Wednesday, 1 December 2021

इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू


 


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  *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  इस्लाम ने पहले दिन से ही मर्दो के साथ साथ औरतों की तालीम व तरबियत पर खुसूसी तवज्जो दी है, रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ख्वातीने इस्लाम मुख्तलिफ मसाईल के इस्तिफ्सार के लिये पहुँचती और नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने अब्रे करम से उन की तिश्नगी (इल्म की प्यास) को बुझाते और उन के कल्ब व नज़र को सैराब फरमा देते थे।

࿐  *दुतराने इस्लाम की तड़प :-*  हज़रते अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि एक सहाबिया रदियल्लाहु अन्हा नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई। उन्होने आकर कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैका वसल्लमा! मर्द हज़रात को यह सुनेहरा मौका मयस्सर है (मिलता है) कि आप की बातें सुनते हैं और उन को याद करते हैं, जबकि हमें इतना वक्त नही मिलता ,उन को ज्यादा वक्त मिल रहा है और वे आप के फरामीन को ज्यादा याद कर रहे हैं, तो मै औरतों की तरफ से नुमाइंदा बन के आई हूँ, हमारा भी हक है और हमारा एक तकाजा है कि : " एक दिन हमें अता फरमा दें, यानी सात दिनों में से एक दिन हमें दे दें, उस दिन हम आप के पास हाज़िर रहें , जो रब ने आप को सिखाया है, आप उस में से हमें भी इनायत फरमाएं।...✍🏻

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*

     *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  उस खातूने इस्लामी ने रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने अपनी एक इल्मी तड़प का इजहार किया, जिस से पता चलता है कि उस वक्त दुख्तराने इस्लाम में किस कदर दीने इस्लाम की तड़प थी। आज मगरिब-ज़दा औरतें जो हुकूक माँगती हैं कि मर्दो को ये मिला है तो हमें भी ये मिले, उस में वो बातें अजीबो गरीब होती हैं जिन का वो मगरिब-ज़दा औरतें तकाज़ा कर रही होती हैं। उन के लिये थियेटर (सिनेमा हाल) खुल गए हैं, हमारे लिये भी होना चाहिए। 

࿐  मगर उस वक्त दुख्तराने इस्लाम सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में मौजूद हैं और कहती हैं कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैका वसल्लम! मर्दो को ये वक़्त मिल रहा है कि उन की आँखों के कटोरे आप के हुस्न के समन्दर से लबरेज़ हैं और मर्दो के कान आपके कीमती अल्फाज़ के फूलों को चुनने में मसरूफ रहते हैं और उनके कल्बो नजर पर आप के चेहरे की तजल्ली पड़ती है और आप के अल्फाज़ याद कर के वह अपने सीनों को मुनव्वर करते हैं, तो एक दिन हमें भी अता फरमा दें कि जो सिर्फ हमारा दिन हो, उस दिन हमारी क्लास लगे, आप इर्शाद फरमाएं और हम सुनें, हम याद करें और हम आगे पहुँचाएं। *ये खातूने इस्लामी की तड़प थी!*

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  *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की इस दरख्वास्त पे तवज्जो करते हुए फौरन फैसला फरमा दिया किः तुम फलां दिन और फलां जगह जमा हो जाओ, मुझे मेरे रब ने जो इल्म अता फरमाया है उस से तुम्हें भी हिस्सा अता फरमाउँगा- रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें बकाईदा वक्त दिया, बकाईदा उन्होंने (ख्वातीने इस्लाम ने) अपना हिस्सा माँगा और फिर उन को सिखाया। सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पहले भी उन पे निगाहे इनायत फरमा रहे थे, अब बतौरे खास उन के लिये दिन मुकर्रर / मोईय्यन हो गया वक्त को मोईय्यन कर दिया गया कि ये दिन तुम्हारी क्लास का दिन है, इस में तुम को आना है, इस में तुम्हारे सामने अल्लाह तआला के दिये हुए इल्म से मैं बयान करूँगा, तुम उसे याद कर के अपनी नस्ल तक उस इल्म को पहुँचाना।

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   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस सिलसिले के मुख़्तलिफ खुतबात हैं, जो सेकड़ों हैं जिनमें दुख़्तराने इस्लाम को बराहे-रास्त खिताब करते हुए उन को मुख़्तलिफ अहकाम पर मुत्तलेअ ( खबरदार) किया और उनकी इल्मी हैसियत की तामीर की वि ख्वातीन जो पहले आम सा इल्म रखती थी, उनमें से कोई मुफस्सिरा बन गई कोई मोहदिदसा बन गई और कोई फकीहा बन गई।

࿐  ये अंदाज़ उन ख्वातीने इस्लाम को अल्लाह तआला ने अता किया कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद से कब्ल जिन का नाम सिवाए जहालत व हिकारत के कुछ न था, रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को मुकाम भी दिया और अपनी तरफ से उलूम का एक निसाब भी अता फरमाया!

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*⚘​ दुखतराने इस्लाम का निसावे जिंदगी ⚘​*
 
࿐  इस सिलसिले में कुरआने मजीद की सूरह नंबर 60 (सूरह मुमतहाना) में एक खास अहद का जिक्र है जो औरतों से लिया गया कि वह इस पर बैत कर लें और नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से वादा करें कि सारी जिंदगी इस पर अमल करती रहेंगी और इस को अपनी जिंदगी का मुकम्मल निसाब बनाएंगी- कुरआने मजीद में है कि , मकुरआन सूरह नंबर 60 (सूरह मुमतहाना)

࿐  *तर्जुमाः* (ऐ नबी जब तुम्हारे हुजूर मुसलमान औरतें हाज़िर हो)

࿐  *(तर्जुमाः* इस पर बैत करने को)

࿐  *(तर्जुमाः* वह अल्लाह का शरीक न ठहराएंगी)

࿐ *(तर्जुमाः* और न चोरी करेंगी)

࿐ *(तर्जुमाः* और न बदकारी)

࿐  *(तर्जुमाः* और न अपनी औलाद को कत्ल करेंगी) मोमिनात ये अहद करें कि वो न शिर्क करेंगी, न चोरी करेंगी, न बदकारी करेंगी और न ही अपनी औलाद को कत्ल करेंगी।

࿐ *(तर्जुमाः* और न ये बोहतान लाएंगी जिसे अपने हाथों और पाउँ के दरमियान यानी मुजए विलादत में उठाए) इस का मतलब ये है कि उस वक्त कोई बाँझ औरत किसी का बच्चा उठा कर ले जाती और अपने खाविन्द (शोहर) से कहती कि ये मेरे यहाँ पैदा हुआ है (यानी जब शोहर सफर से लौट के आता तो वह किसी और के बच्चे को ये जाहिर करवाती कि मेने इस को जन्म दिया है और ये तेरा बच्चा है। इस तरह की वारदातें होती थीं, तो अल्लाह तआला ने फरमाया कि उन औरतों से बैत कर लो कि ऐसा काम इस्लाम की कोई बेटी न करे।

࿐  *(तर्जुमाः* और किसी नेक बात में तुम्हारी नाफरमानी न करेंगी) इस में हर चीज़ दाखिल होगी कि जो भी अच्छाई का काम है ये औरतें जो शौक से कलिमा पढ़ रही हैं उन से कहो कि तुम मारूफ (अच्छे काम) में मेरी मुखालिफत नही करोगी।

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*⚘​ दुखतराने इस्लाम का निसावे जिंदगी ⚘​*
 
࿐   *"मारूफ' में शामिल कामः* पइस सिलसिले में मोहदिसीन का कौल है कि 'मारूफ' में जो बैत हो रही थी तो वह ये थी कि : मर्ग के वक़्त चेहरा नही नोचेंगी, मातम नही करेंगी, हाय हाय नही करेंगी, गिरेबान नही फाड़ेंगी, और न ही चिल्लाएंगी, सारी जिंदगी अपने बालों को नंगा नही होने देंगी और अपने बाल बिखरने नही देंगी और उनके बाल किसी को नजर नही आएंगे।

࿐  इस पर वो बैत करें कि हमारे बाल किसी को नजर नही आएंगे और किसी की नजर हमारे बालों पर नही पड़ेगी। और सारी जिंदगी किसी गैर मेहरम से गुफ्तगू नही करेंगी यानी इस बात पर बैत करें कि वह किसी ना मेहरम से नहीं बोलेंगी।

📙 ( तफसीर कुरतुबी) 

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*⚘​ दुखतराने इस्लाम का निसावे जिंदगी ⚘​*
 
࿐   अगर ये ऐसी बात करने जाए तो फिर उन की बैत वसूल कर लो अगर ये बैत इस पर करना चाहती हैं ईमान की खातिर तो आप उन से बैत वसूल कर लो और फिर अल्लाह तआला से उन के गुनाहों की मगफिरत की दरख्वास्त भी करो। जो ख्वातीन इस पर बैत कर रही हैं. इस से पहले (मेरा फरमान पहुँचने से पहले) जो कुछ हो चुका है, तो ऐ मेहबूब सल्लल्लाहु अलैका वसल्लम! तुम मुझ से कहो तो मै उन को माफ कर दूंगा यानि जिस को माफ करना है वह कहता है कि मेहबूब तुम मुझ से कहो 
ए मेहबूब! आप उन के लिये इस्तिग़फार की दुआ अल्लाह 'तआला से करें और आप उन के लिये मगफिरत तलब करें। तो फिर क्या होगा?

࿐  (तर्जुमाः बेशक अल्लाह तआला बख्शने वाला, मेहरबान है)

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐   कुरआने मजीद हमारे घरों में मौजूद है, जिस वक्त कोई बाप अपनी बेटी को रुखसत करता हैं तो वह कुरआने मजीद के साये में रुखसत करता है. कुरआने मजीद जहेज़ में दिया जाता है, ये एक रस्म है जो अदा की जाती है। लेकिन हकीकत ये है कि जो कुरआने मजीद कहता है उस को समझा जाए, उस के मुताबिक अमल किया जाए। इस सूरह मुमतहाना की आयत नंबर 12 का जो तकाजा है उस को अगर कोई इस्लाम की बेटी सामने रखे तो उस की पूरी जिंदगी नूर से भर जाएगी।

࿐  थोड़ी सी उस को पाबंदी करना पड़ेगी, थोड़ा सा अपने आप को संभालना पड़ेगा। अगर औरत बिगड़ गई तो मुआशरे का सबसे बड़ा फितना है और शैतान का जाल है और उस को शैतान का जहरीला काँटा (या तीर) करार दिया गया और उस को फित्नों की माँ कह दिया गया।

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐   यही खातून मोमिना बनी और फिर उसने अपने आप को संभाला और कुरआने मजीद के साये में रही और हज़रते सय्यिदा आयशा सिद्दिका रदियल्लाहु अन्हा की तालीमात का जेवर पहना और हज़रते सय्यिदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की चादर के साये में रही तो फिर उस को सादिका कहा गया, उस को कानिता कहा गया, उस को साबिरा कहा गया, उस को साइमा कहा गया, उस को साजिदा कहा गया, उस को राकिआ कहा गया, यही नस्ले नो का बहुत बड़ा मजहर करार पाई. यही इंसानी नस्ल के निखार का बहुत बड़ा मम्बा और खेत करार पाई!

࿐  उसी से तकवा के फूल खिले,उसी से परहेजगारी की बहार आई, यही सालेहीन की माँ कहलाई, उसी की गौद को जन्नत के मनाज़िर में से एक मंजर कहा गया, उसी की तबियत को इंसान की बहुत बड़ी दर्सगाह करार दिया गया और उस एक औरत के शुस्ता/ एक्टिव किरदार को 70 सिद्दीकों से बड़ा किरदार करार दिया गया। क्योंकि उस ने कुरआने मजीद सीखा है और कुरआने मजीद को सुना हे. नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान को सुन के पूरी जिंदगी उन फरामीन ए मुस्तफा के जेरे साया बसर कर डाली है।

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐    एक तरफ आज का माहौल, मोबाईल का इस्तेमाल, उस में पेकेजेज और घंटों गैर मेहरमों से बातें, इधर कुरआने मजीद का फरमान है कि: मेंरे मेहबूब जिस ने तेरा कलिमा पढ़ा है वह जिंदगी भर गैर मेहरम से नही बोलेगी, उस की| किसी ना-मेहरम से बात नही होगी, उन से ये बैत वसूल करो और ये बैत लाजिम है।

࿐  आज (मआज अल्लाह) गैर मेहरम से बातें करने को गुनाह नही समझा जा रहा और फिर टाईम के साथ साथ अपना ईमान जाया किया जा रहा है। सय्यदे आलम सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने एक दुख्तरे इस्लाम को बताया कि घर में कैसे रहना है और बाहर कैसे निकलना है, अगर घर में किसी की मौत का वक्त है तो उस वक्त कैसे रहना है, अगर शादी का मोका हो तो फिर कैसे रहना है!

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࿐   आज (मआज अल्लाह) ये समझ लिया गया है कि शादी का मोका होता है तो उस मोके पे गोया एक मोमिना, मोमिना नही रहती, यानी उस को इस वक्त छुट्टी दे दी गई है। पता ही नही चलता है कि ईसायन या डायन है, या कोई मुसलमान खातून है। कोई यहुदिया है या कोई मोमिना। शादी की तकरीबात को अपनी जिंदगी से यूँ खारिज करार दिया जाता है गोया कि जो इस्लाम के तकाजे थे वो बाकी जिंदगी में थे, आज का दिन उस से बरी है। इस में छोटे बड़े सारे शरीक होते हैं। शरीअत की खिलाफवर्जी की लहर में अक्सर हाजी और नमाज़ी भी बह जाते हैं। मगर जिसे अल्लाह बचाए। और फिर जिस वक्त कोई मर्ग या अफसोस वगैरह का मोका होता है तो उस वक़्त जो बेसब्री और इस्लामी अहकामात की खिलाफवर्जी होती है, वह एक अलेहदा अलमिया है।

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*⚘​  औरत  अच्छाई  या  बुराई  के  पैमाने  में  ⚘​*

࿐   आज इस वक़्त ये पैगाम वसूल करते हुए कुरआने मजीद के फरामीन हमारे सामने हैं और ध्यान हमारा उस की तरफ है अल्लाह तआला की मगफिरत की बारिश बरस रही है। और सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाहे नाज गुंबदे खिजरा से अपनी उम्मत को देख रही है, ऐसे में दुख्तराने इस्लाम को अहद भी करना है और हम सब को इन अहकामात को समझना भी है लेकिन सिर्फ कानों की लज्जत के लिये नही बल्कि ईमान के वकार के लिये और ईमान की बहार के लिये कि चलो जब तक पता नही था कोई और मामला था हांलाकि ये लाजिम है कि जिस वक़्त कोई बालिग हो जाए, मर्द हो या औरत, तो जैसे नमाज फर्ज है ऐसे ही जिंदगी गुजारने का रस्ता जानना भी फर्ज है, जो नहीं पूछती और नही जानती वह मुजरिमा होगी और जो मर्द नही पूछता वह भी मुजरिम होगा।

࿐  अब कुरआने मजीद और रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरामीन और जिन हस्तियों को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिखाया उन का किरदार मुखतसर सा पेश कर रहा हूँ ताकि मेरे लिये भी ज़रीया ए निजात बन जाए और आप सब के लिये भी ज़रीया ए निजात बन जाए।

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             *❝  जन्नती  महल  ❞*
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࿐   सब से मुश्किल वक़्त वो होता है जब किसी का बाप फौत हो गया हो, किसी की माँ फौत हो गई हो, किसी का बेटा फौत हो गया हो, उस वक़्त कुछ लोग कह देते हैं कि हमें कुछ न कहो जो कुछ हम से होता है वह हम करते हैं जो कुछ जुबान पे आता है वह कहते हैं, शिकवा और गिले रव से करते हैं, जिस से ये पता नहीं चलता कि उस ने रब को माना भी है या नही माना, उस ने जब बच्चा दिया था तो उसने कोई कीमत वसूल नही की थी, अब अगर उस के दुनिया से चले जाने पर अपने रब से झगड़े और शिकायत करे तो फिर अल्लह तआला नाराज हो जाएगा। और जहाँ सब का मंजर होगा तो अल्लाह तआला फरिश्तों से कहेगा कि जिन्होने बच्चे की मय्यत पे खड़े हो के सब्र किया, फरिश्तों! उन के लिये नया महल जन्नत में तैय्यार करो और उस का नाम बैतुल हम्द रखो और कहो कि यह वह घर है जो बाप को सब्र करने पर मिल जाता है।

*📘(शोअबुल ईमान)*

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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा का नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल और एक तड़प, जिस में इस्लाम की बेटी के लिए हजारों सबक मौजूद हैं। हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु इस के रावी हैं, हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु अपने दोस्तों को ये हदीस सुनाया करते थे और इर्शाद फरमाया करते थे कि : मैं तुम्हे अपना और हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा, जो नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी है का एक वाकिआ न सुनाऊँ, मै तुम्हे अपनी आप बीती न सुनाऊँ, हमारा नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आने जाने का मामला उस के बारे में तुम्हेन बताऊँ? 

࿐   अब लोग शौक से कहते थे कि बताओ, वो कौनसी बात है कि जिस को तुम इस अंदाज में बयान करना चाहते हो? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु सुनाया करते थे कि हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की शख्सियत इतनी बड़ी और उन का इतना बड़ा मुकाम है कि जिन के घर में चक्की कभी फरिश्ते भी आ कर चलाते थे और आटा पीसते थे लेकिन उनका खातूने खाना होने के लिहाज़ से किरदार कितना था और वह अपने घर को कैसे चलाती थी और घर के चलाने में उन का तरीका क्या था? फरमाने लगे किः हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा अपने घर में आटा पीसने ले लिए अपनी चक्की चलाती थी और उस चक्की की दस्ती के निशान हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के हाथों में पड़ चुके थे।

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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   आज ये हदीस सुनते वक़्त दुख्तराने इस्लाम को सोचना है कि वह फातिमा रदियल्लाहु अन्हा जो जन्नती औरतों की सरदार है, उमूरे खाना में अगर उन का तकाजा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से होता तो सोने का घर बना दिया जाता, हजरत फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने इतनी चक्की चलाई कि हार्थों में निशान पड़ गए उन्होने कुएं से मश्कीजे इतने भरे कि जब कंधे पर रस्सा रख कर खींचती थी तो छाती पे निशान बन चुका था, अपने बच्चों के लिए और अपने घर के लिए रोज़ाना पानी के डोल कुंए से खींचती हैं। 

࿐   एक तरफ हार्थों पे निशान हैं और दूसरी तरफ छाती पे निशान है और सीने के ऊपर के हिस्से में निशान पड़ चुके हैं। फिर हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु कहने लगे कि और घर में झाडू दिया यहाँ तक कि आप के कपड़े गर्द-आलूद हो गए। आज के दौर में घर की सफाई एक औरत के लिए आर और शर्म है और कहती है कि दस खादिमाएं हों, वह काम करें। मैं घर का काम क्यों करूँगी, मैं तो इतने बड़े बाप की बेटी हूँ।?

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    *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   तो कौन है जो हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से बड़े बाप की बेटी है हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा उमूरे खाना में कैसा किरदार अदा करती हैं। हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा घर में झाडू देती थी यहाँ तक कि कपड़े गर्द-आलूद हो जाते थे। जब इतनी मुशक्कत करती थीं तो उसी दौरान हमें पता चला कि नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कुछ गुलाम और लॉडियाँ आ गई हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाब ए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में उन्हें तकसीम करना चाहते हैं  हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि, "मेने कहा कि फातिमा। वक्त अच्छा है, चलो अपने अब्बा जी के पास और एक लॉडी मांग कर ले आओ और वह तुम्हारे साथ घर में काम करे, तुम्हारा क्या हाल हो गया है घर में काम करते हुए तुम अपने अब्बा जी के पास जा कर कोई खादिमा ले आओ, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा ए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में तकसीम करेंगे तो हमे भी एक खादिमा मिल जाएगी। 

࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने अपने शौहरे नामदार की बात मान ली, जब सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई तो देखा कि नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो परवानों के झुरमुट में है, दाएं-बाएं सहाबा ए किराम रदियल्लाहु अन्हुम बैठे हैं, लोग अपनी अपनी हाजत पेश कर रहे हैं, रसूले अकरम सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल पूछ रहे हैं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जवाब दे रहे हैं।

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   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक   सवाल  एक  तड़प  ⚘​*

࿐   अब देखो कि सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दीने इस्लाम को कितना टाईम दिया वह बेटी जो जिगर का टुकड़ा है, उन को यह हौसला न हो सका कि अब्बा जी मै आई हूँ, मैं बात करना चाहती हूँ, उन खादिमों को अपने पास से हटा दें, ये कहीं बैठ जाएं. इंतिज़ार करें, पहले मैं मुलाकात कर लूँ। इस दीन ए इस्लाम को इतना प्यार दिया है मेहबूब अलैहिस्सलाम ने कि प्यारी फातिमा ये न कह सकी कि जो पास बैठे हैं उन को उठा दो और मैं अपनी बात कर लूँ हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा कहने लगी कि जब मेने लोगों को मसाइल पूछते देखा तो मै खुद समझ गई और मैं वापस आ गई!

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  *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा का नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल और एक तड़प, जिस में इस्लाम की बेटी के लिए हजारों सबक मौजूद हैं।

࿐   हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते है कि दूसरे दिन मै भी हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के साथ गया। हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दर ए पाक पर पहुँच गई जब हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा वहाँ पहुँची तो रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि ऐ फातिमा! तुम बताओ तो क्या हाजत है? किस काम को आई हो? हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा खामोश हो गई हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये चुप करा गई हैं, मै बताता हूँ कि ये क्यों आई हैं? हजरते अली रदियल्लाह अन्हु ने कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम साहबजादी आप की है और आटा पीसने की चक्की इतनी चलाती है कि इन के हाथों में निशान पड़ गए हैं, इन्होने मश्कीजे इतने उठाए हैं कि छाती पर निशान बन गए हैं। 

࿐   जब आप के पास इतने खादिम आ गए हैं तो मेने उन (हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा) को कहा कि चलो हम भी चल के मांगते हैं। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खादिमा दे दें तो कुछ काम घर में आप करें और कुछ काम वो खादिमा करे। जिस मुशक्कत में हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा पड़ी हुई हैं मैं चाहता हूँ कि वह बड़ी मुशक्कत से बच जाएं!

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   *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   *अब इस में कई पहलू काबिले गौर हैं :* आज दामाद के बारे में कोई ससुर ऐसी बातें सुन ले तो वह कहता है कि उस ने तो मेरी बेटी को कोई सहूलत ही नही दे रखी, मेरी बेटी खुद आटा पीसती है, खुद मश्किजे उठा रही है और खुद झाडू दे रही है। अपने दामाद को ससुर झिड़कियाँ देना शुरू कर दे कि ये तुमने क्या किया ? मगर मेरे मेहबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्ह से एक लफ्ज भी ऐसा जिक्र नहीं किया और इन चीजों पे सुकूत बताता है कि ये काम खातूने खाना के हैं, अगर उस को ये करने पड़ते हैं तो इस में कोई कबाहत/ खराबी नही है। ये काम उस खातूने खाना को ही करने चाहिए। हाँ! अगर किसी खाविंद के पास सहूलत के मौके हैं तो वह फराहम करे।

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 

   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये चीजें देख ली और सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के साथ बेपनाह मुहब्बत थी। तबई तौर पर भी ये तकाज़ा हो सकता था कि पता ही नही चला कि इतनी मुशक्कत हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा कर रही हैं, आज के बाद ऐ फातिमा ऐसा न करना, मै अभी बंदोबस्त कर देता हैं। वह चाहें तो जन्नत की हजारों हरें हजरते फातिम्मा रदियल्लाहु अन्हा की देहलीज़ पर आकर खड़ी हो जाएं, मगर मेरे मेहबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जुमला क्या था ? समझते थे कि आज मै अपनी बेटी फातिमा के लिये हजारों हुरें तो खड़ी कर सकता हूँ मगर कल उम्मत की बेटियाँ भी तो होंगी। ऐसा निसाब दूं कि उन उम्मत की बेटियों को भी निसाब मिल जाए। ऐसी चीजे दूँ कि वह सिर्फ मेरे जिगर के टकडे को ही नही बल्कि मेरे उम्मती के जिगर-पारों को भी निसाब मिल जाए। 

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 
              
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐   मेरे मेहबुब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यहाँ कमी तो कोई न थी, जो फरमाते फौरन मयस्सर हो जाता और हमेशा के लिये ऐसा सिलसिला जारी हो जाता - लेकिन रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लफ्ज़ क्या हैं, ये सबक़ है उस बाप के लिये जो अपनी बेटी को ब्याह के भेजता है, जब वह अपने बाप को कुछ आ कर कहे तो वह आगे उस को क्या कहे ? बाप कैसे दिलासा दे और बाप कैसे तर्बियत करे, बाप कैसे उन खानदान को आबाद रखने के लिये अपना किरदार अदा करे? सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया किः ऐ फातिमा! खुदा से डरो। वह जो पहले ही डरने वाली फातिमा है, रात मुसल्ले पे गुज़र जाती है और दिन रोजे में गुजर जाता है, मुशक्कत भी करती हैं) हमारे नबी फरमाते हैं कि ऐ फातिमा खुदा से डरो! अपने रब का फरीजा अदा करती रहो और घर का काम ब-दस्तूर जारी रखो, जो तुम्हारे अहल का काम है, जो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के घर में कर रही हो, ये काम करती रहो। और तरतीब बयान कर दी कि तकवा, फिर अपने रब का फरीज़ा और फिर अपने शौहर की खिदमत। सय्यदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निसाब दे रहे हैं, अगर आप अपनी बेटी के लिए जो चाहते वह एक मिनट से भी पहले मयस्सर हो जाता, लेकिन फरमाया कि कयामत तक फातिमा रदियल्लाह अन्हा की खादिमाएं भी आएंगी!

࿐  हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से प्यार करने वाली कनीजें आएंगी तो सब के लिए जामेअ निसाब हो। 

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 *उन्हें जाना उन्हें माना* न रखा ग़ैर से काम
       लिल्लाहिल हम्द *मैं दुन्या से मुस्लमान गया*
 
             
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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐    ऐ फातिमा! तुम अपने रब से डरती रहो और अपने रब का फरीजा अदा करती रहो और फिर अपने अहल का जो काम करती हो मुसलसल करती रहो, इस में कोई हरज नही है। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये जुमला वालिदैन के लिए दर्से हयात है कि अपनी बेटियों को ऐसे मुआमलात में जिस वक्त बताएं और समझाएं तो ये बातें बताएं कि एक है रब का फर्ज, फिर है उस घर वाले का फर्ज और उस की खिदमत। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ऐ फातिमा! तुम आई हो तो तम्हे इस वक्त खाली नही भेजा जाएगा, तुम्हे दूंगा तो कयामत तक की बेटियों को भी दूँगा।

࿐  रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इर्शाद फरमाते हैं: जब काम काज से फारिग हो कर नमाज़ पढ़ कर लेटने लगो तो एक काम करना। तुम्हे तैंतीस (33) मरतबा "सुब्हान अल्लाह कहना है, तैंतीस (33) मरतबा "अल्हम्दुलिल्लाह' कहना है और चौतीस (34) मरतबा "अल्लाहु अकबर" कहना है। मेरी बेटी इस तरह ये सौ (100) बन जाएगा। ये वज़ीफा तुम्हारे लिये खादिमा से बेहतर है। वो खादिमा तुम्हारे साथ इतना सपोर्ट नहीं करेगी जितना ये तस्बीह तुम्हारा सपोर्ट करेगी। 

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࿐   सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में इस लिए गई थी ताकि बोझ खत्म हो जाए लेकिन बजाहिर तो बोझ और बढ़ गया, हकीकत में नहीं। आज जैसे लोगों का दिमाग हो तो कहें कि " गए थे नमाजे बख्शवाने, रोजे गले पड़ गए" , हम छुट्टी लेने गए थे मुफ्ती साहब ने और लाज़िम कर दिया। रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि ऐ फातिमा (रदियल्लाहु अन्हा)! तुम मुझ से खादिमा मांगने आई हो , खादिमा से बड़ी चीज दे रहा हूँ और ये तस्बीहे फातिमा है, सोते वक़्त ये तस्बीह पढ़ लिया करो ये तुम्हारे लिए खादिमा से बेहतर है। यानी खादिमा तुम्हारे साथ काम कर केर इतना सपोर्ट नहीं करेगी, खादिमा के काम करने से इतनी रिलीफ नही मिलेगी, इतना सुकून नही मिलेगा जितना सौ (100) बार इस ज़िक्र से तुम्हें सुकून मिलेगा।

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࿐   हजरते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा का नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल और एक तड़प, जिस में इस्लाम की बेटी के लिए हजारों सबक मौजूद हैं।

࿐  अज़ीम बाप की अज़ीम बेटी के लफ्ज़ सुनोः  ये नही कहा कि अब्बा जी मै काम कर कर के थक जाती हूँ, खादिमा लेने आई थी, आप ने और लाज़िम कर दिया। क्या शान है हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की, कहने लगी कि मेहबूब तुम्हारी फातिमा रब से भी राज़ी है और रब के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी राज़ी है। हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के कौल के मुताबिक ये ऐ मेरे अब्बा जी! ये जहन में ख्याल न लाना कि बच्ची आई थी, उस ने मांगा था और जो उस ने मांगा था मेने वह नही दिया, मेरे अब्बा जी मै अपनी तरफ से इजहार करती हूँ कि “मै रब से भी राजी हूँ और रब के नबी से भी राजी हैं दोनों बातों का बतौरे खास जिक्र कर के इस बात को कयामत तक आने वाली उम्मत की बेटियों को बताया कि ऐ दख्तराने इस्लाम! जहाँ रब का नाम जबान पर आना चाहिए वहाँ रब के मेहबूब का नाम भी जबान पर आना चाहिए और ये कहो कि मै रब से भी राजी हूँ और नबी सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम से भी राजी ऐसे मकाम पर अल्लाह तआला ये एजाज अता फरमाता है कि जिस वक्त एक इंसान ऐसे फैसलों पे राजी होता है और ये कुरआने मजीद का फैसला है | 

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           *⚘​   एक सवाल❓ एक तड़प  ⚘​*

࿐  आज इतना वबाल आ चुका है और इतनी नाम-निहाद रौशन खयाली ने मर्दो-जन के मुंह खोल दिये हैं| कि जब कहा जाता है कि ये शरीआत है और ये कुरआनो सुन्नत है, तो आगे से जवाब कई किस्म के मिलते हैं। कोई कहता है कि "नहीं! हमारा भी हक है" , "आखिर अक्ल की भी कोई मांग है" , "आखिर जिंदगी भी कुछ गुजारना है" , "आखिर दुनिया भी कुछ कहती है"- इस तरह की बातें सामने आती हैं, मगर इधर कुरआने मजीद कहता है कि:

📙(कुरआन सूरह अहज़ाब, आयत नंबर 36)

*तर्जुमा ए कंजुल ईमान:-*  और न किसी मुसलमान मर्द न मुस्लमान औरत को पहुँचता है.. कि जब अल्लाह व रसूल कुछ हुक्म फरमा दें तो इन्हें अपने मुआमले का कुछ इख्यिार रहे!

࿐  जब अल्लाह तआला फैसला कर दे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फैसला कर दें तो किसी मोमिन और मोमिना के लिए ये जाइज नहीं कि वह आगे अपनी ज़बान खोले, बल्कि चुप हो जाए, सर तस्लीमे-खम कर दे कि जो सरकार सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है, जो शरीअत में आ गया है, जो कुरआने मजीद ने कह दिया है, उस की पाबंद हैं। मै किसी फैशन-परस्त औरत की बात नही सुनुगी. मै किसी मगरिब-जदा खातून के जाल में नही आऊँगी, मै किसी दुनिया की लीडर के फैशन की तरफ नही देखूगी, मेरे सामने मेरे रब का कुरआन है और मेरे नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है। 

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࿐    रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो मुख्तलिफ सबक दिये हैं उन में से एक घर के अंदर रहना और जिंदगी का सफर तै करना है- आज अल्लाह तआला हर बन्दे के घर को शरीअत का रंग अता फरमाए। लोग आकर ऐसी ऐसी दास्तानें बयान करते हैं कि इंसान सन के हैरान रह जाता है कि कलिमे का असर कितना बाकी है- ऐसी ऐसी खुराफात औरतों में आ गईं, ऐसे ऐसे फैशन , ऐसी ऐसी हिमाकतें औरतों में आ गई हैं कि अक्ले सलीम भी उन चीजों की इजाजत नहीं देती। 

࿐  आज इस्लाम की बेटी को रिमाईंड करना है कि उस ने कलिमा किस का पढ़ा था ? कलिमा ए इस्लाम पढ़ते वक़्त कहा था कि अब मर्जी अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चलेगी, मेरी कोई मर्जी नही चलेगी। या रसलल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम जो आप कहें वही मेरी शरीअत, जो आप का फैसला वही मेरा लाईफ कोड और मेरी जिंदगी का निसाब होगा। मगर राहे जिंदगी में चलते चलते भूल गई। कभी किसी सनम खाने में, कभी किसी फैशन-कदे में और कभी किसी ब्यूटी-पार्लर में और कभी किसी फैशन-शो में और कभी किसी मेले-ठेले में उसे याद न रहा कि मैंने क्या अहद किया था और कलिमा क्या पढ़ा था ?

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   *❝ इस्लाम की अपनी बेटियों से गुफ़्तगू ❞*
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࿐  *खातूने जन्नत सरकारे कौनैन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वक्ते विसाल :* हज़रत सय्यिदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा शहजादी सरकारे कौनैन की हैं, रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिगर का टुकड़ा हैं, हज़रते सय्यिदा फातिमा तय्यिबा, ताहिरा, सालेहा, आबिदा रदियल्लाहु अन्हा का वक्ते विसाल करीब था तो उन्होने क्या किया ? अपना मुँह किबला शरीफ की तरफ फेर लिया, फिर दायां बाजू नीचे रखा उस के ऊपर अपना चेहरा रख कर किबला की तरफ कर दिया किबला की तरफ इस लिये किया कि कियामत तक जो हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की खादिमा होगी या फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से प्यार करने वाली होगी उस को सबक मिल जाए कि फातिमा रदियल्लाहु अन्हा दुनिया से जा रही थी, रूह निकल रही थी, तो फिर भी आप का चेहरा किबला की जानिब था। 

࿐   वह हज़रते फातिमा रदियल्लहु अन्हा से अपनी मुहब्बत का दावा न करे जिसका सिर सजदे में झुकता ही नही। हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की रूह निकल रही है और चेहरा किबला शरीफ की तरफ है और ये असर हे कि रूह निकलते वक्त सिर किबला की तरफ है तो हज़रते इमाम हुसैन रदियल्लाह अन्हु का सिर सजदे में है। इधर सय्यिदा फातिमा रदियल्लहु अन्हा ने खुद अपना चेहरा किबला की तरफ किया, अपने चेहरे को दाएं हाथ पे रखा और बता दिया कि जो मिल्लते इस्लामिया की बेटियाँ हैं और मुझ से जो प्यार करने वालियाँ हैं और जो कियामत तक मेरा नाम लेंगी उन को अपना पैगाम देना चाहती हूँ कि जब तक बदन में जान हो तो फिर किबला की तरफ हाज़िरी हो, रब के दरबार में सजदा हो, और अल्लाह तआला को भूल कर नमाज़ के वक़्त को छोड़ न दिया जाए, अल्लाह तआला के दरबार की हाज़िरी बरकरार रखी जाए ताकि रूह जब निकल रही हो तो सिर किबले की तरफ झुक रहा हो।

              *✐°°•. बाकी अगली पोस्ट में पढ़ें!*

*👨‍💻मिजानिब :- पैग़ाम ए रज़ा ऑफ़िशियल.!*

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Wednesday, 3 November 2021

शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु

 



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❝ 👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ❞
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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

               *❝  एहसाने अज़ीम ❞* 
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࿐   ऐ आशिकाने गौसे आज़म ! अल्लाह पाक का हम अहले सुन्नत पर बड़ा फ़ज़्लो करम है कि उस ने हमें अपने औलियाए किराम रादिअल्लाहु तआला अन्हुम की इज्जतो ता'ज़ीम करने आ 'रास मनाने मज़ाराते मुबारका पर हाज़िरी देने और इन की सीरत बयान करने की तौफीक अता फ़रमाई है। 

࿐   औलियाए किराम अल्लाह पाक के पसन्दीदा बन्दे होते हैं इन की सारी ज़िन्दगी अल्लाह व रसूल की याद में गुज़रती है हमें भी इसी तरह शरीअत के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारनी चाहिये। 

࿐   अल्लाह पाक अपने इन नेक बन्दों औलियाए किराम पर अपनी रहमतों की बरसात फ़रमाता रहता है औलियाए किराम की शानो अज़मत के लिये येह कुरआनी आयत ही काफ़ी है।

࿐   अल्लाह पाक ने अपने पसन्दीदा बन्दों का ज़िक्र ग्यारहवें पारे के बारहवें रुकूअ में फ़रमाया है चुनान्चे पारह 11 सूरए यूनुस आयत नम्बर 62 में इर्शाद होता है : तरजमए कन्जुल ईमान : सुन लो बेशक अल्लाह के वलियों पर न कुछ ख़ौफ़ है न कुछ गुम। 

࿐   सहाबी इब्ने सहाबी ,जन्नती इब्ने जन्नती हज़रते सय्यदुना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रादिअल्लाहु तआला अन्हु इस आयत की तफ्सीर में फ़रमाते हैं : “औलियाए किराम पर दुन्या में कोई ख़ौफ़ नहीं ,न ही वोह आख़िरत में ग़मगीन होंगे बल्कि अल्लाह पाक खुशी व इज़्ज़त के साथ उन का इस्तिकबाल फ़रमाएगा और उन्हें हमेशा रहने वाली ने' मतें आता फ़रमाएगा।..✍🏻

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 *📬 फ़ैज़ाने ग़ौसे आज़म सफ़ह - 01,02 📚*

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   ❝ 👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ❞
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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

               *❝  तआरुफे गौसे आज़म  ❞* 
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࿐   ऐ आशिकाने गौसे आज़म ! माहे फ़ाख़िर , रबीउल आखिर में यूं तो दीगर बुजुर्गों के उर्स भी हैं मगर येह महीना हुज़ूरे गौसे पाक से ख़ास निस्बत रखता है और इस महीने की 11 तारीख़ को हुजूरे गौसे पाक शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी का उर्स शरीफ़ मनाया जाता है।

࿐   हमारे प्यारे प्यारे पीरो मुर्शिद सय्यिदी हुज़ूर गौसे पाक बड़े वलिय्युल्लाह बल्कि वलियों के भी सरदार हैं आप रादिअल्लाहु तआला अन्हु का मुबारक नाम अब्दुल कादिर , कुन्यत अबू मुहम्मद और अल्काबात मुहूयुद्दीन, महबूबे सुब्हानी, गौसुस्सकलैन, गौसुल आज़म वगैरा हैं आप 470 हिज़री में बगदाद शरीफ़ के करीब क़स्बा " जीलान " में रमजानुल मुबारक की पहली तारीख को पैदा हुए और 561 हिज़री में बगदाद शरीफ ही में विसाल फ़रमाया आप का मज़ारे पुर अन्वार इराक़ के मशहूर शहर बगदाद शरीफ में है।

࿐   गौसिय्यत बुज़ुर्गी का एक खास दर्जा है लफ़्ज़े "गौस" के लुगवि माना है "फरियाद-रस यानी फ़रियाद को पहुचने वाला" चुकी हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैहे गरीबो, बे कसो और हाजत मन्दो के मददगार है इसलिए आप को ग़ौसे आ'ज़म के खिताब से सरफ़राज़ किया गया और बाज़ अक़ीदत मन्द आपको "पिराने पिर दस्त-गिर" के लक़ब से भी याद करते है।..✍🏻

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 *📬 फ़ैज़ाने ग़ौसे आज़म सफ़ह - 02,03 📚*

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 ❝ 👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ❞
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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

            *❝  ग़ौसे पाक का नसब शरीफ ❞* 
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࿐   आप रहमतुल्लाह अलैहे वालीदे मजीद की निस्बत से ह-सनी है,!

सिलसिलए नसब यु है :-

सय्यिद मुहयुद्दीन अबू मुहम्मद अब्दुल क़ादिर बिन
सय्यिद अबू सालेह जंगी दोस्त बिन
सय्यिद अबू अब्दुल्लाह बिन
सय्यिद याहया बिन
सय्यिद मुहम्मद बिन
सय्यिद दावूद बिन
सय्यिद मूसा सानी बिन
सय्यिद अब्दुल्लाह बिन
सय्यिद मूसा जौन बिन
सय्यिद अब्दुल्लाह महज़ बिन
सय्यिद इमाम हसन मुसन्ना बिन
सय्यिद इमामे हसन बिन
सय्यिदुना अलिय्युल मुर्तज़ा

࿐   और आप रहमतुल्लाह अलैहे अपनी वालिदए माजिदा की निस्बत से हुसैनी सय्यिद है।

࿐   *ग़ौसे पाक के आबाओ अज्दाद :-* आप रहमतुल्लाह अलैहे का खानदान सालीहीन का घराना था आप के नानाजान, दादाजान, वालीदे माजिद, वालिदए मोहतरमा, फुफिजान, भाई और साहिब जा-दगान सब मुत्तक़ी व परहेज़ गार थे, इसी वजह से लोग आप के खानदान को अशराफ का खानदान कहते है।

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*📬 गौसे पाक के हालात सफ़ह - 16,17 📚*

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 ❝ 👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ❞
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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

         *❝  ग़ौसे पाक के वालीदे मोहतरम ❞* 
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࿐   आप रहमतुल्लाह अलैहे के वालीदे मोहतरम हज़रते अबू सालेह सय्यिद मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैहे थे, आप का इसमें गिरामी "सय्यिद मूसा" कून्यत "अबू सालेह" और लक़ब "जंगी दोस्त" था, आप जिलान शरीफ के अकाबिर मशाईखे किराम में से थे।

࿐   जंगी दोस्त लक़ब की वजह :-* आप रहमतुल्लाह अलैहे का लक़ब जंगी दोस्त इस लिये हुवा की आप खली-सतन अल्लाह की रिज़ा के लिये नफ़्स कुशी और रियाज़ते शर-ई में यकताए ज़माना थे! नेकी के कामो का हुक्म करने और बुराई से रोकने के लिये मश्हूर थे!

࿐   ग़ौसे पाक के नानाजान :-* हुज़ूर सय्यिदुना गौसुल आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैहे के नानाजान हज़रते अब्दुल्लाह सौमई रहमतुल्लाह अलैहे जिलान शरीफ के मशाइख में से थे, आप निहायत ज़ाहिद और परहेज़ गार होने के इलावा साहिबे फ़ज़्लो कमाल भी थे, बड़े बड़े मशाईखे किराम से आप ने शरफे मुलाक़ात हासिल किया।

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    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 17 📚*

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••──────────────────────••► ❝ 👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु  ❞
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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

    *❝ ग़ौसे पाक की विलादत की बिशारत  ❞* 
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*࿐   सरकार ﷺ की बिशारत :-* महबूबे सुब्हानी, शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी के वालीदे मजीद हज़रते सय्यिदुना अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त राह्मतुल्लाहे तआला ने हुज़ूर गौसे आ'ज़म अलैहिर्रहमा की विलादत की रात मुशाहदा फ़रमाया की सरवरे काइनात, फ़ख़रे मौजूदात ﷺ मअ सहाबाए किराम और औलियाए इज़ाम उनके घर जल्वा अफ़रोज़ है और इन अल्फ़ाज़े मुबारका से उन को खिताब फरमा कर बिशारत से नवाज़ा :

࿐    ऐ अबू सालेह ! अल्लाह عزوجل ने तुम को ऐसा फ़रज़न्द अता फ़रमाया है जो वाली है और वो मेरा और अल्लाह عزوجل का महबूब है और उसकी औलिया और अक़्ताब में वैसी ही शान होगी, जेसी अम्बिया और मुरसलीन अलैहिसलातु वस्सलाम में मेरी शान है।

*࿐   अम्बियाए किराम की बिशारत :-* हज़रते अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह को ख्वाब में शहंशाहे अरबो अ'ज़म के इलावा जुम्ला अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम ने ये बिशारत दी की "तमाम औलियाउल्लाह तुम्हारे फऱज़न्दे अर्जुमंद के मुतीअ होंगे और उन की गर्दनो पर इनका क़दम मुबारक होगा।

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 *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 22,23 📚*

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❝👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु   ❞
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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

    *❝ ग़ौसे पाक की विलादत की बिशारत  ❞* 
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*࿐   हज़रते हसन बसरी की बिशारत :-* जिन मशाइख ने हज़रते ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह की क़ुतबिय्यत के मर्तबे की गवाही दी है "रौ-ज़तुन्नवाज़िर" और "नूज़हतुल खवातिर" में साहिबे किताब उन मशाइख का तज़्क़िरा करते हुए लिखते है : आप रहमतुल्लाह अलैह से पहले अल्लाह के औलिया में से कोई भी आप का मुन्किर न था बल्कि उन्होंने आप की आमद की बिशारत दी!

࿐   चुनान्चे हज़रत हसन बसरी ने अपने ज़मानए मुबारक से ले कर हज़रते शैख़ मुहीउद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के ज़मानए मुबारक तक तफ़सील से खबर दी की जितने भी अल्लाह के औलिया गुज़रे है सब ने शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी की खबर दी है।

*࿐  हज़रते जुनैद बगदादी की बिशारत :-* आप रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फरमाते है की "मिझे आ'लमे गैब से मालुम हुवा है की पाचवी सदी के वस्त में सय्यिदुल मुर-सलीन की औलादे अतहार में से एक कुत्बे आ'लम होगा, जिन का लक़ब मुहीउद्दीन और इस्मे मुबारक अब्दुल क़ादिर है और वो ग़ौसे आ'ज़म होगा और जिलान में पैदा होगी!

࿐  उनको खतमुन्नबीय्यिन की औलादे अतहार में से आइम्मए किराम और सहाबाए किराम के इलावा अव्वलिनो आखिरिन के "हर वाली और वालिय्या की गर्दन पर मेरा क़दम है। कहने का हुक्म होगा।

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 *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 22,23 📚*

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   ❝  👑 शान ए गौसे आज़म रादिअल्लाहु तआला अन्हु ❞
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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

*❝ ग़ौसे आ'ज़म की वक़्ते विलादत करामत का ज़ुहर ❞* 
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࿐   आप रहमतुल्लाह अलैह की विलादत माहे रमज़ानुल मुबारक में हुई और पहले दिन ही रोज़ा रखा। सहरी से ले कर इफ्तारी तक आप अपनी वालिदए मोहतरमा का दूध न पिटे थे,

࿐   चुनान्चे गौसुस्स-क़लैन् शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की वालिदए माजिदा फरमाती है की जब मेरा फ़रज़न्द अर्जुमन्द पैदा हुवा तो रमज़ान शरीफ में दिन भर दूध न पिटा था।

*࿐   आप के बचपन की बरकतें :-* आप की वालिदए माजिदा फरमाया करती थी : जब मेने अपने साहिब ज़ादे अब्दुल क़ादिर को जना तो वो रमज़ानुल मुबारक में दिन के वक़्त मेरा दूध नहीं पिता था।

࿐   अगले साल रमज़ान का चांद गुबार की वजह से नज़र न आया तो लोग मेरे पास दरयाफ़्त करने के लिये आए तो मेने कहा "मेरे बच्चे ने दूध नहीं पिया" फिर मालुम हुआ की आज रमज़ान का दिन है और हमारे शहर में ये बात मशहूर हो गई की सय्यिदो में एक बच्चा पैदा हुआ है जो रमज़ान में दिन के वक़्त दूध नहीं पिता।

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 *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 24,25 📚*
 

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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              *❝ हैरत अंगेज़ वाकीआत ❞* 
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࿐   हज़रते सय्यिदुना अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहे की विलादत बा सआदत के वक़्त बहुत से हैरत अंगेज़ वाकीआत ज़ुहर पज़ीर हुवे।

࿐   सबसे बड़ी बात तो ये है की जब आप रौनक अफरोज़ आलम हुवे उस वक़्त आप की वालिदए माजिदा हज़रते उम्मुल खैर फ़ातिमा की उम्र 60 साल की थी, इस उम्र में आम तौर पर औरतो को अवलाद से ना उम्मीदी हो जाती है, ये अल्लाह का खास फ़ज़्ल था की इस उम्र में हुज़ूर गौसे आ'ज़म रहमतुल्लाहि तआला अलैहे उनके बतने मुबारक से पैदा हुवे।

࿐   जिस रात हज़रते सय्यिदुना अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह तआला अलैहे की विलादत हुई, उस रात जिलान शरीफ की जिन औरतो के यहाँ बच्चा पैदा हुवा उन सब को अल्लाह ने लड़का ही अता फ़रमाया और हर नव मौलूद लड़का अल्लाह का वाली बना।

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     *📬 ग़ौसे पाक का बचपन सफ़ह - 7 📚*

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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

              *❝ खेल कूद से बे रागबति ❞* 
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࿐   देखा जाता है की बचपन में उमुमन बच्चे खेल कूद की तरफ रागिब होते है और पढाई से दूर भागते है जब की हमारे गौसे पाक की शान तो देखिये की बचपन ही से आप को खेल कूद से कोई रगबत नहीं थी  निहायत साफ सुथरे रहते और ज़बाने मुबारक से कभी कम अक्लि की बात न निकली था।

࿐   अपने लड़कपन के मुतअल्लिक़ खुद इर्शाद फरमाते है की उम्र के इब्तिदाई दौर में जब कभी में लड़को के साथ खेलना चाहता तो गैब से आवाज़ आती थी की "खेल कूद से बाज़ रहो" जिसे सुनकर में रुक जाया करता था और अपने गिर्दो पेश पर नज़र डालता तो मुझे कोई कहने वाला दिखाई न देता था, जिससे मुझे दहशत सी मालूम होती, में जल्दी से भागता हुवा घर आता और वालिदए मोहतरमा की आगोशे महब्बत में छुप जाता था।

࿐   अब वोही आवाज़ में अपनी तन्हाइयो में सुना करता हु, अगर मुझे नींद नहीं आती है तो फौरन मेरे कानो में आ कर मुझे मुतनब्बेह (खबरदार) कर देती है की "तुम को इस लिये पैदा किया गया है की तुम सोया करो।"

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     *📬 ग़ौसे पाक का बचपन सफ़ह - 12 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

                *❝ शीकमे मादर में इल्म ❞* 
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࿐   5 बरस की उम्र में जब पहली बार बिस्मिल्लाह पढ़ने की रस्म के लिये किसी बुज़ुर्ग के पास बैठे तो बिस्मिल्लाह पढ़ कर सूरए फातिहा और अलिफ़-लाम-मिम से लेकर 18 पारे पढ़ कर सूना दिये।

࿐   उन बुज़ुर्ग ने कहा बेटा ! और पढ़िये।

࿐   फ़रमाया : बस मुझे इतना ही याद है क्यू की मेरी माँ को भी इतना ही याद था जब में अपनी माँ के पेट में था उस वक़्त वो पढ़ा करती थी, मेंने सुन कर याद कर लिया था।

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     *📬 ग़ौसे पाक का बचपन सफ़ह - 15 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

          *❝ अपनी विलायत का इल्म होना ❞* 
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࿐   हज़ूर गौसे आ'ज़म फरमाते है की जब में बचपन के आ'लम में मदरसे को जाया करता था तो रोज़ाना एक फरिश्ता इंसानी शक्ल में मेरे पास आता और मुझे मदरसे ले जाता, खुद भी मेरे पास बैठा रहता था, में उसे मुतलकन नहीं पहचानता था की ये फरिश्ता है।

࿐   एक दिन मेने उससे पूछा : आप कौन हो ? तो उसने जवाब दिया की में फरिश्तों में से एक फरिश्ता हु, अल्लाह तआला ने मुझे इस लिये भेजा है की मदरसे में आप के साथ रहा करू।

࿐   इसी तरह आप फरमाते है, की एक रोज़ मेरे क़रीब से एक शख्स गुज़रा जिस को में बिलकुल न जनता था, उसने जब फरिश्तों को ये कहते सुना की कुशादा हो जाओ ताकि अल्लाह का वाली बैठ जाए, तो उसने फ़रिश्ते से पूछा की ये लड़का किस का है ? तो फ़रिश्ते ने जवाब दिया की ये सादात के घराने का लड़का है, तो उसने कहा की ये अं क़रीब बहुत बड़ी शान वाला होगा।

࿐   आप राह्मतुल्लाहअलैहे के साहिब ज़ादे शैख अब्दुर्रज़्ज़क रहमतुल्लाहअलैहे का बयान है की एक दफा हुज़ूर गौसे आ'ज़म से दरयाफ़्त किया गया की आप को अपने वाली होने का इल्म कब हुवा?

࿐   तो आप ने फ़रमाया की जब में दस बरस का था और अपने शहर के मकतब में जाया करता था और फरिश्तों और को अपने पीछे और इर्द गिर्द चलते देखता, जब मकतब में पहुच जाता तो वो बार बार ये कहते की अल्लाह के वाली को बैठने के लिये जगह दो।

࿐   इसी वाकिए को बार बार देख कर मेरे दिल में ये एहसास पैदा हुवा की अल्लाह तआला ने मुझे दर्जए विलायत पर फाइज़ किया है।

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     *📬 ग़ौसे पाक का बचपन सफ़ह - 18 📚*

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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

*❝ बचपन में राहे खुदा के मुसाफिर बन गए ❞* 
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࿐   गौसे पाक बचपन ही में इल्मे दिन हासिल करने के लिये राहे खुदा के मुसाफिर बन गए थे। चुनान्चे हज़रत शैख़ मुहम्मद बिन क़ाइद अवानी फरमाते है की हज़रत गौसे आ'ज़म जिलानी ने हम से फ़रमाया की बचपन में हज के दिन मुझे एक मर्तबा जंगल की तरफ जाने का इत्तिफ़ाक़ हुवा और में एक बैल के पीछे पीछे चल रहा था की उस बैल ने मेरी तरफ देख कर कहा :

࿐   ऐ अब्दुल क़ादिर तुम्हे इस किस्म के कामो के लिये तो पैदा नहीं किया गया ! में घबरा कर घर लौटा और अपने घर की छत पर चढ़ गया तो क्या देखता हु की मैदाने अरफात में लोग खड़े है, इसके बाद मेने अपनी वालिदए माजिदा की खिदमते अक़्दस में हाजिर हो कर अर्ज़ किया :

࿐   आप मुझे रहे खुदा में वक़्फ़ फरमा दे और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त मर्हमत फरमाए ताकि में वहा जा कर इल्मे दिन हासिल करू।

࿐   वालिदा माजिदा ने मुझसे इसका सबब दरयाफ़्त किया, मेने बैल वाला वाक़ीआ अर्ज़ कर दिया तो उन की आँखों में आसु आ गए और वो 80 दिनार  जो मेरे वालीदे माजिद की विरासत थे, मेरे पास ले आई तो मेने उनमेसे 40 दिनार ले लिये और 40 दिनार अपने भाई सय्यिद अबू अहमद के लिये छोड़ दिये।

࿐   वालिदए माजिदा ने मेरे 40 दिनार मेरी गुदड़ी में सी दिये और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त इनायत फरमा दी। उन्होंने मुझे हर हाल में रास्तागोइ और सच्चाई को अपनाने की ताकीद फ़रमाई और जिलान के बाहर तक मुझे अल वदाअ कहने के लिये तशरीफ़ लाइ और फ़रमाया :

࿐   ऐ मेरे प्यारे बेटे ! में तुझे अल्लाह की रिजा और ख़ुशनूदी की खातिर अपने पास से जुदा करती हु और अब मुझे तुम्हारा मुह कियामत को ही देखना नसीब होगा।

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  *📬 ग़ौसे पाक का बचपन सफ़ह - 19-20 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

                *❝ शौके इल्मे दीन ❞* 
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࿐   हज़रते सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी अलैरहमा के इल्मे दिन हासिल करने का अंदाज़ बड़ा निराला था, आप के शौके इल्मे दिन का अंदाज़ इस बात से लगाइये की आप फरमाते है : मैं अपने तालिबे इल्म के ज़माने में असातिज़ा से सबक ले कर जंगल की तरफ निकल जाया करता था, फिर बयाबानो और विरानो में दिन हो या रात, अंधी हो या मूसलधार बारिश, गर्मी हो या सर्दी अपना मुताअला जारी रखता था।

࿐   उस वक़्त में अपने सर पर एक छीटा सा इमाम बंधता और मामूली तरकारियां खा कर शिकम की आग सर्द करता, कभी कभी ये तरकारियां भी हाथ न आती, क्यू की भूक के मारे हुवे दूसरे फकरा भी इधर का रुख कर लिया करते थे।

࿐   ऐसे अवकेअ पर मुझे शर्म आती थी की में दरवेशों की हक़ तलफि करु, मजबूरन वहा से चला जाता और अपना मुताअला जारी रखता, फिर नींद आती तो खली पेट ही कंकरियो से भरी हुई ज़मीन पर सो जाता।

࿐   आप अपने इसी ज़मानए तालिबे इल्मी के बारे में फरमाते है : में ज़माने की जिन सख्तियो से दो चार हुवा, उन्हें बर्दाश्त करते करते पहाड़ भी फट जाता, ये तो उस ज़ाते बे नियाज़ का काम है की में बी आफिय्यत उन खारज़ारो (काँटेदार जंगलो) से गुज़र गया।

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    *📬 ग़ौसे पाक का बचपन सफ़ह - 20 📚*

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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

*❝ ग़ौसे पाक का इल्मो अ'मल और तक़्वा व परहेज़ गारी ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ इमाम मौक़ीफ़ुद्दीन बिन क़ीदामा रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की हम 561 ही. में बगदाद शरीफ गए तो हमने देखा की शैख़ सय्यिद अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह उन्मे से है की जिन को वहा पर इल्म, अ'मल और हाल व फतवा नवीसी की बादशाहत दी गई है।

࿐   कोई तालिबे इल्म यहाँ के इलावा किसी और जगह का इरादा इसलिये नहीं करता था की आप में तमाम उलूम जमा है और जो आप से इल्म हासिल करते थे आप उम् तमाम तलबा के पढ़ाने में सब्र फरमाते थे।

࿐   आप का सीना फराख़ था और आप सैर चश्म थे, अल्लाह ने आप में औसाफे जमीला और अहवाले अ'ज़िज़ा जमा फरमा दिये थे।

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    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 28 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

       *❝  तेरह उलूम में तक़रीर फरमाते! ❞* 
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࿐  इमाम रब्बानी शैख़ अब्दुल वह्हाब शारानी और शैखुल मुहद्दिसिन अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी और अल्लामा मुहम्मद बिन यहया हबली रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते है की : हज़रते अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह तेरह उलूम में तक़रीर फ़रमाया करते थे।

࿐  एक जगह अल्लामा शारानी फरमाते है की ग़ौसे पाक के मद्रसए आलिया में लोग आप से तफ़्सीर, हदिष, फिक़्ह और इल्मुल कलाम पढ़ते थे, दोपहर से पहले और बाद दोनों वक़्त लोगो को तफ़्सीर, हदिष, फिक़्ह, कलाम, उसूल और नहव पढ़ाते थे और ज़ोहर के बाद किरआतो के साथ क़ुरआन पढ़ते थे।

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    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 28 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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          *❝ 🔮 इल्म का समुन्दर 🔮 ❞* 
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࿐   शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहेल्वी रहमतुल्लाह अलैह ग़ौसे पाक के इल्मी कमालात के मुतअल्लिक़ एक रिवायत नक़ल करते है की : एक रोज़ किसी क़ारी ने आप की मजलिस शरीफ में क़ुरआन की एक आयत तिलावत की तो आप ने उस आयत की तफ़्सीर में पहले एक मानी फिर दो इसके बाद तिन यहाँ तक की हाज़िरीन के इल्म के मुताबिक़ आप ने उस आयत के 11 मआनी बयान फ़रमा दिये।

࿐   और फिर दीगर वुजूहात बयान फ़रमाई जिन की तादाद 40 थी और हर वजह की ताईद में इल्मी दलाइल बयान फ़रमाए और हर मानी के साथ सनद बयान फ़रमाई ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के इल्मी दलाइल की तफ़सील से सब हाज़िरीन मुतज्जीब हुए।

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    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 29 📚*

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*❝ एक आयत के चालीस मआनी बयान फरमाए ❞* 
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࿐   हाफ़िज़ अबुल अब्बास अहमद बिन अहमद बगदादी बनदलजी रहमतुल्लाह अलैह ने साहिबे बहजतुल असरार से फ़रमाया : मैं और तुम्हारे वालिद एक दिन हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में हाज़िर हुए आप ने एक आयत की तफ़्सीर में एक मानी बयान फ़रमाया तो मेने तुम्हारे वालिद से कहा : ये मानी आप जानते है?

࿐   आप ने फ़रमाया : हा फिर ग़ौसे पाक ने दूसरा मानी बयान फ़रमाया तो मेने दोबारा तुम्हारे वलीद से पूछा की क्या आप इस मानी को जानते है?

࿐   तो उन्होंने फ़रमाया हा : फिर आप ने एक और मानी बयान फ़रमाया तो मेने तुम्हारे वालिद से पूछा की आप इस मानी को जानते है।

࿐   ईसके बाद आप ने 11 मआनी बयान किये और में हर बार तुम्हारे वालिद से पूछता था, और वो यही कहते की इन मानो से में वाक़ीफ़ हूँ यहाँ तक की ग़ौसे पाक ने पुरे 40 माना बयान किये जो निहायत उम्दा और अज़ीज़ थे 11 के बाद हर मानी के बारे में तुम्हारे वालिद कहते थे : में इन मानो से वाक़ीफ़ नहीं हूँ।

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    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 29 📚*

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*❝ हज़रत इमाम अहमद बिन हम्बल का इज़हारे अक़ीदत ❞* 
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࿐   हज़रत शैख़ इमाम अबूल हसन अली बिन अल हैती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की मेने हज़रये शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह और शैख़ बक़ा बिन बतौ के साथ हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के रौजए अक़्दस की ज़ियारत की।

࿐   मैंने देखा की हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह क़ब्र से बहार तशरीफ़ लाए और हुज़ूर ग़ौसे पाक को अपने सीने से लगा लिया और उन्हें खलअत पहना कर इर्शाद फ़रमाया : ऐ शैख़ अब्दुल क़ादिर ! बेशक में इल्मे शरीअत, इल्मे हक़ीक़त, इल्मे हाल और फेले हाल में तुम्हारा मोहताज हूँ।

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    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 30 📚*

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    *❝ मुश्किल मसअले का आसान जवाब ❞* 
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࿐   बिलादे अ'जम से एक सुवाल आया की "एक शख्स ने तिन तलाक़ो की क़सम इस तौर पर खाई है की वो अल्लाह की ऐसी इबादत करेगा की जिस वक़्त वो इबादत में मशगूल हो तो लोगो में से कोई शख्स भी वो इबादत न कर रहा हो।

࿐   अगर वो ऐसा न कर सका तो उसकी बीवी को 3 तलाक़ै हो जाएगी, तो इस सूरत में कौन सी इबादत करनी चाहिए ?" इस सुवाल से उल्माए इराक़ हैरान और शशदर रह गए।

࿐   और इस मसअले को उन्होंने हुज़ूर ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते अक़्दस में पह किया तो आप ने फौरन इसका जवाब इर्शाद फ़रमाया की "वो शख्स मक्कए मुकर्रमा चला जाए और तवाफ़ की जगह सिर्फ अपने लिये खाली कराए और तन्हा 7 मर्तबा तवाफ़ करके अपनी क़सम को पूरा करे।"

࿐   इस शाफ़ी जवाब से उल्माए इराक़ को निहायत ही तअज्जुब हुवा क्यू की वो इस सुवाल के जवाब से आ'जिज़ हो गए थे।

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   *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 30-31 📚*

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    *❝ वाह क्या मर्तबा ऐ ग़ौस है बाला तेरा ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन ख़िज़र के वालिद फरमाते है की मेने हज़रते ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह  के मदरसे में ख़्वाब देखा की एक बड़ा वसीअ मकान है और उस में सहरा और समुन्दर के मशाइख़ मौजूद है और हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी उनके सद्र है, उनमे बाज़ मशाइख़ तो वो है जिन के सर पर सिर्फ इमामा है और बाज़ वो है जिनके इमामे पर एक तुर्रा है और बाज़ के दो तुररे है लेकिन हुज़ूर ग़ौसे पाक के इमामा शरीफ पर तिन तुररे है।

࿐   मैं उन तिन तुररे के बारे में मुतफ़क्किर था और इसी हालत में जब में वेदार हुवा तो आप मेरे सिरहाने खड़े थे इर्शाद फ़रमाने लगे की खिजर ! एक तुर्रा इल्मे शरीअत की शराफत का और दूसरा इल्मे हक़ीक़त की शराफ़त का और तीसरा शरफ़ व मर्तबे का तुर्रा है।

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   *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 30-31 📚*

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    *❝  हुज़ूर ग़ौसे आ'ज़म की साबित क़दमि  ❞* 
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࿐   हज़रत कुत्बे रब्बानी शैख़ अब्दुल क़ादिर अल जिलानी अल हसनी वल हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी साबित क़दमि का खुद इस अंदाज़ में ताज़्करा फ़रमाया है की मैंने (राहे खुदा عزوجل में) बड़ी बड़ी सख्तिया और मशक़्क़्ते बतदश्त की अगर वो किसी पहाड़ पर गुज़रती तो वो भी फट जाता।

*࿐   शयातीन से मुक़ाबला :-* शैख़ उस्मान अस्सरिफैन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है : मैंने शहंशाहे बगदाद हुज़ूरे ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की ज़बाने मुबारक से सुना की में शबो रोज़ बयाबानो और वीरान जंगलो में रहा करता था।

࿐   मेरे पास शयातीन मुसल्लह हो कर हैबत नाक शक्ल में कीतार आते और मुझ से मुक़ाबला करते, मुझ पर आग फेकते मगर में अपने दिल में बहुत ज्यादा हिमत और ताक़त महसूस करता और गैब से कोई मुझे पुकार कर कहता : ऐ अब्दुल क़ादिर ! उठो उनकी तरफ बढ़ो, मुक़ाबले में हम तुम्हे साबित क़दम रखेंगे और तुम्हारी मदद करेंगे।

࿐   फिर जब में उन की तरफ बढ़ता तो वो दाए बाए या जिधर से आते उसी तरफ भाग जाते, उन मेसे मेरे पास सिर्फ एक ही शख्स आता और डराता और मुझे कहता की यहाँ से चले जाओ।

࿐   तो में उसे एक तमाचा मारता तो वो भागता नज़र आता फिर में "ला-हव्ल-वला-क़ुव्वत इल्ला-बिल्ला-हिल-अ'लिय्यिल-अ'ज़िम" पढता तो वो जल कर ख़ाक हो जाता।..✍

              *✐°°•. बाकी अगली पोस्ट में पढ़ें!*

    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 32📚*

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    *❝  ज़ाहिर व बातिनी औसाफ के जामेअ  ❞* 
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࿐   मुफ्तिये इराक़ मुहयुद्दीन शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अली तौहीदि रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है!

࿐   हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह जल्द रोने वाले, निहायत ख़ौफ़ वाले, बा हैबत, मुस्तजाबुद्दा'वात, करीमुल अख़लाक़, खुशबूदार पसीने वाले, बुरी बातो से दूर रहने वाले, हक़ की तरफ लोगो से ज्यादा क़रीब होने वाले, नफ़्स पर क़ाबू पाने वाले, इन्तिक़ाम न लेने वाले, साइल को न झिड़कने वाले, इल्म से मुहज़्ज़ब होने वाले थे!

࿐   आदाबे शरीअत आप के ज़ाहिरी औसाफ़ और हक़ीक़त आप का बातिन था।..✍

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  *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 32-33 📚*

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       *❝  समुंदरी तरीक़त आप के हाथो में  ❞* 
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࿐    कुत्बे शहरी अहमद रिफाइ रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है की : शैख़ अब्दुल क़ादिर रहमतुल्लाह अलैह वो है की शरीअत का समुन्दर उनके दाए हाथ है!

࿐   और हक़ीक़त का समुन्दर उनके बाए हाथ, जिस में से चाहे पानी ले,हमारे इस वक़्त में अब्दुल क़ादिर का कोई सानी नहीं।

࿐   *40 साल तक इशा के वुज़ू से नमाज़े फज्र अदा फ़रमाई :-* शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अबूल फ़त्ह हरवी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की : मैंने हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की 40 साल तक खिदमत की, इस मुद्दत में आप इशा के वुज़ू से सुबह की नमाज़ पढ़ते थे और आप का मामूल था की जब बे वुज़ू होते थे तो उसी वक़्त वुज़ू फ़रमा कर दो रकअत नमाज़े नफ़्ल पढ़ लेते थे।

࿐   *15 साल तक हर रात में ख़त्मे क़ुरआने मजीद :-* हुज़ूरे गौसुस्स-क़लैन् रहमतुल्लाह अलैह 15 साल तक रत भर में एक क़ुरआने पाक ख़त्म करते रहे और आप हर रोज़ एक हज़ार रकअत नफ़्ल अदा फ़रमाते थे।..✍

              *✐°°•. बाकी अगली पोस्ट में पढ़ें!*

    *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 33 📚*

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       *❝  आप के बयान मुबारक की बरकतें  ❞* 
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࿐    हज़रते बज़्ज़ाज़ रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है : मैंने हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी से सुना की आप कुरसि पर बैठे फ़रमा रहे थे।

࿐   कि मैंने हुज़ूर सय्यिदे आ'लम ﷺ की ज़ियारत की तो आप ने मुझे फ़रमाया : बेटा तुम बयान क्यू नहीं करते?

࿐    मैंने अर्ज़ किया : ऐ मेरे नानाजान ! में एक अ'ज़िम कार्ड हु, बग़दाद में फूसहा के सामने बयान कैसे करू?

࿐    आप ﷺ ने मुझे फ़रमाया : बेटा अपना मुह खोलो ! मैंने अपना मुह खोला, तो आप ﷺ ने मेरे मुह में सात दफा लुआ'बे मुबारक डाला और मुझसे फ़रमाया की लोगो के सामने बयान किया करो और उन्हें अपने रब की तरफ़ उम्दा हिक्मत और नसीहत के साथ बुलाओ।

࿐    फिर मैंने नमाज़े ज़ोहर अदा की और बैठ गया, मेरे पास बहुत से लोग आए और मुज पर चिल्लाए, इसके बाद मेने हज़रते अली इब्ने अबी ताकिब की ज़ियारत की, की मेरे सामने मजलिस में खड़े है और फ़रमाते है की "ऐ बेटे तुम बयान क्यू नहीं करते?

࿐   मैंने अर्ज़ की: ऐ मेरे वालिद ! लोग मुझ पर चिल्लाते है फिर आप ने फ़रमाया : ऐ मेरे फ़रज़न्द ! अपना मुह खोलो मेने अपना मुह खोला तो आप ने मेरे मुह में 6 दफा लुआ'ब डाला।

࿐    मैंने अर्ज़ की : आप ने 7 दफा क्यू नहीं डाला ? उन्होंने फ़रमाया : रसूलुल्लाह ﷺ के अदब की वजह से। फिर वो मेरी आँखों से ओझल हो गए।..✍

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

       *❝  आप का पहला बयान मुबारक  ❞* 
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࿐   हुज़ूर गौस आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह का पहला बयान इज्तिमाए बरानिया में माहे शव्वालुल मुकर्रम 521 ही. में अज़ीमुश्शान मजलिस में हुवा जिस पर हैबत व रौनक़ छाई हुई थी औलियाए किराम और फिरिश्तो ने उसे ढापा हुवा था।

࿐   आप ने किताब व सुन्नत की तसरिह के साथ लोगो को अल्लाह तआला की तरफ बुलाया तो वो सब इताअत व फ़रमा बरदारी के लिये जल्दी करने लगे।

࿐   *40 साल तक इस्तिक़ामत से बयान फ़रमाया :-* ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के फऱज़न्दे अर्जुमन्द अब्दुल वह्हाब रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की : हुज़ूर शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 521 ही. से 561 ही. तक 40 साल मख़लूक़ को वा'ज़ो नसीहत फ़रमाई।...✍

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 35 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

       *❝  आप के बयान मुबारक की तासीर ❞* 
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࿐   हज़रते इब्राहिम बिन साद रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की जब हमारे शैख़ हुज़ूरे ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह आ'लिमो वाला लिबास पहन कर उचे मक़ाम पर जल्वा अफरोज़ हो कर बयान फ़रमाते तो लोग आप के कलामे मुबारक को बागौर सुनते और उस पर अ'मल पैरा होते।

࿐  *आप की आवाज़ मुबारक की करामत :-* हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिसे मुबारक में बा वुज़ूद ये की सुरकाए इज्तिमा बहुत ज्यादा होते थे लेकिन आप की आवाज़ मुबारक जैसी नज़्दीक वालो को सुनाई देती थी वैसी ही दूर वालो को सुनाई देती थी यानि दूर और नज़्दीक वालो के लिये आप की आवाज़ मुबारक यक्सा थी।..✍

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

     *❝  शुरकाए इज्तिमाअ पर आप की हैबत ❞* 
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࿐   आप शुरकाए इज्तिमा के दिलो के मुताबिक़ बयान फ़रमाते और कश्फ़ के साथ उनकी तरफ़ मुतवज्जेह हो जाते।

࿐   जब आप मिम्बर पर खड़े हो जाते तो आप के जलाल की वजह से लोग भी खड़े हो जाते थे : और जब आप उनसे फ़रमाते की चुप रहो। तो सब ऐसे ख़ामोश हो जाते की आप की हैबत की वजह से उन की सासो के इलावा कुछ भी सुनाई न देता।..✍

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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

*❝ अम्बिया और औलिया की आप के बयान में तशरीफ़ आवरी ❞* 
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࿐   शैख़ मुहक़्क़ीक़ शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहेल्वी फ़रमाते है : ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस शरीफ में कुल औलिया और अम्बियाए किराम जिस्मानी हयात और अरवाह के साथ नीज़ जिन्न और मलाएका तशरीफ़ फ़रमा होते थे।

࿐   और हबिबे रब्बुल आ'लमिन ﷺ भी तरबिय्यत व ताईद फ़रमाने के लिये जल्वा अफरोज़ होते थे।

࿐   और हज़रते खिजर अलैरहमा तो अक्सर अवक़ात मजलिस शरीफ के हाज़िरीन में शामिल होते थे और न सिर्फ खुद आते बल्कि मशाईखे ज़माना में से जिस से भी आप की मुलाक़ात होती तो उन को भी आप की मजलिस में हाज़िर होने की ताकीद फ़रमाते हुए इर्शाद फ़रमाते की जिस को भी फ़लाह व कामरानी की ख्वाहिश हो उस को ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस शरीफ की हमेशा हाज़री ज़रूरी है।..✍

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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 

    *❝ जिन्नात भी आप का बयान सुनते हैं। ❞* 
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࿐    शैख़ अबू ज़करिया यहया बिन अबी नसर् सहरावी रहमतुल्लाह अलैह के वलीद फ़रमाते है की "मेने एक दफा अ'मल के ज़रिए जिन्नात को बुलाया तो उन्हों ने कुछ ज़्यादा देर कर दी फिर वो मेरे पास आए और कहने लगे के"जब शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी बयान फरमा रहे होते उस वक़्त हमें बुलाने की कोशिश न किया करो।

࿐   मैंने कहा क्यू? उन्होंने कहा की हम हुज़ूरे ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में हाज़िर होते है।

࿐   मैंने कहा : तुम भी उनकी मजलिस में जाते हो ? उन्होंने कहा : हा हम मर्दों में कसीर तादाद में होते है, हमारे बहुत से गुरौह है जिन्हों ने इस्लाम क़बूल किया है और उन सब ने हुज़ूर ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के हाथ पर तौबा की है।..✍

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*❝ 500 यहूदियो और ईसाइयो का कबूले इस्लाम ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है : मेरे हाथ पर 500 से ज्यादा यहूदियो और ईसाइयो ने इस्लाम क़बूल किया और एक लाख से ज्यादा डाकू, चोर, फुस्साक़ो फुज्जार, फ़सादी और बिदअटी लोगो ने तौबा की।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 37 📚*

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               *❝ डाकू ताइब हो गए ❞* 
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࿐   हुज़ूरे ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है " जब में इल्मे दिन हासिल करने के लिये जिलान से बग़दाद काफिले के हमराह रवाना हुवा और जब हमदान से आगे पहुचे तो 60 डाकू काफिले पर टूट पड़े और सारा काफिला लूट लिया।

࿐   लेकिन किसी ने मुझ से तअर्रुज़ न किया, एक डाकू मेरे पास आ कर पूछने लगा ऐ लड़के ! तुम्हारे पास भी कुछ है?

࿐   मैंने जवाब में कहा : हा।

࿐   डाकू ने कहा : क्या है ?

࿐   मैंने कहा : 40 दीनार।

࿐   उसने पूछा : कहा है ?

࿐   मैंने कहा : गुदड़ी के निचे।

࿐   डाकू इस रास्त गोई को मज़ाक़ तसव्वुर करता हुवा चला गया, इसके बाद दूसरा डाकू आया और उसने भी इसी तरह के सुवालात किये और मेने यही जवाबात उसको भी दिये और वो भी इसी तरह मज़ाक समझते हुए चलता बना।

࿐   जब डाकू अपने सरदार के पास जमा हुए तो उन्होंने अपने सरदार को मेरे बारे में बताया तो मुझे वहा बुला गया, वो माल की तक़्सीम करने में मसर्रूफ़ थे।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 39 📚*

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               *❝ डाकू ताइब हो गए ❞* 
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࿐   डाकुओ का सरदार मुझ से मुखातिब हुवा : तुम्हारे पास क्या है ?

࿐   मैंने कहा : 40 दिनार है।

࿐   डाकुओ के सरदार ने डाकुओ को हुक्म देते हुए कहा : इसकी तलाशी लो। तलाशी लेने पर जब सच्चाई का इज़हार हुवा तो उसने तअज्जुब से सुवाल किया की तुम्हे सच बोलने पर किस चीज़ ने आमादा किया?

࿐   मैंने कहा वालिदाए माजिदा की नसीहत ने।

࿐   सरदार बोला : वो नसीहत क्या है ?

࿐   मैंने कहा : मेरी वालिदए मोहतरमा ने मुझे हमेशा सच बोलने की तल्किन फ़रमाई थी और मेने उनसे वादा किया था की सच बोलूंगा।

࿐   तो डाकुओ का सरदार रो कर कहने लगा : ये बच्चा अपनी माँ से किये हुए वादे से मुन्हरीफ नहीं हुवा और मेने सारी उम्र अपने रब से किये हुए वादे के खिलाफ गुज़ार दी है। उसी वक़्त वो उन 60 डाकुओ समेत हाथ पर ताइब हुवा और काफिले का लूटा हुआ माल वापस कर दिया।

🌹 निगाहे वली में ये तासीर देखी।
🌹 बदलती हज़ारो की तक़दीर देखी।

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*❝ निगाहे गैस आ'ज़म से चोर कुत्ब बन गया ❞* 
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࿐   ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह मदिनए मुनव्वरह से हाज़िरी दे कर नंगे पाउ बगदाद शरीफ की तरफ आ रहे थे की रास्ते में एक चोर खड़ा किसी मुसाफिर का इंतज़ार कर रहा था की उसको लूट ले।

࿐   आप जब उसके क़रीब पहुचे तो पूछा : तुम कौन हो ? उसने जवाब दिया देहाती हु।

࿐   मगर आप के कश्फ़ के ज़रिए उसकी मासियत और बद किर्दारी को लिखा हुवा देख लिया और उस चोर के दिल में ख्याल आया : शायद ये ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह है।

࿐   आप को उसके दिल में पैदा होने वाले ख्याल का इल्म हो गया तो आप ने फ़रमाया : में अब्दुल क़ादिर हु। तो वो चोर सुनते ही फौरन आप के मुबारक कदमो पर गिर पड़ा और उस की ज़बान पर "ऐ मेरे सरदार अब्दुल क़ादिर मेरे हाल पर रहम फरमाये" जारी हो गया आप को उस की हालत पर रहम आ गया और उसकी इस्लाह के लिये बारगाहे इलाही में मुतवज्जेह हुए तो गैब से निदा आई : ऐ ग़ौसे आ'ज़म ! इस चोर को सीधा रास्ता दिखा दो और हिदायत की तरफ रहनुमाई फ़रमाते हुए इसे कुत्ब बना दो।

࿐   चुनान्चे आप की निगाहे फैज़ रसा से वो कुत्बीय्यत के दरजे पर फाइज़् हो गया।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 39 📚*

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        *❝ ऊँगली मुबारक की करामत☝🏽 ❞* 
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࿐   एक मर्तबा रात में सरकारे बगदाद अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के हमराह शैख़ अहमद रिफाइ और अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पुर अन्वार की ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले गए।

࿐   मगर उस वक़्त अँधेरा बहुत ज्यादा था हज़रते ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह उनके आगे आगे थे।

࿐   आप जब किसी पथ्थर, लकड़ी, दिवार या कब्र के पास से गुज़रते तो आप हाथ से इशारा फ़रमाते तो उस वक़्त आप का हाथ मुबारक चांद की तरह रोशन हो जाता था और इस तरह वो सब हज़रात आप के मुबारक हाथ की रौशनी के ज़रिए हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे मुबारक तक पहुच गए।

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        *❝ अल्लाह का आप से वादा ☝🏽 ❞* 
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࿐   हुज़ूर गौषे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है : मेरे परवर दगार ने मुझ से वादा फ़रमाया है की जो मुसलमान तुम्हारे मदरसे के दरवाजे से गुज़रेगा उसके अज़ाब में तख़फ़ीफ़ फरमाऊंगा।

࿐   मदरसे के करीब से गुज़रने वाले की बख्शिश : एक शख्स ने खिदमते अक़्दस में हाज़िर हो कर अर्ज़ की, फुला क़ब्रिस्तान में एक शख्स दफन किया गया है जिस का हाल ही में इंतिक़ाल हुवा है उसकी क़ब्र से चीखने की आवाज़ आती है जेसे अज़ाब में मुब्तला है।

࿐   हुज़ूर गैषे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने इर्शाद फ़रमाया : क्या वो हमसे बैअत है ?

࿐   अर्ज़ की : मालुम नहीं। फ़रमाया : हमारे यहाँ के आने वालो में था ?

࿐   अर्ज़ की : मालुम नहीं। फ़रमाया : कभी हमारे घर का खाना उसने खाया है ?

࿐   अर्ज़ की : ये भी मालुम नहीं।

࿐   हुज़ूर गौषुस्स-क़लैन रहमतुल्लाह अलैह ने मुरा-क़बा फ़रमाया और ज़रा देर में सरे अक़्दस उठाया, हैबतो जलाल रुए अन्वर से ज़ाहिर था, इर्शाद फ़रमाया : फिरिश्ते हम से ये कहते है की एक बार इसने हम को देखा था और दिलमे नेक गुमान लाया था इस वजह से बख्श दिया गया।

࿐   फिर जो उसकी क़ब्र पर जा कर देखा तो फरियाद व बुका की आवाज़ आना बिलकुल बंद हो गई।

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     *❝ अज़ाबे क़ब्र से निजात मिल गई ❞* 
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࿐   बगदाद शरीफ के महल्ले बाबुल के क़ब्रिस्तान में एक क़ब्र से मुर्दे के चीखने की आवाज़ सुनाई देने के मुतअल्लिक़ लोगो ने आप रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में अर्ज़ किया तो आप ने पूछा : क्या उस क़ब्र वाले ने मुझ से खिर्का पहना है ?

࿐   लोगो ने कहा : हुज़ूरे वाला इसका हमें इल्म नहीं है।

࿐   आप ने पूछा : उसने कभी मेरी मजलिस में हाज़री दी थी ?

࿐   लोगो ने अर्ज़ की : बन्दा नवाज़! इसका भी हमे इल्म नहीं।

࿐   इसके बाद आप ने पूछा : क्या उसने मेरे पीछे नमाज़ पढ़ी है ?

࿐   लोगो ने कहा : हम इस के मुतअल्लिक़ भी नहीं जानते।

࿐   तो आपने इर्शाद फ़रमाया : भुला हुवा शख्स ही ख़सार में पड़ता है।

࿐   इसके बाद आप ने मुराक़बा फ़रमाया और आप के चेहरए मुबारक से जलाल, हैबत और वक़ार ज़ाहिर होने लगा, आपने सरे मुबारक उठा कर फ़रमाया की फिरिश्तो ने मुझे कहा है : इस शख्स ने आप की ज़ियारत की है और आप से हुस्ने ज़न और महब्बत रखता था तो अल्लाह तआला ने आप के सबब इस पर रहम फरमा दिया है।

࿐   इसके बाद उस क़ब्र से कभी भी आवाज़ न सुनाई दी।

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              *❝ मुर्गी  ज़िन्दा  कर  दी ❞* 
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࿐   एक बीबी सरकारे बग़दाद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अपना बेटा छोड़ गई की इस का दिल हुज़ूर से गिरविदा है अल्लाह عزوجل और उसके रसूल ﷺ के लिये इस की तरबिय्यत फरमाए।

࿐   आप ने उसे क़बूल फरमा कर मुजाहदे पर लगा दिया और एक रोज़ उनकी माँ आई देखा लड़का भूक और शब बेदारी से बहुत कमज़ोर और ज़र्द रंग हो गया है और उसे जव की रोटी खाते देखा

࿐   जब बारगाहे अक़्दस में हाज़िर हुई तो देखा की आप के सामने एक बर्तन में मुर्गी की हड्डिया राखी है जिसे हुज़ूर रहमतुल्लाह अलैह ने तनावुल फ़रमाया था।

࿐   अर्ज़ की : ऐ मेरे मौला ! हुज़ूर तो मुर्गी खाए और मेरा बच्चा जव की रोटी।

࿐   ये सुन कर हुज़ूरे पुरनूर रहमतुल्लाह अलैह ने अपना दस्ते अक़्दस उन हड्डियों पर रखा और फ़रमाया : जी उठ उस अल्लाह عزوجل के हुक्म से जो बोसीदा हड्डियों को ज़िन्दा फ़रमाएगा।

࿐   ये फरमान था की मुर्गी फौरन ज़िन्दा सहीह सालिम खड़ी हों कर आवाज़ करने लगी।

࿐   गौषे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : जब तेरा बेटा इस दरजे तक पहुच जाएगा तो जो चाहे खाए।

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           *❝ आप की दुआ की बरकत ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ सालेह अबुल मुज़फ्फर इस्माइल बिन अली हुमैरी ज़रीरानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है : हज़रते शैख़ अली बिन हैतमि रहमतुल्लाह अलैह जब बीमार होते तो कभी कभी मेरी ज़मीन की तरफ जो की ज़रीरान में थी तशरीफ़ लाते और वहा कई दिन गुज़ारते।

࿐   एक दफा आप वही बीमार हो गए तो उन के पास मेरे गौषे समदानी रहमतुल्लाह अलैह बगदाद से तामीर दारी के लिये तशरीफ़ लाए।

࿐   दोनों मेरी ज़मीन पर जमा हुए, उस में दो खजूर के दरख़्त थे जो चार बरस से खुश्क थे और उन्हें फल नहीं लगता था।

࿐   हमने उन को काट देने का इरादा किया तो हज़रते अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह खड़े हुए और उन में से एक के निचे वुज़ू किया और दूसरे के निचे दो नफ़्ल अदा किये।

࿐   तो वो सब्ज़ हो गए और उनके पत्ते निकल आए।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 45 📚*

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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


           *❝ आप की दुआ की बरकत ❞* 
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࿐   आप ने उन पेड के निचे नफ़्ल अदा किये तो वो सब्ज़ हो गए और उनके पत्ते निकल आए और उसी हफ्ते में उन का फल आ गया हाला की वो खजूरो के फल का वक़्त नहीं था में ने अपनी ज़मीन से कुछ खजूरे ले कर आप की खिदमत में हाज़िर कर दी आप ने उस में से खाई और मुझ से कहा : अल्लाह عزوجل तेरी ज़मीन, तेरे दिरहम, तेरे साअ और तेरे दूध में बरकत दे।

࿐   हज़रते शैख़ इस्माइल बिन अली रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की मेरी ज़मीन में उस साल की मिक़दार से दो से चार गुना पैदा होना शुरू हुवा।

࿐   अब मेरा ये हाल है की जब में एक दिरहम खर्च करता हु तो उस से मेरे पास दो से तिन गुना आ जाता है।

࿐   और जब में गंदुम की 100 बोरी किसी मकान में रखता हु फिर उस में से 50 बोरी खर्च कर डालता हु और बाक़ी को देखता हु तो 100 बोरी मौजूद होती है।

࿐   मेरे मवेशी इस क़दर बच्चे जनते हैंकि में उन का शुमार भूल जाता हु : और ये हाल हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की बरकत से अब तक बाक़ी है।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 46 📚*

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   ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


*❝ खलीफा का मालो दौलत खून में बदल गया ❞* 
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࿐   हज़रते अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अबुल अब्बास मौसिलि रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद से नक़ल करते है की उन्होंने फ़रमाया : हम एक रात अपने शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे बग़दाद में थे उस वक़्त आप की खिदमत में बादशाह अल मुस्तन्जद बिल्लाह अबुल मुज़फ्फर युसूफ हाज़िर हुवा उसने आप को सलाम किया और नसीहत का ख़्वास्त-गार हुवा और आप की खिदमत में दस थैलियां लेकर की जो दस गुलाम उठाए हुए थे।

࿐   आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : में इन की हाजत नहीं रखता। और क़ुबल करनेसे इंकार फरमा दिया उसने बड़ी आजिज़ी की, तब आप ने एक थैली अपने दाए हाथ में पकड़ी और दूसरी थैली बाए हाथ में पकड़ी और दोनों थैलियो को हाथ से दबा कर निचोड़ा की वो दोनों थैलियां खून हो कर बह गई।

࿐   आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : ऐ अबुल मुज़फ्फर ! क्या तुम्हे अल्लाह का खौफ नहीं की लोगो का खून लेते हो और मेरे सामने लाते हो। वो आप की बात सुनकर हैरानी के आ'लम में बेहोश हो गया।

࿐   फिर हुज़ूरे गौषे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : अल्लाह की क़सम ! अगर इसके हुज़ूर नबिय्ये पाक से रिश्ते का लिहाज़ न होता तो में खून को इस तरह छोड़ता की उसके मकान तक पहुचता।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 46 📚*

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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


*❝ अन्धो को बिना और मुर्दो को ज़िन्दा करना ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ बरगुज़ीदा अबुल हसन करशी फ़रमाते है : में और शैख़ अबुल हसन अली बिन हैती हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में उनके मदरसे में मौजूद थे तो उनके पास अबू ग़ालिब फ़ज़्लूल्लाह बिन इस्माइल बगदादी अज़जी सौदागर हाज़िर हुवा वो आप से अर्ज़ करने लगा की : ऐ मेरे सरदार ! आप के जद्दे अमजद हुज़ूरे पुरनूर का फ़रमाने ज़ीशान है की "जो शख्स दा'वत में बुलाया जाए उस को दा'वत क़बूल करनी चाहिये।

࿐   मैं हाजिर हुवा हु की आप मेरे घर दावत पर तशरीफ़ लाए।

࿐   आप ने फ़रमाया : अगर मुझे इजाज़त मिली तो में आऊंगा। फिर कुछ देर बाद आपने मुराक़बा करके फ़रमाया : हा आऊंगा।

࿐   फिर आप रहमतुल्लाह अलैह अपने खच्चर पर सुवार हुए, शैख़ अली ने आप की दाई रिकाब पकड़ी और मेने बाई रिकाब थामी और जब उसके घर में हम आए देखा तो उस में बगदाद के मसाइख्, उल्मा और मुअज़्ज़ज़िन जमा है।

࿐   दस्तर ख्वान बिछाया गया जिसमे तमाम शीरी और तुर्श चीज़े खाने के लिये मौजूद थी और एक बड़ा सन्दूक़ लाया गया जो सर ब मोहर था, दो आदमी उसे उठाए हुए थे उसे दस्तर ख्वान के एक तरफ रख दिया गया।

࿐   तो अबू ग़ालिब ने कहा : इजाज़त है।

࿐   उस वक़्त हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह मुराक़बे में थे और आप ने खाना न खाया और न ही खाने की इजाज़त दी।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 48 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


*❝ अन्धो को बिना और मुर्दो को ज़िन्दा करना ❞* 
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࿐   आप रहमतुल्लाह अलैह ने खाने की इजाज़त न दी तो किसीने भी खाना न खाया : आप की हैबत के सबब मजलिस वालो का हाल ऐसा था की गोया उनके सरो पर परिन्दे बैठे है, फिर आप ने शैख़ अली की तरफ इशारा करते हुए फ़रमाया की वो सन्दूक़ उठा लाइए।

࿐   हम उठे और उसे उठाया तो वो वज़नी था, हमने सन्दूक़ को आप के सामने ला कर रख दिया आप ने हुक्म दिया की सन्दूक़ को खोला जाए।

࿐   हमने खोल तो उसमे अबू ग़ालिब का लड़का मौजूद था जो मादर ज़ाद अन्धा था तो आप ने उसेसे कहा : खड़ा हो जा। हमने देखा की आप के कहने की देर थी लड़का दौड़ने लगा और बिना भी हो गया और ऐसा हो गया की कभी बीमारी में मुब्तला नहीं था, ये देख कर मजलिस में शोर बरपा हो गया और आप इसी हालत में बाहर निकल आए और कुछ न खाया।

࿐   इसके बाद में शैख़ अबू साद कैल्वि की खिदमत में हाज़िर हुवा और ये हाल बयान किया तो उन्होंने कहा की हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह मादर ज़ाद अन्धे और बरस वालो को अच्छा कर्तेभै और खुदा के हुक्म से मुर्दे ज़िन्दा करते है।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 48 📚*

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    *❝ बादलो पर भी आप की हुक्मरानी ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह एक दिन मिम्बर पर बेठे ब्यान फरमा रहे थे की बारिश शुरू हो गई तो आप ने फ़रमाया : मैं तो जमा करता हु और ऐ बादल तू मुतफ़र्रिक कर देता है।

࿐   तो बदल मजलिस से हट गया और मजलिस से बाहर बरसने लगा।

࿐   रावी कहते है की अल्लाह عزوجل की क़सम ! शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह का कलाम अभी पूरा नहीं हुवा था की बारिश हम से बन्द हो गई और हम से दाए बाए बरसती थी और हम पर नहीं बरसती थी।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 51 📚*

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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


              *❝ एक जिन्न की तौबा ❞* 
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࿐   हुज़ूर गौषे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह के साहिब ज़ादे हज़रत अबू अब्दुर्रज़्ज़ाक रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की मेरे वालीदे गिरामी शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है की : मैं एक रात जामेए मंसूर में नमाज़ पढता था की मेने सुतूनो और किसी शै की हरकत की आवाज़ सुनी, फिर एक  बड़ा सांप आया और उसने अपना मुह मेरे सज्दे की जगह में खोल दिया।

࿐   मैंने जब सज्दे का इरादा किया तो अपने हाथ से उसको हटा दिया और सज्दा किया फिर जब में अत्तहिय्यात के लिये बैठा तो वो मेरी रान पर चलते हुए मेरी गर्दन पर चढ़ कर इससे लिपट गया, जब मेने सलाम फेरा तो उसको न देखा।

࿐   दूसरे दिन में जामेअ मस्जिद से बहार मैदान में गया तो एक शख्स को देखा जिस की आँखे बिल्ली की तरह थी और क़द लम्बा था तो मेने जान लिया की ये जीन्न है उसने मुझसे कहा : में वही जिन्न हु जिस को आप ने कल रात देखा था, मेने बहुत से औलियाए किराम को इस तरह आज़माया है जिस तरह आप को आज़माया।

࿐   मगर आप की तरह उन्मे से कोई भी साबित क़दम नहीं रहा, उन्मे बाज़ वो थे जो ज़ाहिरो बातिन से घबरा गए, बाज़ वो थे जिन के दिल में इज़्तिराब हुवा और ज़ाहिर में साबित क़दम रहे, बाज़ वो थे की ज़ाहिर में मुज़तरिब हुए और बातिन में साबित क़दम रहे, लेकिन मेने आप को देखा की आप न ज़ाहिर में घबराए और न ही बातिन में।

࿐   उसने मुझसे सुवाल किया की आप मुझे अपने हाथ पर तौबा करवाए।

࿐   मैने उसे तौबा करवाई।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 55 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


  *❝ शैतान लइन के सर से महफूज़ रहना ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ अबू नसर् मूसा शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की मेरे वालिद ने इर्शाद फ़रमाया : मैं अपने एक सफर में सहरा की तरफ निकला और चन्द दिन वहा ठहरा मगर मुझे पानी नहीं मिलता था जब मुझे प्यास की सख्ती महसूस हुई तो एक बादल ने मुझ पर साया किया और उसमे से मुज पर बारिश के मुशाबेह एक चीज़ गिरी, में उस से सैराब हो गया।

࿐   फिर मैंने एक नूर देखा जिस से आसमान का कनारा रोशन हो ज्ञाबोर एक शक्ल जाहिर हुई जिस से मेने एक आवाज़ सुनी : ऐ अब्दुल क़ादिर ! में तेरा रब हु और मेने तुम पर हराम चीज़े हलाल कर दी है।

࿐   तो मैने अउजुबिल्लाहि-मीन-स-शैतानी-रजिम पढ़ कर कहा : ऐ शैतान लईन ! दूर हो जा।

࿐   तो रोशन कनारा अँधेरे में बदल गया और वो शक्ल धुवा बन गई फिर उसने मुझसे कहा : ऐ अब्दुल क़ादिर ! तुम मुझसे अपने इल्म, अपने रब के हुक्म और अपने मरातिब के सिलसिले में समझ बुझ के ज़रिए नजात पा गए और मेने ऐसे 70 मशाइख़् को गुमराह कर दिया।

࿐   मैंने कहा : ये सिर्फ मेरे रब का फ़ज़्लो करम है।

࿐   शैख़ अबू नसर् मूसा रहमतुल्लाह अलैहन ने आप से दरयाफ़्त किया की आप ने किस तरह जाना की वो शैतान है ?

࿐   आप ने इर्शाद फ़रमाया : उसकी इस बात से की "बेशक मेने तेरे लिये हराम चीज़ों को हलाल कर दिया।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 57 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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       *❝ गरीबो और मोहताज़ो पर रहम ❞* 
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࿐   शैख़ अब्दुल्लाह जुबाई रहमतुल्लाह अलैह बयान करते है की एक मर्तबा हुज़ूरे गैषे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने मुझसे इर्शाद फ़रमाया : मेरे नजदीक भूखो को खाना खिलाना और हुस्ने अख़लाक़ कामिल ज्यादा फ़ज़ीलत वाले आ'माल है।

࿐   फिर इर्शाद फ़रमाया : मेरे हाथ में पैसा नहीं ठहरता, अगर सुबह को मेरे पास हज़ार दिनार आए तो शाम तक उन्मे से एक पैसा भी न बचे की गरीबो और मोहताज़ो में तक़्सीम कर दू और भूखे लोगो को खाना खिला दू।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 57 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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*❝ औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत ❞* 
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࿐   *मेरा क़दम हर वाली की गर्दन पर है!* हाफ़िज़ अबुल इज़्ज़ अब्दुल मुगिस बिन अबू हर्ब अल बगदादी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है की हम लोग बगदाद में हज़रते गौषे पाक रहमतुल्लाह अलैह की रबात हबला में हाज़िर थे उस वक़्त उन की मजलिस में इराक़ के अक्सर मशाइख़् हाजिर थे। और आप उन सब हज़रात के सामने वा'ज़ फरमा रहे थे की उसी वक़्त आप ने फ़रमाया : मेरा ये क़दम हर वलियुल्लाह की गर्दन पर है।

࿐   ये सुन कर हज़रते शैख़ अली बिन अल हैती रहमतुल्लाह अलैह का क़दम मुबारक अपनी गर्दन पर रख लिया।

࿐   इसके बाद तमाम हाज़िरीन ने आगे बढ़ कर अपनी गर्दन झुका दी।

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*❝ औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत ❞* 
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࿐   *ख्वाज़ा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह* जिस वक़्त हुज़ूर गौषे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह ने बगदाद मुक़द्दस में इर्शाद फ़रमाया : मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है।

࿐   तो उस वक़्त ख्वाज़ा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह अपनी जवानी के दिनों में मुल्के खुरासान के दामने कोह में इबादत करते थे।

࿐   वहा बग़दाद शरीफ में इर्शाद होता है और यहा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने अपना सर झुकाया और इतना झुकाया की सरे मुबारक ज़मीन तक पहुचा और फ़रमाया : बल्कि आप के क़दम मेरे सर पर है और मेरी आँखों पर है।

📒 सीरते गौषुस्स-क़लैन्, सफ़ह 89

࿐   मालुम हुवा की हुज़ूर गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह सुल्तानुल हिन्द हुए और यहाँ तमाम औलियाए अहदो मा बा'द आप के महकूम और हुज़ूरे गौषे पाक रहमतुल्लाह अलैह उन पर सुलतान की तरह हाकिम ठहरे।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 69 📚*

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*❝ औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत ❞* 
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࿐   *शैख़ अहमद रिफाइ रहमतुल्लाह अलैह* जब हज़रते शैख़ अब्दुल क़दीर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है।

࿐   तो अहमद रिफाइ रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी गर्दन को झुका कर अर्ज़ किया : मेरी गर्दन पर भी आप का क़दम है।

࿐   हाज़िरीन ने अर्ज़ किया : हुज़ूरे वाला ! आप ये क्या फ़रमा रहे है ?

࿐   तो आप ने इर्शाद फ़रमाया की इस वक़्त बगदाद में हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने एलान फ़रमाया है की मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है और मैंने गर्दन झुका कर तामिले इर्शाद की है।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 69 📚*

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*❝ औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत ❞* 
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࿐  *ख्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबन्द रहमतुल्लाह अलैह* जब आप से हुज़ूरे गौषे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह के क़ौल ; "मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है" के मुतअल्लिक़ दरयाफ़्त किया तो आप ने इर्शाद फ़रमाया : गर्दन तो दर कनार आप का क़दम मुबारक तो मेरी आँखों पर है।

࿐  *शैख़ माजिद अल कुर्दी रहमतुल्लाह अलैह* आप इर्शाद फ़रमाते है की जब गौषे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह ने "मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है" इर्शाद फ़रमाया था तो उस वक़्त कोई अल्लाह عزوجل का वली ज़मीन पर ऐसा न था की जिसने तवाज़ोअ करते हुए और आप के आ'ला मर्तबे का एतिराफ करते हुए गर्दन न झुकाई हो।

࿐  तमाम दुन्याए आ'लम के सालेह जिन्नात के वफ्द आप के दरवाज़े पर हाज़िर थे और सब के सब आप के दस्ते मुबारक पर ताइब हो कर वापस पलटे।

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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*❝ औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत ❞* 
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࿐  *सरवरे काएनात ﷺ की तस्दीक़ :* शैख़ खलीफा रहमतुल्लाह अलैह ने सरवरे काएनात ﷺ को ख्वाब में देखा और अर्ज़ किया की
हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने "मेरा ये कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है" का एलान फ़रमाया है।

࿐  तो सरकारे आ'लम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : शैख़ अब्दुल क़ादिर रहमतुल्लाह अलैह ने सच कहा है और ये क्यू न कहते जब की वो कुत्बे ज़माना और मेरी ज़ेरे निगरानी है।

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   *❝  ☝🏻 अल्लाह  की  इताअत  करो  ❞* 
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࿐  हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है : अल्लाह की ना फ़रमानी नहीं करनी चाहिये और सच्चाई का दामन हाथ से नहीं छोड़ना चाहिये,
इस बात पर यक़ीन रखना चाहिये की तू अल्लाह का बन्दा है और अल्लाह ही की मिल्कीय्यत में है!

࿐  उसकी किसी चीज़ पर अपना हक़ ज़ाहिर नहीं करना चाहिये बल्कि उस का अदब करना चाहिये क्यू की उस के तमाम काम सहीह व दुरस्त होते है, अल्लाह के कामो को मुक़द्दम समझना चाहिये।

࿐  अल्लाह तआला हर किस्म के उमूर से बे नियाज़ है और वो ही नेमते और जन्नत अता फ़रमाने वाला है, और उसकी जन्नत की नेमतों का कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता की उसने अपने बन्दों की आँखों की ठंडक के लिये क्या कुछ छुपा रखा है!

࿐  इसलिये अपने तमाम काम अल्लाह ही की सिपुर्द करना चाहिये, अल्लाह तआला ने अपना फ़ज़्ल व नेमत तुम और पूरा करने का अहद किया है और वो इसे ज़रूर पूरा फ़रमाएगा।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह -  79 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 

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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*

   *❝  ☝🏻 अल्लाह  की  इताअत  करो  ❞* 

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࿐  बन्दे का शजरे इमानी उसकी हिफाज़त और तहफ़्फ़ुज़ का तक़ाज़ा करता है, शजरे इमानी की परवरिश ज़रूरी है, हमेशा इस की आब-यारी करते रहो, इसे नेक आ'माल की खाद देते रहो ताकि इसके फल फुले और मेवे बर क़रार रहे!

࿐  अगर ये मेवे और फल गिर गए तो शजरे इमानी वीरान हो जाएगा और अहले सरवत के ईमान का दरख़्त हिफाज़त के बिगैर कमज़ोर है लेकिन तफक़्क़ुरे इमानी का दरख़्त परवरिश और हिफाज़त की वजह से तरह तरह की नेमतों से फ़ैज़याब है!

࿐  अल्लाह अपने एहसान से लोगो को तौफ़ीक़ अता फ़रमाता है और उन को अर-फओ आ'ला मक़ाम अता फ़रमाता है।

࿐  अल्लाह तआला की ना फ़रमानी नहीं कर, सच्चाई का दामन हाथ से नहीं छोड़ और उस के दरबार में आजिज़ी से माज़िरत करते हुए अपनी हाजत दिखाते हुए आजिज़ी का इज़हार कर!

࿐  आँखों को झुकाते हुए अल्लाह की मख़लूक़ की तरफ से तवज्जोह हटा कर अपनी ख्वाहिशात पर क़ाबू पाते हुए दुन्या व आख़िरत में अपनी इबादत का बदला न चाहते हुए और बुलंद मक़ाम की ख्वाहिशात दिल से निकाल कर रब्बुल आ'लमिन की इबादतों रियाज़त करने की कोशिश करो।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह 79-80 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
 *❝  एक मोमिन को केसा होना चाहिये❓ ❞* 
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࿐  हुज़ूर गौषूल आ'ज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह का फ़रमाने आलिशान है : महब्बते इलाही का तक़ाज़ा है की तू अपनी निगाहो को अल्लाह عزوجل कि रहमत की तरफ लगा दे और किसी की तरफ निगाह न हो यु की अन्धो की मानिंद हो जाए!

࿐  जब तक तू गैर की तरफ देखता रहेगा अल्लाह عزوجل का फ़ज़्ल नही देख पाएगा पस तू अपने नफ़्स को मिटा कर अल्लाह عزوجل ही की तरफ मुतवज्जेह हो जा!

࿐  इस तरह तेरे दिल की आँख फज़ले अज़ीम की जानिब खुल जाएगी और तू इसकी रौशनी अपने सर की आँखों से महसूस करेगा और फिर तेरे अंदर का नूर बाहर को भी मुनव्वर कर देगा!

࿐  अताए इलाही से तू राहतों सुकून पाएगा और अगर तूने नफ़्स पर ज़ुल्म किया और मख़लूक़ की तरफ निगाह की तो फिर अल्लाह عزوجل की तरफ से तेरी निगाह बंद हो जाएगी और तूझ से फज़ले खुदा वन्दी रुक जाएगा।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 80 📚*

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⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
 *❝  एक मोमिन को केसा होना चाहिये❓ ❞* 
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࿐  तू दुन्या की हर चीज़ से आँखे बंद करले और किसी चीज़ की तरफ न देख जब तक तू चीज़ की तरफ मुतवज्जेह रहेगा तो अल्लाह عزوجل का फ़ज़्ल और कुर्ब की राह तुझ पर नहीं खुलेगी

࿐   तौहीद, कज़ाए नफ़्स, महविय्य्ते ज़ात के ज़रिए दूसरे रास्ते बंद कर दे तो तेरे दिल में अल्लाह तआला के फ़ज़्ल का अ'ज़िम दरवाज़ा खुल जाएगा तू उसे ज़ाहिरी आँखों से दिल, ईमान और यक़ीन के नूर से मशाहदा करेगा।

࿐  मजीद फ़रमाते है : तेरे नफ़्स और आज़ा गैरुल्लाह की अता और वादे से आराम व सुकून नहीं पाते बल्कि अल्लाह तआला के वादे से आराम व सुकून पाते है।c

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⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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⚘ जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘ 


         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
 *❝ ☝🏻 अल्लाह के वली का मक़ाम ❞* 
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࿐  शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह का इरशादे मुबारक है जब बन्दा मख़लूक़, ख्वाहिशात, नफ़्स, इरादा और दुन्या व आख़िरत की आरज़ूओं से फ़ना हो जाता है तो अल्लाह عزوجل के सिवा उसका कोई मक़सूद नही होता और ये तमाम चीज़ उसके दिलसे निकल जाती है तो वो अल्लाह عزوجل तक पहुच जाता है!

࿐  अल्लाह عزوجل उसे महबूब व मक़्बूल बना लेता है उससे महब्बत करता है और मख़लूक़ के दिल में उसकी महब्बत पैदा कर देता है।

࿐  फिर बन्दा ऐसे मक़ाम और फाइज़् हो जाता है की वो सिर्फ अल्लाह عزوجل और उसके क़ुर्बे को महबूब रखता है उस वक़्त अल्लाह तआला का खुसूसी फ़ज़्ल उस पर साया फ़िगन हो जाता है। और उसको अल्लाह عزوجل नेमते अता फ़रमाता है और अल्लाह عزوجل उस पर अपनी रहमत के दरवाज़े खोल देता है।

࿐  और उस से वादा किया जाता है की रहमते इलाही عزوجل के ये दरवाज़े कभी उस पर बंद नहीं होंगे उस वक़्त वो अल्लाह عزوجل का हो कर रह जाता है!

࿐  उसके इरादे से इरादा करता है और उसके तदब्बुर से तदबीर करता है, उसकी चाहत से चाहता है, उसकी रिज़ा से राज़ी होता है, और सिर्फ अल्लाह عزوجل के हुक्म की पाबन्दी करता है!

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह 81-82 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
 *❝ तरीक़त के रस्ते पर चलने का नुस्खा ❞* 
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࿐  हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है : अगर इंसान अपनी तबई आदत को छोड़ कर शरीअते मुतह्हरा की तरफ रुज़ूअ करे तो हक़ीक़त में येही इताअते इलाही عزوجل है, इससे तरीक़त का रास्ता आसान होता है।

࿐  अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है :
और जो कुछ तुम्हे रसूल अता फरमाए वो लो और जिस से मना फरमाए बाज़ रहो।

📗पारह 28

࿐  क्यू की सरकारे मदीना ﷺ की इत्तिबाअ ही अल्लाह عزوجل की इताअत है, दिल में अल्लाह عزوجل की वहदानिय्यत के सिवा कुछ नहीं रहना चाहिये, इस तरह तू फनाफ़िल्लह के मक़ाम पर फाइज़् हो जाएगा और तेरे मरातिब से तमाम हिस्से तुझे अता किये जाएगे अल्लाह عزوجل तेरी हिफाज़त फ़रमाएगा, मुवाफक़्ते खुदा वन्दी عزوجل हासिल होगी।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 82 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
 *❝ तरीक़त के रास्ते पर चलने का नुस्खा ❞* 
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࿐  अल्लाह عزوجل तुझे गुनाहो से महफूज़ फ़रमाएगा और तुझे अपने फज़ले अ'ज़िम से इस्तिक़ामत अता फ़रमाएगा, तुझे दिन के तक़ाज़ों को कभी भी फरामोश नहीं करना चाहिये इन आ'माल को शरीअत की पैरवी करते हुए बजा लाना चाहिये!

࿐  बन्दों को हर हाल में अपने रब की रिज़ा पर राज़ी रहना चाहिये, अल्लाह عزوجل की नेमतों से शरीअत की हुदूद ही में रह कर लुत्फ़ व फाएदा उठाना चाहिये और इन दुन्यवि नेमतों से तो हुज़ूर ने भी हुदूदे शरअ में रह कर फाएदा उठाने की तरगिब् दिलाई है!

࿐  चुनान्चे सरकारे दो जहान ﷺ इर्शाद फ़रमाते है : खुशबू और औरत मुझे महबूब है और मेरी आँखों की ठन्डक नमाज़ में है।

࿐  लिहाज़ा इन नेमतों पर अल्लाह عزوجل का सुक्र अदा करना वाजिब है, अल्लाह عزوجل के अम्बियाए किराम और औलियाए इज़ाम को नेमते इलाहिय्यह हासिल होती है और वो उसको अल्लाह عزوجل की हुदूद में रह कर इस्तिमाल फ़रमाते है!

࿐  इंसान के जिस्म व रूह की हिदायत व रहनुमाई का मतलब ये है की ऐतिदाल के साथ अहकामे शरीअत की तामील होती रहे और इस में सीरते इनसानी की तकमील जारी व सारी रहती है।

🖊हवाला
📒फुतुहुल गैब मुतर्जम, सफा 72

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह 82-83 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
          *❝   रिज़ाए  इलाही  ❞* 
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࿐   हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है : जब अल्लाह तआला अपने बन्दे की कोई दुआ क़बूल फ़रमाता है और जो चीज़ बन्दे ने अल्लाह तआला से तलब की वो उसे अता करता है!

࿐   तो इससे इरादए खुदा वन्दी में कोई फ़र्क़ नहीं आता और न नविश्तए तक़दीर ने जो लिखा दिया है उस की मुखालफत लाज़िम आती है क्यू की इस का सुवाल अपने वक़्त पर रब तआला के इरादे के मुवाफ़िक़ होता है इस लिये क़बूल हो जाता है!

࿐  और रोज़े अज़ल से जो चीज़ इसके मुक़द्दर में है वक़्त आने पर इसे मिल कर रहती है।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह 83 - 84 📚*

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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
          *❝  रिज़ाए  इलाही  ❞* 
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࿐   अल्लाह عزوجل के महबूब ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : अल्लाह عزوجل पर किसी का कोई हक़ वाजिब नहीं है, अल्लाह عزوجل जो चाहता करता है, जिसे चाहे अपनी रहमत से नवाज़ दे और जिसे चाहे अज़ाब में मुब्तला करदे!

࿐   अर्श से फर्श और तहतुस्सरा तक जो कुछ है वो सब का सब अल्लाह عزوجل के क़ब्ज़े में है, सारी मख़लूक़ उसी की है, हर चीज़ का ख़ालिक़ वो ही है!

࿐   अल्लाह عزوجل के सिवा कोई पैदा करने वाला नहीं है तो इन सब के बा वुज़ूद तू अल्लाह عزوجل के साथ किसी और को शरीक ठहराता है ?

࿐  अल्लाह عزوجل जिसे चाहे और जिस चाहता है ज़िल्लत में मुब्तला कर देता है, अल्लाह عزوجل की बेहतरी सब पर ग़ालिब है और वो जिसे चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फ़रमाता है।

🖊हवाला
📒फुतुहुल ग़ैब मुतर्ज़म, सफा 80

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह -  84 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
*❝  हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करो ❞* 
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࿐  हुज़ूर शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने इर्शाद फ़रमाया परवर दगार से अपने साबिक़ा गुनाहो की बख्शीश और मौजूदा और और आइन्दा गुनाहो से बचने के सिवा और कुछ न मांग!

࿐  हुस्ने इबादत, अहकामे इलाही पर अ'मल करना, न फ़रमानी से बचने क़ज़ा व क़द्र की सख्तियो पर रिज़ा मंदी, आज़माइश में सब्र, नेमत व बख्शीश की अता और शुक्र कर, खातिमा बिलखैर और अम्बिया अलैहिमुस्सलाम, सिद्दीक़ीन, शुहदा, सालीहीन जैसे रफ़ीक़ो की रफ़ाक़त की तौफ़ीक़ तलब कर,

࿐  और अल्लाह तआला से दुन्या तलब न कर, और आज़माइश व तंगदस्ती के बजाए तवंगरि व दौलत मंदी न मांग, बल्कि तक़दीर और तदबीरें इलाही पर रिज़ा मंदी की दौलत का सुवाल कर।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह 84-85 📚*

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  ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 
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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
*❝ हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करो ❞* 
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࿐  जिस हाल में अल्लाह तआला ने तुझे रखा है उस पर हमेशा की हिफाज़त की दुआ कर, क्यू की तू नही जानता की इन में तेरी भलाई किस चीज़ में है, मोहताजी व फ़क़रो फ़ाक़ा में है या दौलत मंदी और तवंगरि में, आज़माइश में या आफिय्यत में है, अल्लाह तआला ने तुझ से अश्या का इल्म छुपा कर रखा है। उन अश्या की भलाइयों और बुराइयो के जानने में वो यकता है।

࿐   अमीरुल मुअमिनीन हज़रते फ़ारूक़ رضي الله تعالي عنه इर्शाद फ़रमाते है की मुझे इस बात की परवाह नहीं की में किस हाल में सुबह करूँगा आया इस हाल पर जिस को मेरी तबीअत ना पसंद करती है, या इस हाल पर की जिस को मेरी तबीअत मसंद करती है, क्यू की मुझे मालुम नहीं की मेरी भलाई और बेहतरी किस में है। ये बात अल्लाह तआला की तदबीर पर रिज़ा मंदी उसकी मसन्दीदगी और इख़्तियार और उसकी क़ज़ा पर इत्मीनान व सुकून होने के सबब फ़रमाई।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह -  85 📚*

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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
       *❝  तवक्कुल की हक़ीक़त  ❞* 
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࿐  हज़रत महबूबे सुब्हानी रहमतुल्लाह अलैह से तवक्कुल के बारे में दरयाफ़्त किया गया तो आप ने इरशाद फ़रमाया : "दिल अल्लाह की तरफ लगा रहे और उसके गैर से अलग रहे।" 

࿐   निज इरशाद फ़रमाया की तवक्कुल ये है की जिन की आँख से झांकना और मज़्हबे मारिफ़त में दिल के यक़ीन की हक़ीक़त का नाम एतिक़ाद है क्यू की वो लाज़िमी उमूर है उनमे कोई एतराज़ करने वाला नक़्स नहीं निकाल सकता।

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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*
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࿐   *दुन्या को दिल से निकाल दो :* हुज़ूर गौषे आ'जम रहमतुल्लाह अलैह से दुन्या के बारे में पूछा गया तो आप ने फ़रमाया की दुन्या को अपने दिल से मुकम्मल तौर पर निकाल दे फिर वो तुझे नुक़सान नहीं पहुचाएगी।

࿐   *शुक्र क्या है ?*  शैख़ मुहयुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से शुक्र के बारे में दरयाफ़्त किया गया तो आप ने इरशाद फरमाया की शुक्र की हक़ीक़त ये है की आजिज़ी करते हुए नेमत देने वाले की नेमत का इक़रार हो और इसी तरह आजिज़ी करते हुए अल्लाह के एहसान को माने और ये समझ ले की वो शुक्र अदा करने से आजिज़ है।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 87 📚*

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         *🌹 मल्फ़ूज़ाते  गौषे  आ'ज़म 🌹*••──────•◦❈◦•──────••

࿐   सब्र की हक़ीक़त : हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया सब्र ये है की बला व मुसीबत के वक़्त अल्लाह के साथ हुस्ने अदब रखे और उसके फैसलो के आगे सरे तस्लीम खम करदे।

࿐   *सिद्क़ क्या है ?*  हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया अक़वाल में सिद्क़ तो ये है की दिल की मुवफक़त क़ौल के साथ अपने वक़्त में हो।

࿐  आमाल में सिद्क़ ये है की आमाल इस तसव्वुर के साथ बजा लाए की अल्लाह इसको देख रहा है और खुद को भूल जाए।

࿐  अहवाल में सिद्क़ ये है की तबीअते इंसानी हमेशा हालते हक़ पर क़ाइम रहे अगर्चे दुश्मन का खौफ हो या दोस्त का नाहक़ मुतालबा हो।

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     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह 87-88 📚*

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 ⚘ ये दिल हैं जिगर हैं ये आँखें ये सर हैं। ⚘ 

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 जहां चाहो रखलो क़दम या गौसे आज़म ⚘


 *❝ सलातुल गौषीय्या का तरीक़ा और इस की बरकतें ❞* ••──────•◦❈◦•──────••

࿐ हज़रते शैख़ अबुल क़ासिम उमर अल बज़्ज़ार रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की हुज़ूर सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया की जो शख्स मुझ को मुसीबत में पुकारे तो उसकी वो मुसीबत जाती रहेगी और जिस तक़लीफ़ में मुझे पुकारे तो उस की वो तकलीफ जाती रहेगी।

࿐  फिर फ़रमाया जो शख्स दो रकअत नमाज़ पढ़े और हर रकअत में सूरए फातिहा के बाद सूरए इखलास 11 बार पढ़े फिर सलाम के बाद सरवरे कौनो मका ﷺ पर दुरुदे पाक और मुझ को याद करे और इराक़ की जानिब 11 क़दम चले और मेरा नाम ले कर अपनी हाजत तलब करे तो अल्लाह के हुक्म से उस की हाजत पूरी हो जाएगी।

࿐   *आप का विसाले मुबारक :*  हज़रत सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 9 रबीउल आखिर 561 हिजरी में इंतिक़ाल फ़रमाया, विसाल के वक़्त आप की उम्र शरीफ तक़रीबन 90 साल थी।

     *📬 ग़ौसे पाक के हालात सफ़ह - 90 📚*

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*📬 अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुआ 🔃*
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