Sunday, 16 May 2021

【 ❝ सच्ची तौबा ❞ 】

 


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         ❝  तौबा❞
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                       *【 तौबा 】*
 
*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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࿐  गुनाहों से तौबा करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है फरमाने इलाही है।

*࿐  तर्जुमा :-*  ऐ ईमान वालो! अल्लाह की तरफ़ ऐसी तौबा जो आगे को नसीहत हो गए।

 *📔 पारा 28, सूरह अत्तहरीम, आयत 8*

࿐  *तर्जुमा :-* और उन जैसे न हो जो अल्लाह को भूल बैठे।

 *📓 पारा 28, सूरह अल हशर, आयत 19*

࿐  *तर्जुमा :-* बेश्क अल्लाह पसन्द करता है बहुत तौबा करने वालों को और पसन्द रखता है सुथरो को।...✍🏻

*📬 पारा 2, सूरह अल बक़रा, आयत 222 📚*

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         ❝  तौबा ❞
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ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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࿐  फरमाने रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम है कि,

࿐  हदीस :-  गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है, जैसे कि उसने गुनाह किया ही नहीं।

࿐   हदीस :-  अल्लाह तआला के नज़दीक कोई चीज़ इससे ज़्यादा पसंदीदा नहीं कि जवान आदमी तौबा करे।

࿐  हदीस :-  तुम में से बेहतर वो शख़्स है जिससे गुनाह सादिर हो तो बाद में फ़ौरन तौबा करें।...✍🏻

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         ❝  तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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࿐  इमामें गुज़ाली फरमाते हैं कि ऐ इबादत के तालिब! तुझ पर इबादत में मशगूल होने से पहले अपने गुनाहों से तौबा करना लाज़िम है और येह दो वज से लाज़िम है। एक तो इसलिये कि तौबा की वजह से तुम्हें फरमाबरदारी और इबादत की तौफीक़ नसीब हो। क्योंकि गुनाहों की नहुसत बंदे को फरमाबरदारी और इबादात बजा लाने से महरूम क रदेती है और उस पर ज़िल्लत और रूसवाई मुसल्लत कर देती है। यक़ीन जानों कि गुनाह एक ऐसी जंजीर है जो बंदे को नेकी की तरफ चलने से रोक देती है और गुनाहो के होते हुए अच्छे कामों में जल्दी नहीं हो सकती। 

࿐  क्योंकि गुनाहो का बोझ नेकीयों के सुकून को पैदा नहीं होने देता और गुनाहों पर इसरार और अड़े रहना दिल को सियाह (काला) कर देता है। इस तरह इन्सान संगदिली और गुनाहों के अंधेरों में मुब्तला हो जाता है, न उसमें खुलूस पैदा हो सकता है और न ही इबादत में लज़्ज़त और हलावत पैदा हो सकती है। जो शख़्स गुनाहों से तौबा ही न करेगा और अगर खुदा का फज़्ल उस के शामिले हाल न हो तो रफ्ता रफ्ता येह गुनाह उसे कुफ़्र तक पहुँचा देंगे। ऐसे शख्स पर बदबख़्ती गालिब आजायेगी।...✍🏻

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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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࿐  तौबा के ज़रूरी होने की दुसरी वजह येह है कि बग़ैर तौबा के इबादात कुबूल नहीं होती। जिस तरह क़र्ज़ ख्वाह का क़र्ज़ अदा करने से पहले उसके सामने हदये तोहफे कोई अहमियत नहीं रखते और न ही वो उन्हें कुबूल करता है। इसी तरह पहले गुनाहों से तौबा लाज़िम है उसके बाद आम इबादाते नाफेला। इसी तरह जब फराइज़ किसी के ज़िम्मे लाज़िम हों तो उसके नवाफिल वगैरह कैसे कुबूल हो सकते है इसी तरह अगर कोई शख़्स हराम व मम्नुअ काम ना छोड़े मगर मुबाह और हलाल चीजों में परहेज़ व अहतियात करें तो उसका परहेज़ करना क्या हैसियत रख सकता है और वोह शख़्स खुदा तआाला से मुनाजात, उसकी बारगाह में पसंदीदा और उसकी सना करने के लायक कैसे हो सकता है।...✍🏻


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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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࿐  तौबतुन-नसुहा के क्या मअना है, उसकी तअरीफ क्या है और बंदे को क्या करना चाहिये जिससे उसके तमाम गुनाह मुआफ हो जायें। तो इस बारे में सुफीया फरमाते हैं कि दिल के कामों में से एक काम तौबा है और आम उलमाए किराम ने इसकी तअरीफ ये की है। दिल को गुनाहों से अच्छी तरह पाक कर लो। और मशाएख ने इस बारे में यह तअरीफ़ की है।

࿐  आइन्दा के लिये ऐसे गुनाह छोड़ देने का इरादा करना जिस दर्जे का गुनाह पहले हो चुका हो और यह तर्क ख़ुदा की तअज़ीम और उसकी नाराज़गी के डर की वजह से हो।...✍🏻

          *📬  तौबा  सफह  4 - 5 📚*

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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 ❝  तौबा  के  शराइत ❞


࿐  मशाएख की तअररीफ़ के मुताबिक तौबा की चार शर्ते हैं।

࿐   *पहली शर्त :*   गुनाह छोड़ देने का इरादा : इसका मतलब येह है कि अपने दिल को इस बात पर पुख्ता और मजबूत करले कि आईन्दा कभी गुनाहों की तरफ नहीं पलटँगा। लेकिन अगर कोई शख़्स गुनाह छोड़ दे मगर दिल में ख्याल हो कि फिर कभी गुनाह करूंगा या शुरुआत से गुनाह छोड़ने का इरादा ही न हो तो ऐसा शख़्स बअज़ औकात (वक़्त) फिर गुनाहोँ में मुब्तला हो जाता है। ऐसा शख़्स अगर्चे वक़्ती तौर पर गुनाहों से रूक जाता है मगर उसे ताइब नहीं कहा जा सकता।

࿐   *दुसरी शर्त :*  येह है कि जिस गुनाह से तौबा कर रहा हो उस दर्जे का गुनाह पहले कहीं उससे सादिर हो चुका हो क्योंकि अगर पहले इससे ऐसा गुनाह सादिर नहीं हुआ सिर्फ आइन्दा के लिये उससे बचता है तो ऐसे शख़्स को ताइब नहीं कहेंगे बल्कि मुत्तकी कहेगे।...✍🏻

           *📬  तौबा, सफ़्हा 6 - 7 📚*


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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 ❝  तौबा  के  शराइत ❞


࿐  मशाएख की तअररीफ़ के मुताबिक तौबा की चार शर्ते हैं।

࿐   *तिसरी शर्त :* येह है कि वोह गुनाह रूतबे में पहले गुनाह की तरह हो न कि सुरत में जैसा कि पुराने बुढ़े ने जवानी के ज़माने में ज़िना या डाका-ज़नी का इर्तेकाब किया हो कि अब वोह बुढ़ापे में तौबा तो कर सकता है क्योंकि तौबा का दरवाज़ा बंद नहीं हुआ हैं मगर अब उसे ज़िना या डाका-ज़नी को छोड़ने का इख्तियार नहीं। क्योंकि अब वोह अमली तौर पर गुनाह नहीं कर सकता। तो चुंकि अब वोह ज़िना या डाका-ज़नी पर क़ादिर नहीं, इसलिये ये नहीं कह सकते कि वोह उन्हें अपने इख्तियार से छोड़ रहा है या उनसे रुक रहा है क्योंकि अब वोह आजिज़ हो चुका है और अब उसे गुनाह पर कुदरत नहीं रही। मगर वोह इस वक़्त भी ज़िना या डाका-ज़नी जैसे दुसरे हराम व मम्नुअ कामों पर क़ादिर है जैसे झूट बोलना, किसी को ज़िना की तोहमत लगाना, किसी की गीबत या चुगली करना वगैरह.....येह सब गुनाह है। अगर्चे हर एक में अपने एअतेबार से फर्क है लेकिन ये गुनाह एक ही रुतबे के शुमार होते हैं। मगर येह गुनाह बिदअत की पैरवी से कम हैं और बिदअत की पैरवी कुफ़्र से कम है।

࿐   *चौथी शर्त :* येह है कि तौबा अल्लाह तआला की तअज़ीम के लिये और उसके दर्दनाक अज़ाब से डर कर हो, किसी दुनियावी ग़र्ज़ या लोगों से डर कर अपनी तअरीफ के लिये या अपनी शोहरत के लिये या जिस्मानी लाग़री कमज़ोरी या मोहताजी और किसी रूकावट की वजह से न हो।

👆🏻 जब तौबा के येह शाराइत पायें जायेंगे तो तौबा मुकम्मल तौर पर होगी और उसे सच्ची तौबा कहा जायेगा।...✍🏻

           *📬  तौबा, सफ़्हा 6 - 7 📚*


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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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              *❝  तौबा  के  मुकद्देमात  ❞*

 
࿐  इन चीज़ों का तौबा से पहले होना ज़रूरी है।

࿐  1-  अपने गुनाहों को बहुत ही बुरा तसव्वुर करें।

࿐  2-   अल्लाह तआला के अज़ाब की शिद्दत और उसके गज़ब की सख़्ती को दिल में हाज़िर करें!

࿐   3-   अपनी कमज़ोरी और गुनाहों के बारे में अपनी बेहयाई को महसूस करे। क्योंकि जो शख़्स सूरज की तेज़ धुप, चौकीदार के थप्पड़, और च्यूंटी के डंक, को बर्दाश्त नहीं कर सकता वोह दोज़ख की शदीद गरमी, जहन्नम के फरिश्तों की मार और इन्तेहाई ज़हरीले सांपों के डंक को कैसे बर्दश्त कर सकता है। दोज़ख में बिच्छू ख़च्चर के बराबर होंगे और वहाँ सांप ऊँट की गर्दन के बराबर होंगे और यह सांप बिच्छू दोज़ख की आग के होंगे। उस वक़्त वोह गुस्से व गज़ब के मकान में रखे होगे.....हम बार बार खुदा के गज़ब और अज़ाब से पनाह मांगते हैं। तुम अगर इस दहशतनाक अज़ाब को याद रखोगे और दिन व रात में किसी वक़्त उनकी याद ताज़ा करते रहोगे तो ज़रूर तुम्हें गुनाहों से ख़ालिस तौबा नसीब हो जायेगा।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 8 📚*


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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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              *❝  तौबा  के  मुकद्देमात  ❞*

 
࿐अल्लाह तआला हर एक को अपने फज़्ल से तौबा की तौफीक दे। अगर तुम तौबा न करने का येह बहाना करो कि हमें अपने नफ़्स पर भरोसा नहीं, शायद तौबा करने के बाद फिर गुनाह से बाज़ रहे या न रहें। और शायद हम तौबा पर क़ायम रहे या न रहे,‌ इसलिये तौबा करने से क्या फ़ायदा। तो इसका जवाब सुन लो कि ऐसा ख़्याल शैतान का सरासर धोका और फ़रेब है क्योंकि तुम्हें कैसे मअलूम कि तौबा करने के बाद तुम से ज़रूर गुनाह हो जायेगा। हो सकता है तौबा करने के फ़ौरन बाद तुम्हे मौत आ जाये और गुनाह करने का मौक़ा न मिले। बाकी येह ख़्याल कि तौबा करने के बाद शायद फ़िर गुनाह हो जाए तो इस ख़्याल का कोई एअतेबार नहीं।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 8 📚*

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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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              *❝  तौबा  के  मुकद्देमात  ❞*

࿐  तुम पर सिर्फ येह लाज़िम है कि तौबा करते वक़्त आइन्दा गुनाह छोड़ देने का पक्का इरादा करे। बाकी इस इरादे पर तुम्हें इस्तेक़ामत देना खुदा का काम है अगर इस इरादे पर खुदा के फज़्ल से तुम क़ायम रहे तो बस यही‌ मक़्सदे असली है। और अगर तुम इस इरादे पर क़ायम न रह सके तो भी तुम्हें एक फ़ायदा ज़रूर मिला कि तुम्हारे गुज़िश्ता गुनाह तो मुआफ हो गये। गुज़िश्ता गुनाहों के अज़ाब से तो तुम्हें निजात मिल गयी और गुज़िश्ता गुनाहों की गंदगी से तुम पाक हो गये। तौबा के बाद अगर तुम से कोई गुनाह हो तो वही तुम्हारे ज़िम्मे है। तो इसलिये सिर्फ इस वस्वसे से तौबा करने से न रूको कि कहीं फिर गुनाह न हो जाये। क्योंकि सच्ची तौबा करने से तुम्हें दो बढ़े फ़ायदो मे से एक फ़ायदा यक़ीनन हो गाया तो हमेशा के लिये तौबतन नसूहा (सच्ची तौबा) मिल जायेगी या गुज़िश्ता गुनाह मुआफ हो जायेंगे। अल्लाह तआला ही तोफीक व हिदायत का मालिक है।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 9 📚*

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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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              *❝  तौबा  के  मुकद्देमात  ❞*

࿐   हज़रत दाता गंज बख़्श रहमतुल्लाहि तआला अलैही फ़रमाते है कि मैंने सुना है कि एक मर्तबा एक शख़्स ने गुनाहों से तौबा की उसके बाद फिर उससे गुनाह सरज़द हो गया। जिससे वोह बहूत शर्मसार हुआ। एक दिन उसने अपने दिल में कहा..... अगर में अब दोबारा तौबा करके राहे सवाब इख़्तियार कर लूं तो मेरा क्या हाल होगा। हातिफ़ ने आवाज़ दी कि तूने हमारी इताअत की हमने उसे क़ुबूल किया, फ़िर तूने बेवफ़ाई की और हमने छोड़ दिया तो हमने तुझे मोहलत दी अब अगर तू तौबा करके हमारी तरफ़ आए तो फ़िर हम तुझे क़ुबूल कर लेंगे।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 9 📚*


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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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              *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   गुनाहों के मुतअल्लिक यह याद रखो कि गुनाहों की नौअियत अलग अलग है। क्योंकि गुनाह तीन किस्म के हैं।

࿐  *पहली :*  येह कि तुमने खुदा के फ़र्ज़ कर्दा अहकाम को अदा न किया हो और उनकी अदायगी तुम्हारे ज़िम्मे हो। जैसे नमाज़ रोज़ा ज़कात और कफ़्फ़ारा वगैरह, तो येह सिर्फ ज़ुबानी तौबा से मुआफ नहीं होंगे बल्कि इनकी कज़ा लाज़िम है।

࿐  *दुसरी :* किस्म के वोह गुनाह जिनकी अब कज़ा तो नहीं हो सकती मगर हो, वोह भी बंदे और खुदा के दरिम्यान.....जैसे कहीं शराब पी हो, नाच गाने की महफिल सजाई हो या सूद खाया हो तो इस किस्म के गुनाहों की मुआफी की सूरत येह है कि गुज़िश्ता गुनाहों पर नादिम और शर्मिदा हो और आईन्दा ऐसे गुनाह न करने का सच्चा पवका इरादा करें।

࿐  *तीसरी :*  किस्म के वोह गुनाह हैं जो तुम्हारे और मखलूक़ के दरमियान हैं। तमाम गुनाहों से ज़्यादा संगीन गुनाह तिसरी किस्म के गुनाह हैं। उनकी किस्में मुख़्तलिफ होती हैं। कुछ वोह हैं जो किसी के माल से तअल्लुक रखते हैं। और बअज़ किसी की ज़ात से इसी तरह बअज़ वोह होते हैं। जिन का तअल्लुक किसी की इज़्ज़त व हुरमत से होता है।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 9 📚*

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         ❝   तौबा   ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   तो जिन का तअल्लुक माल से है उनके लिये ज़रूरी है कि अगर हो सके तो माल वापस कर दे और अगर गुर्बत और तंगदस्ती की वजह से मअज़ूर है तो साहिबे माल से मुअफ करवा कर जाइज़ व हलाल करवाले और अगर साहिबे माल मर चुका हो या यहाँ मौजूद नहीं है तो माल की मिक़दार के मुताबिक कोई चिज़ सदका कर दे। और ये भी मुम्किन न हो तो कसरत से नेक अअमाल करे और अल्लाह तआला के दरबार में गिरया व ज़ारी करे ताकि क़्यामत के दिन खुदा तआला उस साहिबे माल को राज़ी कर दे।

࿐  और वोह गुनाह जिन का तअल्लुक जिस किसी की जान या ज़ात से हो जैसे किसी को क़त्ल किया हो तो उसके बदले किसास देना लाज़िम है या मक़तूल के वारिसों से मुआफ कराना ज़रूरी है और अगर वारिस मौजूद नहीं है तो बारगाहे इलाही में गिरया व ज़ासरी करे और खुदा तआला से मुआफी मांगे ताकि अल्लाह तआला उस मक़तूल को तुम से राज़ी कर दे।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  10 📚*

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         ❝    तौबा   
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

࿐   और वोह गुनाह किसी की इज़्ज़त व आवरू के मुतअल्लिक़ है कि किसी की ग़ीबत की हो, या किसी पर झूटा इल्ज़ाम लगाया हो या किसी को गालियाँ दी हो तो इस क़िस्म के गुनाहों की मुआफी की सूरत येह है कि उसके सामने अपनी ज़्यादती और ख़ता का एअतेराफ़ करे और उस्से माफ़ी मांगे और अगर येह ख़तरा हो की उसके सामने एअतेराफ़ करने से सुलह की बजाये और बात बिगड़ जायेगी तो इस सूरत में भी मुआफ़ी के लिये ख़ुदा की बारगाह में ही ग़िरया व ज़ारी करे ताकि गुआफी हो जाये।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 11 📚*

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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   और किसी की आबरू के मुतअल्लिक़ येह गुनाह हो कि किसी के अहलो अयाल से ख़ियानत की है या कोई और बुरी हरकत की है तो ऐसे गुनाह को न उसके सामने ज़ाहिर कर सकता है और न ही बख़्शवा सकता है तो उसकी गुआफी के लिये भी बारगाहे इलाही में ही ग़िरया व ज़ारी करें। हाँ! अगर फितने का खौफ़ न हो तो उसके सामने ज़ाहिर करके मुआफ करा लिया जाये। ख़ुलासा येह कि अगर तुम ने लोगों को तक्लीफ़ दी हो या उन्हें सताया हो तो उनसे मुआफी मांगकर उन्हें राज़ी करो और अल्लाह तआला की बारगाह में ग़िरया व ज़ारी करो और सदक़ा ख़ैरात करो ताकि क़यामत के दिन अल्लाह तआला तुम्हारे दरमियान रज़ामंदी करा दे।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  11 📚*

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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   तौबा के शराइत जो बयान किये गये हैं। जब तुम उन पर पुरी तरह अमल पैरा हो जाओगे और आईन्दा के लिये अपने दिल को हर किस्म के गुनाहो से पाक रखने का सच्चा वअदा कर लोगे तो तुम्हारे गुज़िश्ता गुनाह मुआफ हो जायेंगे। अब आईन्दा अगर इस वअदे पर क़ायम रहे मगर गुज़िश्ता कज़ा अदा न कर सके। या नाराज़ लोगो को राज़ि न कर सके तो उसका गुनाह तुम्हारे ज़िम्मे रहेगा। बाकी सारे गुनाह बख़्श दिए जाएंगे। लिहाज़ा जो कज़ाएँ बाकी है उन्हें अदा करें और नाराज़ लोगों को राज़ी करलें ताकि अल्लाह के फज़्ल के दरवाज़े तुम पर खुल जाएँ। तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि तौबा की अहमियत बहुत ज़्यादा है और उससे गफ़्लत सख़्त नुक्सान देह है।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 11  📚*


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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   तौबा की अहमियत व ज़रूरत इस वाक़ेअे से ज़ाहिर होती है : जिसे हुज्ज्तल इस्लाम इमामें गज़ाली रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने ज़िक्र किया। आप फ़रमाते हैं कि अबू इस्हाक़ रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं कि मैंने तीस साल तक अल्लाह तआला से सच्ची तौबा नसीब होने की इल्तिज़ा की। तीस साल के बाद मैं अपने दिल में मुतअज्जिब हुआ और दरबारे खुदावन्दी में अर्ज़ किया ऐ मेरे परवरदिगार। मुझे तीस साल हो गये तुझसे सिर्फ़ एक हाजत के लिए इल्तिज़ा करते। लेकिन तुने अब तक वह भी पूरी न की। जब मैं सोया तो ख़्याब में एक शख़्स देखा जो मुझे कह रहा है तू अपनी तीस साल की इबादत पर तअज्जुब करता है तुझे येह मअलूम नहीं कि तु कितनी बड़ी चीज़ का मुतालेबा कर रहा है। तू इस चिज़ का मुतालेबा कर रहा है कि अल्लाह तआला तुझे अपना दोस्त बनाले, क्या तुने अल्लाह तआला का इरशाद नहीं सुना कि,

☝🏻 ࿐  अल्लाह ततआला फ़रमाता है
तर्जुमा :-  बेशक अल्लाह तौबा करने वालों और सुथरा रहने वालोंं को दोस्त रखता है।...✍🏻

 📙 पारा 2, सुरह बकरा, आयत 222

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 12  📚*

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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   इस वाक़ेअे से आप अंदाज़ा लगाएँ कि अबू इस्हाक जैसे आलिमे बा-अमल कामिल बुज़ुर्ग इतनी ग़िरया व ज़ारी करें तो उन्हें येह जवाब मिला, तो इस से मअलूम होता है कि तौबा की कितनी अहमियत है। इसलिये सुफ़ीया फ़रमाते हैं कि अगर तेरे दिल में कभी तौबा का ख़्याल पैदा हो तो फ़ौरन तौबा कर ले क्योंकि ऐसे ख़्याल बार-बार नहीं आया करते जब ख़्याल आया तब तौबा करें। क़्योंकि यह ख़्याल अल्लाह तआला की तरफ से तेरे दिल में डाल दिया गया है आप खुद सोचें कि एक तरफ तीस साल तक रोते रहे तो येह जवाब मिला और यहँ बग़ैर किसी ग़िरया व ज़ारी के ही तौबा का ख़्याल दिल में आ गया तो ऐसे ख़्याल को ज़ाया न करें बल्कि तौबा में जल्दी करें। तौबा में ताख़ीर करना सख़्त नुक्सान देह है। क्योंकि गुनाह से क़सावते क़ल्बी (सख़्त दिली) पैदा होती है, फिर इन्सान रफ्ता-रफ्ता कुफ्र तक जा पहुँचता हैं।

࿐  क्योंकि बअज़ सॉलेहीन ने फ़रमाया है.... बेशक गुनाह करने से दिल सियाह हो जाता है और दिल की सियाही की अलामत येह होती है कि गुनाहों से घबराहट नहीं होती। फरमावरदारी व इताअत के लिये मौक़ा नहीं मिलता। नसीहत से कोई फ़ायदा नहीं होता। ऐ अजीज़! किसी गुनाह को मअमूली ख़्याल न कर और कबीरा (बड़े) गुनाहों पर इसरार करने के बावजूद अपने आप को ताइब गुमान न कर।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 13  📚*

 
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         ❝  तौबा    ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝ गुनाह के अकसाम ❞*

 
࿐ हज़रत इब्नुल हुसैन रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं कि मुझसे एक गुनाह सरज़द हुआ तो इस पर चालीस साल तक रोता रहा। लोगों ने पूछा : ऐ अब्बुल्लाह वोह कौनसा गुनाह था तो आप ने फ़रमाया....एक मर्तबा मेरा एक दोस्त मेरी मुलाकात को आया तो मैं ने उसके लिये मछली पकाई। जब वोह मछली खा चुका तो मैंने उठ कर पड़ोसी की दिवार से उसकी इजाज़त के बग़ैर मिटटी ले कर अपने महेमान के हाथ धुलाए।...✍🏻

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         ❝  तौबा    ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   अल्लाहु अकबर! आज हम से न जाने कैसे-कैसे गुनाह हो जाते हैं लेकिन हमें अहसास तक नहीं होता न जाने हम ने कितनी ख़्यानतें की होंगी ऐसा भी हो सकता है कि हम में से किसी ने अपने ही किसी भाई के माल पर न-हक़ कब्ज़ा कर लिया हो या फिर किसी ने अपने ही भाई की ज़मीन या मकान पर ना-जाइज़ कब्ज़ा कर लिया हो। 

࿐  इस वाक़ेअे से उन्हें इबरत हासिल करनी चाहिए कि सिर्फ मिटटी ली तो चालीस साल तक रोते रहे। यहाँ तो पूरी ज़मीन या मकान पर नाजायज़ कब्ज़ा कर लिया। न जाने हमें कितना रोना चाहिए। खुदा न करें किसी मुसलमान भाई ने अपने किसी भाई की ज़मीन या मकान पर नाजायज़ कब्ज़ा किया हो तो खुदारा बापस कर दे और अल्लाह तआला की बारगाह में गिड़गिड़ाकर मुआफी मांगे और आखिरत के सख़्त अज़ाब से अपने आप को बचाये।...✍🏻 

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  13 📚

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         ❝  तौबा    ❞
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 *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   *ऐ लोगो!*  नफ़्स को गुनाहो पर टोकते रहो, उसका मुहासिबा करते रहो, और तौबा करने में सुस्ती और देर न करो, क्योंकि मौत का वक़्त मअलूम नहीं और दुनिया धोके और फरेब में डाल रहीं है और नफ़्स व शैतान दो ख़तरनाक दुश्मन तुम्हें गुमराह करने की ताक में हैं।

࿐  वोह डर रहे है जो हर वक़्त तौबा व इस्तिगफार में मसरूफ रहते हैं, तो उन का क्या हाल होगा जो सिरे से तौबा ही से गाफिल हैं।...✍🏻 *अल्लाहु अकबर 😰*

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  14 📚*

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         ❝   तौबा   ❞
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  *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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                 *❝  गुनाह  के  अकसाम   ❞*

 
࿐   तौबा करने के बाद अगर तौबा तोड़ डालों और फिर गुनाह शुरूअ करदो तो जल्द तौबा की तरफ लौटो, और नफ़्स को तौबा पर राग़िब करने के लिये येह कहो.... ऐ नफ़्स! अब दोबारा खुलूस से तौबा कर ले, शायद येह तेरी आख़री तौबा हो और इस के बाद इर्तेकाबे गुनाह के बग़ैर ही मर जाये, इसी तरह गुनाह के बाद तौबा करते रहो और जिस तरह तुम ने गुनाह करना दस्तूर बना लिया है, गुनाह के बाद तौबा को भी पेशा बना लो, और गुनाह करके तौबा से आजिज़ न हो जाओ और कभी तौबा से मुहँ न मोड़ो और शैतानी धोके में आकर तौबा से हरगिज़ न रूको, क्योंकि तौबा करना नेक होने की अलामत है।

࿐  नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि तुम में से बेहतर वोह शख़्स है जिससे अगर गुनाह सादिर हो तो बाद में फ़ौरन तौबा करें।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 14  📚*

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         ❝    तौबा  ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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          *❝   तौबा  करने  का  तरीक़ा  ❞*

 
࿐   जब तुम तौबा व इस्तिगफ़ार के ज़रिए अपने गुनाहों को पाक कर लो और आईन्दा के लिए अपने दिल को गुनाहों से दूर रखने का पक्का इरादा कर लो। इस पर ख़ुलूस से तौबा कर लो कि अल्लाह तआला तुम्हारे दिल को तौबा में सच और ख़ालिस पाए। और जहां तक हो सके लोगों को राज़ी कर लो जिन्हें तुमने माली बदनी या और किसी किस्म की तकलीफें पहुंचाईं हो और गुज़िश्ता ज़माने में छूटी हुई नमाजें और रोज़े वगैराह की भी कज़ा कर लो। तो फ़िर तुम गुस्ल करो और पाक कपड़े पहनों और वुज़ु  करके ख़ुशुअ व ख़ुज़ूअ से चार रकअत नमाज़ अदा करो और पेशानी को ऐसी जगह ज़मीन पर रखो जहां तुम्हें अल्लाह के सिवा कोई न देख रहा हो। फिर तुम अपने चहरे पर ख़ाक डालो। और अपने चेहरे को जो तमाम अअज़ा से अअला अज़ू हैं, मिटटी से आलूदा करो। और हालत ये हो जाये कि आँखों से आंसू बह रहे हों। दिल ग़म के दरिया में तैर रहा हो और शिद्दते खौफ की वजह से तुम्हारे रोने की आवाज़ बेसाख़्ता बुलन्द हो रही हो और एक-एक करके तुम्हारे गुनाह, तुम्हारी ख़ताएँ, तुम्हारे ज़ुर्म आँखों के सामने फिर रहे हो। फिर तुम आपने गुनाहों को याद करते हुये अपने नफ़्स को डांटते हुये उस से यूँ कहो।

࿐  ऐ नफ़्स क्या तुझे खुदा से शर्म नहीं आती? या तेरी तौबा का वक़्त करीब नहीं आया? क्या तुझ में कहार व जब्बार के दर्दनाक अज़ाब बर्दाश्त करने की ताकत है? क्या तू अपने ऊपर खुदा को नाराज़ करने ख़्वाहिशमंद है।

࿐  इसी तरह चंद बार अपने गुनाहों को याद करके इन अल्फ़ाज़ को दोहराते रहो और पूरे सोज़ व गुदाज़ से रोओ और ग़िरया व ज़ारी करो  फिर सज्दे से सर उठाओ और अपने मेहरबान खुदा के आगे हाथ फैला दो और यह दुआ करो।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 15  📚*

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         ❝   तौबा   ❞
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  *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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          *❝   तौबा  करने  का  तरीक़ा  ❞*

 
࿐   *मौला!....* तेरा भागा हुआ बंदा तेरे दर पर वापस आ गिरा है। तेरा ना-फ़रमान बंदा सुलह की तरफ़ लौट आया है। और तेरा गुनाहगार बंदा अपने उज़्र को तेरी बारगाह में पेश करने के लिये हाज़िर है। मुझे अपने करम से बख़्श दे और मुझे कुबूल फरमा ले और मुझ पर नज़रे रहमत फरमा। *या इलाही!....* मेरे गुज़िश्ता तमाम गुनाहों को बख़्श दे और बाकी उम्र हर गुनाह से महफूज़ रख तू ही हर भलाई का मालिक है और तू ही हम पर मेहरबान और नरमी फ़रमाने वाला है। ऐ मुश्किलात को हल करने वाले। ऐ ग़मनाक और परेशान हाल लोगों को पनाह देने वाले ऐ वोह क़ादिर ज़ात, जिस की शान येह है कि जब किसी चीज़ का इरादा फ़रमाये तो लफ्ज़ कुन फरमाने से वोह शय वजूद में आ जाती है। हमारा हाल येह है कि कसरते गुनाह ने हम को घेर लिया है। तुही आड़े वक़्त में हमारा ज़कख़ीरा है। मै तुझे ऐसे ही वक़्त के लिये अपना ज़ख़ीरा समझता हूँ तू मुझे मुआफ फरमा दे बेशक तू ही तौबा क़ुबूल फ़रमाने वाला मेहरबान है।..✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  16 📚*


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         ❝  तौबा    ❞
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          *❝   तौबा  करने  का  तरीक़ा  ❞*

 
࿐   फिर जितना ज़्यादा रो सको रोओ और अपनी ज़िल्लत व आजिज़ी का इज़हार करो और जुबान से येह दुआ करो,

࿐  ऐ वोह पाक ज़ात जिसको एक काम दुसरे काम में मश्गूल नहीं रख सकता और न एक तरफ सुनना दुसरे सुनने से वाज़ रख सकता है। ऐ वोह पाक ज़ात जिसको मसाइल की कसरत मुग़ालते में नहीं डाल सकती। और न दुआ में इसरार करने वालों का इसरार उसे दो टुक बात करने में मजबूर कर सकता है, हमें अपनी मुआफी की ठंडक पहूँचा और बख़्शिश की हलावत नसीब फरमा। ऐ सब से बेहतर रहमत करने वाले.... हम पर रहम फरमा। बेशक तू सब कुछ कर सकता है।...✍🏻

 _आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन_

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  17 📚*


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         ❝    तौबा  ❞
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 *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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          *❝   तौबा  करने  का  तरीक़ा  ❞*

 
࿐   नबीए करीम सल्ल्ल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक अराबी के पास से गुज़रे जबकि वोह नमाज़ में दुआ पढ़ रहा था। "ऐ वोह पाक ज़ात जिस को आँखें देख नहीं सकती, जो ख़्याल व गुमान की रसाई से बरतर है और वस्फ बयान करने वाले उसका वस्फ बयान न कर सके और जो हवादिस से मुतगय्यर नहीं होता, और न गर्दिशों से डरता है। वोह पहाड़ो के बोझ से वाक़िफ है। दरख़्तो के पत्तों, बारिश के कतरों से भी वाक़िफ है। हर चीज़ की तअदाद जिस पर रात आती है और दिन तुलूअ होता है, सब उस पर ज़ाहिर हैं कोई आस्मान और कोई ज़मीन उस से छुपे हुए नहीं, कोई समुन्दर ऐसा नहीं जिस से खुदा वाक़िफ न हो कि उस की गहराईयों मे क्या है और कोई पहाड़ ऐसा नहीं, जिसके सख़्त पत्थरों के राज़ों से खुदा वाक़िफ न हो। ऐ अल्लाह! मेरी बेहतरीन उम्र को मेरी आख़री उम्र बना। मेरे बेहतरीन अमल को मेरा आख़री अमल बना और मेरे बेहतरीन दिन को वोह दिन बना जिस दिन मैं तुझ से मुलाकात करूँ।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  18 📚*


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         ❝   तौबा   ❞
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  *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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          *❝   तौबा  करने  का  तरीक़ा  ❞*

 
࿐   हुज़ूर नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब येह दुआ सुनी तो एक शख़्स को मुतरियन कर दिया कि जब येह अराबी नमाज़ से फारिग हो जाये तो इसको हमारे पास लाओ। चुनांचे जब उसने नमाज़ मुकम्मल कर ली तो उसको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश किया गया। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास किसी काम से लाया गया सोना बतौर हदया मौजूद था। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने वो सोना उस अराबी को अता कर दिया और फ़रमाया कि ऐ‌ अराबी! तू किस कबीले से तअल्लुक़ रखता है? अराबी ने जवाब दिया कि क़बीलए बनू आमिर बिन सअ़सअ़ से नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया.... क्या तुझे मअलूम है, मैंने येह सोना तुझे क्यों अता किया? उस ने जवाब दिया कि सिलह रहमी की बुनयाद पर दिया है या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम|  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि सिलह रहमी भी एक हक़ है लेकिन मैंने येह सोना इसलिये दिया है कि तूने अल्लाह जल्ल जलालहू की सना बेहतर अंदाज़ में की है।

࿐  इन तमाम दुआओं को पढ़ने के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूद व सलाम भेजो और तमाम मोमिनीन व मोमिनात के लिये दुआए मगफिरत करो और अल्लाह जल्ल जलालहू की तरफ रुजूअ करो।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह -  18 📚*


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         ❝  तौबा    ❞
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 *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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          *❝   तौबा  करने  का  तरीक़ा  ❞*

 
࿐   जब तुम दरबारे खुदावंदी में ग़िरया व ज़ारी के साथ येह तमाम दुआएँ और तौबा व इस्तिगफार वगैरह पूरी तरह कर लो तो अल्लाह की ज़ात से उमीद है कि वोह तुम्हें ज़रूर तौबतुन-नसूहा (सच्ची तौबा) अता फरमायेगा। और गुनाहों से ऐसे पाक हो जायेंगे जैसे आज ही पैदा हुये हो। अब तुम्हें अल्लाह तआला दोस्त बनायेगा। और तुम्हे बहूत अज्रो सवाब अता करेगा और तुम पर इतनी रहमत व बरकत नाज़िल फ़रमायेगा, जिसका ब्यान नहीं हो सकता। 

࿐  अब तुम्हे हक़ीक़ी अमन व ख़ुलासी हासिल हो गयी और अल्लाह तआला के गज़ब और गुनाहों की सज़ा से निजात पा गये दुनिया व आखिरत में गुनाहों की आफ़त से छूट गये और अल्लाह तआला ही अपने फज़्ल व एहसान से हिदायत का मालिक है।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 18  📚*


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         ❝  तौबा    ❞
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  *❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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*❝  ज़िन्दगी की आख़री सांस तक तौबा कुबूल होगी ❞*

 
࿐   जब अल्लाह तआला ने इब्लीस को मलअून करार दिया तो उसने क़यामत तक के लिये मोहलत मांगी तो अल्लाह तआला ने उसे मोहलत दे दी तो कहने लगा मुझे तेरे इज़्ज़त व जलाल की कसम! जब तक इन्सान की ज़िन्दगी का रिश्ता क़ायम रहेगा मैं उसे गुनाहों पर उकसाता रहूंगा। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया ..... मुझे अपने इज़्ज़त व जलाल की कसम ! जब तक बंदे के हलक़ में आख़री सांस है मैं उस की तौबा क़ुबूल करता रहूंगा।...✍🏻

          *📬  तौबा, सफ़्ह - 18  📚*

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         ❝  तौबा    ❞
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*❝ ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो ❞* 
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      *❝ तौबा का दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता ❞*

 
࿐  हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद से एक शख़्स ने दरयाफ़्त किया मै गुनाह करके शर्मिन्दा हूँ क्या मेरे लिये तौबा है? आप ने मुहँ फेर लिया जब दोबारा उस शख़्स की तरफ देखा तो आपकी आँखों में आंसू बह रहे थे फ़रमाया जन्नत के आठ दरवाज़े हैं कमी खोले भी जाते हैं और बन्द भी किये जाते हैं सिवाए तौबा के दरवाज़े के कि वोह कभी बन्द नहीं होता, अमल करता रह और रब की रहमत से ना-उम्मीद न हो।

࿐   तौबा का दरवाज़ा सुबह व शाम हर वक़्त खुला हुआ है हमें चाहिये कि आगे बढ़कर अपने गुनाहों से सच्ची तौबा करें अल्लाह तआला हमें सच्ची तौबा करने की तौफीक़ अता फरमायें।...✍🏻

     *आमीन सुम्मा आमीन या रब्बुल आलमीन*

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