का है के उसको अगर ऐसी चीज़ के बदले में बेचा जिसको हिलाक करके नफ़ा हासिल किया जाए तो सदका कर दे!...✍🏻


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         ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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  *❝  क़ुर्बानी का गोश्त व पोस्त वग़ैरह क्या करे ❞* 
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࿐  कुर्बानी की चर्बी और उसकी सिरी पाए और ऊन (बाल) और दूध जो ज़िबह के बाद दूहा है इन सबका वही हुक्म है के अगर ऐसी चीज़ उसके एवज़ में ली जिसको हिलाक करके नफा हासिल करेगा तो उसको सदका कर दे!

࿐  कुर्बानी का चमड़ा या गोश्त या उसमें की कोई चीज़ क़स्साब या ज़िबह करने वाले को उजरत में नहीं दे सकता के उसको उजरत में देना भी बेचने ही के मअना में है!

࿐  क़स्साब को उजरत में नहीं दिया बल्के जैसे दूसरे मुसलमानों को देता है उसको भी दिया और उजरत (मज़दूरी) अपने पास से दूसरी चीज़ देगा तो जाइज़ है!

📚बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफा 145,

࿐  भेड़ के किसी जगह के बाल निशानी के लिए काट लिए हैं उन बालों को फैंक देना या किसी को हिबा कर देना नाजाइज़ है बल्के उन्हें सदक़ा करे!...✍🏻

📙 बहारे शरीयत हिस्सा 15 सफ़ह 145 ब हवाला 📚 आलमगीरी,   

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         ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा   ❞
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  *❝ ज़िबह से पहले क़ुर्बानी के जानवर से मनफ़अत (मुनाफ़ा) हासिल करना मना है ❞* 
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࿐  ज़िबह से पहले कुर्बानी के जानवर के बाल आपने किसी काम के लिए काट लेना या उसका दूध दूहना मकरूह व ममनू है और कुर्बानी के जानवर पर सवार होना या उस पर कोई चीज़ लादना या उसको उजरत (किराए) पर देना ग़र्ज उससे मुनाफ़ा हासिल करना मना है अगर उसने ऊन (बाल) काट ली या दूध दूह लिया तो उसे सदका कर दे और उजरत पर जानवर को दिया है तो उजरत को सदका करे और अगर खुद सवार हुआ या उस पर कोई चीज लादी तो उसकी वजह से जानवर में जो कुछ कमी आई उतनी मिक़दार में सदका करे!

࿐  जानवर दूध वाला है तो उसके थन पर ठंडा पानी छिड़के के दूध खुश्क हो जाए अगर इससे काम ना चले तो जानवर को दूह कर दूध सदका करे!

࿐  जानवर ज़िबह हो गया तो अब उसके बाल को अपने काम के लिए काट सकता है और अगर उसके थन में दूध है तो दूह सकता है के जो मकसूद था वो पूरा हो गया अब ये इसकी मिल्क है अपने सर्फ़ में ला सकता है!...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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*❝  ज़िबह से पहले क़ुर्बानी के जानवर से मनफ़अत (मुनाफ़ा) हासिल करना मना है  ❞* 
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࿐   कुर्बानी के लिए जानवर खरीदा था कुर्बानी करने से पहले उसके बच्चा पैदा हुआ तो बच्चे को भी ज़िबह कर डाले और अगर बच्चे को बेच डाला तो उसका समन सदका कर दे और अगर ना ज़िबह किया ना बई किया (बेचा) और अय्यामे नहर गुजर गए तो उसको जिंदा सदका कर दे और अगर कुछ ना किया और बच्चा उसके यहां रहा और कुर्बानी का ज़माना आ गया ये चाहता है कि इस साल की कुर्बानी में इसी को ज़िबह करे ये नहीं कर सकता और अगर क़ुर्बानी इसी की कर दी तो दूसरी कुर्बानी फिर करे वो कुर्बानी नहीं हुई और वो बच्चा ज़िबह किया हुआ सदका कर दे बल्के ज़िबह से जो कुछ उसकी कीमत में कमी हुई उसे भी सदका करे!

📚 बहारे शरिअत, हिस्सा 15, सफ़ह 146

࿐  कुर्बानी की और उसके पेट में जिंदा बच्चा है तो उसे भी ज़िबह कर दे और उसे सर्फ़ मैं ला सकता है और मरा हुआ बच्चा हो तो उसे फेंक दे मुर्दार है!..✍🏻

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 15 सफ़ह 146

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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 *❝ दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   दो शख्सों ने ग़लती से यह किया के हर एक ने दूसरे की कुर्बानी की बकरी ज़िबह कर दी यानी हर एक ने दूसरे की बकरी को अपनी समझकर कुर्बानी कर दिया तो बकरी जिस की थी उसी की कुर्बानी हुई और चूंके दोनों ने ऐसा किया लिहाज़ा दोनों की कुर्बानियां हो गईं और इस सूरत में किसी पर तावान (जुर्माना यानी मुआवज़ा) नहीं बल्के हर एक अपनी अपनी बकरी ज़िबह शुदा लेले और फ़र्ज़ करो के हर एक को अपनी गलती उस वक़्त मालूम हुई जब उस बकरी को सर्फ़ (यानी अपने काम में) कर चुका तो चूंके हर एक ने दूसरे की बकरी खा डाली लिहाज़ा हर एक दूसरे से मुआफ़ कराले और अगर मुआफी पर राज़ी ना हों तो चूंके हर एक ने दूसरे की कुर्बानी का गोश्त बिला इजाज़त खा डाला गोश्त की क़ीमत का तावान (जुर्माना यानी मुआवज़ा) लेले उस तावान को सदक़ा करे के क़ुर्बानी के गोश्त के मुआवज़ा का यही हुक्म है!

࿐   यह तमाम बातें उस वक़्त हैं के हर एक दूसरे के इस फेअल (काम) पर के उसने इसकी बकरी ज़िबह कर डाली राज़ी हो तो जिस की बकरी थी उसी की क़ुर्बानी हुई और अगर राज़ी न हो तो बकरी की क़ीमत का तावान (मुआवज़ा) लेगा और इस सूरत में जिसने ज़िबह की उसकी क़ुर्बानी हुई यानी बकरी का जब तावान लिया तो बकरी ज़ाबेह (ज़िबह करने वाला) की हो गई और उसी की जानिब से कुर्बानी हुई और गोश्त का भी यही मालिक हुआ!...✍🏻

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 15, सफ़ह 146) पुराना एडीशनल,

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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 *❝  दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   दूसरे की कुर्बानी की बकरी बगैर उसकी इजाज़त के क़सदन (जानबूझकर) ज़िबह करदी उसकी दो सूरतें हैं मालिक की तरफ़ से उसने क़ुर्बानी की या अपनी तरफ से अगर मालिक की नियत से क़ुर्बानी की तो उसकी क़ुर्बानी हो गई के वह जानवर कुर्बानी के लिये था और कुर्बान कर दिया गया इस सूरत में मालिक उससे तावान (मुआवज़ा) नहीं ले सकता और अगर उसने अपनी तरफ़ से कुर्बानी की और ज़िबह शुदा बकरी के लेने पर मालिक राज़ी है तो कुर्बानी मालिक की जानिब से हुई और ज़ाबेह (ज़िबह करने वाला) की नियत का एतबार नहीं और मालिक अगर इस पर राज़ी नहीं बल्के बकरी का तावान लेता है तो मालिक की कुर्बानी नहीं हुई बल्के ज़ाबेह (ज़िबह करने वाला) की हुई के तावान (मुआवज़ा) देने से बकरी का मालिक हो गया और उसकी अपनी कुर्बानी हो गई।...✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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 *❝ दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   अगर बकरी कुर्बानी के लिये मुअय्यन न हो तो बगैर इजाज़ते मालिक अगर दूसरा शख्स क़ुर्बानी कर देगा तो कुर्बानी न होगी मसलन एक शख्स ने पाँच बकरियां ख़रीदी थीं और उसका यह खयाल था के उन में से एक बकरी को क़ुर्बानी करूंगा और उन में से किसी एक को मुअय्यन नहीं किया था तो दूसरा शख्स मालिक की जानिब से कुर्बानी नहीं कर सकता अगर करेगा तो तावान (जुर्माना, मुआवज़ा) लाज़िम होगा ज़िबह के बाद मालिक उसकी क़ुर्बानी की नियत करे बेकार है यानी इस सूरत में कुर्बानी नहीं हुई। 

࿐  दूसरे की बकरी ग़सब करली और उसकी क़ुर्बानी करली अगर मालिक ने जिन्दा बकरी का उस शख्स से तावान (मुआवज़ा) ले लिया तो कुर्बानी हो गई मगर यह शख्स गुनाहगार है इस पर तौबा व इस्तिगफार लाज़िम है और अगर मालिक ने तावान नहीं लिया बल्के ज़िबह की हुई बकरी ली और ज़िबह करने से जो कुछ कमी हुई उसका तावान लिया तो क़ुर्बानी नहीं हुई!...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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 *❝  दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   अपनी बकरी दूसरे की तरफ़ से ज़िबह कर दी उसके हुक्म से ऐसा किया या बग़ैर हुक्म बहर सूरत उसकी कुर्बानी नहीं क्योंके उसकी तरफ से कुर्बानी उस वक़्त हो सकती है जब उसकी मिल्क हो!

࿐   एक शख्स के पास किसी की बकरी अमानत के तौर पर थी अमीन (यानी जिसके पास बकरी अमानत के तौर पर दी गई) ने कुर्बानी करदी यह क़ुर्बानी सहीह नहीं ना मालिक की तरफ़ से न अमीन की तरफ़ से अगरचे मालिक ने अमीन से अपनी बकरी का तावान (जुर्माना, मुआवज़ा) लिया हो इसी तरह अगर किसी का जानवर उसके पास आरियत या इजारह के तौर पर है और उसने कुर्बानी कर दिया यह कुर्बानी जाइज़ नहीं, मरहून को राहिन ने कुर्बानी किया तो हो जायेगी के जानकर उसकी मिल्क है और मुरतहन ने किया तो उसमें इख़्तिलाफ़ है!..✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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 *❝ दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   मवेशी खाना के जानवर एक मुद्दते मुकर्ररा के बाद नीलाम हो जाते हैं और बअज़ लोग उसे ले लेते हैं उसकी कुर्बानी जाइज़ नहीं क्योंके यह जानवर उसकी मिल्क नहीं।

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 15 सफ़ह 148)

࿐  दो शख़्शों के माबैन एक जानवर मुशतरक है उसकी कुर्बानी नहीं हो सकती के मुशतरक माल में दोनों का हिस्सा है एक का हिस्सा दूरारे के पास अमानत है और अगर दो जानवरों में दो शख़्स बराबर के शरीक हैं हर एक ने एक एक की कुर्बानी करदी दोनों की कुर्बानियां हो जायेंगी!...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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 *❝ दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   एक शख्स के नौ बाल-बच्चे हैं और एक खुद उस ने दस बकरियों की कुर्बानी की और यह नियत नहीं के किसकी तरफ़ से किस बकरी की कुर्बानी है मगर यह नियत ज़रूर है के दसों बकरियां हम दसों की तरफ़ से हैं यह कुर्बानी जाइज़ है सब की कुर्बानियां हो जायेगी

࿐   अपनी तरफ़ से और अपने बच्चों की तरफ़ से गाय की कुर्बानी की अगर वह नाबालिग हैं तो सब की कुर्बानियाँ जाइज़ हैं और बालिग हैं और सब लड़कों ने कह दिया है तो सब की तरफ़ से सहीह है और अगर उन्होंने कहा नहीं या बअज़ ने नहीं कहा है तो किसी की कुर्बानी नहीं हुई!...✍🏻


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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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 *❝  दूसरे के क़ुर्बानी के जानवर को बिला इजाज़त ज़िबह कर दिया ❞* 
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࿐   बैअ् फ़ासिद के ज़रिया बकरी खरीदी और कुर्बानी करदी यह कुर्बानी हो गई के बैअ् फ़ासिद में कब्ज़ा कर लेने से मिल्क हो जाती है और बाइअ को इख्तियार है अगर उसने जिन्दा बकरी की वाजिबी क़ीमत मुश्तरी से लेली तो अब उस के जिम्मा कुछ वाजिब नहीं और अगर बाइअ ने ज़िबह की हुई बकरी लेली तो कुर्बानी करने वाला उस ज़िबह की हुई बकरी की क़ीमत सदक़ा करे!

࿐   एक शख्स ने दूसरे को बकरी हिबा करदी (यानी बकरी का मालिक बना दिया) मोहूब लहू (यानी जिसको मालिक बनाया उसने) उसकी कुर्बानी करदी उसके बाद वाहिब (हिबा करने वाला) अपना हिबा वापस लेना चाहता है वह वापस ले सकता है और मोहूब लहू की कुर्बानी सहीह है और उसके जिम्मा कुछ सदका करना भी वाजिब नहीं!...✍🏻

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 15 सफ़ह 148

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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                *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   दूसरे से कुर्बानी ज़िबह कराई ज़िबह के बाद वह यह कहता है मैंने क़सदन (जानबूझकर) बिस्मिल्लाह नहीं पढ़ी इस को उस जानवर की क़ीमत देनी होगी फिर अगर कुर्बानी का वक़्त बाक़ी है तो उस क़ीमत से दूसरा जानवर खरीदकर कुर्बानी करे और उसका गोश्त सदक़ा करे ख़ुद न खाये और वक़्त बाक़ी न हो तो उस क़ीमत को सदक़ा करदे!

࿐  तीन शख़्सों ने तीन बकरियां कुर्बानी के लिये ख़रीदीं फिर यह बकरियां मिल गईं पता नहीं चलता के किस की कौनसी बकरी है इस सूरत में यह करना चाहिए के हर एक दूसरे को ज़िबह करने का वकील करदे सब की कुर्बानियां हो जायेंगी के उसने अपनी बकरी ज़िबह की जब भी जाइज़ है और दूसरे की ज़िबह की जब भी जाइज़ है के यह उसका बकील है!...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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            *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   दूसरे से ज़िबह कराया और ख़ुद अपना हाथ भी छुरी पर रख दिया के दोनों ने मिलकर
ज़िबह किया तो दोनों पर बिस्मिल्लाह कहना वाजिब है एक ने भी क़सदन (जानबूझकर) छोड़ दी या यह खयाल करके छोड़ दी के दूसरे ने कह ली मुझे कहने की क्या ज़रूरत दोनों सूरतों में जानवर हलाल न हुआ!

࿐  कुर्बानी के लिये गाय ख़रीदी फिर उसमें छः शख़्सों को शरीक कर लिया सब की कहानियां हो जायेंगी मगर ऐसा करना मकरूह है हां अगर खरीदने ही के वक़्त उसका यह इरादा था के उसमें दूसरों को शरीक करूँगा तो मकरूह नहीं और अगर खरीदने से पहले ही शिरकत करली जाये तो यह सबसे बेहतर। और अगर गैर मालिके निसाब ने क़ुर्बानी के लिये गाय ख़रीदी तो खरीदने से ही उस पर इस गाय की कुर्बानी वाजिब हो गई अब वह दूसरे को शरीक नहीं कर सकता!..✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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                *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   पाँच शख्सों ने कुर्बानी के लिये गाय खरीदी एक शख़्स आता है वह यह कहता है मुझे भी इस में शरीक करलो चार ने मन्जूर कर लिया और एक ने इन्कार किया उस गाय की कुर्बानी हुई सब की तरफ़ से जाइज़ हो गई क्योंके यह छठा शख्स उन चारों का शरीक है और उन में हर एक का सातवें हिस्सा से ज़्यादा है और गोश्त यूं तक़सीम होगा के पाँचवां हिस्सा उसका है जिसने शिरकत से इन्कार किया बाक़ी चार हिस्सों को यह पांचों बराबर बांट लें। या यूं करो के पच्चीस हिस्से करके उसको पाँच हिस्से दो जिसने शिरकत से इन्कार किया है बाकियों को चार चार हिस्से!...✍🏻

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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                *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   कुर्बानी के लिये बकरी खरीदी और कुर्बानी कर दी फिर मालूम हुआ के बकरी में ऐब है मगर ऐसा ऐब नहीं जिसकी कुर्बानी न हो सके उसको इख़्तियार है के उसकी वजह से जो कुछ क़ीमत में कमी हो सकती है वह बाइअ से वापस ले और उसका सदका करना उस पर वाजिब नहीं और अगर बाइअ कहता है के में ज़िबह की हुई बकरी लूंगा और समन वापस कर दूंगा तो मुश्तरी उस समन को सदक़ा करदे सिर्फ़ इतना हिस्सा जो ऐब की वजह से कम हो सकता है उस को रख सकता है।

࿐  कुर्बानी की ज़िबह की हुई बकरी ग़सब करली गासिब से उसका तावान (मुआवज़ा) ले सकता है मगर उस तावान को सदका करना ज़रूरी है के यह उस कुर्बानी का मुआवजा है।...✍🏻

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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               *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐  मालिके निसाब ने कुर्बानी की मन्नत मानी तो उसके जिम्मा दो कुर्बानियां वाजिब हो गईं एक वह जो गनी पर वाजिब होती है और एक मन्नत की वजह से, दो या दो से ज़्यादा कुर्यानियों की मन्नत मानी तो जितनी कुर्बानियों की मन्नत है सब वाजिब हैं!

࿐   एक से ज़्यादा कुर्बानी की सब क़ुर्बानियां जाइज़ हैं एक वाजिब बाक़ी नफ़ल और अगर एक पूरी गाय कुर्बानी की तो पूरी से वाजिब ही अदा होगा यह नहीं के सातवां हिस्सा वाजिब हो बाक़ी नफ़ल!...✍🏻

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 15 सफ़ह 149--150

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     ❝  फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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               *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   *तम्बीह :-*  कुर्बानी के मसाइल तफ़्सील के साथ मज़कूर हो चुके अब मुख्तसर तौर पर इस का तरीक़ा बयान किया जाता है ताकि अवाम के लिये आसानी हो।

࿐   क़ुर्बानी का जानवर उन शराइत के मुवाफिक़ हो जो मज़कूर हुईं यानी जो उसकी उम्र बताई गई उससे कम न हो और उन उयूब से पाक हो जिनकी वजह से क़ुर्बानी ना जाइज़ होती है, और बेहतर यह के उमदा और फरवा हो। कुर्बानी से पहले उसे चारा पानी देदें यानी भूका प्यासा ज़िबह न करें। और एक के सामने दूसरे को न ज़िबह करें, और पहले से छुरी तेज़ कर लें ऐसा न हो के जानवर गिराने के बाद उसके सामने छुरी तेज़ की जाये, जानवर को बायें पहलू पर इस तरह लिटायें के क़िब्ला को उसका मुँह हो और अपना दाहिना पांव उसके पहलू पर रखकर तेज़ छुरी से जल्द ज़िबह कर दिया जाए और ज़िबह से पहले यह दुआ पढ़ी जाए👇

اِنِّیْ وَجَّهْتُ وَجْهِیَ لِلَّذِیْ فَطَرَ السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضَ حَنِیْفًا وَّ مَاۤ اَنَا مِنَ الْمُشْرِكِیْنَ ان صلاتي وَ نُسُكِیْ وَ مَحْیَایَ وَ مَمَاتِیْ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ لَا شَرِیْكَ لَهٗۚ-وَ بِذٰلِكَ اُمِرْتُ وَ اَنَا من الْمُسْلِمِیْنَ اَللّٰھُمَّ لَکَ وَمِنْکَ بِسْمِ اللّٰہِ اَللّٰہُ اَکْبَرُ۔

इन्नी वज्जह्तू वज्हिया लिल्लज़ी फ़तरस्समावाती वल अर्दा हनीफ़व वमा अना मिनल मुशरिकीन, इन्ना सलाती व नुसुकी वमह'याया व ममाती लिल्लाही रब्बिल आलमीना ला शरीका लहू व बि ज़ालिका उमिर्तू व अना मिनल मुसलिमीन, अल्लाहुम्मा मिन्का व लका बिस्मिल्लाही अल्लाहु अकबर,

࿐   इसे पढ़कर ज़िबह करदे, क़ुर्बानी अपनी तरफ़ से हो तो ज़िबह के बाद यह दुआ पढ़ें👇

اَللّٰھُمَّ تَقَبَّلَ مِنِّی کَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ خَلِیْلِکَ اِبْرَاھِیْمَ عَلَیْہِ السَّلَامُ وَحَبِیْبِکَ مُحَمَّدٍ صلَّی اللّٰہ تعالٰی علیہ وسلَّم۔

अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन्नी कमा तक़ब्बलता मिन ख़लीलिका इब्राहीमा अलैहिस्सलातू वस्सलामू व हबीबिका मुहम्मदिन सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम!

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     ❝ फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा  ❞
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                *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   इस तरह ज़िबह करे के चारों रगें कट जायें या कम से कम तीन रगें कट जायें इस से ज़्यादा न काटें के छुरी गर्दन के मोहरा तक पहुँच जाये के यह बे वजह की तकलीफ़ है फिर जब तक जानवर ठंडा न हो जाए यानी जब तक उसकी रूह बिल्कुल न निकल जाये उसके न पांव वगैरह काटें न खाल उतारें और अगर दूसरे की तरफ से ज़िबह करता है तो مِنِّی "मिन्नी" की जगह من "मिन" के बाद उसका नाम ले और अगर वह मुश्तरक (हिस्से वाला) जानवर है जैसे गाय ऊँट तो वज़न से गोश्त तक़सीम किया जाये महज तख़मीना से तक़सीम न करें,

࿐  फिर उस गोश्त के तीन हिस्से कर के एक हिस्सा फ़ुक़रा पर तसद्दुक़ (सदक़ा) करे और एक हिस्सा दोस्त व अहबाब के यहां भेजे और एक अपने घर वालों के लिये रखे और उस में से खुद भी कुछ खाले और अगर अहल व अयाल ज़्यादा हों तो तिहाई से ज़्यादा बल्के कुल (सब) गोश्त भी घर के स़र्फ़ में ला सकता है और क़ुर्बानी का चमड़ा अपने काम में भी ला सकता है और हो सकता है के किसी नेक काम के लिये देदे मसलन मस्जिद या दीनी मदरसा को देदे या किसी फ़कीर को देदे। बअज़ जगह यह चमड़ा इमामे मस्जिद को दिया जाता है अगर इमाम की तनख्वाह में न दिया जाता हो बल्के इआनत (मदद) के तौर पर हो तो हर्ज नहीं, बहरुर्राइक (यह एक किताब का नाम है) में मज़कूर है के क़ुर्बानी करने वाला बक़र ईद के दिन सबसे पहले क़ुर्बानी का ग़ौश्त खाए उससे पहले कोई दूसरी चीज न खाए यह मुस्तहब है इसके खिलाफ करे जब भी हर्ज नहीं!...✍🏻


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         ❝   फज़ाइल व मसाइल ईद उल अज़हा ❞
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                *❝   मुतफ़र्रिक़   मसाइल   ❞* 
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࿐   *फ़ायदा :-* अहादीस से साबित है के सय्यदे आलम हज़रत मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसलम ने इस उम्मते मरहूमा की तरफ़ से कुर्बानी की यह हुज़ूर के बेशुमार अल्ताफ़ में से एक खास करम है के इस मौक़ा पर भी उम्मत का ख़याल फ़रमाया और जो लोग कुर्बानी न कर सके उनकी तरफ़ से ख़ुद ही कुर्बानी अदा फ़रमाई।

࿐   यह शुबा (यानी कुछ लोगों को यह ऐतराज़ हो सकता है) के एक मेंढा उन सब की तरफ़ से क्योंकर हो सकता है या जो लोग अभी पैदा ही न हुए उनकी कुर्बानी क्योंकर हुई इसका जवाब यह है के यह हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के खसाइस से है, जिस तरह हुज़ूर ने छः महीने के बकरी के बच्चे की कुर्बानी अबू बुरदा ज़िअल्लाहु तआला अन्ह के लिये जाइज़ फ़रमा दी औरों के लिये उसकी मुमानअत करदी। 

࿐  उसी तरह इस में ख़ुद हुज़ूर की खुसूसियत है, कहना यह है के जब हुज़ूर ने उम्मत की तरफ़ से कुर्बानी की तो जो मुसलमान साहिबे इस्तिताअत हो अगर हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम की एक कुर्बानी करे तो ज़हे नसीब और बेहतर सींग वाला मेंढा है जिसकी सियाही में सफेदी की भी आमेजिश हो (यानी काला और सफ़ेद हो) जैसे मेंढे की ख़ुद हुज़ूरे अकरम ने कुर्बानी फरमाई!...✍🏻

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     *📮 पोस्ट मुक़म्मल हुआ अल्हम्दुलिल्लाह 🔃* 
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