Tuesday, 14 April 2020

🌷💫 फैज़ाने माहे रमज़ान




🅿🄾🅂🅃 ➪  01

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

╭┈►  खुदा का करोड़ हा एहसान कि उसने हमे माहे रमज़ान जेसी अज़ीमुश्शान नेअमत से सरफ़राज़ फ़रमाया। माहे रमज़ान के फैजान के क्या कहने इस की हर घड़ी रहमत भरी है। इस महीने में अज़्रो षवाब बहुत ही बढ़ जाता है। नफ्ल का षवाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का षवाब 70 गुना कर दिया जाता है। बल्कि इस माह में तो रोज़ादार का सोना भी इबादत में शुमार किया जाता है। अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते रोज़ादरो की दुआ पर आमीन कहते है और एक हदिष के मुताबिक़ "रमज़ान के रोज़ादार के लिये दरया की मछलिया इफ्तार तक दुआए मगफिरत करती रहती है।

*📔 अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/55, हदिष:6*

        *⇩  ✫  इबादत  का  दरवाज़ा ✫  ⇩*

❁ ➲  रोज़ा बातिनी इबादत है, क्यू की हमारे बताए बगैर किसी को ये इल्म नही हो सकता है की हमारा रोज़ा है और अल्लाह बातिनी इबादत को ज़्यादा पसन्द फ़रमाता है। एक हदिष के मुताबिक़ रोज़ा इबादत का दरवाज़ा है।

*📕 अल जमीउस्सागिर, 146, हदिष : 2415*

          *⇩  ✫  नुज़ूले  क़ुरआन ✫  ⇩*

❁ ➲  इस माह की एक खुसुसिय्यत ये भी है की अल्लाह ने इस में क़ुरआन नाज़िल फ़रमाया है। चुनान्चे मुक़द्दस क़ुरआन में अल्लाह का नुज़ूले क़ुरआन और माहे रमज़ान के बारे में फरमान है।

❁ ➲  रमज़ान का महीना, जिस में क़ुरआन उतरा, लोगो के लिये हिदायत और रहनुमाई और फैसले की रोशन बाते, तो तुम में जो कोई ये महीना पाए ज़रूर इसके रोज़े रखे और जो बीमार या सफर में हो, तो उतने रोज़े और दिनों में। अल्लाह तुम पर आसानी चाहता है और तुम पर दुश्वारी नही चाहता और इसलिये की तुम गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो इस पर की उस ने तुम्हे हिदायत की और कही तुम हक़ गुज़ार हो।...✍

*📓 पारह 2, अल बक़रह : 185*

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह - 3  📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  02

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

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     *⇩  ✫ सोने के दरवाज़े वाला महल ✫  ⇩*

╭┈► अबू सईद खुदरी رضي الله عنه से रिवायत है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का फरमान है जब माहे रमज़ान की पहली रात आती है तो आसमानों और जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते है और आखिर रात तक बन्द नही होते। जो कोई बन्दा इस माहे मुबारक की किसी भी रत में नमाज़ पढ़ता है तो अल्लाह उस के हर सजदे के इवज़ उस के लिये 1500 नेकियां लिखता है और उसके लिये जन्नत में *सुर्ख याकूत का घर* बनाता है। जिस में 60,000 दरवाज़े होंगे। और हर दरवाज़े के पट सोने के बने होंगे जिन में याकुते सुर्ख जड़े होंगे।
 
╭┈► पस जो कोई माहे रमज़ान का पहला रोज़ा रखता है तो अल्लाह महीने के आखिर दिन तक के गुनाह मुआफ़ फरमा देता है, और उस के लिये सुबह से शाम तक 70,000 फ़रिश्ते दुआए मगफिरत करते रहते है। रात और दिन में जब भी वो सजदा करता है उस के हर सजदे के इवज़ उसे जन्नत में एक एक दरख्त अता किया जाता है कि उस के साए में घोड़े सुवार 500 बरस तक चलता रहे।...✍🏻

📕 शुएबुल ईमान, 3/314, हदिष:3635

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  6 📚*

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   *⇩  ✫ सगीरा गुनाहो का कफ़्फ़ारा ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का फरमाने पुर सुरूर है पंचो नमाज़े, जुमुआ अगले जुमुआ तक और रमज़ान अगले रमज़ान तक गुनाहो का कफ़्फ़ारा है जब तक की कबीरा गुनाहो से बचा जाए।

📕 सहीह मुस्लिम, 144, हदिष:233

          *⇩  ✫  तौबा  का  तरीक़ा  ✫  ⇩*
   
╭┈► रमज़ानुल मुबारक में रहमतो की छमाछम बारिशें और गुनाहे सगीरा के कफ्फारे का सामान हो जाता है। गुनाहे कबीरा तौबा से मुआफ़ होते है। तौबा का तरीक़ा ये है की जो गुनाह हुवा ख़ास उस गुनाह का ज़िक्र कर के दिल की बेज़ारी और आइन्दा उस से बचने का अहद कर के तौबा करे। मसलन झूट बोला, तो बारगाहे खुदावन्दी में अर्ज़ करे, या अल्लाह ! मेने जो ये झूट बोला इससे तौबा करता हु और आइन्दा नही बोलूंगा।
   
╭┈► तौबा के दौरान दिल में झूट से नफरत हो और "आइन्दा नही बोलूंगा" कहते वक़्त दिल में ये इरादा भी हो की जो कुछ कह रहा हु ऐसा ही करूँगा जभी तौबा है। अगर बन्दे की हक़ तलफी की है तो तौबा के साथ साथ उस बन्दे से मुआफ़ करवाना भी ज़रूरी है।...✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  12 📚*

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 *⇩  ✫ आक़ा का बयाने जन्नत निशान ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते सलमान फ़ारसी رضي الله عنه फ़रमाते है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने माहे शाबान के आखरी दिन बयान फ़रमाया ऐ लोगो ! तुम्हारे पास अज़मत वाला बरकत वाला महीना आया, वो महीना जिस में एक रात ऐसी भी है जो हज़ार महीनो से बेहतर है, इस के रोज़े अल्लाह ने फ़र्ज़ किये और इसकी रात में क़याम सुन्नत है, जो इसमें नेकी का काम करे तो ऐसा है जेसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इसमें और इसमें जिसने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जेसे और दिनों में 70 फ़र्ज़ अदा किये।
   
╭┈► ये महीना सब्र का है और *सब्र का षवाब जन्नत है* और ये महीना गम ख्वारी और भलाई का है और इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ाया जाता है। जो इसमें रोज़ादार को *इफ्तार कराए* उसके गुनाहो के लये मगफिरत है और उसकी गर्दन *आग से आज़ाद* कर दी जाएगी। और इस इफ्तार करने वाले को ऐसा ही षवाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वाले को मिलेगा। बगैर उसके अज्र में कुछ कमी हो।
 
╭┈► हमने अर्ज़ की या रसूलल्लाह صلى الله عليه وسلم हम में से हर शख्स वो चीज़ नही पाता जिस से रोज़ा इफ्तार करवाए। आप ने इर्शाद फ़रमाया अल्लाह ये षवाब उस शख्स को देगा जो एक घूंट दूध या एक खजूर या एक घूंट पानी से रोज़ा इफ्तार करवाए और जिस ने रोज़ादार को पेट भर कर खिलाया, उस को अल्लाह मेरे हौज़ से पिलाएगा की कभी प्यासा न होगा। यहां तक की *जन्नत में दाखिल हो जाए।*

╭┈► ये वो महीना है की इसका *अव्वल आसरा रहमत* है, इसका *दूसरा असरा मगफिरत* है और *तीसरा असरा जहन्नम से आज़ादी* है।इस महीने में 4 बातो की कसरत करो। इनमे से 2 बाते ऐसी है जिन के ज़रिए तुम अपने रब को राज़ी करोगे (1) لا اله الا الله की गवाही देना (2) इस्तिग़फ़ार करना। और दूसरी 2 बातो जिन से अपने रब से बे नियाज़ी नही (1) अल्लाह से जन्नत तलब करना (2) जहन्नम से अल्लाह की पनाह तलब करना।...✍🏻

  📕 सहीह इब्ने खुज़ैम, 3/1887

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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      *⇩  ✫ माहे रमज़ान में मदनी फूल ✫  ⇩*

╭┈► काबाए मुअज़्ज़मा मुसलमानों को बुलाकर देता है और रमज़ान आ कर रहमते बाटता है। गोया काबा कुवा है और रमज़ान दरया, या काबा दरया है और रमज़ान बारिश।
   
╭┈► हर महीने में ख़ास तारीखे और तारीखों में भी ख़ास वक़्त में इबादत होती है। मसलन बकरी ईद की चन्द मख़्सूस तारीखे में हज, मुहर्रम की 10वी तारीख अफज़ल, मगर माहे रमज़ान में हर दिन और हर वक़्त इबादत होती है।
   
╭┈► रोज़ा इबादत, इफ्तार इबादत, इफ्तार के बाद तरावीह का इन्तिज़ार करना इबादत, तरावीह पढ़ कर सहरी के इंतज़ार में सोना इबादत, फिर सहरी खाना भी इबादत अल गरज हर आन में खुदा की शान नज़र आती है।
 
╭┈► रमज़ान एक भट्टी है जेसे की भट्टी गन्दे लोहे को साफ़ और साफ़ लोहे को मशीन का पुर्ज़ा बना कर क़ीमती कर देती है और सोने को ज़ेवर बना कर इस्तेमाल के लायक कर देती है। ऐसे ही माहे रमज़ान गुनाहगारो को पाक करता और नेक लोगो के दर्जे बढ़ाता है।...✍🏻

📕 तफ़सीरे नईमी, 2/208

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह - 17 📚*

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     *⇩  ✫ माहे रमज़ान में मदनी फूल ✫  ⇩*

╭┈► रमज़ान में नफ्ल का षवाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का षवाब 70 गुना मिलता है।
 
╭┈► बाज़ उलमा फ़रमाते है की जो रमज़ान में मर जाए उस से सुवालाते क़ब्र भी नही होते।
   
╭┈► इस महीने में शबे क़द्र है। गुज़श्ता आयत से मालुम हुवा की क़ुरआन रमज़ान में आया और दूसरी जगह फ़रमाया बेशक़ हम ने शबे क़द्र में उतारा।

📔 पारह 30, अल क़द्र:1

╭┈► दोनों आयतो के मिलाने से मालुम हुवा की शबे क़द्र रमज़ान में ही है और वो गालिबन 27वी शब् है। क्यू की लैलतुल क़द्र में 9 हरुफ़ है और ये लफ्ज़ सूरए क़द्र में 3 बार आया। जिस से 27 हासिल हुए मालुम हुवा की वो 27वी शब् है।...✍🏻

📕 तफ़सीरे नईमी, 2/208

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  17 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  07

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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      *⇩  ✫ माहे रमज़ान में मदनी फूल ✫  ⇩*

╭┈► रमज़ान में इब्लीस क़ैद कर लिया जाता है और दोज़ख के दरवाज़े बन्द हो जाते है जन्नत आरास्ता की जाती है इस के दरवाज़े खोल दिये जाते है। इस लिये इन दिनों में नेकियों की ज़ियादती और गुनाहो की कमी होती है, जो लोग गुनाह करते भी है वो नफ्से अम्मारा या अपने साथी शैतान (क़रीन) के बहकावे से करते है।
   
╭┈► रमज़ान के खाने पिने का हिसाब नही। क़यामत में रमज़ान व क़ुरआन रोज़ादार की शफ़ाअत करेंगे की रमज़ान तो कहेगा, मौला में ने इसे दिन में खाने पीने से रोका था और क़ुरआन अर्ज़ करेगा की या रब में ने इसे रात में तिलावत व तरावीह के ज़रिए सोने से रोका।
 
╭┈► हुज़ूर صلى الله عليه وسلم रमज़ानुल मुबारक में हर कैदी को छोड़ देते थे और हर साइल को अता फ़रमाते थे। रब भी रमज़ान में जहन्नमियो को छोड़ता है। लिहाज़ा चाहिये की रमज़ान में नेक काम किया जाए और गुनाहो से बचा जाए।...✍🏻

   📔 तफ़सीरे नईमी, 2/208

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

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     *⇩  ✫ माहे रमज़ान में मदनी फूल ✫  ⇩*

╭┈► क़ुरआन में सिर्फ रमज़ान ही का नाम लिया गया और इसी के फ़ज़ाइल बयान हुए। किसी दूसरे महीने का न सराहतन नाम है न ऐसे फ़ज़ाइल। औरतो में सिर्फ बीबी मरयम رضي الله عنها का नाम क़ुरआन में आया। सहाबा में सिर्फ हज़रते ज़ैद इब्ने हारिसा رضي الله عنه का नाम क़ुरआन में लिया गया जिस से इन तीनो की अज़मत मालुम हुई।
   
╭┈► रमज़ान में इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानी इफ्तार करते वक़्त और सहरी खा कर ये मर्तबा किसी और महीने को हासिल नहीं।
   
╭┈► रमज़ान में 5 हरुफ़ है رمضان.  इन में ر से मुराद "रहमते इलाही" م से मुराद "महब्बते इलाही" ض से मुराद "ज़माने इलाही" ا से मुराद "अमाने इलाही" ن से मुराद "नुरे इलाही"।
   
╭┈► और रमज़ान में 5 इबादत खुसूसी होती है। रोज़ा, तरावीह, तिलावते क़ुरआन, एतिकाफ, शबे क़द्र में इबादत। तो जो कोई सिद्के दिल से ये 5 इबादत करे वो उन 5 इनामो का मुस्तहक़ है।..✍🏻

   📕 तफ़सीरे नईमी, 2/208

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  19 📚*

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        *⇩  ✫ जन्नत  सजाई  जाती  है ✫  ⇩*

╭┈► रमज़ान के इस्तिक़बाल के लिये सारा साल जन्नत को सजाया जाता है। चुनान्चे हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने उमर رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का फरमान है बेशक जन्नत इब्तिदाई साल से आइन्दा साल तक रमज़ान के लिये सजाई जाती है और फ़रमाया रमज़ान के पहले दिन जन्नत के दरख्तो के निचे से बड़ी आँखों वाली हूरो पर हवा चलती है और वो अर्ज़ करती है, ऐ पवरदगार अपने बन्दों में से ऐसे बन्दों को हमारा शौहर बना जिन को देख कर हमारी आँखे ठंडी हो और जब वो हमे देखे तो उन की आँखे भी ठंडी हो।

📕 शुअबुल ईमान, 3/312, हदिष:3633

╭┈► जन्नत की अज़मत की तो क्या ही बात है ! काश ! हमे बे हिसाब बख्श दिया जाए और जन्नतुल फ़िरदौस में मदीने वाले आक़ा صلى الله عليه وسلم का पड़ोस नसीब हो जाए।...✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  20 📚*

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   *⇩  ✫ हर शब 60,000 की बख्शिश ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया रमज़ान की हर शब आसमानों में सुब्हे सादिक़ तक एक मुनादी ये निदा करता है ऐ अच्छाई मांगने वाले ! मुकम्मल कर (यानी अल्लाह की इताअत की तरफ आगे बढ़) और खुश हो जा। और ऐ शरीर ! शर से बाज़ आ जा और इब्रत हासिल कर। है कोई मग्फिरत का तालीब ! कि उसकी तलब पूरी की जाए। है कोई तौबा करने वाला ! कि उस की तौबा क़बूल की जाए। है कोई तौबा करने वाला ! कि उसकी तौबा क़बूल की जाए। है कोई दुआ मांगने वाला ! कि उसकी दुआ क़बूल की जाए। है कोई साइल ! कि उसका सुवाल पूरा किया जाए।
   
╭┈► अल्लाह रमज़ानुल मुबारक की हर शब में इफ्तार के वक़्त 60,000 गुनाहगारो को दोज़ख से आज़ाद फ़रमा देता है। और ईद के दिन सारे महीने के बराबर गुनाहगारो की बख्शिश की जाती है।

📕 अद्दुररुल मन्सूर,1/146

╭┈► मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! माहे रमज़ान की साअते कितनी बा बरकत है कि हर लम्हा बन्दों में रहमत व मग्फिरते इलाही तक़्सीम हो रही है। ये वो माह है जिस के दिन रोज़ो में और राते तिलावते कलाम पाक में सर्फ होती है और येही दोनों चीज़े  रोज़े महशर मुसलमान के लिये शफ़ाअत का सामान भी फ़राहम करेंगे।

*⇩ ✫ रोज़ाना दस लाख गुनाहगारो की दोज़ख से रिहाई ✫ ⇩*
   
╭┈► अल्लाह की इनायतो, रहमतो और बख्शिशो का तज़किरा करते हुए एक मौके पर हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया जब रमज़ान की पहली रात होती है तो अल्लाह अपनी मख्लूक़ की तरफ नज़र फ़रमाता है और जब अल्लाह किसी बन्दे की तरफ नज़र फ़रमाता है और जब अल्लाह किसी बन्दे की तरफ नज़र फरमाए तो उसे कभी अज़ाब न देगा।
   
╭┈► और हर रोज़ दस लाख गुनाहगारो को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है और जब 29वी रात होती है तो महीने भर में जितने आज़ाद किये उन गिनती के बराबर उस एक रात में आज़ाद फ़रमाता है फिर जब ईदुल फ़ित्र की रात आती है। मलाइका ख़ुशी करते है और अल्लाह अपने नूर की ख़ास तजल्ली फ़रमाता है और फ़रिश्तो से फ़रमाता है "ऐ गुरोहे मलाइका ! उस मज़दूर का क्या बदला है जिस ने काम पूरा कर लिया ? फ़रिश्ते अर्ज़ करते है उस को पूरा पूरा अज्र दिया जाए अल्लाह फ़रमाता है में तुम्हे गवाह करता हु की में ने उन सब को बख्श दिया।...✍🏻

📕 कन्जुल उम्माल, 8/219, हदिष:23702

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  25 📚*

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*⇩  ✫ जुमुआ की हर घड़ी में दस लाख की मगफिरत ✫  ⇩*

╭┈►  हज़रते अब्दुलाह इब्ने अब्बास رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का फरमान है "अल्लाह माहे रमज़ान में रोज़ाना इफ्तार के वक़्त दस लाख ऐसे गुनाहगारो को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है जिन पर गुनाहो की वजह से जहन्नम वाजिब हो चुकी थी, नीज़ शबे जुमुआ और रोज़े जुमुआ की हर हर घड़ी में ऐसे दस लाख गुनाहगारो को जहन्नम से आज़ाद किया जाता है जो अज़ाब के हक़दार क़रार दिये चुके होते है।

📕 कन्जुल उम्माल, 8/223, हदिष:23716

╭┈► *भलाई ही भलाई :* हज़रते उमर फारुके आज़म رضي الله عنه फ़रमाते है उस महीने को खुश आमदीद है जो हमें पाक करने वाला है। पूरा रमज़ान खैर ही खैर है दिन का रोज़ा हो या रात का क़याम। इस महीने में खर्च करना जिहाद में खर्च करने का दर्जा रखता है।

📕 तम्बीहुल गाफिलिन, 176

╭┈► *खर्च में कुशादगी करो :* हज़रते ज़ुमुरह رضي الله عنه से मरवी हे की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है : माहे रमज़ान में घर वालो के खर्च में कुशादगी करो क्यू की माहे रमज़ान में खर्च करना अल्लाह की राह में खर्च करने की तरह है।..✍🏻

📕 अल जामिउस्सागिर, 162, हदिष:2716

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  27 📚*

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🅿🄾🅂🅃 ➪  12

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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

             *⇩  ✫  दो  अँधेरे  दूर  ✫  ⇩*

╭┈► मन्कुल है की अल्लाह ने हज़रते मूसा कलीमुल्लाह से फ़रमाया की में ने उम्मते मुहम्मदिय्या को दो नूर अता किये है ताकि वो दो अंधेरो के नुक़्सान से महफूज़ रहे। मूसा कलीमुल्लाह ने अर्ज़ की या अल्लाह ! वो दो नूर कौन से है ? इर्शाद हुवा नुरे रमज़ान और नुरे क़ुरआन" मूसा कलीमुल्लाह ने अर्ज़ की : दो अँधेरे कौन से है फ़रमाया "एक क़ब्र" और "दूसरा क़यामत" का।

📕 दुर्रतुन्नासीहीन, 9

╭┈► *बख्शीश का बहाना :* हज़रते अलियुल मुर्तज़ा كرم الله وجهه الكريم फ़रमाते है अगर अल्लाह को उम्मते मुहम्मदी पर अज़ाब करना मक़सूद  होता तो उन को रमज़ान और सूरए कुल्हु वल्लाह शरीफ हरगिज़ इनायत न फ़रमाता।...✍🏻

📕 नुज़हतुल मजालिस, 1/216

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  28  📚*

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

*⇩  ✫ आक़ा इबादत पर कमर बस्ता हो जाते ✫  ⇩*

╭┈► बिल खुसुस माहे रमज़ान में हमे अल्लाह की खूब खूब इबादत करनी चाहिये और हर वो काम करना चाहिये कि जिस में अल्लाह और उसके हबीब की रिज़ा हो। अगर इस पाकीज़ा महीने में भी कोई अपनी बख्शिश न करवा सका तो फिर कब करवाएगा हमारे प्यारे आक़ा ﷺ इस मुबारक महीने की आमद के साथ ही इबादतें इलाही में बहुत ज़्यादा मगन हो जाया करते थे। चुनान्चे उम्मुल मोअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु अन्हा फरमाती है जब माहे रमज़ान आता तो मेरे सरताज ﷺ अल्लाह की इबादत के लिये कमर बस्ता जो जाते और सारा महीना अपने बिस्तरे मुनव्वर पर तशरीफ़ न लाते।

📕 अद्दुरु मन्सूर, 1/449

╭┈► *आक़ा रमज़ान में खूब दुआए मांगते थे :* जब माहे रमज़ान तशरीफ़ लाता तो हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का रंग मुबारक मुतगय्यर हो जाता और आप नमाज़ की कसरत फ़रमाते और खूब गिड़ गीडा कर दुआए मांगते और अल्लाह का खौफ आप पर तारी रहता।

📕 शुएबुल ईमान, 3/310, हदिष:3635

╭┈► *आक़ा रमज़ान में खूब खैरात करते :* इस माह में खूब सदक़ा व खैरात करना भी सुन्नत है। जब माहे रमज़ान आता तो हुज़ूर صلى الله عليه وسلم हर कैदी को रिहा कर देते और हर साइल को अता फ़रमाते।...✍🏻

📕 अद्दुररुल मन्सूर, 1/449

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  35 📚*

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         *⇩  ✫  हज़ार  गुना  सवाब  ✫  ⇩*

╭┈► रमज़ान में नेकियों का अज्र बहुत बढ़ जाता है लिहाज़ा  कोशिश करके ज़्यादा से ज़्यादा नेकियां इस माह में जमा कर लेनी चाहिये। चुनान्चे हज़रत इब्राहिम नखई رحمة الله عليه फ़रमाते है : रमज़ान में एक दिन का रोज़ा रखना एक हज़ार दिन के रोज़े से अफज़ल है और रमज़ान में एक तस्बीह यानि سبحان الله कहना इस माह के इलावा हज़ार मर्तबा कहने से अफ़्ज़ल है और रमज़ान में एक रकअत पढ़ना गैर माह की एक हज़ार रकअतो से अफ़्ज़ल है।

📕 अद्दुररुल मन्सूर, 1/454

╭┈► *रमज़ान में ज़िक्र की फ़ज़ीलत :* हज़रत उमर फारुके आज़म رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया रमज़ान में ज़िकरुल्लाह करने वाले को बख्श दिया जाता है और इस महीने में अल्लाह से मांगने वाला महरूम नही रहता।...✍🏻

📕 शोएबुल ईमान, 3/311, हदिष:3627

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  35 📚*

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      *⇩  ✫ तिन के अंदर तिन पोशीदा ✫  ⇩*

╭┈► कोई नेकी छोड़नी नही चाहिए न जाने अल्लाह को कौन सी नेकी पसन्द आ जाए और कोई छोटे से छोटा गुनाह भी नही करना चाहिए नजाने किस गुनाह पर अल्लाह नाराज़ हो जाए और उस का दर्दनाक अज़ाब आ कर घेर ले। खलीफए आला हज़रत, अबू युसूफ मुहम्मद शरीफ मुहद्दिस कोटल्वी عليه رحما नकल फ़रमाते है : अल्लाह ने तीन चीज़ों को तीन चीज़ों में पोशीदा रखा है (1) अपनी रिज़ा को अपनी इताअत में (2) अपनी नाराज़गी को अपनी फ़रमानी में और (3) अपने औलिया को अपने बन्दों में। ये क़ौल नकल करने के बाद फ़रमाते है लिहाज़ा हर ताअत और हर नेकी को अमल में लाना चाहिये की मालुम नहीं किस नेकी पर वो राज़ी हो जाए और हर बदी से बचना चहिए क्यू की मालुम नही किस बदी पर वो नाराज़ हो जाए। ख्वाह वो केसी ही छोटी हो। मसलन बिला इजाज़त किसी के तिनके का खिलाल करना बी ज़ाहिर एक ममुलिसि बात है। मगर मुमकिन है की इस बुराई में ही हक़ तआला की नाराज़गी छुपी हुई हो। तो ऐसी छोटी छोटी बातो से भी बचना चाहिए।...✍🏻

📕 अख्लाकुस्सालिहीन, 56

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  42 📚*

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*⇩  ✫ माहे रमज़ान में मरने की फ़ज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► जो खुश नसीब मुसलमान रमज़ान में इन्तिक़ाल करता है उस को सुवालाते क़ब्र से अमान मिल जाता है, अज़ाबे क़ब्र से बच जाता और जन्नत का हक़दार क़रार पाता है। चुनान्चे हज़राते मुहद्दिसिने किराम का क़ौल है "जो मोमिन इस महीने में मरता है वो सीधा जन्नत में जाता है, गोया उस के लिये दोज़ख का दरवाज़ा बन्द है।

📕 अनिसुल वाइज़िन, 25

╭┈► *तीन अफ़राद के लिये जन्नत की बशारत :* हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله عنه से रिवायत है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का फरमान है : जिसको रमज़ान के इख्तिताम के वक़्त मौत आई वो जन्नत में दाखिल होगा और जिस की मौत अरफा के दिन (यानि 9 जुल हिज्जतुल हराम)  के खत्म होते वक़्त मौत आई वो भी जन्नत में दाखिल होगा और जिस की मौत सदक़ा देने की हालत में आई वो भी दाखिले जन्नत होगा!

📕 हिल्यतुल औलिया, 5/26, हदिष:6187

╭┈► *क़यामत तक रोज़ो का षवाब :* आइशा सिद्दिक़ा رضي الله عنها से रिवायत है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का इर्शाद है : जिसका रोज़े की हालत में इन्तिक़ाल हुवा, अल्लाह उस को क़यामत तक रोज़ो का षवाब अता फ़रमाता है।
   
╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : ये रमज़ान तुम्हारे पास आ गया है, इस में जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते है और जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिये जाते है और शयातीन को क़ैद कर दिया जाता है, महरूम है वो शख्स जिस ने रमज़ान को पाया और उस की मगफिरत न हुई की जब इस की जब इसकी रमज़ान में मगफिरत न हुई तो फिर कब होगी!..✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  61 📚*

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*⇩  ✫ शयातीन जंजीरो में जकड़ दिये जाते है ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जब रमज़ान आता है तो आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते है।

📕 सहीहुल बुखारी, 1/626, हदिष:1899

╭┈► और एक रीवायत में है की जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते है और दोज़ख के दरवाज़े बन्द कर दिये जाते है शयातीन जंजीरो में जकड़ दिये जाते है। रहमत के दरवाज़े खोले जाते है।

📕 सहीह मुस्लिम, 543, हदिष:1079

╭┈► *शैतान क़ैद में होने के बा वुजूद गुनाह क्यू होते है ?* हक़ ये है की माहे रमज़ान में आसमानों के दरवाज़े भी खुलते है जिन से अल्लाह की खास रहमते ज़मीन पर उतरती है और जन्नतो के दरवाज़े भी जिस की वजह से जन्नत वाले हूरो गिलमान को खबर हो जाती है की दुन्या में रमज़ान आ गया और वो रोज़ादारो के लिये दुआओ में मश्गुल हो जाते है। रमज़ान में वाक़ई दोज़ख के दरवाज़े ही बन्द हो जाते है जिस की वजह से इस महीने में गुनाहगारो बल्कि काफिरो की क़ब्रो पर भी दोज़ख की गर्मी नही पहुचती। वो जो मुसलमानो में मश्हूर है की रमज़ान में अज़ाबे क़ब्र नही होता इस का यही मतलब है और हक़ीक़त में इब्लीस को क़ैद कर दिया जाता है। इस महीने में जो कोई भी गुनाह करता है वो अपने नफ़्से अम्मारा की शरारत से करता है न शैतान के बहकाने से।...✍🏻

📕 मीरआतुल मनाजिह्, 3/133

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  63 📚*

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      *⇩  ✫ साल भर की नेकियां बर्बाद ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم "बेशक जन्नत रमज़ान के लिये एक साल से दूसरे साल तक सजाई जाती है, पस जब रमज़ान आता है तो जन्नत कहती है, ऐ अल्लाह ! मुझे इस महीने में अपने बन्दों में से मेरे अन्दर रहने वाले अता फरमा दे। और हूरे कहती है, ऐ अल्लाह ! इस महीने में हमे अपने बन्दों में से शौहर अता फरमा।
   
╭┈► फिर आक़ा صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया जिस ने इस माह में अपने नफ़्स की हिफाज़त की और न तो कोई नशा आवर शय पी और न ही किसी मोमिन पर बोहतान लगाया और न ही इस माह में कोई गुनाह किया तो अल्लाह हर रात के बदले इस का 100 हूरे से निकाह फ़रमाएगा और उस के लिये जन्नत में सोने, चांदी और याकूत का ऐसा महल बनाएगा की अगर सारी दुन्या जमा हो जाए और इस महल में आ जाए तो इस महल की उतनी ही जगह घेरेगी जितना बकरियो का एक बाडा दुन्या की जगह घेरता है।
 
╭┈► और जिसने इस माह में कोई नशा आवर शय पी या किसी मोमिन पर बोहतान बांधा या इस माह में कोई गुनाह किया तो अल्लाह उस के एक साल के आमाल बर्बाद फरमा देगा। पस तुम माहे रमज़ान के हक़ में कोताही करने से डरो क्यू की ये अल्लाह का महीना है। अल्लाह ने तुम्हारे लिये 11 महीने कर दिये की इन में नेअमतों से लुत्फ़ अन्दोज़ हो और लज़्ज़त हासिल करो और अपने लिये एक महीना खास कर लिया है। पस तुम रमज़ान के मुआमले में डरो।...✍🏻

📕 अल मुजमुल अवसत, 2/141, हदिष:3688

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  73 📚*

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    *⇩  ✫ रमज़ान में गुनाह करने वाला ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم मेरी उम्मत ज़लील व रुस्वा न होगी जब तक वो रमज़ान का हक़ अदा करती रहेगी। अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ रमज़ान के हक़ को ज़ाए करने में उन का ज़लील व रुस्वा होना क्या है ? फ़रमाया : इस माह में उन का हराम कामो का करना। जिस ने इस माह में ज़ीना किया या शराब पी तो अगले रमज़ान तक अल्लाह और जितने आसमानी फ़रिश्ते है सब उस पत लानत करते है। पस अगर ये शख्स अगले रमज़ान को पाने से पहले ही मर गया तो उस के पास कोई ऐसी नेकी न होगी जो उसे जहन्नम की आग से बचा सके। पस तुम रमज़ान के मुआमले में डरो क्यू की जिस तरह इस माह में और महीनो के मुकाबले में नेकियां बढ़ा दी जाती है इसी तरह गुनाहो का भी मुआमला है।...✍🏻

📕 अल मुजमुस्सगिर लीत्तबरानी, 9/60, हदिष:1488

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  75 📚*

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*⇩  ✫ रोज़े में वक़्त पास करने के लिये ✫  ⇩*

╭┈► काफी नादान ऐसे भी देखे जाते है जो अगरचे रोज़ा तो रख लेते है मगर फिर उन बेचारो का वक़्त पास नही होता। लिहाज़ा वो भी ऐहतिरामे रमज़ान को एक तरफ रख कर हराम व ना जाइज़ कामो का सहारा ले कर वक़्त पास करते है और यु रमज़ान में शतरंज, ताश, लुड्डू, गाने बाजे, वगेरा में मश्गुल हो जाते है।
   
╭┈► याद रखिये ! शतरंज और ताश वगैरा पर शर्त न भी लगाई जाए तब भी ये खेल ना जाइज़ है। बल्कि ताश में चुकी जानदारों की तस्वीरें भी होती है इस लिये मेरे आक़ा आला हज़रत رحمة الله عليه ने ताश को मुतलकन हराम लिखा है। चुनांचे फ़रमाते है ताश हरामे मुतलक़ है की इन में इलावा लहवो लइब के तस्वीरों की ताज़ीम है।...✍🏻

     *📬 फतवा रज़विय्या  24/141 📚*

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     *⇩  ✫ अफ़्ज़ल इबादत कौन सी  ✫  ⇩*

╭┈► ऐ जन्नत के तलबगार रोज़ादार इस्लामी भाइयो ! रमज़ान के मुक़द्दस लम्हात को फुज़ूलियात व खुराफात में बर्बाद होने से बचाइये ! ज़िन्दगी बेहद मुख़्तसर है इस को गनीमत जानिये, ताश की गड्डियों और फ़िल्मी गानो के ज़रिए वक़्त पास (बल्कि बर्बाद) करने के बजाए तिलावते क़ुरआन और ज़िक्रो दुरुद में वक़्त गुज़ारने की कोशिश फरमाये। भूक प्यास की शिद्दत जिस क़दर ज़्यादा महसूस होगी सब्र करने पर أن شاء الله षवाब भी उसी क़दर ज़ाइद मिलेगा। जैसा की मन्कुल है, अफ़्ज़ल इबादत वो है जिस में ज़हमत (तकलीफ) ज़्यादा है।
 
╭┈► इमाम शरफुद्दीन नववी عليه رحمة फ़रमाते है, इबादत में मशक़्क़त और खर्च ज़्यादा होने से षवाब और फ़ज़ीलत ज़्यादा हो जाती है।

📕 शरेह सहीह मुस्लिम लिन्न-ववी, 1/390
 
╭┈► हज़रते इब्राहिम बिन अदहम رحمة الله عليه का फरमान है दुन्या में जो नेक अमल जितना दुश्वार होगा क़यामत के रोज़ नेकियो के पलड़े में उतना ही ज़्यादा वज़नदार होगा।

📕 तज़किरतुल औलिया, 95
   
╭┈► इन रिवायत से साफ़ ज़ाहिर हुवा की हमारे लिये रोज़ा रखना जितना दुश्वार और नफ्से बदकार के लिये जिस क़दर ना गवार होगा, أن شاء الله बरोज़े शुमार मिज़ाने अमल में उतना ही ज़्यादा वज़नदार होगा।...✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  85 📚*

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       *⇩  ✫  रोज़े  में  ज़्यादा  सोना  ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली عليه رحمة फ़रमाते है रोज़ादार के लिये सुन्नत ये है की दिन के वक़्त ज़्यादा देर न सोए बल्कि जागता रहे ताकि भूक और कमज़ोरी का असर महसूस हो।

📕 किमियाए सआदत, 185

╭┈► अगरचे अफ़्ज़ल कम सोना ही है फिर भी अगर ज़रूरी इबादत के इलावा कोई शख्स सोया रहे तो गुनाहगार न होगा
 
╭┈► मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! साफ़ ज़ाहिर है की जो दिन भर रोज़े में सो कर वक़्त गुज़ार दे उस को रोज़े का पता ही क्या चलेगा हज़रते इमाम ग़ज़ाली عليه رحما तो ज़्यादा सोने से भी मना फ़रमाते है की इस तरह भी वक़्त फ़ालतू पास हो जाएगा। तो जो लोग खेल तमाशो में और हराम कामो में वक़्त बर्बाद करते है वो किस क़दर महरूम व बद नसीब है। इस मुबारक महीने की क़द्र कीजिये, इस का ऐहतिराम बजा लाइये, इस में खुशदिली के साथ रोज़े रखिये और अल्लाह की रिज़ा हासिल कीजिये।
 
🤲🏻 ► ऐ हमारे प्यारे अल्लाह फैजाने रमज़ान से हर मुसलमान को मालामाल फरमा। इस माहे मुबारक की क़द्र व मन्ज़िलत नसीब कर और इस की बे अदबी से बचा।...✍🏻
امين بجاه النبي الامين

  *📬  फ़ैज़ाने  रमज़ान  सफह -  86 📚*

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            *⇩  ✫  अहकामे  रोज़ा  ✫  ⇩*

╭┈► अल्लाह का कितना बड़ा करम है की उसने हम पर माहे रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ करके हमारे लिये तक़वा और अपनी रिज़ा जुइ का सामान फरामह किया अल्लाह पारहा 2 सूरतुल बक़रह की आयत 183 ता 184 में इर्शाद फ़रमाता है : ऐ ईमान वालो ! तुम पर  रोज़े फ़र्ज़ किये गए जैसे अगलों पर फ़र्ज़ हुए थे की कहि तुम्हे परहेज़गारी मिले, गिनती के दिन है तो तुम में जो कोई बीमार या सफर में हो तो इतने रोज़े और दिनों में और जिन्हें इस की ताक़त न हो वो बदले में एक मिसकीन का खाना फिर जो अपनी तरफ से नेकी ज़्यादा करे तो वो उस के लिये बेहतर है और रोज़ा रखना तुम्हारे लिये ज़्यादा भला है अगर तुम जानो।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  90 📚*

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         *⇩  ✫ रोज़ा किस पर फ़र्ज़ है ✫  ⇩*

╭┈► तौहीद व रिसालत का इक़रार करने और तमाम ज़रुरियाते दीन पर ईमान लाने के बाद जिस तरह हर मुसलमान पर नमाज़ फ़र्ज़ क़रार दी गई है इसी तरह रमज़ान के रोज़े भी हर मुसलमान अक़ील व बालिग़ पर फ़र्ज़ है। दुर्रे मुख्तार में है रोज़े 10 शाबानुल मुअज़्ज़म सिने 2 हिजरी को फ़र्ज़ हुए।

📕 दुर्रे मुख्तार मअ रद्दुल मुहतार, 3/330

╭┈► *रोज़ा फ़र्ज़ होने की वजह :* इस्लाम में अक्सर आमाल किसी न किसी रूह परवर वाक़ीए की याद ताज़ा करने के लिये मुक़र्रर किये गए है। मसलन सफा और मर्वाह के दरमियान हाजियो की सअय हज़रते हाजिरा رضي الله عنها की यादगार है। इसी तरह माहे रमज़ान में से कुछ दिन हमारे प्यारे सरकार صلى الله عليه وسلم ने गारे हिरा में गुज़ारे थे। इस दौरान आप दिन को खाने से परहेज़ करते और रात को ज़िकरुलाह  में मश्गुल रहते थे। तो अल्लाह ने उन दिनों की याद ताज़ा करने के लिये रोज़े फ़र्ज़ किये ताकि उस के महबूब صلى الله عليه وسلم की सुन्नत क़ाइम रहे।

╭┈► *अम्बियाए किराम के रोज़े :* रोज़ा गुज़श्ता उम्मतों में भी फ़र्ज़ था मगर उस की सूरत हमारे रोज़े से मुख़्तलिफ़ थी। रिवायत से पता चलता है की हज़रते आदम सफिय्युल्लाह عليه السلام ने 13, 14, 15 तारीख को रोजा रखा।

📕 कन्जुल उम्माल, 8/258, हदिष:24188

╭┈► हज़रते नूह नजिय्युल्लाह عليه السلام हमेशा रोज़ादार रहते।

📕 इब्ने माजह, 2/333, हदिष:1714
   
╭┈► हज़रते ईशा रूहल्लाह عليه السلام हमेशा रोजा रखते थे कभी न छोड़ते थे।

📕 कन्जुल उम्माल, 8/304, हदिष:24624

╭┈► हज़रते दाऊद عليه السلام एक दिन छोड़ कर एक दिन रोज़ा रखते थे।

📕 सहीह मुस्लिम, 584, हदिष:1189

╭┈► हज़रते सुलेमान عليه السلام तीन दिन महीने के शुरू में तीन दिन दरमियान और तीन दिन आखिर में (यानि महीने में 9 दिन) रोज़ा रखा करते।...✍🏻

📕 कन्जुल उम्माल, 8/304, हदिष:24624

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  23 📚*

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*⇩  ✫ रोज़ादार का ईमान कितना पुख्ता है ✫  ⇩*

╭┈► सख्त गर्मी है, प्यास से हल्क़ सुख रहा है, हॉट खुश्क हो रहे है, पानी मौजूद है मगर रोज़ादार उस की तरफ देखता तक नही, खाना मौजूद है भूक की शिद्दत से हालत दीगर गू है मगर वो खाने की तरफ हाथ तक नही बढ़ाता। आप अन्दाज़ फरमाइये इस शख्स का खुदाए रहमान पर कितना पुख्ता ईमान है क्यू की वो जानता है की इस की हरकत सारी दुन्या से तो छुप सकती है मगर अल्लाह से पोशीदा नही रह सकती। अल्लाह पर इस का ये यक़ीने कामिल रोज़े का अमली नतीजा है। क्यू की दूसरी इबादतें किसी न किसी ज़ाहिरी हरकत से अदा की जाती है मगर रोज़े का तअल्लुक़ बातिन से है। इस का हाल अल्लाह के सिवा कोई नही जानता अगर वो छुप कर खा पी ले तब भी लोग तो येही समझते रहेंगे की ये रोज़ादार है। मगर वो महज़ खौफे खुदा के बाइस खाने पीने से अपने आप को बचा रहा है।
   
हो सके तो अपने बच्चों को भी जल्दी जल्दी रोज़ा रखने की आदत डलवाये ताकि जब वो बालिग़ हो जाए तो उन्हें रोज़ा रखने में दुश्वारी न हो। चुनान्चे फ़ुक़हाए किराम फ़रमाते है, बच्चे की उम्र 10 साल की हो जाए और उस में रोज़ा रखने की ताक़त हो तो उस से रमज़ान में रोज़ा रखवाया जाए। अगर पूरी ताक़त होने के बा वजूद न रखे तो मार कर रखवाये अगर रख कर तोड़ दिया तो क़ज़ा का हुक्म न देंगे। और नमाज़ तोड़ दे तो फिर पढ़वाइये।

📕 रद्दुल मुहतार, 3/385

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  94 📚*

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      *⇩  ✫ रोज़े से सिह्हत मिलती है ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : बेशक अल्लाह ने बनी इस्राइल के एक नबी की तरफ वही फ़रमाई की आप अपनी क़ौम को खबर दीजिये की जो भी बन्दा मेरी रिज़ा के लिये एक दिन का रोज़ा रखता है तो उस के जिस्म को सिह्हत भी अता फ़रमाता हु और उस को अज़ीम अज्र भी दूंगा।

📕 शुएबुल ईमान, 3/412, हदिष:3923

╭┈► *साबिक़ा गुनाहो का कफ़्फ़ारा :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिसने रमज़ान का रोज़ा रखा और उस की हुदूद को पहचाना और जिस चीज़ से बचना चाहिये उस से बचा तो जो (कुछ गुनाह) पहले कर चूका है उस का कफ़्फ़ारा हो गया।...✍🏻

📕 अल एहसान बि-तरतीब सहीह इब्ने अब्बास, 5/183, हदिष:3424

 *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  101 📚*

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             *⇩  ✫  रोज़े  की  जज़ा  ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ गुना तक दिया जाता है। अल्लाह ने फ़रमाया सिवाए रोज़े के की रोज़ा मेरे लिये है और इस की जज़ा में खुद दूंगा। अल्लाह का मज़ीद इर्शाद है, बन्दा अपनी ख्वाहिश और खाने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता है। रोज़ादार के लिये दो खुशियां है। एक इफ्तार के वक़्त और एक अपने रब से मुलाक़ात के वक़्त रोज़ादार में मुह की बू अल्लाह के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा पाकीज़ा है।

📕 सहीह मुस्लिम, 580, हदिष:1151

╭┈► *रोज़े का खुसूसी इनआम :* बयान करदा हदिष में रोज़े की कई खुसुसिय्यात इर्शाद फ़रमाई गई है। कितनी प्यारी बशारत है उस रोज़ादार के लिये जिस ने इस तरह रोजा रखा जिस तरह रोज़ा रखने का हक़ है। यानी खाने पीने और जीमाअ से बचने के साथ साथ अपने तमाम आज़ा को भी गुनाहो से बाज़ रखा तो वो रोज़ा अल्लाह के फज़्लो करम से उस के लिये तमाम पिछले गुनाह का कफ़्फ़ारा हो गया।
   
╭┈► और हदिष का ये फरमान रोज़ा मेरे लिये है और इस की जज़ा में खुद ही दूंगा। इस इर्शाद को मुहद्दिसिने किराम ने भी पढ़ा है जैसा की तफ़सीरे नईमी वगैरा में है रोज़े की जज़ा में खुद ही हु। यानी रोज़ा रख कर रोज़ादार बी ज़ाते खुद अल्लाह तआला ही को पा लेता है।...✍🏻

*📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  103 📚*

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 *⇩  ✫ हम रसूलुल्लाह ﷺ के जन्नत रसूलुल्लाह ﷺ की ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते रबीआ बिन काब अस्लमी رضي الله عنه फ़रमाते है, एक मर्तबा में ने हुज़ूर صلى الله عليه وسلم को वुज़ू करवाया तो खुद रहमतुल्लिल आलमीन صلى الله عليه وسلم ने खुश हो कर इर्शाद फ़रमाया रबीआ ! मांग क्या मांगता है ? हज़रते रबीआ ने अर्ज़ की, जन्नत में आप की रफाकत (यानी पड़ौस) चाहिये।
दरियाए रहमत मज़ीद जोश में आया और फ़रमाया कुछ और मांगना है ? मेने ऐज़ की, बस सिर्फ येही। जब हज़रत रबीआ رضي الله عنه जन्नत की रफ़ाक़त तलब कर चुके और मज़ीद किसी हाजत के तलब करने से इनकार कर दिया तो इस पर हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : अपने नफ़्स पर कसरते सुजूद (यानि ज़्यादा नवाफ़िल) से मेरी मदद कर।

📕 सहीह मुस्लिम, 253, हदिष:489

(यानि हमने तुम्हे जन्नत तो अता कर ही दी अब तुम भी बतौरे शुक्राना नवाफ़िल की कसरत करते रहो।)

╭┈► *जो चाहो मंगलो :* इस हदिष ने तो ईमान ही ताज़ा कर दिया। हज़रते शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी عليه رحما फ़रमाते है, सरकार صلى الله عليه وسلم का बिला किसी तक़्यिद व रख़्सिस मुतलक़न फरमाना, मांग क्या मांगता है ? इस बात को ज़ाहिर करता है कि सारे ही मुआमलात सरवरे कायनात صلى الله عليه وسلم के मुबारक हाथ में है, जो चाहे जिस को चाहे अपने रब के हुक्म से अता कर दे।...✍🏻

*📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  108 📚*

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           *⇩  ✫  जन्नती  दरवाज़ा  ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते सहल बिन अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, नबी ﷺ ने फ़रमाया बेशक जन्नत में एक दरवाज़ा है जिस को रय्यान कहा जाता है, इससे क़यामत के दिन रोज़ादार दाखिल होंगे इनके इलावा कोई और दाखिल न होगा। कहा जाएगा रोज़ेदार कहा है ? पस ये लोग खड़े होंगे, इनके इलावा कोई और इस दरवाज़े से दाखिल न होगा। जब ये दाखिल हो जाएंगे तो दरवाज़ा बंद कर दिया जाएगा।

📕 सहीह बुखारी, 1/625, हदिष:1896

╭┈► *जिस्म की ज़कात :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : हर शय के लिये ज़कात है और जिस्म की ज़कात रोज़ा है और रोज़ा आधा सब्र है।...✍🏻

*📬 सुनन इब्ने माजह, 2/347, हदिष:1745 📚*

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          *⇩  ✫  सोना  भी  इबादत है  ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी ऑफ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, मदीने के ताजदार ﷺ का फरमान है रोज़ादार का सोना इबादत और उस की खामोशी तस्बीह करना और उसकी दुआ क़बूल और उसका अमल मक़बूल होता है।

📕 शोएबुल ईमान,3/415 हदीस 3938

╭┈► सुब्हान अल्लाह रोज़ादार किस क़दर बख्तवर है कि उसका सोना बन्दगी, ख़ामोशी तस्बिहे खुदावन्दि दुआए और आमाल हसना मक़्बुले बारगाहे इलाही है।

╭┈► *आज़ा का तस्बीह करना :* उम्मुल मोअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु अन्हा फरमाती है मेरे सरताज ﷺ का फरमान है जो बन्दा रोज़े की हालत में सुबह करता है, उसके लिये आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते है और उसके आज़ा तस्बीह करते है और अस्माने दुन्या पर रहने वाले फ़रिश्ते उसके लिये सूरज डूबने तक मग्फिरत की दुआ करते रहते है। अगर वो एक या दो रकअते पढता है तो ये आस्मानो में उसके लिये नूर बन जाती है और हुरे ऐन में से उसकी बिविया कहती है ऐ अल्लाह तू इस को हमारे पास भेज दे, हम इस के दीदार की बहुत ज़्यादा मुश्ताक़ है और अगर वो लाइलाहा इल्लल्ला या सुब्हान अल्लाह या अल्हम्दु लिल्लाह पढ़ता है तो 70000 फ़रिश्ते उसका षवाब सूरज डूबने तक लिखते रहते है।
   
╭┈► दुन्या में तो रोज़ादारो पर रहमते इलाही की छमा छम बारिश होंगी ही, आख़िरत में भी इनको अज़ीमुश्शान मक़ामो मर्तबा हासिल होगा।...✍🏻

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         *⇩  ✫  सोने  का  दस्तर  ख्वान  ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया क़यामत वाले दिन रिज़ादारो के लिये एक सोने का दस्तर ख्वान रखा जाएगा, हालांकि लोग (हिसाब किताब के) मुंतज़िर होंगे।

📕 कंजुल उम्माल, 8/214 हदीस 23640

╭┈► *जन्नती फल :* अमीरुल मोअमिनीन हज़रते अलिय्युल मुर्तज़ा رضي الله تعالي عنه से मरवी है नबी ने फ़रमाया जिसको रोज़े ने खाने या पिने से रोक दिया कि जिस की उसे ख्वाहिश थी, तो अल्लाह उसे जन्नती फ्लो में से खिलाएगा और जन्नती शराब से सैराब करेगा।...✍🏻

*📬 शोएबुल ईमान, 3/410 हदीस 3917 📚*

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              *⇩  ✫  बे  हिसाब  अज्र  ✫  ⇩*

╭┈► हज़रते काबुल अहबार رضي الله عنه से मरवी है, फ़रमाते है, बरोज़े क़यामत एक मुनादी इस तरह निदा करेगा, अमल करने वाले को उसके अमल के बराबर अज्र दिया जाएगा सिवाए क़ुरआन वालो (यानी आलिमे क़ुरआन) और रोज़ादारो के की उन्हें बेहद व बेहिसाब अज्र दिया जाएगा।

📕 शुएबुल ईमान, 3/413, हदिष:3928

╭┈► *जहन्नम से दुरी :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस ने अल्लाह की राह में एक दिन का रोज़ा रखा अल्लाह उस के चेहरे को जहन्नम  से 70 साल की मसाफत दूर कर देगा।...✍🏻

*📬 सहीह बुखारी, 2/265, हदिष:2840 📚*

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    *⇩  ✫ एक रोज़ा छोड़ने का नुक़्सान ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिसने रमज़ान के एक दिन का रोज़ा बगैर रुखसत व बगैर मरज़ रोज़ा न रखा तो ज़माना भर तक रोज़ा भी उस की क़ज़ा नही हो सकता अगर्चे बाद में रख भी ले।

📕 सहीह बुखारी, 1/638, हदिष:1934

╭┈► *उलटे लटके हुए लोग :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم में सोया हुआ था तो ख्वाब में दो शख्स मेरे पास आए और मुझे एक दुश्वार गुज़ार पहाड़ पर ले गए। जब में पहाड़ के दरमियानी हिस्से पर पहुचा तो वहा बड़ी सख्त आवाज़ें आ रही थी, में ने कहा, ये केसी आवाज़ें है ? मुझे बताया गया की ये जहन्नमियो की आवाज़ें है। फिर मुझे और आगे ले जाया गया तो मे ऐसे लोगो के पास से गुज़रा की उन को उन के टखनों की रगो में बांध कर उल्टा लटकाया गया था और उन लोगो के जबड़े फाड़ दिए गए थे जिन से खून बेह रहा था। मेने पूछा, ये कौन लोग है ? मुझे बताया गया की ये लोग रोज़ा इफ्तार करते थे क़ब्ल इस के की रोज़ा इफ्तार करना हलाल हो

╭┈► रमज़ान का रोज़ा बिला इजाजते शरई तोड़ देना बहुत बड़ा गुनाह है। वक़्त से पहले इफ्तार करने से मुराद येह है कि रोज़ा तो रख लिया मगर सूरज गुरुब होने से पहले पहले जान बूझ कर किसी सहीह मजबूरी के बिगैर तोड़ डाला। इस हदीसे पाक में जो अज़ाब बयान किया गया है वोह रोज़ा रख कर तोड़ देने वाले के लिये है और जो बिला उज्रे शरई रोजए रमज़ान तर्क कर देता है वोह भी सख्त गुनहगार और अज़ाबे नार का हक़दार में है।

🤲🏻 ⚘​ अल्लाह अज़्ज़वजल अपने प्यारे हबीब ﷺ के  तुफ़ैल  हमें  अपने  क़हरो  गज़ब  से  बचाए।...✍🏻 *आमीन*

📕 सहीह इब्ने हब्बान, 9/286, हदिष:7448

*📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  119 📚*

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             *⇩  ✫   तीन  बदबख्त   ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिसने माहे रमज़ान को पाया और उस के रोज़े न रखे वो शख्स शक़ी (बदबख्त) है। जिसने अपने वालिदैन या किसी एक को पाया और उन के साथ अच्छा सुलूक न किया वो भी शक़ी (बदबख्त) है। और जिस के पास मेरा ज़िक्र हुवा और उस ने मुझ पर दुरुद न पढ़ा वो भी शक़ी (बदबख्त) है।

📕 मज्मउ ज़्ज़वाइद, 3/340, हदिष:4773

╭┈► *नाक मिटटी में मिल जाए :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : उस शख्स की नाक मिट्टी मेबमिल जाए की जिस के पास मेरा ज़िक्र किया गया तो उस ने मुझ पर दुरुद नही पढ़ा और उस शख्स की नाक मिट्टी में मिल जाए जिस पर रमज़ान का महीना दाखिल हुवा फिर उस की मगफिरत होने से क़ब्ल गुज़र गया। और उस आदमी की नाक मिट्टी में मिल जाए की जिस के पास उस के वालिदैन ने बुढ़ापे को पा लिया और उस के वालिदैन ने उस को जन्नत में दाखिल नही किया। (यानि बूढ़े मां बाप की खिदमत कर के जन्नत हासिल न कर सका।...✍🏻

📕 मुस्नदे अहमद, 3/61, हदिष:7455

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  120 📚*

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      *⇩  ✫  रोज़े  के  तीन  दरजे  ✫  ⇩*

╭┈► रोज़े की अगर्चे ज़ाहिरी शर्त ये है की रोज़ादार क़सदन खाने पिने और जीमाअ से बाज़ रहे। ता हम रोज़े के कुछ बातिनी आदाब भी है जिन का जानना जरूरी है ताकि हक़ीक़ी मानो में हम रोज़े की बरकतें हासिल कर सके।

╭┈► *1) अवाम का रोज़ा :* रोज़ा के लुग्वी माना है "रुकना" लिहाज़ा शरीअत की इस्तिलाह में सुब्हे सादिक़ से ले कर गुरुबे आफताब तक क़सदन खाने पिने और जिमाअ से "रुके रहने" को रोज़ा कहते है और येही अवाम यानी आम लोगो का रोज़ा है।

╭┈► *2) खवास का रोज़ा :* खाने पीने और जिमाअ से रुके रहने के साथ साथ जिस्म के तमाम आज़ा को बुराइयो से "रोकना" खवास यानी ख़ास लोगो का रोज़ा है।

╭┈► *3) अखस्सुल खवास का रोज़ा :* अपने आप को तर उमूर से "रोक" कर सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की तरफ मुतवज्जेह होना, ये अखस्सुल खवास यानी खासुल ख़ास लोगो का रोज़ा है।
   
⚠ ज़रूरत इस अम्र की है की खाने पीने वगैरा से "रुके रहने" के साथ साथ अपने तमाम तर आज़ाए बदन को भी रोज़े का पाबन्द बनाया जाए।...✍🏻

 *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  121 📚*

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*⇩  ✫ रोज़ा रख कर भी गुनाह तौबा ! तौबा ! ✫  ⇩*

╭┈► खुदारा ! अपने हाले ज़ार पर तरस खाइये और गौर फरमाइये ! की रोज़ादार माहे रमज़ान में दिन के वक़्त खाना पीना छोड़ देता है हलाकि ये खाना पीना इस से पहले दिन में भी बिलकुल जाइज़ था। फिर खुद ही सोच लीजिये की जो चीज़े रमज़ान से पहले हलाल थी वो भी जब इस मुबारक महीने के मुक़द्दस दिनों में मना कर दी गई। तो जो चीज़े रमज़ान से पहले भी हराम थी, मसलन झूट, गीबत, चुगली, बाद गुमानी, गालम गलोच, फिल्में ड्रामे, गाने बाजे, बद निगाही, दाढ़ी मुंडाना या एक मुठ से घटाना, वालिदैन को सताना, बिला इजाज़ते शरई लोगो का दिल दुखाना वगैरा, वो रमज़ान में क्यू न और भी ज़्यादा हराम हो जाएगी
 
╭┈► रोज़ादार जब रमज़ान में हलाल व तय्यिब खाना पीना छोड़ देता है, हराम काम क्यू न छोड़ दे अब फरमाइये ! जो शख्स पाक और हलाल खाना पीना तो छोड़ दे लेकिन हराम और जहन्नम में ले जाने वाले काम ब दस्तूर जारी रखे वो किस किस्म का रोज़ादार है

╭┈► *अल्लाह को कुछ हाजत नही :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो उस के भूका प्यासा रहने की अल्लाह को कुछ हाजत नही।

📕 सहीह बुखारी, 1/628, हदिष:1903
   
╭┈► *एक और मक़ाम पर फ़रमाया :* सिर्फ खाने और पीने से बाज़ रहने का नाम रोज़ा नही बल्कि रोज़ा तो ये है की लग्व और बे हुदा बातो से बचा जाए।...✍🏻

📕 मुस्तदरक लील हाकिम, 2/67, हदिष:1611

*📬 फ़ज़ाइले रमज़ान शरीफ़ सफह - 123 📚*

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  *⇩  ✫  आज़ा  के  रोज़ो  की  तारीफ़  ✫  ⇩*

╭┈► आज़ा का रोज़ा यानी जिस्म के तमाम हिस्सों को गुनाहो से बचाना, ये सिर्फ रोज़ा ही के लिये मख़्सूस नही बल्कि पूरी ज़िन्दगी इन आज़ा को गुनाहो से बचाना ज़रूरी है और ये जभी मुमकिन है की हमारे दिलो में ख़ौफ़ेखुदा रासिख हो जाए।
   
╭┈► आह ! क़यामत के उस होशरुबा मन्ज़र को याद कीजिये जब हर तरफ "नफ्सी नफ्सी" का आलम होगा। सूरज आग बरसा रहा होगा। ज़बाने शिद्दते प्यास के सबब मुह से बाहर निकल पड़ी होगी। बीवी शौहर से, माँ अपने लख्ते जिगर से और बाप अपने नुरे नज़र से नज़र बचा रहा होगा। मुजरिमो को पकड़ पकड़ कर लाया जा रहा होगा। उन के मुह पर मोहर मार दी जाएगी और उन के आज़ा उन के गुनाहो की दास्तान सुना रहा होंगे जिस का क़ुरआन की सूरए यासीन की आयत 65 में यु तज़किरा किया गया है
   
╭┈► आज हम इन के मुहो पर मोहर कर देंगे और उन के हाथ हम से बात करेंगे और उन के पाँव उन के किये की गवाही देंगे।

╭┈► आह ! क़यामत के उस कड़े वक़्त से अपने दिल को दराइये और हर वक़्त अपने तमाम आज़ाए बदन को मासिय्यत की मुसीबत से बाज़ रखने की कोशिश फरमाइये।..✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  125 📚*

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            *⇩  ✫  आंख  का  रोज़ा  ✫  ⇩*


╭┈► आंख का रोज़ा इस तरह रखना चाहिये की आंख जब भी उठे तो सिर्फ और सिर्फ जाइज़ उमूर ही की तरत उठे। आंख से मस्जिद देखिये, क़ुरआन देखिये, मज़ाराते औलिया की ज़ियारत कीजिये। अल गरज़ कोई भी नाजाइज़ व हराम चीज़ देखने से बचे। और आंख का रोज़ा तो 24 गंटे 30सो दिन और बारह महीने होना चाहिए।


             *⇩  ✫  कान  का  रोज़ा  ✫  ⇩*


╭┈► कान का रोज़ा ये है की सिर्फ और सिर्फ जाइज़ बाते सुने मसलन कानो से तिलावत व नात सुनिये, सुन्नतो भरे बयानात सुनिये।


          *⇩  ✫  ज़बान  का  रोज़ा  ✫  ⇩*


╭┈► ज़बान का रोज़ा ये है की ज़बान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज़ बातो के लिये ही हरकत में आए मसलन ज़बान से तिलावते क़ुरआन कीजिये, ज़िक्रो दुरिद का विर्द कीजिये। दर्स दीजिये सुन्नतो भरा बयान कीजिये, नेकी की दावत दीजिये। फ़ुज़ूल बकबक से बचते रहिये।...✍🏻

 *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह - 126 📚*

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             *⇩  ✫  हाथ  का  रोज़ा  ✫  ⇩*


╭┈► हाथो का रोज़ा ये है की जब भी उठे सिर्फ नेक कम के लिये उठे। मसलन क़ुरआन को हाथ लगाइये, नेक लोगो से मुसाफहा कीजिये, हो सके तो किसी यतीम के सर पर शफ़क़त से हाथ फेरिये की हाथ के निचे जितने बाल आएगे हर बाल के इवज़ एक नेकी मिलेगी।


             *⇩  ✫  पांव  का  रोज़ा  ✫  ⇩*

   
╭┈► पांव का रोज़ा ये है की पांव उठे तो सिर्फ नेक कामो के लिये उठे। मसलन पांव चले तो मसाजिद की तरफ, मज़ारते औरलिया की तरफ, सुन्नतो भरे इज्तेमअ की तरफ, नेकी की दावत के लिये, किसी की मदद के लिये चले।

╭┈► वाक़ई हक़ीक़ी मानो में रोज़े की बरकत तो उसी वक़्त नसीब होगी जब हम तमाम आज़ा का भी रोज़ा रखेंगे। वरना भूक और प्यास के सिवा कुछ भी हासिल न होगा।...✍🏻

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*⇩  ✫ सोने के बाद सहरी की इजाज़त न थी ✫  ⇩*

╭┈► रात को उठ कर सहरी करने की इजाज़त नही थी रोज़ा रखने वाले को गुरुबे आफ़ताब के बाद सिर्फ उस वक़्त तक खाने पिने की इजाज़त थी जब तक वो सो न जाए अगर सो गया तो अब बेदार हो कर खाना पीना ममनुअ था। मगर अल्लाह ने अपने प्यारे बन्दों पर एहसान अज़ीम फ़रमाते हुए सहरी की इजाज़त दी और इस का सबब यु हुवा

╭┈► *सहरी की इजाज़त की हिकायत :* हज़रते सरमा बिन क़ैस رضي الله عنه मेहनती शख्स थे। एक दिन बी हालते रोज़ा अपनी ज़मीन में दिन भर काम कर के शाम को घर आए अपनी ज़ौजा से खाना तलब किया, वो पकाने में मसरूफ़ हुई। आप थके हुए थे, आंख लग गई। खाना तैयार कर के जब आप को जगाया गया तो आप ने खाने से इनकार कर दिया। क्यू की उन दिनों (गुरुबे आफ़ताब के बाद) सो जाने वाले के लिये खाना पीना ममनुअ हो जाता था। चुनान्चे खाए पाई बगैर आप ने दूसरे दिन भी रोज़ा रख लिया। आप कमज़ोरी के सबब बेहोश हो गए।

📔 तफ्सिरल ख़ाज़िन, 1/126

╭┈► तो इन के हक़ में ये आयते मुक़द्दसा नाज़िल हुई और खाओ और पियो यहा तक की तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सपेदी का डोरा सियाही के डोरे से पो फट कर फिर रात आने तक रोज़े पुरे करो।

📔 पारहा, 2 अल बक़रह, 187
 
╭┈► इससे ये मालुम हुवा की रोज़े का अज़ान फज्र से कोई तअल्लुक़ नही यानी फज्र की अज़ान के दौरान खाने पिने का कोई जवाज़ ही नही अज़ान हो या न हो आप तक आवाज़ पहुचे या न पहुचे सुब्हे सादिक़ होते ही आप को खाना पीना बिल्कुल ही बन्द करना होगा।...✍🏻

*📬  फ़ज़ाइले रमज़ान  सफह -  155 📚*

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          *⇩  ✫  सहरी  करना  सुन्नत  है  ✫  ⇩*

╭┈► अल्लाह का करोड़ हा एहसान की उस ने हमे रोज़े जेसी अज़ीमुश्शान नेअमत अता फ़रमाई और साथ ही कुव्वत के लिये सहरी की न सिर्फ इजाज़त फ़रमाई बल्कि इस में हमारे लिये ढेरो षवाब भी रख दिया।
   
╭┈► हमारे प्यारे आक़ा صلى الله عليه وسلم अगर्चे खाने, पीने के हमारी तरह मोहताज नही ता हम हमारे प्यारे आक़ा صلى الله عليه وسلم हम गुलामो की खातिर सहरी फ़रमाया करते ताकि महब्बत वाले गुलाम अपने आक़ा की सुन्नत समझ कर सहरी कर लिया करे यु उन्हें दिन के वक़्त रोज़े में कुव्वत के साथ साथ सुन्नत पर अमल करने का षवाब भी हाथ आए।
 
╭┈► बाज़ इस्लामी भाइयो को देखा गया है की कभी सहरी करने से रह जाते है तो फिख्रिया बाते बनाते है और कहते है, हमने तो सहरी के बगैर ही रोज़ा रख लिया। सहरी के बगैर रोज़ा रखना कोई कमाल तो नही जिस पर फख्र किया जा रहा है। बल्कि सहरी की सुन्नत छूटने पर नदामत होनी चाहिये, अफ़सोस करना चाहिये की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की एक अज़ीम सुन्नत छूट गई।

╭┈► *हज़ार साल की इबादत से बेहतर :* हज़रते शैख़ शरफुद्दीन अल मारूफ़ बाबा बुलबुल शाह رحمة الله عليه फ़रमाते है, अल्लाह ने मुझे अपनी रहमत से इतनी ताक़त बख्शी है की में बगैर खाए, पिये और बगैर साज़ो सामान के अपनी ज़िन्दगी गुज़ार सकता हु। मगर चुकी ये उमूर हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की सुन्नत नही है इस लिये में इन से बचत हु, मेरे नज़दीक सुन्नत की पैरवी हज़ार साल की इबादत से बेहतर है।...✍🏻

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    *⇩  ✫  क़र्ज़  से  नजात  का  अमल  ✫  ⇩*

╭┈► हर नमाज़ के बाद 7 बार सूरए कुरैश (अव्वल आखिर दुरुद शरीफ) पढ़ कर दुआ मांगिये। पहाड़ जितना क़र्ज़ होगा तब भी أن شاء الله अदा हो जाएगा।
अमल ता हुसुले मुराद जारी रखिये। कर्ज़ा उतारने का वज़ीफ़ा

اٙللّٰهُمّٙ اكْفِـنِىْ بِـحٙـلٙالِكٙ عٙنْ حٙرٙامِكٙ وٙاٙغْـنِـنِىْ بِـفٙـضْـلِكٙ عٙـمّٙـنْ سِوٙاكٙ

*तर्जमा* : या अल्लाह मुझे हलाल रिज़्क़ अता फरमा कर हराम से बचा और अपने फज़्लो करम से अपने सिवा गैरो से बे नियाज़ कर दे।
 
╭┈► हर नमाज़ के बाद 11 बार और सुबहो, शाम 100, 100 बार रोज़ाना (अव्वल आखिर दुरुद शरीफ) पढ़िये।

╭┈► मदनी इल्तिज़ा : अमल शुरू करने से क़ब्ल हुजुरे गौषे आज़म رضي الله عنه के ईसाले षवाब के लिये कम अज़ कम 11 रूपये की नियाज़ और काम हो जाने की सूरत में कम अज़ कम 25 रुपये की नियाज़ इमाम अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه के ईसाले षवाब के लिये तक़सीम कीजिये।...✍🏻

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*⇩  ✫ इफ्तार के वक़्त दुआ क़बूल होती है ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : बेशक रोज़ादार के लिये इफ्तार के वक़्त एक ऐसी दुआ होती है जो रद नही की जाती।

📕 अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/53, हदिष:29
   
╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم तीन शख्स की दुआ रद नही की जाती, 1. रोज़ादार की बी वक़्ते इफ्तार, 2. बादशाहे आदिल, 3. मज़लूम

╭┈► इन तीनो की दुआ अल्लाह बादलो से भी ऊपर उठा लेता है और आसमानों के दरवाज़े उस के लिये खुल जाते है और अल्लाह फ़रमाता है, मुझे मेरी इज़्ज़त की क़सम ! में तेरी ज़रूर मदद फरमाउंगा अगर्चे कुछ देर बाद हो।

📕 सुनने इब्ने माजह, 2/349, हदिष:1752

╭┈► *दुआ के तीन फ़वाइद :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم  दुआ बन्दे की तिन बातो से खाली नही होती, 1) या उसका गुनाह बख्शा जाता है। या (2) उसे फायदा हासिल होता है। या (3) उसके लिये आख़िरत में बलाई जमा की जाती है की जब बन्दा आख़िरत में अपनी दुआओ का षवाब देखेगा जो दुन्या में मक़बूल न हुई थी, तो तमन्ना करेगा, काश दुन्या में मेरी कोई दुआ क़बूल न होती और सब यही (यानी आख़िरत) के वासिते जमा हो जाती।

📕 अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/315

╭┈► देखा आप ने, दुआ राएगा तो जाती ही नही। इस का दुन्या में अगर असर ज़ाहिर न भी हो तो आख़िरत में अज्र व षवाब मिल ही जाएगा। लिहाज़ा दुआ में सुस्ती करना मुनासिब नही।...✍🏻

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     *⇩  ✫  रोज़ा  तोड़ने  वाली  बाते  ✫  ⇩*

╭┈► खाने, पीने या हम बिस्तरी करने से रोज़ा जाता रहता है जब की रोज़ादार होना याद हो।

📕 रद्दुल मुहतार, 3/365

╭┈► शकर वगैरा ऐसी चीज़े जो मुह में रखने से घुल जाती है मुह में रखी और थूक निगल गए रोज़ा जाता रहा।

📕 बहारे शरीअत, 5/117

╭┈► दातो के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गए या कम ही थी मगर मुह से निकाल कर फिर खा ली तो रोज़ा टूट गया।

📕 दुर्रे मुख्तार, 3/394

╭┈► दातो से खून निकल कर हल्क़ से निचे उतरा और खून थूक से ज़्यादा या बराबर या कम था मगर इस का मज़ा (टेस्ट) हल्क़ में महसूस हुवा तो रोज़ा जाता रहा और अगर कम था और मज़ा हल्क़ में महसूस न हुवा तो रोज़ा न गया।

📕 दुर्रे मुख्तार, रद्दुल मुहतार, 3/368

╭┈► रोज़ा याद रहने के बा वुजूद हुक़्ना (यानि किसी दवा की बत्ती या पिचकारी पीछे के मक़ाम में चढ़ाना जिस से इजाबत हो जाए) लिया या नाक के नथनों से दवाई चढ़ाई रोज़ा टूट गया।

📕 आलमगिरी, 1/204

╭┈► कुल्ली कर रहे थे बिला क़स्द पानी हल्क़ से उतर गया या नाक में पानी चढ़ाया और दिमाग को चढ़ गया रोज़ा जाता रहा। यु ही रोज़ादार की तरफ किसी ने कोई चीज़ फेकी वो उस के हल्क़ में चली गई तो रोज़ा टूट गया।...✍🏻

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     *⇩  ✫  रोज़ा  तोड़ने  वाली  बाते  ✫  ⇩*

╭┈► सोते में (या नींद की हालत में) पानी पी लिया या कुछ खा लिया, या मुह खुला था, पानी का क़तरा या बारिश का ओला हल्क़ में चला गया तो रोज़ा टूट गया।
   
╭┈► दूसरे का थूक निगल लिया या अपना ही थूक हाथ में ले कर निगल लिया तो रोज़ा टूट गया जब तक थूक बलगम मुह के अंदर मौजूद हो उसे निगल जाने से रोज़ा नही टूटता, बार बार थूकते रहना ज़रूरी नही।
   
╭┈► मुह में रंगीन डोरा वगैरा रखा जिस से थूक रंगीन हो गया फिर वो रंगीन थूक निगल गए तो रोज़ा टूट गया।
   
╭┈► आसु मुह में चला गया और आप उसे निगल गए। अगर क़तरा दो क़तरा है तो रोज़ा न गया और ज़्यादा था की उस की नमकिनी पुरे मुह में महसूस हुई तो रोज़ा टूट गया। पसीने का भी यही हुक्म है।
   
╭┈► फुज़ले का मक़ाम बाहर निकल आया तो हुक्म ये है की खूब अच्छी तरह किसी कपड़े वगैरा से पूछ कर उठे ताकि तरी बाक़ी न रहे। अगर कुछ पानी उस पर बाक़ी था और खड़े हो गए जिस की वजह से पानी अन्दर चला गया तो रोज़ा फासिद हो गया। इसी वजह से फुकहाऐ किराम फ़रमाते है की रोज़ादार इस्तिन्ज़ा करने में सास न ले।...✍🏻

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            *⇩  ✫  रोज़े  में  क़ै  होना  ✫  ⇩*

╭┈► बाज़ अवक़ात जब रोज़े में क़ै हो जाती है तो लोग परेशान हो जाते है बल्कि बाज़ तो समझते है की रोज़े में खुद ब खुद क़ै हो जाने से भी रोज़ा टूट जाता है। हालांकि ऐसा नही। फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم जिस को माहे रमज़ान में खुद बखुद क़ै आई उसका रोज़ा न टुटा और जिस ने जान बुझ कर क़ै की उस का रोज़ा टूट गया।

📕 कन्जुल उम्माल, 8/230, हदिष:23814
   
╭┈► एक और मक़ाम पर इर्शाद फ़रमाया जिस को खुद बखुद क़ै आई उस पर क़ज़ा नही और जिस ने जानबूझ कर क़ै की वो रोज़े की क़ज़ा करे।

📕 तिर्मिज़ी, 2/173, हदिष:720
   
╭┈► अगर रोज़ा याद होने के बा वुजूद क़सदन (यानि जानबूझ कर) क़ै की और अगर वो मुह भर है तो अब रोज़ा टूट गया। क़सदन मुह भर होने वाली क़ै से भी इस सूरत में रोज़ा टूटेगा जब की क़ै में खाना या (पानी) या कड़वा पानी या खून आए। अगर क़ै में सिर्फ बलगम निकला तो रोज़ा नही टूटेगा। मुह भर क़ै बिला इख़्तियार हो गई तो रोज़ा न टूटा अलबत्ता अगर इस में से एक चने के बराबर भी वापस लौटा दी तो रोज़ा टूट जाएगा। और एक चने से कम हो तो रोज़ा न टुटा।

╭┈► *मुह भर क़ै की तारीफ़ :* मुह भर क़ै के माना ये है इसे बिला तकल्लुफ न रोका जा सके।

╭┈► *ज़रूरी हिदायत :* मुह भर क़ै (बलगम के इलावा) नापाक है। इस का कोई छीटा कपड़े या जिस्म पर न गिरने पाए इस की एहतियात फरमाइये। आजकल लोग इस में बड़ी बे एहतियाती करते है, कपड़ो पर छीटे पड़ने की कोई परवाह नही करते और मुह वगैरा पर जो नापाक क़ै लग जाती है उस को भी बिला झिजक अपने कपड़ो से पूछ लेते है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमे नफासत से बचने का ज़हन इनायत फरमाए।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  206 📚*

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*⇩  ✫ भूल कर खाने पिने से रोज़ा नही जाता ✫  ⇩*

╭┈► फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم जिस रोज़ादार ने भूल कर खाया पिया वो अपने रोज़े को पूरा करे की उसे अल्लाह ने खिलाया और पिलाया।

📕 सहीह बुखारी, 1/636, हदिष:1933

╭┈► *रोज़ा न तोड़नेवाली बाते :* रोज़ा याद होने के बा वुजूद भी मख्खी या गुबार या धुवा हल्क़ में चले जाने से रोज़ा नही टूटता। ख्वाह गुबार आटे का हो जो चक्की पीसने या आटा छानने में उड़ता है या गल्ले का गुबार हो या हवा से ख़ाक उडी या जानवरो के खुर या टाप से।

╭┈► अगरबत्ती सुलग रही है और उस का धुवा नाक में गया तो रोज़ा नही टूटेगा। हा अगर लुबान या अगरबत्ती सुलग रही हो और रोज़ा याद होने के बा वुजूद मुह क़रीब ले जा कर उस का धुवा नाक से खीचा तो रोज़ा फासिद् हो जाएगा।
   
╭┈► गुस्ल किया और पानी की खुनकी (यानि ठन्डक) अंदर महसूस हुई जब भी रोज़ा नही टुटा। कुल्ली की और पानी बिलकुल फेक दिया सिर्फ कुछ तरी मुह में बाक़ी रह गई थी थूक के साथ इसे निगल लिया, रोज़ा नही टुटा। कान में पानी चला गया जब भी रोज़ा नही टुटा।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  210 📚*

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       *⇩  ✫ रोज़ा न तोड़नेवाली बाते ✫  ⇩*

╭┈►  दांत या मुह में खफीफ (यानी मामूली) चीज़ बे मालूम सी रह गई की लुआब के साथ खुद ही उतर जाएगी और वो उतर गई, रोज़ा नही टूटा। दातो से खून निकल कर हल्क़ तक पंहुचा मगर हल्क़ से निचे न उतरा तो रोज़ा न गया।
 
 ╭┈►भूल  से खाना खा रहे थे, याद आते ही लुकमा फेक दिया या पानी पी रहे थे याद आते ही मुह का पानी फेक दिया तो रोज़ा न टुटा। अगर मुह में का लुक़मा या पानी याद आने के बा वुजूद निगल गए तो रोज़ा टूट गया।
   
╭┈► जनाबत (यानी गुस्ल फ़र्ज़ होने) की हालत में सुबह की बल्कि अगर्चे सरे दिन बे गुस्ल रहा रोज़ा न गया। मगर इतनी देर तक क़सदन गुस्ल न करना की नमाज़ क़ज़ा हो जाए गुनाह व हराम है।हदिष में फ़रमाया, जिस घर में जुनुब हो उस में रहमत के फ़रिश्ते नही आते।

╭┈► तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हल्क़ से उतर गई तो रोज़ा न टूटा मगर जब की उस का मज़ा हल्क़ में महसूस होता हो तो रोज़ा टूट गया।...✍🏻

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           *⇩  ✫  मकरुहाते  रोज़ा  ✫  ⇩*

╭┈► जिनके करने से रोज़ा हो तो जाता है मगर उस की नुरानिय्यत चली जाती है फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह को इस की कुछ हाजत नही की उस ने खाना, पीना छोड़ दिया है।

📕 सहीह बुखारी, 1/628, हदिष:1903

╭┈► रोज़ा ढाल है जब तक उसे फाड़ा न हो। अर्ज़ की गई, किस चीज़ से फाड़ेगा ? इर्शाद फ़रमाया, झूट या गीबत से।

📕 अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/94, हदिष:3
   
╭┈► झूट, चुगली, गीबत, बद निगाही, गली देना, बिला इजाज़ते शरई किसी का दिल दुखाना, दाढ़ी मुंडाना वगैरा चीज़े वेसे भी ना जाइज़ व हराम है रोज़े में और ज़्यादा हराम और उन की वजह से रोज़े में कराहिय्यत आती और रोज़े की नुरानिय्यत चली जाती है।
   
╭┈► रोज़ादार का बिला उज़्र किसी चीज़ को चखना या चबाना मकरूह है। चखने के लिये उज़्र ये है की मसलन औरत का शौहर बद मिज़ाज है की नमक कम या ज़्यादा होगा तो उस की नाराज़गी का बाइस होगा। इस वजह से चखने में हरज नही।
   
╭┈► चबाने के लिये उज़्र ये है की इतना छोटा बच्चा है की रोटी नही चबा सकता और कोई नर्म ग़िज़ा नही जो उसे खिलाई जा सके, न हैज़ो निफ़ास वाली औरत या कोई और ऐसा है की उसे चबा कर दे। तो बच्चे के खिलाने के लिये रोटी वगैरा चबाना मकरूह नही। मगर पूरी एहतियात रखिये अगर हल्क़ से निचे कुछ् उतर गया तो रोज़ा टूट गया।...✍🏻

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

           *⇩  ✫   मकरुहाते  रोज़ा  ✫  ⇩*

╭┈► बीवी का बोसा लेना और गले लगाना और बदन को छूना मकरूह नही। हा अगर ये अन्देशा हो की इन्ज़ाल हो जाएगा या जिमाअ में मुब्तला होगा और हॉट और ज़बान चूसना रोज़े में मुतलक़न मकरूह है।
   
╭┈► रोज़े में मिस्वाक करना मकरूह नही बल्कि और दिनों की तरह सुन्नत है अक्सर लोगो में मशहूर है की दोपहर बाद रोज़ादार के लिये मिस्वाक करना मकरूह है ये हमारे मज़्हबे हनफिया के खिलाफ है। अगर मिस्वाक चबाने से रेशे छूटे या मज़ा महसूस हो तो ऐसी मिस्वाक रोज़े में नही करना चाहिए। अगर रोज़ा याद होते हुए मिस्वाक का रेशा या कोई जुज हल्क़ से निचे उतर गया तो रोज़ा फासिद् हो जाएगा।
   
╭┈► बाज़ लोगो का रोज़े में बार बार थूकते रहते है शायद वो समझते है की रोज़े में थूक नही निगलना चाहिये, ऐसा नही। अलबत्ता मुह में थूक इकठ्ठा कर के निगल जाना, ये तो बगैर रोज़े के भी ना पसंदीदा है और रोज़े में मकरूह।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  215 📚*

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           *⇩  ✫  फ़ैज़ाने  एतिकाफ  ✫  ⇩*

╭┈► रमज़ानुल मुबारक की बरकतों के क्या कहने ! यूं तो इस की हर हर घड़ी रहमत भरी और हर हर साअत अपने जिलौ में बे पायां बरकतें लिये हुए है। मगर इस माहे मोहतरम में शबे क़द्र सब से ज़ियादा अहम्मिय्यत की हामिल है। इसे पाने के लिये हमारे प्यारे आका ﷺ ने माहे रमज़ाने पाक का पूरा महीना भी एतिकाफ़ फ़रमाया है और आखिरी दस दिन का बहुत ज़ियादा एहतिमाम था। यहां तक कि एक बार किसी खास उज़र के तहत “आप ﷺ रमज़ानुल मुबारक में एतिकाफ़ न कर सके तो शव्वालुल मुकर्रम के आख़िरी अशरह में एतिकाफ़ फ़रमाया।

📕 सहीह बुखारी जिल्दः1, सफहा : 671, हृदीस : 2031
   
╭┈► *एतिकाफ़ पुरानी इबादत है :* पिछली उम्मतों में भी एतिकाफ की इबादत मौजूद थी। चुनान्चे पारह पहला सूरतुल बकरह की आयत नम्बर 125 में अल्लाह का फ़रमाने आलीशान है और हम ने ताकीद फ़रमाई इब्राहीम व इस्माइल عليه السلام को की मेरे घर खूब सुथरा करो तवाफ़ वालों और एतिकाफ वालों और रुकू व सुजूद वालों के लिए।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  334  📚*

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          *⇩  ✫  फ़ैज़ाने  एतिकाफ  ✫  ⇩*

╭┈► *10 दिन का एतिकाफ :* अल्लाह के प्यारे हबीब صلى الله عليه وسلم का ये मामूल हो गया की हर रमज़ान शरीफ के आखरी 10 दिन का एतिकाफ फ़रमाया करते और इसी सुन्नत को ज़िन्दा रखते हुए उम्महातुल मुअमिनिन رضي الله عنها भी एतिकाफ फरमाती रही। चुनान्चे उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दिक़ा رضي الله عنها रिवायत फरमाती है की मेरे सरताज صلى الله عليه وسلم रमज़ान के आखरी 10 दिन का एतिकाफ फ़रमाया करते। यहां तक की अल्लाह ने आप को वफ़ाते ज़ाहिरी अता फ़रमाई। फिर आप के बाद आप की अज़्वाजे मुतह्हरात एतिकाफ करती रही।

📕 सहीह बुखारी, 1/664, हदिष:2026

╭┈► *एक दिन के एतिकाफ की फ़ज़ीलत :* जो रमज़ान के इलावा भी सिर्फ एक दिन मस्जिद के अंदर इखलास के साथ एतिकाफ कर ले उस के लिये भी ज़बरदस्त षवाब की बिशारत है।फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم जो शख्स अल्लाह की रिज़ा व ख़ुशनूदी के लिये एक दिन का एतिकाफ करेगा अल्लाह उस के और जहन्नम के दरमियान 3 खन्दके हाइल कर देगा जिन की मसाफत मशरिक़ व मगरिब के फासिल से भी ज़्यादा होगी।

📕 अद्दुररुल मन्सूर, 1/486

╭┈► *साबिक़ा गुनाहो की बख्शीश :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم जिस शख्स ने ईमान के साथ षवाब हासिल करने की निय्यत से एतिकाफ किया उस के तमाम पिछले गुनाह बख्श दिये जाएंगे।...✍🏻

📕 जामेइस्सगिर 516, हदिष:8480

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  335 📚*

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           *⇩  ✫  फ़ैज़ाने  एतिकाफ  ✫  ⇩*

╭┈► *दो हज और दो उम्रों का षवाब :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم जिसने रमज़ान में 10 दिन का एतिकाफ कर लिया वो ऐसा है जेसे दो हज और दो उम्रे किये।

📕 शुएबुल ईमान, 3/425, हदिष:2966

╭┈► *गुनाहो से तहफ़्फ़ुज़ :* फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم एतिकाफ करने वाला गुनाहो से बचा रहता है और उस के लिये तमाम नेकियां लिखी जाती है जेसे उन के करने वाले के लिये होती है।

📕 इब्ने माजह, 2/365, हदिष:1781

╭┈► *बगैर किये नेकियों का षवाब :* एतिकाफ का एक बहुत बड़ा फायदा ये भी है की जितने दिन मुसलमान एतिकाफ में रहेगा गुनाहो से बचा रहेगा। लेकिन ये अल्लाह की खास रहमत है की बाहर रह कर जो नेकियां वो किया करता था, एतिकाफ की हालत में अगर्चे वो इन को अन्जाम न दे सकेगा मगर फिर भी वो इस के नामए आमाल में बदस्तूर लिखी जाती रहेगी और उसे इन का षवाब भी मिलता रहेगा। मसलन कोई इस्लामी भाई मरीज़ों की इयादत करता था, और एतिकाफ की वजह से ये काम नही कर सका तो वो इस के षवाब से महरूम नही होगा बल्कि इस को ऐसा ही षवाब मिलता रहेगा जेसे वो खुद इस को अन्जाम देता रहा हो।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  340 📚*

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            *⇩  ✫  फ़ैज़ाने  एतिकाफ  ✫  ⇩*

╭┈► *एतिकाफ की तारीफ़ :* मस्जिद में अल्लाह की रिज़ा के लिये ब निय्यते एतिकाफ ठहरना एतिकाफ है। इस के लिये मुसलमान का अक़ील और जनाबत और हैज़ो नफास से पाक होना शर्त है। बुलुग शर्त नही ना बालिग़ भी जो तमीज़ रखता है अगर ब निय्यते एतिकाफ मस्जिद में ठहरे तो उस का एतिकाफ सहीह है।

📕 आलमगिरी, 1/211

╭┈► *एतिकाफ के ल्फ़ज़ी माना :* एतिकाफ के लुग्वी माना है "धरना मारना" मतलब ये की मोतकिफ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में उस की इबादत पर कमर बस्ता हो कर धरना मार कर पड़ा रहता है। उस की ये धुन होती है की किसी तरह उस का परवर्दगार उस से राज़ी हो जाए।

╭┈► *अब तो गनी के दर पर बिस्तर जमा दिये है :* हज़रते अता खुरासानी फ़रमाते है मोतकिफ की मिसाल उस शख्स की सी है जो अल्लाह के दर पर पड़ा हो और ये कह रहा हो, या अल्लाह जब तक तू मेरी मगफिरत नही फरमा देगा में यहां से नही टलूंगा।...✍🏻

📕 शोएबुल ईमान, 3/426, हदिष:3970

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  341 📚*

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         *⇩  ✫  फ़ैज़ाने  एतिकाफ  ✫  ⇩*

╭┈► *एतिकाफ की किस्मे :* एतिकाफ की तीन किस्मे है, 1) ऐतिकाफे वाजिब, 2) ऐतिकाफे सुन्नत, 3) ऐतिकाफे नफ्ल।

╭┈► *ऐतिकाफे वाजिब :* एतिकाफ की नज़र (यानी मन्नत) मानी यानी ज़बान से कहा में अल्लाह के लिये फुला दिन या इतने दिन एतिकाफ करूँगा। तो अब जितने भी दिन का कहा है उतने दिन का एतिकाफ करना वाजिब हो गया।
 
╭┈► ये बात खास कर याद रखिये की जब कभी किसी भी किस्म की मन्नत मानी जाए जस में ये शर्त है की मन्नत के अल्फ़ाज़ ज़बान से अदा किये जाए सिर्फ दिल ही दिल में मन्नत की निय्यत कर लेने से मन्नत सहीह नही होती।

📕 रद्दुल मुहतार, 3/430

╭┈► मन्नत का एतिकाफ मर्द मस्जिद में करे और औरत मस्जिदे बैत में। इन में रोज़ा भी शर्त है। (औरत घर में जो जगह नमाज़ के लिये मखसुस कर ले उसे मस्जिदे बैत कहते है)

╭┈► *ऐतिकाफे सुन्नत :* रमज़ान के आखरी 10 दिन का एतिकाफ सुन्नते मुअक्कदा अलल किफाया है

📕 दुर्रे मुख्तार मअ रद्दुल मुहतार, 3/430

╭┈► यानी पुरे शहर में किसी एक ने कर लिया तो सब की तरफ से अदा हो गया और अगर किसी एक ने भी न किया तो सभी मुजरिम हुए।

📕 बहारे शरीअत, 5/152

╭┈► इस एतिकाफ में ये ज़रूरी है की रमज़ान की बीसवी तारीख को गुरुबे आफताब से पहले पहले मस्जिद के अंदर ब निय्यते एतिकाफ मौजूद हो और उनतीस के चाँद के बाद या तिस के गुरुबे आफताब के बाद मस्जिद से बहार निकले।

📕 बहारे शरीअत, 5/151

╭┈► अगर 20 रमज़ान को गुरुबे आफताब के बाद मस्जिद में दाखिल हुए तो एतिकाफ की सुन्नते मुअककदा अदा न हुई बल्कि सूरज डूबने से पहले पहले मस्जिद में तो दाखिल हो चूके थे मगर निय्यत करना भूल गए थे यानी दिल में निय्यत ही नही थी (निय्यत दिल के इरादे को कहते है) तो इस सुरतमे भी एतिकाफ की सुन्नते मुअककदा अदा न हुई। अगर गुरुबे आफताब के बाद निय्यत की तो नफ्लि एतिकाफ हो गया।
 
╭┈► दिल में निय्यत कर लेना ही काफी है ज़बान से कहना शर्त नही। अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होना ज़रूरी है साथ ही ज़बान से भी कह लेना ज़्यादा बेहतर है।

╭┈► *एतिकाफ की निय्यत इस तरह कीजिये :* में अल्लाह की रिज़ा के लिये रमज़ान के आखरी 10 दिन का सुन्नते एतिकाफ की निय्यत करता हु।...✍🏻

  *📬  फ़ज़ाइले  रमज़ान  सफह -  343 📚*

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   ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - भूल कर खाने पीने या जिमआ करने से रोज़ा नहीं टूटेगा

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112

╭┈► *मसअला* - बिला कस्द हलक में मक्खी धुआं गर्दो गुबार कुछ भी गया रोज़ा नहीं टूटेगा

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112

╭┈► *मसअला* - बाल या दाढ़ी में तेल लगाने से या सुरमा लगाने से या खुशबू सूंघने से रोज़ा नहीं टूटता अगर चे सुरमे का रंग थूक में दिखाई भी दे तब भी नहीं

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113

╭┈► *मसअला* - कान में पानी जाने से तो रोज़ा नहीं टूटा मगर तेल चला गया या जानबूझकर डाला तो टूट जायेगा

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117

╭┈► *मसअला* - एहतेलाम यानि नाइट फाल हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा मगर बीवी को चूमा और इंजाल हो गया तो रोज़ा टूट गया युंहि हाथ से मनी निकालने से भी रोज़ा टूट जायेगा

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117

╭┈► *मसअला* - तिल या तिल के बराबर कोई भी चीज़ चबाकर निगल गया और मज़ा हलक में महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा और अगर मज़ा महसूस हुआ या बगैर चबाये निगल गया तो टूट गया और अब क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 114,122

╭┈► *मसअला* - आंसू मुंह में गया और हलक़ से उतर गया तो अगर 1-2 क़तरे हैं तो रोज़ा ना गया लेकिन पूरे मुंह में नमकीनी महसूस हुई तो टूट गया

*📬 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117 📚*

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*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - बिला इख्तियार उलटी हो गयी तो चाहे मुंह भरकर ही क्यों ना हो रोज़ा नहीं टूटेगा

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 121

╭┈► *मसअला* - कुल्ली करने में पानी हलक़ से नीचे उतरा या नाक से पानी चढ़ाने में दिमाग तक पहुंच गया अगर रोज़ा होना याद था तो टूट गया वरना नहीं

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117

╭┈► *मसअला* - पान, तम्बाकू, सिगरेट, बीड़ी, हुक्का खाने पीने से रोज़ा टूट जायेगा

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 116

╭┈► *मसअला* - जानबूझकर अगरबत्ती का धुआं खींचा या नाक से दवा चढ़ाई या कसदन कुछ भी निगल गया तो रोज़ा टूट गया

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113,114,117

╭┈► *मसअला* - इंजेक्शन चाहे गोश्त में लगे या नस में रोज़ा नहीं टूटेगा मगर उसमें अलकोहल होता है इसलिए जितना हो सके बचा जाये!...✍🏻

*📬 फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88 📚*

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*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - पूरा दिन नापाक रहने से रोज़ा नहीं जाता मगर जानबूझकर 1 वक़्त की नमाज़ खो देना हराम है

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113

╭┈► *मसअला*  झूट, चुगली, ग़ीबत, गाली गलौच,बद नज़री व दीगर गुनाह के कामों से रोज़ा मकरूह होता है लेकिन टूटेगा नहीं

📓जन्नती ज़ेवर,सफह 264

╭┈► *मसअला* - रोज़ा तोड़ने का कफ्फारह उस वक़्त है जबकि नियत रात से की हो अगर सूरज निकलने के बाद नियत की तो सिर्फ क़ज़ा है कफ्फारह नहीं

📓बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 120

╭┈► *मसअला* - कफ्फारये रोज़ा ये है कि लगातार 60 रोज़े रखे बीच में अगर 1 भी छूटा तो फिर 60 रखना पड़ेगा या 60 मिस्कीन को दोनों वक़्त पेट भर खाना खिलाये या 1 ही फकीर को दोनों वक़्त 60 दिन तक खाना खिलाये या इसके बराबर रक़म सदक़ा करे!...✍🏻

*📬 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 123 📚*

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*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - मुबालग़े के साथ इस्तिंजा किया और हकना रखने की जगह तक पानी पहुंच गया रोज़ा टूट गया

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116

╭┈► पाखाने के सुर्ख मक़ाम तक पानी पहुंचा तो रोज़ा टूट जायेगा लिहाज़ा बड़ा इस्तिंजा करने में इस बात का ख्याल रखें कि फ़ारिग होने के बाद जब मक़ाम धुलना हो तो चंद सिकंड के लिये सांस को रोक लिया जाये ताकि मक़ाम बंद हो जाये अब जल्दी जल्दी धोकर पानी पूरी तरह से पोंछ लिया जाये क्योंकि अगर पानी के क़तरे वहां रह गये और खड़े होने में वो क़तरे अंदर चले गये तो रोज़ा टूट जायेगा,इसीलिए आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रमज़ान भर बैतुल खला एक कपड़ा साथ लेकर जायें जिससे कि आज़ा के पानी को खड़े होने से पहले सुखा सकें

╭┈► *मसअला* - औरत का बोसा लिया मगर इंज़ाल ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा युंही अगर औरत सामने हैं और जिमअ के ख्याल से ही इंज़ाल हो गया तब भी रोज़ा नहीं टूटा

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 113

╭┈► *मसअला* - औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंज़ाल हो गया रोज़ा ना टूटा और मर्द ने औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और उसके बदन की गर्मी महसूस ना हुई तो अगर इंज़ाल हो भी गया तब भी रोज़ा ना टूटा

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117

╭┈► *मसअला* - औरत ने मर्द को सोहबत करने पर मजबूर किया तो औरत पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है मर्द पर सिर्फ क़ज़ा!..✍🏻

*📬 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 122 📚*

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*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - औरत को मुयय्यन तारीख पर हैज़ आता था आज हैज़ आने का दिन था उसने कस्दन रोज़ा तोड़ दिया मगर हैज़ ना आया तो कफ्फारह नहीं सिर्फ क़ज़ा करेगी युंही सुबह होने के बाद पाक हुई और नियत कर ली तो आज का रोज़ा नहीं होगा

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 123/119

╭┈► *मसअला* - कोई चीज़ खरीदी और चखना ज़रूरी है कि अगर ना चखेगा तो नुकसान होगा तो इजाज़त है कि चख ले युंही शौहर बद मिज़ाज है कि नमक वगैरह की कमी बेशी पर चीखता चिल्लाता है तो औरत को हुक्म है कि नमक चख ले मगर चखने से मुराद ये है कि ज़बान पर रखकर मज़ा महसूस करके फौरन थूक दे वरना अगर निगल लिया तो रोज़ा जाता रहा बल्कि अगर शरायत पाये गये तो कफ्फारह भी लाज़िम होगा

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125

╭┈► *मसअला* - रमज़ान के दिनों में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे रोज़ा ना रख सके बल्कि हुक्म ये है कि अगर रोज़ा रखेगा और कमज़ोरी महसूस होगी और खड़े होकर नमाज़ ना पढ़ सकेगा तो भी रोज़ा रखे और बैठ कर नमाज़ पढ़े लेकिन ये तब ही है जब कि बिल्कुल ही खड़ा ना हो सके वरना बैठकर नमाज़ ना होगी

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126

╭┈► *मसअला* - दांतों में कोई चीज़ फंसी रह गयी तो अगर वो बगैर थूक की मदद से हलक़ से नीचे उतर सकती है और निगल गया तो रोज़ा टूट गया और इतनी खफ़ीफ़ है कि थूक के साथ ही उतर सकती है और निगला तो नहीं टूटा युंही मुंह से खून निकला और हलक़ से उतरा तो अगर मज़ा महसूस हुआ तो रोज़ा टूट गया और अगर खून कम था या मज़ा महसूस ना हुआ तो नहीं टूटा

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116

╭┈► *मसअला* - डोरा बट रहा था बार बार तर करने के लिए मुंह से गुज़ारा तो अगर उसकी रंगत या मज़ा महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं गया लेकिन डोरे की रतूबत अगर थूक के ज़रिये निगला तो रोज़ा टूट गया!...✍🏻

*📬 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117 📚*

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*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - ये गुमान था कि अभी सुबह नहीं हुई और खाया पिया या जिमअ किया और बाद को मालूम हुआ कि सुबह हो चुकी थी या किसी ने जबरन खिलाया तो इन सूरतों में सिर्फ क़ज़ा है कफ़्फ़ारह नहीं

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118

╭┈► *मसअला* - नाइटफॉल हुआ और उसे मालूम था कि रोज़ा नहीं टूटा फिर उसके बाद खाया पिया तो अब कफ्फारह लाज़िम है

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 121

╭┈► *मसअला* - अगर किसी का रोज़ा गलती से टूट जाए तो फिर भी उसे मग़रिब तक कुछ भी खाना पीना जायज़ नहीं है पूरा दिन मिस्ल रोज़े के ही गुज़ारना वाजिब है युंही जो शख्स रमज़ान में खुले आम खाये पिये हुक्म है कि उसे क़त्ल किया जाये

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118/119

╭┈► *मसअला* - रोज़ेदार वुज़ू में कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा ना करे

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126

╭┈► *मसअला* - सहरी खाने में देर करना मुस्तहब है मगर इतनी देर ना करें कि वक़्ते सहर ही खत्म हो जाये युंही अफ्तार में जल्दी करना भी मुस्तहब है मगर इतनी जल्दी भी ना हो कि सूरज ही ग़ुरूब ना हुआ हो

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126

╭┈► बाज़ लोग अज़ान को ही खत्मे सहर समझते हैं ये उनकी गलत फहमी है मसलन आज खत्मे सहर 4:26 पर था तो कम से कम एहतियातन 3 मिनट पहले यानि 4:24 पर ही खाना पीना छोड़ दें युंही अगर फज्र पढ़नी हो तो कम से कम एहतियातन 3 मिनट और जोड़ दें यानि 4:29 पर फज्र पढ़ सकते हैं,अगर खत्मे सहर के बाद अगर एक बूंद पानी या एक दाना भी मुंह में डाला तो रोज़ा शुरू ही नहीं होगा अगर चे अभी अज़ान हुई हो या न हुई हो अगर चे वो नियत भी करले और दिन भर मिस्ल रोज़ा भूखा प्यासा भी रहे,लिहाज़ा वक़्त का लिहाज़ करें!..✍🏻

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    ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

*⇩  ✫ रोजा़ के तालुक से कुछ जरूरी मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *मसअला* - मिस्वाक करना सुन्नत है अगर चे खुश्क हो या पानी से तर हो अगर चे हलक़ में उसकी कड़वाहट महसूस भी होती हो

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125

╭┈► *मसअला* - रोज़े की हालत में मियां बीवी का एक दूसरे के बदन को छूना चूमना गले लगाना मकरूह है अगर बगैर सोहबत किये भी इंज़ाल हुआ तो रोज़ा टूट जायेगा और सोहबत की तो कफ्फारह वाजिब

📓बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125

╭┈► *मसअला* - अफ्तार के वक़्त जो दुआ पढ़ी जाती है वो एक दो लुक़्मा खाने बाद ही पढ़ी जाये बिस्मिल्लाह शरीफ के साथ रोज़ा खोलें फिर दुआ पढ़ें

📓फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 13

╭┈► *मसअला* - शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की इजाज़त है बाद रमज़ान रोज़ों की कज़ा करे,ये शरई उज़्र हैं 1. बीमारी 2. सफर 3. औरत को हमल हो या दूध पिलाने की मुद्दत में हो 4. सख्त बुढ़ापा 5. बेहद कमज़ोरी 6. जान जाने का डर

📓दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115

📓बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 130

╭┈► *मसअला* - इनमे से शैखे फानी यानि बहुत ज्यादा बूढ़ा और ऐसा बीमार जिसके ठीक होने की उम्मीद ना हो वो लोग अगर रोज़ा ना रख सकें तो उन्हें हर रोज़े के बदले 2 kg 47 ग्राम गेंहू की कीमत यानि 60 rs. फिदिया अदा करना होगा

📓दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 119

╭┈► *मसअला* - शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखा और फिदिया देता रहा मगर अगला रमजान आने से पहले उसका उज़्र जाता रहा तो अब रोज़ो की क़ज़ा फर्ज़ है उसके सारे फिदिए नफ्ल हो गए

📓दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115

📓बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 133

╭┈► जिन लोगों को शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की मोहलत है उन्हें भी अलानिया खाने पीने की इजाज़त नहीं है युंहि जिन लोगो का रोज़ा किसी गलती की वजह से टूट गया है उन्हे भी मग़रिब तक कुछ भी खाने पीने कि इजाज़त नहीं है लिहाज़ा इसका ख्याल रखें!...✍🏻

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          *⇩  ✫  ज़कात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► जकात फ़र्ज़ है। इस का इन्कार करने वाला काफ़िर और न देने वाला फ़ासिक व जहन्नमी और अदा करने में देर करने वाला गुनहगार व मर्दूदुश्शहादह है। नमाज़ की तरह इस के बारे में भी बहुत सी आयतें व हदी आई हैं जिन में ज़कात अदा करने की सख्त ताकीद है और न अदा करने वाले पर तरह तरह के दुन्या और आख़िरत के अज़ाबों की वईदें आई हैं।

╭┈► *मस्अला :-* अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरीअत ने मुकर्रर किया है किसी फ़क़ीर को मालिक बना देना शरीअत में इस को ज़कात कहते हैं।

📓 जन्नती  जेवर  सफ़ह  334

╭┈► *हदीस -* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो लोग अपने माल की ज़कात नहीं अदा करेंगे तो क़यामत के दिन उनका माल गंजे सांप की शक्ल में उनके गले में पड़ा होगा और वो अपने जबड़ों से उसके मुंह को पकड़े होगा और कहेगा कि मैं तेरा माल हूं!...✍🏻

*📬 बुखारी जिल्द 1 सफह 188 📚*

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          *⇩  ✫  ज़कात  का  बयान  ✫  ⇩*

  *⇩  ज़कात फर्ज होने के लिये चन्द शर्ते हैं  ⇩*

╭┈► *(1)* मुसलमान होना या'नी काफ़िर पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(2)* बालिग होना या'नी नाबालिग पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(3)* आकिल होना या'नी दीवाने पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(4)* आज़ाद होना या'नी लौंडी गुलाम पर जकात फर्ज नहीं

╭┈► *(5)* मालिके निसाब होना या'नी जिस के पास निसाब से कम माल हो उस पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(6)* पूरे तौर पर मालिक हो या'नी इस पर कब्जा भी हो तब ज़कात फ़र्ज़ है वरना नहीं मषलन किसी ने अपना माल जमीन में दफ्न कर दिया और जगह भूल गया फिर बरसों के बा'द जगह याद आई और माल मिल गया तो जब तक माल न मिला था उस ज़माने की जकात वाजिब नहीं क्यूंकि निसाब का मालिक तो था मगर इस पर कब्जा नहीं था

╭┈► *(7)* निसाब का क़र्ज़ से फ़ारिग होना : अगर किसी के पास एक हज़ार रूपिये है मगर वोह एक हज़ार का कर्जदार भी है तो उस का माल क़र्ज़ से फ़ारिग नहीं लिहाजा उस पर ज़कात नहीं।

╭┈► *(8)* निसाब का हाजते अस्लिय्या से फ़ारिग होना : हाजते अस्लिय्या या'नी आदमी को जिन्दगी बसर करने में जिन चीजों की जरूरत है मषलन अपने रहने का मकान ,जाड़े गर्मियों के कपड़े ,घरेलू सामान या'नी खाने पीने के बरतन ,चारपाइयां ,कुरसियां ,मेजें ,चूल्हे ,पंखे वगैरा इन मालों में जकात नहीं क्यूंकि येह सब मालो सामान हाजते अस्लिय्या से फ़ारिग नहीं है

╭┈► *(9)* माले नामी होना या'नी बढ़ने वाला माल होना ख्वाह हक़ीक़तन बढ़ने वाला माल जैसे माले तिजारत और चराई पर छोड़े हुए जानवर या हुक्मन बढ़ने वाला माल हो जैसे सोना चांदी कि येह इसी लिये पैदा किये गये हैं कि इन से चीजें खरीदी जाएं और बेची जाएं ताकि नफ्अ होने से येह बढ़ते रहें लिहाज़ा सोना चांदी जिस हाल में भी हो जेवर की शक्ल में हों या दफ्न हों हर हाल में येह माले नामी हैं और इन की ज़कात निकालनी ज़रूरी है

╭┈► *(10)* माले निसाब पर एक साल गुज़र जाना या'नी निसाब पूरा होते ही ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी बल्कि एक साल तक वोह निसाब मिल्क में बाक़ी रहे तो साल पूरा होने के बाद इस की ज़कात निकाली जाए।...✍🏻

      *📬  जन्नती  जेवर   सफ़ह  335 📚*

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        *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► *शबे कद्र की इबादत और नवाफ़िल :* शबे कद्र में सैयदना हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम बमअ दीगर फरिश्तों के जमीन पर उतरते हैं और वह चार झंडे गाड़ते हैं एक रौज़ए अतहर पर ,एक काबा मोअज़्ज़मा की छत पर ,और एक बैतुल मुकद्दस पर ,और एक आसमान और ज़मीन के दर्मियान पर। फिर वह फ़रिश्ते तमाम तरफों में फैल जाते हैं और कोई ऐसा घर बाकी नहीं रहता जहां वह दाखिल न हों जो शख़्स इबादत में मशगूल होता है फ़रिश्ते उसको सलाम देते हैं और यह नक्शा तुलूअ फज्र तक बाकी रहता है इस रात की इबादत हजार महीनों की इबादत से अफजल है अल्लाह करीम का इरशाद है :

         "لَیْلَةُالْقَدْرِخَیْرٗمِنْ اَلْفِ شَھْرِِ"

╭┈► इस रात में नवाफिल पढ़ना ,कुरआन मजीद की तिलावत करना ,और तसबीह व तहलील और इस्तिगफार पढ़ना चाहिये शबे कद्र में जितने नफल पढ़े जा सकें बड़ी सआदत है मगर जो किताबों में लिखे गये हैं वह यह हैं

╭┈► *1 .चार रकअत नफल पढे :* हर रकअत में अलहम्द शरीफ बाद सूरह अलहाको मुत्तकासुरो एक मर्तबा और कुलहू वल्लाहु अहद तीन दफा पढ़े तो मौत की सख़्तियों से आसानी होगी। और अज़ाब क़ब्र से महफूज़ रहेगा।

╭┈► *2 .दो रकअत नफल पढ़े :* कि हर रकअत में अलहम्द शरीफ के बाद कुलहु वल्लाहु अहद सात बार पढ़े सलाम के बाद सत्तर

"اَسْتَغْفِرُاللّٰهِ الْعَظِیْمَ الَّذِیْ لآاِلٰهَ اِلاَّھُوَالْحَیُّ الْقَیُّمُ وَاَتُوبُ اِلَیْهِ"

दफ़ा पढ़े इंशाअल्लाह तआला इस नमाज़ को पढ़ने वाले अपने मुसल्ले से न उठेंगे कि अल्लाह पाक उसको और उसके वालिदैन के गुनाह माफ़ फरमाकर बख्श देगा और अल्लाह तआला फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि इसके लिये जन्नत आरास्ता करो और फ़रमाकर कि वह जब तक तमाम बहिश्ती नेमतें अपनी आँखो से न देख लेगा उस वक़त तक मौत न आयेगी मग्फिरत के लिये यह नमाज़ बहुत ही अफ़जल है।

╭┈► *3 .चार रकअत नफ़ल इस तरह पढ़े :* कि हर रकअत मे अलहम्द शरीफ़ के बाद इन्ना अनज़लना एक बार और कुल वल्लाहु अहद सत्ताईस बार पढ़े। तो यह शख्स गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है कि गोया आज ही अपनी मां के पेट से पैदा हुआ है और इसको अल्लाह करीम जन्नत में हजार महल इनायत फरमायेगा

╭┈► *4. दो रकअत नफल पढे :* कि हर रकअत अलहम्द शरीफ के बाद इन्ना अनज़लना एक बार कुलहु वल्लाहु अहद तीन बार पढे तो अल्लाह तआला उसको शबे कद्र का सवाब अता फरमायेगा और उसके नफल कुबूल फ़रमायेगा और उसको सैयदना हजरत इदरीस और सैयदना हजरत शोएब और हजरत अय्यब और सैयदना दाऊद सैयदना हजरत नूह अलैहिस्सलातु वस्सलाम का सवाब अता फ़रमायेगा और उसको जन्नत में मश्रिक से मगरिब तक एक शहर इनायत फ़रमायेगा।

╭┈► *5 .चार रकअत नफल इस तरह पढ़े :* कि हर रकअत में अलहम्द शरीफ के बाद इन्ना अनज़लना तीन मर्तबा और कुलहु वल्लाहु अहद पचास मर्तबा पढ़े।। फिर उस नमाज़ के बाद सजदा में जाकर एक दफा

"سُبْحَانَ اللّٰهِ وَالْحَمْدُلِلّٰهِ وَلَاَاِلٰهَ اِلاَّ اللّٰهُ وَاللّٰهُ اَکْبَرُ"

पढ़े फिर उसके बाद जो दुआ मांगे कुबूल होगी और उसे अल्लाह तआला बेशुमार नेमतें अता फरमायेगा और उसके सब गुनाह बख़्श देगा।...✍🏻

  *📬  तीन नूरानी रातें सफ़ह - 38  📚*

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        *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► *पहली शबे क़द्र :-* हुजूर अनवर सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि मेरी उम्मत में से जो मर्द या औरत यह ख्वाहिश करे कि मेरी कब्र अनवर की रौशनी से मुनव्वर हो तो उसे चाहिये कि माहे रमज़ान की शबे कद्र में कसरत के साथ इबादत इलाही बजा लाये ताकि इन मुबारक रातों की इबादत से अल्लाह पाक इसके नामए आमाल से बुराईयां मिटाकर सवाब अता फरमाये। शबे क़द्र की इबादत सत्तर हज़ार शब की इबादतों से अफ़जल है।

╭┈► *1)* इक्कीसवीं शब को चार रकअत नमाज़ दो सलाम से पढ़े हर रकअत में बाद सूरह फातेहा के सूरह कद्र एक एक बार सूरः इख्लास एक मर्तबा पढ़े। बाद सलाम के सत्तर मर्तबा दुरूद पाक पढ़े। इंशाअल्लाह तआला इस नमाज़ के पढ़ने वाले के हक मे फ़रिश्ते दुआए मगिफरत करेंगे।

╭┈► *2)* इक्कीसवीं शब को दो रकअत नमाज़ पढ़े हर रकत मे  बाद सुरः फातेहा सूरः कद्र एक एक बार सूरः इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़े। बाद सलाम के नमाज़ ख़त्म करके सत्तर मर्तबा इस्तिगफार पढ़े। इंशाअल्लाह तआला इस नमाज़ और शबे कद्र की बरकत से अल्लाह पाक उसकी बख्शिश फ़रमायेगा।

╭┈► *वज़ीफ़ा :* माहे रमज़ानुल मुबारक की इक्कीसवीं शब को इक्कीस मर्तबा सूरः कद्र पढ़ना भी बहुत अफ़जल है।...✍🏻

  *📬 तीन नूरानी रातें  सफ़ह - 40 📚*

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        *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► *दूसरी शबे कद्र :*
*1)*  माहे रमज़ान की तेईसवीं शब को चार रकअत नमाज़ व सलाम से पढ़े और हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र एक एक बार सूरः इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़े फिर बाद सलाम के सत्तर मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़े इंशाअल्लाह तआला मग्फिरत गुनाह के लिये यह नमाज़ बहुत अफज़ल है।

╭┈► *2)* तेईसवीं शब को आठ रकअत नमाज़ चार सलाम से पढ़े हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के के सूरः कद्र एक एक दफ़ा सूरः इखलास एक एक बार पढ़े। और बाद सलाम के सत्तर मर्तबा कलिमा तमजीद पढ़े और अल्लाह तआला से अपने गुनाहों की बख्शिश तलब करे अल्लाह तआला उसके गुनाह माफ फरमाकर इंशाअल्लाह तआला मगिफ़रत फरमायेगा।

╭┈► *वज़ीफ़ा :* तेईसवीं शब को सूरः यासीन एक मर्तबा सूर रहमान एक दफा पढ़ना बहुत अफ़ज़ल है।...✍🏻

  *📬 तीन नूरानी रातें  सफ़ह - 40 📚*

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         *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► *तीसरी शबे कद्र :*
*1)* माहे रमज़ान की पच्चीस तारीख की शब को चार रकअत नमाज़ दो सलाम से पढ़े बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र एक एक बार सूरः इखलास पाच पांच मर्तबा हर रकअत में पढ़े बाद सलाम के कलिमा तैयब एक सौ दफा पढ़े दरगाहे रग्बुल इज्जत से दुआ करे इंशाअल्लाह तआला बेशुमार इबादत का सवाब अता होगा

╭┈► *2)* पच्चीसवीं शब को चार रकअत नमाज़ दो सलाम से पढ़े। हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र तीन तीन मर्तबा सूरः इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़े बाद सलाम के सत्तर दफ़ा इस्तिगफार पढ़े यह नमाज़ बख्शिश के लिये बहुत अफ़जल है।

╭┈► *3)* पच्चीसवीं शब को दो रकअत नमाज़ पढ़े हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र एक एक मर्तबा सूरः इखलास पंद्रह पंद्रह बार पढ़े बाद सलाम के सत्तर दफा कलिमा शहादत पढ़े। यह नमाज़ निजात अज़ाब कब्र के लिये बहुत अफजल है।

╭┈► *वज़ायफ़ :* 1. माहे रमज़ान की पच्चीसवीं शब को सात मर्तबा सूरः दुखान पढ़े। इंशाअल्लाह तआला अल्लाह पाक इस सूरः के पढ़ने के बाइस अज़ाब कब्र से महफूज़ रखेगा।

╭┈► 2. पच्चीसवीं शब को सात मर्तबा सूर फ़तह पढ़ना हर मर्द के लिये बहुत अफज़ल है।...✍🏻

     *📬  तीन नूरानी रातें सफ़ह 41 📚*

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          *⇩  ✫  ज़कात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► जकात फ़र्ज़ है। इस का इन्कार करने वाला काफ़िर और न देने वाला फ़ासिक व जहन्नमी और अदा करने में देर करने वाला गुनहगार व मर्दूदुश्शहादह है। नमाज़ की तरह इस के बारे में भी बहुत सी आयतें व हदी आई हैं जिन में ज़कात अदा करने की सख्त ताकीद है और न अदा करने वाले पर तरह तरह के दुन्या और आख़िरत के अज़ाबों की वईदें आई हैं।

╭┈► *मस्अला :-* अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरीअत ने मुकर्रर किया है किसी फ़क़ीर को मालिक बना देना शरीअत में इस को ज़कात कहते हैं।

📓 जन्नती  जेवर  सफ़ह  334

╭┈► *हदीस -* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो लोग अपने माल की ज़कात नहीं अदा करेंगे तो क़यामत के दिन उनका माल गंजे सांप की शक्ल में उनके गले में पड़ा होगा और वो अपने जबड़ों से उसके मुंह को पकड़े होगा और कहेगा कि मैं तेरा माल हूं!...✍🏻

*📬 बुखारी जिल्द 1 सफह 188 📚*


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          *⇩  ✫  ज़कात  का  बयान  ✫  ⇩*

  *⇩  ज़कात फर्ज होने के लिये चन्द शर्ते हैं  ⇩*

╭┈► *(1)* मुसलमान होना या'नी काफ़िर पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(2)* बालिग होना या'नी नाबालिग पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(3)* आकिल होना या'नी दीवाने पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(4)* आज़ाद होना या'नी लौंडी गुलाम पर जकात फर्ज नहीं

╭┈► *(5)* मालिके निसाब होना या'नी जिस के पास निसाब से कम माल हो उस पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं

╭┈► *(6)* पूरे तौर पर मालिक हो या'नी इस पर कब्जा भी हो तब ज़कात फ़र्ज़ है वरना नहीं मषलन किसी ने अपना माल जमीन में दफ्न कर दिया और जगह भूल गया फिर बरसों के बा'द जगह याद आई और माल मिल गया तो जब तक माल न मिला था उस ज़माने की जकात वाजिब नहीं क्यूंकि निसाब का मालिक तो था मगर इस पर कब्जा नहीं था

╭┈► *(7)* निसाब का क़र्ज़ से फ़ारिग होना : अगर किसी के पास एक हज़ार रूपिये है मगर वोह एक हज़ार का कर्जदार भी है तो उस का माल क़र्ज़ से फ़ारिग नहीं लिहाजा उस पर ज़कात नहीं।

╭┈► *(8)* निसाब का हाजते अस्लिय्या से फ़ारिग होना : हाजते अस्लिय्या या'नी आदमी को जिन्दगी बसर करने में जिन चीजों की जरूरत है मषलन अपने रहने का मकान ,जाड़े गर्मियों के कपड़े ,घरेलू सामान या'नी खाने पीने के बरतन ,चारपाइयां ,कुरसियां ,मेजें ,चूल्हे ,पंखे वगैरा इन मालों में जकात नहीं क्यूंकि येह सब मालो सामान हाजते अस्लिय्या से फ़ारिग नहीं है

╭┈► *(9)* माले नामी होना या'नी बढ़ने वाला माल होना ख्वाह हक़ीक़तन बढ़ने वाला माल जैसे माले तिजारत और चराई पर छोड़े हुए जानवर या हुक्मन बढ़ने वाला माल हो जैसे सोना चांदी कि येह इसी लिये पैदा किये गये हैं कि इन से चीजें खरीदी जाएं और बेची जाएं ताकि नफ्अ होने से येह बढ़ते रहें लिहाज़ा सोना चांदी जिस हाल में भी हो जेवर की शक्ल में हों या दफ्न हों हर हाल में येह माले नामी हैं और इन की ज़कात निकालनी ज़रूरी है

╭┈► *(10)* माले निसाब पर एक साल गुज़र जाना या'नी निसाब पूरा होते ही ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी बल्कि एक साल तक वोह निसाब मिल्क में बाक़ी रहे तो साल पूरा होने के बाद इस की ज़कात निकाली जाए।...✍🏻

      *📬  जन्नती  जेवर   सफ़ह  335 📚*

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        *⇩  ✫ जकात का बयान ✫  ⇩*

╭┈► *मस्अला :* सोने का निसाब साढ़े सात तोला है और चांदी का निसाब साढ़े बावन तोला है। सोने चांदी में चालीसवां हिस्सा ज़कात निकाल कर अदा करना फ़र्ज़ है। येह ज़रूरी नहीं कि सोने की ज़कात में सोना ही और चांदी की ज़कात में चांदी ही दी जाए बल्कि येह भी जाइज़ है कि बाज़ारी भाव से सोने चांदी की कीमत लगा कर रूपिये ज़कात में दें।

╭┈► *जेवरात की ज़कात :* हदीष शरीफ़ में है कि दो औरतें हुजूरे अक्दस ﷺ की ख़िदमते मुबारका में हाज़िर हुई। उन के हाथों में सोने के कंगन थे आप ने इरशाद फ़रमाया कि क्या तुम इन ज़ेवरों की ज़कात अदा करती हो ? औरतों ने अर्ज किया कि जी नहीं ! तो आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि क्या तुम इसे पसन्द करती हो कि अल्लाह तआला तुम्हें आग के कंगन पहनाए ? औरतों ने कहा नहीं तो इरशाद फ़रमाया कि तुम इन जेवरों की ज़कात अदा करो।

╭┈► *मस्अला :* सोना चांदी जब कि ब क़दरे निसाब हों तो इन की ज़कात चालीसवां हिस्सा निकालनी फर्ज है ख्वाह सोने चांदी के टुकड़े हों या सिक्के या जेवरात या सोने चांदी की बनी हुई चीजें मषलन बरतन ,घड़ी ,सुर्मादानी ,सलाई वगैरा गरज़ जो कुछ हो सब की ज़कात निकालनी फ़र्ज़ है।

╭┈► *मस्अला :* जिन जेवरात की मालिक औरत हो ख्वाह वोह मैके से लाई हो या उस के शोहर ने उस को ज़ेवरात दे कर इन का मालिक बना दिया मालिक मर्द हो या'नी औरत को सिर्फ पहनने के लिये दिया है मालिक नहीं बनाया है तो इन जेवरात की ज़कात मर्द के जिम्मे है औरत पर नहीं।...✍🏻

📓 फ़तावा रज़विय्या (अल जदीदा) जिल्द 10 सफ़ह 132

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         *⇩  ✫  जकात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► *मस्अला :* अगर किसी के पास सोना चांदी या इन दोनों के जेवरात हों और सोना चांदी में से कोई भी ब क़दरे निसाब नहीं तो चाहिये कि सोने की कीमत के चांदी या चांदी की कीमत का सोना फर्ज कर के दोनों को मिलाएं फिर अगर मिलाने पर भी ब कदरे निसाब न हो तो जकात नहीं और अगर सोने की कीमत की चांदी-चांदी में मिलाएं तो ब कदरे निसाब हो जाता है और चांदी की कीमत का सोना ,सोने में मिलाएं तो ब कदरे निसाब नहीं तो वाजिब है कि जिस सूरत में निसाब पूरा हो जाता है वोह करें।

╭┈► *मस्अला :* तिजारती माल की कीमत लगाई जाए फिर उस से अगर सोने या चांदी का निसाब पूरा हो तो उस के हिसाब से ज़कात निकाली जाए।

╭┈► *मस्अला :* अगर सोना चांदी न हो न माले तिजारत हो बल्कि सिर्फ नोट और रूपे पैसे हों कि कम से कम इतने रूपे पैसे या नोट हों कि बाज़ार में इन से साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी खरीदी जा सकती है तो वोह शख्स साहिबे निसाब है उस को नोट और रूपे पैसों की ज़कात (चालीसवां हिस्सा) निकालना फ़र्ज़ है।

╭┈► *मस्अला :* अगर शुरूअ साल में पूरा निसाब था और आख़िर साल में भी निसाब पूरा रहा दरमियान में कुछ दिनों माल घट कर निसाब से कम रह गया तो येह कमी कुछ अषर न करेगी बल्कि इस को पूरे माल की ज़कात देनी पड़ेगी।...✍🏻

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          *⇩  ✫  जकात  का  बयान  ✫  ⇩*

*⇩ जकात का माल किन किन लोगों को दिया जाए ⇩*

╭┈► जिन जिन लोगों को उश्र व ज़कात का माल देना जाइज़ है वोह येह लोग हैं :

╭┈► *(1)* फ़कीर या'नी वोह शख्स कि उस के पास कुछ माल है मगर निसाब की मिक्दार से कम है।

╭┈► *(2)* मिस्कीन या'नी वोह शख्स जिस के पास खाने के लिये गल्ला और पहनने के लिये कपड़ा भी न हो।

╭┈► *(3)* कर्जदार या'नी वोह शख्स कि जिस के ज़िम्मे क़र्ज़ हो और उस के पास कर्ज से फ़ाज़िल कोई माल ब क़दरे निसाब न हो।

╭┈► *(4)* मुसाफ़िर जिस के पास सफ़र की हालत में माल न रहा हो उस को ब क़दरे ज़रूरत ज़कात का माल देना जाइज़ है।

╭┈► *(5)* आमिल या'नी जिस को बादशाहे इस्लाम ने ज़कात व उश्र वुसूल करने के लिये मुकर्रर किया हो।

╭┈► *(6)* मुकातब गुलाम ताकि वोह माल दे कर आज़ाद हो जाए।

╭┈► *(7)* गरीब मुजाहिद ताकि वोह जिहाद का सामान करे।...✍🏻

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         *⇩  ✫  जकात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► *मस्अला :* जकात अदा करने में येह ज़रूरी है कि जिसे दें उस को मालिक बना दें इस लिये अगर ज़कात की रकम से खाना पका कर गरीबों को ब तोरे दा'वत के खिला दिया तो ज़कात अदा न हुई क्यूंकि येह इबाहत हुई तम्लीक नहीं हुई हां अगर खाना पका कर फ़कीरों को खाना दे इस खाने का मालिक बना दे कि वोह चाहें इस को खाएं या किसी को दे दें या बेच डालें तो ज़कात अदा हो गई।

╭┈► *मस्अला :* ज़कात का माल मस्जिद या मद्रसे या मेहमान ख़ाने की इमारत में लगाना या मय्यित के कफ़न व दफ़्न में लगाना या कुंवां बनवा देना या किताबें खरीद कर किसी मद्रसे में वक्फ़ कर देना इस से ज़कात अदा नहीं होगी जब तक किसी ऐसे आदमी को माले ज़कात का मालिक न बना दें जो ज़कात लेने का अहल है उस वक्त तक ज़कात अदा नहीं हो

╭┈► *मस्अला :* फ़कीर ज़कात के माल का मालिक हो जाने के बाद खुद अपनी तरफ़ से अगर मस्जिद व मद्रसे की इमारत में लगा दे या मय्यित के कफ़न व दफ्न में सर्फ कर दे तो जाइज़ है।

╭┈► *काबिले तवज्जोह तम्बीह :* आज कल आम तौर पर दीनी मदारिस में येह चलन है कि अतिय्यात और सदक़ात व खैरात व चर्मे कुरबानी और ज़कात की सब रकमें मुतवल्ली या नाज़िम के पास जम्अ की जाती हैं और नाज़िम व मुतवल्ली इन सब रकमों को मिला कर रखते हैं और इसी रकम में से तलबा का मतबल भी चलाते हैं और मुदर्रिसीन व मुलाज़िमीन की तनख्वाहें भी देते हैं और वाइज़ीन व मुमतहिनीन का नज़राना भी देते हैं और मस्जिद व मद्रसे की इमारत भी बनवाते हैं और अपने मसारिफ़ में भी लाते हैं। याद रखो कि इस तरह न तो ज़कात देने वालों की ज़कात अदा होती है न इन कामों में ज़कात की रकमों को लगाना जाइज़ है और येह मुतवल्लियों और नाज़िमों की बहुत बड़ी खियानत है कि वोह लोगों की ज़कात के मालों को सहीह मसरफ़ में सर्फ़ नहीं करते और गुनहगार होते हैं लिहाज़ा उ-लमाए किराम पर शरअन वाजिब है कि मुतवल्लियों और नाज़िमों को येह मस्अला बता दें कि मदारिस में जितनी रक़में ज़कात की आती हैं पहले इन रकमों का हीलए शरइय्या कर लेना ज़रूरी है ताकि ज़कात देने वालों की ज़कात अदा हो जाए और फिर इन रकमों को मद्रसे की जिस मद में चाहें खर्च कर सकें।...✍🏻

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          *⇩  ✫  जकात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► *मस्अला :* हीलए शरइय्या का तरीका येह है कि ज़कात की रकमों को अलग कर के किसी तालिबे इल्म को जो गरीब हो दे दें और उन रक़मों का उस तालिबे इल्म को मालिक बना दिया जाए और फिर वोह तालिबे इल्म अपनी तरफ से वोह रकम मद्रसे में अपनी खुशी से दे दें इस तरह कर लेने से ज़कात देने वालों की ज़कात अदा हो जाएगी और फिर वोह रकम मद्रसे की हर मद में खर्च की जा सकेगी।

📕 फ़तावा रज़विय्या (अल जदीदा) जिल्द 10 सफ़ह 269

╭┈► *मस्अला :* ज़कात व सदक़ात में अफ़्ज़ल येह है कि पहले अपने भाइयों, बहनों, चचाओं, फूफियों को फिर इन की अवलाद को फिर अपने मामूओं और ख़ालाओं फिर इन की अवलाद को फिर दूसरे रिश्तेदारों को फिर पड़ोसियों को फिर अपने पेशे वालों को फिर अपने शहर और गाऊं वालों को दें और इल्मे दीन हासिल करने वाले तालिबें इल्मों को भी देना अफ़्ज़ल है।...✍🏻

    *📬  जन्नती  जेवर  सफ़ह  -  341 📚*

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        *⇩  ✫  जकात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► *सुवाल किसे हलाल है और किसे नहीं ? :* आज कल येह एक आम बला फैली हुई है कि अच्छे खासे तन्दुरुस्त चाहें तो कमा कर औरों को खिलाएं मगर उन्हों ने अपने वुजूद को बेकार करार दे रखा है। मेहनत मशक्कत से जान चुराते हैं और नाजाइज़ तौर पर भीक मांग कर पेट भरते हैं और बहुत से लोगों ने तो सुवाल करना और भीक मांगना अपना पेशा ही बना रखा है। घर में हज़ारो रूपे हैं ,खेती बाड़ी भी है मगर भीक मांगना नहीं छोड़ते। उन से कहा जाता है तो जवाब देते हैं कि येह तो हमारा पेशा है वाह साहिब वाह ! क्या हम अपना पेशा छोड़ दें। हालांकि ऐसे लोगों को सुवाल करना और भीक मांगना बिल्कुल हराम है।

╭┈► हदीस शरीफ़ में है कि जो शख्स बिगैर हाजत के सुवाल करता है गोया वोह आग का अंगारा खाता है। एक दूसरी हदीष में है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि जो शख्स लोगों से सुवाल करे हालांकि उस को न फ़ाका हुवा है न उस के इतने बाल बच्चे हैं जिन की ताकत नहीं रखता तो कियामत के दिन वोह इस तरह आएगा कि उस के मुंह पर गोश्त न होगा और हुजूर ﷺ ने फ़रमाया जिस पर फ़ाक़ा नहीं गुज़रा और न इतने बाल बच्चे हैं जिन की ताक़त नहीं और सुवाल का दरवाज़ा खोले ,अल्लाह तआला उस पर फ़ाका का दरवाज़ा खोल देगा ऐसी जगह से जो उस के ख़याल में भी नहीं।

╭┈► एक हदीष में येह भी आया है कि जो शख्स माल बढ़ाने के लिये लोगों से सुवाल करता है तो वोह गोया आग का अंगारा तलब करता है। खुलासा येह है कि बिगैर शदीद ज़रूरत के भीक मांगना और लोगों से सुवाल करना जाइज़ नहीं है।...✍🏻

    *📬  जन्नती  जेवर  सफ़ह  -  343  📚*

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          *⇩  ✫  जकात  का  बयान  ✫  ⇩*

╭┈► *सदकए फ़ित्र का बयान, मस्अला :* हर मालिके निसाब पर अपनी तरफ़ से और अपनी नाबालिग अवलाद की तरफ़ से एक एक साअ सदक़ए फ़ित्र देना वाजिब है।

╭┈► *मस्अला :* सदक़ए फ़ित्र की मिक्दार येह है कि गेहूं और गेहूं का आटा आधा साअ और जव या जव का आटा या खजूर एक साअ दें।

╭┈► *मस्अला :* आ'ला दर्जे की तहकीक़ और एहतियात येह है कि साअ का वज़्न चांदी के पुराने रूपे से तीन सो इक्यावन रूपे भर और आधा साअ का वज़्न एक सो पछत्तर रूपे अठन्नी भर ऊपर है।...✍🏻

📓फ़तावा रज़विय्या (अल जदीदा) जिल्द 1 सफह 595

    *📬  जन्नती  जेवर  सफ़ह  -  341 📚*

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        *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो शख्स ईमानदारी और नेक नियती से इस रात क़याम करेगा उसके पिछले तमाम गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे

📕 मुस्लिम जिल्द 1 सफह 524 मिश्कात सफ़ह 173

╭┈► हज़रत अनस रज़ियल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते हैं कि शबे क़द्र में अमल , सदक़ा , नमाज़ और ज़कात हज़ार महीनों से बेहतर है

📙 दुर्रेमन्सूर जिल्द 6 सफह 628

╭┈► उम्मते मुहम्मदिया की यह इम्तियाज़ी अज़मत व फ़ज़ीलत है कि अल्लाह तआला ने इसे बहुत से ऐसी खूबियों और ख़साइस से नवाज़ा जो शरफ़ किसी और उम्मत को हासिल नहीं हुआ उन्हीं ख़साइस में से यह भी है कि अल्लाह तआला ने इस उम्मत को उसके नबी हूजुर ﷺ के सदक़े में लैलतुल क़द्र जैसी मुबारक रात से नवाज़ा जिस में सवाल करने वाले को मांगने से सिवा अता किया जाता है , उम्मीदवारे मग़फ़िरत को परवानए नजात व मग़फ़िरत और तोबह करने वाले को तोबह की कुबूलियत की सनद अता की जाती है

╭┈► हज़रत अनस रज़ियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते हैं रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया बेशक अल्लाह तआला ने शबे क़द्र मेरी उम्मत को ही अता फ़रमाई है अगली उम्मतों में से किसी को यह रात अता नहीं की गई!...✍🏻

  *📬 दुरै मन्सूर जिल्द 6 सफ़ह 371 📚*

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        *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► *फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं :* हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहो तआला अन्हो ने हुजूर अक़दस ﷺ को फ़रमाते सुना कि जब शबे क़द्र आती है तो अल्लाह तआला हज़रत जिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم  को हुक्म देता है , जिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم  फ़रिश्तों की जमाअत के साथ ज़मीन पर उतरते हैं उनके साथ एक सब्ज़ झन्डा होता है उसको वह ख़ानए कअबा की छत पर गाड़ देते हैं और वह अपने 600 छः सौ पर फैला देते हैं जो मश्रिक़ से मग़रिब तक फेल कर निकल जाते हैं उनमें 2 दो पर ऐसे होते हैं जिन्हें हज़रत जिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم  शबे क़द्र के अलावा और रातों में नहीं लहराते

╭┈► जिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم  फ़रिश्तों को हुक्म देते हैं कि उम्मते मुहम्मदिया में फेल जाओ। फ़रिश्ते हर नमाज़ी इबादतगुज़ार और ज़िक्रे इलाही करने वाले को सलाम करते हैं , उनसे मुसाफ़हा करते हैं और दुआ के वक्त उनके साथ आमीन कहते हैं यह सूरते हाल सुबह तक रहती है जब सुबह हो जाती है तो हज़रत जिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم  आवाज़ देते हैं ऐ फ़रिश्तो की जमाअत  वापसी के लिये कूच करो  उस वक्त वह फ़रिश्ते कहते हैं ऐ जिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم अल्लाह ने उम्मते मुहम्मदिया की हाजतों के बारे में क्या कियाजिब्रईल عَلَيْهِمُ السَّلاَم  जवाब देते हैं अल्लाह ने उन पर रहमत की नज़र फ़रमाई , उनको मुआफ़ कर दिया और बख्श दिया सिवाए 4 चार आदमियों के जो यह हैं

╭┈► 1)  शराब पीने वाला

╭┈► 2) वालिदैन की ना फ़रमानी करने वाला

╭┈► 3) रिश्ता तोड़ने वाला और

╭┈► 4) बुग़ज़ व अदावत रखने वाला!..✍🏻

*📬 तम्बीहुल ग़ाफ़ेलीन सफ़ह 184 गुनयतुत तालेबीन 📚*

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        *⇩  ✫ शबे कद्र की फज़ीलत ✫  ⇩*

╭┈► *चौथी शबे क़द्र ::-* 1. सत्ताईस्वीं शब को बारह रकअत नमाज तीन सलाम से पढ़े। हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूरः कद्र एक एक मर्तबा सूर इखलास पंद्रह पंद्रह बार पढ़े बाद सलाम के सत्तर मर्तबा इस्तिगफार पढ़े। अल्लाह तआला इस नमाज़ पढ़ने वाले को नबियों की इबादत का सवाब अता फरमायगाl इंशाअल्लाहु अज़ीम

 ╭┈► 2. सत्ताईसवां शब को दो रकअत नमाज़ पढ़ हर रकअत मे सूर फातेहा के बाद सूर कद्र तीन तीन दफा सूर इखलास पांच पांच मर्तबा पढ़े बाद सलाम के सूर इखलास सत्ताईस मर्तबा पढ़कर गुनाहों की मग्फिरत तलब करे इंशाअल्लाह उसके तमाम पिछले गुनाह अल्लाह पाक माफ फरमायेगा।

╭┈► 3. सत्ताईवीं शब को दो रकअत नमाज़ पढ़े हर रकअत में बाद सूरः फातेहा के सूर अलमनशरह एक एक बार सूर इखलास तीन तीन मर्तबा पढ़े बाद सलाम सत्ताईस मर्तबा सूर कद्र पढ़े।

╭┈► *वज़ायफ़ :* 1. सत्ताईसवीं शबे कद्र को सातों  حٰم पढ़े यह सातो हाम मीम अज़ाबे कब्र से निजात और मग्फिरत गुनाह के लिये अफ़जल हैं।

╭┈► 2. सत्ताईसवीं शब को सूर मुलक सात मर्तबा पढ़ना मग़फिरत गुनाह के लिये बहुत अफ़ज़ल है।...✍️

      *📬 तीन नूरानी रातें सफ़ह - 42 📚*

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        *⇩  ✫  शबे  क़द्र  के  वज़ाइफ़  ✫  ⇩*


❶ ⚘  अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फ़अफु अन्नी, बार बार पढ़ें।

❷ ⚘  ला इलाहा इलल्लाह, खूब कसरत से पढ़ें कि यह अफ़ज़ल ज़िक्र है।

❸ ⚘  कम अज़ कम दस आयतों की तिलावत शबे क़द्र की निय्यत से करें।

❹ ⚘  कुरआने मजीद की तिलावत में मसरूफ़ रहें कि तिलावते कुरआन बहुत ही अहम वज़ीफ़ा और अफ़ज़ल व बा बरकत ज़िक्र।

❺ ⚘  हुज़ूर अलैहिस्सलाम पर अदब व एहतिराम के साथ दुरूद पढ़ें कि यह सआदत और खुशनसीबी की पहचान है। 

❻ ⚘  सुब्हानल्लाहि वबि हम्दिहि सुब्हानल्लाहिल अज़ीम, इसके पढ़ने वाले के लिये जन्नत में पोदा लगा दिया जाता है। 

❼ ⚘  सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इलल्लाहु वल्लाहु अकबर वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलियिल अज़ीम

❽ ⚘  अल्लाहुम्मग़ फ़िर लीवरहम्नी वहदिनिवर जुक़नीवआफ़िनी

❾ ⚘ अस्तग़फ़िरुल्लाहा रब्बियल अज़ीम ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूम मिन कुल्लिज़म्बिंववअतूबुइलैहि लाहौला वला कुव्वताइल्ला बिल्ला हिल अलिरियल अज़ीम, तीन बार।

❶⓿ ⚘  ला इलाहा इलल्लाहु वह दहुला शरी का लहू , लहुल मुल्कुवलहुल हम्दु वहुवाअला कुल्लिशैइन क़दीर, दस बार।

╭┈► फिर हाथों को उठाकर पूरी तवज्जोह के साथ दुआ मांगे अपने लिये वालिदैन के लिये दोस्त व अहबाब भाई बहन अहलो अयाल और तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिये अपनी मुरादें मांगें इन्शाअल्लाह आपकी दुआ कुबूल होगी। इसलिये कि जिन वक़्तों में अल्लाह तआला अपने बन्दों की दुआ कुबूल फ़रमाता है उनमें शबे क़दर भी है। और अल्लाह तआला ने वादा फ़रमाया है जो बन्दा उससे दुआ करेगा उसकी दुआ ज़रूर कुबूल फ़रमाएगा बशर्ते कि बन्दा अपने रब की फ़रमाी बरदारी करे उसका हुक्म माने और उस पर ईमान रखे जैसा कि सूरए बक़रह, आयत नं. 186 में इरशाद हुआ।

*⚠ नोट :* अगर आपके ज़िम्मे फ़र्ज़ नमाजें हैं तो पहले उन्हें अदा करें इनका अदा करना ज़रूरी है।...✍🏻

*📬 माहे रमज़ान आया सफह 37-38 📚*

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     ❝ मोमिन का महीना  📖 इबादतों की घड़ी ❞
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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

*⇩  ✫ शबे कद्र से महरूमी का नुकसान  ✫  ⇩*

╭┈► मेरे प्यारे आकार के प्यारे दीवानो ! जहां शबे कद्र में शब बेदारी और इबादत करने के बेशुमार फवाइद हैं वहीं उसमें सुस्ती बरतने और गफलत का मुज़ाहिरा करने में बेशुमार नुकसानात भी हैं। अगर हम ने लैलतुल कद्र में यानी रमजानुल मुबारक की ताक रातों में कयाम व तिलावत का एहतमाम न किया तो उसका नुकसान भी मुलाहिजा फ़रमाएं कि हदीष शरीफ़ में फ़रमाया गया जो शख्स शबे कद्र से महरूम हो गोया पूरी भलाई से महरूम हो गया और शबे कद्र की खैर से वही महरूम होता है जो कामिल महरूम हो। 

╭┈► हदीष शरीफ से यह वाजेह हो गया कि शबे कुद्र में गफलत नहीं बरतनी चाहिए बल्कि अपने आपको इबादत के लिए खूब तैयार करना चाहिए क्योंकि अल्लाह करीम चंद घंटों की इबादत के एवज़ अपने महबूब के सदक़ा व तुफैल हज़ार महीनों की इबादत से ज़्यादा षवाब अता फरमाता है। कम नसीब है वह शख्स जो चंद घंटे भी अपने रख के हुजूर इबादत के लिए कुरबान करने को तैयार न हो अगली उम्मतों की उमरें ज्यादा होती थीं और वह इबादत व रियाज़त की कसरत करते थे। अल्लाह अज़्ज़वजल ने इस उम्मत पर करम फरमाया कि उनको शबे कद्र अता फरमा दी और एक शबे कद्र की इबादत का दरजा हज़ार महीनों की इबादत से ज्यादा कर दिया। कम वक्त और मेहनत भी कम लेकिन षवाब में लंबी उम्र वालों से भी ज्यादा ! यह इनाम व इकराम सिर्फ रहमते आलम के सदका व तुफैल ही है अगर बंदा इसके बावजूद भी गफलत बरते तो उस पर अफसोस है।

╭┈► लैलतुल कद्र में खूब इबादत व रियाज़त के साथ साथ अपने एहल व अयाल और दोस्त व एहबाब को भी इस पर आमादा करो। इंशाअल्लाह ! लैलतुल कद्र में जागना अपनी किस्मत को जगाने का जरिया बन जाएगा और जो दुआ नबी करीम ﷺ ने तालीम फ़रमाई उस दुआ की कषरत करो यानी सुबहानहू व तआला की बारगाहे बेकस पनाह में अपने गुनाहों से माफी मांगो इसलिए कि आखिरत का मामला बहुत ही कठिन है, इंशाअल्लाह ! शबे कद्र की बरकत से अल्लाह तबारक व तआला आखिरत की सारी परेशानियों को आसान फरमा देगा।...✍🏻

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुजारें सफ़ह - 114 📚*  

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  *⇩  ✫ फ़रिश्ते  क्यों  नाज़िल  होते  हैं  ✫  ⇩*

╭┈► मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! आप यह सोचते होंगे कि आखिर शबे कद्र में फ़रिश्ते क्यों नाजिल होते हैं जब कि फरिश्ते खूद तस्वीह व तकदीस और तहलील के तवंगर हैं कयाम रुकूअ और सुजूद सारी इबादात से सरशार हैं फिर इंसानों की वह कौन सी इबादत है जिसे देखने के शोक में वह इंसानों से मुलाकात की तमन्ना करते हैं और अल्लाह तआला से इजाजत तलब करके ज़मीन पर नाज़िल होते हैं आइए इस सिलसिले में चंद बातें मुलाहिजा करते हैं ताकि उस रात इबादत करने का जज्बा पैदा हो।

╭┈► महद्दिसीने किराम ने उसकी वजह बयान की है कि कोई शख्स खूद भूका रह कर अपना खाना किसी और जरूरतमंद को खिला दे यह वह नादिर इबादत है जो फरिश्तों में नहीं होती गुनाहों पर तौबा और नदामत के आंसू बहाना और गिड़गिड़ाना, अल्लाह से माफी चाहना, अपनी तबई नींद छोड़ कर अल्लाह की याद के लिए रात के पिछले पहर उठना और खौफे ख़ुदा से हिचकियाँ ले ले कर रोना यह वह इबादतें हैं जिनका फ़रिश्तों के यहां कोई तसव्वुर नहीं क्यों कि न वह खाते हैं न पीते हैं न गुनाह करते हैं, न सोते हैं।

╭┈► हदीषे कुदसी में है कि अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है गुनाहगारों की सिसकियों और हिचकियों की आवाज़ मुझे तस्वीह व तहलील की आवाजों से ज़्यादा पसंद है इसलिए फ़रिश्ते यादे खुदा में आंसू बहाने वाली आंखों को देखने और खौफे खुदा से निकलने वाली आहों को सुनने के लिये ज़मीन पर उतरते हैं।इमाम राजी ने उसकी वजह यह बयान फरमाई कि इंसान से इबादत की आदत है कि वह उलमा और सालेहीन के सामने ज़्यादा अच्छी और ज़्यादा खुशूअ व खजूअ से इबादत करता है, अल्लाह तआला उस रात फरिश्तों को भेजता है कि ए इंसानों! तुम इबादत गुजारों की मजलिस में ज़्यादा इबादत करते हो, आओ! अब मलाईका की मजलिसों में खुजूअ और खुशू करो।

╭┈► फ़रिश्तों के नजूल की एक वजह यह भी हो सकती है कि इंसान की पैदाइश के वक्त फरिश्तों ने इस्तिफसार किया था कि उस पैदा करने में क्या हिकमत है जो जमीन में फिस्क व फुजूर और खूरज़ी करेगा? लिहाजा इस रात अल्लाह तआला ने अपने बंदों से उनकी उम्मीदों से बढ़ कर अज व षवाब का वादा किया उस रात के इबादत गुज़ारों को ज़बाने रिसालत से मगफिरत की नवेद सुनाई, फ़रिश्तों की आमद और उनकी जियारत और सलाम करने की बशारत दी ताकि उसके लिए यह रात जाग कर गुजारे, थकावट और नींद के बावजूद अपने आप को बिस्तर और आराम से दूर रखें ताकि जब फ़रिश्ते आसमान से उतरें तो उनसे कहा जा सके, यही वह इब्ने आदम हैं जिनकी खूरेज़ियों की तुम ने खबर दी थी यही वह शरर खाकी है जिसके फिस्क व फुजूर का तुमने जिक्र किया था, उसकी तबीअत और खिल्कत में हम ने रात की नींद रखी है, यह अपने तबई और खल्की तकाज़ों को छोड़ कर हमारी रजा जोई के लिए रात सज्दों और कयाम में गुज़ार रहा है।...✍🏻

*📬 माहे रमज़ान कैसे बुज़ारें सफ़ह 110 - 111 📚*

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        *⇩  ✫ जकात के मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *1)* तक्मीले ईमान का ज़रीआ ज़कात देना तक्मीले ईमान का ज़रीआ है जैसा कि रसुलल्लाह  ﷺ ने इर्शाद फरमाया तुम्हारे इस्लाम का पूरा होना येह है कि तुम अपने मालों की ज़कात अदा करो

╭┈► एक मकाम पर इर्शाद फरमाया जो अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान रखता हो उसे लाज़िम है कि अपने माल की ज़कात अदा

╭┈► *2)* *रहमते इलाही की बरसात :* जकात देने वाले पर रहमते इलाही की छमाछम बरसात होती है सूरतुल आ'राफ़ में है :

*तरजमए कन्जुल ईमान :* और मेरी रहमत हर चीज़ को घेरे है तो अन्करीब मैं नेमतों को उन के लिये लिख दूंगा जो डरते और जकात देते हैं

╭┈► *3) तक्वा व परहेज़ गारी का हुसूल :* जकात देने से तक्वा हासिल होता है कुरआने पाक में मुत्तकीन की अलामात में से एक अलामत येह भी बयान की गई है लेकिन इर्शाद होता है :

*तरजमए कन्जुल ईमान :* और हमारी दी हुई रोज़ी में से हमारी राह में उठाएं

╭┈► *4) काम्याबी का रास्ता :* जकात देने वाला काम्याब लोगों की फेहरिस्त में शामिल हो जाता है। जैसा कि कुरआने पाक में फलाह को पहुंचने वालों का एक काम जकात भी गिनवाया गया है चुनान्चे इर्शाद होता है

*तरजमए कन्जुल ईमान :* बेशक मुराद को पहुंचे ईमान वाले जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं और वोह जो किसी बेहूदा बात की तरफ़ इल्तिफ़ात नहीं। करते और वोह कि ज़कात देने का काम करते हैं!...✍🏻 

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *5) नुसते इलाही का मुस्तहिक :* अल्लाह तआला ज़कात अदा करने वाले की मदद फ़रमाता है  चुनान्चे इर्शाद होता है

*तरजमए कन्जुल ईमान :* और बेशक अल्लाह ज़रूर मदद फ़रमाएगा उस की है  जो उस के दीन की मदद करेगा बेशक जरूर अल्लाह कुदरत वाला गालिब है ,वोह लोग कि अगर हम उन्हें जमीन में काबू दें तो नमाज़ बरपा रखें और ज़कात दें और भलाई का हुक्म करें और बुराई से रोकें और अल्लाह ही के लिये सब कामों का अन्जाम

╭┈► *6) अच्छे लोगों में शुमार होने वाला :* ज़कात अदा करना अल्लाह के घरों यानी मसाजिद को आबाद करने वालों की सिफ़ात में से है चुनान्चे इर्शाद होता है :

*तरजमए कन्जुल ईमान :* अल्लाह की मस्जिदें वोही आबाद करते हैं जो अल्लाह और कियामत पर ईमान लाते और नमाज काइम करते हैं और ज़कात देते हैं और काम कर अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते तो करीब है कि येह लोग हिदायत वालों में हों

╭┈► *7) मुसलमान भाइयों के दिल में खुशी दाखिल करने का सवाब :* ज़कात की अदाएगी से गरीब मुसलमान भाइयों की ज़रूरत पूरी हो जाती है और उन के दिल में खुशी दाखिल होती है!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह 7 - 8  📚*

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *8) मुसलमान भाईचारे का बेहतरीन इज़्हार :* जकात देने का अमल उखुव्वते मुसलमान की बेहतरीन ताबीर है कि एक गनी मुसल्मान अपने गरीब मुसलमान भाई को ज़कात दे कर मुआशरे में सर उठा कर जीने का हौसला मुहय्या करता है। नीज़ गरीब मुसलमान भाई का दिल कीना व हसद की शिकार गाह बनने से महफूज़ रहता है क्यूं कि वोह जानता है कि उस के गनी मुसलमान भाई के माल में उस का भी हक है लेकिन वोह अपने भाई के जान माल और औलाद में बरकत के लिये दुआ गो रहता है रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया बेशक मोमिन के लिये मोमिन मिस्ल इमारत के है बाज़ बाज़ को तक्वियत पहुंचाता है।

╭┈► *9) रसूलल्लाह ﷺ का मिस्दाक :* ज़कात मुसल्मानों के दरमियान भाईचारा मजबूत बनाने में बहुत अहम किरदार अदा करती है जिस से मुसलमान मुआशरे में इज्तिमाइय्यत को फरोग मिलता है और इम्दादे बाहमी की बुन्याद पर मुसल्मान रसूलल्लाह ﷺ के इस फ़रमाने अज़ीम का मिस्दाक बन जाते हैं मुसल्मानों की आपस में दोस्ती और रहमत और शफ़्क़त की मिसाल जिस्म की तरह है , जब जिस्म का कोई उज्व बीमार होता है तो बुख़ार और बे ख़्वाबी में सारा जिस्म उस का शरीक होता है!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  8 - 9  📚*

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *10) माल पाक हो जाता है :* ज़कात देने से माल पाक हो जाता है जैसा कि हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिक  رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया अपने माल की ज़कात निकाल कि वोह पाक करने वाली है तुझे पाक कर देगी

╭┈► *11) बुरी सिफ़ात से छुटकारा :* ज़कात देने से लालच व बुख़्ल जैसी बुरी सिफ़ात से अगर दिल में हों तो  छुटकारा पाने में मदद मिलती है और सखावत व बख्शिश का महबूब वस्फ मिल जाता है

╭┈► *12) माल में बरकत :* ज़कात देने वाले का माल कम नहीं होता बल्कि दुन्या व आख़िरत में बढ़ता है अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है *तरजमए कन्जुल ईमान :* और जो चीज़ तुम अल्लाह की राह में खर्च करो वोह उस के बदले और देगा और वोह सब से बेहतर रिज्क देने वाला

📔 पारा 22 सबा आयत 39

╭┈► एक मकाम पर इर्शाद होता है *तरजमए कन्जुल ईमान :* उन की कहावत जो अपने माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं उस दाने की तरह जिस ने उगाई 7 सात बालें हर बाल में 100 सो दाने और अल्लाह इस से भी ज़ियादा बढ़ाए  जिस के लिये चाहे और अल्लाह वुस्त वाला इल्म वाला है वोह जो अपने माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं फिर दिये पीछे न एहसान रखें न तक्लीफ़ दें उन का नेग (इन्आम) उन के रब के पास है और उन्हें न कुछ अन्देशा हो न कुछ गम!...✍🏻

📔 पारा 3 सूरह अल बक़रह आयत 261-261

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  9 - 10 📚*  

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► 12) पस ज़कात देने वाले को येह यकीन रखते हुए खुशदिली से जकात देनी चाहिये कि अल्लाह तआला उस को बेहतर बदला अता फ़रमाएगा अल्लाह के महबूब ,ﷺ का फ़रमाने अज़मत निशान है सदके से माल कम नहीं होता अगर्चे ज़ाहिरी तौर पर माल कम होता लेकिन हकीकत में बढ़ रहा होता है जैसे दरख्त से ख़राब होने वाली शाखों को उतारने में बज़ाहिर दरख्त में कमी नज़र आ रही है लेकिन येह उतारना उस की नश्वो नुमा का सबब है

╭┈► मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान अलैरहमा फ़रमाते हैं ज़कात देने वाले की ज़कात हर साल बढ़ती ही रहती है। येह तजरिबा है जो किसान खेत में बीज फेंक आता है वोह ब जाहिर बोरियां ख़ाली कर लेता है लेकिन हकीकत में मअइज़ाफे के भर लेता है घर की बोरियां चूहे , सुरसुरी वगैरा की आफ़त से हलाक हो जाती हैं या येह मतलब है कि जिस माल में से सदका निकलता रहे उस में से खर्च करते रहो, इन्शा अल्लाह बढ़ता ही रहेगा कूएं का पानी भरे जाओ, तो बढ़े ही जाएगा

📙 मिरआतुल मनाजीह शर्ते मिश्कातुल मसाबीह जिल्द 3 सफ़ह 93

╭┈► *13) शर से हिफाज़त :* ज़कात देने वाला शर से महफूज़ हो जाता है जैसा कि अल्लाह पाक के महबूब , ﷺ का फरमाने अजमत निशान है जिस ने अपने माल की ज़कात अदा कर दी बेशक अल्लाह तआला ने उस से शर को दूर कर दिया!...✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  11 - 12 📚*

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈►  *14) हिफाज़ते माल का सबब :* ज़कात देना हिफाजते माल का सबब है जैसा कि रसुलल्लाह, ﷺ ने फ़रमाया अपने मालों को ज़कात दे कर मज्बूत कल्ओं में कर लो और अपने बीमारों का इलाज खैरात से करो

╭┈►  *15) हाजत रवाई :* अल्लाह तआला ज़कात देने वालों की हाजत रवाई फ़रमाएगा  जैसा कि रसुलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो किसी बन्दे की हाजत रवाई करे अल्लाह तआला दीन व दुन्या में उस की हाजत रवाई करेगा एक और मकाम पर इर्शाद फरमाया जो किसी मुसल्मान को दुन्यावी तक्लीफ़ से रिहाई दे तो अल्लाह तआला उस से कियामत के दिन की मुसीबत दूर फ़रमाएगा

╭┈►  *16) दुआएं मिलती हैं* गरीबों की दुआएं मिलती हैं जिस से रहमते खुदावन्दी और मददे इलाही हासिल होती है जैसा कि रसुलल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया तुम को अल्लाह तआला की मदद और रिज्क ज़ईफों की बरकत और उन की दुआओं के सबब पहुंचता है!..✍🏻

     *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह  -  12  📚*  

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        *⇩  ✫  ज़कात  के  मसाइल  ✫  ⇩*

╭┈► *माले हराम पर ज़कात :* जिस का कुल माल हराम हो उस पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी क्यूं कि वह उस माल का मालिक ही नहीं है दुर्रे मुख़्तार में है अगर कुल माल हराम हो तो उस पर ज़कात नहीं है

╭┈► आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैरहमा फ़रमाते हैं चालीस्वां हिस्सा देने से वोह माल क्या पाक हो सकता है जिस के बाकी उन्तालीस हिस्से भी नापाक हैं

📙 फ़तावा रज़विय्या जिल्द 19 सफ़ह 656

╭┈► ऐसे शख्स पर लाज़िम है कि तौबा करे और माले हराम से नजात हासिल करे

╭┈► *माले नामी का मतलब :* माले नामी के माना हैं बढ़ने वाला माल ख्वाह हकीकतन बढ़े या हुक्मन इस की 3 सूरतें हैं :

╭┈►  1) येह बढ़ना तिजारत से होगा , या

╭┈►  2) अफ्जाइशे नस्ल के लिये जानवरों को जंगल में छोड देने से होगा, या

╭┈►  3) वोह माल खल्की यानी पैदाइशी तौर पर नामी होगा। जैसे सोना चांदी वगैरा!...✍🏻

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *साल कब मुकम्मल होगा ? :* जिस तारीख और वक़्त पर आदमी साहिबे निसाब हुवा जब तक निसाब रहे वोही तारीख़ और वक़्त जब आएगा उसी मिनट साल मुकम्मल होगा

📙 माखूज़ अज़ फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 202

╭┈► *मसलन :* जैद के पास माहे रबीउन्नूर शरीफ की 12 तारीख यानी ईदे मीलादुन्नबी को दिन के बारह बजे साढ़े सात तोला सोना या साड़े बावन तोले चांदी या उस की कीमत के बराबर रकम हासिल हुई या माले तिजारत हासिल हुवा तो साल गुजरने के बाद ईदे मीलादुन्नबी (12 रबीउल अव्वल) को दिन के 12 बजे अगर वोह निसाब का ब दस्तूर मालिक हुवा तो उस माल की ज़कात की अदाएगी उस पर फर्ज होगी अगर अब बिला उजे शरई अदाएगी में ताख़ीर करेगा तो गुनाहगार होगा क़मरी महीनों का एतिबार होगा या शम्सी का साल गुज़रने में कमरी यानी चांद के महीनों का एतिबार होगा शम्सी महीनों का एतिबार हराम है!...✍🏻

*📬 माखूज़ अज़ फ़तावा रज़विय्या मुखीजा जिल्द 10 सफ़ह 157 📚*

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *एक ही जिन्स के मुख्तलिफ़ अम्वाल और ज़कात का हिसाब :* अगर मुख़्तलिफ़ माल हों और कोई भी निसाब को न पहुंचता हो तो तमाम माल मसलन सोना चांदी या माले तिजारत या करन्सी को मिला कर उस की कुल मालिय्यत निकाली जाएगी और उस की ज़कात का हिसाब उस निसाब से लगाया जाएगा जिस में फुकरा का ज़ियादा फाएदा हो मसलन अगर तमाम माल को चांदी शुमार कर के ज़कात निकालने में ज़कात ज़ियादा बनती है तो येही किया जाए और अगर सोना शुमार करने में ज़कात ज़ियादा बनती है तो इसी तरह किया जाएगा और अगर दोनों सूरतों में यक्सां बनती है तो उस से हिसाब लगाएंगे जिस से जकात की अदाएगी का रवाज जियादा हो , फिर अगर रवाज यक्सां हो तो जकात देने वाले को इख़्तियार है कि चाहे तो सोने के हिसाब से ज़कात दे या चांदी के हिसाब से

╭┈► *फ़्तावा शामी में है :* निसाब को पहुंचाने वाली कीमत ज़म के लिये  मुतअय्यन होगी दूसरे की नहीं और अगर दोनों से निसाब पूरा होता हो जब कि एक का ज़ियादा रवाज हो तो जो ज़ियादा राइज हो उसी के हिसाब से कीमत लगाई जाएगी!...✍🏻  

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *ज़कात में सोने चांदी की कीमत देना :* ज़कात में सोने या चांदी की जगह उन की कीमत दे देना जाइज़ है दुर्रे मुख्तार में है ज़कात में कीमत दे देना भी जाइज़ है।

╭┈► *कीमत की तारीफ :* शरअन कीमत उस को कहते हैं जो उस चीज़ का बाजार में भाव हो इत्तिफ़ाकी तौर पर या भाव ताव करने के बाद कमी या ज़ियादती के साथ कोई चीज़ ख़रीद ली जाए तो उस को कीमत नहीं कहेंगे बल्कि समन कहेंगे। 

📙 फतावा अम्जदिय्या जिल्द 1 सफ़ह 382

╭┈► *किस भाव का एतिबार होगा :* जिस मकाम पर अश्या वाकेई हुकूमती रेट के मुताबिक़ फ़रोख्त होती हों वहां उसी रेट का एतिबार होगा और अगर हुकूमती रेट और ही बाज़ार के भाव में फर्क हो तो बाज़ार के भाव का एतिबार होगा।

📗 फ़तावा अम्जदिय्या जिल्द 1सफ़ह 386, मुलख्वसन

╭┈► *पहनने वाले जेवरात की ज़कात :* पहनने के जेवरात पर भी ज़कात फ़र्ज़ होगी। सोने चांदी के जेवरात और बरतनों की ज़कात अगर सोने चांदी के जेवरात या बरतनों वगैरा की ज़कात रूपौं में दें तो अस्ल सोने या चांदी की कीमत लेंगे।...✍🏻

*📬 फतावा अम्जदिय्या जिल्द 1सफ़ह 378 📚*

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

   *⇩ माले  तिजारत  और  उस  की  ज़कात  ⇩*

╭┈► *माले तिजारत किसे कहते हैं ? :* माले तिजारत उस माल को कहते हैं जिसे बेचने की निय्यत से खरीदा गया है और अगर खरीदने या मीरास में मिलने के बाद तिजारत की निय्यत की तो अब वोह माले तिजारत नहीं कहलाएगा। *मसलन* जैद ने मोटर साइकल इस निय्यत से खरीदी कि उसे बेच दूंगा और नफ्अ कमाऊंगा तो येह माले तिजारत है और अगर अपने इस्तिमाल के लिये ख़रीदी थी , उस वक्त बेचने की निय्यत नहीं थी सिर्फ इस्तिमाल की थी मगर ख़रीदने के बाद निय्यत कर ली कि अच्छे दाम मिलेंगे तो बेच दूंगा या पुख्ता निय्यत ही कर ली कि अब इस को बेच डालना है तब भी ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी क्यूं कि ख़रीदते वक्त की निय्यत पर ज़कात के अहकाम मुरत्तब होंगे

╭┈► *विरासत में छोड़ा हुवा माले तिजारत :* अगर किसी ने विरासत में माले तिजारत छोड़ा तो अगर उस के मरने के बाद वारिसों ने तिजारत की निय्यत कर ली तो ज़कात वाजिब है

📙 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5 यस्अला 36 सफ़ह 883

╭┈► *माले तिजारत का निसाब :* माले तिजारत की कोई भी चीज़ हो जिस की कीमत सोने या चांदी के निसाब (यानी साढ़े सात तोले सोने या साढ़े बावन तोले चांदी की कीमत) को पहुंचे तो उस पर भी ज़कात वाजिब है!...✍🏻

*📬 बहारे शरीअत जिल्द 1, मस्अला 4 हिस्सा 5 सफ़ह 903 📚*  

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *माले तिजारत की ज़कात :* कीमत का चालीसवां हिस्सा (यानी 2.5 %) ज़कात के तौर पर देना होगा

╭┈► *माले तिजारत के नफ़्अ पर ज़कात :* ज़कात माले तिजारत पर फ़र्ज़ होगी न सिर्फ नफ्अ पर बल्कि साल मुकम्मल होने पर नफ्अ की मौजूदा मिक्दार और माले तिजारत दोनों पर ज़कात है

📙 फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा किताबुज्जकात जिल्द 10 सफ़ह 158

╭┈► *माले तिजारत की ज़कात का हिसाब :* माले तिजारत की ज़कात देने के लिये उस की कीमत लगवा ली जाए फिर उस का चालीसवां हिस्सा ज़कात दे दी जाए

📗 माखूजन अज़ फतावा अम्जदिय्या जिल्द 1 सफ़ह 378

╭┈► *कीमत वक्ते ख़रीदारी की या साल तमाम होने की :* माले तिजारत में साल गुज़रने पर जो कीमत होगी उस का एतिबार है

📕 बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 5 ,मस्अला 16 सफ़ह 907

╭┈► *होलसेल कारोबार करने वाले के लिये ज़कात अदा करने का तरीका :* होलसेल का कारोबार करने वाला शख्स जिस दिन जिस वक्त मालिके निसाब हुवा था दीगर शराइत पाए जाने और साल गुज़रने पर जब वोह दिन वोह वक़्त आए तो जितना माल मौजूद है हिसाब लगा कर उस की फौरन ज़कात अदा करे और जो उधार में गया हुवा है उस का हिसाब अपने पास महफूज़ कर ले और जब उस में से मिक्दारे निसाब का पांचवां हिस्सा वुसूल हो तो उस वुसूल शुदा हिस्से की ज़कात की अदाएगी करे उसी हिसाब से जितना माल मिलता जाए उतने हिस्से की ज़कात अदा करता जाए। लेकिन आसानी इसी में है कि उधार में गए हुए माल की ज़कात भी अभी अदा कर दे ताकि बार बार हिसाब से नजात मिले!..✍🏻

*📬 फतावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 133 📚*

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         *⇩  ✫ ज़कात  के  मसाइल ✫  ⇩*

╭┈► *किस को ज़कात देना अफ़ज़ल है :* अगर बहन भाई गरीब हों तो पहले उन का हक है फिर उन की औलाद का फिर चचा और फूफियों का, फिर उन की औलाद का, फिर मामूओं और ख़ालाओं का, फिर उन की औलाद का, फिर ज़विल अरहाम (वोह रिश्तेदार जो मां, बहन, बीवी या लड़कियों की तरफ से मन्सूब हों) का फिर पड़ोसियों का फिर अपने अहले पेशा का फिर अहले शहर का (यानी जहां उस का माल हो)

╭┈► *ज़कात की अदाएगी :* ज़कात की अदाएगी की शराइत जकात की अदाएगी दुरुस्त होने की 2 शराइत हैं

╭┈► 1) निय्यत और

╭┈► 2) मुस्तहिके ज़कात को उस का मालिक बना देना अल अश्बाह वन्नज़ाइर में है

╭┈► ज़कात की अदाएगी निय्यत के बिगैर दुरुस्त नहीं है निय्यत के येह माना हैं कि अगर पूछा जाए तो बिला तअम्मुल बता सके कि जकात है

╭┈► *जकात देते वक्त निय्यत करना भूल गया तो :* अगर ज़कात में वोह माल दिया जो पहले ही से ज़कात की निय्यत से अलग कर रखा था तो ज़कात अदा हो गई अगर्चे देते वक्त ज़कात का खयाल न आया हो और अगर ऐसा नहीं है तो जब तक मोहताज के पास मौजूद है देने वाला निय्यते ज़कात कर सकता है , और अगर उस के पास भी नहीं है तो अब निय्यत नहीं कर सकता दिया गया माल सदकए नफ़्ल होगा!...✍🏻

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           *⇩  ✫   स-द-कए   फ़ित्र   ✫  ⇩*

╭┈► *स-द-कए फ़ित्र :* बादे रमज़ान नमाजे ईद की अदाएगी से कब्ल दिया जाने वाला स-द-कए वाजिबा स-द-कए फ़ित्र कहलाता है खलीले मिल्लत हज़रत अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद खलील खान बरकाती अलैरहमा फ़रमाते हैं स-द-कए फ़ित्र दर अस्ल रमजानुल मुबारक के रोज़ों का स-दका है ताकि लग्व और बेहूदा कामों से रोजे की तहारत हो जाए और साथ ही गरीबों नादारों की ईद का सामान भी और रोज़ों से हासिल होने वाली ने'मतों का शुक्रिया भी

📙 हमारा इस्लाम हिस्सा 7 सफ़ह 87

*⇩ सदकए फ़ित्र की फ़ज़ीलत की 4 रिवायात ⇩*

╭┈► 1️⃣ रसूलल्लाह ﷺ से इस आयते करीमा के बारे में सुवाल किया गया
*तरजम ए कन्जुल ईमान :* बेशक मुराद को पहुंचा जो सुथरा हुवा और अपने रब का नाम ले कर नमाज़ पढ़ी

रसूलल्लाह  ﷺ ने फ़रमाया येह आयत स-द-कए फ़ित्र के बारे में नाज़िल हुई

╭┈► 2️⃣ रसूलल्लाह ﷺ का फ़रमाने बरकत निशान है जो तुम्हारे मालदार हैं अल्लाह तआला (सद कए फ़ित्र देने की वजह से) उन्हें पाक फ़रमा देगा और जो तुम्हारे गरीब हैं तो अल्लाह उन्हें इस से भी ज़ियादा देगा

╭┈► 3️⃣ हज़रते इब्ने उमर  رضی اللہ تعالی عنہ फ़रमाते हैं कि सदकए फ़ित्र अदा करने में 3 तीन फ़ज़ीलतें हैं, 1. पहली रोजे का क़बूल होना, 2. दूसरी सक्राते मौत में आसानी और, 3. तीसरी अज़ाबे कब्र से नजात

╭┈► 4️⃣ हज़रते सय्यिदुना अबू खलदह رضی اللہ تعالی عنہ कहते हैं कि मैं हज़रते सय्यिदुना अबुल आलिया رضی اللہ تعالی عنہ की ख़िदमत में हाज़िर हुवा  उन्हों ने फ़रमाया कि कल जब तुम ईदगाह जाओ तो से मिलते जाना जब मैं गया तो मुझ से फ़रमाया क्या तुम ने कुछ खाया मैं ने कहा हां फ़रमाया क्या तुम नहा चुके हो मैं ने कहा हां फ़रमाया स-द-कए फ़ित्र अदा कर चुके हो मैं ने कहा हां स-द-कए फ़ित्र अदा कर दिया है फ़रमाने लगे : मैं ने तुम्हें इसी लिये बुलाया था फिर आप ने येह आयते करीमा *قَدْاَفْلَحَ مَنْتَزَکّٰی()وَذَکَرَاسْمَ رَبِِّهٖ فَصَلّٰی()* तिलावत की " अहले मदीना स-द-कए फ़ित्र और पानी पिलाने से अफ़्ज़ल कोई सदक़ा नहीं जानते थे

╭┈► *स-द-कए फ़ित्र कब मश्रूअ हुवा ?* 2 सि.हि. में रमज़ान के रोजे फ़र्ज़ हुए और उसी साल ईद से दो दिन पहले स-द-कए फ़ित्र का हुक्म दिया गया!...✍🏻

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           *⇩  ✫  स-दकए  फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈► *स-दकए फ़ित्र की अदाएगी की हिक्मत :* हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है रसूलल्लाह ﷺ ने रोज़ों को लग्व और बे हयाई की बात से पाक करने के लिये और मिस्कीनों को खिलाने के लिये सदकए फ़ित्र मुकर्रर फ़रमाया

╭┈► हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी अलैरहमा इस हदीस के तहत फ़रमाते हैं या'नी फ़ित्रा वाजिब करने में 2 हिक्मतें हैं, 1. एक तो रोज़ादार के रोज़ों की कोताहियों की मुआफ़ी अक्सर रोजे में गुस्सा बढ़ जाता है तो बिला वजह लड़ पड़ता है, कभी झूट गीबत वगैरा भी हो जाते हैं, रब तआला इस फित्रे की बरकत से वोह कोताहियां मुआफ़ कर देगा कि नेकियों से गुनाह मुआफ़ होते हैं दूसरे मसाकीन की रोज़ी का इन्तिज़ाम

📙 मिरआतुल मनाजीह जिल्द 3 सफ़ह 43

╭┈► *स-दकए फ़ित्र का शरई हुक्म :* सदकए फ़ित्र देना वाजिब सहीह बुखारी में अब्दुल्लाह बिन उमर رضی اللہ تعالی عنہ रिवायत करते हैं रसूलुल्लाह ﷺ ने मुसल्मानों पर स-दकए फ़ित्र मुकर्रर किया

╭┈► *स-दकए फ़ित्र किस पर वाजिब है ?* स-दकए फ़ित्र हर उस आज़ाद मुसल्मान पर वाजिब है जो मालिके निसाब हो और उस का निसाब हाजते अस्लिया से फ़ारिग हो!...✍🏻

    *📬 फ़ैज़ाने  ज़कात  सफ़ह - 113 📚*

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             *⇩  ✫   स-दकए  फ़ित्र   ✫  ⇩*

╭┈► मालिके निसाब मर्द अपनी तरफ़ से अपने छोटे बच्चों की तरफ़ से और अगर कोई मजनून (या'नी पागल औलाद है चाहे फिर वोह पागल औलाद बालिग ही क्यूं न हो तो उस की तरफ़ से भी स-द-कए फ़ित्र अदा करे हां अगर वोह बच्चा या मजनून खुद साहिबे निसाब है तो फिर उस के माल में से फ़ित्रा अदा कर दे

╭┈► *वुजूब का वक़्त :* ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब होता है लिहाज़ा जो शख्स सुब्ह होने से पहले मर गया या गनी था फ़कीर हो गया या सुब्ह तुलूअ होने के बाद काफ़िर मुसल्मान हुवा या बच्चा पैदा हुवा या फ़क़ीर था गनी हो गया तो वाजिब न हुवा और अगर सुब्ह तुलूअ होने के बाद मरा या सुब्ह तुलूअ होने से पहले काफ़िर मुसल्मान हुवा या बच्चा पैदा हुवा या फ़कीर था गनी हो गया तो वाजिब है

╭┈► *ज़कात और स-द-कए फ़ित्र में फर्क :* ज़कात में साल का गुज़रना आक़िल बालिग और निसाबे नामी (या'नी उस में बढ़ने की सलाहिय्यत) होना शर्त है जब कि स-द-कए फ़ित्र में येह शराइत नहीं हैं। चुनान्चे अगर घर में जाइद सामान हो तो माले नामी न होने के बा वुजूद अगर उस की कीमत निसाब को पहुंचती है तो उस के मालिक पर स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाएगा ज़कात और स-द-कए फ़ित्र के निसाब में फ़र्क कैफ़िय्यत के ए'तिबार से है

╭┈► *फित्रे की अदाएगी की शराइत :* स-द-कए फ़ित्र में भी निय्यत करना और मुसल्मान फ़क़ीर को माल का मालिक कर देना शर्त है

╭┈► *ना बालिग पर स-द-कए फ़ित्र :* ना बालिग अगर साहिबे निसाब हो तो उस पर भी स-द-कए फ़ित्र वाजिब है। उस का वली उस के माल से फ़ित्रा अदा करे

╭┈► *मां के पेट में मौजूद बच्चे का फ़ित्रा :* जो बच्चा मां के पेट में हो उस की तरफ़ स-द-कए फ़ित्र अदा करना वाजिब नहीं

╭┈► *छोटे भाई का फ़ित्रा :* अगर बड़ा भाई अपने छोटे गरीब भाई की परवरिश करता हो तो उस का स-द-कए फ़ित्र मालदार बाप पर वाजिब है न कि बड़े भाई पर फ़तावा आलमगीरी में है छोटे भाई की तरफ़ से सदका वाजिब नहीं अगर्चे वोह उस की इयाल में शामिल हो!..✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  ज़कात  सफह 114 -115 📚*

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             *⇩  ✫  स-दकए  फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈►  *अगर किसी का फ़ित्रा न दिया गया हो तो ?* ना बालिगी की हालत में बाप ने बच्चे का स-द-कए फ़ित्र अदा न किया तो अगर वोह बच्चा मालिके निसाब था और बाप ने अदा न किया तो बालिग होने पर खुद अदा करे और अगर वोह बच्चा मालिके निसाब न था तो बालिग होने पर उस के ज़िम्मे अदा करना वाजिब नहीं

╭┈►  *बाप ने अगर रोज़े न रखे हों :* बाप जब मालिके निसाब हो अगर्चे उस ने रमज़ान के रोजे न रखे हों तो स-द-कए फ़ित्र ना बालिग बच्चों का उसी पर वाजिब है न कि उन की मां पर

╭┈►  *मां पर बच्चों का फ़ित्रा वाजिब नहीं :* अगर बाप न हो तो मां पर अपने छोटे बच्चों की तरफ़ से स-द-कए फ़ित्र देना वाजिब नहीं

╭┈►  *यतीम बच्चों का फ़ित्रा :* बाप न हो तो उस की जगह दादा पर अपने गरीब यतीम पोते, पोती की तरफ़ से स-द-कए फ़ित्र देना वाजिब है जब कि येह बच्चे मालदार न हों

╭┈►  *गरीब बाप के बच्चों का फित्रा :* बाप गरीब हो तो उस की जगह मालिके निसाब दादा पर अपने गरीब पोते पोती की तरफ़ स-द-कए फ़ित्र देना वाजिब है जब कि बच्चे मालदार न हों!..✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  ज़कात  सफह -  116 📚*

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           *⇩  ✫   स-दकए   फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈► *शबे ईद बच्चा पैदा हुवा तो :* शबे ईद बच्चा पैदा हुवा तो उस का भी फ़ित्रा देना होगा क्यूं कि ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाता है और अगर बाद में पैदा हुवा तो वाजिब नहीं

╭┈► *शबे ईद मुसल्मान होने वाले का फित्रा :* ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाता है, लिहाज़ा अगर इस वक्त से पहले कोई मुसल्मान हुवा तो उस पर फ़ित्रा देना वाजिब है और अगर बाद में मुसल्मान हुवा तो वाजिब नहीं

╭┈► *माल जाएअ हो जाए तो :* अगर स-द-कए फ़ित्र वाजिब होने के बाद माल हलाक हो जाए तो फिर भी देना होगा क्यूं कि ज़कात व उश्र के बर ख़िलाफ़ स-द-कए फ़ित्र अदा करने के लिये माल का बाकी रहना शर्त नहीं

╭┈► *फ़ौत शुदा शख्स का फ़ित्रा :* अगर किसी शख्स ने वसिय्यत न की और माल छोड़ कर मर गया तो वुरसा पर उस मय्यित के माल से फ़ित्रा अदा करना वाजिब नहीं क्यूं कि स-द-कए फ़ित्र शख्स पर वाजिब है माल पर नहीं, हां अगर वुरसा बतौरे एहसान अपनी तरफ से अदा करें तो हो सकता है कुछ उन पर जब्र नहीं!...✍🏻

  *📬  फ़ैज़ाने  ज़कात  सफह -  118 📚*

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             *⇩  ✫   स-दकए  फ़ित्र   ✫  ⇩*

╭┈► *मेहमानों का फित्रा :* ईद पर आने वाले मेहमानों का स-द-कए फ़ित्र मेज़बान अदा नहीं करेगा अगर मेहमान साहिबे निसाब हैं तो अपना फ़ित्रा खुद अदा करें

📙 फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 296

╭┈► *शादी शुदा बेटी का फ़ित्रा :* अगर शादी शुदा बेटी बाप के घर ईद करे तो उस के छोटे बच्चों का फ़ित्रा उन के बाप पर है जब कि औरत का न बाप पर न शोहर पर अगर साहिबे निसाब है तो खुद अदा करे

📗 फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा जिल्द 10 सफ़ह 296

╭┈► *बिला इजाज़त फ़ित्रा अदा करना :* अगर बीवी ने शोहर की इजाज़त के बिगैर उस का फ़ित्रा अदा किया तो स-द-कए फ़ित्र अदा नहीं होगा जब कि सरा हतन या दला लतन इजाज़त न हो अगर शोहर ने बीवी या बालिग औलाद की इजाजत के बिगैर उन का फ़ित्रा अदा किया तो स-द-कए फ़ित्र अदा हो जाएगा बशर्ते कि वोह उस के इयाल में हो

╭┈► आ'ला हज़रत रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़तावा रज़विय्या में फ़रमाते हैं कि स-द-कए फ़ित्र इबादत है और इबादत में निय्यत शर्त है तो बिला इजाज़त ना मुम्किन है हां इजाज़त के लिये सराहत होना ज़रूर नहीं दलालत काफ़ी है मसलन जैद उस के इयाल में है, उस का खाना पहनना सब उस के पास से होता है , इस सूरत में अदा हो जाएगा!..✍🏻

📕 माखूज़ अज़ फ़तावा रज़विय्या जिल्द 20 सफ़ह 453

  *📬  फ़ैज़ाने  ज़कात  सफह -  119 📚*

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              *⇩  ✫  ईदुल   फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈► *मुआफ़ी का ए'लाने आम :* अल्लाह का करम बालाए करम है कि उसने माहे रमज़ानुल मुबारक के फौरन ही बा'द हमें ईदुल फित्र की ने मते उज्मा से सरफ़राज़ फ़रमाया इस ईदे सईद की बेहद फजीलत है

╭┈► लेकिन हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ की एक रिवायत में येह भी है जब ईदुल फित्र की मुबारक रात तशरीफ़ लाती है तो इसे लैलतुल जाइज़ा या'नी इन्आम की रात के नाम से पुकारा जाता है

╭┈► जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह अपने मासूम फिरिश्तों को तमाम शहरों में भेजता है लेकिन वोह फ़िरिश्ते ज़मीन पर तशरीफ ला कर सब गलियों और राहों के सिरों पर खड़े हो जाते हैं और इस तरह निदा देते हैं ऐ उम्मते मुहम्मद ﷺ उस रब्बे करीम की बारगाह की तरफ चलो जो बहुत ही ज़ियादा अता करने वाला और बड़े से बड़ा गुनाह मुआफ फरमाने वाला है

╭┈► फिर अल्लाह अपने बन्दों से यूं मुखातिब होता है ऐ मेरे बन्दो मांगो क्या मांगते हो मेरी इज्जतो जलाल की कसम आज के रोज़ इस (नमाजे ईद के) इज्तिमाअ में अपनी आखिरत के बारे में जो कुछ सुवाल करोगे वोह पूरा करूंगा और जो कुछ दुन्या के बारे में मांगोगे उस में तुम्हारी भलाई की तरफ़ नज़र फ़रमाऊंगा
(या'नी इस मुआमले में वोह करूंगा जिस में तुम्हारी बेहतरी हो)

╭┈► मेरी इज्जत की कसम ! जब तक तुम मेरा लिहाज़ रखोगे मैं भी तुम्हारी खताओं पर पर्दा पोशी फ़रमाता रहूंगा मेरी इज्जतो जलाल की कसम मैं तुम्हें हद से बढ़ने वालों (या'नी मुजरिमों) के साथ रुस्वा न करूंगा बस अपने घरों की तरफ मरिफ़रत याफ्ता लौट जाओ तुम ने मुझे राज़ी कर दिया और मैं भी तुम से राजी हो गया!...✍🏻

*📬 अत्तरगीब वत्तरहीब जिल्द 2 सफ़ह 60 हदीस 23 📚*

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     या  रब  मैं  तेरे  ख़ौफ़  से  रोता रहूँ  हर  दम

        दीवाना  शहंशाहे  मदीना  का  बना  दें

              *⇩  ✫  ईदुल   फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈► *ईदी मिलने की रात :* खुदाए रहमान त'अला हम गुनहगारों पर किस कदर मेहरबान है एक तो रमजानुल मुबारक में सारा महीना वोह हम पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमाता ही रहता है फिर जूं ही येह मुबारक महीना हम से जुदा होता है फौरन हमें ईदे सईद की खुशियां अता फरमाता है

╭┈► गुज़श्ता हदीसे मुबारक में शव्वालुल मुकर्रम की चांद रात या'नी शबे ईदुल फित्र को "
लैलतुल जाइज़ा "या'नी इन्आम की रात करार दिया गया है। येह रात नेक लोगों को इन्आम मिलने की गोया ईदी दिये जाने की रात है। इस मुबारक रात की बेहद फजीलत है 

╭┈► *दिल जिन्दा रहेगा :* रसूलल्लाह ﷺ का फरमाने बरकत निशान है जिस ने ईदैन की रात (या'नी शबे ईदुल फित्र और शबे ईदुल अज़्हा) तलबे सवाब के लिये कियाम किया उस दिन उस का दिल नहीं मरेगा जिस दिन (लोगों के) दिल मर जाएंगे

📙 सुनने इब्ने माजह जिल्द 2 सफ़ह 365 हदीस 1782

╭┈► *जन्नत वाजिब हो जाती है :* एक और मकाम पर हज़रते सय्यिदुना मुआज बिन जबल رضی اللہ تعالی عنہ से मरवी है फ़रमाते हैं, जो पांच रातों में शब बेदारी करे उस के लिये जन्नत वाजिब हो जाती है 1 जुल हिज्जा शरीफ़ की आठवीं नवीं और दस्वीं रात ( इस तरह तीन रातें तो येह हुई ) और चौथी ईदुल फित्र की रात पांचवीं शा'बानुल मुअज्जम की पन्दरहवीं रात ( या'नी शबे बराअत )!...✍🏻

*📬 अत्तरगीब वत्तरहीब , जिल्द 2 सफह 98 हदीस 2 📚*

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              *⇩  ✫  ईदुल   फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈► सय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ की रिवायत कर्दा तवील हदीसे पाक (जो आगे गुज़री) में येह मज़मून भी है ईद के रोज़ मासूम फ़िरिश्ते अल्लाह की अताओं और बख्शिशों का एलान करते हैं। और अल्लाह खुद भी बेहद करम फ़रमाता है और अपनी इनायत व रहमत से नमाजे ईद के लिये जम्अ होने वाले मुसल्मानों की मग्फिरत फरमा देता है

╭┈► मजीद बर आं अल्लाह की तरफ़ से येह भी फ़रमाया जाता है कि जिसे जो कुछ दुन्या व आख़िरत की खैर मांगनी है वोह सुवाल करे उस पर ज़रूर करम किया जाएगा। काश ! ऐसे मांगने के मवाकेअ पर हमें मांगना आ जाए क्यूं कि उमूमन लोग इन मौकओं पर सिर्फ दुन्या की खैर रोज़ी में बरकत और न जाने क्या क्या दुन्या के मुआ-मलात पर सुवाल करते हैं दुन्या की खैर के साथ साथ आखिरत की खैर ज़ियादा मांगनी चाहिये दीन पर इस्तिकामत और ख़ातिमए बिल खैर वोह भी मदीने में वोह भी रसूलल्लाह ﷺ कदमों में वोह भी ब सूरते शहादत और मद्फ़न जुन्नतुल बक़ी में और बिला हिसाबो किताब मरिफ़रत और जन्नतुल फ़िरदौस में रसुलल्लाह  ﷺ का पड़ौस भी मांग लेना चाहिये!..✍🏻

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                *⇩  ✫   ईदुल   फ़ित्र   ✫  ⇩*

╭┈► *औलियाए किराम रहमतुल्लाह तआला अलैह भी तो ईद मनाते रहे हैं :* आजकल गोया लोग सिर्फ नए नए कपड़े पहनने और उम्दा खाने तनावुल करने को ही ईद समझ बैठे हैं ज़रा गौर तो कीजिये हमारे बुजुर्गाने दीन भी तो आख़िर ईद मनाते रहे हैं मगर इन के ईद मनाने का अन्दाज़ ही निराला रहा है। वोह दुन्या की लज्जतों से कोसों दूर भागते रहे हैं और हर हाल में अपने नफ्स की मुखालफत करते रहे हैं

╭┈► *रूह को भी सजाइये :* इस में कोई शक नहीं कि ईद के दिन गुस्ल करना नए या धुले हुए कपड़े पहनना और इत्र लगाना सुन्नत है। येह सुन्नतें हमारे ज़ाहिरी बदन की सफाई के लिये हैं। लेकिन हमारे इन साफ उजले और नए कपड़ों और नहाए हुए और खुश्बू मले हुए जिस्म के साथ साथ हमारी रूह भी हम पर हमारे मां बाप से भी ज़ियादा मेहरबान खुदाए रहमान की महब्बत व इताअत और रसूलल्लाह ﷺ की उल्फ़त व सुन्नत से खूब खूब सजी हुई होनी चाहिये!..✍🏻

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              *⇩  ✫  ईदुल   फ़ित्र  ✫  ⇩*

╭┈► *इन बातों से परहेज़ करें :* अब हम चंद ऐसी चीज़ों का ज़िक्र करने जा रहे हैं जो हमारे मुआशरे में राइज हैं मगर शरीअत की रू से इसको करना किसी तोर पर दुरुस्त नहीं बल्कि दुनिया व आखिरत में तबाही का सबब है ईद का दिन आने पर आम तौर पर मुसलमान सिनेमा ड्रामा सर्कस वगैरा देखने जाते हैं। बाज़ मुसलमान ईद के दिन शराब नोशी जुआ वगैरा खेलते हैं। बाज़ जगहों पर गाने वगैरा लगा कर लड़कों के साथ साथ लड़कियाँ भी नाचती हैं। बाज़ जगहों पर पटाखे वगैरा फोड़े जाते हैं। बाज़ लोग गैर मुस्लिमों की बाकायदा एहतेमाम के साथ दावत करते हैं और उन्हें भी अपने इस मुकद्दस तहवार में शरीक करना चाहते हैं। बाज़ जगहों पर बाकायदा टी.वी. लगा कर लोगों को जमा करके लोग फिल्में देखते हैं (मआज़ल्लाह)

╭┈► मेरे प्यारे आका ﷺ के प्यारे दीवानो ! मजकूरा उमूर का इरतिकाब सरासर अल्लाह व रसूल की नाराजगी का सबब बनते हैं मजकूरा अफ़आले मज़मूमा व कबीहा के इरतिकाब से हम हरगिज़ फलाहे दारैन की अबदी सआदतों को हासिल नहीं कर सकेंगे। फलाह व कामयाबी तो अल्लाह अज़्ज़वजल और रसूलुल्लाह ﷺ की इताअत व फरमांबरदारी में है।

🤲🏻 ⚘​ रब्बे कदीर की बारगाह में दुआ है कि हम सब को अपने हबीब ﷺ की प्यारी सुन्नतों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए।...✍🏻 आमीन

*📬 माहे रमज़ान कैसे गुज़ारें सफ़ह - 127 📚*

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