🅿🄾🅂🅃 ➪ 01
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आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*❝ या रसूलल्लाह ﷺ ❞*
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࿐ बद किस्मती से हमारे दौर में सुल्हे कुल्लियत का मर्ज़ बढ़ता जा रहा है, मज़हबे बातिला से मेल जोल कोई म'शीरती समझकर या कोई और वजाह से ज़रुरी समाझा रहा है। आगर कोइ बंदा खुदा ए दुशमने अहमद पे शिद्दत करता है तो अपनो की तरफ से मुखालिफत ओ मुखासिमत का ना ख़त्म होने वाला सिलसिला शुरू हो जाता है, महज़ रज़ा ए इलाही के लिए गुस्ताखो, बेअदबों से तअल्लुक़ात ख़त्म करना मुश्किल तो ज़रूर है मगर इसके दीनी, दुनियावी फायदे बहुत ज़्यादा है और आखिरत मे कुर्ब ए हबीब, राऊफ उर रहीम नसीब होंगे।
࿐ इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी अलैहिर्रह़मा फ़रमाते हैं :
*उन्हें जाना उन्हें माना न रखा ग़ैरो से काम*
*लिल्लाहिल हम्द मैं दुनिया से मुसलमान गया*
࿐ गुस्ताखों बेअदबों और बदमज़हबों से हर तरह का रिश्ता ओ नाता तोड़ना दौर ए हाज़िर में खुद को आग की भट्टी में डालना है इसलिए के हुकूमत की कुर्सी खतरे में पढ़ जाती है इसे मजबूत रखने के लिए बहुत बड़े जुब्बा ओ दस्तार वाले मौलवी पीर नाम निहाद मज़हबी स्कॉलर हाथ मिलाने पढ़ते हैं और फिर बदमज़हबों दुश्मनाने रसूलुल्लाह से बहुत ज़्यादा वाबस्ता होते हैं लेकिन मर्दाने खुदा ग़ैरत का दामन हाथ से नहीं छोड़ते अपने तौर पर जितना हो सकता है इल्मी कारवाई में लगे रहते हैं।
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 3-4 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 02
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ ☝🏻 कुर्आन मज़ीद में अल्लाह ताअला फ़रमाता है
*तर्जुमा :* मुसलमान काफ़िरों को अपना दोस्त ना बनाले मुसलमानों के सिवा और जो ऐसा करेगा उसे अल्लाह ताअला से कुछ इलाक़ा (वास्ता) ना रहा मगर ये के तुम इनसे कुछ डरो।
*📙 पारा 3, सूरह अल-इमरान, आयत 28*
࿐ *शान ए नुज़ूल :* हज़रत उबैदा इब्ने सामत ने जंगे अहज़ाब के दिन हुज़ूर से अर्ज़ किया के पाँच सौ (500) यहूदी मेरे हमदर्द और हलीफ हैं मैं चाहता हूं कि दुश्मन के मुकाबले में इनसे मदद हासिल करूं इस पर ये आयते करीमा नाज़िल हुई और अल्लाह ताअला और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुश्मनों को दोस्त व मददगार बनाने की मुमानिअत फ़रमाई गई और उन्हें राज़दार बनाना और उनसे मुहब्बत करना नाजायज़ करार दिया गया है।
࿐ हां अगर जान व माल के नुकसान का अंदेशा हो तो ऐसे वक़्त में सिर्फ ज़ाहिरी बरताओ करना जायज़ है।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 3-4 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 03
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ अगर गुस्ताखों और बेअदबों को साथ मिलाकर कुर्सी मजबूत करना और अपनी वाह वाह कराना मक़सूद हो तो इक़तेदार का नशा तो पूरा हो जाएगा मगर दुनिया में ही ऐसा अन्जामे बद होगा कि इबरत का निशान बनना पड़ेगा जबकि आख़िरत का अज़ाब अलग है सबको सबको साथ मिलाकर चलने वाले कुरआने पाक के इस हुक़्म से सबक हासिल करें।
࿐ अल्लाह तआला फ़रमाता है
*तर्जुमा :* ऐ इमान वालो अपने बाप और अपने भाईयों को दोस्त ने समझो अगर वो इमान पर कुफ्र पसन्द करें और तुम में जो कोई इनसे दोस्ती करेगा तो वही ज़ालिम है।
*📙 पारा 10, सूरह अल-तौबा, आयत 23*
࿐ *शान ए नुज़ूल :* हुआ यूं के जब मुसलमानों को काफ़िरों से क़ता (तर्क करना) ताल्लुक़ करने का हुक़्म दिया गया तो कुछ लोगों ने कहा कि ये कैसे हो सकता है के आदमी अपने बाप भाई और रिश्तेदार वगैराह से ताल्लुक़ खत्म करदे तो इस पर ये आयते करीमा नाज़िल हुई और बताया के काफ़िरों से दोस्ती व मुहब्बत जायज़ नहीं चांहे इनसे कोई भी रिश्ता हो।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 5 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 04
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ आगे अल्लाह ताअला और फ़रमाता है
*तर्जुमा :* तुम फ़रमाओ अगर तुम्हारे बाप तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और औरतें और तुम्हारा कुम्बा और तुम्हारी कमाई का माल और वो सौदा जिसके नुकसान का तुम्हे डर है और पसंद का मकान ये चीज़ें अल्लाह और इसके रसूल और इसकी राह में लड़ने से ज़्यादा प्यारी हों तो रास्ता देखो यहाँ तक के अल्लाह अपना हुक़्म लाए और अल्लाह फासिक़ों को राह नहीं देता।
*📙 पारा 10, सूरह अल-तौबा, आयत 24*
࿐ इस आयते करीमा से साबित हुआ के अपने दीनो इमान को बचाने के लिए दुनिया की मशक्कत बर्दाश्त करना मुसलमानों पर लाज़िम है।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 6 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 05
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *इनामात की बारिश :* गुस्ताखों बेअदबों बे ईमानों से रज़ा ए इलाही की खातिर रिश्ता तोड़ने वालों पर इनामात की बारिश होती है अल्लाह ताअला इन्हें अपनी ने'मतों की नवीद इरशाद फ़रमाता है चुनान्चे अल्लाह ताअला का फ़रमान पढ़ें और गुस्ताखों से बेज़ारी कीजिए।
࿐ अल्लाह तआला फ़रमाता है
*तर्जुमा :* तुम न पाओगे उन लोगों को जो यक़ीन रखते हैं अल्लाह और पिछले दिन पर के दोस्ती करे उनसे जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल से मुखालिफत की अगर्चे वो इनके बाप या बेटे या भाई या कुम्बे वाले हों ये हैं जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान नक़्श फरमा दिया और अपनी तरफ की रूह से उनकी मदद की और इन्हें बागों में ले जाएगा जिनके नीचे नहरें बहें इनमे हमेशा रहें अल्लाह उनसे राज़ी और वो अल्लाह से राज़ी, ये अल्लाह की जमाअत है सुनता है अल्लाह ही की जमाअत कामयाब है।...✍🏻
📚 पारा 28, सूरह अल-मुजादिला, आयत 22
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह - 7 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 06
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *शान ए नुज़ूल :* हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़े अकबर ने अपने वालिद को थप्पड़ मारा, हज़रत इमाम सुयूती ने लबाब अल नुक़ूल में फ़रमाया कि ये आयत सैय्यिदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ के हक़ में नाज़िल हुई जब उन्होंने अपने बाप से हुज़ूर की गुस्ताखी का कलमा सुना तो थप्पड़ मारा।
࿐ हज़रत अल्लामा इस्माईल हक़्क़ी हनफ़ी ने रूह-उल-बयान में इसी आयत के तहत लिखा के थप्पड़ इतना ज़ोर से मारा के वो ज़मीन पर गिर पड़े।...✍🏻
📚 रूह-उल-बयान, सूरह अल-मुजादिला, जिल्द 9, सफ़ह 335, दर ए हया अल तिरास अल अरबी
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 8 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 07
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *सवाल :* इस पर एतराज़ होता है कि ये आयत मदनी है और वाक़्या मक्का का मालूम होता है।
࿐ जवाब:- साहिबे रूह-उल-बयान ने जवाब दिया के सूरह का पहला अशरा मदीना है बाकी मक्किया है।
࿐ इन्तेबाह:- इस आयत में इन हज़रात के लिए दर्से इबरत है के दीनी मुआमला मिलखुसूस हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुस्ताखों और बेअदबियों के बारे में बे गैरती का मुज़ाहिरा करते हैं।
࿐ साहिबे रूह-उल-बयान ये तमाम वाक़यात लिख कर आखिर में लिखते हैं
तर्जुमा:- ये सब कुछ ग़ैरत और दीन की मजबूती की वजह से था
࿐ आखिर में फ़रमाने नबी भी सुनलें, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ग़ैरत इमान से है और मकसद ए बिरारी (भाई चारगी या दोस्ती) मुनाफिकत है जिसे ग़ैरत नहीं इसे इमान नहीं।...✍🏻
📚 तफसीर रूह-उल-बयान, सूरह अल-मुजादिला, जिल्द 9, सफ़ह 335
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 8-9 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 08
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हकीक़त ये है कि हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु ताअला अलैहि वसल्लम के हर सहाबी आपके इश्क़ में सरशार थे और फिर इनके बाद ता'हाल ऐसे ग्यूर आशिक़ों की कोई कमी नहीं हर ज़माने में हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का उम्मती आपके इश्क़ में यूं अर्ज़ करते हैं।
*ख़ाक हो जाए अदु जलकर मगर हम तो रज़ा*
*दम में जब तक दम है ज़िक्र उनका सुनाते जाऐंगे*
࿐ इन सब बातों से मालूम हुआ के मोमिन की ये शान ही नहीं और इसका इमान ये गवारा ही नहीं कर सकता के अल्लाह और इसके प्यारे रसूल के दुश्मनों बेअदबों बदमज़हबों और इनकी शान में गुस्ताखी और बेअदबी करने वालों से मुहब्बत करे और ख़्वाह वो गुस्ताख इस मोमिन का बाप दादा ही क्यों न हो और जिनमे ये सिफत पाई जाएगी अल्लाह तआला इसे साथ नेअमतों से नवाज़ेगा।
࿐ अल्लाह तआला इमान को दिल में नक़्श कर देगा इसमे इमान पर ख़ातमा की बशारत है क्योंकि अल्लाह तआला का लिखा हुआ मिटा नहीं है, अल्लाह ताअला रूह -उल-कुद्दूस से मदद फ़रमाएगा, हमेशा के लिए ऐसी जन्नतों में जाएगा जिसके नीचे नहरें ज़ारी हैं, और अल्लाह वाला हो जाएगा, मुंह मांगी मुरादें पाएगा, अल्लाह तआला इससे राज़ी होगा और बन्दे के लिए अल्लाह की रज़ा बस है, अफसोस आज कल के मुसलमान कहलाने वाले अपने मुरतद और बे दीन रिश्तेदारों को और दोस्तों से क़ता ताल्लुक करने से भी मजबूरी ज़ाहिर करते हैं।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 10-11 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 09
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ यहूदों हुनूद (नसारा) तुम्हारे दोस्त नहीं, आज कल तो इस्लाम यहूद नहूद से दोस्ती रस्मों राब्ता बड़ाने के लिए ग़लत तवीलात की जा रही हैं जबकि अल्लाह तआला ने वाज़ेह तौर फ़रमाया के वो तुम्हारे दोस्त नहीं हो सकते।
࿐ तर्जुमा:- ऐ इमान वालों यहूदों नसारा को दोस्त न बनाओ वो आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं और तुम में से जो कोई उनसे दोस्ती रखेगा तो वो उन्हीं में से है बेशक अल्लाह बे इन्साफों को राह नहीं देता।
📙 पारा 6, सूरह अल-मायदा, आयत 51
࿐ *शान ए नुज़ूल :* हदीस:- जलीलुल क़द्र सहाबी-ए-रसूल हज़रत उबैदा बिन सा'मत ने रईसुल मुनाफीक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबई से फ़रमाया के यहूद में मेरे बहुत दोस्त हैं जो बड़ी शानों शौकत वाले हैं लेकिन अब मैं उनकी दोस्ती से बेज़ार हूं अल्लाह और रसूल के सिवा मेरे दिल में किसी की मुहब्बत की गुंजाइश नहीं इस पर अब्दुल्लाह बिन उबई ने कहा के मैं यहूद की दोस्ती ख़त्म नहीं कर सकता इसलिए कि मुझे पेश आने वाले हादसाथ का अंदेशा है मुझे उनके साथ रस्मों राह रखनी ज़रूरी है ताकि वक़्त आने पर वो हमारी मदद करें तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन उबई से फ़रमाया के यहूद की दोस्ती का दम भरना तेरा काम है उबैदा का ये काम नहीं इस पर अल्लाह ताअला ने फ़रमाया के यहूदों नसारा से मुहब्बतों दोस्ती क़ायम रखना मुसलमानों की शान नहीं।
📙 तफसीर सादी, जिल्द 1
࿐ ग़ौरो फिक़्र करने की बात है अफसोस आज भी लोग इसी अब्दुल्लाह बिन उबई की अज़्र पेश करते हैं की अगर हम बे दीनों बदमज़हबों गुस्ताखों बेअदबों से दोस्ती व मुहब्बत न रखें और उनसे नफरत करें तो हमारे बहुत से काम रुक जाऐंगे मगर ये अज़्र उनके नफ़्स का धोका है खबरदार ऐसे बहरुपियों से दूर रहें ये दुनिया व आखिरत में नुकसान का बाइस हैं।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 12-13 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 10
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हज़रत सैय्यिदना उमर फारूक़े आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने खूब जवाब दिया
हदीस:- अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर फारूक़े आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रत मूसा असारी से फ़रमाया कि तुमने अपना मुंशी नसरानी रख लिया है हालांकि तुमको उससे कोई वास्ता नहीं होना चाहिए क्या तुमने ये आयत नहीं सुनी।
࿐ तर्जुमा:- ऐ इमान वालों यहूदों नसारा को दोस्त न बनाओ वो आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं और तुम में से जो कोई उनसे दोस्ती रखेगा तो वो उन्हीं में से है बेशक अल्लाह बे इनसाफों को राह नहीं देता।
📚 पारा 6, सूरह अल-मायदा, आयत 51
࿐ हज़रत मूसा असारी ने अर्ज़ किया नसरानी का दीन उसके साथ है मुझे तो उसके लिखने पढ़ने से गर्ज़ है अमीरुल मोमिनीन ने फ़रमाया के अल्लाह ने इन्हें जलील किया तुम इन्हें इज़्ज़त न दो अल्लाह ने इन्हें दूर किया तुम इन्हें करीब ने करो हज़रत मूसा असारी ने अर्ज़ किया के इसके बसरा की हुक़ूमत का काम चलाना दुश्वार है मैंने मजबूरन इसको रख लिया है क्योंकि इस काबलियत का आदमी मुसलमानों में नहीं मिलता इस पर अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक़े आज़म ने फ़रमाया के अगर नसरानी मर जाए तो क्या करोगे वो अब कर लो और उस दुशमने इस्लाम से काम लेकर उसकी इज़्ज़त हरगिज़ न बड़ाओ।
📚 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान
࿐ कुफ्फार से दोस्ती व मुहब्बत चूंकि मुरतद और बे दीन होने के सबब है इसलिए उसकी मुमानिअत के बाद फ़रमाया अब भी बाज़ लोग बदमज़हब को अपने कारोबार में मुंशी मुख़्तर रख कर यही करते हैं उन्हें अमीरुल मोमिनीन के जवाब पर ग़ौर करना चाहिए और अपनी आखिरत कामयाब करनी चाहिए।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 14-15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 11
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ दौरे हाज़िर में जो ओलमा हक़ पर हैं और अल्लाह ताअला की रज़ा हासिल करने के लिए बदमज़हब देवबंदी और वहाबी व सुल्हे कुल्लियत का हमा वक़्त रद करते रहते हैं उन ओलमाऐ हक़ के ताल्लुक से अल्लाह तआला कुरआन मज़ीद में फ़रमाता है।
࿐ तर्जुमा:- ऐ इमान वालो तुम में जो कोई दीन से फिरेगा (यानी मुरतद हो जाएगा) तो अनकरीब अल्लाह ऐसे लोग लाएगा के वो अल्लाह के प्यारे और अल्लाह इनका प्यारा मुसलमानों पर नरम और काफ़िरों पर सख़्त अल्लाह की राह में लड़ेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत का अंदेशा न करेंगे ये अल्लाह का फज़्ल है जिसे चाहे दे और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है।
📚 पारा 6, सूरह अल-मायदा, आयत 54
_ज़िन्दाबाद ओलमाऐ हक़_
࿐ अल्लाह तआला ने इस आयते करीमा में बाज़ लोगों को मुरतद होने की खबर दी और साथ ही ये भी फरमा दिया कि कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो अल्लाह के महबूब होंगे और अल्लाह इनका महबूब होगा और इनकी पहचान ये होगी कि वो मुसलमानों के लिए नरम होंगे लेकिन काफ़िरों और मुरतदों के लिए सख़्त रहेंगे वो अल्लाह की राह में हथियार क़लम और ज़ुबान से लड़ेंगे मगर दुनियादार इन्हें फसादी और झगड़ालू समझेंगे गालियां देंगे और बुरा भला कहेंगे लेकिन इन्हें इसका कोई गम न होगा वो बिला ख़ौफ कलामे हक़ को फैलाने की पासदारी ही करते रहेंगे।
*नाॅट:-* मौजूदा ज़माना में ये अलामातें सिर्फ वही ओलमा में हैं जो बदमज़हब का खुल्लम खुल्ला रद करते हैं और लोगों की मलामत और लान तान को खातिर में नहीं लाते और दौरे हाज़िर में तमाम बदमज़हब से देवबंदी और वहाबी ज़्यादा खतरनाक हैं यही लोग हर तरह का भेस बदल कर अवाम को बहकाते हैं इनको अन्दर से देखा जाए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बदतरीन दुश्मनी का सबूत इनकी तहरीरें हैं और साहेबाने इल्मो फज़्ल हज़रात इन तहरीरों को खूब जानते हैं तफसीलात के लिए *सैय्यदी इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी अलैहिर्रह़मा* की तसनीफ मुबारका का मुतालबा करें।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह -15 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 12
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ गुस्ताख ए रसूल वल्द अल जना : अल्लाह तआला ने अपने महबूब के मुतअल्लिक़ मजनून (पागल) कहने वाले का यूं मुंह काला फ़रमाया सुरह अल क़लम की इब्तादाई आयत को मुलाहिज़ा करिये।
࿐ तर्जुमा:- और हर ऐसे की बात ना सुन्ना जो बड़ा कसमें खाने वाला ज़लील, बहुत ताने देने वाला, बहुत इधर की उधर की लगाता फिरने वाला, भलाई से बड़ा रोकने वाला, हद से बढ़ने वाला, गुनाहगार दराशत खो, इस पर तुर्रा ये के इसकी असल में ख़ता।
📚 पारा 29, सुरह अल-क़लम, आयत 10- 13
࿐ *शान ए नुज़ूल ;* इन आयत का शान ए नुज़ूल ये है के वालीद बिन मुघाएरा ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी की आपको मजनून (पागल) कहा जिससे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दुख हुआ तो अल्लाह तआला ने चंद आयते मुबारका नज़िल फ़रमाकर अपने महबूब को तसल्ली आे तशफ़्फ़ी दी और आयत मज़कूरा बाला में इस गुस्ताख के नौ 9 एबो को बयान फ़रमाया हत्ता की ये भी ज़ाहिर कर दिया के इसकी असल वल्द उल हराम है, जब ये आयत नाज़िल हुई तो वालीद बिन मुघाएरा ने अपनी मां से जाकर कहा कि मुहम्मद ने मेरे ताल्लुक दस बातें बयान की हैं इनमें 9 को तो मैं जानता हूं लेकिन दस्वी बात यानी मेरी असल में ख़ता होना तुझी को मालूम होगा तो मुझे सच बता दे वरना मैं तेरी गर्दन मार दूंगा इसकी मां ने जवाब दिया कि हां तेरा बाप ना मर्द था मुझे अंदेशा हुआ के वो मर जाएगा तो इसका माल दूसरे लोग ले जाएंगे तो मैंने एक चरवाहे को बुला लिया और तू उसी के नुतफ़े से है।
📙 तफ़सीर सावी, जिल्द 4
࿐ *किसी को बुरा ना कहो :* ये बीमारी मुसलमानों में फैलती जा रही है के हम जैसे ग़रीब अगर वहाबियों देवबंदियों वगैराह की कुफ़्रिया इबारात अवाम आे ख़ावास को दिखाएं उनकी गुस्ताखियां जो उनकी किताबों में मुसलसल साल ओ साल से छप कर आम तक्सीम हो रही हैं तो हमें शिद्दत पसंद का ताना दिया जाता है और अपने भी शख़्त कहते हैं मगर हमें कुछ अफ़सोस नहीं होता क्योंकि प्यारे आका आे मौला हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी करने वाले को बुरा भला कहना और उसके ऐबो को खुल्लम खुल्ला बयान करना सुन्नत ए इलाहिया है।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 17-19 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 13
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ गुस्ताख़ कौन : अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरआन ए मज़ीद फुरकाने रसीद में इरशाद फ़रमाता है
तर्जुमा:- अल्लाह की कसम खाते हैं कि उन्होंने ना कहा और बेशक ज़रूर उन्होंने कुफ़्र की बात कही और इस्लाम में आकर काफ़िर हो गए।
📙 पारा 10, सुरह अल तौबा, आयत 74
࿐ *शान ए नुज़ूल :* इब्ने जरीर व तबरानी व अबु अल शैख़ रईस उल मुफस्सिरीन हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम एक दरख़्त के साए में आराम फरमा रहे थे तो इरशाद फ़रमाया अनकरीब एक ऐसा शख़्स आएगा जो तुम्हे शैतान की आंखों से देखेगा वो आएगा तो उससे बात हरगिज़ ना करना थोड़ी देर बाद एक कुंजी आंख वाला सामने से गुज़रा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने उसे बुला कर फ़रमाया कि तू और तेरे साथी किस बात पर मेरी शान में गुस्ताख़ी का लफ़्ज़ बोलते हैं।
࿐ वो गया और तमाम साथियों को बुला लाया सबने आकर कस्में खाईं के हमने कोई कलमा आपकी शान में बेअदबी का नहीं कहा है उस पर अल्लाह ताला ने ये आयत ए करीमा नज़िल फ़रमाई कि उन्होंने गुस्ताख़ी नहीं की है और बेशक वो ज़रूर कुफ़्र का लफ़्ज़ बोलते हैं और रसूल अल्लाह की शान में बेअदबी करके इस्लाम के बाद काफ़िर हो गए।
࿐ मालूम हुआ के हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी और बेअदबी का लफ़्ज़ बोलने वाला काफ़िर है और ऐसे शख़्स को काफ़िर कहना सुन्नत ए इलाही है।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 19-20 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 14
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ और आगे पढ़ें अल्लाह तबारक व तआला क़ुरआन ए मुक़द्दस में इरशाद फ़रमाता है।
तर्जुमा:- और ए मेहबूब अगर तुम उनसे पूछो तो कहेंगे कि हम तो यूं ही हंसी खेल में थे, तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह और उसकी आयतों और उसके रसूल से हंसते हो।
📚 पारा 10, सुरह अल तौबा, आयत 65
࿐ *शान ए नुज़ूल :* इब्ने अबी शायबा व इब्ने अल मुंज़र और इब्ने अबी हातिम व अबु अल शैख़ इमाम मुजाहिद शागिर्द ख़ास सैय्यिदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत करते हैं कि किसी शख़्स की ऊंटनी गुम हो गई थी वो इसको तलाश कर रहा था तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि ऊंटनी फलां जंगल में फलां जगह है।
࿐ इस पर मुनाफ़िक़ ने कहा के मुहम्मद बताते हैं कि ऊंटनी फलां जंगल में है हांलाके इनको गैब की क्या ख़बर? हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने इस मुनाफ़िक़ को बुला कर दरयाफ़्त किया तो उसने कहा हम तो ऐसे ही हंसी मज़ाक कर रहे थे तो अल्लाह तआला ने ये आयत ए करीमा नाज़िल फ़रमाई।
तर्जुमा:- अल्लाह और रसूल से ठिट्टा (हंसी) करते हो बहाने ना बनाओ तुम मुसलमान कहला कर इस लफ़्ज़ के बोलने से काफ़िर हो गए।...✍🏻
📚 तफ़्सीर इमाम इब्ने जरीर मुताबा मिस्र, जिल्द 2, तफ़्सीर दुर्रे मंसूर जलाल उद्दीन सुयूती
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 21 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ मालूम हुआ कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के इल्मे ग़ैब के मुतअल्लिक़ तान करना और आपके इल्म का इन्कार करना और आपके बारे में ये लफ़्ज़ बोलना कि इनको ग़ैब की क्या ख़बर ये लिखना जैसा की तक्वियातुल ईमान में लिखा है के रसूल को ग़ैब की क्या ख़बर? कुफ्र है।
࿐ अब भी आप इस आयत ए करीमा के पेश नज़र तज्ज़िया करलें कौन है जो मेंबरों पर बैठ कर इल्म ए मुस्तफा को मौज़ू बहस बनाते हैं कभी सैय्यदा उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रादियल्लाहु तआला अन्हु पर तोहमत वाली बात हदीस पड़ कर इल्मे ग़ैब रसूल का इन्कार करे कभी ज़ाती इल्म वाली आयत पड़ कर सादा लुह मुसलानों यानी भोले मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश करे ये तराज़ू आपके हाथ में है फ़ैसला करें कि कौन इल्म की बात करता है और कौन ला इल्मी साबित करने के लिए ज़ोर लगाता है फ़ैसला आपके हाथ में है।
_ऐसे अल्फ़ाज़ भी ना बोलो जिससे गुस्ताख़ों को मौका मिले_
࿐ अल्लाह तआला अपने महबूब ए करीम की बारगाह का इस हद तक अदब सिखाता है कि सहाबा किराम को गुफ्तगू करने के सलिक़े फ़रमाए जा रहे हैं।
तर्जुमा:- ए ईमान वालो राइना ना कहो और यूं अर्ज़ करो के हुज़ूर हम पर नज़र रखें और पहले ही से बग़ौर सुनो और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है।
📚 पारा 1, सूरह अल-बक़रा, आयत 104
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 22 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *शान ए नुज़ूल :* जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सहाबा ए किराम को कुछ वाज़ ओ नसीहत फ़रमाते तो सहाबा ए किराम दरमियान कलाम में कभी कभी अर्ज़ करते या रसूल अल्लाह यानी या रसूल अल्लाह हमारी रिआयत फ़रमाईये यानी अपनी गुफ्तगू को दुबारा फरमा दीजिए ताकि हम लोग अच्छी तरह समझलें और यहूद की लुघात में लफ़्ज़ बेअदबी के माईने रखता था यहूदियों ने इस लफ़्ज़ को गुस्ताख़ी की नियत से कहना शुरू कर दिया।
࿐ हज़रत साद बिन माज़ यहूदियों की ज़ुबान जानते थे एक दिन ये कलिमा आपने इनकी ज़ुबान से सुन कर फ़रमाया कि ए दुश्मनाने खुदा तुम पर अल्लाह की लानत हो अगर अब मैंने किसी की ज़ुबान से ये लफ़्ज़ सुना तो इनकी गर्दन मार दूंगा, यहूदियों ने कहा कि आप तो हम पर नाराज़ होते हैं हांलाकि मुसलमान भी यही लफ़्ज़ बोलते हैं यहूदियों के इस जवाब पर आप रन्जीदा होकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो ही रहे थे कि आयत ए करीमा नाज़िल हुई जिसमे कहने से लोगों को रोक दिया और इस माइने का दूसरा लफ़्ज़ कहने का हुक्म हुआ।
📚 तफ़्सीर सावी, जिल्द 1
࿐ साबित हुआ के नबी ए करीम रहमत ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ताज़ीम ओ तौक़ीर करना और इनकी बारगाह ए नाज़ में अदब के कलीमात बोलना फ़र्ज़ है और जिस लफ़्ज़ में बेअदबी का शायबा हो वो हरगिज़ ज़ुबान पर नहीं ला सकते, और इस बात की तरफ इशारा है के सैय्यदे उल अम्बिया महबूब ए किब्रिया सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी और बेअदबी करने वाला काफ़िर है चाहे वो सुबाह ओ शाम कलमा ए तय्यबा की रट क्यों ना लगाता हो।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 23-25 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है
तर्जुमा:- क्या तुमने ना देखा जिनका दावा है कि वो ईमान लाए इस पर जो तुम्हारी तरफ उतरा इस पर जो तुमसे पहले उतरा फिर चाहते हैं कि शैतान को अपना पंच बनाएं और उनका हुक्म ये था कि इसे असलन ना माने और इब्लीस ये चाहता था कि इन्हें दूर बहका दें और जब उनसे ये कहा जाए के अल्लाह की उतारी हुई किताब और रसूल की तरफ़ आओ तो तुम देखोगे कि मुनाफ़िक़ तुमसे मुंह मोड़ कर फ़िर जाते हैं।
📚 पारा 5, सूरह अल-निशा, आयत 60-61
࿐ *शान ए नुज़ूल :* बशर नामी एक मुनफ़िक का एक यहूदी से झगड़ा हो गया यहूदी ने कहा चलो सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से तय करा लें, मुनफ़िक़ ने ख़्याल किया के हुज़ूर तो बे रिअयाथ महज़ हक़ फ़ैसला देंगे इसका मतलब हासिल ना होगा इसलिए इसने बावजूद मदयी ईमान होने के ये कहा कि काब बिन अशरफ़ यहूदी को पंच बनाओ (क़ुरआन ए करीम में ताघोट से इस काब बिन अशरफ़ के पास फ़ैसला ले जाना मुराद है) यहूदी जानता था कि काब रिश्वत खोर है।
࿐ इसलिए इसने बावजूद मज़हब होने के इसको पंच तस्लीम ना किया नाचार मुनफ़िक़ को फ़ैसले के लिए सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होना पड़ा आपने जो फ़ैसला दिया वो यहूदी के मवाफ़िक़ हुआ यहां से फ़ैसला सुनने के बाद फ़िर मुनाफ़िक यहूदी के दर पे हुआ और इसे मजबूर करके हज़रत उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु के पास लाया यहूदी ने आपसे अर्ज़ किया मेरा इसका मुअमला सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तय फरमा चुके लेकिन ये इस फ़ैसले से राज़ी नहीं आपसे फ़ैसला चाहता है, फ़रमाया हां अभी आकर इसका फ़ैसला करता हूं ये फरमाकर मकान में तशरीफ़ ले गए और तलवार लाकर उसको क़त्ल कर दिया और फ़रमाया जो अल्लाह और उसके रसूल के फ़ैसले से राज़ी ना हो उसका मेरे पास फ़ैसला ये है इस आयत में हज़रत उमर रदीअललाहु तआला अन्हु की इस क़ौलो अमल की ताईद ओ तस्दीक़ की गई है।
📚 रूह अल-मा'नी, जिल्द 5
📚 तासीर कसीर, जिल्द 5
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 26-27 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ इस आयत से साबित हुआ कि मुसलमान अपने नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हर फ़ैसले को दिल ओ जान से तस्लीम करे वरना बे ईमान है हुज़ूर ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मुसलमान ही अपना हाक़िम ए मुतलक़ बेइज़्नी तआला मानता है वरना बे ईमान है।
࿐ फारूक़ी लक़्ब : इसी मौके पर अल्लाह तआला की तरफ़ से हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रदिअल्लाहू तआला अन्हु को लक़्ब फ़ारूक़ी मिला अरबी ज़ुबान से वाखिब हज़रात बख़ूबी जानते हैं कि फारूक़ी और ताघूट हम ज़ुबान है, दोनों सेगे कसरत के माईने को ज़ाहिर करते हैं तो इस आयत से पहली आयत में काब बिन अशरफ़ ताघूट कहा गया जिसका माइना है महोत सर काशी वाला, इस हिसाब से फारूक़ के माईने होंगे हक़ ओ बातिल में फ़र्क करने वाला।
࿐ मुनाफ़िक़ कौन था? : इस मुनाफ़िक़ का नाम बशर था और काब बिन अशरफ़ यहूदी आलिम की तरफ़ मुक़दमा ले जाना चाहता था।
࿐ *मुरतद की सज़ा :* यही वजह रही इसके ईमान से ख़ारिज होने की दूसरी वजह इस मुनाफ़िक़ ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के फ़ैसले को दिल से बुरा जान कर इन्हेराफ किया था, ईमान से ख़ारिज होने की एक वजह यही है कि वो गुस्ताख़ था आज तक अहले इस्लाम में क़तल मुरतद की जो सज़ा मुक़र्रर है इसकी बुनियाद यही वाक़्या है।
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 28-29 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ का अंजाम बद :* ये तो हर इस्लामी फिरक़ा मानता है कि गुस्ताख़ ए रसूल मुरतद है और मुरतद की सज़ा क़त्ल है लेकिन जहालत के घुल्बे से आज किसी को कहो कि ये तो गुस्ताख़ी है वो धाताई ओ बे शर्मी से उल्टा गुस्ताख़ी को तौहीद बताए तो इसका क्या इलाज? इसलिए हम ये फ़ैसला अल्लाह तआला पर छोड़ते हैं जैसे इसका कानून है कि हबीब ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुस्ताख़ को आज ना सही तो कल ज़रूर सज़ा देगा और इतना सख़्त कि कुफ्फ़र और मुशरीकीन हैरान रहें जाएंगे और कभी दुनिया में भी गिरफ़्त फरमा लेता है।
࿐ गुस्ताख़ ए रसूल वाजिब अल क़त्ल है : गुस्ताख़ ए रसूल एक ऐसा ख़बीह और घिनौना अमल है इसकी सज़ा सर तन से जुदा है क़ुरआन ओ हदीस में इसके बेशुमार शावहेद (सबूत) हैं।
तर्जुमा:- तो ए महबूब तुम्हारे रब की कसम वो मुसलमान ना होंगे जब तक के अपने आपस के झगड़े में तुम्हें हाक़िम ना बनाएं फ़िर जो कुछ तुम हुक्म फरमा दो अपने दिलों में इस से रुकावट ना पाएं और जी से मानें।
📚 पारा 5, सुरह अल-निशा, आयत 65
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 29-30 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *शान ए नुज़ूल :* पहाड़ से आने वाले पानी जिससे बागों में आ रसानी करते हैं इसमें एक अंसारी का हज़रत ज़ुबैर से झगड़ा हुआ मुअमला सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हुज़ूर पेश किया गया, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ए ज़ुबैर तुम अपने बाग़ को पानी देकर अपने पड़ोसी की तरफ़ पानी छोड़ दो ये अंसारी को गिरान गुज़रा और इसकी ज़ुबान से ये कलिमा निकला कि ज़ुबैर आपके फूपुजाद भाई ऐन बावजूद फ़ैसला में ज़ुबैर को अंसारी के साथ एहसान की हिदायत फ़रमाई थी।
࿐ लेकिन अंसारी ने इसकी क़दर ना की तो हुज़ूर ए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत ज़ुबैर को हुक्म दिया के अपने बाग़ को सैराब करके पानी रोक लो इंसाफन क़रीब वाला ही पानी का मुस्तहिक़ है इस पर ये आयत नाज़िल हुई इमाम फ़करुद्दीन ने शान ए नुज़ूल में यूं लिखा है कि जब एक मुनफ़िक ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के फ़ैसले पर हज़रत उमर के फ़ैसले को तरजीह दी आपने इसको क़तल कर दिया लोगों में मशहूर हो गया कि हज़रत उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने एक मुसलमान को क़त्ल कर दिया, आपने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया हुज़ूर जो आपका फ़ैसला ना माने वो मुसलमान कब है? इस वक़्त ये आयत ए करीमा नाज़िल हुई।" आपके रब की कसम वो मुसलमान ही नहीं जो आपका फ़ैसला ना माने।
࿐ *क़ाबिल ए ग़ोर :* क़ाबिले मज़कूरा दोनों आयत से वाज़ेह हुआ के गुस्ताख़ ए रसूल का मुरताकिब वाजिब अल क़त्ल है जब किसी मुसलमान के सामने गुस्ताख़ी का इरतेकाब हो, सुन्नत ए फ़ारुक़ी ये है कि गुस्ताख़ के वजूद से फ़ौरन ज़मीन पाक की जाए अदालती कारवाई का इंतज़ार करना ईमान के मनफ़ी अगर अदालती कारवाई का इंतज़ार ज़रूरी होता तो सैय्यिदना फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु अदालत रिसालत मा'ब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तरफ़ रुजू करते वहां से जो फ़ैसला होता उस पर अमल दर आमद करते मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि फ़ौरन गुस्ताख़ को वासिल ए जहन्नम किया फ़िर इनके इस फ़ैयल पर ताइद खुदावंदी हुई क़ुरआन ए पाक की आयत नाज़िल हो गई जो रहती दुनिया तक कानून बन गया के गुस्ताख़ ए रसूल की सज़ा सर तन से जुदा।
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 31-32 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ गुस्ताख़ मर जाए तो इसका जनाज़ा भी ना पड़ो
तर्जुमा:- और इनमें किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ ना पड़ना और ना इसकी क़ब्र पर खड़े होना बेशक़ वो अल्लाह वा रसूल के मुंकिर हुए और फ़ासिक़ मर गए।
📚 सूरह अल-तौबा, आयत 84
࿐ *तफ़्सीर ओ शान ए नुज़ूल :* ये आयत हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सबसे बड़े दुश्मन रईस उल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबई के मुतल्लिक़ नाज़िल हुई थी, जब वो मरा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ख़ुल्क अज़ीम की बिना पर इसकी नमाज़ ए जनाज़ा पड़ाना चाही तो हज़रत उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज़ किया कि आप इस मुनाफ़िक़ का जनाज़ा ना पड़ें लेकिन आपने इसकी नमाज़ ए जनाज़ा पड़ी इसके बेटे ने जो मुसलमान सालेह मुख़्लिस सहाबी कसीर उल इबादत थे उन्होंने ये ख़्वाहिश ज़ाहिर की सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इनके बाप अब्दुल्लाह बिन अबी सुलूल को कफ़न के लिए अपने कमीज़ मुबारक इनायत फरमा दें और इसकी नमाज़ ए जनाज़ा पड़ा दें।
࿐ हज़रत उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु की राय इसके ख़िलाफ़ थी लेकिन चूंकि इस वक़्त मुमानिअत नहीं हुई थी और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मालूम था कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ये अमल एक हज़ार आदमियों के ईमान लाने का बाइस होगा इसलिए हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी कमीज़ भी इनायत फ़रमाई और जनाज़े में शिरकत भी की, कमीज़ देने की एक वजह ये भी थी के सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा हज़रत अब्बास जो बदर में असीर होकर आए थे तो अब्दुल्लाह बिन अबी ने अपना कुर्ता इन्हें पहनाया था।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 33-34 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इसका बदला देना भी मंज़ूर था इस पर ये आयत नाज़िल हुई और इसके बाद फ़िर कभी सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किसी मुनाफ़िक़ की जनाज़े में शिरकत नहीं फ़रमाई और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की वो मस्लाहात भी पूरी हुई चुनांचे कुफ़्फ़ार ने देखा के ऐसा शदीद उल अदावत शख़्स जब सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कुर्ते से बरकत हासिल करना चाहता है तो इसके अक़ीदे में भी आप अल्लाह के हबीब और इसके सच्चे रसूल हैं ये सोच कर हज़ार काफ़िर मुसलमान हो गए।
࿐ इस वाक़्ये से मुनकिरीन कलामात ए मुस्तफा कहते हैं के तबर्रुक़ात को कोई फ़ायदा नहीं अगर कुछ होता तो मुनाफ़िक़ को फ़ायदा होता इसका जवाब नबी ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कमीज़ मुबारक तबर्रुक़ के लिए नहीं बल्कि अपने चचा का बदला उतारने के लिए दिया था, इससे तो उल्टा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का तसर्रूफ़ ओ इख़्तियार साबित होता है के चाहे तो मुताबर्रूक़ अश्या में बरकत होने दें चाहे तो इनसे बरकत सलब फरमालें।
࿐ इससे वो ऐतराज़ भी दफा हो गया के मुंह में लुआब ए दहन डाला तो कोई फ़ायदा ना हुआ तो इसका भी यही जवाब है के आपने लुआब ए दहन डालकर इसके मुंह के अंदर जो ज़ाहिरी तौर पर कलमा पड़ा और ज़ुबान से कोई इबादत की वो तमाम सलब करली, हम नबी ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का तसर्रूफ़ तरद ओ अक्सान हर दोनों तरह से मानते हैं यानी चाहें तो फ़ज़ल ओ करम से मालामाल फरमा दें चाहें किसी को किसी नेमत से महरूम फरमा दें।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 34-35 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 23
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ साहिबे रूह उल बयान ने मुनाफ़िक़ को तबर्रुक़ से फ़ाएसा ना होने की एक मिसाल क़ायम करके फ़िर मुताद्दद दलायल क़ायम फ़रमाए, और फ़रमाया ये ऐसे हैं जैसे बारिश में तो मुनाफ़ा मौजूद हैं लेकिन आगे ज़मीन ऐसी हो के जिसमे असर क़ुबूल करने की सलाहियत नहीं।
࿐ इससे ये कोई नहीं कहेगा के बारिश में मुनाफ़ा नहीं बल्कि यूं कहा जाएगा कि ज़मीन ख़राब है ऐसे वाहाबिया देवबंदिया को समझाने के लिए कहा जाए के कमीज़ मुबारक के मुनाफ़े में शक़ ना करो बल्कि यूं कहो कि मुनाफ़िक़ को इस मुनाफ़े के क़ुबूल करने की सलाहियत ओ अहलियत नहीं थी, अगर्चे साहिबे रूह उल बयान के दौर में वहाबी देवबंदी मौदूदी किसम के लोग नहीं थे लेकिन इब्ने तयमिय्या (जो अहले खदीस के ईमान है) जो मज़कूरा पार्टियों के गुरु हैं इसके तासेरात मौजूद थे इसलिए साहिबे रूह उल बयान को फवायद पर चंद दलायल देने पड़े।
࿐ *अहादीस ए मुबारका :* हुज़ूर सरवरे आलम नूर ए मुजस्सम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सीरत ए पाक में सबसे बड़ा वसी बाब ख़ल्क़ अज़ीम है, अल्लाह तआला ने आपकी ये सिफत क़ुरआन मजीद में भी बयान फ़रमाई आपकी आदत ए करीमा थी के आप दुश्मनों के लिए भी चादर बिछा देते लेकिन याद रहे के वही रहमतललिल आलामीन शफ़ीक़ रऊफ़ ओ करीम दुश्मनाने इस्लाम के लिए नहीं बल्कि बज़ाहिर कलमा ए इस्लाम पड़ने वालों के लिए जहां सख़्ती फ़रमाई वहां नरमी भी फ़रमाई, लेकिन और के नुज़ूल से पहले वरना यही प्यारे रसूल तो थे जो गज़वा ए हनीन और बदर ओ उहद और आहज़ाब ओ तुबूक में दुशमनाने इस्लाम से बरसर पैकार थे गुस्ताख़ों और बे अदबों के लिए आप के इरशाद ए आलिया उम्मत की रहबरी और रहनुमाई के लिए काफ़ी हैं।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 35-36 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 24
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ से नरम गोई भी जायज़ नहीं :* गुस्ताख़ों से मेल जोल तो दूर की बात है इन बदबख़्तों से नरम गोई भी गुनाह, और अहादीस ए मुबारका में इसकी सख़्त मज़म्मत फ़रमाई गई है।
࿐ हदीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम किसी बद मज़हब को देखो तो इसके सामने तराश रूई से पेश आओ इसलिए कि अल्लाह तआला हर बद मज़हब को दुश्मन रखता है।
📚 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 1, सफह 388, हदीस 1676, इब्ने असाकिर
࿐ हदीस ए पाक में वाज़ेह फ़रमाया जा रहा है कि इसके सामने तराश रूई से पेश आओ लेकिन इनसे इत्तेहाद करने वाले सुलेकुल्ली कहते हैं के नहीं खुश रूई से पेश आओ, ये रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ना फ़रमान हैं।
࿐ *गुस्ताख़ की हर इबादत मर्दूद है :* मज़हब ए बातिला की आदत है कि अहले ईमान में सादा लोगों को अपने दम फरेब फंसाने के लिए लम्बे लम्बे सज्दे, क़याम ओ किरत करते हैं हमारे भोले भाले सुन्नी उनकी इबादत को देख कर कहते हैं ये बड़े नमाज़ी ओ परहेज़गार हैं जबकि इनकी कोई इबादत क़ुबूल नहीं।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 39-40 .📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 25
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ बीमार हो जाओ तो अयादत ना करो मर जाए तो जनाज़े में ना जाओ, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया खाज़ा ओ खदर को झुटलाने वाले इस उम्मत के मजूसी हैं (हांलाकी वो नमाज़े भी पड़ते हैं और रोज़े भी रखते हैं) फ़रमाया कि अगर वो बीमार हो जाएं तो उनकी अयादत के लिए मत जाओ और अगर वो मर जाएं तो उनके जनाज़े वगैराह में मत शरीक़ होना अगर तुमसे मिले तो उनको सलाम ना करो, इसके अलावा दीगर इरशादात ओ मामुलात बद मज़हब के लिए सख़्त से सख़्त तर हैं अगर वज़ाहत मतलूब हो तो "अल हदीस अल नबावियाह फी अलामत अल वाहबियाह" का मुताअला कीजिए याद रहे कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ये इरशाद गिरामी भी रब ए करीम जल मुजद्दा उल अज़ीम का हुक्म भी है।
࿐ कुछ आयतें जिनमें अल्लाह तआला का फ़रमान पढ़िए।
࿐ तर्जुमा:- और ज़ालिमों की तरफ़ ना झुको के तुम्हें आग़ छुएगी।
📚 पारा 12, सूरह हूद, आयत 113
࿐ तर्जुमा:- और अगर शैतान तुम्हें भुलादे तो याद आने पर ज़ालिमों के पास ना बैठ।
📚 पारा 7, सूरह अल-अनाम, आयत 68
࿐ तर्जुमा:- तुम उन लोगों के पास ना बैठो।
📚 पारा 5, सूरह अल-निसा, आयत 140
࿐ ऐसी तशरीहात के बावजूद कोई अपनी ज़रूरियात के तहत या किसी दवाओ से बद मज़हब के साथ मेल जोल को इस्लाम समझता है तो इस जैसा कम्बख़्त कौन होगा।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 37-38 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला किसी बद मज़हब का ना रोज़ा क़ुबूल करता है ना नमाज़ ना ज़क़ात ना हज ना उमराह ना जिहादा और ना कोई नफ़िल, बद मज़हब दीन ए इस्लाम से ऐसे निकल जाता है जैसे गुंदे हुए आंटे से बाल निकल जाता है।
📚 इब्ने माज़ा, जिल्द 1, सफ़ह 19, हदीस 49
࿐ आम बद मज़हब का ये हाल है तो जो ऐलानिया काफ़िरों से हज़ार दर्जे बड़े काफ़िर हों इनका क्या हाल होगा।
࿐ *दो ज़ख़ी कुत्ते :* हम जैसे गरीब अगर गुस्ताख़ों बद मज़हब को अपनी तक़रीर या तसानीफ़ में हक़ीक़त पर मबनी कोई बात कहते हैं तो बाज़ लोग हमें शिद्दत पसंदी का शिक्वा देते हैं मगर हमें इनके शिक्वे की कोई परवाह नहीं क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने गुस्ताख़ों के मुताअल्लिक़ शिद्दत के अल्फ़ाज़ इरशाद फ़रमाए।
࿐ हदीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि गुमराह लोग दोज़ख़ियों के कुत्ते हैं।
📚 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 1, सफह 223, हदीस 1125, दार क़ुत्नी
࿐ कुछ लोग कहते हैं कि किसी को बुरा न कहो लेकिन हक़ीक़त ये है कि बुरे को बुरा कहना सुन्नत ए नब्वी है मज़कूरा हदीस शरीफ़ में नबी ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बद मज़हब को दोज़ख़ी बल्कि दोज़ख़ के कुत्ते फ़रमाया।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 41-42 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ बद मज़हब की ताज़ीम ओ तारीफ़ करने वाले के लिए सख़्त वाईद, सुले कुल्लियत के जिरासीम की वजह से बाज़ लोग कहते हैं के किसी की इज़्ज़त करोगे तो वो तुम्हारे क़रीब होगा तुम्हारी बात सुनेगा जब तुम उसका हाथ मिलाना ही गुनाह समझते हो वो तुम्हारी क्या सुनेगा हम कहते हैं किसी गुस्ताख़ की ताज़ीम ले डूबती है मोमिन के ईमान का घाटा है ना सिर्फ़ उसका नुकसान बल्कि मिल्लते इस्लामिया का नुकसान है।
हदीस:- जिस शख़्स ने बद मज़हब की इज़्ज़त की इसने इस्लाम ढाने में मदद की।
📚 मिश्कात शरीफ़, मजमुआ अल फतवा, जिल्द 18, सफह 346
࿐ अल्लाहु अकबर जिनकी सोहबत ऐलानिया काफ़िर से हज़ार दर्जा ज़्यादा ख़तरनाक है इनकी जो इज़्ज़त ओ तकरीम करे इनसे इत्तेहाद करे वो इस्लाम का कितना मुखालिफ़ है और इस्लाम को गिराने की कितनी कोशिश करता है।
हदीस:- जब फासिक़ की तारीफ़ की जाती है तो अल्लाह तआला ग़ज़ब फ़रमाता है।
📚 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 3, सफह 575, हदीस 7964
࿐ जो अम्बिया और औलिया ए किराम के गुस्ताख़ हैं वो सबसे बड़े फ़ासिक़ और गुमराह हैं तो इनकी तारीफ़ करना इनसे इत्तेहाद करना किस क़दर रब्बे क़ाहार के ग़ज़ब को दावत देना है।
࿐ हदीस:- रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया के मुशरिकों से मुसाफा किया जाए या इन्हें कुन्नियत ज़िकर किया जाए और ना आते वक़्त इन्हें मरहबा कहा जाए।
📚 कन्ज़ुल उम्माल, जिल्द 9, सफह 131, हदीस 25349
࿐ ये बहुत काम दर्जे की इज़्ज़त है कि नाम लेकर ना पुकारा जाए फलां का बाप कह दिया जाए या आते वक़्त जगह देने को आईये कह दिया जाए।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 43-44 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *दर्स ए इबरत ;* कुफ्फ़ार के बारे में हदीस इससे भी मना फ़रमाती है ऐलानिया काफ़िर से हज़ार दर्जा मज़ार नाम ओ निहाद इन मौलवियों से इत्तेहाद है जो नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म और आपकी ज़ात पर हमला करते हैं
࿐ इनसे इत्तेहाद करना इनके मौलवियों को बड़े बड़े अल्क़ाब से जिक़्र करना, इनका शान से इस्तक़बाल करना जल्सो में इनकी तक़रीरें मुसलमानों को सुनाना, हालांकि बे दिनों बद मज़हबों को ऐसा मुक़ाम ओहदा देना जिससे मुसलमानों के दिलों में इनकी ताज़ीम पैदा हो हराम है, अपने जल्सो में एज़ाज़ी ओहदे देना किस क़दर गुमराही और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त है।
࿐ *मामूलात सहाबा ए किराम :* सहाबा ए किराम जो उम्मत ए मुस्लिमा के लिए मयारे हक़ हैं जिनकी इक़्तदा को हिदायत फ़रमाया गया है जिन्हें क़ुरआन ए पाक में (अल्लाह उनसे राज़ी और वो अल्लाह से राज़ी) का एज़ाज़ नसीब हुआ हो इनकी मुबारक ज़िंदगियां आपके दुश्मन से क्या रिश्ता हमारा या रसूल अल्लाह का अम्ली नमूना है।
࿐ हज़रत मुल्ला अली क़ारी ने लिखा है कि सहाबा ए किराम और इनके बाद वाले हर ज़माने के ईमान वालों की ये आदत रही है के वो अल्लाह तआला और उसके रसूल के मुख़ालिफ़ों के साथ बॉयकॉट करते रहे।
࿐ हालांकि इन ईमानदारों को दुनियावी तौर पर इन मुख़ालिफ़ों की एहतियात भी होती थी लेकिन वो मुसलमान अल्लाह तआला की रज़ा को इस पर तरजीह देते हुए बॉयकॉट करते थे।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 44-45 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ _बॉयकॉट तो मामूली सज़ा है लड़ाई और मार पिटाई की नौबत पहुंच जाती थी।_ चूनांचे बुखारी शरीफ़ किताब उल सलाह और अल्लामा आयिनी के शान ए नुज़ूल में शराह बुखारी उमदातुल क़ारी फ़रमाते हैं, हज़रत अनस से रिवायत है के अर्ज़ की गई या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अब्दुल्लाह बिन उबई के यहां चल कर इसके साथ सलाह की बात कीजिए, आप गधे पर सवार होकर वा जमाअत अब्दुल्लाह बिन उबई के यहां तशरीफ़ ले गए उसने कहा गधे को दूर कीजिए मुझे इससे बदबू आती है, एक अंसारी मर्द ने कहा बाखुदा हमारे नज़दीक गधा तेरे से ज़्यादा खुस्बुदार है इससे अब्दुल्लाह की पार्टी का एक शख़्स नाराज़ हुआ तो इनकी आपस में हथा पाई शुरू हो गई यहां तक कि एक दूसरे पर पत्थर और जूते बरसा रहे थे।
📚 सहीह बुखारी, जिल्द 3, सफह 183, हदीस 2691
📚 उम्दातुल क़ारी, शराह सहीह बुखारी, जिल्द 2, सफह 61
࿐ _आसाए नबवी की बे अदबी ना गवार_ हज़रत काज़ी अयाज़ "शिफा शरीफ़" में लिखते हैं कि जहजाह गफ्फारी ने हज़रत सैय्यदना उस्मान गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु से हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का आसा मुबारक लेकर घुटनों पर रख कर तोड़ने लगा तो लोगों की चीखें निकल गईं इतनी बे अदबी की वजह से इसके घुटने में आक्ला का मर्ज़ पैदा हो गया इसने घुटना काट डाला और एक साल के अंदर मर गया।
📚 अल शिफा, जिल्द 1, सफह 331
࿐ _फ़वायद ओ अक़ायद_ आसा मुबारक बतौर ए तबर्रुक़ महफूज़ था इससे सहाबा ए किराम का तबर्रुक़ात से इश्क़ का सबूत मिला तबर्रुक़ की बे अदबी नगवार हुई के वो जंगो में दुश्मनों के नेज़ों में ना चीखे लेकिन आसा मुबारक की बे अदबी ओ गुस्ताख़ी से चीखे चिल्लाए इससे मालूम हुआ के इन्हें रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मंसूब अश्या से कितनी अक़ीदत और मुहब्बत थी बे अदबी ओ गुस्ताख़ी का अंजाम बुरा है अगर्चे किसी को जल्दी से किसी को देर के बाद।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 45-47 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ों की सोहबत की नहुसत :* हदीस शरीफ़ में अबु अल तफ़ील से रिवायत है के हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़ाहिरी ज़माने में एक लड़का पैदा हुआ आपने इसको दुआ दी इसकी पेशानी पर हाथ रखा और दबाया असर इसका ये हुआ के इसकी पेशानी पर ख़ास तौर पर बाल उगे जो तमाम बालों से मुमताज़ थे, वो लड़का जवान हुआ और ख़्वारिज का ज़माना पहुंचा और इनसे इसको मुहब्बत हुई साथ ही वो बाल जिन पर दस्त ए मुबारक का असर था झड़ गए इसके बाप ने ये हाल देखा इसको क़ैद कर दिया कि कहीं इनमें ना मिल जाए।
࿐ अबु अल तफ़ील कहते हैं कि हम लोग इसके पास गए इसे वाज़ ओ नसीहत की और कहा देखो तुम जो इन लोगों की तरफ़ माइल हुए रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बरकत तुम्हारी पेशानी से जाती रही गर्ज़ जब तक नौजवान ने इनकी राय से रूजू ना किया हम इसके पास से हटे नहीं, फ़िर जब इनकी मुहब्बत इससे मिट गई तो अल्लाह तआला ने इसके बाल इसकी पेशानी पर लौटा दिये और वो सदक़े दिल से तायेब हो गया।
📚 मुसन्निफ़ इब्ने अबी शाएबा, जिल्द 7, सफह 556, हदीस 37904
࿐ फ़ैसला रब्बानी बराए गुस्ताख़ ए रिसालत क़ुरआन ए करीम में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है।
तर्जुमा:- तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह और इसकी आयतों और इसके रसूल से हंसते हो।...✍🏻
📚 पारा 10, सुराह अल-तौबा, आयत 65
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 47-48 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ मुनाफ़िक़ीन का मस्जिद से इख्राफ़ :* गुस्ताख़ों को हम मस्जिद से निकालते हैं हमारे बाज़ एहबाब हमें शिद्दत पसंदी का ताना देते हैं और कहते हैं कि लोग इस अमल को अच्छा नहीं समझते लेकिन ये हक़ीक़त किसी से पोशीदा नहीं गुस्ताख़ों मुनाफ़िक़ीन को मस्जिद से निकालना नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नत ए मुबारका है, आप पड़ चुके हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने गुस्ताख़ों से दूर रहने की ताईद फ़रमाई आपने सिर्फ़ हुक्म पर इक़्तेफा नहीं फ़रमाया बल्कि गुस्ताख़ों को सख़्ती से अपनी मस्जिद से निकलवा दिया।
࿐ हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास फ़रमाते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जुमाअ के दिन जब ख़ुत्बा के लिए खड़े हुए तो फ़रमाया आय फलाँ तू मुनाफ़िक़ है लिहाज़ा मस्जिद से निकल जा, आय फलाँ तू भी मुनाफ़िक़ लिहाज़ा मस्जिद से निकल जा, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कई मुनाफ़िक़ों के नाम लेकर निकाला और इनको सबके सामने रुसवा किया इस जुमाअ को हज़रत उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु अभी मस्जिद में हाज़िर नहीं हुए थे किसी काम की वजह से देर हो गई थी।
࿐ जब वो मुनाफ़िक़ मस्जिद से निकल कर रुसवा होकर जा रहे थे तो हज़रत उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु आ रहे थे आप शरम की वजह से छुप रहे थे कि मुझे तो देर हो गई है शायद जुमाअ हो गया है, लेकिन मुनाफ़िक़ हज़रत उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु से अपनी रुसवाई की वजह से छुप रहे थे फ़िर जब हज़रत उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु मस्जिद में दाख़िल हुए तो अभी जुमाअ नहीं हुआ था बाद में एक सहाबी ने कहा कि आय उमर तुम्हें खुशखबरी हो के अल्लाह तआला ने मुनाफ़िक़ों को रुसवा कर दिया है।...✍🏻
📚 तफ़्सीर रूह अल मानी, जिल्द 11, सफह 11
📚 तफ़्सीर अल अलूसी, जिल्द 7, सफह 347
📚 अल माजुम अल औसात, जिल्द 1, सफह 241, रक़्म अल हदीस 792
📚 मजमा अल ज़वायद, जिल्द 7, सफह 111
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 49-50 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *सीरत इब्ने हिशाम में एक उन्वान है :* और इसके तहत फ़रमाया के मुनाफ़िक़ लोग मस्जिद ए नबवी में आते और मुसलमानों की बाते सुन कर थिट्टे करते, दीन का मज़ाक उड़ाते थे एक दिन कुछ मुनाफ़िक़ मस्जिद ए नबवी शरीफ़ में इख्ट्टे बैठे थे, रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने देख कर हुक्म दिया के मुनाफ़िक़ीन को सख़्ती से निकाल दिया जाए।
📚 सीरत इब्ने हिशाम, जिल्द 2, सफह 528
࿐ *सहाबा ए किराम ने मुनाफ़िक़ीन को पकड़ पकड़ कर बाहर निकाला :* हज़रत अबु अयूब ख़ालिद बिन ज़ैद उठ खड़े हुए और उमर बिन क़ैस को टांग से पकड़ कर घसीटते-घसीटते मस्जिद से बाहर फेंक दिया, फ़िर हज़रत अबु अयूब ने राफेय बिन वादीआ को पकड़ा इसके गले में चादर डाल कर खूब खींचा इसके मुंह पर तमांचा मारा और इसको मस्जिद से निकाल दिया और साथ-साथ अबु अयूब फ़रमाते हैं अरे ख़बीस मुनाफ़िक़ तुझ पर बहुत अफ़सोस है।
࿐ आय मुनाफ़िक़ रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ज़ैब बिन उमर को पकड़ कर ज़ोर से खींचा और खींचते-खींचते मस्जिद से निकाल दिया और फ़िर इसके सीने पर दोनों हाथों से थप्पड़ मारा के वो गिर गया, इस मुनाफ़िक़ ने कहा आय अमारा तूने मुझे बहुत अज़ाब दिया है तो उन्होंने फ़रमाया ख़ुदा तुझे दफा करे जो खुदा तआला ने तेरे लिए अज़ाब तय्यार किया है वो इससे भी सख़्त तर है।....✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 51-52 📚*
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *मलाहिदो से क्या मुरव्वत कीजिए :* बनु नजार क़बीला के दो सहाबा अबु मुहम्मद मसूद जो कि बद्री सहाबी थे अबु मुहम्मद मसूद ने क़ैस बिन उम्रो को जो मुनाफ़िक़ीन में से नौजवान था गद्दी पर मारना शुरू किया हत्ता के मस्जिद से बाहर निकाल दिया।
࿐ और हज़रत अब्दुल्लाह बिन हारिस ने जब सुना के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुनाफ़िक़ों को निकाल देने का हुक्म फ़रमाया है हारिस बिन उम्रो को सर के बालो से पकड़ कर ज़मीन पर घसीटते-घसीटते मस्जिद से बाहर निकाल दिया वो मुनाफ़िक़ कहता था आय इब्ने हारिस तूने मुझ पर बहुत सख़्ती की है।
࿐ तो उन्होंने जवाब में फ़रमाया आय खुदा के दुश्मन तू इसी लायक है और तू नजस है और पलीदा है, आइन्दा मस्जिद के क़रीब ना आना इधर एक सहाबी ने अपने भाई ज़वी बिन हारिस को सख़्ती से निकाल कर फ़रमाया अफ़सोस है कि तुझ पर शैतान का तसल्लुत है।...✍🏻
📚 सीरत इब्ने हिशाम
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 53-54 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *दर्स ए इब्रत :* अहले इन्साफ़ को इन वाक़िआत से इब्रत हासिल करना काफ़ी है क्यूंकि तक़ाजाए हुब्बे रसूल यही है बल्कि जुमला अम्बिया ए किराम की भी यही सुन्नत है चुनांचे हज़रत इब्राहीम के लिए अल्लाह तआला ने फ़रमाया।
तर्जुमा:- बेशक़ तुम्हारे लिए अच्छी पैरवी थी इब्राहीम और इसके साथ वालो में जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा बेशक़ हम बेज़ार हैं तुमसे और इनसे जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो हम तुम्हारे मुन्किर हुए और हम में और तुम में दुश्मनी और अदावत ज़ाहिर होगी हमेशा के लिए जब तक तुम एक अल्लाह पर ईमान ना लाओ।
📚 पारा 28, सुरह अल मुमताहेनाह, आयत 4
࿐ तफ्सीर रूह अल मानी में हदीस ए क़ुदसी मन्क़ूल है अल्लाह तआला फ़रमाता है मुझे अपनी इज़्ज़त की क़सम जो शख़्स मेरे दोस्तों के साथ दोस्ती नहीं रखता और मेरे दुश्मनों के साथ दुश्मनी नहीं रखता वो मेरी रहमत हासिल नहीं कर सकता।
📚 तफ्सीर रूह अल मानी, जिल्द 28, सफह 35
࿐ यूं तो हम भी हज़ार बार ये बात मुंह से कहते हैं लेकिन हाल ये है कि गुस्ताख़ की गुस्ताख़ी जानने पहचानने के बावजूद गुस्ताख़ से ब्रादराना (भाई जैसा) सुलूक यराना और मलामत ओ शत्ताम बॉयकॉट हम इन क़ुदसी सिफ़त की गैरत दिखाते हैं जिन पर इस्लाम को नाज़ है।...✍
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 54-55 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *हज़रत उबैदा बिन जिर्राह :* सैय्यदना अबु उबैदा बिन जिर्राह ने अपने बाप के मुंह से अपने महबूब आका सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में कोई ना पसंदीदा बात सुनी तो इसे मना किया वो बाज़ ना आया तो इस बाप को क़त्ल कर दिया।
࿐ रूह अल मानी में इस तरह बयान है कि हज़रत अनस फ़रमाते हैं कि उबैदा बिन जिर्राह ने अपने बाप को अपने हाथ से क़त्ल कर दिया जबकि वो बद्र के कैदियों में क़ैद होकर आया, जब इससे सुना के वो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मज़म्मत करता है तो पहले इसे रोका जब वो ना रुका तो फ़िर इसे क़त्ल कर दिया।
࿐ *हज़रत सिद्दीक़े अकबर का सुनहरी दौरे ख़िलाफ़त और दुश्मन ए अहमद पर शिद्दत :* हज़रत सैय्यदना सिद्दीक़ ए अक़बर रदिअल्लाहु तआला अन्हु का अपने वालिद को गुस्ताख़ी करने पर थप्पड़ मारने का वाक़्या तो पहले ही बयान किया जा चुका है, आपके दौर ए ख़िलाफत में झूंटे मदुयान ए नबुवत मलूनो ने सर उठाया आपने इश्क़ ए रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दौलते ला ज़वाल के सबब इनकी ऐसे सरकोबी फ़रमाई कि क़यामत तक कोई मन्हूस नबुवत के झूंटे दावे की जुर्रात ना करेगा अगर किसी ने ये जुर्रात की तो सैय्यदना सिद्दीक़ ए अक़बर के मानने वालों ने इसे जहन्नम रसीद कर दिया जैसे रवान सदी में दज्जाल कज़्ज़ाब गुलाम अहमद क़ादयानी ने झूंटा दावा ए नबुवत किया तो ताजदार गोलदा हज़रत क़िब्ला पीर सैय्यद मेहर अली शाह साहब कुद्दुस सुरा ने इस खबीस की ख़ूब खबर ली आख़िर वो वासिल जहन्नम हुआ।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 55-56 📚*
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*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ी करने वाले के दांत निकलवा दिए :* ख़लीफा बिला फसल अफ़्ज़ल बशर बाद अल अम्बिया बिल तहक़ीक़ ख़लीफा ए रसूल हज़रत सैय्यदना अबु बक़्र सिद्दीक़ ए एहेद ख़िलाफत (11- 13 हिज़री) में यमामा में दो गाने वाली औरतों में से एक ने नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को गाली गलौज किया तो यामामा के हाक़िम हज़रत मुहाजिर बिन अबी उम्मिया ने इसका हाथ काट दिया और इसके सामने वाले दो दांत निकलवा दिए इस पर हज़रत सैय्यदना सिद्दीक़ ए अक़बर ने हाक़िम यमामा को लिखा कि मुझे मालूम हुआ के आपने इस औरत को सज़ा दी है जिसने नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी की अगर आप पहले इसे ये सज़ा सुना ना दे चुके होते तो मैं आपको इसके क़त्ल का हुक़्म देता।
࿐ ख़लीफा ए अव्वल से ये अल्फ़ाज़ इस तरह मन्कूल हैं कि अगर आप मेरा फ़ैसला आने से पहले इस ख़ातून को सज़ा ना देते तो मैं आपको इसे क़त्ल करने का हुक़्म देता पस मुसलमानों में से जो इस बुराई (गुस्ताख़ ए रसूल) का मुरताकब होता है, वो मुरतद यानी इस्लाम से ख़ारिफ़ है और अगर ऐसा शख़्स किसी मुआहेदे के तहद अमान या फता है तब ऐसा शख़्स हरबी है और मुसलमानों से गद्दारी करने वाला है।
📚 तारीख़ अल खुल्फ़ा, सफह 18
📚 तारीख़ अल तबरी, जिल्द 2, सफह 305
࿐ हज़रत सैय्यदना सिद्दीक़ रदिअल्लाहु तआला अन्हु के इस हुक़्म से कुछ बातें साबित होती हैं आप नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी करने वाले को वाजिब अल क़त्ल क़रार देते हैं ख़्वाह के ऐसा शख़्स मुस्लिम हो या मुआहेदा ख़्वाह वो मर्द हो या औरत, ऐसे शख़्स का क़त्ल बतौर हद होगा बतौर तज़ीर नहीं, ऐसे शख़्स की हद की सज़ा तौबा करने से पहले नाफिज़ की जाएगी, क्योंकि अम्बिया के हवाले से हुदूद का निफाज़ आम इंसानों के लिए हुदूद के निफाज़ से मुख्तलिफ होता है, जबकि हाक़िम यमामा मुहाजिर बिन उम्मिया इस औरत पर पहले ही अपने इज्तेहाद से हद की सज़ा नाफिज़ कर चुके थे इसलिए ख़लीफा ए अव्वल ने वो हदें क़ायम नहीं कीं।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 57-58 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ इमाम मस्जिद को क़त्ल करा दिया :* सूराह का शान ए नुज़ूल मुफ़स्सिरीन ए किराम ने बयान किया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रोसा कुरेश को दावत पहुंचाने में मशगूल थे आपकी तमाम तर तवज्जो इन्हीं की तरफ़ थी अचानक नबीना सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्मे मकतूम बारगाह ए रिसालत में हाज़िर हुए ये औलीन मुहाजिरीन में से थे अमूमन हाज़िर ख़िदमत होते रहते तलीमात दीन हासिल करते मसाइल दरयाफ़्त करते हिस्बे मामूल आज भी आते ही सवालात किया।
࿐ नाबीना होने की वजह से आदाब ए मजलिस का ख़याल ना रख सके आगे बढ़ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अपनी तरफ़ मुतावज्जो व रागिब करना चाहा आप इस वक़्त चुंके एक अहम अमर में मशगूल ओ मशरूफ थे सो मुतावज्जो ना हुए सिलसिला ज़ारी रखा।
࿐ हज़रत अब्दुल्लाह अपना मुंह आगे करते दौरान ए गुफ्तगू खलल अंदाज़ी पर चेहरा ए अक़दस पर कुछ रंज ओ मलाल की कैफ़ियत ज़ाहिर हुई इस पर बारी तआला ने ये आयत नाज़िल की, जिनमें नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इस अमर की तलक़ीन की गई वो ना समझ था इसकी दिलजोई भी तो मक़सूद थी ऐसे आसार चेहरा ए अक़दस पर ज़ाहिर नहीं होने चाहिए ताकि ऐसा मुख़्लिस सहाबी आपकी शफ़क़त ओ दिलजोई से महरूम ना हो।
࿐ अब ज़हीरान इस आयत ए करीमा में तम्बिआ की कैफियत पाई जाती है इस सूरह के नुज़ूल के बाद मुनाफ़िक़ीन ने शोर मचा दिया कि (माज़'अल्लाह) अल्लाह तआला नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर नाराज़गी का इज़हार फ़रमाता है और लोगों के दिलों से मुहब्बत ए मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ख़त्म करने की साज़िश के लिए इस सूरत की तिलावत बार बार करते।
࿐ हज़रत सैय्यदना उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु के दौर ए ख़िलाफत में एक मुनाफ़िक़ इमाम मस्जिद का ये मामूल था वो अमूमन फज़्र की नमाज़ में यही सूरत पड़ता और दिल में ये कैफियत मुराद लेता कि ये वो सूरत है जिसमे अल्लाह तआला ने हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को तम्बिहा फ़रमाई है।
࿐ ये बात सैय्यदना उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु तक पहुंची के मुनाफ़िक़ीन में से एक शख़्स अपनी क़ौम की इमामत कराता है वो व जमाअत नमाज़ में सूरह ही पड़ता है आपने इसे बुलाने भेजा बग़ैर मज़ीद तहक़ीक़ के इसका सर क़लम करवा दिया।...✍🏻
📚 तफ़्सीर रूह अल बयान, जिल्द 10, सफह 258
📚 तफ़्सीर हक़्क़ी, जिल्द 16, सफह 490
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 59-60 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ यहां ये बात क़ाबिल ए तवज्जो है हज़रत उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु पर इस शख़्स के अमल से ये बात अज़ खुद मुताहक़क़्क़ हो गई और आपको यक़ीन क़ामिल हासिल हो गया कि इसी सूरत को मदावामत ओ हमेशग़ी से पड़ने का सबब ओ इल्लत डर पर्दा बे अदबी ओ गुस्ताख़ी है, कुछ और अलामात भी गुस्ताख़ान ए रसूल की आपके पेश ए नज़र थीं इसके साथ ही हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ इसके बुग़ज़ ओ इनाद हसद ओ कीना की कैफियत भी इसके गुस्ताख़ ए रसूल होने पर वाज़ेह दलालत कर रही थी।
࿐ ये बात लायक़ तवज्जो है कि इस शख़्स ने ज़ुबान से क़ौलन या फालन इशारतन या किनायतन किसी भी सूरत में शान ए रिसालत में में तन्क़ीस ओ तहक़ीर पर मुस्तमिल कोई कलमा आपके सामने नहीं कहा बल्कि महज़ इसके अमल और मुस्तक़ल मामूल से अमर वाक़ेय आप पर मुहक़क़िक़ हुआ।
࿐ इसके दिल में गुस्ताख़ ए रसूल पन्हान है या ये इन लोगों में से है जिनका इशारा हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है, सो किसी मज़ीद तहक़ीक़ ओ तफ़्तीश और सफ़ाई का मौक़ा दिए बग़ैर के किस नियत से तुम पड़ते हो किस्से नहीं नियत किया ऐतेबरात को तर्क करते हुए तफ़सीलात में जाए बग़ैर बे अदबी ओ गुस्ताख़े रसूल के जुर्म पर इसका सर क़लम कर दिया।
࿐ *अब भी लिबास खिज़ार में हज़ारों रेहज़न फिरते हैं :* दौर ए हाज़िर में भी बहुत सारे नाम निहाद इस्लाम के ठेकेदार बनकर दर्स ए क़ुरआन की महफ़िल सजा कर सादा लूह लोगों को बुतों की मज़म्मत में नाज़िल होने वाली आयत पड़ कर महबूबान ए ख़ुदा बिल खुसूस सैय्यद उल अम्बिया से दूर करने की साज़िश कर रहे हैं।
࿐ ऐसे बेहरूपियों से ख़बरदार रहें जो क़ुरआन की आड़ में गुस्ताख़ी ओ बे अदबी का जाल फैला रहे हैं, वहाबी देवबंदी नज्दी ख़्वार्जी, की गुस्ताख़ी ओ बे अदबी इनकी क़ुतुब में वाज़ेह हैं इनसे ख़ुद भी बचें और अपनी औलाद को भी बचाएं।
࿐ काश आज हज़रत उमर फ़ारूक़ ए आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु होते क़ुरआन की आड़ में गुस्ताख़ी ओ बे अदबी करने वालों को सरे आम सूली लटकाते अल्लाह तआला हमारे मुस्लिम हुक्मरानों को गैरत ईमानी के जज़बे से शरसार फ़रमाए।...✍🏻 आमीन
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 61-62 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *इसे अंधा कर दे :* रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अस्वद बिन याज़ीद की इज़ा रसानी और तमशाखर के सबब से इसके लिए इसकी बिनाई ख़त्म होने की दुआ फ़रमाई थी।
📚 दलाइल अल नबुवाह लाबी नयीम, जिल्द 1, सफह 234
࿐ आए अल्लाह इसे अंधा कर दे और इसे इसके लड़के की मौत पर रुला वलीद बिन मघीरा आपके नज़दीक से गुज़रा, हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने इसके पाऊं के टखने की तरफ़ इशारा किया, ये ज़ख़्म कुछ अर्सा क़ब्ल इसे लगा था हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम के इशारे से वो ज़ख़्म दुबारा ख़राब हो गया और इसी से इसकी मौत वाक़ेय हुई, आस बिन वायेल आपके पास से गुज़रा हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने इसके पाऊं के तलवे के दरमियानी हिस्से की तरफ़ इशारा किया वो एक गधे पर सवार हो कर ताइफ़ गया।
࿐ गधा एक ज़हरीले ख़ारदार पौधे पर बैठ गया आस के पाऊं के तलवे की वस्ती हिस्से में कांटा चुभ गया जो इसकी मौत का सबब बना, फ़िर हारिस बिन अल तलातला आपके पास से गुज़रा हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने इसके सर की तरफ़ इशारा किया इसका सर सूज गया और पी से भर गया सारा भेजा गल कर पीप बन गया और यही इसकी मौत का सबब बना।
📚 सीरत इब्ने हिशाम, जिल्द 1, सफह 410
📚 सीरत सरवर ए आलम मौदुदी, जिल्द 2
࿐ ये वाक़ीआत मौदूदी ने लिखे हैं जबकि ख़ुद गुस्ताखियां करते थकता ना था तफ़्सील के लिए "अाईना मौदुदी" किताब का मुताअला करें।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 65-66 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ अल्लाह तआला ने मज़ाक उड़ाने वालों के मुतअल्लिक़ फ़रमाया *तर्जुमा:-* बेश्क़ इन हंसने वालों पर हम तुम्हें किफ़ायत करते हैं।
📚 पारा 14, सूरह अल हज्र, आयत 95
यानी आपकी तरफ़ से हम इन मज़ाक उड़ाने वालों की ख़बर लेने के लिए काफ़ी हैं।
࿐ *गुस्ताख़ अबु लहब का अंजाम :* हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चाचा अबु लहब गुस्ताख़ ए रिसालत का मुज़रिम था, इसका नाम अब्दुल अज़ा बिन अब्दुल मुतल्लिब था इब्ने साद ने लिखा है कि इसका चेहरा इतना सुर्ख और सफ़ेद था कि अबु लहब के लक़ब से पुकारा जाता था, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब कोहे सफा पर खड़े होकर मक्का वालों को इस्लाम की दावत दी तो अबु लहब ने मजमा में से आगे बढ़कर सबसे पहले आपकी मुख़ालिफत की और कहा तुम्हारी बरबादी हो, क्या तुमने इसलिए हमें जमा किया था वो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बारे में बहुत ज़्यादा झूंट बकता आपके दरवाज़े पर कूड़ा किरकट फेंक देता था।
࿐ गज़वा ए बदर में कुफ्फ़ार को शिकस्त हुई जिसमे मक्का वालों के बड़े बड़े सूरमा वासिल जहन्नम हुए इस शिकस्त की ख़बर जब मक्का पहुंची तो अबु लहब को इतना दुख हुआ कि वो साथ दीन से ज़्यादा ज़िन्दा रह सका, वो "अदसा" नामी बीमारी में मुब्तिला हुआ जो ताऊन से मिलती जुलती है इस बीमारी के दौरान इसके अहले खाना बीमारी के डर से इसके करीब ना आते थे मरने के बाद भी 3 दिन तक कोई इसकी लाश के करीब ना आया।
࿐ इसकी लाश सड़ गई और इससे बदबू आने लगी जब लोगों ने इसके बेटे को ताने देना शुरू किए तो उन्होंने कुछ हब्सियों को उजरत देकर इसकी लाश उठवाई और इन्हीं हब्सियों ने इसे दफ़न किया, एक रिवायत में ये भी आता है कि उन्होंने गड्डा खोदा और लकड़ियों से इसकी लाश को ढकेल कर इसमें फ़ेंक दिया और ऊपर से मिट्टी और पत्थर डाल कर इसे पुर कर दिया।...✍🏻
📚 सीरत इब्ने हिशाम, जिल्द 2
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 67-68 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *एक शख़्स का यहूद को क़त्ल करना :* हज़रत अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को एक यहूदिया बुरा कहा करती थी वो आपको हजूबी कहती थी, एक शख़्स ने इसका गला घोंट कर इसे हलाक कर दिया रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इसका ख़ून मुआफ़ कर दिया।
📚 सुनन अबु दाऊद, किताब अल हुदूद
࿐ फ़ायदा:- इस रिवायत की सेहत ए सनद के मुतअल्लिक़ बाज़ लोग ऐतराज़ करते हैं लेकिन इमाम ए वहाबिया इब्ने तयमिय्या ने इस रिवायत के मुतअल्लिक़ कहा है कि ये हदीस जय्यद है, क्योंकि इसके रावी इमाम शाबी ने हज़रत सैय्यदना अली को देखा और आपसे शराहा हमदानी की हदीस रिवायत की है अगर ये हदीस मुरसल भी समझी जाती हो तब भी बिल'इत्तेफाक़ हुज्जत है क्योंकि मुहद्दिसीन के नज़दीक इमाम शाबी की हदीस सहीह है।
࿐ हज़रत सैय्यदना अली करम अल्लाहु वजहा उल करीम और इनके सबसे बड़े आलिम इमाम शाबी हैं, इब्ने तयमिय्या मज़ीद कहता है कि ये हदीस इस यहूदिया के क़त्ल की जावाज़ पर नस है क्योंकि इसने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बुरा कहा था, ये हदीस एक ज़िम्मी गुस्ताख़ को क़त्ल करने पर दलील है तो एक मुसलमान मर्द या औरत अगर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को गाली दे तो इनका क़त्ल बद्रजा ऊला जायज़ है।...✍🏻
📗 निसारम अल मसलूल
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 68-69 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ नाबीना सहाबी का गुस्ताख़ी करने वाली अपनी लौंडी को क़त्ल करना : सुनन निसाई और सुनन अबु दाऊद वगैराह में है हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से मरवी है कि, एक नाबीना सहाबी की एक लौंडी थी जिसके बतन से इनके दो बच्चे थे वो लौंडी अक्सर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बुरा कहती, नाबीना सहाबी इसे बार बार डांटते लेकिन वो बाज़ ना अाई एक रात इसने फ़िर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बुरा कहने लगी नाबीना सहाबी से ज़ब्त ना हो सका उन्होंने तकिया उठाया और उसके पेट पर रख कर दवा दिया यहां तक कि वो मर गई।
📚 सुनन अबु दाऊद, सुनन नीसाई, अल तबरानी अल अजम अल सगीर
࿐ एक रिवायत में है कि वो हामिला थी इस लम्हे की तकलीफ़ की शिद्दत से इसके हमल का बच्चा उसकी टांगो के दरमियान जा गिरा, सुबह जब वो मुर्दा पाई गई तो लोगों ने इसका ज़िक्र रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से किया आपने सबको जमा किया और फ़रमाया मैं इस शख़्स को अल्लाह तआला की कसम देता हूं जिस पर मेरा हक़ है कि वो शख़्स जिसने इस लौंडी को क़त्ल किया है वो खड़ा हो जाए, ये सुनकर नाबीना सहाबी डरे और खौफ़ से गिरते पड़ते हाज़िर हुए और अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये ख़ून मैंने किया है वो मेरी लौंडी थी और मुझ पर इंतेहाई मेहरबान और मेरी रफ़ीक़ा थी इसके पेट से मेरे दो बच्चे भी हैं जो मोतियों की तरह हैं।
࿐ लेकिन वो अक्सर आपको बुरा कहा करती और आपको गालियां देती थी मैं इसे ऐसा करने से मना करता था लेकिन वो बाज़ नहीं आती थी मैं सख़्ती करता तो भी वो नहीं मानती थी, आज रात इसने आपका ज़ीक्र किया और वो आपकी शान में गुस्ताख़ी करने लगी मैंने तकिया उठाया और इसके पेट पर रख कर ज़ोर से दबा दिया यहां तक कि वो मर गई, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया" यानी तुम सब गवाह रहना इस लौंडी का ख़ून का बदला नहीं लिया जाएगा।...✍🏻
📚 मजमुआ अल ज़वायद, जिल्द 6, किताब उल हुदूद
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 70-71 📚*
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ _सनद हदीस की तस्दीक़ गैरों ने भी की_
࿐ 42 न. पोस्ट में जो हदीस आपने पढ़ी थी उसके बारे में बताया जा रहा है के ये हदीस की सनद को गैर मुक़ल्लीदीन ने भी तस्दीक़ की है, वहाबिया के शैख़ उल इस्लाम यानी इब्ने तयमिय्या ने इस रिवायत पर लिखा है कि वो औरत नाबीना सहाबी की मनकूहा थी या ममलूका लौंडी इन दोनों सूरतों में अगर इस औरत का क़त्ल नाजायज़ होता तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमा देते कि इसका क़त्ल हराम था, या फ़िर आप क़त्ल करने पर कफारा लाज़िम करते लेकिन आपने ऐसा नहीं फ़रमाया बल्कि आपने फ़रमाया तुम सब गवाह रहना इस लौंडी के ख़ून का बदला नहीं लिया जाएगा।
࿐ मालूम हुआ कि वो ज़ामिया होने के बावजूद मुबाह अल्दम थी रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी करने के सबब से इसका ख़ून मुबाह हो गया था रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब सारा वाक़्या सुन कर गाली देने की वजह से इस औरत को क़त्ल किया गया तो आपने इसका ख़ून रायगा क़रार दे दिया ये इस बात की दलील है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान ए अक़दस में गुस्ताख़ की सज़ा सर तन से जुदा है।
📚 अलसारम अल मसलू अली शातम अल रसूल
࿐ आज वहाबी गुस्ताख़ी पर गुस्ताख़ी करते हैं और फ़िर भी कहते फिरते हैं कि हम अहले हदीस हैं, उन्हें ये सोचना चाहिए कि क्या वो इस हदीस पर अमल कर रहे हैं...??? जिसे इनके इमाम ने ख़ुद सहीह क़रार दिया और कहा है कि गुस्ताख़ ए रसूल का सर तन से जुदा इसलिए तो कहते हैं कि वहाबी सिर्फ़ बोलता है समझता नहीं।...✍🏻
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 72-73 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 44
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *भाई का अपनी बहन गुस्ताख़ बहन को क़त्ल करना :* अक़्ज़ियतुल रसूल और मजमा अल ज़वायद में है हज़रत उमेयर बिन उम्मिया ख़ुद रावी हैं कि इनकी एक बहन थी, उमेयर जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होने के लिए आते तो वो आपको गालियां देती और इज़ा पहुंचाती वो मुश्रीका थी आख़िर एक दिन हज़रत उमेयर ने उसे तलवार से क़त्ल कर दिया इसके बेटे चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे कि हम इसके क़ातिल को जानते हैं तुम लोगों ने हमारी मां को क़त्ल कर दिया है।
࿐ हालांकि लोगों के बाप दादा और इनकी माएँ सब मुशरिक थे जब हज़रत उमेयर को ये ख़तरा महसूस हुआ कि वो लोग अपनी मां के बदले में क़ातिल के बजाए किसी और को क़त्ल कर देंगे तो उन्होंने हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत ए अक़दस में हाज़िर होकर सारा वाक़्या अर्ज़ कर दिया।
࿐ आपने हज़रत उमेयर से पूछा तुमने अपनी बहन को क़त्ल क्यों किया? उन्होंने अर्ज़ किया वो आपको बुरा कहकर मुझे तकलीफ़ पहुंचाती थी रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मक़तुला के बेटों को बुला कर पूछा उन्होंने असल क़ातिल की बजाए किसी और शख़्स का नाम लिया आपने उनको हक़िक़त से आगाह किया और उनकी मां को मुुबाह अल दुम क़रार दिया।...✍🏻
📚 अलसारम अल मसलू अली शातम अल रसूल
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 73-74 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ *गुस्ताख़ी करने पर अपने बाप को क़त्ल करना :* हज़रत क़ाज़ी अयाज़ (544 हिज़री) ने इब्ने क़ाने की रिवायत नक़ल की है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास एक शख़्स आया और अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! मैंने अपने बाप को सुना कि वो आपकी निसबत बुरी बात कहता है तो मैंने उसे क़त्ल कर दिया ये बात रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर शाक़ ना गुसरी।
📚 बुखारी शरीफ़, किताब अल शहादत
࿐ अबु इशहाक के हवाले से इब्ने तयमिय्या ने नक़ल किया है कि एक शख़्स ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया, या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! मैं अपने वालिद से मिला जो मुशरिकीन के साथ था।
࿐ मैंने सुना कि मेरा वालिद आपकी शान ए अक़दस में गुस्ताख़ियां कर रहा था मैं बर्दाश्त ना कर सकता और इसके गले में नेज़े की नोक झोंक कर इसे क़त्ल कर दिया ये बात रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर गिरान ना गुज़री।...✍🏻
📚 अल मुसन्नफ़ अबुल रज्जाक़, जिल्द 2
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 75 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 46
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ _गुस्ताख़ वासिल जहन्नम करने वाला ज़ियारत के लायक है गुस्ताख़ को कौन वासिल जहन्नम करेगा_ मुसन्नफ अब्दुल रज़्ज़ाक़ में हज़रत अकरम ताबे से रिवायत है कि एक शख़्स ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बुरा भला कहा यानी गाली दी तो आपने फ़रमाया"? यानी कौन है जो मेरे दुश्मन के लिए काफ़ी हो जाए, तो हज़रत ज़ुबैर ने अर्ज़ किया मैं हाज़िर हूं चुनान्चे उन्होंने उसे ललकारा और क़त्ल कर दिया, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मक़तूल का सामान हज़रत ज़ुबैर को दिलवा दिया।
📚 सीरत इब्ने हिशाम, जिल्द 4
࿐ एक शातेमा औरत ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को गाली दी आपने फ़रमाया, कौन है जो मेरे दुश्मन के लिए काफ़ी हो जाए? हज़रत खालिद बिन वलीद रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने जाकर इस शातेमा को क़त्ल कर दिया।
📚 अलसारम अल मस्लूल
࿐ _अक़बा बिन अबी माईत_ इमाम बुखारी के उस्ताद अब्दुल रज़्ज़ाक़ (211 हिज़री) ने रिवायत नक़ल की है के अक़बा बिन अबी माईत और अबी बिन खल्फ़ अल जमई दोनों दोस्त एक मर्तबा आपस में मिले, अक़बा ने अबी बिन खल्फ़ से कहा मैं तुमसे इस वक़्त तक ख़ुश नहीं हूंगा जब तक तुम (मुहम्मद) को गाली नहीं दोगे और इनकी तकज़ीब नहीं करोगे अल्लाह की कुदरत वो ऐसा ना कर सका।...✍🏻
अक़बा बिन अबी माईत) का बाकी बयान पोस्ट न. 47 में आएगा,
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 76-77 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 47
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ _अक़बा बिन अबी माईत) का बाकी बयान_ जब गज़वा ए बद्र के मौक़े पर अक़बा बिन माईत को कैदियों के हमराह लाया गया तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु को इसके क़त्ल का हुक्म दिया, इसने आपसे पूछा कि मुझे क्यों क़त्ल किया जा रहा है तो आपने फ़रमाया, अल्लाह और रसूल के ख़िलाफ़ तुम्हारे कुफ्र ओ फुजूर और तुम्हारी सरकशी की वजह से तुझे क़त्ल किया जा रहा है।
📚 मुसन्नफ अबुल रज़्ज़ाक़, जिल्द 5, सफह 355
࿐ हज़रत मौला अली करम उल्लाह वज़हा उल करीम रदिअल्लाहु तआला अन्हु उठे और उसका सर क़लम कर दिया।
📚 अल मुसन्नफ अब्दुल रज़्ज़ाक़, किताब अल मघारी
࿐ वाक़दी ने लिखा है कि अक़बा बिन अबी माईत के अलावा किसी को बांध कर क़त्ल नहीं किया गया।
📚 अल सारम, अल मस्लूल
࿐ _नज़र बिन हारिस के क़त्ल का हुक्म_ नज़र बिन हारिस बद्र के कैदियों में से था अक़बा बिन अबी माईत और नज़र बिन हारिस सिर्फ़ यही दो कैदी थे, जिन्हें नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हुक्म के तहत क़त्ल किया गया इन दोनों के सिवा किसी बदरी का क़त्ल नहीं हुआ।
📚 अल सारम, अल मस्लूल
࿐ गज़वा ए बद्र के तमाम कैदियों में से सिर्फ़ नज़र बिन हारिस और अक़बा बिन अबी माईत को क़त्ल करने का सबब ये था कि वो दोनों अपने क़ौलो फ़ेयल से रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ियां किया करते थे।...✍🏻
📚 किताब अल शिफा
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 77-79 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 48
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❝आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ _कौन है जो काब बिन अशरफ़ को वासिल जहन्नम करे.?_ इमाम बुखारी व इमाम मुस्लिम के अलावा इब्ने इशहाक, इब्ने साद वाक़दी और इब्ने अल असीर वगैराह ने नक़ल किया है कि बनी नज़ीर क़बीले का यहूदी काब बिन अल अशरफ़ जो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और आप सहाबा के ख़िलाफ़ हुजुया अशार लोगों को सुना कर उन्हें रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ख़िलाफ़ भड़काता था।
࿐ गज़वा ए बद्र में कुफ्फारे मक्का की शिकस्त पर इसे बहुत दुख हुआ, वो मदीने से मक्का गया और वहां जाकर इसने बद्र में मक़तुलीन ए क़ुरेश के मर्सियां कहे, फ़िर वापस आकर इसने एक मुस्लिम ख़ातून उम्मे अल अफ़ज़ल बिन्ते हारिस और दीगर मुस्लिम ख़्वातीन के मुतअल्लिक़ इश्क़िया अशार कहे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया या अल्लाह काब इब्ने अल अशरफ़ का ऐलान ए शर और शेर कहने को जिस तरह चाहे मुझसे रोक दे।
📚 अल मघाज़ी, जिल्द 1, सफह 70
࿐ आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये भी फ़रमाया, इब्ने अल अशरफ़ के ख़िलाफ़ कौन मेरी मदद करेगा? इसने मुझे इज़ा पहुंचाई है।...✍🏻
📚 अल मुस्तदरक अला अल सहीहीन, जिल्द 3, सफह 492
📚 अल मघाज़ी, जिल्द 1, सफह 70
पोस्ट न. 48 का बाक़ी बयान पोस्ट 49. 50. 51 में आएगा,
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 80 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 49
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लिमा अंसारी ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम, मैं इसे क़त्ल करूंगा आपने इनको काब बिन अल अशरफ़ के क़त्ल की इजाज़त देदी हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लिमा ने इस काम की फ़िक्र में खाना पीना छोड़ दिया, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इन्हें बुला कर पूछा ए मुहम्मद! क्या तुमने खाना पीना तरक कर दिया है।?
࿐ उन्होंने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने आपके साथ जो वादा किया है इसके क़ाबिल हूं या नहीं, आपने फ़रमाया तुम पर सिर्फ़ कोशिश करना फ़र्ज़ है आप हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लिमा को इस सिलसिले में हज़रत साद बिन माज़ से मशवरा करने की नसीहत फ़रमाई।
࿐ इसके साथ हज़रत इबाद बिन बशर हज़रत, अबु नायला सलकान बिन सलीमा, हज़रत हारिस बिन ओस, और हज़रत अब्स बिन जबर भी रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इजाज़त से इस महम में शरीक कार हो गए, जिस रात काब बिन अल अशरफ़ को क़त्ल किया गया रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इस रात हालत ए क़्याम में रहे और नमाज़ अदा फरमाते रहे सुबह जब आपने इनके नारे हाए तकबीर की आवाज़ें सुनी काब को क़त्ल कर दिया गया है।...✍🏻
बाक़ी बयान पोस्ट न. 50. 51 में आएगा
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 89-81 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 50
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ वो लोग वापस पहुंचे तो उन्होंने आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मस्जिद ए नबवी के दरवाज़े पर खड़ा पाया और उन्होंने आपको काब के क़त्ल में कमियाबी की खुश खबरी सुनाई हज़रत अल्लामा क़ाज़ी अयाज़ लिखते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने काब बिन अल अशरफ़ को क़त्ल करने की वजह ये बयान फ़रमाई कि इसने अल्लाह और उसके रसूल को अज़ियत पहुंचाई है ये हदीस इस बात पर दलील है कि काब का क़त्ल शिर्क नहीं बल्कि अल्लाह के महबूब को इज़ा पहुंचाने की वजह से था।
📚 अल शिफा, जिल्द 2, सफह 487
࿐ _गुस्ताख़ अबु राफेय वासिल जहन्नम हुआ_ इब्ने हिशाम के मुताबिक़ क़बीला ओस ने जब गुस्ताख़ ए रसूल काब बिन अल अशरफ़ यहूदी को क़त्ल किया तो खज़रज वालों ने कहा कि ये नहीं हो सकता कि हम ओस से पीछे रह जाएं और वो हमसे सबाक़त ले जाए, उन्होंने आपस में मशवरा किया कि अब कौन है जो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से अदावत रखता हो जैसे काब बिन अल अशरफ़ था, उन्होंने तय किया कि आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ऐसी अदावत रखने वाला अबु राफेय सलाम बिन अबी अल हक़ीक़ है जो ख़ैबर में रहता है।
࿐ क़बीला खज़रज वालों ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर इसे वासिल जहन्नम करने की इजाज़त चाही और आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इजाज़त देदी, सहीह बुखारी में हज़रत बरा बिन अज़ब से मरवी एक रिवायत के मुताबिक़ अबु राफेय अपने क़िले वाक़ए हिजाज़ में रहता था ये गुस्ताख़ ए रसूल था और आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुख़ालिफ़ीन की मदद करता था।...✍🏻
बाक़ी बयान पोस्ट न. 51 में मुकम्मल हो जाएगा
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 81-82 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 51
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ वो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इज़ा पहुंचाता और आपके ख़िलाफ़ शरारतें करता रहता था, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अबु राफेय को क़त्ल करने के लिए खज़रज क़बीले बनी सलमा के 5 अफ़राद को मामूर फ़रमाया वो ये हैं हज़रत अब्दुल्लाह बिन अतीक़, हज़रत मसूद बिन सन्नान, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अनीस, हज़रत अबु क़तादा अल हारिस बिन राबीय, और हज़रत खज़ाई बिन मसूद।
࿐ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अतीक़ ने अबु राफेय को इसके क़िले में दाख़िल होकर क़त्ल कर दिया और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इसके क़त्ल की ख़ुश खबरी सुनाई अबु राफेय 3 हिज़री में क़त्ल किया गया।
📚 बुखारी, किताब अल मघारी
࿐ _अगर काबे के गिलाफ़ में छुपे हुए हो तो क़त्ल कर दिया जाए_ फतेह मक्का के मौक़े पर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जाओ तुम आज़ाद हो का आम ऐलान मुआफी फरमा कर हज़ारों कुफ्फार को पनाह दी मगर चंद ऐसे दुश्मन थे जिनके मुताबिक़ फ़रमाया कि अगर ये गिलाफ ए काबे में लिपटे हुए हो तो इनकी गर्दन उड़ा दी जाए।...✍🏻
☝🏻 गिलाफ ए काबा के पीछे छुपे हुए गुस्ताख़ के लिए जो बताया है इनमें चंद एक का ज़िक्र पोस्ट न. 52, 53 में मुलाहिज़ा कीजिएगा
पोस्ट न. 48 का बयान पूरा मुकम्मल हुआ,
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 83-84 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 52
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ अब्दुल्लाह बिन ख़तल : अब्दुल्लाह बिन ख़तल इन गुस्ताख़ान ए रिसालत में से था जिसकी गुस्ताख़ाना हरकत पर इसे क़त्ल करने का हुक्म दिया गया था, इसने दो लौंडियां रखी हुई थीं जिनके नाम फरतना और अरनब थे वो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हुजु में शेर कहता था और इसकी लौंडियां इन हुजुईया अशआर को गाती थीं।
࿐ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फतेह मक्का के मौके पर हुक्म दिया था कि अगर इसे काबे के गिलाफ में छुपा हुआ पाओ तो भी क़त्ल कर दो वो गिलाफ ए काबा में छुपाया गया तो इसे वहीं क़त्ल कर दिया गया इसे इर्तेदाद में क़त्ल किया गया एक रिवायत है कि इसे हज़रत अम्मार बिन यासिर के क़सास में क़त्ल किया गया।
📚 सुनन निसायी, किताब अल महारेबा
࿐ फर्तिना और अरनब : ये दोनों अब्दुल्लाह बिन ख़तल की लौंडियां थीं ये दोनों मुघनियां थीं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हूजु गाया करती थीं इन दोनों में से एक क़त्ल कर दी गई वाक़दी ने लिखा है कि जिसे अमान मिली और जो इस्लाम ले अाई थी वो फर्तिना थी ये औरत हज़रत सैय्यदना उस्मान गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु के अहेद में पसलियां टूट जाने की वजह से फ़ौत हुई।...✍🏻
📚 वाक़दी, किताब अल मघारी
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 84-85 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 53
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हविरस बिन नक़ीस : हविरस बिन नक़ीस वहाब जो मक्का में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अज़ियतें दिया करता और आपकी हुजू कहता था फतेह मक्का के मौके पर इसने अपने घर से निकल कर मुखालिफ़ घरों में छुपते छुपाते भाग जाने की कोशिश की लेकिन हज़रत सैय्यदना अली करम उल्लाह वज़हा उल करीम रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने इसे पकड़ कर क़त्ल कर दिया।
📚 इब्ने अल असीर अल कामिल, जिल्द 2
࿐ सऊ सल्ल बूढ़ा गुस्ताख़ : अबु अफ़क सऊ सल्ल का बूढ़ा यहूदी था वो लोगों को रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त पर बद अंगेख़ता और अशआर कहता था. गज़वा ए बद्र के मौक़े पर जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिहाद के लिए तशरीफ़ ले गए और जब आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फतेह के बाद वापस मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तो अबु अफ़क का हसद के मारे बुरा हाल हो गया।
࿐ इस मौक़े पर भी शेर कह रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हिजरत के 26वी महीने में अबु अफ़क के क़त्ल के लिए हज़रत सलाम बिन उमर अल अम्मारी को भेजा गर्मी के मौसम में अबु अफ़क एक रात मैदान में सोया हुआ था कि हज़रत सलाम बिन अमीर ने तलवार से इस क़त्ल कर दिया।...✍🏻
📚 सहीह बुखारी, किताब अल मघाज़ी
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 86 📚*
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 54
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ गुस्ताख़ ए रसूल और हमारे अस्लाफ़ : हारून अल रशीद बादशाह ने इमाम मालिक से मसअला पूछा गुस्ताख़ ए रसूल की सज़ा क्या कोड़े से मारना काफ़ी नहीं इस पर हज़रत इमाम साहब ने फ़रमाया ऐ अमीर उल मोमिनीन! गुस्ताख़ ए रसूल गुस्ताख़ी के बाद भी ज़िन्दा रहे तो फ़िर उम्मत को ज़िन्दा रहने का हक़ नहीं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुस्ताख़ को फिल्फ़ूर गिरफ़्तार करके क़त्ल कर दिया जाए।
࿐ रद उल मुख़्तार में इमाम मुहम्मद बिन साहनून की रिवायत है कि तमाम उलमा का इस पर इज्मा है हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की गुस्ताख़ी करने वाला आपकी शान में कमी करने वाला काफ़िर है और तमाम उम्मत के नज़दीक वो वाजिब अल क़त्ल है।
📚 रद उल मुख़्तार, जिल्द 3
࿐ अमीर उल मोमिनीन हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदिअल्लाहु तआला अन्हु के तारीखी अल्फ़ाज़ मुलाहिज़ा हो जो शख़्स हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की गुस्ताख़ी करे इसका ख़ून हलाल और मुबाह है।
࿐ सहीह बुखारी में है कि हज़रत अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने एक मौक़े पर शातमीन रसूल को क़त्ल करने के बाद जला देने का हुक्म सादर फ़रमाया।
࿐ हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने इरशाद फ़रमाया जो किसी नबी को सबब (गुस्ताख़ी करना या बुरा कहना) करे इस क़त्ल कर दो जो किसी सहाबी को बुरा भला कह इसे कोड़े मरो।
࿐ अल अशाबा वन नज़ायेर में है काफ़िर अगर तौबा क़ुबूल करे तो उसकी तौबा क़ुबूल कर ली जाए लेकिन इस काफ़िर की तौबा क़ुबूल नहीं जो नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हुज़ूर गुस्ताखियां करता है।...✍🏻
📚 अज़ मौलवी बहा उल हक़ अमृतसरी, मतबुआ 1357 हिज़री
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 87-88 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 55
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ गुस्ताख़ ए रसूल रेजीनॉल्ड और सुल्तान सलाह उद्दीन अयुबी : शाम के फिरंगी फरमान रवा में रेजीनॉल्ड सबसे ज़्यादा फरेबकार फितना पर्वर और मुसलमानों का दुश्मन था शर ओ फसाद इसकी फितरत में शामिल था ज़्यादातर वही सलीबियों को मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काता था. इसको इस्लाम और मुसलमानों से इतनी अदावत थी के इसने 578 हिज़री में मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा पर लश्कर कशी करते हुए हमला करने का नापाक इरादा किया मगर कुदरते इलाही के वो इसको पूरा न कर सका।
࿐ एक साल बाद 579 हिज़री में इसने दुबारा अपनी मकरूह कोशिश की लेकिन अब की मर्तबा इसको फ़िर नाकामी का मुंह देखना पड़ा लायन पौल लिखता है, रेजीनॉल्ड ने जज़ीरा नुमा अरब पर फौज़ कशी का क़सद किया ताकि मदीना तय्यबा में हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रोज़ा ए मुबारक को मुन्हादम और मक्का मुकर्रमा में खाना काबा को मस्मार करदे।
࿐ इसके लिए इसने ऐसे जहाज़ तय्यार करवाए थे जिनके टुकड़े हो सकते थे इन टुकड़ों को वो करक से खलीज अक़्बा के साहिल पर ले गया और इन्हें जोड़ कर जहाज़ों का एक बेड़ा तय्यार किया और एज़ाब को लौटने पर चला. एज़ाब बेहर ए क़ुल्ज़िम के अफ़्रीकी साहिल पर वाक़ेय था इसने दो जहाज़ों को बीच में डाल कर आयेला का बेहरी रास्ता बन्द कर दिया. मुसलमानों को इसकी खबर हुई तो इनका जहाज़ी बेड़ा ईसाईयों के बेड़े का ताक़ुब में चला।...✍🏻
पोस्ट न. 55 का बाक़ी बयान पोस्ट 56. 57 में आएगा,
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 88-89 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 56
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ इसका अमीर अलजर लौलु था इसने आते ही पहले आयेला का बेहरी रास्ता ख़ोला और अपनी फ़ौज को अल्हूरा तक जो बेहर ए क़ुल्ज़िम की छोटी बंदरगाह थी ले आया रेजीनॉल्ड ने इसी बंदरगाह से मदीना मुनव्वरा पर हमला करने का इरादा किया था।
࿐ फिरंगियों ने जुंही इस्लामी फ़ौज को आते देखा तो वो ऐसे घबराए कि जहाज़ों से उतर कर पहाड़ों की जानिब भाग गए लौलु ने बडडुओं से घोड़े लेकर सिपाहियों को इन पर सवार किया और दौड़ कर दुश्मन को घर और बाग़ में जा पकड़ा और इनके टुकड़े उड़ा दिए रेजीनॉल्ड ख़ुद भाग गया मगर इसके साथ वालों में बहुत से लोग क़त्ल किए गए।
📚 लायन पौल, सलाह उद्दीन, सफह 156
📚 बाहवाला तारीख़ अल इस्लाम, शाह मोइनुद्दीन नदवी, जिल्द 4
࿐ हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ क़ुदुस सराह अपनी तफ़्सीर फतह उल अज़ीज़ क़ौल तआला की तफ़्सीर में हज़रत सहल बिन अब्दुल्लाह तस्तरी से नक़ल फरमाते हैं हक़ायक़ तन्ज़ील में है कि मर्द सहीह उल ईमान और मोमिन ख़ालिस के लिए लाज़िम है कि गुमराही से अंस ना पकड़े और ना इनके साथ मजलिस करे और ना मेल जोल रखे।...✍🏻
बाक़ी बयान पोस्ट न. 57 में मुकम्मल हो जाएगा,
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 90 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 57
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ और न इनके हमराह खाए पिए और इसकी ज़ात में से गुमराहों के साथ नफ़रत और अदावत का इज़हार हो और जो शख़्स बद अक़ीदा लोगों से दोस्ती और प्यार करता है इससे नूरे ईमान सलब हो जाता है यानी वो काफ़िर मर गया और ऐसे ही तफ़्सीर रूह उल मानी में मज़कूर है इसलिए कि तमाम गुमराह फिरके दोज़ख़ी हैं बजुज़ फिर्का अहले सुन्नत व जमाअत और वो आज के दिन मज़हब अयेम्मा अर्बा में मुन्हासिर है।
📚 तफ़्सीर अज़ीज़ी, पारा 29, अफ़घानी दर उल कुतुब, लाल कुवान, दिल्ली सफह 56
࿐ ताहतावी हाशिया दुर ए मुख़्तार किताब ज़बाएह में फ़रमाया जो शख़्स जम्हूर अहले इल्म वा फिक़्ह सवाद ए अज़म से जुदा हो जाए वो ऐसी चीज़ में तन्हा हुआ जो उसे दोज़ख़ में ले जायेगी. तो ऐ गिरवाह मुस्लिमीन तुम पर फिरका नजिया अहले सुन्नत वा जमाअत की पैरवी लाज़िम है के ख़ुदा की मदद और इसका हाफ़िज़ ओ कारसाज़ रहना मुवाफ़िक़त अहले सुन्नत में है।
࿐ और इसका छोड़ देना और गज़ब फार्मा और दुश्मन बनाना सुन्नियों की मुख़ालिफ़त में है और ये निजात दिलाने वाला गिरवाह अब चार मज़हब में मुजतमी है। हनफ़ी, मालिकी, शाफ़ई, हमबली, अल्लाह तआला इन सब पर रहमत फरमाए इस ज़माने में इन चार से बाहर होने वाला जहन्नमी है।...✍🏻
📚 हाशिया अल ताहतावी अला अल दर उल मुख़्तार, किताब अल ज़बाएह, जिल्द 4, सफह 153, मतबुआ दर उल मारिफ़त बीरूत
पोस्ट न. 55 का बयान मुकम्मल हुआ
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 91-92 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 58
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हज़रत हाजी हाफ़िज़ सैय्यद पीर जमात अली शाह साहब अली पुरी का गुस्ताख़ियों से रवैया कोहाट 15 अप्रैल 1938 चार दिन से हज़रत हाजी हाफ़िज़ पीर सैय्यद जमात अली शाह साहब अली पुरी यहां रौनक अफ़रोज़ हैं आज नमाज़ ए जुमा के बाद आपने एक अज़ीम उल शान जलसे में तक़रीर फ़रमाई जिसमे आपने 17 दिसंबर 1937 के कोहाट वाले जलसे में उल्मा का फ़ैसला फतवा की तस्दीक़ करते हुए ऐलान किया कि उल्मा ए किराम का फतवा लफ्ज़ वा लफ्ज़ दुरुस्त है मशरिक़ी काफ़िर, मुरतद और ज़िंदीक है जो शख़्स इसके अक़ायेद का मुसददिक़ ओ मवीद हुआ वो भी बे ईमान ओ काफ़िर है फ़रमाया मैं हुक्म देता हूं कि तमाम मुसलमान ख़ुसुसन मेरे साथ ताल्लुक़ रखने वाले खाक़सारी तहरीक से अलग हो जाएं।
࿐ जो लोग इस गुमराह किन तहरीक से अलग ना हो इनका बॉयकॉट किया जाए और अगर इसी हालत में मर जाएं तो इनको मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़न ना किया जाए आपने ये हुक्म दिया है कि मेरा जो मुरीद ख़ाकसार या ख़ाकसारियत का मावन है वो ख़ाकसारियत को छोड़ कर ही मेरा मुरीद हो सकता है वरना इसको मेरे साथ कोई ताल्लुक़ ना होगा मालूम हुआ कि आपके इस हुक्म का असर ये हुआ कि तक़रीबन 15 ख़ाकसारों ने आपके सामने ख़ाकसारियत से तौबा की।
࿐ जिन में से मुल्ला शाफ़ई उद्दीन क़ाज़ी ख़ाकसारन मुल्ला उस्मान सलार तबलीग मुंशी ज़रीफ खान और मुहब्बत खान सलार क़ाबिल ज़िक्र हैं तौबा से पहले मुहब्बत खान सलार मज़कूर की शादी में शुमुलियत से हज़रत पीर साहब ने मुसलमानों को रोक दिया था चुनान्चे किसी मुसलमान ने इसके यहां जाकर खाना खाना गवारा ना किया ख़ाकसार ए करम ए इलाही फरोश ने तौबा नहीं की इसलिए पीर साहब ने इसको इस मजलिस से निकलवा दिया।...✍🏻
📚 किताब अल मशरिक़ी अला अल मशरिक़ी अज़ मौलवी बहा उल हक़ अमृतसरी मतबुआ 1357
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 92-93 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 59
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हु का जवाब : सुले कुल्ली के मर्ज़ में मुब्तिला गुस्ताख़ों से मेल जोल करने पर सैय्यदा उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हु की हदीस पेश करते हैं।
࿐ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कभी अपनी ज़ात के लिए इन्तेक़ाम नहीं लिया लेकिन अगर किसी ने अल्लाह तआला की हुर्मत ओ इज़्ज़त की तौहीन की तो फ़िर अल्लाह तआला की खातिर इससे इन्तेक़ाम लिए।
📚 किताब उल शिफा, जिल्द 1, सफह 221
࿐ इसकी तशरीह अल्लामा क़ाज़ी अयाज़ फरमाते हैं जान लो कि इससे ये मतलब नहीं कि आपने उस शख़्स से इन्तेक़ाम नहीं लिया जिसने आपको गाली दी या आपको तकलीफ़ दी या आपकी तक़जीब की ये तो सब अल्लाह तआला की हुर्मात में से हैं और अल्लाह तआला की हूर्मात की तौहीन है इसलिए आपने इनका इन्तेक़ाम लिया लेकिन अगर किसी ने आपसे सुए अदम सुलूक किया या क़ोल ए फेल से आपकी जान और माल के साथ कोई बद मामला किया और ऐसा करने वाले का इरादा आपको तकलीफ़ पहुंचाना नहीं था बल्कि ऐसा इसने अपनी फित्री जब्लत की बिना पर किया।
࿐ जैसे बडडुओं ने आपसे जहालत और उजड़पन की वजह से आपसे कोई सुलूक किया या बश्री तकाज़ो और कमज़ोरियों की बिना पर कोई अमल हो गया तो आपने इसका इन्तेक़ाम नहीं लिया जैसे एक अराबी ने आपकी चादर खींच ली थी हत्ता के आपकी गर्दन मुबारक पर इसका निशान पड़ गया था, ऐसी सूरतों में आपका इन लोगों से दर गुज़र फरमाना अहसान था।...✍🏻
📚 किताब उल शिफा
बाक़ी बयान पोस्ट न. 60 में मुकम्मल हो जाएगा,
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 94 📚*
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📮 नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू ان شاء الله
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🅿🄾🅂🅃 ➪ 60
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❝ आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता!?
*या रसूलल्लाह ﷺ* ❞
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࿐ मगर जो अपने आपको आलिम कहलाए मेंबर पर बैठ कर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्म पर ऐतराज़ करे या ज़खीम किताबें लिख कर ये साबित करने की कोशिश करे कि नमाज़ में आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ख़्याल आने से नमाज़ फासिद होती है फ़िर ऐसे बद बख्तों से सलाह का हाथ बढ़ाना कैसा...???
࿐ काज़ी अयाज़ लिखते हैं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इस्लाम के इब्तेदाई ज़माने में लोगों के दिलों में अपनी मुहब्बत पैदा करते, उनके दिलों को अपनी तरफ़ फेरते, ईमान को उनके पसंदीदा बनाते और इनकी खातिर मदारत करते थे आप अपने सहाबा किराम की मदद फरमाते थे।
࿐ तुम आसानी पैदा करने वाले बनाकर भेजे गए हो, न की नफ़रत फ़ैलाने वाले और आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये भी फरमाते आसानी पैदा किया करो और लोगों को मुश्किल में न डाला करो।
📚 किताब उल शिफा, जिल्द 2, सफह 225
࿐ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम काफिरों और मुनाफ़िक़ों से मदारत करते, उनसे अच्छे अंदाज़ से पेश आते उनकी ग़लत बातों से चश्म पोशी कर लिया करते, उनकी तरफ़ से दी जाने वाली तकलीफ़ बर्दाश्त करते और उनके मज़ालिम पर सबर करते थे।
࿐ लेकिन आज अगर वो हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इज़ा पहुंचाएं तो हमारे लिए जायज़ नहीं के हम उनकी ऐसी हरकतों पर सबर करें।
📚 फतह उल बारी, शराह बुखारी, जिल्द 10, किताब उल अदब
*आख़री पोस्ट थी ये उनबान पूरा मुकम्मल हुआ*
🤲🏻 ❈ अल्लाह तआला हम सबको सिदके दिल से मसलके आला हज़रत पर चलते हुए नामूसे रिसालत माअब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर पहरा देने वाला बनाए।...✍🏻 *आमीन*
*📬 आपके दुश्मन से हमारा क्या रिश्ता या रसूलुल्लाहﷺ सफह 95-96 📚*
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*📮 पोस्ट मुक़म्मल हुआ अल्हम्दुलिल्लाह 🔃*
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